UP Board Class 10 Hindi Chapter 9 – तुमुल (खण्डकाव्य)
UP Board Class 10 Hindi Chapter 9 – तुमुल (खण्डकाव्य)
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 9 तुमुल (खण्डकाव्य)
(वाराणसी, इटावा, बिजनौर, जालौन एवं बदायूँ जिलों के लिए)
कथासार / कथानक / कथावस्तु, विषयवस्तु पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 1. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए |
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य की कथा / कथावस्तु / कथानक संक्षेप में अपनी भाषा/ अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य की कथा संक्षेप में लिखिए ।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य की कथावस्तु पर संक्षेप में प्रकाश डालिए ।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य की कथावस्तु लिखिए ।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के रचयिता ‘हल्दीघाटी’ के प्रणेता श्यामनारायण पाण्डेय हैं। सम्पूर्ण खण्डकाव्य को पन्द्रह सर्गों में विभाजित किया गया है। इनका क्रम इस प्रकार है – ईश स्तवन, दशरथ- पुत्रों का जन्म एवं बाल्यकाल, मेघनाद, मकराक्ष- वध, रावण का आदेश, मेघनाद-प्रतिज्ञा, मेघनाद का अभियान, युद्धासन्न . सौमित्र, लक्ष्मण – मेघनाद युद्ध तथा लक्ष्मण की मूर्च्छा, हनुमान द्वारा उपदेश, उन्मन राम, राम विलाप और सौमित्र का उपचार, विभीषण की मन्त्रणा, मख – विध्वंस और मेघनाद वध तथा राम की वन्दना ।
इस खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग में ईश-वन्दना करने के पश्चात् कवि ने दूसरे सर्ग में राम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न के जन्म का वर्णन किया है और महाराज दशरथ की कीर्ति भी वर्णित की है। तीसरे सर्ग में मेघनाद के बल, बुद्धि, रण-कौशल आदि का वर्णन किया गया है। उसने युवावस्था में ही इन्द्र के पुत्र जयन्त को हराकर ख्याति पाई थी। उसके सामने युद्ध में कोई भी नहीं ठहर पाता था । चतुर्थ सर्ग में श्रीराम द्वारा मकराक्ष-वध एवं उसकी मृत्यु से शोक संतप्त रावण की मनोदशा का वर्णन है। मकराक्ष की मृत्यु से दुःखी रावण अपने ज्येष्ठ पुत्र मेघनाद को युद्ध के लिए भेजने का निर्णय लेता है, क्योंकि मेघनाद को वह अपने समान ही पराक्रमी मानता था । पंचम सर्ग में रावण मेघनाद को युद्ध के लिए कूच करने का आदेश देता है और उसके शौर्य की प्रशंसा करते हुए मकराक्ष वध का प्रतिशोध लेने के लिए कहता है। पिता की आज्ञा मानते हुए षष्ठ सर्ग में मेघनाद युद्धभूमि में जाने के लिए तैयार हो जाता है। वह प्रतिज्ञा करता है कि यदि आज के संग्राम में विजयी बनकर नहीं लौटा तो फिर कभी युद्ध नहीं करेगा। सप्तम सर्ग में मेघनाद युद्ध के लिए प्रस्थान करता है। वह अपनी हारी हुई सेना में नवीन उत्साह भरता है और भीषण रण के लिए तैयार हो जाता है।
अष्टम सर्ग में सौमित्र भी मेघनाद की ललकार सुनकर श्रीराम से युद्ध करने की अनुमति लेते हैं, परन्तु जब रणभूमि में उनका मेघनाद से सामना होता है, तो उस वीर की प्रशंसा करने से वे स्वयं को रोक नहीं पाते और उससे युद्ध न कर पाने की इच्छा व्यक्त करते हैं, परन्तु नवम सर्ग में मेघनाद उनसे युद्ध की माँग करता है। वे . युद्घोचित सत्कार के पश्चात् लक्ष्मण को युद्ध करने के लिए ललकारता है। इस पर लक्ष्मण कुपित होकर युद्ध करना प्रारम्भ करते हैं। दोनों वीरों में काफी समय तक भयानक संग्राम होता है। दोनों पक्ष की सेनाएँ इस भीषण युद्ध को देखकर संशय में पड़ जाती हैं कि किसकी विजय होगी। अन्त में लक्ष्मण की शक्ति का ह्रास होते देख मेघनाद उन पर शक्ति छोड़ता है, जिसके लगते ही लक्ष्मण मूर्च्छित होकर गिर पड़ते हैं।
दशम सर्ग में हनुमान वानर सेना को उपदेश देते हैं कि वे लक्ष्मण की दशा देखकर अपना धीरज न खोएँ, क्योंकि इससे शत्रु को उनका उपहास करने का अवसर मिल जाएगा। एकादश सर्ग में राम की उन्मन दशा वर्णित है। उन्हें रह-रहकर किसी अनिष्ट की आशंका होती है, जिससे उनका हृदय काँप उठता है। द्वादश सर्ग में राम मूर्च्छित लक्ष्मण को देखकर तरह-तरह से विलाप करते हैं। लक्ष्मण उनके प्राणों का आधार थे, इसलिए उनकी ऐसी दशा देखकर राम की स्थिति अत्यन्त कारुणिक हो जाती है। तब मारुति जाम्बवन्त के आदेश से लंका के वैद्यराज सुषेन को लेकर आते हैं तथा उनके द्वारा बताई हुई संजीवनी बूटी लाते हैं, जिससे उन्होंने लक्ष्मण का उपचार किया। उपचार के उपरान्त लक्ष्मण स्वस्थ होकर उठ बैठे और उनकी सेना हर्षित हो उठी। त्रयोदश सर्ग में विभीषण राम से मन्त्रणा करते हैं कि मेघनाद देवी निकुम्भिला का यज्ञ कर रहा है। यदि उसका यह यज्ञ पूरा हो गया, तो वह अजेय हो जाएगा। इसलिए उस पर अभी आक्रमण कर देना चाहिए। राम उससे सहमत होते हुए लक्ष्मण को युद्ध की आज्ञा देते हैं। चतुर्दशसर्ग में लक्ष्मण द्वारा मेघनाद का वध करने का वर्णन है। लक्ष्मण उसका यज्ञ पूर्ण नहीं होने देते और यज्ञशाला में ही उसका अन्त कर देते हैं। यद्यपि क्रोधित मेघनाद की बातें सुनकर एक बार लक्ष्मण उस पर प्रहार करने से पूर्व सोच में पड़ जाते हैं, परन्तु विभीषण के पुनः कहने पर वे उसका वध कर देते हैं। अन्तिम सर्ग में राम, लक्ष्मण की विजय को अपूर्व बताकर उसका अभिनन्दन करते हैं, परन्तु लक्ष्मण अपनी जीत का श्रेय उन्हीं को देते हैं और उनकी स्तुति करते हैं। यहाँ इस खण्डकाव्य का अन्त होता है।
इस खण्डकाव्य का कथानक सरल रेखा की तरह लक्ष्योन्मुख है। इसका प्रमुख उद्देश्य लक्ष्मण – मेघनाद के बीच हुए युद्ध का चित्रण करना है। यद्यपि खण्डकाव्य का कथानक संक्षिप्त है और संवादों की प्रधानता है, परन्तु फिर भी काव्य कहीं भी शिथिल नहीं पड़ता। कथासूत्र कहीं भी धीमा नहीं पड़ता और घटनाओं के तेज़ी से घटने के कारण काव्य में गतिशीलता है, जिससे एक काव्य-लय उत्पन्न हो गई है। कवि का लेखन एवं कथा संगठन प्रशंसनीय हैं, क्योंकि रामायण के इस महत्त्वपूर्ण अंश को सरलतापूर्वक संक्षिप्त रूप से काव्यबद्ध करना सरल नहीं है। अन्त में कहा जा सकता है कि यह खण्डकाव्य अत्यन्त रोचक, ओज गुण से परिपूर्ण, प्रवाहमान तथा संशक्त कथानक वाला है, जो पाठकों को निराश नहीं करता ।
प्रश्न 2. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य, के प्रथम सर्ग की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए ।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के किसी एक सर्ग का शीर्षक लिखकर उसका सारांश लिखिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के किसी एक सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
प्रथम सर्ग
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग का नाम ‘ईश स्तवन’ है। इस सर्ग में ईश्वर की वन्दना की गई है तथा उसे सृष्टि के कण-कण में विद्यमान बताया गया है । कवि ईश्वर को नभ, तारों के प्रकाश, रवि, चाँद, वृक्षों, पवन, अग्नि, सागर, फूलों आदि में देखता है और उसे प्रणाम करता है। यह सर्ग मंगलाचरण के रूप प्रस्तुत किया गया है।
प्रश्न 3. तुमुल’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग का कथानक संक्षेप में लिखिए।
द्वितीय सर्ग
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग का नाम ‘दशरथपुत्रों का जन्म एवं बाल्यकाल’ है। इसकी कथावस्तु इस प्रकार है
सन्तानहीन राजा दशरथ का दुःख दूर करने तथा सज्जनों को अत्याचार एवं अन्याय से बचाने के लिए इक्ष्वाकु (सूर्य) वंश में राम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न का जन्म हुआ था। इनकी तेज तथा मनोहर छवि से सभी हर्षित होते थे। दशरथ सहित तीनों माताएँ राजकुमारों की बाल-क्रीड़ाएँ देखकर परम सुख पाती थीं। लक्ष्मण की माता देवी सुमित्रा थी।
दशरथ इक्ष्वाकु (सूर्य) वंश के परम प्रतापी राजा थे। सम्पूर्ण भारतवर्ष में उनकी कीर्ति की ध्वजा फहरा रही थी। वे कर्तव्यपरायण होने के साथ-साथ दानवीर भी थे और युद्धविद्या में भी प्रवीण थे। युद्ध में महाराज दशरथ ने सदा विजय प्राप्त की थी। वे परम उदार थे। सच्चरित्र दशरथ नीति-निपुण. गुणी तथा सभी विद्याओं के ज्ञाता थे। ऋषि-मुनि तथा साधारण जन उनके राज में सुख से रहते थे। ऐसे गुणवान राजा के पुत्र भी गुणी थे और वे शिक्षा ग्रहण कर अपने चरित्र को उज्ज्वल कर रहे थे।
प्रश्न 4. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग का कथानक लिखिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग का कथानक संक्षेप में लिखिए ।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के ‘मेघनाद’ सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
तृतीय सर्ग
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग (मेघनाद) में रावण के सबसे बड़े और पराक्रमी पुत्र मेघनाद का वर्णन है। इसका कथानक इस प्रकार है मेघनाद राक्षसों के राजा रावण का पुत्र था। उसका तेज सूर्य के समान था, साथ ही वह बहुत पराक्रमी और रणधीर था। उसने युवावस्था में इन्द्र के पुत्र जयन्त को में पराजित किया था तथा सर्पराज को हराकर फणी-समाज को भी अपने युद्ध अधीन कर लिया था। उसके प्रताप से धरती के सभी राजा डरते थे। उसके सामने आने से सभी घबराते थे। अब तक उसके समक्ष युद्ध में कोई भी ठहर नहीं पाया था। उसके पराक्रम के सामने सभी नतमस्तक हो जाते थे।
प्रश्न 5. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य में मकराक्ष वध के परिणामस्वरूप शोकग्रस्त रावण की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के चतुर्थ और पंचम सर्ग में मकराक्ष – वध के परिणामस्वरूप शोकग्रस्त रावण की मनोदशा का वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार है
चतुर्थ सर्ग (मकराक्ष – वध )
इस सर्ग में राम द्वारा मकराक्ष वध का वर्णन किया गया है। श्रीराम ने अपने तीखे बाणों के द्वारा राक्षसों का संहार किया। उनके सामने राक्षस- पुत्र मकराक्ष भी टिक नहीं पाया और वह युद्ध में उनके हाथों मारा गया। इस घटनाक्रम को सुनकर दशानन रावण उनसे भयभीत गया और दुःख से उसका हृदय भर आया। मकराक्ष को याद करते हुए दुःख और शोक से उसका मुख पीला पड़ गया और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसने मकराक्ष की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए मेघनाद को युद्ध में भेजने की योजना बनाई, क्योंकि मेघनाद उसके समान ही परमवीर था । मेघनाद ने अनेक राजाओं के साथ ही देवराज इन्द्र को भी पराजित किया था और ‘इन्द्रजीत’ उपनाम पाया था। युद्ध क्षेत्र में वह काल का भी काल दिखाई देता था ।
प्रश्न 6. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के पंचम सर्ग का कथानक लिखिए।
पंचम सर्ग (रावण का आदेश )
उत्तर मेघनाद के प्रताप के सामने रावण कुछ पल के लिए मकराक्ष – वध की व्यथा भी भूल गया था। उसने निश्चय कर लिया था कि अब मेघनाद को ही युद्ध के लिए भेजना उपयुक्त रहेगा। मकराक्ष – वध को सुनकर स्वयं मेघनाद भी राम-लक्ष्मण से युद्ध के लिए बहुत उतावला था। वह रावण से मिलने आया और उसके चरण-स्पर्श किए। उसका अनुकूल व्यवहार देखकर रावण ने उससे कहा, हे पुत्र! तुम्हारे रहते हुए राज्य की कैसी दशा हो गई है। सब ओर अस्थिरता छाई हुई है, चारों ओर हलचल मची हुई है। न जाने मेरे नगर में यह परिस्थिति क्यों उत्पन्न हुई है? परन्तु हे पुत्र ! जो भी हो, अब हम युद्ध से पीछे नहीं हट सकते। अब राम से बदला लेना हो धर्म हो गया है। अतः मेरी आज्ञा है कि तुम युद्ध क्षेत्र में जाओ और लक्ष्मण को मारकर मेरे हृदय के विवाद को समाप्त करो।’ आगे रावण मेघनाद के बल और वीरता का गुणगान करता है। वह कहता है कि मेघनाद तुम्हारी शक्तियों का अन्त नहीं है। घमासान युद्ध में भी तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं होता। युद्ध क्षेत्र में तुम्हारे सामने आने का साहस किसी में नहीं है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम युद्ध में शत्रु दल को अवश्य पराजित करोगे और राम से मकराक्ष-वर्ष का प्रतिशोध लोगे। अतः अब तुम्हें शीघ्र ही युद्ध के लिए प्रस्थान करना चाहिए।
प्रश्न 7. तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर मेघनाद प्रतिज्ञा’ का वर्णन कीजिए।
अथवा तुमुल’ खण्डकाव्य के मेघनाद प्रतिज्ञा सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर मेघनाद की प्रतिज्ञा’ सर्ग का सारांश लिखिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के षष्ठ सर्ग का कथानक / कथावस्तु लिखिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के षष्ठ सर्ग मेघनाथ प्रतिज्ञा की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के पंचम सर्ग (रावण का आदेश ) तथा षष्ठ सर्ग (मेघनाद प्रतिज्ञा) की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए ।
षष्ठ सर्ग
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के षष्ठ सर्ग मेघनाद की प्रतिज्ञा’ में मेघनाद द्वारा की गई प्रतिज्ञा का वर्णन है। इस सर्ग का सारांश इस प्रकार है-
पिता से युद्ध की आज्ञा प्राप्त कर मेघनाद ने भीषण गर्जना की। उसकी ललकार से रावण का स्वर्ण महल भी काँप गया। वहाँ बैठे सभी वीर उत्साह से एकटक उसे देखने लगे। यह देखकर रावण का हृदय भी विजय की आशा से सगर्व फूल गया। पिता को देखकर मेघनाद ने प्रतिज्ञा की— हे पिताजी! मेरे होते हुए आपको शोक करने की आवश्यकता नहीं। यदि मैं आपका कष्ट नहीं हर पाया तो फिर कभी धनुष धारण नहीं करूंगा। उसने कहा
“मैं राम के सम्मुख हो लड़ेंगा, जाके सभी का शिर काट दूँगा ।
सौमित्र का भी बल देख लूँगा, लंकापुरी का दुःख मै हरूँगा ।। “
मेघनाद आगे कहता है कि वे (राम-लक्ष्मण) झूठे अभिमान से भरे हुए हैं. लगता है अभी तक उनका सामना वीरों से नहीं हुआ है। मैं रणक्षेत्र में रक्त की धारा बहा दूँगा। मैं आप से बस इतना ही कहता हूँ कि संग्राम में मैं विजयी बनकर ही लौटूंगा। मैं सिंह की भाँति भयंकर युद्ध करूँगा और अपने शत्रुओं का नाश करूँगा। वे चाहे आकाश में वास करें या पाताल में शरण लें, वे कहीं भी मुझसे अपने प्राणों की रक्षा नहीं कर पाएँगे। अन्त में वह रावण को वचन देता है
“लेंगे न देख मम नेत्र अड़ा किसी को,
दूँगा सगर्व रहने न खड़ा किसी को ।
संग्राम में यदि न मैं विजयी बनूँगा,
तो युद्ध का फिर न नाम कदापि लूँगा । । “
प्रश्न 8. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘मेघनाद अभियान सर्ग की कथा लिखिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के ‘मेघनाद’ का ‘अभियान सर्ग’ का कथानक संक्षेप में लिखिए |
सप्तम सर्ग
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य में वर्णित सप्तम सर्ग ‘मेघनाद का अभियान का कथासार इस प्रकार है-
अपने पिता रावण के सामने प्रतिज्ञा कर मेघनाद ने उसे धीरज बँधाया, परन्तु पिता का दुःख देखकर स्वयं क्रोध से जलने लगा। वह युद्ध के लिए तैयार होकर रणभूमि में जाने के लिए सजग हो गया। उसके क्रोध से समस्त देवता भी काँपने लगे। ऐसा लग रहा था मानो उसके हाथों सभी की मृत्यु आ गई है। उसने अपने तेज और क्रोध से सभी को डरा दिया था । उसका क्रोध प्रचण्ड था ।
“उस भाँति उसका क्रोध द्वारा, लाल मुख था हो गया।
मानो दशानन-लाल का मुख, काल-मुख था हो गया । । “
राम को पराजित करने की बात सोचता हुआ वह अपनी सेना का अवलोकन करने गया। एक बार तो उसके सेनापति भी उसके क्रोध से डर गए और काँपते हुए उसके क्रोध का कारण पूछा
“क्या क्रोध करने का महोदय, हेतु है बतलाइए ।
मैं जानता कुछ भी नहीं हूँ, इसलिए बतलाइए । । “
अपने सैनिकों में उत्साह पाकर मेघनाद सेनापति को रथ सजवाने एवं युद्ध के बाजे बजाने के लिए निर्देश देता है। एक ओर लंका के वीर विजय की आशा कर रहे थे, तो दूसरी ओर देव लोक मेघनाद की वीरता का अनुमान लगाते हुए श्रीराम एवं उनकी सेना के अनिष्ट के बारे में सोच-सोचकर घबरा रहा था। युद्ध के लिए मेघनाद को जाते हुए देखकर देवताओं के मुख भय से पीले पड़ गए।
“कैसे बचेंगे राम’ कह, चिन्ताग्नि से जलने लगे।
भयभीत होकर सुर परस्पर बात यों करने लगे । । “
सभी देवता उसकी वीरता के बारे में जानते हैं। अतः वे कहने लगे कि मेघनाद तो काल को भी मारने में समर्थ है। लगता है आज भूमि वीरों से विहीन हो जाएगी । ऐसा लगता है कि आज तो वह राम को जीत ही लेगा ।
जब वह बाण छोड़ता है तो सूर्य और चन्द्रमा भी धीरज त्याग देते हैं। यद्यपि रघुनाथ बलशाली हैं, परन्तु आज मेघनाद सिंह के समान लड़ेगा। देवतागण परस्पर ये बातें ही कर रहे थे कि मेघनाद ने युद्धक्षेत्र में क्रोध से भरकर सिंह के समान भयानक गर्जना की।
प्रश्न 9. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘युद्धासन्न सौमित्र’ खण्ड की कथा संक्षेप में लिखिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के ‘युद्धासन्न सौमित्र’ सर्ग का कथानक लिखिए।
अष्टम सर्ग (युद्धासन्न सौमित्र)
उत्तर इस सर्ग में राम जी से आज्ञा पाकर लक्ष्मण युद्ध करने के लिए तैयार हो गए। मेघनाद की रण-गर्जना सुनकर शत्रु सेना भी भयंकर नाद करने लगी । युद्धातुर लक्ष्मण को देखकर हनुमान आदि वीर भी युद्ध हेतु तत्पर हो गए । लक्ष्मण ने क्षण भर में ही मेघनाद के सम्मुख मोर्चा ले लिया। दोनों वीरों में भीषण युद्ध प्रारम्भ हो गया। इस युद्ध में कौन विजयी होगा, इसका अनुमान नहीं किया जा सकता था। मेघनाद के उन्नत ललाट, लम्बी भुजाओं और वीरवेश को देखकर स्वयं लक्ष्मण ने भी उनकी प्रशंसा की। लक्ष्मण ने कहा कि तुम्हें अपने सम्मुख देखकर भी युद्ध करने की इच्छा नहीं होती। मुझे चिन्ता है कि मैं अपने बाणों से तेरी छाती को कैसे छलनी करूँगा? मेघनाद, लक्ष्मण के मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर उनकी उदारता के विषय में विचार करने लगा । यद्यपि वह लक्ष्मण के ज्ञान की गरिमा को समझता है, फिर भी शत्रु समझकर उनकी मधुर वाणी के जाल में उलझना नहीं चाहता और युद्ध करने का निश्चय करता है।
प्रश्न 10. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर नवम सर्ग का वर्णन कीजिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर लक्ष्मण मेघनाद युद्ध का वर्णन कीजिए ।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नवम सर्ग का सारांश लिखिए ।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर नवम सर्ग ‘लक्ष्मण मेघनाद युद्ध तथा लक्ष्मण की मूर्च्छा’ का सारांश लिखिए।
अथवा लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध तथा लक्ष्मण की मूर्च्छा’ सर्ग की कथावस्तु लिखिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नवम सर्ग की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर लक्ष्मण – मेघनाद युद्ध एवं उसके परिणाम पर प्रकाश डालिए।
नवम सर्ग
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नवम सर्ग का नाम ‘लक्ष्मण मेघनाद युद्ध तथा लक्ष्मण की मूर्च्छा’ है। इसमें दोनों के मध्य हुए युद्ध एवं उसके परिणाम का वर्णन इस प्रकार है
लक्ष्मण द्वारा प्रशंसा सुनकर मेघनाद गर्वित हो उठता है, परन्तु कुछ देर सोचकर विनयपूर्वक कहता है कि आपके वचन सत्य हैं। आप भी रूपवान होने के साथ-साथ बुद्धिमान, अत्यन्त वीर, पराक्रमी, नीतिज्ञ, वेदज्ञानी, मर्मज्ञ तथा सर्वज्ञ हैं, किन्तु आप भी सुन लीजिए कि मैं आज यहाँ अपने पिता के सम्मुख प्रतिज्ञा करके आया हूँ कि मैं अपने शत्रुओं को युद्धभूमि में सदा-सदा के लिए सुला दूँगा। चाहे आपकी इच्छा कुछ भी हो, परन्तु मैं आज अपने पिता की इच्छा पूर्ण करने के लिए आया हूँ। मैं युद्ध किए बिना यहाँ से जाऊँगा नहीं। अतः आप भी युद्ध करने के लिए तैयार हो जाइए।
मेघनाद के वचन सुनकर लक्ष्मण को क्रोध आ गया और कहने लगे
“मैंने हँसी की और यह, बनता बली वरवीर है ।
यह नीच अपने आप को, क्या समझता रणधीर है ।। “
लक्ष्मण कहने लगते हैं कि पता नहीं क्या सोचकर मैंने अपने हृदय के भाव तुम्हें बता दिए, परन्तु सत्य यही है कि जिस प्रकार सर्प दूध पीने पर भी अपने विष को नहीं त्यागते, ठीक उसी प्रकार मधुर वाणी भी और खल नहीं सुधरते । सुनकर दुष्ट यह कहकर सौमित्र युद्ध के लिए तत्पर हो गए और शत्रु- पक्ष पर अपने तीखे बाणों से प्रहार करने लगे। उनके रण कौशल को देखकर मेघनाद की सेना का उत्साह मन्द पड़ गया और वे पीछे हटने लगी। यह देखकर मेघनाद अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाने लगा उसने अपने सैनिकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि शत्रु से डरकर रण त्यागना कायरता है। तुम्हारी इस कायरता पर धिक्कार है। मेरे युद्ध-कौशल को भी देखो और शत्रुओं से वीरतापूर्वक युद्ध करो। मैं शीघ्र ही शत्रुओं को परास्त कर दूँगा
” पूरा करूँगा तात से जो बात मैंने है कही ।
लड़ते हुए अरि को धराशायी करूँगा शीघ्र ही ।। “
मेघनाद का उपदेश सुनकर उसकी सेना में पुनः उत्साह का संचार हुआ और वह पहले की तरह शत्रु से लड़ने लगी। अब मेघनाद ने भीषण युद्ध करना प्रारम्भ कर दिया। वह कभी आकाश में जाकर तो कभी धरती पर आकर वानर सेना का संहार करने लगा। मेघनाद – लक्ष्मण में भयंकर संग्राम होने लगा। जिस प्रकार दो सिंह आपस में लड़ते हैं, वैसे ही दोनों वीर लड़ने लगे। मेघनाद धीरे-धीरे लक्ष्मण पर हावी होने लगा। लक्ष्मण की सेना भी मेघनाद के प्रताप से घबराने लगी। दोनों वीर रक्त से लथपथ थे।
लक्ष्मण की शक्ति मन्द पड़ते हुए देखकर मेघनाद ने शक्ति सन्धान किया और लक्ष्मण पर छोड़ दी। शक्ति लगते ही लक्ष्मण पलभर में मूर्च्छित होकर धरती पर गिर पड़े। लक्ष्मण की यह दशा देखकर उनकी सेना में भीषण विषाद छा गया। सारा संसार भी मेघनाद की शक्ति देखकर अकुला गया। इधर मेघनाद लक्ष्मण को पराजित करके गर्व से उन्मत्त होकर सिंह के समान दहाड़ता हुआ लंका की ओर चल पड़ा।
प्रश्न 11. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के ‘हनुमान द्वारा उपदेश’ सर्ग का सारांश लिखिए।
दशम सर्ग
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के दशम सर्ग (हनुमान द्वारा उपदेश ) में लक्ष्मण – मूर्च्छा के पश्चात् वानर सेना के व्याकुल होने का वर्णन है। इसका सारांश इस प्रकार है
लक्ष्मण के मूर्च्छित होते ही वानर सेना शोक से व्याकुल हो उठी। वे तरह-तरह से विलाप करने लगे और अपनी शक्ति खोने लगे। तब हनुमान ने परिस्थिति को सँभालते हुए सैनिकों को ढांढस बँधाया और उपदेश देने लगे। हनुमानजी कहते हैं कि इस समय चिन्ता करना व्यर्थ है।
तुम सब वीर हो, अतः वीर बनकर अपने हृदय की वेदना दूर करो। हम सभी श्रीराम के उपासक हैं, जो साक्षात् भगवान हैं। उनकी समता कोई नहीं कर सकता । काल भी उनके क्रोध देखकर व्याकुल हो जाता है। वे सदा शान्ति स्थापना के लिए अवतार लेते हैं। लक्ष्मण उनके प्राणों का आधार हैं। तुम्हें क्या लगता है कि जो लक्ष्मण रघुनाथ के हृदय में वास करते हैं, वे सदा के लिए सो गए? तुम्हारा यह सोचना एवं आँसू बहाना व्यर्थ है। अतः घबराओ नहीं और शान्त हो जाओ। जो धीर-वीर होते हैं, उन्हें इस प्रकार रण में शोक करना शोभा नहीं देता। तुम्हारी ऐसी दशा देखकर शत्रु तुम्हारा उपहास करेंगे। हनुमान के ये वचन सुनकर उनके सैनिक कुछ सँभले और शोकरहित होने लगे। राम अपनी कुटी में बैठे हुए थे। अचानक ही उनका मन चिन्तित हो गया।
प्रश्न 12. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य की जिस घटना ने आपको प्रभावित किया हो, उसका वर्णन कीजिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के द्वादश सर्ग (राम विलाप और सौमित्र का उपचार) की कथावस्तु का संक्षेप में वर्णन कीजिए ।
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के द्वादश सर्ग ‘राम विलाप और सौमित्र का उपचार’ का सारांश इस प्रकार है
लक्ष्मण को मूर्च्छित देखकर राम जैसे धीर-वीर पुरुष भी शोक – सागर में डूब जाते हैं। वे तरह-तरह से विलाप करते हुए कहते हैं कि तुम्हारी यह दशा मुझसे देखी नहीं जाती। मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता । तुम्हारे बिना मैं अयोध्या वापस कैसे जाऊँगा? तुम तो योगी हो, फिर आज नयन मूँदे क्यों पड़े हो? हे धनुर्धर ! तुम हाथ में धनुष लेकर फिर से उठ जाओ। मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता, एक बार अपने नेत्रों को खोलो। रघुनाथ की यह कारुणिक दशा देखकर जाम्बवन्त हनुमान को परामर्श देते हैं कि तुम शीघ्र जाकर लंका से वैद्यराज सुषेन को ले आओ।
हनुमान बिना विलम्ब किए वैद्यराज को लंका से ले आते हैं। सुषेन वैद्य कहते हैं कि संजीवनी बूटी के बिना लक्ष्मण की चिकित्सा असम्भव है। हनुमान फिर संकटमोचन बनकर संजीवनी लाने को प्रस्थान करते हैं। मार्ग में वे कालनेमि का संहार करते हैं। जब हनुमान पर्वत पर पहुँचे तो वे संजीवनी बूटी की पहचान न कर पाए । अतः देर किए बिना पूरा पर्वत लेकर ही लंका की ओर चल पड़े। उधर राम की व्याकुलता बढ़ती जा रही थी कि तभी हनुमान संजीवनी लेकर पहुँच जाते हैं। सुषेन संजीवनी बूटी से लक्ष्मण का उपचार करते हैं और
“सौमित्र सिंह समान सोकर, मुस्कराते जग गए।
रामादि के उर-ताप जाकर शत्रु – उर से लग गए । । “
लक्ष्मण की मूर्च्छा टूटते ही वानर सेना में सर्वत्र प्रसन्नता की लहर दौड़ गई और उनमें उत्साह का संचार होने लगा। यह सर्ग हमें इस काव्य का सबसे मार्मिक स्थल लगा, क्योंकि इसमें राम के भ्रातृ-प्रेम की झलक मिलती है। करुणा से भरकर उनका लक्ष्मण के लिए विलाप करना पाठकों को भी व्यथित कर देता है।
प्रश्न 13. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर विभीषण की मंत्रणा’ खण्ड का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के ‘मख विध्वंस’ और ‘मेघनाद वध’ सर्ग की कथा लिखिए |
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर मेघनाद वध का सारांश लिखिए ।
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के चतुर्दश सर्ग ‘मख – विध्वंस और मेघनाद वध’ का सारांश इस प्रकार है
सौमित्र अपने दल-बल सहित सीधे उस स्थान पर पहुँचे, जहाँ मेघनाद यज्ञ कर रहा था। मेघनाद को देखकर लक्ष्मण पल-भर के लिए रुके, परन्तु फिर तत्काल ही मेघनाद पर प्रहार करना आरम्भ कर दिया। मेघनाद के शरीर से रक्त बहने लगा और यज्ञ की अग्नि भी बुझने लगी, परन्तु मेघनाद यज्ञ में संलग्न रहा। एक-एक करके यज्ञ के पुरोहित, यजमान आदि लक्ष्मण की सेना द्वारा मारे गए। केवल मेघनाद ही शेष रह गया। विभीषण के कहने पर लक्ष्मण ने मेघनादं पर तीव्र प्रहार करने आरम्भ कर दिए। वह लक्ष्मण के इस कृत्य से क्रोधित हो उठा और कहने लगा कि इस प्रकार छल से युद्ध करना वीरों का लक्षण नहीं है। इस प्रकार यदि आपने मुझ पर विजय प्राप्त भी कर ली, तो वह आपकी हार ही होगी।
निशस्त्र यजमान को मारने का जो कलंक रघुवंश पर लगेगा, उसे कभी धोया नहीं जा ‘सकेगा। मेघनाद की यह बात सुनकर लक्ष्मण रुक गए
” घननाद की सुन बात धनु पर, वीर का सर रुक गया ।
क्षणभर मही की ओर उनका, आप ही सर झुक गया।।”
परन्तु विभीषण ने पुनः लक्ष्मण को मेघनाद पर प्रहार करने के लिए कहा। लक्ष्मण ने उनकी बात मानते हुए मेघनाद का संहार किया।
लक्ष्मण की विजय से हर्षित होकर स्वर्गलोक में देवता भी प्रसन्न होकर लक्ष्मण पर पुष्प-वर्षा करने लगे। इस प्रकार सौमित्र ने अपना प्रण पूरा किया।
प्रश्न 14. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य का प्रतिपाद्य विषय क्या है? उससे इस ग्रन्थ के रचयिता के किन उद्देश्यों की पूर्ति होती है? लिखिए |
उत्तर कविवर श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित खण्डकाव्य ‘तुमुल’ का मूल उद्देश्य लक्ष्मण एवं मेघनाद के बीच हुए युद्ध का वर्णन करना है।
‘रामचरितमानस’ से प्रेरित होकर लिखे गए इस खण्डकाव्य की कथावस्तु में मूल कथा के साथ अधिक छेड़छाड़ नहीं की गई है। इस खण्डकाव्य का मुख्य प्रयोजन लक्ष्मण की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालने के साथ ही, मेघनाद के व्यक्तित्व को भी समान रूप से महत्त्व देते हुए, उसका भी चित्रण करना है । कवि खण्डकाव्य के नायक तथा खलनायक दोनों का वर्णन करने में सफल हुआ है। लक्ष्मण रूप-सौन्दर्य, बल, बुद्धि, विनय, शील, सदाचार आदि गुणों की साकार मूर्ति हैं, परन्तु युद्ध में उतने ही भीषण भी हैं।
दूसरी ओर मेघनाद है, जो बल और शौर्य में लक्ष्मण से कम नहीं है। स्वयं लक्ष्मण भी उसकी प्रशंसा करते हैं, परन्तु वह अहंकारी, अभिमानी, क्रोधी तथा खल – प्रवृत्ति वाला है। रावण स्वयं अहंकारी, अधर्मी और वासनाओं का दास था। मेघनाद उसी का प्रतीक है। कहा जा सकता है कि कवि ने राम-रावण के व्यक्तित्व का द्वन्द्व दिखाने के लिए लक्ष्मण और मेघनाद का द्वन्द्व वर्णित किया है। लक्ष्मण और मेघनाद दोनों ही अपूर्व शक्ति के स्वामी थे, परन्तु राम के प्रताप एवं इच्छा से विजय लक्ष्मण की ही हुई ।
अतः कवि इस सत्य को एक बार फिर से प्रतिष्ठित करता है कि अधर्मी और तामसी वृत्ति वाला शत्रु कितना ही प्रबल क्यों न हो, परन्तु विजय उसकी ही होती है, जो धर्म के पक्ष में होता है।
अतः इस खण्डकाव्य का मुख्य उद्देश्य पाठकों को लक्ष्मण के व्यक्तित्व का अंश रहे सद्गुणों; जैसे- – त्याग, धैर्य, शूरवीरता, साहस, सदाचार, दया आदि को अपनाने की प्रेरणा देना है। लक्ष्मण का चरित्र निश्चित रूप से पाठकों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
प्रश्न 15. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के शीर्षक की सार्थकता या इसके नामकरण के औचित्य को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर ‘तुमुल’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है- भीषण । क्रोधी, व्याकुल, उत्तेजित, हंगामा, शोरगुल, अव्यवस्थित, रण-संकुल आदि इसके अन्य अर्थ हैं। ये सभी शब्द मिलकर युद्ध एवं उसके वातावरण का चित्र साकार करते हैं। इस खण्डकाव्य की मुख्य कथावस्तु भी युद्ध ही है । लक्ष्मण – मेघनाद के बीच हुए युद्ध का वर्णन ही यहाँ प्रमुख है। काव्य की भूमिका में लेखक स्वयं यह स्वीकार करता है कि इसका कथानक मुख्य रूप से लक्ष्मण – मेघनाद युद्ध की दिशा में ही उन्मुख है। उनके बीच हुए युद्ध का वर्णन करते हुए उन सभी शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है, जो ऊपर तुमुल के समानार्थी शब्द बताए गए हैं। दोनों अत्यन्त क्रोधी हैं, एक-दूसरे से युद्ध करने के लिए व्याकुल हैं एवं उत्तेजित हैं, उनके बीच भीषण युद्ध होता है और अन्त में अव्यवस्थित वातावरण में मेघनाद वीरगति प्राप्त करता है। इस प्रकार, इन सभी शब्दों के अर्थ को समाहित करते हुए इस खण्डकाव्य को ‘तुमुल’ शीर्षक देना उचित एवं सार्थक है। इसकी संक्षिप्तता, सार्थकता, विषय-वस्तु के लिए सटीकता आदि गुण इसे एक अच्छे शीर्षक के रूप में स्थापित करते हैं।
चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 16. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के मुख्य पात्र का चरित्रांकन कीजिए ।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक लक्ष्मण की चारित्रिक (चरित्र की) विशेषताएँ बताइए ।
अथवा तुमुल खण्डकाव्य के आधार पर उसके प्रधान पात्र का चरित्रांकन / चरित्र-चित्रण कीजिए ।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर उसके नायक / लक्ष्मण का चरित्रांकन / चरित्र-चित्रण कीजिए ।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक / लक्ष्मण का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘लक्ष्मण’ की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के प्रमुख कथानायक लक्ष्मण हैं। सम्पूर्ण खण्डकाव्य की कथावस्तु उनके चारों ओर ही घूमती है। श्रेष्ठ नायक गुणों से सम्पन्न लक्ष्मण के ‘चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
- सौन्दर्य की मूर्ति लक्ष्मण का रूप-सौन्दर्य अद्वितीय था। उनका व्यक्तित्व अत्यन्त आकर्षक था। कवि ने उनकी समता चन्द्रमा से की है तथा माता सुमित्रा के इस लाल को ‘अमूल्य’ कहा है। वे प्रारम्भ से ही आकर्षक थे। वे परम तेजस्वी, परन्तु सौम्य थे। उनका व्यक्तित्व ‘कान्ति के आगार’ कहकर स्पष्ट किया गया है। प्रतिद्वन्द्वी भी उनके व्यक्तित्व के आकर्षण से बच नहीं पाते। प्रतिनायक मेघनाद भी उन्हें देखकर अनायास ही कह उठता है, “प्रकट में कमनीय स्वरूप है”, “लावण्यधारी ब्रह्मचारी । ”
- उदात्त चरित्र बाह्य रूप से लक्ष्मण जितने सुन्दर एवं आकर्षक हैं, आन्तरिक रूप से भी उतने हीं सविनेय हैं। उनका अन्तःकरण एक शिशु की भाँति सरल, शुद्ध तथा कोमल है। उनमें उदारता, कोमलता, विनम्रता, दया, सौम्यता आदि मानवीय गुणों का समावेश है। उनके उदार – चित्त का परिचय खण्डकाव्य में कई स्थानों पर मिलता है। वे मेघनाद को शत्रु के रूप में देखने के पश्चात् भी उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं रहते । अन्त में यजमान तथा मेघनाद का संहार करते हु भी एक बार स्वयं को रोक लेते हैं।
- परम शक्तिशाली यह सत्य है कि लक्ष्मण उदार हृदय तथा कोमल स्वभाव वाले हैं, परन्तु एक क्षत्रिय की भाँति उनमें पराक्रम, ओज, वीरता, उत्साह आदि की भावना भी प्रबल थी। रण में लक्ष्मण धीर, वीर, गम्भीर तथा भीषण योद्धा हैं। शत्रु की ललकार सुनकर वे चुप नहीं रह सकते।
- राम के प्रति समर्पित लक्ष्मण श्रीराम के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। राम उन्हें अपना ‘अनन्य बाल भक्त’ स्वीकार करते हैं। वे राम के समान ही वीर, धीर हैं, परन्तु अपनी सफलता का सारा श्रेय राम को ही देते हैं। तभी तो मेघनाद पर विजय पाकर भी वे गर्वित नहीं होते और इसे उनके चरणों का प्रताप बताते हैं। वे श्रीराम के कारण ही वन में उनके साथ आए थे और प्रत्येक कार्य से पूर्व उनसे आशीर्वाद लेते थे।
इस प्रकार, लक्ष्मण अपने नाम के अनुरूप ही समस्त लक्षणों से युक्त थे। उनमें एक नायक के सभी गुण विद्यमान थे।
प्रश्न 17. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर मेघनाद / प्रतिनायक मेघनाद का चरित्र-चित्रण कीजिए ।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर मेघनाद का चरित्र-चित्रण कीजिए ।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर प्रतिनायक का चरित्र चित्रण कीजिए ।
उत्तर मेघनाद ‘तुमुल’ खण्डकाव्य का प्रमुख प्रतिनायक है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
- आकर्षक व्यक्तित्व नायक लक्ष्मण की भाँति ही मेघनाद भी आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी है। उसके तेजस्वी स्वरूप को देखकर सभी की दृष्टि उस पर ठहर जाती थी।
“जो वीर थे बैठे वहाँ वे, टक-टक लखने लगे । । ““रणभूमि में उसके उन्नत ललाट, ऊँचे भाल, नीले गात, चन्द्र जैसी शोभालम्बी-चौड़ी छाती, लम्बे पुष्ट – बाहु देखकर लक्ष्मण भी उसके सौन्दर्य की प्रशंसा करते हैं और कह उठते हैं“पाता होगा मोद माँ का कलेजा, तेरे जैसे पुत्र की देख शोभा ।पाता होगा सर्वदा हर्ष जी में, तेरा नामी विक्रमी जन्मदाता । । “
- परम शक्तिशाली एवं शूरवीर मेघनाद पराक्रम का अतुल्य स्वामी है, इस बात में कोई सन्देह नहीं। राम, लक्ष्मण तथा अन्य वीर भी उसके पराक्रम को स्वीकार करते हैं। उसने युद्ध में इन्द्र के पुत्र जयन्त तथा स्वयं इन्द्र को भी परास्त किया था। इसलिए उसे ‘इन्द्रजीत’ का उपनाम भी मिला था। रावण को उसकी शक्ति पर अपने समान ही विश्वास है। उसकी शक्तियों का अन्त नहीं है। जब वह युद्ध करता है तो देवता भी काँपने लगते हैं और रणधीर कहलाने वाले वीर भी धराशायी हो जाते हैं। वह युद्ध में एक बार लक्ष्मण पर हावी होकर उन्हें मूर्छित भी कर देता है।
- आत्मविश्वासी एवं अभिमानी मेघनाद को अपने बल, शौर्य तथा शक्ति पर अत्यधिक विश्वास है। वह प्रतिज्ञा करता है कि यदि विजयी होकर नहीं लौटा तो फिर कभी युद्ध नहीं करेगा। वह अपने प्रण को पूरा करने में सफल भी होता है, परन्तु वह अभिमानी भी है। लक्ष्मण द्वारा अपनी प्रशंसा सुनकर वह विनम्रता का नहीं, अपितु अहंकार का प्रदर्शन करता है।
“जो-जो कहा उसको उन्होंने, ध्यान से तो सुन लिया।पर गर्व से घननाद, सौमित्र को लख हँस दिया ।।”
- परम पितृभक्त भले ही मेघनाद राक्षस- राज रावण का पुत्र है, परन्तु राक्षस होने पर भी वह उच्च गुणों से सम्पन्न है। वह परम पितृभक्त है। वह सामने आने पर रावण के चरण-स्पर्श करता है। वह अपने पिता को चिन्तित देखकर व्याकुल हो उठता है। वह अपने पिता की सन्तुष्टि के लिए भीषण रण करने से भी नहीं घबरांता। वह अपने पिता को दिए गए वचन को पूर्ण करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। वह लक्ष्मण से कहता है
“अतएव मानूँगा नहीं, सन्नद्ध अब हो जाइए।हे वीरवर ! मेरी विजय से, बद्ध अब हो जाइए। । “
- तामसी वृत्ति वाला राक्षस-वंशी होने के कारण वह तामसी वृत्ति वाला भी है। इसलिए पुनः युद्ध से पूर्व वह तामसी – यज्ञ करता है। यज्ञ सम्पन्न करने के पश्चात् उसे पराजित करना कठिन था। इस यज्ञ को पूरा करने हेतु वह शत्रु लक्ष्मण के प्रहारों को भी काफी देर तक झेलता रहता है।
इस प्रकार कवि ने मेघनाद के चरित्र के सभी पक्षों को उजागर किया है। वह परम उत्साही, दृढ़-प्रतिज्ञ, शौर्यशाली, पितृभक्त है जिसके कारण वह प्रतिनायक होते हुए भी नायक लक्ष्मण पर हावी होता है, और लक्ष्मण द्वारा मारे जाने पर सहानुभूति भी पाता है।
प्रश्न 18. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘हनुमान’ का चरित्र चित्रण कीजिए ।
उत्तर तुमुल खण्डकाव्य के आधार पर हनुमान जी का चरित्र चित्रण इस प्रकार है
- अद्भुत संवाद कौशल सीता जी से हनुमान पहली बार रावण की ‘अशोक वाटिका’ में मिले, इस कारण सीता उन्हें नहीं पहचानती थीं। एक वानर से श्रीराम का समाचार सुन वह आशंकित भी हुईं, परन्तु हनुमान जी ने अपने ‘संवाद कौशल’ से उन्हें यह भरोसा दिला ही दिया कि वह राम के ही दूत हैं| सुन्दरकाण्ड में इस प्रसंग को इस तरह व्यक्त किया गया है
“ कपि के वचन सप्रेम सुनि, उपजा मन बिस्वास ।जाना मन क्रम बचन यह, कृपासिन्धु कर दास ।। “
- चतुराई हनुमान जी ने समुद्र पार करते समय सुरसा से लड़ने में समय नहीं गँवाया। सुरसा हनुमान जी को खाना चाहती थी। उस समय हनुमान जी ने अपनी चतुराई से पहले अपने शरीर का आकार बढ़ाया और अचानक छोटा रूप कर लिया। छोटा रूप करने के बाद हनुमान जी सुरसा के मुँह में प्रवेश करके वापस बाहर आ गए। हनुमान जी की इस चतुराई से सुरसा प्रसन्न हो गई और रास्ता छोड़ दिया । चतुराई की यह कला हम हनुमान जी से सीख सकते हैं।
- नेतृत्व क्षमता समुद्र में पुल बनाते समय उपेक्षित कमजोर और उच्छृंखल वानर सेना से भी कार्य निकलवाना उनकी विशिष्ट संगठनात्मक योग्यता का परिचायक है। राम-रावण युद्ध के समय उन्होंने पूरी वानर सेना का नेतृत्व (संचालन) प्रखरता से किया ।
- उदार हृदय हनुमान जी अधिकारी व्यक्ति को श्रेय देने में कभी कोताही (कमी) नहीं करते थे। वह अपने प्रति उपकार करने वाले के प्रति समय-समय पर कृतज्ञता प्रदर्शित करते हैं।
- सत्य की मूर्ति तीनों लोकों में सत्य की ही प्रतिष्ठा है। हनुमान जी पूरे रामचरितमानस में सत्य का ही सहारा लेते हैं। एक भी प्रसंग में वह असत्य नहीं बोलते, इसलिए वे एक बार जो कुछ भी बोल देते हैं, वह सत्य ही होता है। हनुमान जी सत्यनिष्ठ हैं। वे अपने रूप और जाति को लेकर अनेक स्थानों पर प्रतिक्रिया करते हैं। वह स्वयं को नीच, कुटिल और चंचल वानर कहते हैं यहाँ तक कि स्वयं को अज्ञानी भी कह जाते हैं, जबकि वह अज्ञानी नहीं हैं।
- गुणग्राहक हनुमान जी गुणग्राहक हैं। वह दूसरों के गुणों की खुलकर प्रशंसा करते हैं। वास्तव में, एक गुणी व्यक्ति में ही दूसरों के गुणों की प्रशंसा करने का साहस होता है। हनुमान जी दूसरों की प्रशंसा तो करते ही हैं, परम गुणी होते हुए भी स्वयं को अवगुणी बताने में भी चूक नहीं करते।
