UP Board Class 10 Science Chapter 5 जैव प्रक्रम
UP Board Class 10 Science Chapter 5 जैव प्रक्रम
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 5 जैव प्रक्रम
फास्ट ट्रैक रिवीज़न
वे सभी प्रक्रियाएँ, जो जीव को जीवित बनाए रखने में सहायता प्रदान करती है, जैविक या जीवन प्रक्रियाएँ कहलाती हैं; जैसे-पोषण, श्वसन, उत्सर्जन, परिवहन, आदि।
जीवों में होने वाली जैव-रासायनिक अभिक्रियाएँ अपचयी (Catabolic) एवं उपचयी (Anabolic) प्रकार की होती है। पोषण, पाचन तथा श्वसन अपचयी, जबकि प्रकाश-संश्लेषण एक उपचयी क्रिया है।
A. पोषण
सभी जीवों को जीवित रहने के लिए तथा शरीर में होने वाली विभिन्न उपापचयी क्रियाओं को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है। अतः जीवों द्वारा भोजन तथा अन्य खाद्य पदार्थों के पाचन से पोषक तत्वों को प्राप्त करने की क्रिया को पोषण कहते हैं।
पोषण की विधियाँ
ये दो प्रकार की होती हैं-
1. स्वपोषी पोषण
इसमें जीव अपना भोजन स्वयं निर्मित करता है। यह प्रक्रम दो प्रकार का होता है।
(i) रसायन – स्वपोषी भोजन के संश्लेषण के लिए कुछ जीवाणु अकार्बनिक पदार्थों के जैविक ऑक्सीकरण से प्राप्त ऊर्जा को ही प्रकाश ऊर्जा के स्थान पर प्रयोग करते हैं। अतः यह क्रिया रसायन-संश्लेषण कहलाती हैं; जैसे- नाइट्रोसोमोनास, नाइट्रोसोकोकस, आदि जीवाणु ।
(ii) प्रकाश-स्वपोषी इसमें अधिकांशतया हरे पादप होते हैं, जो सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की सहायता से अपने भोजन का निर्माण स्वयं करते हैं। पादपों द्वारा स्वयं भोजन बनाने की क्रिया प्रकाश-संश्लेषण कहलाती है।
इसे निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है

प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रम
पादप में प्रकाश-संश्लेषण हरितलवक में होता है। इसमें क्लोरोफिल पाया जाता है। ये पत्तियों में सर्वाधिक संख्या में पाए जाते हैं। प्रकाश-संश्लेषण में मुख्यतः तीन घटनाएँ होती हैं
(i) अवशोषण पर्णहरिम या पर्णहरित द्वारा सूर्य की प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण ।
(ii) रूपान्तरण प्रकाश ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरण एवं जल (H2O) का O2 एवं H+ में टूटना। अतः प्रकाश-संश्लेषण अभिक्रिया में मुक्त O2 का स्रोत जल है।
(iii) अपचयन CO2 का कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित होना ।
पत्ती की अनुप्रस्थ काट
(i) पत्तियों की अनुप्रस्थ काट में मृदूतक कोशिकाओं की बनी सबसे बाहरी, एक कोशिकीय परत होती है, जिसे अधिचर्म या बाह्यत्वचा कहते हैं।
(ii) बाह्यत्वचा पर अतिसूक्ष्म छिद्र होते हैं, इन्हें रन्ध्र कहते हैं। प्रकाश-संश्लेषण के दौरान ये छिद्र खुल जाते हैं ओर इनके द्वारा गैसों का विनिमय होता है। प्रकाश-संश्लेषण के लिए CO2 की आवश्यकता न होने पर ये छिद्र बन्द हो जाते हैं।
(iii) रन्ध्रों में दो सेम के बीज के आकार की द्वार कोशिकाएँ पाई जाती है। इन कोशिकाओं के भीतर की भित्ति मोटी तथा बाहर की भित्ति पतली होती है।
2. विषमपोषी पोषण
स्वपोषियों के विपरीत कुछ जीवधारी अपने भोज्य पदार्थों का निर्माण स्वयं नहीं कर पाते हैं तथा भोजन के लिए अन्य जीवों या स्वपोषियों पर निर्भर होते हैं, ऐसे जीव परपोषी कहलाते हैं तथा पोषण की यह प्रक्रिया परपोषण कहलाती है।
परपोषी जीव निम्न प्रकार के होते हैं।
(i) प्राणीसमभोजी (Holozoic ) जैसे- अमीबा, मानव, आदि ।
(ii) परजीवी (Parasites ) जैसे- फीताकृमि, अमरबेल, जोंक, खटमल, आदि।
(iii) मृतोपजीवी (Saprozoic ) जैसे- कवक, कुछ जीवाणु, यीस्ट, मशरूम, आदि।
अमीबा में पोषण
अमीबा में प्राणीसमभोजी प्रकार का अन्तःकोशिकीय पोषण पाया जाता है, जोकि अंगुलीनुमा प्रवर्धी स्यूडोपोडिया ( कूटपादाभ) द्वारा होता है। यह जल के साथ आए भोजन के कणों को कोशिका की सतह के द्वारा अन्तर्ग्रहित कर लेता है। तत्पश्चात् अपचित भोज्य कणों को कोशिका भित्ति द्वारा बहिःक्षेपित कर दिया जाता है।
मनुष्य में पोषण
भोजन के रूप में ग्रहण किए गए जटिल पदार्थों को शरीर द्वारा प्रयोग में लाए जाने योग्य उपयुक्त सरल पदार्थों के रूप में अपघटित करने की क्रिया, पाचन कहलाती है। इस क्रिया को करने के लिए मानव शरीर में एक सम्पूर्ण तन्त्र होता है, जिसे पाचन तन्त्र कहते हैं।
इस पाचन तन्त्र में भोजन का पाचन विभिन्न प्रकार के पाचक विकरों या एन्जाइम्स (Digestive enzymes) की सहायता से होता है। इन पाचकं एन्जाइम्स का स्त्रावण इसी पाचन तन्त्र में उपस्थित पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive glands) करती हैं। अत: अध्ययन की सुविधा हेतु मानव में पाए जाने वाले पाचन तन्त्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है; आहारनाल व पाचक ग्रन्थियाँ ।
• आहारनाल की लम्बाई लगभग 8-10 मीटर होती है। यह मुख्यतया मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रासनली, आमाशय, छोटी आँत तथा बड़ी आँत में विभक्त होती है।
• मुखगुहा में निम्नलिखित चार प्रकार के दाँत होते हैं


• शिशुओं में दूध के 20 दाँत होते हैं। इनमें अग्रचर्वणक का अभाव होता है। जिह्वा भोजन का स्वाद बताने तथा लार मिलाने में सहायक होती है।
• ग्रसनी यह मुखगुहा का पिछला भाग है। ग्रसनी घांटीद्वार (Glottis) द्वारा श्वासनली में खुलती है। ग्रासनली द्वार पर पत्ती के समान लटकी हुई उपास्थि (Cartilage) की बनी संरचना घांटीढक्कन (Epiglottis ) पायी जाती है, जो भोजन निगलते समय घांटीद्वार को ढक देता है।
• ग्रसिका यह एक सकुंचनशील, पेशीय एवं नलिकानुमा संरचना होती है, जो आमाशय से जुड़ी होती है।
• आमाशय यह J-आकार की थैलीनुमा संरचना है। आमाशय में स्थित आकाशयिक या जठर ग्रन्थि से जठर रस का स्रावण होता है।
• छोटी आँत यह मनुष्य में आहारनाल का सबसे संकरा तथा सबसे लम्बा (6-7 मीटर) भाग है। इसको आन्तरिक रचना के आधार पर ग्रहणी, मध्यान्त्र तथा क्षुद्रान्त्र या शेषान्त्र में बाँटा जाता है। अतः इसमें भोजन का पाचन तथा अवशोषण दोनों होता है।
• बड़ी आँत यह लगभग 1.5 मीटर लम्बी संरचना है। बड़ी आँत तीन भागों; जैसे- सीकम, कोलन तथा मलाशय में बँटी होती है। इस भाग चे हुए भोजन तथा जल का अवशोषण होता है और साथ ही अपचित भोजन को शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
पाचक ग्रन्थियाँ
मनुष्य की मुख्य पाचक ग्रन्थियाँ निम्नलिखित तालिका में दी गई हैं

भोजन के पाचन की क्रियाविधि
यह पाँच चरणों में होता है
(i) अन्तर्ग्रहण इसमें भोजन को चबाना, आमाशय में भोजन की लुगदी बनना, आहारनाल में क्रमाकुंचन गति (पेशीय संकुचन ) के कारण भोजन को आगे खिसकाना, आदि सम्मिलित हैं।
(ii) पाचन इसके अन्तर्गत पाचक ग्रन्थियों द्वारा स्रावित रस के एन्जाइम्स जटिल अघुलनशील भोज्य पदार्थों को सरल घुलनशील इकाइयों में तोड़ देते हैं।
(iii) अवशोषण प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, न्यूक्लिक अम्ल तथा न्यूक्लियोटाइड के अन्तिम उत्पादों का अवशोषण रसांकुर के भीतर उपस्थित रुधिर केशिकाओं में, जबकि वसा के अन्तिम उत्पाद का अवशोषण लसिका वाहिनियों द्वारा होता है।
(iv) स्वांगीकरण इसमें पचे हुए पदार्थ कोशिका के जीवद्रव्य में पहुँचने के बाद, उसी में विलीन हो जाते हैं।
(v) मल विसर्जन पाचन समाप्त होने के पश्चात् आहारनाल में कुछ अपशिष्ट पदार्थ शेष रह जाते हैं, जिनका पाचन सम्पन्न नहीं हो पाता है। अतः इनका मानव शरीर से उत्सर्जन हो जाता है।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है
(a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल
(b) क्लोरोफिल
(c) सूर्य का प्रकाश
(d) ये सभी
उत्तर (d) स्वपोषी पोषण के लिए ये सभी, जैसे- पर्णहरित (Chlorophyll ), सूर्य का प्रकाश, कार्बन डाइऑक्साइड व जल आवश्यक हैं।
प्रश्न 2. पादपों में प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण होता है
(a) जड़ में
(b) पत्ती में
(c) तने में
(d) पुष्प में
उत्तर (b) पत्ती में
प्रश्न 3. निम्नलिखित समीकरणों में से कौन-सी समीकरण को प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया का समीकरण माना जाता है?

प्रश्न 4. पौधों में प्रकाश संश्लेषण का उत्पाद है
(a) प्रोटीन + ऑक्सीजन + जल
(b) ग्लूकोस + ऑक्सीजन + जल
(c) वसा + नाइट्रोजन + जल
(d) वसा + कार्बन डाइऑक्साइड + जल
उत्तर (b) ग्लूकोस + ऑक्सीजन + जल
प्रश्न 5. प्रकाश संश्लेषण प्रक्रम के दौरान क्या नहीं संश्लेषित होता?
(a) ऑक्सीजन
(b) CO2
(c) जल
(d) ग्लूकोस
उत्तर (b) CO2
प्रश्न 6. क्लोरोफिल अवशोषित करता है
(a) जल
(b) खनिज लवण
(c) प्रकाश ऊर्जा
(d) ऑक्सीजन
उत्तर (c) प्रकाश ऊर्जा
प्रश्न 7. प्रकाश संश्लेषण अभिक्रिया में मुक्त O2 का स्रोत होता है
(a) CO2 से
(b) जल से
(c) ग्लूकोस से
(d) ATP से
उत्तर (b) जल से
प्रश्न 8. प्रकाश संश्लेषण के दौरान निम्न में से कौन-सी एक क्रिया नहीं होती है?
(a) क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करना
(b) प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करना
(c) कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन
(d) ग्लूकोस का पाइरुविक अम्ल में विखण्डन
उत्तर (d) ग्लूकोस का पाइरुविक अम्ल में विखण्डन
प्रश्न 9. पादपों में वायु प्रदूषण को कम करने वाली प्रक्रिया है
(a) श्वसन
(b) प्रकाश-संश्लेषण
(c) वाष्पोत्सर्जन
(d) प्रोटीन
उत्तर (b) प्रकाश-संश्लेषण
प्रश्न 10. द्वार कोशिकाएँ पाई जाती हैं।
(a) जड़ों में
(b) रन्ध्रों में
(c) वात रन्ध्रों में
(d) इन सभी में
उत्तर (b) रन्ध्रों में
प्रश्न 11. निम्नलिखित में से कौन विषमपोषी नहीं है?
(a) फफूँदी
(b) फीताकृमि
(c) यीस्ट
(d) मनीप्लाण्ट
उत्तर (d) मनीप्लाण्ट
प्रश्न 12. सही कथन को चुनिए ।
(a) विषमपोषी अपने भोजन का संश्लेषण नहीं करते हैं।
(b) विषमपोषी प्रकाश-संश्लेषण के लिए सूर्य का प्रकाश प्रयोग करते हैं।
(c) विषमपोषी कार्बन डाइऑक्साइड और जल को कार्बोहाइड्रेट में बदलने के योग्य होते हैं।
(d) विषमपोषी अपना भोजन स्वयं बनाते हैं।
उत्तर (a) विषमपोषी अपने भोजन का संश्लेषण नहीं करते हैं।
प्रश्न 13. प्रत्येक जबड़े में अग्रचर्वणकों की संख्या होती है
(a) एक जोड़ी
(b) दो जोड़ी
(c) तीन जोड़ी
(d) चार जोड़ी
उत्तर (b) दो जोड़ी
प्रश्न 14. मनुष्य में दूध के दाँतों की संख्या कितनी होती है?
(a) 20
(b) 24
(c) 28
(d) 32
उत्तर (a) 20
प्रश्न 15. मनुष्यों में, पाचन की शुरुआत किस अंग से होती है ?
(a) मुख से
(b) यकृत से
(c) छोटी आँत से
(d) पित्ताशय से
उत्तर (a) मुख से
प्रश्न 16. निम्नलिखित में से मनुष्य की लार में पाया जाता है
(a) टायलिन
(b) लाइसोजाइम
(c) पेप्सिन
(d) दोनों (a) व (b)
उत्तर (d) टायलिन तथा लाइसोजाइम दोनों
प्रश्न 17. ग्रासनली द्वार पर लटकी हुई पत्ती के समान उपास्थि रचना कहलाती है
(a) एपीफैरिंक्स
(b) घांटीढापन
(c) एल्वियोलाई
(d) श्लेष्मावरण
उत्तर (b) घांटीढापन
प्रश्न 18. यकृत स्रावित करता है।
(a) लार
(b) अग्न्याशय रस
(c) जठर रस
(d) पित्त रस
उत्तर (d) पित्त रस
प्रश्न 19. पित्त रस का स्राव होता है
(a) पित्ताशय द्वारा
(b) यकृत द्वारा
(c) अग्न्याशय द्वारा
(d) आमाशय द्वारा
उत्तर (b) यकृत द्वारा
प्रश्न 20. पित्त का निर्माण होता है
(a) पित्ताशय
(b) यकृत
(c) अग्न्याशय
(d) वृषण
उत्तर (b) यकृत द्वारा
प्रश्न 21. ग्लाइकोजेनेसिस क्रिया में …….. बनता है।
(a) ग्लूकोस
(b) ग्लाइकोजन
(c) विटामिन्स
(d) प्रोटीन्स
उत्तर (b) ग्लाइकोजन
प्रश्न 22. निम्नलिखित में से अग्न्याशयी रस के सम्बन्ध में सत्य कथन है।
(a) ट्रिप्सिन प्रोटीन और लाइपेज कार्बोहाइड्रेट को पचाता है।
(b) ट्रिप्सिन पायसीकृत वसा और लाइपेज प्रोटीन को पचाता है।
(c) ट्रिप्सिन और लाइपेज वसा को पचाते हैं।
(d) ट्रिप्सिन प्रोटीन और लाइपेज पायसीकृत वसा को पचाता है।
उत्तर (d) ट्रिप्सिन प्रोटीन ओर लाइपेज पायसीकृत वसा को पचाता है।
प्रश्न 23. वह एन्जाइम, जो सुक्रोस को ग्लूकोस तथा फ्रक्टोस में बदलता है
(a) सुक्रेस
(b) लैक्टेस
(c) लाइपेज
(d) नॉस्टेस
उत्तर (a) सुक्रेस
प्रश्न 24. वह प्रक्रियाएँ जिनमें जटिल कार्बनिक अणु सरल अणुओं में टूटते हैं
(a) उपचयी अभिक्रियाएँ
(b) अपचयी अभिक्रियाएँ
(c) (a) तथा (b) दोनों
(d) सामान्य अभिक्रियाएँ
उत्तर (b) अपचयी अभिक्रियाएँ
प्रश्न 25. रसांकुरों में वसा ( वसीय अम्ल एवं ग्लिसरॉल) का अवशोषण किसके द्वारा किया जाता है?
(a) रुधिर वाहिनियों द्वारा
(b) आक्षीर वाहिनियों द्वारा
(c) दोनों (a) व (b) के द्वारा
(d) रसांकुरों में वसा का अवशोषण नहीं होता है।
उत्तर (b) आक्षीर वाहिनियों द्वारा
प्रश्न 26. चर्मदाह या पैलेग्रा रोग निम्नलिखित में से किस विटामिन की कमी से होता है?
(a) विटामिन – B1
(b) विटामिन – B2
(c) विटामिन – B5
(d) विटामिन – B12
उत्तर (c) विटामिन – B5
प्रश्न 27. सूची I को सूची II से मिलान कीजिए ।

प्रश्न 28. कथन (A) प्रकाश संश्लेषण एक जैव-रासायनिक प्रक्रिया है।
कारण (R) प्रकाश संश्लेषण के दौरान, सजीव कोशिका में प्रकाश ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरण होता है, अर्थात् शर्करा का निर्माण एक रासायनिक प्रक्रिया है।
(a) A और R दोनों सत्य हैं तथा R द्वारा A की सही व्याख्या हो रही है।
(b) A और R दोनों सत्य हैं परन्तु R द्वारा A की सही व्याख्या नहीं हो रही है।
(c) A सत्य है, परन्तु R असत्य है ।
(d) A असत्य है, परन्तु R सत्य है।
उत्तर (a) प्रकाश-संश्लेषण के दौरान सजीव कोशिका में प्रकाश ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरण एक जैव-रासायनिक प्रक्रिया है, अर्थात् ग्लूकोस शर्करा का निर्माण एक रासायनिक प्रक्रिया है।
अतः कथन A तथा कारण R दोनों सत्य हैं तथा कारण R, कथन A का सही स्पष्टीकरण है।
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न-I
प्रश्न 1. प्रकाश-संश्लेषण की परिभाषा लिखिए तथा इसकी रासायनिक अभिक्रिया का समीकरण दीजिए ।
अथवा प्रकाश-संश्लेषण की प्रणाली की व्याख्या कीजिए।
अथवा प्रकाश संश्लेषण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
अथवा प्रकाश संश्लेषण का एक विवरण दीजिए।
उत्तर प्रकाश-संश्लेषण वह जैव-रासायनिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा सरल अकार्बनिक यौगिकों; जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल को प्रकाशीय ऊर्जा ( सूर्य का प्रकाश) तथा पर्णहरिम की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट्स (ग्लूकोस) के रूप में बदल दिया जाता है।
इसे निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है

इस क्रिया में सहउत्पाद के रूप में ऑक्सीजन मुक्त होती है। यहाँ उत्पन्न कार्बोहाइड्रेट को पादपों में ऊर्जा की आवश्यकता अनुसार श्वसन में उपयोग कर लिया जाता है तथा शेष ग्लूकोस मण्ड के रूप में संचित होकर खाद्य भण्डारण का निर्माण करता है।
प्रश्न 2. स्वपोषी पोषण क्या है? उदाहरण देकर संक्षेप में समझाइए |
अथवा स्वपोषी – पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी है? इसके उपोत्पाद या अन्तिम उत्पाद क्या है ?
अथवा स्वपोषी पोषण से आप क्या समझते हैं? प्रकाश संश्लेषण में इसकी भूमिका बताए ।
उत्तर स्वपोषण का शाब्दिक अर्थ है स्वयं को पोषित करना, जैसे-हरे पादप कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और जल (H2O) से प्रकाश तथा पर्णहरिम की उपस्थिति में प्रकाश-संश्लेषण क्रिया द्वारा अपने भोज्य पदार्थों का निर्माण स्वयं कर लेते हैं। इस प्रकार वे जीव, जो अपने भोजन का निर्माण स्वयं करते हैं, स्वपोषी कहलाते हैं तथा ऐसा पोषण स्वपोषी पोषण कहलाता है। पृथ्वी पर पाए जाने वाले अधिकांश पौधे स्वपोषित हैं। स्वपोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ जल, कार्बन डाइऑक्साइड, पर्णहरित व सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति होती है और इसके उपोत्पाद ग्लूकोस व ऑक्सीजन हैं।

प्रश्न 3. रन्ध्र क्या है? इसकी उपयोगिता स्पष्ट कीजिए।
अथवा पौधों में रन्ध्रों की उपयोगिता का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर पादप की पत्तियाँ तथा अन्य कोमल वायवीय भागों की बाह्य त्वचा में छोटे-छोटे छिद्र पाए जाते हैं, इन्हें रन्ध्र कहते हैं। प्रकाश संश्लेषण व श्वसन के लिए गैसों का आदान-प्रदान रन्ध्रों के द्वारा होता है। ये वाष्पोत्सर्जन (जल का वाष्प के रूप में निष्कासन) में भी सहायक होते हैं।
प्रश्न 4. दन्त क्षरण से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर दन्त क्षरण में इनेमल व डेन्टाइन का मृदुकरण होने लगता है। इसमें जीवाणुओं द्वारा शर्करा से अम्लों का निर्माण होता है, जिससे इनेमल का क्षरण होता है। यहाँ दाँतों में फँसे भोजन के कणों पर जीवाणुओं के समूह चिपककर दन्तप्लैक का निर्माण करते हैं। दाँतों में ब्रश करने से ये प्लैक अम्ल उत्पन्न होने से पहले ही हटा दिया जाता है। सूक्ष्मजीवों के मसूड़ों में पहुँचने के कारण सूजन व संक्रमण उत्पन्न हो जाते हैं।
प्रश्न 5. लार में कौन-सा एन्जाइम होता है और वह किसका पाचन करता है?
अथवा लार में कौन-सा एन्जाइम पाया जाता है? उसका नाम लिखिए तथा बताइए कि यह क्या कार्य करता है?
अथवा भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?
उत्तर लार में टायलिन या एमाइलेज एन्जाइम पाया जाता है। यह स्टार्च का आंशिक पाचन करता है। मनुष्य में तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं। लार में उपस्थित टायलिन नामक एन्जाइम की उपस्थिति में मण्ड या स्टार्च, माल्टोस शर्करा में बदल जाता है।
प्रश्न 6. कौन-सा एन्जाइम प्रोटीन पाचन में सहायक है?
उत्तर आमाशय के जठर रस में पेप्सिन, छोटी आँत के अग्न्याशयी रस में ट्रिप्सिन, काइमोट्रिप्सिन तथा आँत्रीय रस में इरेप्सिन नामक एन्जाइम मुख्यतया प्रोटीन पाचन में सहायक हैं।
प्रश्न 7. वसा का पाचन आहारनाल के किस भाग में होता है? उस पाचक रस का नाम लिखिए, जो वसा के पाचन में सहायक होता है?
अथवा हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
उत्तर वसा का पाचन मुख्य रूप से आहारनाल की छोटी आँत में होता है। ग्रहणी में पित्तरस द्वारा वसा का इमल्सीकरण होता है तथा छोटी आँत में पाए जाने वाले लाइपेज एन्जाइम द्वारा वसा का पाचन किया जाता है। यह भोजन की वसा को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल के अणुओं में विखण्डित कर देता है।
प्रश्न 8. पित्तरस क्या है? यह रस कहाँ स्रावित तथा एकत्र होता है?
उत्तर पित्तरस यकृत की कोशिकाओं में बनता है। यह पित्ताशय नामक संरचना में संचित रहता है, जोकि यकृत के नीचे स्थित होती है। पित्तरस में पाचक एन्जाइम उपस्थित नहीं होते हैं, किन्तु यह वसा के पाचन में सहायक हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न-II
प्रश्न 1. सजीव तथा निर्जीव में अन्तर स्पष्ट कीजिए। पौधे सजीव हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए ।
अथवा सजीवों तथा निर्जीवों में दो प्रमुख अन्तर लिखिए ।
उत्तर सजीव तथा निर्जीव में अन्तर निम्न हैं

पौधों में सजीवों के समान शारीरिक संगठन, वृद्धि, पोषण, गति, उत्तेजनशीलता, उत्सर्जन, कोशिका विभाजन, जनन, आदि क्रियाएँ होती हैं, इसलिए ये सजीव कहलाते हैं। इनमें सजीवों का प्रमुख लक्षण जीवद्रव्य भी उपस्थित होता है।
प्रश्न 2. जैव क्रियाएँ किसे कहते हैं? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए। ये कितने प्रकार की होती है?
उत्तर समस्त जीवधारियों में उसकी आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु शरीर में कुछ संश्लेषणात्मक एवं विश्लेषणात्मक क्रियाएँ सदैव चलती रहती हैं, जो जीव को जीवित बनाए रखने के लिए आवश्यक होती हैं, इन्हें जैविक क्रियाएँ कहते हैं, जैसे – पोषण, श्वसन, परिवहन, उत्सर्जन, वृद्धि, जनन, आदि । जैविक क्रियाओं का नियन्त्रण विशेष प्रकार से होता है। जीवधारी विभिन्न प्रकार से इन क्रियाओं को सम्पादित करते हैं, फिर भी इनमें मौलिक समानता पाई जाती है। जन्तुओं और पौधों में होने वाली समस्त जैविक क्रियाएँ मूलतया समान होती हैं। निम्न श्रेणी के जीवधारियों में जैविक क्रियाओं का संचालन सरल और उच्च श्रेणी के जीवधारियों में जैविक क्रियाओं का संचालन जटिल होता है।
जीवों में होने वाली समस्त जैव-रासायनिक अभिक्रियाओं को दो समूहों में बाँट लेते हैं
(i) अपचयी क्रियाएँ इन जैव क्रियाओं में जटिल कार्बनिक पदार्थ सरल कार्बनिक पदार्थों में विखण्डित हो जाते हैं; जैसे- पाचन, श्वसन, आदि ।
(ii) उपचयी क्रियाएँ इन जैव प्रक्रियाओं में सरल कार्बनिक पदार्थों से जटिल कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण होता है; जैसे पौधों में प्रकाश-संश्लेषण, जन्तुओं में प्रोटीन, वसा, न्यूक्लिक अम्ल, आदि का संश्लेषण ।
प्रश्न 3. पोषण किसे कहते हैं? स्वपोषी पोषण व परपोषी पोषण का उपयुक्त उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
अथवा विषमपोषी पोषण क्या है? इसका एक उदाहरण दीजिए।
अथवा विषमपोषी पोषण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
अथवा पोषण क्या है? स्वपोषी पोषण की परिभाषा लिखिए। यह कितने प्रकार का होता है? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण भी लिखिए ?
अथवा स्वपोषी पोषण क्या हैं? उदाहरण देकर संक्षेप में समझाइए ।
उत्तर सभी जीवों को जीवित रहने के लिए तथा शरीर में होने वाली विभिन्न उपापचयी क्रियाओं को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊज भोजन से प्राप्त होती है। अतः जीवों द्वारा भोजन तथा अन्य खाद्य पदार्थों के पाचन से पोषक तत्वों को प्राप्त करने की क्रिया को पोषण कहते हैं।
पोषण की विधियाँ दो प्रकार की होती हैं-
- स्वपोषी पोषण इसमें सजीव अपने भोजन का संश्लेषण स्वयं करता है। यह प्रक्रम स्वपोषी जीवों में पाया जाता है, जो दो प्रकार का होता है।
- रसायन – स्वपोषी भोजन के संश्लेषण के लिए ये जीवाणु अकार्बनिक पदार्थों के जैविक ऑक्सीकरण से प्राप्त ऊर्जा को ही प्रकाश ऊर्जा के स्थान पर प्रयोग करते हैं; जैसे – नाइट्रोसोमोनास, नाइट्रोसोकोकस, आदि जीवाणु ।
- प्रकाश – स्वपोषी इसमें अधिकांशतया हरे पादप होते हैं, जो सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की सहायता से अपने भोजन का निर्माण स्वयं करते हैं। पादपों द्वारा स्वयं भोजन बनाने की क्रिया प्रकाश-संश्लेषण कहलाती है।
- परपोषी या विषमपोषी पोषण स्वपोषियों के विपरीत कुछ जीवधारी अपने भोज्य पदार्थों का निर्माण स्वयं नहीं कर पाते हैं तथा भोजन के लिए अन्य जीवों या स्वपोषियों पर निर्भर होते हैं, ऐसे जीव परपोषी कहलाते हैं तथा पोषण की यह प्रक्रिया परपोषण कहलाती है।
परपोषी जीव निम्न प्रकार के होते हैं
- प्राणिसमभोजी ( Holozoic ) इनमें सभी शाकाहारी, माँसाहारी एवं सर्वाहारी जीव आते हैं; जैसे- अमीबा मानव, आदि ।
- परजीवी (Parasites) ये जीव दूसरे जीवों (जन्तु या पादप) के शरीर पर आश्रित रहकर एवं उन्हें मारे बिना अपना भोजन प्राप्त करते हैं; जैसे – फीताकृमि, अमरबेल, जोंक, खटमल, आदि ।
- मृतोपजीवी (Saprozoic) ये जीव मृत जीवों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं; जैसे – कवक, कुछ जीवाणु, यीस्ट, मशरूम, आदि ।
प्रश्न 4. रसायन संश्लेषण क्या होता है? इसमें भाग लेने वाले कोई तीन जीवाणुओं के नाम व कार्य लिखिए |
उत्तर रसायन संश्लेषण द्वारा कुछ जीवाणु जल की अपेक्षा विभिन्न प्रकार के रासायनिक अणुओं की ऊर्जा का उपयोग कर खाद्य संश्लेषण करते हैं। जैसे नाइट्रीकारक जीवाणु, सल्फर जीवाणु, आदि ।
इसमें भाग लेने वाले जीवाणु के नाम तथा कार्य निम्न हैं
(a) नाइट्रीकारी जीवाणु अमोनिया को नाइट्राइट में परिवर्तित करते हैं।
(b) सल्फर जीवाणु हाइड्रोजन सल्फाइड को जल एवं गन्धक में परिवर्तित कर देते हैं।
(c) हाइड्रोजन जीवाणु मृदा में उपस्थित हाइड्रोजन को मीथेन एवं जल में परिवर्तित करते हैं।
प्रश्न 5. नामांकित चित्र की सहायता से दिखाइए कि प्रकाश संश्लेषण के लिए पर्णहरिम आवश्यक है।
उत्तर प्रकाश संश्लेषण में पर्णहरिम की आवश्यकता का प्रदर्शन इस प्रयोग के लिए कोई चित्तीदार पादप; जैसे- क्रोटॉन (Croton), कोलियस (Coleus), आदि लेते हैं, जिनकी पत्तियों पर हरे रंग के धब्बे पाए जाते हैं अर्थात् केवल इन्हीं स्थानों के अन्दर पर्णहरिम होता है। इसे लगभग 48 72 घण्टे अन्धेरे में रखकर मण्डरहित कर लेते हैं। कुछ समय (लगभग 4-5 घण्टे बाद सूर्य के प्रकाश में रखने के बाद यदि पादप की एक पत्ती का मण्ड परीक्षण करते हैं, तो केवल उन्हीं स्थानों पर मण्ड मिलेगा, जिन स्थानों पर हरा रंग होता है। इस प्रक्रिया में पर्णहरिम स्थानों को मण्ड परीक्षण से पूर्व ही चिन्हित करना आवश्यक होता है।

उपरोक्त प्रयोग से सिद्ध होता है कि प्रकाश-संश्लेषण के लिए पर्णहरिम आवश्यक होता है।
प्रश्न 6. प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक कारकों के नाम तथा इस क्रिया सम्बन्धित रासायनिक समीकरण लिखिए तथा सिद्ध कीजिए कि इस क्रिया में ऑक्सीजन गैस निकलती है।
उत्तर प्रकाश संश्लेषण में ऑक्सीजन की विमुक्ति का प्रदर्शन सर्वप्रथम एक बड़ा बीकर लेकर उसमें गर्दन तक जल भर लेते हैं तथा उसमें कोई जलीय पादप; जैसे- हाइड्रिला (Hydrilla) रखते हैं। अब इस पर एक काँच की कीप (Funnel) को उल्टा करके ढक दिया जाता है। बीकर के जल में कुछ ग्राम सोडियम बाइकार्बोनेट मिलाते हैं, ताकि पादप को CO2 मिलती रहे।

अब जल से भरी एक परखनली (Test tube) को कीप की नली पर उल्टा रख दिया जाता है और सम्पूर्ण उपकरण को सूर्य के प्रकाश में रख दिया जाता है।
कुछ समय पश्चात् हाइड्रिला के पादप से सतत् रूप में एक गैस के बुलबुले परखनली में इकट्ठा होना शुरु हो जाते हैं। इस गैस के परीक्षण के लिए परखनली के मुँह पर अँगूठा लगाकर उसे कीप से हटा लेते हैं। अब इसे उलटकर एवं अँगूठा हटाकर जलती हुई तीली को इसके सम्पर्क में लाते हैं। हमें दिखाई देता है, कि तीली तेजी से जलने लगती है। तीली का तेजी से जलना परखनली में O2 की उपस्थिति को दर्शाता है। अतः इस प्रयोग से यह सिद्ध होता है कि प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में O2 मुक्त होती है।
प्रश्न 7. पर्णरन्ध्रों (स्टोमेटा ) के खुलने तथा बन्द होने की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
अथवा रन्ध्र (स्टोमेटा) का स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए ।
अथवा रन्ध्र का नामांकित चित्र बनाइए ।
अथवा बताइए कि द्वार कोशिकाएँ किस प्रकार रन्ध्रों के खुलने तथा बन्द होने का नियमन करती हैं?
अथवा रन्ध्र का नामांकित चित्र बनाइए तथा द्वार (गार्ड) कोशिकाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर रन्ध्र की संरचना रन्ध्र मुख्य रूप से पत्तियों की बाह्यत्वचा पर पाए जाते हैं। प्रत्येक रन्ध्र में दो अर्द्धचन्द्राकार सेम के बीज के आकार की द्वार कोशिकाएँ (Guard cells) तथा मध्य में एक रन्ध्रीय गुहा (Stomatal cavity) पाई जाती है। द्वार कोशिकाओं की बाहरी भित्ति पतली तथा आन्तरिक भित्ति मोटी होती है। इसमें हरितलवक पाए जाते हैं।
पर्णरन्ध्र के खुलने तथा बन्द होने की क्रियाविधि रन्ध्रीय गति रक्षक कोशिकाओं की स्फीति या आशूनता पर निर्भर करती है । रक्षक कोशिकाओं के स्फीति या आशून होने पर रन्ध्र खुल जाते हैं और श्लथ (Flaccid ) दशा में रन्ध्र बन्द हो जाते हैं। दिन के समय रक्षक कोशिकाओं की CO2 प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में प्रयुक्त हो जाने के कारण इनका माध्यम क्षारीय हो जाता है। इससे रक्षक कोशिकाओं में संचित स्टार्च ग्लूकोस में बदल जाता है। फलस्वरूप रक्षक कोशिकाओं की सान्द्रता बढ़ जाती है। ये समीपवर्ती कोशिकाओं से जल ग्रहण करके आशून (स्फीत) हो जाती है । रक्षक कोशिका की भीतरी मोटी सतह के भीतर की ओर खिंचाव आने से रन्ध्र खुल जाते हैं। रात्रि में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नहीं होती है। अतः रक्षक कोशिकाओं में श्वसन के कारण CO2 की मात्रा बढ़ जाने से इनका माध्यम अम्लीय हो जाता है। इसके फलस्वरूप रक्षक कोशिकाओं का ग्लूकोस स्टार्च में बदल जाता है। इसके कारण रक्षक कोशिकाओं की सान्द्रता में कमी हो जाती है एवं रक्षक कोशिकाओं से जल समीपवर्ती कोशिकाओं में विसरित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप रक्षक कोशिकाएँ श्लथ स्थिति में आ जाती है और रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।

प्रश्न 8. सन्तुलित भोजन पर एक विवरण दीजिए ।
उत्तर सन्तुलित भोजन वह भोजन जिसमें विभिन्न प्रकार के सभी पोषक पदार्थ ऐसे अनुपात में हो, जिनसे हमारे शरीर की विभिन्न आवश्यकताओं की निरन्तर पूर्ति होती रहें, सन्तुलित भोजन कहलाता है। इसके अन्तर्गत प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज लवण जैसे महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व शामिल होते हैं। एक स्वस्थ और सन्तुलित आहार रोगों के जोखिम को कम करने में सहायक है और समग्र स्वास्थ्य में सुधार करता है।
मानव शरीर के लिए कार्बोहाइड्रेट ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। प्रोटीन हमारे शरीर का निर्माणकारी पदार्थ कहलाते हैं, क्योंकि ये शरीर के अन्य ऊतकों की वृद्धि व मांसपेशियों की मरम्मत के लिए आवश्यक है। वसा और तेल ऊर्जा के केन्द्रित स्रोत हैं। विटामिन हमारे शरीर के उपापचय के लिए आवश्यक होते हैं।
प्रश्न 9. मनुष्य के दन्तविन्यास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए ।
अथवा मनुष्य के दाँतों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
अथवा मनुष्य में पाए जाने वाले दाँतों के प्रकार तथा उनके कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर मनुष्य का दन्तविन्यास भोजन को काटने तथा चबाने के लिए मनुष्य दोनों जबड़ों में दाँत पाए जाते हैं। मनुष्य के दाँत गर्तदन्ती (Thecodont), द्विबारदन्ती (Diphyodont) तथा विषमदन्ती (Heterodont) होते हैं। मनुष्य में निम्नलिखित चार प्रकार के दाँत पाए जाते हैं के
(i) कृन्तक (Incisors) यह चार ऊपरी जबड़े में तथा चार निचले जबड़े में सामने की ओर स्थित होते हैं। ये भोजन को कुतरने या काटने के काम आते हैं। .
(ii) रदनक (Canines) इनके शिखर नुकीले होते हैं। ये भोजन को चीरने – फाड़ने का काम करते हैं। ऊपरी और निचले जबड़े में दो-दो रदनक होते हैं। ये मांसभक्षियों में अधिक विकसित होते हैं।
(iii) अग्रचर्वणक (Premolars) इनकी संख्या ऊपरी तथा निचले जबड़े में चार-चार होती है। ये भोजन को चबाने का कार्य करते हैं।
(iv) चर्वणक (Molars) ये ऊपरी तथा निचले जबड़े में छः-छः होते हैं। इनका शिखर अधिक चौड़ा व उभारयुक्त होता है। ये भी भोजन को पीसने का कार्य करते हैं।
दन्तसूत्र में I = कृन्तक, C = रदनक, Pm = अग्रचर्वणक तथा M = चर्वणक को दर्शाते हैं।
प्रश्न 10. आमाशय किसे कहते हैं? इसके तीन प्रमुख कार्य लिखिए ।
अथवा आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है?
उत्तर आमाशय उदर गुहा में स्थित J-आकार की थैलेनुमा संरचना है। यह आहारनाल का सबसे चौड़ा भाग है, जिसकी लम्बाई लगभग 24 सेमी तथा चौड़ाई 10 सेमी होती है।
आमाशय के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
(i) आमाशय में पेशीय क्रमाकुंचन गति के कारण भोजन लुगदी (Chyme) रूपान्तरित होता है।
(ii) जठर रस में उपस्थित HCl भोजन को सड़ने से बचाता है तथा जीवाणुओं को नष्ट करता है।
(iii) आमाशय से स्रावित जठर रस में उपस्थित पेप्सिन, रेनिन तथा लाइपेज एन्जाइम क्रमश: प्रोटीन, दुग्ध तथा वसा का पाचन करते हैं।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. स्वयंपोषी पोषण एवं विषमपोषी पोषण में क्या अन्तर है ?
उत्तर स्वयंपोषी एवं विषमपोषी पोषण में अन्तर
| स्वयंपोषी पोषण | विषमपोषी पोषण |
| वे जीव जो स्वयं अपने भोजन का निर्माण करते हैं, स्वपोषी कहलाते हैं तथा पोषण का यह प्रकार स्वपोषी या स्वयंपोषी पोषण कहलाता है। | वे जीव जो भोजन हेतु अन्य जीवों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आश्रित रहते हैं, विषमपोषी कहलाते हैं तथा पोषण का यह प्रकार विषमपोषी पोषण कहलाता है। |
| ये दो प्रकार के होते हैं – रसायन संश्लेषी एवं प्रकाश संश्लेषी। | ये तीन प्रकार के होते हैं -प्राणीसमभोजी परजीवी तथा मृतोपजीवी । |
| स्वपोषी जीव पारितन्त्र में उत्पादक कहलाते हैं। | विषमपोषी जीव पारितन्त्र में उपभोक्ता या अपघटक कहलाते हैं। |
| स्वपोषी जीव उपचय क्रियाओं द्वारा सरल तत्वों से जटिल यौगिकों का निर्माण करते हैं। | विषमपोषी जीव अपचय क्रियाओं द्वारा जटिल तत्वों से सरल यौगिकों का निर्माण करते हैं। |
| यह पोषण, विषमपोषी पोषण की तुलना में अधिक ऊर्जा दक्ष होता है। | यह पोषण, स्वपोषी पोषण की तुलना में कम ऊर्जा दक्ष होता है। |
| नील हरित शैवाल, सल्फर एवं कुछ नाइट्रीकारक जीवाणु तथा सभी हरे पादप इसी श्रेणी में आते हैं। | सभी जन्तु, कवक एवं अन्य जीवाणु इस श्रेणी में आते हैं। |
प्रश्न 2. पोषण क्या है? पोषण की आवश्यकता क्यों पड़ती है? पोषण के मुख्य प्रकारों का उल्लेख कीजिए । पाचन तथा पोषण में अन्तर बताइए |
अथवा क्या किसी जीव के लिए ‘पोषण’ आवश्यक है? विवेचना कीजिए ।
उत्तर पोषण जीवों द्वारा भोजन तथा अन्य खाद्य पदार्थों के पाचन से पोषक तत्वों को प्राप्त करने की क्रिया को पोषण कहते हैं। सभी जीवों को जीवित रहने के लिए तथा शरीर में होने वाली विभिन्न उपापचयी क्रियाओं हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है।
पोषण के आधार पर जीव दो प्रकार के होते हैं
- स्वपोषी वे जीवधारी, जो प्रकाश या रासायनिक ऊर्जा का उपयोग कर कार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन बनाते हैं। उदाहरण पादप, नील-हरित शैवाल, आदि ।
- परपोषी जो जीवधारी अपने भोज्य पदार्थों का निर्माण स्वयं नहीं कर पाते हैं, बल्कि भोजन हेतु अन्य जीवों; जैसे- पादप या जन्तुओं पर निर्भर होते हैं, परपोषी कहलाते हैं; उदाहरण मानव, शेर, चील, जोंक, आदि ।
पोषण या भोजन की आवश्यकता
- ऊर्जा की आपूर्ति विभिन्न जैविक कार्यों में व्यय होने वाली ऊर्जा की आपूर्ति भोजन के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप होती है। ऊर्जा उत्पादन हेतु मुख्यतया कार्बोहाइड्रेट्स (ग्लूकोस), वसा तथा कभी-कभी प्रोटीन का भी उपयोग होता है। इनसे मुक्त रासायनिक ऊर्जा ATP के रूप में संचित हो जाती है। ATP जैविक कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करता है ।
- शरीर की वृद्धि पचे हुए खाद्य पदार्थों का जीवद्रव्य द्वारा आत्मसात् कर लेना स्वांगीकरण कहलाता है। इससे जीवद्रव्य की मात्रा में वृद्धि होती है और जीवधारियों में भी वृद्धि होती है। प्रोटीन्स, खनिज लवण, विटामिन्स, आदि शरीर की वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- शरीर में टूट-फूट की मरम्मत भोजन के पोषक तत्व मुख्यतया प्रोटीन्स से शरीर में प्रतिदिन होने वाली टूट-फूट की मरम्मत होती है। खनिज लवण व विटामिन्स, मरम्मत क्रियाओं को प्रेरित करते हैं।
- रोगों से रक्षा सन्तुलित भोजन स्वास्थ्यवर्धक होता है, यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। भोजन के अवयव; जैसे- प्रोटीन्स, विटामिन्स, खनिज लवण, आदि इस कार्य के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पोषक पदार्थ हैं।
पाचन और पोषण में अन्तर
| पाचन | पोषण |
| जटिल और अघुलनशील भोज्य पदार्थों को भौतिक और रासायनिक क्रियाओं द्वारा घुलनशील पदार्थों में बदलने की क्रिया को पाचन कहते हैं। | जीवों द्वारा भोजन और अन्य खाद्य पदार्थों के पाचन से पोषक तत्वों को प्राप्त करने की क्रिया को पोषण कहते हैं। |
प्रश्न 3. प्रयोग द्वारा सिद्ध कीजिए कि प्रकाश संश्लेषण के लिए प्रकाश एवं कार्बन डाइऑक्साइड आवश्यक है।
अथवा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड का क्या महत्त्व है ? प्रयोग द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में प्रकाश का महत्त्व प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में क्लोरोफिल सूर्य की प्रकाश ऊर्जा को ग्रहण कर इसे भोजन (ग्लूकोस) के रूप में रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
प्रकाश की आवश्यकता का प्रदर्शन सर्वप्रथम एक गमले में लगे पादप को अन्धकार में 48-72 घण्टे रखकर स्टार्चविहीन कर लेते हैं।
एक पत्ती के दोनों ओर काला कागज क्लिप की सहायता से लगाकर पादप को 3-4 घण्टे के लिए प्रकाश में रख देते हैं। फिर पत्ती को तोड़कर आयोडीन का परीक्षण करते हैं।
पत्ती का वह भाग, जो काले कागज से ढका था, नीला नहीं होता है, क्योंकि इसमें प्रकाश के अभाव में स्टार्च का निर्माण नहीं हुआ, जबकि पत्ती का शेष भाग स्टार्च के कारण नीला हो जाता है। अतः प्रयोग से स्पष्ट है कि प्रकाश-संश्लेषण के लिए प्रकाश आवश्यक है।

प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2 ) गैस का महत्त्व प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया में CO2 गैस के स्थिरीकरण द्वारा ही भोजन अर्थात् ग्लूकोस का निर्माण होता है ।

कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) गैस की आवश्यकता का प्रदर्शन एक बड़े एवं चौड़े मुँह की बोतल में KOH का घोल लेते हैं। एक मण्डरहित पादप की पत्ती को चौड़े मुँह की बोतल के अन्दर इस प्रकार लगाते हैं कि उसका आधा भाग बोतल में तथा आधा भाग बोतल के बाहर रहता है।

इस उपकरण को 3-4 घण्टे तक धूप में रखकर आयोडीन परीक्षण करने पर पती का वह भाग जो बोतल के बाहर था, नीला पड़ जाता है, परन्तु बोतल के अन्दर के भाग पर आयोडीन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
इसका कारण यह है, कि बोतल के अन्दर वाले भाग में प्रकाश-संश्लेषण द्वारा स्टार्च का निर्माण नहीं हुआ, क्योंकि बोतल में CO2 उपलब्ध नहीं थी। इस बोतल की कार्बन डाइऑक्साइड KOH द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। इस प्रयोग से स्पष्ट है कि प्रकाश-संश्लेषण क्रिया के लिए CO2 आवश्यक है। इस प्रयोग को मोल का प्रयोग कहते हैं।
प्रश्न 4. मनुष्य के पाचन तन्त्र का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा मानव आहारनाल का वर्णन कीजिए ।
अथवा मानव पाचन तन्त्र का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए ।
अथवा मानव के आहारनाल का नामांकित चित्र बनाए ।
अथवा मानव में पाचन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाइए तथा यकृत के कार्यों का वर्णन कीजिए ।
अथवा मानव आहार नाल का आरेख बनाइए और उसमें निम्नलिखित भागों को नामांकित कीजिए- मुख, ग्रसिका, आमाशय तथा छोटी आँत ।
अथवा आहारनाल से सम्बन्धित पाचक ग्रन्थियों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए और उनके मुख्य कार्य बताइए ।
उत्तर मनुष्य की आहारनाल मनुष्य की आहारनाल 8-10 मीटर लम्बी होती है। विभिन्न भागों में इसका व्यास अलग-अलग होता है। इसके निम्नलिखित भाग होते हैं
- मुखगुहा मुखगुहा ऊपरी तथा निचले जबड़े के मध्य स्थित होती है। वयस्क में दोनों जबड़ों पर 16-16 दाँत लगे होते हैं। प्रत्येक जबड़े पर सामने दो जोड़ी कृन्तक, एक-एक रदनक, दो-दो अग्रचवर्णक तथा उसके बाद तीन-तीन चवर्णक होते हैं। अग्रचवर्णक व चवर्णकों को दाढ़ कहते हैं। मनुष्य में दाँतों के प्रकार, उनकी संख्या व उनके कार्य निम्न तालिका में दिए गए हैं
जिह्वा मुखगुहा के फर्श पर जिह्वा स्थित होती है, जो भोजन के स्वाद का अनुभव कराती है। इसके अतिरिक्त भोजन चबाते समय उसमें लार को मिलाने में सहायता करती है। यह चबाए गए भोजन को निगलने में भी मदद करती है। मुखगुहा की दीवारों में लार ग्रन्थियाँ होती हैं। मुखगुहा के ऊपरी भाग को तालू कहते हैं। - ग्रसनी मुखगुहा का पिछला भाग ग्रसनी कहलाता है। ग्रसनी के अन्दर एक बड़ा छिद्र होता है। इसको निगलद्वार कहते हैं। इसके द्वारा ग्रासनली प्रसनी में खुलती है। इसके पास ही श्वासनली का छिद्र व घांटीद्वार होता है।
- भोजन नली या ग्रसिका या ग्रासनली यह लम्बी वलित नलिका होती है और श्वासनली के नीचे स्थित होती है। यह उपास्थिल, छल्ले युक्त होती है। यह तन्तुपट या डायफ्राम को भेदकर उदरगुहा में स्थित आमाशय (Stomach) में खुलती है।
- आमाशय यह J – आकार की थैलीनुमा रचना होती है। इसकी लम्बाई लगभग 25-30 सेमी और चौड़ाई 7-10 सेमी होती है। इसका चौड़ा प्रारम्भिक भाग कार्डियक, मध्य भाग फण्डिक तथा अन्तिम संकरा भाग पाइलोरिक भाग कहलाता है । आमाशय की जठर ग्रन्थियों से जठर रस स्रावित होता है।
- ग्रहणी यह आमाशय के साथ C – आकार की संरचना होती है। इसकी लम्बाई लगभग 25 सेमी होती है। पित्त नलिका तथा अग्न्याशय नलिका ग्रहणी के निचले भाग में खुलती है।
- छोटी आँत यह ग्रहणी के निचले भाग से प्रारम्भ होती है। यह नली सबसे अधिक लम्बी होती है। अत: यह कुण्डलित अवस्था में उदरगुहा में स्थित होती है। इसके चारों ओर बड़ी आँत होती है। क्षुद्रान्त्र की भित्ति में आंत्रीय ग्रन्थियाँ होती हैं, जिनसे पाचक आंत्रीय रस निकलता है। इसकी भित्ति में अनेक छोटे-छोटे अँगुली के आकार के रसांकुर होते हैं।
- बड़ी आँत या वृहदान्त्र यह अधिक चौड़ी होती है। छोटी आँत से इसकी लम्बाई कम होती है। छोटी आँत एक छोटे-से थैले जैसे भाग में खुलती है, जिसका एक सिरा 7-10 सेमी लम्बी संकरी व बन्द नली के रूप में एक ओर निकला रहता है। इसे कृमिरूप परिशेषिका कहते हैं। थैले के दूसरी ओर से लगभग 3 इंच चौड़ी नली, कोलन निकलती है, जो निकलने के बाद एक ओर गुहा के ऊपर की ओर उठती है, बाद समानान्तर होकर नीचे उतरती है तथा अन्त में मलाशय में खुल जाती है। यह लगभग 7-8 सेमी लम्बी होती है। यहाँ अपशिष्ट भोजन एकत्रित होता है । मलाशय का अन्तिम भाग छल्लेदार माँसपेशियों का बना होता है। इसके बाहर खुलने वाले छिद्र को गुदाद्वार (Anal aperture) कहते हैं।
पाचक ग्रन्थियाँ आहारनाल में लार ग्रन्थि, यकृत तथा अग्न्याशय मुख्य पाचक ग्रन्थियाँ होती हैं।
- लार ग्रन्थियाँ मनुष्य में तीन जोड़ी (6) लार ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं, जो पृथक् लार वाहिनी द्वारा मुखगुहा में खुलती है। लार ग्रन्थियाँ लार का स्रावण करती है, जिसमें लाइसोजाइम व टाइलिन या एमाइलेस नामक एन्जाइम पाए जाते हैं।
- यकृत यह शरीर की सबसे बड़ी पाचक ग्रन्थि है। इसका भार लगभग 1500 ग्राम होता है। इसके ऊपर स्थित एक छोटी थैलीनुमा संरचना पित्ताशय (Gall bladder) कहलाती है, जिसमें पित्त रस एकत्रित होता है। यकृत के महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नवत् है
- यकृत पित्तरस स्रावित करता है। यह क्षारीय तरल होता है। पित्तरस भोजन का माध्यम क्षारीय करता है। यह भोजन को सड़ने से बचाता है, हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है तथा आहारनाल में क्रमाकुंचन गति उत्पन्न करता है। पित्त वर्णक तथा लवणों को आहारनाल के माध्यम से उत्सर्जित करता है। पित्तरस वसा का इमल्सीकरण करता है।
- आवश्यकता से अधिक ग्लूकोस को ग्लाइकोजन के रूप में संचित करता है। इसे ग्लाइकोजेनेसिस कहते हैं।
- आवश्यकता पड़ने पर अमीनो अम्ल तथा वसीय अम्लों को शर्करा में बदल देता है। इसे ग्लाइकोनियोजेनेसिस कहते हैं।
- अग्न्याशय यकृत के बाद यह शरीर की दूसरी सबसे बड़ी ग्रन्थि है। यह लगभग 12-15 सेमी लंबी तथा ‘J’ के आकार की होती है। यह उदरगुहा में आमाशय व शेषांत्र के बीच स्थित होती है। यह एक मिश्रित ग्रन्थि (Mixed gland) है। इसका बाह्यस्रावी भाग क्षारीय अग्न्याशयी रस का स्रावण करता है तथा अन्तःस्रावी भाग हॉर्मोन्स का स्रावण करता है।
अग्न्याशय के कार्य निम्नलिखित हैं
- इसके बाह्यस्रावी भाग से अग्न्याशयी रस का स्रावण होता है, जिसमें तीन प्रमुख एन्जाइम्स; जैसे- ट्रिप्सिन, एमाइलॉप्सिन तथा स्टीएप्सिन उपस्थित होते हैं।
- अन्तःस्रावी भाग से इन्सुलिन तथा ग्लूकैगॉन का स्रावण होता है, जो रुधिर में शर्करा की मात्रा का नियमन करते हैं।

प्रश्न 5. मानव पाचन-तन्त्र के आमाशय तथा क्षुद्रान्त्र में होने वाली पाचन-क्रिया का वर्णन कीजिए।
अथवा पाचक रस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा मनुष्य में पाए जाने वाले पाचक रसों के कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा पित्त रस भोजन के पाचन में किस प्रकार सहायता करता है?
अथवा पाचक एन्जाइमों के क्या कार्य हैं?
अथवा मुख से लेकर आमाशय तक होने वाली पाचन क्रिया को प्रभावित करने वाले एन्जाइमों के कार्यों का उल्लेख कीजिए ।
अथवा आमाशय किसे कहते हैं? इसके तीन प्रमुख कार्य लिखिए ।
अथवा आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है?
उत्तर पाचक ग्रन्थियाँ द्वारा स्रावित पाचक रस भोजन के पाचन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनमें उपस्थित पाचक एन्जाइमों का कार्य जटिल भोज्य पदार्थों अर्थात् प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट आदि को सरल घटकों में तोड़ना होता है।
मानव में पाचन की क्रियाविधि निम्न अंगों द्वारा पूर्ण होती है
1. मुखगुहा में पाचन मुखगुहा में में स्टार्च पर टायलिन या एमाइलेज एन्जाइम कार्य करता है और स्टार्च को माल्टोस में अपघटित कर देता है।
मनुष्य की लार में उपस्थित लाइसोजाइम नामक एन्जाइम बैक्टीरिया को नष्ट करता है।
2. आमाशय में पाचन भोजन ग्रासनली से होकर आमाशय में प्रवेश करता है। आमाशय में प्रोटीन व वसा का पाचन प्रारम्भ हो जाता है, लेकिन कार्बोहाइड्रेट का पाचन नहीं होता ।
आमाशयी रस एवं HCl भोजन को जीवाणुरहित एवं अम्लीय माध्यम प्रदान करता है। पेप्सिन, प्रोटीन का पाचन करके उन्हें पेप्टोन्स में परिवर्तित कर देता है। रेनिन, दुग्ध को दही में परिवर्तित करता है। यह आंशिक पचित भोजन काइम कहलाता है।

आमाशय में भोजन 3-4 घण्टे रहता है।
3. छोटी आँत में पाचन परन्तु पाचन की क्रिया प्रमुख रूप से छोटी आँत में सम्पन्न होती है। छोटी आँत का अग्रभाग, जो ग्रहणी (Duodenum) कहलाता है, में यकृत से पित्तरस (Bile juice) एवं अग्न्याशय से अग्न्याशयिक रस (Pancreatic Juice) भी आकर पाचन क्रिया में सहायता करता है।
पित्तरस (Bile juice) यह क्षारीय रस होता है, जिसका pH लगभग 7.7 होता है। पित्तरस में लगभग 92% जल ( Water ), 6% पित्त लवण (Bile salts), 0.3% पित्त वर्णक (Bile pigments ), 0.3-0.9% कोलेस्ट्रॉल, 0.3% लेसिथिन तथा 1% वसा अम्ल (Fatty acids) होते हैं।
पित्तरस का मुख्य कार्य वसा का इमल्सीकरण (Emulsification) तथा आमाशय से प्राप्त भोजन के माध्यम को अम्लीय से क्षारीय बनाना है। इसका रंग हल्का हरा-पीला पित्त वर्णक बिलिरुबिन (Bilirubin) तथा बिलिवर्डिन (Biliverdin) के कारण होता है।
अग्न्याशयिक रस (Pancreatic juice) की pH 7.5 – 82 होती है अर्थात् यह भी क्षारीय होता है। इसमें लगभग 96% जल और शेष भाग में पाचक एन्जाइम्स एवं लवण होते हैं।
इससे स्त्रावित होने वाले पाचक एन्जाइम्स निम्नलिखित हैं
प्रोटीन पाचक एन्जाइम्स (Proteolytic enzymes ) अग्न्याशयिक रस में निम्नलिखित प्रोटीन पाचक एन्जाइम होते हैं
ट्रिप्सिन (Trypsin) यह निष्क्रिय ट्रिप्सिनोजन (Trypsinogen) के रूप में स्रावित होता है तथा एण्टीरोकाइनेज नामक हॉर्मोन की उपस्थिति में सक्रिय ट्रिप्सिन में बदल जाता है।

काइमोट्रिप्सिन (Chymotrypsin) तथा कार्बोक्सिपेप्टीडेस (Carboxypeptidase) काइमोट्रिप्सिन निष्क्रिय काइमोट्रिप्सिनोजन के रूप में स्रावित होता है तथा ट्रिप्सिन इसे सक्रिय काइमोट्रिप्सिन में बदल देता है। कार्बोक्सिपेप्टीडेस पॉलीपेप्टाइड को अमीनो अम्ल में तोड़ता है।
कार्बोहाइड्रेट्स पाचक एन्जाइम्स (Amylytic enzymes) अग्न्याशयिक. रस में उपस्थित एमाइलेज नामक एन्जाइम पॉलीसेकेराइड्स (मण्ड) को डाइसैकेराइड्स (उदाहरण – माल्टोस) में बदल देता है।
वसा पाचक एन्जाइम्स (Lipolytic enzymes ) अग्न्याशयिक रस में उपस्थित लाइपेज (स्टीएप्सिन) एन्जाइम वसा का निम्न प्रकार पाचन करता है

न्यूक्लिक अम्ल पाचक एन्जाइम्स (Nucleases) अग्न्याशयिक रस में उपस्थित न्यूक्लिएज एन्जाइम न्यूक्लिक अम्ल (DNA एवं RNA) को निम्न प्रकार से तोड़ देता है

आन्त्रीय रस (Intestinal juice) यह रस भी क्षारीय होता है तथा इसकी PH 7.5-8.3 होती है। इसमें जल, लवण तथा निम्न पाचक एन्जाइम उपस्थित होते हैं। इसे सक्कस एन्टेरिकस (Succus entericus) भी कहते हैं।
इसके पाचक एन्जाइम अर्द्धपचित भोजन पर निम्न प्रकार से क्रिया करते हैं


B. श्वसन
- श्वसन एक जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण अभिक्रिया है, जिसमें विशेष मानव अंग वातावरण से ऑक्सीजन (O2) को ग्रहण करके उसे शरीर की कोशिकाओं तक पहुँचाते हैं एवं कोशिका में कार्बनिक यौगिकों (प्रायः ग्लूकोस) का ऑक्सीकरण होता है।
- इस क्रिया में CO2 तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा कों विशेष ATP अणुओं में विभवीय ऊर्जा के रूप में संचित किया जाता है। यह ऊर्जा मानव शरीर की विभिन्न उपापचयी क्रियाओं द्वारा उपयोग में लाई जाती है।
C6H12O6 + 6O2 → 6CO2 + 6H2O + 38 ATP
ऑक्सीजन की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति के आधार पर श्वसन दो प्रकार का होता है
1. ऑक्सी श्वसन यह क्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में होती है। इसमें ग्लूकोस का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है तथा CO2 व जल बनता है। इस प्रक्रिया के दो चरण होते हैं; ग्लाइकोलाइसिस व क्रेब्स चक्र। ग्लाइकोलाइसिस क्रिया कोशिकाद्रव्य में सम्पन्न होती है। इससे 2ATP अणुओं का शुद्ध लाभ होता है। इसका अन्तिम उत्पाद, पाइरुविक अम्ल माइटोकॉण्ड्रिया में जाकर क्रेब्स चक्र में प्रवेश करता है, जहाँ इसका वायवीय ऑक्सीकरण होता है। एक अणु ग्लूकोस के पूर्ण ऑक्सीकरण से 38 ATP अणु बनते हैं, जिनसे 673 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
2. अनॉक्सी श्वसन यह क्रिया ऑक्सीजन के अभाव में होती है। इसमें ग्लूकोस का पूर्ण ऑक्सीकरण नहीं होता है तथा एल्कोहॉल (C2H5OH) व CO2, आदि बनते हैं। एक अणु ग्लूकोस से 2 ATP अणु प्राप्त होते हैं, जिनसे 27 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
कभी-कभी ऑक्सीजन के अभाव में, हमारी पेशी कोशिकाओं में पाइरुवेट के विखण्डन के लिए दूसरे पथ अपनाए जाते हैं। यहाँ पाइरुवेट एक तीन कार्बन वाले अणु, लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है, जिसके कारण पेशियों में क्रेम्प हो जाते हैं। अतः श्वसन के इस सम्पूर्ण प्रक्रम को निम्न रेखाचित्र द्वारा संक्षेप में प्रदर्शित किया जा सकता है

ATP से एक फॉस्फेट बन्ध के टूटने से 7.6 किलो कैलोरी ऊर्जा निकलती है तथा ADP (एडिनोसीन डाइफॉस्फेट) बनता है। ATP कोशिका में ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत है तथा यह ऊर्जा की मुद्रा भी कहलाता है। ATP संश्लेषण का मुख्य स्थान माइट्रोकॉण्ड्रिया है।
श्वसन प्रक्रिया
श्वसन प्रक्रिया को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है
(i) बाह्य श्वसन बाह्य श्वसन के लिए सभी कशेरुकी जन्तुओं ( सरीसृप, पक्षी एवं स्तनी) में बाह्य श्वसनांग (Respiratory organs); जैसे-मेंढक में त्वचा, मछलियों में गलफड़े, मनुष्य में फेफड़े, आदि होते हैं।
बाह्य श्वसन को अध्ययन की सुगमता के लिए निम्नलिखित पदों में विभक्त किया जा सकता है
(a) श्वासोच्छ्वास वायुमण्डल से श्वसनांगों द्वारा शुद्ध वायु (O2) को ग्रहण करने तथा अशुद्ध वायु (CO2) को बाहर निकालने अर्थात् बहिःगमन (Discharge) की प्रक्रिया को श्वासोच्छ्वास कहते हैं। श्वास अन्दर लेना अन्तःश्वसन तथा बाहर छोड़ना निःश्वसन कहलाता है।
(b) गैसीय विनिमय गैसीय विनिमय सामान्य विसरण (Diffusion) द्वारा होता है। पादपों में यह कार्य रन्ध्र द्वारा, जबकि मानव में यह कार्य फेफड़ों द्वारा सम्पन्न होता है। फेफड़ों के वायु कोषों (Alveoli) में उपस्थित वायु से ऑक्सीजन रुधिर कोशिकाओं में तथा रुधिर कोशिकाओं से कार्बन डाइऑक्साइड वायु कोषों में विसरित हो जाती है।
(ii) आन्तरिक श्वसन रुधिर कोशिकाओं व ऊतकों के मध्य गैसीय विनिमय ही आन्तरिक श्वसन (कोशिकीय श्वसन) कहलाता है।
पादपों में श्वसन
पादपों में श्वसन के लिए गैसों का आदान-प्रदान रन्ध्रों द्वारा होता है। यहाँ कार्बन डाइऑक्साइड तथा ऑक्सीजन का आदान-प्रदान विसरण द्वारा होता है।
जन्तुओं में श्वसन
जलीय जीवों में श्वसन जल में विलेय ऑक्सीजन को ग्रहण करके होता है। मछली अपने मुख के द्वारा जल लेती है तथा बलपूर्वक इसे क्लोम तक पहुँचाती है, जहाँ विलेय ऑक्सीजन रुधिर ले लेता है। स्थलीय जीव श्वसन के लिए वायुमण्डल की • ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।
मनुष्य में श्वसन
मानव के प्रमुख श्वसनांग फेफड़े (Lungs) होते हैं। फेफड़ों तक बाहरी वायु आवागमन हेतु नासिका, ग्रसनी, के वायुनाल तथा इसकी शाखाएँ मिलकर एक जटिल वायु मार्ग (Air passage way बनाती हैं। इस प्रकार ये सभी संवाही अंग तथा फेफड़े मिलकर मानव का तन्त्र बनाते हैं। मनुष्य में सहायक श्वसन अंग नासिका, नासामार्ग, ग्रसनी वायुनाल हैं।
नासिका तथा नासामार्ग चेहरे पर उपस्थित नासिका के मध्य में नासा पट या अन् नासा पट (Nasal septum) नासिका को दो भागों (बायाँ तथा दायाँ) में विभक्त करता है। इनमें उपस्थित रोम तथा श्लेष्म वायु को निस्यन्दित तथा नम करते हैं। भागों में बँटी नासागुहा पीछे घुमावदार नासामार्ग में खुलती है।
ग्रसनी नासामार्ग से वायु ग्रीवा में स्थित ग्रसनी में आती है। ग्रसनी में वायुनाल तथा ग्रासनाल दोनों ही आकर खुलती हैं।
वायुनाल यह कण्ठ या स्वर यन्त्र तथा श्वासनली में बँटी होती है। श्वासनली 10-12 सेमी लम्बी तथा 1.5-2.5 सेमी व्यास की नली है। यह उपास्थिल छल्लेयुक्त होती है। श्वासनाल वक्षगुहा में जाकर दो श्वसनियों में विभक्त हो जाती है।
श्वसनिका मानव में दाँयी श्वसनिका तीन एवं बाँयी दो भागों में विभक्त जाती है। श्वसनिकाएँ कूपिका वाहिनियों (Alveolar ducts) में विभक्त हो जाती हैं। प्रत्येक कूपिका वाहिनी अपने छोर पर स्थित कूपिका में घुस जाती है। इसमें कई छोटे-छोटे वायुकोष (Alveolar sacs) उपस्थित होते हैं। प्रत्येक वायुकोष में दो या तीन छोटे-छोटे थैलीनुमा वायुकोष्ठक (Alveoli) खुलते हैं।
मानव में गैसीय विनिमय की क्रियाविधि
श्वसन क्रिया में O2 का परिवहन हीमोग्लोबिन द्वारा होता है तथा CO2 का परिवहन कार्बोनेट के रूप में होता है। कुछ मात्रा में CO2 हीमोग्लोबिन तथा रुधिर प्लाज्म द्वारा भी वहन की जाती है।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. शरीर के बाहर से ऑक्सीजन को ग्रहण करना तथा कोशिकीय आवश्यकता के अनुसार खाद्य स्त्रोत के विघटन को कहते हैं
(a) उत्सर्जन
(b) जनन
(c) श्वसन
(d) प्रकाश संश्लेषण
उत्तर (c) श्वसन
प्रश्न 2. श्वसनीय पदार्थ कार्बनिक पदार्थ हैं, जो श्वसन के दौरान ऊर्जा मुक्त करने के लिए ……. होते हैं।
(a) ऑक्सीकृत
(b) अपघटित
(c) संश्लेषित
(d) (a) व (b) दोनों
उत्तर (a) ऑक्सीकृत
प्रश्न 3. किस श्वसन से सर्वाधिक ऊर्जा प्राप्त होती है?
(a) ऑक्सी श्वसन से
(b) किण्वन से
(c) अनॉक्सी श्वसन से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (a) ऑक्सी श्वसन से
प्रश्न 4. कोशिकीय प्रक्रमों में ऊर्जा मुद्रा है
(a) माइटोकॉण्ड्रिया
(b) ATP
(c) ग्लूकोस
(d) पाइरुवेंट
उत्तर (b) ATP
प्रश्न 5. एक अणु ग्लूकोस के पूर्ण ऑक्सीकरण से कितने ATP अणु प्राप्त होते हैं?
(a) 32
(b) 34
(c) 36
(d) 38
उत्तर (d) 38
प्रश्न 6. ऐल्कोहॉल का निर्माण होता है।
(a) ऑक्सी श्वसन में
(b) किण्वन में
(c) ग्लाइकोलाइसिस में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (b) किण्वन में
प्रश्न 7. ग्लाइकोलाइसिस की प्रक्रिया सम्पन्न होती है
(a) कोशिकाद्रव्य में
(b) राइबोसोम्स में
(c) माइटोकॉण्ड्रिया में
(d) अन्त: प्रद्रव्यी जालिका में
उत्तर (a) कोशिकाद्रव्य में
प्रश्न 8. ग्लाइकोलाइसिस के अन्त में कितने ATP अणुओं का सीधा लाभ होत है?
(a) दो
(b) शून्य
(c) चार
(d) आठ
उत्तर (a) दो
प्रश्न 9. पाइरुवेट के विखण्डन की प्रक्रिया सम्पन्न होती है
अथवा ऑक्सीजन की उपस्थिति में पाइरुवेट का ऑक्सीकरण कोशिका किस भाग में होता है?
(a) कोशिकाद्रव्य
(b) केन्द्रक
(c) माइटोकॉण्ड्रिया
(d) अन्त: प्रद्रव्यी जालिका
उत्तर (c) माइटोकॉण्ड्रिया में
प्रश्न 10. निम्नलिखित में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
(i) पाइरुवेट को यीस्ट की सहायता से इथेनॉल और कार्ब डाइऑक्साइड में बदला जा सकता हैं।
(ii) वायवीय जीवाणुओं में किण्वन होता है।
(iii) माइटोकॉण्ड्रिया में किण्वन होता है।
(iv) किण्वन अवायवीय श्वसन का ही एक रूप है।
(a) (i) और (iii)
(b) (ii) और (iv)
(c) (i) और (iv)
(d) (ii) और (iii)
उत्तर (c) (i) और (iv) सही हैं
प्रश्न 11. अन्तःश्वसन के दौरान वायु-प्रवाह का सही मार्ग कौन-सा है ?
(a) नासाद्वार → कण्ठ → ग्रसनी → श्वासनली → फेफड़े
(b) नासामार्ग → नासाद्वार → श्वासनली → ग्रसनी → कण्ठ कूपिकाएँ
(c) कण्ठ → नासाद्वार → ग्रसनी → फेफड़े
(d) नासाद्वार → ग्रसनी → कण्ठ → श्वासनली → कूपिकाएँ
उत्तर (d) नासाद्वार → ग्रसनी → कण्ठ → श्वासनली → कूपिकाएँ
प्रश्न 12. मनुष्य के नासामार्ग से अन्दर आने वाली वायु के ताप एवं नमी नियमन के कार्य में सहायक झिल्ली है।
(a) नासा झिल्ली
(b) श्लेष्म कला
(c) नासावेश्म
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (b). श्लेष्म कला
प्रश्न 13. निम्न में से कौन-सा विकल्प कण्ठ (ध्वनि पेटिका) के बारे में गलत है?
(a) यह एक अस्थिल पेटिका है।
(b) ग्लोटिस लेरिंक्स में खुलती है।
(c) भोजन निगलते समय ग्लोटिस, एपिग्लॉटिस से ढक जाता है, जो भोजन को लेरिंक्स में जाने से रोकता है।
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर (a) लेरिंक्स या कण्ठ एक उपस्थिल पेटिका (cartilaginons box) है।
प्रश्न 14. श्वासनली की लम्बाई कितनी होती है?
(a) 20 सेमी
(b) 5 सेमी
(c) 10-12 सेमी
(d) 20-30 सेमी
उत्तर (c) 10-12 सेमी
प्रश्न 15. मनुष्य की श्वासनली की दीवार में होती है
(a) ‘C’ आकार की उपास्थि
(b) ‘O’ आकार की उपास्थि
(c) ‘C’ आकार की अस्थि
(d) उपास्थि नहीं होती
उत्तर (a) ‘C’ आकार की उपास्थि
प्रश्न 16. मनुष्य के शरीर में फेफड़ों की संख्या कितनी होती हैं?
(a) एक
(b) दो
(c) चार
(d) अनेक
उत्तर (b) दो
प्रश्न 17. फुफ्फुस गुहा में भरे तरल का क्या कार्य है?
(a) फेफड़ों की सुरक्षा
(b) फुफ्फुसावरण को नम तथा चिकना बनाना
(c) फुफ्फुसावरण को घर्षण मुक्त रखना
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर (d) फुफ्फुस गुहा में भरा लसदार तरल पदार्थ फेफड़ों की सुरक्षा करता है। यह तरल फुफ्फुसावरण को नम तथा चिकना बनाता है, जिसके कारण फुफ्फुसावरण में घर्षण नहीं हो पाता है।
प्रश्न 18. दायाँ फेफड़ा कितने पिण्डों में बँटा होता है ?
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) पाँच
उत्तर (b) तीन
प्रश्न 19. मानव में गैसों का आदान-प्रदान …….. में होता है।
(a) कूपिका
(b) कण्ठ
(c) श्वासनली
(d) ब्रोन्काई
उत्तर (a) कूपिका
प्रश्न 20. वायुकोष किन कोशिकाओं से बनता है?
(a) शल्की उपकला से
(b) स्तम्भी उपकला से
(c) घनाकार उपकला से
(d) ग्रन्थिल उपकला से
उत्तर (a) शल्की उपकला से
प्रश्न 21. हीमोग्लोबिन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है
(a) श्वसन में
(b) उत्सर्जन में
(c) पाचन में
(d) पोषण में
उत्तर (a) श्वसन में
प्रश्न 22. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन श्वसन के लिए सही है?
(i) अन्तःश्वसन के समय, पसलियाँ अन्दर की ओर गति करती हैं डायाफ्राम ऊपर उठता है।
(ii) कूपिकाओं में गैसों का आदान-प्रदान होता है, इसके अन्तर्गत, कूपिका वायु से ऑक्सीजन रुधिर में फैलती है और रुधिर से कार्बन इऑक्साइड कूपिक वायु में जाती है।
(iii) हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन की तुलना में कार्बन डाइऑक्साइड के लिए अधिक सम्बन्ध रखते हैं।
(iv) गैसों के आदान-प्रदान के लिए कूपिकाएँ सतह की जगह को बढ़ाती है।
(a) (i) और (iv)
(b) (ii) और (iii)
(c) (i) और (iii)
(d) (ii) और (iv)
उत्तर (d) (ii) और (iv) सही हैं
प्रश्न 23. कथन (A) यीस्ट; जैसे- सैकेरोमाइसीज सेरेवेसी ( Saccharomyces cerevisiae) का उपयोग बेकिंग (Baking) उद्योग में किण्वन (Fermentation) के लिए किया जाता है।
कारण (R) किण्वन के दौरान उत्पन्न हुई कार्बन डाइऑक्साइड प्रसार द्वारा ब्रेड के आटे (Dough) को फूलने देती है।
(a) A और R दोनों सत्य हैं तथा R द्वारा A की सत्य व्याख्या हो रही है।
(b) A और R दोनों सत्य हैं परन्तु R द्वारा A की सत्य व्याख्या नहीं हो रही है।
(c) A सत्य है, परन्तु R असत्य है।
(d) A असत्य है, परन्तु R सत्य है।
उत्तर (a) बेकर्स यीस्ट (सैकेरोमाइसीज सेरेवेसी) गूंथने (Kneading) के दौरान आटे में मिलाई जाती है। यीस्ट, कुछ एन्जाइम; जैसे- एमाइलेस (कुछ स्टार्च को माल्टोस में परिवर्तित करता है), माल्टेस (माल्टोस को ग्लूकोस एवं जाइमेस (ग्लूकोस को इथाइल एल्कोहॉल एवं कार्बन डाइऑक्साइड) स्रावित करता है। ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में किण्वन की इस प्रक्रिया में मुक्त हुई CO2 के कारण ही आटा (Dough) फूल जाता है एवं ब्रेड मुलायम एवं छिद्रयुक्त हो जाती है।
अत: कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सत्य हैं तथा कारण (R), कथन (A) का सही स्पष्टीकरण है।
खण्ड व वर्णनात्मक प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न-I
प्रश्न 1. श्वसन को परिभाषित कीजिए।
अथवा श्वसन क्रिया को परिभाषित कीजिए तथा बताइए कि इस क्रिया में किस प्रकार ऊर्जा ATP में स्थानान्तरित होती है?
उत्तर श्वसन वह क्रिया है, जिसमें कोशिका में कार्बनिक यौगिकों (प्राय: ग्लूकोस) का ऑक्सीकरण होता है। इस क्रिया में CO2 तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा को विशेष ATP अणुओं में विभवीय ऊर्जा के रूप में संचित किया जाता है।
C6H12O6 + 6O2 → 6CO2 + 6H2O + 673 किलो कैलोरी ऊर्जा
प्रश्न 2. डायाफ्राम क्या है? यह कहाँ पाया जाता है?
उत्तर मानव के श्वसन तन्त्र में वक्षगुहा की निचली सतह एक पतली पेशीय परत द्वारा पूरी तरह से बन्द रहती है, जिसे तन्तुपट या डायाफ्राम कहते हैं। यह गुम्बद के आकार का होता है। यह श्वसन की मुख्य मांसपेशी होती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न-II
प्रश्न 1. श्वसन तथा दहन में अन्तर लिखिए।
अथवा श्वसन तथा दहन में कोई चार अन्तर बताइए ।
उत्तर श्वसन और दहन में निम्नलिखित अन्तर हैं

प्रश्न 2. श्वसन क्रिया को समझाइए। ऑक्सी तथा अनॉक्सी श्वसन में अन्तर बताइए ।
अथवा वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अन्तर है? कुछ जीवों के नाम लिखिए, जिनमें अवायवीय श्वसन होता है।
अथवा वायवीय श्वसन किस प्रकार अवायवीय श्वसन से भिन्न होता है?
अथवा वायवीय एवं अवायवीय श्वसन में अन्तर लिखिए |
अथवा ऑक्सी तथा अनॉक्सी श्वसन में कोई दो अन्तर लिखिए।
उत्तर श्वसन जीवित कोशिकाओं में होने वाली वह ऑक्सीकरण क्रिया है, जिसमें विभिन्न जटिल कार्बनिक पदार्थों; जैसे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, आदि के अपघटन से कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल मुक्त होते हैं व ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के लिए ATP के रूप में संचित हो जाती है।
C6H12O6 + 6O2 → 6CO2 + 6H2O + 673 किलो कैलोरी (38 ATP)
ऑक्सी एवसन तथा अनॉक्सी श्वसन में निम्न अन्तर हैं

प्रश्न 3. श्वसन तथा श्वासोच्छ्वास में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर एवसन और श्वासोच्छ्वास में निम्नलिखित अन्तर है

प्रश्न 4. कोशिकीय श्वसन को परिभाषित कीजिए तथा उसकी रूप-रेखा का चित्र बनाइए ।
उत्तर कोशिका के भीतर ग्लूकोस के ऑक्सीकरण से ऊर्जा का मुक्त होना तथा CO2 का बनना आन्तरिक या कोशिकीय श्वसन कहलाता है। कोशिकीय श्वसन सभी जीवित कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य व माइटोकॉण्ड्रिया में होता है।
C6H12O6 + 6O2 → 6CO2 + 6H2O + ऊर्जा

प्रश्न 5. कोशिकीय श्वसन द्वारा मोचित ऊर्जा किस अणु के संश्लेषण में प्रयुक्त होती है? इस अणु के अनृस्थ सहलग्नता खण्डित होने पर कितनी ऊर्जा मोचित होती है?
उत्तर कोशिकीय श्वसन द्वारा मोचित ऊर्जा ATP अणु के संश्लेषण में प्रयुक्त होती है।
इसमें प्रयुक्त अभिक्रियाओं में 2 ATP अणु ऊर्जा उपयोग में आती है। एक अणु ADP से ATP के निर्माण के लिए 12 किलो कैलोरी ऊर्जा आवश्यक होती है, अतः कोशिकीय श्वसन क्रिया में 38 ATP अणुओं में कुल 456 किलो कैलोरी ऊर्जा अनुबन्धित होती है। शेष ऊर्जा (673 किलो कैलोरी ) ऊष्मा के रूप में विमुक्त हो जाती है।
प्रश्न 6. हीमोग्लोबिन क्या है? यह कहाँ पाया जाता है? श्वसन क्रिया में इसकी क्या भूमिका है?
अथवा हीमोग्लोबिन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
अथवा हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर हीमोग्लोबिन यह एक जटिल प्रोटीन है। इसका निर्माण लौहयुक्त वर्णक हीम तथा ग्लोबिन प्रोटीन से होता है। सभी पृष्ठवंशियों में यह लाल रुधिराणुओं में पाया जाता है। केंचुएँ तथा अपृष्ठवंशियों में यह रुधिर प्लाज्मा में घुला रहता है। हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन से मिलकर अस्थायी यौगिक ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनाता है। कोशिकाओं तथा ऊतकों में पहुँचकर ऑक्सीहीमोग्लोबिन विखण्डित होकर ऑक्सीजन को मुक्त कर देता है। यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। अतः हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन श्वसन वर्णक का कार्य करता है, जो ऑक्सीजन के लिए उच्च बन्धुता रखता है। यह श्वसन में सहायता करता है तथा रुधिर में पाए जाने के कारण पूरे शरीर में ऑक्सीजन का संचरण इसी के माध्यम से होता है, यदि इसकी अनुपस्थिति रहेगी, तो ऑक्सीजन के परिवहन के बिना हम जीवित नहीं रह पाएँगे।
प्रश्न 7. फेफड़ों में वायु का प्रवेश व निकास फुफ्फुसीय गुहा (Pleural cavity) पर निर्भर करता है। जब ये गुहाएँ अपने आकार में फैलती हैं, तो इनके भीतर की वायु का दबाव कम हो जाता है तथा फेफड़ों को भी फैलने हेतु स्थान मिल जाता है तथा वायुमण्डलीय वायु फेफड़ों में भर जाती है। इसके विपरीत जब ये फुफ्फुसीय गुहाएँ पिचकती हैं, तो फेफड़ों की वायु बाहर निकल जाती है। वास्तव में फुफ्फुसीय गुहाओं का आयतन, वक्षीय पिंजर (Thoracic cage) के आयतन पर निर्भर करता है। वक्षीय पिंजर की छत वक्षीय कशेरुकाओं (Thoracic vertebrae). द्वारा निर्मित होती है। इसके अधर तल पर उरोस्थि (Sternum) तथा पीछे की तरफ तनुपट्ट (Diaphragm) स्थित होता है। तन्तुपट रेखित पेशियों तथा तन्तुओं की बनी एक चपटी संरचना है, जो वक्षगुहा को उदरगुहा से पृथक् करती है। इसका मध्य भाग एक अर्द्धचन्द्राकार कण्डरा (Tendon) के रूप में होता है।
(i) अन्तःश्वसन तब होता है जब फेफड़ों में वायुमण्डलीय दाब की तुलना में ऋणात्मक दाब उत्पन्न होता है। यह ऋणात्मक दाब उत्पन्न होने पर श्वसन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(ii) तनुपट्ट तथा अन्तरापर्शुक पेशियों में वायु के निःश्वसन के दौरान क्या परिवर्तन होते हैं?
उत्तर (i) अन्तःश्वसन की क्रिया में तनुपट्ट (Diaphragm ) की अरीय पेशियाँ सिकुड़ जाती हैं तथा तनुपट्ट चपटा हो जाता है। इसके अतिरिक्त पसलियों के मध्य में उपस्थित बाह्य अन्तरापर्शुक पेशियों (External intercostal muscles) में संकुचन होता है, जिसके फलस्वरूप पसलियाँ ऊपर की ओर उठ जाती हैं तथा उरोस्थि आगे तथा बाहर की ओर खिसककर वक्षीय गुहा तथा फेफड़ों के आयतन को बढ़ा देती है। आयतन में वृद्धि होने के कारण फेफड़ों में वायु का दबाव वायुमण्डल (समुद्र तल पर 760 mm Hg ) से 1-3mm Hg तक कम हो जाता है। अतः वायु श्वसन मार्ग से भीतर आकर फेफड़ों में भर जाती है।
(ii) निःश्वसन में तनुपट्ट की अरीय पेशियों में शिथिलन तथा पसलियों के मध्य में उपस्थित अन्तरापर्शुक पेशियों (Internal intercostal muscles) में संकुचन होने के कारण तनुपट्ट तथा पसलियाँ अपनी सामान्य स्थिति में आ जाती हैं। वक्ष गुहा, फुफ्फुसीय गुहा तथा फेफड़ों का आयतन प्रायः कम हो जाता है। फेफड़ों की वायु पर दबाव बाहरी वायु के दबाव से लगभग 1-3 mm Hg अधिक हो जाने से फेफड़ों की वायु श्वसन मार्ग से होती हुई बाहर की ओर निकल जाती है।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. मनुष्य में श्वास लेने की क्रियाविधि का सचित्र वर्णन कीजिए ।
अथवा मनुष्य के श्वसन अंगों की विशेषताएँ लिखिए । श्वसन और दहन में अन्तर स्पष्ट कीजिए । मनुष्य में श्वासोच्छ्वास की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए ।
अथवा प्राणियों की श्वसन सतह में क्या विशेषताएँ होनी चाहिए?
उत्तर मनुष्य के श्वसन अंग की विशेषताएँ श्वसन अंगों में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं
(i) श्वसन सतह में रुधिर केशिकाओं का जाल जितना अधिक फैला होगा, वायु-विनिमय उतना ही सुचारू रूप से होगा।
(ii) श्वसन अंग का पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक होना चाहिए ।
(iii) श्वसन सतह नम और पतली होनी चाहिए।
(iv) श्वसन अंग तक कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन को लाने व ले जाने का उचित प्रबन्ध होना चाहिए।
श्वसन और दहन में अन्तर
| श्वसन | दहन |
| यह जैविक नियन्त्रण में होने वाली जैव- रासायनिक ऑक्सीकरण क्रिया है। | यह अनियन्त्रित रासायनिक ऑक्सीकरण की क्रिया है। |
| यह क्रिया सामान्य ताप ( 25-45°C) पर होती है तथा इसमें कम ऊर्जा उत्पन्न होती है। | यह क्रिया उच्च ताप पर होती है तथा इसमें उच्च ऊष्मा (ऊर्जा) उत्पन्न होती है। |
प्राणियों की श्वसन सतह की विशेषताएँ
जन्तुओं में श्वसन के प्रकारों एवं श्वसनांगों में बहुत अधिक विविधता पाई जाती है। कुछ जीवों में त्वचा द्वारा सरलतापूर्वक श्वसन सम्पन्न हो जाता है, तो कुछ में इस कार्य हेतु जटिल तन्त्र पाया जाता है। जीवों में प्रभावी गैसीय विनिमय हेतु श्वसन सतह में निम्न विशेषताएँ होनी चाहिए
(i) पतली भित्ति
(ii) तीव्र विसरण हेतु नमी
(iii) बड़ा पृष्ठीय क्षेत्रफल
(iv) रुधिर प्रवाह का आधिक्य ।
मनुष्य में श्वासोच्छ्वास क्रियाविधि
श्वासोच्छ्वास क्रियाविधि निम्नलिखित दो चरणों में पूर्ण होती हैं
(i) अन्तःश्वसन (Inspiration) इस क्रिया में शुद्ध वायु (O2) श्वसनांगों द्वारा फेफड़ों में पहुँचती है।
इस प्रक्रिया में डायाफ्राम एवं बाह्य अन्तरापर्शुक (Internal intercostal) पेशियाँ संकुचित हो जाती हैं एवं डायाफ्राम समतल (Flattened) हो जाता है। निचली पसलियाँ बाहर एवं ऊपर की ओर फैलती हैं तथा छाती फूल जाती है, जिसके फलस्वरूप वक्षगुहा (Thoracic cavity) का आयतन बढ़ जाता है और फेफड़ों में वायु का दाब कम हो जाता है । अन्ततया वायु नासारन्ध्र (Nostrils), कण्ठद्वार (Larynx) तथा श्वासनली ( Trachea ) में होते हुए फेफड़ों में भर जाती है।

(ii) निःश्वसन (Expiration) इस क्रिया में आन्तरिक अन्तरापर्शक पेशियों तथा डायाफ्राम में शिथिलन से ही पसलियाँ, स्टर्नम और डायाफ्राम अपनी पूर्व स्थिति में आ जाते हैं, जिससे वक्ष गुहा का आयतन कम हो जाने से फेफड़ों का आयतन कम हो जाता है। फेफड़ों पर दबाव बढ़ जाता है और वायु बाहर निकल जाती है।
प्रश्न 2. श्वसन की परिभाषा लिखिए। मनुष्य के फेफड़ों की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा श्वसन किसे कहते हैं? मनुष्य के श्वसन अंगों का निम्नांकित चित्र बनाकर उनके कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर श्वसन जीवित कोशिकाओं में होने वाली उन सभी एन्जाइमी अभिक्रियाओं (Enzymatic reactions) को कहते हैं, जिनमें ऑक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति में कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण होता है तथा ऊर्जा मुक्त होती है। मनुष्य में श्वसनांग नासिका, नासामार्ग, कण्ठ या स्वरयन्त्र या ग्रसनी, श्वास नलिका एवं फेफड़े (मुख्य श्वसन अंग) होते हैं।
(i) नासिका एवं नासामार्ग चेहरे पर नासिका, दो बाह्य नासाछिद्रों से बाहर खुलती है। नासिका नासागुहा में खुलती है तथा यह गुहा पीछे घुमावदार, टेढ़े-मेढ़े मार्ग, नासामार्ग में खुलती है । नासामार्ग सीलिया युक्त श्लेष्मक कला से ढका रहता है। इसकी कोशिकाएँ श्लेष्म स्रावित करती हैं। नासामार्ग पीछे ग्रसनी (Pharynx) में खुलता है। यहाँ उपस्थित रोम तथा श्लेष्मा द्वारा वायु का निस्यन्दन होता है।
(ii) ग्रसनी नासामार्ग से वायु गले में स्थित ग्रसनी में आती है। ग्रसनी में वायुनाल तथा ग्रासनाल दोनों खुलती हैं। वायुनाल के छिद्र को घांटीद्वार (Glottis) कहते हैं। इस पर एक ढक्कन के समान संरचना पाई जाती है। इस ढक्कननुमा संरचना को घांटीढापन (Epiglottis) कहते हैं। यह भोजन करते समय भोजन के कणों को वायुनाल में जाने से रोकता है।
(iii) वायुनाल यह 10-12 सेमी लम्बी तथा 1.5-2.5 सेमी व्यास की उपास्थि छल्लेनुमा नली होती है। यह निम्न दो भागों में बंटी होती हैं
(a) कण्ठ या स्वर यन्त्र यह वायुनाल का अगला बक्सेनुमा भाग है, जो उपास्थि की बनी तीन प्रकार की चार प्लेटों से मिलकर बना होता है। इसकी गुहा को कण्ठ कोष कहते हैं। कण्ठ कोष में दो जोड़ी वाक् रज्जु (Vocal cords) होते हैं। इन वाक् रज्जुओं में कम्पन्न से ही ध्वनि उत्पन्न होती है। इस कारण इसे ध्वनि उत्पादक अंग भी कहते हैं। हमारे गले में कण्ठ (Larynx) की उपास्थि ही उभार के रूप में होती है। इसे टेंदुआ (Adam’s apple) भी कहते हैं।
(b) श्वासनली यह गर्दन की पूरी लम्बाई में फैली होती है। इसका कुछ भाग वक्ष गुहा में भी पहुँचता है। इसकी दीवार पतली, लचीली तथा ‘C’ आकार की उपास्थि से निर्मित 16-20 अधूरे छल्लों से बनी होती है। ये छल्ले श्वासनली (Trachea ) में वायु न होने पर इसे पिचकने से रोकते हैं। श्वासनली वक्ष गुहा में आकर दो शाखाओं, श्वसनियों (Bronchi) में विभाजित हो जाती है। प्रत्येक श्वसनी अपनी तरफ के फेफड़े में प्रवेश करने के पश्चात् अनेक छोटी शाखाओं, श्वसनिकाओं (Bronchioles) में विभाजित हो जाती है। प्रत्येक श्वसनिका अन्त में फुफ्फुस के वायुकोषों (Alveoli) में समाप्त हो जाती है। इस प्रकार श्वास के समय ली गई वायु नासिका से वायुकोषों तक पहुँचती है।
(iv) फेफड़े या फुफ्फुस यह प्रमुख श्वसनांग है। यह वक्षगुहा में हृदय के पार्श्व में स्थित कोमल एवं लचीला अंग है। प्रत्येक फेफड़े के चारों ओर दोहरी झिल्लीयुक्त गुहा होती है, जिसे फुफ्फुस गुहा (Pleural cavity ) कहते हैं। झिल्लियों को फुफ्फुसावरण कहते हैं एवं इसमें एक लसदार तरल पदार्थ होता है। ये फुफ्फुसावरण व तरल पदार्थ फेफड़ों की रक्षा करते हैं। एक जोड़ी फेफड़े में दायाँ फेफड़ा ग्रसनी कण्ठ द्वार . श्वासनली – श्वसनी . फेफड़ा हृदय तन्तुपट या डायाफ्राम मानव के श्वसन तन्त्र बाएँ की अपेक्षा कुछ बड़ा होता है। यह अधूरी खाँच द्वारा तीन पिण्डों में विभक्त रहता है। बायाँ फेफड़ा एक ही अधूरी खाँच द्वारा दो पिण्डों में बँटा रहता है। इन खाँचों के अतिरिक्त फेफड़े की बाहरी सतह सपाट तथा चिकनी होती है। फेफड़े स्पंजी एवं असंख्य वायुकोषों में विभक्त रहते हैं।

प्रश्न 3. मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?
अथवा मनुष्य की श्वसन क्रिया में गैसीय विनिमय तथा गैसीय परिवहन किस प्रकार होता है? स्पष्ट कीजिए ।
अथवा मनुष्य में ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड का विनिमय किस अंग में होता है? उसके कार्य को चित्र के माध्यम से स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर गैसीय विनिमय मनुष्य में कार्बन डाइऑक्साइड तथा ऑक्सीजन का विनिमय फेफड़ों में स्थित संरचना वायु कोष्ठों द्वारा होता है। प्रत्येक वायुकोष या वायुकोष्ठक शल्की उपकला की चपटी पतली कोशिकाओं से बनता है। इनकी कम मोटाई सरलता से गैसीय विनिमय में विशेष योगदान देती है। वायुकोष्ठक या वायुकोषों की बाह्य सतह पर रुधिर केशिकाओं का जाल फैला रहता है, जो फुफ्फुस धमनी के अत्यधिक शाखान्वित होने से बनता है। इन केशिकाओं से शरीर मैं ऑक्सीजनरहित रुधिर आता है, इसमें CO2 की मात्रा अधिक होती है वायुकोष्ठकों से CO2 बाहर विसरित हो जाती है तथा O2 रुधिर केशिकाओं से रुधिर में विसरित हो जाती है। वायुकोष्ठकों की O2 युक्त रुधिर केशिकाएँ आपस में मिलकर रुधिर वाहिनी का निर्माण करती हैं। ये अपेक्षाकृत मोटी होती हैं तथा फुफ्फुस शिरा में खुलती हैं।

O2 का परिवहन फेफड़ों की वायु में O2 का विसरण दाब अधिक होने के कारण O2 विसरण द्वारा रुधिर कोशिकाओं में पहुँचकर हीमोग्लोबिन से क्रिया करके ऑक्सीहीमोग्लोबिन नामक अस्थायी यौगिक बनाती है। ऑक्सीहीमोग्लोबिन ऊतक में पहुँचकर हीमोग्लोबिन तथा O2 में विघटित हो जाता है। इस प्रकार ऊतक या कोशिकाओं को 97% O2 प्राप्त होती रहती है। शेष प्लाज्मा में घुलित होती है। CO2 का परिवहन कोशिकाओं में भोज्य पदार्थों के जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण के फलस्वरूप ऊर्जा मुक्त होती है। इसी के साथ CO2 तथा H2O भी बनते हैं। CO2 निम्न प्रकार से फेफड़ों तक पहुँचती है
(i) कार्बोनिक अम्ल के रूप में लगभग 5-7% CO2 रुधिर प्लाज्मा में घुलकर कार्बोनिक अम्ल (H2CO3) बनाती है।
कार्बनिक अम्ल का बनना निम्न अभिक्रिया द्वारा समझा जा सकता है।

(ii) कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन लगभग 10-23% CO2 हीमोग्लोबिन से क्रिया करके कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन बनाती है। कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन भी ऑक्सीहीमोग्लोबिन की तरह का ही अस्थाई यौगिक है। फेफड़े में पहुँचकर यह विखण्डित होकर CO2 मुक्त कर देता है।
(iii) बाइकार्बोनेट्स के रूप में लगभग 70-85% CO2 सोडियम तथा पोटैशियम बाइकार्बोनेट बनाती है। ये बाइकार्बोनेट कार्बोनिक अम्ल H2CO3 के रुधिर में उपस्थित विभिन्न Na व K लवणों के साथ अभिक्रिया के उपरान्त बनते हैं। बाइकार्बोनेट ऋणात्मक लवण होते हैं। अतः ऊतक स्तर पर इनका बनना फिर ऊतक स्तर से इनका फेफड़ों में पहुँचना तथा फेफड़ों के स्तर पर इनका विखण्डित होना एक विशेष प्रक्रिया की सहायता से सम्भव हो पाता है। इस प्रक्रिया को क्लोराइड शिफ्ट कहते हैं।
C. परिवहन)
मानव में परिवहन
कोशिकाओं तक भोजन तथा O2 को पहुँचाने के लिए, कोशिकाओं में उपापचय के फलस्वरूप बने उत्सर्जी पदार्थों को उत्सर्जी अंगों तक पहुँचाने के लिए एवं हॉर्मोन्स, आदि के वितरण के लिए शरीर में परिसंचरण तन्त्र (Circulatory system) की आवश्यकता होती है। इसके अन्तर्गत रुधिर, लसिका, हृदय एवं वाहिनियाँ आती हैं, जिसमें रुधिर एवं लसिका प्रमुख तरल ऊतक होते हैं।
मानव का परिसंचरण तन्त्र निम्न दो भागों में बँटा होता हैं
1. रुधिर परिसंचरण तन्त्र
मानव में यह तन्त्र रुधिर, हृदय तथा रुधिर वाहिनियों से मिलकर बना होता है। रुधिर परिसंचरण की खोज विलियम हार्वे ने की थी।
(i) रुधिर
यह एक संयोजी ऊतक है, जो प्लाज्मा (55%), रुधिर कणिकाओं (RBC, WBC, प्लेटलेट्स), प्रतिस्कन्दकों (हिपेरिन), अकार्बनिक लवणों (पोटैशियम, कैल्शियम क्लोराइड), वर्णकों (हीमोग्लोबिन), आदि का जटिल सम्मिश्रण होता है। रुधिर ऑक्सीजन व पोषक पदार्थों के परिवहन तथा रुधिर का थक्का जमाने में आवश्यक होता है। लाल रुधिराणुओं में उपस्थित हीमोग्लोबिन के कारण ही रुधिर का रंग लाल होता है। लाल रुधिर कणिकाओं की सतह पर प्रतिजन व प्लाज्मा में प्रतिरक्षी पाए जाते हैं।
(ii) हृदय
यह दोहरी झिल्ली से बनी थैलीनुमा संरचना में सुरक्षित रहता है, जिसे हृदयावरण (Pericardium) कहते हैं। हृदयावरण की दोनों झिल्लियों के मध्य हृदयावरणीय तरल पदार्थ पाया जाता है, जो हृदय की बाह्य आघातों से सुरक्षा करता है। मनुष्य के हृदय में चार वेश्म होते हैं अर्थात् दो अलिन्द व दो निलय। बायाँ निलय सबसे बड़ा वेश्म होता है।
ह्रदय की स्पन्दन क्रिया
ऑक्सीजन युक्त रुधिर, फुफ्फुस से फुफ्फुसीय धमनी द्वारा हृदय बाईं ओर स्थित कोष्ठ, बाएँ अलिन्द में आता है। इस रुधिर को एकत्रित करते समय बायाँ अलिन्द शिथिल रहता है।
अब अगला कोष्ठ, बायाँ निलय शिथिल रहता है तथा बायाँ अलिन्द संकुचित होता है, जिससे रुधिर बाएँ निलय में स्थानान्तरित होता है। इसके बाद बायाँ निलय संकुचित होता है तथा ऑक्सीजनित रुधिर महाधमनी द्वारा शरीर में पम्पित हो जाता है।
ऊपर वाला दायाँ कोष्ठ, दायाँ अलिन्द शिथिल रहता है, जिससे महाशिरा द्वारा शरीर का विऑक्सीजनित रुधिर इसमें आ जाता है।
जैसे ही दायाँ अलिन्द संकुचित होता है, नीचे वाला संगत कोष्ठ, दायाँ निलय शिथिल हो जाता है तथा रुधिर दाएँ निलय में स्थानान्तरित हो जाता है, जो रुधिर को ऑक्सीजनीकरण हेतु संकुचित होकर फुफ्फुस धमनी में पम्प कर देता है।
जब अलिन्द या निलय संकुचित होते हैं, तो इनके संयोजन पर स्थित वाल्व उल्टी दिशा में रुधिर प्रवाह को रोकना सुनिश्चित करते हैं।
जल स्थल चर या उभयचर एवं सरीसृप में तीन कोष्ठीय हृदय तथा मत्स्यों में दो कोष्ठीय हृदय होता है। मत्स्यों में एक चक्र में केवल एक बार रुधिर हृदय में जाता है। तथा अन्य कशेरुकियों में प्रत्येक चक्र में यह दो बार हृदय में जाता है। इसे दोहरा परिसंचरण कहते हैं।
(iii) रुधिर वाहिकाएँ
- रुधिर हृदय के द्वारा पम्प होता हुआ विस्तृत रूप से फैली मोटी पतली रुधिर वाहिनियों में निरन्तर बहता रहता है।
हृदय की रुधिर वाहिनियाँ तीन प्रकार की होती हैं(a) धमनियाँ (b) केशिकाएँ (c) शिराएँ
- धमनी रुधिर को हृदय से दूर अन्य अंगों तक ले जाती है, जबकि शिरा रुधिर को विभिन्न अंगों से हृदय में ले जाती है।
रुधिर दाब
रुधिर वाहिकाओं की भित्ति के विरुद्ध, लगने वाले दाब को रुधिर दाब कहते हैं। यह दाब शिराओं की अपेक्षा धमनियों में बहुत अधिक होता है। रुधिर दाब स्फिग्मोमैनोमीटर नामक यन्त्र से नापा जाता है।
2. लसिका
लसिका एक अन्य प्रकार का रंगहीन द्रव है, जो संवहन में सहायता करता है। लसिका में श्वेत रुधिर कणिकाओं की संख्या अधिक होती है। यह लसिका अंग जैसे थाइमस ग्रन्थि, प्लीहा एवं टॉन्सिल द्वारा उत्पादित होता है। यह लसिका वाहिनियों में भरा होता है, जो पूरे शरीर में उपस्थित होती है।
पादपों में परिवहन
पादपों में जड़ों द्वारा लवणयुक्त अवशोषित जल तथा प्रकाश-संश्लेषण द्वारा संश्लेषित खाद्य पदार्थों की विभिन्न भागों में आपूर्ति के लिए एक विकसित परिवहन या संवहन तन्त्र होता है, जो संवहनी ऊतकों, जाइलम या दारु तथा फ्लोएम या पोषवाह का बना होता है।
दारु (जाइलम) यह पादपों में जड़ द्वारा अवशोषित जल तथा खनिज लवणों को जड़ पादप के विभिन्न भागों में पहुँचाता है।
पोषवाह (फ्लोएम) यह पत्तियों में संश्लेषित कार्बनिक भोज्य पदार्थ के पादप के विभिन्न भागों में परिवहन के लिए उत्तरदायी होता है। फ्लोएम द्वारा भोज्य पदार्थों का स्थानान्तरण सुक्रोस शर्करा के रूप में होता है।
मूलदाब वह दाब है, जो जड़ों की वल्कुट (Cortex) कोशिकाओं द्वारा पूर्ण स्फीति अवस्था में उत्पन्न होता है।
रसारोहण पादपों में जाइलम ऊतक द्वारा भूमि से अवशोषित जल एवं खनिज लवण के जड़ों से तने एवं पत्तियों तक स्थानान्तरण की प्रक्रिया रसारोहण (Ascent of sap) कहलाती है।
जल का परिवहन
मृदा से जल का अवशोषण पादपों की मूल में उपस्थित मूलरोम द्वारा होता है। ये मूलरोम मृदा के कणों के बीच फँसे केशिका जल (Capillary water) को ग्रहण करते हैं। मूलरोमों के कोशिकाद्रव्य की सान्द्रता अर्थात् कोशिकाद्रव्य का परासरण दाब (Osmotic pressure) मृदा के जल के परासरण दाब से अधिक होता है। अतः जल इस उच्च दाब के कारण अर्द्धपारगम्य प्लाज्मा झिल्ली में से होकर अन्तःशोषण द्वारा मूलरोम कोशिका में प्रवेश कर जाता है। मृदा विलयन में जल की विसरण दाब न्यूनता मूलरोम के विलयन में जल की विसरण दाब न्यूनता से कम होती है। जल के परिवहन में रात्रि के समय मूलदाब तथा दिन में रन्ध्रों के खुले होने पर वाष्पोत्सर्जन आकर्षण जाइलम में जल की गति के लिए मुख्य प्रेरक बल है।
वाष्पोत्सर्जन
पादपों के वायवीय भागों द्वारा जल के वाष्प बनकर उड़ने की क्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहते हैं, जोकि प्रकाश की उपस्थिति में होती है और रन्ध्रों द्वारा नियन्त्रित होती है।
भोजन तथा दूसरे पदार्थों का स्थानान्तरण
प्रकाश-संश्लेषण के द्वारा निर्मित विलेय भोज्य कार्बनिक उत्पादों का वहन स्थानान्तरण ( Translocation) कहलाता है। इन संश्लेषित खाद्य-पदार्थों का स्थानान्तरण पत्तियों से तरल अवस्था में मूल (जड़) की ओर होता है।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. लाल रुधिराणुओं का जीवनकाल होता है
(a) 120 दिन
(b) 100 दिन
(c) 110 दिन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (a) 120 दिन
प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन-सी रुधिर कणिकाएँ शरीर में आए हुए हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करती हैं?
(a) श्वेत रुधिर कणिकाएँ
(b) लाल रुधिर कणिकाएँ
(c) प्लेटलेट्स
(d) हीमोग्लोबिन
उत्तर (a) श्वेत रुधिर कणिकाएँ
प्रश्न 3. रुधिर का थक्का बनाने के लिए आवश्यक है
(a) सोडियम क्लोराइड
(b) थ्रॉम्बिन
(c) पोटैशियम
(d) कैल्शियम
उत्तर (d) कैल्शियम
प्रश्न 4. मनुष्य के हृदय में कोष्ठों (वेश्मों) की संख्या होती है।
(a) एक
(b) दो
(c) तीन
(d) चार
उत्तर (d) चार
प्रश्न 5. पल्मोनरी शिरा खुलती है या रुधिर लाती है
(a) दाएँ अलिन्द में
(b) बाएँ अलिन्द में
(c) बाएँ निलय में
(d) दाएँ निलय में
उत्तर (b) बाएँ अलिन्द में
प्रश्न 6. फेफड़ों से शुद्व रुधिर आता है
(a) बाएँ अलिन्द में
(b) दाएँ अलिन्द में
(c) बाएँ निलय में.
(d) दाएँ निलय में
उत्तर (a) बाएँ अलिन्द में
प्रश्न 7. दाएँ निलय से अशुद्ध रुधिरं
(a) फेफड़ों में
(b) आहारनाल में
(c) हृदय में में जाता है।
(d) त्वचा में
उत्तर (a) फेफड़ों में
प्रश्न 8. शुद्ध रुधिर को शरीर के विभिन्न भागों में ले जाती है।
(a) शिराएँ
(b) महाशिरा
(c) दायाँ निलय
(d) महाधमनी
उत्तर (d) महाधमनी
प्रश्न 9. हृदय के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(i) बायाँ अलिन्द शरीर के विभिन्न भागों से ऑक्सीजनित रुधिर प्राप्त करता है, जबकि दायाँ अलिन्द फेफड़ो से विऑक्सीजनित रुधिर प्राप्त करता है।
(ii) बायाँ निलय ऑक्सीजनित रुधिर को शरीर के विभिन्न भागों में पम्प कर देता है, जबकि दायाँ निलय विऑक्सीजनित रुधिर को फेफड़ों में पम्प कर देता है।
(iii) बाएँ अलिन्द में से ऑक्सीजनित रुधिर दाएँ निलय में चला जाता है, जो इस रुधिर को शरीर के विभिन्न भागों में भेज देता है।
(iv) दायाँ अलिन्द शरीर के विभिन्न भागों से विऑक्सीजनित रुधिर प्राप्त करता है, जबकि बायाँ निलय ऑक्सीजनित रुधिर को शरीर के विभिन्न भागों में पम्प कर देता हैं।
(a) (i)
(b) (iii)
(c) (ii) और (iv)
(d) (i) और (ii)
उत्तर (c) कथन (ii) और (iv) सही हैं।
प्रश्न 10. मनुष्य का हृदय एक मिनट में धड़कता है
(a) 72-75 बार
(b) 60-70 बार
(c) 72-80 बार
(d) 75-78 बार
उत्तर (a) 72-75 बार
प्रश्न 11. एक स्वस्थ मनुष्य में सामान्य रक्तदाब होता है
(a) 140/80
(b) 120/80
(c) 135/100
(d) 125/115
उत्तर (b) 120/80mmHg
प्रश्न 12. रक्तदाब नापा जाता है।
(a) स्फिग्मोमैनोमीटर द्वारा
(b) स्टेथोस्कोप द्वारा
(c) माइक्रोस्कोप द्वारा
(d) माइक्रोमीटर द्वारा
उत्तर (a) स्फिग्मोमैनोमीटर द्वारा
प्रश्न 13. पादपों में जाइलम का कार्य होता है
(a) उत्सर्जी वर्ज्य पदार्थों का संवहन
(b) जल का संवहन
(c) भोजन का संवहन
(d) अमीनो अम्लों का संवहन
उत्तर (b) जल का संवहन
प्रश्न 14. पौधों में जाइलम किसके लिए उत्तरदायी है?
(a) जल का वहन
(b) भोजन का वहन
(c) अमीनो अम्लों का वहन
(d) ऑक्सीजन का वहन
उत्तर (a) जल का वहन
प्रश्न 15 पौधों में जड़ों द्वारा अवशोषित जल व खनिज लवण का परिवहन किसके माध्यम से होता है?
(a) जाइलम
(b) फ्लोएम
(c) रन्ध्र
(d) कैम्बियम
उत्तर (a) जाइलम
प्रश्न 16. पौधों में फ्लोएम का कार्य होता है
(a) जल व खनिज पदार्थों का परिवहन
(b) वाष्पोत्सर्जन
(c) खाद्य-पदार्थों का स्थानान्तरण
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर (c) खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण
प्रश्न 17. फ्लोएम द्वारा भोजन का स्थानान्तरण होता है
(a) सुक्रोस के रूप में
(b) प्रोटीन के रूप में
(c) हॉर्मोन्स के रूप में
(d) वसा के रूप में
उत्तर (a) सुक्रोस शर्करा के रूप
प्रश्न 18. गर्मियों के दिनों में किस कारण दोपहर में पादप मुरझा जाते है?
(a) वाष्पोत्सर्जन की कमी के कारण
(b) वाष्पोत्सर्जन की अधिकता के कारण
(c) प्रकाश संश्लेषण की कमी के कारण
(d) प्रकाश संश्लेषण की अधिकता के कारण
उत्तर (b) वाष्पोत्सर्जन की अधिकता के कारण
प्रश्न 19. निम्न सूचियों का मिलान कीजिए ।

निर्देश (पृ. सं. 20-21 ) इन प्रश्नों में दो कथन – अभिकथन (A) और कारण (R) दिए गए हैं। इन प्रश्नों के उत्तर नीचे दिए गए अनुसार उचित विकल्प को चुनकर दीजिए:
(a) A और R दोनों सत्य हैं तथा R द्वारा A की सत्य व्याख्या हो रही है।
(b) A और R दोनों सत्य हैं, परन्तु R द्वारा A की सत्य व्याख्या नहीं हो रही है।
(c) A सत्य है, परन्तु R असत्य है।
(d) A असत्य है, परन्तु R सत्य है।
प्रश्न 20. कथन (A) जो जीव जितना छोटा होता है, उसके प्रति ग्राम वजन एवं उपापचय की दर भी अधिक होती है।
कारण (R) एक महीने के शिशु में हृदय धड़कन की दर एक वयस्क से अधिक होती है।
उत्तर (b) छोटे जीवों में वयस्कों की तुलना में उपापचय दर अधिक होती है, क्योंकि उनके शरीर को वृद्धि एवं उपापचयी क्रियाओं हेतु ऊर्जा की आवश्यकता अधिक होती है। नवजात शिशुओं में हृदय स्पन्दन दर 130, जबकि वयस्क व्यक्ति में यह केवल 72 होती है। अतः कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सत्य हैं, परन्तु कारण (R), कथन (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
प्रश्न 21. कथन (A) थ्रोम्बिन (Thrombin) रुधिर स्कन्दन के लिए आवश्यक है।
कारण (R) रुधिर स्कन्दन में Ca2+ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
उत्तर (b) थ्रोम्बिन प्रोटीन यकृत द्वारा प्रोथ्रोम्बिन के रूप में स्रावित होता है, जोकि रुधिर के स्कन्दन की क्रिया में सहायक होता है। इस प्रोटीन को सक्रिय करने में प्रयुक्त एन्जाइम की क्रियाविधि हेतु Ca2+ आयन की आवश्यकता होती है। अतः कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सत्य हैं, परन्तु कारण (R) कथन (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न-I
प्रश्न 1. हीमोग्लोबिन कहाँ होता है? इसका मुख्य कार्य लिखिए।
उत्तर रुधिर का रंग लाल रुधिराणुओं में उपस्थित हीमोग्लोबिन के कारण लाल होता है। हीमोग्लोबिन एक लौह संयुक्त प्रोटीन है, जिसमें O2 तथा CO2 के साथ जुड़ने की क्षमता होती है। हीमोग्लोबिन O2 कणों को वायु कोषों से प्राप्त कर ऑक्सीहीमोग्लोबिन में परिवर्तित हो जाता है और ऑक्सीजन का शरीर के सभी अंगों तक परिवहन करता है।
प्रश्न 2. मनुष्य के हृदय के दायें एवं बायें भागों में बँटवारे से होने वाले लाभ का वर्णन कीजिए।
उत्तर हृदय का दायाँ व बायाँ बँटवारे ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को मिलने से रोकने में लाभदायक होता है। इस तरह का विभाजन शरीर को उच्च दक्षता पूर्ण ऑक्सीजन की पूर्ति करता है। मनुष्य को उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती है, इसलिए दोहरा परिसंचरण बहुत लाभदायक है।
प्रश्न 3. रुधिर दाब किसे कहते हैं?
उत्तर वह दबाव, जिसके कारण रुधिर धमनियों में प्रवाहित होता है, रुधिर दाब या रुधिर चाप कहलाता है। ये दो प्रकार का, प्राकुंचन रुधिर दाब (120mm Hg ) तथा अनुशिथिलन रुधिर दाब ( 80 mmHg ) होता है । रुधिर दाब को स्फिग्मोमैनोमीटर यन्त्र द्वारा मापा जाता है।
प्रश्न 4. धमनी किसे कहते हैं? पल्मोनरी धमनी में किस प्रकार का रुधिर पाया जाता है?
उत्तर धमनी परिसंचरण तन्त्र की वह वाहिनिकाएँ होती हैं, जो रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न भागों तक ले जाती हैं। पल्मोनरी धमनी में अनॉक्सीकृत रुधिर पाया जाता है।
प्रश्न 5. धमनी, शिरा व केशिका में पारस्परिक सम्बन्ध का नामांकित चित्र बनाइए ।

प्रश्न 6. परासरण किसे कहते हैं?
उत्तर जब दो विभिन्न सान्द्रता वाले विलयनों को एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा अलग कर दिया जाता है, तो कम सान्द्रता वाले विलयन से अधिक सान्द्रता वाले विलयन की ओर जल अथवा विलायक के अणुओं की गति करने की क्रिया को परासरण कहते हैं।
प्रश्न 7. मूलदाब की परिभाषा दीजिए ।
उत्तर मूलदाब वह दाब है, जो जड़ों की वल्कुट कोशिकाओं द्वारा पूर्ण स्फीत अवस्था में उत्पन्न होता है, जिसके फलस्वरूप कोशिकाओं में एकत्रित जल न केवल जाइलम में पहुँचता है, बल्कि तने में भी कुछ ऊँचाई तक चढ़ता है।
प्रश्न 8. पादपों में जल एवं खनिज तथा खाद्य उत्पादों के संवहन हेतु वाहिकाओं का वर्णन कीजिए व उनके नाम बताइए ।
उत्तर पादपों में जल व खनिज लवणों का संवहन जाइलम वाहिकाओं द्वारा होता है। भोजन का संवहन फ्लोएम की चालनी नलिकाओं द्वारा होता है। पत्तियों के द्वारा बना भोजन इन नलिकाओं द्वारा पादपों के विभिन्न भागों में पहुँचता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न-II
प्रश्न 1. बन्द और खुले. रुधिर परिसंचरण से क्या तात्पर्य है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए ।
अथवा खुले व बन्द रुधिर परिवहन तन्त्र को समझाइए।
उत्तर रुधिर परिसंचरण दो प्रकार का होता है
(i) बन्द रुधिर परिसंचरण इसमें रुधिर, रुधिर वाहिनियों में बहता है । रुधिर वाहिनियों के अन्तर्गत धमनियाँ, शिराएँ और रुधिर केशिकाएँ आती हैं। रुधिर केशिकाओं द्वारा ऊतक स्तर पर पदार्थों का आदान-प्रदान होता है; उदाहरण केंचुएँ व मानव में स्पष्ट रुधिर वाहिनियों का बन्द परिसंचरण तन्त्र होता है।
(ii) खुला रुधिर परिसंचरण यह परिसंचरण तन्त्र ऊतक द्रव्य एवं रुधिर में भरे असममित पात्रों का बना होता है, इनमें केशिका (Capillary) जैसी पतली नलिकाएँ सदैव अनुपस्थित होती है। इस प्रकार के परिसंचरण तन्त्र में ऊतकों की कोशिकाएँ सदैव रुधिर, जैसे परिवहन पदार्थ के सीधे सम्पर्क में रहती है।
उदाहरण आर्थ्रोपोडा के सदस्यों (कॉकरोच, मकड़ी, आदि) में।
प्रश्न 2. रुधिर के चार कार्य बताइए |
अथवा रुधिर के चार कार्यों को लिखिए।
उत्तर रुधिर के कार्य निम्नलिखित हैं
(i) गैसों का परिवहन रुधिर गैसों (O2 तथा CO2) का परिवहन करता है। रुधिर की लाल रुधिर कणिकाएँ हीमोग्लोबिन तथा ऑक्सीजन से क्रिया करके ऑक्सीहीमोग्लोबिन का निर्माण करती हैं। यह ऊतकों में पहुँचकर ऑक्सीजन और हीमोग्लोबिन में टूट जाता है। CO2 का परिवहन हीमोग्लोबिन एवं बाइकार्बोनेट लवण करते हैं।
(ii) पोषक पदार्थों का परिवहन आँत में अवशोषित भोज्य पदार्थ रुधिर प्लाज्मा द्वारा ऊतकों में पहुँचाए जाते हैं।
(iii) उत्सर्जी पदार्थों का परिवहन शरीर में उपापचयी क्रियाओं के कारण यूरिया, आदि उत्सर्जी पदार्थ बनते रहते हैं। ये रुधिर द्वारा पहले यकृत में फिर यकृत से वृक्कों में पहुँचते हैं।
(iv) शरीर ताप का नियन्त्रण और नियमन रुधिर शरीर के सभी भागों में ताप को समान बनाए रखता है तथा हॉर्मोनों का परिवहन करता है।
प्रश्न 3. मनुष्य में दोहरे परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है?
अथवा मनुष्य में दोहरे रुधिर परिसंचरण को आरेखित चित्र द्वारा दर्शाइए ।
अथवा मानव में दोहरे संचरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा दोहरा संचरण क्या हैं? स्पष्ट कीजिए ।
अथवा मानव हृदय में रुधिर परिसंचरण को ‘दोहरा परिसंचरण’ क्यों कहते हैं?
अथवा दोहरे रुधिर परिवहन तन्त्र को समझाइए ।
उत्तर मानव हृदय ऑक्सीकृत रुधिर ( बायाँ भाग) और अनॉक्सीकृत रुधिर (दायाँ भाग) को विभिन्न अंगों तक प्रवाहित करता है। परिसंचरण के दौरान मानव हृदय में रुधिर दो बार आता है। इसी कारण इस परिसंचरण को हम दोहरा परिसंचरण कहते हैं। इस परिसंचरण को हम दो चरणों में विभक्त कर सकते हैं
(i) फुफ्फुसीय परिसंचरण (Pulmonary circulation) मनुष्य के दोहरे परिसंचरण में हृदय के दाएँ अलिन्द में सम्पूर्ण शरीर से (फेफड़ों को छोड़कर) अशुद्ध रुधिर आता है। अलिन्द से यह अशुद्ध रुधिर दाएँ निलय में पहुँचता है और दाएँ निलय से फिर यह रुधिर फुफ्फुस चाप द्वारा शुद्ध ( ऑक्सीकृत) होने के लिए फेफड़ों में चला जाता है। इस पूर्ण परिसंचरण परिपथ (Circulatory circuit) को फुफ्फुसीय परिसंचरण कहते हैं।
(ii) दैहिक परिसंचरण ( Systemic circulation) इस परिसंचरण परिपथ में, जो शुद्ध रुधिर फेफड़ों से फुफ्फुस शिराओं द्वारा हृदय के बाएँ अलिन्द में आता है, वह शुद्ध रुधिर बाएँ अलिन्द से बाएँ निलय में पहुँचता है और दैहिक महाधमनी या कैरोटिको – सिस्टेमिक चाप द्वारा सम्पूर्ण शरीर में वितरित हो जाता है। इस परिसंचरण परिपथ को दैहिक परिसंचरण कहते हैं।
मनुष्य में दोहरे परिसंचरण की आवश्यकता हृदय का दायाँ व बायाँ विभाजन ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को मिलने से रोकने में सहायक होता है। इस तरह का विभाजन शरीर को उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन की आपूर्ति कराता है। मनुष्य को उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती है, इसलिए दोहरा परिसंचरण बहुत लाभदायक है।
मनुष्य में दोहरे रुधिर परिसंचरण तन्त्र को निम्न चित्र द्वारा दर्शाया गया है

प्रश्न 4. धमनी एवं शिरा में अन्तर लिखिए ।
अथवा धमनी तथा शिरा में अन्तर बताइए |
उत्तर धमनी एवं शिरा में निम्नलिखित अन्तर हैं

प्रश्न 5. रुधिर तथा लसिका में दो-दो अन्तर बताइए ।
अथवा रुधिर तथा लसिका में भिन्नता बताइए।
उत्तर रुधिर तथा लसिका में निम्नलिखित अन्तर हैं

प्रश्न 6. विसरण तथा परासरण में क्या अन्तर है?
उत्तर विसरण तथा परासरण में अन्तर निम्न प्रकार से हैं

प्रश्न 7. क्या होता है, जब किशमिश को जल में डालते हैं तथा अंगूर को चीनी के गाढ़े घोल में डालते हैं?
अथवा परासरण किसे कहते हैं? चित्र की सहायता से परासरण प्रयोग का प्रदर्शन कीजिए।
उत्तर परासरण जब दो विभिन्न सान्द्रता वाले विलयनों को एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा अलग कर दिया जाता है, तो कम सान्द्रता वाले विलयन से अधिक सान्द्रता वाले विलयन की ओर जल अथवा विलायक के अणुओं की गति करने की क्रिया को परासरण कहते हैं।
इस क्रिया में दो अन्य क्रियाएँ सम्मिलित हैं
(i) अन्तःपरासरण कोशिका को शुद्ध जल में रखने पर जल कोशिका में प्रवेश करता है। यह अन्त: परासरण कहलाता है।
उदाहरण किशमिश को जल में रखने पर किशमिश का फूल जाना ।

(ii) बहि:परासरण कोशिका को सान्द्र विलयन में रखने पर कोशिका के अन्दर से जल अणु बाहर सान्द्र विलयन में आ जाते हैं और कोशिका सिकुड़ है।
उदाहरण अंगूर को शर्करा या नमक के अधिक सान्द्र घोल में रखने पर अंगूर पिचक जाते हैं।

प्रश्न 8. वाष्पोत्सर्जन की परिभाषा लिखिए तथा उसको प्रभावित करने वाले केवल चार कारकों का उल्लेख कीजिए ।
अथवा वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं? इस क्रिया को प्रभावित करने वाले चार कारकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर वाष्पोत्सर्जन पादपों के वायवीय भागों से वाष्प के रूप में होने वाली जल हानि को वाष्पोत्सर्जन कहते हैं। वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले वातावरणीय कारक निम्न हैं
(i) वायुमण्डलीय आर्द्रता वायु की आर्द्रता बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है और आर्द्रता घटने से वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है।
(ii) वायु की गति इसकी गति, जितनी अधिक होगी वाष्पोत्सर्जन की दर भी उतनी अधिक होगी, लेकिन तेज हवा चलने पर पर्णरन्ध्र बन्द हो जाते हैं। और वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है।
(iii) तापमान वायुमण्डलीय ताप में वृद्धि होने के कारण वायु की आर्द्रता कम हो जाती है जिससे वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है। तापमान कम होने पर वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है।
(iv) प्रकाश तीव्रता प्रकाश की तीव्रता में वृद्धि के साथ तापमान में वृद्धि और वायुमण्डलीय आर्द्रता कम हो जाती है, जिससे वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है।
प्रश्न 9. वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं? प्रयोग द्वारा वाष्पोत्सर्जन क्रिया की विवेचना कीजिए |
अथवा वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं? इसके महत्त्व को चित्र की सहायता से समझाइए ।
उत्तर वाष्पोत्सर्जन पादपों के वायवीय भागों से वाष्प के रूप में होने वाली जल हानि को वाष्पोत्सर्जन कहते हैं।
प्रयोग एक गमले में लगे स्वस्थ पादप को, जिसमें पत्तियाँ अधिक हों, अच्छी तरह पानी से सींच लेते हैं। इसकी मिट्टी और गमले को रबड़ अथवा पॉलिथीन की चादर से पूरी तरह ढक देते हैं या गमले को काँच की प्लेट पर रखकर बेलजार से ढक देते हैं।

बेलजार के आधार पर ग्रीस लगाकर उपकरण को पूर्णतया वायुरुद्ध कर देते हैं। उपकरण धूप में रख देते हैं। कुछ समय के बाद बेलजार की भीतरी सतह पर जल की छोटी-छोटी बूँदें दिखाई देने लगती हैं। इस प्रयोग से सिद्ध होता है कि पादप के वायवीय अंगों से जलवाष्प निकलती है, जो संघनित होकर जल की बूँदों के रूप एकत्र हो जाती है। इससे स्पष्ट है कि पादपों में वाष्पोत्सर्जन होता है।
प्रश्न 10. वाष्पोत्सर्जन के चार प्रमुख महत्त्व बताइए |
अथवा पौधों के लिए वाष्पोत्सर्जन क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर वाष्पोत्सर्जन पादपों के वायवीय भागों से वाष्प के रूप में होने वाली जल हानि को वाष्पोत्सर्जन कहते हैं।
वाष्पोत्सर्जन का महत्त्व
(i) जड़ों द्वारा अत्यधिक मात्रा में अवशोषित जल, इस क्रिया के द्वारा वातावरण में वाष्पित हो जाता है, जिससे जल चक्र बना रहता है।
(ii) वाष्पोत्सर्जन के कारण एक प्रकार का चूषक बल अथवा वाष्पोत्सर्जन खिचाव उत्पन्न हो जाता है, जो रसारोहण और जल के मृदा में अवशोषण में सहायक होता है।
(iii) वाष्पोत्सर्जन द्वारा पादप का ताप सामान्य बना रहता है।
(iv) अधिक वाष्पोत्सर्जन के कारण फलों में शर्करा की सान्द्रता बढ़ जाती है, जिससे वह अधिक मीठे हो जाते हैं।
प्रश्न 11. जाइलम तथा फ्लोएम में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
अथवा जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के परिवहन में क्या अन्तर है?
उत्तर जाइलम तथा फ्लोएम में निम्नलिखित अन्तर हैं

प्रश्न 12. जड़ में जल के संवहन का एक स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर जड़ में जल के संवहन को निम्न चित्र द्वारा दर्शाया गया है

नोट मूलरोम से जड़ के अन्दर जाइलम वाहिकाओं तक जल का मार्ग तीरों (→) द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
प्रश्न 13. विसरण क्रिया तथा रसारोहण को समझाइए |
अथवा रसारोहण पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर विसरण क्रिया किसी पदार्थ के सूक्ष्मकणों के अपने अधिक सान्द्रता वाले क्षेत्र से कम सान्द्रता वाले क्षेत्र की ओर गमन को विसरण कहते हैं। विसरण की क्रिया का कारण, पदार्थ के अणुओं में निरन्तर अनियमित गति का होते रहना है। गैस अथवा द्रव के अणुओं के बीच आकर्षण बल कम होने के कारण अणुओं के एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने की पर्याप्त स्वतन्त्रता रहती हैं। इसलिए विसरण की क्रिया मुख्यतया द्रवों और गैसों में होती है।
रसारोहण पादपों की जड़ों द्वारा अवशोषित जल और उसमें उपस्थित लवणों का पादप में ऊपर की ओर चढ़ने की क्रिया को रसारोहण कहते हैं। रसारोहण के माध्यम से जल और लवण पादप के विभिन्न भागों तक पहुँच जाते हैं। इस जल को गुरुत्वाकर्षण के विपरीत ऊपर चढ़ने हेतु बल की आवश्यकता होती है। यह बल जल के अपने ससंजक बल और आसंजक बल के बीच आकर्षण के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है। दोनों बल मिलकर जल के अणुओं को वाहिकाओं की संकरी नलिकाओं होकर ऊपर को खींचते हैं, जो केशिकीय उन्नयन कहलाता है।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. रुधिर की संरचना तथा कार्य का वर्णन कीजिए।
अथवा रुधिर कोशिकाओं के नाम तथा उनके प्रमुख कार्य लिखिए ।
अथवा मानव हृदय में रुधिर प्रवाह पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा रुधिर परिवहन को परिभाषित कीजिए । रुधिर की संरचना एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा मानव रुधिर की संरचना एवं कार्य का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
अथवा रुधिर के चार कार्यों को लिखिए।
उत्तर मनुष्य के रुधिर परिसंचरण तन्त्र के अन्तर्गत रुधिर, हृदय तथा रुधिर वाहिनियाँ आते हैं। इस तन्त्र में परिवहन माध्यम तरल संयोजी ऊतक, होते हैं, जोकि विशेष वाहिनियों (रुधिर वाहिनियों) और अंगों (हृदय) द्वारा मानव शरीर में विचरण करते हैं,
रुधिर रुधिर एक तरल संयोजी ऊतक है, जिसकी उत्पत्ति भ्रूण के मध्यजननस्तर (Mesoderm) से होती है। यह जल से कुछ भारी (घनत्व 1.04-1.07), चिपचिपा (श्यानता जल से 4.5-5.5 गुना अधिक ), स्वाद में नमकीन, हल्का क्षारीय (pH 7.3 7.5 ) तथा अपारदर्शी (Opaque) पदार्थ है। मानव शरीर में रुधिर की मात्रा शरीर के भार की लगभग 7-8% होती है। अतः एक 70 किलोग्राम के मनुष्य के शरीर में औसतन 5-6 लीटर रुधिर होता है।
रुधिर के घटक रुधिर के निम्न दो मुख्य घटक हैं
(i) प्लाज्मा (Plasma) यह रुधिर का लगभग 55% भाग बनाता है, जिसमें 90% जल तथा 10% में जटिल कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ होते हैं। इसे रुधिर का निर्जीव भाग कहते हैं, क्योंकि इसमें रुधिर कणिकाओं का अभाव होता है।
प्लाज्मा के कार्बनिक पदार्थों में प्रतिरक्षी, ग्लूकोस, अमीनो अम्ल, वसीय अम्ल, हॉर्मोन, एन्जाइम, विटामिन तथा प्रोटीन (जैसे- एल्ब्युमिन, ग्लोब्यूलिन, प्रोथ्रॉम्बिन, फाइब्रिनोजन, हिपैरिन), आदि पदार्थ आते हैं।
अकार्बनिक पदार्थों में पोटैशियम, सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम के फॉस्फेट, बाइकार्बोनेट, सल्फेट, क्लोराइड, आदि सम्मिलित होते हैं।
(ii) रुधिर कणिकाएँ या रुधिराणु (Blood Corpuscles) ये रुधिर का लगभग 45% भाग बनाते हैं।
मानव में रुधिर कणिकाएँ निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं
A. लाल रुधिर कणिकाएँ (Red Blood Corpuscles or RBCs) ये लाल रंग की केन्द्रकरहित तथा उभयावतल (Biconcave) कणिकाएँ होती हैं। इनका लाल रंग इनमें उपस्थित हीमोग्लोबिन नामक श्वसन वर्णक (Respiratory pigment) के कारण होता है। ये ऑक्सीजन के परिवहन का कार्य करती हैं।
B. श्वेत रुधिर कणिकाएँ या ल्यूकोसाइट्स (White Blood Corpuscles or WBCs) ये लाल रुधिर कणिकाओं से बड़ी, केन्द्रकयुक्त, अमीबाभ (Amoeboid) तथा रंगहीन कणिकाएँ होती हैं । श्वेत रुधिराणु दो प्रकार के होते हैं
(a) कणिकामय श्वेत रुधिराणु (Granulocytes) इनका कोशिकाद्रव्य कणिकामय तथा केन्द्रक पालियुक्त होता है। ये असममित आकृति के होते हैं।
अभिरंजन गुणधर्मों (Staining characteristics) के आधार पर इन्हें तीन भागों में बाँटा जा सकता है
• एसिडोफिल्स या इओसिनोफिल्स (Acidophils or Eosinophils) रोगों के संक्रमण के समय इनकी संख्या बढ़ जाती है। ये शरीर को प्रतिरक्षा प्रदान करने में सहायक होती हैं तथा एलर्जी व अतिसंवेदनशीलता में महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं।
• बैसोफिल्स (Basophils) इनका केन्द्रक 2-3 पालियों में विभाजित तथा ‘S’ आकृति का दिखाई देता है। ये हिपैरिन, हिस्टैमिन एवं सिरोटोनिन नामक पदार्थों का स्रावण करती हैं।
• न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils) श्वेत रुधिर कणिकाओं में इनकी संख्या सबसे अधिक (60-70%) होती है। इनका केन्द्रक 3-5 पालियों में विभाजित रहता है। ये भक्षकाणु (Phagocytosis) क्रिया में सबसे अधिक सक्रिय होती हैं।
(b) कणिकारहित श्वेत रुधिराणु (Agranulocytes) इन श्वेत रुधिर कणिकाओं के कोशिकाद्रव्य में कणिकाएँ नहीं पाई जाती हैं। ये दो प्रकार की होती हैं
• लिम्फोसाइट्स या लसिकाणु (Lymphocytes) इनका कार्य प्रतिरक्षी (Antibodies) का निर्माण करना तथा शरीर की सुरक्षा करना होता है।
• मोनोसाइट्स (Monocytes) ऊतक द्रव्य में जाकर ये वृहद् भक्षकाणु (Macrophages) में परिवर्तित हो जाती हैं। इनका कार्य “भक्षकाणु क्रिया द्वारा जीवाणुओं का भक्षण करना होता है।
(iii) रुधिर प्लेटलेट्स या थ्रॉम्बोसाइट्स (Blood Platelet or Thrombocytes) ये केवल स्तनधारियों के रुधिर में पाई जाती हैं। ये केन्द्रकरहित, गोल या अण्डाकार होती हैं। ये चोट लगने पर रुधिर का थक्का जमने की क्रिया में सहायक होती हैं।
रुधिर के कार्य रुधिर के कार्य निम्नलिखित हैं
(i) ऑक्सीजन एवं CO2 का परिवहन
(ii) उत्सर्जी पदार्थों का परिवहन
(iii) शारीरिक ताप का नियन्त्रण एवं नियमन
(iv) रोगों से बचाव
(v) रुधिर का थक्का बनना व घाव भरना
प्रश्न 2. स्वच्छ और नामांकित चित्र की सहायता से मानव हृदय की आन्तरिक संरचना का वर्णन कीजिए।
अथवा मनुष्य के हृदय की आन्तरिक संरचना का चित्रों सहित वर्णन कीजिए |
अथवा मानव हृदय का एक स्वच्छ नामांकित व्यवस्थात्मक काट दृश्य बनाइए तथा यह स्पष्ट कीजिए कि हृदय के किस भाग में ऑक्सीजनित रुधिर तथा विऑक्सीजनित रुधिर रहता है? चित्र में रुधिर चक्रण प्रक्रिया को कणाकार चिन्ह से समझाइए |
अथवा मानव हृदय की अनुदैर्ध्य काट का नामांकित चित्र बनाकर उसकी संरचना का वर्णन कीजिए तथा तीर की सहायता से रुधिर परिसंचरण का मार्ग प्रदर्शित कीजिए ।
अथवा मनुष्य के हृदय की संरचना का उपयुक्त चित्र की सहायता से वर्णन कीजिए।
अथवा मनुष्य के हृदय की आन्तरिक संरचना का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए ।
अथवा मानव हृदय की अनुदैर्ध्य काट का नामांकित चित्र की सहायता से हृदय की संरचना का वर्णन कीजिए।
अथवा हृदय की खड़ी काट का नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर मानव हृदय पम्प के समान कार्य करता है। एक ओर यह रुधिर को ग्रहण करता है और दूसरी ओर दबाव के साथ उसे अंगों की ओर भेज देता है। यह नियमित, सतत् एवं जीवनपर्यन्त काम करता रहता है।
मनुष्य के हृदय की आन्तरिक संरचना हृदय की आन्तरिक संरचना का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है
(i) अलिन्द एवं निलय मानव हृदय की अनुलम्ब काट का अध्ययन करने पर मनुष्य के चतुष्वेश्मी हृदय में चार पूर्णवेश्म अर्थात् दो अलिन्द तथा दो निलय दिखाई देते हैं। प्रत्येक ओर का अलिन्द व निलय (Atrium and ventricle) आपस में सम्बन्धित होते हैं। अलिन्दों की दीवारें अपेक्षाकृत पतली होती हैं, जबकि निलयों की दीवारें मोटी होती हैं।
दोनों अलिन्द अन्तराअलिन्दीय पट्ट (Interatrial septum) तथा दोनों निलय अन्तरानिलयी पट्ट (Interventricular septum) द्वारा पृथक् होते हैं। मानव हृदय में बायाँ निलय सबसे बड़ा वेश्म होता है।
(ii) फोसा ओवैलिस अन्तराअलिन्दीय पट्ट के पश्च भाग पर ( दाहिनी तरफ ) एक छोटा-सा अण्डाकार गड्ढा होता है, जो फोसा ओवैलिस (Fossa ovalis) कहलाता है। भ्रूण में यह छिद्र फोरामेन ओवैलिस के नाम से जाना जाता है।
(iii) महाशिरा दाहिने अलिन्द में दो मोटी महाशिराएँ अलग-अलग छिद्रों द्वारा खुलती हैं, इन्हें अग्र महाशिरा (Inferior vena cava) तथा पश्च महाशिरा (Superior vena cava) कहते हैं।
(iv) ट्रेबीकुली कॉर्नी गुहाओं की ओर निलयों की दीवार सपाट न होकर छोटे-छोटे अनियमित भंजों के रूप में उभरी होती है, ये भंज ट्रेबीकुली कॉर्नी (Trabeculae carnae) कहलाते हैं।
(v) कोरोनरी साइनस अन्तराअलिन्दीय पट के समीप हृदय की दीवारों से आने वाले रुधिर हेतु कोरोनरी साइनस (Coronary sinus) का छिद्र होता है। इस छिद्र पर कोरोनरी या थिबेसियन कपाट (Thebasian valve) होता है।
(vi) स्पन्दन केन्द्र दाएँ अलिन्द में महाशिराओं के छिद्रों के समीप शिरा, अलिन्द गाँठ (Sino-auricular node) होती है, जो स्पन्दन केन्द्र (Pacemaker) कहलाती है।
(vii) फुफ्फुस तथा धमनी महाकांड चाप दाएँ निलय से फुफ्फुस चाप निकलता है, जो अशुद्ध रुधिर को फेफड़ों तक पहुँचाता है। बाएँ निलय से धमनी महाकांड चाप निकलता है, जो सम्पूर्ण शरीर को शुद्ध रुधिर पहुँचाता है। दोनों चापों के एक-दूसरे के ऊपर से निकलने के स्थान पर एक स्नायु आरटीरिओसम (Ligament arteriosum) नामक ठोस स्नायु होता है। भ्रूणावस्था में इस स्नायु के स्थान पर डक्टस आरटीरिओसस (Ductus arteriosus or botalli) नामक एक महीन धमनी होती है।
फुफ्फुस चाप तथा धमनी महाकांड चाप (Pulmonary and cortico-systemic arch) के आधार पर तीन अर्द्धचन्द्राकार कपाट (Semilunar valves) लगे होते हैं। ये कपाट रुधिर को वापस हृदय में जाने से रोकते हैं। अलिन्द, अलिन्द – निलय छिद्र (Atrio ventricular apertures) द्वारा निलय में खुलते हैं। इन छिद्रों पर वलनीय अलिन्द – निलय कपाट (Cuspid Atrio ventricular valve) स्थित होते हैं। ये कपाट रुधिर को अलिन्द से निलय में तो जाने देते हैं, परन्तु वापस नहीं आने देते।
(viii) त्रिवलन तथा द्विवलन कपाट दाएँ अलिन्द व निलय मध्य अलिन्द-निलय कपाट में तीन वलन होते हैं। अतः ये त्रिवलनी कपाट (Tricuspid valve) कहलाते हैं। बाएँ अलिन्द व निलय के मध्य कपाट पर दो वलन होते हैं, जिसे द्विवलन कपाट (Bicuspid valve) या मिट्रल कपाट (Mitral valve) कहते हैं। कण्डरा रज्जु या कॉर्डी टेन्डनी (Chordae tendinae) एक तरफ कपाटों से तथा दूसरी तरफ निलय की भित्ति से जुड़े रहते हैं तथा हृदय स्पन्दन के दौरान वलन कपाटों को उलटने से बचाते हैं।

प्रश्न 3. मनुष्य के हृदय की संरचना तथा क्रियाविधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए |
अथवा मनुष्य के हृदय की बाह्य संरचना का नामांकित चित्र बनाइए तथा दोहरे रुधिर परिसंचरण का महत्त्व बताइए ।
अथवा हृदय क्या है? एक लेख द्वारा स्पष्ट कीजिए, कि यह एक पम्प के रूप में कार्य करता है।
अथवा हृदय का क्या कार्य है?
अथवा मनुष्य के हृदय में कितने वेश्म होते हैं? इनमें सबसे बड़ा वेश्म कौन-सा है?
अथवा मानव हृदय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर मनुष्य के हृदय की बाह्य संरचना हृदय वक्षगुहा में फेफड़ों के मध्य में स्थित होता है। इसका अधिकांश भाग वक्ष के बाईं ओर तथा थोड़ा-सा भाग अस्थि के दाईं ओर होता है। यह विशेष प्रकार की हृदयी पेशियों के द्वारा बना होता है, जो जीवनपर्यन्त रुधिर परिसंचरण का कार्य करता है।

मानव हृदय एक गहरे लाल रंग की तिकोनी मांसल संरचना है। इसमें चार वेश्म (Chambers) होते हैं। इसके आगे के चौड़े भाग को अलिन्द (Auricle) तथा पीछे के संकरे भाग को निलय (Ventricle) कहते हैं। हृदय का आकार बन्द मुट्ठी के समान होता है। हृदय का भार 300 ग्राम, रंग गहरा लाल अथवा बैंगनी होता है।
हृदय चारों ओर से दोहरे हृदयावरण से घिरा रहता है। दोनों झिल्लियों के मध्य हृदयावरणीय तरल भरा होता है। हृदय हृद खाँच अथवा कोरोनरी सल्कस द्वारा अलिन्द और निलय में विभाजित रहता है। हृदय के दाएँ अलिन्द में शरीर के विभिन्न भागों से आया अशुद्ध रुधिर भरा होता है।
हृदय के बाएँ अलिन्द में फेफड़ों से आया शुद्ध रुधिर भरा होता है । अग्र और पश्च महाशिराएँ दाएँ अलिन्द में खुलती हैं। पल्मोनरी शिराएँ बाएँ अलिन्द में खुलती हैं। दोनों निलय एक अन्तरानिलयी खाँच द्वारा विभाजित रहते हैं। बायाँ निलय सबसे बड़ा और अधिक पेशीय होता है। दाएँ निलय से पल्मोनरी चाप निकलती है। बाएँ निलय से कैरोटिको सिस्टेमिक चाप निकलती है।
मानव हृदय की क्रियाविधि हृदय पम्प की भाँति कार्य करता है। यह रुधिर को ग्रहण कर दबाव के साथ उसे अंगों की ओर भेजता है । यह नियमित, सतत् एवं जीवनपर्यन्त काम करता रहता है। हृदय की पेशियों के सिकुड़ने की अवस्था को प्रकुंचन (Systol) एवं फैलने को अनुशिथिलन (Diastole) कहते हैं।
अलिन्द के बाद निलय सिकुड़ते हैं तथा निलय के बाद अलिन्द, यह प्रक्रिया लगातार अनवरत् चलती रहती है। इस प्रकार फैलने सिकुड़ने की क्रिया से एक हृदय स्पन्दन बनता है अर्थात् प्रत्येक हृदय स्पन्दन में हृद पेशियों को एक बार प्रकुंचन तथा एक बार अनुशिथिलन अवस्था में आना होता है ।
मानव का हृदय एक मिनट में 70-72 बार स्पन्दित होता है, जिसे हृदय स्पन्दन की दर कहते हैं। शरीर के सभी अंगों से अनॉक्सीकृत या अशुद्ध रुधिर ऊपरी एवं निम्न महाशिराओं द्वारा दाहिने अलिन्द में आता है। इसी तरह फेफड़ों द्वारा ऑक्सीकृत या शुद्ध रुधिर बाएँ अलिन्द में आता है। दोनों अलिन्दों के रुधिर से भरने के बाद इनमें एक साथ संकुचन होता है, जिससे इनका रुधिर अलिन्द – निलय छिद्रों द्वारा अपनी ओर के निलयों में आ जाता है।
निलयों में रुधिर आने पर दोनों निलयों में संकुचन होता है। अतः दाहिने निलय का अनॉक्सीकृत या अशुद्ध रुधिर पल्मोनरी महाधमनी द्वारा फेफड़ों में जाता है, जबकि बाएँ निलय का ऑक्सीकृत रुधिर कैरोटिको सिस्टेमिक महाधमनी द्वारा सम्पूर्ण शरीर में पहुँचता है। यही महाधमनी कशेरुक दण्ड के नीचे पृष्ठ महाधमनी बनाती है। निलयों के संकुचन के समाप्त होने पर अलिन्दों में पुनः संकुचन प्रारम्भ हो जाता है । रुधिर का यह परिसंचरण दोहरा परिसंचरण कहलाता है।
मनुष्य में दोहरे परिसंचरण का महत्त्व हृदय का दायाँ व बायाँ विभाजन ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को मिलने से रोकने में सहायक होता है। इस तरह का विभाजन शरीर को उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन की आपूर्ति कराता है। मनुष्य को उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती है, इसलिए दोहरा परिसंचरण बहुत लाभदायक है।
प्रश्न 4. वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार से होता है? रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन की क्रियाविधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए । वाष्पोत्सर्जन तथा बिन्दुस्रावण में अन्तर लिखिए |
अथवा वाष्पोत्सर्जन को परिभाषित कीजिए। यह कितने प्रकार का होता है? नामांकित चित्र की सहायता से रन्ध्र के खुलने तथा बन्द होने की क्रिया को दर्शाइए ।
अथवा वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं? इस क्रिया में रन्ध्र की क्या भूमिका है ? सचित्र समझाइए |
उत्तर वाष्पोत्सर्जन पादप के वायवीय भागों से वाष्प के रूप में होने वाली जल-हानि को वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) कहते हैं। यह तीन प्रकार का होता है
(i) रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन लगभग 80-90% जल – हानि रन्ध्रों द्वारा होती है।
(ii) उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन लगभग 3-9% जल – हानि बाह्यत्वचा या उपचर्म द्वारा होती है।
(iii) वातरन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन काष्ठीय पादपों में लगभग 1% जल-हानि वातरन्ध्रों द्वारा होती है।
रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन क्रियाविधि वाष्पोत्सर्जन तथा गैसीय विनिमय (ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान) पत्तियों में पाए जाने वाले छोटे छिद्रों अर्थात् रन्ध्र द्वारा होता है । सामान्यतया ये रन्ध्र दिन में खुले रहते हैं और रात में बन्द हो जाते हैं।
रन्ध्र का बन्द होना और खुलना रक्षक कोशिकाओं के स्फीति (Turgor) में बदलाव से होता है। प्रत्येक रक्षक कोशिका की आन्तरिक भित्ति रन्ध्रछिद्र की तरफ काफी मोटी एवं तन्यतापूर्ण होती है । रन्ध्र को घेरे दोनों रक्षक कोशिकाओं में जब स्फीति दाब बढ़ने लगता है, तो पतली बाहरी भित्तियाँ बाहर की ओर खिंचती हैं। और आन्तरिक भित्ति अर्द्धचन्द्राकार स्थिति में आ जाती है।

पानी की कमी होने पर जब रक्षक कोशिका की स्फीति समाप्त होती है (या जल तनाव खत्म होता है) तो अन्य आन्तरिक भित्तियाँ पुनः अपनी मूल स्थिति में आ जाती हैं, तब रक्षक कोशिकाओं की बाह्य झिल्ली ढीली पड़ जाती हैं और रन्ध्र छिद्र बन्द हो जाते हैं।
वाष्पोत्सर्जन और बिन्दुस्रावण में अन्तर
| वाष्पोत्सर्जन | बिन्दुस्रावण |
| वाष्पोत्सर्जन पादप की वायवीय सतह से रन्ध्र, उपत्वचा एवं वातरन्ध्र से होने वाली क्रिया है। | बिन्दुस्रावण जलरन्ध्रों से होने वाली एक निश्चित क्रिया है। |
| इस प्रक्रिया में जल, वाष्प के रूप में विसरित होता है। | इसमें जल कोशिका रस के रूप में उत्सर्जित होता है। |
| इसके कारण उत्पन्न वाष्पोत्सर्जनाकर्षण के कारण जल का निष्क्रिय अवशोषण होता है। | यह क्रिया जड़ के मूलदाब के कारण होती है। |
| अन्तरकोशिकीय स्थानों में, जो जलवाष्प संचित होती है, वही रन्ध्रों द्वारा विसरित होती है। | जाइलम वाहिकाओं के खुले सिरों से कोशिका रस तरल रूप में पत्तियों के शीर्ष से निकलता दिखाई देता है। |
प्रश्न 5. मूलरोमों द्वारा जल का अवशोषण किस प्रकार होता है? चित्र की सहायता से समझाइए ।
अथवा पादपों में जल संवहन से आप क्या समझते है? पौधों में जल, भोजन तथा अन्य पदार्थों के स्थानान्तरण को स्पष्ट कीजिए ।
अथवा पादपों में जल संवहन का सचित्र वर्णन कीजिए ।
अथवा पादप में जल और खनिज लवण के वहन की विधि का वर्णन कीजिए |
अथवा पादपों में जल तथा भोजन का परिवहन कैसे होता है?
अथवा जड़ों द्वारा जल की अवशोषण विधि का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा पादपों में जल का परिवहन किसके द्वारा होता है? इसकी क्रियाविधि समझाइए |
उत्तर पादपों में जल का परिवहन पादपों में जल परिवहन का निम्न पदों में अध्ययन किया जा सकता है
(i) मूलरोमों द्वारा जल का अवशोषण भूमि में जल का अवशोषण मूलरोमों द्वारा होता है। मूलरोम मृदा कणों के बीच फँसे रहते हैं एवं केशिका जल सम्पर्क में रहते हैं। प्रत्येक मूलरोम के मध्य में एक बड़ी धानी होती है, जिसके कोशिका रस में खनिज लवण, शर्कराएँ व कार्बनिक अम्ल घुले रहते हैं। भूमि के जल की सान्द्रता कोशिका रस की सान्द्रता से कम होती है अर्थात् कोशिका रस का परासरण दाब भूमि के जल के परासरण दाब से अधिक होता है। जल कोशिकाद्रव्य के उच्च परासरण दाब के कारण अर्द्धपारगम्य प्लाज्मा झिल्ली में से होकर मूलरोम में प्रवेश करता है।
(ii) जड़ में जल का संवहन जल का मूलरोम में जैसे-जैसे प्रवेश होता है। इसके कारण स्फीति दाब बढ़ जाता है एवं जल कॉर्टेक्स (वल्कुट) की कोशिकाओं में पहुँचने लगता है, जिससे कॉर्टेक्स की कोशिकाएँ पूर्णतया स्फीति हो जाती है और इनकी लचीली भित्तियाँ कोशिकाओं के अन्तः द्रव्य पर दबाव डालती हैं।

परिणामस्वरूप जल जाइलम वाहिकाओं में चला जाता है एवं कॉर्टेक्स की कोशिकाएँ श्लथ हो जाती है। ये कोशिका जल प्राप्त करके पुनः स्फीति हो जाती है और जल को जाइलम वाहिकाओं में धकेल देती है। इससे कोशिकाओं में एक प्रकार का दाब उत्पन्न हो जाता है, जिसके कारण जल अन्त: त्वचा की मार्ग कोशिकाओं में से होकर जाइलम वाहिकाओं में पहुँचता है और में कुछ ऊँचाई तक चढ़ जाता है। इस प्रकार के दाब को मूलदाब कहते हैं। यह क्रिया निरन्तर चलती रहती है।
प्रश्न 6. मूलदाब किसे कहते हैं? नामांकित चित्र की सहायता से मूलदाब दर्शाइए ।
उत्तर मूलदाब मूलदाब वह दाब है, जो जड़ों की वल्कुट कोशिकाओं द्वारा पूर्ण स्फीत अवस्था में उत्पन्न होता है, जिसके फलस्वरूप कोशिकाओं में एकत्रित जल न केवल जाइलम में पहुँचता है, बल्कि तने में भी कुछ ऊँचाई तक चढ़ता है।
यह लगभग दो वायुमण्डलीय दाब के बराबर होता है।
प्रयोग: मूलदाब का प्रदर्शन मूलदाब प्रदर्शन के लिए गमले में लगा हुआ एक स्वस्थ व शाकीय (Herbaceous) पादप लेते हैं, जिसमें काफी मात्रा में जल दिया जा चुका हो। पादप के तने को गमले की मिट्टी से कुछ सेन्टीमीटर ऊपर से काट देते हैं।

तने के कटे हुए सिरे को रबड़ की नली की सहायता से शीशे के मैनोमीटर से जोड़ देते हैं। इसकी नली में कुछ जल डालकर उसमें पारा भर देते हैं। कुछ समय बाद मैनोमीटर की नली में पारे का तल ऊपर चढ़ता दिखाई देता है। मैनोमीटर की नली में पारे के तल का ऊपर चढ़ना मूलदाब के कारण होता है। इसी दाब के कारण मूलरोमों द्वारा अवशोषित जल जाइलम वाहिकाओं में ऊपर तक पहुँचा दिया जाता है। यदि किसी पादप का ऊपरी सिरा काट दिया जाए, तो कटे स्थान से रस टपकने लगता है। वह मूलदाब के कारण होता है। इसी प्रकार ताड़ी (खजूर) के पादप के कटे भाग से रस टपकने की क्रिया मूलदाब के कारण ही होती है।
प्रश्न 7. पादपों में खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण किस प्रकार होता है? यह क्रिया पादपों के लिए क्यों आवश्यक है?
अथवा फ्लोएम में खाद्य स्थानान्तरण की मुंच परिकल्पना को समझाइए ।
अथवा पादपों में फ्लोएम द्वारा भोज्य पदार्थों के स्थानान्तरण को समझाइए |
उत्तर खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण पादप प्रकाश-संश्लेषण के फलस्वरूप कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। इन संश्लेषित खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण पत्तियों से तरल अवस्था में पादप के सभी भागों की ओर होता है। मज्जा रश्मियों द्वारा कुछ भोज्य पदार्थ पाश्र्वय दिशा में भी वितरित कर दिया जाता है। इस प्रकार खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण फ्लोएम के माध्यम से होता है ।
मुंच परिकल्पना यह परिकल्पना खाद्य पदार्थों के स्थानान्तरण से सम्बन्धित है।
इस सम्बन्ध में मंच की व्यापक प्रवाह की परिकल्पना सर्वमान्य है ।

मुंच (1927-30) के अनुसार, भोज्य पदार्थों का स्थानान्तरण अधिक सान्द्रता वाले स्थान से कम सान्द्रता वाले स्थानों की ओर होता रहता है। पर्णमध्योतक कोशिकाओं में निरन्तर भोज्य पदार्थों के बनते रहने के कारण परासरण दाब अधिक बना रहता है।
जड़ अथवा भोजन संचय करने वाले भागों में शर्करा (घुलनशील भोज्य पदार्थ) के निरन्तर उपयोग के कारण अथवा भोज्य पदार्थों के अघुलनशील अवस्था में बदलकर संचित हो जाने के कारण इन कोशिकाओं का परासरणी दाब निरन्तर कम बना रहता है। इसके कारण पर्णमध्योतक कोशिकाओं से भोज्य पदार्थ अविरल रूप से फ्लोएम द्वारा जड़ की ओर प्रवाहित होते रहते हैं।
D. उत्सर्जन
जैव प्रक्रम जिसमें हानिकारक उपापचयी वर्ज्य पदार्थों का निष्कासन होता है, उत्सर्जन (Excretion) कहलाता है तथा उत्सर्जन को कार्यान्वित करने वाले अंग उत्सर्जी अंग कहलाते हैं। एककोशिकीय जीव सरल विसरण द्वारा कोशिकीय सतह से अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन करते हैं।
मानव में उत्सर्जन
मानव में मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्क होते हैं। वृक्क यूरिया (मुख्य उत्सर्जी पदार्थ) को रुधिर में से पृथक् कर मूत्र का निर्माण करता है। इनसे सम्बन्धित अन्य सहायक उत्सर्जी अंग निम्नलिखित हैं
- एक जोड़ी मूत्रवाहिनियाँ (Ureters) मूत्र को वृक्क से मूत्राशय में लाती है।
- मूत्राशय (Urinary bladder) मूत्रण तक मूत्र को संचित रखता है।
- मूत्रमार्ग (Urethra) मूत्र को मूत्राशय से शरीर के बाहर की ओर निकालना।
मनुष्य के वृक्क ये संख्या में दो, उदर गुहा में कशेरुकदण्ड के पार्श्व में स्थित, सेम के बीज के आकार की संरचनाएँ हैं। वृक्क का बाहरी किनारा उभरा हुआ होता है, किन्तु भीतरी किनारा धँसा हुआ होता है, जिसमें से मूत्र नलिका निकलती है। इस धँसे हुए स्थान को हाइलम कहते हैं। मूत्र नलिका एक पेशीय थैलेनुमा मूत्राशय में खुलती है। मूत्राशय में संचित मूत्र समय-समय पर शरीर से बाहर निष्कासित कर दिया जाता है।
वृक्क की आन्तरिक संरचना वृक्क के मध्य में लगभग खोखला तथा कीप के आकार का भाग होता है। यही क्रमश: संकरा होकर मूत्र नलिका का निर्माण करता है, इसे पेल्विस कहते हैं। वृक्क का बाहरी भाग वल्कुट (Cortex) तथा भीतरी भाग मेड्यूला (Medulla) कहलाता है।
मेड्यूला में 8-15 त्रिभुजाकार संरचनाएँ पाई जाती हैं, जिन्हें पिरामिड कहते हैं। वल्कुट द्वारा एक-दूसरे से पृथक् रहते हैं, जिन्हें बर्टीनी के रीनल कॉलम कहते हैं। वृक्क में असंख्य अत्यन्त कुण्डलित तथा लम्बी नलिकाएँ होती हैं। इन्हें वृक्क नलिकाएँ या नेफ्रॉन (Nephron ) कहते हैं। बोमेन सम्पुट वृक्क नलिकाओं का भाग है। बोमेन सम्पुट या मैल्पीघी सम्पुट प्यालेनुमा होता है।
वृक्क के कार्य यह अतिरिक्त जल एवं लवणों का शरीर में से निष्कासन कर परासरण नियमन एवं समस्थैतिकता बनाए रखता है। यकृत में निर्मित यूरिया का रुधिर में से निस्यन्दन करता है।
मूत्र का निर्माण
वृक्क के नेफ्रॉन में मूत्र निर्माण निम्नलिखित तीन प्रक्रियाओं द्वारा होता है
परानिस्यन्दन
कोशिकागुच्छ की रुधिर केशिकाओं में रुधिर का दाब बढ़ जाता है। इस बढ़े हुए के कारण रुधिर का तरल भाग छनकर बोमेन सम्पुट में आ जाता है।
वरणात्मक या चयनात्मक पुनरावशोषण
यहाँ विसरण तथा सक्रिय पुनरावशोषण द्वारा क्रमशः जल तथा अन्य घटकों का अवशोषण होता है। इस क्रिया में महत्त्वपूर्ण तत्व – ग्लूकोस, विटामिन, अमीनो अम्ल आदि पुनः रुधिर में पहुँचा दिए जाते हैं। वृक्क में परानिस्यन्दन के दौरान प्राप्त 150-180 लीटर नेफ्रिक निस्यन्द में से केवल 1.5 लीटर भाग ही मूत्र के रूप में उत्सर्जित होता है, जिसका कारण पुनरावशोषण होता है।
वाहिकीय स्रावण
वृक्क नलिकाओं के समीपस्थ तथा दूरस्थ भाग की नलिकाएँ परिनलिका जाल | (Peritubular network) की रुधिर केशिकाओं से हानिकारक उत्सर्जी पदार्थ (जैसे- K+, H+, यूरिक अम्ल), जो छनने से रह गए थे, सक्रिय विसरण द्वारा वृक्क संग्राहक नलिका में मुक्त कर दिए जाते हैं।
कृत्रिम वृक्क (अपोहन )
वृक्क के अक्रिय होने की अवस्था में कृत्रिम वृक्क का उपयोग किया जा सकता है। कृत्रिम वृक्क नाइट्रोजनी अपशिष्ट उत्पादों को रुधिर से अपोहन द्वारा निकालने की एक युक्ति है। कृत्रिम वृक्क में प्राकृतिक वृक्क की भाँति पुनरावशोषण प्रक्रम नहीं पाया जाता है।
पादपों में उत्सर्जन
पादप भी जन्तुओं की भाँति उत्सर्जन प्रक्रम का नियमन करते हैं, किंतु पादप उत्सर्जन के लिए जन्तुओं से बिल्कुल भिन्न युक्तियाँ प्रयुक्त करते हैं, जो निम्न हैं
गैसीय अपशिष्ट उत्पादों का उत्सर्जन
पादप दिन में प्रकाश-संश्लेषण के दौरान बनी ऑक्सीजन एवं रात्रि में श्वसन द्वारा उत्पन्न CO2 के उत्सर्जन हेतु रन्ध्रों एवं वातरन्ध्रों का उपयोग करते हैं।
तरल अपशिष्ट उत्पादों का उत्सर्जन
पादप अतिरिक्त जल को वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) तथा बिन्दुस्रावण (Guttation) प्रक्रम द्वारा निष्कासित करते हैं। उदाहरण रबड़, लौंग का तेल, गोंद आदि जलीय अपशिष्ट उत्पादों के उदाहरण हैं।
ठोस अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन
बहुवर्षीय पादपों में मृत कोशिकाओं, ऊतकों या रिक्तिकाओं (जैसे- कठोर काष्ठ) में अपशिष्ट पदार्थ संचित हो जाते हैं; जैसे- टेनिन, लिग्निन, आदि। इसके अतिरिक्त कुछ अपशिष्ट पदार्थ छाल या पर्ण में संचित होकर पादप से पृथक् हो जाते हैं।
उदाहरण टेनिन जिसका उपयोग चमड़े के शोधन में किया जाता है।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. वह जैव प्रक्रम जिसके द्वारा हानिकारक पदार्थों का निष्कासन शरीर से होता है। वह है
(a) जनन
(b) उत्सर्जन
(c) पाचन
(d) परिसंचरण
उत्तर (b) उत्सर्जन
प्रश्न 2. …….. में नाइट्रोजनी अपशिष्टों का उत्सर्जन नाइट्रोजनी गोलिकाओं के रूप में किया जाता है।
(a) मछली
(b) स्पंज
(c) सरीसृप
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (c) सरीसृप
प्रश्न 3. मनुष्य में वृक्क, एक तन्त्र का भाग है, जो सम्बन्धित है
अथवा मनुष्य में वृक्क किस तन्त्र से सम्बन्धित है?
(a) पोषण
(b) श्वसन
(c) उत्सर्जन
(d) परिवहन
उत्तर (c) उत्सर्जन
प्रश्न 4. वृक्कों का कार्य होता है
(a) श्वसन
(b) प्रजनन
(c) उत्सर्जन
(d) पाचन
उत्तर (c) उत्सर्जन
प्रश्न 5. मनुष्य में मुख्य उत्सर्जी अंग क्या हैं?
(a) वृक्क
(b) फेफडे
(c) त्वचा
(d) यकृत
उत्तर (a) वृक्क
प्रश्न 6. मनुष्य का प्रमुख उत्सर्जी उत्पाद होता है
(a) अमोनिया
(b) यूरिया
(c) यूरिक अम्ल
(d) अमीनो अम्ल
उत्तर (b) यूरिया
प्रश्न 7. ……. मानव में अमोनिया को यूरिया में बदल देता है
(a) वृक्क
(b) यकृत
(c) अग्न्याशय
(d) बड़ी आँत
उत्तर (b) यकृत
प्रश्न 8. यकृत संश्लेषित करता है
(a) शर्करा
(b) रुधिर
(c) यूरिया
(d) प्रोटीन
उत्तर (c) यूरिया
प्रश्न 9. मूत्र निर्माण होता है
(a) वृक्क में
(b) यकृत में
(c) प्लीहा में
(d) हृदय में
उत्तर (a) वृक्क में
प्रश्न 10. वृक्क में उपस्थित मेड्यूला के पिरामिड, वल्कुट की किन संरचनाओं द्वारा एक-दूसरे से पृथक् रहते हैं?
(a) लघु कैलिक्स
(b) दीर्घ कैलिक्स
(c) बर्टीनी के रीनल कॉलम
(d) वृक्क अंकुर
उत्तर (c) बर्टीनी के रीनल कॉलम
प्रश्न 11. गुर्दे की इकाई जो उत्सर्जन की प्रक्रिया में भाग लेती है, है
(a) तन्त्रिका (न्यूरॉन)
(b) वृक्काणु (नेफ्रॉन)
(c) साइटॉन
(d) म्यूटॉन
उत्तर (b) वृक्काणु (नेफ्रॉन)
प्रश्न 12. वृक्क बना होता है
(a) मूत्र वाहिनियों से
(b) मैल्पीघियन नलिकाओं से
(c) नेफ्रॉन से
(d) शुक्रजनक नलिकाओं से
उत्तर (c) नेफ्रॉन
प्रश्न 13. बोमेन सम्पुट किसका भाग है?
(a) यकृत वाहिनी का
(b) सभी उत्सर्जन नलिकाओं का
(c) वृक्क नलिका का
(d) सभी शुक्रजनक नलिकाओं का
उत्तर (c) वृक्क नलिका का
प्रश्न 14. केशिकागुच्छ किसमें पाया जाता है?
(a) यकृत में
(b) रुधिर में
(c) आमाशय में
(d) बोमेन सम्पुट में
उत्तर (d) बोमेन सम्पुट
प्रश्न 15. निम्न में से कौन-सा पद मूत्र निर्माण का हिस्सा है?
(a) परानिस्यन्दन
(b) वरणात्मक पुनरावशोषण
(c) वाहिकीय स्रावण
(d) ये सभी
उत्तर (d) परानिस्यन्दन, वरणात्मक पुनरावशोषण एवं वाहिकीय स्रावण क्रमशः मूत्र निर्माण का हिस्सा हैं।
प्रश्न 16. सहायक उत्सर्जी अंग हैं
I. त्वचा
II. फेफड़े
III. यकृत
IV. तेल ग्रन्थियाँ
सही विकल्प का चयन कीजिए
(a) I तथा II
(b) II तथा III
(c) III तथा IV
(d) I, II, III तथा IV
उत्तर (d) त्वचा, फेफड़े, यकृत तथा तेल ग्रन्थियाँ सहायक उत्सर्जी अंग हैं।
प्रश्न 17. बिन्दुस्राव परिणाम है
(a) विसरण का
(b) वाष्पोत्सर्जन का
(c) परासरण का
(d) मूल दाब का
उत्तर (d) मूल दाब का
प्रश्न 18. बिन्दुस्राव किसके द्वारा होता है?
(a) रन्ध्र
(b) जलरन्ध्र
(c) मूलरोम
(d) पुष्पकलियाँ
उत्तर (b) जलरन्ध्रों
प्रश्न 19. पादपों में जलीय अपशिष्ट उत्पाद का उदाहरण है
(a) रबड़
(b) लौंग का तेल
(c) गोंद
(d) ये सभी
उत्तर (d) रबड़, लौंग का तेल, गोंद आदि जलीय अपशिष्ट उत्पादों के उदाहरण हैं।
प्रश्न 20. चमड़े के शोधन में किसका उपयोग होता है?
(a) टेनिन
(b) गोंद
(c) रेजिन
(d) रबर
उत्तर (a) टेनिन
प्रश्न 21. निम्न सूचियों का मिलान कीजिए।

प्रश्न 22. कथन (A) पक्षी यूरिकोटेलिक होते हैं।
कारण (R) पक्षी नाइट्रोजनी अपशिष्टों को यूरिक अम्ल के रूप में उत्सर्जित करते हैं।
(a) A और R दोनों सत्य हैं तथा R द्वारा A की सत्य व्याख्या हो रही है।
(b) A और R दोनों सत्य हैं परन्तु R द्वारा A की सत्य व्याख्या नहीं हो रही है।
(c) A सत्य है, परन्तु R असत्य है।
(d) A असत्य है, परन्तु R सत्य है।
उत्तर (a) पक्षी नाइट्रोजनी अपशिष्टों को यूरिक अम्ल के रूप में जल की क्षति को न्यूनतम करते हुए गोलिकाओं के रूप में उत्सर्जित करते हैं। इसलिए ये यूरिक अम्ल उत्सर्जी (यूरिकोटेलिक) कहलाते हैं।
अतः कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सत्य हैं तथा कारण (R), कथन (A) का सही स्पष्टीकरण है।
लघु उत्तरीय प्रश्न-I
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. उत्सर्जन क्या है? एककोशिकीय जीव किस प्रकार अपने अपशिष्टों को निष्कासित करते हैं?
उत्तर उत्सर्जन मनुष्य सहित सभी कशेरुकी जन्तुओं के शरीर में उपापचय क्रियाओं के फलस्वरूप बनने वाले हानिकारक नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं।
एककोशिकीय जीव सरल विसरण द्वारा कोशिकीय सतह से अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन करते हैं।
प्रश्न 2. निम्न संरचनाओं के क्या कार्य हैं?
(i) वृक्क
(ii) मूत्रवाहिनी
(iii) मूत्राशय
(iv) मूत्रमार्ग
उत्तर (i) वृक्क यूरिया को रुधिर में से पृथक् कर मूत्र का निर्माण करना।
(ii) मूत्रवाहिनी मूत्र को वृक्क से मूत्राशय में लाना।
(iii) मूत्राशय मूत्रण तक मूत्र को संचित रखना ।
(iv) मूत्रमार्ग मूत्र को मूत्राशय से शरीर के बाहर की ओर निकालना ।
प्रश्न 3. मूत्र का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर वृक्कीय धमनी से रुधिर, वृक्क में उच्च रुधिर दाब से वृक्काणु के ग्लोमेरुलस में प्रवेशित होकर निस्यन्दित होता है। यहाँ से परानिस्यन्दित द्रव कुण्डलित नलिकीय भाग में जाता है, जहाँ आवश्यक लवणों, जल, अमीनो अम्ल, आदि का पुनरावशोषण वाहिकीय स्त्रावण होता है तथा मूत्र का निर्माण होता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न-II
प्रश्न 1. उत्सर्जन किसे कहते हैं? मनुष्य के शरीर में कौन-कौन से उत्सर्जी अंग पाए जाते हैं?
उत्तर शरीर में होने वाली विभिन्न उपापचयी क्रियाओं के परिणामस्वरूप हानिकारक तथा विषाक्त अपशिष्ट पदार्थों का निर्माण होता है। इन पदार्थों को शरीर से बाहर निष्कासित करने की जैव-प्रक्रिया को उत्सर्जन (Excretion ) कहते हैं तथा उत्सर्जन को कार्यान्वित करने वाले अंग उत्सर्जी अंग (Excretory organs) कहलाते हैं।
मानव उत्सर्जन तन्त्र का मुख्य कार्य शरीर में से अपशिष्ट नाइट्रोजन पदार्थों, जैसे – यूरिया, आदि को बाहर निकालना होता है।
मनुष्य में मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्क होते हैं। इनसे सम्बन्धित अन्य सहायक उत्सर्जी अंग निम्नलिखित हैं
(i) मूत्रवाहिनियाँ ( Ureters
(ii) मूत्राशय (Urinary bladder)
(iii) मूत्रमार्ग (Urethra)
मनुष्य के शरीर में प्रमुख उत्सर्जी अंग निम्न हैं
(i) वृक्क (Kidneys) ये मुख्य उत्सर्जी अंग है। ये हानिकारक पदार्थों को रुधिर से छानकर पृथक् कर लेते हैं तथा इन्हें मूत्र के रूप में बाहर निकाल देते हैं।
(ii) त्वचा (Skin) यह उत्सर्जी पदार्थों को पसीने के रूप में मुक्त करती है।
(iii) यकृत (Liver) यह उपापचय के फलस्वरूप बने हानिकारक पदार्थों को कम हानिकारक पदार्थों में बदलकर उत्सर्जन में सहायता करता है। मनुष्य में यकृत अमोनिया को यूरिया में बदलता है ।
(iv) फेफड़े (Lungs) ये CO2 का उत्सर्जन करते हैं।
प्रश्न 2. अपशिष्ट उत्पाद क्या है? इनके निम्नीकरण के विविध उपायों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर अपशिष्ट उत्पाद – शरीर में मुख्य रूप से प्रोटीन व न्यूक्लिक अम्लों के उपापचय के द्वारा नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों का निर्माण होता है। जैसे- अमोनिया, यूरिया, यूरिक अम्ल, अमीनो अम्ल आदि।
जन्तुओं में अपशिष्ट उत्पादों का निम्नीकरण मुख्यतः वृक्क (kidney) द्वारा होता है। इसके अलावा अन्य उत्सर्जी अंग त्वचा, यकृत, फेफड़े व आँत द्वारा भी अपशिष्ट उत्पादों का उत्सर्जन होता हैं।
पादपों में गैसीय, तरल व ठोस अपशिष्ट उत्पाद पाए जाते हैं, जिसका उत्सर्जन क्रमशः रन्ध्रों, वातरन्ध्रों तथा जलरन्ध्रों द्वारा होता है।
प्रश्न 3. पादपों के गैसीय और जलीय अपशिष्ट के बारे में बताइए ।
अथवा पौधों में वातरन्ध्रों की उपयोगिता का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर पादप भी जन्तुओं की भाँति उत्सर्जन प्रक्रम का नियमन करते हैं, किन्तु पादप उत्सर्जन के लिए जन्तुओं से बिल्कुल भिन्न युक्तियाँ प्रयुक्त करते हैं, जो निम्न हैं
गैसीय अपशिष्ट उत्पादों का उत्सर्जन पादप दिन में प्रकाश-संश्लेषण के दौरान बनी ऑक्सीजन एवं रात्रि में श्वसन द्वारा उत्पन्न CO2 के उत्सर्जन हेतु रन्ध्रों एवं तने में उपस्थित वातरन्ध्रों का उपयोग करते हैं।
तरल अपशिष्ट उत्पादों का उत्सर्जन पादप अतिरिक्त जल को वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) तथा बिन्दुस्रावण ( Guttation) प्रक्रम द्वारा निष्कासित करते हैं। पादपों में जल का स्रावण रन्ध्रों द्वारा होता है। इसके अतिरिक्त पादप जाइलम में रेजिन एवं गोंद के रूप में अपशिष्ट पदार्थों को संचित करते हैं। गोंद पादप के आन्तरिक ऊतकों (सेलुलोस ) के विघटन द्वारा निर्मित होती है, जबकि रेजिन का निर्माण अनेक आवश्यक तेलों के ऑक्सीकरण द्वारा होता है।
रबर के पादप द्वारा स्रावित लैटेक्स भी अपशिष्ट पदार्थ का उदाहरण है। इसके अतिरिक्त इनमें विभिन्न तेलों; जैसे- लौंग का तेल, चन्दन का तेल, आदि का भी स्रावण होता है।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. उत्सर्जन से क्या तात्पर्य है? मनुष्य के उत्सर्जी अंगों के नाम लिखिए | वृक्क नलिका का नामांकित चित्र बनाइए ।
अथवा मानव के वृक्क की खड़ी काट का चित्र बनाइए और उसके प्रमुख भागों के नाम लिखिए।
अथवा मानव में उत्सर्जन तन्त्र के कौन-कौन से अंग होते हैं? नामांकित चित्र बनाकर इनको प्रदर्शित कीजिए ।
अथवा वृक्क के प्रमुख कार्य कौन-कौन से हैं? लिखिए।
अथवा वृक्काणु (नेफ्रॉन) का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए तथा इसके कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा वृक्कों में मूत्र निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
अथवा वृक्क की रचना का वर्णन कीजिए।
अथवा मनुष्य के वृक्क की नामांकित चित्रों सहित संरचना, कार्य तथा मूत्र निर्माण क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
अथवा मानव में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
अथवा मानव के वृक्क की संरचना का संक्षेप में वर्णन कीजिए एवं उसके कार्य का उल्लेख भी कीजिए ।
उत्तर उत्सर्जन की परिभाषा मनुष्य सहित सभी कशेरुकी जन्तुओं के शरीर में उपापचय क्रियाओं के फलस्वरूप बनने वाले हानिकारक नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं।
मनुष्य के उत्सर्जी अंग वृक्क, मूत्रवाहिनी, मूत्राशय तथा मूत्रमार्ग मिलकर मुख्य उत्सर्जी तन्त्र बनाते हैं। मनुष्य में मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्क होता है।
(i) वृक्क ये संख्या में दो, उदर गुहा में कशेरुकदण्ड के पार्श्व में स्थित, सेम के बीज के आकार की संरचनाएँ हैं। प्रत्येक वृक्क लगभग 10 सेमी लम्बा, 6 सेमी चौड़ा तथा 2.5 सेमी मोटा होता है। दायाँ वृक्क बाएँ की अपेक्षा कुछ नीचे स्थित होता है।
वृक्क का बाहरी किनारा उभरा हुआ होता है, किन्तु भीतरी किनारा धँसा हुआ होता है, जिसमें से मूत्र नलिका निकलती है। इस धँसे हुए स्थान को हाइलम कहते हैं। मूत्र नलिका एक पेशीय थैलेनुमा मूत्राशय में खुलती है। में मूत्राशय संचित मूत्र समय-समय पर शरीर से बाहर निष्कासित कर दिया जाता है।
वृक्क की आन्तरिक संरचना वृक्क के मध्य में लगभग खोखला तथा कीप के आकार का भाग होता है। यही क्रमश: संकरा होकर मूत्र नलिका का निर्माण करता है, इसे पेल्विस कहते हैं। वृक्क का बाहरी भाग वल्कुट (Cortex) तथा भीतरी भाग मेड्यूला (Medulla) कहलाता है।
वृक्क में असंख्य अत्यन्त कुण्डलित तथा लम्बी नलिकाएँ होती हैं। इन्हें वृक्क नलिकाएँ या नेफ्रॉन (Nephron ) कहते हैं। ये वृक्क की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई होती हैं। वृक्क नलिकाएँ एक बड़ी संग्रह नलिका में खुलती हैं। प्रत्येक संग्रह नलिका पिरामिड में खुलती है। वृक्क में 10-12 पिरामिड दिखाई देते हैं, जो अपने संकरे भाग द्वारा पेल्विस में खुलते हैं।

वृक्क यूरिया जैसे हानिकारक नाइट्रोजनी पदार्थों को रुधिर से छानकर पृथक् कर लेते हैं तथा इन्हें मूत्र के रूप में बाहर निकाल देते हैं।

(ii) मूत्रवाहिनी ये संख्या में एक जोड़ी, पेशीय व 25 सेमी लम्बी होती है तथा मूत्र को वृक्क से मूत्राशय में लाती हैं।
(iii) मूत्राशय यह पेशीय मूत्र संग्राहक अंग है, जो मूत्रण तक मूत्र को संचित रखता है।
(iv) मूत्रमार्ग यह 15-29 सेमी लम्बी पेशीय नलिका है, जो मूत्र को मूत्राशय से शरीर के बाहर की ओर निकालती है।

नेफ्रॉन की क्रियाविधि प्रारम्भिक निस्यन्द में कुछ पदार्थ; जैसे-ग्लूकोस, अमीनो अम्ल, लवण और प्रचुर मात्रा में जल रह जाता है जैसे-जैसे मूत्र इस नलिका में प्रवाहित होता है, इन पदार्थों का चयनित पुनरावशोषण हो जाता है। जल की मात्रा का पुनरावशोषण शरीर में उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा तथा कितना विलेय वर्ज्य उत्सर्जित करना है, पर निर्भर करता है।
मूत्र ‘निर्माण की क्रियाविधि बोमेन सम्पुट मे ग्लोमेरुलस की अभिवाही धमनिका जितना रुधिर लाती है, वह अपवाही धमनिका से निकल नहीं पाता, अतः रुधिर प्लाज्मा के दबाव के कारण रुधिर छनकर वृक्क नलिका के स्रावी भाग में आ जाता है। इसे नेफ्रिक निस्यन्द कहते हैं। इस प्रक्रिया को परानिस्यन्दन का अपोहन कहते हैं।
नेफ्रिक निस्यन्द में प्लाज्मा प्रोटीन्स को छोड़कर रुधिर प्लाज्मा के सभी घटक पाए जाते हैं। अपवाही धमनिका वृक्क नलिका के स्रावी भाग के चारों ओर एक जाल – सा बना लेती है, जिसे परिनलिका केशिका जालक कहते हैं । स्रावी नलिका के प्रारम्भिक भाग में लाभदायक पदार्थों का पुनः अवशोषण कर लिया जाता है। अपवाही धमनिका से शेष उत्सर्जी पदार्थों को स्रावी नलिका में स्रावित कर दिया जाता है।
स्रावी नलिका के दूरस्थ कुण्डलित भाग में पहुँचने वाला नेफ्रिक निस्यन्द मूत्र होता है, जिसे संग्रह नलिकाओं द्वारा मूत्राशय में पहुँचा दिया जाता है। मूत्राशय से समय – समय पर मूत्र को शरीर से त्याग दिया जाता है।
वृक्क के कार्य वृक्कों के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
(i) ये उपापचयी नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थों; जैसे – यूरिया को द्रव्य ( जल में घुलित अवस्था में शरीर से बाहर निकालने का कार्य करते हैं।
(ii) वरणात्मक पुनरावशोषण एवं वाहिकीय स्रावण द्वारा ये रुधिर के pH को नियन्त्रित रखते हैं, जिससे रुधिर की वांछित अम्लीयता या क्षारीयता बनी रहती है।
(iii) वृक्क अतिरिक्त पोषक पदार्थों का ऊतक द्रव्य में निष्कासन करते हैं, जिससे इनका सन्तुलन बना रहता है।
(iv) परानिस्यन्दन के बाद वृक्क जल, ग्लूकोस तथा अन्य लवणों का पुनः अवशोषण करते हैं, जिससे रुधिर का परासरणीय दाब (Osmotic pressure) नियन्त्रित रहता है।
(v) वृक्क शरीर में लवणों की मात्रा को सन्तुलित करता है, जिससे शरीर में रुधिर दाब भी नियन्त्रित रहता है।
(vi) भ्रूणीय अवस्था में वृक्क RBCs का निर्माण भी करते हैं।
