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UP Board Class 10 Science Chapter 6 नियंत्रण एवं समन्वय

UP Board Class 10 Science Chapter 6 नियंत्रण एवं समन्वय

UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 6 नियंत्रण एवं समन्वय

फास्ट ट्रैक रिवीज़न
बहुकोशिकीय जीवों में अपने अस्तित्व को बनाए रखने, बाह्य वातावरण से निरन्तर रासायनिक आदान-प्रदान करने एवं शरीर की प्रत्येक प्रतिक्रिया में भाग लेने वाले विभिन्न ऊतकों और अंगों की क्रियाओं हेतु समन्वयन या समाकलन आवश्यक होता है।
बहुकोशिकीय जन्तुओं में जटिलता बढ़ने के साथ-साथ विभिन्न अंगों के मध्य समन्वयन एवं नियन्त्रण दो प्रकार से होता है
1. तन्त्रिका समन्वयन इसमें तन्त्रिका तन्त्र शरीर के समस्त अंगों के मध्य समन्वय बनाए रखता है।
2. रासायनिक समन्वयन कशेरुकी प्राणियों में अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से उत्पन्न विशिष्ट रासायनिक पदार्थ, हॉर्मोन्स शरीर के अन्तः वातावरण को स्थिर बनाए रखने में और जैविक क्रियाओं के संचालन में महत्त्वपूर्ण कार्य करती है।
जन्तु तन्त्रिका तन्त्र
शरीर की प्रत्येक प्रतिक्रिया में भाग लेने वाले विविध ऊतकों तथा अंगों की क्रियाओं के समन्वयन हेतु जन्तुओं में एक विशेष तन्त्र पाया जाता है, जिसे तन्त्रिका तन्त्र कहते हैं। यह वातावरणीय परिवर्तनों को संवेदी सूचनाओं के रूप में ग्रहण करके उसे तन्त्रिकीय प्रेरणाओं अथवा आवेगों के रूप में प्रसारित कर तीव्र प्रतिक्रियाओं का संचालन करता है।
तन्त्रिका कोशिका की संरचना
तन्त्रिका तन्त्र के मुख्य घटक को तन्त्रिका कोशिका या न्यूरॉन कहते हैं। न्यूरॉन या तन्त्रिका कोशिका जीव के तन्त्रिका तन्त्र की संरचना तथा क्रियात्मक इकाई होती है। इसकी संरचना के निम्नलिखित तीन भाग होते हैं
1. कोशिकाकाय या साइटॉन यह तन्त्रिका कोशिका का प्रमुख भाग है। इसमें एक बड़ा केन्द्रक तथा निस्सल के कण पाए जाते हैं।
2. अक्ष तन्तु या तन्त्रिकाक्ष इसे एक्सॉन भी कहते हैं। कोशिकाकाय से एक प्रवर्ध अक्ष तन्तु या तन्त्रिकाक्ष निकलता है। इस पर मायलिन का आच्छद पाया जाता है। इसके अन्तिम छोर पर तन्त्रिकाक्ष से समकोण पर कुछ शाखाएँ निकलती हैं।
3. वृक्षिकान्त या द्रुमिका ये अपेक्षाकृत छोटे एवं शाखामय प्रवर्ध होते हैं, जो सिरों की ओर क्रमश: संकरे होते जाते हैं। ये प्रेरणा या उद्दीपनों को कोशिकाका की ओर ले जाते हैं।
युग्मानुबन्धन
दो तन्त्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉन) के बीच में एक रिक्त स्थान होता है, जिसे युग्मानुबन्धन कहते हैं। तन्त्रिका के अन्त से विद्युत आवेग कुछ रसायनों का विमोचन करते हैं। ये रसायन युग्मानुबन्धन को पार करके आगे की तन्त्रिका कोशिकाओं तक विद्युत आवेगों को पहुँचाते हैं।
तन्त्रिका तन्त्र का विभाजन
मानव में तन्त्रिका तन्त्र तीन प्रकार का होता है, जो निम्नलिखित हैं
(i) केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र इसमें मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु को सम्मिलित किया जाता है।
(ii) परिघीय तन्त्रिका तन्त्र इसके अन्तर्गत कपाल तथा मेरुरज्जु सम्बन्धित तन्त्रिकाएँ आती हैं। मानव में 12 जोड़ी कपालीय तन्त्रिकाएँ तथा 31. जोड़ी मेरु तन्त्रिकाएँ पाई जाती हैं।
(iii) स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र यह स्वतन्त्र रूप से कार्य करता है, किन्तु इसका नियन्त्रण केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र द्वारा होता है। स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र के दो घटक होते हैं
(a) अनुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र
(b) परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र
मानव मस्तिष्क
मानव मस्तिष्क कपाल गुहा में स्थित होता है। चारों ओर से तीन झिल्लियों दृढ़तानिका, जालतानिका तथा मृदुतानिका से घिरा रहता है। इन झिल्लियों के मध्य प्रमस्तिष्क मेरुद्रव्य भरा रहता है। यह मस्तिष्क को बाह्य आघातों से बचाता है। वयस्क मानव के मस्तिष्क का भार लगभग 1300-1400 ग्राम होता है। मस्तिष्क के निम्नलिखित तीन भाग होते हैं
(i) अग्रमस्तिष्क इसके अन्तर्गत घ्राण पिण्ड, प्रमस्तिष्क तथा डाइएनसिफैलॉन आते हैं। प्रमस्तिष्क (सेरेब्रम) मस्तिष्क का सबसे बड़ा विकसित भाग बनाता है।
(ii) मध्यमस्तिष्क यह देखने एवं सुनने में सहायक होता है। इसका अधिकांश भाग अनुमस्तिष्क से ढका होता है।
(iii) पश्चमस्तिष्क इसके अन्तर्गत अनुमस्तिष्क, पोन्स वैरोलाई तथा मस्तिष्क पुच्छ (मेड्यूला ऑब्लोंगेटा) आते हैं।
मेरुरज्जु या सुषुम्ना की संरचना
मस्तिष्क पुच्छ कपालीय गुहा के बाहर एक लम्बी, खोखली व बेलनाकार रचना के रूप में मानव की देहगुहा में रूपान्तरित होता है, इस रचना को मेरुरज्जु (Notochord) कहते हैं।
प्रतिक्षेप या प्रतिवर्ती क्रिया
वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को उद्दीपन कहते हैं एवं बाह्य उद्दीपनों के प्रति शीघ्र एवं अनैच्छिक या बिना सोचे-विचारे होने वाली अनुक्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया कहते हैं। ये क्रियाएँ मेरुरज्जु द्वारा नियन्त्रित होती हैं। अतः मेरुरज्जु के क्षतिग्रस्त होने पर प्रतिवर्ती क्रियाएँ नहीं हो पाती हैं। प्रतिवर्ती क्रिया मस्तिष्क के कार्यभार को कम करती है और शरीर की सुरक्षा करती है।
प्रतिवर्ती चाप
प्रतिवर्ती क्रिया के अन्तर्गत आने वाले तन्त्रिका ऊतक एक चाप के समान एक निश्चित परिपथ का अनुसरण करते हैं, जिसे प्रतिवर्ती चाप (Reflex arc) कहते हैं। इसमें पर्यावरण में उद्दीपन की सूचना अभिवाही तन्त्रिका संवेदी अंगों से मेरुरज्जु तक पहुँचती है। मेरुरज्जु उद्दीपन के आवेग को ग्रहण कर निर्देश आवेग के रूप में अपवाही तन्त्रिका को प्रेषित करता है और अपवाही तन्त्रिका उसे सम्बन्धित अंग तक पहुँचाती है, ताकि वह प्रतिवर्ती क्रिया कर सके।
तन्त्रिका तन्त्र की क्रियाविधि
तन्त्रिका तन्त्र की क्रियाविधि को निम्न प्रकार से सरलतापूर्वक समझा जा सकता है
संवेदी तन्त्रिका ऊतक संवेदी अंगों से उद्दीपन या सूचना ग्रहण करते हैं एवं इसे मस्तिष्क में भेजते हैं।
मस्तिष्क उस सूचना को समझ कर इसके अनुरूप आवश्यक निर्देश देता है।
अब उस निर्देश को चालक तन्त्रिका द्वारा सम्बन्धित पेशीय ऊतक तक पहुँचा दिया जाता है।
तन्त्रिकीय उद्दीपन के फलस्वरूप पेशी कोशिका में उपस्थित विशिष्ट प्रोटीन कोशिका के आकार एवं विन्यास को परिवर्तित कर देता है।
प्रोटीन के नए पुनर्विन्यास के कारण पेशीय कोशिकाएँ संकुचित हो जाती हैं तथा ये ऐच्छिक दिशा में गति करती हैं।
जन्तु हॉर्मोन्स
यह ऐसे रासायनिक सन्देशवाहक होते हैं, जो अन्तःस्रावी ग्रन्थि से सूक्ष्म मात्रा में स्रावित होकर रुधिर द्वारा सम्पूर्ण शरीर में संचरित होते हैं एवं विशिष्ट अंगों की कोशिकाओं की कार्यिकी को प्रभावित करते हैं।
मानव में तीन प्रकार की ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं, जो निम्न प्रकार से हैं
1. बहिःस्रावी ग्रन्थियाँ
ये नलिकायुक्त या प्रणाल ग्रन्थियाँ होती हैं। इनका स्राव नलिका द्वारा शरीर के उस विशेष स्थान या अंग में पहुँचाया जाता है, जहाँ उसे कार्य करना है; उदाहरण स्वेद, लार, दुग्ध, तेलीय ग्रन्थि, आदि ।
2. अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ
हॉर्मोन्स स्रावित करने वाली नलिकाविहीन ग्रन्थियों को अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ कहते हैं। अन्तःस्रावी ग्रन्थियों में वाहिकाएँ नहीं होती हैं। अतः ये अपना स्राव सीधे रुधिर में स्रावित करती हैं।
मानव शरीर में पाई जाने वाली प्रमुख अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ निम्नलिखित हैं
(i) पीयूष या पिट्यूटरी ग्रन्थि पीयूष ग्रन्थि को मास्टर ग्रन्थि कहते हैं, क्योंकि यह ग्रन्थि अन्य ग्रन्थियों की कार्यिकी पर नियन्त्रण करती है। यह ग्रन्थि अग्र मस्तिष्क के पश्च अधर भाग में डाइएनसिफैलॉन नामक संरचना की निचली सतह पर उपस्थित होती है। इससे स्रावित हॉर्मोन पिट्यूट्रिन, ऑक्सीटोसिन, वैसोप्रेसिन, सोमेटोट्रॉपिक, आदि हैं।
(ii) थायरॉइड ग्रन्थि यह गले में स्थित होती है। इसके द्वारा थायरॉक्सिन हॉर्मोन स्रावित होता है। यह हॉर्मोन शरीर की उपापचयी क्रियाओं का नियमन तथा नियन्त्रण करता है।
(iii) एड्रीनल ग्रन्थि / अधिवृक्क ग्रन्थि यह उदर में वृक्क के पास स्थित होती है। स्रावित हॉर्मोन एपिनेफ्रिन, नॉर-एपिनेफ्रिन एवं एण्ड्रोजन्स व एस्ट्रोजन्स जैसे लिंग हॉर्मोन्स हैं। एड्रीनल ग्रन्थि कॉर्टिसोन तथा कॉर्टिकोस्टेरॉन का भी स्रावण करती है।
3. मिश्रित ग्रन्थियाँ
इनका एक भाग अन्तःस्रावी तथा दूसरा भाग बहिःस्रावी होता है; उदाहरण अग्न्याशय एक मिश्रित ग्रन्थि है। इसका बहिःस्रावी भाग अग्न्याशयी रस को स्रावित करता है, जबकि अन्तःस्रावी भाग लैंगर हैन्स की द्वीपिकाएँ होती हैं, जिनकी – कोशिकाएँ इन्सुलिन एवं 0 – कोशिकाएँ ग्लूकैगॉन हॉर्मोन का स्रावण करती है। इन्सुलिन रुधिर में शर्करा का नियमन तथा यकृत कोशिकाओं में ग्लाइकोजेनेसिस को प्रेरित करता है।
हॉर्मोनल विकार
हमारे शरीर में सभी हॉर्मोन एक निश्चित मात्रा में स्रावित किए जाते हैं। इनके स्रावण में कमी या अधिकता से शारीरिक वृद्धि एवं विकास प्रभावित होता है, जिससे अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। इन विकारों को हॉर्मोनल विकार कहते हैं। कुछ प्रमुख हॉर्मोनल विकार निम्नवत् हैं
  • बौनापन या मिजेट्स बाल्यावस्था या किशोरावस्था ( 13-20 वर्ष) में सोमेटोट्रॉपिक हॉर्मोन STH या वृद्धि हॉर्मोन GH की कमी के कारण यह रोग होता है।
  • महाकायता
  • सामान्य घेंघा
  • मधुमेह या डायबिटीज मेलिट्स
पादपों में समन्वयन
पादपों में होने वाली समन्वयन क्रियाएँ विभिन्न पादप गतियों के रूप में परिलक्षित होती हैं। ये पादप गतियाँ या तो वृद्धि मुक्त होती है या वृद्धि पर आश्रित हो सकती हैं।
उद्दीपन के प्रति तत्काल अनुक्रिया
यह गति किसी वृद्धि के कारण नहीं, अपितु उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया के कारण होती है। उद्दीपन के फलस्वरूप जीवद्रव्य की वैद्युत स्थिति में परिवर्तन होने के कारण पादप उद्दीपित अथवा उत्तेजित हो जाता है। यह स्फीति में परिवर्तन स्वरूप अभिव्यक्त होता है। स्पर्श करते ही छुई-मुई पौधे का सिकुड़ना तीव्र अनुक्रिया का उदाहरण है।
वृद्धि के कारण गति
पादप किसी दिशा में विशेष रूप से बढ़ते हुए उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया दर्शाते हैं।
इसके अन्तर्गत दो प्रकार की गतियाँ प्रदर्शित होती हैं
(i) अनुवर्तनी गतियाँ ये गतियाँ पादप के किसी अंग में एक पार्श्वीय दिशा से प्रभावित उद्दीपन के कारण होती हैं।ये निम्न प्रकार की होती हैं
  • प्रकाशानुवर्तन
  • जानुवर्तन
  • गुरुत्वानुवर्तन
  • रसायनानुवर्तन
(ii) अनुकुंचन गतियाँ इस प्रकार की गति में उद्दीपन की दिशा का प्रभाव पादप गति की दिशा पर नहीं पड़ता है। ये निम्न प्रकार की होती हैं
  • प्रकाशानुकुंचनी गति
  • स्पर्शानुकुंचनी गति
  • तापानुकुंचनी गति
  • कंपानुकुंचनी गति
पादप हॉर्मोन्स
ये विशेष प्रकार के जटिल कार्बनिक रासायनिक पदार्थ होते हैं, जो सूक्ष्म मात्रा में उपस्थित होते हुए भी पादपों में वृद्धि तथा विकास को नियन्त्रित करते हैं। सामान्यतया ये पादप के विभिन्न भागों जैसे जड़ या तने के शीर्ष तथा कलिकाओं, पत्तियों, आदि से स्रावित होते हैं और जैविक क्रियाओं का नियन्त्रण एवं नियमन करते हैं। पादप हॉर्मोन्स को मुख्यतया दो वर्गों में बाँटते हैं
1. वृद्धि प्रवर्धक हॉर्मोन्स
ये हॉर्मोन्स पादप अथवा उनके विभिन्न अंगों में वृद्धि को प्रेरित करते हैं। वृद्धि प्रवर्धक हॉर्मोन निम्न हैं
(i) ऑक्सिन इसकी खोज वेण्ट (Vent) नामक वैज्ञानिक ने की थी। ये जड़ या तने के दीर्घीकरण को प्रेरित करते हैं। ऑक्सिन्स की सबसे अधिक सान्द्रता पादपों के शीर्षस्थ विभज्योतक एवं कलिकाओं में पाई जाती है; उदाहरण IAA, IBA, B-NAA, 2, 4-D, आदि ।
(ii) जिबरेलिन इसकी खोज सर्वप्रथम जापानी वैज्ञानिक कुरोसावा (1926) ने धान के खेत में की थी । यावुता तथा सुमिकी ने इन्हें जिबरेला फ्यूजीकुराई नामक कवक से प्राप्त किया था।
(iii) साइटोकाइनिन इसकी खोज मिलर ने यीस्ट में की थी। ये हॉर्मोन कोशिका विभाजन एवं वृद्धि को प्रेरित करते हैं। ये ऊतक विभेदन में सहायक होते हैं। ये जीर्णता को रोकते हैं। यह प्रसुप्तिकाल को तोड़ता है।
2. वृद्धि निरोधक हॉर्मोन्स
ये हॉर्मोन्स पादप अथवा उनके अंगों में वृद्धि को रोकते हैं। वृद्धि निरोधक हॉर्मोन निम्न हैं
(i) एब्सिसिक अम्ल (ABA) यह एक वृद्धि निरोधक हॉर्मोन है। कार्न्स फोर्थ तथा एडिकोट ने सन् 1961-65 में इसे कपास के पादपों की कलियों से अलग किया था। यह कोशिका विभाजन को ही नहीं रोकता है, बल्कि पादप की सम्पूर्ण उपापचयी क्रियाओं को धीमा कर देता है, इसलिए इसे वृद्धि निरोधक हॉर्मोन भी कहते हैं। यह पुष्पन को रोकता है।
(ii) इथाइलीन यह एक गैसीय हॉर्मोन है। यह फलों को पकाने में सहायता करती है, इसलिए इसे फल पकाने वाला हॉर्मोन कहते हैं।
खण्ड अबहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. ग्राही के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है ?
(a) स्वाद ग्राही, स्वाद को बताते हैं, जबकि घ्राण ग्राही गंध को बताते हैं
(b) दोनों स्वाद और घ्राण ग्राही गंध बताते हैं
(c) श्रवण ग्राही गंध को बताते हैं, जबकि घ्राण ग्राही स्वाद को बताते हैं
(d) घ्राण ग्राही स्वाद बताते हैं, जबकि स्वाद ग्राही गंध बताते हैं
उत्तर (a) स्वाद ग्राही, स्वाद को बताते हैं, जबकि घ्राण ग्राही गंध को बताते हैं।
प्रश्न 2. निम्न में से कौन-सा एक केवल जन्तुओं में पाया जाता है?
(a) श्वसन
(b) तन्त्रिका तन्त्र
(c) हॉर्मोन
(d) वृद्धि
उत्तर (b) तन्त्रिका तन्त्र
प्रश्न 3. दो तन्त्रिका कोशिकाओं के मध्य खाली स्थान को कहते हैं
(a) द्रुमिका
(b) युग्मानुबन्धन / सिनैप्स
(c) एक्सॉन
(d) आवेग
उत्तर (b) युग्मानुबन्धन / सिनैप्स
प्रश्न 4. विद्युत आवेग के प्रवाह की सही दिशा कौन-सी है ?
प्रश्न 5. मनुष्य के मस्तिष्क का कौन-सा भाग सर्वाधिक विकसित है?
(a) सेरेब्रम
(b) सेरीबेलम
(c) डाइएनसिफैलॉन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (a) सेरेब्रम (प्रमस्तिष्क)
प्रश्न 6. मस्तिष्क उत्तरदायी है
(a) सोचने के लिए
(b) हृदय स्पन्दन के लिए
(c) शारीरिक सन्तुलन के लिए
(d) ये सभी
उत्तर (d) मस्तिष्क सोचने, हृदय स्पन्दन तथा शरीर का सन्तुलन बनाने अथवा सभी कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है।
प्रश्न 7. मस्तिष्क का मुख्य सोचने वाला भाग कहलाता है
(a) अग्र मस्तिष्क
(b) मध्य मस्तिष्क
(c) पश्च मस्तिष्क
(d) अनुमस्तिष्क
उत्तर (a) अग्र मस्तिष्क
प्रश्न 8. मेड्यूला ऑब्लोंगेटा नियन्त्रण करता है
(a) ऐच्छिक क्रिया का
(b) अनैच्छिक क्रिया का
(c) प्रतिवर्ती क्रिया का
(d) सभी दैहिक क्रियाओं का
उत्तर (b) अनैच्छिक क्रिया का
प्रश्न 9. मानव में कितनी जोड़ी कपालीय तन्त्रिकाएँ पाई जाती हैं?
(a) 11 जोड़ी
(b) 12 जोड़ी
(c) 13 जोड़ी
(d) 14 जोड़ी
उत्तर (b) 12 जोड़ी
प्रश्न 10. यदि एक मनुष्य में प्रतिवर्ती क्रियाएँ नहीं हो रही हैं, तो उसके तन्त्रिका तन्त्र का कौन-सा भाग क्षतिग्रस्त है?
(a) प्रमस्तिष्क
(b) अनुमस्तिष्क
(c) मेरुरज्जु
(d) मेड्यूला ऑब्लोंगेटा
उत्तर (c) मेरुरज्जु
प्रश्न 11. प्रतिवर्ती क्रिया का उचित उदाहरण है
(a) सामान्य साँस लेना
(b) पुस्तक पढ़ना
(c) स्कूटर चलाना
(d) यकायक नेत्र के सामने तेज रोशनी फेंकने पर नेत्र झपकना
उत्तर (d) यकायक नेत्र के सामने तेज रोशनी फेंकने पर नेत्र झपकना
प्रश्न 12. प्रतिवर्ती चाप बनता है
(a) संवेदांग → मेरुरज्जु → अपवाहक अंग
(b) संवेदांग → मस्तिष्क → अपवाहक अंग
(c) अपवाहक अंग → मस्तिष्क → संवेदांग
(d) अपवाहक अंग → मेरुरज्जु → संवेदांग
उत्तर (a) संवेदांग → मेरुरज्जु → अपवाहक अंग
प्रश्न 13. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
I. वातावरण में होने वाली किसी भी क्रिया का तुरंत या अचानक प्रतिक्रिया देना प्रतिवर्ती क्रिया कहलाता है।
II. संवेदी तन्त्रिका, आवेगों को मेरुरज्जु से पेशियों तक ले जाते हैं।
III. चालक तन्त्रिका, आवेगों को ग्राही से मेरुरज्जु तक ले जाते हैं।
IV. जब किसी तन्त्रिकीय मार्ग के द्वारा, आवेग को ग्राही से मेरुरज्जु और अपवाहक पेशियों में स्थानांतरित किया जाता है, तो यह पथ प्रतिवर्ती चाप कहलाता है।
(a) I और I
(b) I और III
(c) I और IV
(d) I, II और III
उत्तर (c) I और IV
प्रश्न 14. निम्नलिखित आकृति में अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को नामांकित कीजिए ।
उत्तर (b) A- पिनियल ग्रन्थि
B- पिट्यूटरी ग्रन्थि
C- थायरॉइड ग्रन्थि
D- थाइमस ग्रन्थि
प्रश्न 15. हॉर्मोन क्या है?
(a) प्रोटीन
(b) अमीनो अम्ल
(c) साधारण कार्बोनेट
(d) जटिल कार्बोनेट
उत्तर (a) प्रोटीन
प्रश्न 16. मनुष्य के मस्तिष्क में पाई जाने वाली अन्तःस्रावी ग्रन्थि है
अथवा वह अन्तःस्रावी ग्रन्थि, जो मनुष्य के मस्तिष्क में पाई जाती है
(a) थायरॉइड ग्रन्थि
(b) अधिवृक्क ग्रन्थि
(c) थाइमस ग्रन्थि
(d) पीयूष ग्रन्थि
उत्तर (d) पीयूष ग्रन्थि
प्रश्न 17. पीयूष ग्रन्थि …… पाई जाती है।
(a) मस्तिष्क के अधर तल पर
(b) सेरीब्रम पर
(c) सेरीबेलम पर
(d) मस्तिष्क के पृष्ठ तल पर
उत्तर (a) मस्तिष्क के अधर तल पर
प्रश्न 18. मास्टर ग्रन्थि है
(a) थायरॉइड
(b) एड्रीनल
(c) पिनियल काय
(d) पीयूष
उत्तर (d) पीयूष
प्रश्न 19. वृद्धि हॉर्मोन स्रावित होता है
(a) थायरॉइड ग्रन्थि से
(b) पिट्यूटरी (पीयूष ग्रन्थि से
(c) अधिवृक्क ग्रन्थि से
(d) अग्न्याशय से
उत्तर (b) पिट्यूटरी (पीयूष ) ग्रन्थि से
प्रश्न 20. पिट्यूटरी ग्रन्थि की पश्चपाली से निकलने वाला हॉर्मोन है
(a) प्रोलैक्टिन
(b) सोमैटोट्रॉपिन
(c) वैसोप्रेसिन
(d) एड्रीनोकॉर्टिकोट्रॉपिन
उत्तर (c) वैसोप्रेसिन
प्रश्न 21. पिट्यूट्रिन हॉर्मोन को स्रावित करता है
(a) पिट्यूटरी
(b) थायरॉइड
(c) लैंगर हैन्स की द्वीपिकाएँ
(d) अधिवृक्क
उत्तर (a) पिट्यूटरी ग्रन्थि
प्रश्न 22. ऑक्सीटोसिन का स्रावण कहाँ से होता है?
(a) थायरॉइड
(b) थाइमस
(c) पिट्यूटरी
(d) एड्रीनल
उत्तर (c) पिट्यूटरी
प्रश्न 23. थायरॉक्सिन के बारे में कौन-सा कथन सही नहीं है?
(a) थायरॉक्सिन के संश्लेषण के लिए लौह आवश्यक होता है।
(b) यह शरीर में कार्बोहाइड्रेटों, प्रोटीनों और वसाओं के उपापचय का नियमन करता है।
(c) थायरॉक्सिन के संश्लेषण के लिए थायरॉयड ग्रन्थि को आयोडीन की आवश्यकता होती है।
(d) थायरॉक्सिन को थायरॉइड हॉर्मोन भी कहते हैं।
उत्तर (a) थायरॉक्सिन के संश्लेषण के लिए लौह आवश्यक नहीं होता है।
प्रश्न 24. कैल्शियम तथा फॉस्फोरस के उपापचय के नियन्त्रण हेतु हॉर्मोन स्रावित होता है
(a) पैराथायरॉइड
(b) थायरॉइड
(c) पिट्यूटरी
(d) अग्न्याशय
उत्तर (a) पैराथायरॉइड ग्रन्थि द्वारा
प्रश्न 25. मनुष्य में पाई जाने वाली मिश्रित ग्रन्थि है
(a) पिट्यूटरी ग्रन्थि
(b) थायरॉइड ग्रन्थि
(c) अग्न्याशय ग्रन्थि
(d) एड्रिनल ग्रन्थि
उत्तर (c) अग्न्याशय ग्रन्थि
प्रश्न 26. निम्नलिखित में से कौन-सी ग्रन्थि बहिः एवं अन्तःस्रावी दोनों है ?
(a) अग्न्याशय
(b) पिट्यूटरी
(c) थाइमस
(d) थायरॉइड
उत्तर (a) अग्न्याशय
प्रश्न 27. इन्सुलिन हॉर्मोन स्रावित होता है।
(a) पिट्यूटरी से
(b) थायरॉइड से
(c) लैंगर हैन्स की द्वीपिकाओं से
(d) अधिवृक्क से
उत्तर (c) लैंगर हैन्स की द्वीपिकाओं से
प्रश्न 28. मादा लिंग हॉर्मोन कहलाता है
(a) एण्ड्रोजन
(b) इन्सुलिन
(c) एस्ट्रोजन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (c) एस्ट्रोजन
प्रश्न 29. निम्नलिखित में से कौन-सा पादप हॉर्मोन है?
(a) इन्सुलिन
(b) थायरॉक्सिन
(c) एस्ट्रोजन
(d) साइटोकाइनिन
उत्तर (d) साइटोकाइनिन
प्रश्न 30. निम्नलिखित में से कौन-सा एक पादप हॉर्मोन है?
(a) थायरॉक्सिन
(b) जिबरेलिन
(c) एस्ट्रोजन
(d) इन्सुलिन
उत्तर (b) जिबरेलिन
प्रश्न 31. निम्नलिखित में कौन एक पादप हॉर्मोन नहीं है?
(a) ऑक्सिन
(b) जिबरेलिन
(c) एस्ट्रोजन
(d) साइटोकाइनिन
उत्तर (c) एस्ट्रोजन
प्रश्न 32. उस हॉर्मोन का नाम लिखिए, जिसका उपयोग बिना निषेचन के बीज रहित फल प्राप्त करने में किया जाता है
(a) एथिलीन
(b) जिबरेलिन
(c) ऑक्सिन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (c) ऑक्सिन
प्रश्न 33. कौन-सा पादप हॉर्मोन कोशिका विभाजन में सहायक हैं?
(a) साइटोकाइनिन
(b) ऑक्सिन
(c) एब्सिसिक अम्ल
(d) एथिलीन
उत्तर (a) साइटोकाइनिन
प्रश्न 34. सूची I को सूची II से सुमेलित कीजिए|
निर्देश (प्र. सं. 35-36) इन प्रश्नों में दो कथन अभिकथन (A) और कारण (R) दिए गए हैं। इन प्रश्नों के उत्तर नीचे दिए अनुसार उचित विकल्प को चुनकर दीजिए |
(a) A और R दोनों सत्य हैं तथा R द्वारा A की सही व्याख्या हो रही है।
(b) A और R दोनों सत्य हैं, परन्तु तथा R द्वारा A की सही व्याख्या नहीं हो रही है।
(c) A सत्य है, परन्तु R असत्य है।
(d) A असत्य है, परन्तु R सत्य है।
प्रश्न 35. कथन (A) पादपों में तन्त्रिका तन्त्र का अभाव होता है, परन्तु वे समन्वयन करते हैं।
कारण (R) पादप हॉर्मोन्स के द्वारा अपनी जैविक क्रियाओं का नियन्त्रण व समन्वयन करते हैं।
उत्तर (a) पादपों में तन्त्रिका तन्त्र का अभाव होता है, परन्तु विशेष रासायनिक समन्वयकों (हॉर्मोन्स) के द्वारा ये अपनी जैविक क्रियाओं का नियन्त्रण व समन्वयन करते हैं। अतः कथन (A) तथा कारण (R) दोनों सत्य हैं तथा कारण (R) द्वारा कथन (A) की सही व्याख्या हो रही है।
प्रश्न 36. कथन (A) प्रतिवर्ती क्रिया स्वचालित होती है व तीव्र गति से उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया करती है।
कारण (R) ये क्रियाएँ मस्तिष्क द्वारा नियन्त्रित होती है।
उत्तर (c) प्रतिवर्ती क्रिया स्वचालित होती है व तीव्र गति से उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया करती है। ये क्रियाएँ मेरुरज्जु द्वारा नियन्त्रित होती हैं, मस्तिष्क द्वारा नहीं । अतः कथन (A) सत्य है, परन्तु कारण (R) असत्य है।
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न-I
प्रश्न 1. यदि किसी तन्त्रिका कोशिका के सभी वृक्षिका तथा वृक्षिकान्त या द्रुमिका काट दिए जाएँ, तो उस जन्तु की दिनचर्या पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
उत्तर तन्त्रिका कोशिका की द्रुमिका सभी आवेगों को कोशिकाकाय में लाने का कार्य करते हैं। द्रुमिका की सहायता से ही एक तन्त्रिका कोशिका अन्य तन्त्रिका कोशिकाओं से जुड़ी रहती है। यदि इसे काट दिया जाए, तो किसी भी प्रकार का आवेग संचारित नहीं होगा और बाह्य उद्दीपनों के लिए संवेदना समाप्त हो जाएगी।
प्रश्न 2. दो तन्त्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉन) के मध्य अंतर्ग्रथन (सिनेप्स) में क्या होता है?
उत्तर दो तन्त्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉन) के बीच में एक रिक्त स्थान होता है, जिसे सिनेप्स (सिनेप्टिक दरार ) कहते हैं। एक्सॉन के अंतिम सिरे विद्युत आवेग के कारण कुछ तन्त्रिका प्रेषक रसायनों का विमोचन करते हैं। ये रसायन सिनेप्स को पार करके अगली तन्त्रिका कोशिकाओं को विद्युत आवेग पहुँचाती हैं।
प्रश्न 3. मस्तिष्क के कितने भाग होते हैं? अनैच्छिक क्रियाएँ जैसे- रक्तदाब, लार आना तथा वमन किस भाग से नियन्त्रित होते हैं?
उत्तर मस्तिष्क के तीन प्रमुख भाग होते हैं- अग्रमस्तिष्क, मध्यमस्तिष्क तथा पश्चमस्तिष्क। अनैच्छिक क्रियाएँ, जैसे- रुधिरदाब, लार आना तथा वमन, आदि पश्चमस्तिष्क में स्थित मेड्यूला ऑब्लोंगेटा भाग से नियन्त्रित होते हैं।
प्रश्न 4. मनुष्य के पश्चमस्तिष्क के भाग लिखिए।
अथवा मस्तिष्क का कौन-सा भाग शरीर में सन्तुलन बनाने का कार्य करता है?
अथवा मस्तिष्क का कौन-सा भाग शरीर की स्थिति तथा सन्तुलन का अनुरक्षण करता है?
उत्तर अनुमस्तिष्क, मस्तिष्क पुच्छ ( मेड्यूला ऑब्लोंगेटा) तथा पोन्स वैरोलाई पश्चमस्तिष्क के मुख्य भाग होते हैं। अनुमस्तिष्क या सेरीबेलम शरीर का सन्तुलन बनाए रखता है। यह पश्चमस्तिष्क का भाग होता है।
प्रश्न 5. ऐच्छिक तथा अनैच्छिक पेशियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए |
उत्तर ऐच्छिक व अनैच्छिक पेशियों में निम्नलिखित अन्तर हैं
ऐच्छिक पेशी अनैच्छिक पेशी
रेखित होती है। चिकनी होती है।
जन्तु की इच्छानुसार कार्य करती है। जन्तु की इच्छानुसार कार्य नहीं करती है।
कंकाल से जुड़ी होती है। आन्तरंगों से सम्बन्धित होती है।
बेलनाकार, सिरों पर कुन्द होता है। तर्कुरूपी, सिरे नोकदार होते हैं।
संकुचन की दर सबसे अधिक होती है। संकुचन की दर सबसे कम होती है।
प्रश्न 6. पीयूष ग्रन्थि कहाँ पाई जाती है?
अथवा मास्टर ग्रन्थि शरीर में कहाँ पाई जाती है? इसका क्या महत्त्व है?
अथवा पीयूष ग्रन्थि के पश्च पिण्ड से स्रावित दो हॉर्मोन्स के नाम लिखिए।
उत्तर पीयूष ग्रन्थि की स्थिति पीयूष ग्रन्थि को मास्टर ग्रन्थि भी कहते हैं। यह ग्रन्थि अग्रमस्तिष्क के पश्च भाग में डाइएनसिफैलॉन नामक संरचना की निचली सतह पर हाइपोफाइसिस से जुड़ी होती है।
महत्त्व इस ग्रन्थि की अग्रपाली सभी अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्त्रावण पर नियन्त्रण रखता है। इसके अतिरिक्त इसके हॉर्मोन्स शरीर की वृद्धि को प्रेरित करते हैं, जबकि पीयूष ग्रन्थि की पश्च पाली भाग से वैसोप्रेसिन तथा ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन स्रावित होते हैं। इन्हें सम्मिलित रूप से पिट्यूट्रिन कहते हैं। इनका कार्य क्रमशः वृक्क नलिकाओं के दूरस्थ भाग में जल अवशोषण को बढ़ाना तथा शिशु जन्म के समय प्रसव में सहायता करना है।
प्रश्न 7. मानव में वृद्धि हॉर्मोन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर पिट्यूटरी या पीयूष ग्रन्थि की अग्र पाली द्वारा स्त्रावित सोमेटोट्रॉपिक हॉर्मोन (Somatotropic Hormone or STH) या वृद्धि हॉर्मोन (Growth Hormone or GH) ऊतकों तथा हड्डियों की वृद्धि को नियन्त्रित करता है । यह प्रोटीन संश्लेषण को भी प्रभावित करता है। इसके अल्पस्रावण (Hyposecretion) में व्यक्ति बौना (Dwarf) तथा अतिस्रावण (Hypersecretion) से भीमकाय (Giant) हो जाता है, जिसे अग्रातिकायता (Acromegaly) कहते हैं।
प्रश्न 8. थायरॉक्सिन हॉर्मोन के कार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर थायरॉक्सिन हॉर्मोन शरीर की उपापचयी (Metabolic) क्रियाओं का नियमन तथा नियन्त्रण करता है। इसके प्रमुख कार्य आधारयी उपापचय दर (BMR) को नियन्त्रित करना, प्रोटीन संश्लेषण (Protein synthesis), ग्लूकोस के उपयोग एवं हृदय स्पन्दन की दर को बढ़ाना है ।
प्रश्न 9. पौधों में कोशिका विभाजन को उत्प्रेरित करने वाले पदार्थ का नाम ओ अंगूर के आकार व गुच्छों की लम्बाई बढ़ाने के लिए पौधे पर किस रसायन का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर कोशिका विभाजन को साइटोकाइनिन प्रेरित करते हैं। ये ऑक्सिन के साथ मिलकर कोशिका विभाजन की दर में वृद्धि करते हैं।
अंगूर के आकार व उसके गुच्छों की लम्बाई बढ़ाने के लिए जिबरेलिन का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 10. छुई-मुई पादप में गति तथा हमारी टाँग में होने वाली गति तरीके क्या अन्तर है?
उत्तर छुई-मुई के पादपों की गति वृद्धि से सम्बन्धित नहीं होती है। यह गति स्पर्श के कारण पत्तियों की कोशिकाओं की स्फीति में परिवर्तन से होती है। पादप में गति करने के लिए ये कोशिकाएँ जल की मात्रा में परिवर्तन करके अपनी आकृति बदल लेते हैं, जबकि हमारी टाँग में होने वाली गति मानव मस्तिष्क के महत्त्वपूर्ण अंग अनुमस्तिष्क द्वारा नियन्त्रित होती है। इसमें तन्त्रिकाएँ एवं ऐच्छिक पेशियाँ भी भाग लेती हैं। यह गति ऐच्छिक क्रियाओं तथा शरीर की परिस्थिति तथा सन्तुलन के लिए उत्तरदायी होती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न-II
प्रश्न 1. एक जीव में नियन्त्रण एवं समन्वय के तन्त्र की क्या आवश्यकता है?
उत्तर मानव शरीर में बहुत से अंग (Organs) एवं अंग तन्त्र ( Organ system) पाए जाते हैं, जोकि स्वतन्त्र रूप से कार्य करने में असमर्थ होते हैं। जैव-स्थिरता (साम्यावस्था) बनाने हेतु इन अंगों के कार्यों में समन्वयन अत्यधिक आवश्यक है। जीवों में बाह्य तथा अन्तः वातावरण के बीच सन्तुलन बनाए रखने की क्षमता को नियन्त्रण या समस्थापन तथा सामान्य स्थिति बनाए रखने की प्रतिक्रियाओं को समन्वयन कहते हैं।
समन्वयता एक ऐसी क्रियाविधि है, जिसके द्वारा दो या दो से अधिक अंगों की क्रियाशीलता बढ़ती है व एक-दूसरे के अंगों के कार्यों में सहायता भी मिलती है; उदाहरण जब हम शारीरिक व्यायाम करते हैं, तो पेशियों के संचालन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ जाती है, जिसके कारण ऑक्सीजन की आवश्यकता में भी वृद्धि हो जाती है।
ऑक्सीजन की अधिक आपूर्ति के लिए श्वसन दर, हृदय स्पन्दन दर एवं वृक्क वाहिनियों में रुधिर प्रवाह की दर बढ़ना स्वभाविक हो जाता है अर्थात् शारीरिक व्यायाम मात्र पेशियों तक ही सीमित नहीं रहता है, अपितु यह श्वसन, परिसंचरण एवं उत्सर्जन तन्त्रों को भी प्रभावित करता है, अब चूँकि ये अंग तन्त्र अलग-अलग हैं। अतः किसी एक तन्त्र द्वारा इन सभी तन्त्रों में समन्वयन किया जाना आवश्यक हो जाता है। हमारे शरीर में तन्त्रिका तन्त्र एवं अन्तःस्रावी तन्त्र दो ऐसे तन्त्र हैं, जो सम्मिलित रूप से अन्य अंगों की क्रियाओं में समन्वयन करते हैं तथा उन्हें एकीकृत करते हैं।
प्रश्न 2. तन्त्रिका तन्त्र किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार की होती है? एक तन्त्रिका कोशिका का नामांकित चित्र बनाइए ।
अथवा तन्त्रिका तन्त्र को परिभाषित कीजिए। एक तन्त्रिका कोशिका का नामांकित चित्र बनाइए ।
अथवा एक तन्त्रिका कोशिका का नामांकित चित्र बनाइए एवं संक्षिप्त विवरण दीजिए ।
अथवा एक तन्त्रिका कोशिका (न्यूरॉन) की संरचना बनाइए तथा इसके कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा एक न्यूरॉन की संरचना का आरेख बनाइए और उसके कार्यों की व्याख्या कीजिए।
अथवा तन्त्रिका कोशिका का नामांकित चित्र बनाइए ।
अथवा एक तन्त्रिका कोशिका (न्यूरॉन) की संरचना का नामांकित चित्र बनाइए तथा इसके कार्यों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर तन्त्रिका तन्त्र यह तन्त्र वातावरणीय परिवर्तनों को संवेदी सूचनाओं के रूप में ग्रहण करके तन्त्रिकीय प्रेरणाओं या आवेगों के रूप में प्रसारित करता है। तन्त्रिका कोशिका (न्यूरॉन) तन्त्रिका तन्त्र की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई होती है।
सामान्य तन्त्रिका कोशिका के निम्नलिखित भाग होते हैं
(i) कोशिकाकाय यह तन्त्रिका कोशिका का प्रमुख भाग है, कोशिकाकाय के जीवद्रव्य में केन्द्रक, माइटोकॉण्ड्रिया, गॉल्जीकाय, वसा बिन्दु, अन्तःप्रद्रव्यी जालिका, आदि के अतिरिक्त अनियमित आकार के निस्सल के कण होते हैं।
(ii) तन्त्रिकाक्ष या अक्ष तन्तु कोशिकाकाय से एक लगभग बराबर मोटाई का लम्बा प्रवर्ध अक्ष तन्तु या तन्त्रिकाक्ष निकलता है। तन्त्रिकाक्ष के अन्तिम छोरी उपशाखाओं पर घुण्डीनुमा रचनाएँ सिनैप्टिक घुण्डियाँ होती हैं। ये अन्य तन्त्रिका कोशिका के वृक्षिका के साथ सन्धि बनाती हैं।
तन्त्रिकाक्ष चारों ओर से तन्त्रिकाच्छद या न्यूरीलेमा से घिरा होता है। यह श्वान कोशिकाओं से बना होता है। तन्त्रिकाच्छद स्थान-स्थान पर तन्त्रिकाक्ष से चिपकी रहती है, इन स्थानों को रैनवियर की पर्वसन्धि कहते हैं।
कुछ तन्त्रिका तन्तुओं में तन्त्रिकाक्ष के चारों ओर मायलिन नामक वसीय पदार्थ पाया जाता है। इन तन्तुओं को मज्जावृत्त या मायलेनेटेड कहते हैं। जब तन्त्रिका तन्तु में मायलिन का अभाव होता है, तो इन्हें मज्जारहित या नॉन-मायलेनेटेड कहते हैं।
(iii) वृक्षिका या द्रुमिका ये अपेक्षाकृत छोटे एवं शाखामय प्रवर्ध होते हैं, जो सिरों की ओर क्रमश: संकरे होते जाते हैं। वृक्षिका प्रेरणा या उद्दीपनों को दूसरी तन्त्रिका कोशिकाकाय की ओर ले जाती है।
तन्त्रिका कोशिकाएँ शरीर में नियन्त्रण एवं समन्वयन हेतु तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण करती हैं। इसके अतिरिक्त ये शरीर में मुख्यतया वातावरणीय सूचनाओं एवं उद्दीपनों के आवेगों का संचरण करती है।
मनुष्य में तन्त्रिका तन्त्र को निम्नलिखित तीन भागों में विभक्त किया जाता है
(i) केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र (ii) परिधीय तन्त्रिका तन्त्र (iii) स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र
केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र सूचनाओं के प्रसारण का मुख्य केन्द्र होता है।
प्रश्न 3. मेरुरज्जु की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए ।
अथवा मेरुरज्जु (सुषुम्ना) की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए तथा मेरुरज्जु के दो कार्य लिखिए ।
अथवा मेरुरज्जु किसे कहते हैं? इसके क्या कार्य हैं?
अथवा मेरुरज्जु क्या है? ये कहाँ पाए जाते हैं तथा इनका क्या कार्य है?
अथवा मेरुरज्जु के कार्य लिखिए।
उत्तर मस्तिष्क पुच्छ कपालीय गुहा के बाहर एक लम्बी, खोखली व बेलनाकार रचना के रूप में मानव की देहगुहा में रूपान्तरित होता है, इस रचना को मेरुरज्जु कहते हैं। मानव में यह पृष्ठ भाग में कशेरुक दण्ड में सुरक्षित होती है। इसकी केन्द्रीय अक्ष में प्रमस्तिष्क मेरुद्रव्य (Cerebrospinal fluid) से भरी संकरी गुहा, न्यूरोसील (Neurocoel) होती है। मेरुरज्जु भी मस्तिष्क के समान ही तीन झिल्लियों से ढकी रहती है। इन झिल्लियों के बीच में एक तरल पदार्थ ( धूसर द्रव्य) भरा रहता है, जो ‘H’ की आकृति का होता है। मेरुरज्जु में धूसर एवं श्वेत द्रव्य की स्थिति मस्तिष्क के एकदम विपरीत होती है अर्थात् धूसर द्रव्य केन्द्र में तथा श्वेत द्रव्य बाहर की ओर स्थित होता है।
मेरुरज्जु के कार्य
मेरुरज्जु के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
(a) यह प्रतिवर्ती क्रियाओं का संचालन एवं नियमन करता है।
(b) यह अनैच्छिक क्रियाओं को सन्तुलित करता है।
(c) यह मस्तिष्क को जाने तथा मस्तिष्क से आने वाले आवेगों के लिए मार्ग प्रदान करता है।
प्रश्न 4. परिधीय तन्त्रिका तन्त्र क्या होता है? किन्हीं दो प्रकार की तन्त्रिकाओं का विवरण दीजिए।
उत्तर परिधीय तन्त्रिका तन्त्र केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र को शरीर के विभिन्न संवेदी भागों से जोड़ने वाली धागेनुमा तन्त्रिकाएँ, परिधीय तन्त्रिका तन्त्र (PNS) बनाती है। प्रत्येक तन्त्रिका अनेक तन्त्रिका तन्तुओं का गुच्छा होती है। अधिकांश तन्त्रिका तन्तु ऐच्छिक प्रतिक्रियाओं से सम्बन्धित होते हैं। ये तन्त्रिकाएँ दो प्रकार की होती हैं; मस्तिष्क से सम्बन्धित कपालीय तन्त्रिकाएँ (Cranial nerves) तथा मेरुरज्जु से सम्बन्धित मेरु या सुषुम्नीय तन्त्रिकाएँ ( Spinal nerves) मानव में कपाली तन्त्रिकाएँ 12 जोड़ी तथा 31 जोड़ी सुषुम्नीय तन्त्रिकाएँ पाई जाती हैं। इनमें मुख्यतया दो प्रकार की तन्त्रिकाएँ होती हैं
(i) संवेदी तन्त्रिकाएँ ये संवेदी अंगों से संवेदना ग्रहण करके मस्तिष्क या मेरुरज्जु तक पहुँचाती हैं।
(ii) चालक तन्त्रिकाएँ ये मस्तिष्क या मेरुरज्जु की प्रेरणाओं (प्रतिक्रिया) को कार्यकारी अंग या ग्रन्थियों तक पहुँचाती हैं।
प्रश्न 5. ऐच्छिक तथा अनैच्छिक प्रतिक्रियाएँ क्या हैं? प्रत्येक को उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए |
उत्तर ऐच्छिक प्रतिक्रियाएँ या उपार्जित क्रियाएँ ये जन्तु में सीखने या प्रशिक्षण द्वारा होने लगती हैं। इन्हें उपार्जित प्रतिवर्ती क्रियाएँ भी कहते हैं। उदाहरण कुत्ते में भोजन को देखकर लार का टपकना, तैरना, गाना बजाना, नृत्य करना, पिन चुभने पर या किसी गर्म वस्तु के छूने से हाथ हटाना, आदि ।
अनैच्छिक प्रतिक्रियाएँ ये प्रतिवर्ती क्रियाएँ वंशागत, जन्मजात एवं अनैच्छिक होती हैं। इन्हें प्राकृतिक प्रतिवर्ती क्रियाएँ भी कहते हैं। उदाहरण किसी विशेष समय या ऋतु में जन्तुओं का जनन करना, घोंसला बनाना, पक्षियों में देशान्तरण, आदि क्रियाएँ अबन्धित प्रतिवर्ती क्रियाएँ हैं। इन्हें जन्तु स्वयं ही बिना किसी पूर्व अनुभव के ही करते रहते हैं।
प्रश्न 6. जन्तुओं में रासायनिक समन्वय कैसे होता है?
उत्तर जन्तुओं में रासायनिक समन्वय शरीर की अन्तःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्रावित हॉर्मोनों द्वारा होता है। शरीर की विभिन्न अत: स्रावी ग्रन्थियाँ एक या एक से अधिक प्रकार के विशिष्ट हॉर्मोन स्रावित करती हैं, अधिवृक्क ग्रन्थि द्वारा स्रावित एड्रीनेलीन हॉर्मोन सीधा रुधिर में स्रावित होकर शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचकर विशिष्ट ऊतकों जैसे- हृदय या अन्य लक्ष्य अंगों पर कार्य करता है, जिसके परिणामस्वरूप शरीर विषम परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार हो जाता है। अतः अन्तःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्रावित हॉर्मोन जन्तुओं मे नियन्त्रण एवं समन्वय का दूसरा पथ है।
प्रश्न 7. जीवों में नियन्त्रण एवं समन्वय के लिए तन्त्रिका तथा हॉर्मोन क्रियाविधि की तुलना कीजिए ।
उत्तर जन्तुओं में नियन्त्रण एवं समन्वय
(i) तन्त्रिका तन्त्र द्वारा जन्तुओं में सभी सूचनाओं का पता कुछ तन्त्रिका कोशिकाओं द्वारा लगाया जाता है। इन कोशिकाओं के विशिष्टीकृत सिरे पर्यावरण की सभी सूचनाओं को ग्रहण करते हैं। ये ग्राही हमारी ज्ञानेन्द्रियों पर स्थित होते हैं; जैसे—आन्तरिक कर्ण, नाक, जिह्वा, आदि ।
तन्त्रिका द्वारा समन्वय निम्न प्रकार होता है
(a) ग्राही द्वारा सूचनाएँ उपार्जित की जाती हैं।
(b) इनमें प्राप्त सूचनाएँ विद्युत आवेग के रूप में संचारित होती हैं। (c) इस आवेग का परिवर्तन रासायनिक संकेत के रूप में भी किया जा सकता है।
(d) प्राप्त आवेगों (सूचनाओं) के आधार पर मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु उपयुक्त प्रतिक्रिया हेतु निर्देश संचारित करते हैं। इसके आधार पर अन्य अंग कार्य करते हैं।
(ii) अन्तःस्रावी तन्त्र तन्त्रिका तन्त्र के अतिरिक्त एक और तन्त्र जन्तुओं में समन्वयन का कार्य करता है। यह तन्त्र वास्तव में विशिष्ट रासायनिक पदार्थों द्वारा शरीर की विभिन्न जैविक क्रियाओं और तन्त्रों का नियमन व समन्वयन करता है। इस तन्त्र को अन्तःस्रावी तन्त्र कहते हैं तथा इस तन्त्र की कार्य प्रणाली में प्रयुक्त विभिन्न विशिष्ट रासायनिक पदार्थों को रासायनिक सन्देशवाहक या हॉर्मोन कहते हैं। ये हॉर्मोन्स विशिष्ट अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से स्रावित होते हैं, जैसे पीयूष ग्रन्थि द्वारा स्रावित वृद्धि हॉर्मोन द्वारा शरीर की वृद्धि एवं विकास का नियमन होता है।
प्रश्न 8. हॉर्मोन्स क्या होते हैं?
अथवा जीवों में विभिन्न क्रियाओं का नियमन और नियन्त्रण करने वाले रसायन का नाम बताइए। यह किन ग्रन्थियों में उत्पन्न होते हैं ?
अथवा हॉर्मोन्स की क्रियाविधि समझाइए |
उत्तर जीवों में विभिन्न क्रियाओं का नियमन तथा नियन्त्रण करने वाले रासायनिक पदार्थ हॉर्मोन्स कहलाते हैं। हॉर्मोन्स ऐसे रासायनिक सन्देशवाहक होते हैं, जो अन्तःस्रावी ग्रन्थि से सीधे रुधिर में स्रावित होकर सारे शरीर में संचरित होते हैं एवं इनकी अल्प मात्रा ही विशिष्ट लक्ष्य कोशिकाओं की कार्यिकी को आवश्यकतानुसार प्रभावित करती हैं।
हॉर्मोन स्रावण की पुनर्निवेशन क्रियाविधि
हॉर्मोन्स का स्रावण उम्र, दैनिक कार्य, शरीर का स्वास्थ्य एवं शारीरिक दशा, आदि पर निर्भर करता है। इनके अतिरिक्त हॉर्मोन की रुधिर में मात्रा अथवा सान्द्रता पर भी उस हॉर्मोन का स्रावण निर्भर करता है। एक हॉर्मोन की रुधिर परिवहन में मात्रा कम या अधिक होने से इसका विपरीत प्रभाव सीधे हॉर्मोन स्रावण पर पड़ता है। यह हॉर्मोन स्रावण की पुनर्निवेशन या पुनर्भरण प्रक्रिया कहलाती है।
उदाहरण रुधिर में शर्करा (ग्लूकोस) की मात्रा का नियमन, कार्बोहाइड्रेट (ग्लूकोस) युक्त भोजन ग्रहण करने के कारण रुधिर के शर्करा स्तर में वृद्धि होती है।
रुधिर में बढ़ी शर्करा की मात्रा इन्सुलिन के स्रावण हेतु अग्न्याशय की β – कोशिकाओं को उद्दीपित करती है।
इन्सुलिन कोशिकाओं द्वारा ग्लूकोस के अन्तः ग्रहण एवं ग्लाइकोजेनेसिस द्वारा रुधिर में ग्लूकोस के स्तर को कम करती है ।
रुधिर में ग्लूकोस की कमी इन्सुलिन स्रावण को संदमित जबकि ग्लूकैगॉन के स्रावण को प्रेरित करती है।
इसके कारण पुन: रुधिर में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है।
प्रश्न 9. हॉर्मोन्स तथा एन्जाइम्स में अन्तर लिखिए |
उत्तर हॉर्मोन्स तथा एन्जाइम्स में निम्नलिखित अन्तर हैं
हॉर्मोन्स एन्जाइम्स
ये प्रोटीन, अमीनो अम्ल, स्टीरॉइड्स या इनके व्युत्पन्न होते हैं तथा इनका अणुभार कम होता है। ये कोलाइडल प्रकृति के प्रोटीन्स होते हैं तथा इनका अणुभार बहुत अधिक होता है।
क्रिया के पश्चात् हॉर्मोन्स नष्ट हो जाते हैं। इनका पुनः उपयोग नहीं होता है। ये क्रिया के पश्चात् अपरिवर्तित बने रहते हैं। अतः इनका पुनः उपयोग किया जा सकता है।
इनका वितरण रुधिर द्वारा होता है। ये नलिकाओं द्वारा सम्बन्धित अंगों तक पहुँचते हैं।
ये अन्तःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्रावित होते हैं। ये बहिःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्रावित होते हैं।
प्रश्न 10. पीयूष ग्रन्थि कहाँ स्थित होती है? इसके पिछले पिण्ड से स्रावित हॉर्मोन का नाम तथा कार्य बताइए |
उत्तर पीयूष ग्रन्थि अग्रमस्तिष्क के पश्च अधर भाग में डाइएनसिफैलॉन नामक संरचना की निचली सतह पर हाइपोफाइसिस से जुड़ी रहती है। पश्च पिण्ड से स्रावित होने वाले हॉर्मोन्स निम्नलिखित हैं
(i) वैसोप्रेसिन हॉर्मोन (Vasopressin hormone) इसे एण्टीडाइयूरेटिक हॉर्मोन (Antidiuretic Hormone or ADH) भी कहते हैं। यह वृक्क नलिकाओं के दूरस्थ भाग में जल अवशोषण को बढ़ाकर मूत्र की सान्द्रता को नियन्त्रित करता है।
(ii) ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन (Oxytocin hormone) यह शिशु जन्म के समय गर्भाशय की पेशियों में संकुचन प्रेरित कर प्रसव प्रारम्भ करता है तथा प्रसव पश्चात् स्तनों की पेशियों में संकुचन प्रेरित कर दुग्ध स्रावण को भी प्रेरित करता है।
प्रश्न 11. नलिकाविहीन ग्रन्थियों से आप क्या समझते हैं? थायरॉइड ग्रन्थि की संरचना तथा उसके कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा थायरॉइड ग्रन्थि से स्रावित हॉर्मोन का नाम बताइए तथा उनके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर हॉर्मोन्स स्रावित करने वाली नलिकाविहीन ग्रन्थियों को अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ कहते हैं। अन्तःस्रावी ग्रन्थियों में वाहिकाएँ नहीं होती हैं तथा ये अपना स्त्राव (हॉर्मोन) सीधे रुधिर में स्रावित करती हैं। रुधिर के द्वारा ही ये स्राव अपनी लक्ष्य कोशिकाओं तक पहुँचते हैं।
थायरॉइड ग्रन्थि यह ग्रन्थि स्वर यन्त्र (Larynx) के पार्श्व – अधर तल पर स्थित द्विपालित (Bilobed) संरचना होती है। मनुष्य में इसका भार लगभग 25-30 ग्राम होता है। यह मुख्य रूप से थायरॉक्सिन या थायरॉइड हॉर्मोन (Thyroxin or Thyroid hormone) स्रावित करती है, जोकि मुख्यतया आयोडीन का उत्पाद है। इसके प्रमुख कार्य आधारीय उपापचय दर (BMR) को नियन्त्रित करना, प्रोटीन संश्लेषण (Protein synthesis), ग्लूकोस के उपयोग एवं हृदय स्पन्दन की दर को बढ़ाना है। इसकी कमी से हृदय की गति धीमी, शरीर सुस्त एवं मस्तिष्क दुर्बल हो जाता है।
प्रश्न 12. आयोडीन युक्त नमक के उपयोग की सलाह क्यों दी जाती है?
उत्तर अवटुग्रन्थि (थायरॉइड) को थायरॉक्सिन हॉर्मोन के संश्लेषण में आयोडीन की आवश्यकता होती है। यह हॉर्मोन मानव शरीर में प्रोटीन एवं वसा के उपापचय को नियन्त्रित करता है, ताकि वृद्धि और विकास के लिए उत्कृष्ट संतुलन उपलब्ध हो सके । अतः हमारे भोजन में आयोडीन युक्त नमक एक आवश्यक घटक होना चाहिए। आयोडीन की कमी से मनुष्यों मे घेंघा (ग्वाइटर) नामक रोग हो जाता है।
प्रश्न 13. जब एड्रीनेलीन रुधिर में स्रावित होता है, तो हमारे शरीर में क्या अनुक्रिया होती है?
उत्तर एड्रीनेलीन हॉर्मोन का स्रावण अधिवृक्क (एड्रीनल ) ग्रन्थि द्वारा सीधा रुधिर में होता है । शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचकर यह हॉर्मोन विशिष्ट लक्ष्य अंगों पर कार्य करता जैसे- हृदय । विषम परिस्थितियों के समय इस हॉर्मोन के प्रभाव के कारण हृदय की धड़कन बढ़ जाती हैं, ताकि पेशियों को अधिक ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा सके, जबकि पाचन तन्त्र तथा त्वचा में रुधिर की आपूर्ति कम हो जाती है एवं इन अंगों की छोटी धमनियों के आस-पास की पेशियाँ सिकुड़ जाती है। परिणामस्वरूप रुधिर की दिशा कंकाल पेशियों की ओर अधिक हो जाती है। डायाफ्राम तथा पसलियों के सतत् संकुचन से श्वसन दर बढ़ जाती है। ये सभी अनुक्रियाएँ संयुक्त रूप से मिलकर जन्तु को विपरीत परिस्थिति में भी स्पर्धा करने को तैयार करती हैं।
प्रश्न 14. निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
(i) एस्ट्रोजन
(ii) थायरॉक्सिन
(iii) अग्न्याशय
(iv) पीयूष ग्रन्थि
उत्तर (i) एस्ट्रोजन यह अण्डाशय से स्रावित होने वाला हॉर्मोन है। इसे मादा लिंग हॉर्मोन भी कहते हैं। यह पीयूष ग्रन्थि के पुटिका प्रेरक हॉर्मोन के साथ मिलकर द्वितीयक लैंगिक लक्षणों के विकास के लिए उत्तरदायी होता है।
(ii) थायरॉक्सिन यह थायरॉइड ग्रन्थि से स्रावित होने वाला हॉर्मोन है। यह हॉर्मोन उपापचय की दर पर नियन्त्रण रखता है। इसके अतिरिक्त इसकी कमी से हृदय की गति धीमी, शरीर सुस्त एवं मस्तिष्क दुर्बल हो जाता है। बच्चों में थायरॉइड ग्रन्थि की अल्पक्रिया से जड़वामनता तथा वयस्कों में इससे मिक्सोडीमा नामक रोग हो जाता है। आयोडीन की कमी से यह ग्रन्थि फूलकर गर्दन में घेंघा का रूप धारण कर लेती है।
(iii) अग्न्याशय यह मिश्रित ग्रन्थि है। इसके अग्न्याशयिक पिण्डकों से पाचक रस (अग्न्याशयिक रस) स्रावित होता है और इसकी लैंगरहैन्स द्वीपिकाओं से इन्सुलिन तथा ग्लूकैगॉन हॉर्मोन का स्रावण होता है, जोरुधिर में ग्लूकोस की मात्रा का नियन्त्रण करते हैं।
(iv) पीयूष ग्रन्थि यह छोटे आकार की ग्रन्थि मस्तिष्क के अधर तल पर हाइपोफाइसिस से जुड़ी होती है। इस ग्रन्थि के द्वारा लगभग 13 विभिन्न प्रकार के हॉर्मोन स्रावित होते हैं। इसे मास्टर ग्रन्थि भी कहते हैं। पीयूष ग्रन्थि के हॉर्मोन्स वृक्क नलिकाओं में जल के अवशोषण को बढ़ाते हैं तथा गर्भाशय की भित्ति को प्रसव के समय संकुचित करते हैं।
प्रश्न 15. बहिःस्रावी तथा अन्तःस्रावी ग्रन्थियों में क्या अन्तर है?
उत्तर अन्तःस्रावी तथा बहिःस्रावी ग्रन्थियों में निम्नलिखित अन्तर हैं
अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ बहिःस्रावी ग्रन्थियाँ
ग्रन्थियों द्वारा स्रावित पदार्थों को निश्चित स्थान तक पहुँचाने के लिए इन ग्रन्थियों में कोई भी नलिका नहीं होती है। इसलिए इन्हें सामान्यतया नलिकाविहीन ग्रन्थि कहा जाता है। इन ग्रन्थियों से स्राव नलिका द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों में होता है अर्थात् ये नलिकायुक्त ग्रन्थियाँ होती हैं।
इन ग्रन्थियों से स्रावित हॉर्मोन्स को सीधे रुधिर में पहुँचा दिया जाता है। इनका स्राव नलिका द्वारा शरीर के उस विशेष स्थान पर अथवा उस अंग में पहुँचाया जाता है, जहाँ उसकी आवश्यकता होती है।
हॉर्मोन्स का कार्यस्थल प्रायः एक विशिष्ट लक्ष्य अंग तथा विभिन्न उपापचयी क्रियाओं के नियन्त्रण में इनका महत्त्वपूर्ण कार्य होता है। ये लगभग सभी जैविक क्रियाओं पर रासायनिक समन्वयन के लिए आवश्यक हैं। इनके स्राव का कार्य सामान्यतया उसी स्थान पर सीमित होता है, जहाँ इसे पहुँचाया जाता है।
हॉर्मोन्स शरीर में संचित नहीं होते हैं। इनके स्राव कुछ समय तक संचित भी रह सकते हैं।
उदाहरण थायरॉइड, थाइमस, अधिवृक्क, पीयूष, अग्न्याशय, आदि ग्रन्थियाँ । उदाहरण यकृत, स्वेद, लार, अग्न्याशय, आदि ग्रन्थियाँ ।
प्रश्न 16. पादप हॉर्मोन क्या हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं?
अथवा पादप हॉर्मोन्स की चार प्रमुख विशेषताएँ बताइए |
अथवा पादप हॉर्मोन्स से क्या तात्पर्य है? इनके मुख्य लक्षण बताइए ।
अथवा पादपों में रासायनिक समन्वय किस प्रकार होता है?
उत्तर पादपों में तन्त्रिका तन्त्र का अभाव होता है, लेकिन विभिन्न जटिल कार्बनिक रासायनिक पदार्थ एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक विसरित होते रहते हैं, जो पादपों में वृद्धि तथा विकास को नियन्त्रित करते हैं। वे विशेष प्रकार के जटिल कार्बनिक रासायनिक पदार्थ, जो पादपों में वृद्धि तथा विकास को नियन्त्रित करते हैं, पादप हॉर्मोन कहलाते हैं। इन्हें वृद्धि नियामक हॉर्मोन्स भी कहते हैं। सामान्यतया ये पादप की जड़ या तने के शीर्ष से स्रावित होते हैं और जैविक क्रियाओं का नियन्त्रण एवं नियमन करते हैं। जैसे—जब वृद्धि करता पादप प्रकाश को संसूचित करता है, तब ऑक्सिन नामक हॉर्मोन प्ररोह के अग्र भाग पर संश्लेषित होता है तथा कोशिकाओं की लंबाई की वृद्धि में सहायक होता है।
पादप हॉर्मोन्स की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) ये जड़, तना एवं कलिका के शीर्षस्थ विभज्योतक (Apical meristem) बनते हैं तथा वृद्धि का नियन्त्रण करते हैं।
(ii) ये अति अल्पमात्रा में ही प्रभावी हो जाते हैं।
(iii) सामान्य से कम या अधिक मात्रा में होने पर इनका पादप क्रियाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
(iv) इनका पादपों से निष्कर्षण किया जा सकता है।
पादप हॉर्मोन दो प्रकार के होते हैं
(i) वृद्धि प्रवर्धक हॉर्मोन्स ये हॉर्मोन्स पादप अथवा उनके विभिन्न अंगों में वृद्धि को प्रेरित करते हैं; जैसे- ऑक्सिन, जिबरेलिन, साइटोकाइनिन, आदि ।
(ii) वृद्धि निरोधक हॉर्मोन्स ये हॉर्मोन्स पादप अथवा उनके अंगों में वृद्धि को रोकते हैं; जैसे- एब्सिसिक अम्ल, इथाइलीन, आदि ।
प्रश्न 17. ऑक्सिन क्या है? प्रकाश अनुवर्तन में ऑक्सिन के कार्यों का वर्णन कीजिए |
अथवा पादपों में प्रकाशानुवर्तन किस प्रकार होता है ?
उत्तर ऑक्सिन पादप हॉर्मोन ऑक्सिन की खोज वेण्ट (Vent) नामक वैज्ञानिक ने की थी। ये जड़ या तने के वृद्धि शीर्ष (Growing apex ) से स्रावित कार्बनिक पदार्थ (Organic substance) हैं, जो मुख्यतया कोशिकाओं में दीर्घीकरण (Elongation) को प्रेरित करते हैं। इसके अतिरिक्त ये पादपों की विभिन्न जैविक क्रियाओं को भी प्रभावित करते हैं। ऑक्सिन की सबसे अधिक सान्द्रता (Concentration) पादपों के शीर्ष विभज्योतक एवं कलिकाओं (Buds) में पाई जाती है।
प्रकाशानुवर्तन में ऑक्सिन की भूमिका
प्रकाशानुवर्तन में ऐसा माना जाता है कि जिस दिशा से प्रकाश पड़ता है, ऑक्सिन की मात्रा उसकी विपरीत दिशा में चली जाती है (अर्थात् अप्रकाशित क्षेत्र की तरफ)। इसके कारण अप्रकाशिक भाग में कोशिका दीर्घन तीव्रता से होने लगता है, जिससे तने के अप्रकाशिक सिरे की लम्बाई बढ़ जाती है। प्रकाशित क्षेत्र में कम ऑक्सिन होने के कारण कोशिका दीर्घन भी कम होता है और तने की लम्बाई में वृद्धि बहुत कम होती है, जिसके परिणामस्वरूप तना प्रकाशिक क्षेत्र की ओर मुड़ जाता है।
प्रश्न 18. प्रकाशानुवर्तन तथा गुरुत्वानुवर्तन को उपयुक्त चित्रों की सहायता से परिभाषित कीजिए ।
अथवा पौधों में गुरुत्वानुवर्तन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर प्रकाशानुवर्तन गति (Phototropic movement) (उद्दीपन- प्रकाश) जब पौधे के किसी भाग की गति प्रकाश उद्दीपन के द्वारा निर्धारित होती है, तब इसे प्रकाशानुवर्तन गति (Phototropic movement) कहते हैं। पौधे के कुछ अंग जैसे तना, प्रकाश की ओर गति करते हैं, इन्हें धनात्मक प्रकाशानुवर्ती (Positively phototropic ) कहते हैं तथा कुछ अंग प्रकाश के विपरीत दिशा में गति करते हैं जैसे जड़े, इन्हें ऋणात्मक प्रकाशानुवर्ती (Negatively phototropic) कहते हैं। यह क्रिया ऑक्सिन हॉर्मोन के प्रभाव से होती है।
गुरुत्वानुवर्तन उद्दीपन – गुरुत्वाकर्षण
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational force) के कारण पौधों के अंगों में होने वाली गति गुरुत्वानुवर्तन (Geotropism) कहलाती है। प्राथमिक जड़ें सदा गुरुत्व केन्द्र की ओर (पृथ्वी की ओर ) गति करती हैं, इसे धनात्मक गुरुत्वानुवर्तन (Positive geotropism) कहते हैं तथा मुख्य तना गुरुत्वाकर्षण के विपरीत गति करता है, इसे ऋणात्मक गुरुत्वानुवर्तन (Negative geotropism) कहते हैं।
प्रश्न 19. जलानुवर्तन दर्शाने के लिए एक प्रयोग की अभिकल्पना कीजिए ।
उत्तर जलानुवर्तन गति
जब पौधों के किसी अंग की गति जल अथवा नमी के उद्दीपन के कारण होती है, तो इसे जलानुवर्तन कहते हैं। जड़ें, नमी या जल की ओर बढ़ती हैं इसलिए इन्हें धनात्मक जलानुवर्ती (Positively hydrotropic) कहते हैं।
इसे प्रदर्शित करने के लिए लकड़ी के डिब्बे में मिट्टी भर लेते हैं। मिट्टी के मध्य जल भरा मिट्टी का बर्तन जैसे कुल्हड़ रख देते हैं। अब इसके चारों ओर मटर के बीज बो देते हैं। 2-3 दिन बाद बीज के अंकुरित होने से उत्पन्न नवोद्भिद पौधों की जड़ें गुरुत्वाकर्षण के विपरीत नमी की ओर गति करती हैं।
प्रश्न 20. अग्रमस्तिष्क मुख्य सोचने वाला भाग है। इसमें विभिन्न ग्राहियों से संवेदी आवेग प्राप्त करने के क्षेत्र उपस्थित होते हैं। सुनने, देखने व सूँघने के क्षेत्रों के साथ इसमें साहचर्य के क्षेत्र अलग से होते हैं, जहाँ एकत्रित सूचनाओं का अर्थ ज्ञात किया जाता है। इसके अतिरिक्त अग्रमस्तिष्क में भूख से संबंधित अलग से एक भाग होता है।
रुधिर दाब, लार का आना, वमन, आदि अनैच्छिक क्रियाएँ पश्चमस्तिष्क में स्थित मेड्यूला द्वारा नियंत्रित की जाती हैं। कुछ क्रियाएँ; जैसे-एक पेंसिल उठाना, एक सीधी रेखा में चलना, साइकिल चलाना, आदि पश्च मस्तिष्क में स्थित अनुमस्तिष्क द्वारा संभव है।
(i) अनैच्छिक क्रियाएँ तथा प्रतिवर्ती क्रियाएँ एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं?
(i) रुधिरचाप तथा उल्टी जैसी अनैच्छिक क्रियाओं को पश्च मस्तिष्क के किस भाग द्वारा और कैसे नियन्त्रित किया जाता है?
उत्तर (i) अनैच्छिक क्रियाएँ; जैसे- हृदय स्पंदन, भोजन के आने पर लार का निकलना, पुतली के आकार में परिवर्तन, आदि ऐसी क्रियाएँ हैं, जिस पर हमारी इच्छा का कोई नियन्त्रण नहीं है। इन अनैच्छिक क्रियाओं का पश्च मस्तिष्क में स्थित मेड्यूला ऑब्लोगेटा द्वारा नियन्त्रण होता है। किसी घटना की अनुक्रिया के फलस्वरूप अचानक हुई तीव्र अनैच्छिक प्रतिक्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया कहते हैं। यह क्रियाएँ मुख्यतया मेरुरज्जु द्वारा नियन्त्रित होती हैं, न कि मस्तिष्क द्वारा। अतः यह बिना सोचे – विचारे त्वरित रूप से होती है।
(ii) रुधिरचाप, लार आना तथा उल्टी जैसी अनैच्छिक क्रियाएँ पश्च मस्तिष्क के मेड्यूला ऑब्लोगेटा द्वारा नियन्त्रित होती हैं। मेड्यूला ऑब्लोगेटा, जिसे मेड्यूला भी कहा जाता है। यह मस्तिष्क का सबसे निचला भाग होता है। मेड्यूला ऑब्लोगेटा एक लम्बी स्तम्भ जैसी संरचना होती है, जो उल्टी से लेकर छींकने तक के स्वायत्त (अनैच्छिक) कार्यों के लिए उत्तरदायी होती है ।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. तन्त्रिका कोशिका (न्यूरॉन) की संरचना का नामांकित चित्र बनाइए और तन्त्रिका तन्त्र की कार्यिकी का उल्लेख कीजिए।
अथवा तन्त्रिका कोशिका का स्वच्छ चित्र बनाकर डेन्ड्रॉन (वृक्षिका) तथा एक्सॉन (तन्त्रिकाक्ष) को नामांकित कीजिए ।
उत्तर
तन्त्रिका तन्त्र में तन्त्रिका तन्तुओं का मुख्य कार्य संवेदी अंगों से उद्दीपन ग्रहण करके उन्हें मस्तिष्क तक पहुँचाना तथा मस्तिष्क से प्राप्त प्रेरणाओं को अपवाही अंगों तक ले जाना है।
इस क्रिया में संवेदी तन्त्रिकाएँ शरीर के विभिन्न अंगों से सूचनाएँ प्राप्त करती हैं और इन संवेदी सूचनाओं को मस्तिष्क को भेजा जाता है। फिर मस्तिष्क आवेगों द्वारा प्राप्त की गई सूचनाओं के आधार पर निर्णय लेता है। इसके पश्चात् चालक न्यूरॉन या प्रेरक न्यूरॉन निर्देशों को केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र से प्रभावी अंगों में ले जाते हैं। मस्तिष्क से प्राप्त निर्देशों के आधार पर माँसपेशी अपने कोशिकीय घटकों की संरचना में परिवर्तन कर देती है और उसमें उपस्थित विशेष प्रोटीन तन्त्रिकीय विद्युत आवेगों की प्रतिक्रिया फलस्वरूप कोशिका के आकार और व्यवस्था दोनों को परिवर्तित कर देता है। इस प्रकार प्रोटीन की नई व्यवस्था माँसपेशियों की कोशिकाओं के विन्यास में परिवर्तन करके मस्तिष्क में दिशानुसार गति या कार्य करती है।
तन्त्रिका तन्त्र में यह सम्पूर्ण कार्य आवेगों के रूप में होता है। तन्त्रिका तन्तुओं में आवेगों का संवहन एक विद्युत रासायनिक (Electrochemical) घटना है, जिसके अन्तर्गत आवेग स्वसंचारी (Self-propagative) विद्युत रासायनिक लहरों (Electrochemical waves) के रूप में तन्त्रिका तन्तुओं में से प्रसारित होते हैं। जब विश्रामावस्था के दौरान प्रत्येक तन्त्रिका तन्तु ध्रुवित अवस्था (Polarised state) में रहता है तब किसी आवेग के उत्पन्न होने के कारण इसका विध्रुवण (Depolarisation) हो जाता है, जोकि एक लहर के रूप में पूरे तन्तु में फैलता जाता है, क्योंकि जितनी तेजी से यह विध्रुवण तन्त्रिका तन्तु में फैलता है, उतनी ही तेजी से इसके पीछे-पीछे प्रत्येक स्थान पर इसका पुन: ध्रुवण (Repolarisation) होता रहता है।
इस आवेग को एक तन्त्रिका तन्तु से दूसरी तन्त्रिका तन्तु तक पहुँचने के लिए विशेष प्रक्रिया द्वारा युग्मानुबन्धन (Synapse) से गुजरना पड़ता है।
प्रश्न 2. मानव मस्तिष्क का नामांकित चित्र बनाइए । संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
अथवा मानव मस्तिष्क का नामांकित चित्र बनाइए तथा इसके विभिन्न भागों के कार्य लिखिए।
अथवा मस्तिष्क के प्रमुख भाग कौन से हैं? विभिन्न भागों के कार्यों की चर्चा कीजिए |
अथवा मानव मस्तिष्क की रचना तथा क्रियाविधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा निम्नलिखित के कार्य लिखिए
(i) प्रमस्तिष्क
(ii) अनुमस्तिष्क
(iii) मस्तिष्क पुच्छ (मेड्यूला ऑब्लोंगेटा)
उत्तर मानव मस्तिष्क की संरचना तथा कार्य मस्तिष्क अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं कोमल अंग होता है। वयस्क में यह 1300-1400 ग्राम का होता है। यह खोपड़ी के मस्तिष्क कोष में सुरक्षित रहता है। यह चारों ओर से तिहरी झिल्ली से घिरा होता है। बाहरी झिल्ली को दृढ़तानिका या ड्यूरामेटर, मध्य झिल्ली को जालतानिका और भीतर की झिल्ली को मृदुतानिका या पायामेटर कहते हैं। इनमें रुधिर कोशिकाओं का एक सघन जाल होता है। इन्हीं के द्वारा मस्तिष्क को O2 प्राप्त होती है। इनके मध्य प्रमस्तिष्क मेरुद्रव्य नामक एक तरल पदार्थ भरा रहता है, जो मस्तिष्क की बाह्य आघातों से सुरक्षा करता है।
मस्तिष्क के तीन प्रमुख भाग होते हैं
1. अग्रमस्तिष्क इनके अन्तर्गत घ्राण पिण्ड, प्रमस्तिष्क तथा डाइएनसिफैलॉन आते हैं। प्रमस्तिष्क मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग बनाता है। प्रमस्तिष्क पर पाई जाने वाली दरारें इसकी सतह के धरातल में वृद्धि करती है। इसका बाह्य भाग धूसर पदार्थ से बना होता है तथा भीतरी भाग श्वेत पदार्थ से बना होता है। प्रमस्तिष्क विभिन्न क्रियाओं का नियन्त्रण तथा नियमन करता है।
अग्रमस्तिष्क के प्रमुख भाग
(i) घ्राण पिण्ड यह गन्ध ज्ञान के केन्द्र होते हैं।
(ii) प्रमस्तिष्क यह स्मृति, सोचने, विचारने, चेतना, तर्क शक्ति, सीखने, आदि का केन्द्र होता है।
(iii) डाइएनसिफैलॉन यह अनैच्छिक क्रियाओं; जैसे- भूख, प्यास, नींद, ताप नियन्त्रण, उपापचय, आदि क्रियाओं का नियन्त्रण तथा नियमन करता है।
2. मध्यमस्तिष्क यह भाग मस्तिष्क को मेरुरज्जु से जोड़ता है। यह दृष्टि तथा श्रवण का ज्ञान करता है।
3. पश्चमस्तिष्क इसके अन्तर्गत मुख्यतया पोन्स, अनुमस्तिष्क तथा मस्तिष्क पुच्छ आते हैं।
(i) पोन्स यह 2.5 सेमी लम्बे गोल उभार के रूप में मस्तिष्क के निचले तल पर स्थित होता है। यह श्वसन नियमन भोजन चबाने में, लार के स्रावण में तथा आँसुओं के निकलने को नियन्त्रित करने में सहायक है।
(ii) अनुमस्तिष्क यह शरीर का सन्तुलन बनाए रखता है। यह पेशियों के मध्य समन्वय करके प्रचलन को नियन्त्रित करता है।
(iii) मस्तिष्क पुच्छ (मेड्यूला ऑब्लोंगेटा) मस्तिष्क का यह भाग बेलनाकार होता है। यह शरीर की अनैच्छिक क्रियाओं; जैसे-‍ श्वसन, हृदय स्पन्दन, परिसंचरण, आदि का नियन्त्रण एवं नियमन करता है।
प्रश्न 3. प्रतिवर्ती क्रिया को चित्र की सहायता से समझाइए | इसका क्या महत्त्व है?
अथवा – प्रतिवर्ती क्रिया किसे कहते हैं? प्रतिवर्ती चाप का नामांकित चित्र बनाकर उदाहरण सहित समझाइए ।
अथवा प्रतिवर्ती क्रिया का महत्त्व बताइए तथा सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा प्रतिवर्ती क्रिया क्या है? यह कितने प्रकार की होती है?
अथवा प्रतिवर्ती क्रिया क्या है? इस क्रिया में मस्तिष्क की क्या भूमिका है?
अथवा प्रतिवर्ती चाप का नामांकित चित्र बनाइए व संक्षिप्त विवरण दीजिए ।
अथवा प्रतिवर्ती क्रिया क्या होती है ? उदाहरण सहित समझाइए |
अथवा प्रतिवर्ती क्रियाएँ क्या होती हैं ? कोई दो उदाहरण दीजिए। प्रतिवर्ती चाप की व्याख्या कीजिए।
अथवा प्रतिवर्ती क्रियाओं से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए ।
अथवा एक व्यक्ति के हाथ में एक आलपिन चुभा दी गई। उसने अपना हाथ झटके से तुरन्त हटा लिया। इस कार्य में कौन-सी क्रिया घटित हुई?
अथवा प्रतिवर्ती क्रिया से आप क्या समझते हैं? इसका नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर किसी उद्दीपन के फलस्वरूप शीघ्रतापूर्वक होने वाली स्वचालित तथा अनैच्छिक क्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया कहते हैं; जैसे- स्वादिष्ट भोजन देखते ही लार का आना, काँटा चुभते ही पैर का झटके के साथ ऊपर उठ जानां तैज प्रकाश में आँख की पुतली का सिकुड़ जाना, छींकना, खाँसना, आदि प्रतिवर्ती क्रियाएँ हैं ।
मस्तिष्क की भूमिका ये क्रियाएँ मेरुरज्जु से नियन्त्रित होती हैं। मस्तिष्क तक इसकी सूचना केवल उस घटना को याद रखने के लिए भेजी जाती है । प्रतिवर्ती क्रिया तीव्रगति से होने वाली स्वचालित अनुक्रिया है। इसके संचालन में मस्तिष्क भाग नहीं लेता है।
प्रतिवर्ती क्रिया को हम निम्नलिखित रूप में परिभाषित कर सकते हैं
‘संवेदी अंगों से संवेदनाओं का संवेदी तन्तुओं द्वारा मेरुरज्जु तक आने और मेरुरज्जु से प्रेरणा के रूप में अनुक्रिया करने वाले अंग की माँसपेशियों तक पहुँचने के मार्ग को प्रतिवर्ती चाप कहते हैं तथा होने वाली क्रिया प्रतिवर्ती क्रिया कहलाती है। ‘
कार्यविधि इस प्रकार की क्रियाओं का पता सर्वप्रथम मार्शल हाल (1833) ने लगाया था। मेरुरज्जु से प्रत्येक मेरुतन्त्रिका दो मूलों के रूप में निकलती है
(i) संवेदी तन्तुओं से बना पृष्ठ मूल
(ii) चालक तन्तुओं से बना अधर मूल
संवेदना प्राप्त होने पर आवेग की लहर पृष्ठ मूल से होकर पृष्ठ मूल गुच्छक में स्थित तन्त्रिका कोशिका तथा उसके तन्त्रिकाक्ष में होती हुई मेरुरज्जु के धूसर द्रव्य में पहुँचती है। यहाँ से सिनैप्टिक घुण्डियों से होता हुआ आवेग चालक तन्त्रिका कोशिकाओं के वृक्षिकान्त या द्रुमिका में जाता है।
अब यह आवेग ज्यों-का-त्यों चालक प्रेरणा बनकर प्रभावी अंग में पहुँचता है। प्रभावी अंगों की पेशियाँ तुरन्त क्रियाशील होकर इन्हें गति प्रदान करती हैं। संवेदांग से लेकर अपवाहक अंग तक के इस प्रकार के आवेग पथ को प्रतिवर्ती चाप कहा जाता है।
इस क्रिया में संवेदना के मार्ग अर्थात् प्रतिवर्ती चाप को निम्न रेखाचित्र से समझ सकते हैं
महत्त्व प्रतिवर्ती क्रियाएँ हमारे लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं, जिनके प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं
(i) प्रतिवर्ती क्रियाएँ मेरुरज्जु द्वारा सम्पादित होती हैं। अतः मस्तिष्क का कार्यभार कम होता है।
(ii) ये तुरन्त तथा तीव्रगति से होती हैं । अतः सम्भावित दुर्घटना को रोकने में सहायता मिलती है।
स्वभाव के आधार पर प्रतिवर्ती क्रियाओं को दो प्रमुख श्रेणियों में बाँटा गया है
(i) सरल या अबन्धित प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Unconditioned reflex actions) ये प्रतिवर्ती क्रियाएँ वंशागत या जन्म से ही होती हैं। ये ऐच्छिक नहीं होती हैं। इन्हें प्राकृतिक प्रतिवर्ती क्रियाएँ भी कहते हैं; उदाहरण किसी विशेष समय या ऋतु जनन करना, घोंसला बनाना, पक्षियों में देशान्तरण, आदि क्रियाएँ अबन्धित प्रतिवर्ती क्रियाएँ हैं। इन्हें जन्तु स्वयं ही बिना किसी पूर्व अनुभव के ही करता रहता है। व्यक्ति के हाथ में आलपिन चुभने पर वह अपना हाथ झटके से हटा लेता है, इस कार्य में अबन्धित प्रतिवर्ती क्रिया घटित हुई। यह प्राणियों का सहज तथा वंशागत व्यवहार है, जो स्वयं की सुरक्षा हेतु जन्मजात होता है।
(ii) प्रतिबन्धित या अनुकूलित प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Conditioned reflex actions) इस प्रकार की प्रतिवर्ती क्रियाएँ जन्तु में सीखने या प्रशिक्षण द्वारा उत्पन्न होने लगती हैं। इन्हें उपार्जित प्रतिवर्ती क्रियाएँ भी कहते हैं। यह जन्तुओं का सहज व वंशागत व्यवहार है; उदाहरण कुत्ते में भोजन को देखकर लार का टपकना, तैरना, गाना बजाना, नृत्य करना, पिन चुभने पर या किसी गर्म वस्तु के छूने से हाथ हटाना, आदि ।
प्रश्न 4. अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से आप क्या समझते हैं? मानवों की किन्हीं चार अन्तःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्रावी हॉर्मोनों के कार्यों का वर्णन कीजिए ।
अथवा मानव हॉर्मोनों पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा मनुष्य में पाई जाने वाली किन्हीं चार नलिकाविहीन ग्रन्थियों के नाम तथा उनके कार्य लिखिए। [2014] अथवा अन्तःस्रावी ग्रन्थि किसे कहते हैं? किन्हीं दो के नाम लिखिए । [2007]
अथवा नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ किसे कहते हैं? कोई दो उदाहरण दीजिए ।
अथवा मानव में पाई जाने वाली कोई चार अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के नाम बताइए |
उत्तर अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियाँ (Endocrine glands) हॉर्मोन्स स्रावित करने वाली नलिकाविहीन ( Ductless ) ग्रन्थियों को अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ कहते हैं। अन्तःस्रावी ग्रन्थियों में वाहिकाएँ नहीं होती हैं तथा ये अपना स्राव (हॉर्मोन) सीधे रुधिर में स्त्रावित करती हैं। रुधिर के द्वारा ही ये स्राव अपनी लक्ष्य कोशिकाओं (वे कोशिकाएँ जिन पर ये हॉर्मोन्स प्रभाव डालते हैं) तक पहुँचते हैं; उदाहरण – थायरॉइड, पीयूष ग्रन्थि, आदि ।
जन्तु हॉर्मोन प्राय: प्रोटीन, अमीनो अम्ल, स्टीरॉइड्स या इनके व्युत्पन्न होते हैं, इनका अणुभार कम होता है एवं क्रिया के पश्चात् यह नष्ट हो जाते हैं। प्रथम हॉर्मोन सिक्रिटिन (Secretin) की खोज बैलिस (Bayliss) तथा स्टरलिंग (Starling) ने सन् 1903 में की थी । अर्नेस्ट एच. स्टरलिंग (Ernest H Starling) ने सन् 1905 में हॉर्मोन शब्द का प्रयोग किया।
उदाहरण एड्रीनल ग्रन्थियों से स्त्रावित होने वाले हॉर्मोन्स स्टीरॉइड्स व पीयूष ग्रन्थि से स्रावित होने वाले हॉर्मोन्स प्रोटीन्स होते हैं। इन दोनों से अलग थायरॉइड ग्रन्थि से अमीनो अम्ल या अमीनो अम्ल के व्युत्पन्न हॉर्मोन्स के रूप में स्रावित होते हैं।
मनुष्य में पाई जाने वाली चार प्रमुख नलिकाविहीन (अन्तःस्रावी ) ग्रन्थियाँ तथा उनके कार्य निम्न हैं
नलिकाविहीन (अन्तःस्रावी) ग्रन्थियाँ कार्य
पीयूष ग्रन्थि यह ‘मास्टर ग्रन्थि’ कहलाती है, क्योंकि अधिकतर अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के कार्यों पर इसके द्वारा स्रावित हॉर्मोन्स नियन्त्रण रखते हैं। इसके अतिरिक्त वृद्धि हॉर्मोन्स शरीर की वृद्धि को प्रेरित करते हैं। पीयूष ग्रन्थि का वैसोप्रेसीन हॉर्मोन वृक्क नलिकाओं में जल के अवशोषण को बढ़ाता है तथा ऑक्सीटोसीन गर्भाशय की पेशी भित्ति को प्रसव के समय संकुचित करते हैं।
थायरॉइड ग्रन्थि यह थायरॉक्सिन हॉर्मोन द्वारा उपापचय की दर (BMR), ऑक्सीजन की खपत, हृदय स्पन्दन दर का नियमन, ग्लूकोस का अवशोषण तथा ग्लूको नियोजेनेसिस को प्रेरित करती हैं।
पैराथायरॉइड ग्रन्थि यह पैराथॉर्मोन तथा कैल्सिटोनिन हॉर्मोन द्वारा फॉस्फेट तथा कैल्शियम आयनों (PO4 तथा Ca2+ ) की सान्द्रता का नियमन, रुधिर के जमने, अस्थि निर्माण, पेशी संकुचन, आदि को नियन्त्रित करती है।
एड्रीनल ग्रन्थि यह एड्रीनलीन तथा नॉर एड्रीनेलीन हॉर्मोन द्वारा उपापचय पर नियन्त्रण, जल तथा लवणों का शरीर में वितरण तथा नियमन; जैसे- जल तथा सोडियम का पुनरावशोषण, किन्तु फॉस्फेट्स एवं पोटैशियम, आदि के उत्सर्जन को प्रेरित करते हैं। इसके लिंग हॉर्मोन्स पेशियों तथा जननांगों के विकास को प्रेरित करते हैं; कुछ अन्य रुधिर दाब बढ़ाते हैं तथा किसी खतरे के समय उग्र प्रतिक्रियाओं को प्रेरित करते हैं।
प्रश्न 5. हॉर्मोन को परिभाषित कीजिए । मधुमेह रोग किस हॉर्मोन के कम स्रावण से होता है? सम्बन्धित हॉर्मोन के कार्य बताइए।
अथवा हॉर्मोन की परिभाषा बताते हुए इसकी प्रमुख विशेषताएँ भी बताइए ।
अथवा इन्सुलिन का क्या महत्त्व है? यह कहाँ बनता है?
उत्तर ऐसा सक्रिय सन्देशवाहक पदार्थ, जो किसी बाह्य या अन्त: उद्दीपन (Stimulus ) के कारण, शरीर के किसी भाग की अन्तःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्स्रावित होकर रुधिर के द्वारा पूर्ण शरीर में संचरित होता है तथा जिसकी सूक्ष्म मात्रा ही शरीर की कोशिकाओं की कार्यिकी को प्रभावित करने के लिए काफी होती है, हॉर्मोन (Hormone) कहलाता है।
हॉर्मोन्स की विशेषताएँ हॉर्मोन्स की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) हॉर्मोन्स कम अणुभार (Molecular weight) वाले और प्राय: जल में घुलनशील होते हैं।
(ii) हॉर्मोन्स कार्बनिक उत्प्रेरक हैं और ऊतकों में सहविकर ( Coenzyme ) की तरह कार्य करते हैं।
(iii) सभी हॉर्मोन्स प्लाज्मा कला के आर-पार आ व जा सकते हैं।
(iv) हॉर्मोन्स ऊतक विशिष्टता दर्शाते हैं, किन्तु जाति विशिष्टता नहीं दर्शाते हैं।
(v) एक विशेष हॉर्मोन विशिष्ट अंग या कोशिका पर ही प्रभाव डालता है, जिसे लक्ष्य अंग या लक्ष्य कोशिका (Target organ or Target cell) कहते हैं और यह प्रक्रिया अंग विशिष्टता (Organ specificity) कहलाती है।
(vi) हॉर्मोन रासायनिक दूत (Chemical messenger) की तरह कार्य करते हैं और उपापचयी क्रियाओं में सीधे भाग न लेकर उनकी क्रियाशीलता को प्रभावित करते हैं।
(vii) हॉर्मोन्स शरीर में संचित नहीं होते हैं। अतः इनका संश्लेषण शरीर में निरन्तर होता रहता है।
मधुमेह रोग इन्सुलिन हॉर्मोन के कम स्रावण से होता है। इन्सुलिन हॉर्मोन अग्न्याशय की लैंगरहैन्स की द्वीपिकाओं की B- कोशिकाओं से स्त्रावित होता है । इन्सुलिन आवश्यकता से अधिक ग्लूकोस को ग्लाइकोजन में बदलता है और यह ग्लाइकोजन यकृत कोशिकाओं में संचित हो जाता है। आवश्यकता पड़ने पर cx-कोशिकाओं से स्रावित ग्लूकैगॉन हॉर्मोन ग्लाइकोजन को ग्लूकोस में बदल देता है, जब इन्सुलिन की कमी हो जाती है, तो ग्लूकोस ग्लाइकोजन में परिवर्तित नहीं हो पाता और रुधिर में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, इसे मधुमेह रोग कहते हैं।
इन्सुलिन के कार्य
(i) शरीर में कार्बोहाइड्रेट के उपापचय (मुख्यतया ग्लूकोस) में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
(ii) यह कोशिकाओं की आधारी उपापचय दर (BMR) को बढ़ा देता है।
(iii) यह RNA और प्रोटीन संश्लेषण को प्रेरित करता है।
(iv) यकृत एवं पेशियों में ग्लूकोस ग्लाइकोजन के संश्लेषण अर्थात् ग्लाइकोजेनेसिस (Glycogenesis) में सहायक है।
(v) यह वसा ऊतकों में वसा के संश्लेषण (Lipogenesis) को बढ़ा देता है।
प्रश्न 6. पादप हॉर्मोन क्या है? किन्हीं दो पादप हॉर्मोनों के नाम लिखिए तथा उनके कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा दो पादप वृद्धि नियन्त्रक हॉर्मोन्स के नाम बताइए तथा उनके कार्य का वर्णन कीजिए।
अथवा पादप हॉर्मोन क्या होते हैं? किन्हीं तीन के नाम तथा कार्यों का उल्लेख कीजिए |
अथवा विभिन्न पादप हॉर्मोनों के नाम बताइए। साथ ही पादप वृद्धि और परिवर्धन पर उनके क्रियात्मक प्रभावों की भी चर्चा कीजिए ।
अथवा किन्हीं दो पादप हॉर्मोन्स के नाम तथा इनके एक-एक कार्य बताइए ।
अथवा किन्हीं दो पादप हॉर्मोनों के नाम एवं कार्य लिखिए | अथवा एक पादप हॉर्मोन का उदाहरण दीजिए, जो वृद्धि को बढ़ाता है।
उत्तर वे विशेष प्रकार के जटिल कार्बनिक रासायनिक पदार्थ, जो पादपों में वृद्धि तथा विकास को नियन्त्रित करते हैं, पादप हॉर्मोन या वृद्धि नियामक हॉर्मोन्स कहलाते हैं। सामान्यतया ये पादप की जड़ या तने के शीर्ष से स्रावित होते हैं और जैविक क्रियाओं का नियन्त्रण एवं नियमन करते हैं।
पादप हॉर्मोन्स को मुख्यतया दो वर्गों में बाँटते हैं
1. वृद्धि प्रवर्धक हॉर्मोन्स
ये हॉर्मोन्स वृद्धि की दर को बढ़ाते हैं, जो निम्नलिखित हैं
(i) ऑक्सिन इसके कार्य निम्नलिखित हैं
(a) शीर्ष प्रमुखता ऑक्सिन शीर्ष कलिका में उपस्थित होता है तथा उसको वृद्धि के लिए प्रेरित करता है। इसे शीर्ष प्रमुखता कहते हैं, क्योंकि इसके कारण पार्श्व कलिकाओं की वृद्धि नहीं हो पाती है, परन्तु शीर्ष कलिका को काट देने पर पार्श्व कक्षीय कलिकाओं में वृद्धि होने लगती है।
(b) कोशिका दीर्घीकरण प्ररोह (Shoot) में ऑक्सिन की अधिक सान्द्रता कोशिकाओं का दीर्घीकरण करती है।
(c) विलगन का रुकना ऑक्सिन की सान्द्रता कम हो जाने पर विलगन परत बन जाने से पत्तियाँ, फूल व फल गिरने लग जाते हैं।
(ii) जिबरेलिन के कार्य इसके कार्य निम्नलिखित हैं
(a) आनुवंशिक बौने पादपों का दीर्घीकरण ये हॉर्मोन्स आनुवंशिक बौने पादप के दीर्घीकरण में सहायक होते हैं; जैसे- मक्का एवं मटर। यह हॉर्मोन पर्वों (Internodes) की कोशिकाओं का दीर्घीकरण भी करता है, जिससे तने की लम्बाई बढ़ जाती है।
(b) प्रसुप्ति को दूर करना आलू के कन्द और पादपों पर लगी शीतकालीन कलियों की प्रसुप्ति (Dormancy) जिबरेलिन द्वारा दूर की जाती है।
(c) शीत उपचार का प्रतिस्थापन कुछ द्विवर्षीय (Biennial) पादपों को जिबरेलिन देने से इन पादपों को शीतकाल के प्राकृतिक तापमान की आवश्यकता नहीं रहती है और ये एक ही वर्ष में पुष्पन कर लेते हैं।
(iii) साइटोकाइनिन इसके कार्य निम्नलिखित हैं
(a) कोशिका विभाजन साइटोकाइनिन ऑक्सिन के साथ मिलकर कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है।
(b) कोशिका दीर्घीकरण एवं विभेदन यह कोशिकाओं में वृद्धि को प्रेरित करता है। कैलस (Callus) में कम साइटोकाइनिन व उच्च ऑक्सिन सान्द्रता से जड़ों का तथा उच्च साइटोकाइनिन व कम ऑक्सिन सान्द्रता से प्ररोह का निर्माण होता है।
(c) शीर्ष प्रभाविता का प्रतिकार साइटोकाइनिन के कारण शीर्षस्थ कलिका की उपस्थिति में भी पार्श्व कलिकाएँ वृद्धि कर पाती हैं।
2. वृद्धि निरोधक हॉर्मोन्स
ये हॉर्मोन्स पादप अथवा उनके अंगों में वृद्धि को रोकते हैं, जो निम्नलिखित हैं
(i) इथाइलीन इसके कार्य निम्नलिखित हैं
(a) फलों की वृद्धि एवं पकना इथाइलीन फल वृद्धि तथा उसके पकने को प्रेरित करता है, इस हॉर्मोन का उपयोग सेब, केला, आम, आदि को कृत्रिम रूप से पकाने में किया जाता है।
(b) अनुप्रस्थ वृद्धि यह हॉर्मोन पादपों की अनुलम्ब वृद्धि को संदमित करता है, किन्तु अनुप्रस्थ वृद्धि को उद्दीप्त (Stimulate) करता है।
(c) विलगन इथाइलीन पत्तियों, फूलों तथा फलों में विलगन क्षेत्र के निर्माण को उद्दीप्त करता है।
(ii) एब्सिसिक अम्ल इसके कार्य निम्नलिखित हैं
(a) जीर्णता एवं विलगन एब्सिसिक अम्ल पत्तियों में विलगन तथा जीर्णता उत्पन्न करता है अर्थात् इसके छिड़काव से पत्तियाँ शीघ्र झड़ जाती हैं।
(b) कलिका प्रसुप्ति एब्सिसिक अम्ल एक वृद्धि संदमक ( Inhibitor) के रूप में कार्य करता है तथा अनेक पादपों में कलिकाओं को प्रसुप्ति के लिए प्रेरित करता है।
(c) पुष्पन एब्सिसिक अम्ल की उपस्थिति में कुछ अल्प प्रदीप्तिकाली पादपों का दीर्घ प्रदीप्तिकाली अवस्थाओं में पुष्पन हो जाता है, जबकि दीर्घ प्रदीप्तिकाली पादपों में यह पुष्पन को संदमित करता है।
(d) बीज प्रसुप्ति एब्सिसिक अम्ल परिपक्व भ्रूण की प्रसुप्ति को नियन्त्रित करता है तथा अनुकूल परिस्थितियाँ न मिलने तक भ्रूण की वृद्धि को सुषुप्तावस्था में ही रोके रखता है।

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