UP Board Class 10 Science Chapter 7 जीव जनन कैसे करते है?
UP Board Class 10 Science Chapter 7 जीव जनन कैसे करते है?
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 7 जीव जनन कैसे करते है?
फास्ट ट्रैक रिवीज़न
प्रत्येक जीव कुछ निश्चित समय तक ही जीवित रहता है, जो उस जीव का जीवनकाल (Lifespan) कहलाता है।
अतः अपनी जाति या वंश की निरन्तरता को बनाए रखने के लिए अपने जैसे जीवों को उत्पन्न करने की क्रिया को जनन कहते हैं।
जनन का आधार
जनन के पश्चात् उत्पन्न सन्तति अपने जनक के समान होती है। इसका प्रमुख कारण आनुवंशिक पदार्थ डीऑक्सीराइबोस न्यूक्लिक अम्ल (DNA) है, जो सम्पूर्ण जीव की आनुवंशिक इकाई होती है।
जनन के प्रकार
यह दो प्रकार का होता है
1. अलैंगिक जनन
2. लैंगिक जनन
1. अलैंगिक जनन (एकल जीवों में प्रजनन की विधि)
इस प्रकार के जनन में विशेष जनन कोशिकाओं के बिना ही, एक जनक द्वारा नई सन्तति का निर्माण होता है। इसके फलस्वरूप, जिस सन्तति का जन्म होता है, वह आनुवंशिक रूप से पूरी तरह अपने जनक के समान (क्लोन) होती है।
इसके अन्तर्गत निम्न विधियाँ आती हैं
(i) विखण्डन इस विधि में परिपक्व जीव विभाजित होकर दो या अधिक कोशिकाओं में विभक्त हो जाता है। इसमें सर्वप्रथम केन्द्रक विभाजित होता है तथा बाद में कोशिकाद्रव्य विभाजित होता है। इस विधि द्वारा प्रायः एककोशिकीय जन्तु प्रजनन करते हैं।
यह दो प्रकार का होता हैं
(a) द्विविखण्डन जैसे- अमीबा, पैरामीशियम, आदि
(b) बहुखण्डन जैसे- प्लाज्मोडियम (मलेरिया परजीवी) आदि।
(ii) खण्डन इस विधि में बहुकोशिकीय जीव पूर्ण वृद्धि करके दो या अधिक खण्डों में टूट जाते हैं। इसके पश्चात् प्रत्येक खण्ड वृद्धि करके पूर्ण जीव बना लेता है; उदाहरण – स्पाइरोगायरा, राइजोपस, यूलोथ्रिक्स, हाइड्रा आदि।
(iii) पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) किसी जन्तु के किसी भी कटे हुए भाग से नए जन्तु की उत्पत्ति को पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) कहते हैं; उदाहरण-हाइड्रा, प्लेनेरिया, आदि।
(iv) मुकुलन इस प्रक्रिया में एक छोटा-सा उभार बाहर की ओर निकलने लगता है, जिसे मुकुल (Bud) कहते हैं। यह मुकुल धीरे-धीरे बड़ा हो जाता है और मातृकोशिका से अलग होकर स्वतन्त्र पादप बना लेता है; उदाहरण – यीस्ट, हाइड्रा आदि।
(v) कायिक प्रवर्धन पादप के किसी भी कायिक भाग से सम्पूर्ण पादप प्राप्त करने की प्रक्रिया को कायिक प्रवर्धन कहते हैं। यह मुख्य रूप से दो प्रकार का होता हैं
(a) प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन (b) कृत्रिम कायिक प्रवर्धन
(vi) बीजाणु द्वारा इसमें जनक पादप कवक अपने बीजाणुधानी में सैकड़ों प्रजनन इकाइयाँ पैदा करता है, जिन्हें ‘बीजाणु’ कहते हैं। जब यह बीजाणुधानी फटती है, तो ये बीजाणु वायु, भूमि, भोजन या मृदा पर बिखर जाते हैं और नए संततियों को जन्म देते हैं; उदाहरण- राइजोपस, म्यूकर, आदि ।
2. लैंगिक जनन
प्रजनन की वह क्रिया जिसमें विशेष जनन कोशिकाएँ अर्थात् दो युग्मकों के मिलने से बनी रचना युग्मनज द्वारा नए जीव की उत्पत्ति होती है। युग्मकों के संयोग को संयुग्मन या निषेचन कहते हैं। युग्मकों का निर्माण एक ही जनक या दो अलग-अलग जनकों (नर एवं मादा) से हो सकता है।
पुष्पीय पादपों में लैंगिक जनन
पादपों में पुष्प जनन हेतु बनी एक विशिष्ट संरचना होती है। पुष्प एक संघनित रूपान्तरित तना होता है। पुष्प वृन्त के शिखर पर पुष्पासन होता है। पुष्पासन पर चार पुष्प चक्र लगे होते हैं। इन्हें परिधि से केन्द्र की ओर क्रमशः बाह्य दलपुंज, दलपुंज, पुमंग तथा जायांग कहते हैं।
परागण
किसी पुष्प के पराग कणों का उसी पुष्प या उसी जाति के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचने की क्रिया को ‘परागण’ कहते हैं। परागण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है
(i) स्व-परागण एक पुष्प के पराग कण के उसी पुष्प के वर्तिका पर या उसी पादप के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर या कायिक जनन द्वारा तैयार किए गए, उसी जाति के किसी अन्य पादप के वर्तिका पर पहुँचने को ‘स्व- परागण’ कहते हैं।
(ii) पर परागण जब एक पुष्प के पराग कण लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न उसी जाति के अन्य पादप के वर्तिका पर विभिन्न माध्यमों से पहुँचते हैं, तो इसे पर परागण कहते हैं। परपरागण कीटों द्वारा, वायु द्वारा, जल द्वारा और जन्तुओं के माध्यम से होता है।
पादपों में निषेचन क्रिया
पुष्पी पादपों में बीजाण्ड के भ्रूणकोष में निषेचन क्रिया होती है। पराग कण का जनन केन्द्रक दो नर युग्मक बनाता है। पराग कण से निकली पराग नलिका बीजाण्ड में प्रायः बीजाण्डद्वार से प्रवेश करके दोनों नर युग्मकों को मुक्त कर देती है।
एक नर युग्मक अण्डकोशिका से संलयित होकर द्विगुणित (2n) युग्मनज बनाता है। यह सत्य निषेचन कहलाता है। दूसरा नर युग्मक द्विगुणित द्वितीयक केन्द्रक से मिलकर त्रिगुणित (3n) प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक बनाता है। यह वृद्धि करके पोषक ऊतक भ्रूणपोष का निर्माण करता है। इस प्रक्रिया को त्रिक संलयन (Triple fusion) कहते हैं। यहाँ निषेचन की क्रिया दो बार (सत्य निषेचन व त्रिक संलयन) होती हैं। अतः इसे द्विनिषेचन (Double fertilisation) भी कहते हैं।
निषेचन एवं पश्च निषेचन परिवर्तन
निषेचन पश्चात् अण्डाशय, फल में तथा बीजाण्ड, बीज में परिवर्तित हो जाता है। बीज के अंकुरण से नए पादप का निर्माण होता है।
मानव में लैंगिक जनन
किसी भी प्राणी के जनन करने योग्य हो जाने को यौवनारम्भ (Adolescent) कहते हैं। इसकी आयु पुरुषों में 15-18 वर्ष तक तथा स्त्रियों में 11-14 वर्ष तक होती है। इस अवस्था में स्त्री एवं पुरुषों के लक्षणों में कुछ महत्त्वपूर्ण बदलाव आते हैं, जोकि गौण लैंगिक लक्षण कहलाते हैं; जैसे- पुरुषों में भारी स्वर, शुक्राणुओं का निर्माण, हॉर्मोन स्रावण एवं स्त्रियों में स्तन विकास, मासिक धर्म, आदि।
नर जनन तन्त्र
इसके अन्तर्गत निम्न जननांग आते हैं
(i) वृषण पुरुषों में एक जोड़ी वृषण, उदरगुहा से बाहर शिश्न के पास वृषण कोष (Scrotal sacs or scrotum) में सुरक्षित पाए जाते हैं। वृषणों में कुण्डलित शुक्रनलिकाएँ उपस्थित होती हैं, जिनमें शुक्राणुजनन होता है।
(ii) अधिवृषण वृषणों से चिपकी नलिकाकार, लम्बी संरचना होती है। इनमें शुक्राणु परिपक्व होते हैं।
(iii) शुक्रवाहिनियाँ शुक्राणु इनके द्वारा उदरगुहा में स्थित शुक्राशय में पहुँचते हैं।
(iv) शुक्राशय यह थैलीनुमा संरचना होती है। इसका क्षारीय पोषक तरल का स्रावण होता है, जिसमें शुक्राणु गति करते हैं।
(v) मूत्रमार्ग शुक्राशय स्खलन नलिका की सहायता से मूत्रमार्ग में खुलता है, जो शिश्न के शीर्ष सिरे पर मूत्र जनन छिद्र द्वारा बाहर खुलता है। यह शुक्राणु तथा मूत्र के बाहर निकलने का संयुक्त मार्ग होता है।
(vi) शिश्न यह बेलनाकार पेशीय मैथुनांग (Copulatory organ) होता है, जो मैथुन क्रिया में सहायक होता है।
(vii) सहायक ग्रन्थियाँ प्रोस्टेट (Prostate), काउपर (Cowper), पेरीनियल (Perineal) ग्रन्थि नर जनन तन्त्र की सहायक ग्रन्थियाँ होती हैं। ये वीर्य निर्माण, शुक्राणुओं को पोषण देने तथा उनको जीवित रखने में सहायता करती हैं।
मादा जनन तन्त्र
इसके अन्तर्गत निम्न जननांग आते हैं
(i) अण्डाशय इनमें अण्ड कोशिका का निर्माण होता है। ये मादा हॉर्मोन प्रोजेस्टेरॉन तथा एस्ट्रोजन का भी स्रावण करते हैं।
(ii) अण्डवाहिनियाँ अथवा फैलोपियन नलिका, अण्डकोशिकाओं को अण्डाशय से गर्भाशय तक पहुँचाती हैं।
(ii) गर्भाशय यह दोनों अण्डवाहिनियों के खुलने का स्थान होता है। भ्रूण का परिवर्धन एवं भरण-पोषण यहीं होता है।
(iv) योनि नलिका समान, मूत्राशय तथा मलाशय के मध्य स्थित होती है। यह मैथुनांग है एवं रजोधर्म के स्रावण का मार्ग भी है।
(v) सहायक ग्रन्थियाँ बार्थोलिन एवं पेरीनियल सहायक ग्रन्थियाँ होती हैं।
निषेचन एवं पश्च- निषेचन परिवर्तन
नर तथा मादा युग्मक अगुणित होते हैं। मैथुन के समय शुक्राणु योनि मार्ग में मुक्त होते हैं। यहाँ से वे ऊपर की ओर गति करके अण्ड वाहिका तक पहुँच जाते हैं, जहाँ एक शुक्राणु अण्ड कोशिका से मिल जाता हैं। इस शुक्राणु एवं अण्ड कोशिका के संयोजन को निषेचन कहते हैं, जिसके फलस्वरूप द्विगुणित युग्मनज का निर्माण होता है।
निषेचन के एक सप्ताह पश्चात् युग्मनज (Zygote) गर्भाशय में स्थापित हो जाता है। यह प्रक्रिया गर्भाधान (Implantation) कहलाती है। भ्रूण (Embryo) को माँ के रुधिर से ही पोषण मिलता है, इसके लिए एक विशेष प्रकार की संरचना होती है, जिसे जरायु या अपरा (Placenta) कहते हैं। युग्मनज गर्भ में लगभग 9 माह के समय में विकसित हो जाता है। गर्भाशय की पेशियों के लयबद्ध संकुचन से शिशु का जन्म होता है।
मासिक चक्र
अण्डाशय प्रत्येक माह एक अण्डे का मोचन करता है। अतः निषेचन अण्ड की प्राप्ति हेतु गर्भाशय प्रतिमाह तैयारी करता है परन्तु निषेचन ना होने की अवस्था में गर्भाशय की अन्तः परत धीरे-धीरे टूट कर योनि मार्ग से रुधिर एवं म्यूकस के रूप में निष्कासित होती है। इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं। इस सम्पूर्ण चक्र में लगभग 28-30 दिन का समय लगता है।
जनन स्वास्थ्य
“जनन स्वास्थ्य का तात्पर्य, जनन के समस्त स्वस्थ विषयों के योग से है, जिसमें शारीरिक, भावनात्मक, व्यावहारिक तथा सामाजिक पहलू भी सम्मिलित हैं। “
लिंगानुपात
यह जनसंख्या में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या का अनुपात होता है।
जनसंख्या आकार
एक समष्टि या जनसंख्या में कुल व्यक्तियों की संख्या जनसंख्या का आकार कहलाती है।
जन्म दर नियन्त्रण
परिवार कल्याण हेतु बच्चों की संख्या सीमित कर, परिवार को नियोजित करने की प्रक्रिया को परिवार नियोजन कहते हैं। नीचे दी गई अस्थायी और स्थायी विधियों द्वारा आसानी से परिवार को नियोजित किया जा सकता है
(a) लूप अथवा कॉपर-टी
(b) निरोध या कण्डोम
(c) गर्भ निरोधक गोलियाँ
(d) महिला का ऑपरेशन / नसबन्दी ( Tubectomy)
(e) पुरुष का ऑपरेशन / नसबन्दी (Vasectomy)
यौन संचारित रोग
वे रोग, जो सम्भोग के समय यौन सम्बन्धों द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संधारित होते हैं, यौन संचारित रोग कहलाते हैं, इन्हें रजित रोग (Veneral Diseases or VD ) भी कहते हैं।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. अलैंगिक जनन मुकुलन द्वारा होता है।
(a) अमीबा में
(b) यीस्ट में
(c) प्लाज्मोडियम में
(d) लीशमानिया में
उत्तर (b) यीस्ट में
प्रश्न 2. मुकुलन द्वारा प्रजनन होता है
(a) हाइड्रा में
(b) केंचुआ में
(c) तिलचट्टा में
(d) कबूतर में
उत्तर (a) हाइड्रा में
प्रश्न 3. हाइड्रा में प्रजनन होता है
(a) मुकुलन द्वारा
(b) विखण्डन द्वारा
(c) खण्डन द्वारा
(d) कायिक प्रवर्धन द्वारा
उत्तर (a) मुकुलन द्वारा
प्रश्न 4. पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) द्वारा प्रजनन होता है
अथवा पुनर्जनन का उदाहरण है
(a) हाइड्रा में
(b) प्लेनेरिया में
(c) ब्रायोफिल्लम में
(d) कबतूर में
उत्तर (a, b) हाइड्रा और प्लेनेरिया में
प्रश्न 5. पौधों में कायिक प्रवर्धन के लिए कौन-सा भाग अधिक अनुकूल है ?
(a) तना
(b) पत्ती
(c) जड़
(d) प्रकलिका
उत्तर (a) तना
प्रश्न 6. पत्तियों पर कलियाँ विकसित होती हैं
(a) पोदीना में
(b) आलू में
(c) ब्रायोफिल्लम में
(d) इन सभी पर
उत्तर (c) ब्रायोफिल्लम में
प्रश्न 7. पत्तियों द्वारा कायिक प्रजनन होता है
(a) ब्रायोफिल्लम (अजूबा ) में
(b) आलू में
(c) चने में
(d) गुलाब में
उत्तर (a) ब्रायोफिल्लम (अजूबा) में
प्रश्न 8. जनन की अलैंगिक विधि से उत्पन्न सन्तति में परस्पर अधिक समानता होती है, क्योंकि
(i) अलैंगिक जनन में केवल एक जनक भाग लेता है।
(ii) अलैंगिक जनन में युग्मक शामिल नहीं होते हैं।
(iii) अलैंगिक जनन लैंगिक जनन से पहले होता है।
(iv) अलैंगिक जनन लैंगिक जनन के बाद होता है।
(a) (i) और (ii)
(b) (i) और (iii)
(c) (ii) और (iv)
(d) (iii) और (iv)
उत्तर (a) (i) और (ii) सही हैं।
प्रश्न 9. निम्न में से किस पौधे में पुष्प एकलिंगी होते हैं?
अथवा निम्नलिखित पौधों में से किसका पुष्प एकलिंगी होता है?
अथवा एकलिंगी फूल का उदाहरण है
अथवा एकलिंगी पुष्प है
(a) पपीता
(b) गुड़हल
(c) सरसों
(d) मटर
उत्तर (a) पपीता
प्रश्न 10. एकलिंगी फूलों के लिए निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं?
I. ये पुंकेसर और स्त्रीकेसर दोनों को प्राप्त करते हैं।
II. ये या तो पुंकेसर को या स्त्रीकेसर को प्राप्त करते हैं।
III. ये पर-परागण को प्रदर्शित करते हैं।
IV. एकलिंगी फूल जो केवल पुंकेसर को प्राप्त करते हैं, ये फल उत्पन्न नहीं करते हैं।
(a) I और IV
(b) II, III और IV
(c) III और IV
(d) I, III और IV
उत्तर (b) II, III और IV सही हैं।
प्रश्न 11. निम्न में से कौन-सा अंग पौधों में नर जननांग का प्रतिनिधित्व करता है?
(a) जायांग
(b) पुंकेसर
(c) वर्तिका
(d) अण्डाशय
उत्तर (b) पुंकेसर
प्रश्न 12. परागकोष में होते हैं
अथवा निम्नलिखित में से कौन-सा परागकोष के अन्दर बनता है?
(a) बाह्यदल
(b) अण्डाशय
(c) बीजाण्ड
(d) पराग कण
उत्तर (d) पराग कण
प्रश्न 13. पुष्प का जनन अंग है
(a) बाह्यदलपुंज (केलिक्स)
(b) दलपुंज
(c) जायांग
(d) तना
उत्तर (c) जायांग
प्रश्न 14. एक पुष्प के स्त्रीकेसर के मध्य भाग को कहते हैं।
(a) वर्तिका
(b) वर्तिका
(c) अण्डाशय
(d) अण्ड (बीजाण्ड)
उत्तर (b) वर्तिका
प्रश्न 15. पराग कणों का परागकोष से वर्तिकाग्र तक स्थानान्तरण कहलाता है
(a) परागण
(b) अण्डोत्सर्ग
(c) निषेचन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (a) परागण
प्रश्न 16. कीट परागण होता है
(a) मक्का में
(b) वैलिस्नेरिया में
(c) साल्विया में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (c) साल्विया में
प्रश्न 17. निषेचन के दौरान, पराग कण से निकलने वाली पराग नलिका सामान्यतया किसके द्वारा बीजाण्ड में प्रवेश करती है?
(a) अध्यावरण
(b) बीजाण्डद्वार
(c) निभागी
(d) अण्डद्वार
उत्तर (b) बीजाण्डद्वार
प्रश्न 18. पराग कण का जनन केन्द्रक नर युग्मक बनाता है।
(a) 4
(b) 2
(c) 3
(d) 1
उत्तर (b) 2
प्रश्न 19. पुष्पीय पादपों में निषेचन होता है
(a) बीजाण्ड में
(b) अण्डाशय में
(c) पराग नलिका में
(d) भ्रूणकोष में
उत्तर (d) भ्रूणकोष में
प्रश्न 20. द्विनिषेचन पाया जाता है।
अथवा द्विनिषेचन विशेष लक्षण है
(a) सभी जीवों में
(b) सभी पादपों में
(c) आवृतबीजी पादपों में
(d) केवल जलीय पादपों में
उत्तर (c) आवृतबीजी पादपों में
प्रश्न 21. जाइगोट में गुणसूत्रों की संख्या होती है
(a) 4X
(b) 3X
(c) 2X
(d) X
उत्तर (c) 2X
प्रश्न 22. द्विनिषेचन क्रिया में त्रिक संलयन के पश्चात् बनने वाले ऊतक का नाम है
(a) भ्रूणपोष
(b) भ्रूण
(c) मूलांकुर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (a) भ्रूणपोष
प्रश्न 23. निम्नलिखित चित्र में भाग A, B तथा C किस क्रम में होते हैं?

(a) बीजपत्र, प्रांकुर और मूलांकुर
(b) प्रांकुर, मूलांकुर और बीजपत्र
(c) प्रांकुर, बीजपत्र और मूलांकुर
(d) मूलांकुर, बीजपत्र और प्रांकुर
उत्तर (c) प्रांकुर, बीजपत्र और मूलांकुर
प्रश्न 24. निषेचन के बाद पुष्प का कौन-सा भाग फल में बदल जाता है?
(a) पुंकेसर
(b) वर्तिका
(c) अण्डाशय
(d) बीजाण्ड
उत्तर (c) अण्डाशय
प्रश्न 25. शुक्राणुओं का निर्माण होता है।
(a) शुक्रवाहिनियों में
(b) अण्डाशय में
(c) वृषण में
(d) यकृत में
उत्तर (c) वृषण में
प्रश्न 26. निम्न में से कौन मानव में मादा जनन तन्त्र का भाग नहीं है?
(a) अण्डाशय
(b) गर्भाशय
(c) शुक्रवाहिका
(d) डिम्बवाहिनी
उत्तर (c) शुक्रवाहिका
प्रश्न 27. मनुष्य में भ्रूण का परिवर्धन होता है
(a) योनि में
(b) गर्भाशय में
(c) अण्डाशय में
(d) फैलोपियन नलिका में
उत्तर (b) गर्भाशय में
प्रश्न 28. मानव में भ्रूण को पोषण मिलता है।
(a) अण्डाशय से
(b) प्लेसेन्टा से
(c) वृक्क से
(d) फैलोपियन ट्यूब से
उत्तर (b) प्लेसेन्टा से
प्रश्न 29. मादा जनन तन्त्र के किस भाग में कॉपर-टी स्थापित किया जाता है?
(a) अण्डाशय
(b) अण्डवाहिनी
(c) गर्भाशय
(d) योनि
उत्तर (c) गर्भाशय
प्रश्न 30. मादा जनन तन्त्र के किस भाग में लूप स्थापित किया जाता है?
(a) अण्डाशय में
(b) अण्डवाहिनी में
(c) गर्भाशय में
(d) योनि में
उत्तर (c) गर्भाशय में
प्रश्न 31. कथन (A) अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न सन्तति क्लोन कहलाता है।
कारण (R) अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न सन्तति आनुवंशिकी व आकारिकी रूप से जनक के समरूप होती है।
(a) A और R दोनों सत्य हैं तथा R द्वारा A की सत्य व्याख्या हो रही है।
(b) A और R दोनों सत्य हैं परन्तु R द्वारा A की सत्य व्याख्या नहीं हो रही है।
(c) A सत्य है, परन्तु R असत्य है।
(d) A असत्य है, परन्तु R सत्य है।
उत्तर (a) अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न सन्तति आनुवंशिकी व आकारिकी रूप से जनक समरूप होती है जोकि क्लोन या पूर्वजक कहलाती है। अतः कथन (A) व कारण (R) सत्य हैं तथा कारण (R), कथन (A) का सही स्पष्टीकरण है।
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न-I
प्रश्न 1. DNA प्रतिकृति का प्रजनन में क्या महत्त्व है ?
उत्तर DNA या डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल आनुवंशिक सामग्री होती है, जो सभी जीवों की कोशिकाओं में उपस्थित होती है। DNA आनुवंशिक सूचना को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ले जाता है और यह जनन द्वारा अपनी तरह के जीवों के निर्माण में मदद करता है। एकल जनक या माता-पिता से आनुवंशिक गुण प्राप्त करने के लिए प्रतिलिपि बनाना आवश्यक है। DNA प्रतिलिपि में कोई भी परिवर्तन नई विभिन्नताएँ उत्पन्न करता है।
DNA प्रतिकृति में एक DNA अणु से दो अणु बनते हैं। इसके बाद कोशिका विभाजन द्वारा DNA की प्रतिकृतियाँ पृथक् हो जाती हैं। जिसके परिणामस्वरूप एक कोशिका से दो कोशिकाएँ बनती हैं एवं दोनों में आनुवंशिक लक्षणों का वहन होता है।
प्रश्न 2. जीवों में विभिन्नता जाति के लिए तो लाभदायक है, परन्तु व्यक्ति के लिए आवश्यक नहीं हैं, क्यों?
उत्तर जीवों में विभिन्नता जाति के लिए तो लाभदायक है, परन्तु व्यक्ति के लिए आवश्यक नहीं है, क्योंकि एक व्यक्ति के जीवन काल मे प्राप्त / उत्पन्न विभिन्नताएँ तुरन्त व्यक्त हो सकती है एवं नहीं भी हो सकती हैं। ये विभिन्नताएँ लाभप्रद या हानिकारक हो सकती हैं तथा प्रायः एकल जीव के सीमित जीवन काल में महत्त्वहीन होती हैं। इसके विपरीत जाति में विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से एवं लाभप्रद होने की स्थिति में पीढ़ी-दर-पीढ़ी इनके वंशागत होने पर जाति के सदस्यों में नई अनुकूलताओं एवं गुणों का विकास होता है, जिससे लम्बे समय बाद नई जाति की उत्पत्ति होती है।
प्रश्न 3. जनन किसी जाति की समष्टि के स्थायित्व में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर पृथ्वी पर सभी जीवों का जीवनकाल सीमित होता है एवं कुछ समय बाद इनकी मृत्यु हो जाती है, अतः सभी जीव अपनी जाति का अस्तित्व बनाए रखने के लिए जनन द्वारा अपने समान संतति उत्पन्न करते हैं। अपने आधारभूत स्तर पर जनन जीव के अभिकल्प का ब्लूप्रिंट तैयार करते हैं।
कोशिका के केंद्रक में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के DNA अणुओं में आनुवंशिक गुणों का संदेश होता है, जो जनक से संतति पीढ़ी में जाते हैं। अतः इस संदेश के भिन्न होने से इसमें बनने वाली प्रोटीन भी भिन्न होती है, जिसके कारण जीवों में शारीरिक अभिकल्प में भी विविधता होती है। यही विविधता नई जाति की समष्टि के स्थायित्व में सहायक है।
प्रश्न 4. एककोशिकीय एवं बहुकोशिकीय जीवों की जनन पद्धति में क्या अन्तर है?
उत्तर एककोशिकीय जीवों की अपेक्षा बहुकोशिकीय जीवों को जनन के लिए अपेक्षाकृत अधिक जटिल विधि की आवश्यकता होती है, क्योंकि एककोशिकीय जीवों में कोशिका विभाजन द्वारा ही नई संतति का निर्माण हो जाता है, अत: इनमें प्रायः अलैंगिक जनन पाया जाता है; जैसे- अमीबा (द्विविभाजन), यीस्ट (मुकुलन ) । बहुकोशिकीय जीवों की कोशिकाओं में श्रम विभाजन के कारण जनन अंगों एवं तन्त्रों का निर्माण होता है, जिसमें विशेष जनन कोशिकाएँ निर्मित होती हैं। इनमें प्राय: लैंगिक जनन पाया जाता है।
प्रश्न 5. द्विखण्डन बहुखण्डन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर द्विखण्डन बहुखण्डन से निम्न प्रकार से भिन्न हैं
| द्विखण्डन | बहुखण्डन |
| इसमें अनेक जीवाणु तथा प्रोटोजोआ; जैसे- अमीबा, आदि कोशिका विभाजन द्वारा दो बराबर भागों में बँट जाता है, जिस कारण इसे द्विखण्डन कहते हैं। | इसमें एककोशिकीय जीव; जैसे- प्लाज्मोडियम, आदि में जीव एक साथ अनेक संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाता है, जिस कारण इसे बहुखण्डन कहते हैं। |
| यह अनुकूल परिस्थितियों में होता है। | यह प्रतिकूल परिस्थितियों में होता है। |
प्रश्न 6. जीवों के जनन की विखण्डन एवं खण्डन विधि को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर (i) विखण्डन इस विधि में कोशिका दो भागों में विभाजित होकर नई सन्तति कोशिकाओं का निर्माण करती हैं; उदाहरण – जीवाणु, यूग्लीना ।
(ii) खण्डन इसमें सूकाय के कायिक सूत्र या तन्तु टूट जाते हैं तथा इन टूटे सूत्रों का प्रत्येक भाग वृद्धि करके नए जीव का निर्माण कर लेता है; उदाहरण – स्पाइरोगायरा (शैवाल), कवक, आदि ।
प्रश्न 7. कुछ पादपों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर कुछ पादप; जैसे- गन्ना, गुलाब या अंगूर, आदि को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि इसके द्वारा उगाए गए पादपों में बीज की आवश्यकता नहीं होती है और बीज द्वारा उगाए गए पादपों की अपेक्षा पुष्प व फल कम समय में आ जाते हैं तथा यह पद्धति उन पादपों; जैसे – केला, संतरा एवं चमेली, आदि को उगाने के लिए उपयोगी है, जो बीज उत्पन्न करने की क्षमता खो चुके होते हैं। इस प्रकार उत्पन्न सभी पादप आनुवंशिक रूप से जनक पादप के समान ही होते हैं।
प्रश्न 8. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के क्या लाभ हैं?
उत्तर अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न सन्तति जनक का क्लोन होती है अर्थात् इसमें विभिन्नताएँ नहीं पाई जाती है। इसमें युग्मकजनन व निषेचन का अभाव . होता है। इसके विपरीत लैंगिक प्रजनन द्वारा युग्मकों के संलयन से विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं, जो जाति के अस्तित्व के लिए जरुरी है। ये विभिन्नताएँ जैव-विकास का मुख्य आधार हैं। यह जनन सामान्यतया निम्न श्रेणी के जन्तुओं में अनुपस्थित होता है, किन्तु उच्च श्रेणी के जन्तुओं में उपस्थित होता है।
प्रश्न 9. पुमंग एवं जायांग में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
अथवा पुमंग व जायांग में अन्तर बताइए। दोनों के कार्य भी समझाइए |
उत्तर पुमंग एवं जायांग में अन्तर निम्न प्रकार से हैं
| पुमंग | जायांग |
| यह नर जनन अंग है व इसकी प्रत्येक इकाई को पुंकेसर कहते हैं। | यह मादा जनन अंग है व इसकी प्रत्येक इकाई को अण्डप कहते हैं। |
| पुंकेसर का अगला फूला हुआ भाग परागकोष कहलाता है, जिसमें नर युग्मक या पराग कण बनते हैं। | अण्डप का निचला फूला हुआ भाग अण्डाशय कहलाता है, जिसमें बीजाण्ड उपस्थित होता है। बीजाण्ड के भ्रूणकोष में मादा युग्मक या अण्ड बनता है। |
प्रश्न 10. परागकोष का एक नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर परागकोष के अनुदैर्ध्य काट का नामांकित चित्र निम्न है

प्रश्न 11. पराग कण का नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर पराग कण का नामांकित चित्र निम्न है

प्रश्न 12. तम्बाकू के पौधे में नर युग्मक में 24 गुणसूत्र होते हैं। मादा युग्मक में गुणसूत्रों की संख्या कितनी होगी? युग्मनज में गुणसूत्रों की संख्या कितनी होगी?
उत्तर तम्बाकू के नर तथा मादा युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या 24 और युग्मनज में गुणसूत्रों की संख्या 48 होगी, क्योंकि लैंगिक जनन करने वाले जीवों में युग्मकजनन के दौरान अर्द्धसूत्री विभाजन के कारण युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या आधी (अगुणित) रह जाती है, परन्तु निषेचन के समय नर तथा मादा युग्मकों के संलयन के फलस्वरूप सन्तति में गुणसूत्रों की संख्या जनकों के समान ( द्विगुणित ) हो जाती है।
प्रश्न 13. भ्रूणपोष केन्द्रक में गुणसूत्रों की संख्या कितनी होती है ?
उत्तर भ्रूणपोष केन्द्रक त्रिगुणित (3n) होता है। पुष्पीय पादपों में द्विनिषेचन के दौरान त्रिसमेकन से बना त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणकोष केन्द्रक बाद में भ्रूणपोष का निर्माण करता है, जो भ्रूण के परिवर्धन के समय भ्रूण के पोषण के काम आता है। भ्रूणपोष के कारण भ्रूण का उचित परिवर्धन होता है तथा अच्छे व स्वस्थ बीज बनते हैं।
प्रश्न 14. पुष्प का कौन-सा भाग फल एवं बीज उत्पन्न करता है?
उत्तर निषेचन के पश्चात् पुष्प का अण्डाशय फल में बदल जाता है व बीजाण्ड. द्वारा बीज का निर्माण होता है।
प्रश्न 15. मानव के वृषण के कार्य का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर मानव में वृषण एक नर जननांग है। ये उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में स्थित होता है, जिसका मुख्य कार्य शुक्राणुओं का उत्पादन करना है। यह नर लिंग हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन का भी स्रावण करता है।
प्रश्न 16. ऋतुस्राव क्यों होता है?
उत्तर स्त्रियों में प्रत्येक माह अण्डोत्सर्ग के बाद यदि निषेचन नहीं होता है, तो . गर्भाशय की भीतरी परत, जो भ्रूण के रोपण हेतु मोटी और स्पंजी हो जाती है, धीरे-धीरे टूटकर योनि मार्ग से रुधिर एवं म्यूकस के रूप में निष्कासित होती है। यह ऋतुस्राव या रजोधर्म कहलाता है। ऋतुस्राव की अवधि 2-8 दिनों की होती है।
प्रश्न 17. माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है ?
उत्तर माँ का शरीर गर्भधारण के बाद भ्रूण के विकास के लिए विशेष रूप से अनुकूलित होता है। गर्भाशय प्रत्येक माह अण्डोत्सर्ग होने के बाद निषेचन होने की स्थिति में भ्रूण को ग्रहण करने एवं उसके पोषण हेतु तैयारी करता है। इस स्थिति में इसकी आन्तरिक परत मोटी और स्पंजी होती जाती है तथा भ्रूण के पोषण हेतु रुधिर प्रवाह भी बढ़ जाता है। रोपण के पश्चात् भ्रूण को माँ के रुधिर से ही पोषक पदार्थ तथा ऑक्सीजन मिलती है। इसके लिए एक विशेष संरचना अपरा या प्लेसेन्टा विकसित होती है।
प्रश्न 18. यौन संचारित रोग क्या है? किन्हीं दो यौन संचारित रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर यौन संचारित रोग शरीर के तरल द्वारा मैथुन के समय यौन सम्बन्धों द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रेषित या संचारित होते हैं। एक से अधिक व्यक्तियों के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित करने पर इन रोगों के फैलने की सम्भावना अधिक होती है। इनमें जीवाणु जनित रोग जैसे गोनेरिया तथा सिफलिस एवं विषाणु संक्रमण जैसे कि मस्सा (Wart) तथा AIDS सम्मिलित हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न-II
प्रश्न 1. विखण्डन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर विखण्डन (Fission ) इस विधि में अनुकूल परिस्थिति में प्रायः एककोशिकीय जीव विभाजित होकर दो संतति कोशिकाओं में विभक्त हो जाता है, यह क्रिया द्विविखण्डन (Binary fission) कहलाती है। इसमें सर्वप्रथम केन्द्रक विभाजित होता है तथा बाद में कोशिकाद्रव्य विभाजित होता है। कभी-कभी केन्द्रक अनेक बार विभाजित होकर अनेक खण्डों में बँट जाता है, यह क्रिया बहुविखण्डन (Multiple fission) कहलाती है। यह प्रायः प्रतिकूल परिस्थितियों में होता है; उदाहरण – जीवाणु, यूग्लीना, अमीबा ।

प्रश्न 2. पुनरुद्भवन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
अथवा पुनरुद्भवन व मुकुलन का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) व मुकुलन में अन्तर कीजिए ।
अथवा मुकुलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा पुनरुद्भवन से क्या तात्पर्य है? पुनरूद्भवन को एक उदाहरण से स्पष्ट कीजिए ।
अथवा पुनरुद्भवन को उदाहरण देकर समझाइए |
उत्तर पुनरुद्भवन (Regeneration) किसी जन्तु के किसी भी भाग को काटकर सामान्यतया नए जन्तु की उत्पत्ति होना पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) कहलाता उदाहरण – हाइड्रा तथा प्लेनेरिया, आदि। ऐसे जीवों को यदि अनेक टुकड़ों में काट दिया जाए, तो प्रत्येक भाग वृद्धि एवं विभाजन द्वारा विकसित होकर पूर्ण जीव का निर्माण करता है।
जटिल संरचना वाले जीव पुनरुद्भवन द्वारा नई सन्तति उत्पन्न नहीं कर सकते हैं, क्योंकि इन जीवों की कोशिकाएँ विभिन्न कार्यों हेतु विशिष्टकृत हो जाती है और उनमें विभाजन की क्षमता नहीं रहती है।

मुकुलन (Budding) इस प्रक्रिया में जनक की जनन कोशिका पर एक उभार बनता है, जो मुकुल (Bud) कहलाता है। यह मुकुल धीरे-धीरे बड़ा हो जाता है और मातृ कोशिका से अलग होकर स्वतन्त्र जीव बना लेता है; उदाहरण – यीस्ट, हाइड्रा। यीस्ट में ये मुकुल मातृ कोशिका से अलग हुए बिना ही नए मुकुल का निर्माण करते हैं, जिससे एक ही यीस्ट कोशिका पर मुकुलों या कलिकाओं की श्रृंखला बन जाती है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित में प्रत्येक का एक उदाहरण लिखिए।
(i) विखण्डन
(ii) खण्डन
(iii) पुनरुद्भवन (पुनर्जनन)
(iv) मुकुलन ।
उत्तर (i) विखण्डन- अमीबा
(ii) खण्डन – स्पाइरोगायरा
(iii) पुनरुद्भवन – प्लेनेरिया
(iv) मुकुलन – हाइड्रा
प्रश्न 4. बीजरहित पादपों में जनन क्रिया किस विधि द्वारा होती है ? उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर निम्न श्रेणी के अनेक पादप ऐसे होते हैं, जिनमें बीजों का निर्माण नहीं होता है। इस प्रकार के बीजरहित पादपों में प्रायः अलैंगिक जनन पाया जाता है। बीजरहित पादपों में प्रायः अलैंगिक जनन की विधियाँ निम्न प्रकार होती हैं
(i) खण्डन इसमें सूकाय के कायिक सूत्र या तन्तु टूट जाते हैं तथा इन टूटे सूत्रों का प्रत्येक भाग वृद्धि करके नए पादप का निर्माण कर लेता है; उदाहरण – स्पाइरोगायरा आदि।
(ii) बीजाणुओं द्वारा निम्न श्रेणी के पादपों में विभिन्न प्रकार के बीजाणुओं (चलबीजाणु, अचलबीजाणु, हिप्नोस्पोर्स, आदि) का निर्माण होता है, जो अनुकूल परिस्थितियों में अंकुरित होकर नए पादप का निर्माण करते हैं; उदाहरण – शैवाल, ब्रायोफाइटा, आदि ।
प्रश्न 5. कायिक प्रवर्धन किसे कहते हैं? इसकी विधियों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
अथवा पादपों में कायिक प्रजनन की दो विधियों का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए |
अथवा कायिक जनन किसे कहते हैं? तने द्वारा इस विधि का एक उदाहरण दीजिए।
अथवा कायिक प्रवर्धन क्या है ? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए ।
अथवा कायिक प्रवर्धन पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
अथवा कायिक प्रवर्धन क्या है ? उचित उदाहरण एवं चित्र के माध्यम से इसका वर्णन कीजिए ।
उत्तर कायिक जनन यह उच्च पादपों में पायी जाने वाली अलैंगिक जनन की विधि है, जिसमें पादप का कोई भी वर्धी या कायिक भाग (जड़, तना, पत्ती) मातृ पादप से अलग होकर नए पादप का निर्माण करता है।
कायिक प्रवर्धन निम्न प्रकार का होता हैं
(i) प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन इस क्रिया में प्राकृतिक रूप से पादप का कोई भी अंग या रूपान्तरित भाग मातृ पादप से अलग होकर नया पादप बनाता है। यह अनुकूल परिस्थितियों में सम्पन्न होता है।
कायिक अंगों से जनन के आधार पर प्राकृतिक कायिक जनन को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है
(a) जड़ों द्वारा कुछ पादपों की जड़ों में भोजन संचय होता है तथा इन पर अपस्थानिक कलिकाएँ उपस्थित होती हैं, जो नए पादप का निर्माण करती हैं; उदाहरण – शकरकन्द, सतावर, पुदीना, आदि ।
(b) पत्ती द्वारा कुछ पादपों की मांसल पर्णो ( पत्तियों) में भोजन संग्रह होता है। इनमें पर्ण कलिकाओं का निर्माण होता है, जो नए पादप का निर्माण करती हैं; उदाहरण – ब्रायोफिल्लम, बिग्नोनिया, घाव पत्ता, आदि ।
(c) तनों द्वारा कुछ पादपों के तनों में पर्वसन्धियों पर अपस्थानिक कलिकाएँ उपस्थित होती हैं, जो नए पादप के निर्माण में सहायक होती हैं; उदाहरण – आलू, अदरक, आदि।
(ii) कृत्रिम कायिक प्रवर्धन मानव द्वारा पादपों में कृत्रिम ढंग से किए गए कायिक जनन को कृत्रिम कायिक जनन या प्रवर्धन कहते हैं। पादपों में कृत्रिम कायिक जनन की विधियाँ निम्नलिखित हैं
(a) दाब लगाना वे पादप, जिनकी शाखाएँ कठोर होती हैं। वे सरलता से कलम के रूप में प्रवर्धित नहीं हो पाते हैं, ऐसे पादप पर लगे एक शाखा के कुछ भाग को छीलकर शाखा को भूमि में दबा देते हैं। कुछ समय बाद में, मृदा में दबे हुए भाग से अपस्थानिक जड़ें निकल आती हैं। अब इस अवस्था में शाखा को जनक पादप से काटकर अलग करके इसे मिट्टी में रोप देते हैं; उदाहरण – नींबू, चमेली, अंगूर आदि ।
(b) कलम लगाना इस विधि में अच्छे विकसित परिपक्व पादपों की शाखाओं को काटकर 3/4 भूमि में दबा दिया जाता है। इन शाखाओं पर कुछ कक्षस्थ कलिकाओं का होना आवश्यक है। कक्षस्थ • कलिकाएँ वृद्धि करके एक नए पादप का निर्माण करती हैं शाखा के भूमिगत भाग की पर्व सन्धियों से अपस्थानिक जड़ें निकलती हैं। उदाहरण – गुलाब, गन्ना, गुड़हल, आदि।

प्रश्न 6. कायिक जनन का क्या महत्त्व है?
अथवा कायिक जनन किसे कहते हैं? पादपों में इस विधि से क्या लाभ है?
उत्तर कायिक प्रवर्धन या जनन जब पादप का कोई भी वर्धी या कायिक भाग, मातृ पादप से अलग होकर एक नए पादप का निर्माण करता है, तो इसे कायिक जनन कहते हैं।
कायिक जनन के लाभ
(i) इस विधि द्वारा कम समय में अनेक पादप विकसित किए जा सकते हैं।
(ii) इसके द्वारा उत्पन्न नए पादप, मातृ पादप के समान (क्लोन) होते हैं। अतः इनमें विभिन्नताएँ नहीं होती हैं।
(iii) कायिक जनन द्वारा विकसित पादप बाह्य वातावरण से अप्रभावित रहते हैं।
(iv) पादपों के वाँछित लक्षण पीढ़ी-दर-पीढ़ी बने रहते हैं।
(v) कायिक जनन द्वारा उगाए गए पादपों में बीज की आवश्यकता नहीं होती. है और बीज द्वारा उगाए गए पादपों की अपेक्षा पुष्प व फल कम समय में आ जाते हैं; उदाहरण- गुलाब, अंगूर, केला, संतरा, आदि ।
प्रश्न 7. आवृतबीजी (एन्जियोस्पर्म) पुष्प के स्त्रीकेसर के अनुदैर्ध्य -काट का एक नामांकित चित्र बनाइए ।

प्रश्न 8. पराग कण क्या है? ये कहाँ पाए जाते हैं? विभिन्न प्रकार के परागण का उल्लेख कीजिए ।
अथवा परागण पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर पादप में परागकण नर युग्मकोद्भिद होते हैं। परागण के बाद पराग तथा कण के अंकुरण से नर युग्मकों का निर्माण होता है। ये पुंकेसर के फूले हुए भाग परागकोष में पाए जाते किसी पुष्प के परागकणों के परागकोष से उसी पुष्प अथवा उसी जाति के किसी अन्य पुष्प के वर्तिका पर पहुँचने की क्रिया को परागण कहते है।
परागण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है
(i) स्व- परागण किसी पादप के पुष्प के पराग कण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर या उस पादप के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर अथवा कायिक जनन द्वारा तैयार किए गए उसी जाति के किसी अन्य पादप के पुष्प के वर्तिका पर पहुँचने की क्रिया को स्व-परागण कहते हैं।
(ii) पर-परागण जब एक पुष्प के पराग कण लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न उसी जाति के अन्य पादप के वर्तिकाग्र पर विभिन्न माध्यमों में पहुँचते हैं, तो इसे पर-परागण कहते हैं। पर – परागण कीटों द्वारा, वायु द्वारा, जल द्वारा और जन्तुओं के माध्यम से होता है ।
प्रश्न 9. स्व-परागण तथा पर-परागण में दो-दो अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा एक-एक उदाहरण दीजिए।
अथवा स्व-परागण एवं पर परागण में उदाहरण सहित अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
अथवा स्व-परागण तथा पर-परागण में विभेद कीजिए ।
उत्तर स्व- परागण तथा परपरागण में निम्नलिखित अन्तर हैं
| स्व-परागण | पर-परागण |
| यह एक ही पुष्प या एक ही पादप के दो पुष्पों में या कायिक जनन द्वारा तैयार अन्य पादप के पुष्पों में होता है। | यह एक ही जाति के लैंगिक प्रजनन द्वारा तैयार दो भिन्न पादपों के पुष्पों के मध्य होता है। |
| इसमें पुष्प का द्विलिंगी होना आवश्यक है। | इसमें पुष्प द्विलिंगी या एकलिंगी हो सकते हैं। नर व मादा पुष्प अलग-अलग पादपों पर भी हो सकते हैं। |
| इसमें बाह्य माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। | इसमें पराग कणों को अन्य पुष्प के वर्तिका पर पहुँचने के लिए बाह्य माध्यम (जल, वायु, कीट, पक्षी, आदि) क्री आवश्यकता होती है। |
|
इसके लिए पुष्पों में समकालपक्वता पाई जाती है अर्थात् परागकोष एवं वर्तिकाग्र समान समय में परिपक्व होते हैं:
उदाहरण- सदाबहार, मूँगफली ।
|
इसके लिए पुष्पों में प्रायः भिन्नकालपक्वता पाई जाती है अर्थात् पुष्प का परागकोष तथा वर्तिकाग्र अलग-अलग समय पर परिपक्व होते हैं;
उदाहरण- सूरजमुखी, गेंदा।
|
प्रश्न 10. परागण तथा निषेचन में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
अथवा परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न है?
अथवा परागण और निषेचन में विभेद कीजिए ।
उत्तर परागण तथा निषेचन में अन्तर निम्न प्रकार से हैं
| परागण | निषेचन |
| इस क्रिया में पराग कण समान जाति के पुष्पों के वर्तिका पर पहुँचते हैं। | निषेचन में नर तथा मादा युग्मकों का संलयन होता है। |
|
परागण के लिए बाह्य माध्यम;
जैसे- वायु, जल, कीट, जन्तु, आदि की आवश्यकता होती है।
|
इसके लिए माध्यम अर्थात् बाह्य साधन की आवश्यकता नहीं होती है। |
| परागण एक बाह्य क्रिया है। | यह एक आन्तरिक क्रिया होती है। |
| परागण से पूर्व लघुबीजाणुजनन द्वारा पराग कणों का निर्माण होता है। | पादपों में निषेचन हेतु पहले परागण क्रिया होना आवश्यक होता है। |
प्रश्न 11. अलैंगिक तथा लैंगिक जनन में कोई चार अन्तर लिखिए ।
उत्तर अलैंगिक तथा लैंगिक जनन में अन्तर निम्नलिखित हैं
| अलैंगिक जनन | लैंगिक जनन |
| इसके द्वारा शरीर का बना कोई कायिक भाग या इससे बनी हुई विशिष्ट संरचनाएँ नए जीव का निर्माण करती है। | इस प्रकार के जनन में नर एवं मादा युग्मक मिलकर नए जीव का निर्माण करते हैं। |
| यह अपेक्षाकृत सरल होता है तथा सन्तति आनुवंशिक तौर पर जनक के समान होती है। | यह जटिल प्रक्रिया है तथा सन्तति आनुवंशिक तौर पर जनक से भिन्न होती है। |
| अलैंगिक जनन में विखण्डन, मुकुलन, द्विविभाजन, बीजाणुजनन, आदि विधियाँ उपयोग में आती हैं। | इसमें नर तथा मादा (जन्तुओं में) के युग्मकों को क्रमशः शुक्राणु एवं अण्डाणु कहते हैं, जो निषेचन द्वारा युग्मनज का निर्माण करते हैं। |
| यह जनन सामान्यतया निम्न श्रेणी के जन्तुओं में उपस्थित होता है, किन्तु उच्च श्रेणी के जन्तु में अनुपस्थित होता है। | यह जनन सामान्यतया निम्न श्रेणी के जन्तुओं में अनुपस्थित होता है, किन्तु उच्च श्रेणी के जन्तुओं में उपस्थित होत है। |
प्रश्न 12. यौवनारम्भ क्या है? यौवनावस्था प्रारम्भ होने के समय बालक/बालिका में उत्पन्न होने वाले तीन-तीन गौण लैंगिक लक्षणों का वर्णन कीजिए।
अथवा गौण लैंगिक लक्षण किसे कहते हैं? यौवनारम्भ के समय बालक एवं बालिकाओं के शरीर में विकसित होने वाले प्रत्येक के दो-दो गौण लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
अथवा गौण लैंगिक लक्षण किसे कहते हैं? लड़के व लड़कियों में कितने वर्ष की आयु में इनका विकास होता है?
अथवा यौवनारम्भ के समय लड़कियों में कौन-कौन से परिवर्तन दिखाई देते हैं?
उत्तर किसी भी प्राणी के जनन करने योग्य हो जाने को यौवनारम्भ (Adolescent) कहते हैं। इसकी आयु लड़कों में 15-18 वर्ष तक तथा लड़कियों में 11-14 वर्ष तक होती है। इस अवस्था में स्त्री एवं पुरुषों के लक्षणों में कुछ महत्त्वपूर्ण बदलाव आते हैं, जोकि गौण लैंगिक लक्षणों के कारण होते हैं। अतः गौण लैंगिक लक्षण लैंगिक विभेद के वे लक्षण हैं, जोकि किसी जन्तु में पैदा होने के बाद विशेषकर यौवनावस्था में प्रदर्शित होते हैं तथा नर एवं मादा द्वारा एक-दूसरे को परस्पर आकर्षित करने के उपयोग में आते हैं।
लड़कों के द्वितीयक (गौण) लैंगिक लक्षण
(i) चेहरे व शरीर पर बाल उग जाते हैं तथा स्वर भारी हो जाता है।
(ii) वृषणकोष तथा शिश्न के आकार में वृद्धि हो जाती है।
(iii) शुक्रजनन नलिकाओं में शुक्राणुओं का निर्माण शुरू हो जाता है।
(iv) अस्थियाँ व पेशियां मजबूत तथा कन्धे चौड़े हो जाते हैं व शरीर की लम्बाई बढ़ने लगती है।
(v) जननांगों के आस-पास, बगलों, आदि स्थानों पर बाल उग जाते हैं। वृषण से स्रावित हॉर्मोन्स (टेस्टोस्टेरॉन व एण्डोस्टेरॉन) नर में यौवनावस्था को प्रेरित करते हैं।
लड़कियों के द्वितीयक (गौण) लैंगिक लक्षण
(i) बाह्य जननांगों तथा स्तनों का विकास प्रारम्भ हो जाता है।
(ii) अण्डोत्सर्ग तथा मासिक धर्म या आर्तव चक्र प्रारम्भ हो जाता है।
(iii) श्रोणि मेखला तथा नितम्ब चौड़े हो जाते हैं।
(iv) स्वर मधुर व तीव्र हो जाता है।
(v) बगल, जननांगों, आदि के आस-पास बाल उग जाते हैं। मादा में एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरॉन हॉर्मोन अण्डाशय के कार्यों व विकास का नियन्त्रण करते हैं तथा मादा में यौवानावस्था को प्रेरित करते हैं।
प्रश्न 13. जनसंख्या- एक समस्या पर संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा जनसंख्या वृद्धि से होने वाली चार हानियाँ (समस्याएँ ) लिखिए।
अथवा जनसंख्या वृद्धि का मानव समाज पर दुष्प्रभाव पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
उत्तर जनसंख्या किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में रहने वाले कुल लोगों की संख्या, जनसंख्या कहलाती है। जनसंख्या में बढ़ोत्तरी को जनसंख्या वृद्धि कहा जाता है, जो वर्तमान में चिन्ता का विषय है।
जनसंख्या वृद्धि के कारण हानियाँ जनसंख्या वृद्धि के कारण निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं
(i) शिक्षा व्यवस्था की समस्या बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में शिक्षण संस्थाएँ कम होने से विद्यालयों में उपस्थित संसाधनों पर बोझ पड़ता है। तथा बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रवेश मिल पाना कठिन हो गया है; जैसे- विद्यालयों के कमरे, फर्नीचर, खेल के मैदान, आदि बढ़ती जनसंख्या के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
(ii) रोजगार की समस्या जनसंख्या वृद्धि से बेरोजगारी की समस्या भी बढ़ती जा रही है।
(iii) खाद्य आपूर्ति की समस्या जनसंख्या की वृद्धि के अनुपात में खाद्यान्नों का उत्पादन कम हो रहा है, जिसके कारण लोगों को खाद्य सामग्री कम मात्रा में उपलब्ध हो पा रही है एवं बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं।
(iv) स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवा समस्या परिवार में बच्चे अधिक होने से माँ का स्वास्थ्य खराब हो जाता है, जिससे बच्चों की उचित परवरिश नहीं होने से वे बीमार तथा दुर्बल हो जाते हैं। हमारे देश में अस्पतालों की संख्या कम होने के कारण उन्हें पर्याप्त उपचार एवं औषधियाँ भी उपलब्ध नहीं हो पाती हैं।
प्रश्न 14. जनन स्वास्थ्य पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर सामान्य रूप से ‘जनन स्वास्थ्य’ का शाब्दिक अर्थ ‘सामान्य कार्य करने वाले स्वस्थ जननांग’ से होता है, परन्तु व्यापक रूप से भावनात्मक एवं सामाजिक पहलू भी इससे जुड़े हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, “जनन स्वास्थ्य का तात्पर्य, जनन के समस्त स्वस्थ विषयों के योग से है, जिसमें शारीरिक, भावनात्मक, व्यावहारिक तथा सामाजिक पहलू भी सम्मिलित हैं।” कोई भी समाज जननात्मक रूप से स्वस्थ समाज तभी कहलाएगा, जब इनके सदस्यों की सम्पूर्ण जनन प्रक्रिया शारीरिक, भावनात्मक एवं व्यावहारिक रूप से सामान्य हों।
भारत में जनन स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के मुख्य कारण अशिक्षित समाज, बाल विवाह, कम उम्र में गर्भधारण, यौन शिक्षा की कमी एवं यौन सम्बन्धी रोगों की जानकारी न होना है।
प्रश्न 15. निम्न गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
मानव के मादा जनन तंत्र में एक जोड़ी अण्डाशय, एक जोड़ी डिबवाहिनी, गर्भाशय तथा योनि पाए जाते हैं। मादा जनन कोशिकाओं का निर्माण अण्डाशय में होता है, जो कुछ हॉर्मोन भी उत्पादित करते हैं। दोनों अण्डाशयों से जुड़ी अण्डवाहिकाएँ संयुक्त होकर एक लचीली थैलेनुमा संरचना का निर्माण करती हैं, जिसे गर्भाशय कहते हैं। गर्भाशय, गर्भाशयी ग्रीवा द्वारा योनि में खुलता है।
मैथुन के समय शुक्राणु योनि मार्ग में स्थापित होते हैं, जहाँ से ऊपर की ओर यात्रा करके वे अण्डवाहिका तक पहुँचते हैं और अण्ड कोशिका को निषेचित करते हैं। निषेचन के पश्चात् निषेचित अण्ड या युग्मनज गर्भाशय में स्थापित हो जाता है।
माँ के शरीर में गर्भ को विकसित होने में लगभग 9 महीने का समय लगता है। तत्पश्चात् गर्भाशय के पेशियों के लयबद्ध संकुचन से शिशु का जन्म होता है।
(i) निषेचन न होने की स्थिति में गर्भाशय में क्या परिवर्तन उत्पन्न होते हैं?
(ii) मानव मादा जनन तन्त्र में गर्भाशय ग्रीवा की क्या भूमिका होती है?
उत्तर (i) यदि अण्डाणु का निषेचन नहीं होता है, तो कॉर्पस ल्यूटियम नष्ट होना शुरू हो जाता है। रुधिर में प्रोजेस्ट्रॉन का स्तर गिरने लगता है। गर्भाशयी ऊतकों का ह्रास होने लगता है। इसके पश्चात् अनिषेचित अण्डाणु के साथ गर्भाशयी एपिथोलियम, रुधिर एवं कुछ मात्रा में श्लेष्म योनि छिद्र के द्वारा बाहर विसर्जित किए जाते हैं, जिसे रजोस्राव कहा जाता है।
(ii) गर्भाशय ग्रीवा योनि से शुक्राणु को ग्रहण कर गर्भाशय तक पहुँचाती है यह गर्भाशय और योनि को जोड़ता है।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. पादपों में प्रजनन पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा पादपों में अलैंगिक जनन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन का वर्णन कीजिए।
उत्तर प्रत्येक सजीव अपनी जाति की निरन्तरता बनाए रखने हेतु अपने जैसे ही जीव उत्पन्न करता है, इसी प्रक्रिया को प्रजनन कहते हैं। पादपों में प्रजनन मुख्यतया दो प्रकार का होता है
1. अलैंगिक जनन इस प्रकार के जनन में विशेष जनन कोशिकाएँ युग्मकों के बिना ही एक जनक द्वारा नई सन्तान का निर्माण करती है। इसके फलस्वरूप, जिस सन्तान का जन्म होता है, वह आनुवंशिकी रूप से पूरी तरह अपने जनक के समान होती है। पादपों और जन्तुओं दोनों में अलैंगिक जनन पाया जाता है। पादपों में अलैंगिक जनन बहुत तीव्रता से होता है। पादपों में अलैंगिक जनन विभिन्न प्रकार का पाया जाता है। जो निम्नवत हैं
(i) खण्डन (Fragmentation) इस विधि में बहुकोशिकीय जीव पूर्ण वृद्धि करके दो या अधिक खण्डों में टूट जाते हैं। इसके पश्चात् प्रत्येक खण्ड वृद्धि करके पूर्णतः जीव बना लेता है; उदाहरण – स्पाइरोगायरा, यूलोथ्रिक्स।
(ii) बीजाणुओं द्वारा (By Spores) एककोशिकीय पादपों में बहुविखण्डन के पश्चात् चलबीजाणुओं (Zoospores) का निर्माण होता है; उदाहरण- क्लैमाइडोमोनास । तत्पश्चात् ये चलबीजाणु मुक्त होकर सामान्य पादप की तरह जीवन व्यतीत करने लगते हैं। बहुकोशिकीय शैवालों एवं . ब्रायोफाइट्स में अनेक प्रकार की बीजाणुधानी संरचनाओं में बीजाणुओं का निर्माण होता है, जो अनुकूल परिस्थिति में अंकुरित होकर नया पादपबनाते हैं।
(iii) कायिक जनन (Vegetative Reproduction ) जब पादप के कायिक भागों; जैसे- जड़, तना, पत्ती, आदि के द्वारा नए पादप की उत्पत्ति होती है, तो इस प्रक्रिया को कायिक जनन या प्रवर्धन कहते हैं। यह दो प्रकार से होता है
(a) प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन इस क्रिया में प्राकृतिक रूप से पादप का कोई भी अंग या रूपान्तरित भाग मातृ पादप से अलग होकर नया पादप बनाता है। यह मुख्यतः जड़ों, पत्ती व तनों द्वारा होता है।
(b) कृत्रिम कायिक प्रवर्धन मानव द्वारा पादपों में कृत्रिम ढंग से किए गए कायिक जनन को कृत्रिम कायिक जनन या प्रवर्धन कहते हैं। इसके अन्तर्गत कलम लगाना, दाब लगाना व पैबन्द लगाना आता है।
महत्त्व (i) अलैंगिक जनन से प्राप्त सन्तति सदैव जनक के समान होती है।
(ii) इससे कम समय में अधिक सन्तति प्राप्त होती है।
2. लैंगिक जनन उच्च पादपों में लैंगिक जनन हेतु विशिष्ट संरचना पुष्प, ( रूपान्तरित तना या प्ररोह) पाई जाती है। यहाँ नर तथा मादा जननांगों में बने अगुणित युग्मक निषेचन द्वारा नए पादप का निर्माण करते हैं। पुष्प यह एक संघनित तना होता है, जिसमें क्रमश: बाह्य दलपुंज, दलपुंज, पुमंग तथा जायांग उपस्थित होते हैं।
पादपों में लैंगिक जनन चार चरणों में सम्पन्न होता है
(i) युग्मकजनन नर जननांग (पुमंग ) तथा मादा जननांग ( जायांग) में क्रमशः अगुणित नर युग्मक तथा मादा युग्मक के निर्माण की प्रक्रिया को युग्मकजनन कहते हैं। परागकण नर युग्मकोद्भिद् होता है तथा भ्रूणकोष मादा युग्मकोद्भिद् होता है।
(ii) परागण परागकणों की परागकोष से वर्तिकाग्र तक पहुँचने की क्रिया को परागण कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है। स्वपरागण व परपरागण ।
(iii) निषेचन अगुणित नर व मादा युग्मकों के संलयन की प्रक्रिया को निषेचन कहते हैं। वर्तिकाय पर परागकण के अंकुरण के बाद इससे पराग नलिका का निर्माण होता है, जो जनन कोशिका द्वारा निर्मित दो अगुणित नर युग्मकों को भ्रूणकोष तक ले जाती हैं। यहाँ द्विनिषेचन द्वारा द्विगुणित युग्मनज (निषेचन ) एवं त्रिगुणित भ्रूणपोष केन्द्रक (त्रिसंलयन) का निर्माण होता है।
अन्त में युग्मनज द्वारा भ्रूण एवं भ्रूणकोष केन्द्रक द्वारा भ्रूणपोष का निर्माण होता है।
(iv) फल तथा बीज का निर्माण निषेचन के पश्चात् अण्डाशय, फल तथा बीजाण्ड बीज में परिवर्तित हो जाता है। बीज के अंकुरण से नए पादप का निर्माण होता है।
महत्त्व (i) लैगिक जनन से सन्तति में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।
(ii) इससे नई जातियाँ विकसित होती हैं।
प्रश्न 2. पुष्प की अनुदैर्ध्य काट का स्वच्छ व नामांकित चित्र बनाते हुए विभिन्न पुष्पांगों का वर्णन कीजिए ।
अथवा पुष्प की अनुदैर्ध्य काट का नामांकित चित्र बनाइए |
अथवा एक पुष्प का नामांकित चित्र बनाए। इसके विभिन्न भागों के कार्यों का उल्लेख कीजिए |
अथवा एक आवृतबीजी (एन्जियोस्पर्म) पौधे के नर जननांगों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर पादपों में पुष्प जनन हेतु बनी एक विशिष्ट संरचना होती है। पुष्प एक संघनित रूपान्तरित तना होता है। पुष्प वृन्त के शिखर पर पुष्पासन होता है। पुष्पासन पर चार पुष्प चक्र लगे होते हैं। इन्हें परिधि से केन्द्र की ओर क्रमशः बाह्य दलपुंज, दलपुंज, पुमंग तथा जायांग कहते हैं।
(i) बाह्य दलपुंज (Calyx) इसकी इकाई संरचना बाह्यदल (Sepal) कहलाती है। बाह्यदल पुष्पासन पर सबसे बाहर की ओर स्थित तथा हरे रंग के होते हैं। यह कलिकावस्था में पुष्प की रक्षा करते हैं।
(ii) दलपुंज (Corolla) इसकी इकाई, दल कहलाती है। यह पुष्प का द्वितीय चक्र होता है। यह प्रायः रंगीन होते हैं तथा कीट परागण सहायक होते हैं।
(iii) पुमंग (Androecium) यह पुष्प का तीसरा चक्र होता है। इसका निर्माण पुंकेसरों द्वारा होता है। यह पुष्प का नर जनन अंग होता है। परागकोष में परागकण या लघुबीजाणु (Microspores) बनते हैं। यह एक या एक से अधिक पुंकेसरों (stamens) से मिलकर बनता है। साधारणतः प्रत्येक पुंकेसर में तीन भाग होते हैं: पुंतन्तु ( Filament), परागकोष (Anthers) तथा योजी (Connective) । परागकोष में दो पालियाँ होती हैं जो एक योजी द्वारा परस्पर जुड़ी रहती हैं। प्रत्येक पालि में दो लघुबीजाणुधानी होती हैं। इनमें पराग कण (Pollen grains) बनते हैं।
(iv) जायांग या स्त्रीकेसर (Gynoecium or Pistil ) यह पुष्प का सबसे भीतरी चक्र होता है। यह पुष्प का मादा जनन अंग है। इसका निर्माण अण्डप (Carpel) से होता है। वर्तिका परागण के समय पराग कणों को ग्रहण करते हैं। जायांग के मध्य का पतला लम्बा भाग वर्तिका कहलाता है | आधारीय भाग अण्डाशय में बीजाण्ड बनते हैं। निषेचन के पश्चात् बीजाण्ड से बीज तथा अण्डाशय से फल का निर्माण होता है।

प्रश्न 3. परागण की परिभाषा लिखिए। पर परागण की विभिन्न विधियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। इसके महत्त्व को समझाइए |
अथवा पर परागण किसे कहते हैं? पर परागण की विभिन्न विधियों के नाम लिखिए। पराग कण के अंकुरण का सचित्र वर्णन कीजिए ।
उत्तर परागण की परिभाषा किसी पुष्प के परागकणों का परागकोश से उसी पुष्प या उसी जाति के अन्य पादप के पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुँचना परागण कहलाता है।
पर – परागण की विधियाँ पादपों में पर परागण कीटों, वायु, जल एवं जन्तुओं द्वारा होता है, जो निम्न प्रकार से हैं
(i) कीटों द्वारा परागण कीटों को आकर्षित करने के लिए पादपों में विशेष युक्तियाँ; जैसे- पुष्पों का रंग, सुगन्ध, मकरन्द, आदि की उपस्थिति पाई जाती हैं। कीट परागित पुष्प बड़े ही आकर्षक एवं मकरन्द युक्त होते हैं। इन पुष्पों के वर्तिकाग्र प्रायः चिपचिपे होते हैं; उदाहरण- अंजीर, आक, साल्विया, पीपल, आदि ।
(ii) वायु द्वारा परागण अनेक पादपों में वायु द्वारा परागण होता है। इसके लिए अनेक युक्तियाँ पाई जाती हैं; जैसे- पुष्प प्राय: छोटे और समूह में लगे होते हैं। इन पुष्पों में सुगन्ध, मकरन्द और रंग का अभाव होता है। इनकी वर्तिकाग्र खुरदरे एवं चिपचिपे होते हैं। पराग कण हल्के और शुष्क होते हैं; उदाहरण – गेहूँ, मक्का, ज्वार, आदि ।
(iii) जल द्वारा परागण यह परागण जल में उगने वाले पादपों में पाया जाता है। जल परागण के लिए पुष्पों के पराग कणों, वर्तिका, वर्तिकाग्र, आदि में अनेक अनुकूलन पाए जाते हैं। पुष्प रंगहीन, मकरन्दहीन और गन्धहीन होते हैं। पराग कण हल्के होते हैं, इनका घनत्व अधिक होता है तथा ये संख्या में अधिक होते हैं। इससे पराग कण जल सतह पर तैरते हुए मादा पुष्प के सम्पर्क में आते हैं एवं वर्तिकाम द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं; उदाहरणवैलिस्नेरिया, हाइड्रिला, सिरेटोफिलम, आदि ।
(iv) जन्तु परागण कुछ पादपों में परागण घोंघों, पक्षियों, चमगादड़, आदि की सहायता से होता है; उदाहरण- सेमल, कदम्ब, बिगोनिया, आदि ।
पर परागण का महत्त्व
(i) पर – परागण द्वारा पादपों में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।
(ii) विभिन्नताओं के परिणामस्वरूप पादपों में नई एवं उन्नत प्रजातियाँ विकसित होती हैं। अत: पर- परागण जैव-विकास में सहायक होता है।
(iii) पर – परागण के द्वारा स्वस्थ एवं रोग प्रतिरोधक पादप विकसित होते हैं।
(iv) पर परागण के द्वारा बनने वाले बीज स्वस्थ, संख्या में अधिक एवं अधिक जनन क्षमता वाले होते हैं।
पराग कण का अंकुरण ( Germination of Pollen Grain )
वर्तिका से परागण के समय एक तरल पदार्थ स्रावित होता है, जिसमें प्राय: शर्करा या मैलिक अम्ल जैसे रसायन पाए जाते हैं। इन तरल पदार्थों का अवशोषण करके पराग कण फूल जाते हैं। परिणामस्वरूप अन्तः चोल ( Intine ) जनन छिद्रों से पराग नलिका के रूप में बाहर निकल आता है। पराग नलिका वृद्धि करके रसायनुवर्तन द्वारा वर्तिकाय एवं वर्तिका से होती हुई अण्डाशय में स्थित बीजाण्ड में प्रवेश कर जाती है। पराग नलिका में दो केन्द्रक पाए जाते हैं, जिन्हें जनन केन्द्रक तथा वर्धी केन्द्रक कहते हैं। पराग नलिका का जनन केन्द्रक सूत्री विभाजन द्वारा दो नर युग्मकों का निर्माण करता है।

पराग नलिका रसायनानुवर्तन वृद्धि करके वर्तिका से होती हुई अण्डाशय में स्थित बीजाण्ड में प्रवेश कर जाती है। पराग नलिका में जनन केन्द्रक सूत्री विभाजन द्वारा दो नर युग्मक का निर्माण करते हैं। पराग नलिका इन नर युग्मकों को बीजाण्ड में पहुँचाती है, जिसके फलस्वरूप निषेचन क्रिया सम्पन्न होती है।
प्रश्न 4. निषेचन किसे कहते हैं? द्विनिषेचन को स्पष्ट कीजिए तथा निषेचनोपरान्त पुष्प में होने वाले परिवर्तनों को समझाइए |
अथवा पुष्प में निषेचनोपरान्त होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
अथवा निषेचन किसे कहते हैं? द्विनिषेचन एवं द्विनिषेचनोपरान्त पुष्प में होने वाले परिवर्तनों को समझाइए |
अथवा परागण की परिभाषा लिखिए । पुष्प के लम्बकाट के नामांकित चित्र के द्वारा निषेचन क्रिया को स्पष्ट कीजिए ।
अथवा स्त्रीकेसर का स्वच्छ एवं नामांकित आरेख बनाइए तथा उसमें पराग ली की वृद्धि और बीजाण्ड में उसके प्रवेश करते हुए दिखाइए ।
अथवा पुष्प में निषेचन क्रिया को प्रदर्शित करने हेतु स्त्रीकेसर की लम्ब काट का नामांकित चित्र बनाइए एवं वर्णन कीजिए। अथवा द्विनिषेचन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
अथवा पुष्प में निषेचन के उपरान्त होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर परागण विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 3 देखें।
पराग कण का अंकुरण (Germination of Pollen Grain )
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 3 देखें।
पुष्प में निषेचन (Fertilisation in Flower)
नर तथा मादा युग्मक केन्द्रकों का संलयन निषेचन कहलाता है। इसे निम्न चित्र द्वारा समझाया गया है।

द्विनिषेचन एवं त्रिक संलयन (Double Fertilisation and Triple Fusion ) निषेचन के दौरान पराग नलिका का बीजाण्ड में बीजाण्डद्वार द्वारा प्रवेश होता है। यहाँ पराग नलिका दोनों नर युग्मकों को मुक्त कर देती है। इनमें से एक नर युग्मक (Male gamate) अण्ड कोशिका से संलयित होकर युग्मनज बनाता है। तत्पश्चात् यह द्विगुणित युग्मनज वृद्धि और विभाजन के फलस्वरूप भ्रूण का निर्माण करता है। इसे सत्य निषेचन (True fertilisation) कहते हैं। दूसरा नर युग्मक द्वितीयक ध्रुवीय केन्द्रक (2n) से संयुग्मित होकर त्रिगुणित भ्रूणपोष केन्द्रक (3) बनाता है। इस प्रक्रिया को त्रिक संलयन (Fusion) कहते हैं, क्योंकि इसमें तीन अगुणित (Haploid) केन्द्रकों का संलयन होता है। इस पूरी प्रक्रिया को द्विनिषेचन कहते हैं।
निषेचन के पश्चात् होने वाले परिवर्तन
निषेचन के पश्चात् मुख्यतः निम्न परिवर्तन होते हैं
(i) बाह्यदल (Calyx) प्राय: मुरझाकर गिर जाते हैं, परन्तु कई पादपों में चिरलग्न होते हैं; उदाहरण- टमाटर, बैंगन, आदि में।
(ii) दल (Petal), पुंकेसर, वर्तिकाय एवं वर्तिका मुरझाकर गिर जाते हैं।
(iii) अण्डाशय (Ovary) फल में तथा अण्डाशय भित्ति (Ovary wall) फल भित्ति (Pericarp) में बदल जाती है।
(iv) बीजाण्ड (Ovule) बीज का निर्माण करता है।
(a) बीजाण्डकाय (Nucellus) नष्ट हो जाता है।
(b) बीजाण्डद्वार बीजद्वार बनाता है।
(c) भ्रूणकोष (Embryo sac)
- अण्ड कोशिका – भ्रूण बनाती है।
- सहायक कोशिकाएँ – नष्ट हो जाती हैं।
- प्रतिमुख कोशिकाएँ – नष्ट हो जाती हैं।
- द्वितीयक ध्रुवीय केन्द्रक – भ्रूणपोष बनाता है।
प्रश्न 5. पुरुष के जनन अंगों का सचित्र वर्णन कीजिए |
अथवा मानव के नर जनन तन्त्र का एक नामांकित चित्र बनाइए ।
अथवा मानव के नर जनन तन्त्र का सचित्र वर्णन कीजिए ।
उत्तर प्रजनन जीवधारियों द्वारा लैंगिक क्रियाओं के फलस्वरूप अपने जैसी सन्तानों को उत्पन्न करने की क्रिया को प्रजनन कहते हैं। मनुष्य एकलिंगी प्राणी है।
मानव का नर जनन तन्त्र इसके अन्तर्गत निम्नलिखित अंग आते हैं
(i) वृषण पुरुष में एक जोड़ा वृषण (Testes) उदर गुहा से बाहर की ओर, थैले जैसी रचनाओं, वृषणकोष (Scrotal sacs) में स्थित होते हैं। वृषण लगभग 4-5 सेमी लम्बा, 2.5 सेमी चौड़ा तथा 3 सेमी मोटा होता है।
प्रत्येक वृषण के भीतर अनेक महीन तथा कुण्डलित शुक्र नलिकाएँ (Seminiferous tubules) होती हैं। इनमें स्थित जनन कोशिकाएँ (Germ colls) शुक्राणुजनन की क्रिया के द्वारा शुक्राणुओं (Sperms) का निर्माण करती हैं। वृषण ‘के शरीर से बाहर कोष में स्थित होने से इनका ताप शरीर से लगभग 2-2.5°C कम रहता है। इससे शुक्राणु निर्माण में सहायता मिलती है ।
(ii) अधिवृषण शुक्राणु दूसरी अनेक नलिकाओं से होते हुए वृषण के बाहर की ओर स्थित एक अति कुण्डलित नलिका से बने अधिवृषण या एपिडिडाइमिस ( Epididymis) में प्रवेश करते हैं। यह लगभग 6 मीटर लम्बी अत्यधिक कुण्डलित संरचना होती है, जो वृषण के अग्र, पश्च एवं भीतरी भाग को ढके रहती है। अधिवृषण (Epididymis) में शुक्राणु परिपक्व होते हैं।
(iii) शुक्रवाहिनी अधिवृषण के अन्तिम छोर से एक मोटी संरचना शुक्रवाहिनी (Vasa deferens) निकलती है। शुक्राणु, शुक्रवाहिनी के द्वारा उदरगुहा स्थित शुक्राशय में पहुँचते हैं। में
(iv) शुक्राशय यह एक थैलीनुमा रचना होती है। शुक्रवाहिनी उदरगुहा में पहुँचकर मूत्रनली (Ureter) के साथ एक फन्दा बनाती हुई शुक्राशय में प्रवेश करती है। शुक्राणु, शुक्राशय स्राव के साथ मिलकर वीर्य (Semen निर्मित करते हैं।
(v) मूत्रमार्ग शुक्राशय एक संकरी नली, जिसे स्खलन नलिका ( Ejaculatory duct) कहते हैं, के द्वारा मूत्राशय (Urinary bladder) के संकरे भाग मूत्रमार्ग ( Urethra) में खुलता है। मूत्रमार्ग शिश्न के शीर्ष पर स्थित एक छिद्र द्वारा खुलता है। इस छिद्र को मूत्र जनन छिद्र कहते हैं। शिश्न मैथुन क्रिया में सहायक होता है।
(vi) सहायक ग्रन्थियाँ जनन अंगों के अतिरिक्त अनेक सहायक ग्रन्थियाँ ; जैसे – प्रोस्टेट (Prostate), काउपर्स (Cowper’s), पेरीनियल (Perineal), आदि होती हैं, जो वीर्य बनाने सहित शुक्राणुओं के पोषण और उनको जीवित रखने में सहायक होती हैं।

प्रश्न 6. स्त्री के जनन अंगों का सचित्र वर्णन कीजिए |
अथवा मानव के मादा जनन तन्त्र का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा मानव के मादा जनन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाइए और उसका संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा मादा जनन तन्त्र का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए तथा इसका संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर मानव का मादा जनन तन्त्र इसके अन्तर्गत निम्न जनन अंग आते हैं
(i) अण्डाशय एक जोड़ी अण्डाशय उदरगुहा में स्थित होते हैं। अण्डाशय संयोजी ऊतक से बनी ठोस अण्डाकार संरचना ( लगभग 3 सेमी लम्बा, 2 सेमी चौड़ा तथा 1 सेमी मोटा) होती है। अण्डाशय में ग्राफियन पुटिकाएँ छोटे-छोटे दानों-जैसी रचनाओं के रूप में उभरी होती हैं। यहीं अण्डाणु का निर्माण होता है।
(ii) अण्डवाहिनी इसका प्रारम्भिक भाग अण्डाशय से सटी हुई झालरदार कीपनुमा संरचना अण्डवाहिनी मुखिका (Oviducal funnel) बनाता है, जो फैलोपियन नलिका में खुलती है। अण्डवाहिनी का प्रारम्भिक संकरा भाग फैलोपियन नलिका तथा पश्च भाग गर्भाशय कहलाता है। अण्डे का निषेचन फैलोपियन नलिका में होता है।
(iii) गर्भाशय दोनों अण्डवाहिनी मिलकर पेशीय थैलीनुमा एवं उल्टे नाशपाती के आकार की संरचना गर्भाशय में खुलती हैं। इसका सामान्य आकार 8 सेमी लम्बा, 5 सेमी चौड़ा तथा 2 सेमी मोटा होता है। गर्भाशय अत्यधिक फैल सकता है। गर्भावस्था में भ्रूण का रोपण गर्भाशय में होता है।
(iv) योनि यह लगभग 8 सेमी लम्बी नलिकारूपी संरचना होती है। मूत्राशय तथा योनि मादा जनन छिद्र द्वारा शरीर से बाहर खुलती है। मादा जनन छिद्र भाग की बाह्य सतह पर एक पेशीय संरचना क्लाइटोरिस होती है।
(v) सहायक ग्रन्थियाँ
(a) बार्थोलिन ग्रन्थियाँ ये योनि के पार्श्व में स्थित होती हैं। इनसे स्रावित तरल योनि को क्षारीय तथा चिकना बनाता है।
(b) पेरीनियल ग्रन्थियाँ इनसे विशिष्ट गन्ध युक्त तरल स्रावित होता है, जो लैंगिक आकर्षण उत्पन्न करता है।

प्रश्न 7. परिवार नियोजन की आवश्यकता एवं उसकी विधियों पर निबन्ध लिखिए |
अथवा भारत की जनसंख्या वृद्धि, जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण एवं परिवार नियोजन के उपायों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा परिवार नियोजन के विभिन्न उपायों को समझाइए |
अथवा जनसंख्या वृद्धि के कारण लिखिए |
अथवा परिवार नियोजन किसे कहते हैं? मानव जनसंख्या वृद्धि को रोकने के उपायों का उल्लेख कीजिए ।
अथवा परिवार नियोजन को परिभाषित कीजिए । नियोजित परिवार के लिए दो स्थाई विधियों का उल्लेख कीजिए ।
अथवा परिवार नियोजन के किन्हीं दो उपायों का वर्णन कीजिए । परिवार नियोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा परिवार नियोजन की विधियों का वर्णन कीजिए।
अथवा मानव जनसंख्या का नियन्त्रण करने के समुचित उपायों का उल्लेख कीजिए ।
अथवा परिवार नियोजन की स्थायी विधियाँ कौन-सी होती हैं? किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा परिवार नियोजन पर संक्षिप्त में टिप्पणी लिखिए।
अथवा परिवार नियोजन से आप क्या समझते हैं? परिवार नियोजन की किन्हीं दो विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर भारत की जनसंख्या वृद्धि भारत की जनसंख्या सन् 1981 में लगभग 70 करोड़ थी और वर्तमान में 141.72 करोड़ हो गई है। जनसंख्या में इस विस्फोटक वृद्धि के कारण भोजन, आवास, शिक्षा में कमी, रोजगार की समस्या, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव उत्पन्न हो गया है।
जनसंख्या में इस विस्फोटक वृद्धि के कारण देश के आर्थिक विकास में अवरोध उत्पन्न हो रहा है। अतः इस वृद्धि पर रोक लगाना हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक है। ‘जनसंख्या वृद्धि के कारण जनसंख्या वृद्धि के निम्नलिखित कारण हैं
(i) निम्न सामाजिक स्तर भारत में लोगों का रहन-सहन का स्तर निम्न (Low) है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली अधिकांश जनता निर्धन है, जो यह विश्वास करती है कि जितने अधिक बच्चे होंगे, वे उतना ही अधिक धनोपार्जन करेंगे। इस कारण निर्धन परिवार के लोग परिवार नियोजन पर ध्यान नहीं देते हैं।
(ii) निरक्षरता भारत में निरक्षरता का प्रतिशत अधिक है। अतः लोग छोटे परिवार का महत्त्व नहीं समझते हैं, इस कारण लगातार सन्तानोत्पत्ति होती रहती है।
(iii) सामाजिक रीति-रिवाज हमारे देश में बच्चों को ईश्वर की देन माना जाता है। परिवार में पुत्र का जन्म भी आवश्यक समझा जाता है। यह भी माना जाता है कि वंश का नाम पुत्र से ही चलता है। इस कारण पुत्र प्राप्ति की कामना में लोग कई सन्तानें पैदा कर लेते हैं। इसके कारण परिवार बड़ा हो जाता है।
जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण इसके लिए निम्न उपाय किए गए हैं
(i) कानूनी व्यवस्था जनसंख्या नियन्त्रण हेतु संविधान में कठोर कानूनी व्यवस्था होनी चाहिए । संविधान के 42वें संशोधन (सन् 1976) में संसद और विधान सभाओं को जनसंख्या नियन्त्रण के लिए कानून बनाने के अधिकार प्रदान किए गए हैं। अतः राज्य सरकारों को परिवारों को सीमित रखने सम्बन्धी कानून बनाने चाहिए ।
(ii) शिक्षा व्यवस्था जनसंख्या वृद्धि रोकने तथा परिवार को सीमित करने के सम्बन्ध में जनता को शिक्षित करने के कार्यक्रम में तेजी लानी चाहिए।
(iii) आर्थिक स्थिति में सुधार लोगों को समय पर उचित रोजगार तथा व्यवसाय मिलने चाहिए, जिससे उनके आर्थिक स्तर में सुधार हो सके।
(iv) परिवार कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रमों को बढ़ाना परिवारों को सीमित रखने हेतु लोगों में परिवार कल्याण कार्यक्रमों में रूचि बढ़ानी होगी। इस हेतु सीमित परिवार वाले व्यक्तियों के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा, मुफ्त इलाज की व्यवस्था, सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता, आदि कार्यक्रम चलाने चाहिए |
परिवार नियोजन बच्चों की जन्म दर को नियन्त्रित कर परिवार को नियोजित करने की यह प्रक्रिया परिवार नियोजन कहलाती है। इससे जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाई जा सकती है। जन्म नियन्त्रण हेतु कुछ विशेष विधियों को उपयोग में लिया जाता है, जो निम्नलिखित हैं
A. अस्थायी विधियाँ (Temporary Methods) ये विधियाँ निम्न है
(i) प्राकृतिक विधियाँ (Natural Methods) ये विधियाँ निम्न हैं
(a) सुरक्षित काल (Safe Period) मासिक धर्म से एक सप्ताह पूर्व व एक सप्ताह बाद का समय सुरक्षित काल माना जाता है। इस काल में लैंगिक सम्पर्क स्थापित करने पर गर्भधारण की सम्भावना कम रहती है, परन्तु यह विधि अधिक विश्वसनीय नहीं है।
(b) धैर्य (Self Control) असुरक्षित अण्डोत्सर्ग काल में आत्मसंयम रखना चाहिए तथा लैंगिक सम्पर्क स्थापित नहीं करना चाहिए।
(ii) अवरोधक विधियाँ (Barrier Method) ये विधियाँ शुक्राणु व अण्डाणु के परस्पर मिलन को रोकती हैं। ये विधियाँ निम्न हैं
(a) निरोध (Condom) निरोध का प्रयोग पुरुष द्वारा किया जाता है जो वीर्य को मादा जनन मार्ग में जाने से रोकता है। इसके प्रयोग से गर्भधारण होने की कोई भी सम्भावना नहीं होती है।
(b) डायाफ्राम (Diaphram) यह गर्भाशय पर जाकर चिपक जाता है तथा शुक्राणुओं के गर्भाशय में प्रवेश हेतु अवरोध का निर्माण करता है।
(iii) हॉर्मोनल विधियाँ : गर्भ निरोधक गोलियाँ (Contraceptive Pills: Hormonal Methods) आजकल ऐसी गोलियाँ उपलब्ध हैं, जिनके सेवन से गर्भधारण की सम्भावनाएं समाप्त हो जाती हैं। स्त्रियों के लिए अनेक प्रकार की गर्भ निरोधक गोलियाँ उपलब्ध हैं; जैसे- माला – डी, पर्ल्स, सहेली, आदि। इन गोलियों में प्रोजेस्टेरॉन-एस्ट्रोजन हॉर्मोन पाए जाते हैं, जो अण्डोत्सर्ग को रोकते हैं।
(iv) रासायनिक विधियाँ (Chemical Methods) शुक्राणुओं (Sperms) को नष्ट करने के लिए योनि में डायाफ्राम के साथ शुक्राणुनाशक रसायनों (Spermicides) जैसे-क्रीम, जैली, फोम, गोलियाँ, पेस्ट आदि का प्रयोग करते हैं।
(v) अन्तः गर्भाशयी युक्तियाँ (IUDS) स्त्रियाँ लूप या कॉपर – T जैसी अन्तः गर्भाशयी युक्तियाँ लगवाकर गर्भधारण करने से अपना बचाव कर सकती हैं।
B. स्थायी विधियाँ ( Permanent Methods) ये विधियाँ निम्न हैं
(i) महिला का ऑपरेशन / नसबन्दी ( Tubectomy) इस विधि में स्त्रियों की अण्डवाहिनी को काटकर बाँध दिया जाता है, जिससे अण्डाणु अण्डवाहिका (Fallopian tube) में आगे नहीं बढ़ पाते हैं तथा निषेचन की क्रिया नहीं हो पाती है। यह कार्य सन्तान उत्पत्ति के समय ही कराया जा सकता है।
(ii) पुरुष का ऑपरेशन / नसबन्दी ( Vasectomy) इसमें पुरुष की शुक्रवाहिनी काट कर बाँध दी जाती है। इससे वीर्य में शुक्राणु अनुपस्थिति हो जाते हैं। यह ऑपरेशन अत्यन्त सरल है तथा कभी भी कराया जा सकता है। पुरुष की सम्भोग क्षमता पर भी इसका कोई प्रभाव नहीं होता है।
