Science 10

UP Board Class 10 Science Chapter 8 आनुवंशिकता

UP Board Class 10 Science Chapter 8 आनुवंशिकता

UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 8 आनुवंशिकता

फास्ट ट्रैक रिवीज़न
वे लक्षण, जो एक पीढ़ी (माता-पिता) से दूसरी पीढ़ी ( सन्तानों) में वंशागत (Inherit) होते हैं, आनुवंशिक लक्षण अथवा विशेषक (Hereditary characters or traits) कहलाते हैं तथा आनुवंशिक लक्षणों के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित होने की प्रक्रिया को वंशागति (Heredity) कहते हैं।
जनन के दौरान विभिन्नताओं का संचयन
पूर्ववर्ती पीढ़ी से वंशागत सन्तति को एक आधारिक शारीरिक अभिकल्प एवं कुछ विभिन्नताएँ प्राप्त होती हैं। एक ही जाति (Species) के विभिन्न सदस्यों के मध्य लक्षणों में पाई जाने वाली असमानताएँ (Dissimilarities) या अन्तर (Differences), जिनके कारण वे एक-दूसरे से अलग लगते हैं, विभिन्नताएँ कहलाती हैं। विभिन्नताओं की अनुपस्थिति भी जाति विकास नहीं कर सकती है। ऐसा होने पर उस जाति के सभी सदस्य समान होंगे।
आनुवंशिकता
विज्ञान की वह शाखा, जिसके अन्तर्गत जीवों की आनुवंशिक समानताओं और असमानताओं एवं वंशागति का अध्ययन किया जाता है, आनुवंशिकी ( Genetics) कहलाती है। आनुवंशिकी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम विलियम बेटसन (1906) ने किया था।
वंशागत लक्षण
जीवों के विभिन्न लक्षण ( बाह्य एवं आन्तरिक) उनके जननिक पदार्थों में स्थित सूचनाओं के ही परिणाम हैं। ये सूचनाएँ DNA में जीन्स के रूप में उपस्थित रहती हैं। DNA मुख्य आनुवंशिक पदार्थ होता है। विभिन्न जीवों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी इन सूचनाओं का स्थानान्तरण युग्मकों के रूप में होता रहता है। जीन्स की सूचनाओं के प्रकटीकरण से ही भिन्न-भिन्न लक्षणों की उत्पत्ति होती है, जिन्हें वंशागत लक्षण कहते हैं; जैसे- ऊँचाई, त्वचा का रंग, दो प्रकार के कर्ण पल्लव, आदि।
आनुवंशिकी की शब्दावली
(i) जीन या कारक (Gene or Factor) मेण्डल के अनुसार, सजीवों के प्रत्येक लक्षण का नियन्त्रण कुछ कारकों या निर्धारकों द्वारा होता है। आधुनिक आनुवंशिकी में इन्हीं कारकों को जीन कहा जाता है।
(ii) युग्मविकल्पी अथवा एलीलोमॉर्फ (Allelomorph) एक ही विपर्यासी लक्षण (Contrasting character) के दोनों विकल्पों को नियन्त्रित करने वाले जीन के युग्म को युग्मविकल्पी कहते हैं।
(iii) समयुग्मजी एवं विषमयुग्मजी (Homozygous and Heterozygous) जब एक विपर्यासी लक्षण को नियन्त्रित करने वाले दोनों जीन एक ही प्रकार के हो, तो इसे समयुग्मजी कहते हैं। जब विपर्यासी लक्षण को नियन्त्रित करने वाले दोनों जीन अलग-अलग हो, तो इसे विषमयुग्मजी कहा जाता है।
(iv) शुद्ध जाति (Pure Species) ऐसे पादप, जो समान लक्षण वाले पादपों से उत्पन्न होते हैं, वे शुद्ध जाति के पादप कहलाते हैं, इसमें लक्षणों के कारक अथवा जीन समयुम्मजी होते हैं; जैसे – TT, tt, RR, rr, आदि ।
(v) लक्षणप्रारूप एवं जीनप्रारूप (Phenotype and Genotype) लक्षणप्रारूप जीव के विभिन्न दैहिक लक्षण; जैसे- आकार, आकृति, रंग एवं स्वभाव, आदि को व्यक्त करता है। जीनप्रारूप जीव के जीनी संगठन को व्यक्त करता है।
(vi) प्रभावी एवं अप्रभावी (Dominant and Recessive) युग्मविकल्पी कारकों में वह लक्षण, जो समयुग्मजी और विषमयुग्मजी दोनों अवस्थाओं में प्रदर्शित होता है, प्रभावी लक्षण कहलाता है; उदाहरण – पादप का लम्बापन, पुष्प का लाल रंग, आदि । वह लक्षण, जो केवल समयुग्मजी स्थिति में प्रदर्शित होता है तथा विषमयुग्मजी अवस्था में अपने आप को प्रदर्शित नहीं कर पाता है, अप्रभावी लक्षण कहलाता है; उदाहरण- बौनापन, पुष्प का सफेद रंग, आदि।
(vii) संकर एवं संकरण (Hybrid and Hybridisation) जब तुलनात्मक लक्षण वाले नर और मादा के मध्य निषेचन कराया जाता है, तो इस क्रिया को संकरण कहते हैं और इससे उत्पन्न सन्तानों को संकर कहते हैं; जैसे- शुद्ध लम्बे (TT) तथा शुद्ध बौने (tt) पादपों को क्रॉस कराने पर संकर लम्बे (Tt) पादप प्राप्त होते हैं।
(viii) संकर पूर्वज संकरण (Back Cross) F – पीढ़ी में प्राप्त सन्तानों और उनके किसी भी एक जनक के बीच होने वाले संकरण को संकर पूर्वज संकरण कहते हैं; जैसेTt x tt या Tt x TT।
(ix) परीक्षण संकरण (Test Cross ) जब F1 – पीढ़ी के विषमयुग्मजी संकर का संकरण, समयुग्मजी अप्रभावी जीन के साथ कराया जाता है, तो इसे परीक्षण संकरण कहते हैं; जैसे- F1 – पीढ़ी में प्राप्त सन्तति संकर लम्बे (Tt) तथा शुद्ध बौने पादप (tt) के मध्य संकरण। इस संकरण में बनने वाली सन्तानों में सदैव 1: 1 का अनुपात पाया जाता है।
(x) F1 -पीढ़ी (F1 Generation) पैतृक पीढ़ी (P) के बीच संकरण कराने से प्राप्त पीढ़ी, प्रथम सन्तानीय पीढ़ी (First filial generation or F) कहलाती है।
(xi) F2 – पीढ़ी (F2 Generation) प्रथम सन्तानीय पीढ़ी से प्राप्त जीवों के स्व-संकरण से प्राप्त पीढ़ी, द्वितीयक सन्तानीय पीढ़ी (Second filial generation or F2 कहलाती है।
लक्षणों की वंशागति के नियम : मेण्डल का योगदान
ऑस्ट्रिया के पादरी ग्रेगर जॉन मेण्डल को ‘आनुवंशिकी का जनक’ कहा जाता है। मेण्डल ने मटर (Pisum sativum) के पादप पर संकरण सम्बन्धी अनेक प्रयोग किए। इन्होंने इस पादप में सात विपर्यासी लक्षणों की वंशागति का अध्ययन किया। सन् 1900 में हॉलैण्ड के ह्यूगो डी ब्रीज, जर्मनी के कार्ल कॉरेन्स तथा ऑस्ट्रिया के एरिक वॉन शेरमार्क ने मेण्डल के नियमों की पुष्टि की।
1. एकसंकर संकरण
एकाकी लक्षणों के तुलनात्मक या विपर्यासी लक्षणप्रारूपों की वंशागति के अध्ययन हेतु किए गए प्रयोगों को एकसंकर संकरण कहते हैं। इसके लिए मेण्डल ने मटर के शुद्ध लम्बे और शुद्ध बौने पादपों का चयन किया। इस संकरण से दो नियमों का विकास हुआ।
(i) प्रभाविता का नियम इस नियम के अनुसार, जब परस्पर विपर्यासी (विपरीत) लक्षण वाले पादपों के बीच संकरण कराया जाता है, तो F1 – पीढ़ी की सन्तानों में, जो लक्षण प्रदर्शित होता है, उसे प्रभावी लक्षण कहते हैं तथा जो लक्षण इस पीढ़ी की सन्तानों में प्रदर्शित नहीं होता, वह अप्रभावी लक्षण कहलाता है।
(ii) पृथक्करण या युग्मकों की शुद्धता का नियम इस नियम के अनुसार, एक जोड़ी जीन युग्मक निर्माण के समय एक-दूसरे से पृथक् हो जाते हैं और एक युग्मक में जीन युग्म का एक जीन ही पहुँचता है। इसे युग्मकों की शुद्धता का नियम कहते हैं।
2. द्विसंकर संकरण
मेण्डल ने बाद में एक ही समय पर दो जोड़ी विपर्यासी लक्षणों की वंशागति के प्रयोगों का व्यावहारिक अध्ययन किया, जिसे द्विसंकर संकरण कहते हैं। मेण्डल ने जब गोल बीज व पीले बीजपत्र (RRYY) वाले पादपों तथा झुर्रीदार बीज व हरे बीजपत्र (rryy) वाले पादपों (P1) के मध्य संकरण करवाया, तो F1 पीढ़ी में केवल गोल बीज तथा पीले बीजपत्र वाले पादप उत्पन्न हुए।
झपादपों में स्व-परागण करवाने पर उन्हें चार प्रकार के संयोजन प्राप्त हुए
(i) पादप गोल बीज तथा पीले बीजपत्रयुक्त = 315
(ii) पादप गोल बीज तथा हरे बीजपत्रयुक्त = 108
(ii) पादप झुर्रीदार बीज तथा पीले बीजपत्रयुक्त = 101
(iv) पादप झुर्रीदार बीज तथा हरे बीजपत्रयुक्त = 32
इस प्रकार F2-पीढ़ी की सन्ततियों में इन चार प्रकार के पादपों की संख्या में क्रमशः 9 : 3 : 3 : 1 का अनुपात रहा। यह लक्षणप्रारूप अनुपात है, जिसे द्विसंकर अनुपात (Dihybrid ratio) भी कहते हैं। इससे स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम विकसित हुआ।
स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम इस नियम के अनुसार, जब दो या दो से अधिक असम्बन्धित प्रभावी लक्षणों वाले पादपों के मध्य संकरण कराया जाता है, तो उनके जीन युग्म के कारकों का पृथक्करण एवं अपव्यूहन स्वतन्त्र रूप से होता है अर्थात् ये स्वतन्त्र रूप से पृथक् होकर जनकों के किसी भी लक्षण के साथ संयोग बनाते हुए सन्तानी पीढ़ियों में जाते हैं।
लक्षणों की अभिव्यक्ति
DNA का वह भाग, जिसमें किसी प्रोटीन संश्लेषण के लिए सूचना होती है, उसे जीन कहते हैं। जीन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जॉहन्सन ने किया था।
वंशागति की क्रियाविधि
प्रत्येक जीव में जीन या गुणसूत्रों द्वारा लक्षणों की वंशागति होती हैं, जो उन्हें जनक से प्राप्त होते हैं। लैंगिक जनन में नर एवं मादा के अगुणित युग्मक परस्पर समेकित होकर द्विगुणित जीव का निर्माण करते हैं। अतः प्रत्येक कोशिका में लक्षणों के जीनों की दो प्रतियाँ होती हैं। जनन के समय ये जीन प्रतियाँ अगुणित जनन कोशिका में पृथक्-पृथक् होकर चली जाती है, जिससे पीढ़ी-दर-पीढ़ी गुणसूत्रों की संख्या स्थिर बनी रहती है।
लिंग – निर्धारण
“लिंग-निर्धारण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा यह सुनिश्चित होता है कि एकलिंगी जन्तुओं में लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न होने वाला नया प्राणी नर होगा या मादा” ।
मनुष्य में लिंग निर्धारण
मनुष्य की कोशिकाओं में 46 गुणसूत्र उपस्थित होते हैं। इनमें से 22 जोड़ें नर तथा मादा दोनों में समान होते हैं। अतः इन्हें ऑटोसोम्स या कायिक गुणसूत्र कहते हैं। स्त्री में 23वाँ जोड़ा समयुग्मजी XX-गुणसूत्रों वाला होता है, किन्तु पुरुष में 23वें जोड़े के गुणसूत्र विषमयुग्मजी XY होते हैं। यह जोड़ा मानव में लिंग का निर्धारण करता हैं, इन्हें हेटेरोसोम्स या एलोसोम्स या लिंग गुणसूत्र भी कहते हैं। X -गुणसूत्र बड़ा तथा Y -गुणसूत्र छोटा होता है।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. मेण्डल प्रसिद्ध है
(a) आनुवंशिकता के क्षेत्र में
(b) डी.एन.ए. की खोज के लिए
(c) सुजननिकी के लिए
(d) जैव-विविधता के संरक्षण के लिए
उत्तर (a) आनुवंशिकता के क्षेत्र में
प्रश्न 2. मेण्डल ने अपना प्रयोग किया था
(a) वंशागत गुणों के अध्ययन के लिए
(b) मटर के उत्पादन के लिए
(c) चावल के उत्पादन के लिए
(d) गेहूँ के उत्पादन के लिए
उत्तर (a) वंशागत गुणों के अध्ययन के लिए
प्रश्न 3. मेण्डल ने प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की थी
(a) मन्दिर में
(b) स्कूल में
(c) गुरुकुल में
(d) गिरजाघर में
उत्तर (d) गिरजाघर में
प्रश्न 4. आनुवंशिकता के प्रयोग के लिए मेण्डल ने निम्नलिखित में से कौन-से पादप का उपयोग किया?
अथवा मेण्डल ने अपना प्रयोग निम्न में से किस पौधे पर किया था?
(a) पपीता
(b) आलू
(c) मटर
(d) अंगूर
उत्तर (c) उद्यान मटर (पाइसम सेटाइवम)
प्रश्न 5. मेण्डल ने अपने प्रयोग में मटर के पौधे के किन लक्षणों का अध्ययन किया है?
(a) गोल / झुर्रीदार बीज
(b) लम्बे/बौने पौधे
(c) सफेद / बैंगनी फूल
(d) ये सभी
उत्तर (d) ये सभी
प्रश्न 6. उद्यान मटर में अप्रभावी लक्षण है
(a) लम्बे तने
(b) झुर्रीदार बीज
(c) रंगीन बीज
(d) गोल बीज
उत्तर (b) झुर्रीदार बीज
प्रश्न 7. विपरीत लक्षणों के जोड़ों को कहते हैं
(a) युग्मविकल्पी या एलीलोमॉर्फ
(b) निर्धारक
(c) समयुग्मजी
(d) समरूप
उत्तर (a) युग्मविकल्पी या एलीलोमॉर्फ
प्रश्न 8. निम्नलिखित में से कौन सा जीनप्रारूप शुद्ध गोल बीजों को प्रकट करता है?
(a) tt
(b) Tt
(c) tT
(d) RR
उत्तर (d) RR
प्रश्न 9. मेण्डल के अनुसार, मटर के शुद्ध लम्बे पौधे का जीन प्रारूप होता है
(a) TT
(b) Tt
(c) tt
(d) tT
उत्तर (a) TT
प्रश्न 10. एक लम्बे (TT) और छोटे (tt) मटर के पादपों के बीच संकरण कराने पर परिणामस्वरूप सन्तति में सभी लम्बे (Tt) पौधे प्राप्त हुए, क्योंकि
(a) लम्बापन एक प्रभावी लक्षण है
(b) बौनापन एक प्रभावी लक्षण है
(c) लम्बापन एक अप्रभावी लक्षण है
(d) मटर के पौधे की ऊँचाई, जीना या t द्वारा नहीं बताई जाती
उत्तर (a) लम्बापन एक प्रभावी लक्षण है।
प्रश्न 11. मटर के लम्बे पादपों का क्रॉस बौने पादपों से कराने पर प्रथम पीढ़ी में लम्बे मटर के पादप प्राप्त होते हैं, द्वितीय पीढ़ी में प्राप्त पादप होंगे
(a) लम्बे तथा बौने दोनों
(b) लम्बे मटर के पादप
(c) बौने मटर के पादप
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (a) जब शुद्ध लम्बे पादप (TT) का शुद्ध बौने पादप (tt) के साथ संकरण कराया जाता है, तो प्रथम सन्तानीय पीढ़ी – (F) में सदैव लम्बे पादप प्राप्त होते हैं। साथ ही इन प्रथम पीढ़ी के लम्बे पादप में स्व- परागण कराके उत्पन्न बीजों को जब पुनः बोया जाता है, तो द्वितीय पीढ़ी (F2) में लम्बे व बौने दोनों प्रकार के पादप मिलते हैं ।
प्रश्न 12. मटर में, एक शुद्ध लम्बे पौधे (TT) को एक छोटे पौधे (tt) के साथ संकरित कराया जाता है। F2-पीढ़ी में, शुद्ध लम्बे पौधों से छोटे पौधों का अनुपात है
(a) 1:3
(b) 3:1
(c) 1:1
(d) 2:1
उत्तर (c) 1:1
प्रश्न 13. एकसंकर क्रॉस का जीनप्रारूप अनुपात होता है
(a) 3:1
(b) 1:2:1
(c) 2:1:1:2
(d) 9:3:3:1
उत्तर (b) 1: 2:1
प्रश्न 14. मटर के लाल पुष्प का संकरण सफेद पुष्प से कराने पर प्रथम पीढ़ी में लाल पुष्प उत्पन्न होते हैं। यदि दूसरी पीढ़ी में 50 सफेद पुष्प वाले पौधे प्राप्त होते हैं, तो लाल पुष्प वाले पौधों की संख्या होगी
(a) 200
(b) 150
(c) 175
(d) 250
उत्तर (b) एक संकर के संकरण के अनुसार, मटर के लाल पुष्प का संकरण सफेद पुष्प से कराने पर प्रथम पीढ़ी में लाल पुष्प उत्पन्न होते हैं। यदि दूसरी पीढ़ी में 50 सफेद पुष्प वाले पौधे प्राप्त होते हैं, तो लाल पुष्प वाले पौधों की संख्या 150 होगी, क्योंकि एकसंकर संकरण में 3 : 1 के अनुपात में लाल व सफेद पुष्प प्राप्त होंगे। अतः 50 × 3 = 150
प्रश्न 15. A, B, C एवं D के लिए उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए ।
प्रश्न 16. मेण्डल ने F, पौधों को स्वपरागित किया और पाया कि …..A… पौधों ने… ..B…… एवं…….C…… पीढ़ी में बौने पौधे उत्पन्न करना जारी रखा। अतः उसने निष्कर्ष निकाला कि बौने पौधों का जीनोटाइप……D…… होगा । A, B, C एवं D के लिए निम्न में से उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए ।
(a) A – बौने, B-F3, C-F4, D – समयुग्मजी
(b) A- बौने, B-F3, C-F4. D – विषमयुग्मजी
(c) A – लम्बे, B-F5, C-F6, D – समयुग्मजी
(d) A-लम्बे, B-F5, C-F6, D – विषमयुग्मजी
उत्तर (a) मेण्डल ने F2 पौधों को स्वपरागित किया और पाया कि बौने पौधों ने F3 एवं F4-पीढ़ी में बौने पौधे उत्पन्न करना जारी रखा। अतः उसने निष्कर्ष निकाला कि बौने पौधों का जीनोटाइप समयुग्मजी होगा।
प्रश्न 17. युग्मक बनते समय जीन के जोड़े में से केवल एक जीन युग्मक में प्रवेश करता है, यह सिद्धान्त है
(a) एक लक्षण के नियम का
(b) पृथक्करण के नियम का
(c) प्रभाविता के नियम का
(d) स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम का
उत्तर (b) पृथक्करण के नियम का
प्रश्न 18. पृथक्करण का नियम प्रस्तुत किया था
(a) चार्ल्स डार्विन ने
(b) ह्यूगो डी ब्रीज ने
(c) ग्रेगर जॉन मेण्डल ने
(d) रॉबर्ट हुक ने
उत्तर (c) ग्रेगर जॉन मेण्डल ने
प्रश्न 19. मेण्डल के अनुसार मटर के पौधे में निम्नलिखित में से कौन-सा नोटाइप लम्बे तने व झुर्रीदार बीजों के लक्षण व्यक्त करेगा ?
(a) TTRR
(b) ttRR
(c) TTrr
(d) ttrr
उत्तर (c) TTrr
प्रश्न 20. यदि एक गोल, पीले (RRYY) मटर के बीज के पौधे को हरे, झुर्रीदार (rryy) मटर के बीज के पौधे के साथ संकरित कराया जाए, तो स- पीढ़ी में सन्तति उत्पन्न होते हैं
(a) गोल और पीले
(b) गोल और हरे
(c) झुर्रीदार और हरे
(d) झुर्रीदार और पीले
उत्तर (a) गोल और पीले
प्रश्न 21. गुलाबी रंग के दो पुष्पों के बीच संकरण कराए जाने पर 1 लाल रंग की, 2 गुलाबी रंग की और 1 सफेद रंग की सन्तति उत्पन्न हुई। इस संकरण का स्वरूप क्या होगा?
(a) दोहरा निषेचन के कारण
(b) अपूर्ण प्रभाविता के कारण
(c) प्रभाविता के कारण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (b) अपूर्ण प्रभाविता के कारण
प्रश्न 22. निम्नलिखित कथनों को पढ़िए एवं सही विकल्प का चयन कीजिए ।
I. मेण्डेलियन कारकों को अब जीन कहा जाता है।
II. लक्षण केवल समयुग्मजी स्थिति में सम्मिश्रित होते हैं।
III. मानव में सभी लक्षण प्रभाविता दर्शाते हैं।
IV. कई जीन लिंगों से सहलग्न रहते हैं।
सही विकल्प का चयन कीजिए ।
(a) I तथा II
(b) II तथा III
(c) I तथा IV
(d) IV तथा III
उत्तर (c) कथन I तथा IV सही है।
प्रश्न 23. DNA पाया जाता है
(a) कोशिकाद्रव्य में
(b) केन्द्रकद्रव्य में
(c) केन्द्रिका में
(d) केन्द्रक में
उत्तर (d) केन्द्रक में
प्रश्न 24. ‘जीन’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया था?
(a) खुराना ने
(b) पुन्नेट ने
(c) जॉहन्सन ने
(d) वाटसन एवं क्रिक ने
उत्तर (c) जॉहन्सन ने।
प्रश्न 25. केवल प्रोटीन के बने होते हैं
(a) क्लोरोप्लास्ट
(b) लाइसोसोम
(c) प्रियॉन्स
(d) जीन्स
उत्तर (c) प्रियॉन्स
प्रश्न 26. मानव में गुणसूत्रों की संख्या हैं
(a) 42
(b) 44
(c) 46
(d) 48
उत्तर (c) 46
प्रश्न 27. मनुष्य के शुक्राणु में ऑटोसोम की संख्या होती है
(a) 42
(b) 22
(c) 44
(d) 24
उत्तर (b) 22
प्रश्न 28. मानव में लिंग गुणसूत्रों की संख्या होती है
(a) 23
(b) 2
(c) 21
(d) 20
उत्तर (b) 2
प्रश्न 29. पुरुष में लिंग गुणसूत्र होता है
(a) XY
(b) XX
(c) Y
(d) X
उत्तर (a) XY
प्रश्न 30. निम्न सूचियों का मिलान कीजिए ।
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न – I
प्रश्न 1. संकर तथा संकरण किसे कहते हैं?
उत्तर जब तुलनात्मक लक्षणों वाले नर तथा मादा के मध्य निषेचन कराया जाता है, तो इस क्रिया को संकरण कहते हैं और इससे उत्पन्न सन्तानों को संकर कहते हैं; जैसे – शुद्ध लम्बे (TT) तथा शुद्ध बौने (tt) पादपों को क्रॉस कराने पर संकर लम्बे (Tt) पादप प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 2. मेण्डल ने अपने प्रयोगों के लिए किस पौधे को चुना? इस पौधे को चुनने के कारण बताइए।
उत्तर मेण्डल ने अपने प्रयोगों के लिए मटर के पौधे को चुना। मटर के पौधे के चयन के कारण निम्न हैं
(i) मटर का पौधा वार्षिक पौधा है। अतः इसका जीवन चक्र छोटा होता है, जिससे कुछ ही समय में इसकी अनेक पीढ़ियों के अध्ययन में सुविधा मिलती है।
(ii) मटर के पौधे में द्विलिंगी पुष्प पाए जाते हैं अर्थात् नर व मादा जननांग एक ही पुष्प पर पाए जाते हैं।
(iii) मटर के पौधों में अनेक तुलनात्मक लक्षण पाए जाते हैं।
(iv) इनमें कृत्रिम पर – परागण द्वारा संकरण कराया जा सकता है।
प्रश्न 3. मेण्डल की कार्यविधि के कोई दो महत्त्वपूर्ण बिन्दु बताइए, जो उनकी सफलता में सहायक सिद्ध हुए?
उत्तर मेण्डल की सफलता के दो प्रमुख कारण निम्न हैं
(i) मेण्डल ने एक समय पर एक ही लक्षण के अध्ययन पर अपना ध्यान केन्द्रित किया।
(ii) मेण्डल ने प्रत्येक पीढ़ी का पूर्ण लेखा-जोखा रखा और उनका सावधानीपूर्वक अध्ययन किया।
प्रश्न 4. मेण्डल के प्रयोगों के आधार पर प्रभावी तथा अप्रभावी लक्षणों को समझाइए |
उत्तर युग्मविकल्पी कारकों में वह लक्षण, जो समयुग्मजी और विषमयुग्मजी दोनों अवस्थाओं में प्रदर्शित होता है, प्रभावी लक्षण कहलाता है; उदाहरण पौधे का लम्बापन, पुष्प का लाल रंग, आदि। वह लक्षण, जो केवल समयुग्मजी स्थिति में प्रदर्शित होता है तथा विषमयुग्मजी अवस्था में अपने आप को प्रदर्शित नहीं कर पाता है, अप्रभावी लक्षण कहलाता है; उदाहरण – बौनापन, पुष्प का सफेद रंग, आदि ।
प्रश्न 5. सफेद पुष्प वाली मटर के पराग कण बैंगनी पुष्प वाली मटर के वर्तिकाग्र पर छिड़क दिया गया। पीढ़ी में समस्त पौधों के पुष्प बैंगनी थे। F1 पीढ़ी में किस रंग के पुष्प किस अनुपात में प्राप्त होंगे ?
उत्तर प्रभाविता के नियमानुसार, F पीढ़ी में संकर बैंगनी पुष्प ( प्रभावी) वाले पौधे प्राप्त होते हैं। इन पादपों में स्व- परागण कराने पर F1 पीढ़ी में शुद्ध बैंगनी, संकर बैंगनी तथा शुद्ध सफेद पुष्प वाले पौधों का जीनोटाइप 1: 2: 1 प्राप्त होता है तथा F2 पीढ़ी का फीनोटाइप अनुपात 3:1 (बैंगनी : सफेद) प्राप्त होता है।
प्रश्न 6. DNA का पूरा नाम लिखिए । यह प्रोटीन संश्लेषण कैसे करता है?
उत्तर DNA का पूरा नाम डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल है। DNA द्वारा RNA का संश्लेषण किया जाता है, जोकि राइबोसोम पर प्रोटीन संश्लेषण (अनुवादन) के लिए अतिआवश्यक होता है। इस प्रक्रम को अनुलेखन (Transcription) कहते हैं।
प्रश्न 7. पुरुषों में पाए जाने वाले लिंग गुणसूत्र का विवरण दीजिए ।
उत्तर लिंग निर्धारण करने वाले गुणसूत्र लिंग गुणसूत्र कहलाते हैं, इन्हें एलोसोम या हेटेरोसोम (Heterosome) भी कहते हैं। लिंग गुणसूत्र नर और मादा दोनों में अलग-अलग होते हैं। ये प्राय: X और Y गुणसूत्र कहलाते हैं। मनुष्य में लिंग निर्धारण इन्हीं गुणसूत्रों द्वारा होता है। पुरुषों में पाए जाने वाले लिंग गुणसूत्र XY होते हैं। इनमें X गुणसूत्र सामान्य आकार का होता है जबकि Y गुणसूत्र अपेक्षाकृत छोटा होता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न-II
प्रश्न 1. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं। व्याख्या कीजिए। यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर जीवों के आनुवंशिक लक्षणों की अभिव्यक्ति व वंशागति का नियन्त्रण जीनों की सहायता से होता है, जो गुणसूत्रों पर केन्द्रक के भीतर स्थित होते हैं।
अतः वंशागति में जीनों का व्यवहार गुणसूत्रों के व्यवहार पर आश्रित होता है। हालाँकि सन्तति में उपस्थित सभी गुण जनकों के समान नहीं होते हैं, उनमें कुछ विभिन्नताएँ भी उपस्थित होती हैं, किन्तु अलैंगिक जनन में केवल एक जनक के भाग लेने व अर्द्धसूत्री विभाजन न होने के कारण उत्पन्न सन्तति आनुवंशिकता जनक की क्लोन होती है, अर्थात् विभिन्नताएँ अनुपस्थित होती है।
सामान्य वातावरणीय परिस्थितियों में जैव समष्टियों में प्रकट होने वाली विभिन्नताओं का मुख्य आधार लैंगिक जनन में युग्मकजनन के समय अर्द्धसूत्री विभाजन के दौरान होने वाला जीन विनिमय एवं युग्मकों का संलयन अर्थात् निषेचन होता है। विभिन्नताओं की अनुपस्थिति में कोई भी जाति विकास नहीं कर सकती है। ऐसा होने पर उस जाति के सभी सदस्य समान होंगे। किसी एक जाति के विभिन्न सदस्यों में वातावरणीय स्थिति के आधार पर विभिन्नताएँ लाभदायक तथा हानिकारक हो सकती हैं। इन विभिन्नताओं के कारण जीव परिवर्तनशील वातावरण के प्रति अनुकूलता प्राप्त कर पाता है, जोकि प्राकृतिक चयन एवं नई जाति की उत्पत्ति हेतु अनिवार्य है। अतः लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती है।
प्रश्न 2. आनुवंशिकता से आप क्या समझते हैं? इसके जन्मदाता कौन थे? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर जीव विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत सजातीय और परस्पर सम्बन्धित जीवों की आनुवंशिक समानताओं तथा विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है, आनुवंशिकी या आनुवंशिकता कहलाती है।
इसके जन्मदाता ग्रेगर जॉन मेण्डल थे जिन्होंने आनुवांशिकता के नियमों का प्रतिपादन किया।
इसकी विशेषताएँ निम्न हैं
  • आनुवंशिकी के माध्यम भावी सन्तान के गुणों का ज्ञान हो जाता है।
  • इसके आधार पर उच्च लक्षणों वाली सन्तानों को प्राप्त किया जा सकता है।
  • इसके द्वारा रोग प्रतिरोधी पादपों; जैसे-गेहूँ, गन्ना, चावल, आदि की किस्मों का विकास किया जा सकता है।
  • इसके द्वारा उन्नत किस्में बनाकर उनके उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।
  • इसके द्वारा आनुवंशिक रोगों की खोज एवं उनके निदान में भी इसका प्रयोग होता है।
प्रश्न 3. जीन क्या है? इसका सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया? इसकी उपयोगिता का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर मेण्डल ने सजीवों के प्रत्येक लक्षण के लिए किसी एक कारक को उत्तरदायी माना था। जोहन्सन (Johannsen) ने इस कारक के लिए ‘जीन’ शब्द का प्रयोग किया। जीन गुणसूत्रों में उपस्थित DNA अणुओं के सूक्ष्म खण्डों को कहते हैं, जो लक्षणों के रूप में व्यक्त होते हैं। जीन आनुवंशिकता की इकाई होती है। प्रायः एक जीन एक लक्षण को निर्धारित करता है। कुछ लक्षणों का निर्धारण एक से अधिक जीन्स द्वारा भी होता है एवं कभी – कभी किसी जीन द्वारा अनेक लक्षणों को प्रभावित किया जा सकता है।
प्रश्न 4. एलीलोमॉर्फ ( युग्मविकल्पी) एवं कारक को उदाहरण सहित समझाइए |
अथवा एलील पर टिप्पणी लिखिए।
अथवा एलील या युग्मविकल्पी किसे कहते हैं?
उत्तर एलील या एलीलोमॉर्फ जीवों में समजात गुणसूत्रों के जोड़े पर स्थित विपरीत तुलनात्मक लक्षणों के जोड़े को एलील कहते हैं। ये गुणसूत्र एक ही विस्थल (Locus) पर स्थित होते हैं; जैसे- पुष्प के रंग के लिए बैंगनी व सफेद, बीज के आकार के लिए गोल एवं झुर्रीदार, पादप की लम्बाई के लिए बौना एवं लम्बा लक्षण, आदि ।
कारक जीवों में सभी लक्षण इकाइयों के रूप में उपस्थित होते हैं, जिन्हें कारक (जीन) कहते हैं। प्रत्येक इकाई लक्षण कारकों के एक युग्म द्वारा नियन्त्रित होता है। इनमें से एक कारक मातृक एवं दूसरा पैतृक होता है। युग्म के दोनों कारक विपरीत प्रभाव के हो सकते हैं, किन्तु उनमें से एक ही कारक अपना प्रभाव प्रदर्शित कर पाता है एवं दूसरा अप्रभावी अर्थात् छिपा रहता है; उदाहरण – लम्बाई के लिए T तथा t .कारक उत्तरदायी है।
प्रश्न 5. समयुग्मजी एवं विषमयुग्मजी में अन्तर लिखिए ।
उत्तर समयुग्मजी एवं विषमयुग्मजी में निम्नलिखित अन्तर हैं
समयुग्मजी विषमयुग्मजी
एक जीन के दोनों एलील्स समान होते हैं। एक जीन के दोनों एलील्स अलग-अलग होते हैं।
केवल एक ही प्रकार के युग्मक बनते हैं। दो अलग-अलग प्रकार के युग्मक बनते हैं।
स्व-परागण या अन्तः प्रजनन होने पर सन्तति पैतृकों के समलक्षणी एवं समजीनी होती है। स्व-परागण या अन्तः प्रजनन होने पर सन्तति में प्रभावी दोनों विपर्यासी लक्षण व्यक्त होते हैं।
समयुग्मजी लक्षण शुद्ध होते हैं। विषमयुग्मजी लक्षण संकर होते हैं।
प्रश्न 6. एकसंकर तथा द्विसंकर संकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर एकसंकर संकरण (Monohybrid Cross ) मेण्डल ने अपने प्रयोग में एक समय में केवल एक तुलनात्मक आनुवंशिक लक्षण की वंशागति का अध्ययन किया, इसे एकसंकर संकरण कहते हैं; जैसे- लाल पुष्प वाले पादप तथा सफेद पुष्प वाले पादप के मध्य संकरण ।
द्विसंकर संकरण (Dihybrid Cross) जब दो तुलनात्मक आनुवंशिक लक्षणों को ध्यान में रखकर संकरण कराया जाता है, तो इसे द्विसंकर संकरण कहते हैं; जैसेगोल व पीले बीज वाले पादप एवं हरे व झुर्रीदार बीज वाले पादप के मध्य संकरण ।
प्रश्न 7. लक्षणप्रारूप तथा जीनप्रारूप में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
अथवा लक्षणप्रारूप (फीनोटाइप) तथा जीनप्रारूप ( जीनोटाइप) में अन्तर कीजिए |
अथवा फीनोटाइप एवं जीनोटाइप को स्पष्ट कीजिए ।
अथवा जीनप्रारूप तथा लक्षणप्रारूप में अन्तर बताइए ।
उत्तर लक्षणप्रारूप तथा जीनप्रारूप में निम्नलिखित अन्तर हैं
लक्षणप्रारूप जीनप्रारूप
लक्षणप्रारूप जीव के विभिन्न गुणों; जैसे – आकार, आकृति, रंग एवं स्वभाव, आदि को व्यक्त करता है। जीनप्रारूप जीव के जीनी संगठन को व्यक्त करता है, जो कि उसमें विभिन्न लक्षणों को निर्धारित करता है।
ये दिखाई देते हैं। ये दिखाई नहीं देते हैं।
समान लक्षणप्रारूप वाले जीवों की जीनी संरचना समान हो सकती है और नहीं भी। समान जीनप्रारूप वाले जीवों के लक्षणप्रारूप सदैव समान रहते हैं।
प्रश्न 8. शुद्ध एवं संकर जाति (नस्ल ) में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर शुद्ध एवं संकर जाति में निम्नलिखित अन्तर हैं
शुद्ध जाति संकर जाति
इसमें लक्षणों के कारक अथवा जीन समयुग्मजी होते हैं; जैसे – TT, tt, RR, rr, आदि। इसमें लक्षणों के कारक अथवा जीन विषमयुग्मजी होते हैं; जैसे – Tt, Rr, आदि ।
इसके अन्तर्गत वे पादप या जन्तु आते हैं, जो अपने ही समान लक्षण वाली सन्तान उत्पन्न करते हैं। इसके अन्तर्गत वे पादप या जन्तु आते हैं, जो भिन्न-भिन्न लक्षण वाली सन्तान उत्पन्न करते हैं।
दो शुद्ध जातियों में परस्पर संकरण होने पर अगली पीढ़ी में शुद्ध लक्षण वाले जन्तु अथवा पादप उत्पन्न होते हैं। दो संकर जातियों के परस्पर संकरण से शुद्ध और संकर दोनों प्रकार के जन्तु अथवा पादप उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 9. निम्न गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
इसकी व्याख्या इस तथ्य में निहित है कि मानव के सभी गुणसूत्र पूर्णरूपेण युग्म नहीं होते। मानव में अधिकतर गुणसूत्र माता और पिता के गुणसूत्रों के प्रतिरूप होते हैं। इनकी संख्या 22 जोड़े हैं, परन्तु एक युग्म जिसे लिंग गुणसूत्र कहते हैं, जो सदा पूर्ण जोड़े में नहीं होते। स्त्री में गुणसूत्र का पूर्ण युग्म होता है तथा दोनों X कहलाते हैं, लेकिन पुरुष (नर) में यह जोड़ा परिपूर्ण जोड़ा नहीं होता, जिसमें एक गुणसूत्र सामान्य आकार का X होता है तथा दूसरा गूणसूत्र छोटा होता है जिसे Y गुणसूत्र कहते हैं। अतः स्त्रियों XX तथा पुरुष में XY गुणसूत्र होते हैं। क्या अब हम X और Y का वंशानुगत पैटर्न पता कर सकते हैं?
(i) लिंग निर्धारण वंशानुगत कैसे हो सकता है?
(ii) मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर (i) गुणसूत्र पर उपस्थित जीन्स आनुवंशिक लक्षणों के वाहक होते हैं। इस कारण गुणसूत्र आनुवंशिक वाहक कहलाता है। गुणसूत्रों के प्रतिलिपिकरण से सन्तति गुणसूत्र बनते हैं, जो सन्तति कोशिकाओं में पहुँचते हैं।
जीवों में लिंग निर्धारण करने वाले गुणसूत्र लिंग गुणसूत्र कहलाते हैं, इन्हें हेटेरोसोम (Heterosome ) भी कहते हैं। लिंग गुणसूत्र नर और मादा दोनों में अलग-अलग होते हैं। ये प्राय: X और Y गुणसूत्र कहलाते हैं। मनुष्य में लिंग निर्धारण इन्हीं गुणसूत्रों द्वारा होता है।
(ii) मानव में युग्मकजनन में, अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित युग्मकों का निर्माण होता है। अर्द्धसूत्री विभाजन से निर्मित होने के कारण प्रत्येक अण्डाणु में 22 दैहिक गुणसूत्र (Autosomes ) तथा एक लिंग गुणसूत्र (Allosomes) होता है। स्त्री में बने हुए सभी युग्मक ( अण्ड) 22 + X गुणसूत्र वाले होते हैं, जबकि पुरुष में दो प्रकार के युग्मक (शुक्राणु) 22 + X तथा 22 + Y गुणसूत्रों वाले बनते हैं।
स्त्री के युग्मक जब पुरुष के 22 + X गुणसूत्र प्रारूप वाले शुक्राणु से मिलते हैं, तो सदैव पुत्री (मादा शिशु) का जन्म होता है तथा जब 22 + Y गुणसूत्र प्रारूप वाले शुक्राणु से मिलते हैं, तो सदैव पुत्र ( नर शिशु) का जन्म होता है।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. मेण्डल के नियम क्या हैं? उनको उचित चित्रों द्वारा समझाइए ।
अथवा मेण्डल के आनुवंशिकता के नियमों की विवेचना कीजिए |
अथवा मेण्डल के वंशागति के नियमों की व्याख्या कीजिए। ‘
अथवा मेण्डल के प्रभाविता के नियम से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए ।
अथवा स्वतन्त्र अपव्यूहन से आप क्या समझते हैं? केवल रेखाचित्र द्वारा द्विसंकर क्रॉस को समझाइए |
अथवा मेण्डल के स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम को द्विसंकरीय संकरण द्वारा स्पष्ट कीजिए ।
अथवा एकसंकर क्रॉस के द्वारा मेण्डल के पृथक्करण नियम को समझाइए तथा इससे प्राप्त पीढ़ी की जीनप्रारूप तथा लक्षणप्रारूप भी बताइए ।
अथवा मेण्डल के नियमों की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
अथवा मेण्डल के नियमों पर टिप्पणी लिखिए ।
अथवा द्विगुण संकरण की सहायता से मेण्डल के वंशागति नियमों को समझाइए |
अथवा मेण्डल के आनुवंशिकता का नियम क्या है? गोल, झुर्रीदार तथा पीले एवं हरे मटर के बीजों वाले लक्षणों के आधार पर उनके वंशागति नियमों को चित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए ।
अथवा मेण्डल द्वारा प्रतिपादित पृथक्करण के नियम को उपयुक्त उदाहरण की सहायता से समझाइए |
अथवा लक्षणों की वंशागति के नियम में मेण्डल के प्रयोगों के महत्त्व की व्याख्या कीजिए |
अथवा मेण्डल का प्रथम नियम लिखिए। इसको विस्तृत रूप में समझाइए ।
अथवा मेण्डल के प्रभाविता नियम से आप क्या समझते हैं? द्विसंकर संकरण के चित्र की सहायता से इसे स्पष्ट कीजिए।
अथवा मेण्डल के नियमों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर आनुवंशिकता जीवों को सभी लक्षण अपने जनकों से प्राप्त होते हैं। इन लक्षणों को आनुवंशिक लक्षण कहते हैं। ये आनुवंशिक लक्षण जनक से उसकी सन्तति में जाते रहते हैं। इन लक्षणों की वंशागति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में होती है। इस प्रक्रिया को आनुवंशिकता कहते हैं; जैसे- मनुष्य की सन्तान मनुष्य, बिल्ली की सन्तान बिल्ली, हाथी की सन्तान हाथी ही होती है। पादप में संकरण कराया और अपने
मेण्डल ने मटर (Pisum sativum) के परिणामों के आधार पर वंशागति के महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले। मेण्डल के बाद डी व्रीज, कार्ल कॉरेन्स तथा एरिक वॉन शेरमार्क ने मेण्डल के किए गए कार्य की पुष्टि की। मेण्डल के इन निष्कर्षों को ही मेण्डल के आनुवंशिकता के नियम कहते हैं । मेण्डल के आनुवंशिकता के नियम मेण्डल ने अपने प्रयोगों के आधार पर निम्नलिखित तीन नियमों का प्रतिपादन किया। इन नियमों को मेण्डल के आनुवंशिकता के नियम के नाम से जाना जाता है।
(i) प्रभाविता का नियम इस नियम के अनुसार, जब परस्पर विपर्यासी (विपरीत) लक्षण वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है, तो F1 पीढ़ी की सन्तानों में जो लक्षण प्रदर्शित होता है, उसे प्रभावी लक्षण कहते हैं तथा जो लक्षण इस पीढ़ी की सन्तानों में प्रदर्शित नहीं होता है, अप्रभावी लक्षण कहलाता है। इस नियम को मेण्डल के एक संकर संकरण प्रयोग द्वारा समझाया जा सकता है।
एकसंकर संकरण द्वारा प्रभाविता के नियम की पुष्टि किसी जीव के जो मात्र एक तुलनात्मक आनुवंशिक लक्षण पर ध्यान केन्द्रित करके, जो संकरण कराया जाता है, उसे एकसंकर संकरण (Monohybrid cross) कहते हैं।
उदाहरण – मेण्डल ने मटर के पौधे की लम्बाई पर ध्यान केन्द्रित करके अपने संकरण प्रयोग किए। उन्होंने पाया कि, जब शुद्ध लम्बे पौधे (TT) का शुद्ध बौने पौधे (tt) के साथ संकरण कराया जाता है, तो प्रथम सन्तानीय पीढ़ी (F1) में सदैव लम्बे पौधे प्राप्त होते हैं।
साथ ही इन प्रथम पीढ़ी के लम्बे पौधों में स्व- परागण कराके उत्पन्न बीजों को जब पुनः बोया गया, तो द्वितीय सन्तानीय पीढ़ी (F2) में लम्बे व बौने दोनों प्रकार के पौधे मिलें। इस संकरण को हम निम्न रेखाचित्र से समझ सकते हैं
उपरोक्त रेखाचित्र में दर्शाए गए प्रथम सन्तानीय पीढ़ी (F1) के परिणामों द्वारा मेण्डल के प्रथम नियम की पुष्टि होती है।
ऊपर दिए गए रेखाचित्र से यह स्पष्ट है, कि लम्बे और बौने पौधों में से प्रथम सन्तानीय पीढ़ी (F1) में केवल लम्बे पौधे ही देखे गए अर्थात् मटर के पौधों में लम्बापन, उनके बौनेपन पर प्रभावी है, जोकि मेण्डल के प्रभाविता के नियम की पुष्टि करता है।
(ii) पृथक्करण या युग्मकों की शुद्धता का नियम इस नियम के अनुसार, किसी भी जीन युग्म के अवयव युग्मक निर्माण के समय एक-दूसरे से पृथक हो जाते हैं और एक युग्मक में जीन युग्म का एक ही जीन पहुँचता है, इसीलिए इसे युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते हैं। इस नियम को भी मेण्डल के एकसंकर संकरण द्वारा समझा जा सकता है।
एकसंकर संकरण द्वारा पृथक्करण के नियम की पुष्टि उपरोक्त में द्वितीय सन्तानीय पीढ़ी (F2) के परिणामों द्वारा मेण्डल के द्वितीय नियम की पुष्टि होती हैं।
द्वितीय सन्तानीय पीढ़ी के पौधों में कुछ बौने पौधों का आना निम्न दो बातों की पुष्टि करता है
(a) प्रथम सन्तानीय पीढ़ी के पौधे शुद्ध लम्बे (TT) न होकर संकर लम्बे (Tt) पौधे हैं अर्थात् उनके जीन युग्म में एक जीन लम्बाई (T) का एवं दूसरा जीन बौनेपन (t) वाला है।
(b) द्वितीय सन्तानीय पीढ़ी (F2) में युग्मक बनते समय ये जीन पृथक् हो जाते हैं अर्थात् प्रत्येक युग्मक में इनमें से केवल एक ही जीन पहुँचता है।
इसीलिए युग्मकों के लिए हम यह मानते हैं, कि किसी भी विपर्यासी लक्षण जीन युग्म के प्रत्येक जीन के लिए युग्मक सदैव शुद्ध ही होते हैं अर्थात् युग्मक जनन के समय उक्त जीन युग्म के जीनों का पृथक्करण हो जाता है, जोकि मेण्डल के द्वितीय नियम का मूल आधार है।
(iii) स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम इस नियम के अनुसार, जब दो या दो से अधिक असम्बन्धित प्रभावी लक्षणों वाले पौधों के मध्य संकरण कराया जाता है, तो उनके जीन युग्म के कारकों का पृथक्करण एवं अपव्यूहन स्वतन्त्र रूप से होता है अर्थात् ये स्वतन्त्र रूप से पृथक् होकर जनकों के अन्य किसी भी लक्षण के साथ संयोग न बनाते हुए सन्तानीय पीढ़ियों में जाते हैं। मेण्डल के इस नियम की व्याख्या द्विसंकर संकरण के आधार पर की जा सकती है।
द्विसंकर संकरण द्वारा स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम की पुष्टि
जब दो तुलनात्मक आनुवंशिक लक्षणों को ध्यान में रखकर संकरण करवाया जाता है, तो इसे द्विसंकर संकरण कहते हैं। इसमें F1-पीढ़ी में प्रभाविता के नियमानुसार प्रभावी लक्षण प्रदर्शित होते हैं।
युग्मक निर्माण के समय तुलनात्मक लक्षणों के जीन पृथक् होकर युग्मकों में पहुँचते हैं। F1 – पीढ़ी के युग्मक परस्पर मिलकर F2 – पीढ़ी में 9 : 3 : 3 : 1 के फीनोटाइप अनुपात में प्रदर्शित होते हैं। F2 – पीढ़ी में युग्मकों के अनियमित रूप से मिलने पर नए-नए संयोग बनते हैं।
जब पीले गोल (YYRR) तथा हरे झुर्रीदार (yyrr) बीज वाले शुद्ध जनक पादपों में संकरण कराया जाता है, तो प्रथम पीढ़ी (F1) में सभी संकर पादप गोल तथा पीले (YyRr) बीज वाले होते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि बीजों का पीला रंग एवं गोल आकार प्रभावी गुण है तथा हरा रंग एवं झुर्रीदार आकार अप्रभावी गुण है। F1 – पीढ़ी के पादपों में स्व-परागण कराने पर F2-पीढ़ी में चार प्रकार के बीज वाले पादप 9:3: 3:1 . के अनुपात में प्राप्त होते हैं
(i) गोल पीले (ii) गोल हरे (iii) झुर्रीदार पीले (iv) झुर्रीदार हरे
इस प्रयोग से स्पष्ट होता है कि आनुवंशिक लक्षण स्वतन्त्र रूप से अपव्यूहन करते हैं, क्योंकि पीला रंग गोल बीजों तक और हरा रंग झुर्रीदार बीजों तक सीमित नहीं रहता है। ये स्वतन्त्र रूप से सन्तानों में पहुँचकर नए-नए संयोग बनाते हैं अर्थात् प्रत्येक लक्षण स्वतन्त्र रूप से पृथक् हो जाता है।
प्रश्न 2. मनुष्य में लिंग निर्धारण किस प्रकार होता है? रेखाचित्र भी बनाइए ।
अथवा मानव में लिंग निर्धारण की विस्तार से व्याख्या कीजिए।
अथवा सन्तति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है ?
अथवा मानव कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या बताइए । स्त्री और पुरुष के गुणसूत्रों में अन्तर बताइए ।
अथवा मनुष्य में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता है?
अथवा लिंग निर्धारण पर टिप्पणी लिखिए?
अथवा लिंग गुणसूत्र किसे कहते हैं? मानव में लिंग निर्धारण की प्रक्रिया को समझाइए |
अथवा मानव में लिंग निर्धारण कैसे होता है?
अथवा मानव में लिंग निर्धारण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए |
अथवा मनुष्यों में लिंग निर्धारण प्रक्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा लिंग गुणसूत्र से आप क्या समझते हैं? मानव में लिंग निर्धारण की प्रक्रिया को समझाइए |
अथवा गुणसूत्र किसे कहते हैं? मानव में लिंग निर्धारण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए ।
उत्तर गुणसूत्र केन्द्रक में पाए जाने वाले न्यूक्लियोप्रोटीन हैं। प्रायः यह कुण्डलित धागेनुमा संरचना के रूप में दिखते हैं तथा विभाजन के समय यह संघनित होकर दण्डाकार, सर्पिलाकार, डम्बलाकार या तन्तुनुमा हो जाते हैं।
गुणसूत्र पर उपस्थित जीन्स आनुवंशिक लक्षणों के वाहक होते हैं। इस कारण गुणसूत्र आनुवंशिक वाहक कहलाता है। गुणसूत्रों के प्रतिलिपिकरण से सन्तति गुणसूत्र बनते हैं, जो सन्तति कोशिकाओं में पहुँचते हैं। इनके DNA में विभिन्न जैविक क्रियाओं हेतु विशेष कूट (Special codes) के रूप में सन्देश निहित होते हैं।
मनुष्य में 46 गुणसूत्र पाए जाते हैं। इनमें से 22 जोड़े नर व मादा में समान होते हैं। इन गुणसूत्रों को कायिक गुणसूत्र या ऑटोसोम्स कहते हैं। स्त्री में 23वाँ जोड़ा समयुग्मजी (XX) गुणसूत्र वाला होता है तथा पुरुष में 23वाँ जोड़ा विषमयुग्मजी (XY) गुणसूत्र वाला होता हैं, जिन्हें लिंग गुणसूत्र या हेटेरोसोम्स या एलोसोम्स भी कहते हैं। इन्हें XX-XY से प्रदर्शित करते हैं।
मनुष्य में लिंग निर्धारण
युग्मकजनन के समय, अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित युग्मकों का निर्माण होता है, जिनमें स्त्री में बने हुए युग्मक (अण्ड) में 22 + X गुणसूत्र तथा पुरुष में दो प्रकार के युग्मक (शुक्राणु) 22 + X तथा 22 + Y गुणसूत्रों वाले बनते हैं। निषेचन के समय नर से प्राप्त शुक्राणु (Y या X गुणसूत्र वाला) अण्ड से मिलता है। इसके फलस्वरूप बने युग्मनज में 44 + XX या 44 + XY गुणसूत्र हो सकते हैं। इस प्रकार लिंग का निर्धारण निषेचन के समय शुक्राणु के गुणसूत्र द्वारा ही होता है, क्योंकि लिंग गुणसूत्र के अनुसार बनने वाले युग्मनज निम्नलिखित प्रकार से नर या मादा शिशु में विकसित होते हैं।
44 + XY = लड़का तथा 44 + XX = लड़की
अतः उपरोक्त चार्ट से हमें ज्ञात होता है। लिंग निर्धारण की प्रक्रिया में 50% सम्भावना नर शिशु व 50% सम्भावना मादा शिशु की होती है ।
अतः इसी प्रकार यह भी सिद्ध होता है कि आनुवंशिकी में दोनों जनकों की बराबर भागीदारी सुनिश्चित होती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *