Social-science 10

UP Board Class 10 Social Science Chapter 1 संसाधन एवं विकास (भूगोल)

UP Board Class 10 Social Science Chapter 1 संसाधन एवं विकास (भूगोल)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 1 संसाधन एवं विकास (भूगोल)

फास्ट ट्रैक रिवीज़न
पर्यावरण में उपलब्ध वे सभी वस्तुएँ, जिनमें मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति की क्षमता होती है, संसाधन कहलाते हैं। संसाधनों का विकास उनकी सम्भाव्यता एवं प्रौद्योगिकी पर निर्भर करता है।
संसाधनों का वर्गीकरण
संसाधनों का वर्गीकरण निम्न आधारों पर होता है
आधार संसाधन व स्रोत
उत्पत्ति के आधार पर
(i) जैव संसाधन
(ii) अजैव संसाधन
समाप्यता के आधार पर
(i) नवीकरणीय संसाधन
(ii) अनवीकरणीय संसाधन
स्वामित्व के आधार पर
(i) व्यक्तिगत संसाधन
(ii) सामुदायिक संसाधन
(iii) राष्ट्रीय संसाधन
(iv) अन्तर्राष्ट्रीय संसाधन
विकास के स्तर के आधार पर
(i) सम्भावी भण्डार
(ii) विकसित भण्डार
(iii) संचित कोष
संसाधनों का विकास
संसाधन जिस प्रकार, मनुष्य के जीवनयापन के लिए अति आवश्यक है, उसी प्रकार जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। संसाधन प्रकृति की देन हैं, किन्तु इसके अन्धाधुन्ध उपयोग से अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं; जैसे-
  • वैश्विक तापन, ओजोन परत का ह्रास, पर्यावरण प्रदूषण व भू-निम्नीकरण आदि ।
  • असमान संसाधन वितरण, जिससे समाज संसाधन सम्पन्न और संसाधन विहीन में बँट जाता है।
सतत् पोषणीय विकास
  • सतत् पोषणीय विकास का तात्पर्य संसाधनों का इस प्रकार उपयोग करना है, जिससे वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ आने वाली पीढ़ियों को भी लाभ पहुँचे, साथ ही पर्यावरण को भी क्षति न पहुँचे।
  • सतत पोषणीय विकास की अवधारणा को सर्वप्रथम जून, 1992 में ब्राजील के शहर रियो-डि-जेनेरियो में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन (United Nations Conference on Environment Development, UNCED) में स्वीकृत किया गया था।
  • इस सम्मेलन में सतत पोषणीय विकास के लक्ष्य के लिए एजेण्डा – 21 को स्वीकृति प्रदान की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य विश्व सहयोग के द्वारा गरीबी, भूख, बीमारी, असाक्षरता और पर्यावरण की क्षति को कम करना है।
भारत में संसाधन नियोजन की आवश्यकता
संसाधन नियोजन से आशय उपलब्ध संसाधनों की पहचान और मात्रा के साथ-साथ उनके उचित विकास से है। इसे निम्न तथ्यों के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है
  • झारखण्ड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ आदि प्रान्तों में खनिजों और कोयले के प्रमुख भण्डार हैं।
  • अरुणाचल प्रदेश में जल संसाधन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, परंतु मूल विकास की कमी है।
  • राजस्थान में पवन और सौर ऊर्जा संसाधनों की बहुतायत है, लेकिन जल संसाधनों की कमी है।
  • लद्दाख का शीत मरुस्थल (Cold Desert) अन्य भागों से अलग यह प्रदेश सांस्कृतिक विरासत का धनी है, परन्तु यहाँ प्राकृतिक संसाधनों की कमी है।
संसाधन नियोजन की प्रक्रिया
संसाधन नियोजन की प्रक्रिया में निम्न चरण होते हैं।
  • देश में उपलब्ध संसाधनों की पहचान व अनुमान लगाना।
  • संसाधन विकास के लिए योजना तैयार करना ।
  • विभिन्न विकास योजनाओं में समन्वय स्थापित करना ।
  • भारत में इसके लिए योजना आयोग के अन्तर्गत पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई गईं, जिस पर वर्तमान में नीति आयोग काम कर रहा है।
संसाधन और उपनिवेश
  • उपनिवेशकारी देशों ने बेहतर प्रौद्योगिकी के माध्यम से उपनिवेशों के संसाधनों का शोषण किया तथा उन पर अपना आधिपत्य स्थापित किया।
संसाधनों का संरक्षण
  • वर्ष 1987 में ब्रण्टलैण्ड कमीशन रिपोर्ट (Brundtland Commission Report) में संसाधन संरक्षण की आवश्यकता का व्यापक रूप से उल्लेख किया गया है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सतत विकास की अवधारणा को उचित बताया गया है।
भू-संसाधन
  • भूमि एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। भारत के भौगोलिक क्षेत्र में 43% भू-क्षेत्र पर मैदान हैं, 27% भू-क्षेत्र पर पठार तथा 30% भू-क्षेत्र पर पर्वत हैं।
  • राष्ट्रीय वन नीति, 1952 द्वारा 33% भौगोलिक क्षेत्र पर वन होना आवश्यक है।
भू-उपयोग
भारत में भू-संसाधनों का उपयोग निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
(i) वन
(ii) कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि (बंजर, भूमि, स्थायी चरागाह, परती भूमि आदि)
(iii) अन्य कृषि उपयोग भूमि
(iv) परत भूमि
(v) शुद्ध (निवल) बोया गया क्षेत्र (इस भूमि पर फसलें उगाई व काटी जाती हैं)
भारत में भूमि उपयोग के प्रतिरूप
भूमि उपयोग के प्रतिरूप (Land Use Pattern) के निम्नलिखित कारक हैं
  • भौतिक कारक जलवायु, मृदा के प्रकार, भू-आकृति
  • मानवीय कारक जनघनत्व, सांस्कृतिक कारक, प्रौद्योगिक क्षमता।
  • भारत में कुल भूमि क्षेत्रफल (32.8 लाख वर्ग किमी) में से 93% भूमि का उपयोग किया जाता है। कृषि योग्य भूमि के अन्तर्गत लगभग 54% भूमि आती है।
  • शुद्ध बोये गए क्षेत्र का प्रतिशत भी विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। पंजाब व हरियाणा में 80% भूमि पर खेती होती है। अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर व अंडमान निकोबार द्वीप समूह में 10% से भी कम क्षेत्र बोया जाता है।
  • नोट उत्तराखण्ड राज्य में सीढ़ीदार (सोपानी) खेती की जाती है।
भूमि निम्नीकरण के कारण
निम्नीकरण के कारण क्षेत्र
खनन और उत्खनन झारखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा
अति पशुचारण पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश
औद्योगीकरण गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तरी भारत के पहाड़ी राज्य
औद्योगीकरण के कारण मृदा में जल संवहन (Infiltration) हो जाता है। सम्पूर्ण भारत में व्याप्त
भूमि निम्नीकरण एवं संरक्षण के उपाय
उल्लेखनीय है कि भारत में लगभग 13 करोड़ हेक्टेयर भूमि निम्नीकृत है, जिसमें 28% भूमि निम्नीकृत वनों के अन्तर्गत है, 56% क्षेत्र जल अपरदित है और शेष लवणीय व क्षारीय निक्षेपों से प्रभावित हैं। भूमि निम्नीकरण की समस्याओं को सुलझाने के कई उपाय हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित है
  • वनारोपण (Afforestation) और चरागाहों का उचित प्रबन्धन।
  • पेड़ों की रक्षक मेखला (Shelter Belt) और पशुचारण पर नियन्त्रण।
  • रेतीले टीलों को काँटेदार झाड़ियाँ लगाकर स्थिर बनाने की प्रक्रिया |
  • भूमि कटाव की रोकथाम।
  • बंजर भूमि का उचित प्रबन्धन |
  • खनन नियन्त्रण और औद्योगिक जल का परिष्करण करके जल और भूमि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
मृदा संसाधन
  • मृदा सबसे महत्त्वपूर्ण एवं एक नवीकरणीय योग्य प्राकृतिक संसाधन है, जिसके निर्माण में उच्चावच, संस्तर शैल, जलवायु, वनस्पति, अन्य जैव पदार्थ और समय आदि कारकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
  • मृदा जैव एवं अजैव दोनों प्रकार के पदार्थों से बनती है।
मृदा का वर्गीकरण
भारत की मृदाओं को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जाता है
मृदा विशेषताएँ
जलोढ़ मृदा
(पुरानी जलोढ़ बांगर और नई जलोढ़ खादर)
यह मृदा भारत में विस्तृत रूप से फैली हुई है।
सम्पूर्ण उत्तरी मैदान जलोढ़ मृदा से बना है। सर्वाधिक उपजाऊ, पोटाश, फॉस्फोरस व चूने से युक्त, गन्ना, चावल, गेहूँ व अन्य अनाजों व दलहन फसलों के लिए उपयुक्त होती है।
काली मृदा (रेगुर ) इस मृदा की रेगुर मृदा भी कहा जाता है। इसका रंग काला होता है। यह बेसाल्ट चट्टानों से निर्मित है। कैल्शियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम, पोटाश और चूने से युक्त होने के कारण यह कपास की खेती के लिए उपयुक्त होती है, इसलिए इसे काली कपास मृदा के नाम से भी जाना जाता है। यह महाराष्ट्र और गुजरात में सर्वाधिक पाई जाती है।
लाल और पीली मृदा लाल मृदा दक्कन पठार के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों में रवेदार आग्नेय चट्टानों पर कम वर्षा वाले भागों में विकसित हुई है। लौह – ऑक्साइड के कारण इसका रंग लाल होता है। पीला रंग जलयोजन के कारण होता है। लोहे, एल्युमीनियम तथा चूने का अधिक अंश तथा तम्बाकू, बाजरा, तीसी दलहन आदि की खेती के लिए उपयुक्त होती है। यह तमिलनाडु में सर्वाधिक पाई जाती है।
लैटेराइट मृदा लौह तथा एल्युमीनियम की अधिकता, नाइट्रोजन, पोटाश, चूना तथा जैविक पदार्थ की कमी, अपेक्षाकृत कम उर्वर, चाय, कहवा, रबड़, काजू की खेती के लिए उपयुक्त, केरल राज्य में सर्वाधिक पाई जाती है।
मरुस्थलीय मृदा बलुई से बजरी युक्त, जैविक पदार्थ तथा नाइट्रोजन व नमी की कमी, सिंचाई के माध्यम से ज्वार, बाजरा, मोटे अनाज व सरसों की खेती के लिए उपयुक्त राजस्थान में सर्वाधिक पाई जाती है।
वनीय एवं पहाड़ी मृदा
स्वभाव से अम्लीय जीवांश की प्रचुर मात्रा, पोटाश, चूना व फॉस्फोरस का अभाव, सेब, नाशपाती व आलू की फसल के लिए उपयुक्त है।
यह जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती है।
मृदा अपरदन एवं संरक्षण
मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन (Soil Erosion) कहा जाता है। मृदा अपरदन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
प्राकृतिक कारण
वायु अपरदन वायु द्वारा मैदान या किसी ढलवा क्षेत्र से मृदा को उठा ले जाने की प्रक्रिया को वायु या पवन अपरदन कहा जाता है। वायु अपरदन से बचाव के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाते हैं
  • पट्टी कृषि बड़े खेतों को कई पट्टियों में बाँट दिया जाता है और प्रत्येक पट्टी के बीच घास उगने के लिए कुछ स्थान छोड़ दिया जाता। यह हवा की शक्ति को कमजोर करता है।
  • रक्षक मेखला खेतों के चारों ओर पौधों की रक्षक मेखला या पट्टियाँ लगा दी जाती हैं, जो हवा की गति को कम करने में प्रभावी होती हैं।
जल अपरदन बहते हुए जल के कारण जब मृदा की ऊपरी परत बह जाती है, तो वह जल अपरदन कहलाता है। इसके संरक्षण के लिए निम्नलिखित कार्य किए जा सकते हैं
  • सामुदायिक भागीदारी द्वारा वृहत पैमाने पर वृक्षारोपण करके इसे रोका जा सकता है, जिस प्रकार हरियाणा के पंचकुला जिले में किया गया।
  • संवर्द्धित जल सम्भर विकास के द्वारा जैसा कि मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में किया गया है।
मानवीय कारण
वनोन्मूलन, अति चराई और जल प्रणाली की कृषि वे मानवीय कारक हैं, जो प्राकृतिक कारक को मृदा अपरदन के लिए जमीन प्रदान करते हैं। इससे बचाव के लिए निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं।
  • समोच्च कृषि एवं सीढ़ीदार कृषि को बढ़ावा देकर
  • अति चराई पर रोक लगाकर
  • वनारोपण करके
  • संरचनात्मक बाँध बनाकर
मृदा अपरदन से हानियाँ
मृदा के अपरदन से निम्नलिखित हानियाँ होती हैं
  • उपजाऊ भूमि के नष्ट होने के कारण कृषि उत्पादकता में कमी आती है।
  • आकस्मिक एवं भीषण बाढ़ का प्रकोप बढ़ जाता है।
  • बालू के जमा होने के कारण नदियों, नहरों तथा बन्दरगाहों के मार्ग बन्द हो जाते हैं।
  • सूखे की लम्बी अवधि के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं।
  • कुओं, नलकूपों तथा ट्यूबवेलों में जल का स्तर नीचा हो जाता है, जिससे सिंचाई में बाधा आती है।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. संसाधनों का विकास निम्न में से किस पर निर्भर करता है?
(a) उनकी सम्भाव्यता पर
(b) उनकी प्रौद्योगिकी पर
(c) ‘a’ और ‘b’ दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (c) ‘a’ और ‘b’ दोनों
प्रश्न 2. भूमि एक ……… संसाधन है।
(a) प्राकृतिक
(b) मानव निर्मित
(c) सौर्य ऊर्जा से निर्मित
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (a) प्राकृतिक
प्रश्न 3. उत्पत्ति के आधार पर संसाधनों का निम्नलिखित में से कौन-सा वर्गीकरण सही है?
(a) केवल जैव
(b) केवल अजैव
(c) जैव और अजैव दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (c) जैव और अजैव दोनों
प्रश्न 4. निम्नलिखित में से कौन-सा अजैवीय संसाधन है ?
(a) चट्टानें
(b) पशु
(c) पौधे
(d) मछलियाँ
उत्तर (a) चट्टानें
प्रश्न 5. ज्वारीय ऊर्जा निम्नलिखित में से किस प्रकार का संसाधन है?
(a) पुन: पूर्ति योग्य
(b) अजैव
(c) मानवकृत
(d) अचक्रीय
उत्तर (a) पुन: पूर्ति योग्य
प्रश्न 6. निम्नलिखित में से किस राज्य में काली मृदा मुख्य रूप से पाई जाती है?
(a) जम्मू और कश्मीर
(b) राजस्थान
(c) महाराष्ट्र
(d) झारखण्ड
उत्तर (c) महाराष्ट्र
प्रश्न 7. निम्न में से कौन-सा जैविक संसाधनों का एक उदाहरण है?
(a) चट्टान
(b) लौह-अयस्क
(c) सोना
(d) पशु
उत्तर (d) पशु
प्रश्न 8. निम्नलिखित में से कौन-सा नवीकरण योग्य संसाधन नहीं है?
(a) पवन ऊर्जा
(b) जल ऊर्जा
(c) जीवाश्म ईंधन
(d) वन
उत्तर (c) जीवाश्म ईंधन
प्रश्न 9. निम्नलिखित में से कौन-सा एक सम्भावी संसाधन है?
(a) कोयला
(b) पेट्रोलियम
(c) पवन ऊर्जा
(d) बॉक्साइट
उत्तर (c) पवन ऊर्जा
प्रश्न 10. जीवाश्म ईंधन निम्नलिखित में से किस प्रकार के संसाधनों के उदाहरण है?
(a) नवीकरणीय
(b) प्रवाह
(c) जैविक
(d) अनवीकरणीय
उत्तर (d) अनवीकरणीय
प्रश्न 11. एजेण्डा-21 का सम्बन्ध किससे है?
(a) ओजोन क्षरण से
(b) जलवायु परिवर्तन से
(c) वैश्विक तापन से
(d) सतत्पोषणीय (संधारणीय) विकास से
उत्तर (d) सतत्पोषणीय (संधारणीय) विकास से
प्रश्न 12. लैटेराइट मिट्टी निम्नलिखित में से किस राज्य में पाई जाती है?
(a) राजस्थान
(b) हिमाचल प्रदेश
(c) महाराष्ट्र
(d) उत्तर प्रदेश
उत्तर (c) महाराष्ट्र
प्रश्न 13. निम्नलिखित में से किस राज्य में लाल मिट्टियाँ पाई जाती हैं?
(a) गुजरात
(b) ओडिशा
(c) पंजाब
(d) उत्तर प्रदेश
उत्तर (b) ओडिशा
प्रश्न 14. अत्यधिक निक्षालन द्वारा बनी मिट्टी है
(a) जलोढ़ मिट्टी
(b) लाल मिट्टी
(c) लैटेराइट मिट्टी
(d) रेगिस्तानी मिट्टी
उत्तर (c) लैटेराइट मिट्टी
प्रश्न 15. निम्न में से एक कौन सा व्यक्तिगत संसाधन नहीं है?
(a) बगान
(b) चरागाह
(c) भूमि
(d) खनिज संसाधन
उत्तर (d) खनिज संसाधन
प्रश्न 16. निम्नलिखित में से किस प्रान्त में सीढ़ीदार (सोपानी) खेती की जाती है?
अथवा सोपानी खेती किस राज्य में की जाती है?
(a) पंजाब
(b) उत्तर प्रदेश के मैदान
(c) हरियाणा
(d) उत्तराखण्ड
उत्तर (d) उत्तराखण्ड
प्रश्न 17. भारत की सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी है
(a) जलोढ़ मिट्टी
(b) लाल मिट्टी
(c) लैटेराइट मिट्टी
(d) पर्वतीय मिट्टी
उत्तर (a) जलोढ़ मिट्टी
प्रश्न 18. निम्नलिखित में से किसकी अधिक मात्रा जलोढ़ मिट्टी में पाई जाती है ?
(a) पोटाश
(b) चूना
(c) फास्फोरस
(d) ये सभी
उत्तर (d) ये सभी
प्रश्न 19. जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है
(a) पर्वतीय क्षेत्रों में
(b) मैदानी क्षेत्रों में
(c) पठारी क्षेत्रों में
(d) रेगिस्तानी क्षेत्रों में
उत्तर (b) मैदानी क्षेत्रों में
प्रश्न 20. इनमें से किस राज्य में काली मृदा पाई जाती है?
(a) झारखण्ड
(b) राजस्थान
(c) गुजरात
(d) बिहार
उत्तर (c) गुजरात
प्रश्न 21. लाल-पीली मिट्टी पाई जाती है
(a) दक्कन के पठार में
(b) मालवा प्रदेश में
(c) ब्रह्मपुत्र घाटी में
(d) थार रेगिस्तान में
उत्तर (a) दक्कन के पठार में
प्रश्न 22. कपास की खेती के लिए निम्नलिखित में से कौन-सी मि उपयुक्त है?
(a) काली मिट्टी
(b) लाल मिट्टी
(c) जलोढ़ मिट्टी
(d) लैटेराइट मिट्टी
उत्तर (a) काली मिट्टी
प्रश्न 23. पंजाब में भूमि निम्नीकरण का निम्नलिखित में से प्रमुख कारण क्या है?
अथवा पंजाब में भू-निम्नीकरण का निम्नलिखित में से मुख्य कारण क्या है?
(a) गहन खेती
(b) अधिक सिंचाई
(c) वनोन्मूलन
(d) अति पशुचारण
उत्तर (b) अधिक सिंचाई
प्रश्न 24. भूक्षरण से क्या तात्पर्य है?
(a) भूमि का अनुपजाऊ होना
(b) भूमि का दलदली होना
(c) भूमि का उपजाऊ होना
(d) भूमि का योजनाबद्ध उपयोग
उत्तर (a) भूमि का अनुपजाऊ होना
सुमेलित करें
प्रश्न 25. सूची I का सूची II से सुमेलित कीजिए ।
प्रश्न 26. सूची I का सूची II से सुमेलित कीजिए ।
कथन कूट
प्रश्न 27. सतत् पोषणीय विकास के सम्बन्ध में सही कथन का चयन करें
1. विशेष लोगों के हाथ में संसाधनों का संचय करना ।
2. संसाधनों का अन्धाधुन्ध उपयोग करना ।
3. संसाधनों का संरक्षण वर्तमान पीढ़ी के साथ-साथ आने वाली पीढ़ी के लिए संरक्षित करना।
4. पर्यावरण को बिना क्षति पहुँचाए संसाधनों का संरक्षण करना ।
कूट
(a) 1 और 2
(b) 2 और 4
(c) 2 और 3
(d) 3 और 4
उत्तर (d) 3 और 4
प्रश्न 28. निम्न कथनों में असत्य कथन का चुनाव करें
1. पंजाब में भूमि निम्नीकरण का कारण अधिक सिंचाई है।
2. दक्कन के पठार में लाल-पीली मिट्टी पाई जाती है।
3. कपास की खेती काली मिट्टी में होती है।
4. काली मिट्टी का दूसरा नाम जलोढ़ मिट्टी है।
कूट
(a) 1 और 2
(b) 2 और 3
(c) केवल 4
(d) 4 और 3
उत्तर (c) केवल 4
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
वर्णनात्मक प्रश्न- 1
प्रश्न 1. संसाधनों का वर्गीकरण करने के कौन-कौन से आधार प्रचलित हैं? सभी आधारों को बताइए ।
उत्तर – संसाधनों को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है, जिसका विवरण निम्नलिखित है
  • उत्पत्ति के आधार पर जैव और अजैव संसाधन ।
  • समाप्यता के आधार पर नवीकरणीय और अनवीकरणीय संसाधन ।
  • स्वामित्व के आधार पर व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संसाधन ।
  • विकास के स्तर के आधार पर सम्भावी, विकसित, भण्डार और संचित कोष ।
प्रश्न 2. नवीकरणीय संसाधन क्या हैं? इन्हें कितने भागों में विभाजित किया जाता है?
उत्तर –
नवीकरणीय संसाधन
वे संसाधन, जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यान्त्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत या पुन: उत्पन्न किया जा सकता है, उन्हें नवीकरण योग्य या पुनः पूर्ति योग्य संसाधन कहा जाता है; जैसे- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल, वन व वन्यजीव।
नवीकरणीय संसाधन का वर्गीकरण
इन्हें दो भागों में विभाजित किया जाता है।
  1. सतत् संसाधन इन संसाधनों को एक ही समय पर प्रयोग और पुन: प्राप्त किया जा सकता है। ये एक स्थान पर नहीं रहते हैं, बल्कि भौतिक परिवेश में प्राकृतिक रूप से भ्रमण करते रहते हैं; जैसे-बहता हुआ जल, सौर विकिरण, हवा आदि।
  2. जैविकीय संसाधन ये संसाधन जैविक प्रक्रिया द्वारा बनते हैं। इनको दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है। प्रथम, प्राकृतिक वनस्पति और द्वितीय, वन्यजीव ।
प्रश्न 3. सामुदायिक संसाधन एवं राष्ट्रीय संसाधन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए |
उत्तर –
सामुदायिक संसाधन
वे संसाधन, जिनका स्वामित्व समुदाय के सभी सदस्यों के पास समान रूप उपलब्ध होता है, सामुदायिक संसाधन कहलाते हैं; जैसे- गाँव की चारण भूमि, तालाब, श्मशान भूमि तथा शहरों में सार्वजनिक पार्क, पिकनिक स्पॉट, खेल का मैदान आदि ।
राष्ट्रीय संसाधन
तकनीकी स्तर पर देश में पाए जाने वाले सम्पूर्ण संसाधन राष्ट्रीय संसाधन हैं। इन संसाधनों पर देश की सरकार का कानूनी अधिकार होता है। खनिज संसाधन, वन एवं वन्यजीव, जल तथा राजनीतिक सीमा के अन्दर सम्पूर्ण भूमि राष्ट्रीय सम्पदा के अन्तर्गत आती है।
प्रश्न 4. संसाधन नियोजन क्या है? संसाधन नियोजन क्यों आवश्यक है? तीन कारण स्पष्ट कीजिए ।
अथवा संसाधन नियोजन की आवश्यकता क्यों पड़ती है? इस हेतु दो उपाय सुझाइए। 
उत्तर –
संसाधन नियोजन का अर्थ
संसाधन नियोजन से आशय उपलब्ध संसाधनों की पहचान और मात्रा के साथ-साथ उनके उचित विकास से है। संसाधन विकास योजना, राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों के अनुरूप होनी चाहिए।
भारत में संसाधन विशाल मात्रा में उपलब्ध हैं, लेकिन उनका विकास अपर्याप्त है या उन्हें असमान रूप से वितरित किया जाता है।
संसाधन नियोजन की आवश्यकता
संसाधनों के नियोजन की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से आवश्यक है
  • संसाधनों की बर्बादी पर रोक लगती है।
  • पर्यावरण प्रदूषण मुक्त हो जाता है।
  • वर्तमान / समकालीन समय में सभी को संसाधन प्राप्त होते हैं।
  • इसको भावी पीढ़ी की आवश्यकता पूर्ति के लिए बनाए रखा जाता है।
संसाधन नियोजन हेतु उपाय
संसाधन नियोजन के निम्नलिखित उपाय हैं
  1. संसाधन के नियोजन के लिए सरकार द्वारा प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने के लिए वनारोपण को बढ़ावा देना चाहिए।
  2. खनन प्रक्रिया पर नियन्त्रण लगाना चाहिए।
  3. सिंचाई का समुचित प्रबन्धन किया जाना चाहिए ।
  4. चरागाहों का समुचित प्रबन्धन किया जाना चाहिए।
प्रश्न 5. संसाधन नियोजन की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – संसाधन नियोजन की प्रक्रिया
संसाधन नियोजन की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण होते हैं।
  • देश के विभिन्न प्रदेशों में संसाधनों की पहचान कर उनकी तालिका बनाना प्रमुख कार्य है। इस कार्य में क्षेत्रीय सर्वेक्षण, मानचित्र बनाना और संसाधनों का गुणात्मक एवं मात्रात्मक अनुमान लगाना व मापन करना सम्मिलित है।
  • उपयुक्त कौशल और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके संसाधन विकास के लिए योजना तैयार करना।
  • संसाधन सम्बन्धी विकास योजनाओं और राष्ट्रीय विकास योजना में समन्वय स्थापित करना।
  • भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् संसाधन नियोजन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई गई हैं। संसाधनों की उपलब्धता अकेले शुरू नहीं हो सकती, इसलिए विकास की उचित प्रक्रिया, आवश्यक तकनीक व संस्थागत ढाँचे की आवश्यकता है।
  • वर्तमान में यह काम नीति आयोग के द्वारा किया जा रहा है।
प्रश्न 6. प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपभोग कैसे हुआ है? 
उत्तर – प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास के कारण प्रत्येक प्रकार के संसाधन का उपभोग बढ़ा है, जिसका विवरण निम्नलिखित है
  • तकनीकी विकास के आलोक में आत्मनिर्वाह कृषि का स्थान व्यापारिक कृषि ले लेती है, जिससे मृदा का दोहन बढ़ता है।
  • प्रौद्योगिकी के कारण खनिजों का दुर्गम और अगम्य स्थानों से भी खनन होने लगता है, जिससे उस क्षेत्र विशेष के संसाधन का उपभोग बढ़ता है।
  • तकनीकी विकास के कारण औद्योगीकरण में तीव्रता आती है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपभोग होता है।
  • आर्थिक विकास के कारण आधुनिकीकरण एवं नगरीकरण में अत्यधिक तीव्रता आई है, जिससे संसाधनों की माँग में वृद्धि देखने को मिलती है।
  • प्रौद्योगिकी विकास के कारण सामान्य वस्तुएँ, जो तटस्थता की अवस्था में होती हैं, वे भी संसाधन का रूप लेती हैं और मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं।
  • वर्तमान परिदृश्य में तकनीकी विकास वह यन्त्र है, जो संसाधनों के अनुकूलतम प्रयोग को बढ़ावा देता है ।
  • इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों के उपभोग में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है।
प्रश्न 7. भूमि एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। स्पष्ट करते हुए भारत के भौगोलिक क्षेत्र के वितरण को बताइए ।
उत्तर – भूमि एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, जिस पर मानव जीवन, वन्य जीवन, प्राकृतिक वनस्पति, आर्थिक क्रियाएँ, परिवहन एवं संचार आदि आधारित हैं। भूमि एक सीमित संसाधन है, इसलिए भूमि का विभिन्न उद्देश्यों के लिए सावधानी और योजनाबद्ध तरीके से उपयोग किया जाना चाहिए।
भारत के भौगोलिक क्षेत्र का वितरण
  • 43% भू-क्षेत्र मैदान हैं, जो कृषि एवं उद्योग के विकास में सहायक होता है।
  • 27% भू-क्षेत्र पर पठार हैं, जिसमें खनिजों, जीवाश्म ईंधन और वनों का अपार भण्डार है।
  • 30% भू-क्षेत्र पर पर्वत हैं, जो बारहमासी नदियों के प्रवाह एवं पर्यटन विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान करते हैं।
प्रश्न 8. बांगर और खादर में अन्तर बताइए |
उत्तर – बांगर और खादर में निम्नलिखित अन्तर हैं
बांगर खादर
मैदान की पुरानी जलोढ़ मृदा बांगर कहलाती है। यह नई तलछट द्वारा निर्मित होता है।
यह मैदान का ऊँचा भाग होता है, जहाँ नदियों के बाढ़ का जल नहीं पहुँचता है। यह मैदान का निचला भाग होता है, जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ का जल पहुँचता है।
यह अपेक्षाकृत कम उपजाऊ मृदा होती है। यह अपेक्षाकृत अधिक उपजाऊ मृदा होती है।
इस मृदा में कैल्शियम की मात्रा अधिक पाई जाती है। इस मृदा में तलछट के जमाव में भिन्नता देखने को मिलती है।
प्रश्न 9. पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर किस प्रकार की मृदा पाई जाती है ? इस प्रकार की मृदा की तीन मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? [NCERT ]
उत्तर – पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर जलोढ़ मृदा पाई जाती है। पूर्वी तट की ओर महानदी, कृष्णा, गोदावरी एवं कावेरी नदी डेल्टाओं का निर्माण करती हैं। जलोढ़ मृदा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
  • यह मृदा नदियों द्वारा लाए गए निक्षेपों द्वारा निर्मित होती है।
  • यह मृदा उत्तरी मैदान में पाई जाती है।
  • यह मृदा बहुत ही उपजाऊ होती है।
  • इस मृदा में पोटाश, फॉस्फोरस तथा चूना पोषक तत्त्व पाए जाते हैं।
  • जलोढ़ मृदा दो प्रकार की होती है-खादर और बांगर ।
प्रश्न 10. एक संसाधन के रूप में मिट्टी के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – संसाधन के रूप में मिट्टी
मिट्टी प्रकृति द्वारा प्राप्त संसाधनों में से एक है। उच्चावच, पैतृक शैल, वनस्पति जलवायु और समय इसके निर्माण के प्रमुख कारक हैं। समस्त जीवधारी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से अपने जीवन के लिए मिट्टी पर निर्भर होते हैं। मिट्टी मानव एवं वनस्पति जगत व जीव जंतुओं के अस्तित्व के लिए अनिवार्य घटक है। मिट्टी समस्त जीव जगत की खाद्य एवं आवास की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। विश्व की समस्त प्राचीन सभ्यताएँ व उन्नतिशील संस्कृतियाँ उन्हीं क्षेत्रों से अत्यधिक विकसित हुई हैं, जहाँ की मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ होती है। वर्तमान में भी मिट्टी की उर्वरता देश के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रही है।
प्रश्न 11. पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाने चाहिए? 
उत्तर – पहाड़ी अथवा पर्वतीय क्षेत्रों में मृदा अपरदन को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं।
  1. समोच्च कृषि को अपनाकर
  2. सोपानी कृषि को बढ़ावा देकर
  3. सीढ़ीदार कृषि की पद्धति का प्रचलन
  4. फसलों को पट्टियों में उगाकर
  5. पर्वतीय ढालों पर वृक्षों की मेखला बनाकर
प्रश्न 12. काली मिट्टी की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – काली मिट्टी 
काली मिट्टी (Black Soil) को रेगुर, काली कपास की मिट्टी, ट्रॉपिकल ब्लैक अर्थ एवं ट्रॉपिकल चेरनोजम आदि नामों से जाना जाता है। इसका निर्माण मुख्यतः दक्कन के लावा के अपक्षय हुआ है। ये देश के लगभग पाँच लाख वर्ग किमी क्षेत्र पर विस्तृत है, जिसमें प्रमुख रूप महाराष्ट्र (सर्वाधिक ), पश्चिमी मध्य प्रदेश, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु के कुछ क्षेत्र और उत्तर प्रदेश के जालौन, हमीरपुर, बाँदा एवं झाँसी जनपद सम्मिलित हैं। इसका रंग गहरा काला तथा हल्का काला और चेस्टनट की तरह होता है।
काली मिट्टी की विशेषताएँ
  1. खनिजों की प्रधानता सामान्यतः इनमें लोहा, चूना, कैल्शियम, पोटाश, एल्युमीनियम और मैग्नीशियम की प्रचुरता पाई जाती है, परन्तु इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और जैव पदार्थों की कमी मिलती है। यह मिट्टी कपास की कृषि के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती है, इसलिए इसे कपास मृदा कहते हैं।
  2. स्वतः जुताई योग्य भूमि सामान्यतः काली मृदाएँ मृण्मय, गहरी और अपारगम्य होती हैं। ये मृदाएँ गीले होने पर फूल जाती हैं और चिपचिपी हो जाती हैं। सूखने पर ये सिकुड़ जाती हैं। उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे इनमें स्वतः जुताई हो गई हो ।
  3. नमीधारण की क्षमता नमी के धीमे अवशोषण और नमी के क्षय की इस विशेषता के कारण काली मृदा में एक लम्बी अवधि तक नमी बनी रहती है। इसके कारण विशेष रूप से वर्षाधीन फसलों को शुष्क ऋतु में भी नमी मिलती रहती है। कपास के अतिरिक्त इस मिट्टी में अरहर, गेहूँ, ज्वार, अलसी, सरसों, तम्बाकू, मूँगफली आदि उपजाए जाते हैं।
वर्णनात्मक प्रश्न-2
प्रश्न 1. भू-संसाधन का अर्थ लिखिए। एक संसाधन के रूप में भूमि का उपयोग किन उद्देश्यों के लिए किया जाता है? व्याख्या कीजिए ।
अथवा भू-संसाधन से क्या तात्पर्य है? भारत के भू-उपयोग में आवश्यक परिवर्तनों हेतु कोई चार उपाय सुझाइए । 
उत्तर – भू-संसाधन का अर्थ
भूमि एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, जिस पर मानव जीवन, वन्य जीवन, प्राकृतिक वनस्पति, आर्थिक क्रियाएँ, परिवहन एवं संचार आदि आधारित हैं। भूमि एक सीमित संसाधन है, इसका उपयोग निम्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
  • मनुष्य के जीवन का आधार भूमि के अभाव में मनुष्य का जीवन संभव नहीं है। मनुष्य के जीवन के सभी क्रियाकलाप; जैसे- चलना-फिरना, व्यवसाय, मकान, दुकान, कृषि, उत्खनन व कारखाने सभी भूमि से जुड़े हैं। वनस्पति एवं पेयजल संसाधन भी भूमि पर ही निर्भर हैं।
  • आर्थिक विकास का आधार किसी भी देश का विकास वहाँ पर उपस्थित प्राकृतिक संसाधनों; जैसे – भूमि, वनस्पति, खनिज पदार्थ, उपजाऊ भूमि, जल, जलवायु आदि पर निर्भर करता है। ये संसाधन जिस देश में जितनी अधिक मात्रा में होंगे, उनका आर्थिक विकास उतनी ही तीव्रता से होगा।
  • प्राथमिक उद्योगों का विकास विभिन्न प्राथमिक उद्योगों; जैसे – कृषि, मत्स्यपालन, वनस्पति, खनिज व्यवसाय आदि का विकास भूमि पर निर्भर करता है। जिन क्षेत्रों में जिस प्रकार के प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं, वहाँ उन्हीं से संबंधित प्राथमिक उद्योगों का विकास हो सकता है।
  • व्यापार का आधार भूमि, उत्पादन का एक अनिवार्य साधन है, जिसके बिना किसी भी प्रकार का उत्पादन कार्य संभव नहीं है। अधिकांश देशों का व्यापार भूमि द्वारा उत्पादित वस्तुओं; जैसे- गेहूँ, चावल, दूध, खनिज पदार्थ, तेल, चाय, लकड़ी इत्यादि द्वारा होता है।
  • शक्ति संसाधन अधिकांश ऊर्जा के उत्पादन का साधन कोयला तथा तेल है, जिसका स्रोत भूमि है।
  • परिवहन तथा संचार के साधनों का विकास अधिकांश परिवहन एवं संचार. के साधनों का विकास भूमि पर ही हुआ है। सड़क, रेलमार्ग, डाक-तार आदि का विकास भूमि पर निर्भर करता है।
  • रोजगार का आधार मनुष्य को रोजगार प्रदान करने में भूमि का बहुत अधिक महत्त्व है। भारत में लगभग 55% जनसंख्या कृषि पर आश्रित है। सभी प्रकार की आजीविकाएँ भी भूमि संसाधन पर ही निर्भर है।
भू-उपयोग में परिवर्तन हेतु उपाय
  • वनारोपण और चरागाहों का उचित प्रबन्धन
  • पशुचारण नियन्त्रण, रेतीले टीलों पर काँटेदार झाड़ियाँ लगाकर भूमि कटाव की रोकथाम शुष्क क्षेत्रों में करना
  • बंजर भूमि का उचित प्रबन्धन करके भू-संसाधनों में होने वाले कटाव को रोकने का प्रयास करना चाहिए
  • वन क्षेत्रों के प्रतिशत को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
प्रश्न 2. जलोढ़ मिट्टी तथा काली मिट्टी की विशेषताओं को संक्षेप में लिखिए | 
अथवा जलोढ़ मिट्टी की कौन-सी चार विशेषताएँ हैं? जलोढ़ मिट्टी का निर्माण कैसे होता है? 
अथवा जलोढ़ मिट्टी की प्रमुख विशेषताएँ बताइए । अथवा जलोढ़ मिट्टी की तीन विशेषताओं को लिखिए । 
उत्तर – जलोढ़ मिट्टी की विशेषताएँ
जलोढ़ मृदा का निर्माण नदियों द्वारा बहाकर लाए गए अवसादों के निक्षेपण से होता है। अतः यह मृदा उत्तरी मैदान और नदी घाटियों के विस्तृत भागों में पाई जाती है। जलोढ़ मिट्टी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
  • धान, गेहूँ, जौ, चना, गन्ना एवं मटर आदि की पैदावार के लिए अनुकूल होती है।
  • जलोद मृदाएँ गठन में बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी की प्रकृति की पाई जाती है। सूक्ष्म तथा मध्यम कणों से निर्मित होने के कारण इसमें जल देर तक ठहर सकता है।
  • सामान्यतः इनमें पोटाश की मात्रा अधिक पाई जाती है।
  • यह मृदा पीले तथा भूरे रंग की होती है। इसका रंग निक्षेपण की गहराई जलोढ़ के गठन और निर्माण में लगने वाली समयावधि पर निर्भर करता है।
  • जलोढ़ मृदाओं पर गहन कृषि की जाती है।
  • यह मृदा भारत के सम्पूर्ण क्षेत्र के 40% भाग पर विस्तृत है।
काली मिट्टी की विशेषताएँ
काली मिट्टी की विशेषताओं के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न 12 देखें ।
प्रश्न 3. मृदा संसाधन के महत्त्व का वर्णन कीजिए एवं किन्हीं दो प्रकार की मृदाओं की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए । 
अथवा एक संसाधन के रूप में मिट्टी के महत्व का उल्लेख कीजिए तथा भारत में पाई जाने वाली किन्हीं दो प्रकार की मिट्टियों का वर्णन कीजिए | 
उत्तर – मृदा सबसे महत्त्वपूर्ण एक नवीकरण योग्य प्राकृतिक संसाधन है, परन्तु इसके कुछ सेण्टीमीटर मोटी परत बनने में ही लाखों वर्ष लग जाते हैं। मृदा निर्माण के प्रमुख कारक उच्चावच, संस्तर शैल, जलवायु, वनस्पति, अन्य जैव पदार्थ और समय हैं।
तापमान परिवर्तन, बहते जल की क्रिया, पवन, हिमनदी और अपघटन क्रियाएँ आदि मृदा बनने की प्रक्रिया में योगदान देते हैं। मृदा जैव और अजैव दोनों प्रकार के पदार्थों से बनती है। मृदा में होने वाले रासायनिक और जैविक परिवर्तन महत्त्वपूर्ण होते हैं।
भारत में पाई जाने वाली किन्हीं दो प्रकार की मृदाओं का वर्णन निम्नलिखित हैं
मरुस्थलीय मिट्टी यह मृदा शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है। कुछ क्षेत्रों में इस मृदा में नमक की मात्रा इतनी अधिक होती है कि झीलों से जल वाष्पीकृत करके इससे नमक बनाया जाता है।
इस मृदा की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं
  • इस मृदा का रंग लाल एवं भूरा होता है। यह मृदा सामान्यतः पर रेतीली और लवणीय होती है। यह मृदा राजस्थान के अधिकांश भागों में पाई जाती है।
  • इस मृदा में ह्यूमस और नमी (Moisture) की मात्रा कम होती है तथा शुष्क जलवायु और उच्च तापमान के कारण जलवाष्पन दर अधिक होती है।
  • इस मृदा को उचित तरीके से सिंचित करके कृषि योग्य बनाया जा सकता है, जैसा कि पश्चिमी राजस्थान के गंगानगर जिले में हो रहा है।
  • यह मृदा जौ, गेहूँ, कपास, मक्का, बाजरा और दालों की खेती के लिए उपयोगी है। वह मृदा पश्चिमी राजस्थान, उत्तरी गुजरात और दक्षिणी हरियाणा में पाई जाती है।
  • इस मृदा की सतह के नीचे कैल्सियम की मात्रा बढ़ती चली जाती है और निम्न परतों में चूने के कंकर की सतह पाई जाती है, जिसके कारण मृदा में जल का अंत:स्वंदन (Infiltration) नहीं हो पाता।
लैटेराइट मिट्टी लैटेराइट (Laterite) ग्रीक शब्द लेटर (Later) से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ ईंट होता है। लैटेराइट मृदा उच्च तापमान और अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है। लैटेराइट मृदा के निर्माण में निक्षालन (Leaching) प्रक्रिया की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
लैटेराइट मृदा की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
  • उच्च तापमान के कारण जैविक पदार्थों को अपघटित करने वाले वैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं, जिससे इसमें ह्यूमस की मात्रा कम पाई जाती है।
  • लैटेराइट मृदा पर अधिक मात्रा में खाद्य और रासायनिक उर्वरक डालकर खेती की जा सकती है। इस मृदा में काबू, चाय, कॉफी तथा कुनैन की फसल उगाई जाती है।
  • यह मृदा कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और असम की पहाड़ियों में पाई जाती है।
प्रश्न 4. भारत में मिट्टी के प्रकारों पर एक निबन्ध लिखिए । 
अथवा भारत में पाई जाने वाली मिट्टी के किन्हीं तीन प्रकारों की विवेचना कीजिए | 
अथवा मृदा से आप क्या समझते हैं? भारत में पाई जाने वाली मृदा के प्रकारों का वर्णन कीजिए।  
उत्तर – मृदा का अर्थ
घरातल पर प्राकृतिक तत्त्वों के समुच्चय जिसमें जीवित पदार्थ तथा पौधों को पोषित करने की क्षमता होती है मृदा कहलाती है।
रासायनिक और भौतिक गुणों; जैसे- रंग, बनावट, मोटाई आदि के आधार पर भारत की मृदाओं को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है
  1. जलोढ़ मृदा जलोढ़ मृदा भारत में विस्तृत रूप से फैली हुई है। इस मृदा का निर्माण हिमालय के तीन महत्त्वपूर्ण नदी तंत्रों सिंधु, गंगा और ब्रहम्पुत्र द्वारा लाए गए निक्षेपों से होता है।
    यह मृदा भारत के सम्पूर्ण क्षेत्र के 45.6% भाग में विस्तृत है। इसकी उर्वरक क्षमता अधिक होती है। जिन क्षेत्रों में यह मृदा पाई जाती है, वहां कृषि अधिकता से की जाती है और वहां घनी जनसंख्या पाई जाती है।
  2. काली मृदा इस मृदा को रेगर या काली कपास मृदा भी कहा जाता है। यह भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 16.6% भाग में विस्तृत है। यह बहुत महीन कणों से बनी है।
  3. लाल और पीली मृदा इस मृदा का रंग लाल होता है। यह भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 10.6% भाग पर विस्तृत है। इस मृदा का लाल रंग दक्कन पठार के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में लोहे के कणों का आग्नेय और रुपांतरित चट्टानों में फैलने के कारण होता है। यह मृदा जलयोजना के कारण पीली हो जाती है।
  4. लैटेराइट मृदा लैटराइट शब्द का शाब्दिक अर्थ ईंट होता है। लैटराइट मृदा उच्च तापमान और अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है। लैटेराइट मृदा के निर्माण में निक्षालन प्रक्रिया की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
  5. मरुस्थलीय मृदा यह मृदा भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 4% भाग में विस्तृत है। कुछ क्षेत्रों में इस मृदा में नमक की मात्रा इतनी अधिक होती है कि झीलों से जल वाष्पीकृत करके इससे नमक बनाया जाता है।
  6. वनीय एवं पहाड़ी मृदा यह भारत के 8% भौगोलिक क्षेत्र पर विस्तृत है। यह मृदा नदी घाटियों में दोमट और सिल्टदार होती है, लेकिन ऊपरी ढलानों पर इसका गठन मोटे कणों से होता है।
प्रश्न 5. भारत में भूमि उपयोग के प्रमुख प्रारूपों की विवेचना कीजिए ।
अथवा भारत में भूमि उपयोग प्रारूप का वर्णन कीजिए। वर्ष 1960-61 से वन के अन्तर्गत क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण वृद्धि नहीं हुई, इसका क्या कारण है? 
उत्तर – भारत में भूमि उपयोग के प्रतिरूप
भारत में भूमि उपयोग प्रतिरूप के निम्नलिखित कारक हैं।
  1. भौतिक कारक इसके अन्तर्गत जलवायु, मृदा के प्रकार और भू-आकृति इत्यादि सम्मिलित हैं।
  2. मानवीय कारक इसके अन्तर्गत जनसंख्या घनत्व, सांस्कृतिक कारक, प्रौद्योगिकी क्षमता आदि सम्मिलित हैं।
भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है। इसके 93% भाग के भू-उपयोग आँकड़े उपलब्ध हैं, क्योंकि पूर्वोत्तर प्रांतों में असम को छोड़कर अन्य प्रान्तों के सूचित क्षेत्र के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है तथा जम्मू और कश्मीर में पाकिस्तान और चीन अधिकृत क्षेत्रों के भूमि उपयोग का सर्वेक्षण नहीं हुआ है।
1960-61 से वन क्षेत्र में वृद्धि न होने के कारण
1960-61 के बाद से वनों के अन्तर्गत भूमि में वृद्धि नहीं हुई है, क्योंकि स्वतन्त्रता के बाद के युग में कृषि के विस्तार के लिए अधिक भूमि की माँग की गई। गैर-कानूनी ढंग से जंगल की कटाई और अन्य गतिविधियों जैसे हरित क्रांति के विकासात्मक कार्य, बुनियादी सुविधाओं के बाद औद्योगिकरण और शहरीकरण से भी वन क्षेत्र में कमी आई है। दूसरी ओर जंगल के आस-पास एक बड़ी आबादी रहती है, जो वन सम्पदा पर निर्भर रहती है। इन सब कारणों से वनों में ह्रास हो रहा है
  1. देश में राष्ट्रीय वन नीति, 1952 द्वारा निर्धारित वनों के अंतर्गत 33% भौगोलिक क्षेत्र निर्धारित है, लेकिन तुलनात्मक दृष्टि से वन के अन्तर्गत बहुत कम क्षेत्र है।
  2. स्थायी चरागाह के अन्तर्गत भी भूमि कम हुई है।
  3. अधिकांश वर्तमान परती भूमि के अतिरिक्त अन्य परती भूमि अनुपजाऊ है और इस पर फसल उगाने के लिए कृषि लागत बहुत ज्यादा है। इन भूमियों पर 2-3 वर्ष में एक-दो बार कृषि की जाती है। इनको शुद्ध बोये गए क्षेत्र में शामिल किया जाता है, तो भारत की कुल शुद्ध भूमि 54% होगी।
प्रश्न 6. भू-क्षरण (मृदा अपरदन) से क्या तात्पर्य हैं? भू-क्षरण को रोकने के दो उपाय बताएँ। 
अथवा मृदा अपरदन से क्या अभिप्राय है? मृदा अपरदन रोकने के उपायों का वर्णन कीजिए।
अथवा मृदा अपरदन का क्या अर्थ है? मृदा अपरदन के भूमि पर पड़ने वाले दो प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – भू-क्षरण का अर्थ
जल व वायु के प्रभाव मिट्टी की ऊपरी परत का बहकर या उड़कर स्थानान्तरित होना ही मृदा क्षरण कहलाता है। मृदा पृथ्वी का एक अमूल्य संसाधन है। मानव जीवन का अस्तित्व मृदा पर ही निर्भर है। मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताएँ; जैसे—भोजन, वस्त्र आदि की पूर्ति मृदा द्वारा ही होती है।
इसके अतिरिक्त, मृदा सर्वाधिक लोगों को रोजगार प्रदान करती है तथा मृदा पर ही विभिन्न वनस्पतियाँ उत्पन्न होती हैं, जिनसे पर्यावरणीय आवश्यकताओं की पूर्ति तथा जीव-जन्तुओं को आवास व भोजन प्राप्त होता है।
भू-क्षरण / मृदा संरक्षण के उपाय / सुझाव
मृदा संरक्षण के निम्नलिखित उपाय हैं
  1. वृक्षारोपण खाली भूमि पर तथा कृषि भूमि की मेड़ों पर वृक्षारोपण करना चाहिए, क्योंकि वृक्षों की जड़ें मृदा को संगठित कर जकड़े रहती हैं।
  2. खेतों में मेड़ निर्माण खेतों में मेड़ से वर्षा द्वारा मिट्टी के बहाव से सुरक्षा होती है। अत: खेतों के किनारे ऊँची मेड़ बनानी चाहिए।
  3. ढालों पर सीढ़ीदार खेत ढालों पर सीढ़ीदार खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए, जिससे कि वर्षा के दौरान मिट्टी का अपरदन न हो।
  4. पशुचराई पर नियन्त्रण चरागाहों में पशुओं की नियन्त्रित चराई की जानी चाहिए। अनियन्त्रित चराई से मिट्टी की ऊपरी सतह पशुओं के पैरों की रगड़ से उखड़ जाती है, जो वर्षा, वायु द्वारा अपरदित हो जाती है।
  5. मृदा अपरदन का सर्वेक्षण समय-समय पर मृदा अपरदन का सर्वेक्षण किया जाना चाहिए। यह कार्य वर्ष 1953 में स्थापित केन्द्रीय भू-संरक्षण बोर्ड द्वारा किया जाता है।
मृदा अपरदन के भूमि पर पड़ने वाले दो प्रभाव
  1. मृदा की उत्पादकता में कमी मृदा अपरदन से मृदा की ऊपरी उपजाऊ परत हट जाती है। यह परत पौधे और मिट्टी के लिए आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होता है। मृदा की उपरी परत को बरकरार रखने के लिए फसल प्रणाली में बदलाव करना चाहिए तथा इसकी उर्वरकता में सुधार करके विभिन्न प्रकार की फसलों के लिए उपयुक्त बनाया जा सकता है।
  2. मरुस्थलीयकरण में वृद्धि मरुस्थलीयकरण के लिए मृदा अपरदन एक प्रमुख कारण है। यह रहने योग्य क्षेत्रों को रेगिस्तान में बदल देता है। वनों की कटाई और भूमि के विनाशकारी उपयोग से स्थिति और खराब हो जाती है। इससे जैव विविधता को हानि मिट्टी का क्षारण और पारिस्थितिकी तन्त्र में परिवर्तन भी होता है।

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