UP Board Class 10 Social Science Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद (इतिहास)
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फास्ट ट्रैक रिवीज़न
प्रथम विश्वयुद्ध, खिलाफत और असहयोग आन्दोलन
प्रथम विश्वयुद्ध (1914) ने दुनियाभर में एक नई राजनीतिक और आर्थिक स्थिति का निर्माण किया। युद्ध के बाद उद्योगों में अत्यधिक हानि हुई। लोगों को भोजन की कमी, महामारी आदि का सामना करना पड़ा। इन परिस्थितियों के दौरान महात्मा गाँधी अपने सत्याग्रह दर्शन के साथ जनवरी, 1915 में भारत आए ।
गाँधीजी का सत्याग्रह
- महात्मा गाँधी के सत्य और अहिंसा के आधार पर आन्दोलन और विरोध करने के तरीका को सत्याग्रह के रूप में जाना गया। उन्होंने अहिंसा के माध्यम से विरोध का तरीका बताया।
- वर्ष 1917 में गाँधीजी ने बिहार के चम्पारण में दमनकारी व्यवस्था के विरुद्ध किसानों के संघर्ष को प्रेरित किया तथा अपना सत्याग्रह चलाया।
- वर्ष 1918 में गाँधीजी ने गुजरात के खेड़ा जिले में किसान आन्दोलन चलाया, यह किसानों का अंग्रेज सरकार की कर वसूली के विरुद्ध एक सत्याग्रह था।
रॉलेट एक्ट
- भारतीयों के विरोध के बावजूद वर्ष 1919 में रॉलेट एक्ट पारित किया गया। इस एक्ट के अनुसार, राजनीतिक कैदियों को बिना किसी मुकदमे के दो साल तक जेल में रखने का प्रावधान था। गाँधीजी ने इस कानून का विरोध किया।
- रॉलेट एक्ट के विरोध में 6 अप्रैल, 1919 को गाँधीजी के नेतृत्व में अहिंसक आन्दोलन चलाया गया, जिसमें जगह-जगह जुलूस एवं हड़तालें की गईं।
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड
- सरकार के दमनकारी कानूनों के विरोध में लोग 13 अप्रैल, 1919 को पंजाब के अमृतसर में जलियाँवाला बाग में एकत्रित हुए। उसी दिन वैशाखी का मेला भी था।
- जनरल डायर ने उस मैदान के सभी रास्ते बन्द करवा दिए तथा मुख्य प्रवेश द्वार से ही अपने सिपाहियों को गोली चलाने का आदेश दिया। इस घटना में सैकड़ों लोग मारे गए।
- रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इस घटना के विरोध में नाइटहुड की उपाधि वापस कर दी।
खिलाफत आन्दोलन
- प्रथम विश्वयुद्ध में ओटोमन तुर्की हार के बाद समाप्त हो गया था। इस्लामिक विश्व के आध्यात्मिक नेता (खलीफा) ओटोमन सम्राट पर कठोर सन्धि लगाई गई। इससे भारतीय मुसलमानों ने अंग्रेजों से नाराज होकर आन्दोलन करने का निर्णय किया। मौलाना आजाद, हकीम अजमल खान और हसरत मोहानी के नेतृत्व में खिलाफत समिति की स्थापना हुई।
- मोहम्मद अली और शौकत अली ने इस मुद्दे पर महात्मा गाँधी के साथ चर्चा की।
- गाँधीजी ने इसे ‘हिन्दुओं और मुसलमानों को एकजुट करने का एक अवसर’ कहा। कांग्रेस ने सितम्बर, 1920 में कलकत्ता अधिवेशन में खिलाफत आन्दोलन शुरू करने का प्रस्ताव पारित किया।
- दिसम्बर, 1920 में नागपुर अधिवेशन के दौरान कांग्रेस द्वारा असहयोग आन्दोलन अपनाया गया, जिसका नेतृत्व महात्मा गाँधी ने किया था। महात्मा गाँधी के नेतृत्व में. असहयोग-खिलाफत आन्दोलन को बल मिला।
आन्दोलन के अन्दर अलग-अलग विचार
- असहयोग-खिलाफत आन्दोलन शहर के मध्यम वर्ग की भागीदारी के साथ आरम्भ हुआ था।
- छात्र- शिक्षकों ने स्कूल तथा वकीलों ने मुकदमा लड़ना छोड़ दिया था।
ग्रामीण क्षेत्रों में विद्रोह
- असहयोग आन्दोलन शहर से ग्रामीण क्षेत्रों तक फैल गया। अवध में किसानों का नेतृत्व बाबा रामचन्द्र कर रहे थे। रामचन्द्र फिजी में गिरमिटिया मजदूर के रूप में काम कर चुके थे।
- अधिकतर किसान आन्दोलन राजस्व वसूली के विरुद्ध थे। जमींदारों को नाई-धोबी सुविधाओं से वंचित करने के लिए पंचायतों ने नाई-धोबी बन्द का आदेश दिया।
- जून, 1920 में जवाहरलाल नेहरू ने अवध की समस्याओं को समाप्त करने के लिए अक्टूबर में अवध किसान सभा की स्थापना की।
आदिवासियों द्वारा स्वराज की व्याख्याएँ
- आदिवासी किसानों ने महात्मा गाँधी के विचारों का अर्थ निकाला कि उन्हें कर नहीं देना होगा तथा भूमि को गरीबों में पुनर्वितरित किया जाएगा।
- आन्ध्र प्रदेश की गुडेम पहाड़ियों एक गोरिल्ला आन्दोलन, अल्लूरी सीताराम राजू के नेतृत्व में हुआ।
- गुडेम के विद्रोहियों ने गोरिल्ला युद्ध जारी रखा तथा सीताराम राजू को पकड़ कर वर्ष 1924 में फाँसी दे दी गई।
बागानों में स्वराज
- असम में बागानी कार्यकर्ताओं के लिए आजादी का अर्थ 1859 ई. के अन्तर्देशीय उत्प्रवासन अधिनियम द्वारा सीमित क्षेत्रों से बाहर जाने का अधिकार था, जिससे पहले वे वंचित थे।
- इस कानून के अन्तर्गत बागानी श्रमिकों को सरकारी आदेश के बिना चाय बागान छोड़ने की अनुमति नहीं थी ।
सविनय अवज्ञा की ओर
चौरी-चौरा की घटना 5 फरवरी, 1922 को संयुक्त प्रान्त गोरखपुर में हुई थी, जिसके कारण महात्मा गाँधी ने फरवरी, 1922 को असहयोग आन्दोलन वापस लेने का निर्णय किया, क्योंकि यह एक हिंसक आन्दोलन हो चुका था। इस आन्दोलन में तीन नागरिक सहित 23 पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गई। गाँधीजी ने महसूस किया कि सामूहिक संघर्ष के लिए सत्याग्रहियों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
कांग्रेस के अन्दर अलग विचार
- कांग्रेस वर्ष 1919 के भारत सरकार अधिनियम द्वारा स्थापित प्रान्तीय परिषद् के चुनाव में भाग लेना चाहती थी, क्योंकि उसने महसूस किया कि परिषद् के अन्दर ब्रिटिश नीतियों का विरोध करना महत्त्वपूर्ण है।
- सी.आर. दास और मोतीलाल नेहरू ने कांग्रेस के अन्दर स्वराज पार्टी का गठन किया, लेकिन जवाहरलाल नेहरू तथा सुभाषचन्द्र बोस ने जन-आन्दोलन और पूर्ण स्वतन्त्रता का तर्क दिया।
- वर्ष 1920 के अन्त में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार बदल गया, जिसका प्रभाव विश्वव्यापी आर्थिक मन्दी पर पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप कृषि मूल्य वर्ष 1926 से गिरने लगा और वर्ष 1930 के बाद पूर्ण रूप से धराशायी हो गया।
साइमन कमीशन का गठन
- साइमन कमीशन जॉन साइमन के अन्तर्गत गठित किया गया था।
- इसका उद्देश्य भारत में संवैधानिक व्यवस्था के कार्य की समीक्षा करना और सुझाव देना था।
- भारतीय नेताओं ने इसका विरोध किया, क्योंकि इसमें कोई भारतीय नहीं था।
पूर्ण स्वराज की माँग
- दिसम्बर, 1929 में जवाहरलाल की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में भारत के लिए पूर्ण स्वराज की माँग को स्वीकार कर लिया। 26 जनवरी, 1930 को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में भी मनाया गया।
- महात्मा गाँधी ने पूर्ण स्वराज, नामक पुस्तक लिखी तथा बाल गंगाधर तिलक ने नारा दिया कि “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है मैं इसे लेकर ही रहूँगा।”
नमक यात्रा और सविनय अवज्ञा आन्दोलन
- महात्मा गाँधी ने वायसराय इरविन से ग्यारह माँगों का आग्रह किया था। इन मांगों में नमक कर’ को समाप्त करने की माँग भी शामिल थी।
- नमक कर और इसके उत्पादन पर सरकार के एकाधिकार को गाँधीजी ने ब्रिटिश शासन का क्रूर पक्ष बताया था।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन
- गाँधीजी ने 12 मार्च, 1930 को 78 अनुयायियों के साथ गुजरात के तटीय शहर दाण्डी के लिए साबरमती आश्रम से अपनी यात्रा शुरू की। 6 अप्रैल को वह दाण्डी पहुँचे और उन्होंने नमक कानून को तोड़ा।
- उन्होंने समुद्री पानी को उबालकर नमक बनाना शुरू किया। इस प्रकार सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की गई।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का स्थगन
- इस आन्दोलन को बन्द करने के लिए सत्याग्रहियों पर हमला किया गया तथा लगभग एक लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया। अब्दुल गफ्फार खान को वर्ष 1930 में गिरफ्तार किया गया था।
- महात्मा गाँधी ने हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए 5 मार्च, 1931 को इरविन साथ एक समझौता करके आन्दोलन को बन्द करने का निर्णय लिया।
पुन: सविनय अवज्ञा आन्दोलन
- दिसम्बर, 1931 में गाँधीजी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के लिए लन्दन गए, जहाँ उन्हें कोई सफलता नहीं मिली।
- महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को पुनः शुरू किया तथा यह आन्दोलन एक वर्ष तक जारी रखा गया। वर्ष 1934 तक इस आन्दोलन का प्रभाव कम हो गया था।
विभिन्न समूहों के लिए आन्दोलन का अर्थ
विभिन्न सामाजिक समूहों के लिए स्वराज का अर्थ अलग था, जो निम्नलिखित है
- ग्रामीण क्षेत्रों में गुजरात के पाटीदार और उत्तर प्रदेश जाट जैसे समृद्ध किसान समुदाय सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समर्थक थे।
- व्यावसायिक हितों को एकजुट करने के लिए वर्ष 1920 में भारतीय औद्योगिक एवं व्यावसायिक कांग्रेस और वर्ष 1927 में भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ का निर्माण किया गया।
- जी. डी. बिडला और पुरुषोत्तमदास ठाकुर जैसे उद्योगपतियों ने औपनिवेशिक नियन्त्रण के विरुद्ध आवाज उठाई।
- इस आन्दोलन में उच्च जातियों की महिलाएँ शामिल थीं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में सम्पन्न किसान परिवारों की महिलाएँ शामिल थीं।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन की सीमाएँ
- स्वराज की अवधारणा ने सभी सामाजिक समूहों को प्रभावित नहीं किया था। एक समूह ‘अस्पृश्यों’ का था, जो स्वयं को 1930 के दशक के दौरान दलित कहने लगा।
- गाँधीजी ने दलितों को हरिजन बताया। उन्होंने कहा अस्पृश्यता को समाप्त किए बिना स्वराज की स्थापना सौ साल तक नहीं की जा सकती है।
दलित नेता की माँगें
- डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने शैक्षिक संस्थानों में आरक्षित सीटों और अलग निर्वाचन क्षेत्रों की माँग की, जिससे विधायी परिषदों के लिए दलित सदस्यों का चयन किया जा सके।
- अम्बेडकर ने दलितों को वर्ष 1930 में अवसादग्रस्त वर्गों के संघों में संगठित किया।
- दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की माँग के कारण दूसरे गोलमेज सम्मेलन में महात्मा गाँधी और डॉ. अम्बेडकर के मध्य मतभेद हुए ।
- जब ब्रिटिश सरकार ने अम्बेडकर की माँग को स्वीकार किया, तो गाँधीजी ने इसका विरोध किया। हालाँकि अम्बेडकर ने अन्ततः गाँधीजी के विचार को स्वीकार कर लिया, जिसके परिणामस्वरूप सितम्बर, 1932 को पूना समझौते पर हस्ताक्षर हुए।
हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष
- 1920 के दशक के मध्य मुस्लिम लीग, कांग्रेस हिन्दू महासभा जैसे राष्ट्रवादी संगठन एक-दूसरे के काफी समकक्ष थे। बाद में उनके आपसी सम्बन्ध खराब होते चले गए। वर्ष 1930 में मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मुहम्मद इकबाल ने हिन्दू-मुस्लिमों के लिए अलग-अलग मतदान की माँग की।
हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग के बीच मतभेद
- कांग्रेस और मुस्लिम के बीच मतभेद केवल भावी विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व करने का था। मुस्लिम नेता मुहम्मद अली जिन्ना निम्न दो शर्तों पर अलग निर्वाचिका की माँग को छोड़ने के लिए तैयार थे
- केन्द्रीय सभा में मुस्लिमों को आरक्षित सीटें दी जाएँ।
- प्रतिनिधित्व मुस्लिम वर्चस्व वाले प्रान्तों (बंगाल और पंजाब) में आबादी के अनुपात में हो।
- एम. आर. जयकर की अगुवाई में हिन्दू महासभा के अत्यधिक विरोध के कारण यह मुद्दा हल नहीं हो पाया।
सामूहिक एकता की भावना
- भारत माता की छवि 1870 के दशक में पहली बार बंकिमचन्द्र चटर्जी ने बनाई थी।
- उन्होंने वन्दे मातरम् गीत लिखा था तथा बाद में यह गीत इनके उपन्यास आनन्दमठ में शामिल किया गया, जो बाद में स्वदेशी आन्दोलन के दौरान गाया गया था।
- भारत माता की छवि को पहली बार अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने चित्रित किया था। बंगाल में रवीन्द्रनाथ टैगोर और मद्रास में नटेसा शास्त्री ने लोक कथाओं और गीतों का संग्रह किया।
- स्वदेशी आन्दोलन के दौरान बंगाल में तिरंगा ध्वज तैयार किया गया था। इसमें आठ प्रान्तों का प्रतिनिधित्व किया गया था तथा एक अर्द्धचन्द्र को हिन्दू-मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करते हुए दिखाया गया था।
- वर्ष 1921 में महात्मा गाँधी ने स्वराज ध्वज को तैयार किया। यह एक तिरंगा था, जिसके केन्द्र में एक चरखे का पहिया था, जो गाँधीजी के आदर्श का प्रतिनिधित्व करता था।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ हुआ
(a) वर्ष 1910
(b) वर्ष 1911
(c) वर्ष 1914
(d) वर्ष 1920
उत्तर (c) वर्ष 1914
प्रश्न 2. महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत कब लौटे थे?
(a) वर्ष 1915 में
(b) वर्ष 1916 में
(c) वर्ष 1918 में
(d) वर्ष 1920 में
उत्तर (a) वर्ष 1915 में
प्रश्न 3. भारत में ‘राष्ट्रपिता’ कहकर किसे सम्बोधित किया जाता है?
(a) महात्मा गाँधी
(b) जवाहरलाल नेहरू
(c) सुभाषचन्द्र बोस
(d) गोपालकृष्ण गोखले
उत्तर (a) महात्मा गाँधी
प्रश्न 4. भारत वापस आने पर गाँधीजी ने पहला सत्याग्रह कहाँ किया था?
(a) चम्पारण
(b) बारदोली
(c) अहमदाबाद
(d) खेड़ा
उत्तर (a) चम्पारण
प्रश्न 5. महात्मा गाँधी का विचार था
(a) धर्म को कभी भी राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता
(b) धर्म का राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं है
(c) धर्म और राजनीति अलग-अलग हैं।
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर (a) धर्म को कभी भी राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता
प्रश्न 6. असहयोग आन्दोलन का मुख्य कारण क्या था?
(a) रॉलेट एक्ट
(b) प्रथम विश्व युद्ध
(c) खिलाफत आन्दोलन
(d) चौरी-चौरा की घटना
उत्तर (a) रॉलेट एक्ट
प्रश्न 7. जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड किस वर्ष में हुआ था?
(a) वर्ष 1918
(b) वर्ष 1919
(c) वर्ष 1920
(d) वर्ष 1921
उत्तर (b) वर्ष 1919
प्रश्न 8. जलियाँवाला बाग काण्ड में गोलियाँ किसने चलवाईं ?
(a) माउण्टबेटन
(b) लॉर्ड डलहौजी
(c) लॉर्ड इरविन
(d) जनरल डायर
उत्तर (d) जनरल डायर
प्रश्न 9. कांग्रेस द्वारा असहयोग आन्दोलन कब अपनाया गया था?
(a) सूरत में दिसम्बर, 1920 में
(b) नागपुर में दिसम्बर, 1920 में
(c) कलकत्ता में जनवरी, 1921 में
(d) नागपुर में दिसम्बर, 1921 में
उत्तर (b) नागपुर में दिसम्बर, 1920 में
प्रश्न 10. असहयोग आन्दोलन का नेतृत्व किसने किया?
(a) जवाहरलाल नेहरू ने
(b) मोतीलाल नेहरू ने
(c) लोकमान्य तिलक ने
(d) महात्मा गाँधी ने
उत्तर (d) महात्मा गाँधी ने
प्रश्न 11. असहयोग आन्दोलन के दौरान अवध में किसानों का नेतृत्त्व किसने किया?
(a) जवाहरलाल नेहरू
(b) बाबा रामचन्द्र
(c) शौकत अली
(d) महात्मा गाँधी
उत्तर (b) बाबा रामचन्द्र
प्रश्न 12. चौरी-चौरा काण्ड किस वर्ष घटित हुआ?
(a) वर्ष 1920
(b) वर्ष 1921
(c) वर्ष 1922
(d) वर्ष 1925
उत्तर (c) वर्ष 1922
प्रश्न 13. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब हुई थी?
(a) 1885 ई.
(b) 1904 ई.
(c) 1857 ई.
(d) 1855 ई.
उत्तर (a) 1885 ई.
प्रश्न 14. साइमन कमीशन का बहिष्कार किया गया था, क्योंकि
(a) आयोग में कोई ब्रिटिश सदस्य नहीं था।
(b) इसने हिन्दू और मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मण्डल की माँग की।
(c) आयोग में कोई भारतीय सदस्य नहीं था ।
(d) इसने हिन्दू और मुसलमानों का पक्ष लिया था ।
उत्तर (c) आयोग में कोई भारतीय सदस्य नहीं था ।
प्रश्न 15. साइमन कमीशन का विरोध करते हुए निम्नलिखित में से कौन पुलिस की लाठियों के प्रहार से शहीद हुए ?
(a) मोतीलाल नेहरू
(b) लाला लाजपत राय
(c) गोपाल कृष्ण गोखले
(d) देशबन्धु चितरंजनदास
उत्तर (b) लाला लाजपत राय
प्रश्न 16. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ‘पूर्ण स्वराज्य’ प्राप्त करने का लक्ष्य कब घोषित किया?
(a) वर्ष 1920 में
(b) वर्ष 1929 में
(c) वर्ष 1930 में
(d) वर्ष 1942 में
उत्तर (b) वर्ष 1929 में
प्रश्न 17. सविनय अवज्ञा आन्दोलन कब चलाया गया?
(a) वर्ष 1942
(b) वर्ष 1914
(c) वर्ष 1928
(d) वर्ष 1930
उत्तर (d) वर्ष 1930
प्रश्न 18. गाँधीजी ने नमक कानून का उल्लंघन कहाँ किया था?
अथवा गाँधीजी ने नमक सत्याग्रह कहाँ प्रारम्भ किया था?
(a) यरवदा
(b) दाण्डी
(c) लाहौर
(d) चम्पारण
उत्तर (b) दाण्डी
प्रश्न 19. ‘हिन्द स्वराज’ पुस्तक के लेखक हैं?
(a) सरदार पटेल
(b) बाल गंगाधर तिलक
(c) महात्मा गाँधी
(d) सुभाषचन्द्र बोस
उत्तर (c) महात्मा गाँधी
प्रश्न 20. निम्नलिखित में से किसने बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व किया था?
(a) महात्मा गाँधी
(b) चन्द्रशेखर आजाद
(c) ज्योतिबा फुले
(d) सरदार वल्लभभाई पटेल
उत्तर (d) सरदार वल्लभभाई पटेल
प्रश्न 21. “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा ।” यह कथन किसका है?
(a) गोपाल कृष्ण गोखले
(b) बाल गंगाधर तिलक
(c) जवाहरलाल नेहरू
(d) महात्मा गाँधी
उत्तर (b) बाल गंगाधर तिलक
प्रश्न 22. ‘वन्दे मातरम्’ गीत के रचयिता कौन थे?
(a) रवीन्द्रनाथ टैगोर
(b) सोहनलाल द्विवेदी
(c) बंकिमचन्द्र चटर्जी
(d) रामधारी सिंह दिनकर
उत्तर (c) बंकिमचन्द्र चटर्जी
प्रश्न 23. रॉलेट एक्ट कब पारित हुआ?
(a) वर्ष 1918 में
(b). वर्ष 1919 में
(c) वर्ष 1920 में
(d) वर्ष 1921 में
उत्तर (b) वर्ष 1919 में
प्रश्न 24. गुलामगिरी के लेखक कौन थे?
(a) ई. वी. रामास्वामी
(b) ज्योतिबा फुले
(c) भीमराव रामजी अम्बेडकर
(d) बालगंगाधर तिलक
उत्तर (b) ज्योतिबा फुले
प्रश्न 25. ‘आनन्द मठ’ उपन्यास के लेखक कौन थे?
(a) बंकिम चन्द्र चटर्जी
(b) रवीन्द्रनाथ टैगोर
(c) शरत चन्द्र चटजा
(d) सुभाष चन्द्र बोस
उत्तर (a) बंकिम चन्द्र चटर्जी
सुमेलित करें
प्रश्न 26. सुमेलित कीजिए

प्रश्न 27. सुमेलित कीजिए

कथन कूट
प्रश्न 28. निम्न में से वर्ष 1916 से सम्बद्ध घटना है
1. लखनऊ समझौता
2. होमरूल आन्दोलन
3. दुर्भिक्ष के कारण लोगों की मृत्यु
4. चम्पारण सत्याग्रह
कूट (a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 2 और 3
(d) ये सभी
उत्तर (b) 1 और 2
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
वर्णनात्मक प्रश्न -1
प्रश्न 1. भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारणों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जब भारत में राष्ट्रवाद की भावना लोगों में बढ़ने लगी, तब इसने एक राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम का रूप ले लिया, जिनमें राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक कारण प्रमुख थे ।
राजनीतिक कारण 1857 की क्रान्ति में अंग्रेजों की नीतियों के खिलाफ गुस्सा फूटा, जिससे भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न हुई। 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई, जिसने भारत में अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों को एकजुट होकर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने का प्रयास किया, जिससे भारत के लोगों को राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम के लिए उनमें एकता की भावना पैदा करना भी भारतीयों में राष्ट्रवाद के उदय का कारण बना।
आर्थिक कारण भारत में ब्रिटिश कालीन आय के दो मुख्य स्रोत कृषि और उद्योग थे। अंग्रेजों के द्वारा कृषि के क्षेत्रों में बन्दोबस्त की नीतियाँ शुरू की गईं, जिनमें स्थायी बन्दोबस्त, महालवाड़ी और रैयतवाड़ी बन्दोबस्त प्रणाली थीं।
इन व्यवस्थाओं के कारण किसानों का शोषण होने लगा। दूसरी तरफ उद्योग क्षेत्र भी ब्रिटिश नीतियों के कारण प्रताड़ित होने लगा। भारत में लघु उद्योग धीरे-धीरे समाप्त होने लगे। इस प्रकार, कृषि और उद्योग क्षेत्र में अंग्रेजों की नीतियों के खिलाफ राष्ट्रवाद का उदय हुआ।
सामाजिक कारण राजा राममोहन राय, स्वामी विवेकानन्द, दयानन्द सरस्वती और ईश्वरचन्द विद्यासागर जैसे महानायकों ने सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आन्दोलनों को चलाया, जिसमें समाज में चल रही बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया गया, जिससे भारत के लोगों में एकता की भावना का उदय होना शुरू हो गया था।
प्रश्न 2. महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में सत्याग्रह एवं अहिंसा का किस प्रकार प्रयोग किया? कोई दो उदाहरण दीजिए ।
अथवा भारत के स्वतन्त्रता संघर्ष में गाँधीजी के योगदान का मूल्यांकन करें।
उत्तर – सत्याग्रह एक प्रकार से दमनकारियों के विरुद्ध जन आन्दोलन का एक अहिंसावादी ढंग माना जाता है। महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में सत्याग्रह एवं अहिंसा का बखूबी प्रयोग किया, जिसके उदाहरण निम्न प्रकार हैं
- गाँधीजी ने दक्षिणी अफ्रीका में सत्याग्रह की तकनीक का सफल प्रयोग किया।
- वर्ष 1917 में इन्होंने चम्पारण के किसानों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष किया और सरकार को वर्ष 1918 में चम्पारण के किसानों के कल्याण के लिए एक अधिनियम पारित करना पड़ा।
- वर्ष 1918 इन्होंने गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों की मदद के लिए किसान आन्दोलन चलाया। फसल खराब हो जाने और प्लेग की महामारी के कारण खेड़ा जिले के किसान लगान चुकाने की हालत में नहीं थे। ये चाहते थे कि लगान वसूली में छूट दी जाए। अन्ततः सरकार को झुकना पड़ा और लगान का भुगतान अगले वर्ष तक स्थगित कर दिया गया।
- पुनः वर्ष 1918 में गाँधीजी ने अहमदाबाद के मिल श्रमिकों की हड़ताल हस्तक्षेप किया तथा उनके वेतन में वृद्धि करने में सहायता की, जिसके लिए इन्होंने आमरण अनशन शुरू किया था।
प्रश्न 3. रॉलेट एक्ट क्या था? उसका विरोध कैसे किया गया क्या परिणाम हुआ?
अथवा भारत के लोग रॉलेट एक्ट के विरोध में क्यों थे? [NCERT]
उत्तर – रॉलेट एक्ट
मॉण्टेग्यू घोषणा के बाद मॉण्टेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट तैयार हुई। इस रिपोर्ट को कार्यरूप देने के लिए वर्ष 1919 में एक अधिनियम पारित किया गया। इसमें प्रान्तों में आंशिक उत्तरदायी शासन स्थापित करने का उल्लेख किया गया था, किन्तु औपनिवेशिक स्वराज के विषय में नीति स्पष्ट नहीं थी। इसी को रोलेट एक्ट कहा गया।
भारतीयों के व्यापक विरोध के पश्चात् वर्ष 1919 में रॉलेट एक्ट पारित किया गया था। इस एक्ट के अनुसार राजनीतिक कैदियों को बिना किसी मुकदमे के दो साल तक जेल में रखने का प्रावधान था। इसे बिना अपील, बिना वकील तथा बिना दलील का कानून कहा जाता है अर्थात् किसी भी व्यक्ति को केवल सन्देह के आधार पर बिना कारण बताए गिरफ्तार किया जा सकता था।
रॉलेट एक्ट का विरोध
गाँधीजी ने इस एक्ट को काला कानून बताकर इसका विरोध किया। रॉलेट एक्ट के विरोध में 6 अप्रैल, 1919 को गाँधीजी के नेतृत्व में अहिंसक आन्दोलन चलाया गया, जिसमें जगह-जगह जुलूस एवं हड़तालें की गईं।
सरकार के दमनकारी कानून के विरोध में लोग बड़ी संख्या में 13 अप्रैल, 1919 को पंजाब के अमृतसर में जलियाँवाला बाग में एकत्रित हुए। एकत्रित लोगों ने रॉलेट एक्ट का जमकर विरोध किया, साथ ही लोगों ने उन नेताओं की रिहायी की माँग की, जो इस एक्ट के विरोध करने के कारण गिरफ्तार किए गए थे।
पंजाब के तत्कालीन पुलिस ऑफिसर जनरल डायर ने उस मैदान के सभी रास्ते बन्द करवा दिए तथा अपने सिपाहियों को गोली चलाने का आदेश दिया। इस घटना में सैकड़ों लोग मारे गए। रॉलेट एक्ट एवं जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के पश्चात् ही गाँधीजी ने पूरे देश में असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ करने का फैसला किया।
प्रश्न 4. वर्ष 1921 में असहयोग आन्दोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुनकर उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में लिखते हुए यह दर्शाइए कि वे आन्दोलन में शामिल क्यों हुए? [NCERT]
अथवा असहयोग आन्दोलन में समाज के कौन-से वर्ग ने आन्दोलन में भाग लिया था?
उत्तर – वर्ष 1921 में असहयोग आन्दोलन में भारत के विभिन्न सामाजिक समूहों ने भाग लिया, लेकिन प्रत्येक की अपनी-अपनी आकांक्षाएँ थीं । आन्दोलन में शामिल प्रमुख सामाजिक समूह इस प्रकार थे – शिक्षित मध्यम वर्ग, भारतीय दस्तकार और मजदूर, भारतीय किसान, पूँजीपति वर्ग, जमींदार वर्ग तथा व्यापारिक वर्ग, सभी ने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया।
- शिक्षित मध्यम वर्ग शहरों में शिक्षित मध्यम वर्ग ने असहयोग आन्दोलन की शुरुआत की। हजारों विद्यार्थियों ने स्कूल कॉलेज छोड़ दिए, शिक्षकों ने त्याग-पत्र दे दिए, वकीलों ने मुकदमे लड़ने बन्द कर दिए। शिक्षित वर्ग आन्दोलन में इसलिए शामिल हुआ, क्योंकि उन्होंने देखा कि उनके बराबर पढ़े-लिखे अंग्रेज उनके अफसर बन जाते थे ।
- व्यापारी वर्ग बहुत से स्थानों पर व्यापारियों ने विदेशी चीजों का व्यापार करने या विदेशी व्यापार में पैसा लगाने से इनकार कर दिया। अंग्रेज सरकार की गलत नीतियों के कारण व्यापारी वर्ग पूरी तरह बर्बाद हो चुका था, जिसके परिणामस्वरूप व्यापारी वर्ग असहयोग आन्दोलन में शामिल हुआ।
- सामान्य जनता असहयोग आन्दोलन एक जन-आन्दोलन बन गया था, क्योंकि आम जनता ने विदेशी कपड़ों तथा चीजों का बहिष्कार किया।
- बागान मजदूर गाँधीजी के विचार और स्वराज की अवधारणा जब मजदूरों को समझ में आई तो वे भी बागानों की चारदीवारियों से बाहर निकलकर राष्ट्रीय आन्दोलन में सम्मिलित गए।
प्रश्न 5. असहयोग आन्दोलन के मुख्य कारण क्या थे?
उत्तर – असहयोग आन्दोलन के कारण
- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद आर्थिक कठिनाइयों के कारण महँगाई वहुत बढ़ गई। मध्यम वर्ग एवं निम्न वर्ग इस महँगाई से अत्यधिक परेशान हो गए थे। इन परिस्थितियों ने भारतीयों में ब्रिटिश विरोधी भावनाओं का प्रसार कर इन्हें आन्दोलन हेतु प्रोत्साहित किया ।
- रॉलेट एक्ट तथा जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड जैसी घटनाओं ने विदेशी शासकों के क्रूर एवं असभ्य व्यवहार को उजागर कर दिया।
- वर्ष 1919 का मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार भी द्वैध शासन लागू करने के लिए नीयत से लाया गया था न कि आम जनता को राहत पहुँचाने के उद्देश्य से । स्वशासन की माँग कर रहे राष्ट्रवादियों को भी इससे घोर निराशा हुई।
- सरकार के द्वारा किसी भी क्षेत्र में सहयोग नहीं करना ।
प्रश्न 6. साइमन कमीशन की रिपोर्ट से कांग्रेस क्यों असन्तुष्ट थी ? कांग्रेस ने किस नई नीति की घोषणा की?
उत्तर – वर्ष 1927 में साइमन कमीशन जॉन साइमन की अध्यक्षता में गठित किया गया था। इस कमीशन के गठित करने का मुख्य उद्देश्य भारत में संवैधानिक व्यवस्था के कार्य की समीक्षा करना और आवश्यक सुझाव देना था। कांग्रेस सहित भारतीय नेताओं ने साइमन कमीशन का विरोध किया, क्योंकि इसमें कोई भारतीय सदस्य शामिल नहीं था।
साइमन कमशीन वर्ष 1928 में भारत आया था। मुस्लिम लीग ने भी इसका विरोध किया था। भारतीय नेताओं का मानना था कि भारतीयों के भविष्य का फैसला अंग्रेजों के हाथों में कैसे सौंपा जा सकता है। भारतीयों के भविष्य का फैसला करने का अधिकार केवल भारतीयों के हाथों में सुरक्षित है।
कांग्रेस ने संवैधानिक व्यवस्था के कार्य ही समीक्षा करने हेतु मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया था। आयोग के द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की माँग की थी।
प्रश्न 7. पूना पैक्ट पर किसके हस्ताक्षर हुए? उसकी दो शर्ते लिखिए।
उत्तर – पूना पैक्ट पर सितम्बर, 1932 में महात्मा गाँधी और डॉ बी. आर. अम्बेडकर के मध्य हस्ताक्षर हुए थे। इसकी दो मुख्य शर्तें इस प्रकार थीं
- अम्बेडकर द्वारा दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की माँग को वापस लेना ।
- दलित वर्गों को प्रान्तीय एवं केन्द्रीय विधायी परिषदों में आरक्षण दिया जाना ।
प्रश्न 8. भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने वाले किन्हीं तीन नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर – भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने वाले तीन नेता निम्नलिखित हैं
- बाल गंगाधर तिलक ये उग्रवादी विचारधारा के समर्थक थे। इनके द्वारा केसरी और मराठा पत्रों का प्रकाशन किया गया। ये पूर्ण स्वराज के पक्षधर थे।
- आचार्य विनोबा भावे इन्होंने भारत में व्यक्तिगत सत्याग्राह की शुरुआत की थी। इन्होंने स्वतन्त्रता के बाद भूदान एवं सर्वोदय आन्दोलन का नेतृत्व किया था।
- सरोजिनी नायडू इन्होंने वर्ष 1925 में कानपुर के कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। यह कांग्रेस की प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष थीं। यह भारत में कोकिला के नाम से प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न 9. भारत छोड़ो आन्दोलन के किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर – भारत छोड़ो आन्दोलन के तीन कारण निम्नलिखित थे
- इस आन्दोलन का तात्कालिक कारण क्रिप्स मिशन की समाप्ति तथा मिशन के किसी अन्तिम निर्णय पर न पहुँचना था।
- ब्रिटिश विरोधी भावना तथा पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग ने भारतीय जनता के बीच लोकप्रियता हासिल कर ली थी।
- अखिल भारतीय किसान सभा, फॉरवर्ड ब्लॉक आदि कांग्रेस से सम्बन्धित जन आन्दोलन विभिन्न निकायों के नेतृत्व में दो दशक से चल रहे थे। जन आन्दोलन में इस आन्दोलन के लिए पृष्ठभूमि निर्मित कर दी थीं।
प्रश्न 10. आदिवासी किसानों द्वारा स्वराज्य की व्याख्या को स्पष्ट कीजिए । [NCERT]
उत्तर – आदिवासी किसानों द्वारा स्वराज्य की व्याख्या
आदिवासी किसानों ने महात्मा गाँधी के सन्देश और स्वराज के विचार का अलग अर्थ निकाला। उन्होंने सोचा था कि गाँधीजी ने घोषित किया है कि किसी भी कर का भुगतान नहीं किया जाएगा और गरीबों के बीच भूमि को पुनर्वितरित किया जाएगा। इसके कारण आन्ध्र प्रदेश की गुडेम पहाड़ियों में एक आतंकवादी गोरिल्ला आन्दोलन, अल्लूरी सीताराम राजू के नेतृत्व में पूर्ण रूप से फैल गया था।
असहयोग आन्दोलन से प्रेरित होकर राजू ने महात्मा गाँधी की महानता की बात की तथा लोगों को ‘खादी’ पहनने और शराब का त्याग करने को कहा। उनका मानना था कि भारत अहिंसा से नहीं, बल्कि बल के उपयोग से मुक्त हो सकत है।
गुडेम के विद्रोहियों ने पुलिस स्टेशनों पर हमला किया, ब्रिटिश अधिकारियों को मारने का प्रयास किया और स्वराज को प्राप्त करने के लिए गोरिल्ला युद्ध जारी रखा। राजू को पकड़ लिया गया और वर्ष 1924 में फाँसी दे दी गई और धीरे-धीरे वे लोकनायक बन गए।
प्रश्न 11. उन परिस्थितियों की व्याख्या कीजिए, जिनमें गाँधीजी ने वर्ष 1931 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस लेने का निर्णय लिया। [NCERT]
उत्तर – गाँधीजी ने गाँधी इरविन समझौता के अन्तर्गत वर्ष 1931 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस लेने का निर्णय लिया था, इसके निम्न कारण थे
- सरकार राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर तैयार हो गई थी।
- सरकार ने दमनकारी नीति चलाई, जिसके अन्तर्गत शान्तिपूर्ण सत्याग्रहियों पर आक्रमण किए गए।
- औद्योगिक मजदूरों ने अंग्रेजी शासन का प्रतीक पुलिस चौकियों, नगरपालिका भवनों, अदालतों और रेलवे स्टेशनों पर हमले शुरू कर दिए थे।
प्रश्न 12. उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आन्दोलन से जुड़ी हुई क्यों थी ? [NCERT ]
उत्तर – आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद के विरोध मे होने वाले आन्दोलनों से बहुत गहरे रूप से जुड़ी थी, इसके निम्नलिखित कारण थे
- औपनिवेशक उत्पीड़न और दमन के साझा भाव ने अन्य सभी समूहों को एक-दूसरे से बाँध दिया था। औपनिवेशिक शासकों के विरुद्ध हो रहे संघर्ष के दौरान लोग आपसी एकता को पहचानने लगे थे।
- चीन, वियतनाम, बर्मा, भारत और लैटिन तथा अफ्रीकी देशों में राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ-साथ उनके सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक शोषण प्रारम्भ हुए। इन देशों में राष्ट्रीय भावनाओं का विकास हुआ तथा उन्होंने उपनिवेशवाद को सम्पूर्ण विश्व से हटा दिया।
इस प्रकार राष्ट्रवाद का उदय उपनिवेशवाद के विरोध में हुए आन्दोलनों का परिणाम था, क्योंकि इस विरोध के कारण ही औपनिवेशिक देश उपनिवेशवाद के विरुद्ध हुए। अपने देश की एकता एवं परम्पराओं के लिए एकजुटता दिखी। यहीं से राष्ट्रवाद की भावना पनपने लगी।
वर्णनात्मक प्रश्न – 2
प्रश्न 1. पहले विश्वयुद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया? [NCERT]
अथवा प्रथम विश्वयुद्ध ने राष्ट्रवादी आन्दोलन में किस प्रकार की भूमिका निभाई ?
उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध 1 अगस्त, 1914 में मित्रराष्ट्रों (ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, जापान, अमेरिका) तथा धुरी राष्ट्रों (ऑस्ट्रिया-हंगरी, जर्मनी, तुर्की, इटली) के मध्य प्रारम्भ हुआ था।
प्रथम विश्वयुद्ध राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास में योगदान
इसका भारतीय राष्ट्रवादी आन्दोलन पर व्यापक प्रभाव पड़ा, जो इस प्रकार है
- भारतीयों का विश्व से सम्पर्क इस युद्ध में सैनिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए बड़ी संख्या में भारतीयों को सेना में भर्ती किया गया। जब वे युद्ध क्षेत्रों में गए तो वहाँ से मिले अनुभवों का उन पर प्रभाव पड़ा और उनमें आत्मविश्वास जागा ।
- आर्थिक प्रभाव युद्ध के कारण ब्रिटेन का रक्षा व्यय बढ़ गया। इसे पूरा करने के लिए उसने अमेरिका जैसे विकसित देशों से कर्जे लिए। इन कर्जों को चुकाने के लिए भारतीयों पर सीमा शुल्क और अन्य टैक्स बढ़ा दिए गए।
- साम्प्रदायिक एकता ‘खलीफा’ के प्रश्न पर सभी मुसलमान अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए। जब गाँधीजी ने अली बन्धुओं के सहयोग के लिए खिलाफत आन्दोलन प्रारम्भ किया तो हिन्दू-मुस्लिम एकता को बल मिला। साथ ही वर्ष 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मध्य ‘लखनऊ समझौता हो गया। इस कारण भारत में साम्प्रदायिक एकता को मजबूत आधार प्राप्त हुआ और राष्ट्रवादी आन्दोलन का जनाधार बढ़ा।
- प्राकृतिक संकट वर्ष 1918-21 के मध्य भारत में अकाल, सूखा, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ आईं, जिनमें सरकार का व्यवहार असहयोग पूर्ण था। इस कारण भारतीय अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध एकजुट हो गए।
- डिफेंस ऑफ इण्डिया एक्ट वर्ष 1915 में अंग्रेजी सरकार ने क्रान्तिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए ‘डिफेंस ऑफ इण्डिया एक्ट पास किया। यह एक दमनकारी एक्ट था। इसने क्रान्तिकारी आन्दोलन को दबाने के स्थान पर और तीव्र कर दिया। इस प्रकार प्रथम विश्वयुद्ध ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रश्न 2. महात्मा गाँधी के सत्याग्रह पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है?
अथवा सत्याग्रह का क्या अभिप्राय है? सत्याग्रह के सम्बन्ध में महात्मा गाँधी के क्या विचार थे?
उत्तर – सत्याग्रह से तात्पर्य
महात्मा गाँधी जनवरी, 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। भारत लौटने से पूर्व उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में एक तरह से नए आन्दोलन के माध्यम से वहाँ की नस्लभेदी सरकार से सफलतापूर्वक सामना किया। इस पद्धति को ही सत्याग्रह आन्दोलन कहा जाता है। सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर विशेष बल दिया जाता था । सत्याग्रह का अर्थ यह था कि यदि आपका उद्देश्य सच्चा है और आपका संघर्ष अन्याय के विरुद्ध है, तो उत्पीड़न से मुकाबला करने हेतु आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है। प्रतिरोध की, भावना या आक्रमकता का सहारा लिए बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे भी अपने संघर्ष में सफल हो सकता है।
सत्याग्रह के सम्बन्ध में महात्मा गाँधी के विचार
महात्मा गाँधी के सत्य एवं अहिंसा के आधार पर आन्दोलन और विरोध का तरीका सत्याग्रह के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अहिंसा के माध्यम से विरोध का कारगर तरीका बताया। वर्ष 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के पश्चात् गाँधीजी ने वर्ष 1917 में बिहार के चम्पारण में अपना सत्याग्रह चलाया। इस अभियान में गाँधीजी पूरी तरह सफल रहे। वर्ष 1918 में गाँधीजी ने गुजरात के खेड़ा जिले में किसान आन्दोलन चलाया। यह किसानों का अंग्रेज सरकार की कर वसूली के विरुद्ध एक सत्याग्रह था। गाँधीजी का सत्याग्रह आन्दोलन एक दार्शनिक विचारधारा का परिचायक माना जाता है।
प्रश्न 3. असहयोग आन्दोलन क्यों प्रारम्भ किया गया? उसका मुख्य कार्यक्रम क्या था ?
अथवा असहयोग आन्दोलन क्यों प्रारम्भ किया गया ? आन्दोलनकारियों के चार कार्य लिखिए।
अथवा असहयोग आन्दोलन के स्वरूप, कारण एवं उसके परिणामों पर प्रकाश डालिए।
अथवा महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन कब चलाया था? इसके दो मुख्य कारण बताइए ।
अथवा महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन क्यों चलाया ? इस आन्दोलन के क्या कार्यक्रम थे? उन्हें यह आन्दोलन क्यों स्थगित करना पड़ा?
अथवा असहयोग आन्दोलन का क्या अर्थ है? यह क्यों चलाया गया? कोई दो कारण का उल्लेख कीजिए
उत्तर – असहयोग आन्दोलन की पृष्ठभूमि
महात्मा गाँधी ने भारतीय राजनीति में प्रवेश ब्रिटिश सरकार के सहयोगी के रूप में किया था, क्योंकि उन्हें ब्रिटिश सरकार की ईमानदारी व न्यायप्रियता में विश्वास था, परन्तु वर्ष 1919 में भारत में अनेक ऐसी घटनाएँ घटीं, जिन्होंने गाँधीजी को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ करने के लिए विवश किया। इन घटनाओं में वर्ष 1919 का दमनकारी रॉलेट एक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड आदि घटनाएँ प्रमुख थीं ।
असहयोग आन्दोलन के कारण
असहयोग आन्दोलन के निम्नलिखित कारण थे
- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद आर्थिक कठिनाइयों के कारण महँगाई बहुत बढ़ गई । मध्यम वर्ग एवं निम्न वर्ग इस महँगाई से अत्यधिक परेशान हो गए थे।
- इन परिस्थितियों ने भारतीयों में ब्रिटिश विरोधी भावनाओं का प्रसार कर इन्हें आन्दोलन हेतु प्रोत्साहित किया ।
- रॉलेट एक्ट तथा जलियाँवाला बागं हत्याकाण्ड जैसी घटनाओं ने विदेशी शासकों के क्रूर एवं असभ्य व्यवहार को उजागर कर दिया।
- पंजाब में अत्याचारों के सम्बन्ध में हण्टर कमेटी की सिफारिशों ने सबकी आँखें खोल दीं।
- वर्ष 1919 का मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार भी द्वैध शासन लागू करने की नीयत से लाया गया, न कि आम जनता को राहत पहुँचाने के उद्देश्य से । स्वशासन की माँग कर रहे राष्ट्रवादियों को भी इससे घोर निराशा हुई।
- सरकार के द्वारा किसी भी क्षेत्र में सहयोग नहीं करना ।
असहयोग आन्दोलन का प्रारम्भ
असहयोग आन्दोलन औपचारिक रूप से 1 अगस्त, 1920 को शुरू हुआ था, क्योंकि इसी दिन 1 अगस्त, 1920 को बालगंगाधर तिलक का निधन हो गया था। कांग्रेस ने गाँधीजी की इस योजना को स्वीकार कर लिया।
जब ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस की माँगों को मानने से इनकार कर दिया तथा जून, 1920 में इलाहाबाद में सर्वदलीय सभा ने विदेशी वस्तुओं, स्कूलों, कॉलेजों, न्यायालयों आदि के बहिष्कार का कार्यक्रम बनाया, तब सितम्बर, 1920 में कांग्रेस ने कलकत्ता में एक विशेष सत्र बुलाया और इसमें अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन जिसका अन्तिम लक्ष्य स्वराज्य था, शुरू करने का प्रस्ताव पारित किया।
महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन का अर्थ ये था कि किसी भी रूप में अंग्रेजों को सहयोग न देना जैसे कि कोई कर न देना, उनके द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में शिक्षा न लेना, उनकी वस्तुएँ न खरीदना आदि । इस आन्दोलन का तात्पर्य था कि ब्रिटिश सरकार को जड़ से खत्म करना, क्योंकि अगर कोई भी भारतीय इन सभी बातों का सही से पालन करेगा, तो ब्रिटिश सरकार का कोष खाली हो जाएगा, जिसकी वजह से उनका हौसला टूट जाएगा और उन्हें ये समझ आ जाएगा कि यहाँ शासन करना नामुमकिन है।
आन्दोलन की वापसी
5 फरवरी, 1922 को संयुक्त प्रान्त के गोरखपुर जिले (वर्तमान उत्तर प्रदेश ) के चौरी-चौरा नामक स्थान पर आन्दोलनकारियों के जुलूस पर पुलिस ने गोलियाँ चलाईं, जिस कारण भीड़ आक्रोशित हो गई और पुलिस थाने में आग लगा दी गई, जिसमें एक थानेदार समेत 22 सिपाहियों को जिन्दा जला दिया गया। इस हिंसक घटना से गाँधीजी ने दुःखी होकर आन्दोलन वापस लेने का निर्णय लिया। गाँधीजी ने 12 फरवरी को बारदोली में कांग्रेस कार्य समिति की एक बैठक बुलाई, जिसमें चौरी-चौरा काण्ड के कारण सामूहिक सत्याग्रह व असहयोग आन्दोलन स्थगित करने का प्रस्ताव पारित किया गया।
आन्दोलन के परिणाम
वस्तुत: यह देश का पहला राष्ट्रीय आन्दोलन था, जिसने समाज के सभी वर्गों; जैसे—किसानों, शिक्षकों, छात्रों, महिलाओं और व्यापारियों को साथ लाने का काम किया। इसे वास्तविक जनाधार प्राप्त हुआ, क्योंकि यह तेजी से देश के सभी हिस्सों में फैल गया। इस आन्दोलन ने लोगों में राष्ट्रीय एकता का भाव जगाया एवं देश की आजादी के लिए त्याग करने की भावना को जाग्रत किया।
प्रश्न 4. महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए तीन आन्दोलनों का वर्णन कीजिए।
अथवा महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए किन्हीं दो आन्दोलनों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखिए।
अथवा सविनय अवज्ञा आन्दोलन और भारत छोड़ो आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर – महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए तीन प्रमुख आन्दोलन
- असहयोग आन्दोलन महात्मा गाँधी ने भारतीय राजनीति में प्रवेश ब्रिटिश सरकार के सहयोगी के रूप में किया था, क्योंकि उन्हें ब्रिटिश सरकार की ईमानदारी व न्यायप्रियता में विश्वास था, परन्तु वर्ष 1919 में भारत में अनेक ऐसी घटनाएँ घटीं, जिन्होंने गाँधीजी को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ करने के लिए विवश किया। इन घटनाओं में वर्ष 1919 का दमनकारी रॉलेट एक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड आदि घटनाएँ प्रमुख थीं।
- सविनय अवज्ञा आन्दोलन सविनय अवज्ञा का अर्थ विनम्रतापूर्वक आज्ञा या कानून की अवहेलना करना है। सविनय अवज्ञा गाँधीजी के आन्दोलनों की विशेषता रही है। इसके अन्तर्गत विनम्र तथा अहिंसक होकर सरकारी कानूनों का उल्लंघन किया जाता है। वर्ष 1930 में महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया था। इसके लिए उन्होंने नमक सत्याग्रह की शुरुआत की। महात्मा गाँधी के द्वारा 12 मार्च, 1930 को ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह शुरू करने का निश्चय किया गया। उन्होंने 12 मार्च को साबरमती आश्रम से अपने 78 समर्थकों के साथ दाण्डी के लिए पदयात्रा प्रारम्भ की। 6 अप्रैल को गाँधीजी ने नमक बनाकर कानून तोड़ा।
- भारत छोड़ो आन्दोलन 8 अगस्त, 1942 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने बम्बई (मुम्बई) के ग्वालिया टैंक मैदान में हुए अधिवेशन में ऐतिहासिक भारत छोड़ो प्रस्ताव पास किया गया। इस आन्दोलन की सफलता के लिए महात्मा गाँधी ने लोगों को ‘करो या मरो’ का मन्त्र दिया तथा ब्रिटिश सरकार को तत्काल भारत छोड़कर चले जाने की चेतावनी दी। 8 अगस्त को रात्रि में भारत छोड़ो प्रस्ताव पास होते ही आन्दोलन की शुरुआत हो गई। ब्रिटिश सरकार ने भी तत्काल प्रतिक्रिया करते हुए महात्मा गाँधी समेत कांग्रेस के लगभग सभी शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर नजरबन्द कर दिया या जेल में डाल दिया।
अतः यह आन्दोलन एक प्रकार से नेतृत्वविहीन, अराजक एवं हिंसक हो गया । आन्दोलन के समय अनेक स्थानों; जैसे- बलिया, सतारा एवं तामलुक आदि स्थानों पर ब्रिटिश अधिकारियों को हटाकर समानान्तर सरकारें भी स्थापित की गईं। सरकार ने बल प्रयोग कर आन्दोलन का दमन करना प्रारम्भ कर दिया। हालाँकि आन्दोलन का दमन कर दिया गया, किन्तु इस आन्दोलन ने ब्रिटिश राज की जड़ें हिलाकर रख दीं।
प्रश्न 5. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब हुई थी ? इसके उद्देश्य क्या थे?
उत्तर – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
इसकी स्थापना एक सेवानिवृत अंग्रेज सिविल सेवक ए. ओ. ह्यूम के द्वारा की गई थी। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय संघ की स्थापना की, जिसका प्रथम अधिवेशन 28 दिसम्बर, 1885 को बम्बई (मुम्बई) स्थित गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में आयोजित किया गया। इसी सम्मेलन में दादाभाई नौरोजी के सुझाव पर इसका नाम बदलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कर दिया गया। कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में कुल 72 लोगों ने भाग लिया, जिनमें प्रमुख थे – दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, दीनशॉ एडुल्जी वाचा, काशीनाथ तैलंग, वी. राघवाचारी, एन. जी. चन्द्रावरकर, एस सुब्रह्मण्यम आदि ।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उद्देश्य
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कांग्रेस के निम्नलिखित उद्देश्य बताए थे
- साम्राज्य के विभिन्न भागों में देश के हित के लिए कार्यरत् मुख्य कार्यकर्ताओं में व्यक्तिगत निष्ठा तथा मित्रता बढ़ाना।
- सभी देशप्रेमियों में सीधे मित्रतापूर्ण व्यक्तिगत मेल-जोल द्वारा सभी जाति, धर्म या प्रान्त सम्बन्धी पक्षपात को दूर करना और राष्ट्र को उन भावनाओं की ओर बढ़ाना तथा दृढ़ करना था, जो लॉर्ड रिपन के शासनकाल में विकसित हुई थीं।
- भारत के शिक्षित वर्गों के परिपक्व विचारों का आधिकारिक प्रतिनिधित्व, जो वे समकालीन सामाजिक समस्याओं के बारे में रखते हैं।
- उन रीतियों का निश्चय करना, जो राजनैतिक नेताओं को सार्वजनिक हित में आने वाले समय में करनी हैं।
प्रश्न 6. सविनय अवज्ञा आन्दोलन कब चलाया गया था? इसके प्रमुख तीन कारणों का उल्लेख कीजिए ।
अथवा सविनय अवज्ञा आन्दोलन का क्या अर्थ है? इसे क्यों चलाया गया? इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर – सविनय अवज्ञा आन्दोलन
वर्ष 1930 में महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया था। इसके लिए उन्होंने नमक सत्याग्रह की शुरुआत की। महात्मा गाँधी के द्वारा 12 मार्च, 1930 को ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह शुरू करने का निश्चय किया गया। इन्होंने 12 मार्च को साबरमती आश्रम से अपने 78 समर्थकों के साथ दाण्डी के लिए पदयात्रा प्रारम्भ की। 6 अप्रैल को गाँधीजी ने नमक बनाकर कानून तोड़ा।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण
सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने के पीछे निम्नलिखित कारण थे, जो इस प्रकार हैं
- नेहरू रिपोर्ट की अस्वीकृति ब्रिटिश सरकार ने नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकृ कर भारतीयों के लिए संघर्ष के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं छोड़ा। देश नौकरशाही तेजी से बढ़ रही थी तथा मजदूरों की दशा शोचनीय हो गई थी ।
- अत्यधिक आर्थिक मन्दी देश की आर्थिक स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गई थी। विश्वव्यापी आर्थिक महामन्दी से भारत भी अछूता नहीं रहा। इस कारण किसानों व मजदूरों की दशा अत्यधिक शोचनीय हो गई थी। वर्ष 1922 में असहयोग आन्दोलन के स्थगित होने से जनता में निराशा फैल चुकी थी, जिसे दूर करने के लिए यह आन्दोलन आवश्यक था।
- मेरठ षड्यन्त्र केस मेरठ षड्यन्त्र केस के अन्तर्गत वर्ष 1929 में सरकार कम्युनिस्ट नेताओं को गिरफ्तार कर उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया, जिस कारण लोगों में क्रोध की भावना फैल रही थी। ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में वर्ष 1929 में पारित पूर्ण स्वराज्य की माँग को ठुकरा दिया था। अतः इस परिस्थिति में आन्दोलन का मार्ग अपरिहार्य हो गया था।
- ब्रिटिश सरकार डोमिनियन स्टेट्स देने तथा इसके लिए संविधान बनाने हेतु गोलमेज सम्मेलन के आयोजन से पीछे हट गई थी। परिणामस्वरूप देश का वातावरण तेजी से ब्रिटिश सरकार विरोधी होता गया। गाँधीजी ने इस अवसर का लाभ उठाकर इस विरोध को सविनय अवज्ञा आंदोलन की ओर मोड़ दिया।
आन्दोलन के प्रभाव
सविनय अवज्ञा आंदोलन के निम्नलिखित प्रभाव हुए
- इस आन्दोलन में बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी भाग लिया। अतः महिलाओं को सक्रिय रूप से राष्ट्रीय आन्दोलन से जोड़ने में यह आन्दोलन उल्लेखनीय रहा। किसानों एवं मजदूर वर्ग ने भी इसमें व्यापक भागीदारी निभाई ।
- सरकार के कठोर दमन के बाद भी लोगों ने हिंसा का सहारा नहीं लिया, जिससे गाँधीजी के अहिंसा सिद्धान्त की वैश्विक स्तर पर सराहना हुई।
- विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार से विदेशी कपड़ों के आयात में कमी आई, जिस कारण उद्योगपति वर्ग का सरकार पर सुधारों हेतु दबाव पड़ा।
- लोगों में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार हुआ, जिस कारण वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में लोगों का अभूतपूर्व उत्साह देखने को मिला।
प्रश्न 7. सविनय अवज्ञा आन्दोलन की सीमाओं पर टिप्पणी लिखिए ।
अथवा सविनय अवज्ञा आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इस आन्दोलन की सीमाओं पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – सविनय अवज्ञा आन्दोलन
इसके अर्थ के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 देखें।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन की सीमाएँ सविनय अवज्ञा आन्दोलन की सीमाओं के मुख्य बिन्दु निम्न हैं।
- स्वराज की अवधारणा ने सभी सामाजिक समूहों को प्रभावित नहीं किया था । ऐसा एक समूह ‘अस्पृश्यों’ का था, जो खुद को 1930 के दशक के दौरान दलित कहने लगा था ।
- लम्बे समय से कांग्रेस ने दलितों को सनातनपंथियों, रूढ़िवादी, उच्च जाति, हिन्दुओं पर हमला करने के डर से नजरअन्दाज किया था। गाँधीजी ने दलितों को हरिजन या भगवान के बच्चे बताया।
- गाँधीजी का मानना था कि अस्पृश्यता को खत्म किए बिना स्वराज की सौ साल तक स्थापना नहीं की जा सकती। उन्होंने दलितों को मन्दिरों में प्रवेश और सार्वजनिक कुएँ, तालाब, सड़कों और स्कूलों तक पहुँच बनाने के लिए सत्याग्रह किया।
- गाँधीजी ने सफाई के काम को सम्मानित करने के लिए स्वयं शौचालयों को साफ किया। गाँधीजी ने अछूतों के बारे में अपनी मानसिकता बदलने के लिए ऊपरी वर्ग से आग्रह किया।
