Social-science 10

UP Board Class 10 Social Science Chapter 2 वन एवं वन्यजीव संसाधन (भूगोल)

UP Board Class 10 Social Science Chapter 2 वन एवं वन्यजीव संसाधन (भूगोल)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 2 वन एवं वन्यजीव संसाधन (भूगोल)

फास्ट ट्रैक रिवीज़न
पृथ्वी पर, सूक्ष्म जीवाणुओं, बैक्टीरिया, जोंक, वटवृक्ष, हाथी, ब्लू व्हेल आदि जन्तुओं की जैव-विविधता है। मानव और अन्य जीवधारी मिलकर एक जटिल पारिस्थितिकी तन्त्र का निर्माण करते हैं। पौधों तथा पशु-पक्षियों की एक-दूसरे पर आश्रितता के कारण ही जैव-विविधता है।
भारत में वनस्पतिजात और प्राणिजात
भारत जैव-विविधता के सन्दर्भ में विश्व के प्रमुख देशों में शामिल है। भारत में विश्व की सभी जैव उपजातियों की संख्या 8% (लगभग 16 लाख) पाई जाती है।
भारत में वन और वन्य जीवन का संरक्षण
  • वर्ष 1960 एवं 1970 के दशक में पर्यावरण संरक्षकों ने वनों एवं वन्यजीव को संरक्षित करने की माँग की, जिसके पश्चात् भारत सरकार ने भारतीय वन्यजीवन ( रक्षण) अधिनियम, 1972 पारित किया।
  • इस अधिनियम के तहत वन्यजीवों के संरक्षण, शिकार पर प्रतिबन्ध, उनके आवासों का कानूनी संरक्षण तथा जंगली जीवों के व्यापारी को प्रतिबन्धित कर दिया गया।
  • इन प्राणियों में बाघ, एक सींग वाला गैण्डा, कश्मीरी हिरण अथवा हंगुल, मगरमच्छ, घड़ियाल, एशियाई शेर, हाथी, काला हिरण, चिंकारा, गोडावन और हिम तेन्दुआ आदि शामिल हैं।
  • कीटों का संरक्षण करने के लिए वन्यजीव अधिनियम 1980 और 1986 के अन्तर्गत सैकड़ों तितलियों, पतंगों, भृंगों और एक ड्रैगनफ्लाई को भी शामिल किया गया है।
  • वर्ष 1991 में पौधों की 6 जातियों को भी इनमें शामिल किया गया है।
  • बाघ को राष्ट्रीय पशु, मोर को राष्ट्रीय पक्षी तथा हाथी को राष्ट्रीय विरासत पशु घोषित किया गया है। वन्य प्राणियों के संरक्षण हेतु वन्यजीव विहार, नेशनल पार्क तथा बायोस्फीयर रिजर्व बनाए गए हैं। भारत के प्रथम नेशनल पार्क कॉर्बेट नेशनल पार्क की स्थापना वर्ष 1936 में की गई।
  • बाघों के संरक्षण के लिए वर्ष 1973 में बाघ परियोजना प्रोजेक्ट टाईगर चलाई गई।
  • उत्तराखण्ड में कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल में सुन्दरवन राष्ट्रीय उद्यान, मध्य प्रदेश में बाँधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, असम में मानस बाघ रिजर्व, केरल में पेरियार बाघ रिजर्व इकाई बाघ संरक्षण परियोजनाओं के उदाहरण हैं।
  • इसके अतिरिक्त भी अनेक परियोजनाएँ वन्यजीवों को संरक्षित करने के लिए चलाई जा रही हैं।
वन संरक्षण के प्रयास
वन संरक्षण के लिए भारत सरकार द्वारा किए गए प्रयास निम्नलिखित हैं
  • वर्ष 1952 में वन नीति की घोषणा (1988 में संशोधन)।
  • देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 33% भाग पर वनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने का लक्ष्य।
  • मृदा अपरदन, बाढ़ नियन्त्रण, मरुस्थलीकरण को रोकने का प्रयास।
  • सामाजिक वानिकी के द्वारा वनावरण में वृद्धि के प्रयास।
  • वृक्षारोपण को बढ़ावा देना।
  • वर्ष 1950 से वन महोत्सव का शुभारम्भ (1 जुलाई से 7 जुलाई तक प्रतिवर्ष ) ।
  • वर्ष 1965 में वन आयोग की स्थापना की गई।
  • उत्तराखण्ड के देहरादून में वन अनुसन्धान संस्थान की स्थापना की गई है।
  • वर्ष 1992 में पर्यावरण संरक्षण हेतु नीतिगत दस्तावेज जारी किया गया।
  • वर्ष 2006 में पर्यावरण नीति की घोषणा ।
  • वर्ष 2014 में ग्रीन इण्डिया मिशन का शुभारम्भ।
  • इसके अतिरिक्त पर्यावरण संरक्षण हेतु जागरूकता के लिए प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।
वन और वन्यजीव संसाधनों के प्रकार और वितरण
  • भारत में वन प्रबन्धन को निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया गया है
  1. आरक्षित वन देश में आधे से अधिक वन क्षेत्र आरक्षित वन घोषित किए गए हैं। जहाँ तक वन और वन्य प्राणियों के संरक्षण की बात है, आरक्षित वनों को सर्वाधिक मूल्यवान माना जाता है।
  2. संरक्षित वन वन विभाग के अनुसार, देश के कुल वन क्षेत्र का एक-तिहाई भाग संरक्षित है। इन वनों को और अधिक नष्ट होने से बचाने के लिए इनकी सुरक्षा की जाती है।
  3. अवर्गीकृत वन अन्य सभी प्रकार के वन और बंजर भूमि, जो सरकार, व्यक्तियों और समुदायों के स्वामित्व में होते हैं, अवर्गीकृत वन कहे जाते हैं।
  • स्थायी वनों के अन्तर्गत सर्वाधिक क्षेत्र मध्य प्रदेश (कुल वनक्षेत्र का 75%) में है।
  • जम्मू कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, उत्तराखण्ड, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल एवं महाराष्ट्र में आरक्षित वनों का अनुपात अधिक है, जबकि बिहार, पंजाब, हरियाणा, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश एवं राजस्थान में संरक्षित वनों का अनुपात अधिक है।
समुदाय और वन संरक्षण
समुदाय और वन संरक्षण को निम्न राज्यों के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है
  • राजस्थान में सरिस्का बाघ रिज़र्व में आने वाले गाँवों के लोगों ने वन्य जीवों को. बचाने और खनन कार्य बन्द करवाने हेतु संघर्ष किया।
  • राजस्थान में ही अलवर जिले के 5 गाँव के लोगों ने 1200 हेक्टेयर वन भूमि पर भैरोंदेव डाक व सेंक्चुरी बनाकर शिकार व इस क्षेत्र में विदेशी लोगों के आने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है।
  • ‘चिपको आन्दोलन’ के अन्तर्गत हिमालय क्षेत्र में वनों की कटाई पर रोक एवं सामुदायिक वनीकरण अभियान सफल रहा।
  • टिहरी के किसानों का ‘बीज़ बचाओ आन्दोलन’ एवं ‘नवदान्य’ प्रयास बिना रासायनिक उर्वरकों के फसल उत्पादन में सफल रहा।
पवित्र पेड़ों के झुरमुट – विविध और दुर्लभ जातियों की सम्पत्ति
  • प्रकृति पूजा सदियों जनजातीय विश्वास है, जिसका आधार प्रकृति के पुराना प्रत्येक रूप की रक्षा करना है और इन्हीं विश्वासों ने विभिन्न वनों को बचाकर रखा है।
  • पवित्र पेड़ों को झुरमुट (देवी-देवताओं के वन) कहते हैं। कुछ समाज कुछ विशेष पेड़ों की पूजा करते हैं और आदिकाल से उनका संरक्षण करते आ रहे हैं।
  • इनमें मुण्डा और सन्थाल जनजाति ‘महुआ’ और कदम्ब के पेड़ों की पूजा, इसके अतिरिक्त बिहार और ओडिशा में शादी के दौरान इमली व आम की पूजा तथा बहुत से व्यक्ति पीपल और वटवृक्ष को पवित्र मानते हैं।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन सा भौगोलिक क्षेत्र का प्रतिशत राष्ट्रीय वन नीति (1952) द्वारा निर्धारित किया गया है?
(a) 33
(b) 43
(c) 23
(d) 31
उत्तर (a) 33
प्रश्न 2. सुन्दरवन राष्ट्रीय पार्क किस राज्य में स्थित है?
(a) असम
(b) पश्चिम बंगाल
(c) ओडिशा
(d) मध्य प्रदेश
उत्तर (b) पश्चिम बंगाल
प्रश्न 3. निम्न में से किस राज्य में स्थायी जंगलों के तहत सबसे बड़ा क्षेत्र है?
(a) जम्मू और कश्मीर
(b) मध्य प्रदेश
(c) उत्तराखण्ड
(d) महाराष्ट्र
उत्तर (b) मध्य प्रदेश
प्रश्न 4. निम्न में से कौन भारत के वनों और वन्यजीव संसाधनों के प्रबन्धन का प्रभारी है?
(a) विश्व वन्यजीव फाउण्डेशन
(b) भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण
(c) वन विभाग
(d) गैर-सरकारी संगठन
उत्तर (c) वनं विभाग
प्रश्न 5. निम्न में से किस वर्ष में ‘बाघ परियोजना’ शुरू की गई थी ?
(a) वर्ष 1951
(b) वर्ष 1973
(c) वर्ष 1993
(d) वर्ष 2009
उत्तर (b) वर्ष 1973
प्रश्न 6. हिमालयन यव क्या है?
(a) एक प्रकार का हिरण
(b) एक औषधीय पौधा
(c) पक्षी की एक प्रजाति
(d) हिमालय में उगाई जाने वाली खाद्य फसल
उत्तर (b) एक औषधीय पौधा
प्रश्न 7. वर्ष 1991 में संरक्षित प्रजातियों की सूची में पहली बार किस प्रजाति को शामिल किया गया था?
(a) कीड़े
(b) मछलियाँ
(c) पौधे
(d) सरीसृप
उत्तर (c) पौधे
प्रश्न 8. वन और बंजर भूमि जो सरकार, व्यक्तियों और समुदायों के स्वामित्व में होते हैं, उन्हें क्या कहते हैं?
(a) पवित्र पेड़ों के झुरमट
(b) आरक्षित वन
(c) संरक्षित वन
(d) अवर्गीकृत वन
उत्तर (d) अवर्गीकृत वन
प्रश्न 9. चिपको आन्दोलन का उद्देश्य क्या था?
(a) मानव अधिकार
(b) राजनीतिक अधिकार
(c) कृषि विस्तार
(d) वन संरक्षण
उत्तर (d) वन संरक्षण
प्रश्न 10. सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य किस राज्य में स्थित है?
(a) राजस्थान
(b) उत्तर प्रदेश
(c) गुजरात
(d) पश्चिम बंगाल
उत्तर (a) राजस्थान
प्रश्न 11. बीज बचाओ आन्दोलन क्या था?
(a) रासायनिक खादों से अधिक उत्पादन
(b) टिहरी के किसानों द्वारा बिना रासायनिक खाद के फसलों का उत्पादन
(c) हरित क्रान्ति
(d) पेड़ों को उगाना
उत्तर (b) टिहरी के किसानों द्वारा बिना रासायनिक खाद के फसलों का उत्पादन
प्रश्न 12. राजस्थान के अलवर जिले के पाँच गाँवों के लोगों ने 1200 हेक्टेयर वन भूमि भैरों देव डाक व सेंक्चुरी घोषित कर दी। इसका क्या उद्देश्य है ?
(a) खेती करना
(b) वृक्षारोपण करना
(c) शिकार पर रोक ओर बाहरी लोगों की घुसपैठ से वन्य जीवन को बचाना
(d) बाँध बनाना
उत्तर (c) शिकार पर रोक ओर बाहरी लोगों की घुसपैठ से वन्य जीवन को बचाना
प्रश्न 13. भारतीय वन्यजीव अधिनियम कब पारित हुआ था?
(a) वर्ष 1972
(b) वर्ष 1982
(c) वर्ष 1970
(d) वर्ष 1971
उत्तर (a) वर्ष 1972
प्रश्न 14. भारतीय वनों के असमान वितरण को कौन से कारक प्रभावित नहीं करते हैं?
(a) उच्चावचीय दशाएँ
(b) मानसूनी जलवायु
(c) मिट्टी की दशाएँ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (d) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 15. वनों के हास के कारण कौन-सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?
(a) मृदा अपरदन
(b) वर्षा में कमी
(c) प्रदूषण में वृद्धि
(d) ये सभी
उत्तर (d) ये सभी
प्रश्न 16. भारत में वन महोत्सव का शुभारम्भ कब किया गया?
(a) वर्ष 1950 में
(b) वर्ष 1951 में
(c) वर्ष 1952 में
(d) वर्ष 1962 में
उत्तर (a) वर्ष 1950 में
प्रश्न 17. इनमें से कौन-सा संरक्षण तरीका समुदायों की सीधी भागीदारी नहीं करता?
(a) संयुक्त वन प्रबन्धन
(b) चिपको आन्दोलन
(c) बीज बचाओ आन्दोलन
(d) वन्यजीव पशुविहार का परिसीमन
उत्तर (d) वन्यजीव पशुविहार का परिसीमन
प्रश्न 18. निम्नलिखित में से किस राज्य में बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान अवस्थित है ?
(a) मध्य प्रदेश
(b) राजस्थान
(c) पश्चिम बंगाल
(d) उत्तराखण्ड
उत्तर (a) मध्य प्रदेश
प्रश्न 19. मगरमच्छ, गैण्डा, काला हिरन, भारतीय जंगली गधा प्राणी किस जाति में आते हैं?
(a) सामान्य जाति
(b) संकटग्रस्त जाति
(c) ‘a’ और ‘b’ दोनों
(d) विलुप्त प्राय जाति
उत्तर (b) संकटग्रस्त जाति
सुमेलित करें
प्रश्न 20. निम्नलिखित को सुमेलित करते हुए सही विकल्प का चयन कीजिए।
प्रश्न 21. सुमेलित कीजिए
कथन कूट
प्रश्न 22. वर्ष 1952 में भारत निम्न में से किस प्रजाति को विलुप्त घोषित कर चुका है?
1. काला हिरण
2. तेन्दुआ
3. एशियाई चीता
4. बाघ
कूट
(a) 1 एवं 2
(b) 2 एवं 3
(c) केवल 3
(d) ये सभी
उत्तर (c) केवल 3
प्रश्न 23. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें
1. बाघों के संरक्षण के लिए बाघ परियोजना वर्ष 1973 में चलाई गई।
2. वन नीति की घोषणा 1952 में की गई।
3. ग्रीन इण्डिया मिशन की शुरुआत 2020 में हुई।
4. वन अनुसन्धान संस्थान केरल में है।
सही कूट का चयन करें?
(a) 1 और 4
(b) 3 और 4
(c) 2 और 3
(d) 1 और 2
उत्तर (d) 1 और 2
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
वर्णनात्मक प्रश्न-1
प्रश्न 1. भारत में वनों के असमान वितरण के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए |
उत्तर – भारत में वनों का वितरण 
भारत में विभिन्न प्रकार के वन पाए जाते हैं। ये वन भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 24.56% भाग पर विस्तृत हैं। हिमालय पर्वतों पर शीतोष्ण कटिबन्धीय वन हैं, तो पश्चिमी घाट तथा अण्डमान-निकोबार द्वीपसमूह में उष्णकटिबन्धीय वर्षा वन पाए जाते हैं।
डेल्टा क्षेत्रों में मैंग्रोव वन हैं, वहीं राजस्थान के मरुस्थलीय व अर्द्ध- मरुस्थलीय क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की झाड़ियाँ, कैक्टस वनों के असमान वितरण के कारण काँटेदार वनस्पति पाई जाती है। इन वनों का वितरण भी असमान है।
वनों के असमान वितरण के मुख्य कारण
  • उच्चावचीय दशाएँ भारत की उच्चावचीय दशाओं का वनों के वितरण पर प्रभाव पड़ा है।
  • मानसूनी जलवायु भारत की जलवायु मानसूनी है। अतः जो क्षेत्र अधिक वर्षा तथा अधिक ताप वाले हैं, वहाँ घने वन पाए जाते हैं तथा जहाँ वर्षा कम होती है, वहाँ विरल पतझड़ वन तथा अतिअल्प वर्षा वाले स्थानों पर केवल झाड़ियाँ पाई जाती हैं।
  • मिट्टी की दशाएँ मिट्टी की उर्वरता का भी वनों के वितरण पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। पठारी क्षेत्रों में उपजाऊ काली मिट्टी पाई जाती है, जो खनिजों से भरपूर है। अतः यहाँ घने वन हैं, जबकि मरुस्थलीय क्षेत्रों में अनुर्वर मिट्टी पाई जाती है, जहाँ वन नहीं हैं।
  • मानवीय कारण प्राकृतिक कारणों के अतिरिक्त अनेक मानवीय कारकों से भी वनों का वितरण असमान हो गया है। उत्तर के मैदान की उपजाऊ भूमि के कारण यहाँ वनों को साफ कर कृषि क्षेत्र का विस्तार कर दिया गया है।
प्रश्न 2. पर्यावरण में गिरावट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – पर्यावरण में गिरावट
मानवीय एवं प्राकृतिक कारणों से पर्यावरण की गुणात्मकता में, नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होने वाली प्रक्रिया पर्यावरण में गिरावट आना कहलाती है। सामान्यतः यह पर्यावरण का निम्नीकरण भी कहलाता है।
मानवीय क्रियाकलापों के कारण पर्यावरण के विभिन्न अवयवों; जैसे- जल, वायु, मृदा एवं भूमि आदि की गुणात्मकता घटती जा रही है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण एवं भूमि प्रदूषण के कारण पर्यावरण के विकास में अवरोध उत्पन्न हो रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण की गुणात्मक क्षमता घट जाती है। ऐसे वातावरण में जीवन दुर्लभ हो जाता है।
प्रश्न 3. पर्यावरण संरक्षण की राष्ट्रीय नीति की समीक्षा कीजिए ।
उत्तर – पर्यावरण संरक्षण की राष्ट्रीय नीति
स्वतन्त्रता के पश्चात् देश में आर्थिक विकास के लिए औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया गया। इसके परिणामस्वरूप औद्योगिक विकास तो हुआ, किन्तु इसका दुष्प्रभाव पर्यावरण के ह्रास के रूप में सामने आने लगा।
अतः पिछले कुछ दशकों से सरकार का ध्यान पर्यावरण संरक्षण की ओर गया, जिस कारण सरकार ने पर्यावरण में ह्रास को रोकने के लिए अनेक कदम उठाए। वर्ष 1952 में वन नीति घोषित की गई, जिसे वर्ष 1988 में संशोधित किया गया।
पर्यावरण तथा विकास पर नीतिगत वक्तव्य वर्ष 1992 में तथा राष्ट्रीय पर्यावरण नीति वर्ष 2006 में घोषित की गई। यह नीति पर्यावरण संरक्षण हेतु नियामक के रूप में मार्गदर्शन की भूमिका का निर्वाह करती है।
इस नीति में पर्यावरण संसाधनों के दक्ष उपयोग की संकल्पना की गई है। इसी के अनुसार वर्तमान में औद्योगिक व खनन गतिविधियों को स्वीकृति प्रदान की जाती है। राष्ट्रीय पर्यावरण नीति विधियों सहभागियों, जैसे कि सरकारी अभिकरणों स्थापित समुदायों तथा शोध संस्थानों के माध्यम से पर्यावरण संग्रह हेतु प्रतिबद्ध है।
प्रश्न 4. वन्यजीव संरक्षण की आवश्यकता क्यों हैं? उल्लेख कीजिए । 
उत्तर – वन्यजीव संरक्षण
वनों के संरक्षण से पारिस्थितिकी विविधता बनी रहती है, जिससे जल, मृदा एवं वायु जैसे आवश्यक घटकों का पुनः सृजन होता रहता है। पर्यावरणीय सन्तुलन के लिए भी वन्यजीवों के संरक्षण की आवश्यकता है। वनों में वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास पाया जाता है। वर्तमान में मानवीय हस्तक्षेप के कारण वन्यजीवों के आवास तथा उनकी योजना सामग्री कम हो रही है। इसके कारण अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं।
अतः इन्हीं संकटग्रस्त जीवों को बचाने के लिए वन्यजीव संरक्षण की आवश्यकता है। वन्यजीव पर्यावरण को स्वच्छ और सन्तुलित रखने में भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए, वर्तमान में गिद्ध पक्षी हमारे परिवेश कम हो गए हैं। ये मरे हुए जानवरों का मांस खाकर पर्यावरण को स्वच्छ रखने में सहायता करते हैं।
प्रश्न 5. चिपको आन्दोलन क्या है?
उत्तर – चिपको आन्दोलन
चिपको आन्दोलन पर्यावरण की सुरक्षा के लिए चलाया गया एक आन्दोलन था। यह आन्दोलन भारत के उत्तराखण्ड के चमोली जिले में वर्ष 1970 में प्रारम्भ किया गया था। इस आन्दोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा, चण्डीप्रसाद, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, श्रीमती गौरादेवी आदि थे।
इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य वन्यजन, वन्यजीव और पौधारोपण के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित करना था। यह आन्दोलन मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा चलाया गया आन्दोलन था। इस आन्दोलन के दौरान लोगों ने वन्यजीव की रक्षा के लिए पेड़ों को गले से लगाने का कार्य किया और पेड़ों की कटाई के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
वर्णनात्मक प्रश्न- 2
प्रश्न 1. भारत में वनों के ह्रास के प्रमुख कारणों एवं इसके प्रभावों का वर्णन कीजिए ।
अथवा वनों के ह्रास से आप क्या समझते हैं? इससे उत्पन्न होने वाली किन्हीं तीन समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा वनों की हानि से क्या आशय है? वनों की हानि से होने वाले किन्हीं तीन प्रभावों का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर – वनों का हास
आधुनिक समय में मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों का अंधाधुंध दोहन कर रहा है। इस कारण प्रकृति प्रदत्त वनीय संसाधन नष्ट हो रहे हैं। इसी कारण वन सम्पदा का धीरे-धीरे क्षरण हो रहा है। वनों के क्षरण की इसी प्रक्रिया को वनों का ह्रास कहते हैं।
वनों के ह्रास के कारण
उपग्रहों से समय-समय पर वनों का सर्वेक्षण किया जाता है। इन सर्वेक्षणों से ज्ञात हुआ है कि भारत में प्रतिवर्ष 13 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो रहा है। वनों के विनाश में मध्य प्रदेश सबसे आगे है। आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र में लगभग 10 लाख हेक्टेयर तथा राजस्थान व हिमाचल प्रदेश में 5 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र का विनाश हुआ है। भारत में वन विनाश के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
  • वनों का कृषि भूमि में परिवर्तन जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों की काटकर उन्हें कृषि योग्य क्षेत्रों में परिवर्तित किया जा रहा है।
  • स्थानान्तरी या झूम कृषि पूर्वोत्तर के पर्वतीय क्षेत्रों में इस प्रकार की कृषि की जाती है। इस प्रकार की कृषि में वनों को जला दिया जाता है, फिर वहाँ कृषि की जाती है। कुछ समय पश्चात् जब इस भूमि की उर्वरा शक्ति कम होने लगती है, तो नए वन क्षेत्रों को जलाकर वहाँ खेती की जाती है, यह प्रक्रिया चलती रहती है, इससे वन सम्पदा को भारी क्षति होती है।
  • ईंधन व इमारती लकड़ी की बढ़ती माँग ईंधन की लकड़ी के लिए वनों का विनाश किया जाता है। आज भी भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग घरेलू ईंधन की आवश्यकताओं के लिए वनों की लकड़ी का उपयोग करता है।
  • वनों का चरागाहों में परिवर्तन अनेक क्षेत्रों में वनों में अनियन्त्रित पशुचारण के कारण भी वनों का विनाश हो रहा है।
  • औद्योगीकरण एवं खनन के कारण उद्योगों को लगाने के लिए भी विशाल मात्रा में वनों को काटा जाता है, ताकि वहाँ बड़े-बड़े उद्योगों, ऊर्जा संयन्त्रों आदि की स्थापना की जा सके। इसके अतिरिक्त भारत के अधिकांश खनिज संसाधन प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र में हैं। वहाँ खनिजों के खनन के लिए बड़ी मात्रा में वनोन्मूलन किया जा रहा है।
  • रेलवे तथा राजमार्गों का निर्माण व प्रसार रेलवे लाइनों तथा राजमार्गों का निर्माण करने या इनका विस्तार करने के दौरान भी बड़ी संख्या में पेड़ों का कटान होता है, जिस कारण वन सम्पदा में ह्रास होता है।
  • प्राकृतिक कारण भूकम्प, भूस्खलन, वनाग्नि जैसे प्राकृतिक कारणों से भी काफी बड़े क्षेत्र के वन नष्ट हो जाते हैं।
वनों के ह्रास से उत्पन्न प्रभाव / समस्याएँ
वनों के ह्रास से होने वाले प्रमुख प्रभाव / समस्याएँ निम्नलिखित हैं।
  • मृदा अपरदन वन मृदा के कणों को अपनी जड़ों तथा वनस्पति से बाँधे रखते हैं। इनके उन्मूलन या क्षरण से प्रभावित क्षेत्र में मृदा क्षरण तीव्र गति से होता है। इस कारण मूल्यवान मृदा संसाधन का क्षरण हो जाता है।
  • वर्षा में कमी वन वर्षा को आकर्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके अभाव में वर्षा की मात्रा में कमी आती है, जिससे सूखे एवं अकाल की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • पारिस्थितिकी की क्षति वन पारिस्थितिकी के महत्त्वपूर्ण घटक हैं, इनके ह्रास या उन्मूलन से क्षेत्र का पूरा पारिस्थितिकी तन्त्र नष्ट हो जाता है, जिस कारण पर्यावरण की अपूरणीय क्षति होती है।
  • पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि वन पर्यावरण प्रदूषण को कम करते हैं तथा वातावरण की प्रदूषित वायु को शुद्ध करते हैं। इनके ह्रास का अर्थ है, पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि ।
  • जल स्रोतों का सूखनां वन सतही जल को एकत्र करते हैं। प्राकृतिक जल स्रोत; जैसे – तालाब, झरने तथा छोटी नदियों का उद्गम वन क्षेत्रों से होता है। वनों के क्षरण के कारण जल संकट उत्पन्न होता है।
  • औषधीय पादपों का उन्मूलन वनों में अनेक प्रकार की औषधियाँ पाई जाती हैं, जिनसे अनेक जीवनरक्षक दवाओं का निर्माण होता है। वनों के उन्मूलन के कारण इन औषधीय पादपों की संख्या में भी कमी आई है, जिस कारण रासायनिक दवाओं का प्रयोग करना पड़ रहा है, जोकि स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
प्रश्न 2. वनों के किन्हीं चार लाभों का वर्णन कीजिए।
अथवा वनों के महत्त्व का वर्णन कीजिए |
अथवा भारतीय वनों के आर्थिक महत्त्व को स्पष्ट कीजिए |
उत्तर – वनों के लाभ या महत्त्व 
वन मानव जीवन के अनिवार्य अंग हैं। इनके बिना मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इनके महत्त्व / उपयोगिता या लाभ को निम्नलिखित शीर्षकों में बाँटा जा सकता है
प्रत्यक्ष लाभ प्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं
  1. ऑक्सीजन की पूर्ति वनों से ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है, जोकि समस्त जीवधारियों के लिए प्राणवायु है।
  2. घरेलू उपयोग की वस्तुओं की प्राप्ति वनों से घरेलू उपयोग के लिए चारा, ईंधन हेतु लकड़ी तथा वन्य जीवों को आवास प्राप्त होता है।
  3. उद्योगों हेतु कच्चा माल वनों से कागज, रबड़, कत्था, माचिस, खेल उपकरण, तारपीन का तेल आदि उद्योगों हेतु कच्चा माल उपलब्ध होता है।
  4. औषधियों की आपूर्ति वनों से मानव स्वास्थ्य के लिए हितकारी अनेक औषधियाँ प्राप्त होती हैं, जिनसे अनेक रोगों का उपचार किया जाता है।
अप्रत्यक्ष लाभ अप्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं
  1. वर्षा में सहायक वन वर्षा को आकर्षित करते हैं, जिससे जल की पर्याप्तता सुनिश्चित होती है।
  2. भूमि कटाव पर रोक वनों के वृक्षों की जड़ें मिट्टी के कणों को बाँधे रखती हैं, जिससे वर्षा के दौरान भू-क्षरण नहीं होता ।
  3. बाढ़ नियन्त्रण वन बाढ़ नियन्त्रण में भी सहायक होते हैं। ये बाढ़ के जल की तीव्रता को कम कर देते हैं।
  4. पर्यावरणीय सन्तुलन वन पर्यावरणीय सन्तुलन को स्थापित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये पर्यावरण प्रदूषण को कम करते हैं तथा जैव-विविधता बनाए रखते हैं।
वनों का आर्थिक महत्त्व
  • भारत की आर्थिक व्यवस्था में वनों का बड़ा स्थान है। वर्तमान में देश की राष्ट्रीय आय का लगभग 25% कृषि उद्योग से प्राप्त होता है। इसमें लगभग 2 प्रतिशत वन सम्पत्ति द्वारा मिलता है।
  • वन लगभग 60 लाख व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रूप से दैनिक व्यवसाय देते हैं।
  • वनों से विविध मुख्य व गौण उपजों में निरन्तर अधिकाधिक आय प्राप्त होती रही है। वनों से मुख्य उपज के रूप में लकड़ी व बाँस की आय में भी तेजी से वृद्धि हुई है।
  • आम, सागवान, शीशम, देवदार, बबूल, यूकेलिप्टस आदि लकड़ियों से मकान दरवाजे, चौखट, कृषि के औजार, जहाज, फर्नीचर आदि बनाए जाते हैं। मुलायम लकड़ियों से कागज और लुग्दी, दियासलाई, प्लाईवुड, तारपीन का तेल आदि वस्तुएँ प्राप्त की जाती हैं।
  • देश से प्रतिवर्ष 50 करोड़ रुपये की लकड़ियाँ एवं लकड़ी की वस्तुएँ, पैकिंग सामग्री आदि का भी निर्यात किया जाता है।
प्रश्न 3. भारत में विभिन्न समुदायों ने किस प्रकार वनों एवं वन्यजीव संरक्षण तथा उनके रक्षण में योगदान दिया है? विस्तारपूर्वक विवेचना कीजिए ।
अथवा वनों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए । वन संरक्षण में सामुदायिक भूमिका की विवेचना कीजिए । 
उत्तर – वनों का वर्गीकरण इसके लिए लघु उत्तरी प्रश्न 2 देखें ।
वन एवं वन्यजीव संरक्षण में समुदायों का योगदान
वन संरक्षण की प्रक्रिया भारत के लिए नई नहीं है। वन सामान्यतः कुछ मानव प्रजातियों के आवास भी रहे हैं। भारत के कुछ क्षेत्रों में स्थानीय समुदाय सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर अपने आवास स्थलों के संरक्षण में जुटते हैं, क्योंकि वनों का उनकी आजीविका में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
राजस्थान के लोगों ने वन तथा वन्यजीवों के रक्षण के लिए कई आन्दोलन चलाए । अलवर जिले के 5 गाँवों के 1,200 हेक्टेयर वन क्षेत्र को वहाँ के लोगों ने अभयारण्य घोषित कर, शिकार पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
हिमालय में प्रसिद्ध ‘चिपको आन्दोलन’ ने वनों की कटाई को रोकने का तथा वन संरक्षण का प्रयास किया। विभिन्न समुदायों ने सामुदायिक वनीकरण अभियान को सफल बनाने का कार्य किया है तथा पारम्परिक संरक्षण के तरीकों से वनों के संरक्षण को दिशा दी है। ओडिशा में स्थानीय समुदायों ने गाँव स्तर पर संस्थाओं का निर्माण कर इमारती लकड़ियों का सफल संरक्षण किया।
उत्तराखण्ड के चिपको आन्दोलन ने कई क्षेत्रों में वन कटाई रोकने के साथ-साथ स्थानीय पौधों की जातियों की वृद्धि में भी योगदान दिया है। उत्तराखण्ड में ही टिहरी जनपद के किसानों का ‘बीज बचाओ आन्दोलन’ और ‘नवदानय’ ने रासायनिक खादों के स्थान पर जैविक खाद का प्रयोग करके यह दिखा दिया है। कि आर्थिक रूप से व्यवहार्य कृषि उत्पादन सम्भव है।
प्रश्न 4. वन और वन्य जीव संरक्षण पर एक निबन्ध लिखिए ।
उत्तर – भारत में वन और वन्य जीव संरक्षण
वनों के संरक्षण से पारिस्थितिकी विविधता बनी रहती है, जिससे जल, मृदा एवं वायु जैसे आवश्यक घटकों का पुनः सृजन होता रहता है। इसीलिए 1960 एवं 1970 के दशकों में पर्यावरण संरक्षकों ने वनों एवं वन्यजीव को संरक्षित करने की माँग की। अतः भारत सरकार ने भारतीय वन्यजीवन (रक्षण) अधिनियम, 1972 को लागू करके वनों एवं वन्य जीव संरक्षण के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए । इसके तहत् संकटग्रस्त जातियों के बचाव पर, शिकार प्रतिबन्धन पर, वन्यजीव आवासों का कानूनी रक्षण तथा जंगली जीवों के व्यापार पर रोक लगाने पर बल दिया गया।
केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्यजीव पशुविहार स्थापित किए। केन्द्रीय सरकार ने कई परियोजनाओं की भी घोषणा की, जिनका उद्देश्य गम्भीर खतरे में पड़े कुछ विशेष वन प्राणियों को रक्षण प्रदान करना था।
इन प्राणियों में बाघ, एक सींग वाला गैण्डा, कश्मीरी हिरण अथवा हंगुल, तीन प्रकार के मगरमच्छ – स्वच्छ जल मगरमच्छ, लवणीय जल मगरमच्छ और घड़ियाल, एशियाई शेर और अन्य प्राणी शामिल हैं।
इसके साथ ही भारतीय हाथी, काला हिरण, चिंकारा, भारतीय गोडावन और हिम तेंदुओं आदि के शिकार और व्यापार पर सम्पूर्ण अथवा आंशिक प्रतिबन्ध लगाकर कानूनी रक्षण दिया जा रहा है। कीटों का संरक्षण करने के लिए वन्यजीव अधिनियम, 1980 और 1986 के अन्तर्गत सैंकड़ों तितलियों, पतंगों, भृंगों और एक ड्रैगनफ्लाई को भी संरक्षित जातियों में शामिल किया गया है। वर्ष 1991 में पौधों की 6 जातियों को भी इसमें शामिल किया गया है।
प्रश्न 5. वन तथा वन्य जीव संरक्षण में सहयोगी रीति-रिवाजों पर एक निबन्ध लिखिए |
उत्तर – भारत में प्रकृति की पूजा वैदिक काल से ही होती चली आ रही है। इसी पूजा से आशय यह है कि प्रकृति का हर रूप रक्षणीय है। इन्हीं विश्वासों ने वनों की रक्षा का भार स्थानीय समुदायों को दिया है, वे उन्हें पवित्र वृक्षों के रूप में देखते हैं। वनों के इन भागों में स्थानीय लोग ही घुस सकते हैं और किसी को किसी प्रकार की छेड़छाड़ की अनुमति वे नहीं देते।
कतिपय समाज कुछ विशेष वृक्षों की पूजा करते हैं तथा प्राचीनकाल से उनका संरक्षण करते आ रहे हैं। छोटानागपुर की मुण्डा तथा संथाल जनजातियाँ महुआ तथा कदम्ब के वृक्षों की पूजा करती हैं। बिहार तथा ओडिशा में कुछ जनजातियाँ शादी के दौरान इमली व आम के पेड़ों की पूजा करती हैं। पीपल तथा वटवृक्ष को भी पवित्र माना जाता है।
भारत संस्कृतियों का देश है। प्रत्येक संस्कृति में प्रकृति के संरक्षण का पारम्परिक तरीका विद्यमान है। यहाँ पशुओं, पेड़ों, पहाड़ों व नदियों तक को पवित्र मानकर उनका संरक्षण किया जाता है । मन्दिरों के आसपास बन्दर तथा लंगूर को उपासक भोग लगाते हैं।
राजस्थान में विश्नोई गाँवों में काले हिरण, चिंकारा, नीलगाय इत्यादि के झुण्ड दिखाई देते हैं, जो वहाँ के समुदायों का अभिन्न भाग हैं।
प्रश्न 6. जैव-विविधता क्या है? यह मानव जीवन के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है ? स्पष्ट कीजिए | 
उत्तर – जैव-विविधता
जैव-विविधता दो शब्दों से मिलकर बनी है- जैव और विविधता । जैव का अर्थ जीवन और विविधता का अर्थ अनेकता है। किसी विशेष आवास में जीवन की संख्या और विभिन्न प्रकार के जीवन रूपों (पौधें, जानवर, सूक्ष्मजीव ) को जैव-विविधता कहा जाता है।
जैव-विविधता पारिस्थितिकी तन्त्र का महत्त्वपूर्ण भाग है, जिसमें विभिन्न जीवधारी परस्पर निर्भरता के कारण जाने जाते हैं। जैव-विविधता के कारण ही जीवधारियों का अस्तित्व है।
जैव-विविधता का मानव जीवन में महत्त्व
जैव-विविधता मानव जीवन के लिए निम्न प्रकार महत्त्वपूर्ण है
  • वनस्पति जाति ऊर्जा को बनाती और संग्रह करती है। अन्य प्राणिजाती ऊर्जा संगृहीत करती है और इस ऊर्जा को अन्य जानवरों और मनुष्यों तक स्थानान्तरित करती जैव-विविधता संसाधनों का भण्डार है, जो मानव आवश्यकताओं को पूरा करता है।
  • सूक्ष्मजीव जैसी प्रजातियाँ कार्बनिक पदार्थों को विघटित करने में मद्द करती हैं। साथ ही जल चक्र और अन्य पोषक तत्त्वों के चक्र को पूरा करने में मद्द करती हैं तथा पारिस्थितिकी तन्त्र को कार्यात्मक बनाती हैं। पोषक चक्र और अपघटन जीवमण्डल को प्रदूषण मुक्त होने में मदद करता है।
  • वनस्पति और प्राणी वातावरण में गैसों के संगठक को नियन्त्रित करती है, जो जलवायु को नियन्त्रित करने और वायुमण्डलीय प्रदूषण को कम करने में मदद करती है। जैव-विविधता मृदा निर्माण में सहायक होती है।
  • जैव-विविधता की प्रत्येक प्रजाति हमें जीवन के विकास के बारे में जानकारी प्रदान करती है तथा यह बताती है कि जीवन कैसे कार्य करता है और प्रत्येक प्रजाति की भूमिका के बारे में भी जानकारी प्रदान करती है।
प्रश्न 7. भारतीय वनों की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।
अथवा भारत में वन प्रबन्धन को कितने भागों में विभाजित किया गया है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर – भारतीय वनों की प्रमुख विशेषताएँ
  • विभिन्न प्रकार के वनों की उपलब्धता भारत की भौगोलिक एवं जलवायु विविधता तथा उच्चावच के कारण विभिन्न प्रकार के वन पाए जाते हैं, इनमें उष्णकटिबन्धीय वर्षा वन, उष्णकटिबन्धीय पर्णपाती वन, शंकुधारी वन तथा अल्पाइन वन प्रमुख हैं।
  • आर्थिक रूप से सम्पन्न वन सम्पदा भारतीय वनों में आर्थिक रूप से लाभदायक वन सम्पदा पाई जाती है। वनों से इमारती लकड़ी, औद्योगिक कच्चा माल, औषधियाँ आदि पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होती हैं।
  • पर्णपाती वनों की अधिकता भारतीय वनों में सर्वाधिक क्षेत्र पर उष्णकटिबन्धीय पर्णपाती वन फैले हैं। ये वन शुष्क ऋतु में अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।
  • वन्य जीवों से समृद्ध वन भारतीय वन, वन्यजीवों से काफी समृद्ध हैं। वनों की भौगोलिक विशेषताओं के अनुसार इनमें विविध प्रकार के वन्यजीव, पशु-पक्षी तथा कीट पाए जाते हैं।
  • प्रजातीय विविधता भारतीय वनों में विभिन्न प्रकार के वृक्षों की तथा पादपों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जोकि जैव-विविधता को प्रोत्साहित करती हैं।
वनों का वर्गीकरण
भारत में वन प्रबन्धन को तीन भागों में विभाजित किया गया है
  1. आरक्षित वन देश में आधे से अधिक वन क्षेत्र आरक्षित वन घोषित किए ‘गए हैं। जहाँ तक वन और वन्य प्राणियों के संरक्षण की बात है, वहाँ आरक्षित वनों को सर्वाधिक मूल्यवान माना जाता है।
  2. रक्षित वन वन विभाग के अनुसार, देश के कुल वन क्षेत्र का एक-तिहाई भाग रक्षित है। इन वनों को और अधिक नष्ट होने से बचाने के लिए इनकी सुरक्षा की जाती है।
  3. अवर्गीकृत वन अन्य सभी प्रकार के वन और बंजर भूमि, जो सरकार, व्यक्तियों और समुदायों के स्वामित्व में होते हैं, अवर्गीकृत वन कहे जाते हैं।
आरक्षित एवं रक्षित वनों का संरक्षण इमारती लकड़ी आदि के लिए किया जाता है। स्थायी वनों के अंतर्गत सर्वाधिक क्षेत्र मध्य प्रदेश में है। भारत में वन एवं वन्यजीव संसाधनों का प्रबंधन सरकार के वन विभाग अथवा संबद्ध विभागों द्वारा किया जाता है।

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