Social-science 10

UP Board Class 10 Social Science Chapter 3 जाति, धर्म एवं लैंगिक मसले (नागरिकशास्त्र)

UP Board Class 10 Social Science Chapter 3 जाति, धर्म एवं लैंगिक मसले (नागरिकशास्त्र)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 जाति, धर्म एवं लैंगिक मसले (नागरिकशास्त्र)

फास्ट ट्रैक रिवीज़न
जाति, धर्म और लिंग आधारित सामाजिक मतभेदों से समाज में असमानता व विभाजन का रूप दिखाई देता है।
लैंगिक मसले और राजनीति
  • लैंगिक असमानता, श्रेणीबद्ध सामाजिक विभाजन का एक रूप है, जो प्रत्येक स्थान पर उपस्थित होती है, लेकिन राजनीति के अध्ययन में इस असमानता को महत्त्व नहीं दिया जाता है।
  • लैंगिक असमानता स्त्री और पुरुष की जैविक बनावट नहीं, बल्कि इन दोनों के विषय में प्रचलित रूढ़ छवियाँ एवं सामाजिक भूमिकाएँ हैं।
निजी और सार्वजनिक श्रम का विभाजन
  • लिंग विभाजन (Gender Division) सामाजिक विभाजन का एक रूप है, जिसके अन्तर्गत समाज पुरुषों और महिलाओं के लिए असमान भूमिकाएँ निर्धारित करता है।
  • श्रम का लैंगिक विभाजन अधिकांश परिवारों में दिखाई देता है तथा समाज के बाहर के सार्वजनिक जीवन में पुरुषों का अधिकार होता है।
  • दूसरी ओर ऐसा नहीं है कि महिलाएँ बाहर का कार्य नहीं करती हैं। महिलाएँ खेतों में, कार्यालयों में प्रत्येक स्थान पर कार्य करती हैं, वे घरेलू श्रम के रूप में भी कार्य करती हैं।
  • जो मान्यता प्राप्त नहीं है तथा उनके काम को मूल्यवान नहीं माना जाता और उन्हें दिन-रात काम करके भी उसका श्रेय नहीं मिलता।
निजी और सार्वजनिक विभाजन का परिणाम
  • श्रम विभाजन का परिणाम यह है कि सार्वजनिक जीवन में अधिकांश रूप से महिलाओं की भूमिका नगण्य है।
  • कट्टरपन्थी महिलाओं ने व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जीवन में समानता के उद्देश्य से आन्दोलन किया, जिसे नारीवादी आन्दोलन कहा गया। इन नारीवादी आन्दोलनों ने महिलाओं को समान मताधिकार, शैक्षिक एवं करियर के उचित अवसरों में वृद्धि की।
  • दुनिया के कुछ हिस्सों; जैसे- स्वीडन, नॉर्वे और फिनलैण्ड जैसे स्कैण्डिनेवियाई देशों में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी का स्तर बहुत उच्च है।
भारत में महिलाओं की स्थिति
  • भारत के सन्दर्भ में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् महिलाओं की स्थिति अब भी पुरुषों से पीछे है। भारत में महिलाओं की साक्षरता दर 54% है, जबकि पुरुषों की साक्षरता दर 76% है।
  • भारत में औसतन एक महिला, एक पुरुष की तुलना में प्रतिदिन 1 घण्टा अधिक कार्य करती है, लेकिन उन्हें घर पर कार्य करने के लिए भुगतान नहीं दिया जाता।
  • समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 में समान कार्य के लिए समान मजदूरी देने की बात कही गई है। इसके पश्चात् भी महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी मिलती है।
  • देश में लिंगानुपात 1000 पुरुषों पर 933 महिलाएँ हैं, जो कम हैं, क्योंकि भारत के अनेक हिस्सों में माता-पिता लड़कों को अधिक प्राथमिकता देते हैं।
  • भारत में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न, शोषण और हिंसा सामान्य है। हाल के वर्षों में शहरी क्षेत्रों में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा बढ़ी है।
महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व
  • भारत की संसद में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत कम है। लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या पहली बार वर्ष 2019 में 14.36% तक पहुँच गई है।
  • वर्ष 2009 में राज्यों की विधानसभाओं में महिला प्रतिनिधियों (Representative) की संख्या 5% से भी कम थी।
  • भारत में स्थानीय सरकार निकायों; जैसे- पंचायत और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की हैं, जिसके फलस्वरूप अब ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय निकायों में 10 लाख से अधिक निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या है।
  • मार्च, 2010 में महिला आरक्षण विधेयक, राज्यसभा से पारित किया गया।
  • सितम्बर, 2023 में लोकसभा व राज्यसभा दोनों में महिला आरक्षण विधेयक, 2023 (128वाँ संवैधानिक संशोधन विधेयक अथवा नारी शक्ति वंदन अधिनियम) पारित किया गया।
  • यह विधेयक लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करता है।
धर्म और राजनीति
  • धार्मिक विभाजन, लैंगिक विभाजन जैसा सार्वभौमिक नहीं है, लेकिन विश्व में धार्मिक विरोधाभास अत्यधिक व्यापक है। भारत सहित अनेक देशों में अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोगों की जनसंख्या अधिक है।
  • लैंगिक विभाजन के विपरीत धार्मिक विभाजन हमेशा राजनीति के क्षेत्र को अभिव्यक्त करता है।
  • गाँधीजी के अनुसार, धर्म को राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता। धर्म और राजनीति या राजनीति और धर्म का अर्थ हिन्दू या इस्लाम से न होकर नैतिक मूल्यों से था।
  • मानवाधिकार समूहों की माँग है कि सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।
  • महिला आन्दोलन की माँग है कि सरकार को सभी धर्मों के पारिवारिक कानूनों को बदलना चाहिए, जो महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव रखते हैं।
  • एक धार्मिक समुदाय के रूप में सभी को अपनी आवश्यकताओं, रुचियों एवं माँगों को व्यक्त करने में सक्षम होना चाहिए। राजनीतिक कार्य तब तक गलत नहीं हो सकते, जब तक वे प्रत्येक धर्म को समान रूप से देखते हैं।
साम्प्रदायिकता
  • यह एक ऐसी स्थिति है, जब एक विशेष समुदाय अन्य समुदायों की लागत पर अपने हितों को बढ़ावा देने की कोशिश करता है।
साम्प्रदायिक राजनीति
  • राजनीति में धर्म का प्रयोग करने का यह तरीका साम्प्रदायिक राजनीति (Commercial Politics) है। साम्प्रदायिक राजनीति इस विचार पर आधारित है कि धर्म ही सामाजिक समुदाय का मुख्य आधार है।
  • साम्प्रदायिकता इस धारणा को जन्म देती है कि विभिन्न धर्मों के लोग एक राष्ट्र अन्दर समान नागरिक बनकर नहीं रह सकते। इस विचारधारा में एक विशेष धर्म में आस्था रखने वाले लोग एक ही समुदाय के होते हैं।
राजनीति में साम्प्रदायिकता के रूप
  • साम्प्रदायिकता की सबसे सामान्य अभिव्यक्ति हमारे दैनिक जीवन में दिखाई देती है।
  • इसमें धार्मिक पूर्वाग्रह, धार्मिक समुदायों के विषय में बनी हुई धारणाएँ और एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की मान्यताएँ शामिल हैं।
  • धर्म के आधार पर राजनैतिक गठबन्धन भी साम्प्रदायिकता का एक रूप है। एक धर्म के अनुयायियों को एकसाथ राजनीतिक दायरे में लाने के लिए पवित्र चिह्नों, धार्मिक गुरुओं, भावनात्मक अपील आदि का प्रयोग किया जाता है।
धर्मनिरपेक्ष राज्य
  • यह एक ऐसा राज्य है, जिसका अपना कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। धर्मनिरपेक्ष राज्य सभी धर्मों को धार्मिक समानता और समान दर्जा प्रदान करता है।
  • हमारे संविधान निर्माता साम्प्रदायिकता की चुनौती से अवगत थे, इसलिए हमारे संविधान निर्माताओं ने धर्मनिरपेक्ष राज्य के मॉडल को अपनाया।
  • भारतीय राज्यों के लिए कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। सभी व्यक्तियों एवं समुदायों में किसी भी धर्म का प्रचार करने, अभ्यास करने तथा किसी भी धर्म का विरोध करने की स्वतन्त्रता नहीं है।
जाति की असमानताएँ
  • भारत का सामाजिक ढाँचा जाति व्यवस्था पर आधारित है। जाति व्यवस्था में वंशानुगत और व्यावहारिक विभाजन को परम्परा द्वारा स्वीकृत किया गया था।
  • इस प्रणाली में एक ही जाति समूह के सभी सदस्य एक सामाजिक समुदाय के रूप में रहते थे। किसी को भी अन्य रीति-रिवाजों और परम्पराओं को अपनाने की अनुमति नहीं थी।
अस्पृश्यता
  • अस्पृश्यता ऐसी स्थिति है, जिसमें कुछ पिछड़ी एवं निम्न जाति के लोगों को निर्वाचित लोगों या अछूतों के रूप में माना जाता है, उन्हें उच्च जातियों के साथ मिलने की अनुमति नहीं है। जाति असमानता का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू अस्पृश्यता है।
  • ज्योतिबा फुले, महात्मा गाँधी, डॉ. भीमराव अम्बेडकर और पेरियार रामास्वामी नायकर जैसे समाज सुधारकों ने समाज में जाति असमानता को समाप्त करने की वकालत की तथा काम किया।
जातिवाद के पुराने विचार समाप्त करना
  • आर्थिक विकास, बड़े पैमाने पर शहरीकरण, साक्षरता और शिक्षा का विकास, व्यावहारिक गतिशीलता तथा गाँवों में जमींदारों की स्थिति को कमजोर करके, जाति वर्ग से सम्बन्धित पुराने विचारों को समाप्त करना है।
  • भारत के संविधान ने किसी भी जाति आधारित भेदभाव पर रोक लगा दी तथा जाति व्यवस्था के अन्याय को दूर करने के लिए नीतियों की नींव रखी।
भारत की सामाजिक और धार्मिक विविधता
  • जनगणना में प्रत्येक दस साल बाद सभी नागरिकों के धर्म को भी दर्ज किया जाता है। वर्ष 1961 के बाद हिन्दू, जैन और ईसाई समुदाय की संख्या मामूली रूप से घटी है, जबकि मुसलमान, सिख और बौद्धों की संख्या मामूली रूप से बढ़ी है।
  • जनगणना 2011 के अनुसार, अनुसूचित जाति 16.6% है और अनुसूचित जनजातियाँ देश की आबादी का 8.6% है। अनुसूचित जातियों को आमतौर पर दलितों और अनुसूचित जनजातियों के रूप में जाना जाता है।
राजनीति में जाति
  • साम्प्रदायिकता की तरह जातिवाद भी इस मान्यता पर आधारित है कि जाति ही सामाजिक समुदाय के गठन का एकमात्र आधार है। राजनीति में जाति के नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों रूप हैं, जो निम्न प्रकार से हैं
नकारात्मक पहलू
  • उम्मीदवारों का चयन करते समय पार्टियाँ मतदाताओं की जाति को ध्यान में रखती हैं। राजनीतिक दलों को यह ध्यान रखना पड़ता है कि विभिन्न जातियों और जनजातियों के प्रतिनिधियों को उचित स्थान दिया जाए।
  • दलों के लिए प्रचार करते समय राजनीतिक नेता अपने समुदाय से समर्थन प्राप्त करने के लिए जातिगत भावनाओं को विशेष स्थान देते हैं।
सकारात्मक पहलू
  • सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (Universal Adult Franchise) एक व्यक्ति एक मत की व्यवस्था ने राजनीतिक दलों को विवश किया कि वे राजनीतिक समर्थन पाने के लिए सक्रिय हों।
  • देश में किसी भी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में एक भी जाति का स्पष्ट बहुमत नहीं है। प्रत्येक पार्टी को चुनाव जीतने के लिए एक से अधिक जाति और एक से अधिक समुदाय के लोगों का विश्वास जीतने की आवश्यकता है। सत्तारूढ़ दल और मौजूदा सांसद या विधायक अकसर हमारे देश में चुनाव हारते हैं। यदि जातियों और समुदायों की राजनीतिक पसन्द एक ही होती, तो ऐसा सम्भव नहीं हो पाता।
जातिगत असमानता
  • आर्थिक असमानता का एक महत्त्वपूर्ण आधार जाति भी है, क्योंकि इससे विभिन्न संसाधनों तक लोगों की पहुँच निर्धारित होती है।
  • जाति समूहों की औसत आर्थिक स्थिति (मासिक खपत व्यय जैसे मापदण्डों द्वारा मापी जाती है) अभी भी पुराने पदानुक्रम का अनुसरण करती है। प्रत्येक जाति में कुछ गरीब सदस्य हैं। आनुपातिक रूप में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले अनुपात में निम्न जातियों के लोग बहुत अधिक हैं तथा उच्च जातियों के लोग बहुत कम हैं।
जाति में राजनीति
  • जाति और राजनीति के मध्य केवल एकसमान सम्बन्ध नहीं होता है। राजनीति भी जातियों को राजनीतिक क्षेत्र में लाकर जाति व्यवस्था एवं जातिगत पहचान को प्रभावित करती है। राजनीति में नए प्रकार की जातिगत गुटबन्दी भी हुई है, जैसे ‘अगड़ा’ और ‘पिछड़ा’।
  • इससे प्रायः गरीबी विकास, भ्रष्टाचार जैसे अधिक महत्त्वपूर्ण मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकता है। अनेक बार यह तनाव, टकराव तथा हिंसा को बढ़ावा देता है।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. जाति, धर्म और लिंग आधारित किन मतभेदों से समाज को असमानता एवं विभाजन का रूप दिखाई देता है ?
(a) सांस्कृतिक
(b) सामाजिक
(c) समावेशी
(d) आर्थिक
उत्तर (b) सामाजिक
प्रश्न 2. भारत में संविधान की दृष्टि से कौन-सा कथन सही है ?
(a) सनातन भारत का राजकीय धर्म है।
(b) अल्पसंख्यक को उनकी जनसंख्या के अनुरूप प्रतिनिधित्व।
(c) धर्म के आधार पर भेदभाव का अभाव।
(d) ईसाइयों का विशेषाधिकार ।
उत्तर (c) धर्म के आधार पर भेदभाव का अभाव।
प्रश्न 3. लिंग विभाजन, सामाजिक विभाजन का एक रूप है, जिसके अन्तर्गत समाज पुरुषों और महिलाओं के लिए क्या निर्धारित करता है?
(a) असमान भूमिकाएँ
(b) असमान रणनीतियाँ
(c) असमान सामाजिक कार्य
(d) असमान वितरण
उत्तर (a) असमान भूमिकाएँ
प्रश्न 4. जब हम लैंगिक विभाजन की बात करते हैं, तो हमारा अभिप्राय होता है
(a) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अन्तर
(b) समाज द्वारा स्त्री और पुरुष को दी गई असमान भूमिकाएँ
(c) बालक और बालिकाओं की संख्या का अनुपात
(d) लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में महिलाओं को मतदान का अधिकार न मिलना
उत्तर (b) समाज द्वारा स्त्री और पुरुष को दी गई असमान भूमिकाएँ
प्रश्न 5. लैंगिक विभाजन से क्या अभिप्राय है?
(a) अमीर और गरीब के बीच विभाजन
(b) पुरुषों और महिलाओं के बीच विभाजन
(c) शिक्षित और अशिक्षित के बीच विभाजन
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर (b) पुरुषों और महिलाओं के बीच विभाजन
प्रश्न 6. निम्नलिखित में से लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने का कारण नहीं है।
(a) श्रम का लैंगिक विभाजन
(b) जैविक बनावट
(c) समाज का पितृ प्रधान होना
(d) महिलाओं में साक्षरता दर की कमी
उत्तर (b) जैविक बनावट
प्रश्न 7. साम्प्रदायिकता की समस्या प्रारम्भ होती है, जब
(a) धर्म को ही राष्ट्र का आधार मान लिया जाए
(b) धर्म को राष्ट्र से अलग कर दिया जाए
(c) सभी धर्मों को समान रूप से माना जाए
(d) कुछ ही धर्मों को प्रधानता दी जाए
उत्तर (d) कुछ ही धर्मों को प्रधानता दी जाए
प्रश्न 8. सर्वप्रथम नारीवाद आन्दोलन की शुरुआत किस देश में हुई थी ?
(a) अमेरिका
(b) भारत
(c) चीन
(d) रूस
उत्तर (a) अमेरिका
प्रश्न 9. निम्न में से किस देश में महिलाओं की भागीदारी बहुत ज्यादा नहीं है?
(a) स्वीडन
(b) नॉर्वे
(c) भारत
(d) फिनलैण्ड
उत्तर (c) भारत
प्रश्न 10. राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व निम्न में से कम है?
(a) 2%
(b) 5%
(c) 6%
(d) 3%
उत्तर (b) 5%
प्रश्न 11. निम्न में से कौन-सा साम्प्रदायिकता के कुरूप रूप के विषय में सत्य है?
(a) साम्प्रदायिक हिंसा
(b) दंगे
(c) नरसंहार
(d) ये सभी
उत्तर (d) ये सभी
प्रश्न 12. राजनीति में साम्प्रदायिकता का कौन-सा रूप ले सकते हैं?
(a) धार्मिक पूर्वाग्रहों की तरह हर रोज मान्यताओं में
(b) किसी के अपने धार्मिक समुदाय के राजनीतिक
(c) धार्मिक आधार पर राजनीतिक गोलबन्दी
(d) उपर्युक्त सभी प्रभुत्व की खोज
उत्तर (d) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 13. धर्मनिरपेक्ष राज्य में
(a) धर्म का कोई स्थान नहीं
(b) एक राष्ट्र एक धर्म में विश्वास
(c) केवल बहुसंख्यक वर्ग के धर्म को मान्यता
(d) सभी धर्मों को समान समझना
उत्तर (d) सभी धर्मों को समान समझना
प्रश्न 14. भारतीय संविधान के बारे में इनमें से कौन-सा कथन गलत है?
(a) यह धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है।
(b) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बताता है।
(c) सभी लोगों को कोई भी धर्म मानने की आजादी देता है।
(d) किसी धार्मिक समुदाय में सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है।
उत्तर (b) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बताता है।
प्रश्न 15. भारत में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था है
(a) लोकसभा
(b) विधानसभा
(c) मन्त्रिमण्डल
(d) पंचायती राज की संस्थाएँ
उत्तर (d) पंचायती राज की संस्थाएँ
प्रश्न 16. संविधान के माध्यम से महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया गया?
(a) स्थानीय निकायों में
(b) लोकसभा में
(c) राज्यसभा में
(d) राज्यविधान सभाओं में
उत्तर (a) स्थानीय निकायों में
सुमेलित करें
प्रश्न 17. सुमेलित कीजिए
प्रश्न 18. सुमेलित कीजिए
कथन कूट
प्रश्न 19. भारत में महिलाएँ विभिन्न तरीकों से भेदभाव का सामना कर रही हैं
1. साक्षरता दर
2. बिना पैसे के कार्य
3. मजदूरी में अन्तर
4. असमानता
कूट
(a) 1 और 3
(b) 2 और 1
(c) केवल 3
(d) ये सभी
उत्तर (d) ये सभी
प्रश्न 20. निम्न कथनों को ध्यानपूर्वक पढ़कर असत्य कथन की पहचान कीजिए
1. वर्ष 1976 में समान पारिश्रमिक अधिनियम पारित हुआ ।
2. शहरी क्षेत्रों की महिलाओं में घरेलू हिंसा की दर कम है।
3. धर्म ही सामाजिक समुदाय का मुख्य आधार है।
कूट
(a) केवल 1
(b) 1 और 3
(c) केवल 2
(d) ये सभी
उत्तर (c) केवल 2
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
वर्णनात्मक प्रश्न- 1
प्रश्न 1. लैंगिक विभाजन किसे कहते हैं? उदाहरण सहित प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर – लैंगिक विभाजन सामाजिक विभाजन का एक रूप है, जिसके अन्तर्गत समाज पुरुषों और महिलाओं के लिए असमान भूमिकाएँ निर्धारित करता है। श्रम का लैंगिक विभाजन अधिकांश परिवारों में दिखाई देता है।
उदाहरण घर के सभी कार्य परिवार की महिलाएँ करती हैं; जैसे – खाना बनाना, सफाई करना, कपड़े धोना एवं बच्चों की देख-रेख करना इत्यादि, जबकि पुरुष घर के बाहर के कार्य करते हैं। ऐसा नहीं है कि पुरुष घर के कार्य नहीं कर सकते, बल्कि वे सोचते हैं कि घर के कार्य करना महिलाओं की जिम्मेदारी है। जब इन कार्यों के लिए पुरुषों को भुगतान किया जाता है, तब पुरुष इन्हें व्यवसाय के रूप में स्वीकार कर लेते हैं। दूसरी ओर ऐसा नहीं है कि महिलाएँ बाहर का कार्य नहीं करती हैं। महिलाएँ खेतों में, कार्यालयों में प्रत्येक स्थान पर कार्य करती हैं। वे घरेलू श्रम के रूप में भी कार्य करती हैं, जो मान्यता प्राप्त नहीं है ।
प्रश्न 2. भारत में महिलाओं के प्रति भेदभाव के तरीकों का वर्णन कीजिए।
अथवा जीवन के उन विभिन्न पहलुओं का जिक्र कीजिए, जिनमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है या वे कमजोर स्थिति में होती हैं।
उत्तर – भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् होने वाले सुधारों के बाद भी महिलाएँ अब भी पुरुषों से पीछे हैं। भारतीय समाज अभी भी पुरुष प्रधान व पितृ प्रधान समाज (Patriarchal Society) है। भारत में महिलाएँ विभिन्न तरीकों से भेदभाव का सामना कर रही हैं
  • साक्षरता दर (Literacy Rate) पुरुषों की तुलना में महिलाओं की साक्षरता दर कम है। पुरुषों की साक्षरता दर 76% और महिलाओं की साक्षरता दर 54% है। स्कूलों और कॉलेजों में लड़कियों का ड्रॉपआउट रेट (बीच में पढ़ाई छोड़ने का प्रतिशत) अधिक है, क्योंकि माता-पिता लड़कों की पढ़ाई में व्यय करने को प्राथमिकता देते हैं।
  • अवैतनिक कार्य (Unpaidworks) भारत में औसतन एक महिला एक पुरुष की तुलना में प्रतिदिन एक घंटा अधिक कार्य करती है, लेकिन उन्हें घर पर कार्य करने के लिए भुगतान नहीं किया जाता है।
  • मजदूरी में अन्तर (Difference in Wages ) समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 में समान कार्य के लिए समान मजदूरी दी जाएगी। इस अधिनियम के पश्चात् भी महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी मिलती है, चाहे वे दोनों समान कार्य करते हैं।
  • शिशु लिंगानुपात (Child Sex Ratio) भारत के अनेक हिस्सों में माँ – बाप लड़कों को प्राथमिकता देते हैं और जन्म देने से पहले लड़की का गर्भपात कराने के माध्यम ढूँढते हैं। इस लिंग चयनात्मक गर्भपात के कारण बाल यौन अनुपात में कमी आई है। देश में लिंग अनुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 919 महिलाएँ हैं, जो कम है।
प्रश्न 3. विभिन्न प्रकार की साम्प्रदायिक राजनीति का विवरण दीजिए |
उत्तर – विभिन्न तरह की साम्प्रदायिक राजनीति का विवरण
  • साम्प्रदायिकता की सबसे आम अभिव्यक्ति प्रतिदिन के जीवन में देखने को मिलती है। इसमें धार्मिक पूर्वाग्रह, धार्मिक समुदायों के बारे में बनी हुई धारणाएँ और एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की मान्यताएँ शामिल हैं। इसका उदाहरण हिन्दू-मुस्लिम दंगा है।
  • गाँव, जिला, शहर या प्रदेश आदि में संख्या के आधार पर अधिसंख्यक और अल्पसंख्यक की धारणा की यह भ्रान्ति कि अधिसंख्यक हमेशा अल्पसंख्यक पर अत्याचार करते हैं, जिसके कारण साम्प्रदायिकता होती है।
  • साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक दलों द्वारा अधिक वोट प्राप्त करने के लिए लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काया जाता है, जिसके कारण साम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिलता है।
  • कई बार साम्प्रदायिकता सबसे गन्दा रूप लेकर सम्प्रदाय के आधार पर हिंसा, दंगा और नरसंहार करती है। विभाजन के समय भारत और पाकिस्तान में भयानक साम्प्रदायिक दंगे हुए थे।
प्रश्न 4. भारत में कभी-कभी चुनाव जातियों पर ही निर्भर करते हैं क्यों? इस स्थिति से छुटकारा पाने के सुझाव दीजिए ।
उत्तर – भारत के चुनाव का जातियों पर निर्भर होने के कारण
  • राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवार समर्थन हासिल करने के लिए जातिगत भावनाओं को उकसाते हैं। कुछ दलों को कुछ जातियों के मददगार और प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है।
  • जब सरकार का गठन किया जाता है, तो राजनीतिक दल इस बात का ध्यान रखते हैं कि उसमें विभिन्न जातियों और कबीलों के लोगों को उचित जगह दी जाए।
इससे छुटकारा पाने के सुझाव
  • सार्वभौम वयस्क मताधिकार और एक व्यक्ति एक वोट को व्यवस्था ने राजनीतिक दलों को विवश किया कि वे राजनीतिक समर्थन पाने और लोगों को गोलाबन्द करने के लिए सक्रिय हो ।
  • सरकारों द्वारा जातीय तृष्टिकरण नहीं अपनाना चाहिए ।
  • पिछड़ी जातियों को मुख्य धारा में लाने के गम्भीर प्रयास होने चाहिए, ताकि उसकी पिछड़ी दशा के नाम पर उनके वोट बटोरने के प्रयास न किए जाएँ।
प्रश्न 5. भारत की सामाजिक तथा धार्मिक विविधता पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – भारत की सामाजिक तथा धार्मिक विविधता
भारत की धार्मिक संरचना बहुधर्मी है। जनगणना में प्रत्येक दस साल बाद सभी नागरिकों के धर्म को भी दर्ज किया जाता है। वर्ष 1961 के बाद से हिन्दू, जैन और ईसाई समुदाय की संख्या मामूली रूप से घटी है, जबकि मुसलमान, सिख और बौद्धों की संख्या का अनुपात बढ़ा है।
व्यापक रूप में, भविष्य में विभिन्न धार्मिक समूहों की आबादी का सन्तुलन बड़े पैमाने पर बदलने की सम्भावना नहीं है। भारत की जनगणना में दो सामाजिक समूहों; अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों का उल्लेख है। जनगणना 2011 के अनुसार, अनुसूचित जाति 16.6% है तथा अनुसूचित जनजातियाँ देश की आबादी का 8.6% है। अनुसूचित जातियों को आमतौर पर दलितों और अनुसूचित जनजातियों के रूप में जाना जाता है। जनगणना में अभी तक अन्य पिछड़ा वर्ग की गणना नहीं होती है।
प्रश्न 6. साम्प्रदायिकता को दूर करने के लिए किन्हीं तीन उपायों का वर्णन कीजिए |
उत्तर – साम्प्रदायिकता को दूर करने के तीन उपाय निम्न हैं।
  1. शान्ति, अहिंसा, करुणा, धर्मनिरपेक्षता और मानवतावाद के मूल्यों के साथ-साथ वैज्ञानिकता और तर्कसंगतता के आधार पर स्कूलों और कॉलेज/ विश्वविद्यालयों में बच्चों के उत्कृष्ट मूल्यों पर ध्यान केन्द्रित करने की उन्मुख शिक्षा पर जोर देने की आवश्यकता है, जो साम्प्रदायिक भावनाओं को रोकने में महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
  2. साम्प्रदायिक दंगों को राकने हेतु प्रशासन के लिए संहिताबद्ध दिशा-निर्देश जारी कर तथा पुलिस बल के लिए विशेष प्रशिक्षण, साथ ही जाँच और अभियोजन एजेन्सियों का गठन कर साम्प्रदायिकता के कारण होने वाली हिंसक घटनाओं में कमी की जाती है।
  3. देश में बिना किसी भेदभाव के युवाओं को शिक्षा एवं बेरोजगारी की समस्या का उन्मूलन किए जाने की आवश्यकता है, जिससे एक आदर्श समाज की स्थापना की जा सके।
प्रश्न 7. जाति पर आधारित निर्वाचन होने में क्या हानियाँ हैं ? किन्हीं तीन हानियों का उल्लेख कीजिए । 
अथवा लोकतन्त्र के लिए जातिवाद क्यों घातक है? दो कारण लिखिए ।
उत्तर – जाति पर आधारित निर्वाचन की हानियाँ
  1. जातिगत पहचान पर आधारित राजनीति लोकतन्त्र के लिए शुभ नहीं होती । इससे अकसर गरीबी विकास और भ्रष्टाचार जैसे ज्यादा बड़े मुद्दों से लोगों का ध्यान भी भटकता है।
  2. जातिगत निर्वाचन, जातिवाद तनाव, टकराव और हिंसा को भी बढ़ावा देता है।
  3. अब राजनीति में जाति के अन्दर ‘अगड़ा व पिछड़ा’ जैसी अवधारणाएँ उत्पन्न हो रही हैं। सभी दल कभी जाति तो कभी समुदाय के नाम पर अपना हित साधते हैं।
वर्णनात्मक प्रश्न-2
प्रश्न 1. “हमारे देश में आजादी के बाद से महिलाओं की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है पर वे अभी भी पुरुषों से काफी पीछे हैं। ” कारण देते हुए कथन की पुष्टि कीजिए | क्या उन्हें किसी संवैधानिक संस्था में आरक्षण प्राप्त है?
अथवा अपने देश में महिलाओं को सामाजिक तथा राजनैतिक अधिकार दिए जाने के पक्ष में तीन तर्क दीजिए। क्या उन्हें किसी संवैधानिक संख्या से आरक्षण प्राप्त है? 
उत्तर – जनगणना 2011 के अनुसार, महिलाओं में साक्षरता दर मात्र 54% है, जबकि पुरुषों में यह अनुपात 76% है। इसी प्रकार लड़कियों की एक सीमित संख्या ही उच्च शिक्षा की ओर कदम बढ़ा पाती है, क्योंकि माता-पिता अपने संसाधनों को लड़के-लड़की दोनों पर बराबर खर्च करने की अपेक्षा लड़कों पर अधिक खर्च करते हैं।
भारतीय समाज में माता-पिता को केवल लड़कों की चाह होती है। इसी प्रकार लड़कियों को जन्म देने से पहले ही समाप्त करने की मानसिकता रहती है, जिसके कारण भारत में 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या मात्र 919 रह गई है।
भारतीय समाज महिलाओं के साथ उत्पीड़न, शोषण और उन पर होने वाली हिंसा की खबरें हमें प्रतिदिन देखने एवं सुनने को मिलती हैं। महिलाएँ आज घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं, क्योंकि वहाँ भी उन्हें मारपीट तथा अनेक तरह की घरेलू हिंसा देखनी पड़ती है। ऊँचे वेतन तथा ऊँचे पदों पर पहुँचने वाली महिलाओं का औसत बहुत कम है।
भारत में स्त्रियाँ पुरुषों से औसतन प्रतिदिन एक घण्टा अधिक काम करती हैं, परन्तु उन्हें पुरुषों के मुकाबले कम वेतन दिया जाता है।
प्रश्न 2. धर्म एवं राजनीति का विश्लेषण करते हुए इन्हें परिभाषित कीजिए।
अथवा धर्म और राजनीति के बीच सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – धार्मिक विभाजन, लैंगिक विभाजन जैसा सार्वभौमिक नहीं है, लेकिन विश्व में धार्मिक विरोधाभास अत्यधिक व्यापक है। भारत सहित अनेक देशों में अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोगों की जनसंख्या अधिक है।
लैंगिक विभाजन के विपरीत धार्मिक विभाजन हमेशा राजनीतिक क्षेत्र को अभिव्यक्त करता है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनमें धर्म और राजनीति के बीच सम्बन्ध शामिल हैं, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है
  • गाँधीजी के अनुसार, धर्म को राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार, धर्म और राजनीति या राजनीति और धर्म का अर्थ हिन्दू या इस्लाम धर्म से न होकर नैतिक मूल्यों से था, जो सभी धर्मों से जुड़े हैं। उनका मानना था कि राजनीति धर्म द्वारा स्थापित मूल्यों से निर्देशित होनी चाहिए।
  • मानवाधिकार समूहों की माँग है कि सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों की सुरक्षा लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए, क्योंकि साम्प्रदायिक दंगों के शिकार अधिकांश अल्पसंख्यक समुदाय के लोग ही होते हैं।
  • महिला आन्दोलनों ने माँग की है कि सरकार को सभी धर्मों के पारिवारिक कानूनों को बदलना चाहिए, जो महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव रखते हैं। एक धार्मिक के रूप में सभी को अपनी आवश्यकताओं, रुचियों और माँगों समुदाय को व्यक्त करने में सक्षम होना चाहिए।
  • विभिन्न धर्मों से लिए गए विचार तथा मूल्य राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राजनीतिक कार्य तब तक गलत नहीं हो सकते, जब तक वे प्रत्येक धर्म को समान रूप से देखते हैं।
प्रश्न 3. भारत में जाति प्रथा का राजनीति एवं समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? 
उत्तर – भारत में जाति प्रथा का राजनीति व समाज पर प्रभाव निम्न प्रकार है
राजनीति पर प्रभाव
  • सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार और एक व्यक्ति के एक मत की व्यवस्था ने राजनीतिक दलों को विवश किया कि वे राजनीतिक समर्थन पाने के लिए सक्रिय हो।
  • देश के किसी भी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में एक ही जाति का स्पष्ट बहुमत नहीं है। प्रत्येक पार्टी को चुनाव जीतने के लिए एक से अधिक जाति और एक से अधिक समुदाय के लोगों का विश्वास जीतने की आवश्यकता है।
  • कोई भी पार्टी किसी एक जाति या समुदाय के सभी लोगों का वोट प्राप्त नहीं कर सकती। कई राजनीतिक पार्टियाँ एक ही जाति के उम्मीदवारों को प्रस्तुत कर सकती हैं।
समाज पर प्रभाव
  • भारत का सामाजिक ढाँचा जातिवाद पर आधारित है। सभी समाजों कीं कुछ सामाजिक असमानताएँ और किसी-न-किसी तरह का श्रम विभाजन मौजूद होता है। अधिकतर समाजों में पेशा परिवार की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है, लेकिन जाति व्यवस्था उसका एक अतिवादी और स्थायी रूप है।
  • एक जाति समूह के लोग एक या मिलते-जुलते पेशों के तो होते ही हैं, साथ ही उन्हें एक अलग सामाजिक समुदाय के रूप में भी देखा जाता है।
  • अन्य जाति समूहों में उनके बच्चों की न तो शादी हो सकती है, न महत्त्वपूर्ण पारिवारिक और सामुदायिक आयोजनों में उनकी पंक्ति में बैठकर दूसरी जाति के लोग भोजन कर सकते हैं।
प्रश्न 4. “भारतीय समाज में जाति प्रथा अभी भी प्रचलित है।” इसके कारण क्या हैं? इसको समाप्त करने के दो उपाय बताइए |
अथवा भारत में किस तरह की जातिगत असमानताएँ आज भी व्याप्त है?
उत्तर – “भारतीय समाज में जाति प्रथा अभी भी प्रचलित है।” इसके निम्नलिखित कारण हैं
  • शादी-विवाह, काम-काज तथा खान-पान के उद्देश्यों के लिए सामाजिक समूहों में लोगों का संगठन जातिवाद कहलाता है।
  • भारत का सामाजिक ढाँचा जातिवाद पर आधारित है। सभी समाजों की कुछ सामाजिक असमानताएँ और किसी-न-किसी तरह का श्रम विभाजन मौजूद होता है। अधिकतर समाजों में पेशा परिवार की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है, लेकिन जाति व्यवस्था उसका एक अतिवादी और स्थायी रूप है।
  • एक जाति समूह के लोग एक या मिलते-जुलते पेशों के तो होते ही हैं, साथ ही उन्हें एक अलग सामाजिक समुदाय के रूप में भी देखा जाता है। अन्य जाति समूहों में उनके बच्चों की न तो शादी हो सकती है, न महत्त्वपूर्ण पारिवारिक और सामुदायिक आयोजनों में उनकी पंक्ति में बैठकर दूसरी जाति के लोग भोजन कर सकते हैं।
  • अन्य समाजों में मौजूद असमानताओं से यह एक खास अर्थ में भिन्न है। इसमें पेशों के वंशानुगत विभाजन को रीति-रिवाजों की मान्यता प्राप्त है।
  • भारतीय जाति प्रथा और आर्थिक सामर्थ्य में भी बहुत निकट संबंध है।
जाति प्रथा को समाप्त करने के दो उपाय
  1. जाति प्रथा को समाप्त करने के लिए जाति शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  2. स्कूल, कॉलेज, धर्मशाला, छात्रावास आदि के नामकरण में जातिसूचक शब्दों के प्रयोग पर कानूनी तौर पर निषिद्ध किया जाना चाहिए।
प्रश्न 5. भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है? 
उत्तर – भारतीय विधायिकी संस्थाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की निम्नलिखित दशा हैं
  • भारत की विधायिका में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत कम है। लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या पहली बार वर्ष 2009 में 10% के ऊपर गई थी ।
  • वर्ष 2009 में राज्यों की विधानसभाओं में महिला प्रतिनिधियों की संख्या 5% से भी कम थी। वर्ष 2019 में पहली बार लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 14.36% तक पहुँच गई थी।
  • मार्च, 2010 में महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा में पारित किया गया।
  • सितम्बर, 2023 में लोकसभा व राज्यसभा दोनों में महिला आरक्षण विधेयक, 2023 (128वाँ संवैधानिक संशोधन विधेयक अथवा नारी शक्ति वंदन अधिनियम) पारित किया गया।
  • यह विधेयक लोकसभा, राज्य सभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करता है।
  • भारत में विधायिकाओं में महिला प्रतिनिधियों की संख्या अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई विकासशील देशों से भी पीछे है। यहाँ तक कि जब महिला मुख्यमन्त्री या प्रधानमन्त्री बन जाती है, तब तक कैबिनेट में बड़े पैमाने पर पुरुषों का वर्चस्व रहता है। इस समस्या को सुलझाने के लिए भारत ने स्थानीय सरकारी निकायों; जैसे- पंचायत और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की हैं। इसके परिणामस्वरूप अब ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में 10 लाख अधिक निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या है।
प्रश्न 6. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। किन्हीं तीन प्रावधानों के आधार पर स्पष्ट कीजिए
अथवा भारतीय संविधान के किन्हीं चार प्रावधानों का उल्लेख कीजिए जिनके कारण भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बना है 
उत्तर – भारतीय संविधान के चार प्रावधान निम्नलिखित हैं, जिनके कारण भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बना है; जैसे
  • राज्य का कोई धर्म नहीं भारतीय राज्य ने किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार नहीं किया है, जबकि श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम धर्म तथा इंग्लैंड में ईसाई धर्म को राजकीय धर्म के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • नागरिकों को मौलिक अधिकार भारतीय संविधान देश के सभी नागरिकों को किसी भी धर्म का पालन करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है ।
  • नागरिक समानता भारतीय संविधान नागरिकों को धार्मिक समानता सुनिश्चित करने के लिए शासन को धार्मिक मामलों में दखल देने का अधिकार देता है। जैसे- समाज में छुआछूत की अनुमति नहीं देता।
  • धर्म में राज्य का दखल भारतीय संविधान धार्मिक समुदायों में समानता सुनिश्चित करने के लिए शासन को धार्मिक मामलों में दखल देने का अधिकार देता है।
प्रश्न 7. जातिवाद क्या है? भारतीय लोकतन्त्र में इसकी क्या भूमिका है? 
उत्तर – जातिवाद
भारत का सामाजिक ढाँचा जाति व्यवस्था पर आधारित है। जाति व्यवस्था में वंशानुगत और व्यावहारिक विभाजन को परम्परा द्वारा स्वीकृत किया गया था। के इस प्रणाली में एक ही जाति समूह के सभी सदस्य एक सामाजिक समुदाय रूप में रहते थे।
किसी को भी अन्य रीति-रिवाजों और परम्पराओं को अपनाने की अनुमति समुदाय में ही नहीं थी। लोगों को एकसमान व्यवसाय चुनने और अपनी जाति विवाह करने की अनुमति दी गई थी, साथ ही अन्य समुदाय या जाति के साथ भोजन करने की अनुमति इन्हें नहीं प्राप्त थी। वर्ण या जाति व्यवस्था अन्य जाति-समूहों से भेदभाव और उन्हें अपने से अलग मानने पर आधारित थी।
भारतीय लोकतन्त्र में इसकी भूमिका
साम्प्रदायिकता की तरह जातिवाद भी इस मान्यता पर आधारित है कि जाति ही सामाजिक समुदाय के गठन का एकमात्र आधार है। राजनीति में जाति के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों रूप हैं, जो निम्न हैं
नकारात्मक पहलू
  • उम्मीदवारों का चयन करते समय पार्टियाँ मतदाताओं की जाति को ध्यान में रखती हैं।
  • जब सरकारें बनती हैं, तो राजनीतिक दलों को सामान्यतः यह ध्यान रखना पड़ता है कि विभिन्न जातियों और जनजातियों के प्रतिनिधियों को उचित जगह दी जाए।
  • दलों के लिए प्रचार करते समय राजनीतिक नेता अपने समुदाय से समर्थन प्राप्त करने के लिए जातिगत भावनाओं को विशेष स्थान देते हैं।
सकारात्मक पहलू
  • सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार ( Universal Adult Franchise) एक व्यक्ति के एक मत की व्यवस्था ने राजनीतिक दलों को विवश किया कि वे राजनीतिक समर्थन पाने के लिए सक्रिय हों।
  • देश के किसी भी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में एक ही जाति का स्पष्ट बहुमत नहीं है। प्रत्येक पार्टी को चुनाव जीतने के लिए एक से अधिक जाति और एक से अधिक समुदाय के लोगों का विश्वास जीतने की आवश्यकता है।
  • कोई भी पार्टी किसी एक जाति या समुदाय के सभी लोगों की वोट प्राप्त नहीं कर सकती।

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