UP Board Class 10 Social Science Chapter 3 भूमण्डलीकृत विश्व का बनना (इतिहास)
UP Board Class 10 Social Science Chapter 3 भूमण्डलीकृत विश्व का बनना (इतिहास)
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 भूमण्डलीकृत विश्व का बनना (इतिहास)
फास्ट ट्रैक रिवीज़न
प्राचीन काल से आधुनिक युग
- प्राचीन समय से ही यात्री, व्यापारी, पुजारी व तीर्थयात्री विभिन्न कारणों से लम्बी-लम्बी दूरियों की यात्रा करते थे।
- अपनी यात्राओं में ये लोग विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ, पैसा, मूल्य मान्यताएँ, हुनर, विचार आविष्कार और यहाँ तक कि कीटाणु और बीमारियाँ भी साथ लेकर चलते थे। 13वीं शताब्दी से देशों के मध्य मजबूत सम्बन्ध स्थापित होने लगे थे।
रेशम मार्ग से विश्व का जुड़ना
- जमीन या समुद्र से होकर गुजरने वाले ये रास्ते न केवल एशिया के विस्तृत क्षेत्रों को आपस में जोड़ते थे, बल्कि एशिया को यूरोप और उत्तरी अफ्रीका से भी जोड़ते थे।
- इन मार्गों से बौद्ध उपदेशक, ईसाई मिशनरियों और बाद में मुस्लिम उपदेशकों ने भी यात्राएँ कीं।
भोजन : नई फसलों का परिचय
- आलू, सोयाबीन, मूँगफली, मक्का, मिर्च, शकरकन्द आदि का परिचय अमेरिकी यात्री क्रिस्टोफर कोलम्बस ने किया था, जो बाद में यूरोप एवं एशिया में विस्तृत हो गया। नूडल्स चीन से पश्चिम में पहुँचा और वहाँ उससे स्पैघेत्ती (Spaghetti) का जन्म हुआ। स्पैघेत्ती एक प्रकार का लम्बा, पतला, ठोस, बेलनाकार, पास्ता है। यह पारम्परिक रूप से इतालीय पाकशैली का मुख्य भोजन है।
- आयरलैण्ड के गरीब काश्तकार आलू पर निर्भर थे। 1840 के दशक में आलू की जिसमें फसल खराब हो जाने के कारण यहाँ भयानक अकाल (1845-49) पड़ा, दस लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई।
नए मार्ग की खोज और व्यापार (विजय, बीमारी और व्यापार)
- 16वीं शताब्दी में यूरोपीय नाविकों ने एशिया और अमेरिका तक समुद्री मार्ग खोज लिया। भारतीय उपमहाद्वीप व्यापार का केन्द्र था, जो यूरोप तक फैल गया था।
- 16वीं शताब्दी में स्पेनवासी एवं पुर्तगाली अमेरिका को जीतने वाले पहले यूरोपीय थे। स्पेनिश सेनाओं के शक्तिशाली हथियार चेचक के कीटाणु थे, जो उनके सैनिकों तथा अफसरों के साथ अमेरिका पहुँचे थे, जिस कारण उनकी विजय हुई।
- पेरू और मैक्सिको की खानों में पाई जाने वाली कीमती धातु ने यूरोप की सम्पदा में वृद्धि की तथा उसका व्यापार एशिया तक फैल गया। 17वीं सदी आते-आते दक्षिण अमेरिका की धन सम्पदा की व्यापक चर्चा होने लगी थी।
- दक्षिणी अमेरिका के एल डोराडो को सोने का शहर कहा जाता था।
19वीं शताब्दी (1815 ई. – 1914 ई.)
19वीं शताब्दी में अर्थशास्त्रियों ने अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों के अन्तर्गत तीन प्रकार के प्रवाहों की पहचान की है।
- वस्तुओं में व्यापार का प्रवाह (मुख्य रूप से गेहूँ व कपड़े )
- रोजगार की तलाश में लोगों का प्रवास
- लम्बी दूरी वाले स्थानों, अल्प अवधि या दीर्घ अवधि में निवेश के लिए पूँजी का प्रवाह
विश्व अर्थव्यवस्था का उदय
- 18वीं शताब्दी के अन्त में औद्योगीकरण और जनसंख्या वृद्धि ने ब्रिटेन में खाद्यान्न की माँग में वृद्धि कर दी, जिससे खाद्यान्न मूल्य में वृद्धि हो गई।
कॉर्न लॉ तथा इसके प्रभाव
- जमींदारों के दबाव के कारण सरकार ने कॉर्न (मक्का) के आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इसे ‘कॉर्न लॉ’ के नाम से जाना जाता है।
- कॉर्न लॉ के उन्मूलन के बाद ब्रिटेन में भोजन पहले की अपेक्षा सस्ती दरों पर आयातित होने लगा। कृषि योग्य भूमि नहीं रहने के कारण ब्रिटिश सरकार कृषि आयात से प्रतिस्पर्द्धा करने में अयोग्य थी।
कॉर्न लॉ के उन्मूलन के प्रभाव
- भोजन के मूल्य में गिरावट से ब्रिटेन में खपत में वृद्धि हो गई। 19वीं शताब्दी के मध्य से ब्रिटेन में तेजी से औद्योगिक वृद्धि हुई तथा आय एवं माँग में भी बढ़ोतरी हुई।
- 1890 ई. से वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था का विकास हुआ।
- क्षेत्रीय वस्तुओं का विकास इतनी तेजी से हुआ कि 1820 ई. से वर्ष 1914 के बीच विश्व व्यापार 25 से 40 गुना बढ़ गया। व्यापार में लगभग 60% हिस्सा प्राथमिक उत्पादों; जौ, गेहूँ, कपास तथा कोयला इत्यादि खनिज पदार्थों का था।
19वीं शताब्दी में तकनीक की भूमिका
- रेलवे स्टीमर और टेलीग्राफ आदि ने 19वीं शताब्दी के विश्व के रूपान्तरण पर अत्यधिक प्रभाव डाला, जिसके परिणामस्वरूप तीव्र रेल परिवहन, मालगाड़ी, जहाज आदि ने विश्व के बाजारों तक पहुँचने में काफी मदद की।
मांस परिवहन में तकनीक
- रेफ्रिजरेटिड जहाजों के विकास से जल्दी खराब होने वाले खाद्य पदार्थों को लम्बी दूरी तक पहुँचाने में सहायता मिली। जमा किए गए मांस को अमेरिका, न्यूजीलैण्ड व ऑस्ट्रेलिया से विभिन्न यूरोपीय देशों तक निर्यात किया जाने लगा।
- परिणामस्वरूप यूरोपीय बाजार में मांस का मूल्य कम हो गया तथा निर्धनों के लिए मांस प्रतिदिन का आहार बन गया।
19वीं शताब्दी के अन्त में उपनिवेशवाद
- 19वीं शताब्दी के अन्त में व्यापार एवं बाजार विस्तृत हो गया। औपनिवेशिक समाजों को विश्व अर्थव्यवस्था में समाहित कर लिया गया।
- ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका शक्तिशाली औपनिवेशिक शक्तियाँ बन गए ।
- अफ्रीका पर कब्जे की कोशिश में लगी प्रतिद्वन्दी यूरोपीय ताकतों ने अपने-अपने क्षेत्र विभाजित करने हेतु फुट्टा (Scale) का सहारा लिया।
अफ्रीका में औपनिवेशीकरण
- 1890 के दशक में अफ्रीका में तेजी से फैलने वाली पशु बीमारी रिण्डरपेस्ट से बड़ी संख्या में (लगभग 90%) पशु मारे गए।
- 19वीं शताब्दी के अन्त में यूरोपवासी खदानों और बागानों को स्थापित करने के लिए अफ्रीका आ गए। ये यहाँ संसाधनों का दोहन करना चाहते थे।
भारत से अनुबन्धित मजदूरों (गिरमिटिया) का प्रवास
- अनुबन्धित मजदूर से तात्पर्य किसी नियोक्ता के लिए निश्चित समय के लिए एक निश्चित राशि पर अनुबन्ध के अन्तर्गत कार्य करने वाले बँधुआ मजदूर से है।
- 19वीं शताब्दी में लाखों भारतीय तथा चीनी मजदूर बागानों, खदानों और विश्व की विभिन्न निर्माणकारी परियोजनाओं में कार्य करने के लिए गए। इनमें से अधिकांश मजदूर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य भारत और तमिलनाडु से गए थे।
- 19वीं शताब्दी के मध्य भारत में कई सामाजिक परिवर्तन हुए । कुटीर उद्योगों का पतन, जमीन का किराया बढ़ा, खदानों एवं बागानों के लिए जमीन को साफ किया गया। इन सब कारणों से मजदूर को कार्य की तलाश में प्रवास के लिए बाध्य किया गया।
भारतीय अनुबन्धित प्रवासियों का गन्तव्य स्थान
- भारतीय अनुबन्धित प्रवासियों के गन्तव्य स्थान कैरेबियाई द्वीप मुख्यतः त्रिनिदाद, गुयाना, सूरीनाम, मॉरीशस और फिजी थे। तमिल प्रवासी सीलोन और मलाया गए। कुछ अनुबन्धित मजदूर असम के चाय के बागानों में नियुक्त किए गए थे।
अनुबन्धित मजदूरों की स्थिति
अनुबन्धित मजदूरों को एण्जेटों के माध्यम से नियुक्त किया जाता था, वे उन्हें सुविधाओं का वादा करके नियुक्त करते थे, जबकि परिस्थितियाँ मजदूरों के विपरीत होती थीं।
19वीं शताब्दी में सांस्कृतिक परिवर्तन
- 19वीं शताब्दी में अनुबन्ध को दासता की एक नई· प्रथा (New System of Slavery) के रूप में वर्णित किया गया।
- यद्यपि मजदूरों ने कठिन जीवन जीने के बाद भी विभिन्न सांस्कृतिक रूपों का मिश्रण करके मनोरंजन तथा त्योहारों को विकसित किया।
- त्रिनिदाद में रियटस कार्निवाल (होसे), रस्ताफरियानवाद (जमैका की आध्यात्मिक विचारधारा) का विरोधी धर्म, जिसे जमैका के गायक बॉब मार्ले, त्रिनिदाद और गुयाना के चटनी संगीत ने प्रसिद्ध बना दिया।
अनुबन्धित मजदूरों के वंशज
- कई मजदूर स्थायी रूप से उन देशों में बस गए, जहाँ वे काम के लिए गए थे। इस कारण वहाँ भारतीय वंशजों का विशाल समुदाय है; जैसे—नोबेल विजेतावी. एस. नायपॉल, क्रिकेटर- शिवनारायण चन्द्रपॉल, रामनरेश सरवन आदि।
- वर्ष 1921 में अनुबन्धित श्रम की प्रथा का उन्मूलन हो गया, लेकिन इसके बाद भी कई दशक तक भारतीय अनुबन्धित मजदूरों के वंशज कैरेबियाई द्वीप समूह में बेचैन अल्पसंख्यकों का जीवन जीते रहे।
विदेश में भारतीय उद्यमी
- भारतीय उद्यमियों ने मध्य भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में कृषि निर्यात का वित्त पोषण किया। प्रसिद्ध उद्यमी शिकारीपुरी श्रॉफ और नाट्टुकोट्टई चेट्टियार थे।
- भारतीय उद्यमियों ने यूरोपीय उपनिवेशवादियों का अनुसरण किया। ये पर्यटकों को स्थानीय और आयातित कलाकृतियाँ बेचा करते थे।
भारतीय व्यापार, उपनिवेशवाद और वैश्विक व्यवस्था
- भारत से कपास का निर्यात पूरे यूरोप में किया जाता था, लेकिन औद्योगीकरण के पश्चात् ब्रिटेन में भी कपास का उत्पादन होने लगा, जिससे भारत से आयातित कपास पर रोक लग गई।
भारतीय व्यापार और उपनिवेशवाद
- ब्रिटिश सरकार ने सूती वस्त्र के आयात पर सीमा शुल्क की उच्च दरें लगा दीं। 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश उद्योगपति वस्त्रों के लिए विदेशी बाजार की तलाश करने लगे, जिससे भारतीय उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
- अंग्रेजों ने भारतीय किसानों पर नील (Indigo) और अफीम (Opium) की खेती करने के लिए दबाव बनाया। नील ब्रिटेन को निर्यात किया जाता था तथा अफीम (1820 ई. से) चीन को निर्यात किया जाता था।
भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापारिक सम्बन्ध
- 19वीं शताब्दी में, भारतीय बाजार में ब्रिटिश निर्माणकर्ताओं की अधिकता हो गई। परिणामस्वरूप भारत से माल भेजे जाने के अतिरिक्त ब्रिटेन से भी माल भेजा जाने लगा, जिसकी दरें ऊँची होती थीं।
- ब्रिटेन को भारत के साथ व्यापार अधिशेष होने लगा। ब्रिटेन व्यापार अधिशेष से अधिकारियों को पेन्शन दिया करता था तथा दूसरे देशों में निवेश करता था।
युद्ध के बीच अर्थव्यवस्था
- प्रथम विश्वयुद्ध प्रथम आधुनिक औद्योगिक युद्ध था। प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) दो गुटों के बीच लड़ा गया था। पहला मित्र राष्ट्र (Allies), जिसमें ब्रिटेन, फ्रांस व रूस थे (बाद में अमेरिका भी जुड़ा ) और दूसरी ओर मध्य शक्तियाँ (Central Powers) जिसमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी और तुर्की थे।
- प्रथम विश्वयुद्ध में पहली बार आधुनिक हथियार का प्रयोग हुआ, जिसमें मशीनगन, टैंक, हवाई जहाज, रासायनिक हथियार आदि थे। युद्ध के दौरान लगभग 90 लाख लोग मारे गए तथा दो करोड़ लोग घायल हुए।
युद्धोत्तर सुधार
ब्रिटेन ने अमेरिका से कर्ज लिया, जिससे उसे आर्थिक विपत्ति का सामना करना पड़ा। इस कारण वर्ष 1921 में प्रत्येक पाँच ब्रिटिशों में से एक ब्रिटिश को काम के लिए बाहर जाना पड़ा। पूर्वी यूरोप से गेहूँ का निर्यात युद्ध के दौरान अवरुद्ध हो गया। फलस्वरूप कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में उत्पादन बढ़ गया। युद्ध के बाद पूर्वी यूरोप में भी उत्पादन पुनर्जीवित हो गया, जिसके कारण अनाज का मूल्य गिर गया और किसान कर्ज में डूब गए।
उत्पादन और उपभोग
- आर्थिक संकट की संक्षिप्त अवधि के बाद 1920 के दशक से अमेरिका की अर्थव्यवस्था फिर से मजूबत होने लगी।
कारों का उत्पादन
- कार निर्माता हेनरी फोर्ड ने डेट्रॉइट में अपने नए कारखाने को ‘असेम्बली लाइन’ में शुरू किया। यहाँ मजदूरों को अनवरत् तथा मशीन की तरह कार्य करने को बाध्य किया गया।
- टी-मॉडल नामक कार वृहत् उत्पादन पद्धति से बनी देश की पहली कार थी । अमेरिका में वर्ष 1919 में कार का उत्पादन 20 लाख था, जो वर्ष 1929 में 50 लाख हो गया।
महामन्दी
- वर्ष 1929 के आस-पास महामन्दी शुरू हो गई और 1930 के दशक के मध्य तक समूचे विश्व में महामन्दी आई।
महामन्दी के उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं
- पहला, कृषि उत्पादन की अधिकता की समस्या से कृषि उत्पादों का मूल्य कम हो गया।
- दूसरा, 1920 के दशक में बहुत-से देशों ने अमेरिका से कर्ज लेकर अपनी निवेश आवश्यकता को पूरा किया था। अमेरिकी पूँजीवादियों ने यूरोपियों को ऋण देना बन्द कर दिया, जिससे यूरोप के बैंक धाराशायी हो गए तथा मुद्रा का पतन हो गया।
- अमेरिका ने आयात करों को दोगुना करके मन्दी में अपनी अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने का प्रयास किया, जिससे विश्व व्यापार बुरी तरह से नष्ट हो गया।
- औद्योगिक देशों में भी मन्दी का सबसे बुरा प्रभाव अमेरिका को ही झेलना पड़ा था।
भारत और महामन्दी
- महामन्दी के कारण भारत के निर्यात व आयात का पतन हो गया और प्राथमिक उत्पादों (जैसे-गेहूँ और जूट ) का मूल्य वर्ष 1928 से 1934 के बीच तेजी से गिर गया, लेकिन औपनिवेशिक सरकार ने राजस्व की माँग को स्वीकार करने से मना कर दिया, जिससे किसान बुरी तरह से संकट में आ गए।
- इस अवधि के दौरान भारत कीमती धातुओं विशेषकर सोने का निर्यातक बन गया। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में सहायता मिली, लेकिन इससे भारतीय किसानों को बहुत कम लाभ हुआ।
- भारत में मन्दी से शहरी निवासियों के मुकाबले किसानों एवं काश्तकारों को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा था।
विश्व अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण : युद्धोत्तर काल
- द्वितीय विश्वयुद्ध का परिणाम मानव के लिए आर्थिक रूप से काफी भयावह रहा। यह युद्ध धुरी राष्ट्रों (जर्मनी, जापान और इटली) और मित्र राष्ट्रों (ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, अमेरिका) के बीच लड़ा गया था।
- इस युद्ध में लगभग 6 करोड़ (वर्ष 1939 में विश्व जनसंख्या का लगभग 3% ) लोग मारे गए और लाखों घायल हुए।
युद्धोत्तर पुनर्निर्माण
युद्ध के बाद पुनर्निर्माण निम्न प्रकार से हुआ
- अमेरिका विश्व की प्रमुख राजनीतिक, आर्थिक एवं सेना शक्ति के रूप में उभरा।
- सोवियत संघ महाशक्ति बन गया। यह कम्युनिस्ट गुट के नेता के रूप में पूँजीवाद का खतरा बन गया।
युद्ध के बाद बन्दोबस्त और ब्रेटनवुड्स संस्थान
युद्ध के आर्थिक अनुभवों से अर्थशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों ने मुख्य आधार तैयार किया; जैसे-
- वृहत् उत्पादन पर आधारित किसी औद्योगिक समाज को व्यापक उपभोग की आवश्यकता थी तथा स्थायी आय के लिए स्थिर रोजगार की आवश्यकता थी ।
- एक देश दूसरे देश के साथ आर्थिक सम्पर्कों से सम्बन्धित था। वस्तुओं, पूँजी और श्रम के प्रवाहों को नियन्त्रण करने की शक्ति केवल सरकार के पास थी।
- जुलाई, 1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशायर के ब्रेटनवुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन सहमति बनी थी।
आई. एम. एफ. और विश्व बैंक की स्थापना
- सदस्य राष्ट्रों के द्वारा बाहरी अधिशेष और घाटे से निपटने के लिए ब्रेटनवुड्स सम्मेलन ने अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष (International Monetary Fund, IMF) की स्थापना की।
- युद्धोत्तर पुनर्निर्माण को वित्त पोषित करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (विश्व बैंक) की स्थापना की गई।
- विश्व बैंक और आई. एम. एफ. ने वर्ष 1947 से औपचारिक रूप से कार्य करना शुरू किया। अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था राष्ट्रीय मुद्रा और मौद्रिक व्यवस्था जोड़ने वाली व्यवस्था है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत, राष्ट्रीय मुद्रा ने स्थिर विनिमयं दर का पालन किया।
अनौपनिवेशीकरण और स्वतन्त्रता
- द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अनेक यूरोपीय औपनिवेशिक शासन के अधीन थे। अगले दशक में अधिकांश एशिया और अफ्रीका के देश स्वतन्त्र हो गए, लेकिन इसके साथ ही इन देशों को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा।
- आई.एम.एफ. और विश्व बैंक का गठन औद्योगिक देशों की वित्तीय आवश्यकताओं के लिए किया गया था।
- यूरोप और जापान ने अपनी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण किया, जो आई. एम. एफ. और विश्व बैंक पर निर्भर नहीं रहे। ऐसे में 1950 के दशक के बाद ब्रेटनवुड्स संस्थान विकासशील देशों की ओर अधिक ध्यान देने लगा था।
विकासशील राष्ट्रों की दशा
- नव-स्वतन्त्र राष्ट्र औपनिवेशीकरण के बाद भी अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के द्वारा नियन्त्रित थे। ऐसे में अधिकांश विकासशील देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली की माँग की और समूह – 77 (G-77) का गठन किया।
- नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली (New International Economic Order, NIEO) से तात्पर्य ऐसी व्यवस्था से है, जिससे उन्हें प्राकृतिक संसाधनों पर नियन्त्रण, विकास में सहायता, कच्चा माल और विकसित देशों के बाजारों में माल को बेचने के उचित अवसर मिले।
अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था में परिवर्तन
- 1970 के दशक के मध्य से अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली बदल गई। विकासशील देशों से ऋण लेने के लिए दबाव बनाया गया, जिससे ऋण संकट व बेरोजगारी बढ़ गई।
- 1970 के दशक में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भी कम वेतन वाले एशियाई देशों में उत्पादन केन्द्र स्थापित करने लगीं।
चीन में नई आर्थिक नीति
- चीन वर्ष 1949 की क्रान्ति से विश्व की युद्धोत्तर अर्थव्यवस्था से अपने को अलग रखता था। चीन में नई आर्थिक नीतियाँ और सोवियत संघ के बिखरने तथा पूर्वी यूरोप में साम्यवाद के समाप्त हो जाने से बहुत-से देश, विश्व अर्थव्यवस्था के अंग बन गए।
- अन्तिम दो दशकों में चीन, भारत तथा ब्राजील ने द्रुतगति से आर्थिक विकास किया है।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. आयरलैण्ड के गरीब काश्तकार किस पर निर्भर थे?
(a) मक्का
(b) रेशम
(c) आलू
(d) दाल
उत्तर (c) आलू
प्रश्न 2. आयरलैण्ड में आलू अकाल कब पड़ा था?
(a) 1845-49 €.
(b) 1846-1850 €.
(c) 1843-45 €.
(d) 1850-1852 ई.
उत्तर (a) 1845-49 ई.
प्रश्न 3. निम्न में से सबसे शक्तिशाली हथियार कौन सिद्ध हुआ, जिसने अमेरिका को जीतने में फ्रांस की सहायता की?
(a) पारम्परिक हथियारों की श्रेष्ठता
(b) छोटे चेचक के कीटाणु एक जानलेवा हत्यारे साबित विजय का मार्ग प्रशस्त किया। हुए
(c) अमेरिका के मूल निवासियों में यूरोप से आने वाली बीमारियों के प्रति कोई प्रतिरोधक क्षमता नहीं थी।
(d) ‘b’ और ‘c’ दोनों
उत्तर (d) ‘b’ और ‘c’ दोनों
प्रश्न 4. वैश्वीकरण ने जीवन स्तर के सुधार में सहायता पहुँचाई है
(a) सभी लोगों को
(b) विकसित देश के लोगों को
(c) विकासशील देशों के श्रमिकों को
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर (b) विकसित देश के लोगों को
प्रश्न 5. कॉर्न-लॉ किस फसल से सम्बन्धित है?
(a) गेहूँ
(b) दाल
(c) मक्का
(d) आलू
उत्तर (c) मक्का
प्रश्न 6. वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था का विकास कब हुआ ?
(a) 1850 ई.
(b) 1860 ई.
(c) 1885 ई.
(d) 1890 ई.
उत्तर (d) 1890 ई.
प्रश्न 7. रिण्डरपेस्ट का दूसरा नाम क्या है?
(a) प्लेग
(b) मवेशी प्लेग
(c) महामारी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (b) मवेशी प्लेग
प्रश्न 8. 1890 के दशक में अफ्रीका में फैलने वाली पशु बीमारी कौन-सी थी ?
(a) रिण्डरपेस्ट
(b) मैड काउ
(c) फुट माउथ
(d) एंथ्रेक्स
उत्तर (a) रिण्डरपेस्ट
प्रश्न 9. ब्रिटेन में ‘कॉर्न कानून’ समाप्त करने का क्या कारण था?
(a) जनसंख्या में वृद्धि
(b) कृषि उत्पादों में अधिकता
(c) कॉर्न आयात पर नियन्त्रण
(d) उद्योगपतियों एवं शहरी लोगों का विरोध
उत्तर (d) उद्योगपतियों एवं शहरी लोगों का विरोध
प्रश्न 10. वर्ष 1944 में ‘ब्रेटन वुड्स सम्मेलन’ कहाँ आयोजित किया गया?
(a) ब्रिटेन में
(b) अमेरिका में
(c) फ्रांस में
(d) भारत में
उत्तर (b) अमेरिका में
प्रश्न 11. 19वीं शताब्दी के ‘गिरमिटिया’ को अकसर वर्णित किया गया है।
(a) जबरन अभिवादन
(b) गुलामी की नई प्रणाली
(c) सरफान
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (b) गुलामी की नई प्रणाली
प्रश्न 12. अधिकांश भारतीय ‘गिरमिटिया’ मजदूर तत्कालिक क्षेत्रों से आए थे
(a) उत्तर प्रदेश
(b) बिहार
(c) तमिलनाडु के शुष्क जिले
(d) ये सभी उत्तर
(d) ये सभी
प्रश्न 13. 19वीं शताब्दी के मध्य भारत में कौन-सा परिवर्तन हुआ?
(a) कुटीर उद्योग का पतन
(b) जमीन का किराया बढ़ना
(c) खदानों के लिए जमीन की सफाई
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर (d) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 14. 19वीं शताब्दी में अनुबन्ध को किस रूप में वर्णित किया गया है?
(a) दासता की प्रथा
(b) दासता से मुक्ति
(c) अनुबन्धित दासता
(d) मजदूर
उत्तर (a) दासता की प्रथा
प्रश्न 15. किस वर्ष अनुबन्धित श्रम प्रथा का उन्मूलन हो गया?
(a) 1913
(b) 1917
(c) 1921
(d) 1926
उत्तर (c) 1921
प्रश्न 16. निम्न में से किसने पूर्व आधुनिक दुनिया में रेशम मार्गों के द्वारा यात्रा नहीं की?
(a) ईसाई मिशनरियों
(b) व्यापारी
(c) पर्यटक
(d) मुस्लिम प्रचारक
उत्तर (c) पर्यटक
प्रश्न 17. निम्न में से किस शहर में 1885 ई. में यूरोपीय शक्तियाँ अफ्री को आपस में बाँटने के लिए मिली थी?
(a) लन्दन
(b) न्यूयॉर्क
(c) बर्लिन
(d) एम्स्टर्डम
उत्तर (c) बर्लिन
प्रश्न 18. ब्रेटन वुड्स नामक संस्था निम्नलिखित में से कहाँ स्थित है?
(a) अफ्रीका
(b) यूरोप
(c) अमेरिका
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (c) अमेरिका
प्रश्न 19. हेनरी फोर्ड ने कार उद्योग की स्थापना कहाँ की थी?
(a) मिशिगन
(b) डेट्रॉइट
(c) कैलीफोर्निया
(d) लॉस एंजिल्स
उत्तर (b) डेट्रॉइट
प्रश्न 20. निम्नलिखित में से किस कानून ने ब्रिटिश सरकार को मकई के आयात को प्रतिबन्धित करने की अनुमति दी थी ?
(a) खाद्य अधिनियम
(b) मकई अधिनियम
(c) मकई कानून
(d) आयात अधिनियम
उत्तर (c) मकई कानून
प्रश्न 21. महामन्दी का प्रारम्भ कब हुआ ?
(a) वर्ष 1919
(b) वर्ष 1924
(c) वर्ष 1929
(d) वर्ष 1934
उत्तर (c) वर्ष 1929
प्रश्न 22. संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन कहाँ हुआ था?
(a) लन्दन
(b) न्यू हैम्पशायर
(c) न्यूयॉर्क
(d) बर्लिन
उत्तर (b) न्यू हैम्पशायर
प्रश्न 23. विश्व बैंक और आई. एम. एफ. ने औपचारिक रूप से कार्य कब शुरू किया?
(a) वर्ष 1950
(b) वर्ष 1947
(c) वर्ष 1949
(d) वर्ष 1952
उत्तर (b) वर्ष 1947
प्रश्न 24. 1928 से 1934 के बीच भारत में गेहूँ की कीमत 50% तक गिर गई इसका कारण था। अन्तर्राष्ट्रीय बाजर में
(a) कीमतों का गिरना
(b) कीमतों का बढ़ना
(c) कीमतों का स्थिर रहना
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (a) कीमतों का गिरना
प्रश्न 25. वैश्वीकरण का बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के निवेश पर क्या प्रभाव पड़ा?
(a) बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के निवेश में वृद्धि हुई
(b) बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा भारत के विदेशी व्यापार के अधिकांश भाग पर नियन्त्रण हुआ
(c) बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आगमन से लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर (d) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 26. विश्व व्यापार संगठन (W.T.O.) की स्थापना किस वर्ष की गई ?
(a) 1991
(b) 1994
(c) 1992
(d) 1995
उत्तर (d) 1995
प्रश्न 27. वर्ष 1944 में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की स्थापना कहाँ की गई थी?
(a) ब्रिटेन में
(b) संयुक्त राज्य अमेरिका में
(c) फ्रांस में
(d) भारत में
उत्तर (b) संयुक्त राज्य अमेरिका में
प्रश्न 28. महामन्दी का सबसे बुरा प्रभाव पड़ा
(a) तकनीक पर
(b) कृषि क्षेत्रक पर
(c) परिवहन पर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (b) कृषि क्षेत्रक पर
प्रश्न 29. वर्ष 1929 की महामन्दी का प्रमुख कारण क्या था?
(a) कृषि क्षेत्र में अति उत्पादन
(b) कृषि क्षेत्र का न्यून उत्पादन
(c) बेरोजगारी
(d) प्रमुख बैंकों का धराशायी होना
उत्तर (d) प्रमुख बैंकों का धराशायी होना
सुमेलित करें
प्रश्न 30. सुमेलित कीजिए

कथन कूट
प्रश्न 31. निम्न में से किस देश से कपास पूरे यूरोप में निर्यात की जाती थी
1. चीन
2. जापान
3. भारत कूट
4. ऑस्ट्रेलिया
कूट
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) केवल 3
(d) ये सभी
उत्तर (c) केवल 3
प्रश्न 32. प्रथम विश्व युद्ध में शामिल मित्र राष्ट्र देश थे
1. ब्रिटेन
2. फ्रांस
3. रूस
4. जर्मनी
कूट
(a) केवल 1
(b) 1 और 3
(c) 1, 2 और 3
(d) ये सभी
उत्तर (c) 1, 2 और 3
प्रश्न 33. भूमण्डलीकृत विश्व के बनने की प्रक्रिया में सहायक तत्त्व है
1. व्यापार का प्रवाह
2. श्रम का प्रवाह
3. पूँजी का प्रवाह
4. रोजगार का प्रवाह
कूट
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1, 2 और 3
(d) ये सभी
उत्तर (c) 1, 2 और 3
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
वर्णनात्मक प्रश्न-1
प्रश्न 1. उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों द्वारा बताए गए किन्हीं दो प्रवाहों को स्पष्ट कीजिए |
उत्तर – अर्थशास्त्रियों द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय विनिमय में निम्नलिखित दो प्रवाहों का वर्णन किया गया है
व्यापार का प्रवाह 19वीं शताब्दी से पहले ब्रिटेन की जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी थी, जिसके कारण देश में भोजन की माँग भी बढ़ी। अंग्रेजों ने अपनी कृषि उत्पादों की माँग को पूरा करने के लिए व्यापार प्रवाह के माध्यम से भारत से इंग्लैण्ड में खाद्यान्नों और कपास का आयात किया ।
श्रम का प्रवाह 19वीं सदी में भारत और चीन के लाखों मजदूरों को खदानों, बागानों और सड़कों व रेलवे निर्माण परियोजनाओं में कार्य करने के लिए दूर-दूर के देशों में ले जाया जाता था। भारतीय श्रमिकों को विशेष प्रकार के अनुबन्ध के अन्तर्गत ले जाया जाता था कि यदि मजदूर अपने मालिक के बागानों में पाँच साल तक काम करेंगे, तो वह स्वदेश लौट सकते हैं।
प्रश्न 2. 17वीं शताब्दी से पहले होने वाले आदान-प्रदान के दो उदाहरण दीजिए। एक उदाहरण एशिया से और एक उदाहरण अमेरिका महाद्वीपों के बारे में चुनें। [NCERT]
उत्तर – 17वीं शताब्दी से पूर्व एशिया तथा अमेरिका के दो प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं
- आहार या भोज्य पदार्थों का आदान-प्रदान खाद्य पदार्थों का आदान-प्रदान सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी उदाहरण है, जो एक देश के यात्रियों द्वारा दूसरे देशों या महाद्वीपों में जाने-अनजाने में पहुँचा दिया गया। इसी तरह चीनी रेशम का व्यापार में कितना महत्त्वपूर्ण स्थान था, इसका पता अनेक सिल्क मार्गों से चलता है, जो 15वीं सदी में अस्तित्व में आ चुके थे। इन रास्तों से ही चीनी पॉटरी एवं अन्य सामग्री महाद्वीपों में पहुँचाई जाती थी ।
- बीमारी या कीटाणुओं का आदान-प्रदान 16वीं शताब्दी के मध्य तक पुर्तगाली एवं स्पेनिश सेनाओं ने अमेरिका को उपनिवेश करना शुरू किया। इस दौरान ही व्यापार के साथ बीमारी एवं कीटाणुओं का भी प्रसार हुआ। चेचक जैसी बीमारी अमेरिका के लिए घातक साबित हुई, जो एशियाई देशों से यहाँ तक पहुँची थी।
प्रश्न 3. प्रौद्योगिकी ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को किस प्रकार से उत्प्रेरित किया है? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – वैश्वीकरण ने विश्व अर्थव्यवस्था को एक वैश्विक ग्राम में बदल दिया, जिसमें सभी प्रकार की वस्तु एवं सेवाओं की निर्भरता बढ़ा दी। इस व्यवस्था ने बहुआयामी परिवर्तन किए; जैसे-रेलवे, भाप से संचालित जहाज व टेलीफोन आदि । प्रौद्योगिकी ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को निम्नलिखित प्रकार से उत्प्रेरित किया है
- विगत 50 वर्षों में परिवहन प्रौद्योगिकी में अत्यधिक उन्नति हुई है। इसने लम्बी दूरियों तक वस्तुओं तथा वस्तुओं की तीव्र आपूर्ति को कम लागत पर सम्भव किया है, जिसने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित किया है।
सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग विश्व में एक-दूसरे से सम्पर्क स्थापित करने, सूचनाओं को तत्काल प्राप्त करने और दूरवर्ती क्षेत्रों से संवाद करने में किया जाता है। इसने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को सबसे तीव्र उत्प्रेरित किया है।
प्रश्न 4. बताइए कि पूर्व – आधुनिक विश्व में बीमारियों के वैश्विक प्रसार ने अमेरिकी भू-भागों के उपनिवेशीकरण में किस प्रकार मदद की? [NCERT ]
उत्तर – पूर्व आधुनिक विश्व में बीमारियों के वैश्विक प्रसार ने अमेरिकी भू-भागों के उपनिवेशीकरण में निम्न प्रकार मदद की
- यूरोपियनों के सबसे शक्तिशाली हथियारों में से परम्परागत प्रकार का सैनिक हथियार नहीं था। ये हथियार चेचक जैसे कीटाणु थे, जो स्पेनिश सैनिकों और अफसरों के साथ वहाँ पहुँचे।
- अधिक समय से दुनिया से अलग रहने के कारण अमेरिका के लोगों के शरीर में यूरोप से आने वाली इन बीमारियों से बचने की रोग प्रतिरोधी क्षमता नहीं थी, जिसके परिणामस्वरूप इस स्थान पर चेचक प्राणघातक सिद्ध हुई ।
- एक बार संक्रमण के पश्चात् यह पूरे महाद्वीप में फैल गई।
- जिन स्थानों पर यूरोपीय लोग नहीं पहुँच पाए वहाँ के लोग भी चेचक के संक्रमण से संक्रमित हो गए और धीरे-धीरे इन समुदायों को ही समाप्त कर डाला। इस प्रकार घुसपैठियों का रास्ता साफ हो गया।
प्रश्न 5. अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों की व्याख्या करें। तीनों प्रकार की गतियों के भारत और भारतीयों से सम्बन्धित एक-एक उदाहरण दें और उनके बारे में संक्षेप में लिखें। [NCERT]
अथवा 19वीं शताब्दी के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों द्वारा बताए गए तीन प्रकार के प्रवाहों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – अर्थशास्त्रियों ने अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में तीन तरह के प्रवाह या गतियों का उल्लेख किया है, जो निम्नलिखित हैं
- व्यापार का प्रवाह भारत का अपने पड़ोसी राज्यों के साथ हमेशा ही व्यापारिक सम्बन्ध रहा है। यहाँ से गेहूँ, सूती, ऊनी तथा रेशमी वस्त्र इंग्लैण्ड में भेजे जाते थे। 1812 से 1871 ई. के बीच कच्चे कपास का निर्यात 5% से बढ़कर 35% तक हो गया था । कपड़ों की रंगाई के लिए नील का व्यापार भी बड़े पैमाने पर किया जाता था, जिसका निर्यात होता था। अफीम की कृषि भी अधिक होने से इसका निर्यात किया जाता था। ब्रिटेन द्वारा भारतीय अफीम को चीन में निर्यात किया जाता था। इस तरह भारतीय व्यापारियों द्वारा गेहूँ, कपास, पटसन, ऊन, रेशम, चाय तथा अन्य पदार्थों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए विदेशी व्यापार पर बल दिया गया।
- श्रम का प्रवाह 19वीं शताब्दी में विश्व के कई देशों में भारत के मजदूरों को बागानों, खाद्यान्नों, सड़कों तथा रेलवे परियोजनाओं में काम के लिए ले जाया गया।
- पूँजी का प्रवाह शिकारीपूरी श्रॉफ और नाटुकोट्टई चेट्टियार उन बैंकरों और व्यापारियों में से एक थे, जो मध्य एवं दक्षिण पूर्व एशिया में निर्यातोन्मुखी खेती के लिए कर्ज देते थे।
प्रश्न 6. खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को दर्शाने के लिए इतिहास के दो उदाहरण दें। [NCERT]
अथवा आधुनिक तकनीक ने खाद्य उपलब्धता को कैसे पूरे विश्व में पहुँचाया? स्पष्ट करें।
उत्तर – खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव की प्रगति के परिणामस्वरूप सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन प्रभावित हुआ। खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के दो प्रभावों का विवरण निम्नलिखित है
- रेलवे नेटवर्क का प्रसार रेलवे के प्रसार ने भोजन को दूर-दूर तक पहुँचाने में सहायता की। अब भोजन आस-पास के गाँवों या कस्बों के अतिरिक्त दूर दराज के शहरों से मँगाए जाने लगे। पानी के बड़े जहाजों के माध्यम से भोज्य सामग्री दूसरे देशों तक भी पहुँचाई जाने लगी थी ।
- रेफ्रिजरेशन तकनीक का विकास 1870 के दशक तक यूरोप में कच्चे मांस के स्थान पर जीवित जानवर भेजे जाते थे, जिन्हें बाद में यूरोप के देशों में ही काटा जाता था, किन्तु यह व्यापार काफी महँगा साबित हो रहा था। जल्द ही पानी के जहाजों में रेफ्रिजरेशन की तकनीक स्थापित कर दी गई, जिससे जल्दी खराब होने वाली खाद्य सामग्री को भी लम्बी यात्राओं पर ले जाया जाने लगा। इससे अब जानवरों के अतिरिक्त उनका मांस आयात किया जाने लगा।
प्रश्न 7. ब्रेटनवुड्स समझौते का क्या अर्थ है? इसका क्या उद्देश्य था ? अथवा ब्रेटनवुड्स समझौते का क्या अर्थ है ?
अथवा विश्व अर्थव्यवस्था को सुनिश्चित करने में ब्रेटनवुड्स ने क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर – दो विश्व युद्धों के पश्चात् वैश्विक स्तर पर आर्थिक अर्थव्यवस्था को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए, जिसके द्वारा औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्ण रोजगार को बनाए रखने की बात की गई। इस फ्रेमवर्क पर जुलाई, 1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशायर के ब्रेटनवुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी। सदस्य देशों के विदेश व्यापार में लाभ और घाटे से निपटने के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना की गई।
प्रश्न 8. जी – 77 देशों से आप क्या समझते हैं? जी-77 को किस आधार पर ब्रेटनवुड्स की जुड़वाँ सन्तानों की प्रतिक्रिया कहा जा सकता है ? व्याख्या कीजिए ।
अथवा जी – 77 संगठन विकासशील देशों ने क्यों बनाया?
उत्तर – विकासशील देशों को 1950-60 के दशक में पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं से कोई उचित लाभ नहीं मिल सका। इस समस्या को देखते हुए एक नई आर्थिक प्रणाली जी – 77 का गठन हुआ। जी – 77 विकासशील देशों का एक समूह था, जिन्हें 1944 में ब्रेटनवुड्स के सम्मेलन में होने वाले नियमों से कोई लाभ नहीं हुआ था। ब्रेटनवुड्स के सम्मेलन में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक का जन्म हुआ था, जिन्हें ब्रेटनवुड्स की जुड़वाँ सन्तान भी कहा जाता है।
प्रश्न 9. ” रेशम मार्ग से जुड़ती दुनिया” से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – आधुनिक काल से पहले के युग में दुनिया के दूर-दूर स्थित भागों के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक संपर्कों का सबसे जीवन्त उदाहरण सिल्क (रेशम) मार्गों के रूप में होता था। ‘सिल्क मार्ग’ नाम से पता चलता है कि इस मार्ग से पश्चिम को भेजे जाने वाले चीनी रेशम (सिल्क) का कितना महत्त्व था । इतिहासकारों ने सिल्क मार्गों के बारे में जानकारी दी है।
जमीन या समुद्र से होकर गुजरने वाले ये रास्ते न केवल एशिया के विशाल क्षेत्रों को एक-दूसरे जोड़ने का काम करते थे, बल्कि एशिया को यूरोप और उत्तरी अफ्रीका भी जोड़ते थे। ऐसे मार्ग ईसा पूर्व के समय में ही सामने आ चुके थे और लगभग पन्द्रहवीं शताब्दी तक अस्तित्व में थे। इस मार्ग से भारत व दक्षिण-पूर्व एशिया के कपड़े व मसाले दुनिया के दूसरे भागों में पहुँचते थे। वापसी में सोने-चाँदी जैसी कीमती धातुएँ यूरोप से एशिया आती थी ।
व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान, दोनों प्रक्रियाएँ साथ-साथ चलती थीं। शुरुआती काल के ईसाई मिशनरी निश्चय ही इस मार्ग से एशिया में आए थे। फिर धीरे-धीरे अन्य व्यापारी भी आए। इससे भी पहले पूर्वी भारत में उपजा बौद्ध धर्म ने सिल्क मार्ग की विविध शाखाओं का विस्तार किया था, जिसका वर्तमान समय में आधुनिकीकरण करके व्यापारिक व सांस्कृतिक महत्त्व के रूप में बनाए रखा।
प्रश्न 10. ‘व्यापार अधिशेष’ को परिभाषित कीजिए। भारत के साथ ब्रिटेन को व्यापार अधिशेष क्यों प्राप्त था ?
उत्तर – व्यापार अधिशेष एक ऐसी स्थिति है, जिसके अन्तर्गत निर्यात की कीमत आयात से अधिक होती है। भारत के साथ ब्रिटेन को व्यापार अधिशेष प्राप्त होता था, जिसके निम्नलिखित कारण थे-
- भारत में ब्रिटेन के निर्यात की कीमत भारत से ब्रिटिश आयात की कीमत से कही अधिक होती थी।
- भारत में ब्रिटेन के व्यापार से जो अधिशेष प्राप्त होता था, उससे तथा कथित ‘होम चार्जेज’ का निपटारा होता था।
- भारत में कार्य कर चुके ब्रिटिश अफसरों को पेन्शन भी दी जाती थी। अत: इन्हीं कारणों से भारत के साथ ब्रिटेन को व्यापार अधिशेष प्राप्त था।
वर्णनात्मक प्रश्न -2
प्रश्न 1. कॉर्न लॉ से क्या आशय है? कॉर्न लॉ के उन्मूलन से क्या प्रभाव पड़ा? व्याख्या करें।
अथवा कॉर्न लॉ के निरस्त होने के बाद ब्रिटेन की खाद्य समस्या का हल किस प्रकार हुआ ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – कॉर्न लॉ
जमींदारों के दबाव के कारण सरकार ने कॉर्न (मक्का) के आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इस कानून को सामान्यतः कॉर्न लॉ के नाम से जाना जाता था। कॉर्न लॉ के सूत्रपात के बाद भोज्य पदार्थों का मूल्य अत्यधिक हो गया । नगरों में रहने वाले उद्योगपति और लोग उच्च मूल्यों के कारण अप्रसन्न थे। उन्होंने कॉर्न लॉ का उन्मूलन करने के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव डाला। कॉर्न लॉ के उन्मूलन के बाद ब्रिटेन में भोजन पहले की अपेक्षा अत्यधिक सस्ती दरों पर आयातित होने लगा। ब्रिटिश सरकार कृषि आयात से प्रतिस्पर्द्धा करने में अयोग्य थी। भूमि का विशाल क्षेत्र खेती के योग्य नहीं था और हजारों लोगों ने अपनी आजीविका खो दी थी। वे कार्यों की खोज में शहर आ गए अथवा विदेशों की ओर पलायन कर गए।
कॉर्न लॉ के उन्मूलन के प्रभाव
- भोजन के मूल्य में गिरावट आने से ब्रिटेन में खपत में वृद्धि हो गई। 19वीं शताब्दी के मध्य से ब्रिटेन में तेजी से औद्योगिक वृद्धि हुई और आय भी बढ़ गई तथा भोजन के लिए अधिक माँग में भी बढ़ोतरी हुई।
- कृषि सम्बन्धी उत्पादों का निर्यात करने के लिए नए रेलवे स्टेशनों व बन्दरगाहों की आवश्यकता पड़ी। कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि होने से अत्यधिक आवासों व प्रबन्धनों की आवश्यकता हुई। इन सभी गतिविधियों के लिए पूँजी और श्रम की आवश्यकता थी।
- लन्दन जैसे वित्तीय केन्द्रों से पूँजी का प्रवाह होने लगा। श्रम की माँग के कारण 19वीं शताब्दी में लाखों लोग बेहतर जीवन की तलाश में यूरोप से अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की ओर प्रवास करने लगे ।
- 1890 ई. से वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था का विकास हुआ।
- कभी-कभी रेलों या जहाजों द्वारा हजारों मील दूर से भोजन आता था।
- यह नाटकीय परिवर्तन यद्यपि छोटे पैमाने पर पश्चिमी पंजाब में भी हुआ। भारत में ब्रिटिश शासकों ने निर्यात हेतु गेहूँ और कपास में बढ़ोतरी करने के लिए उपजाऊ कृषि भूमि में सिंचाई का विकास कर पंजाब को रूपान्तरित कर दिया। क्षेत्रीय वस्तुओं का विकास इतनी तेजी से हुआ कि 1820 ई. से वर्ष 1914 के बीच विश्व व्यापार 25 से 40 गुना बढ़ गया।
प्रश्न 2. “अनुबन्धित श्रमिकों ने अपने जीवन की अभिव्यक्ति के अपने ढंग खोज लिए थे।” कथन की समीक्षा कीजिए ।
अथवा 19वीं शताब्दी में भारत से विदेश में श्रमिकों को क्यों ले जाया गया? ये श्रमिक अधिकतर किस देश के थे? उन्हें किन शर्तों पर स्वदेश लौटने की छूट दी जाती थी ?
अथवा गिरमिटिया मजदूरों ने शेष विश्व में अपनी सांस्कृतिक पहचान किस प्रकार बनाए रखी थी?
अथवा अनुबन्धित मजदूर कौन थे? उन्होंने किस प्रकार से अपनी पहचान बनाई ?
उत्तर – अनुबन्धित मजदूर
अनुबन्धित मजदूर से तात्पर्य किसी नियोक्ता के लिए एक निश्चित समय के लिए विशिष्ट राशि पर अनुबन्ध के अन्तर्गत कार्य करने वाले बँधुआ मजदूर से है, जिन्हें या नए देशों में ही भुगतान किया जाता था। 19वीं शताब्दी में लाखों भारतीय व चीना मजदूर बागानों, खदानों और विश्व की विभिन्न निर्माणकारी परियोजनाओं मे कार्य करने के लिए गए। अधिकांश भारतीय अनुबन्धित कर्मचारी पूर्वी प्रदेश के वर्तमान राज्यों से, बिहार, मध्य भारत और तमिलनाडु से आए। 19वीं शताब्दी के मध्य में भारत के इन राज्यों में कई सामाजिक परिवर्तन हुए; जैसे- कुटीर उद्योगों का पतन हो गया, जमीन का किराया बढ़ गया और खदानों तथा बागानों के लिए जमीन कां साफ कर दिया गया। इन सब कारणों ने गरीबों को कार्य की खोज में प्रवास करने के लिए बाध्य कर दिया।
भारतीय अनुबन्धित प्रवासियों का गन्तव्य अर्थात् स्थान
भारतीय अनुबन्धित प्रवासियों के मुख्य गन्तव्य कैरीबियाई द्वीप मुख्यतः त्रिनिदाद, गुयाना तथा सूरीनाम, मॉरिशस और फिजी थे। इसके अतिरिक्त उनके स्थानीय आवास के आस-पास के अन्य स्थान थे। तमिल प्रवासी सीलोन और मलाया गए । कुछ अनुबन्धित कर्मचारी असम के चाय बागानों में नियुक्त किए गए थे।
अनुबन्धित मजदूरों की स्थिति
इन मजदूरों की नियुक्ति नियोक्ता से जुड़े और छोटे-छोटे कमीशन पाने वाले एजेण्टों के द्वारा की गई थी। एजेण्ट अनुबन्धित मजदूरों से उनकी बेहतर आजीविका दशाओं का, अत्यधिक धन और अन्य सुविधाओं का वादा करके उनकी नियुक्ति करते थे, तथापि जब वे बागानों में पहुँचते थे, तो वहाँ वे विभिन्न परिस्थितियाँ पाते थे, जिनकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
प्रश्न 3. 19वीं शताब्दी की विश्व में प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए। उदाहरण सहित समझाइए |
अथवा विश्व अर्थव्यवस्था ने कैसे स्थान ग्रहण किया? इसमें तकनीकी का क्या योगदान है?
अथवा प्रौद्योगिकी ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को किस प्रकार उत्प्रेरित किया? उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
अथवा प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपयोग कैसे हुआ?
उत्तर – 19वीं शताब्दी की विश्व अर्थव्यवस्था को आकार देने में तकनीकी की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है, जिसे निम्नलिखित कारणों द्वारा समझा जा सकता है
- विश्व अर्थव्यवस्था में तकनीकी आविष्कार रेलवे, भाप के जहाज, टेलीग्राफ आदि महत्त्वपूर्ण आविष्कार थे, जिनके बिना 19वीं शताब्दी की विश्व अर्थव्यवस्था को आकार नहीं दिया जा सकता था।
- बाजारों की परस्पर सम्बद्धता इस समय के परिवहन में नए निवेश व सुधारों से तीव्रगामी रेलगाड़ियाँ, हल्की बोगियाँ और विशालकाय जलपोतों को कम खर्च में कृषि उत्पाद एवं अन्य उत्पादों खेतों से दूर-दूर के बाजारों में सुगमता से पहुँचाने में सहायता की।
- मांस के व्यापार पर प्रभाव 1870 के दशक तक अमेरिका से यूरोप को मांस का निर्यात नहीं किया जाता था, अपितु जीवित जानवर भेजे जाते थे, जिन्हें यूरोप ले जाकर काटा जाता था । जीवित जानवर जलपोतों में अधिक स्थान घेरते थे।
- समुद्री यात्रा में कई पशु मर जाते, बीमार हो जाते, भार कम हो जाता या फिर अखाद्य बन जाते थे। अतः मांस के दाम बहुत ऊँचे और निर्धन यूरोपियों की पहुँच से परे थे। उच्च कीमतों के कारण माँग तथा उत्पादन बहुत कम था, परन्तु रेफ्रिजरेशन युक्त जलपोतों ने मांस को एक क्षेत्र से दूसरे तक परिवहन करना सुगम बना दिया।
- सामाजिक शान्ति और साम्राज्यवाद उपनिवेशवाद रेफ्रिजरेशन की तकनीक के कारण न केवल समुद्री यात्रा में आने वाला खर्च कम हो गया, बल्कि यूरोप में मांस के दाम भी गिर गए। विश्व बाजारों को आपस में जोड़ने में तकनीक ने बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके फलस्वरूप उपनिवेशवाद को बढ़ावा मिला।
प्रश्न 4. प्रथम विश्वयुद्ध ने ब्रिटेन में लोगों के आर्थिक जीवन में किस प्रकार परिवर्तन किया?
अथवा प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान विश्व के आर्थिक हालातों के विषय में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व ब्रिटेन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी, किन्तु युद्ध के पश्चात् सबसे लम्बा संकट भी इसे ही झेलना पड़ा। जिसका वर्णन निम्नलिखित है
- भारत और जापान से प्रतिस्पर्द्धा (विदेशी कर्ज) इस युद्ध के समय भारत और जापान में उद्योग विकसित हो रहे थे। ऐसे में ब्रिटेन को भारतीय बाजार में पहले वाली स्थिति को पाना मुश्किल हो गया था। इसके अतिरिक्त जापान से भी मुकाबला करना था।
- युद्ध में हुए खर्चों को पूरा करने के लिए ब्रिटेन ने अमेरिका से जो कर्ज लिया था, उसकी भरपाई भी करना आवश्यक था। ऐसे में प्रथम महायुद्ध के पश्चात् ब्रिटेन पर भारी कर्जों का दबाव था।
- आर्थिक उछाल का अन्त इस महायुद्ध के कारण विश्व में आर्थिक उछाल का माहौल उत्पन्न हो गया था, क्योंकि माँग और उत्पादन तथा रोजगार में बढ़ोतरी हुई, किन्तु युद्ध के पश्चात् जब यह उछाल शान्त हुआ उत्पादन गिरने लगा तथा बेरोजगारी बढ़ने लगी। वर्ष 1921 में ब्रिटेन में प्रत्येक पाँच में से एक ब्रिटिश मजदूर बेरोजगार था ।
- व्यय में कटौती ब्रिटिश सरकार ने अब भारी भरकम युद्ध सम्बन्धी व्यय में भी कटौती शुरू कर दी, जिससे शान्तिकालीन करों के सहारे ही उनकी भरपाई की जा सके।
- ब्रिटिश अर्थव्यवस्था का कमजोर होना युद्ध के समय तक पूर्वी यूरोप गेहूँ की आपूर्ति का एक बड़ा केन्द्र था, किन्तु युद्ध के दौरान तो सारी कृषि आधारित अर्थव्यवस्थाएँ भी संकट में रहीं। केवल कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में गेहूँ की पैदावार अचानक बढ़ने लगी। युद्ध की समाप्ति के पश्चात् पूर्वी यूरोप में गेहूँ की पैदावार सुधरने लगी और बाजारों में इसकी अधिकता हो गई। अनाज की कीमतें गिरने लगी, जिससे किसान कर्ज में डूबने लगे।
प्रश्न 5. महामन्दी के कारणों की व्याख्या कीजिए और बताइए भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ा ?
अथवा भारतीय अर्थव्यवस्था पर आर्थिक महामन्दी के पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन करें।
अथवा महामन्दी का क्या आशय है? इसके दो प्रमुख कारण बताइए । इसके दो प्रभाव भी लिखिए।
अथवा वैश्विक आर्थिक महामन्दी के किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख कीजिए |
अथवा भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामन्दी के किन्हीं तीन प्रभावों का उल्लेख कीजिए |
अथवा भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक आर्थिक महामन्दी के किन्हीं तीन परिणामों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – वर्ष 1929 के आस-पास महामन्दी (Great Depression) शुरू हो गई और 1930 के दशक के मध्य तक बनी रही। इस अवधि के दौरान संसार के अधिकांश देशों ने उत्पादन, रोजगार, आय और व्यापार में अत्यधिक गिरावट को महसूस किया।
महामन्दी के लिए उत्तरदायी कारक महामन्दी के लिए निम्न कारक उत्तरदायी थे
- पहला कारक कृषि उत्पादन की अधिकता की समस्या का बने रहना था इससे कृषि उत्पादों का मूल्य घट गया। किसान ने अपनी सम्पूर्ण आय बनाए रखने के लिए उत्पादन का विकास करने का प्रयास किया। इससे स्थिति खराब हो गई तथा कृषि उत्पादों का मूल्य और भी गिर गया ।
- दूसरा कारक 1920 के दशक के मध्य में बहुत-से देशों ने अमेरिका से कर्ज लेकर अपनी निवेश सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा किया था। अमेरिकी पूँजीवादियों ने यूरोपीय देशों को ऋण देना बन्द कर दिया। इससे यूरोप में कुछ प्रमुख बैंक धराशायी हो गए और मुद्रा का पतन हो गया; जैसे— स्टर्लिंग |
- तीसरा कारक अमेरिका इस मन्दी से गम्भीर रूप से प्रभावित हुआ, क्योंकि बैंकों ने घरेलू ऋण वापिस लेना शुरू कर दिया। इसे ऋण वापसी (Back Loans) के नाम से जाना गया। किसान उपज नहीं बेच सके, परिवार तबाह हो गए और व्यवसाय ठप हो गए।
अन्ततः अमेरिका की बैंकिंग प्रणाली धराशायी हो गई, क्योंकि बैंक निवेशों, एकत्रित ऋणों तथा जमाकर्ताओं के धन को लौटा पाने में असमर्थ थे। अमेरिका ने आयात करों को दोगुना करके मन्दी में अपनी अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने का प्रयास किया, जिससे विश्व व्यापार बुरी तरह से नष्ट हो गया ।
महामन्दी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- महामन्दी के कारण भारत के निर्यात व आयात का अर्द्धपतन हो गया और प्राथमिक उत्पादों (जैसे-गेहूँ व जूट) का मूल्य वर्ष 1928 से 1934 के बीच तेजी से गिर गया, लेकिन औपनिवेशिक सरकार ने राजस्व की माँग को कम करने से मना कर दिया, इसलिए किसान बुरी तरह से संकट में आ गए।
- इस अवधि के दौरान भारत कीमती धातुओं विशेष रूप से सोने का निर्यातक बन गया। इससे वैश्विक आर्थिक उगाही अर्थात् आर्थिक व्यवस्था को वैश्विक रूप से बढ़ावा मिला, लेकिन इससे भारतीय किसानों को बहुत कम लाभ मिला। पूरे भारत में किसानों की दशा चिन्ताजनक हो गई।
- नियमित आय वाले लोगों को मूल्य के गिरने के कारण कम समस्या-का- सामना करना पड़ा। वर्ष 1931 में महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को शुरू कर दिया।
प्रश्न 6. प्रथम विश्वयुद्ध के किन्हीं तीन परिणामों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – प्रथम विश्व युद्ध यूरोपीय महाद्वीप पर होने वाला एक वैश्विक युद्ध था, जो 28 जुलाई, 1914 से 11 नवम्बर, 1918 तक चला था। यह युद्ध दो समूहों में लड़ा गया था। एक तरफ मित्र राष्ट्र ब्रिटेन, फ्रांस और रूस थे तो दूसरी तरफ केन्द्रीय शक्तियाँ — जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी और ऑटोमन तुर्की थे। मानव सभ्यता के इतिहास में ऐसा भीषण युद्ध पहले कभी नहीं हुआ था। इस युद्ध में दुनिया के प्रमुख औद्योगिक राष्ट्र एक-दूसरे से जूझ रहे थे। इसके विश्व पर प्रभाव निम्न हैं
- यह पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध था। इस युद्ध में मशीनगनों, टैंकों, हवाई जहाज़ों और रासायनिक हथियारों का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया गया। ये सभी चीजें आधुनिक विशाल उद्योगों की देन थी ।
- इस युद्ध में लगभग 90 लाख से अधिक लोग मारे गए और लगभग दो करोड़ लोग घायल हुए।
- इस युद्ध के कारण यूरोप में कामकाज करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम रह गई । परिवार के सदस्य घट जाने से युद्ध के बाद परिवारों की आय भी गिर गई।
- युद्ध के कारण दुनिया की कुछ सबसे शक्तिशाली आर्थिक ताकतों के बीच आर्थिक सम्बन्ध टूट गए। अब वे देश एक-दूसरे से बदला लेने की सोच रखने लगे।
- इस युद्ध के लिए ब्रिटेन को अमेरिकी बैंकों और अमेरिकी जनता से भारी कर्जा लेना पड़ा। फलस्वरूप इस युद्ध ने अमेरिका को कर्जदार के अतिरिक्त कर्जदाता देश बना दिया।
- राजतन्त्र समाप्त हुआ, सर्वहारा का शासन स्थापित हो गया ।
- युद्ध के बाद अमेरिका व सोवियत संघ वैश्विक शक्ति के रूप में उभरा।
प्रश्न 7. वैश्वीकरण / भूमण्डलीकरण से वैश्विक व्यापार और निवेश पर क्या प्रभाव पड़ा ? वैश्वीकरण को सम्भव बनाने वाले कारकों पर चर्चा कीजिए ।
उत्तर – वैश्वीकरण का प्रभाव
वैश्वीकरण एक आर्थिक पद्धति है। इसका सम्बन्ध विभिन्न देशों के लोगों, वस्तु एवं सेवाओं से उत्पन्न गतिविधियों की अनुमति से है। वैश्वीकरण ने विभिन्न देशों के बीच विदेशी व्यापार एवं निवेश में तीव्र वृद्धि की है। विभिन्न देशों के बीच अधिक-से-अधिक वस्तुओं और सेवाओं, निवेश और प्रौद्योगिकी का आदानप्रदान करना ही मुख्य उद्देश्य था । उदाहरण के तौर पर हम सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के विकास को ले सकते हैं। वर्तमान समय में दूरसंचार, कम्प्यूटर व इण्टरनेट के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी द्रुतगति से परिवर्तित हो रही है।
भारत में रहने वाला व्यक्ति लन्दन में रह रहे अपने रिश्तेदार से बातें कर सकता है, जो दूरसंचार के माध्यम से सम्भव हुआ है अर्थात् वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण यह सम्भव हो पाया है।
वैश्वीकरण को सम्भव बनाने वाले कारक
वैश्वीकरण को सम्भव बनाने वाले निम्न कारक हैं
- प्रौद्योगिकी में तीव्र उन्नति विगत 50 वर्षों में परिवहन प्रौद्योगिकी में अत्यधिक उन्नति हुई है। इससे लम्बी दूरियों तक वस्तुओं की तीव्र आपूर्ति को कम लागत पर संभव किया है।
- सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी सूचना और संचार प्रौद्योगिकी ने विश्व में सेवाओं के उत्पादन का विस्तार किया है। दूरसंचार सुविधा (टेलीग्राफ, टेलीफान, मोबाइल फोन, फैक्स) और उपग्रह संचार का उपयोग विश्व में एक-दूसरे से सम्पर्क स्थापित करने सूचनाओं को तत्काल प्राप्त करने और दूरवर्ती क्षेत्रों से संवाद करने में प्रयोग किया जा रहा है।
- बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ वैश्वीकरण में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। व्यापार के क्षेत्र में अन्य देशों से एक-दूसरे का सम्बन्ध वैश्वीकरण का परिचायक है।
प्रश्न 8. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के समक्ष क्या समस्याएँ थीं? इन्हें ब्रेटन वुड्स सम्मेलन द्वारा किस प्रकार सुलझाया गया?
उत्तर – द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के समक्ष दो समस्याएँ प्रमुख थीं- अत्यधिक सामाजिक तबाही और आर्थिक हानि। इसके कारण पुनर्निर्माण का कार्य अत्यधिक कठिन हो गया।
युद्ध के बाद का बन्दोबस्त और ब्रेटन वुड्स संस्थान
युद्ध के आर्थिक अनुभवों से अर्थशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों ने दो मुख्य सबक तैयार किए
- पहला सबक वृहत उत्पादन पर आधारित किसी औद्योगिक समाज को व्यापक उपभोग की आवश्यकता थी । वृहत उपभोग के लिए उच्च और स्थायी आय की आवश्यकता थी तथा स्थायी आय के लिए पूर्ण और स्थिर रोजगार की आवश्यकता थी। इसके लिए सरकार को आवश्यक कदम उठाने चाहिए थे।
- दूसरा सबक एक देश दूसरे देश से आर्थिक सम्पर्कों से सम्बन्धित था। पूर्ण रोजगार का लक्ष्य पाया जा सकता था, यदि वस्तुओं, पूँजी और श्रम के प्रवाहों को नियन्त्रण करने की शक्ति केवल सरकार के पास होती। इस फ्रेमवर्क पर जुलाई, 1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशायर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी।
अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष व विश्व बैंक की स्थापना
सदस्य राष्ट्रों के बाहरी अधिशेष और घाटे से निपटने के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन ने अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष (International Monetary Fund, IMF) की स्थापना की । युद्धोत्तर पुनर्निर्माण को वित्त पोषित करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (विश्व बैंक के नाम से जाना जाने वाला) की स्थापना की गई।
IMF तथा विश्व बैंक को ब्रेटन वुड्स संस्थान या ब्रेटन वुड्स ट्विन (ब्रेटनवुड्स की जुड़वाँ सन्तानें) भी कहा जाता है।
अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था, राष्ट्रीय मुद्रा और मौद्रिक व्यवस्था से जोड़ने वाली व्यवस्था है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत, राष्ट्रीय मुद्रा ने स्थिर विनिमय दर का पालन किया और अमेरिकी डॉलर स्थिर रहता था। ब्रेटन वुड्स व्यवस्था ने पश्चिमी औद्योगिक राष्ट्रों और जापान के लिए व्यापार और आय में स्थायी वृद्धि के युग का उद्घाटन किया।
ब्रेटन वुड्स व्यवस्था में 44 देश शामिल थे। इन देशों को सीमाओं के पार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करने और बढ़ावा देने में मदद करने के लिए एक साथ लाया गया था। ब्रेटन वुड्स सिस्टम ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा विनिमय दर की अस्थिरता को कम कर दिया, जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधों को सहायता मिली। विदेशी मुद्रा विनिमय में अधिक स्थिरता विश्व बैंक से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऋण और अनुदान के सफल समर्थन के लिए भी एक कारक थी।
