Social-science 10

UP Board Class 10 Social Science Chapter 3 मुद्रा और साख (अर्थशास्त्र)

UP Board Class 10 Social Science Chapter 3 मुद्रा और साख (अर्थशास्त्र)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 मुद्रा और साख (अर्थशास्त्र)

फास्ट ट्रैक रिवीज़न
वस्तु विनिमय प्रणाली
  • वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं का प्रत्यक्ष रूप से आदान-प्रदान होता है।
  • इसे आवश्यकता के दोहरे संयोग के रूप में माना जाता है। इस प्रणाली का सबसे बड़ा दोष आवश्यकताओं का दोहरा संयोग ही है।
  • इस प्रणाली में कोई सामान्य मूल्य निश्चित नहीं होता है।
वस्तु विनिमय प्रणाली के गुण
  • यह एक विकेन्द्रीकरण प्रणाली है, जिसमें वस्तुओं का अत्यधिक संग्रह नहीं होता है।
  • यह एक सरल प्रणाली है, जिसमें शिक्षित होना आवश्यक नहीं है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए यह सबसे उपयुक्त प्रणाली है, क्योंकि इसमें मुद्रा कोई समस्या नहीं होती है।
  • इस प्रणाली में मौद्रिक पद्धति के दोषों से मुक्ति प्राप्त होती है।
  • इस विनिमय प्रणाली में दोनों पक्षों को लाभ होता है, क्योंकि व्यक्ति कम उपयोगी वस्तु को देकर अधिक उपयोगी वस्तु को प्राप्त करता है।
  • इस प्रणाली में माँग तथा पूर्ति में हमेशा सन्तुलन बना रहता है।
वस्तु विनिमय प्रणाली की समस्या
  • इस प्रणाली में वस्तु के विभाजन की समस्या हमेशा बनी रहती है।
  • इस प्रणाली में कुछ वस्तु (भूमि, घर) के हस्तान्तरण में असुविधा आती है।
  • इसमें वैकल्पिक आवश्यकता ( वस्तु के बदले वस्तु) का अभाव हमेशा बना रहता है।
  • इस प्रणाली की अन्य समस्या मूल्य के सर्वमान्य आय का अभाव है।
  • इस प्रणाली में मूल्य स्थिर नहीं होने से स्थगित भुगतान ( उधार लेने-देने) में कठिनाई आती है। इसमें अधिक समय तक वस्तु को संचय नहीं किया जा सकता, क्योंकि अनेक वस्तुएँ नाशवान होती हैं।
  • इसके अन्तर्गत सेवाओं के विनिमय की असुविधा भी होती है।
मुद्रा का आधुनिक रूप
  • मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य कर सकती है।
  • आधुनिक मुद्रा में कागजी मुद्रा और सिक्के शामिल हैं।
  • वर्तमान में डिजिटलीकरण से मुद्रा के नए रूपों में धीरे-धीरे विस्तार हो रहा है।
मुद्रा की विशेषताएँ
  • इसे हमेशा सरकार के द्वारा जारी किया जाता है।
  • भारत में भारतीय रिजर्व बैंक भारत सरकार की ओर से मुद्रा नोट जारी करता है।
  • मुद्रा को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है।
बैंकों में निक्षेप (जमा)
  • बैंक जमा राशियों को स्वीकार करते हैं और समय के साथ इस पर ब्याज भी देते हैं।
  • बैंक में जमा धन को व्यक्ति अपनी आवश्यकता के अनुसार निकाल सकता है।
  • बैंक के साथ जमा राशि को माँग जमा कहते हैं।
आधुनिक बैंकिंग प्रणाली
बैंकों की ऋण सम्बन्धी क्रियाएँ
  • कर्जदारों से प्राप्त ब्याज और जमाकर्ताओं को दिए गए ब्याज के मध्य जो अन्तर होता है, वह बैंक की आय का प्रमुख स्रोत होता है।
साख
साख (ऋण) के अन्तर्गत ऋणदाता कर्जदार को धन देता है तथा बदले में भुगतान का वादा लेता है।
साख की दो विभिन्न स्थितियाँ
  • पहली स्थिति इसमें उत्पादक खर्च को पूरा करने के लिए ऋण लेता है, जब उत्पादन सही समय पर पूरा हो जाता है, तो वह अधिक आय का अर्जन करता है, जिससे वह समय पर ऋण चुका देता है। इस स्थिति में ऋण एक साकारात्मक भूमिका निभाता है।
  • दूसरी स्थिति इस स्थिति को कर्जजाल भी कहते हैं, क्योंकि इसमें ऋण कर्जदार को उस स्थिति में ले जाता है। जहाँ वह ऋण को चुका नहीं सकता। इस स्थिति में ऋण एक नकारात्मक भूमिका निभाता है।
साख की शर्तें
  • इसमें ब्याज की दर, ऋण की अवधि आदि दशाएँ शामिल होती हैं।
  • साख की शर्तों में समर्थक ऋणाधार (गिरवी वस्तु या दस्तावेज) शामिल होता है।
समर्थक ऋणाधार
  • यह ऐसी वस्तुएँ हैं, जिनका मालिक ऋण लेने वाला होता है।
  • जब ऋण लेने वाला व्यक्ति ऋण न चुका सके, तो ऋणदाता उस वस्तु का उपयोग कर सकता है।
साख व्यवस्था की विविधता
  • एक गाँव में परिस्थितियों के हिसाब से अलग-अलग साख या ऋण व्यवस्था स्थापित होती है।
  • छोटे किसान साहूकारों से उच्च दर पर ऋण लेकर कर्जजाल में फँस जाते हैं।
  • किसान व्यापारियों से भी कम दर पर ऋण लेता है। इसके बदले व्यापारी कम कीमत पर किसानों से फसल खरीदता है और जब कीमतें उच्च होती हैं, तब बेचता है।
  • मध्यम और बड़े किसान सुविधा के अनुसार कम दर पर बैंकों से ऋण लेते हैं।
  • भूमिहीन किसान नियोक्ता से ऋण के बदले में जमीन मालिकों के लिए काम करते हैं।
  • सरकारी समितियों के सदस्यों को सहकारी समितियों से भी ऋण मिलता है।
  • कृषक कॉपरेटिव अपने सदस्यों की जमा स्वीकार को समर्थक ऋणाधार मानते हैं। इसके द्वारा वह बैंक से ऋण प्राप्त करते हैं, जिस ऋण को वह अपने समिति सदस्यों (किसानों) में बाँट देते हैं।
भारत में साख स्रोत
भारत में ऋण को औपचारिक एवं अनौपचारिक ऋण क्षेत्रों में बाँटा गया है। औपचारिक क्षेत्र में बैंक और सहकारी समितियों से लिए ऋण आते हैं और अनौपचारिक क्षेत्र में साहूकार, व्यापारी, मालिक, रिश्तेदार आदि से लिए कर्ज या ऋण आते हैं।
औपचारिक क्षेत्र में ऋण की विशेषताएँ
  • यह कम दरों पर ऋण उपलब्ध कराता है।
  • यह क्षेत्र RBI के द्वारा संचालित होता है।
औपचारिक क्षेत्र में भारतीय रिजर्व बैंक की भूमिका
  • भारतीय रिजर्व बैंक यह सुनिश्चित करता है कि व्यापारियों के साथ-साथ छोटे उधारकर्ताओं को ऋण प्राप्त हो।
  • बैंकों को रिजर्व बैंक को यह बताना पड़ता है कि उसका कितना ऋण तथा कितनी ब्याज दर पर उधारकर्ताओं को दिया गया है।
अनौपचारिक क्षेत्र में ऋण की विशेषताएँ
  • इसमें समर्थक ऋणाधार सुरक्षा की आवश्यकता नहीं होती ।
  • नौपचारिक क्षेत्र में ऋण प्राप्तकर्ता ऋण जाल में फँस जाता है।
गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूह
  • इसमें समान सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोग होते हैं।
  • इसके अन्तर्गत वह नियमित रूप से पैसे बचाते हैं।
  • ये समूह आवश्यकता पड़ने पर समूह के सदस्य को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराते हैं।
स्वयं सहायता समूह : महिलाओं के लिए सहायक संस्था
  • इस समूह की मदद से महिलाएँ आर्थिक तथा सामाजिक रूप से आत्मनिर्भर बनती हैं।
  • यह महिलाओं को सामाजिक मुद्दों पर चर्चा और कार्य करने के लिए मंच प्रदान करता है।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. विनिमय में कम-से-कम कितने पक्षों की आवश्यकता होती है?
(a) दो
(b) एक
(c) तीन
(d) ये सभी
उत्तर (a) दो
प्रश्न 2. वस्तु विनिमय प्रणाली को कहते हैं।
(a) प्रत्यक्ष विनिमय
(b) अप्रत्यक्ष विनिमय
(c) मौद्रिक
(d) क्रय-विक्रय
उत्तर (a) प्रत्यक्ष विनिमय
प्रश्न 3. भारत में कौन-सा बैंक नोट जारी करता है?
(a) स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया
(b) पंजाब नेशनल बैंक
(c) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया
(d) नाबार्ड बैंक
उत्तर (c) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया
प्रश्न 4. भूमिहीन कृषि मजदूर अधिकतर किससे ऋण प्राप्त करता है?
(a) साहूकारों से
(b) व्यापारियों से
(c) नियोक्ताओं से
(d) बैंकों से
उत्तर (c) नियोक्ताओं से
प्रश्न 5. सरकारी समितियों के सदस्य को ऋण की प्राप्ति किसके द्वारा होती है?
(a) बैंक के
(b) सहकारी समिति के
(c) साहूकार के
(d) कॉपरेटिव के
उत्तर (b) सहकारी समिति के
प्रश्न 6. भारत में साख के प्रमुख स्रोत हैं
(a) औपचारिक
(b) अनौपचारिक
(c) ‘a’ और ‘b’ दोनों
(d) बैंक क्षेत्र
उत्तर (c) ‘a’ और ‘b’ दोनों
प्रश्न 7. औपचारिक क्षेत्रों में ऋण का संचालन किसके द्वारा होता है?
(a) अनुसूचित बैंक
(b) रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया
(c) सरकार
(d) बैंक
उत्तर (b) रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया
प्रश्न 8. बैंक ब्याज दर को कौन निर्धारित करता है?
(a) RBI
(b) बैंक
(c) सरकार
(d) बैंक प्रबन्धन
उत्तर (a) RBI
प्रश्न 9. भारत में करेन्सी नोट कौन जारी करता है?
अथवा मुद्रा का निर्गमन किसके द्वारा किया जाता है?
(a) वित्तमन्त्रालय
(b) भारतीय स्टेट बैंक
(c) भारत सरकार
(d) आर. बी. आई.
उत्तर (d) आर. बी. आई.
प्रश्न 10. स्वयं सहायता समूह में किस प्रकार के लोग शामिल होते हैं?
(a) अधिकारी वर्ग
(b) समान सामाजिक पृष्ठभूमि
(c) व्यापारी वर्ग
(d) ये सभी
उत्तर (b) समान सामाजिक पृष्ठभूमि
प्रश्न 11. महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने वाली संस्था निम्न में से कौन-सी है ?
(a) स्वयं सहायता समूह
(b) गैर-सरकारी समूह
(c) सरकारी संस्था
(d) बैंकिंग तन्त्र
उत्तर (a) स्वयं सहायता समूह
प्रश्न 12. स्वयं सहायता समूह में बचत और ऋण सम्बन्धी अधिकतर निर्णय लिए जाते हैं
(a) बैंकों द्वारा
(b) सदस्यों द्वारा
(c) गैर-सरकारी सदस्यों द्वारा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (b) सदस्यों द्वारा
प्रश्न 13. निम्नलिखित में से किस वर्ष बांग्लादेश ग्रामीण बैंक की स्थापना की गई?
(a) 1960
(b) 1980
(c) 1970
(d) 1950
उत्तर (c) 1970
सुमेलित करें
प्रश्न 14. सुमेलित कीजिए
प्रश्न 15. सुमेलित कीजिए
कथन कूट
प्रश्न 16. निम्नलिखित में से कौन-सा अनौपचारिक क्षेत्र के अन्तर्गत आता है ?
1. ग्रामीण साहूकार
2. महाजन
3. देशी बैंकर
कूट
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 1 और 3
(d) ये सभी
उत्तर (d) ये सभी
प्रश्न 17. मुद्रा के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. मुद्रा एकमात्र माध्यम है, जिसके द्वारा वस्तु का विनियम सम्भव और सुगम है।
2. मुद्रा के प्रचलन से पूर्व वस्तु-विनियम का सिद्धान्त प्रचलन में था।
3. मुद्रा के विभिन्न उदाहरणों में नोट, सिक्के, प्लास्टिक मुद्रा आदि शामिल हैं।
कूट
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा कथन सही नहीं है?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) ये सभी
उत्तर (a) केवल 1
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
वर्णनात्मक प्रश्न- 1
प्रश्न 1. वस्तु-विनिमय प्रणाली क्या है? इसकी कुछ सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – वस्तु-विनिमय प्रणाली
वस्तुओं के बदले वस्तुओं के आदान-प्रदान की प्रणाली को वस्तु-विनिमय प्रणाली कहते हैं। वस्तु-विनिमय प्रणाली में लेन-देन का माध्यम मुद्रा पर केन्द्रित न होकर वस्तुओं पर केन्द्रित होता है।
वस्तु-विनिमय प्रणाली की सीमाएँ
विनिमय प्रणाली की कुछ सीमाएँ निम्नलिखित हैं
  • दोनों पक्ष एक-दूसरे से चीजें खरीदने और बेचने पर सहमति रखते हैं।
  • वस्तुओं का मूल्य निर्धारण करना अति कठिन है।
  • इसमें बहुत अधिक समय लगता है।
  • बहुत सारी वस्तुओं को विभाजित नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 2. मुद्रा की विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर – मुद्रा की विशेषताएँ
  • यह सामान्यत धन के रूप में स्वीकार की जाती हैं, जिसमें सिक्के और कागज के नोट शामिल हैं।
  • इसे सरकार द्वारा जारी किया जाता है और अर्थव्यवस्था के अन्दर परिचालित किया जाता है।
  • भारत में भारतीय रिजर्व बैंक भारत सरकार की ओर से मुद्रा नोट जारी करता है।
  • विनिमय के माध्यम के रूप में रुपये को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है।
प्रश्न 3. बैंकों में निक्षेप (जमा) की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – बैंकों में निक्षेप (जमा) की विशेषताएँ
  • मुद्रा को एकत्रित या जमा करने का यह अन्य रूप है।
  • लोग अपने नाम पर एक बैंक खाता खोलकर बैंकों में अपना अतिरिक्त पैसा जमा करते हैं।
  • बैंक जमा राशि स्वीकार करते हैं और इस पर ब्याज भी देते हैं।
  • बैंक में जमा किए गए धन को जमाकर्ता अपनी आवश्यकतानुसार निकाल सकते हैं। बैंकों के साथ जमा राशि को माँग जमा कहते हैं।
प्रश्न 4. 10 रुपये के नोट का विश्लेषण कीजिए। इसके ऊपर क्या अंकित है? क्या आप इस कथन की व्याख्या कर सकते हैं? 
उत्तर – 10 रुपये के नोट पर लिखा होता है— भारतीय रिजर्व बैंक केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रत्याभूतः मैं धारक को 10 रुपये देने का वचन देता हूँ। इस नोट पर रिजर्व बैंक के गर्वनर के हस्ताक्षर होते हैं। रिजर्व बैंक भारत का केन्द्रीय बैंक है। रिजर्व बैंक को नोट निर्गमन का अधिकार प्राप्त है। भारत में स्थिर निधि को बनाए रखना और सामान्य रूप से देश के हित मुद्रा एवं ऋण प्रणाली को संचालित करना है। रिजर्व बैंक का कार्यकारी केन्द्रीय बोर्ड द्वारा साक्षात्कार होता है। इसी आधार पर मुद्रा में सर्वग्राहता का गुण पाया जाता है।
प्रश्न 5. बैंकों की ऋण सम्बन्धी क्रियाओं तथा साख को समझाइए |
उत्तर – बैंकों की ऋण सम्बन्धी क्रियाएँ 
  • बैंक लोगों की जमा राशि स्वीकार करता है और वे इस पर कम ब्याज देते हैं।
  • बैंक जमा राशियों का उपयोग ऋण देने के लिए करते हैं।
  • बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत कर्जदारों से लिए ब्याज और जमाकर्ताओं को दिए गए ब्याज के बीच का अन्तर होता है।
साख
साख एक सहमति है। जहाँ ऋणदाता कर्जदार को धन, आवश्यक वस्तुएँ एवं सेवाएँ उपलब्ध कराता है और बदले में भविष्य में कर्जदार से भुगतान करने का वादा करता है । हमारी प्रतिदिन की गतिविधियों में ऐसे बहुत-से लेन-देन होते हैं, जहाँ ऋण का प्रयोग होता है।
प्रश्न 6. जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए और समस्याएँ खड़ी कर सकता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए और समस्याएं खड़ी कर सकता है। इसे समझने के लिए एक छोटे किसान का उदाहरण लेते हैं, जिसके पास जमीन का एक छोटा टुकड़ा है। मान लीजिए कि वह किसान खाद और बीज खरीदने के लिए साहूकार से कुछ धन उधार लेता है और अपनी फसल उगाता है। फसल से जो उपज होती है. वह उसके परिवार के भरण-पोषण के लिए अधिक नहीं होती. इसलिए वह इस स्थिति में कभी नहीं आ पाता कि खेत में उपजे अनाज को बेचकर अपना कर्ज चुका सके। यदि बाढ़ या सूखे से उसकी फसल नष्ट हो जाती है, तो उसकी स्थिति और अधिक खराब हो जाती है। इस प्रकार से वह किसान कर्ज के जाल में फँसकर रह जाता है।
प्रश्न 7. मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को किस प्रकार सुलझाती है? अपनी ओर से उदाहरण देकर समझाइए |
उत्तर – वस्तु-विनिमय प्रणाली में आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या होती है। मान लीजिए कि आप वस्तु विनिमय प्रणाली के आधार पर अपनी पुरानी किताबों को बेचकर उसके बदले एक गिटार लेना चाहते हैं, तो इस स्थिति में आपको ऐसे व्यक्ति की तलाश करनी होगी, जो अपने गिटार के बदले में किताबें लेने को तैयार हो। ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ पाना बहुत मुश्किल हो जाता है, लेकिन यदि वह छात्र अपनी किताबों को बेचकर धन अर्जित कर लेता है, तो वह उस धन से गिटार खरीद सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को सुलझाती है।
प्रश्न 8. हमें भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की आवश्यकता क्यों है? 
उत्तर – भारत में लगभग 48% ऋण अनौपचारिक स्रोतों से आता है. जो औपचारिक स्रोतों की तुलना में अधिक है। कुछ लोग ऐसे हैं, जिनकी पहुँच औपचारिक स्रोतों तक नहीं है। ऐसे लोग साहूकारों के चक्कर में फँस जाते हैं, जो गरीबों को दबाने के लिए कई तरह के हथकण्डे अपनाते हैं।
ऐसे लोगों को गरीबी के कुचक्र से निकालने के लिए उन तक ऋण के औपचारिक स्रोतों को पहुँचाना आवश्यक होता है। इससे गाँवों और दूर-दराज के क्षेत्रों में बसे ग्रामीणों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद मिलेगी। इसके अतिरिक्त बैंकों को अपने ऋण के आधारभूत ढाँचे में कुछ मूलभूत परिवर्तन की ओर ध्यान देना होगा, जिससे अधिक-से-अधिक लोगों की पहुँच बैंकों तक बन पाए।
प्रश्न 9. गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूहों के संगठनों के पीछे मूल विचार क्या हैं? अपने शब्दों में व्याख्या कीजिए । 
उत्तर – स्वयं सहायता समूहों का गठन ऐसे गरीबों के लिए किया जाता है, जिनकी पहुँच ऋण के औपचारिक स्रोतों तक नहीं है। इनके द्वारा लिए गए ऋण की राशि इतनी कम होती है कि ऋण देने में आने वाले खर्चे की वसूली भी नहीं हो पाती। अशिक्षा और जागरूकता के अभाव से उनकी समस्या और बढ़ जाती है। स्वयं सहायता समूह ऐसे लोगों को छोटा ऋण देते हैं, ताकि उनकी आजीविका चलती रहे। इसके अतिरिक्त स्वयं सहायता समूह ऐसे लोगों में ऋण अदायगी की भी आदत डालता है।
प्रश्न 10. विकास प्रक्रिया में ऋण की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर – विकास में ऋण की भूमिका
ऋण हमारे जीवन का सन्तुलित विकास करने में सहायता प्रदान करता है। ऋण तात्पर्य एक सहमति से है, जो दो पक्षों के मध्य की जाती है। कर्जदाता और उधारकर्ता के मध्य कुछ शर्तों पर दिया गया धन ऋण कहलाता है। यह ऋण व्यक्ति के लिए पूँजी का कार्य करता है। जिस पूँजी पर उपयोग अलग-अलग गतिविधियों में लगाकर (पूँजी) प्राप्त करने के लिए किया जाता है, फलस्वरूप उसकी आय में वृद्धि होती है, जो आर्थिक विकास को गतिशीलता भी प्रदान करता है।
प्रश्न 11. औपचारिक तथा अनौपचारिक ऋणों में कोई दो अन्तर लिखिए |
उत्तर – औपचारिक ऋण
  1. यह ऋण व्यापारिक बैंकों और सहकारी समितियों द्वारा सस्ती ब्याज पर उपलब्ध कराया जाता है।
  2. यह ऋण सस्ती दरों पर प्रदान की जाती है, जो सस्ता ऋण होता है।
अनौपचारिक ऋण
  1. यह ऋण साहूकार, व्यापारी, मालिक, रिश्तेदार, दोस्त आदि द्वारा दिया जाता है।
  2. यह ऋण उच्च दरों पर उपलब्ध कराया जाता है।
वर्णनात्मक प्रश्न-2
प्रश्न 1. वस्तु-विनिमय प्रणाली को गुण तथा समस्याओं के साथ समझाइए ।
उत्तर – मुद्रा के प्रयोग से पहले लोग वस्तु-विनिमय प्रणाली का प्रयोग करते थे, इसके अन्तर्गत दो या दो से अधिक वस्तुओं का प्रत्यक्ष रूप से आदान-प्रदान होता है, जिसे आवश्यकताओं के दोहरे संयोग के रूप में जाना जाता है।
वस्तु-विनिमय प्रणाली के गुण
  • सरल प्रणाली अशिक्षित व्यक्ति मुद्रा का ठीक से हिसाब नहीं लगा सकते, परन्तु वह वस्तुओं का आदान-प्रदान करके अपनी आवश्यकता पूरी कर सकते हैं। इस आधार पर यह एक सरल प्रणाली है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए उपयुक्त विभिन्न देशों की मुद्राएँ भिन्न-भिन्न होती हैं, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भुगतान की समस्या रहती है। वस्तु-विनिमय प्रणाली द्वारा इस समस्या को दूर किया जा सकता है।
  • विनिमय प्रक्रिया द्वारा दोनों पक्षों को लाभ इसके अन्तर्गत व्यक्ति कम उपयोगी वस्तु को देकर अधिक उपयोगी वस्तु को प्राप्त करना चाहते हैं। इससे दोनों पक्षों को विनिमय की क्रिया से लाभ होता है।
वस्तु-विनिमय प्रणाली की समस्याएँ
  • मूल्य के सर्वमान्य माप का अभाव इस प्रणाली की समस्या मूल्य के सर्वमान्य माप की कमी है। इसके अन्तर्गत मूल्य का कोई ऐसा सर्वमान्य माप नहीं है, जिसके द्वारा प्रत्येक वस्तु के मूल्य को विभिन्न वस्तुओं के सापेक्ष में निश्चित किया जा सके।
  • वस्तु संचय की असुविधा वस्तुओं को अधिक समय तक संचित करके रखना इस प्रणाली के अन्तर्गत सम्भव नहीं है, क्योंकि अनेक वस्तुएँ नाशवान होती हैं तथा उनके मूल्य भी स्थिर नहीं होते हैं।
प्रश्न 2. मुद्रा के आधुनिक रूप कौन-से होते हैं? उन सभी रूपों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – मुद्रा के आधुनिक रूप निम्नलिखित हैं
  • करेन्सी मुद्रा के आधुनिक रूपों में करेन्सी – कागज के नोट और सिक्के शामिल हैं। धीरे-धीरे कागज के नोटों ने प्राचीन सिक्कों की जगह ले ली है, लेकिन कम मूल्य वाले सिक्के अभी भी प्रयोग किए जा रहे हैं। सिक्कों और नोटों को सरकार द्वारा अधिकृत एजेन्सी जारी करती है। भारत में इन नोटों को ‘रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया’ के द्वारा जारी किया जाता है। भारत के करेन्सी नोट पर आपको एक वाक्य लिखा हुआ मिलेगा, जो उस करेन्सी नोट के धारक को उस नोट पर लिखी राशि देने का वायदा करता है।
  • बैंकों में निक्षेप या जमा अपनी रोज-रोज की जरूरतों के लिए अधिकांश लोगों को बहुत ही कम करेन्सी की आवश्यकता होती है। शेष बची राशि को लोग सामान्यतया बैंकों में निक्षेप या जमा के रूप में रखते हैं। बैंक में रखा हुआ रुपया सुरक्षित रहता है और उस पर ब्याज भी मिलता है। आप अपनी आवश्यकता के अनुसार अपने खाते से रुपये निकाल सकते हैं, चूँकि बैंक खातों में जमा धन को माँग के रूप में निकाला जा सकता है, इसलिए इस जमा को ‘माँग जमा’ कहा जाता है।
  • चेक द्वारा भुगतान बकाया राशि के भुगतान हेतु चेक का प्रयोग किया जाता है। चेक पर भुगतान पाने वाले व्यक्ति या संस्था का नाम और भुगतान की जाने वाली राशि लिखी होती है। चेक जारी करने वाले व्यक्ति को चेक के नीचे हस्ताक्षर करने होते हैं। इसके अतिरिक्त भुगतान हेतु डिमाण्ड ड्राफ्ट भी प्रयोग में लाया जाता है। दिखने में यह चेक की तरह ही होता है, लेकिन इस पर बैंक के अधिकारी के हस्ताक्षर होते हैं।
प्रश्न 3. साख व्यवस्था की विविधता को स्पष्ट करते हुए इसके पाँच कारणों का उल्लेख कीजिए ।
अथवा भारत में साख प्राप्ति के औपचारिक व अनौपचारिक स्रोतों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर – भारत में ऋणों को दो वर्गों औपचारिक एवं अनौपचारिक ऋण क्षेत्रों में बाँटा गया है। औपचारिक क्षेत्र में बैंक और सहकारी समितियाँ शामिल हैं। अनौपचारिक क्षेत्र में मित्र, रिश्तेदार, व्यापारी, साहूकार, जमींदार, बड़े किसान आदि शामिल हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण की मुख्य माँग फसल उत्पादन के लिए होती है, जिसमें बीज, उर्वरक, कीटनाशक, पानी, बिजली, उपकरणों की मरम्मत आदि पर काफी खर्च होता है। एक गाँव में विभिन्न श्रेणियों के उधारकर्ताओं के लिए अलग-अलग साख या ऋण व्यवस्था हो सकती है; जैसे-
  1. साहूकारों से ऋण छोटे किसान गाँव के साहूकारों से ब्याज की उच्च दर पर पैसे उधार लेते हैं। उच्च ब्याज दर के कारण वे कर्ज जाल में फँस जाते हैं।
  2. व्यापारियों से ऋण किसानों को कम ब्याज दर पर कृषि व्यापारियों से ऋण मिलता है। व्यापारियों को भी किसानों से उनकी फसल को बेचने का वादा मिलता है। इस तरीके से व्यापारी सुनिश्चित करता है कि धन लाभ कमाने के अतिरिक्त अदा भी किया जाता है। वह कम कीमत पर किसानों से फसल खरीदता है और जब कीमतें उच्च होती हैं, तो उसे बेचता है।
  3. बैंकों से ऋण मध्यम और बड़े किसान बहुत कम ब्याज दर पर खेती के लिए बैंक से ऋण लेते हैं। बैंक ऐसे उधारकर्ताओं को अन्य सुविधाएँ भी प्रदान करते हैं।
  4. नियोक्ता से ऋण भूमिहीन कृषि मजदूर और अन्य मजदूर ऋण के लिए अपने नियोक्ताओं पर निर्भर करते हैं। जमींदार प्रत्येक महीने 5% की ब्याज दर पर मजदूरों को ऋण देते हैं और ऋण के बदले में जमीन मालिकों के लिए काम करते हैं।
  5. सहकारी समितियों से ऋण सहकारी समितियों के सदस्यों को कृषि उपकरण, खेती और कृषि व्यापार, मत्स्यपालन, घरों के निर्माण और अन्य खर्चों की खरीद के लिए ऋण प्रदान किया जाता है ।
प्रश्न 4. भारतीय रिज़र्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर किस तरह नज़र रखता है? यह जरूरी क्यों है?
उत्तर – भारतीय रिज़र्व बैंक भारत का केन्द्रीय बैंक है। यह भारत के बैंकिंग क्षेत्र के नीति-निर्धारण का कार्य करता है। किसी भी लेन-देन से बैंक की किसी भी अर्थव्यवस्था पर अधिक प्रभाव पड़ता है, इसलिए बैंकिंग क्षेत्र के लिए सही नियम और कानून की आवश्यकता होती है।
बैंकों की कार्य प्रणाली को नियन्त्रित करके रिज़र्व बैंक न केवल बैंकिंग और फाइनेंस को सही दिशा में ले जाता है, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था को भी सुचारु ढंग से चलाने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त भारतीय रिज़र्व बैंक ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्य प्रणाली पर नज़र रखता है। भारतीय रिजर्व बैंक ध्यान रखता है कि बैंक वास्तव में नकद शेष बनाए हुए है कि नहीं। भारतीय रिज़र्व बैंक इस बात पर भी ध्यान रखता है कि बैंक केवल लाभ अर्जित करने वाले व्यवसायियों और व्यापारियों को ही ऋण उपलब्ध तो नहीं करा रहे, बल्कि छोटे किसानों, छोटे उद्योगों, छोटे कर्जदारों इत्यादि को भी ऋण का लाभ मिल रहा है या नहीं।
भारतीय रिज़र्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उत्सर्जित क्रेडिट को नियन्त्रित करने की जिम्मेदारी लेता है। कई बार बैंक मुद्रा के प्रवाह को तीव्र कर कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध करा देते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था को भी हानि पहुँचती है, वैसी स्थिति में रिज़र्व बैंक बैंकों के लिए ब्याज दर की नीति को तय करता है। इस प्रकार रिज़र्व बैंक, बैंकों को नियन्त्रित करने के साथ ही, पूरी अर्थव्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने में कारगर होता है।

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