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UP Board Class 10 Social Science Chapter 4 औद्योगीकरण का युग (इतिहास)

UP Board Class 10 Social Science Chapter 4 औद्योगीकरण का युग (इतिहास)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 औद्योगीकरण का युग (इतिहास)

फास्ट ट्रैक रिवीज़न
औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व
  • औद्योगीकरण का इतिहास कारखानों की स्थापना के साथ शुरू हुआ। इंग्लैण्ड के कारखानों की शुरुआत औद्योगिक उत्पादन के साथ ही प्रारम्भ हुई थी। यह आदि औद्योगीकरण के रूप में जाना जाता है।
विश्व व्यापार
  • शहरी शिल्प और व्यापार मण्डल बहुत शक्तिशाली थे। शासकों ने एक विशिष्ट उत्पाद प्रणाली गिल्ड का उत्पादन और व्यापार के अधिकार दिए ।
  • व्यापारियों ने गरीब किसानों तथा ग्रामीण क्षेत्रों के मजदूरों को पैसे की आपूर्ति की और उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के उत्पादन के लिए प्रेरित किया।
  • 17वीं और 18वीं शताब्दी में विश्व व्यापार बहुत तेजी से फैला। किसानों की स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए व्यापारियों द्वारा दिए गए प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
आदि-औद्योगीकरण
  • औद्योगिक उत्पादन ने किसानों की आय में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। अब वे पूरे परिवार के श्रम संसाधनों का उपयोग कर सकते थे। व्यापारी पहले स्टेप्लर (रेशों के आधार पर ऊन छाँटने वाला) से ऊन खरीदता था बाद में स्पिनरों को आपूर्ति करता था।
  • सूत कातने पर जो धागा मिलता था, उसे बुनकरों, फुलर्ज (कपड़ा समेटने वाला) और रंगसाजों तक पहुँचाया जाता था। विश्व बाजार में बेचने से पूर्व कपड़ों की फिनिशिंग लन्दन में होती थी, जिसके परिणामस्वरूप लन्दन फिनिशिंग सेण्टर के रूप में जाना जाने लगा।
  • आदि औद्योगिक व्यवस्था व्यावसायिक आदान-प्रदान का हिस्सा थी। इस व्यवस्था में सामानों का उत्पादन घरों में होता था।
कारखानों का उदय
  • इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम 1730 के दशक कारखाना खुला। 18वीं सदी के अन्त में कारखानों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। यह कारखाना कपास आधारित था।
  • 18वीं सदी में कई आविष्कार हुए, जिसमें कार्डिंग, ऐंठना व कताई और लपेटना आदि शामिल थे।
  • कार्डिंग द्वारा कपास या ऊन के रेशों को कताई के लिए तैयार किया जाता था।
मिल्स का उदय
  • रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा बनाई, जिससे कारखानों की सभी प्रक्रियाएँ एक छत के नीचे होने लगीं। ब्रिटेन में सबसे गतिशील उद्योग कपास और धातु उद्योग थे।
  • 1840 के दशक तक कपास उद्योग सबसे बड़ा उद्योग बन गया था। इसके पहले लौह एवं इस्पात उद्योग प्रमुख थे।
  • 19वीं सदी के अन्त में तकनीकी रूप से मजदूरों की संख्या कुल मजदूरों का 20% के लगभग थी।
हाथ का श्रम और वाष्प शक्ति
  • औद्योगीकरण के समय ब्रिटेन में श्रमिकों की कमी नहीं थी । रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे थे। श्रमिकों की माँग मौसम के अनुकूल थी।
हस्तशिल्प उत्पाद
  • कई उत्पाद ऐसे थे, जिसका निर्माण हाथ के द्वारा ही सम्भव था। महारानी विक्टोरिया के काल में हस्तशिल्प उत्पाद की अपनी पहचान एवं महत्ता थी।
  • इन उत्पादों के उपयोगकर्ता समाज के विशिष्ट वर्ग थे।
श्रमिकों का जीवन
  • बाजार में श्रमिकों की अधिकता होने के कारण काम मिलना आसान नहीं था । श्रमिकों की स्थिति दयनीय थी।
  • मौसम आधारित काम होने के कारण मजदूरों को अन्य कामों की तलाश करनी पड़ती थी। यद्यपि 19वीं शताब्दी के शुरुआत में मजदूरी में कुछ वृद्धि हुई, लेकिन यह वृद्धि वस्तुओं के मूल्य वृद्धि से सन्तुलित थी।
  • 19वीं शताब्दी तक लगभग 10% शहरी आबादी की स्थिति खराब थी।
प्रौद्योगिकी और रोजगार
  • श्रमिक नई प्रौद्योगिकी के विरुद्ध थे, क्योंकि उन्हें डर था कि इससे बेरोजगारी और बढ़ जाएगी। महिलाओं ने ऊन कताई की मशीन ‘स्पिनिंग जेनी’ का विरोध किया था।
  • उस समय सड़क, रेलवे, सुरंग, जल निकासी आदि, व्यवस्था विकसित हो रही थी, जिसमें रोजगार की आवश्यकता थी। अकेले परिवहन उद्योग में 1840 के दशक में मजदूरों की संख्या में दोगुना बढ़ोतरी हुई थी, जो अगले 30 वर्षों में पुनः दोगुना हो गई थी।
उपनिवेशों में औद्योगीकरण
  • ब्रिटिश उपनिवेशों की भाँति भारत में भी औद्योगीकरण प्रारम्भ हुआ। यहाँ कारखाना उद्योग के साथ-साथ गैर मशीनी क्षेत्रों में भी विकास किया गया।
भारतीय कपड़ा उद्योग
  • मशीन आने से पूर्व विश्व बाजार में भारत के रेशमी और सूती उत्पादों की प्रमुखता थी। आर्मीनियन और फारसी सौदागर पंजाब से अफगानिस्तान, पूर्वी फारस और मध्य एशिया यहाँ की वस्तुएँ लेकर जाते थे। मछलीपटनम और हुगली महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह थे।
  • 1750 के दशक तक यूरोपीय कम्पनियों का भारत आना शुरू हो गया था, जिस व्यापार करने के लिए कुछ कम्पनियों को एकाधिकार मिला। इसके परिणामस्वरूप सूरत और हुगली बन्दरगाहों के व्यापार में गिरावट आई तथा बॉम्बे और कोलकाता जैसे नए बन्दरगाहों का उद्भव हुआ।
बुनकरों की स्थिति
  • भारतीय कपड़ों की यूरोप में बहुत माँग थी। यूरोपियन कम्पनियाँ भारतीय कपड़ों के निर्यात को विस्तार देना चाहती थीं, जिससे फ्रांसीसी, डच और पुर्तगाली व्यापारियों में प्रतिस्पर्द्धा होने लगी।
  • ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपनी राजनीतिक सत्ता स्थापित करने के पश्चात् प्रतिस्पर्द्धियों को समाप्त करना शुरू कर दिया तथा व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया। बुनकर अपने गाँव छोड़कर अन्य स्थानों पर चले गए।
गुमाश्ता की नियुक्ति
  • ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने कपड़ों की गुणवत्ता, बुनकरों पर निगरानी तथा माल करने के लिए गुमाश्ता की नियुक्ति की। गुमाश्ता का गाँव से किसी भी प्रकार का कोई सामाजिक सम्बन्ध नहीं होता था।
भारत में मैनचेस्टर
  • 1811 12 ई. में सूती माल का निर्यात 33% था, जो 1850-51 ई. में केवल 3% रह गया। इलैण्ड में कपास उद्योग 19वीं सदी विकसित हुआ था।
  • उद्योगपतियों ने सरकार पर सूती वस्त्रों पर आयात शुल्क लगाने के लिए दबाव डाला, जिससे मैनचेस्टर बिना प्रतिस्पर्द्धा के ब्रिटेन में माल बेच सके।
  • 1870 के दशक में इंग्लैण्ड से कपास का आयात भारतीय आयात के मूल्य का 50% से अधिक था।
भारतीय बुनकरों के समक्ष समस्याएँ
भारतीय बुनकरों को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ा
  • उनका बाजार में निर्यात कम हो गया था। मशीनों से बने वस्त्रों की अधिकता होने लगी थी, जिससे भारतीय बुनकर प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर सके।
  • अमेरिकी के बाद अमेरिका से कपास आना बन्द हो गया तो ब्रिटेन, भारत गृहयुद्ध से कच्चे माल का आयात करने लगा, जिससे कपास के मूल्य में वृद्धि हुई। भारतीय बुनकर उच्च मूल्य में वृद्धि के कारण कपास नहीं खरीद पा रहे थे, जो एक बड़ी समस्या थी।
कारखानों का विकास
  • भारत में सर्वप्रथम कपास और जूट मिलों की स्थापना हुई। भारत की पहली कपड़ा मिल 1854 ई. में बम्बई में स्थापित की गई थी तथा पहली जूट मिल बंगाल में 1855 ई. में स्थापित की गई।
  • 1874 ई. तक मद्रास की पहली कताई तथा बुनाई मिल ने उत्पादन शुरू किया।
आरम्भिक उद्यमी
  • 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में अंग्रेज, चीन को भारतीय अफीम का निर्यात करने लगे थे। बदले में चीन से चाय इंग्लैण्ड भेजी जाने लगी।
  • 19वीं शताब्दी के कुछ प्रसिद्ध उद्योगपति थे- द्वारकानाथ टैगोर, जमशेदजी सरवानजी टाटा, शिव नारायण बिड़ला, सेठ हुकुमचन्द इत्यादि ।
  • द्वारकानाथ टैगोर ने 1830-40 के दशक में 6 संयुक्त स्टॉक कम्पनियों की स्थापना की। वर्ष 1912 में जमशेदपुर में जे. एन. टाटा ने भारत में पहले लोहा और इस्पात संयन्त्र का निर्माण किया। सेठ हुकुमचन्द ने वर्ष 1917 में कलकत्ता में पहली भारतीय जूट मिल की स्थापना की।
भारतीय व्यापारियों पर नियन्त्रण
  • ब्रिटिश, भारतीय व्यापार पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिए भारतीयों के लिए व्यापार का क्षेत्र सीमित कर दिया तथा विनिर्मित वस्तुओं को यूरोप के साथ व्यापार करने की अनुमति नहीं थी ।
  • भारतीय व्यापारी को केवल कच्चा माल, कपास, अफीम, गेहूँ, नील को निर्यात करने की अनुमति थी। प्रथम विश्वयुद्ध तक यूरोपीय प्रबन्ध एजेन्सियों ने भारतीय उद्योग को नियन्त्रित किया, जिसमें हीगलर्स एण्ड कम्पनी, एण्ड्रयू यूल और जार्डीन स्किनर एण्ड कम्पनी प्रमुख थीं।
रोजगार की खोज
  • कारखानों के विस्तार के साथ-ही-साथ श्रमिकों की माँग में भी वृद्धि हुई । श्रमिकों ने कारखानों में काम की आशा में दूर तक यात्राएँ कीं ।
  • लोग संयुक्त प्रान्त, बम्बई और कलकत्ता में काम की तलाश में जा रहे थे, लेकिन काम करना आसान नहीं था। मिलों में सीमित नौकरियाँ होने के कारण काम नहीं मिल पा रहा था।
  • उद्योगपतियों ने मजदूरों को भर्ती करने के लिए एक जॉबर नियुक्त किया, जो जरूरतमन्दों को रोजगार दिलाता था।
औद्योगिक विकास
  • भारतीय व्यापारियों ने 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में उद्योग स्थापित करना शुरू किया। 20वीं शताब्दी के पहले दशक में राजनीतिक आन्दोलन ने उद्योग को प्रभावित किया; जैसे- स्वदेशी आन्दोलन व विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार आदि ।
  • भारतीय उद्योगपतियों ने सूती कपड़ा उत्पादन शुरू किया, जो वर्ष 1900-12 के मध्य दोगुना हो गया। प्रथम विश्वयुद्ध के कारण ब्रिटिश सेना के लिए माल निर्माण करने में व्यस्त हो गया, जिसके कारण भारतीय उद्योगों की आपूर्ति के लिए एक बड़ा बाजार मिल गया।
छोटे उद्योगों की स्थापना
  • बड़े उद्योग मुख्य रूप से बंगाल और बॉम्बे में स्थित थे। देश के बाकी हिस्सों में छोटे उद्योग स्थापित थे।
  • 20वीं शताब्दी में नई तकनीक फ्लाई शटल को अपनाया गया।
बुनकरों की भूमिका
  • बुनकर मोटे एवं महीन कपड़ों का उत्पादन करते थे। मोटे कपड़ों का क्रय निम्न वर्ग के लोगों द्वारा किया जाता था तथा उसकी माँग में उतार-चढ़ाव आता रहता था।
  • अच्छे कपड़ों की माँग उच्च वर्ग के लोगों द्वारा की जाती थी। बुनकरों के जटिल डिजाइन की आधुनिक तकनीक नकल नहीं कर सकी, जिससे बुनकरों की भूमिका बनी रही।
विज्ञापन और बाजार
  • विज्ञापन का प्रयोग उत्पादों को लोकप्रिय बनाने के लिए किया गया। औद्योगिक युग की शुरुआत से ही विज्ञापन ने एक नई उपभोक्ता संस्कृति को विकसित किया।
भारत में विज्ञापन
  • मैनचेस्टर के उद्योगपतियों ने भारत में जब कपड़ा बेचना शुरू किया तो उन्होंने कपड़े पर ‘मेड इन मैनचेस्टर’ का लेबल लगाना शुरू कर दिया। कभी-कभी भारतीय देवी-देवताओं की छवि भी इन लेबलों पर लगाई जाती थी।
  • विज्ञापन स्वदेशी के राष्ट्रवादी सन्देश का वाहक बन गए, जो उत्पाद की गुणवत्ता की गारण्टी देता था।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. शासकों ने किसको एक विशिष्ट उत्पाद प्रणाली के अधिकार दिए थे?
(a) गिल्ड को
(b) अफीम को
(c) चाय को
(d) नील को
उत्तर (a) गिल्ड को
प्रश्न 2. कपास आधारित उद्योग की स्थापना सर्वप्रथम कहाँ हुई थी?
(a) फ्रांस में
(b) जर्मनी में
(c) ब्रिटेन में
(d) भारत में
उत्तर (c) ब्रिटेन में
प्रश्न 3. कपास या ऊन कताई के लिए कौन-सी तकनीक उपयोग होती थी?
(a) फुलर्ज
(b) कार्डिंग
(c) स्पिनर
(d) स्टेप्लर
उत्तर (b) कार्डिंग
प्रश्न 4. 1871 ई. में भाप इंजन का पेटेण्ट किसने करवाया था?
(a) न्यूकामेन ने
(b) मैथ्यू बोल्टन ने
(c) जेम्स वाट ने
(d) जेम्स हापकिंग ने
उत्तर (c) जेम्स वाट ने
प्रश्न 5. श्रमिकों द्वारा नई प्रौद्योगिकी के विरुद्ध होने के क्या कारण थे?
(a) रोजगार
(b) बेरोजगारी
(c) मूल्य वृद्धि
(d) ये सभी
उत्तर (b) बेरोजगारी
प्रश्न 6. भारतीय व्यापार पर किसने एकाधिकार स्थापित कर लिया था?
(a) फ्रांसीसी
(b) डच
(c) ब्रिटिश
(d) पुर्तगाल
उत्तर (c) ब्रिटिश
प्रश्न 7. गुमाश्ता क्या है?
(a) बुनकर
(b) कपड़ा व्यवसायी
(c) वेतनभोगी कर्मचारी
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर (c) वेतनभोगी कर्मचारी
प्रश्न 8. गुमाश्ता का क्या कार्य था ?
(a) कपड़ा बुनना
(b) कपास उत्पादन करना
(c) कपड़े की गुणवत्ता जाँचना
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर (c) कपड़े की गुणवत्ता जाँचना
प्रश्न 9. मद्रास में भारत की पहली कताई तथा बुनाई मिल ने उत्पादन कब से प्रारम्भ किया?
(a) 1854 ई. से
(b) 1874 ई. से
(c) 1884 ई. से
(d) 1896 ई. से
उत्तर (b) 1874 ई. से
प्रश्न 10. भारत में पहले लौह-इस्पात संयन्त्र की स्थापना कहाँ की गई ?
(a) कलकत्ता में
(b) बॉम्बे में
(c) मद्रास में
(d) जमशेदपुर में
उत्तर (d) जमशेदपुर में
प्रश्न 11. बड़े उद्योग भारत में कहाँ स्थित थे?
(a) बंगाल में
(b) मद्रास में
(c) चिनसुरा में
(d) सूरत में
उत्तर (a) बंगाल में
प्रश्न 12. निम्न में से किस उद्योग को आर्थिक विकास की रीढ़ माना जाता है?
(a) वस्त्र उद्योग
(b) ऑटोमोबाइल उद्योग
(c) लौह-इस्पात उद्योग
(d) चीनी एवं चाय उद्योग
उत्तर (c) लौह-इस्पात उद्योग
प्रश्न 13. किस प्रणाली के अन्तर्गत व्यापारियों अथवा शिल्पियों के समूह संगठित हुआ करते थे?
(a) सहकारी प्रणाली
(b) गिल्ड प्रणाली
(c) श्रम संसाधन प्रणाली
(d) आदि- औद्योगीकरण
उत्तर (b) गिल्डं प्रणाली
प्रश्न 14. रेशों के आधार पर ऊन छाँटने वाले श्रमिकों को क्या कहा जाता था?
(a) बुनकर
(b) फुलर्ज
(c) रंगसाज
(d) स्टेप्लर
उत्तर (d) स्टेप्लर
प्रश्न 15. ब्रिटेन के अन्तर्गत ‘कपड़ों की फिनिशिंग सेण्टर’ कहाँ स्थापित किया गया था?
(a) बकिंघम में
(b) लन्दन में
(c) इडिनवर्ग में
(d) लिवरपुल में
उत्तर (b) लन्दन में
प्रश्न 16. सूत कातने की मशीन ‘स्पिनिंग जेनी’ का आविष्कार कब और किसके द्वारा किया गया था?
(a) 1754 में जेम्स प्रिंसेप के
(b) 1804 में न्यूकामेन के
(c) 1784 में जेम्स हापकिंग के
(d) 1764 में जेम्स हरग्रीव्ज के
उत्तर (d) 1764 में जेम्स हरग्रीव्ज के
प्रश्न 17. 1840 के दशक तक औद्योगीकरण के पहले चरण का सबसे बड़ा उद्योग कौन-सा उद्योग बन चुका था ?
(a) धातु उद्योग
(b) चीनी उद्योग
(c) कपास उद्योग
(d) ऑटोमोबाइल उद्योग
उत्तर (c) कपास उद्योग
प्रश्न 18. निम्न में से किस उद्योग में मौसमी बेरोजगारी देखने को मिलती थी?
(a) गैसघर उद्योग में
(b) जहाजरानी मरम्मत उद्योग में
(c) शराबखाना उद्योग में
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर (d) उपरोक्त सभी
प्रश्न 19. ब्रिटेन में हस्तशिल्प उत्पादों को किस महारानी के समय अधिक महत्त एवं पहचान प्राप्त हुई?-
(a) महारानी एलिजाबेथ
(b) महारानी विक्टोरिया
(c) महारानी मेरी
(d) महारानी ऐनी
उत्तर (b) महारानी विक्टोरिया
प्रश्न 20. सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा किसने रखी ?
(a) जॉन राइट ने
(b) रिचर्ड आर्कराइट ने
(c) एण्डू कार्नेगी ने
(d) जेम्स वॉट ने
उत्तर (b) रिचर्ड आर्कराइट ने
सुमेलित करें
प्रश्न 21. सुमेलित कीजिए
प्रश्न 22. सुमेलित कीजिए
कथन कूट
प्रश्न 23. निम्नलिखित में से किस कार्य हेतु कम्पनी द्वारा एक वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में ‘गुमाश्त’ की नियुक्ति की गई थी ?
1. बुनकरों पर निगरानी हेतु
2. माल को इकट्ठा करने हेतु
3. कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने हेतु
कूट
(a) केवल 1
(b) केवल 3
(c) 1 और 3
(d) ये सभी
उत्तर (d) ये सभी
प्रश्न 24. निम्नलिखित में से नए मजदूरों की भर्ती करने के लिए उद्योगपतियों द्वारा रखे जाने वाले “जॉबर” के बारे में कौन-सा विकल्प असत्य है?
1. वह लोगों को काम के लिए लाता था ।
2. वह कोई विश्वसनीय कर्मचारी होता था ।
3. वह उद्योगपतियों के घराने का ही होता था ।
4. वह काम दिलाने के बदले तौहफों की माँग करता था।
कूट
(a) 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर (b) केवल 3
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
वर्णनात्मक प्रश्न- 1
प्रश्न 1. गुमाश्तों और बुनकरों के बीच टकराव के किन्हीं तीन सामाजिक कारणों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – गुमाश्तों और बुनकरों के बीच टकराव के कारण गुमाश्तों और बुनकरों के बीच टकराव के तीन कारण निम्नलिखित थे
  1. ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने व्यापार पर एकाधिकार करने के लिए गुमाश्तों को नियुक्त किया था, लेकिन जल्दी ही अनेक बुनकर गाँवों में बुनकरों और गुमाश्तों के बीच टकराव की खबरें आने लगीं। इससे पहले आपूर्ति सौदागर हमेशा बुनकर गाँवों में ही रहते थे। ये बुनकरों की आवश्यकताओं का ध्यान रखते थे और संकट के समय उनकी मदद करते थे।
  2. नए गुमाश्ता बाहर के लोग थे। उनका गाँवों से पुराना सामाजिक सम्बन्ध नहीं था। वे भेदभाव पूर्ण व्यवहार करते थे, सिपाहियों व चपरासियों को लेकर आते थे और माल समय पर तैयार न होने की स्थिति में बुनकरों को सजा देते थे।
  3. सजा के रूप में बुनकरों को हमेशा पीटा जाता था। अब बुनकर न तो दाम पर मोलभाव करते थे और न ही किसी और को माल बेच सकते थे।
प्रश्न 2. 19वीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों की बजाय हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता क्यों देते थे? [NCERT]
अथवा विक्टोरिया काल में हथकरघा उद्योग विकसित था, कैसे, व्याख्या करें।
उत्तर – 19वीं शताब्दी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों के विपरीत हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता देते रहे, जिसके निम्नलिखित कारण थे
  • विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में मानव श्रम की कोई कमी नहीं थी । गरीब किसान और बेकार लोग कामकाज की तलाश में बड़ी संख्या में शहरों को जाते थे। ये कम कीमत पर भी काम करते थे। अत: उद्योगपति पहले इन्हें ही काम पर रखते थे।
  • जिन उद्योगों में मौसम के साथ उत्पादन घटता-बढ़ता रहता था, वहाँ उद्योगपति मजदूरों को ही काम पर रखना पसन्द करते थे।
  • अनेक उत्पाद केवल हाथ से ही तैयार किए जा सकते थे। मशीनों से एक जैसे निर्धारित किस्म के उत्पाद ही बड़ी संख्या में बनाए जा सकते थे ।
  • बाजार में अकसर बारीक डिजाइन और विशेष आकारों वाली चीजों की बहुत माँग रहती थी, जो हाथ से कार्य करने वाले मजदूर ही अच्छा कर सकते थे।
  • विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग कुलीन और पूँजीपति वर्ग- हाथों से बनी चीजों को प्राथमिकता देते थे। हाथ से बनी चीजों को परिष्कार और सुरुचि का प्रतीक माना जाता था ।
अतः उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि विक्टोरिया काल में हथकरघा उद्योग विकसित था ।
प्रश्न 3. 17वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे, व्याख्या कीजिए । [NCERT ]
उत्तर – 17वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों की ओर रुख करने लगे थे। वे किसानों और कारीगरों को पैसा देते थे और उनसे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पादन कराते थे। उस समय विश्व व्यापार के विस्तार और दुनिया के विभिन्न भागों में उपनिवेशों की स्थापना के कारण चीजों की माँग बढ़ने लगी थी। इस माँग को पूरा करने के लिए केवल शहरों में रहते हुए उत्पादन नहीं बढ़ाया जा सकता था। यही कारण था कि ये व्यापारी गाँव की ओर बढ़ने लगे।
प्रश्न 4. ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमला किया, व्याख्या कीजिए । [NCERT]
उत्तर – स्पिनिंग जेनी जेम्स हरग्रीव्ज द्वारा 1764 ई. में बनाई गई सूत कातने की मशीन थी, जिसने कताई की प्रक्रिया में तेजी उत्पन्न की, किन्तु इस मशीन के आने से मजदूरों की माँग घट गई। इस नई प्रौद्योगिकी के कारण बेरोजगारी बढ़ने लगी और मजदूर इससे चिढ़ने लगे, जब ऊन के उद्योग में स्पिनिंग जेनी मशीन का उपयोग शुरू हुआ तो हाथ से ऊन कातने वाली महिलाओं ने इस तरह की मशीनों पर हमला करना प्रारम्भ कर दिया। उन्हें लगता था कि इन मशीनों ने उनका रोजगार छीन लिया था ।
प्रश्न 5. ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी कपड़े की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया? [NCERT ]
अथवा ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने व्यापार बढ़ाने के लिए कौन-सी नई व्यवस्था लागू की?
उत्तर – ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सत्ता स्थापित होते ही कम्पनी ने व्यापार पर एकाधिकार कर लिया। 1760 और 1770 के दशकों में बंगाल और कर्नाटक में राजनीतिक सत्ता स्थापित करने से पहले ईस्ट इण्डिया कम्पनी को निर्यात के लिए लगातार माल आसानी से मिल जाता था, लेकिन व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करने के बाद, अब इन्हें अन्य व्यापारी समूहों से प्रतिस्पर्द्धा नहीं थी। कम्पनी ने लागत पर अंकुश रखने, कपास व रेशम से बनी वस्तुओं की नियमित आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए नई व्यवस्था लागू कर दी, जिसका काम अलग-अलग चरणों में पूरा किया गया।
कम्पनी ने कपड़ा व्यापार में सक्रिय व्यापारियों और दलालों को समाप्त करने तथा बुनकरों पर अधिक प्रत्यक्ष नियन्त्रण स्थापित करने की कोशिश की। कम्पनी ने बुनकरों पर निगरानी रखने, माल को एकत्र करने और कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी नियुक्त किए, जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था। कम्पनी ने माल बेचने वाले बुनकरों को अन्य व्यापारियों से व्यापार पर पाबन्दी लगा दी। इस काम के लिए उन्हें पेशगी रकम दी जाती थी। इन बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए कर्ज भी दिया जाता था, किन्तु कर्ज लेकर बनाया हुआ माल भी उन्हें गुमाश्ता को ही देना पड़ता था । ये किसी अन्य व्यापारी से व्यापार नहीं कर सकते थे।
प्रश्न 6. पहले विश्वयुद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा ? [NCERT]
अथवा विश्वयुद्ध के बाद भारत के औद्योगिक विकास को बताएँ ।
उत्तर – पहले विश्वयुद्ध के दौरान भारत का औद्योगिक उत्पादन बढ़ गया, जिसके मुख्य कारण निम्नलिखित थे
  • पहले विश्वयुद्ध तक औद्योगिक विकास धीमा रहा। युद्ध ने बिल्कुल नई परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी थी। ब्रिटिश कारखाने सेना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए युद्ध सम्बन्धी उत्पादन में व्यस्त थे, इसलिए भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया।
  • नए कारखाने लगाए गए। पुराने कारखाने कई पालियों में चलने लगे। अनेक नए मजदूरों को काम पर रखा गया और प्रत्येक को पहले से भी अधिक समय तक काम करना पड़ता था। युद्ध के दौरान औद्योगिक उत्पादन तेजी से बढ़ा।
  • प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सरकार को परेशानियों में उलझा देखकर राष्ट्रवादी नेताओं ने भी स्वदेशी चीजों पर बल देना शुरू कर दिया।
  • इससे भारतीय उद्योगों को और अधिक बढ़ावा मिला। अतः इस समय तक स्थानीय उद्योगपतियों ने विदेशी उत्पादों को हटाकर घरेलू बाजार पर अधिकार कर लिया और धीरे-धीरे अपनी स्थिति मजबूत बना ली थी।
प्रश्न 7. अठारहवीं शताब्दी के अन्त में भारत से कपड़ा निर्यात में गिरावट क्यों आई? दो कारण बताइए | 
उत्तर – अठारहवीं शताब्दी के अन्त में भारत द्वारा उत्पादित कपास का निर्यात यूरोपीय देशों को किया जाता था। जब इंग्लैण्ड में कपास उद्योग विकसित हुआ तो वहाँ के उद्योगपतियों में प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगी। औद्योगीकरण के बाद ब्रिटेन में भी कपास का उत्पादन बढ़ने लगा था, जिसके कारण वहाँ के उद्योगपतियों ने सरकार पर दबाव डाला, जिससे वह कपास तथा सूती वस्त्रों के आयात पर रोक लगाए, तभी वहाँ की वस्तुएँ अच्छी कीमत में बिकेगी।
19वीं सदी की शुरुआत में ही ब्रिटिश कपड़ा उत्पादक व्यवसायी नए-नए बाजार खोजने लगे। दूसरी तरफ ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर दबाव डाला गया कि वह ब्रिटिश कपड़ो को भारतीय बाजारों में भी बेचे । 19वीं सदी के आरम्भ में ब्रिटेन के व निर्यात में वृद्धि हुई और भारत में कपड़ा निर्यात पर तेजी से गिरावट आई, जिसके दो कारण निम्नलिखित थे
  1. ब्रिटेन से आयातित सस्ते वस्त्रों के साथ प्रतिस्पर्धा करना कठिन था ।
  2. सरकारों ने आयात पर भारी शुल्क लगाकर औद्योगीकरण का समर्थन किया।
प्रश्न 8. भारत में सूती वस्त्र उद्योग का वर्णन कीजिए। 
उत्तर – सूती वस्त्र की पहली मिल की स्थापना 1818 ई. में कलकत्ता के पास फोर्ट ग्लास्टर में की गई थी, किन्तु यह असफल रही। इसके पश्चात् पुन: 1851 ई. में मुम्बई में एक मिल की स्थापना की गई, किन्तु यह भी असफल रही। भारत में सबसे पहली सफल आधुनिक सूती वस्त्र मिल की स्थापना 1854 ई. में मुम्बई में हुई थी। इस मिल में उत्पादन का कार्य 1856 ई. में प्रारम्भ हुआ था। वर्तमान में हथकरघों का स्थान विद्युतीय करघों ने ले लिया है और मिलों का 80% निजी क्षेत्र में है। ये उद्योग मुख्यतः गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में स्थित हैं। ये बुनाई करने वाले किसानों एवं मिल श्रमिकों को रोजगार प्रदान करते तथा रसायन मिलों, रंगाई उद्योगों और अभियान्त्रिकी कारखानों को सहायता प्रदान करते हैं।
वर्णनात्मक प्रश्न- 2
प्रश्न 1. आदि – औद्योगीकरण ने ग्रामीण किसानों तथा कारीगरों को किस तरह प्रभावित किया तथा व्यावसायिक विनिमय प्रणाली ने किसानों को किस प्रकार लाभ दिया?
उत्तर – आदि – औद्योगीकरण ने ग्रामीण किसानों तथा कारीगरों को निम्नलिखित रूपों में प्रभावित किया
  • पारिवारिक श्रम का उपयोग व्यापारियों के लिए काम करने वाले किसान तथा कामगार ( कारीगर ) ग्रामीण क्षेत्रों से होते थे। इनका निवास क्षेत्र भी ग्राम ही होते थे। घर के सभी सदस्य छोटे-छोटे खेतों पर खेती भी करते थे। सभी उत्पादन क्षेत्रों में पूरा परिवार लगा होता था । पारिवारिक श्रम का उपयोग व्यापारियों के लिए काम करने वाले किसान तथा कामगार ग्रामीण क्षेत्रों से होते थे। इनका निवास क्षेत्र भी ग्राम ही होते थे। घर के सभी सदस्य छोटे-छोटे खेतों पर खेती भी करते थे। सभी उत्पादन क्षेत्रों में पूरा परिवार लगा होता है।
  • आय की प्राप्ति आदि-औद्योगिक उत्पादन की आय से कामगारों, छोटे ग्रामीण किसानों को उनकी कृषि आय (जोकि नाममात्र रही ) को सुदृढ़ करने का साधन मिल गया। अब ये लोग कृषि के साथ श्रम करके भी अपनी पारिवारिक आय को बढ़ाने लगे थे। परिवार का प्रत्येक सदस्य समय-समय पर कृषि तथा उत्पादन कार्यों में बराबर का सहयोग करने लगा था ।
व्यावसायिक विनिमय प्रणाली
आदि-औद्योगिक उत्पादन से प्राप्त आय ने कृषि के कारण किसानों की कम होती आय में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। वस्तु विनिमय का सामान्य अर्थ वस्तुओं की अदल-बदल से लिया जाता है। व्यावसायिक विनिमय में धन, वस्तुओं तथा सेवाओं के पारस्परिक आदान-प्रदान को विनिमय प्रणाली कहते हैं। अब वे अपने प परिवार के श्रम संसाधनों का उपयोग कर सकते थे। एक व्यापारी पहले स्टेपलर ( वह व्यक्ति जो रेशों के आधार पर ऊन छाँटता था) से ऊन खरीदता था और बाद में उसकी स्पिनरों को आपूर्ति करता था। सूत कातने पर जो धागा मिलता था, उसे बुनकरों, फुलर्ज (वह व्यक्ति जो कपड़े को समेटता था) और रंगसाजी तक पहुँचाया जाता था। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बेचने से पूर्व कपड़ों की फिनिशिंग लन्दन में होती थी, जिसके परिणामस्वरूप लन्दन को फिनिशिंग सेण्टर के रूप में पहचाना जाने लगा था। यह आदि औद्योगिक व्यवस्था व्यावसायिक आदान-प्रदान के नेटवर्क का भाग थी। आदि-औद्योगिक व्यवस्था की असामान्य विशेषता यह थी कि सामानों का उत्पादन कारखानों के विपरीत वरों में होता था।
विनिमय प्रणाली के लाभ
  • वस्तु के मूल्य के स्थान पर वस्तुओं की अदला-बदली की जाती थी।
  • कई उत्पादों का विभाजन नहीं किया जा सकता था।
  • वस्तुओं का मूल्य निर्धारण कठिन था।
  • प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग
  • आवश्यक वस्तुओं की आसानी से उपलब्धता
  • बाजार का विस्तार
प्रश्न 2. आदि-औद्योगीकरण व्यवस्था की विशेषता लिखिए।
अथवा आदि-औद्योगीकरण व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर – इंग्लैण्ड और यूरोप में फैक्ट्रियों की स्थापना से पूर्व ही यहाँ अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होने लगा था, किन्तु यह उत्पादन फैक्ट्रियों में नहीं होता था। अनेक इतिहासकार इस युग को आदि-औद्योगीकरण व्यवस्था का नाम देते हैं।
आदि-औद्योगीकरण की विशेषताएँ
  • आदि-औद्योगिक व्यवस्था आधुनिक औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं के विकास का प्रथम चरण थी, जिसने पूर्ण औद्योगिक समाज की स्थापना के लिए विश्व के समक्ष नई परिस्थितियाँ बना दी थी।
  • आदि-औद्योगीकरण के कारण औद्योगिक उत्पादन और व्यावसायिक कृषि उत्पादन दोनों में विशेष रूप से वृद्धि हुई।
  • आदि-औद्योगीकरण के कारण पारम्परिक कृषि समाज में सामाजिक परिवर्तन हुए। उत्पादन से होने वाले लाभ ने किसानों की कम होती आय में बढ़ोतरी की।
  • इस प्रकार यह उत्पादन के विकेन्द्रीकरण का एक तरीका था, जिस पर व्यापारियों का नियन्त्रण था, परन्तु वस्तुओं का उत्पादन फैक्ट्रियों की अपेक्षा परिवार में काम करने वाले लोगों और खेतों में उत्पादकों द्वारा किया जाता था।
प्रश्न 3. 18वीं सदी में हुए अनेक आविष्कारों ने सूती वस्त्र उद्योग में उत्पादन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण की कुशलता किस प्रकार बढ़ा दी? व्याख्या कीजिए । [NCERT]
उत्तर – 18वीं सदी में यूरोप में कई ऐसे आविष्कार हुए, जिससे सूती वस्त्र-उद्योग में उत्पादन की प्रक्रिया के प्रत्यके चरण की कुशलता बढ़ा दी थी।
  • नवीन आविष्कार 18वीं सदी में कार्डिंग, ऐंठना व कताई तथा लपेटने वाली मशीनों का आविष्कार हुआ, जिसने उत्पादन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में कुशलता बढ़ा दी थी।
  • उत्पादन एवं गुणवत्ता में सुधार नए उत्पादन से प्रति मजदूर उत्पादन दर भी बढ़ गई और साथ ही साथ इनकी गुणवत्ता भी बढ़ गई और पहले से अधिक मजबूत धागों व रेशम का उत्पादन होने लगा था। नई मशीनों से मजबूत धागों का उत्पादन सम्भव हुआ । उत्पादन एवं गुणवत्ता में सुधार नए उत्पादन से प्रति मजदुर उत्पादन भी बढ़ गया और साथ ही साथ इनकी गुणवत्ता भी ।
  • कपड़ा मिल की शुरुआत सबसे पहले रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की रूपरेखा तैयार की थी। सूती कपड़ा मिल की स्थापना के पश्चात् इसमें महँगी नई मशीनें खरीदकर उन्हें कारखानों में लगाया जाने लगा।
  • सम्पूर्ण प्रक्रिया का क्रियान्वयन एकसाथ होना कपड़ा मिलों में सभी प्रक्रियाएँ एकसाथ एक ही छत के नीचे और एक ही मालिक के हाथों नियन्त्रित होती थीं। इससे उत्पादन प्रक्रिया पर निगरानी, गुणवत्ता का ध्यान रखना और मजदूरों का निरीक्षण सुगम हो गया था। जब तक उत्पादन गाँवों में हो रहा था, तब तक ये सभी कार्य सहज नहीं थे।
प्रश्न 4. 19वीं सदी के प्रारम्भ में भारतीय बुनकरों की क्या समस्याएँ थीं?
अथवा यूरोपीय कम्पनियों के विस्तार ने भारतीय बुनकरों के लिए समस्या पैदा कर दी, कैसे?
उत्तर – भारतीय कपड़ों की यूरोप में बहुत अधिक माँग थी यही कारण था कि भारत से होने वाले कपड़े के निर्यात को ही यूरोपीयन कम्पनियाँ विस्तार देना चाहती थीं। बुने हुए कपड़ों के लिए फ्रांसीसी, डच और पुर्तगाली के साथ-साथ स्थानीय व्यापारियों में प्रतिस्पर्द्धा होने लगी थी।
बंगाल और कर्नाटक के कई स्थानों के बुनकर अपने गाँव छोड़ अन्य गाँवों में चले गए। कभी-कभी उन्होंने कम्पनी के विरुद्ध भी विद्रोह किया और ऋण लेने से भी इनकार कर दिया।
भारतीय बुनकरों को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ा
  • स्थानीय बाजारों में मैनचेस्टर में बने वस्त्रों की अधिकता होने लगी थी, क्योंकि ये वस्त्र मशीनों के द्वारा बने होने के कारण कम लागत के थे। कम लागत के होने के कारण ही भारतीय बुनकर इनसे प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर सकते थे।
  • अमेरिकी गृहयुद्ध के कारण अमेरिका से कपास का निर्यात बन्द हो गया, ब्रिटेन, भारत से कच्चे माल का आयात करने लगा था। भारत से कच्चे कपास के निर्यात में आई इस वृद्धि से उसकी कीमत में भी वृद्धि हुई। भारतीय बुनकरों को उच्च कीमत पर कच्चा माल क्रय करना पड़ता था, जो एक बड़ी समस्या थी।
प्रश्न 5. “20वीं सदी के प्रथम दशक तक भारत में औद्योगीकरण के प्रतिमान को कई परिवर्तनों ने प्रभावित किया” व्याख्या कीजिए ।
अथवा भारत में औद्योगीकरण के विकास में आने वाली समस्याएँ क्या थीं? व्याख्या करें।
उत्तर – 20वीं सदी के प्रथम दशक तक भारत में औद्योगीकरण के प्रतिमानों को कई परिवर्तनों ने प्रभावित किया, जिनका विवरण निम्नलिखित है
  • स्वदेशी तथा बहिष्कार आन्दोलन भारत में बंगाल विभाजन के बाद स्वदेशी आन्दोलन और बहिष्कार के आन्दोलन से भारतीय उद्योगों को राहत मिली। भारतीय वस्तुओं, विशेषतः कपड़े की माँग में वृद्धि हुई ।
  • औद्योगिक वर्ग इस समय तक औद्योगिक समूह अपने सामूहिक हितों की रक्षा के लिए संगठित हो गए और उन्होंने आयात शुल्क बढ़ाने तथा अन्य रियायतें देने के लिए सरकार पर दबाव डाला।
  • भारतीय बाजार में मैनचेस्टर का पतन युद्ध के बाद भारतीय बाजार में मैनचेस्टर को पहले वाला सम्मान कभी प्राप्त नहीं हो पाया।
  • चीन को निर्यात कम होना वर्ष 1906 के बाद चीन भेजे जाने वाले भारतीय धागे के निर्यात में भी कमी होने लगी, क्योंकि चीनी बाजारों में चीन और जापान के उत्पादों की बाढ़ आ गई थी।
प्रश्न 6. भारत में औद्योगिक विकास की क्या विशेषताएँ हैं? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए | 
उत्तर – भारत में सर्वप्रथम कपास और जूट मिलों की स्थापना हुई। 1874 ई. तक मद्रास की पहली कताई और बुनाई मिल ने उत्पादन शुरू किया। धीरे-धीरे अन्य क्षेत्रों के उद्योग भी स्थापित किए गए और 19वीं शताब्दी के कुछ प्रसिद्ध उद्यमी जैसे टाटा और बिरला के उद्योगपतियों ने औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित किया। 6 अप्रैल, 1948 को प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा की गई। इसके द्वारा देश में मिश्रित एवं नियन्त्रित अर्थव्यवस्था की नीव रखी। बाद में समय – समय पर पंचवर्षीय योजना के माध्यम से औद्योगिक विकास किया गया।
औद्योगिक विकास की चार विशेषताएँ
  1. उन्नीसवीं सदी के अन्त में जब भारतीय व्यवसायी उद्योग लगाने लगे तो उन्होंने भारतीय बाजार में मैनचेस्टर की बनी चीजों से प्रतिस्पर्धा नहीं की । ब्रिटिश माल जो भारत आते थे उनकी धागे की गुणवत्ता अच्छी नहीं थी, इस ‘कपड़ा मिलों में कपड़ों की जगह मोटे सूती धागे ही बनाए कारण भारत जाते थे। ये धागे उत्तम किस्म के होते थे।
  2. बीसवीं सदी के प्रथम दशक तक भारत में औद्योगीकरण के दौर में कई बदलाव हो चुके थे। स्वदेशी आन्दोलन की गति मिलने से राष्ट्रवादियों ने लोगों को विदेशी कपड़े के बहिष्कार के लिए प्रेरित किया। औद्योगिक समूह अपने समूह के लाभ हेतु संगठित हो गए और उन्होंने आयात शुल्क बढ़ाने तथा अन्य रियायतें देने के लिए सरकार पर दबाव डाला। वर्ष 1906 के बाद के वर्षों में भारतीय धागे जो चीन भेजे जाते थे, इसमें कमी आई। भारत में सूती वस्त्रों के उत्पादन में वर्ष 1900-1912 तक दोगुना वृद्धि देखने को मिली। चीनी बाजारों में चीन और जापान की मिलों के उत्पाद छा गए थे। फलस्वरूप, भारत के उद्योगपति धागे के अतिरिक्त कपड़ा बनाने लगे।
  3. प्रथम विश्वयुद्ध तक औद्योगिक विकास की रफ्तार में कमी थी। इस युद्ध ने एक नई स्थिति को जन्म दिया। ब्रिटिश कारखाने सेना की जरूरतों को पुरा करने के लिए युद्ध से सम्बन्धित उत्पादों में व्यस्त थे। इसी कारण भारत में मैनचेस्टर के आयात में कमी आई। भारतीय बाजारों को रातोंरात एक विशाल देशी बाजार मिल गया। युद्ध लम्बा खिंचा तो भारतीय कररखानों में भी फौज के लिए जूट की बोरियाँ, फौजियों के लिए वर्दी के कपड़े, टेण्ट और चमड़े जूते, घोड़े व खच्चर की जीन तथा अनेक अन्य सामान बनने लगे। नए कारखाने लगाए गए। पुराने कारखाने कई पालियों में चलने लगे। अनेक नए मजदूरों को काम पर रखा गया और प्रत्येक को पहले से भी अधिक समय तक काम करना पड़ता था। युद्ध के दौरान औद्योगिक उत्पादन तेजी बढ़ा।
  4. युद्धोपरान्त भारतीय बाजार में मैनचेस्टर को पहले वाला मुकाम कभी हासिल नहीं हो पाया। आधुनिकीकरण न कर पाने और अमेरिका, जर्मनी व जापान के मुकाबले कमजोर पड़ जाने के कारण ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। कपास का उत्पादन बहुत कम रह गया था और ब्रिटेन से होने वाले सूती कपड़े के निर्यात में जबरदस्त गिरावट आई।
    उपनिवेशों में विदेशी उत्पादों का सफाया करके स्थानीय उद्योगपतियों द्वारा घरेलू बाजारों पर अपना आधिपत्य स्थापित किया तथा उन्होंने क्रमश: अपनी स्थिति को मजबूत बना लिया।
प्रश्न 7. औद्योगिक क्रान्ति से पहले, शहरों में अपने उद्योगों को स्थापित करने में नए यूरोपीय व्यापारियों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ा? वर्णन कीजिए ।
अथवा यूरोपीय व्यापारियों ने अपना नया उद्योग क्यों स्थापित नहीं किया? व्याख्या करें।
उत्तर – औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व यूरोप के शहरों में यूरोपियों को नए उद्योग स्थापित करने के लिए निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ा
  • शक्तिशाली नगरीय उत्पादक यूरोप के शहरी उत्पादक बहुत शक्तिशाली थे । इसका कारण था कि शहरी दस्तकारी और व्यापारिक संगठन बहुत शक्तिशाली थे। ये संगठन व्यवसाय में नए लोगों को अवसर देने या नया व्यवसाय फैलाने से रोकते थे।
  • एकाधिकार यूरोप के प्रशासन द्वारा भी विभिन्न व्यापार संघों को महत्त्वपूर्ण उत्पादों के उत्पादन और व्यापार का एकाधिकार दिया हुआ था। फलत: नए व्यापारी शहरों में कारोबार नहीं कर पाने के कारण गाँवों की ओर जाने लगे।
  • आर्थिक अवसरों की कमी गाँवों में खुले खेत समाप्त होते जा रहे थे और कॉमन्स की बाड़बन्दी की जा रही थी, छोटे किसान और गरीब किसान, जो पहले साझा जमीन पर निर्भर रहते थे, बेरोजगार हो गए थे।
  • पेशगी रकम शहरों में व्यापार का प्रसार न कर सकने वाले सौदागरों तथा व्यावसायियों ने गरीब और किसान परिवारों को पेशगी रकम देनी शुरू की, जिससे उनका व्यापार ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ने लगा था ।
  • वस्तुओं की भारी माँग विश्व व्यापार का 17वीं और 18वीं सदी में तीव्र गति से विस्तार हुआ और इस बढ़ती हुई माँग के कारण ही उपनिवेशों की स्थापना हुई। शहरी उत्पादक वांछित मात्रा में उत्पादन करने में असफल रहे ।

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