UP Board Class 10 Social Science Chapter 4 कृषि (भूगोल)
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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 कृषि (भूगोल)
फास्ट ट्रैक रिवीज़न
कृषि एक प्राथमिक क्रिया है। भारत की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न है। कृषि के अन्तर्गत निम्नलिखित दो प्रकार की क्रियाएँ शामिल की जाती हैं- प्राथमिक क्रिया एवं गौण क्रिया ।
कृषि के प्रकार
भारत में विभिन्न प्रकार की कृषि पद्धतियाँ पाई जाती हैं, इनका वर्णन निम्नलिखित है
प्रारम्भिक जीविका निर्वाह कृषि
- भारत में इस प्रकार की कृषि छोटे किसानों द्वारा अपने परिवार एवं मजदूरों की सहायता से भूमि के छोटे टुकड़े पर की जाती है।
- इस प्रकार की कृषि प्रायः मानसून, मृदा की प्राकृतिक उर्वरता और फसल उगाने के लिए पर्यावरणीय परिस्थितियों की उपयुक्तता पर निर्भर करती है, इसलिए इस प्रकार की कृषि को कर्तन दहन प्रणाली कृषि कहा जाता है।
- ‘कर्तन दहन प्रणाली’ कृषि को मैक्सिको और मध्य अमेरिका में ‘मिल्पा’, वेनेजुएला में ‘कोनुको’, ब्राजील में ‘रोका’, मध्य अफ्रीका में ‘मसोले’, इण्डोनेशिया में ‘लदांग’ और वियतनाम में ‘रे’ के नाम से जाना जाता है।
गहन जीविका कृषि
- भारत में यह खेती उन क्षेत्रों में की जाती है, जहाँ पर जनसंख्या का भूमि पर अत्यधिक दबाव होता है।
- यह श्रम प्रधान कृषि है, जहाँ अधिक उत्पादन के लिए अत्यधिक मात्रा में उर्वरकों एवं सिंचाई का प्रयोग होता है।
वाणिज्यिक कृषि
इस प्रकार की कृषि के मुख्य लक्षण आधुनिक निवेशों; जैसे-अधिक पैदावार देने वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से विस्तृत भूमि पर उच्च पैदावार प्राप्त करना है।
रोपण कृषि
- यह वाणिज्यिक कृषि का ही एक प्रकार है। रोपण कृषि विभिन्न कृषि आधारित उद्योगों के लिए कच्चे माल का उत्पादन करती है।
- इस प्रकार की खेती में अत्यधिक पूँजी और प्रवासी श्रमिकों की आवश्यकता होती है।
भारत में फसल ऋतु (शस्य प्रारूप )
भारत में तीन शस्य ऋतुएँ हैं-रबी, खरीफ और जायद ।
रबी फसल
- रबी फसलों को शीत ऋतु में अक्टूबर से दिसम्बर के मध्य बोया जाता है।
- इसे ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य काटा जाता है। उदाहरण- गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों ।
- हरित क्रान्ति के कारण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ भागों में गेहूँ के उत्पादन में वृद्धि हुई है।
खरीफ फसल
- खरीफ फसलें मानसून के आगमन ( मई – जुलाई) के साथ बोई जाती हैं और सितम्बर-अक्टूबर में काट ली जाती हैं।
- चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, तुर, मूँग, उड़द, कपास, जूट, मूँगफली और सोयाबीन आदि खरीफ की मुख्य फसलें हैं, जो मानसून के आगमन पर बोई जाती हैं।
- पश्चिम बंगाल, ओडिशा तथा असम में अच्छे सिंचित क्षेत्रों में धान की तीन फसलें ऑस, अमन और बोरो उगाई जाती हैं।
जायद फसल
रबी और खरीफ के बीच ग्रीष्म ऋतु (मार्च – जून) में बोई जाने वाली फसल को जायद कहा जाता है। इस ऋतु की मुख्य फसलें खरबूजा, खीरा, तरबूज, सब्जियाँ और चारा हैं। गन्ना एक वर्ष में तैयार होने वाली फसल है।
मुख्य फसलें
मिट्टी, जलवायु और कृषि पद्धति में अन्तर के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार की खाद्य और अखाद्य फसलें उगाई जाती हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित है
चावल
- यह एक खाद्यान्न फसल है। इसे उगाने के लिए उच्च तापमान ( 25° सेल्सियस ऊपर) तथा अधिक आर्द्रता ( 100 सेमी से अधिक) की आवश्यकता होती है।
- अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे उगाया जाता है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों; जैसे- पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान के कुछ भागों में इसे नहरों और कुओं द्वारा सिंचाई करके उगाया जाता है।
गेहूँ
- गेहूँ को उगाने के समय शीत ऋतु तथा पकने के समय धूप एवं समान रूप से वितरित 50 सेमी से 75 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है।
- मुख्य क्षेत्र – उत्तर पश्चिम में गंगा- सतलुज का मैदान और दक्कन का काली मिट्टी वाला प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि ।
मोटे अनाज
- ज्वार, बाजरा और रागी भारत में उगाए जाने वाले मुख्य मोटे अनाज हैं।
- इनमें पोषक तत्त्वों की मात्रा अधिक होती है। ये आर्द्र क्षेत्रों में उगाए जाते हैं; जैसे – महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश आदि।
ज्वार / सोरगाम
- ज्वार में प्रचुर मात्रा में पोटैशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम तथा सोडियम और लौह कम मात्रा में पाया जाता है।
- क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से ज्वार देश की तीसरी महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। यह फसल वर्षा पर निर्भर करती है।
बाजरा
- इसकी फसल बलुआ और उथली काली मिट्टी पर उगाई जाती है।
- राजस्थान इसका सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। अन्य क्षेत्र – गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश हैं।
- इसमें लोहा, मैग्नीशियम, ताँबा, जस्ता, कैल्शियम एवं विटामिन अच्छी मात्रा में पाया जाता है।
रागी
- यह लाल, काली, बलुआ, दोमट और उथली काली मिट्टी पर उगाई जाती है। कर्नाटक रागी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।
- अन्य उत्पादक क्षेत्र – तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम, झारखण्ड और अरुणाचल प्रदेश हैं।
- रागी में प्रचुर मात्रा में लोहा, कैल्शियम व सूक्ष्म पोषक तत्त्व पाए जाते हैं।
- इसमें भूसी भी काफी मात्रा में पाई जाती है।
मक्का
- इसका उपयोग खाद्यान्न एवं चारा दोनों रूप में होता है।
- इसके उत्पादन के लिए 21°C से 27°C तापमान तथा पुरानी जलोढ़ मृदा अधिक उपयोगी होती है। मक्का का मुख्य उत्पादन कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना में किया जाता है।
दालें
- भारत, विश्व में दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता एवं उत्पादक देश है।
- अरहर को छोड़कर अन्य सभी दालें वायु से नाइट्रोजन लेकर भूमि की उर्वरता को बनाए रखती हैं और शस्यावर्तन में मुख्य भूमिका निभाती हैं।
- मुख्य दलहन फसलें – तुर (अरहर), उड़द, मूँग, मसूर, मटर और चना।
- इसके मुख्य उत्पादक क्षेत्र – महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि हैं।
खाद्यान्नों के अतिरिक्त अन्य खाद्य फसलें
गन्ना
- गन्ना एक उष्ण और उपोष्ण कटिबन्धीय फसल है। इसमें बुआई से लेकर कटाई तक काफी शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है।
- यह चीनी, गुड़, खाण्डसारी और शीरा बनाने के लिए कच्चा माल है।
- इसके मुख्य उत्पादक राज्य – उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब एवं हरियाणा हैं।
तिलहन
- प्रमुख तिलहन फसलें—मूँगफली, सरसों, नारियल, तिल, सोयाबीन, अलसी, अरण्डी, बिनौला, सूरजमुखी हैं। अधिकतर तिलहन फसलें खाद्य हैं, परन्तु कुछ तेल के बीजों को श्रृंगार उद्योग में कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है।
- भारत के कुल बोये गए क्षेत्र के 12% भू-भाग पर तिलहन फसलें उगाई जाती हैं।
चाय
- यह एक रोपण फसल और एक महत्त्वपूर्ण पेय पदार्थ है।
- चाय का पौधा उष्ण और उपोष्ण कटिबन्धीय जलवायु प्रदेशों में उगाया जाता है। चाय प्रमुख रूप से बागानी फसल है। पर्वतीय मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त है।
- भारत में चाय के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में असम, पश्चिम बंगाल, दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी जिलों की पहाड़ियाँ, तमिलनाडु तथा केरल हैं।
कॉफी
- भारतीय कॉफी अपनी गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है।
- भारत में अरेबिका, रोबस्टा आदि किस्म की कॉफी उत्पादित की जाती है।
- कॉफी कृषि की शुरुआत बाबा बूदन की पहाड़ियों से हुई।
- कॉफी का प्रमुख उत्पादक राज्य कर्नाटक है।
बागवानी फसलें
- इसके अन्तर्गत फलों एवं सब्जियों दोनों की खेती की जाती है।
- भारत का मटर, फूलगोभी, प्याज, बन्दगोभी, टमाटर, बैंगन और आलू उत्पादन में प्रमुख स्थान है।
- भारत उष्ण और शीतोष्ण कटिबन्धीय दोनों ही प्रकार के फलों का उत्पादन करता है; जैसे – आम, सन्तरा, केला, अंगूर आदि ।
अखाद्य फसलें
रबड़
- यह भूमध्यरेखीय क्षेत्र की फसल है, परन्तु विशेष परिस्थितियों में यह उष्ण और उपोष्ण क्षेत्रों में भी उगाई जाती है।
- भारत में रबड़ का सर्वाधिक उत्पादन करने वाला राज्य केरल है।
रेशेदार फसलें
- भारत में – कपास, जूट, सन और प्राकृतिक रेशम प्रमुख रेशेदार फसलें हैं।
- रेशम उत्पादन के लिए रेशम के कीड़ों के पालन को सेरीकल्चर कहते हैं।
कपास
- भारत को कपास के पौधे का मूल स्थान माना जाता है।
- सूती कपड़ा उद्योगों में यह एक मुख्य कच्चा माल है।
- दक्कन पठार के शुष्कतर भागों में काली मिट्टी को कपास उत्पादन के लिए उपयोगी माना जाता है।
- यह खरीफ की फसल है, जिसे पककर तैयार होने में 6 से 8 महीने लगते हैं।
- कपास उत्पादन में गुजरात एवं महाराष्ट्र का प्रमुख स्थान है।
जूट
- इसको सुनहरा रेशा भी कहा जाता है। इसका प्रयोग बोरियाँ, चटाई, रस्सी, तन्तु व धागे, गलीचे और दूसरी दस्तकारी वस्तुएँ बनाने में किया जाता है।
- नायलॉन की कम कीमत होने के कारण जूट की माँग में कमी आई है।
- पश्चिम बंगाल जूट उत्पादन का प्रमुख राज्य है।
कृषि सुधार
यह कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए तकनीकी और संस्थागत परिवर्तनों को दर्शाता है।
- संस्थागत सुधार प्रमुख संस्थागत सुधारों में सामूहिकता, भूमि का एकत्रीकरण, सहकारी समितियों के विकास, जमींदारी का उन्मूलन आदि शामिल हैं।
- प्रौद्योगिकीय सुधार भारत सरकार ने वर्ष 1960-70 के दशक में कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए सफेद या श्वेत एवं हरित क्रान्ति जैसे आन्दोलन शुरू किए।
- 1980-90 के दशक में व्यापक भूमि विकास कार्यक्रम शुरू किया गया, जो संस्थागत और तकनीकी सुधारों पर आधारित था।
- ग्रामीण बैंक, सहकारी समिति और बैंकों द्वारा किसानों को सस्ती दर पर ऋण सुविधाएँ प्रदान की गईं।
अन्य सुधार
- सरकार ने किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड एवं व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना, जैसे कार्यक्रम शुरू किए, जिसके अन्तर्गत छोटे किसान KCC (Kisan Credit Card) द्वारा सस्ती दरों पर ऋण प्राप्त कर सकते हैं।
- किसानों को दलालों एवं बिचौलियों से बचाने के लिए न्यूनतम सहायता मूल्य एवं खरीद मूल्यों की घोषणा की गई।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. कर्तन दहन कृषि (झूम कृषि) निम्नलिखित में से किस राज्य में पाई जाती है?
(a) उत्तर प्रदेश
(b) राजस्थान
(c) उत्तराखण्ड
(d) मिजोरम
उत्तर (d) मिजोरम
प्रश्न 2. सोपान कृषि की जाती है
(a) उत्खात भूमि पर
(b) दाल वाली भूमि पर
(c) मैदानी भूमि पर
(d) मरुस्थली भूमि पर
उत्तर (b) दाल वाली भूमि पर
प्रश्न 3. निम्न में से कौन-सी रोपण कृषि की फसल है?
(a) दाल
(b) कपास
(c) तिलहन
(d) गेहूँ
उत्तर (b) कपास
प्रश्न 4. निम्नलिखित में से कौन-सी एक फलीदार फसल है?
(a) दालें
(b) मोटे अनाज
(c) ज्वार
(d) चावल
उत्तर (a) दालें
प्रश्न 5. हरा सोना निम्नलिखित में से किसे कहा जाता है?
(a) प्राकृतिक वनस्पति
(b) घास के मैदान
(c) हरे पेड़
(d) सघन झाड़ी
उत्तर (b) घास के मैदान
प्रश्न 6. रबी की फसलों को बोने का समय क्या होता है?
(a) अक्टूबर-दिसम्बर
(b) मार्च-अप्रैल
(c) जून-जुलाई
(d) अगस्त-सितम्बर
उत्तर (a ) अक्टूबर-दिसम्बर
प्रश्न 7. खरीफ की फसल बोए जाने का समय है
(a) जून-जुलाई
(b) अक्टूबर-दिसम्बर
(c) मार्च-मई
(d) अगस्त- अक्टूबर
उत्तर (a) जून – जुलाई
प्रश्न 8. एक देश का अधिकांशतः प्राकृतिक प्रक्रिया से उत्पादन ……. क्षेत्रक की गतिविधि है ।
(a) प्राथमिक
(b) द्वितीयक
(c) तृतीयक
(d) प्रौद्योगिकी
उत्तर (a) प्राथमिक
प्रश्न 9. निम्नलिखित में से कौन-सा उस कृषि प्रणाली को दर्शाता है, जिसमें एक ही फसल लम्बे-चौड़े क्षेत्र में उगाई जाती है?
(a) स्थानान्तरीत कृषि
(b) बागवानी कृषि
(c) रोपण कृषि
(d) गहन कृषि
उत्तर (c) रोपण कृषि
प्रश्न 10. निम्नलिखित में से कौन-सी रोपण फसल है?
(a) गेहूँ
(b) चना
(c) गन्ना
(d) मूँगफली
उत्तर (c) गन्ना
प्रश्न 11. निम्नलिखित में से कौन-सी रबी की फसल है?
(a) धान
(b) गेहूँ
(c) काला चना
(d) कपास
उत्तर (b) गेहूँ
प्रश्न 12. इनमें से कौन-सी रबी की फसल है?
(a) चावल
(b) चना
(c) मोटे अनाज
(d) कपास
उत्तर (b) चना
प्रश्न 13. कपास की खेती के लिए निम्नलिखित में से कौन-सी मिट्टी उपयुक्त है?
(a) लाल मिट्टी
(b) लैटेराइट मिट्टी
(c) काली मिट्टी
(d) जलोढ़ मिट्टी
उत्तर (c) काली मिट्टी
प्रश्न 14. भारत में सर्वाधिक रबड़ उत्पन्न करने वाला राज्य है
(a) तमिलनाडु
(b) केरल
(c) कर्नाटक
(d) ओडिशा
उत्तर (b) केरल
प्रश्न 15. रेशम उत्पादन के लिए रेशम के कीडे को पालना क्या कहलाता है?
(a) सेरी कल्चर
(b) हार्टीकल्चर
(c) फ्लोरीकल्चर
(d) ओडिशा
उत्तर (a) सेरी कल्चर
प्रश्न 16. निम्न में से कौन-सी रेशेदार फसल है?
(a) कपास
(b) जूट
(c) प्राकृतिक रेशम
(d) ये सभी
उत्तर (d) ये सभी
प्रश्न 17. निम्नलिखित में से कौन-सी एक रेशेदार फसल है?
(a) जूट
(b) कॉफी
(c) जौ
(d) रबर
उत्तर (a) जूट
प्रश्न 18. निम्नलिखित में से कौन-सा जूट उत्पादक राज्य है?
(a) पश्चिम बंगाल
(b) केरल
(c) गुजरात
(d) राजस्थान
उत्तर (a) पश्चिम बंगाल
प्रश्न 19. निम्नलिखित में से कौन-सी फसल मुख्य रूप से जायद फसल का उदाहरण है?
(a) धान
(b) गेहूँ
(c) चना
(d) तरबूज
उत्तर (d) तरबूज
प्रश्न 20. श्वेत क्रान्ति सम्बन्धित है
(a) दुग्ध उत्पादन
(b) गेहूँ उत्पादन
(c) मत्स्य उत्पादन
(d) मोटा अनाज उत्पादन से
उत्तर (a) दुग्ध उत्पादन
प्रश्न 21. निम्नलिखित में से कौन-सा व्यक्ति अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र से सम्बन्धित है?
(a) मछुआरा
(b) शिक्षक
(c) डाकिया
(d) व्यापारी
उत्तर (a) मछुआरा
प्रश्न 22. निम्नलिखित में से किसको कृषि एवं सहायक क्षेत्रक भी कहते हैं?
(a) प्राथमिक क्षेत्रक
(b) द्वितीयक क्षेत्रक
(c) तृतीयक क्षेत्रक
(d) चतुर्थक क्षेत्रक
उत्तर (a) प्राथमिक क्षेत्रक
सुमेलित करें
प्रश्न 23. सुमेलित कीजिए

प्रश्न 24. सुमेलित कीजिए

कथन कूट
प्रश्न 25. निम्न में से प्राथमिक क्षेत्र का क्रियाकलाप है
1. मछली पकड़ना
2. कृषि
3. लकड़ी काटना
4. पशुचारण
कूट
(a) केवल 1
(b) 1 और 3
(c) 1, 3 और 4
(d) ये सभी
उत्तर (d) ये सभी
प्रश्न 26. निम्नलिखित में से कौन-सी खरीफ की फसल है?
1. सरसों
2. मटर
3. गेहूँ
4. चावल
कूट
(a) 1 और 3
(b) 2 और 4
(c) केवल 3
(d) केवल 4
उत्तर (d) केवल 4
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
वर्णनात्मक प्रश्न-1
प्रश्न 1. वाणिज्यिक कृषि से क्या आशय है?
अथवा वाणिज्यिक कृषि की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – वाणिज्यिक कृषि से तात्पर्य
कृषि से अच्छी आय प्राप्त करने के लिए आधुनिक तकनीकों का बड़े पैमाने पर उपयोग करना वाणिज्यिक कृषि कहलाता है। वाणिज्यिक कृषि के मुख्य लक्षण/विशेषताएँ आधुनिक निवेशों; जैसे—अधिक पैदावार देने वाले बीजों, रासायनिक, उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से विस्तृत भूमि पर उच्च पैदावार प्राप्त करना है।
कृषि का वाणिज्यीकरण एक स्थान से दूसरे स्थान पर सिंचाई सुविधा और जलवायु आदि के आधार पर भिन्न होता है । उदाहरण के लिए, हरियाणा और पंजाब में चावल वाणिज्य की फसल है, परन्तु ओडिशा में यह एक जीविका फसल है।
प्रश्न 2. किसी अर्थव्यवस्था में कृषि का क्या महत्त्व होता है ?
अथवा भारत में कृषि के महत्त्व पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – कृषि से तात्पर्य मनुष्य के उन क्रियाकलापों से है, जिनके माध्यम से मानव अपने उद्यम के आधार पर अपनी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विशिष्ट प्रकार की फसलों का उत्पादन करता है।
कृषि की दृष्टि से भारत एक महत्त्वपूर्ण देश है। इसकी दो-तिहाई जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न है। कृषि एक प्राथमिक क्रिया है, जो हमारे लिए अधिकांश खाद्यान्न उत्पन्न करती है। खाद्यान्नों के अतिरिक्त यह विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चा माल भी पैदा करती है। इसके अतिरिक्त कुछ उत्पादों जैसे- चाय, कॉफी, मसाले इत्यादि का भी निर्यात किया जाता है। भारत में प्राचीनकाल से ही कृषिका प्रचलन रहा है जो मानसून आधारित था, परन्तु वर्तमान में कृषि क्षेत्र में तकनीकी विकास होने से रेगिस्तानी भागों में भी फसलों का उत्पादन किया जाने लगा है।
प्रश्न 3. भारतीय कृषि की कोई तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – भारतीय कृषि की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- खाद्यान्न फसलों की प्रमुखता भारतीय कृषि में खाद्यान्न फसलों की प्रमुखता रहती है क्योंकि 100 करोड़ से अधिक जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए ऐसा किया जाना आवश्यक है। तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या की खाद्यान्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुल कृषि भूमि के लगभग 65.8% भाग पर खाद्यान्न तथा शेष भाग में व्यापारिक व अन्य फसलों का उत्पादन किया जाता है।
- कृषि की निम्न उत्पादकता भारत में कृषि उपजों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन अपेक्षाकृत अन्य देशों से कम है। प्रति श्रमिक की दृष्टि से भारत में कृषि श्रमिक की औसत वार्षिक उत्पादकता केवल 105 डॉलर है।
- प्रकृति पर निर्भरता भारतीय कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है। यही कारण है कि वर्षा की अनियमितता एवं अनिश्चितता भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था को सर्वाधिक प्रभावित करती है। जिस वर्ष मानसूनी वर्षा नियमित होती है, कृषि उत्पादन भी यथेष्ट मात्रा में प्राप्त होता है।
प्रश्न 4. बागवानी फसलें क्या है? वर्णन करें।
उत्तर – बागवानी फसलें
बागवानी फसलें उन फसलों को कहते हैं, जिन्हें विशाल बागानों में उगाया जाता है। ऐसी फसलों में अधिकतर फसलों का उपयोग पेय और औद्योगिक पदार्थों में किया जाता है।
बागवानी फसल एक ऐसा क्षेत्र है, जो फलों, सब्जियों, फूलों, मसालों और मशरूम की खेती से सम्बन्धित है। भारत का विश्व में फलों और सब्जियों के उत्पादन में चीन के बाद दूसरा स्थान है। भारत उष्ण और शीतोष्ण कटिबन्धीय दोनों ही प्रकार के फलों का उत्पादक है। भारतीय फलों जिनमें महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बंगाल के आम, नागपुर और चेरापूँजी के सन्तरे, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के सेब, नाशपाती, खूबानी और अखरोट की मांग के साथ ही मटर, प्याज, टमाटर, आलू आदि की विश्व में काफी माँग है।
प्रश्न 5. कपास की खेती के लिए भौगोलिक दशाओं को बताइए ।
उत्तर – कपास की खेती के लिए भौगोलिक दशाएँ
- मिट्टी इसको खेती के लिए मध्य काली मिट्टी को आवश्यकता होती है, काली मिट्टी को कपास मिट्टी भी कहा जाता है इसमें नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है।
- तापमान इसको फसल के लिए 20° से 35° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। यह उष्ण कटिबन्धीय जलवायु का पौधा है। कोहरा एवं पाला इस फसल के लिए हानिकारक होता है।
- वर्षा इसकी खेती के लिए कम-से-कम 50 सेमी वर्षा को आवश्यकता होती है। कपास के पौधों को सामान्य नमी की आवश्यकता होती है। खेतों में जल निकासी के लिए उचित प्रबन्ध की व्यवस्था होनी चाहिए।
- मानवीय श्रम इसको खेती के लिए अधिक संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 6. भारत में चाय तथा कहवा के उत्पादन क्षेत्र बताइए ।
उत्तर – चाय (Tea) भारत का प्रमुख पेय पदार्थ है। चाय उत्पादन में विश्व में भारत का द्वितीय स्थान है। भारत में विश्व की 28.3% चाय का उत्पादन होता है। भारत में चाय उत्पादित करने वाले दो प्रमुख राज्य असम तथा पश्चिम बंगाल हैं। इसके अन्य उत्पादक राज्यों में केरल, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, मेघालय, आन्ध्र प्रदेश और त्रिपुरा हैं।
कहवा (कॉफी) कहवा या कॉफी (Coffee) एक उष्णकटिबन्धीय रोपण कृषि की फसल है। इसे भी भारत में प्रमुख पेय पदार्थ के रूप ( चाय के बाद) में जाना जाता है। कॉफी की तीन किस्में पाई जाती हैं— अरेबिका, रोबस्टा एवं लाइबेरिका । भारत अधिकतर उत्तम किस्म की अरेबिका कॉफी का उत्पादन करता है। भारत के कहवा उत्पादक क्षेत्र भारत में कहवे का उत्पादन कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु व आन्ध्र प्रदेश राज्यों में अधिक होता है।
प्रश्न 7. एक पेय फसल का नाम लिखिए और उसके उत्पादन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – चाय
चाय भारत की प्रमुख पेय फसल है। इसके भारत में उत्पादन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- चाय एक रोपण फसल और एक महत्त्वपूर्ण पेय पदार्थ है।
- चाय की शुरुआत भारत में अंग्रेजों ने की थी । चाय का पौधा उष्ण और उपोष्ण कटिबन्धीय जलवायु (कोष्ण, नम और पाला रहित) प्रदेशों में उगाया जाता है।
- इसके लिए ह्यूमस (Humus) और जीवाश्म युक्त गहरी मिट्टी और सुगम जल निकास वाला ढलवा क्षेत्र उपयुक्त होता है।
- सम्पूर्ण वर्ष समान रूप से होने वाली वर्षा की बौछारें चाय की कोमल पत्तियों के विकास में सहायक होती हैं।
- चाय एक श्रम – प्रधान कृषि है। इसके लिए प्रचुर मात्रा में सस्ते और कुशल श्रम की आवश्यकता होती है। चाय की ताजगी बनाए रखने के लिए उसकी पत्तियों को बागान में ही संशोधित किया जाता है।
- भारत विश्व के अग्रणी चाय उत्पादक और निर्यातक देशों में से एक है। भारत में चाय के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में असम, पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी जिलों की पहाड़ियाँ, तमिलनाडु तथा केरल हैं। इसके अन्य उत्पादक राज्यों में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, मेघालय, आन्ध्र प्रदेश और त्रिपुरा आते हैं।
प्रश्न 8. मुद्रादायिनी फसलों से क्या तात्पर्य है? भारत में ऐसी किन्हीं दो फसलों के उत्पादक राज्य बताइए ।
उत्तर – मुद्रादायिनी फसलें
मुद्रादायिनी या नकदी फसलों के अन्तर्गत उन व्यापारिक फसलों को सम्मिलित किया जाता है, जिन्हें आय के लिए कृषकों द्वारा प्रत्यक्ष रूप में बेचा जाता है। इसमें गन्ना, तम्बाकू, कपास, जूट, मेस्टा, सरसों, मूँगफली, अलसी आदि को शामिल किया जाता है। गन्ने का उत्पादन उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र तथा मूँगफली का उत्पादन गुजरात एवं आन्ध्र प्रदेश में किया जाता है।
प्रश्न 9. रबी और खरीफ फसलों में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – रबी और खरीफ फसलों में निम्नलिखित अन्तर हैं
| रबी फसलें | खरीफ फसलें |
| इसकी शुरुआत मानसून की समाप्ति पर अक्टूबर-नवम्बर में होती है। | यह मानसून में जून-जुलाई में प्रारम्भ होती है। |
| ये फसलें अप्रैल-मई में काट ली जाती हैं। | ये फसलें अक्टूबर-नवम्बर में काट ली जाती हैं। |
| ये फसलें मृदा की नमी पर निर्भर करती हैं। | ये फसलें मानसून पर निर्भर करती हैं। |
| गेहूँ, चना तथा तिलहन; जैसे-सरसों आदि इस ऋतु की प्रमुख फसलें हैं। | मोटा अनाज, चावल, मूँगफली, कपास आदि इस ऋतु की प्रमुख फसलें हैं। |
प्रश्न 10. चाय और कहवा में अन्तर बताइए ।
उत्तर – चाय और कहवा में निम्नलिखित अन्तर हैं
| चाय | कहवा |
| इसके लिए उपजाऊ मृदा की आवश्यकता होती है। | इसके लिए लाल व लैटेराइट मृदा उपयोगी होती है। |
| चाय के उत्पादन के लिए 20°C से 30°C तापमान की आवश्यकता होती है। | कहवा के पौधों के लिए 15°C से 28°C तापमान की आवश्यकता होती है। |
| इसके लिए 150 से 300 सेमी वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। | इसके लिए 150 से 200 सेमी वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। |
| इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं— असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु । | तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। |
प्रश्न 11. सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रमों की सूची बनाइए ।
उत्तर – संस्थागत सुधार के कार्यक्रम
- जोतों की चकबन्दी
- फसल बीमा
- किसान क्रेडिट कार्ड
- कृषि कार्यक्रमों का प्रसारण ।
- सहकारिता
- ग्रामीण बैंकों की स्थापना
- न्यूनतम सहायता मूल्य
- पीएम किसान सम्मान निधि योजना
- देश में दुग्ध उत्पादन तथा दुग्ध उत्पादों एवं व्यवसाय का विस्तार करना ।
प्रश्न 12. झूम कृषि की विशेषताओं की विवेचना कीजिए ।
उत्तर – झूम खेती
झूम खेती में किसान दो या तीन मौसमों के लिए अस्थायी रूप से जमीन पर खेती करते हैं। इसके पश्चात् वे जमीन को छोड़ देते हैं और दूसरी जगह चले जाते हैं। भारत में अभी भी झूम खेती का प्रयोग उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के पहाड़ी क्षेत्रों, आंध्र प्रदेश, सिक्किम, बिहार, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल आदि में किया जाता है।
झूम खेती की विशेषताएँ
- इस खेती में पेड़ों को काटकर तथा जलाकर भूमि के टुकड़े को साफ किया जाता है।
- यह कृषि प्रायः मानसून, मृदा की प्राकृतिक उर्वरता तथा अन्य पर्यावरणीय परिस्थितियों की उपयुक्तता पर निर्भर करती है।
- दो-तीन वर्षों के बाद भूमि को उस टुकड़ों को छोड़ दिया जाता है, क्योंकि मृदा अपरदन तथा मृदा की उर्वरता कम होने से उत्पादन भी कम होता जाता है।
- इस तकनीक का प्रयोग कम आर्थिक रूप से विकसित देश या कम आय वाले देशों में किया जाता है।
- कुछ क्षेत्रों में, काश्तकार अपने कृषि चक्र के एक तत्त्व के रूप में काटने और जलाने की प्रथा का उपयोग करते हैं।
- भूमि को अक्सर स्लैश – एंड बर्न विधियों द्वारा साफ किया जाता है और शेष वनस्पति को जला दिया जाता है।
- हल का उपयोग न करने के बजाय बहुत ही अपरिष्कृत और सरल उपकरण जैसे कि कुदाल की छड़ें और स्क्रेपर्स का उपयोग किया जाता है और उगाई जा रही सभी फसलों को एकसाथ मिलाया जाता है।
प्रश्न 13. भारत में गेहूँ की खेती का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए
(क) उपयुक्त भौगोलिक दशाएँ
(ख) उत्पादक क्षेत्र
अथवा गेहूँ की खेती के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाएँ समझाइए |
उत्तर – उपयुक्त भौगोलिक दशाएँ
गेहूँ समशीतोष्ण जलवायु की प्रमुख फसल है। इसके लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ उपयुक्त होती हैं
- तापमान गेहूँ की फसल के उत्पादन के लिए 10°C से 25°C तापमान उपयुक्त रहता है। इसके लिए स्वच्छ मौसम आवश्यक है। इसके लिए पाला, कोहरा, ओलावृष्टि एवं अति शुष्क पवनें हानिकारक हैं। इसे 3,300 मी की ऊँचाई तक उगाया जा सकता है।
- वर्षा गेहूँ की कृषि हेतु 50 से 75 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है। वर्षा धीरे-धीरे तथा नियमित होनी चाहिए। वर्षा के अभाव में सिंचाई की जा सकती है।
- मिट्टी हल्की दोमट या बलुई मिट्टी इसकी खेती के लिए उत्तम मानी जाती है। इस मिट्टी में चूने तथा नाइट्रोजन के अंश गेहूँ की फसल के लिए लाभदायक होते हैं।
भारत में गेहूँ उत्पादक क्षेत्र
उत्तर के विशाल मैदान में अवस्थित प्रमुख राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखण्ड, दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश तथा पूर्व एवं पूर्वोत्तर में बिहार, असम व पश्चिम बंगाल तथा प्रायद्वीपीय भागों में आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु व कर्नाटक में गेहूँ की फसल उगाई जाती है।
उत्पादन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का देश में प्रथम स्थान है। यहाँ कुल गेहूँ उत्पादन का 35.5% उत्पन्न होता है। पंजाब 25% गेहूँ उत्पादन के साथ दूसरे स्थान पर व मध्य प्रदेश तीसरे स्थान पर है।
प्रश्न 14. भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – वैश्वीकरण ने विश्वव्यापी विकास को प्रभावित किया है इसमें योगदान दिया है, अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्कों में बढ़ोत्तरी के साथ वैश्विक व्यापार में भी बढ़त हुई साथ ही कृषि का भी विकास हुआ।
कृषि पर वैश्वीकरण का प्रभाव
- निर्यात भारतीय किसान यूरोपीय व्यापार के दौरान विभिन्न फसलों का निर्यात करते थे, जहाँ मसालों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस प्रकार, किसानों को कई फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप एक व्यवसाय बनता है।
- अवसर वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप धीरे-धीरे बड़े पैमाने पर खाद्य प्रसंस्करण और रोजगार के लिए उद्योगों की स्थापना हुई ।
- नवाचार भारतीय किसानों को नई तकनीक और चुनौतियों से सामना हुआ जिससे वह समकालीन आधुनिक क्रान्ति से रूबरू हुए।
- न्यून मानव संसाधन वैश्वीकरण के फलस्वरूप प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रयोगों से मानव संसाधन में कमी हुई है।
वर्णनात्मक प्रश्न-2
प्रश्न 1. चावल की खेती हेतु उपयुक्त भौगोलिक दशाओं की विवेचना कीजिए तथा भारत में किन्हीं तीन प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए ।
अथवा धान की खेती के लिए उपयुक्त तापमान, वर्षा तथा मिट्टी का उल्लेख कीजिए।
अथवा चावल की उपज के लिए आवश्यक तीन भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर – चावल की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाएँ
भूमि जलोढ़ मैदानी भाग और डेल्टाई प्रदेश चावल की उपज के लिए सर्वोत्तम है। इसके लिए भूमि समतल एवं उपजाऊ होनी चाहिए। पहाड़ी ढालों एवं अधिक वर्षा वाले ढालों पर चावल की खेती सीढ़ीदार खेतों पर होती है। चावल की अधिक उपज के लिए रासायनिक उर्वरकों एवं खादों का उपयोग किया जाता है।
तापमान चावल की कृषि के लिए उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। इसकी उपज के लिए 25°C से अधिक तापमान आवश्यक है। इसे प्रकाश की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। बादलों वाले मौसम व तेज हवाएँ इसके लिए हानिकारक हैं।
वर्षा चावल के लिए 100 200 सेमी वर्षा आवश्यक होती है। चावल को अधिक नमी की आवश्यकता होती है, इसलिए इसके पौधों को जल से भरे खेतों में लगाया जाता है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई द्वारा वर्षा की कमी पूरी की जा सकती है।
मिट्टी चावल की कृषि के लिए चिकनी, जलोढ़ या दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है, क्योंकि इन मिट्टियों में अधिक नमी धारण करने की क्षमता होती है। नदियों के डेल्टा, बाढ़ के मैदान व सागरतटीय क्षेत्रफल चावल की कृषि के लिए सबसे अधिक उपयुक्त होते हैं।
श्रम चावल एक श्रम – प्रधान फसल है। इसकी उपज के लिए बड़ी संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता होती है, क्योंकि चावल की कृषि का अधिकांश बुआई कार्य हाथों से किया जाता है।
प्रमुख उत्पादन क्षेत्र
भारत में पंजाब राज्य चावल उत्पादकता में शीर्ष स्थान पर है। यद्यपि सभी राज्यों में चावल की कृषि की जाती है, किन्तु इसका अधिकांश कृषि क्षेत्र केवल आठ राज्यों क्रमशः पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, ओडिशा, बिहार, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु में पाया जाता है । उत्पादन के क्रम में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश तथा पंजाब क्रमश: पहले दूसरे तथा तीसरे स्थान पर है।
प्रश्न 2. भारत में पाई जाने वाली मुख्य फसलों पर एक लेख लिखिए ।
अथवा भारत की मुख्य फसलों पर टिप्पणी लिखिए ।
अथवा भारत में पाए जाने वाले मोटे अनाजों का उल्लेख कीजिए। इनकी पैदावार बढ़ाने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं? किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए ।
अथवा भारत में मोटे अनाजों की पैदावार बढ़ाने के लिए उपायों को सुझाएँ ।
उत्तर – मिट्टी, जलवायु और कृषि पद्धति में अन्तर के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार की खाद्य और अखाद्य फसलें उगाई जाती हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित हैं
- चावल भारत के अधिकांश लोगों का खाद्यान्न चावल है। चावल खरीफ की फसल है, जिसे उगाने के लिए उच्च तापमान तथा अधिक आर्द्रता की आवश्यकता होती है। इसे अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों; जैसे- पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान के कुछ भागों में इसे नहरों और कुओं द्वारा सिंचाई करके उगाया जाता है।
- गेहूँ भारत की दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्य फसल गेंहूँ है। गेहूँ को उगाने के समय शीत ऋतु तथा पकने के समय धूप एवं समान रूप से वितरित 50-75 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है। उत्तर-पश्चिम में गंगा- सतलुज का मैदान और दक्कन का काली मिट्टी वाला प्रदेश गेहूँ उगाने वाले दो मुख्य क्षेत्र हैं।
- दालें भारत, विश्व में दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता एवं उत्पादक देश है। दालें शाकाहारी भोजन में सर्वाधिक प्रोटीनदायक हैं। दालों के लिए कम नमी की आवश्यकता होती है, इसलिए इन्हें शुष्क परिस्थितियों में भी उगाया जाता है। अरहर को छोड़कर अन्य सभी दालें वायु से नाइट्रोजन लेकर भूमि की उर्वरता को बनाए रखती हैं और शस्यावर्तन में मुख्य भूमिका निभाती हैं। तुर (अरहर), उड़द, मूँग, मसूर, मटर और चना मुख्य दलहन फसलें हैं। इसमें मटर और चना रबी की तथा तुर (अरहर), उड़द और मूँग खरीफ की फसलें हैं।
मोटे अनाज
- ज्वार / सोरगम ज्वार में प्रचुर मात्रा में पोटैशियम, फॉस्फोरस, कैल्सियम तथा सोडियम और लौह कम मात्रा में पाया जाता है। क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से ज्वार देश की तीसरी महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। यह फसल वर्षा पर निर्भर होती है। अधिकांश आर्द्र क्षेत्रों में उगाए जाने के कारण इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती ।
- बाजरा यह बलुआ और उथली काली मिट्टी पर उगाया जाता है। राजस्थान इसका सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। इसके अतिरिक्त गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में भी यह उगाया जाता है। इसमें लोहा, मैग्नीशियम, ताँबा, जस्ता, कैल्सियम एवं विटामिन अच्छी मात्रा में पाया जाता है।
- रागी यह लाल, काली, बलुआ, दोमट और उथली काली मिट्टी पर अच्छी तरह से उगाई जाती है। कर्नाटक रागी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। इसके बाद क्रमशः तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम, झारखण्ड और अरुणाचल प्रदेश इसके उत्पादक राज्य हैं। रागी में प्रचुर मात्रा में लोहा, कैल्सियम, सूक्ष्म पोषक पाए जाते हैं। इसमें भूसी (Roughage) भी काफी मात्रा में पाई जाती है।
- मक्का इसका उपयोग खाद्यान्न एवं चारा दोनों रूप में होता है। यह एक खरीफ फसल है। (बिहार जैसे कुछ राज्यों में मक्का रबी की ऋतु में भी उगाया जाता है) इसके उत्पादन के लिए 21°C 27°C तापमान तथा पुरानी जलोढ़ मृदा अधिक उपयोगी होती है। उन्नत किस्म के बीजों, उर्वरकों और सिंचाई के प्रयोग से इसके उत्पादन में अधिक वृद्धि हुई है।
मोटे अनाजों की उपज को बढ़ाने के उपाय
मोटे अनाजों को सुपरफूड के रूप में माना जाता है, क्योंकि यह प्रोटीन और अन्य पोषक पदार्थों से भरपूर होता है। मोटे अनाजों की पैदावार को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं।
- मोटे अनाज का कृषि क्षेत्र में विस्तार भारत में अभी काफी कम पैमाने पर मोटे अनाजों की खेती होती है। मोटे अनाज मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के क्षेत्रों तक ही सीमित है। मोटे अनाजों का अधिक क्षेत्रों पर उत्पादन बढ़ाने का सरकार प्रयास कर रही है।
- अधिक उपज देने वाली बीजों का प्रयोग मोटे अनाज को श्री अन्न भी कहा जाता है। किसानों और आमलोगों में मिलेट की खेती को लेकर जागरूकता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि इसके प्रति लोगों में विश्वास बढ़े। इसी प्रकार इसमें अधिक उपज देने वाले बीजों का भी प्रयोग करना चाहिए, जिससे उत्पादकता में वृद्धि हो तथा किसानों की आमदनी में बढ़ोत्तरी हो ।
- जलवायु क्षेत्र की अवस्थिति मोटे अनाजों की पैदावार बढ़ाने के लिए अनुकूल क्षेत्रों का चयन सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है। मोटे अनाज वहीं पर अधिक विकसित होते हैं जहाँ सूर्य की रोशनी पौधो पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ती है। सूर्य की रोशनी में मोटे अनाजों के पौधें अधिक बढ़ते हैं, जिनके कारण इसकी पैदावार में भी वृद्धि हो सकती है।
प्रश्न 3. भारत में गन्ना उत्पादन का विवरण निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत दीजिए
(क) भौगोलिक दशाएँ (ख) उत्पादन क्षेत्र (ग) महत्त्व
अथवा भारत में गन्ने की खेती का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए ।
(क) उपयुक्त भौगोलिक दशाएँ (ख) गन्ना उत्पादक क्षेत्र
अथवा गन्ने के उत्पादन के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाएँ बताइए ।
उत्तर – भारत गन्ने की जन्मभूमि है। यह बाँस जाति का पौधा है। गन्ना भारत की प्रमुख नकदी एवं व्यापारिक फसल है। इससे चीनी, गुड, शीरा तथा एथेनॉल इत्यादि का निर्माण किया जाता है। भारत में प्राचीनकाल से ही गन्ने की कृषि की जाती रही है। वर्तमान में गन्ना में ब्राजील का प्रथम तथा भारत का दूसरा स्थान है। विश्व में गन्ने की कृषि का 20% क्षेत्रफल भारत में पाया जाता है। विश्व में कुल गन्ना उत्पादन का 22.4% भारत में उगाया जाता है।
गन्ने के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ
गन्ना उष्णार्द्र जलवायु की फसल है। इसके लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाओं की आवश्यकता होती है
- तापमान उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र की फसल होने के कारण गन्ने की कृषि के लिए अंकुरण के समय उच्च तापमान 30°C से 38°C के बीच तथा पकने के समय 12°C से 14°C तापमान की आवश्यकता होती है।
- वर्षा गन्ने की फसल के लिए अधिक नमी की आवश्यकता होती है। अतः भारत में गन्ना 75 सेमी से 100 सेमी वर्षा वाले क्षेत्रों में ही उगाया जाता है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई द्वारा गन्ने की कृषि की जाती है।
- मिट्टी गन्ने की खेती के लिए उपजाऊ दोमट, नमीयुक्त एवं चिकनी मिट्टी उपयुक्त रहती है। दक्षिण के पठारी भागों में लावा निर्मित काली मिट्टी में भी गन्ने की पैदावार अच्छी होती है। चूना व फॉस्फोरसयुक्त मिट्टी गन्ने की कृषि के लिए विशेष उपयोगी होती है। इसकी कृषि में रासायनिक उर्वरकों की भी जरूरत होती है।
- मानवीय श्रम गन्ने के खेत तैयार करने, बुआई तथा कटाई कर मिलों तक पहुँचाने में कुशल व सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इस कारण सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में इसकी प्रचुर खेती होती है।
भारत के गन्ना उत्पादक क्षेत्र
भारत में प्रत्येक क्षेत्र में गन्ने का उत्पादन होता है, लेकिन उत्तरी भारत गन्ने का प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है। उत्तर प्रदेश देश के कुल उत्पादन का 50% पंजाब व हरियाणा 15% एवं बिहार व झारखण्ड 12% गन्ने का उत्पादन करते हैं।
दक्षिणी भारत में गन्ने का उत्पादन आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक व महाराष्ट्र में किया जाता है। इसके कृषि क्षेत्र का सर्वाधिक विस्तार उत्तरी भारत के मैदानी भाग में पाया जाता है। इसकी खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात आदि राज्यों में की जाती है। गन्ने के उत्पादन में प्रथम स्थान उत्तर प्रदेश का है।
भारत में गन्ना उत्पादन का महत्त्व
गन्ना भारत की एक प्रमुख नकदी फसल है। नकदी फसलों के अन्तर्गत ऐसी व्यापारिक फसलें सम्मिलित की जाती हैं, जिन्हें आय के लिए सीधे या अर्द्ध- प्रसंस्करित रूप से किसानों द्वारा बेचा जाता है। गन्ने से चीनी उद्योग को कच्चे माल की प्राप्ति होती है।
चीनी, गुड़, खाण्डसारी के अतिरिक्त इससे प्राप्त शीरा का उपयोग शराब निर्माण के लिए किया जाता है। इससे प्राप्त खोई का उपयोग कागज उद्योग में किया जाता है। भारत गन्ना उत्पादन के दृष्टिकोण से विश्व का एक अग्रणी देश है। यह ब्राजील के बाद विश्व का दूसरा सर्वाधिक गन्ना उत्पादक देश है।
प्रश्न 4. भारत में जूट का संक्षिप्त विवरण निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत दीजिए
(क) भौगोलिक दशाएँ (ख) उत्पादन क्षेत्र
उत्तर – भौगोलिक दशाएँ
जूट उत्पादन के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ होनी चाहिए
- जलवायु जूट के पौधों की कृषि के लिए उच्च एवं नम जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। सामान्यत: 25°C से 35°C तापमान होना चाहिए।
- वर्षा जूट के पौधों को अंकुरण के पश्चात् अधिक जल की आवश्यकता पड़ती है। अतः इसकी खेती के लिए 100 सेमी से 200 सेमी या इससे भी अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
- मिट्टी जूट की कृषि का एक नकारात्मक पक्ष यह है कि यह भूमि के उत्पादक तत्त्वों को नष्ट कर देती है। अतः इसकी कृषि उन्हीं क्षेत्रों में होती है, जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ द्वारा मृदा का नवीनीकरण होता रहे, इसी कारण डेल्टाई भाग इसकी कृषि के लिए सबसे उपयुक्त है। दोमट, काँप एवं बलुई मिट्टी इसके लिए उपयुक्त होती है।
भारत में जूट उत्पादक क्षेत्र
भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् जूट उद्योग का काफी विकास हुआ है। वर्तमान में इसके निम्नलिखित प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं
- पश्चिम बंगाल यह राज्य भारत में सर्वाधिक जूट उत्पादित करता है। यहाँ जूट की खेती हुगली, चौबीस परगना, मालदा, नदिया, हावड़ा, मुर्शिदाबाद आदि जिलों में की जाती है। यहाँ भारत के कुल जूट उत्पादन का 60% जूट उत्पादित होता है।
- बिहार-झारखण्ड यह क्षेत्र भारत का दूसरा प्रमुख जूट उत्पादक क्षेत्र है। यहाँ बिहार के दरभंगा, चम्पारण, सारन, मोतिहारी एवं झारखण्ड के सन्थाल परगना जिलों में जूट की कृषि की जाती है। इस क्षेत्र में कुल जूट उत्पादन का 12% उत्पादन किया जाता है।
- असम इस राज्य में ब्रह्मपुत्र नदी की निचली घाटी में जूट की कृषि की जाती है। यहाँ के प्रमुख जूट उत्पादक जिले नवगाँव, गोलपाड़ा, कामरूप, कछार आदि हैं। यहाँ की कुल कृषि योग्य भूमि के 95% भू-भाग पर जूट की कृषि की जाती है। यहाँ कुल जूट उत्पादन का 7% जूट उगाया जाता है।
प्रश्न 5. सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए सुधार कार्यक्रमों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए |
अथवा कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय सुझाइए ।
उत्तर – सरकार द्वारा किसानों के हित में सिंचाई, खाद्य वितरण, मृदा जाँच-परख, समुचित रख-रखाव एवं बाजार तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए कई सुधार कार्यक्रम चलाए गए हैं
- संस्थागत सुधार प्रमुख संस्थागत सुधारों में सामूहिकता, भूमि का एकत्रीकरण, चकबन्दी, सहकारी समितियों का विकास, जमींदारी का उन्मूलन आदि शामिल हैं। भूमि पर पुश्तैनी अधिकार के कारण यह अनेक टुकड़ों में बँटती जा रही थी, जिससे उत्पादकता में कमी हो रही थी, इसलिए प्रथम पंचवर्षीय योजनाओं में भूमि सुधार पर मुख्य रूप से ध्यान केन्द्रित किया गया।
- प्रौद्योगिकीय सुधार भूमि सुधार सम्बन्धित कानूनों को लागू किया गया, लेकिन उनका कार्यान्वयन उचित रूप से नहीं हो रहा था। भारत सरकार ने वर्ष 1960-70 के दशक में कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए सफेद एवं हरित क्रान्ति जैसे आन्दोलन शुरू किए।
- भूमि विकास कार्यक्रम 1980-90 के दशक में व्यापक भूमि विकास कार्यक्रम शुरू किया गया, जो संस्थागत और तकनीकी सुधारों पर आधारित था इसमें बाढ़ सूखा, चक्रवात, बीमारी पर आधारित था इसमें बाढ़ सूखा, चक्रवात, बीमारी तथा आग के लिए फसलों का बीमा शामिल है।
- कृषि का आधुनिकीकरण भारत की लगभग आधे से अधिक आवादी कृषि में लगी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों का मुख्य व्यवसाय ही कृषि है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में हो रही कृषि उन्नत किस्म की न होकर पुराने ढाँचे पर ही आधारित है । अत: सरकार की कुछ नई योजना का सृजन कर उन्नत बीज, खाद आदि का विस्तार ग्रामीणों के बीच की गई। इसके अतिरिक्त कृषि में विविधता भी लायी गई है। सरकार को कृषि के साथ-साथ मत्स्य, वागवानी, पशु-पालन आदि अपनाने के लिए ग्रामीणों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया।
- स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहन एवं मूलभूत सुविधाओं का विकास सरकार को ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत उद्योगों पर समुचित ध्यान देना चाहिए इसके लिए सस्ते ऋण, बाजार की उपलब्धता और अच्छी मूल्य दर की व्यवस्था कर रही है। इसके लिए सड़क, बिजली स्वच्छ पानी आदि मूलभूत सुविधाओं का समुचित प्रबन्ध सरकार की जिम्मेदारी है।
