UP Board Class 10 Social Science Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया (इतिहास)
UP Board Class 10 Social Science Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया (इतिहास)
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया (इतिहास)
फास्ट ट्रैक रिवीज़न
- मुद्रण की सबसे पहली तकनीक 594 ई. में चीन में आई थी तथा उसके पश्चात् जापान एवं कोरिया में विकसित हुई।
चीन में मुद्रण
- 17वीं शताब्दी तक चीन में शहरी संस्कृति के विकास की मुद्रण कला में विविधता आई। 19वीं शताब्दी में पश्चिमी देशों से मुद्रण तकनीक का आयात हुआ। पश्चिमी शैली की आवश्यकता को पूरा करने के लिए शंघाई प्रिण्ट संस्कृति का नया केन्द्र बन गया।
जापान में मुद्रण कला का विकास
- जापान में मुद्रण तकनीक का प्रसार 768-770 ई. में चीनी बौद्ध प्रचारकों द्वारा हुआ। ‘डायमण्ड सूत्र’ जापान की सबसे प्राचीन पुस्तक है, जिसकी छपाई 868 ई. में हुई थी।
यूरोप में मुद्रण कला
- 1295 ई. में जब मार्को पोलो इटली आया, तो वह चीन से काठ की तख्ती (वुडब्लॉक) वाली छपाई की तकनीक अपने साथ लाया।
- इटलीवासियों ने लकड़ी के ब्लॉकों वाली छपाई के साथ पुस्तकों का निर्माण किया। विलासी संस्करणों को महँगे वेलम (Vellum) या चर्म पत्र पर लिखा जाता था।
- पुस्तकों की बढ़ती माँगों के साथ, लकड़ी, ब्लॉक प्रिण्टिंग अधिक लोकप्रिय हो गई। 15वीं शताब्दी में वुडब्लॉक प्रिण्टिंग का प्रयोग कपड़ों को प्रिण्ट करने, ताश के पत्ते बनाने में होता था।
- जर्मन व्यापारी जोहान (योहान ) गुटेनबर्ग के पुत्र ने पहली बार 1430 ई. के दशक में छपाई प्रेस का विकास किया। इसने पहली पुस्तक ‘बाइबिल’ छापी थी। इसके पश्चात् 1450 से 1550 ई. के मध्य यूरोप के अधिकांश देशों में प्रिण्टिंग प्रेस की स्थापना हुई।
मुद्रण क्रान्ति
- मुद्रण के आविष्कार ने तकनीकी दृष्टि से लोगों का जीवन बदल दिया। इसके कारण सूचना और ज्ञान से संस्था और सत्ता से उनका रिश्ता भी बदल गया ।
पाठक वर्ग
- मुद्रण की तकनीक आने से मुद्रण लागत कम हो गई, जिससे किताबें बाजार में आसानी से उपलब्ध होने लगीं तथा एक नए पाठक वर्ग का उदय हुआ।
नए विचारों का उदय
- मुद्रण संस्कृति के नवाचार, सामान्यतः विचारों एवं वाद-विवादों हेतु एक नए विश्व की अवधारणा प्रस्तुत की, जिससे नए विचारों का उदय हुआ। ये नए विचार धार्मिक, रूढ़िवादी, अराजक आदि कई तरह के हो सकते हैं।
धार्मिक सुधार
- धर्म सुधारक मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना अपनी पुस्तक ‘पिच्चानवें स्थापनाएँ’ में की, जिसके परिणामस्वरूप प्रोटेस्टेण्ट धर्म सुधार आन्दोलन की शुरुआत हुई।
16वीं शताब्दी में मेनोकिया (इटली का किसान) ने किताबों को पढ़ना शुरू कर दिया था। उसने बाइबिल के नए अर्थ लगाने शुरू कर दिए, जिससे कैथोलिक चर्च उससे क्रुद्ध हो गया।
- रोमन चर्च ने प्रकाशकों और पुस्तकों के प्रकाशन पर रोक लगा दी। इरैस्मस (लातिन विद्वान् और कैथोलिक सुधारक) ने मुद्रण रोक पर गहरी चिन्ता व्यक्त की थी।
साहित्य का परिचय
- पाठकों की रुचि के अनुसार, साहित्य प्रकाशित किए जाने लगे। इंग्लैण्ड में ‘पेनी चैपबुक्स’ को बेचा जाता था, जो काफी सस्ती होती थी।
- फ्रांस की पुस्तक ‘बिब्लियोथिक ब्ल्यू’ थी, जो नीली जिल्द में सस्ती पुस्तक थी।
- टॉमस पेन, वॉल्टेयर और रूसो जैसे दार्शनिकों की किताबें अत्यधिक छापी एवं पढ़ी जाने लगीं। यह वैज्ञानिक आविष्कारों का काल था, जिसमें न्यूटन के आविष्कार को वृहत पैमाने पर छापा जाने लगा।
- मुद्रण प्रणाली ने समाज को यह बताया कि किताबें दुनिया को बदल सकती हैं। तथा तानाशाही समाज को मुक्त कर सकती हैं।
मुद्रण प्रणाली और फ्रांसीसी क्रान्ति
- कुछ इतिहासकारों का मत है कि फ्रांसीसी क्रान्ति मुद्रण प्रणाली की देन है, इस सन्दर्भ में निम्न तर्क दिए गए हैं
बौद्धिक चिन्तकों के विचारों का प्रसार ।वाद-विवाद एवं तर्क की एक नई परिपाटी शुरू हुई।1780 के दशक तक राजशाही पद्धति की आलोचना होने लगी।
समाज में मुद्रण की भूमिका
- 19वीं शताब्दी के अन्त तक प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य किया गया। महिला पाठक एवं लेखकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। महिलाओं के विकास के लिए पेनी मैग्जींस या एमपैसिया पत्रिका का प्रकाशन किया जाने लगा।
- जेन ऑस्टिन, ब्राण्ट बहनें (ऐनी, एमिली और चार्लोट), जॉर्ज इलियट आदि महत्त्वपूर्ण लेखिकाएँ थीं। मुद्रण प्रणाली ने समाज के उपेक्षित सफेद कॉलर, मजदूर, दस्तकार और निम्नवर्गीय लोगों को शिक्षित किया।
- जर्मनी के ग्रिम बन्धु ने किसानों की लोककथाएँ 1812 ई. में प्रकाशित कीं। 1857 ई. में बाल पुस्तक छापने के लिए फ्रांस में प्रेस स्थापित की गई।
नई प्रौद्योगिकी का आविष्कार
- 19वीं शताब्दी के मध्य में न्यूयॉर्क के रिचर्ड. एम. हो ने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस का निर्माण किया, जिससे प्रति घण्टे 8,000 प्रतियाँ छापी जा सकती थीं।
- 19वीं सदी के अन्त में ऑफसेट प्रेस विकसित हुई, जो एकसाथ छः रंगों में छपाई कर सकती थी। 1920 के दशक में इंग्लैण्ड में लोकप्रिय किताबों को एक सस्ती श्रृंखला ‘शिलिंग श्रृंखला’ के अन्तर्गत छापा गया।
भारत में मुद्रण प्रणाली
प्राचीन पाण्डुलिपियाँ
- भारत में विभिन्न भाषाओं की हस्तलिखित पाण्डुलिपियों की समृद्ध परम्परा थी। यह ताड़ के पत्ते या हाथ से बने कागज पर बनाई जाती थी।
भारत में प्रेस का आगमन
- भारत में प्रेस का प्रयोग सबसे पहले 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने गोवा में किया था। जेसुइट पुजारियों ने कोंकणी भाषा में अनेक पुस्तकें छापीं। 1674 ई. में इसके द्वारा कोंकणी और कन्नड़ भाषा में 50 किताबें छापी थीं।
- कैथोलिक धर्म प्रचारकों ने 1579 ई. में कोचीन में पहली तमिल किताब और 1713 ई. में पहली मलयालम किताब छापी। डच प्रोटेस्टेण्ट धर्म प्रचारकों ने 32 किताबें तमिल भाषा में छापी थीं।
जेम्स ऑगस्टस हिक्की का योगदान
- ब्रिटिश सम्पादक जेम्स ऑगस्टस हिक्की द्वारा 1780 ई. में प्रथम साप्ताहिक पत्रिका बंगाल गजट का सम्पादन किया। यह पत्रिका औपनिवेशिक शासन से मुक्ति का अंग्रेजी उद्यम था ।
- इस पत्रिका में दासों की बिक्री तथा अंग्रेज अधिकारियों की बातचीत छापी जाती थी, जिससे क्रोधित होकर तत्कालीन गवर्नर जनरल द्वारा जेम्स हिक्की पर मुकदमा चलाया गया था।
- 18वीं सदी के अन्त तक ब्रिटिश व हिन्दुस्तानी पत्र-पत्रिकाएँ व अखबार छपने लगे। प्रथम भारतीय पत्रिका गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा प्रकाशित ‘बंगाल गजट’ थी।
प्रेस और धार्मिक सुधार
- 19वीं सदी में शुरुआत से ही धार्मिक मुद्दों को लेकर बहस होती रही। धर्म सुधारकों तथा हिन्दू रूढ़िवादियों के बीच सती प्रथा, एकेश्वरवाद, ब्राह्मण पुजारी वर्ग और मूर्ति पूजा जैसे मुद्दे को लेकर वाद-विवाद होने लगा।
- 1821 ई. में राजा राममोहन राय ने संवाद कौमुदी प्रकाशित किया, जिसके विरोध में रूढ़िवादियों ने अपने विचार को ‘समाचार चन्द्रिका’ में प्रकाशित किया।
- उत्तर भारत में 1867 ई. में स्थापित ‘देवबन्द सेमिनरी’ ने मुस्लिमों को इस्लामी सिद्धान्तों की उपयोगिता को समझने के लिए पत्र प्रकाशित किया।
- 1880 के दशक में अनेक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ, जिसमें नवल किशोर प्रेस, बम्बई की श्री वेंकटेश्वर प्रेस मुख्य थी।
प्रकाशन के नए स्वरूप का विकास
- 19वीं शताब्दी के अन्त में एक नई तरह की दृश्य संस्कृति का विकास हो रहा था। राजा रवि वर्मा जैसे चित्रकारों ने तस्वीरें बनाईं। इसके अतिरिक्त प्रिटिंग प्रेस के पूर्ण विकास से उपन्यास के अतिरिक्त अन्य साहित्यिक विधाएँ भी पाठकों की माँग बन गए थे।
- मुद्रण प्रणाली ने सामाजिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, जिसमें विशेष रूप से महिलाओं को शिक्षित करने से लेकर समाज में उच्च स्थान दिलाने का काम किया। मुद्रण संस्कृति में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाली प्रमुख महिलाएँ इस प्रकार हैं
- रसुन्दरी देवी पूर्वी बंगाल की एक रूढ़िवादी परिवार से सम्बन्धित थीं, जिन्होंने 1876 ई. में अपनी आत्मकथा ‘आमार जीबन’ लिखी ।
- कैलाशबाशिनी देवी ने 1860 के दशक में अपने अनुभवों के आधार पर लिखना शुरू किया; जैसे- सीखना, पढ़ना, अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाना आदि ।
- ताराबाई शिंदे और पण्डिता रमाबाई ने 1880 ई. के दशक में महाराष्ट्र में विधवाओं के दुःखी जीवन के विषय में लिखा ।
- बेगम रोकैया सखावत हुसैन ने वर्ष 1926 में धर्म के नाम पर महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने से रोकते हुए पुरुषों को अस्वीकार कर दिया।
- पंजाब के राम चड्ढा ने महिलाओं को आज्ञाकारी पत्नियाँ बनने की सीख देने के उद्देश्य से अपने विचार ‘स्त्री धर्म विचार’ में लिखे।
- महिलाओं के पढ़ाई के प्रति उत्सुकता बढ़ाने के लिए सस्ती पुस्तकों का प्रकाशन किया गया।
गरीबों के लिए मुद्रण प्रणाली का विकास
- 19वीं सदी के अन्त तक मद्रास में सस्ती किताबों का प्रकाशन किया जाने लगा, जिससे गरीब वर्ग के लोग आसानी से पढ़ सकें।
- 20वीं सदी के प्रारम्भ में शहरों, कस्बों और गाँवों में पुस्तकालय खोले जाने लगे।
मुद्रण एवं जातिवाद
- 19वीं सदी के अन्त तक जातिवाद से सम्बन्धित पुस्तिकाओं का प्रकाशन किया जाने लगा। ज्योतिबा फुले ने गुलामगिरी (1871) पुस्तक में जाति प्रथा के अत्याचार पर प्रकाश डाला।
- 18वीं सदी में महाराष्ट्र में डॉ. भीमराव अम्बेडकर और मद्रास में ई वी रामास्वामी नायकर ने अपनी पुस्तकों में जाति प्रथा का विरोध किया।
- कानपुर के मिल मजदूर काशीबाबा ने वर्ष 1938 में अपने लेख ‘छोटे और बड़े सवाल’ द्वारा जातीय शोषण का विरोध किया।
- वर्ष 1935 से 1955 के मध्य ‘सुदर्शन चक्र’ के नाम से लिखने वाले एक मजदूर ने ‘सच्ची कविताएँ’ नामक एक लेख के माध्यम से जातीय विरोध किया।
प्रेस पर प्रतिबन्ध
- कलकत्ता सर्वोच्च न्यायालय ने 1820 के दशक तक प्रेस की आजादी को नियन्त्रित करने वाले कानून पास किए।
- 1835 ई. में गवर्नर जनरल विलियम बैण्टिक को अंग्रेजी और स्थानीय समाचार-पत्रों के सम्पादकों द्वारा तत्काल याचिकाओं का सामना करना पड़ा। वह प्रेस कानून को संशोधित करने के लिए सहमत गए।
- उदारवादी औपनिवेशिक अफसर टॉमस मैकाले ने नए कानून भी बनाए, जो पूर्व की स्वतन्त्रता को बहाल करते थे।
1857 के विद्रोह के बाद प्रेस
- 1857 के विद्रोह के बाद प्रेस की स्वतन्त्रता के प्रति नए कानून का प्रावधान किया गया। आइरिश प्रेस कानून के आधार पर 1878 ई. में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट लागू किया गया। इससे सरकार को रिपोर्ट या संपादकीय को सेंसर करने का अधिकार मिला।
- दमन नीति के बावजूद राष्ट्रवादी आलोचना को खत्म करने की कोशिशों का विरोध जारी रहा।
- वर्ष 1907 में पंजाब के क्रान्तिकारियों को कालापानी भेजा गया, जिसके विषय में बाल गंगाधर तिलक ने ‘केसरी’ अखबार में अपना दुःख व्यक्त किया।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. मुद्रण प्रणाली की सबसे पहली तकनीक चीन में कब विकसित हुई थी ?
(a) 594 ई.
(b) 606 ई
(c) 609 ई
(d) 615 ई
उत्तर (a) 594 ई.
प्रश्न 2. ‘डायमण्ड सूत्र’ जापान की सबसे प्राचीन पुस्तक है, उसकी छपाई कब हुई थी?
(a) 770 ई.
(b) 810 ई.
(c) 841 ई.
(d) 868 ई.
उत्तर (d) 868 ई.
प्रश्न 3. जर्मन व्यापारी जोहान गुटेनबर्ग के पुत्र ने सबसे पहले कौन-सी पुस्तक छापी थी?
(a) कुरान
(b) बाइबिल
(c) पिच्चानवें स्थापनाएँ
(d) धार्मिक व्याख्यान
उत्तर (b) बाइबिल
प्रश्न 4. मुद्रण संस्कृति के आने से नए विचार का जन्म हुआ, वे विचार कौन से थे?
(a) धार्मिक
(b) रूढ़िवादी
(c) अराजद
(d) ये सभी
उत्तर (d) ये सभी
प्रश्न 5. ‘पेनी चैपबुक्स’ क्या थी?
(a) महँगी पुस्तक
(b) सस्ती पुस्तक
(c) मुद्रण प्रणाली
(d) लेखन कला
उत्तर (b) सस्ती पुस्तक
प्रश्न 6. कुछ इतिहासकारों के अनुसार, फ्रांसीसी क्रान्ति किसकी देन है?
(a) पुनर्जागरण
(b) तकनीक विकास
(c) मुद्रण प्रणाली
(d) राष्ट्रवाद
उत्तर (c) मुद्रण प्रणाली
प्रश्न 7. महिलाओं के विकास के लिए कौन-सी पत्रिका का प्रकाशन किया गया?
(a) पेनी मैग्जींस
(b) शिलिंग श्रृंखला
(c) डायमण्ड सूत्र
(d) धार्मिक व्याख्यान
उत्तर (a) पेनी मैग्जींस
प्रश्न 8. बाल पुस्तक छापने के लिए प्रेस की स्थापना कहाँ हुई?
(a) जर्मनी
(b) इटली
(c) फ्रांस
(d) इंग्लैण्ड
उत्तर (c) फ्रांस
प्रश्न 9. जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने भारत में प्रथम साप्ताहिक पत्रिका ‘बंगाल गजट’ का प्रकाशन कब किया था?
(a) 1768 ई.
(b) 1780 ई.
(c) 1788 ई.
(d) 1794 ई.
उत्तर (b) 1780 ई.
प्रश्न 10. ‘आमार जीवन’ किसकी रचना है?
(a) रशसुन्दरी देवी
(b) बेगम रोकैया
(c) ताराबाई शिन्दे
(d) कैलाशबासिनी देवी
उत्तर (a) रशसुन्दरी देवी
प्रश्न 11. कलकत्ता सर्वोच्च न्यायालय ने कब प्रेस की स्वतन्त्रता को नियन्त्रित करने का कानून पास किया था?
(a) 1795 ई.
(b) 1810 ई.
(c) 1820 ई.
(d) 1835 ई.
उत्तर (c) 1820 ई.
प्रश्न 12. वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट कब लागू किया गया था?
(a) 1878 ई.
(b) 1888 ई.
(c) 1892 ई.
(d) 1898 ई.
उत्तर (a) 1878 ई.
प्रश्न 13. मुद्रण की सबसे पहली तकनीक निम्न में से किस देश में विकसित नहीं हुई थी?
(a) चीन
(b) जापान
(c) कोरिया
(d) इण्डोनेशिया
उत्तर (a) चीन
प्रश्न 14. काठ की तख्ती वाली छपाई की तकनीकी प्रक्रिया चीन से इटली किस यात्री के माध्यम से पहुँची थी?
(a) किलागावा उतामारो
(b) मार्को पोलो
(c) वास्कोडिगामा
(d) जॉन गुटेनबर्ग
उत्तर (b) मार्को पोलो
प्रश्न 15. ‘वुडब्लॉक प्रिण्टिंग’ का प्रयोग निम्न में से किसके चित्रण में किया जाता था?
(a) कपड़ों को प्रिण्ट करने में
(b) ताश के पत्ते बनाने में
(c) धार्मिक चित्रों में
(d) ये सभी
उत्तर (d) ये सभी
सुमेलित करें
प्रश्न 16. सुमेलित कीजिए

कथन कूट
प्रश्न 17. निम्न में से कौन 19वीं सदी की भारतीय महिला लेखक हैं
1. रशसुन्दरी देवी
2. कैलाशबाशिनी देवी
3. ताराबाई शिन्दे
4. पण्डिता रमाबाई
कूट
(a) 1 और 2
(b) 2 और 3
(c) 3 और 4
(d) ये सभी
उत्तर (d) ये सभी
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
वर्णनात्मक प्रश्न- 1
प्रश्न 1. गुटेनबर्ग प्रेस क्या था? उल्लेख करें।
अथवा गुटेनबर्ग कौन था? मुद्रण के क्षेत्र में उसकी क्या भूमिका है?
उत्तर – गुटेनबर्ग जर्मनी का निवासी था। वह बचपन से ही तेल और जैतून पेरने की मशीनों को देखता आया था। उसे पत्थर पर पॉलिश करने, सुनारी और शीशे को इच्छित आकृतियों में गढ़ने में विशेषज्ञता प्राप्त थी। इसी विशेषज्ञता के आधार पर गुटेनबर्ग ने 1448 ई. में प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार किया। इस प्रेस में साँचे का उपयोग अक्षरों की धातुई आकृतियों को गाढ़ने में किया जाता था। इस प्रिंटिंग प्रेस से छपने वाली पहली पुस्तक ‘बाइबिल’ थी, जिसकी 180 प्रतियाँ छापने में लगभग तीन साल का समय लगा था। प्रारम्भ में इस प्रेस छपी किताबें हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के समरूप होती थी। धातुई अक्षर हाथ की सजावटी शैली के प्रतिरूप होते थे तथा किनारों पर फूल-पत्तियों का डिजाइन बनाया जाता था।
प्रश्न 2. छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार क्या थे? विवरण दें।
उत्तर – इरैस्मस लातिन का एक प्रसिद्ध विद्वान् तथा कैथोलिक धर्म सुधारक था। इन्होंने कैथोलिक धर्म के अत्याचारों की आलोचना की तथा लूथर से भिन्न होकर मुद्रण के सम्बन्ध में चिन्ता व्यक्त की। ये प्रिण्ट को लेकर बहुत आशंकित थे । इन्होंने इस सन्दर्भ में अपने विचार को 1508 ई. में एडेजेज में लिखा, जिसकी व्याख्या इस प्रकार है “किताबें भिनभिनाती मक्खियों की तरह हैं, दुनिया का कौन-सा कोना है, जहाँ ये नहीं पहुँच सकती, लेकिन इसका ज्यादा हिस्सा विद्वानों के लिए हानिकारक ही है। “
इस प्रकार इनके विचारों से ऐसा प्रतीत होता है कि छपाई की बढ़ती तेजी और पुस्तकों के प्रसार से इसके बुरे प्रभाव भी हो सकते हैं। लोग अच्छी पुस्तकों के अतिरिक्त व्यर्थ की किताबों से भ्रमित होंगे। अतः इरैस्मस का विचार भ्रमित करने वाली पुस्तकों से बचने के लिए प्रेरित करता है।
प्रश्न 3. वुडब्लॉक प्रिण्ट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 ई. के बाद आई। इसके कारण बताइए ।
उत्तर – वुडब्लॉक प्रिण्ट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 ई. के बाद आने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे
- 1295 ई. में मार्को पोलो नामक महान् खोजी यात्री चीन में लम्बे समय तक रहने के पश्चात् यूरोप (इटली) लौटा। ये चीन की मुद्रण प्रणाली व आविष्कारों का ज्ञान अपने साथ लेकर इटली लौटा था ।
- मार्को पोलो चीन की वुडब्लॉक (काठ की तख्ती) वाली छपाई का ज्ञान लेकर आए थे, जिसका प्रसार इटली के साथ पूरे यूरोप में हुआ, जिससे इटलीवासियों ने भी तख्ती की छपाई से किताबों का निर्माण शुरू किया।
- 1295 ई. से पूर्व यूरोप में कुलीन वर्ग पादरी और भिक्षु संघ पुस्तकों की छपाई को धर्म के विरुद्ध मानते थे ।
प्रश्न 4. मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और इसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की। उल्लेख करें।
उत्तर – मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था, जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे
- मुद्रण से धर्म सुधार आन्दोलन के नए विचारों के प्रसार में सहायता मिली।
- मुद्रण से लोगों के विचार में बौद्धिकता का विकास हुआ तथा बौद्धिक क्रान्तिका सूत्रपात हुआ।
- मुद्रण से रोमन कैथोलिक चर्च के रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं की आलोचना का अवसर मिला। लूथर द्वारा लिखी गई ‘पिच्चानवें स्थापनाएँ’ अत्यधिक संख्या में छापी तथा पढ़ी जाने लगीं।
प्रश्न 5. मार्टिन लूथर कौन था? उसका प्रमुख योगदान क्या था ?
उत्तर – मार्टिन लूथर अमेरिका के एक पादरी आन्दोलनकारी एवं समाज सुधारक थे। इन्होंने महात्मा गाँधी के अहिंसक आन्दोलन से प्रेरित होकर जिम क्रो कानूनों और भेदभाव के अन्य रूपों के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध का नेतृत्व किया। इन्होंने मतदान के अधिकार अलगाववाद, श्रम अधिकार और अन्य नागरिक अधिकारों में भाग लेकर नेतृत्व प्रदान किया था। किंग ने 1512 ई. में रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी ‘पिच्चानवें स्थापनाएँ पुस्तक लिखी और मुद्रण कला के प्रयोग से छपवाकर प्रकाशित किया।
प्रश्न 6. रोमन कैथोलिक चर्च ने 16वीं सदी के मध्य से प्रतिबन्धित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी थी। कारण बताएँ ।
उत्तर – रोमन कैथोलिक चर्च ने 16वीं सदी के मध्य से प्रतिबन्धित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी थी, जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे
- 16वीं सदी में यूरोप में बौद्धिक क्रान्ति का सूत्रपात हो गया था, जिससे मुद्रित साहित्य के द्वारा कम पढ़े-लिखे लोग भी धार्मिक विचारों के सम्पर्क में आने लगे थे।
- इटली के किसान मेनोकिया साहित्य को पढ़कर बाइबिल में वर्णित ईश्वर और सृष्टि के अर्थ को अलग विचारों के रूप में प्रचारित करने लगे थे।
- रोमन कैथोलिक चर्च के विचारों की आलोचना होनी शुरू हो गई थी, जिससे धर्म विरोधी प्रकाशकों पर प्रतिबन्ध लगाने के साथ ही उनकी सूची रखनी शुरू कर दी।
प्रश्न 7. महात्मा गाँधी ने कहा कि “स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।” व्याख्या करें। [NCERT]
उत्तर – महात्मा गाँधी ने स्वराज की लड़ाई को अभिव्यक्ति, प्रेस और सामूहिकता की लड़ाई कहा है, क्योंकि
- लोगों की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति, प्रेस की स्वतन्त्रता, सामूहिक जनमत को बलपूर्वक दबा रही थी।
- इनका मानना था कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, प्रेस की आजादी और संगठन के बिना कोई राष्ट्र नहीं बन सकता और इनके अभाव से राष्ट्रवाद की भावना का विकास नहीं हो सकता है।
- इनका कहना था कि स्वराज एक संकटग्रस्त आजादी की लड़ाई है, जिसमें वाणी की स्वतन्त्रता, प्रेस की आजादी और सामूहिकता की आजादी जनमत के बलशाली औजार हैं।
प्रश्न 8. वर्नाक्यूलर या देशी प्रेस एक्ट क्या थे? [NCERT]
उत्तर – ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में प्रेस की बढ़ती आजादी को प्रतिबन्धित करने के लिए विभिन्न प्रकार के बदलाव किए गए। इसी रूप में 1857 . के विद्रोह के पश्चात् प्रेस की स्वतन्त्रता के प्रति सरकार के व्यवहार में बदलाव आया। इसके अन्तर्गत कई तरह की माँगें उठने लगीं।
कुछ अंग्रेजों ने ‘देशी प्रेस’ को बन्द करने की माँग की। भाषायी समाचार-पत्र राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में अग्रसर हो रहे थे, जिसके फलस्वरूप 1878 ई. में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट लागू किया गया। यह कानून आइरिश कानून के आधार पर लागू किया गया।
इससे सरकार ने विभिन्न प्रदेशों में छपने वाले भाषायी अखबारों पर नियमित ध्यान रखना प्रारम्भ किया। इस प्रकार यह एक्ट औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध जन्में राष्ट्रवादी अखबार को नियन्त्रित करने का एक महत्त्वपूर्ण प्रयास था ।
प्रश्न 9. मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की? Imp – [2020, NCERT]
उत्तर – मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में निम्न प्रकार से सहायता की
- मुद्रण संस्कृति के विकास से समाज में धर्म सुधारकों द्वारा अन्धविश्वासों को दूर करने के लिए पत्र-पत्रिकाओं को लिखा जाने लगा। इससे लोगों में न केवल विचारों का प्रचार-प्रसार हुआ, बल्कि उनमें तर्क करने की भावना का उदय हुआ, जिससे राष्ट्रवाद के विकास का मार्ग प्रशस्त होना शुरू हो गया।
- मुद्रण ने समाज में मतान्तर पैदा करने के साथ ही उनमें एकता स्थापित करने में सहायता की। इसमें पत्रिका व अखबारों को दूर-दूर तक फैलाया जाता था, जिसमें सामाजिक मुद्दे, महिलाओं की दयनीय स्थिति के साथ जनता की खराब स्थिति पर टिप्पणी की जाती थी। इससे अखिल भारतीय पहचान उभरी और लोगों में एकता की भावना जगी ।
- कुछ पत्रिकाओं का मुद्रण स्थानीय स्तर पर भी किया जाता था, जिसमें लोगों की संस्कृतियों पर प्रकाश डाला जाता था और सरकार की नीतियों के विरुद्ध लिखा जाता था।
- मुद्रण के माध्यम से भारत के पिछड़ेपन के लिए ब्रिटिश सरकार को दोषी कहा जाने लगा। इसकी व्याख्या स्थानीय मुद्रण में की जाने लगी। लोगों में इससे उत्साह बढ़ा और राष्ट्रवाद का विकास व्यापक हुआ।
- महात्मा गाँधी ने तो वाणी की स्वतन्त्रता, प्रेस की आजादी और सामूहिकता की आजादी को जनमत का ताकतवर औजार बताया। इससे लोगों में प्रेरणा का संचार हुआ और राष्ट्रीय भावना और भी प्रगाढ़ हुई।
प्रश्न 10. मुद्रण क्रान्ति क्या है? इसका फ्रांस की क्रान्ति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर – मुद्रण का आशय ‘छुपाई से’ है, जो कागज, कपड़ा, टाट इत्यादि पर हो सकता है। इसने संवाद और वाद-विवाद की नई संस्कृति को जन्म दिया। मुद्रण क्रान्ति ने यूरोपीय लोगों की जिंदगियों को पूरी तरह बदल दिया । किताबों के उत्पादन से लोगों को सूचना और ज्ञान-विज्ञान से परिचय कराया। जिससे लोगों की चेतना जगी और फ्रांस सहित यूरोपीय देशों में जन जागृति का संचार हुआ, क्योंकि मुद्रण ने समस्त पुराने मूल्यों, संस्थाओं और नियमों पर आम जनता के बहस धार्मिक तथा राजनीतिक मुद्दों पर विचार-विमर्श हेतु मार्ग खोल दिया।
- मुद्रण संस्कृति के विकास से समाज में धर्म सुधारकों द्वारा अन्धविश्वासों को दूर करने के लिए पत्र-पत्रिकाओं को लिखा जाने लगा।
- इससे लोगों में न केवल विचारों का प्रचार-प्रसार हुआ, बल्कि उनमें तर्क करने की भावना का उदय हुआ, जिससे राष्ट्रवाद के विकास का मार्ग प्रशस्त होना शुरू हो गया।
प्रश्न 11. चीन में मुद्रण की प्रमुख विशेषताओं को बताइए | [NCERT ]
उत्तर – चीन में मुद्रण की विशेषताएँ निम्न हैं
- 17वीं शताब्दी तक चीन में शहरी संस्कृति के विकास की मुद्रण कला में विविधता आई। नए पाठक वर्ग को काल्पनिक किस्से, कविताएँ, आत्मकथाएँ, शास्त्रीय साहित्यिक कृतियों के संकलन और रूमानी नाटक पसन्द थे।
- 19वीं शताब्दी के अन्त में पश्चिमी शक्तियों द्वारा अपनी चौकियाँ स्थापित करने के साथ ही पश्चिमी मुद्रण तकनीक और मशीनी प्रेस का आयात भी हुआ।
- पश्चिमी शैली के स्कूलों की आवश्यकता को पूरा करने वाला शंघाई प्रिण्ट – संस्कृति का नया केन्द्र बन गया। हाथ की छपाई की जगह अब धीरे-धीरे मशीनी या यान्त्रिक छपाई ने ले ली।
प्रश्न 12. प्रारम्भिक छपी पुस्तकें पाण्डुलिपियों जैसी किस प्रकार लगती थीं? वर्णन कीजिए। [NCERT ]
अथवा तीन प्रकार बताइए, जिनमें प्रारम्भिक छपी पुस्तकें पाण्डुलिपियों जैसी दिखाई देती थीं।
उत्तर – प्रारम्भिक छपी पुस्तकें निम्न रूपों में पाण्डुलिपियों जैसी दिखाई देती थीं
- प्रारम्भिक छपी पुस्तकें तकनीकी स्तर पर छपी थीं, किन्तु वे पाण्डुलिपियों के समान ही थीं। इनमें बहुत कम भिन्नता थी ।
- मुद्रित पुस्तकें तथा पाण्डुलिपियाँ दोनों एक जैसी लगती थीं, क्योंकि दोनों में धातु के अक्षर की हस्तलिखित शैली के अलंकरणों की नकल होती थी।
- अमीरों के लिए छपी पुस्तकों में मुद्रित पन्नों पर सजावट के लिए खाली स्थान छोड़ा जाता था, जिसमें वे मनमोहक रंगों का प्रयोग कर सकते थे।
प्रश्न 13. भारत में मुद्रण युग से पहले की पाण्डुलिपियों की विशेषताएँ लिखिए। [NCERT ]
उत्तर – भारत में मुद्रण युग से पहले की पाण्डुलिपियों की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
- ये तास के पत्तों या हाथ से बने कागज पर नकल कर बनाई जाती थीं।
- इनमें पन्नों पर उचित रूप से तस्वीरें बनाई जाती थीं, जिससे लोग इन्हें देखकर आसानी से समझ सकते थे।
- लम्बे समय तक रखने हेतु इन्हें तख्तियों की जिल्द में या सिलकर बाँध दिया जाता था, जिससे लम्बे समय तक इनकी उपलब्धता बनी रह सके।
- पाण्डुलिपियाँ विशेषकर क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध होती थीं, जिससे क्षेत्र विशेष के लोगों को समझना आसान होता था ।
प्रश्न 14. प्रोटेस्टेण्ट धर्म सुधार की शुरुआत कैसे हुई ? इस विषय पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए | [NCERT]
उत्तर – धर्म सुधारक मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी ‘पिच्चानवें स्थापनाएँ’ नामक पुस्तक लिखी। लूथर के लेखों को बड़ी संख्या में पुनः प्रकाशित किया गया और व्यापक रूप से पढ़ा गया। इसके परिणामस्वरूप प्रोटेस्टेण्ट धर्म सुधार की शुरुआत हुई। छपे हुए लोकप्रिय साहित्य के बल पर कम शिक्षित लोग धर्म की अलग-अलग व्याख्याओं से परिचित हुए।
16वीं शताब्दी में मेनोकिया (इटली का एक किसान) ने किताबों को पढ़ना शुरू कर दिया था। इन किताबों के आधार पर उसने बाइबिल के नए अर्थ लगाने शुरू कर दिए और उसने ईश्वर एवं सृष्टि के विषय में ऐसे विचार बनाए कि कैथोलिक चर्च उससे क्रुद्ध हो गया। ऐसे धर्म विरोध विचारों को दबाने के लिए रोमन चर्च ने जब इन्क्वीजीशन द्रोहियों को दुरुस्त करने वाली संस्था को शुरू किया, तो मेनोकिया को मार दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप रोमन चर्च ने प्रकाशकों और पुस्तक विक्रेताओं पर अनेक तरह के नियन्त्रण लगाए । इरैस्मस, जो एक लातिन विद्वान् और कैथोलिक सुधारक था, ने मुद्रण के विषय में गहरी चिन्ता व्यक्त की ।
वर्णनात्मक प्रश्न-2
प्रश्न 1. 18वीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अन्त और ज्ञानोदय होगा? [NCERT]
उत्तर – 18वीं सदी के मध्य तक मुद्रण संस्कृति के विकास से लोगों में यह जागृति पैदा होने लगी थी कि किताबों व पत्रिकाओं से निरंकुशवाद का अन्त और ज्ञान का उदय होगा, जिसके निम्न कारण थे
- नए विचारों का उदय मुद्रण संस्कृति के आगमन से आम लोगों में तार्किक विचार पैदा होने लगे थे। श्रोता एवं पाठक वर्ग ऐसे विषयों में रुचियाँ लेने लगे थे, जो परम्परागत विषय बने हुए थे।
- ज्ञान का लिखित प्रसार मुद्रण संस्कृति के विकास से बातों को लिखा जाने लगा, जिससे किताबों को पढ़ने की एक नई संस्कृति का भी विकास हुआ।
- वैज्ञानिक एवं दार्शनिक रचनाएँ मुद्रण के आने से दार्शनिक विचार लोगों तक विभिन्न पत्रिकाओं के माध्यम से पहुँचने लगे। मानचित्र तथा वैज्ञानिक चित्र व्यापक रूप में छापे गए। टॉमस पेन, वॉल्टेयर, रूसो जैसे प्रसिद्ध विद्वानों के विचार लोगों तक पहुँचने लगे ।
- निरंकुशवाद की आलोचना मुद्रणकला के विकास से बौद्धिक चिन्तक प्राचीन परम्पराएँ, अन्धविश्वास और निरंकुशवाद की आलोचना करने लगे। लोगों का मानना था कि किताबें दुनिया बदल सकती हैं।
- ज्ञानोदय विचारकों के विचार मुद्रण के विकास के पश्चात् धर्म सुधारक मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक चर्च में व्याप्त कुरीतियों की आलोचना लेख के माध्यम से की।
- वाद-विवाद तथा संवाद की नई संस्कृति का विकास मुद्रण तकनीक ने वाद-विवाद की एक नई परिपाटी को जन्म दिया। इससे प्रारम्भिक रीति-रिवाजों पर लोगों की बहस एवं पुनर्मूल्यांकन का दौर शुरू हुआ। प्रथाओं को तर्क की कसौटी पर कसा जाने लगा ।
प्रश्न 2. 19वीं सदी में भारत में मुद्रण संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या अर्थ था? [NCERT]
(क) महिलाएँ
(ख) गरीब जनता
(ग) सुधारक
उत्तर
(क) महिलाएँ
19वीं सदी में भारत में मुद्रण के विकास से महिलाओं में चेतना की भावना जाग्रत हुई। मुद्रण संस्कृति ने महिलाओं में साक्षरता दर को बढ़ाया। 19वीं शताब्दी के अन्त में जब शहरों में स्कूल स्थापित होने लगे थे, तब महिलाओं को स्कूल भेजा जाने लगा। कई पत्रिकाओं ने महिलाओं को जगह दी और उन्होंने नारी शिक्षा की आवश्यकता को बार-बार रेखांकित किया। अनेक महिलाओं ने मुद्रण संस्कृति में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, उनमें से कुछ प्रमुख थीं
- रशसुन्दरी देवी पूर्वी बंगाल में एक बहुत ही रूढ़िवादी परिवार में एक युवा विवाहित लड़की रशसुन्दरी देवी ने रसोई की गोपनीयता में पढ़ना सीखा। उन्होंने 1876 ई. में अपनी आत्मकथा आमार जीवन लिखी।
- कैलाशबाशिनी देवी 1860 के दशक में कैलाशवासिनी देवी जैसी कुछ महिलाओं ने महिलाओं के अनुभवों पर लिखना शुरू किया; जैसे-कैसे वे घरों में बन्दी और अनपढ़ बनाकर रखी जाती थीं तथा उन्हें कैसे कठिन घरेलू कार्य करने के लिए मजबूर किया जाता था और उनके साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार किया जाता था।
- ताराबाई शिंदे और पण्डिता रमाबाई 1880 के दशक में महाराष्ट्र की ताराबाई शिंदे और पण्डिता रमाबाई जैसी महिला लेखकों ने ऊँची जाति की हिन्दू महिलाओं विशेष रूप से विधवाओं के दुःखी जीवन के विषय में लिखा था।
- बेगम रोकैया सखावत हुसैन वर्ष 1926 में प्रसिद्ध शिक्षाविद् और साहित्यिक आँकड़ा, बेगम रोकैया सखावत हुसैन ने धर्म के नाम पर महिलाओं को शिक्षा से रोकते हुए पुरुषों को अस्वीकार कर दिया।
(ख) गरीब जनता
19वीं सदी के अंत तक मद्रासी शहरों में किताबें सस्ती हो गई थीं, जो गरीब वर्ग के लोगों के लिए भी आसानी से उपलब्ध होने लगी थीं।
20वीं सदी के प्रारम्भ में बड़े शहरों या कस्बों तथा सम्पन्न गाँवों में सार्वजनिक पुस्तकालय खोले जाने लगे थे। ये पुस्तकालय प्रतिष्ठा के प्रतीक थे, जो लोगों की किताबों तक पहुँच सुनिश्चित कराते थे ।
(ग) सुधारक
19वीं सदी में मुद्रण संस्कृति के प्रसार ने सुधारकों के लिए महत्त्वपूर्ण साधन का कार्य किया, जिसे निम्न रूपों में देखा जा सकता है 19वीं सदी के अन्त तक जाति-भेद से सम्बन्धित पुस्तिकाओं का प्रकाशन भी किया जाने लगा।
प्रश्न 3. कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिन्तित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक-एक उदाहरण लेकर समझाइए। [NCERT]
उत्तर – कुछ लोग किताबों की सुलभता से चिन्तित थे, क्योंकि उनका मानना था न जाने आम जनता पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। उन्हें भय था कि यदि किताबों पर नियन्त्रण नहीं होगा, तो लोगों में अधार्मिक विचार पनपने लगेंगे और लोग भ्रमित हो जाएँगे। इसके साथ ही मूल्यवान साहित्य का मूल्य कम हो जाएगा। भारत और यूरोप के लोगों के इस चिन्तित विचार को इस प्रकार देखा जा सकता है।
- यूरोप में इरैस्मस के विचार इरैस्मस लातिन का एक प्रसिद्ध विद्वान् तथा कैथोलिक धर्म सुधारक था । इन्होंने कैथोलिक धर्म के अत्याचारों की आलोचना की तथा लूथर से भिन्न होकर मुद्रण के सम्बन्ध में चिन्ता व्यक्त की। ये प्रिण्ट को लेकर बहुत आशंकित थे ।
इन्होंने इस सन्दर्भ में अपने विचार को 1508 ई. में ‘एडेजेज’ में लिखा, जिसकी व्याख्या इस प्रकार है कि “किताबें भिनभिनाती मक्खियों की तरह हैं, दुनिया का कौन-सा कोना है, जहाँ ये नहीं पहुँच सकती, लेकिन इसका ज्यादा हिस्सा विद्वानों के लिए हानिकारक ही है।” इस प्रकार इनके विचारों से ऐसा. प्रतीत होता है कि छपाई की बढ़ती तेजी और पुस्तकों के प्रसार से इसके बुरे प्रभाव भी हो सकते हैं। लोग अच्छी पुस्तकों के अतिरिक्त व्यर्थ की किताबों से भ्रमित होंगे। अतः इरैस्मस के विचार भ्रमित करने वाली पुस्तकों से बचने के लिए प्रेरित करते हैं।
- भारत के सन्दर्भ में भारत में भी मुद्रण के विकास से नवीन विचारों को प्रोत्साहन मिला। प्राचीन रूढ़ियों तथा धार्मिक तथ्यों पर तार्किक बहस होने लगी। इसी के परिणामस्वरूप उत्तरी भारत के उलेमा वर्ग चिन्तित थे कि ब्रिटिश सरकार धर्मांतरण को बढ़ावा देने के लिए मुस्लिम कानूनों को न बदल दे। इस डर से उन्होंने धार्मिक अखबार निकाले तथा धर्मग्रन्थों को फारसी व उर्दू में अनुवाद कर प्रसारित करने लगे ।
प्रश्न 4. गुटेनबर्ग प्रेस के आविष्कार के बाद यूरोप में उत्पादित नई पुस्तकों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए । [NCERT]
उत्तर – गुटेनबर्ग प्रेस के आविष्कार के पश्चात् यूरोप में उत्पादित नवीन पुस्तकों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- सस्ती नवीन पुस्तकें प्रारम्भिक पुस्तकों की तुलना में बहुत सस्ती होती थीं, जिससे ये सभी के लिए सुलभ थीं।
- पाण्डुलिपियों मुद्रित पुस्तकें हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के समरूप थीं। इनमें धातुई अक्षर हाथ की सजावटी शैली के प्रतिरूप होते थे। इनमें किनारों पर फूल-पत्तियों का डिजाइन बनाया जाता था और चित्रों के लिए प्रायः पेण्ट किया जाता था।
- प्रिंटिंग इस समय प्रिण्टिंग में चित्रों के लिए पेण्ट होता था। इसके साथ ही • इसकी प्रमुख विशेषता यह थी कि खरीददार अपनी रुचि के अनुसार डिजाइन कर सकते थे।
- रंगीन चित्र इसमें चित्र प्रायः रंगीन होते थे। अमीरों के लिए निर्मित पुस्तकों में छपे पृष्ठों पर हाशिए की जगह बेल-बूटों के लिए खाली स्थान छोड़ दिया जाता था।
- मुद्रण क्रान्ति प्रिंटिंग प्रेसों की संख्या में बढ़ोतरी हुई, जिससे पुस्तकों के उत्पादन में वृद्धि हुई। हाथ की जगह छपाई यान्त्रिक मुद्रण से की गई। इसी के परिणामस्वरूप मुद्रण क्रान्ति सम्भव हो सकी।
प्रश्न 5. प्रिटिंग प्रेस के आविष्कार के पश्चात् प्रकाशित पुस्तकों से यूरोपीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा छापखाने (प्रिटिंग प्रेस) के आविष्कार से समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ? किन्हीं तीन बिन्दुओं पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – छापखाने का आविष्कार 16वीं सदी में पुर्तगालियों द्वारा किया गया। छापखाने या प्रिण्टिंग प्रेस एक ऐसी मशीन है, जिसके द्वारा बड़ी मात्रा में पुस्तकों, पत्रिकाओं और अन्य पाठ-आधारित वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। जोहान गुटेनबर्ग द्वारा किए गए प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार से राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक विचारों का त्वरित प्रचार-प्रसार होने लगा। प्रिंटिंग प्रेस से सम्पूर्ण विश्व में साक्षरता में वृद्धि ( 17वीं और 18वीं सदी में) देखी गई। नए पाठकों की रुचि को दृष्टिगत रखते हुए विभिन्न प्रकार का साहित्य छपने लगा। पुस्तकें गाँव-गाँव और शहरों में उपलब्ध होने लगीं, जिससे लोगों के अन्दर वैचारिक परिवर्तन देखने को मिला। प्रिटिंग प्रेस के आविष्कार से समाज पर निम्न प्रभाव पड़े
- 18वीं सदी के आरम्भ में पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ, जिनमें समसामयिक घटनाओं की खबर के साथ मनोरंजन से सम्बन्धित पाठ्य सामग्री भी दी जाने लगी। अखबार और पत्रों में युद्ध और व्यापार से सम्बन्धित जानकारी के अलावा दूर देशों की खबरें भी होती थी।
- प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक सभी ग्रन्थों को संकलित किया गया, जिसने समाज को एक नई दिशा प्रदान की। धीरे-धीरे इसे आधार बनाकर विज्ञान, तर्क और विवेकवाद को बढ़ावा दिया गया, जो यूरोपीय समाज के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं था।
- इसी प्रकार वैज्ञानिक और दार्शनिक भी साधारण जनता की पहुँच के बाहर नहीं रहे। प्राचीन व मध्यकालीन ग्रन्थ संकलित किए गए और नक्शों के साथ-साथ वैज्ञानिक खाके भी बड़ी मात्रा में छापे गए ।
प्रश्न 6. यूरोप में मुद्रण के आगमन की प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप रूप से स्पष्ट कीजिए |
उत्तर – यूरोप में मुद्रण के आगमन की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं
- सदियों तक चीन से रेशम और मसाले रेशम मार्ग से यूरोप आते रहे थे। 1295 ई. में जब मार्को पोलो इटली आया, तो वह चीन से काठ की तख्ती अर्थात् वुडब्लॉक वाली छपाई की तकनीकी की प्रक्रिया अपने साथ लाया।
- इटलीवासियों ने लकड़ी के ब्लॉकों वाली छपाई के साथ पुस्तकों का निर्माण शुरू किया। विलासी संस्करणों को महँगे वेलम या चर्म पत्र पर लिखा गया, जिसका अर्थ कुलीन वर्गों के लिए था।
- पुस्तक की माँग में वृद्धि के साथ, पुस्तक विक्रेताओं ने पांडुलिपियों के उत्पादन के लिए लेखकों को नियुक्त किया तथा विभिन्न स्थानों पर पुस्तक मेले की व्यवस्था की । पुस्तकों की बढ़ती माँगों के साथ, लकड़ी ब्लॉक प्रिंटिंग और अधिक लोकप्रिय हो गई।
- 15वीं शताब्दी की शुरुआत में वुडब्लॉक प्रिंटिंग का प्रयोग कपड़ों को प्रिंट करने, ताश के पत्ते बनाने और धार्मिक चित्रों के लिए किया गया। एक जर्मन व्यापारी जोहान गुटेनबर्ग के पुत्र ने पहली बार 1430 के दशक में छपाई प्रेस का विकास किया।
- जैतून प्रेस ही प्रिटिंग प्रेस का मॉडल या आदर्श बना और साँचे का उपयोग अक्षरों की धातुई आकृतियों को गाढ़ने के लिए किया गया। इसके द्वारा जो पहली किताब छापी गई, वह बाइबिल थी।
- इसके पश्चात् 1450 से 1550 ई. के मध्य यूरोप के अधिकांश देशों में प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की गई।
प्रश्न 7. जापान की मुद्रण संस्कृति की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ बताइए।
उत्तर – जापान की मुद्रण संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- बौद्ध प्रचारक द्वारा आरम्भ जापान में मुद्रण तकनीक का प्रारम्भ चीनी बौद्ध प्रचारकों द्वारा 768-770 ई. में हुआ। इन्होंने हस्त मुद्रण प्रौद्योगिकी को स्थापित किया था।
- प्राचीनतम पुस्तक जापान की प्राचीन पुस्तक का नाम ‘डायमण्ड सूत्र’ है। यह 868 ई. में छपी थी। इसमें पाठ के साथ-साथ अष्ठ पर चित्र भी छपे होते थे।
- सामग्री यहाँ की मुद्रण संस्कृति में चित्रों की छपाई के लिए ताश के पत्ते, कपड़े तथा कागज के नोटों का प्रयोग किया जाता था ।
- सस्ती पुस्तक जापान में मध्यकालीन कवियों और गद्यकारों की रचनाएँ नियमित रूप से की जाती थीं। ये पुस्तकें सस्ती दरों पर उपलब्ध होती थीं। सभी लोगों तक इनकी पहुँच सुलभ थी।
- नवीन चित्रकला शैली 1753 ई. में जापान के टोक्यो में जन्मे कितागावा उतामारो ने एक नवीन चित्रकला शैली का विकास किया, जिसमें आम शहरी जीवन का चित्रण किया गया था।
- दो (टोक्यो) में प्रिण्ट 18वीं सदी के अन्त में एदो (टोक्यो ) में एक शालीन संस्कृति देखने को मिलती है। इस समय हाथ से मुद्रित कई पुस्तकों; जैसे—संगीत, शिष्टाचार, रसोई, फूलसाजी आदि की रचना की गई। इसके साथ ही इस समय वेश्याओं तथा चायघरों में सभाओं को देख सकते हैं।
