UP Board Class 10 Social Science Chapter 5 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन (भूगोल)
UP Board Class 10 Social Science Chapter 5 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन (भूगोल)
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन (भूगोल)
फास्ट ट्रैक रिवीज़न
खनिज
चट्टानें खनिजों का संयोजन है। कुछ चट्टानें केवल एक ही खनिज से निर्मित होती हैं, परन्तु अधिकांश चट्टानें विभिन्न अनुपातों के अनेक खनिजों का योग होती हैं।
खनिजों की विशेषताएँ
- खनिज भू-गर्भ में असमान रूप से वितरित है। एक बार समाप्त होने के पश्चात् खनिजों का नवीकरण नहीं किया जा सकता, क्योंकि इनका निर्माण भू-गर्भिक प्रक्रियाओं द्वारा करोड़ों वर्षों में होता है।
- कुछ खनिजों की संरचना का निर्माण केवल एक हीरा ( रासायनिक तत्त्व) से होता है। यह सबसे कठोर खनिज है, परन्तु अधिकतर खनिज एक से अधिक रासायनिक तत्त्वों से मिलकर बनते हैं।
- चट्टानों के कारण ही खनिजों में विविध रंग, कठोरता, चमक, घनत्व तथा विविध क्रिस्टल पाए जाते हैं।
प्रमुख खनिज
विभिन्न प्रकार की चट्टानों में पाए जाने वाले विभिन्न खनिज निम्नलिखित हैं
- आग्नेय चट्टानों में सोना, चाँदी, ताँबा, जस्ता, सीसा, मैंगनीज, मैग्नेटाइट, डोलोराइट, ग्रेनाइट, ग्रैबो, अभ्रक, रेडियम, क्रोमाइट, गंधक इत्यादि पाए जाते हैं।
- अवसादी चट्टानों में कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, भवन निर्माण के पत्थर, फॉस्फेट, पोटाश, नमक इत्यादि पाए जाते हैं।
- कायान्तरित चट्टानों में मैंगनीज, लोहा, ग्रेफाइट, हीरा, संगमरमर इत्यादि पाए जाते हैं।
खनिज का दैनिक जीवन में उपयोग
- दैनिक जीवन में उपयोग की जाने वाली वस्तुएँ खनिज निर्मित होती हैं।
- उदाहरण के लिए, टूथपेस्ट में सिलिका, चूना पत्थर, फॉस्फेट जैसे खनिजों का प्रयोग किया जाता है। हमारे शरीर के लिए खनिज महत्त्वपूर्ण व आवश्यक हैं।
खनिजों की उपलब्धता
- खनिज प्रायः अयस्कों के रूप में पाए जाते हैं।
- खनिज आग्नेय और कायान्तरित चट्टानों की दरारों, जोड़ों व भ्रंशों में मिलते हैं।
- कुछ खनिज अवसादी चट्टानों की परतों या संस्तरों में पाए जाते हैं। कोयला, लौह-अयस्क, जिप्सम, पोटाश, नमक व सोडियम जैसे खनिज भी अवसादी चट्टानों में पाए जाते हैं।
- कुछ खनिजों का निर्माण धरातलीय चट्टानों के अपघटन से होता है। उदाहरण-बॉक्साइट का निर्माण ।
- कुछ खनिज पहाड़ियों के आधार तथा घाटी तल के रेत में, जलोढ़ जमाव के रूप में पाए जाते हैं। इन खनिजों में सोना, चाँदी, टिन व प्लेटिनम प्रमुख हैं।
- महासागरीय जल में खनिज विशाल मात्रा में पाए जाते हैं।
उदाहरण – साधारण नमक, मैग्नीशियम और ब्रोमीन।
भारत में खनिजों का वितरण
- प्रायद्वीपीय चट्टानों में कोयला, धात्विक खनिज, अभ्रक व अन्य अधात्विक खनिजों के अधिकतर भण्डार संचित हैं।
- गुजरात में अवसादी शैल तथा असम में पेट्रोलियम के निक्षेप पाए जाते हैं।
- राजस्थान में अनेक लौह खनिज प्रायद्वीपीय शैल क्रम के साथ पाए जाते हैं।
उत्तरी भारत के विशाल जलोढ़ मैदान में खनिज की न्यूनता अथवा अभाव पाया जाता है। जोवई और चेरापूँजी की कोयला खदानों में खनन गतिविधियों में परिवार के सदस्य मुख्य रूप से सक्रिय होते हैं। यहाँ के कार्य एक लम्बी संकीर्ण सुरंग में किए जाते हैं, जिसे रैट हॉल खनन कहा जाता है।
खनिजों का वर्गीकरण
धात्विक खनिज
वे खनिज, जिनमें लौह के अंश पाए जाते हैं, धात्विक खनिज कहलाते हैं; जैसे- सोना, चाँदी, टंगस्टन आदि। इनके दो प्रकार होते हैं
(i) लौह खनिज एवं लौह अयस्क
- लौह खनिजों को लौह-अयस्क एवं मैंगनीज में विभाजित किया जाता है।
- भारत में उच्च कोटि के लौह-अयस्क भण्डार हैं।
- सर्वोत्तम प्रकार का लौह-अयस्क मैग्नेटाइट है, जिसमें 70% लोहांश पाया जाता है। इसमें सर्वश्रेष्ठ चुम्बकीय गुण होते हैं, जो विद्युत उद्योगों में विशेष उपयोगी होते हैं।
- हेमेटाइट में लोहांश की मात्रा 50-60% पाई जाती है।
भारत में लौह-अयस्क के प्रमुख क्षेत्र / पेटियाँ
- ओडिशा-झारखण्ड पेटी ओडिशा से उच्च कोटि का हेमेटाइट लौह-अयस्क निकाला जाता है।
- दुर्ग- बस्तर – चन्द्रपुर पेटी इसमें इस्पात बनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ भौतिक गुण विद्यमान हैं।
- बेल्लारी-चित्रदुर्ग, चिक्कमंगलुरु-तुमकुरु पेटी कुद्रेमुख की चट्टानें संसार के सबसे बड़े निक्षेपों में से एक हैं।
- महाराष्ट्र-गोवा पेटी यहाँ के लौह-अयस्क की गुणवत्ता निम्न कोटि की होती है।
(ii) अलौह खनिज
- ऐसे खनिज, जिनमें लौह तत्त्व नहीं पाए जाते हैं, अलौह खनिज कहलाते हैं। उदाहरण- ताँबा, बॉक्साइट, सीसा और सोना ।
- अलौह खनिजों का उपयोग धातु शोधन, इंजीनियरिंग तथा विद्युत उद्योगों में होता है।
ताँबा
- इसका उपयोग बिजली के तार बनाने, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं रसायन उद्योग में किया जाता है।
- ताँबा अपने उत्कृष्ट विद्युत चालकता के गुण के कारण एक महत्त्वपूर्ण खनिज है।
- मध्य प्रदेश का बालाघाट, झारखण्ड का सिंहभूम और राजस्थान का खेतड़ी इसके उत्पादक क्षेत्र हैं।
बॉक्साइट
- बॉक्साइट निक्षेपों की रचना एल्युमीनियम सिलिकेटों से समृद्ध व्यापक भिन्नता वाली चट्टानों के विघटन से होती है।
- एल्युमीनियम अपनी मजबूती और कम भार के लिए जाना जाता है।
- एल्युमीनियम का उपयोग बर्तन, बिजली के सामान आदि के निर्माण में व्यापक रूप से किया जाता है।
- भारत में बॉक्साइट मुख्यत: अमरकंटक पठार, मैकाले की पहाड़ियाँ तथा बिलासपुर-कटनी के पठारी प्रदेश में पाया जाता है।
- भारत में ओडिशा बॉक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।
अधात्विक खनिज
- इसकी मुख्य विशेषता यह है कि इसके गलने के पश्चात् किसी नए उत्पाद का निर्माण नहीं होता है। उदाहरण – अभ्रक और चूना पत्थर ।
- ये सामान्यतः परतदार चट्टानों से निर्मित होता है; जैसे-ग्रेनाइट, अभ्रक।
अभ्रक
- इसका विद्युत व इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में अधिक उपयोग होता है।
- अभ्रक प्लेटों अथवा पत्रण क्रम के रूप में पाया जाता है, जिसे चादरों के रूप में आसानी से विभाजित किया जा सकता है।
- अभ्रक मुख्यतया काला, हरा, लाल, पीला, भूरा तथा अपारदर्शी होता है।
- छोटानागपुर पठार का उत्तरी पठारी किनारा, बिहार व झारखण्ड की कोडरमा-गया-हजारीबाग की पेटी, राजस्थान में अजमेर और आन्ध्र प्रदेश में नेल्लोर अभ्रक के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।
चूना-पत्थर
- चूना पत्थर अधिकांश अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। यह कैल्शियम कार्बोनेट तथा मैग्नीशियम कार्बोनेट से बनी चट्टानों में पाया जाता है।
- यह सीमेण्ट उद्योग का आधारभूत कच्चा माल होता है।
- यह कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश में मुख्य रूप से पाया जाता है।
खनन के खतरे
इसे निम्नलिखित कारणों से एक घातक उपयोग माना जाता है
- खदानों के अन्दर सूर्य के प्रकाश की अनुपस्थिति के कारण कार्य करना मुश्किल हो जाता है।
- जल भराव और छतों के गिरने की समस्या के कारण खदानों में जान जाने की सम्भावना बनी रहती है।
- खदानों से निकलने वाले गारे से श्रमिकों में श्वास व फेफड़े सम्बन्धी रोग की समस्या बढ़ जाती है।
खनिजों का संरक्षण
- खनिज संसाधन सीमित और गैर-नवीकरणीय है, इसलिए हमें इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है।
- खनिज संसाधनों को सुनियोजित एवं सतत् पोषणीय ढंग से प्रयोग करके संरक्षित कर सकते हैं। संसाधनों की उपलब्धता के लिए धातुओं के पुनर्चक्रण, व्यर्थ धातुओं के प्रयोग तथा अन्य प्रतिस्थापन उपायों पर बल देना चाहिए।
ऊर्जा संसाधन
- कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम जैसे खनिज ईंधनों से ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है।
- ऊर्जा संसाधनों को पारम्परिक और गैर-पारम्परिक स्रोतों में वर्गीकृत किया जाता है।
ऊर्जा के परम्परागत स्रोत
- ऊर्जा के परम्परागत साधन लकड़ी, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत आदि हैं। इनके पुनःनिर्माण में हजारों वर्ष लग जाते हैं।
कोयला
- कोयला भारी उद्योगों और ताप विद्युत संयन्त्रों के लिए कच्चा माल है।
- सम्पीडन की मात्रा, गहराई और दबने के समय के आधार पर कोयला अनेक रूपों में पाया जाता है, जो निम्नलिखित हैं
- पीट कोयला इसमें कम कार्बन, कम ताप तथा उच्च मात्रा में नमी पाई जाती है।
- लिग्नाइट कोयला यह कोयला निम्न कोटि का भूरा एवं मुलायम होता है, जिसमें नमी की मात्रा बहुत अधिक होती है।
- बिटुमिनस कोयला इसका निर्माण गहराई में दबने तथा अधिक तापमान से प्रभावित होने से होता है।
- एंथ्रेसाइट कोयला यह उच्च कोटि का कोयला है, जिसमें कठोरता पाई जाती है।
भारत में कोयले का वितरण
भारत में कोयला निम्न दो मुख्य भू-गर्भिक युगों के शैल क्रम में पाया जाता है
- गोण्डवाना कोयला इसका निर्माण लगभग 200 लाख वर्ष पूर्व हुआ था। गोण्डवाना कोयले के प्रमुख संसाधन दामोदर घाटी में स्थित हैं। झरिया (झारखण्ड), रानीगंज (पश्चिम बंगाल) और बोकारो झारखण्ड इस क्षेत्र की प्रमुख कोयला खदानें हैं।
- टर्शियरी कोयला इसका निर्माण लगभग 55 लाख वर्ष पहले हुआ था। यह कोयला उत्तर-पूर्वी राज्यों – मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश व नागालैण्ड में पाया जाता है। झारखण्ड राज्य में भारत के कोयले का सर्वाधिक भण्डार है।
पेट्रोलियम
- पेट्रोलियम को खनिज तेल व तरल सोना भी कहा जाता है।
- भारत का पहला खनिज तेल क्षेत्र 1867 ई. में डिग्बोई (असम) में खोजा गया था। यह मुख्यतः ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
- पेट्रोलियम रिफाइनरी से वस्त्र, उर्वरक और रसायन उद्योग के लिए कच्चा माल और लुब्रिकेण्ट प्राप्त किए जाते हैं।
भारत में पेट्रोलियम की उपस्थिति
- भारत में कुल पेट्रोलियम का लगभग 63% भाग मुम्बई हाई से, 18% भाग गुजरात से और 16% भाग असम से प्राप्त किया जाता है।
- अंकलेश्वर गुजरात का सबसे महत्त्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र है और असम भारत का सबसे पुराना तेल उत्पादक राज्य है।
- प्रमुख उत्पादक क्षेत्र-डिग्बोई, नहरकटिया व मोरन-हुगरीजन ।
प्राकृतिक गैस
- प्राकृतिक गैस एक महत्त्वपूर्ण स्वच्छ ऊर्जा संसाधन है।
- यह जलने पर कम कार्बन और कम प्रदूषण उत्पन्न करती है।
- पेट्रोलियम उद्योगों, खाना पकाने एवं ऑटोमोबाइल के लिए उपयोगी है।
- ऊर्जा और उर्वरक उद्योग प्राकृतिक गैस के प्रमुख प्रयोक्ता हैं।
- गाड़ियों में इसका उपयोग सम्पीड़ित प्राकृतिक गैस (Compressed Natural Gas, CNG) के रूप में हो रहा है, जो बहुत लोकप्रिय है।
- भारत में वर्तमान में कृष्णा-गोदावरी नदी बेसिन में प्राकृतिक गैस के विशाल भण्डार खोजे गए हैं।
विद्युत
भारत में विद्युत दो प्रकार से उत्पन्न की जाती है
- परम्परागत रूप से जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि) के जलने से विद्युत (तापीय ऊर्जा) का उत्पादन होता है। भारत में 310 से अधिक तापीय ऊर्जा संयन्त्र हैं।
- जल-विद्युत के सहयोग से गैर-परम्परागत तरीकों द्वारा बिजली का उत्पादन किया जाता है। भाखड़ा नांगल परियोजना, दामोदर घाटी परियोजना व कोयला जल-विद्युत परियोजना आदि विद्युत उत्पन्न करती है।
ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोत
- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोगैस, भू-तापीय ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधन हैं। ये अपनी प्रकृति में अटूट और नवीकरणीय संसाधन हैं।
परमाणु अथवा आण्विक ऊर्जा
- यूरेनियम एवं थोरियम (खनिज) का प्रयोग परमाणु अथवा आण्विक ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है।
- ये झारखण्ड और राजस्थान की अरावली पहाड़ियों में पाए जाते हैं।
- केरल में मिलने वाली मोनाजाइट बालू में थोरियम भारी मात्रा में पाया जाता है।
सौर ऊर्जा
- भारत एक उष्णकटिबन्धीय देश है। इस कारण यहाँ सौर ऊर्जा की सम्भावना अत्यधिक होती है।
- इसका प्रयोग अनेक कार्यों में किया जाता है; जैसे- फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी के द्वारा सूर्य के प्रकाश को सीधे विद्युत में परिवर्तित किया जाता है।
- भारत का सबसे बड़ा सौर पॉवर प्लाण्ट राजस्थान में माधोपुर के निकट भुज में स्थित है।
पवन ऊर्जा
- इसका उपयोग बिजली उत्पादन हेतु भारी पवन चक्कियों के संचालन के लिए किया जाता है।
- भारत में पवन ऊर्जा फार्म की विशालतम पेटी तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरई तक अवस्थित है।
- पवन ऊर्जा के क्षेत्र नागरकोइल, जैसलमेर, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र तथा लक्षद्वीप हैं।
बायोगैस
- बायोगैस ग्रामीण क्षेत्रों में झाड़ियों, कृषि अपशिष्ट, पशुओं और मानव के घरेलू उपयोग से उत्पन्न अवशिष्ट से उत्पन्न की जाती है।
ज्वारीय ऊर्जा
- महासागरीय तरंगों का उपयोग भारी मात्रा में विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है।
- भारत में ज्वारीय ऊर्जा उत्पन्न करने की आदर्श दशाएँ खम्भात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी तथा पश्चिमी तट पर गुजरात में और पश्चिम बंगाल में गंगा के डेल्टाई प्रदेश में उपस्थित है।
भू-तापीय ऊर्जा
- पृथ्वी के आन्तरिक भागों से ताप का उपयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत ऊर्जा को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं।
- जहाँ भू-तापीय प्रवणता अधिक होती है, उन क्षेत्रों का तापमान भी अधिक पाया जाता है। भारत के दो स्थानों पर प्रायोगिक रूप से इस प्रकार की परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं; जैसे- लद्दाख में पूगा घाटी और हिमाचल प्रदेश में मणिकरण के निकट पार्वती घाटी।
ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण
- विकास के लिए ऊर्जा संरक्षण को प्रोत्साहन देना अत्यन्त आवश्यक है।
- ऊर्जा संरक्षण के लिए हमें व्यक्तिगत वाहन की अपेक्षा सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था, बिजली उपकरणों को प्रयोग से पूर्व बन्द रखना, ऊर्जा बचत नियुक्तियों और गैर-परम्परागत स्रोतों को बढ़ावा देने जैसे महत्त्वपूर्ण व्यवहार को अपने अन्दर लाना चाहिए। अन्ततः ऊर्जा बचत ही ऊर्जा उत्पादन है।
- सतत् विकास के लिए हमें नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों के प्रयोग के साथ-साथ ऊर्जा का अपव्यय रोककर इसके संरक्षण की आवश्यकता है।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्न में से धात्विक खनिज है
(a) ताँबा
(b) अभ्रक
(c) हीरा
(d) चूना-पत्थर
उत्तर (a) ताँबा
प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन-सा खनिज अधात्विक है?
(a) मैंगनीज
(b) अभ्रक
(c) बॉक्साइट
(d) जस्ता
उत्तर (b) अभ्रक
प्रश्न 3. सर्वाधिक उपयुक्तता की दृष्टि से किस क्षेत्र में लौह-इस्पात उद्योग स्थापित करना चाहिए?
(a) आन्ध्र – तेलंगाना
(b) झारखण्ड – ओडिशा
(c) मध्य प्रदेश – उत्तर प्रदेश
(d) हरियाणा-राजस्थान
उत्तर (b) झारखण्ड – ओडिशा
प्रश्न 4. ताँबे का सर्वाधिक उत्पादन करने वाला राज्य है
(a) उत्तराखण्ड
(b) राजस्थान
(c) मध्य प्रदेश
(d) उत्तर प्रदेश
उत्तर (c) मध्य प्रदेश
प्रश्न 5. बॉक्साइट अयस्क है
(a) सीसे का
(b) ताँबे का
(c) जस्ते का
(d) एल्युमीनियम का
उत्तर (d) एल्युमीनियम का
प्रश्न 6. झारखण्ड की कोडरमा खान सम्बन्धित है
(a) लौह-अयस्क से
(b) ताँबे से
(c) अभ्रक से
(d) बॉक्साइट से
उत्तर (c) अभ्रक से
प्रश्न 7. भारत में अभ्रक उत्पादन में किस राज्य का प्रथम स्थान है?
(a) बिहार
(b) झारखण्ड
(c) आन्ध्र प्रदेश
(d) मध्य प्रदेश
उत्तर (c) आन्ध्र प्रदेश
प्रश्न 8. कोलार सम्बन्धित है
(a) कोयले से
(b) सोने से
(c) अभ्रक से
(d) मैंगनीज से
उत्तर (b) सोने से
प्रश्न 9. निम्नलिखित में से कौन-सा खनिज अपक्षयित पदार्थ के अवशिष्ट भार को त्यागता हुआ चट्टानों के अपघटन से बनता है?
(a) कोयला
(b) बॉक्साइट
(c) सोना
(d) जस्ता
उत्तर (a) कोयला
प्रश्न 10. ‘मुम्बई हाई’ प्रसिद्ध है
(a) पेट्रोलियम के लिए
(b) ताँबे के लिए
(c) सौर ऊर्जा के लिए
(d) कोयले के लिए
उत्तर (a) पेट्रोलियम के लिए
प्रश्न 11. कोरबा प्रसिद्ध है
(a) प्राकृतिक गैस के लिए
(b) कोयले के लिए
(c) सौर ऊर्जा के लिए
(d) बॉक्साइट के लिए
उत्तर (b) कोयला के लिए
प्रश्न 12. हेमेटाइट का सम्बन्ध किस खनिज से है ?
(a) ताँबा
(b) बॉक्साइट
(c) सोना
(d) लौह-अयस्क
उत्तर (d) लौह-अयस्क
प्रश्न 13. एन्थ्रेसाइट का सम्बन्ध किस खनिज से है?
(a) ताँबा
(b) सोना
(c) बॉक्साइट
(d) कोयला
उत्तर (d) कोयला
प्रश्न 14. निम्नलिखित में से कौन-सा खनिज आधारभूत है?
(a) मैगनीज
(b) अभ्रक
(c) लौह-अयस्क
(d) ताँबा
उत्तर (c) लौह-अयस्क
प्रश्न 15. निम्नलिखित में से इस्पात बनाने में किस खनिज का प्रयोग किया जाता है?
(a) अभ्रक
(b) मैगनीज
(c) ताँबा
(d) बॉक्साइट
उत्तर (c) ताँबा
प्रश्न 16. लौह-अयस्क किस प्रकार का संसाधन है?
(a) नवीकरण योग्य
(b) प्रवाह
(c) जैव
(d) अनवीकरण योग्य
उत्तर (d) अनवीकरण योग्य
प्रश्न 17. निम्नलिखित में से कौन-सा खनिज धात्विक है ?
(a) अभ्रक
(b) कोयला
(c) लौह-अयस्क
(d) चूना-पत्थर
उत्तर (c) लौह-अयस्क
प्रश्न 18. भारत में पवन ऊर्जा का विशाल फार्म कहाँ स्थित हैं?
(a) तमिलनाडु
(b) उत्तराखण्ड
(c) हिमाचल प्रदेश
(d) जम्मू और कश्मीर
उत्तर (a) तमिलनाडु
प्रश्न 19. निम्नलिखित चट्टानों में से किस चट्टान के स्तरों में खनिजों का निक्षेपण और संचयन होता है?
(a) तलछटी चट्टानें
(b) आग्नेय चट्टानें
(c) कायान्तरित चट्टानें
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (a) तलछटी चट्टानें
प्रश्न 20. ऊर्जा का परम्परागत स्रोत है?
(a) भू-तापीय ऊर्जा
(b) ज्वारीय ऊर्जा
(c) प्राकृतिक गैस
(d) बायो ऊर्जा
उत्तर (c) प्राकृतिक गैस
प्रश्न 21. मोनाजाइट रेत में निम्नलिखित में से कौन-सा खनिज पाया जाता है?
(a) खनिज तेल
(b) यूरेनियम
(c) थोरियम
(d) कोयला
उत्तर (c) थोरियम
प्रश्न 22. झरिया प्रसिद्ध है
(a) कोयले के लिए
(b) कच्चे लोहे के लिए
(c) ताँबे के लिए
(d) अभ्रक के लिए
उत्तर (a) कोयले के लिए
प्रश्न 23. आग्नेय चट्टानों में पाया जाने वाला खनिज है
(a) फॉस्फेट
(b) नमक (लवण)
(c) जस्ता
(d) ग्रेफाइट
उत्तर (c) जस्ता
प्रश्न 24. निम्न में गैर-परम्परागत ऊर्जा का साधन है
(a) खनिज तेल
(b) कोयला
(c) प्राकृतिक गैस
(d) सौर ऊर्जा
उत्तर (d) सौर ऊर्जा
प्रश्न 25. निम्नलिखित में से कौन-सा परम्परागत संसाधन है?
(a) सौर ऊर्जा
(b) ज्वारीय ऊर्जा
(c) कोयला
(d) पवन ऊर्जा
उत्तर (c) कोयला
सुमेलित करें
प्रश्न 26. सुमेलित कीजिए

प्रश्न 27. सुमेलित कीजिए

कथन कूट
प्रश्न 28. निम्न में से कौन-सा कथन सत्य है?
1. अधात्विक खनिज में चमक नहीं होती है।
2. खनिज एक प्राकृतिक अकार्बनिक पदार्थ होता है।
3. पीट कोयला में नमीं नहीं पाई जाती है।
उपरोक्त कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
कूट
(a) केवल 1
(b) 2 और 3
(c) 1 और 2
(d) ये सभी
उत्तर (c) 1 और 2
प्रश्न 29. निम्नलिखित में से कौन-सा धात्विक खनिज है?
1. लौह-अयस्क
2. मैंगनीज
3. ताँब
4. बॉक्साइट
कूट
(a) 1 और 4
(b) 1 और 2
(c) 1, 2 और 3
(d) ये सभी
उत्तर (d) ये सभी
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
वर्णनात्मक प्रश्न -1
प्रश्न 1. धात्विक एवं अधात्विक खनिज किसे कहते हैं ? ऐसे दो-दो खनिजों के नाम लिखिए।
उत्तर – धात्विक खनिज
वे खनिज जिनमें लोहे के अंश पाए जाते हैं, धात्विक खनिज कहलाते हैं। सोना, चाँदी, टंगस्टन धात्विक खनिज हैं। लौहांश पाए जाने के आधार पर इसे दो भागों में विभाजित किया जाता है
(i) लौह खनिज लौह अयस्क, मैंगनीज
(ii) अलौह खनिज ताँबा, बॉक्साइट, सीसा इत्यादि ।
अधात्विक खनिज
अधात्विक खनिज की मुख्य विशेषता यह है कि इसके गलने के पश्चात् किसी नए उत्पाद का निर्माण नहीं होता है। ये सामान्यतः परतदार चट्टानों से निर्मित होते हैं; जैसे—ग्रेनाइट, सेनस्टॉन, अभ्रक और चूना पत्थर ।
प्रश्न 2. हमें खनिजों के संरक्षण की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर – खनिज संरक्षण की आवश्यकता
खनिज संसाधनों के निर्माण में लाखों वर्ष लगते हैं, जबकि उनका उपभोग मात्र कुछ ही दिनों में किया जा सकता है। खनन को घातक उद्योग बनने से रोकने के लिए दृढ़ सुरक्षा नियम और पर्यावरणीय कानूनों का क्रियान्वयन अनिवार्य है। खनिज संसाधन सीमित और गैर- नवीकरणीय हैं, इसलिए हमें खनिज संसाधनों को संरक्षित करने की आवश्यकता है। साथ ही खाद्यानों के निरन्तर उत्खनन से खानों की गहराई बढ़ने लगती है, जिससे खनिजों की गुणवत्ता में भी कमी आने लगती है और उत्खनन की लागत बढ़ जाती है। इसलिए हमें खनिजों के संरक्षण की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 3. निम्नलिखित में अन्तर 30 शब्दों से अधिक न दें।
(क) लौह और अलौह खनिज
(ख) परम्परागत तथा गैर-परम्परागत ऊर्जा साधन
अथवा ऊर्जा के परम्परागत तथा गैर-परम्परागत तथा गैर-परम्परागत स्रोतों में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर –
(क) लौह खनिज और अलौह खनिज में निम्नलिखित अन्तर हैं
| लौह खनिज | अलौह खनिज |
| ह खनिज, जिसमें लोहे का अंश हो, लौह खनिज कहलाता है। | वह खनिज, जिसमें लोहे का अभाव होता है, इस श्रेणी में आता है। |
| लौह-अयस्क, मैंगनीज, निकेल व कोबाल्ट आदि लौह खनिज हैं। | ताँबा, सीसा, जस्ता व बॉक्साइट आदि अलौह खनिज हैं। |
| ये चुम्बकीय है, ये विद्युत के संवाहक है इनका वजन अधिक होता है। | ये अचुम्बकीय है, ये विद्युत के कुचालक है, इनका वजन कम होता है। |
(ख) ऊर्जा के परम्परागत और गैर-परम्परागत साधन में निम्नलिखित अन्तर हैं
| ऊर्जा के परम्परागत साधन | ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधन |
| ऊर्जा के परम्परागत साधनों में लकड़ी, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत आदि सम्मिलित हैं। | ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधनों में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोगैस भू-तापीय ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा आदि सम्मिलित हैं। |
| इनका भण्डार सीमित है। | इनके भण्डार का स्रोत सीमित नहीं है। |
| इन स्रोतों का उपयोग मनुष्य लम्बे समय से करता आ रहा है। |
इन स्रोतों का उपयोग परम्परागत ऊर्जा के विकल्प के रूप में होगा।
|
प्रश्न 4. ऊर्जा संसाधन से क्या आशय है? इन्हें कितने स्रोतों में वर्गीकृत किया जाता है?
अथवा ऊर्जा संसाधन से क्या तात्पर्य है ? भारत में किन्हीं दो ऊर्जा क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए ।
अथवा ऊर्जा संसाधन से आप क्या समझते हैं? किन्हीं दो पारम्परिक ऊर्जा संसाधनों के नाम बताइए ।
उत्तर – ऊर्जा संसाधन
जिन संसाधनों का उद्योगों को चलाने के लिए शक्ति के रूप में उपयोग किया जाता है, उन्हें ऊर्जा संसाधन कहते हैं। कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम जैसे खनिज ईंधन से ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है।
ऊर्जा संसाधनों का वर्गीकरण
ऊर्जा संसाधनों को पारम्परिक और गैर- पारम्परिक स्रोतों में वर्गीकृत किया जाता है, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है
- ऊर्जा के परम्परागत साधन इनमें लकड़ी, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत आदि सम्मिलित हैं। इनके पुनः निर्माण में हजारों वर्ष लग जाते हैं। अतः ये अपनी प्रकृति में सीमित और अनवीकरणीय होते हैं।
- ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधन इनमें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोगैस, भू-तापीय ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा आदि सम्मिलित हैं। ये स्वतन्त्र रूप में पाए जाते हैं। ये अपनी प्रकृति में अटूट और नवीकरणीय संसाधन हैं।
प्रश्न 5. ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण भारत में क्यों आवश्यक है ? कारण बताइए |
उत्तर – वर्तमान में उपयोग में लाए जाने वाले ऊर्जा या शक्ति के संसाधनों की मात्रा सीमित है। इस कारण इनका संरक्षण नितान्त आवश्यक है।
ऊर्जा संसाधन के संरक्षण के कारण
ऊर्जा के संसाधनों के संरक्षण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
- शक्ति के प्रमुख संसाधन प्राकृतिक हैं, जिनका निर्माण लाखों-करोड़ों वर्षों में हुआ है। अतः इनका पुनः निर्माण नहीं किया जा सकता।
- गैर-नवीकरणीय साधनों के उपयोग की प्रौद्योगिकी अभी इतनी विकसित नहीं है कि वे पारम्परिक साधनों का स्थान ले सकें। अतः पारम्परिक साधनों का संरक्षण आवश्यक है।
- देश की बहुमूल्य मुद्रा जीवाश्म ईंधन को आयात करने में व्यय हो रही है । अत: अर्थव्यवस्था के विकास के लिए इनका संरक्षण किया जाना चाहिए।
- अधिकांश पारम्परिक ऊर्जा के स्रोत प्रदूषणकारी हैं। अतः इनका सीमित उपयोग करना चाहिए ।
- शक्ति के संसाधन वर्तमान युग की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं में से एक हैं। अतः इनको संरक्षित करना चाहिए, ताकि किसी प्रकार के ऊर्जा संकट का सामना न करना पड़े।
प्रश्न 6. कोयले का संरक्षण क्यों आवश्यक है? तीन कारण बताइए।
उत्तर – कोयला संरक्षण के तीन कारण
कोयले का संरक्षण मानव जीवन हेतु अति आवश्यक है। इसके तीन कारण निम्नलिखित हैं
- कोयले का सीमित भण्डार होना कोयला जीवाश्म ईंधन का स्रोत है। यह ऊर्जा का अनवीकरणीय स्रोत है। इसका उपयोग मुख्य रूप से विद्युत उत्पादन एवं ईंधन के रूप में होता है।
कोयले का दोहन बहुत ही तेजी से हो रहा है, जिसके कारण इसके संचित भण्डार में कमी हो रही है। भविष्य की पीढ़ी की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए इसका संरक्षण आवश्यक है।
- उच्च गुणवत्ता के कोयले की कम मात्रा कोयला मुख्य रूप से लिग्नाइट, बिटुमिनस एवं एंथ्रेसाइट के रूप में पाया जाता है। भारत में कोयला ऊर्जा उत्पादन का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। एंथ्रेसाइट सर्वाधिक उच्च गुणवत्ता वाला कोयला है, जिसका भण्डार बहुत सीमित है। ऊर्जा उत्पादन के दृष्टिकोण से इसका संरक्षण आवश्यक है।
- कोयले के दोहन से प्रदूषण में वृद्धि ईंधन के रूप में कोयले का प्रयोग करने से यह प्रदूषण उत्पन्न करता है, जो प्रकृति के लिए हानिकारक है। ईंधन के रूप में, जो ईंधन प्रदूषण रहित हो (बायो गैस एवं एलपीजी) का उपयोग करना चाहिए। ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु, अन्य नवीकरणीय संसाधनों की तलाश करनी चाहिए तथा कोयले का भण्डार संरक्षित रखना चाहिए, क्योंकि कोयला ऊर्जा का एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है।
प्रश्न 7. ऊर्जा के परम्परागत स्रोत किसे कहते हैं? भारत में खनिज तेल के दो क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर – ऊर्जा के परम्परागत स्रोत से आशय
वे संसाधन, जिनका उपयोग मनुष्य प्राचीनकाल से करते आ रहा है तथा जो सीमित व समाप्त प्राय है, उन्हें ऊर्जा के परम्परागत स्रोत कहते हैं। ऊर्जा के परम्परागत स्रोत के रूप में लकड़ी, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत को शामिल किया जाता है। ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों को ऊर्जा उत्पादन का मूल स्रोत माना जाता है। इन स्रोतों को वर्तमान समय में पर्यावरण के अनुकूल नहीं माना जाता है।
भारत में खनिज तेल के क्षेत्र
बॉम्बे हाई एवं गुजरात का कुच्छ क्षेत्र भारत के दो प्रमुख खनिज तेल उत्पादक क्षेत्र हैं।
प्रश्न 8. भारत में खनिज तेल के वितरण एवं उपयोग का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – भारत में खनिज तेल का वितरण व उपयोग
भारत में खनिज तेल के वितरण के प्रमुख चार क्षेत्र हैं
- ब्रह्मपुत्र घाटी ब्रह्मपुत्र घाटी देश का सबसे पुराना तेल उत्पादक क्षेत्र है । यहाँ मुख्य तेल उत्पादक क्षेत्र डिब्रुगढ़ जिले में डिग्बोई तेल क्षेत्र, नहरकटिया, , मीरान – हुगरीजन, रुद्रसागर, शिवसागर, सुरमा घाटी आदि हैं।
- गुजरात तट यहाँ अंकलेश्वर, खम्भात – लुनेज क्षेत्र, अहमदाबाद – कलोल क्षेत्र प्रमुख खनिज तेल उत्पादक क्षेत्र हैं।
- पश्चिमी अपतटीय क्षेत्र इसके अन्तर्गत मुम्बई हाई, बेसिन क्षेत्र तथा अलियाबेट क्षेत्र प्रमुख खनिज तेल उत्पादक क्षेत्र हैं।
- पूर्वी तटीय क्षेत्र इसमें गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के डेल्टा क्षेत्र प्रमुख खनिज तेल उत्पादक क्षेत्र हैं।
खनिज तेल वर्तमान औद्योगिक युग की रीढ़ है। भोजन बनाने से लेकर परिवहन के लिए ईंधन तथा उद्योगों में मशीनों के लिए ईंधन खनिज तेल से ही प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 9. भारत में पाए जाने वाले लौह-अयस्क पर संक्षिप्त वर्णन कीजिए ।
उत्तर – भारत में लौह अयस्क के विपुल भण्डार विद्यमान हैं। लौह अयस्क को चार भागों में बाँटा गया है
- मैग्नेटाइट यह सर्वोत्तम प्रकार का लौह अयस्क है। इसमें 70% लोहांश पाया जाता है, इसमें सर्वश्रेष्ठ चुम्बकीय गुण होते हैं।
- हेमेटाइट यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक लौह अयस्क है, यह प्रायद्वीपीय भारत के धारवाड़ और कडप्पा श्रेणी की चट्टानों में पाया जाता है इसमें लोहांश 50 से 60% तक पाया जाता है।
- लिनोमाइट यह हल्का पीले रंग का लौह होता है, इसमें 40 से 60% तक लोहांश धातु होता है।
- सिडेराइट इसमें 40% से कम लोहांश होता है, इसमें कई अशुद्धियाँ विद्यमान रहती हैं।
प्रश्न 10. भारत में लौह-अयस्क के वितरण का उल्लेख कीजिए ।
अथवा भारत में लौह-अयस्क के उत्पादन पर संक्षेप में लिखिए ।
अथवा भारत में लौह अयस्क की किन्हीं तीन पेटियों के नाम लिखिए ।
उत्तर – भारत में लौह-अयस्क के प्रमुख क्षेत्रों का विवरण निम्नलिखित है
- ओडिशा-झारखण्ड पेटी ओडिशा के मयूरभंज व केंदुझार जिलों के बादाम पहाड़ से उच्च कोटि का हेमेटाइट लौह-अयस्क निकाला जाता है। इसी के पास झारखंड के सिंहभूम जिले में गुआ और नोआमुंडी से हेमेटाइट का खनन किया जाता है।
- दुर्ग – बस्तर – चंद्रपुर पेटी इस पेटी के अंतर्गत छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र राज्य के क्षेत्र आते हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में अवस्थित बैलाडीला पहाड़ी में उच्च किस्म का हेमेटाइट पाया जाता है, जिसमें उच्च गुणवत्ता के लौह के 14 भंडार मिलते हैं।
- बेल्लारी – चित्रदुर्ग, चिक्कमगलुरु-तुमकुरु पेटी कर्नाटक की इस पेटी में लौह-अयस्क विशाल मात्रा में संचित है। कर्नाटक में पश्चिमी घाट में अवस्थित कुद्रेमुख की खानें शत-प्रतिशत लौह-अयस्क की निर्यात इकाई हैं।
- महाराष्ट्र – गोवा पेटी यह महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले और गोवा में स्थित है। यहाँ के लौह-अयस्क की गुणवत्ता निम्न कोटि की होती है। इसका मार्मागाओ पत्तन से निर्यात किया जाता है।
प्रश्न 11. आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा एक आधारभूत आवश्यकता है। स्पष्ट करें।
उत्तर – ऊर्जा आधुनिक औद्योगिक अर्थव्यवस्था की आधारशिला है। ऊर्जा लगभग सभी मानवीय गतिविधियों के लिए आवश्यक घटक प्रदान करती है। यह खाना बनाने / अन्तरिक्ष/जल तापन, प्रकाश व्यवस्था, स्वास्थ्य, खाद्य उत्पादन और भण्डारण, शिक्षा, खनिज निष्कर्षण औद्योगिक उत्पादन में प्रयोग की जाती है। विश्व बैंक विकास संकेतकों का उपयोग करते हुए, यह दिखाया गया है कि ऊर्जा का उपयोग विकास के लगभग हर कल्पनीय पहलू से जुड़ा हुआ है। ऊर्जा के उपयोग में कुशलता बढ़ाकर इसके सम्पूर्ण सामाजिक उपयोग को कम किया जा सकता है। इससे आर्थिक लाभ में हिस्सेदारी के लिए समाज के निर्धन और वंचित वर्गों को सहायता मिलती है।
ऊर्जा का उपयोग उत्पादन और सेवाओं में वृद्धि के लिए किया जाता है। उद्योगों को उत्पादन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, परिवहन सेवाओं को भी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा की उपलब्धता से उत्पादन और सेवाओं की लागत कम होती है, जिससे आर्थिक विकास में वृद्धि होती है।
ऊर्जा का उपयोग जीवन स्तर में सुधार के लिए भी किया जाता है। ऊर्जा का उपयोग प्रकाश, गर्मी और अन्य सुविधाओं को प्रदान करने के लिए किया जाता है।
प्रश्न 12. अभ्रक की उपयोगिता की विवेचना कीजिए एवं भारत में इसके किन्हीं दो उत्पादक क्षेत्रों का वर्णन कीजिए ।
अथवा अभ्रक की उपयोगिता बताइए। भारत में इसके दो उत्पादक राज्य के नाम लिखिए ।
उत्तर – अभ्रक
यह एक जटिल सिलिकेट यौगिक है। इसमें पोटेशियम, सोडियम और लीथियम जैसे पदार्थ मिले होते हैं। आग्नेय चट्टान में प्राय: अभ्रक पाया जाता है। यह रंगरहित या हल्केपीले हरे या काले रंग का होता है। वायु तथा धूप आदि से प्रभावित होकर कभी-कभी सिलिकेट खनिज भी अभ्रक में बदल जाता है। यह अधातु खनिज है।
अभ्रक की उपयोगिता
अभ्रक की प्रमुख उपयोगिताएँ निम्नलिखित हैं
- उच्च गलनांक होने के कारण इसका उपयोग बहुत से उद्योगों में किया जाता है।
- वर्तमान में इसका उपयोग बिजली के उपकरणों में किया जाता है, क्योंकि यह ताप एवं विद्युत का कुचालक होता है ।
- मुख्य रूप से इसका उपयोग छोटे-छोटे डायनेमो, बिजली की मोटरों, बेतार के तार, नेत्ररक्षक चश्मा, मोटर, हवाई जहाज, तार एवं टेलीफोन, रेडियो, स्टोव तथा साज-श्रृंगार की सामग्री बनाने में किया जाता है।
- इसके अतिरिक्त कपड़ों, पंखों, खिलौनों, मिट्टी के बर्तनों में चमक देने आदि कार्यों के लिए भी अभ्रक का उपयोग किया जाता है।
अभ्रक के उत्पादक राज्य
भारत में अभ्रक का निक्षेप छोटानागपुर पठार के उत्तरी पठारी किनारों विशेषकर बिहार व झारखण्ड की कोडरमा-गया- हजारीबाग की पेटी में पाया जाता है। राजस्थान में अजमेर और आन्ध्र प्रदेश में नेल्लोर देश के प्रमुख अभ्रक उत्पादक क्षेत्र हैं।
वर्णनात्मक प्रश्न-2
प्रश्न 1. खनन का क्या अर्थ है ? भारत में खनन व्यवसाय की विशेषताएँ बताइए तथा इसके सुधार के तीन उपाय भी लिखिए ।
उत्तर – खनन का अर्थ
पृथ्वी की सतह से अथवा भू-गर्भ से चट्टानी पदार्थों को अधिक मानवोपयोगी तथा मूल्यवान बनाने के उद्देश्य से संसाधित करने के लिए खोदना या परत को हटाना खनन कहलाता है। चूँकि किसी भी देश के लिए औद्योगिक विकास का महत्त्वपूर्ण आधार खनिज होते हैं। अतः इस सन्दर्भ में खनन का अर्थ अत्यन्त ही व्यापक हो गया है। खनन के अन्तर्गत बालू की परत हटाने से लेकर भूमिगत सुरंगों की खुदाई, चट्टानों को बारूद से तोड़ना, समुद्र के तल खनिजों को प्राप्त करना जैसे कठिन कार्य शामिल होते हैं। अयस्कों का उत्खनन इसमें शामिल है।
खनन व्यवसाय की विशेषताएँ
भारत में खनन व्यवसाय की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
- भारत में सतही खनन किया जाता है, जिसे खुले गर्त वाली खान से उत्खनन करना भी कहते हैं।
- सतही खनन के अन्तर्गत खनन लागत अपेक्षाकृत कम होती है तथा खनिजों का उत्पादन भी शीघ्र एवं अधिक होता है।
- भारत के कुछ खनिज अयस्कों का भूगर्भिक खनन भी किया जाता है। यह खुले गर्त वाले खनन की तुलना में अधिक जोखिम भरा होता है।
- भारत में मुख्य रूप से खनिजों का संकेन्द्रण दुर्गम पहाड़ियों एवं हिमालय के पर्वतीय भागों में है, इसलिए उचित सर्वेक्षण नहीं हो पाया है।
खनन व्यवसाय में सुधार के उपाय
देश के खनन व्यवसाय में सुधार के लिए निम्नलिखित उपाय करने की आवश्यकता है
- राष्ट्रीयकरण राष्ट्रीय हित में भारत की सभी खदानों का राष्ट्रीयकरण होना चाहिए।
- आधुनिकीकरण खदानों के यन्त्रीकरण करने के सन्दर्भ में इनके आधुनिकीकरण करने की प्रक्रिया पर बल देना होगा, जिससे इन खदानों से खनिज संसाधनों का उचित दोहन किया जा सके।
- खनिजों की बर्बादी पर नियन्त्रण खनन समय खनिज पदार्थों की होने वाली बर्बादी की रोकथाम आवश्यक है, जिससे कि अधिक-से-अधिक खनिजों का उपयोग किया जा सके।
- वैज्ञानिक प्रबन्धन खनन कार्यों को सुनियोजित ढंग से सम्पादित करने के लिए यह आवश्यक है कि इनका वैज्ञानिक प्रबन्धन किया जाए।
- वैकल्पिक साधनों की खोज जिन बहुमूल्य खनिजों के भण्डार सीमित हैं, उनके वैकल्पिक साधनों की खोज की जानी चाहिए।
प्रश्न 2. भारत के कोयले के क्षेत्र, उत्पादन तथा उपयोगिता का वर्णन कीजिए |
अथवा भारत में कोयले के वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर – भारत में कोयला उत्पादन के निम्नलिखित दो प्रमुख क्षेत्र हैं
(i) गोण्डवाना कोयला क्षेत्र
भारत में इस क्षेत्र में 96% कोयला संचित है तथा कुल उत्पादन का 98% भाग इसी कोयला क्षेत्र से प्राप्त होता है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित कोयला क्षेत्र आते हैं
- झारखण्ड भारत में कुल कोयला उत्पादन का 36% उत्पादन झारखण्ड के कोयला क्षेत्रों से होता है। यहाँ झरिया, बोकारो, राजमहल, उत्तरी- दक्षिणी कर्णपुरा, डाल्टनगंज तथा गिरिडीह जैसी कोयले की खदानें हैं। झरिया यहाँ की सबसे बड़ी खान है, 436 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली है।
- छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश इन क्षेत्रों का कोयला उत्पादन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन दोनों राज्यों से संयुक्त रूप से कुल उत्पादन का 28% भाग प्राप्त होता है। पेंच घाटी, उमरिया, सोहागपुर, सिंगरौली, रामकोला, तातापानी, कोरबा तथा बिलासपुर इन राज्यों के प्रमुख कोयला क्षेत्र हैं।
- पश्चिम बंगाल यह क्षेत्र कुल कोयला उत्पादन का 13% भाग उत्पादित करने के लिए तीसरे स्थान पर है। रानीगंज यहाँ की प्रमुख कोयला खान है। यह खान 1,536 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली है।
- तेलंगाना एवं आन्ध्र प्रदेश (गोदावरी घाटी क्षेत्र ) यह कोयला क्षेत्र तेलंगाना तथा आन्ध्र प्रदेश राज्यों में फैला है। कुल कोयला उत्पादन में इसका चौथा स्थान है। यहाँ कुल कोयला उत्पादन का 10% कोयला उत्पादित किया जाता है । गोदावरी घाटी में सिगरेनी, तन्दूर तथा सस्ती प्रमुख खदानें हैं। आदिलाबाद, पश्चिमी गोदावरी, करीमनगर खम्भात एवं वारंगल प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र हैं।
- ओडिशा महानदी घाटी क्षेत्र इस कोयला क्षेत्र का विस्तार ओडिशा राज्य में है। दकोनाल, सुन्दरगढ़ तथा सम्भलपुर प्रमुख कोयला उत्पादक जिले हैं।
- सतपुड़ा कोयला क्षेत्र इसका विस्तार महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश राज्यों में है । नरसिंहपुर जिले में मोहपानी, कान्हा घाटी, पेंच घाटी तथा बैतूल जिले में पाथरखेड़ा उल्लेखनीय कोयला क्षेत्र हैं।
- महाराष्ट्र गोदावरी – वर्धा घाटी क्षेत्र इसके अन्तर्गत महाराष्ट्र में चन्द्रपुर, बलारपुर, बरोरा, यवतमाल, नागपुर आदि जिले तथा आन्ध्र प्रदेश में सिगरेनी, सस्ती व तन्दूर क्षेत्र शामिल हैं।
(ii) टर्शियरी कोयला क्षेत्र
यह कोयला क्षेत्र प्रायद्वीप के बाह्य भागों में पाया जाता है । सम्पूर्ण भारत का 2% भाग इस कोयला क्षेत्र से प्राप्त होता है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित कोयला क्षेत्र आते हैं
- मेघालय यहाँ की मिकिर पहाड़ियों में 1 से 2 मी मोटाई वाला हल्की श्रेणी का कोयला पाया जाता है। यहाँ गारो, खासी तथा जयन्तिया पहाड़ियों में कोयला मिलता है।
- राजस्थान यहाँ कोयला बीकानेर के दक्षिण-पश्चिम में 2 किमी की दूरी पर पालना नामक स्थान पर और उसके समीपवर्ती क्षेत्रों मढ़, चनेरी गंगा, गंगा-सरोवर एवं खारी क्षेत्रों में मिलता है।
- असम यहाँ पूर्वी नागा पर्वत के उत्तर-पश्चिमी ढाल पर तथा लखीमपुर एवं शिवसागर जिलों में कोयला पाया जाता है।
- जम्मू-कश्मीर दक्षिणी-पश्चिमी कश्मीर में करेवा चट्टानों में निम्न किस्म का कोयला मिलता है।
कोयले की उपयोगिता या महत्त्व
कोयला बहुतायत में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। कोयला, भारत में शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। इसका उत्पादन तथा उपयोग किसी भी देश की प्रगति का सूचक होता है। कोयला अपनी तीन उपयोगिताओं; जैसे-ताप प्रदान करने, भाप बनाने तथा कठोर धातुओं को पिघलाने के कारण वर्तमान औद्योगिक युग की रीढ़ बन गया है। कोयले से प्राप्त शक्ति, खनिज तेल से प्राप्त की गई शक्ति से दोगुना, प्राकृतिक गैस से प्राप्त की गई शक्ति से पाँच गुना तथा जल-विद्युत शक्ति से आठ गुना अधिक होती है। भारत में कुल विद्युत उत्पादन का लगभग 75% भाग कोयला आधारित ताप विद्युत से उत्पन्न किया जाता है। कोयले का महत्त्व देखते हुए इसे काला सोना या काला हीरा कहा जाता है।
प्रश्न 3. भारत के खनिज तेल उत्पादक क्षेत्रों एवं किन्हीं तीन तेल शोधक केन्द्रों का वर्णन कीजिए ।
अथवा भारत में खनिज तेल के उत्पादन क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – भारत में खनिज तेल उत्पादन क्षेत्र
भारत के प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्रों का विवरण निम्नलिखित है
असम तेल क्षेत्र इस क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित तेल क्षेत्र आते हैं
- डिग्बोई तेल क्षेत्र यह भारत का प्राचीनतम तेल क्षेत्र है। इसकी खोज ब्रिटिश काल में की गई थी। यह तेल क्षेत्र असम में टीपम पहाड़ियों से पूर्वोत्तर में लखीपुर तक फैला है। प्रमुख तेल के कुएँ बटयायांग, हस्सापांग, डिग्बोई तथा पानीटोला हैं।
- सुरमा नदी घाटी तेल क्षेत्र इस क्षेत्र में हल्की श्रेणी का तेल बदरपुर एवं पथरीला से निकाला जाता है। दूसरा प्रमुख क्षेत्र मसीमपुर में स्थित है।
- नाहरकटिया तेल क्षेत्र इस तेल क्षेत्र में स्वतन्त्रता के उपरान्त वर्ष 1953 में तेल उत्पादन आरम्भ किया गया था।
- हुगरीजन – मोरेन तेल क्षेत्र यह तेल क्षेत्र नाहरकटिया से 40 किमी दक्षिण-पश्चिम में है।
- रुद्रसागर – लकवा तेल क्षेत्र इस तेल क्षेत्र का विस्तार मोरेन तेल क्षेत्र के दक्षिण में शिवसागर जिले में है।
गुजरात तेल क्षेत्र इस क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित तेल क्षेत्रों को शामिल किया जाता है
- अंकलेश्वर तेल क्षेत्र यह तेल क्षेत्र वर्ष 1958 में खोजा गया था। यह क्षेत्र बड़ोदरा से 44 किमी दक्षिण-पश्चिम में नर्मदा घाटी में स्थित है। यहाँ से 1,200 मी की गहराई से तेल व प्राकृतिक गैस का उत्पादन किया जाता है।
- अहमदाबाद- कलोल तेल क्षेत्र इस तेल क्षेत्र की स्थिति अहमदाबाद शहर के पश्चिम में है। कलोल तेल क्षेत्र के समीपवर्ती क्षेत्रों नवगाँव, कोसंबा, कोघना, मेहसाना, सानन्द, बचराजी, बकरोल, कादी, वासना, धोलका, बावेल, ओल्पाद, सोभासन आदि स्थानों पर भी खनिज तेल मिला है।
- खम्भात या लुनेज तेल क्षेत्र यह तेल क्षेत्र खम्भात की खाड़ी के ऊपरी सिरे पर बड़ोदरा से 60 किमी पश्चिम में बाड़सर में स्थित है। यहाँ वर्ष 1969 तक 62 कुओं की खुदाई की गई थी, जिनमें से 43 में तेल तथा 19 में से गैसें प्राप्त हुई हैं।
अपतटीय तेल क्षेत्र इस क्षेत्र में निम्नलिखित तेल क्षेत्रों को शामिल किया जाता है
- मुम्बई हाई यह तेल क्षेत्र मुम्बई के निकट अरब सागर में स्थित है। यहाँ से ऑयल एण्ड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (ONGC) द्वारा तेल का उत्पादन किया जा रहा है। यहाँ वर्ष 1976 से जापानी प्लेटफॉर्म सागर सम्राट की सहायता से तेल का उत्पादन हो रहा है। यह देश का सबसे बड़ा तेल उत्पादन क्षेत्र है, जो देश के 60% से अधिक खनिज तेल का उत्पादन करता है।
- अलियाबेट क्षेत्र यह गुजरात के सौराष्ट्र में भावनगर जिले से 45 किमी दूर अरब सागर में स्थित अलियाबेट द्वीप में स्थित है।
- बेसिन तेल क्षेत्र इसकी स्थिति मुम्बई हाई के दक्षिण में है। यहाँ 1900 मी की गहराई से तेल की खुदाई की जा रही है।
प्रश्न 4. गैर-परम्परागत ऊर्जा संसाधनों के किन्हीं चार संसाधनों पर प्रकाश डालिए |
अथवा ऊर्जा के गैर-परम्परागत चार स्रोतों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
अथवा ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोत किसे कहते हैं? भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य कैसा है?
अथवा भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य उज्ज्वल है, क्यों?
अथवा भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य उज्ज्वल क्यों है? कोई तीन कारण दीजिए।
अथवा क्या भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य उज्ज्वल है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर – ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोत से आशय
ऊर्जा के वे संसाधन जो दीर्घकाल तक उपयोग करने के पश्चात् पुनः बने रहते हैं तथा उपयोग में लाए जाते हैं, उन्हें अक्षयी या नवीकरणीय या गैर-परम्परागत ऊर्जा संसाधन कहते हैं।
भारत में गैर-परम्परागत ऊर्जा के संसाधन
भारत में गैर-परम्परागत ऊर्जा संसाधन निम्न हैं
- सौर ऊर्जा यह सूर्य की किरणों से प्राप्त की जाती है। इसे प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा विद्युत ऊर्जा या तापीय ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। भारत में सौर ऊर्जा की असीम सम्भावनाएँ हैं। भारत में इस ऊर्जा के उपयोग की ओर तेजी से सरकार का ध्यान गया है। भारत में मध्य प्रदेश के रीवा में एशिया का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा संयन्त्र स्थापित किया गया है।
- भू-तापीय ऊर्जा इस ऊर्जा के अन्तर्गत भू-गर्भ की ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पादन या ताप ऊर्जा लिए किया जाता है। इस प्रकार के संयन्त्र गर्म जल के स्रोतों के पास लगाए जाते हैं। भारत में तातापानी (छत्तीसगढ़), पूग घाटी (जम्मू-कश्मीर) तथा चमोली (उत्तराखण्ड) व पार्वती घाटी (हिमाचल देश ) में इसकी सम्भावनाएँ हैं। इन स्थानों पर भू-तापीय ऊर्जा के संयन्त्र स्थापित किए जा रहे हैं।
- पवन ऊर्जा इसके चक्कियाँ लगाकर, अन्तर्गत वर्षभर हवा के प्रवाह वाले स्थानों पर पवन उससे विद्युत उत्पन्न की जाती है। भारत के प्रमुख पवन ऊर्जा उत्पादन केन्द्र तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और राजस्थान राज्यों में हैं।
- ज्वारीय ऊर्जा ज्वार से उत्पन्न की जाने वाली ऊर्जा को ‘ज्वारीय ऊर्जा’ कहते हैं। इस ऊर्जा का दोहन समुद्र के सँकरे मुहाने में बाँध का निर्माण करके किया जाता है, जिसमें ज्वार के समय समुद्री पानी एकत्र हो जाता है। इसके द्वारा टरबाइन घूमती है, जिससे विद्युत उत्पन्न होती है। भारत में खम्भात की खाड़ी में ज्वारीय ऊर्जा की सम्भावनाएँ हैं।
- बायोगैस इसमें पशुओं के अपशिष्ट यथा गोबर को गैस में बदलकर ऊर्जा प्राप्त की जाती है। इसका उपयोग भोजन पकाने व प्रकाश के लिए किया जा सकता है। भारत में इसकी बड़ी सम्भावनाएँ हैं, क्योंकि विश्व में सर्वाधिक पशु भारत में ही पाए जाते हैं।
- नगरीय व औद्योगिक कचरे से ऊर्जा इसके अन्तर्गत नगरीय कूड़े-कचरे से उत्पन्न गैस से ऊर्जा प्राप्त की जाती है। दिल्ली व मुम्बई में इस प्रकार की ऊर्जा के संयन्त्र स्थापित किए गए हैं।
- समुद्री तरंग ऊर्जा समुद्री लहरों से देश में लगभग 40,000 मेगावाट विद्युत उत्पादन की क्षमता है। केरल के तिरुअनन्तपुरम में 150 मेगावाट क्षमता का समुद्री लहर विद्युत केन्द्र स्थापित किया गया है।
भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य
- भारत एक उष्णकटिबन्धीय देश है। इस कारण यहाँ सौर ऊर्जा की सम्भावना अत्यधिक होती है।
- सौर ऊर्जा का प्रयोग अनेक कार्यों में किया जाता है; जैसे- फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी के द्वारा सूर्य के प्रकाश को सीधे विद्युत में परिवर्तित किया जाता है। भारत का सबसे बड़ा सौर पावर प्लाण्ट राजस्थान में माधोपुर के निकट भुज में स्थित है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में भी सौर ऊर्जा का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है अर्थात् इन क्षेत्रों में भी सौर ऊर्जा का भविष्य उज्ज्वल हो ।
प्रश्न 5. परमाणु ऊर्जा से क्या समझते हैं? इसकी किन्हीं पाँच विशेषताओं की विवेचना कीजिए ।
अथवा परमाणु खनिज किसे कहते हैं? किन्हीं चार परमाणु खनिजों के महत्त्व पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – परमाणु ऊर्जा
परमाणु खनिजों के विखण्डन के परिणामस्वरूप प्राप्त होने वाली ऊर्जा को परमाणु ऊर्जा (Atomic Power) कहते हैं। इस ऊर्जा से विद्युत बनाई जाती है। इन परमाणु खनिजों में यूरेनियम, थोरियम, बेरीलियम, ऐण्टिमनी, प्लूटोनियम, जर्कोनियम, इल्मेनाइट आदि मुख्य हैं। ऐसा अनुमानित है कि एक किलोग्राम यूरेनियम से इतनी ऊर्जा प्राप्त होती है, जितनी 27000 टन कोयले से प्राप्त होती है।
भारत में परमाणु ऊर्जा
भारत में विद्युत उत्पादन के लिए नाभिकीय या परमाणु ऊर्जा के प्रयोग के सम्बन्ध में सशक्त प्रयास किए गए हैं। इसके लिए परमाणु ऊर्जा अधिनियम बनाकर इसका क्रियान्वयन किया गया। इसके अन्तर्गत निर्धारित उद्देश्यों में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध तथा उच्च सम्भावना वाले तत्त्वों – यूरेनियम व थोरियम का उपयोग भारतीय परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों में नाभिकीय ईंधन के रूप में करना शामिल है।
भारत में कुल विद्युत उत्पादन का 2.4% भाग परमाणु ऊर्जा केन्द्रों द्वारा प्राप्त किया जा रहा है। भारत में परमाणु ऊर्जा का विकास तीन चरणों में किए जाने की योजना है, जिसमें
- प्रथम चरण दाबित भारी पानी रिएक्टर पर आधारित है।
- दूसरा चरण तीव्र प्रजनक रिएक्टर पर आधारित है।
- तीसरा चरण प्रजनक रिएक्टर पर आधारित है।
भारत में परमाणु ऊर्जा के महत्त्व / विशेषताएँ
भारत में परमाणु ऊर्जा के पाँच महत्त्व / विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
- अपार क्षमता से ऊर्जा की क्षतिपूर्ति भारत में उत्तम कोयले व खनिज तेल का अभाव है। इसके विपरीत, परमाणु ऊर्जा में अपार क्षमता एवं शक्ति होती है, जिसके द्वारा ऊर्जा के अभाव की क्षतिपूर्ति हो सकती है।
- परमाणु केन्द्रों की सुविधानुसार स्थापना परमाणु ऊर्जा के संयन्त्र वहाँ भी बनाए जा सकते हैं, जहाँ इसके स्रोत नहीं हैं। अतः विकास को दूर-दराज तक “प्रसारित किया जा सकता है।
- बहुउपयोगी परमाणु ऊर्जा का प्रयोग अनेक कार्यों में किया जा सकता है। यह अपेक्षाकृत एक सस्ता संसाधन है।
- प्रदूषणमुक्त संसाधन नाभिकीय ऊर्जा प्रदूषणमुक्त होती है। अतः जीवाश्म ईंधनों की तुलना में उपयुक्त है।
- राष्ट्रीय प्रतिष्ठा में वृद्धि वर्तमान में विश्व में उन राष्ट्रों को शक्तिशाली माना जाता है, जिन्होंने परमाणु शक्ति का विकास कर लिया है।
प्रश्न 6. भारत में लौह उत्पादन एवं वितरण का वर्णन कीजिए
उत्तर – भारत में लौह-अयस्क का उत्पादन
प्रकृति द्वारा भारत को अनेक लौह-अयस्क उत्पादक क्षेत्र प्रदान किए गए हैं। भारत भूमि के गर्भ में लगभग 136 मिलियन टन लौह-अयस्क उत्पादन होता है, जो कुल वैश्विक उत्पादन का 45% है। लौह-उत्पादन की दृष्टि से संसार के देशों में भारत का चौथा स्थान है। इन भण्डारों से निकले कच्चे लोहे का उपयोग न होने के कारण निकाले गए लोहे का एक बड़ा भाग विदेशों को निर्यात कर दिया जाता है। भारत द्वारा निर्यात किए गए लोहे के सबसे बड़े ग्राहक देशों में जापान चेक गणतन्त्र व स्लोवाकिया जैसे देशों के नाम शमिल हैं।
देश के अन्दर औद्योगिक माँगों के बढ़ने के कारण लौह-अयस्क के उत्पादन पर असर पड़ा है, जिससे दिन-प्रतिदिन उत्पादन स्तर का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।
यदि देश के अन्दर उपस्थित लौह-अयस्कों का समुचित तरीके से उत्पादन किया जाए, तो भारत को औद्योगिक दृष्टिकोण से आत्मनिर्भर देशों की श्रेणी में लाया जा सकता है, जहाँ लौह-अयस्क के भण्डार देश के लिए विदेशी मुद्रा के सृजन का काम करते हैं, वहीं देश को मजबूत औद्योगिक आधार प्रदान करने में भी इस खनिज की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
भारत में लौह-अयस्क का वितरण
भारत में लौह-अयस्क उत्पादन क्षेत्र का विवरण निम्नलिखित है
- ओडिशा इसका लौह-अयस्क उत्पादन में प्रथम स्थान है। यहाँ मयूरभंज जिले में गुरुमहिसानी, सुलेपात, बादाम- पहाड़ आदि लोहे की प्रमुख खानें हैं। क्योंझर में नोआमुण्डी एशिया की सबसे बड़ी लोहे की खान है ।
- कर्नाटक यहाँ के चिकमंगलूर जिले की बाबा बूदन पहाड़ियों से लौह-अयस्क का उत्पादन होता है। इसके अतिरिक्त बेल्लारी एवं हॉस्पेट जिलों में सेन्दूर की पहाड़ियों एवं शिमोगा, धारवाड़ से भी लौह-अयस्क का उत्पादन होता है।
- छत्तीसगढ़ इसका लौह-अयस्क उत्पादन में दूसरा स्थान है। यहाँ से कुल लौह-अयस्क उत्पादन का 25% प्राप्त होता है। बैलाडिला (बस्तर) यहाँ की प्रमुख खान है। दुर्ग के राजहरा पहाड़ी बस्तर, रायगढ़, सरगुजा, बिलासपुर में लौह-अयस्क प्रमुख रूप से मिलता है।
- गोवा यहाँ लोहे की खुली खानें हैं, जिनसे देश के कुल लौह-अयस्क उत्पादन का 32% लौह-अयस्क उत्पादित किया जाता है। यहाँ घटिया किस्म का लौह-अयस्क मिलता है। पिरना – अदोल, पाले-ओनेडा, कुडनेम-पिसरूलेम तथा कुडनेम -सुरला लौह-अयस्क उत्पादन की खानें हैं।
- झारखण्ड यह कुल लौह-अयस्क का 16% भाग उत्पादित करता है। इस राज्य की लौह-अयस्क खानें ओडिशा लौह पेटी से जुड़ी हैं। यहाँ सिंहभूम प्रचुर मात्रा में लौह-अयस्क निकाला जाता है। यहाँ से लौह- अयस्क की सर्वोत्तम किस्म का मैग्नेटाइट तथा हेमेटाइट निकलता है।
- महाराष्ट्र यहाँ के चंद्रपुर जिले में उत्तम श्रेणी के पर्याप्त भण्डार हैं। यहाँ लोहारा, रत्नागिरि एवं पीपल गाँव से लौह-अयस्क उत्पादित होता है।
- आन्ध्र प्रदेश – तेलंगाना इस क्षेत्र में लौह-अयस्क का खनन कृष्णा कुर्नूल, चित्तूर, गुंटूर एवं वारंगल से लौह-अयस्क का उत्पादन होता है।
- अन्य राज्य अन्य राज्यों में तमिलनाडु के सलेम, तिरुचिरापल्ली में मैग्नेटाइट के भण्डार आकलित हैं। पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में दामूदा एवं महादेव श्रेणियों की बालुका पत्थर शैलों से लौह-अयस्क निकाला जाता है।
- मध्य प्रदेश मध्य प्रदेश में जबलपुर, मंडला तथा बालाघाट में लौह-अयस्क के भण्डार पाए जाते हैं।
