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UP Board Class 10 Social Science Chapter 6 विनिर्माण उद्योग (भूगोल)

UP Board Class 10 Social Science Chapter 6 विनिर्माण उद्योग (भूगोल)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 विनिर्माण उद्योग (भूगोल)

फास्ट ट्रैक रिवीज़न
  • शारीरिक एवं यान्त्रिक शक्ति द्वारा विभिन्न प्रकार की तकनीकों की सहायता से कच्चे माल को पक्के माल या निर्मित माल में परिवर्तित कर अधिकाधिक उपयोगी बनाने वाले प्रक्रम को विनिर्माण उद्योग कहते हैं; जैसे- लौह-अयस्क से इस्पात निर्माण, कपास से सूती वस्त्र निर्माण, गन्ने से चीनी निर्माण।
विनिर्माण का महत्त्व
विनिर्माण उद्योग को आर्थिक विकास का आधार स्तम्भ माना जाता है, क्योंकि
  • विनिर्माण उद्योग कृषि के आधुनिकीकरण में सहायक है, जो हमारी अर्थव्यवस्था का आधार स्तम्भ है।
  • औद्योगिक विकास बेरोजगारी और निर्धनता के उन्मूलन में सहायक है।
कृषि एवं उद्योग
  • कृषि एवं उद्योग एक-दूसरे पर निर्भर हैं। बहुत-से उद्योग; जैसे – चीनी मिल, वस्त्र मिल आदि कृषि सम्बन्धित उत्पादों पर निर्भर रहते हैं।
  • बहुत-से औद्योगिक उत्पाद, जैसे- उर्वरक, सिंचाई के लिए पम्प, पीवीसी पाइप, ट्रैक्टर आदि उपकरण कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में सहायक होते हैं।
उद्योगों का वर्गीकरण
(i) प्रयोग किए गए कच्चे माल के आधार पर
  • कृषि आधारित उद्योग सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, पटसन, रेशमी वस्त्र, रबड़, चीनी, चाय, कॉफी, खाद्य, तेल।
  • खनिज आधारित उद्योग लौह-इस्पात उद्योग, सीमेण्ट, एल्युमीनियम, यान्त्रिक उपकरण, पैट्रो – रसायन ।
(ii) कच्चे माल द्वारा निभाई गई भूमिका के आधार पर
  • आधारभूत उद्योग लौह-इस्पात, प्रगलित ताँबा, प्रगलित एल्युमीनियम
  • उपभोक्ता उद्योग चीनी, कागज, टूथपेस्ट, सिलाई मशीन, पंखे आदि ।
(iii) पूँजी निवेश के आधार पर
  • लघु उद्योग अधिकतम निवेश ₹1 करोड़ तक होता है।
  • दीर्घ उद्योग इसमें निवेश की सीमा ₹1 करोड़ से अधिक है।
(iv) स्वामित्व के आधार पर
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग; जैसे – BHEL, SAIL आदि ।
  • निजी क्षेत्र के उद्योग; जैसे – TISCO, बजाज ऑटो लिमिटेड व डाबर उद्योग आदि।
  • संयुक्त उद्योग ऑयल इण्डिया लिमिटेड (OIL)
  • सहकारी उद्योग महाराष्ट्र में चीनी उद्योग व केरल में नारियल पर आधारित उद्योग।
(v) कच्चे एवं तैयार माल की मात्रा तथा भार के आधार पर
  • भारी उद्योग ऑटोमोबाइल्स और निर्माणक यन्त्रक सम्बन्धी ।
  • हल्के उद्योग  इलेक्ट्रिकल उद्योग व खिलौना उद्योग ।
प्रयोग की गई सामग्री के आधार पर उद्योग के प्रकार
कृषि आधारित उद्योग
  • वे उद्योग, जो कच्चे माल के लिए कृषि पर आश्रित हैं; जैसे- सूती वस्त्र, पटसन, रेशम, ऊनी वस्त्र, चीनी तथा खाद्य तेल आदि उद्योग कृषि आधारित उद्योग कहलाते हैं।
वस्त्र उद्योग
  • औद्योगिक उत्पादन में इस उद्योग का योगदान 14% है। यह देश में एकमात्र उद्योग है, जिसमें कच्चे माल से लेकर उच्चतम अतिरिक्त मूल्य उत्पाद तक प्रत्येक वस्तु भारत में ही उत्पन्न की जाती है।
सूती वस्त्र उद्योग
  • भारत में पहली सूती वस्त्र मिल की स्थापना 1854 ई. में मुम्बई में हुई थी।
  • वर्तमान में हथकरघों का स्थान विद्युतीय करघों ने ले लिया है और 80% मिलें निजी क्षेत्र में हैं। मुख्यतः यह उद्योग गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में स्थित है।
  • सूती वस्त्र उद्योग के कारण अहमदाबाद को भारत का मैनचेस्टर तथा ‘पूर्व का बोस्टन’ भी कहा जाता है। जबकि उत्तर भारत का मैनचेस्टर कानपुर को कहा जाता है।
पटसन/जूट उद्योग
  • भारत कच्ची पटसन व पटसन निर्मित सामान का सबसे बड़ा उत्पादक है तथा बांग्लादेश के बाद विश्व का दूसरा बड़ा निर्यातक भी है।
  • पटसन उद्योग पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के तट पर स्थित है।
  • पहली पटसन मिल कोलकाता के निकट रिशरा में 1855 ई. में लगाई गई थी।
  • राष्ट्रीय पटसन नीति (2005) भारतीय जूट की गुणवत्ता में सुधार करने तथा उत्पादकता पर केन्द्रित है।
चीनी उद्योग
  • भारत का चीनी उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है और गुड़ व खाँडसारी के उत्पादन में प्रथम स्थान है।
  • प्रमुख चीनी मिलें; जैसे- उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में स्थित हैं।
  • महाराष्ट्र में चीनी मिलों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यहाँ पैदा होने वाले गन्ने में सुक्रोज की उच्च मात्रा उपस्थित है।
खनिज आधारित उद्योग
वे उद्योग, जो खनिज व धातुओं का प्रयोग कच्चे माल के रूप में करते हैं, खनिज आधारित उद्योग कहलाते हैं।
लौह-इस्पात उद्योग
  • यह एक आधारभूत उद्योग है, क्योंकि भारी, मध्यम और हल्के उद्योग इनसे बनी मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक सामानों के लिए इस पर निर्भर रहते हैं।
  • यह उद्योग बड़ी संख्या में खनिज प्रधान क्षेत्रों में स्थापित होता है; जैसेछोटानागपुर, पश्चिम बंगाल के पठारी क्षेत्र में, झारखण्ड ( जमशेदपुर ), ओडिशा (राउरकेला), कर्नाटक और तमिलनाडु आदि ।
  • भिलाई व रायपुर (छत्तीसगढ़), दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) लौह-इस्पात कारखाना सार्वजनिक क्षेत्र से सम्बन्धित हैं।
  • जमशेदपुर (टाटानगर) को इस्पात नगरी कहते हैं।
लौह-इस्पात उद्योग की अवस्थिति के लिए उत्तरदायी कारक
  • परिवहन लागत को कम करने के लिए इन उद्योगों को उन क्षेत्रों के निकट स्थापित किया जाता है, जहाँ कच्चा माल पाया जाता है।
  • जहाँ सस्ते श्रम की उपलब्धता है तथा जल और विद्युत की नियमित आपूर्ति हो ।
  • उन बाजारों के निकट, जहाँ तैयार माल बेचा जा सके।
सीमेण्ट उद्योग
  • भारत में सीमेण्ट उद्योग की स्थापना वर्ष 1904 में हुई, जब चेन्नई में प्रथम कारखाना स्थापित किया गया।
  • यह पत्थरों पर आधारित उद्योग है।
  • यह चूना पत्थर के कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होता है।
रसायन उद्योग
  • भारत में रसायन उद्योग तेजी से विकसित एवं विस्तृत हो रहा है। वर्तमान में देश के सकल घरेलू उत्पाद में इसकी भागीदारी लगभग 3% है। यह उद्योग आकार की दृष्टि से विश्व में बारहवाँ एशिया में तीसरा सबसे बड़ा उद्योग है।
  • इसके अंतर्गत लघु तथा वृहद् दोनों प्रकार की विनिर्माण इकाइयाँ सम्मिलित की जाती हैं। इसमें कार्बनिक एवं अकार्बनिक दोनों क्षेत्रों में तीव्र वृद्धि दर्ज की गई है।
एल्युमीनियम प्रगलन
  • यह उद्योग भारत में धातुकर्म उद्योग के अंतर्गत लोहे के बाद दूसरा सबसे बड़ा उद्योग है। बॉक्साइट इस उद्योग का मूलभूत कच्चा पदार्थ है जोकि भारी, गहरे लाल रंग की चट्टान जैसा होता है।
  • इसके अतिरिक्त यह जंग अवरोधी, ऊष्मा का सुचालक, लचीला तथा अन्य धातुओं के मिश्रण से अधिक कठोर बनाया जा सकता है। इसका प्रयोग हवाई जहाज तथा तार बनाने में किया जाता है।
उर्वरक उद्योग
  • रासायनिक उर्वरकों का निर्माण फास्फोरस, नाइट्रोजन और पोटेशियम जैसे तत्त्वों से होता है।
  • कृषि रसायन उद्योग का भाग है।
  • भारत में उर्वरक उत्पादन में गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पंजाब और केरल प्रमुख उत्पादक है। इसके अतिरिक्त आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, असम, पश्चिम बंगाल अन्य उर्वरक उत्पादक राज्य है।
मोटरगाड़ी उद्योग
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के कारण नई तकनीक ने इस उद्योग को विश्वस्तरीय विकास में नया स्थान दिया है।
  • यह उद्योग गुड़गाँव (गुरुग्राम), मुम्बई, पुणे, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, इन्दौर, हैदराबाद, जमशेदपुर, दिल्ली और बंगलुरु के आस-पास स्थित हैं।
सूचना प्रौद्योगिकी एवं इलेक्ट्रॉनिकी उद्योग
  • इसके अन्तर्गत ट्रांजिस्टर सेटों से लेकर टेलीविजन, सेलफोन, टेलीफोन एक्सचेंज, रडार, कम्प्यूटर और दूरसंचार तथा कम्प्यूटर उद्योग के लिए आवश्यक अन्य उपकरण आदि आते हैं।
  • बंगलुरु भारत की इलेक्ट्रॉनिक राजधानी के रूप में उभरा है।
आर्थिक विकास में उद्योग-धन्धों का महत्त्व
औद्योगिक विकास से देश को विभिन्न लाभ प्राप्त होते हैं
  • उपभोक्ता वस्तुओं का निर्माण कर निर्यात किया जाता है, जिससे देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है व आत्मनिर्भरता भी आती है।
  • जिन स्थानों पर बड़े उद्योग स्थापित होते हैं, वहाँ प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से लाखों रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं।
  • उद्योगों से मिलने वाले विभिन्न करों के कारण सरकारी आय में वृद्धि होती है।
औद्योगिक प्रदूषण एवं पर्यावरण निम्नीकरण
  • वायु प्रदूषण यह प्रदूषण वायु में सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड की उच्च अनुपात में उपस्थिति के कारण होता है।
  • वायु प्रदूषण के कारण श्वसन सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
  • जल प्रदूषण उद्योगों द्वारा कार्बनिक और अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों के नदियों में छोड़ने से जल प्रदूषण होता है। भारत में मुख्य अपशिष्ट पदार्थों में फ्लाई एश, फोस्फो- जिप्सम तथा लौह-इस्पात की अशुद्धियाँ हैं।
  • तापीय प्रदूषण यह प्रदूषण तब होता है, जब शीतलन से पहले कारखानों और तापीय संयन्त्रों से गर्म पानी को नदियों और तालाबों में छोड़ दिया जाता है।
  • नाभिकीय तथा अस्त्र उत्पादन कारखानों से निकले अपशिष्ट कैंसर, अपंगता आदि बीमारियों के कारण बनते हैं।
  • ध्वनि प्रदूषण औद्योगिक और निर्माणक कार्यों, मशीनरी व उपकरणों से निकले शोर से ध्वनि प्रदूषण होता है।
  • इस प्रकार का प्रदूषण बहरापन, हृदय गति में वृद्धि, रक्तचाप तथा विभिन्न शारीरिक प्रभावों का कारण बनता है।
पर्यावरण निम्नीकरण की रोकथाम के उपाय
  • विभिन्न प्रक्रियाओं में जल का न्यूनतम उपयोग कर तथा व्यर्थ जल को दो स्तरों पर पुनर्चक्रण द्वारा पुनः प्रयोग करना ।
  • जल की आवश्यकता पूर्ति हेतु वर्षा जल संग्रहण |
  • उद्योगों द्वारा भूमिगत जल की अधिकतम निकासी को कानूनी रूप से नियमित किए जाने की आवश्यकता है।
  • जनरेटर और अन्य मशीनरी व उपकरणों में उनकी ध्वनि को कम करने के लिए साइलेंसर लगाना चाहिए।
  • कारखानों की चिमनियों पर फिल्टर लगाकर वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
  • नदियों व तालाबों में गर्म जल को प्रवाहित करने से पहले उसका शोधन किया जाए।
औद्योगिक अपशिष्ट का शोधन तीन चरणों में किया जा सकता है
  1. यान्त्रिक साधनों द्वारा प्राथमिक शोधन इसके अन्तर्गत अपशिष्ट पदार्थों की छँटाई व छोटे-छोटे टुकड़े करना, ढकना तथा तलछट में जमाव आदि शामिल हैं।
  2. जैविक प्रक्रियाओं द्वारा द्वितीयक शोधन इसमें वर्षा जल संग्रहण और वृक्षारोपण करना आदि सम्मिलित हैं।
  3. रासायनिक, जैविक तथा भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा तृतीयक शोधन इसमें पुनर्चक्रण की प्रक्रिया द्वारा अपशिष्ट जल को शुद्ध करके प्रयोग में लाया जाता है।
नोट यमुना कार्य योजना के अन्तर्गत सीवेज शोधन संयन्त्र फरीदाबाद में स्थित है।
खण्ड अ बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. सूती वस्त्र उद्योग सम्बन्धित है
(a) कृषि से
(b) बागवानी से
(c) वृक्षारोपण से
(d) खनन से
उत्तर (a) कृषि से
प्रश्न 2. सूती वस्त्र मिल की रूपरेखा किसने रखी ?
(a) जॉन राइट
(b) रिचर्ड आर्कराइट
(c) एण्डू कार्मेगी
(d) जेम्स वाट
उत्तर (b) रिचर्ड आर्कराइट
प्रश्न 3. ‘भारत का मैनचेस्टर’ और पूर्व का बोस्टन कहलाता है
(a) कानपुर
(b) मुम्बई
(c) अहमदाबाद
(d) जमशेदपुर
उत्तर (c) अहमदाबाद
प्रश्न 4. उत्तर भारत का मैनचेस्टर किसे कहा जाता है?
(a) लुधियाना
(b) दिल्ली
(c) कानपुर
(d) लखनऊ
उत्तर (c) कानपुर
प्रश्न 5. भिलाई लौह-इस्पात कारखाना किस राज्य में स्थित है?
(a) बिहार
(b) छत्तीसगढ़
(c) ओडिशा
(d) उत्तर प्रदेश
उत्तर (b) छत्तीसगढ़
प्रश्न 6. राउरकेला इस्पात कारखाना किस राज्य में स्थित है?
(a) बिहार
(b) छत्तीसगढ़
(c) ओडिशा
(d) उत्तर प्रदेश
उत्तर (c) ओडिशा
प्रश्न 7. निम्नलिखित में से कौन-सा आधारभूत उद्योग है?
(a) कागज उद्योग
(b) चीनी उद्योग
(c) लौह-इस्पात उद्योग
(d) एल्युमीनियम
उत्तर (c) लौह-इस्पात उद्योग
प्रश्न 8. निम्नलिखित में से किसे इस्पात नगरी कहा जाता है?
(a) भिलाई
(b) बोकारों
(c) जमशेदपुर
(d) राउरकेला
उत्तर (c) जमशेदपुर
प्रश्न 9. निम्न में से कौन-सा उद्योग कृषि पर आधारित नहीं है?
(a) सूती वस्त्र उद्योग
(b) चीनी उद्योग
(c) सीमेण्ट उद्योग
(d) खाद्य तेल उद्योग
उत्तर (c) सीमेण्ट उद्योग
प्रश्न 10. निम्न में से कौन-सा उद्योग चूना पत्थर को कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त करता है?
(a) एल्युमीनियम
(b) सीमेण्ट
(c) चीनी
(d) पटसन
उत्तर (b) सीमेण्ट
प्रश्न 11. निम्न में से कौन-सा उद्योग बॉक्साइट को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करता है?
(a) एल्युमीनियम
(b) पटसन
(c) सीमेण्ट
(d) स्टील
उत्तर (a) एल्युमीनियम
प्रश्न 12. सार्वजनिक क्षेत्रक तथा निजी क्षेत्रक के विभाजन का आधार है
(a) रोजगार की शर्तें
(b) आर्थिक गतिविधियों की प्रकृति
(c) उद्यमों का स्वामित्व
(d) उद्यमों में नियोजित श्रमिकों की संख्या
उत्तर (c) उद्यमों का स्वामित्व
प्रश्न 13. भारत में कौन-सा इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की राजधानी कहा जाता है?
(a) कानपुर
(b) बंगलुरु
(c) अहमदाबाद
(d) मुम्बई
उत्तर (b) बंगलुरु
प्रश्न 14. औद्योगिक क्रियाओं को किस आर्थिक क्षेत्रक के अन्तर्गत रखा जाता है?
(a) प्रथम क्षेत्रक
(b) द्वितीय क्षेत्रक
(c) तृतीय क्षेत्रक
(d) चतुर्थ क्षेत्रक
उत्तर (b) द्वितीय क्षेत्रक
प्रश्न 15. कृषि आधारित उद्योग का उदाहरण है
(a) लोहा एवं इस्पात उद्योग
(b) सूती वस्त्र उद्योग
(c) रासायनिक उद्योग
(d) सीमेण्ट उद्योग
उत्तर (b) सूती वस्त्र उद्योग
सुमेलित करें
प्रश्न 16. सुमेलित कीजिए
कथन कूट
प्रश्न 17. भारत में उद्योगों की निम्न उत्पादकता के कारण हैं
1. पूँजी की कमी
2. कच्चे माल की कमी
3. पुरानी मशीनें
4. उद्योगों की रुग्णता
कूट
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 2 और 3
(d) ये सभी
उत्तर (d) ये सभी
प्रश्न 18. कृषि आधारित उद्योग है
1. सूती वस्त्र उद्योग
2. ऊनी वस्त्र उद्योग
3. सीमेण्ट उद्योग
4. पेट्रो रसायन उद्योग
कूट
(a) केवल 1
(b) 1 और 2
(c) 2 और 3
(d) ये सभी
उत्तर (b) 1 और 2
खण्ड ब वर्णनात्मक प्रश्न
वर्णनात्मक प्रश्न- 1
प्रश्न 1. पटसन उद्योग भारत में कहाँ स्थित है?
उत्तर – भारत पटसन व पटसन निर्मित सामान का सबसे बड़ा उत्पादक देश है तथा बांग्लादेश के पश्चात् दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक भी है। यह उद्योग अधिकांश पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के तट पर 98 किमी लम्बी तथा 3 किमी चौड़ी एक संकरी मेखला में स्थित है।
हुगली नदी तट पर इनके स्थित होने के निम्नलिखित कारण हैं- पटसन उत्पादक क्षेत्रों की निकटता, सस्ता जल, परिवहन, सड़क, रेल व जल परिवहन का जाल, कच्चे माल को मिलों तक ले जाने में सहायक होना आदि सम्मिलित है। भारत में पटसन की खेती मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में होती है। केवल पश्चिम बंगाल में 50 प्रतिशत से अधिक पटसन उत्पादन किया जाता है।
प्रश्न 2. सीमेण्ट उद्योग क्या है? भारत में सीमेण्ट उद्योग कहाँ स्थित है?
उत्तर – सीमेण्ट उद्योग कच्चा माल आधारित उद्योग है। इसमें प्रयुक्त होने वाला कच्चा माल अधिक भारी एवं सस्ता होता है। इसका उपयोग निर्माण कार्यों; जैसे – घर, कारखानें, पुल, सड़कें, हवाई अड्डे, बाँध तथा अन्य व्यापारिक; प्रतिष्ठानों के निर्माण में होता है। इस उद्योग को भारी व स्थूल कच्चे माल जैसे – चूना पत्थर, सिलिका और जिप्सम की आवश्यकता होती है। रेल परिवहन के अतिरिक्त इसमें कोयला तथा विद्युत ऊर्जा भी आवश्यक है। भारत में क्रमशः आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और केरल आदि सबसे बड़े सीमेण्ट उत्पादक राज्य हैं।
प्रश्न 3. विनिर्माण उद्योग किसे कहा जाता है? इसके महत्त्व को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – कच्चे पदार्थ को मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित कर अधिक मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन करना विनिर्माण या वस्तु निर्माण कहलाता है। विनिर्माण उद्योग द्वितीयक क्षेत्र के अंतर्गत आता है। द्वितीयक गतिविधियों में कार्यरत लोग कच्चे माल से अंतिम उत्पाद का निर्माण करते हैं। विनिर्माण उद्योग बहुत महत्त्वपूर्ण उद्योग है, जिसे आर्थिक विकास का आधार स्तंभ माना जाता है, क्योंकि
  • विनिर्माण उद्योग कृषि के आधुनिकीकरण में सहायक है, जो हमारी अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ है।
  • विनिर्माण उद्योग द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराकर लोगों की कृषि पर आधारित आय की निर्भरता को कम करता है। औद्योगिक विकास बेरोजगारी और निर्धनता के उन्मूलन में सहायक है ।
प्रश्न 4. मोटरगाड़ी उद्योग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – मोटरगाड़ी उद्योग यात्रियों तथा सामान के तीव्र परिवहन के साधन है। भारत के विभिन्न केन्द्रों पर ट्रक, बसें, कारें, मोटरसाइकिल, स्कूटर, तिपहिया तथा बहुउपयोगी वाहन निर्मित किए जाते हैं। उदारीकरण के पश्चात्, नए और आधुनिक मॉडल के वाहनों का बाजार तथा वाहनों की माँग बढ़ी है, जिससे इस उद्योग में विशेषकर कार, दोपहिया तथा तिपहिया वाहनों में अपार वृद्धि हुई है । यह उद्योग दिल्ली, गुड़गाँव, मुम्बई, पुणे, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ, इन्दौर, हैदराबाद, जमशेदपुर तथा बंगलुरु के आस-पास स्थित है।
प्रश्न 5. भारत के सन्दर्भ में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग का वर्णन कीजिए।
उत्तर – सूचना प्रौद्योगिकी
इस उद्योग के अन्तर्गत आने वाले उत्पादों में ट्रान्जिस्टर से लेकर टेलीविजन, टेलीफोन, सेल्यूलर टेलीफोन एक्सचेन्ज, राडार, कम्प्यूटर तथा दूरसंचार उद्योग के लिए उपयोगी अन्य उपकरण आते हैं। बंगलुरु भारत की इलेक्ट्रॉनिक राजधानी के रूप में उभरा है। इलेक्ट्रॉनिक सामान के अन्य महत्त्वपूर्ण उत्पादक केन्द्र मुम्बई, दिल्ली, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, कोलकाता तथा लखनऊ हैं। इस उद्योग का सर्वाधिक संकेन्द्रण बंगलुरु नोएडा, मुम्बई, चेन्नई, हैदराबाद और पुणे में है।
प्रश्न 6. भारत के तीन प्रदेशों के सूती वस्त्र उद्योग के केन्द्रों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र एवं महत्त्वपूर्ण केन्द्र / वितरण
सूती वस्त्र उद्योग भारत का सबसे प्रमुख कृषि आधारित उद्योग है। यह भारत का सबसे बड़ा उद्योग है।
भारत में सूती वस्त्र से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों के केन्द्र निम्नलिखित हैं
  • महाराष्ट्र यहाँ पूरे देश के कुल उत्पादन का लगभग 43% मिल के कपड़े का तथा 17% यार्न (धागों) का उत्पादन होता है। मुम्बई यहाँ सबसे प्रधान केन्द्र है । मुम्बई के अतिरिक्त अकोला, वर्धा, अमरावती, शोलापुर, पुणे, सतारा, कोल्हापुर, सांगली आदि अन्य प्रमुख सूती वस्त्र निर्माण केन्द्र हैं। मुम्बई को सूती वस्त्र की राजधानी कहा जाता है।
  • गुजरात सूती वस्त्र उत्पादन में इस राज्य का दूसरा स्थान है। यहाँ सर्वाधिक मिलें अहमदाबाद में हैं। अहमदाबाद को भारत का मैनचेस्टर तथा पूर्व का बोस्टन कहा जाता है। अहमदाबाद के अतिरिक्त गुजरात में बड़ोदरा, भरुच, मोखी, नवसारी, भावनगर, नाडियाड, सूरत आदि सूती वस्त्र के अन्य प्रमुख केन्द्र हैं।
  • उत्तर प्रदेश राज्य में सर्वाधिक सूती वस्त्रों की मिलें हैं। कानपुर को उत्तर भारत का मैनचेस्टर कहा जाता है। कानपुर के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के अन्य सूती मिलों के केन्द्र आगरा, सहारनपुर, वाराणसी, मुरादाबाद, मोदीनगर आदि हैं।
  • पश्चिम बंगाल इस राज्य में कोलकाता एवं उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में चौबीस परगना, हावड़ा, हुगली जिलों में सूती वस्त्र मिलें स्थापित हैं।
प्रश्न 7. सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के कारकों को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के प्रमुख कारक
  • कच्चे माल की पर्याप्त उपलब्धता महाराष्ट्र व गुजरात में कपास उत्पादन के लिए उपयुक्त काली मिट्टी पाई जाती है, जिस कारण कपास का पर्याप्त मात्रा में उत्पादन होता है। इसी कारण इस क्षेत्र में सूती वस्त्र उद्योग का संकेन्द्रण है।
  • जलवायु महाराष्ट्र एवं गुजरात में समुद्र की निकटता के कारण आर्द्र जलवायु पाई जाती है, जिसके कारण धागा बुनाई में क्षति नहीं होती ।
  • ऊर्जा के पर्याप्त साधन सूती वस्त्रों की मिलों के संचालन के लिए विद्युत की पर्याप्त मात्रा दोनों राज्यों में उपलब्ध है।
  • पर्याप्त पूँजी महाराष्ट्र व गुजरात में पर्याप्त मात्रा में पूँजीपति निवास करते हैं। अतः इन राज्यों में सूती वस्त्रों की मिलों की स्थापना के लिए पर्याप्त मात्रा में पूँजी की उपलब्धता है।
  • पर्याप्त माँग यहाँ उत्पादित सूती वस्त्रों की पर्याप्त माँग है, क्योंकि वस्त्रों का बाजार बड़ा है।
  • सस्ते एवं कुशल श्रमिक मुम्बई तथा अहमदाबाद में पर्याप्त मात्रा में सस्ते श्रमिक आसानी से उपलब्ध होते हैं।
प्रश्न 8. औद्योगिक प्रदूषण के नियन्त्रण हेतु विभिन्न उपायों को सुझाइए ।
उत्तर – औद्योगिक प्रदूषण 
औद्योगिक प्रदूषण वह प्रदूषण है, जो सीधे तौर पर उद्योग से उत्पन्न होता है। औद्योगिक प्रदूषण के कई रूप हैं। औद्योगिक प्रदूषण हवा की गुणवत्ता पर भी असर डालता है। इससे पर्यावरणीय समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।
नियन्त्रण के उपाय
  1. औद्योगिक इकाइयों में केरोसीन या अन्य प्रदूषक ईंधनों के स्थान पर स्वच्छ विकल्पों के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए ।
  2. उद्योगों में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए स्क्रवर यन्त्र का प्रयोग करना चाहिए।
  3. उद्योगों से निकलने वाले धुएँ के लिए ऊँची चिमनियों को स्थापित किया जाना चाहिए।
वर्णनात्मक प्रश्न- 2
प्रश्न 1. कुटीर एवं लघु उद्योग में अन्तर बताइए तथा कुटीर उद्योग के विकास के लिए सुझाव दीजिए।
अथवा कुटीर एवं लघु उद्योग में अन्तर बताइए । कुटीर व लघु उद्योग का आर्थिक विकास में क्या महत्त्व है?
अथवा भारत में कुटीर उद्योगों के विकास के लिए तीन सुझाव दीजिए ।
उत्तर – 
कुटीर एवं लघु उद्योग में अन्तर 
कुटीर उद्योग लघु उद्योग
जिन उद्योगों में उत्पाद एवं सेवाओं का सृजन अपने घर में ही किया जाता है, कुटीर उद्योग कहलाते हैं। जिन उद्योगों की निवेश सीमा ₹5 करोड़ तक होती है, लघु उद्योग कहलाते हैं।
ये उद्योग केवल मानवीय कार्यबल पर आधारित होते हैं। ये उद्योग यन्त्रों व विद्युत पर आधारित होते हैं।
भारत में कुटीर उद्योग के विकास की अनेक सम्भावनाएँ विद्यमान हैं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ स्थानीय संसाधनों के प्रयोग से ऐसे उद्योगों को विकसित किया जा सकता है। काफी प्रयासों के पश्चात् भी कुटीर उद्योगों के विकास में अनेक बाधाएँ उत्पन्न होती रही हैं।
कुटीर उद्योग के विकास हेतु सुझाव
कुटीर उद्योग के विकास के लिए निम्नलिखित सुझाव हैं
  1. पूँजी की उपलब्धता सरकार को पूँजी की उपलब्धता पर विशेष ध्यान केन्द्रित करना होगा, जिससे कुटीर उद्योगों को विकास में सहायता मिल सके।
  2. संसाधनों का प्रयोग सरकार को स्थानीय संसाधनों के प्रयोग पर विशेष बल देना होगा।
  3. विद्युतीकरण की अनिवार्यता ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण किया जाना आवश्यक है। इसके अभाव में कुटीर उद्योगों का विकास सम्भव नहीं है।
  4. कौशल विकास की सुविधा सरकार को स्थानीय स्तर पर युवाओं के कौशल विकास की व्यवस्था करनी चाहिए।
  5. कच्चे माल की उपलब्धता सरकार को कुटीर उद्योग से सम्बन्धित कच्चे माल की पूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए ।
  6. विपणन की सुविधा सरकार को कुटीर उद्योग में निर्मित उत्पादों के विपणन की उचित व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि कुटीर उत्पाद की बाजार तक पहुँच हो सके।
कुटीर व लघु उद्योग का आर्थिक विकास में महत्त्व
कुटीर एवं लघु उद्योग का आर्थिक विकास में महत्त्व / लाभ निम्नलिखित हैं
  1. कुटीर एवं लघु उद्योग कम पूँजी में शुरू हो सकते हैं अर्थात् कम पूँजी की आवश्यकता होती है।
  2. कुटीर एवं लघु उद्योग रोजगार सृजन एवं सन्तुलित क्षेत्रीय विकास की प्रक्रिया में योगदान देते हैं।
  3. कुटीर एवं लघु उद्योग में भारत की अर्थव्यवस्था में एक मजबूत, जीवन्त और विश्व स्तर पर प्रतिस्पद्ध क्षेत्र के रूप में उभरने की क्षमता है।
  4. भारत में युवा जनसंख्या अधिक है। उसका उचित उपयोग कुटीर एवं लघु उद्योग में किया जा सकता है।
  5. कुटीर एवं लघु उद्योग भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रश्न 2. उद्योगों द्वारा पर्यावरण के निम्नीकरण को कम करने के लिए उठाए गए विभिन्न उपायों की चर्चा कीजिए |
उत्तर – उद्योगों द्वारा पर्यावरण के निम्नीकरण को कम करने के लिए निम्न उपाय किए जा रहे हैं
  • विभिन्न प्रक्रियाओं में जल का न्यूनतम उपयोग तथा जल का दो या अधिक उत्तरोत्तर अवस्थाओं में पुनर्चक्रण द्वारा पुनः उपयोग ।
  • जल की आवश्यकता पूर्ति हेतु वर्षा जल संग्रहण
  • नदियों व तालाबों में गर्म जल को प्रवाहित करने से पहले उसका शोधन किया जाए। औद्योगिक अपशिष्ट का शोधन तीन चरणों में किया जा सकता है
    1. यान्त्रिक साधनों द्वारा प्राथमिक शोधन इसमें अपशिष्ट पदार्थों की छँटाई व उनके छोटे-छोटे टुकड़े करना, ढकना तथा तलछट जमाव आदि सम्मिलित हैं।
    2. जैविक प्रक्रियाओं द्वारा द्वितीयक शोधन इसमें वृक्षारोपण, वर्षा जल संग्रहण आदि सम्मिलित हैं।
    3. रासायनिक, जैविक तथा भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा तृतीयक शोधन इसमें अपशिष्ट जल को पुनर्चक्रण द्वारा पुनः प्रयोग योग्य बनाया जाता है।
  • उद्योगों द्वारा भूमिगत जल की अधिकतम निकासी को कानूनी रूप से नियमित किए जाने की आवश्यकता है।
  • जनरेटर और अन्य मशीनरी व उपकरणों में उनकी ध्वनि को कम करने के लिए साइलेंसर लगाना चाहिए।
  • कारखानों की धूम्र चिमनियों पर स्थिर विद्युत अवक्षेपक, कपड़े के फिल्टर, कसबी तथा जड़त्वीय पृथक्कारक लगाकर हवा में छोटे-छोटे कणों को कम किया जा सकता है।
प्रश्न 3. उद्योग पर्यावरण को कैसे प्रदूषित करते हैं?
उत्तर – उद्योगों का भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है, फिर भी इनके द्वारा बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण को भी नहीं नकारा जा सकता। उद्योग मुख्यत: चार प्रकार से पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं, जो निम्न हैं
  1. वायु प्रदूषण यह प्रदूषण वायु में सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनो-ऑक्साइड की उच्च अनुपात में उपस्थिति के कारण होता है। ये गैसें रसायन और पेपर मिलों, ईंट-भट्ठों, रिफाइनरी, प्रगलित संयन्त्रों और बड़े व छोटे कारखानों में जीवाश्म ईंधनों को जलाने से उत्सर्जित होती हैं। वायु प्रदूषण के कारण श्वसन सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
  2. जल प्रदूषण उद्योगों द्वारा कार्बनिक और अकार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों को नदियों में छोड़ने से जल प्रदूषण फैलता है। रँगाई, पेट्रोलियम रिफाइनरी, चर्म शोधनालयों और विद्युतलेपन उद्योग जल प्रदूषण फैलाने वाले मुख्य उद्योग हैं। जल प्रदूषण से पौधों, जलीय तथा मानवीय जीवन को खतरा होता है।
  3. ध्वनि प्रदूषण औद्योगिक और निर्माणक कार्यों, मशीनरी व उपकरणों से निकले शोर से ध्वनि प्रदूषण होता है। इस प्रकार का प्रदूषण बहरापन, हृदय गति में वृद्धि, रक्तचाप तथा विभिन्न शारीरिक प्रभावों का कारण बनता है।
  4. तापीय प्रदूषण यह प्रदूषण तब होता है, जब शीतलन से पहले कारखानों और तापीय संयन्त्रों से गर्म पानी को नदियों और तालाबों में छोड़ दिया जाता है। नाभिकीय तथा अस्त्र उत्पादक कारखानों से निकले अपशिष्ट कैंसर, अपंगता आदि बीमारियों के कारण बनते हैं।
प्रश्न 4. भारत के चीनी उद्योग का विवरण निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत दीजिए 
(क) कच्चे माल की उपलब्धता
(ख) उद्योग के प्रमुख केन्द्र
उत्तर – भारत के चीनी उद्योग कृषि पर आधारित दूसरा प्रमुख उद्योग है। भारत में चीनी उत्पादन में महाराष्ट्र प्रथम स्थान है। उत्तर प्रदेश का चीनी उत्पादन में दूसरा स्थान है, जबकि गन्ना उत्पादन में प्रथम स्थान पर है।
(क) कच्चे माल की उपलब्धता
चीनी उद्योग भारत का एक प्रमुख कृषि आधारित उद्योग है। चीनी उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में मुख्य रूप से गन्ने का उपयोग होता है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तराखण्ड, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में गन्ने का उत्पादन होता है, जिस कारण इसकी पर्याप्त मात्रा होने के कारण इस क्षेत्र में चीनी उद्योग का संकेन्द्रण है।
खाँडसारी, शक्कर व गुड़ के रूप गन्ने से इनका निर्माण तो प्राचीनकाल से ही होता रहा है, किन्तु आधुनिक काल में चीनी का प्रथम कारखाना 20वीं शताब्दी में दक्षिण भारत के कोयम्बटूर में स्थापित हुआ, हालाँकि 1841-42 ई. में उत्तरी बिहार में डच लोगों ने तथा 1899 ई. में अंग्रेजों ने चीनी उद्योग स्थापित करने का प्रयत्न किया था। वर्ष 1931 तक यह उद्योग धीमी गति से चलता रहा तथा चीनी विदेशों से आयात की जाती रही । .
वर्ष 1932 में सरकार ने टैरिफ बोर्ड के सुझाव पर इस उद्योग पर आयात कर लगाकर संरक्षण देने का प्रयास किया। वर्ष 1931-32 तक देश में कुल 32 मिलें थीं, जो वर्ष 1938-39 में बढ़कर 132 हो गईं। इसके साथ-साथ गन्ने का उत्पादन भी बढ़ा। वर्तमान में भारत विश्व में चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
(ख) उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र एवं केन्द्र
उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र एवं केन्द्र निम्न हैं
  • महाराष्ट्र इसका चीनी उत्पादन में प्रमुख स्थान है। यहाँ का चीनी उद्योग गोदावरी, प्रवरा, मूला-मूठा, कृष्णा एवं नीरा नदियों की घाटियों में उपजाए जाने वाले गन्ने के कारण फल-फूल रहा है। मनमाड़, नासिक अहमदनगर, शोलापुर, कोल्हापुर, औरंगाबाद, सतारा व सांगली प्रमुख चीनी उत्पादक जिले हैं।
  • उत्तर प्रदेश इस राज्य का चीनी उत्पादन में भारत में दूसरा स्थान है। गंगा-यमुना के दोआब में पैदा किए जाने वाले (देश में सर्वाधिक) गन्ने से यहाँ की चीनी मिलों को पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल प्राप्त होता है।
  • कर्नाटक चीनी उत्पादन में कर्नाटक का महाराष्ट्र एवं उत्तर प्रदेश के पश्चात् तीसरा स्थान है । बेलगाँव, मण्ड्या, बीजापुर, बेल्लारी, शिमोगा, चित्रदुर्ग आदि प्रमुख चीनी उत्पादक जिले हैं।
  • तमिलनाडु यहाँ की उपजाऊ काली मिट्टी में गन्ना प्रचुर मात्रा में पैदा होता है । यहाँ चीनी के प्रमुख उत्पादन केन्द्र मदुरै, उत्तरी व दक्षिणी अर्काट, कोयम्बटूर व तिरुचिरापल्ली हैं।
  • उत्तराखण्ड सामान्यतः पहाड़ी प्रदेश होने के कारण उत्तराखण्ड में गन्ना उत्पादन के लिए पर्याप्त भूमि नहीं है, परन्तु तराई वाले कुछ क्षेत्रों गन्ना के उत्पादन के कारण यहाँ चीनी मिलें स्थापित हैं। यहाँ मुख्य मिलें काशीपुर, नादेही, डोईवाला, बाजपुर, सितारगंज एवं किच्छा नामक स्थानों पर हैं।
प्रश्न 5. भारत में लौह-इस्पात उद्योग की उत्पादक इकाइयों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – भारत में लौह-इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है, जिसका विकास अन्य उद्योगों के लिए आवश्यक है। यह एक वजन ह्रास उद्योग है। अतः इस उद्योग की स्थापना कच्चे माल के क्षेत्र में की जाती है, ताकि परिवहन व्यय न्यूनतम रखा जा सके।
भारत में लौह-इस्पात उद्योग की उत्पादक इकाइयाँ
  • कुल्टी – बर्नपुर- हीरापुर ये तीनों कारखाने पश्चिम बंगाल के निकट स्थित हैं। लौह-अयस्क सिंहभूम क्षेत्र (झारखण्ड) से, कोयला रानीगंज, झरिया, रामगढ़ (झारखण्ड) से, चूना-पत्थर वीरमित्रपुर, गंगपुर (ओडिशा) से, मैंगनीज बड़ाजामदा-बाँसपानी (ओडिशा) से, जल दामोदर की सहायक नदी बराकर से प्राप्त किया जाता है। तीनों संयन्त्र आसनसोल – कोलकाता रेलमार्ग पर स्थित हैं। अत: निर्मित इस्पात को कोलकाता बाजार भेजना आसान है।
  • टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (TISCO), जमशेदपुर जमशेदपुर इस्पात संयन्त्र की लौह-अयस्क एवं कोयला क्षेत्र के मध्य आदर्श अवस्थिति है। यहाँ लौह-अयस्क सिंहभूम की नोआमुण्डी एवं ओडिशा की बादाम पहाड़ी से, कोकिंग कोयला की प्राप्ति झरिया से, कोयला की प्राप्ति ओडिशा की जोड़ा खानों से होती है। यह कोलकाता – मुम्बई मुख्य रेलमार्ग के निकट स्थित है। अतः निर्मित माल को कोलकाता पत्तन ( जमशेदपुर से 240 किमी दूर) तक लाना आसान है।
  • विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील वर्क्स (VISW), भद्रावती (कर्नाटक) यह संयन्त्र शिमोगा जिले (कर्नाटक) में भद्रावती नदी के तट पर स्थित है। VISW को इस नदी की जल सुविधा प्राप्त है। भारत के प्रसिद्ध इंजीनियर डॉ. विश्वेश्वरैया की स्मृति में इसका नाम रखा गया है।
  • राउरकेला इस्पात संयन्त्र, राउरकेला (ओडिशा) इस संयन्त्र की स्थापना वर्ष 1959 में जर्मनी के सहयोग से ओडिशा के सुन्दरगढ़ जिले में की गई थी। इस संयन्त्र को लौह-अयस्क की आपूर्ति ओडिशा के क्योंझर एवं सुन्दरगढ़ क्षेत्र से, कोयले की आपूर्ति झरिया से, कोयली एवं शंख नदियों से स्वच्छ जल की प्राप्ति होती है। यह कोलकाता – मुम्बई रेलमार्ग पर अवस्थित है, अतः परिवहन की सुविधा प्राप्त है।
  • भिलाई इस्पात संयन्त्र, भिलाई (छत्तीसगढ़) इसकी स्थापना रूस के सहयोग से छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में की गई है। यहाँ वर्ष 1959 में उत्पादन शुरू हुआ।
  • दुर्गापुर इस्पात संयन्त्र, दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) इस संयन्त्र की स्थापना पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले के दुर्गापुर नामक स्थान पर ब्रिटेन के सहयोग से की गई है। यहाँ वर्ष 1962 में इस्पात का उत्पादन प्रारम्भ हुआ।
  • बोकारो इस्पात संयन्त्र, बोकारो (झारखण्ड) इस संयन्त्र की स्थापना रूस की सहायता से बोकारो (झारखण्ड) में की गई है। यह दामोदर घाटी कोयला क्षेत्र में अवस्थित है।
प्रश्न 6. उद्योगों का एक संक्षिप्त वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए ।
अथवा स्वामित्व के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए ।
उत्तर – उद्योगों का वर्गीकरण
उद्योगों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है
प्रयोग किए गए कच्चे माल के आधार पर
कृषि आधारित उद्योग इनमें सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, पटसन, रेशमी वस्त्र, रबड़ चीनी, चाय, कॉफी, खाद्य तेल आदि उद्योग सम्मिलित हैं।
खनिज आधारित उद्योग लोहा एवं इस्पात उद्योग, सीमेण्ट, एल्युमीनियम, यांत्रिक उपकरण, पेट्रो-रसायन आदि को शामिल किया जाता है।
कच्चे माल द्वारा निभाई गई भूमिका के आधार पर
आधारभूत उद्योग वे उद्योग, जो अपने तैयार उत्पादों की आपूर्ति दूसरे उद्योगों को कच्चे माल के रूप में करते है, आधारभूत उद्योग कहलाते है; जैसे- लौह-इस्पात, प्रगलित ताँबा, प्रगलित एल्युमीनियम ।
उपभोक्ता उद्योग वे उद्योग, जो सीधे उपभोक्ताओं के उपयोग हेतु उत्पादन करते हैं, उपभोक्ता उद्योग कहलाते हैं; जैसे-चीनी, कागज, टूथपेस्ट, सिलाई मशीन, पंखे आदि ।
पूँजी निवेश के आधार पर
लघु उद्योग इन उद्योगों का अधिकतम निवेश एक करोड़ रुपये तक होता है ।
दीर्घ उद्योग इन उद्योगों में निवेश की सीमा ₹1 करोड़ से अधिक है।
स्वामित्व के आधार पर
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग वे उद्योग, जिनका संचालन व स्वामित्व सरकारी एजेंसियों द्वारा किया जाता है; जैसे- भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स (BHEL) व स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) आदि ।
निजी क्षेत्र के उद्योग वे उद्योग, जिनका संचालन व स्वामित्व किसी विशिष्ट व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा किया जाता है, निजी क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं; जैसे – टिस्को (TISCO), बजाज ऑटो लिमिटेड व डाबर उद्योग आदि । संयुक्त उद्योग ऐसे उद्योग, जो राज्य सरकार और विशिष्ट व्यक्तियों या उनके समूह के संयुक्त प्रयास से चलाए जाते हैं, संयुक्त उद्योग कहलाते हैं; जैसे – ऑयल इंडिया लिमिटेड ( OIL) आदि ।
सहकारी उद्योग ये वे उद्योग हैं, जिनका स्वामित्व और संचालन कच्चे माल की पूर्ति करने वाले उत्पादकों, श्रमिकों या दोनों के हाथों से होता है। इन उद्योगों में संसाधनों का कोष संयुक्त होता है तथा लाभ-हानि का विभाजन भी समानुपातिक होता है; जैसे – महाराष्ट्र में चीनी उद्योग व केरल में नारियल पर आधारित उद्योग आदि।
कच्चे एवं तैयार माल की मात्रा तथा भार के आधार पर
भारी उद्योग वे उद्योग, जिनमें विशाल मशीनों और भारी कच्चे माल का उपयोग भारी उत्पादों के उत्पादन में किया जाता है, भारी उद्योग कहलाते हैं। इनमें पूँजीगत उत्पाद शामिल होते हैं; जैसे – ऑटोमोबाइल्स और निर्माणक यंत्रक (Construction Machinery ) सम्बन्धी ।
हल्के उद्योग (Light Industries) वे उद्योग, जो हल्की उपयोगी सामग्री का उत्पादन करते हैं, हल्के उद्योग कहलाते हैं, जैसे- इलेक्ट्रिकल उद्योग व खिलौना उद्योग आदि ।
प्रश्न 7. भारत के आर्थिक विकास में खनिज आधारित उद्योगों के योगदान की विवेचना कीजिए | 
उत्तर – खनिज आधारित उद्योग
वे उद्योग, जो खनिज व धातुओं को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करते हैं, खनिज आधारित उद्योग कहलाते हैं। खनिज उद्योगों को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है
लोहा तथा इस्पात उद्योग
लोहा तथा इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है, क्योंकि अन्य सभी भारी हल्के और मध्यम उद्योग इनसे बनी मशीनरी पर निर्भर हैं। विविध प्रकार के इंजीनियरिंग सामान, निर्माण सामग्री, रक्षा, चिकित्सा, टेलीफोन वैज्ञानिक उपकरण और विभिन्न प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माण के लिए इस्पात की आवश्यकता होती है। इस्पात के उत्पादन तथा खपत को प्राय: एक देश के विकास का पैमाना माना जाता है। लोहा तथा इस्पात एक भारी उद्योग हैं, क्योंकि इसमें प्रयुक्त कच्चा तथा तैयार माल दोनों ही भारी और स्थूल होते हैं। इसके लिए अधिक परिवहन लागत की आवश्यकता होती है।।
एल्युमीनियम प्रगलन उद्योग
भारत में एल्युमीनियम प्रगलन दूसरा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण धातु शोधन उद्योग है। हवाई जहाज बनाने में बर्तन तथा तार बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है। कई उद्योगों में इसका महत्त्व इस्पात, ताँबा, जस्ता व सीसे के विकल्प के रूप में प्रयुक्त होने से बढ़ा है। उपरोक्त उद्योग भार के विकासात्मक कार्यों के योगदान प्रदान करते हैं, जो देश में आधारभूत संरचना तथा विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। ये उद्योग भारत के अधिकांश क्षेत्र में रोजगार भी प्रदान करते हैं।
प्रश्न 8. भारत में औद्योगिक विकास की क्या विशेषताएँ हैं? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – औद्योगिक विकास वह क्रिया है जिसके अन्तर्गत उत्पादन से सम्बन्धित कार्यों में होने वाले परिवर्तन होते रहते हैं। इन परिवर्तनों के कारण उत्पादन की प्रक्रिया में वृद्धि होती है।
भारत में औद्योगिक विकास की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
  1. भारत में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा है । स्वतन्त्रता के बाद, सरकार ने कई महत्त्वपूर्ण उद्यागों को स्थापित किया, जैसे- इस्पात, तेल, बिजली आदि । इन उद्योगों ने भारत के औद्योगिक विकास को गति दी है।
  2. भारत में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने में निजी क्षेत्र की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है। इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल्स और टेक्सटाइल जैसे उद्योगों में निवेश ने भारत के औद्योगिक विकास को और गति प्रदान की है।
  3. भारत में औद्योगिक विकास के लिए आधारभूत संरचना का विकास आवश्यक था। सरकार ने इस दिशा में भी कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं; जैसे – सड़क, रेल, हवाई अड्डे और बन्दरगाहों के विकास पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।
  4. भारत में औद्योगिक विकास में प्रौद्योगिकी का विकास भी महत्त्वपूर्ण रहा है। सरकार ने कई प्रौद्योगिकी संस्थानों की स्थापना और प्रौद्योगिकी हबों का विकास भी किया।

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