UP Board Solutions for Class 11 English Poetry Short Poem
UP Board Solutions for Class 11 English Poetry Short Poem Chapter 2 The Scholar
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About the Poet : Robert Southey was born in 1774. He was a well-known writer of verse and prose. He was a close friend of S. T. Coleridge.
About the Poem: The poem is about a scholar who passes most of his time in reading books of dead authors. He feels as if he is enjoying their company. He loves the virtues of these authors and condemns their vices. He learns a lot from them. He hopes to travel with these authors till eternity and to be immortal like them.
Central Idea
In this poem the poet assumes himself a scholar. He passes most of his time in reading the books of great authors who are now dead. He feels as if he were enjoying their company. He regards them as his best friends. He loves their virtues and condemns their vices. He learns a lot from them. He hopes that people will read his books also like the books of these authors and will remember him till eternity. Thus he will become immortal. [M. Imp.]
(इस कविता में कवि स्वयं को एक विद्वान् मान लेता है। वह अपना अधिकांश समय उन महान् लेखकों की पुस्तकें पढ़ने में व्यतीत करता है जो मर गए हैं। वह ऐसा अनुभव करता है मानो वह उनकी संगति में आनन्द ले रहा हो। वह सच्चे मित्र के समान उनका सम्मान करता है। वह उनके सद्गुणों से प्रेम करता है और उनके दुर्गुणों को त्याग देता है। वह उनसे बहुत कुछ सीखता है। वह आशा करता है कि लोग उसकी पुस्तकों को भी इन लेखकों के समान ही पढ़ेंगे और अनन्त-काल तक उसे याद रखेंगे। इस प्रकार वह अमर हो जाएगा।)
EXPLANATIONS (With Meanings & Hindi Translation)
1. My Days among the Dead are past;
Around me I behold,
Where’er these casual eyes are cast,
The mighty minds of old :
My never-failing friends are they,
With whom I converse day by day.
[Word-meanings : days = सम्पूर्ण जीवन entire life; dead = मृत लेखक dead authors;
behold = देखता हूँ see; casual eyes are cast = संयोग से दृष्टि पड़ती है by chance I look at; mighty minds of old = पुराने समय के महान् विचारक great thinkers of old time; never failing = सच्चे true; converse = बातचीत करता हूँ talk.]
भावार्थ- विद्वान् व्यक्ति कहता है कि उसका सारा जीवन उन लेखकों की पुस्तकें पढ़ने में व्यतीत हुआ है। जो मर गए हैं। जहाँ कहीं भी उसकी दृष्टि पड़ती है वहीं अपने चारों ओर वह उन लेखकों की पुस्तकें पाता है। जिनके मस्तिष्क बहुत महान् थे और जिन्होंने उत्तम कोटि की पुस्तकें लिखी हैं। विद्वान् व्यक्ति कहता है कि मृत लेखक मेरे सच्चे मित्र हैं और मैं प्रतिदिन उनसे बातचीत करता हूँ अर्थात् विद्वान् व्यक्ति उन महान् लेखकों से उनकी महान् पुस्तकों के माध्यम से अपने विचारों का आदान-प्रदान करता है।
Reference : This stanza has been taken from the poem ‘The Scholar’ composed by Robert Southey.
[ N.B. : The above reference will be used for all the explanations of this poem.]
Context: In these lines the poet thinks himself a scholar. He is fond of reading books of great authors and exchanging his views with them. So he regards these books as his true friends. He also describes the likes and dislikes, aspirations and dreams of a scholar.
Explanation : The poet has a small library which contains many books of great authors. He spends much of his time in reading these books. He gets a great joy and exchanges his views with them through the medium of these books. He feels as if he were enjoying the company of those great authors. So he regards them as his true friends.
(कवि के पास एक छोटा पुस्तकालय है जिसमें महान् लेखकों की बहुत-सी पुस्तकें हैं। वह अपना अधि- कांश समय इन पुस्तकों को पढ़ने में व्यतीत करता है। वह इसमें बहुत आनन्द प्राप्त करता है और इन पुस्तकों के माध्यम से अपने विचारों का उनके विचारों से आदान-प्रदान करता है। वह ऐसा अनुभव करता है मानो। इन लेखकों की संगति का आनन्द ले रहा हो। इसलिए वह उन्हें अपना सच्चा मित्र मानता है।)
2. With them I take delight in weal
And seek relief in woe;
And while I understand and feel
How much to them I owe,
My cheeks have often been bedew’d
With tears of thoughtful gratitude.
[ Word-meanings : delight = आनन्द joy; weal = सुख-समृद्धि prosperity; seek = ढूंढता हूँ। find;
relief = चैन ; woe = दुःख sorrow, understand = समझना ; owe = ऋणी हूँ am ndebted;
cheek = गाल ; often = बहुधा many times; bedew’d = भीग गये wet; thoughtful = विचारपूर्ण full of thoughts; gratitude = कृतज्ञता gratefulness. ]
भावार्थ- विद्वान् कहता है कि इन पुस्तकों को पढ़कर समृद्धि एवं सम्पन्नता में उसे आनन्द प्राप्त होता है और दु:ख में उनसे उसे सान्त्वना मिलती है (इसलिए वे मेरी मित्र हैं)। विद्वान् व्यक्ति कहता है कि जब मैं इस बात पर विचार करता हूँ, तब मुझे अनुभव होता है कि मैं उनका कितना ऋणी हूँ। कृतज्ञता के ऐसे विचार मेरे मन में आते हैं तब मेरे आँसू बहने लगते हैं और मेरे गाल आँसुओं से भीग जाते हैं।
Context: In these lines the poet thinks himself to be a scholar. He is fond of reading books of great authors and exchanging his views with them. So he regards these books as his true friends. He also describes the likes and dislikes, aspirations and dreams of a scholar.
Explanation : In this stanza the poet says that the books serve him as a true friend. Whenever he is in a happy mood, he gets joy in reading them. Whenever he is sad and melancholy, he gets comfort and consolation. Thus the books are his companions of joys as well as of sorrows. When he thinks it, he feels himself very much indebted to the writers of these books. He becomes emotional and tears of gratitude begin to flow and make his cheeks wet.
(इस पद्यांश में कवि कहता है कि पुस्तकें उसके लिए सच्चे मित्र के समान कार्य करती हैं। जब भी वह प्रसन्न मुद्रा में होता है तब उसे उन्हें पढ़ने में आनन्द प्राप्त होता है। जब कभी वह दु:ख की मुद्रा में होता है। तब उसे आराम और सान्त्वना मिलती है। इस प्रकार पुस्तकें उसकी आनन्द की भी और दुःख की भी साथी हैं। जब वह इस बात को सोचता है तब वह स्वयं को इन पुस्तकों के लेखकों का बहुत ऋणी मानता है। वह भावुक हो जाता है और एहसान के आँसू बहने लगते हैं तथा उसके गाल भीग जाते हैं।)
3. My thoughts are with the Dead; with them
I live in long-past years,
Their virtues love, their faults condemn,
Partake their hopes and fears,
And from their lessons seek and find
Instruction with an humble mind.
[ Word-meanings : dead = मृत लेखका dead authors; virtues = गुण qualities; faults = दोष evils;
condemn = त्यागना, अनदेखा करना overlook; partake = हिस्सा बँटाना share; lessons = बुद्धिमानी से भरे पाठ lessons full of wisdom; instruction = शिक्षा advice; an humble mind = विनम्रता से with extreme humility.]
भावार्थ- इस पद्यांश में विद्वान् व्यक्ति उन लोगों का वर्णन करता है जो उसे पुस्तकें पढ़ने से प्राप्त होते हैं। जब वह मृत लेखकों की पुस्तकें पढ़ता है तब उसके विचार भी उन्हीं जैसे हो जाते हैं और वह ऐसा अनुभव करता है मानो उनके जीवन-काल के दिनों में उन्हीं के साथ रह रहा है अर्थात् उसे भूतकाल के विषय में भी पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाता है। विद्वान् व्यक्ति उनके गुणों से प्यार करता है और उन्हें अपनाता है तथा उनके दोषों की ओर ध्यान नहीं देता। वह उनकी आशाओं तथा भय में हिस्सा बँटाता है। अत: विद्वान् व्यक्ति बड़ी विनम्रता से उनके बुद्धिमानी से भरे पाठों से शिक्षा प्राप्त करता है।)
Context: In these lines the poet says that he has a small library having books of great authors. He regards them as his friends and exchanges his views with them. He gets joy and consolation in reading them. So he thinks himself to be very grateful to them.
Explanation: In this stanza the scholar says that whenever he reads the books of great authors, his ideas also become the same as of those authors. He feels as if he were living with them in those past days. He gets the knowledge of past days. The poet accepts their noble qualities and hates their evils. Whenever he reads the lesson full of wisdom in these books, he learns a lot from them with extreme humility.
(इस पद्यांश में विद्वान् कहता है कि जब कभी वह महान् लेखकों की पुस्तकें पढ़ता है तब उसके विचार भी उन लेखकों के समान ही हो जाते हैं। वह ऐसा अनुभव करता है मानो वह भूतकाल के दिनों में उन्हीं के साथ रह रहा हो। उसे भूतकाल के दिनों का ज्ञान प्राप्त होता है। कवि उनके अच्छे गुणों को स्वीकार करता है और उनकी बुराइयों से घृणा करता है। जब कभी वहे पुस्तकों में बुद्धिमानी भरे पाठ पढ़ता है तब वह उनसे बड़ी विनम्रता के साथ ढेर सारी बातें सीखता है।)
4. My hopes are with the Dead; anon
My place with them will be,
And I with them shall travel on
Through all Futurity;
Yet leaving here a name, I trust,
That will not perish in the dust. [Imp.]
[ Word-meanings : anon = शीघ्र soon; travel on = जीवित रहना remain alive; futurity = अनन्त भविष्य eternal future; perish = अन्त होना, समाप्त होना die.]
भावार्थ- विद्वान् व्यक्ति कहता है कि मेरी आकांक्षाएँ भी मृत लेखकों के समान ही हैं और शीघ्र ही मेरा स्थान भी उनके साथ ही हो जाएगा अर्थात् मैं शीघ्र ही मर जाऊँगा और अनन्त भविष्य में मैं भी उन्हीं के साथ यात्रा करूंगा। संसार के सभी स्थानों पर उसकी पुस्तकें भी इन लेखकों के समान ही पढ़ी जाएँगी। वह आशा करता है कि उसकी मृत्यु के पश्चात् लोग उसे भी नहीं भूलेंगे और उसका नाम भी अमर हो जाएगा।
Context: In this poem the poet says that he has a small library having books of great authors. He reads them and exchanges his views with them. He gets joy and consolation in reading them. So he thinks himself to be very grateful to them.
Explanation: In this concluding stanza the scholar says that his ambitions are similar to those of dead authors. He will also die soon and he will be in the line of dead authors. The people will read his books also as they read the books of dead authors. His thoughts will also travel from one place to another in the form of books. The scholar will become immortal just as his favourite authors are. The coming generations will not forget him.
(इस अन्तिम पद्यांश में विद्वान् कहता है कि उसकी अभिलाषाएँ भी मृत लेखकों के समान ही हैं। वह भी शीघ्र ही मर जाएगा और मृत लेखकों की पंक्ति में आ जाएगा। लोग उसकी पुस्तकों को भी उसी प्रकार पड़ेंगे जिस प्रकार वे मृत लेखकों की पुस्तकें पढ़ते हैं। उसके विचार भी पुस्तकों के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान तक । यात्रा करेंगे। विद्वान् व्यक्ति भी उसी प्रकार अमर हो जाएगा जिस प्रकार उसके प्रिय लेखक अमर हुए हैं। आने वाली पीढ़ियाँ उसे भूलेंगी नहीं।)