UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 10
UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 10 Juvenile Delinquency (बाल-अपराध)
विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)
प्रश्न 1
बाल-अपराध से आप क्या समझते हैं ? बाल-अपराध के कारकों को समझाइए। [2009, 10, 11, 13, 16]
या
बाल-अपराध क्या है? इसके प्रमुख कारणों की व्याख्या कीजिए। [2015, 16]
या
बाल-अपराध के कारणों की विवेचना कीजिए। [2009, 11, 12, 15, 17]
या
बाल-अपराध के व्यक्तिगत और मनोवैज्ञानिक कारणों को स्पष्ट कीजिए। [2015]
या
बाल-अपराध विखण्डित परिवार की देन है।” भारत के सन्दर्भ में इस कथन का विश्लेषण कीजिए। [2012, 13]
या
भारत में बाल-अपराध में वृद्धि के कारणों को स्पष्ट कीजिए। [2015]
या
बाल-अपराध के सामाजिक कारण बताइए। [2015, 16]
या
बाल अपराध की समस्या को दूर करने का उपाय बताइए। [2017]
उत्तर:
बाल-अपराध का अर्थ
एक निश्चित आयु के बालक द्वारा समाज में निषिद्ध अथवा कानून विरोधी कार्य करना बालअपराध कहलाता है। बाल-अपराध दो शब्दों का संयोग है–‘बाल + अपराध’। ‘बाल’ का अर्थ है – बालक या किशोर, ‘अपराध’ का अर्थ है-कानून का उल्लंघन। इस प्रकार बाल-अपराध को शाब्दिक अर्थ हुआ किशोर द्वारा किया गया अपराध। भारत में 1960 व 1986 ई० में बाल अधिनियम पारित किये गये। इनके अनुसार 16 वर्ष की आयु के लड़के तथा 18 वर्ष की आयु की लड़की को बालक माना गया।
इस प्रकार भारत में 7 वर्ष से 16 वर्ष की आयु तक के लड़के तथा 7 वर्ष से 18 वर्ष तक की लड़की द्वारा किया गया कानून-विरोधी कार्य बाल-अपराध माना जाता है। इसके पश्चात् 21 वर्ष की आयु तक के अपराधी को किशोर अपराधी कहा जाता है। सदरलैण्ड ने 16 वर्ष से कम आयु के सभी अपराधियों को बाल-अपराधी कहा है। बाल-अपराध के लिए आयु मिस्र, इराक, लेबनान, सीरिया तथा ब्रिटेन में 16 वर्ष है, जब कि ईरान, जॉर्डन, सऊदी अरब, यमन, तुर्किस्तान तथा थाइलैण्ड में यह 18 वर्ष है। जापान में बाल-अपराधी 20 वर्ष से कम आयु का ही माना जाता है। बालक द्वारा की जाने वाली ऐसी उद्दण्डता को, जो समाज-विरोधी या कानून-विरोधी है, बाल-अपराध कहते हैं। बाल-अपराध वर्तमान समय की एक महत्त्वपूर्ण एवं गम्भीर समस्या है। तथा इसकी दर में वृद्धि सामाजिक व पारिवारिक विघटन की सूचक मानी जाती है।
बाल-अपराध की परिभाषा
बाल-अपराध का अर्थ निश्चित आयु से कम आयु के व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला अपराध है। जब निश्चित आयु से कर्म के बच्चों या युवकों द्वारा कोई अनुचित व समाज-विरोधी कार्य किया जाता है तो उसे बाल-अपराध कहते हैं। बाल-अपराध को ठीक-ठीक अर्थ समझने के लिए हमें इसकी परिभाषाओं का अध्ययन करना होगा। विभिन्न समाजशास्त्रियों ने बाल-अपराध को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है
माउरर के अनुसार, “बाल-अपराधी वह व्यक्ति है, जो जान-बूझकर इरादे के साथ तथा समझते हुए उसे समाज की रूढ़ियों की उपेक्षा करता है जिससे उसका सम्बन्ध है। ऐसे व्यक्ति द्वारा किये गये अपराध को बाल-अपराध कहा जाएगा।”
सेथना के अनुसार, “बाल-अपराध के अन्तर्गत उस तरुण व्यक्ति के गलत कार्य आते हैं जो कि सम्बन्धित स्थान के कानून (जो उस समये लागू हों) के द्वारा निर्दिष्ट आयु-सीमा के अन्दर आता है।”
रॉबिन्सन के अनुसार, “बाल-अपराध के अन्तर्गत आवारागर्दी और भीख माँगना, दुर्व्यवहार, बुरे इरादे से शैतानी करना और उद्दण्डता सम्मिलित किये जाते हैं।”
न्यूमेयर के अनुसार, “बाल-अपराधी एक निश्चित आयु से कम का वह व्यक्ति है जिसने समाज-विरोधी कार्य किया है और जिसका दुर्व्यवहार कानून को तोड़ने वाला है।”
सिरिल बर्ट के अनुसार, “किसी बालक को बाल-अपराधी वास्तव में तभी मानना चाहिए जब उसकी समाज-विरोधी प्रवृत्तियाँ इतना गम्भीर रूप धारण कर लें कि उसके विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही की जाए या वह उस कार्यवाही के योग्य हो जाए।”
हेली के अनुसार, “एक बालक जो सामाजिक व्यवहार के मान से विचलित हो रहा हो, बालअपराधी कहलाता है।
मेनगोल्ड के अनुसार, “बाल-अपराधी वह अपराधी व्यक्ति है जो आवश्यक रूप से किसी विशेष अपराध करने से अभियुक्त नहीं होता, अपितु उसमें समाज-विरोधी दृष्टिकोण तथा व्यवहार के लक्षणों का विकास हो जाता है, जो यदि नहीं रोके गये तो वे नि:सन्देह ऐसे कार्यों की ओर अग्रसर होंगे जिन्हें लोग सहन नहीं कर सकेंगे।”
वास्तव में, बाल-अपराधी होने का आधार आयु है। बाल-अपराध एक निश्चित आयु के बालक द्वारा किया गया कानून-विरोधी कार्य है। बाल-अपराध में समाज-विरोधी कार्यों को भी सम्मिलित किया जाता है।
अमेरिका की राष्ट्रीय परिवीक्षा समिति (National Probation Association of United States of America) ने बाल-अपराध को निम्नलिखित रूप से परिभाषित किया है – बाल-अपराधी वह है जिसने
- किसी प्रान्त अथवा इसके किसी क्षेत्र के कानून अथवा मान्यता का उल्लंघन किया हो।
- जो सुधार से परे, उद्दण्ड हो और अपने माता-पिता, संरक्षक अथवा कानून अधिकारियों के नियन्त्रण से परे हो।
- जिसे स्कूल से अनुपस्थित रहने की आदत पड़ गयी हो।
- जो इस प्रकार व्यवहार करता हो जिससे वह जानबूझकर अपनी या अन्य व्यक्तियों की नैतिकता अथवा स्वास्थ्य को हानि पहुँचाए।
बाल-अपराध के लक्षण
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि बाल-अपराध में निम्नलिखित लक्षण पाये जाते हैं|
- राज्य द्वारा निश्चित आयु से कम आयु का व्यक्ति;
- व्यवहार की गम्भीरता;
- कानून का उल्लंघन;
- अनैतिक एवं अशोभनीय व्यवहार;
- जान-बूझकर अनैतिक एवं बुरे व्यक्तियों से सम्पर्क;
- रात्रि को बिना उद्देश्य घूमना;
- स्कूल से भागने की आदत;
- सार्वजनिक स्थान पर गन्दी, असभ्य व निम्न स्तर की भाषा का आदतन प्रयोग;
- सार्वजनिक स्थानों पर बीड़ी-सिगरेट इत्यादि पीना तथा
- विकास का अनुकूल स्तर न होना।
बाल-अपराध के कारण
बाल-अपराध एक गम्भीर सामाजिक समस्या है। प्रत्येक समाज में इसके कारण हूँढ़ने का प्रयास किया जाता है। बाल-अपराधी किसी एक विशिष्ट कारण की देन नहीं है, इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी हैं। सामान्य रूप से बाल-अपराध के निम्नलिखित कारण हैं
(अ) बाल-अपराध के पारिवारिक कारण
बाल-अपराध के लिए परिवार सम्बन्धी कारणों को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना गया है। परिवार को बच्चे की प्रथम पाठशाला कहा जाता है, क्योंकि बच्चे को एक अच्छा नागरिक बनाने अथवा उसे बिगाड़ने में पारिवारिक परिस्थितियाँ महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। जब परिवार बच्चे को सामाजिकमानसिक सुरक्षा प्रदान करने में असफल हो जाता है और बच्चा स्वयं को उपेक्षित महसूस करने लगता है, तो वह बाल-अपराधी बन जाता है। सामान्यत: निम्नलिखित पारिवारिक परिस्थितियाँ बाल-अपराध के लिए उत्तरदायी हैं1. भग्न परिवार तथा नष्ट परिवार-भग्न परिवार से अर्थ ऐसे परिवारों से है, जो शारीरिक , अथवा मानसिक अथवा दोनों दृष्टियों से टूटे हुए होते हैं। शारीरिक अथवा भौतिक दृष्टि से भग्न परिवारों में माता-पिता में से किसी एक या दोनों के न होने या सौतेली माता के होने से बच्चे उपेक्षित होकर अपराधी बन बैठते हैं। मानसिक दृष्टि से भग्न परिवारों में माता-पिता तथा बच्चे अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते, एक-दूसरे का सम्मान नहीं करते तथा बच्चे। स्वयं को उपेक्षित महसूस करते हैं और बाल-अपराध की ओर सरलता से आकृष्ट हो जाते हैं। सुधार-गृहों और बाल-न्यायालयों में आने वाले अधिकांश बालक भग्न परिवारों से ही होते है।
2. परिवार का आर्थिक स्तर – परिवार की आर्थिक स्तर नीचा होने तथा अत्यधिक निर्धनता के फलस्वरूप बालक अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए गैर-सामाजिक या गैर-कानूनी कार्यों की ओर आकर्षित हो जाते हैं। यद्यपि परिवार की निर्धनता बाल-अपराध का अनिवार्य कारण नहीं है तथापि इसकी बाल-अपराधों को प्रोत्साहन देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
3. दोषपूर्ण अनुशासन – यदि परिवार का बच्चे पर नियन्त्रण ठीक नहीं है तो भी वह अपराधी प्रवृत्तियों की ओर आकर्षित हो जाता है। बच्चे पर सन्तुलित वे अनवरत अनुशासन उसे अच्छा नागरिक बनाता है, जब कि दोषपूर्ण अनुशासन उसे बिगाड़ देता है। परिवार में बच्चे के साथ अत्यधिक स्नेह, अत्यधिक तिरस्कार या पक्षपातपूर्ण व्यवहार उन्हें बाल-अपराधी बनाता है।
4. घर का दुषित वातावरण – घर का दूषित वातावरण बच्चे को अपराध की दुनिया में धकेलने में सर्वाधिक उत्तरदायी है। अपराध प्रवृत्ति का पिता, व्यभिचारिणी माँ तथा अनैतिक कार्यों में संलग्न भाई-बहन बच्चे को बाल-अपराधी बना देते हैं।
5. सौतेले माता – पिता का व्यवहार-सौतेले माता-पिता द्वारा यदि बच्चों की उपेक्षा की जाती है, अथवा उनके प्रति गलत व्यवहार किया जाता है तो भी बच्चे अपराधी प्रवृत्तियों की ओर आकर्षित हो जाते हैं तथा उनका व्यवहार अपराधी बन जाता है।
6. परिवार का वृहत आकार – यदि परिवार का आकार वृहत् है, परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और रहने के लिए पर्याप्त कमरे नहीं हैं तो बच्चों के बाल-अपराधी बनने की सम्भावना अधिक होती है।
7. अशान्त परिवार – यदि परिवार में एकता का अभाव है और लड़ाई-झगड़ों से मानसिक तनाव रहता है, तो वह असुरक्षा व अस्थायित्व की स्थिति बच्चों पर बुरा प्रभाव डालती है और उन्हें बाल-अपराधी बनने में सहायता देती है।
(ब) बाल-अपराध के व्यक्तिगत कारण
पारिवारिक कारणों के साथ-साथ बाल-अपराध के लिए कुछ व्यक्तिगत या शारीस्कि कारण भी उत्तरदायी हैं। इनका सम्बन्ध व्यक्ति के व्यक्तित्व से है। लॉम्बोसो, बर्ट, दुहन आदि विद्वानों ने बाल-अपराध में व्यक्तिगत व शारीरिक कारणों को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना है। कुछ प्रमुख व्यक्तिगत व शारीरिक कारण निम्नलिखित हैं
1. शारीरिक असामान्यता – यदि बच्चों का शरीर अस्वस्थ है अथवा इसमें शारीरिक असमानताएँ पायी जाती हैं तो ऐसे बच्चे शारीरिक दृष्टि से स्वयं को दुर्बल अनुभव करते हैं, स्कूल को कार्य ठीक नहीं कर पाते और हीनता की भावना का शिकार होकर बाल-अपराधी बन जाते हैं।
2. शारीरिक दोष – शारीरिक दोष एवं विकृति बच्चों में हीनता की भावना भर देती है और वे अपनी असफलताओं की पूर्ति के लिए अपराध की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं। लँगड़े, लूले, हकलाने वाले तथा ऐसे ही अन्य शारीरिक दोषों वाले बच्चों में हीनता की भावना ऐसी प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न कर सकती हैं, जो बाल-अपराध के लिए उत्तरदायी हैं।
3. लम्बी बीमारी – अध्ययनों से पता चला है कि लम्बी बीमारी भी बाल-अपराध का एक कारण है। लम्बी बीमारी के कारण बच्चों का स्वास्थ्य सामान्य नहीं रहता, वे अधिक चिड़चिड़े हो जाते हैं और कई बार बाल-अपराधी बन जाते हैं।
4. अपूर्ण इच्छाएँ – जब बच्चों की मौलिक आवश्यकताएँ पूरी नहीं होतीं तो उनमें असन्तुलने , की स्थिति आ जाती है और वे भावात्मक अस्थिरता की स्थिति में अनैतिक कार्यों की ओर अग्रसर हो जाते हैं। जब वे अनैतिक व गैर-सामाजिक ढंग से अपनी इच्छाएँ पूरी करते हैं तो बाल-अपराधी बन जाते हैं।
(स) बाल-अपराध के मनोवैज्ञानिक कारण
मनोवैज्ञानिक कारण व्यक्तिगत कारणों से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं। यदि बच्चे का विकास मानसिक रूप से दोषपूर्ण हुआ है तो वह असुरक्षित महसूस करता है और हीन भावना से ग्रसित होकर बाल-अपराधी बन जाता है। बाल-अपराध के प्रमुख मनोवैज्ञानिक कारण निम्नलिखित हैं
1. मानसिक दुर्बलता – गोडार्ड ने मानसिक दुर्बलता को बाल-अपराध का कारण माना है। यह मानसिक दुर्बलता जन्मजात भी हो सकती है अथवा किसी मानसिक आघात का परिणाम भी हो सकती है। मानसिक रूप से दुर्बल बच्चे ठीक प्रकार से सोच-विचार नहीं कर सकते, शिक्षा को ग्रहण करने में असमर्थ होते हैं और सरलता से बाल-अपराधी बन जाते हैं।
2. संवेगात्मक अस्थिरता – संवेगात्मक अस्थिरता मानसिक संघर्ष का परिणाम है तथा इसे भी – बाल-अपराध का एक मुख्य कारण माना गया है। हीले तथा बूनर ने 105 बाल-अपराधियों में से 15 बाल-अपराधियों में मानसिक अस्थिरता को अपने अध्ययन में प्रमुख रूप से उत्तरदायी बताया है।
3. मन्द बुद्धि वाले बच्चे – यदि बच्चा अपनी आयु के अन्य बच्चों की तुलना में मन्द बुद्धि वाला है तो उसमें हीनता की भावना पैदा हो जाती है। इस हीन भावना के कारण जीवन से निराश होकर वह बाल-अपराधी बन जाता है।
4. अतिवृद्ध बालक – अनेक बच्चे अपनी आयु के सामान्य बच्चों की तुलना में अतिवृद्ध (Over-grown) होते हैं तथा अपनी आयु से बड़े लोगों की संगति में रहते हैं। कई बार बुरी सँगति से वे बाल-अपराधी बन जाते हैं।
(द) बाल-अपराध के सामुदायिक (सामाज़िक) कारण’
सामुदायिक परिस्थितियाँ भी बच्चों के दोषपूर्ण व्यवहार के लिए उत्तरदायी हैं। कुछ प्रमुख सामुदायिक कारण निम्नलिखित हैं
1. बुरा पड़ोस – परिवार के साथ-साथ बच्चे के समाजीकरण पर पड़ोस का भी पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। यदि पझेस अच्छा नहीं है अर्थात् भीड़ वाला या गन्दी बस्तियों का वातावरण है तो इसका प्रभाव बच्चों पर बुरा पड़ता है और ये भी असामाजिक कार्य करने लगते हैं। पड़ोस बालक को अपराध के लिए प्रेरणा देने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
2. स्वस्थ मनोरंजन की कॅमी – बच्चों के लिए खेल मनोरंजन का महत्त्वपूर्ण साधन है। यदि मनोरंजन के साधनं बच्चों को उपलब्ध नहीं हैं तो वह इस समय का दुरुपयोग करके कुसंगति में पड़ सकता है। गन्दी बस्तियों में खेल-कूद तथा स्वस्थ मनोरंजन के साधनों के अभाव के | कारण ही उनमें बाल-अपराध अधिक पनपते हैं।
3. स्कूल का दूषित वातावरण – यदि स्कूल का वातावरण दूषित है तो बच्चे कक्षाओं में अधिक देर तक नहीं रुक पाते, पढ़ने में उनकी रुचि कम हो जाती है और वे स्कूल से बाहर इधर-उधर बैठकर आवारागर्दी करते रहते हैं। पढ़ाई से पिछड़ जाने के कारण भी बच्चे बाल अपराधी बन जाते हैं।
4. गन्दा व आपत्तिजनक साहित्य – गन्दा व आपत्तिजनक साहित्य भी बच्चों को बिगाड़ने में सहायक होता है। अश्लील व यौन-इच्छा भड़काने वाला साहित्य अथवा अपराध की कथाओं वाले साहित्य का बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ता है और वे बाल-अपराधी बन जाते हैं।
5. युद्ध – युद्ध के समय सामाजिक विघटन की परिस्थिति पैदा हो जाती है, जिसके कारण बाल-अपराधों की संख्या भी बढ़ जाती है। युद्धकाल में परिवर्तित परिस्थितियों व कठोर नियन्त्रण से अनेक बच्चे अपनी रुचियों व आदतों का समायोजन नहीं कर पाते जिसके कारण वे बाल-अपराधी बन जाते हैं।
6. नगरीकरण एवं औद्योगीकरण – नगरीकरण एवं औद्योगीकरण के कारण भी समाज में अनेक समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। दोनों प्रक्रियाएँ अपराध और बाल-अपराध को प्रोत्साहन देती हैं। नगरों और औद्योगिक केन्द्रों में इसलिए बाल-अपराधियों की संख्या अधिक पायी जाती है।
बाल-अपराध के उपर्युक्त कारण अधिकतर नगरों में पाये जाते हैं। ग्रामीण वातावरण में ये कारण अधिक क्रियाशील नहीं होते हैं। इसलिए बाल-अपराधों की मात्रा ग्रामों की अपेक्षा नगरों में अधिक होती है। यह कथन भारत के लिए ही नहीं, अपितु अनेक अन्य देशों के लिए भी सही है।
प्रश्न 2
बाल-अपराध रोकने के आवश्यक उपाय बताइए। [2009]
या
अपराध व बाल-अपराध में अन्तर बताइए। [2007, 08, 09, 10, 12, 13, 14, 15, 16]
या
बाल-अपराधियों को सुधारने के लिए किये गये उपायों को आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। [2011]
या
भारत में बाल-अपराध निरोध के सन्दर्भ में बने सामाजिक विधानों का उल्लेख कीजिए।
या
भारत में बाल-अपराध के उपचार में हो रहे गैर-सरकारी प्रयत्नों पर प्रकाश डालिए।
या
भारत में बाल-अपराध को रोकने हेतु किये गये उपायों को स्पष्ट करें। [2011, 12]
उत्तर:
बालक राष्ट्र का भविष्य होते हैं। राष्ट्र की प्रगति और विकास की दिशा बच्चों पर ही निर्भर करती है। बच्चों को अपराध करने से रोककर राष्ट्र का भविष्य सुधारा जा सकता है। बालअपराध रूपी विषवृक्ष को तभी समूल नष्ट कर देना चाहिए जब यह अंकुरित हो। बाल-अपराध हमारी गम्भीर सामाजिक समस्या है, जिसका निश्चित समाधान खोजना नितान्त आवश्यक है। बालअपराध का उपचार करने के लिए ऐसे उपाये काम में लाने चाहिए जिससे बाल-अपराध पर प्रभावी रोक लग सके तथा बाल-अपराधी भविष्य में समाज की मुख्य धारा से जुड़कर उसके उपयोगी अंग बन सकें। बाल-अपराध का उपचार निम्नलिखित रूप में किया जाना चाहिए
(क) बाल-अपराध उपचार के सरकारी प्रयास
सरकार ने बाल-अपराध की रोकथाम के लिए अनेक पग उठाये हैं। इनमें से कुछ प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं
1. बाल अधिनियम, 1960 – भारतीय संसद द्वारा पारित इस अधिनियम में उपेक्षित बालकों व बाल-अपराधियों की सुरक्षा, कल्याण, प्रशिक्षण, शिक्षा के पुनर्वास इत्यादि उपलब्ध कराने की सुविधाओं पर बल दिया गया है। इसमें बालकों की आयु लड़के के लिए 16 वर्ष तथा लड़की के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गयी है। बाल-न्यायालयों की स्थापना इसी अधिनियम के अन्तर्गत की गयी है। इस अधिनियम के अन्तर्गत निम्नलिखित सुधार संस्थाओं की स्थापना की गयी है
- आवास अवलोकन गृह – पूछताछ के दौरान बच्चों को इन केन्द्रों में रखा जाता है और इनमें शिक्षा इत्यादि की प्रमुख सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं।
- बालगृह – बालगृहों में उपेक्षित बच्चों को आवास, शिक्षा, चरित्र-निर्माण एवं नैतिक खतरे से सुरक्षा इत्यादि की प्रमुख सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं।
- विशिष्ट स्कूल – इनमें उद्दण्ड बालकों को सुधारने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाता है।
- उत्तम-देखभाल संगठन – इन संगठनों का उद्देश्य बालगृहों या विशिष्ट स्कूलों से बाहर आने वाले बच्चों को सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करने में सहायता प्रदान करना है।
2. किशोर न्यायालय – ये न्यायालय साधारण अदालतों से अलग हैं तथा इनकी स्थापना भी बाल अधिनियम, 1960 के अन्तर्गत ही की गयी है। इनमें न्यायाधीश प्रायः महिला होती हैं, जो बाल मनोविज्ञान एवं अन्य सामाजिक विज्ञानों के ज्ञान से परिचित होती हैं। पुलिस सादे कपड़ों में आती है। इन न्यायालयों का उद्देश्य अपराध के कारणों का पता लगाना तथा बालअपराधियों का सुधार करना है। अपराधी पाये जाने पर बच्चों को सुधारगृहों में भेज दिया जाता है।
3. प्रोबेशन – यह किशोर न्यायालय का ही महत्त्वपूर्ण अंग है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत अपराधी बालक को प्रोबेशन अधिकारी के संरक्षण में रखा जाता है। प्रोबेशन के समय तक प्रोबेशन अधिकारी उसकी देख-रेख करता है तथा उसके बारे में आवश्यक जानकारी प्राप्त करता है। यदि प्रोबेशन काल के मध्य उसका ठीक आचरण रहता है, तो न्यायालय की सलाह पर बच्चे को छोड़ दिया जाता है।
4. बोस्टेल स्कूल – यह बाल-अपराधियों के सुधार से सम्बन्धित प्रमुख संस्था है। इंग्लैण्ड में बोर्टल नामक स्थान पर ब्राइस नामक विद्वान् ने 1902 ई० में एक गैर-सरकारी जेलखाना खोला। भारत में सर्वप्रथम तमिलनाडु में 1962 ई० में बोर्टल स्कूल की स्थापना की गयी और बाद में बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश व कर्नाटक में भी एक-एक बोटंल स्कूल खोला गया। उत्तर प्रदेश में बरेली में बाल-बन्दीगृह की स्थापना की गयी। 15 से 21 वर्ष के किशोर अपराधियों को इसमें व्यावसायिक व औद्योगिक प्रशिक्षण दिया जाता है तथा बाल-अपराधियों को सुधारने का प्रयास किया जाता है।
5. रिफॉर्मेट्री स्कूल – सन् 1987 में बड़े-बड़े राज्यों तथा केन्द्र-शासित प्रदेशों में इन सुधार स्कूलों की स्थापना की गयी, जिनमें बाल-अपराधियों की उचित देख-रेख की जाती है तथा औद्योगिक प्रशिक्षण देकर उन्हें सुधारने का प्रयास किया जाता है।
6. बाल-बन्दीगृह – इनकी स्थापना सुधारगृहों के सिद्धान्तों के अनुरूप की गयी है। इन्हें किशोर सदन भी कहा जाता है। सर्वप्रथम बाल-बन्दीगृहों की स्थापना बिहार, ओडिशा और उत्तर प्रदेश में की गयी। उत्तर प्रदेश में 19 वर्ष से कम आयु के बाल-अपराधियों को इन बन्दीगृहों में रखा जाता है। सन्तोषजनक व्यवहार न करने पर उन्हें केन्द्रीय कारागार में भी भेजा जा सकता है।
7. बाल सलाह केन्द्र तथा बाल-क्लब – बाल सलाह केन्द्रों में मनोवैज्ञानिक रूप से बाल अपराध के कारण जानने का प्रयास किया जाता है। अनेक राज्यों में बाल-क्लबों की भी स्थापना की गयी है।
8. भारतीय किशोर न्याय अधिनियम, 1986 – सन् 1986 में पारित इस अधिनियम में बाल-न्यायालयों तथा किशोर कल्याण बोर्ड की स्थापना पर बल दिया गया है। 2 अक्टूबर, 1987 से यह अधिनियम पूरे देश में लागू है। उत्तर प्रदेश में इस अधिनियम के अन्तर्गत प्रदेश सरकार ने 27 विशेष बाल-न्यायालयों को तोड़कर सभी मण्डल मुख्यालयों पर बालन्यायालयों का गठन किया है। साथ ही 52 जिलों में किशोर कल्याण बोर्डों की स्थापना की | गयी है।
(ख) बाल-अपराध उपचार के गैर-सरकारी सुझाव
गैर-सरकारी क्षेत्र में बाल-अपराध उपचार के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं
1. उचित पारिवारिक वातावरण – परिवार को टूटने से बचाने के लिए उपाय किये जाने चाहिए, जिससे बच्चों को परिवार में सही अनुशासन, स्नेह व सुरक्षा मिल सके। इसके लिए परिवार कल्याण केन्द्रों की स्थापना की जानी चाहिए। माता-पिता को बच्चों की इच्छाओं को ध्यान रखना चाहिए और उनकी रुचि सत्संग की ओर लगानी चाहिए।
2. स्कूल – परिवार के बाद बच्चों के आचरण पर स्कूल का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। बच्चों को इस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए कि उनमें अनुशासन तथा नैतिक विकास की वृद्धि हो। उनके चतुर्मुखी विकास को सामने रखकर पाठ्यक्रमों में सुधार किया जाना चाहिए। विद्यालय का वातावरण ठीक होना चाहिए और शिक्षकों का शिष्यों के प्रति सन्तुलित व अच्छा व्यवहार होना चाहिए।
3. स्वस्थ मनोरंजन – बाल-अपराध को रोकने के लिए मनोरंजन के साधन बच्चों के लिए उपलब्ध करना आवश्यक है। गन्दी बस्तियों में इनका विशेष अभाव होता है; अतः इनमें सुधार करके सामुदायिक केन्द्र स्थापित किये जाने चाहिए। यदि खाली समय का सदुपयोग किया जाए तो बाल-अपराध की रोकथाम सम्भव है।
4. बाल पुलिस विभाग – सामान्य पुलिस विभाग बाल-अपराध में सहायक नहीं है। अत: किशोर न्यायालयों की सहायता के लिए बाल पुलिस विभाग का गठन किया जाना चाहिए, जो कि उन्हें सुधारने में सहायता दे सके।
5. अश्लील साहित्य पर रोक – अश्लील साहित्य पर कठोरता से प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए, जिससे इसका प्रकाशन व वितरण न हो सके। अपराधी घटनाओं का विवरण देने में भी सतर्कता रखी जानी चाहिए। अपराधियों व डाकुओं इत्यादि को हीरो के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए। उनके कारनामे पढ़कर छात्र एवं बालक अपराध में लिप्त हो जाते हैं।
बाल-अपराध तथा अपराध में अन्तर
बाल-अपराध और अपराध के अन्तरों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
क्र०सं० | बाल-अपराध | अपराध |
1. | बाल-अपराधं कानून द्वारा निर्धारित 18 वर्ष से कम आयु में किया जाने वाला अपराध हैं। | अपराध वयस्क व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला अपराध है। बाल-अपराधी की अपराध है। निर्धारित आयु से अधिक आयु वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कानून का उल्लंघन अपराध कहा जाता है। |
2. | बाल-अपराध में कुछ ऐसे व्यवहार भी सम्मिलित हैं जो वास्तव में अपराध की श्रेणी में नहीं आते; जैसे-स्कूल से भागना, घर से बिना बताये गायब हो जाना, निरुद्देश्य रात्रि को घूमते रहना इत्यादि। | अपराध में केवल उन्हीं कार्यों को सम्मिलित किया जाता है, जो कि निश्चित रूप से गैर-कानूनी माने जाते हैं। |
3. | बाल-अपराध सामान्यतः कम गम्भीर होते है। | अपराध कम गम्भीर से लेकर अत्यधिक गम्भीर हो सकते हैं। |
4. | बाल-अपराधी अधिकांशतः संवेगता के कारण अपराध करते हैं। | अधिकतर अपराधी जान-बूझकर अपराध कारण अपराध करते हैं। |
5. | बाल-अपराधी का अपराध करते समय अनिवार्य रूप से आर्थिक लक्ष्य नहीं होता है। | अपराधी मुख्यत: आर्थिक लाभ के लिए या अन्य किसी लाभ के लिए अपराध करता है। |
6. | बाल-अपराधी बनने में मनोवैज्ञानिक व पारिवारिक कारणों को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। | अपराधी अधिकतर अपनी इच्छा से अपराधी बनते हैं। |
7. | बाल-अपराध के लिए विशिष्ट न्यायालयों की स्थापना होती है। | न्यायालयों अपराधी के मामले सामान्य न्यायालय ही सुनते हैं। |
8. | बाल-अपराधी को कठोर दण्ड से बचाने का प्रयास किया जाता है। | अपराधी को दण्ड दिलवाने में किसी प्रकार की ढिलाई नहीं बरती जाती है। |
9. | बाल-अपराधी संस्कृति का महत्त्वपूर्ण तत्त्व बाल-अपराध का अनुपयोगी होना है, क्योंकि बाल-अपराधी किसी आवश्यकता के लिए अपराध नहीं करता, वरन् अधिकांशतः बिना किसी उपयोगी दृष्टिकोण के ही अपराध करता है। | अपराधी संस्कृति में इस प्रकार के तत्त्वों का अभाव होता है। |
10. | बाल-अपराध में सामान्यतः योजना व संगठित संगठन का अभाव पाया जाता है। | अधिकतर अपराध योजनाबद्ध व होते हैं। अपराध गिरोह बनाकर किये जाते हैं। |
लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)
प्रश्न 1
“बाल-अपराध मुख्य रूप से एक नगरीय समस्या है। इसकी विवेचना कीजिए।
उत्तर:
बाल-अपराध : एक नगरीय समस्या–बाल-अपराध सम्बन्धी उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि गाँवों की तुलना में बाल-अपराध नगरों में अधिक होते हैं। नगरीय क्षेत्रों में भी बड़े-बड़े शहरों; जैसे-दिल्ली, चेन्नई, मुम्बई, कोलकाता, चण्डीगढ़, कानपुर आदि; में बाल-अपराध अधिक होते हैं।
नगरों में बाल-अपराध होने के अनेक कारण हैं; जैसे-वहाँ जब माता-पिता दोनों ही काम पर चले जाते हैं तो घर में बच्चों पर नियन्त्रण रखने वाला कोई नहीं होता, अतः वे आवारागर्दी करने लगते हैं। नगरों में वेश्यावृत्ति में सहायता पहुँचाने, भीख माँगने आदि का कार्य भी बच्चों से कराया जाता है। यह कार्य संगठित लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर कराया जाता है, जो नगरीय क्षेत्रों में ही केन्द्रित है। नगरों की भीड़-भाड़युक्त वातावरण, गन्दी बस्तियाँ, अश्लील एवं अपराधी चलचित्र, अति सम्पन्नता के प्रति आक्रोश, बेकारी, नितान्त गरीबी आदि बाल-अपराध को प्रोत्साहित करते हैं।
बाल-अपराधी स्वयं भी यौन सम्बन्धी अपराधों में लिप्त पाये गये हैं, जिनमें लड़कियों की संख्या अधिक है। 86.2 प्रतिशत लड़कियों ने यौन-अपराध किये हैं। यौन-अपराध के लिए नगर ही सुगम तथा सुलभ अवसर प्रदान करते हैं, जहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है तथा सम्पन्नता भी अधिक होती है।
बाल-अपराधों में धार्मिक प्रकृति के अपराध; जैसे-चोरी, सेंधमारी, जेब कतरना आदि होते हैं। इन अपराधों के लिए ग्रामीण इलाकों में अवसर प्राप्त नहीं होते हैं जब कि नगरों की भीड़-भाड़, व्यस्त जीवन तथा पड़ोसियों की एक-दूसरे के प्रति उदासीनता आदि इन अपराधों के लिए खुले अवसर प्रदान करते हैं।
बाल-अपराधी स्वयं अपराध कम करते हैं। वे किसी संगठित अपराधी गिरोह के साथ मिलकर ही अपराध करते हैं। ये गिरोह उन्हें प्रशिक्षण देते हैं एवं संरक्षण प्रदान करते हैं। नगरीय क्षेत्र इन गतिविधियों के लिए उपयुक्त स्थान है।
निष्कर्षतया कहा जा सकता है कि बाल-अपराध मुख्य रूप से एक नगरीय समस्या है।
प्रश्न 2
भारत में किशोर अपराध की समस्या पर एक लेख लिखिए। [2009, 12]
उत्तर:
भारत में किशोर अपराध (Juvenile Delinquency in India) – भारत में बालअपराध की समस्या गम्भीर है। बढ़ती हुई जनसंख्या, नगरीकरण तथा औद्योगीकरण के कारण बाल-अपराध निरन्तर बढ़ रहे हैं। वर्ष 1988 के सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 24,827 स्थानीय व 25,468 विशेष नियमों के उल्लंघन के दोषी बाल-अपराधी थे। भारत में बाल-अपराध कुल अपराधों को 2% है। भारत में बाल-अपराध की समस्या गाँवों की अपेक्षा नगरों में अधिक है। युवतियों की अपेक्षा युवक बाल-अपराधी अधिक हैं। निम्न जातियों के बच्चों में बाल-अपराध की दर अधिक पायी जाती है।
भारत के महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, आन्ध्र प्रदेश आदि राज्यों में बाल-अपराध की समस्या विकट बनी हुई है। इन राज्यों में भारत के कुल 68% बाल-अपराधी पाये जाते हैं। भारत में बाल-अपराधी व्यक्तिगत स्तर पर कानूनों का उल्लंघन कम करते हैं, इस कार्य में उन्हें पूरे समूह अथवा परिवार का सहयोग मिलता है। भारत में बाल-अपराधी सम्पत्ति के विरुद्ध अपराधों में संलिप्त पाये गये हैं। भारत में 50% बाल-अपराधी अनुसूचित जातियों या जनजातियों के होते हैं, क्योंकि इन जातियों में 1951 ई० में बाल अधिनियम पारित किया गया, जिसे 1956 ई० में लागू किया गया। बाद में देश के अन्य राज्यों में भी इसे लागू किया गया। भारत में बाल-अपराध की रोकथाम के लिए किशोर जेल, सुधारवादी सेवाएँ, अवलोकन-गृह, परिवीक्षा-गृह तथा एप्रूव्ड स्कूल आदि व्यवस्थाएँ लागू की गयी हैं।।
प्रश्न 3
‘पक्षपात’ और ‘दोषपूर्ण अनुशासन बाल-अपराध के दो मुख्य पारिवारिक कारण हैं। समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
पक्षपात-परिवार में पक्षपातपूर्ण व्यवहार होने पर भी बच्चों में निराशा और घृणा की भावना जन्म लेती है। यदि परिवार में किसी बच्चे को विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं और अन्य बच्चों के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है तो ईर्ष्या एवं द्वेष का वातावरण बनता है। अधिक मार और डॉट खाने वाला बच्चा परिवार के वयोवृद्ध लोगों का सम्मान करना बन्द कर देता है और उन लोगों की इच्छा के विपरीत कार्य करने लगता है। इस प्रकार भेदभावपूर्ण व्यवहार बच्चे में अपराधी मनोवृत्ति को जन्म देता है।
दोषपूर्ण अनुशासन-परिवार में बच्चों पर अधिक नियन्त्रण होने पर वे कठोरता से बचने के लिए भागना चाहते हैं और ज्यों ही उन्हें अवसर मिलता है वे उन कार्यों को करने लगते हैं, जिनके लिए उन्हें मना किया जाता है। कठोर नियन्त्रण से व्यक्तित्व का स्वाभाविक विकास भी रुक जाता है। वह अपनी दबी इच्छाओं की पूर्ति के लिए भी अपराध करता है। इसके विपरीत, बच्चों को अत्यधिक ढील देने एवं अंकुश न रखने पर भी उनमें स्वच्छन्दता की प्रवृत्ति पैदा होती है।
प्रश्न 4
बाल-अपराध निर्धारण करने में आयु की महत्ता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाल-अपराध का निर्धारण करने में आयु भी एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है। भिन्न-भिन्न देशों में बाल-अपराधियों के लिए अलग-अलग आयु निर्धारित की गयी है। अधिकांश देशों में तथा भारत में भी भारतीय दण्ड संहिता’ (Indian Penal Code) के अनुसार 7 वर्ष से कम की आयु के बालक द्वारा किया गया कानून व समाज-विरोधी कार्य अपराध नहीं माना जाता है, क्योंकि इस समय तक बालक में अच्छे-बुरे के भेद की समझ नहीं होती है। भारत में 1960 व 1986 ई० में बाल-अधिनियम बने। इन अधिनियमों में 16 वर्ष से कम की आयु के लड़के एवं 18 वर्ष से कम की आयु की लड़की को बालक माना गया है। इस आधार पर भारत में 7 वर्ष से अधिक एवं 16 वर्ष से कम उम्र के लड़के एवं 7 वर्ष से अधिक एवं 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की द्वारा किये गये कानून-विरोधी कार्य बाल-अपराध की श्रेणी में आते हैं। इसके बाद 21 वर्ष की आयु तक के अपराधियों को ‘किशोर अपराधी’ एवं इससे अधिक आयु के अपराधियों को अपराधी’ कहा जाता है।
प्रश्न 5
बाल-न्यायालय पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बाल-न्यायालयों में बाल-अपराधियों की सुनवाई अनौपचारिक विधि से की जाती है। इनमें उनके प्रति बदले की भावना नहीं पायी जाती है। इनके द्वारा बच्चे को संरक्षण एवं पुनर्वास की सुविधा प्रदान की जाती है। बाल-न्यायालय में प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट, एक या दो ऑनरेरी लेडी मजिस्ट्रेट, अपराधी बालक, उसके माता-पिता एवं संरक्षक, प्रोबेशन अधिकारी, साधारण पोशाक में पुलिस, कोर्ट का क्लर्क और कभी-कभी वकील उपस्थित रहते हैं। इनकी बैठक रिमाण्ड होम में साधारण तरीके से टेबल-कुर्सी लगाकर की जाती है, जिससे बच्चे को यह महसूस न हो कि वह अपराधी है।
सुनवाई करने वालों और बच्चों के बीच अनौपचारिक बातचीत होती है। बाल-न्यायालय का सारा वातावरण इस प्रकार का होता है कि बच्चे के मस्तिष्क से कोर्ट का आतंक और भय दूर हो जाए। इनन्यायालयों की कार्यवाही को अखबार में नहीं छापा जा सकता तथा साथ ही गोपनीयता भी बरती जाती है। सुनवाई के बाद अपराधी बालकों को चेतावनी देकर, जुर्माना करके या मातापिता से बॉण्ड भरवाकर उन्हें सौंप दिया जाता है, अथवा उन्हें परिवीक्षा पर छोड़ दिया जाता है या किसी सुधार संस्था, मान्यताप्राप्त विद्यालय, परिवीक्षा हॉस्टल आदि में रख दिया जाता है। भारत में महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिमी बंगाल, आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा दिल्ली :आदि राज्यों में बाल-न्यायालय हैं।
प्रश्न 6
बोस्टेल स्कूल पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बोर्टल स्कूल एक ऐसी संस्था है जहाँ किशोर अपराधी को, जिसकी आयु 16 से 21 वर्ष हो, रखा जाता है। उन्हें यहाँ प्रशिक्षण एवं निर्देशन दिये जाते हैं तथा अनुशासन में रखकर उनका सुधार किया जाता है। इस संस्था में उन्हीं अपराधियों को प्रवेश दिया जाता है जिनकी सिफारिश अदालत यो जेल महानिरीक्षक करता है। यहाँ अपराधी को मुक्त वातावरण में रखा जाता है। उसमें शारीरिक, मानसिक, नैतिक एवं चारित्रिक क्षमताओं के साथ-साथ उत्तरदायित्व एवं आत्म-नियन्त्रण की भावना का विकास किया जाता है। उसके लिए जिमनास्टिक, उद्योग-धन्धों के प्रशिक्षण एवं शिक्षा का प्रबन्ध किया जाता है। उसे पत्र लिखने, रिश्तेदारों से मिलने, मनपसन्द प्रशिक्षण पाने, बिना निगरानी के बाहर घूमने, वर्कशॉप व मनोरंजन कक्ष तथा भोजनशाला में काम करने, खेल-कूद प्रतियोगिता में भाग लेने आदि की भी छूट होती है।
प्रश्न 7
‘रिफॉर्मेट्री स्कूल पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
रिफॉर्मेट्री स्कूलों में 16 वर्ष से कम आयु के ऐसे बच्चों को रखा जाता है, जो पहले सजा काट चुके हैं या जिन्होंने गम्भीर अपराध नहीं किये हैं। इस प्रकार के विद्यालयों का उद्देश्य अपराधी बालक का सुधार और पुनर्वास करना है। इन स्कूलों में अपराधियों को शिक्षा एवं साथ ही विभिन्न व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जाता है। उनके द्वारा निर्मित वस्तुओं को बाजार में बेचकर लाभ को उनके कोष में जमा किया जाता है। इन विद्यालयों में रेडक्रॉस, स्काउटिंग, कृषि, चमड़े का काम, खिलौना, दरी, निवाड़, रस्सी बनाने, बढ़ईगीरी, सिलाई आदि का काम सिखाया जाता है। जिनका काम अच्छा होता है उन्हें वर्ष में 15 दिन तक घर जाने की छुट्टी भी दी जाती है। जबलपुर, हजारीबाग, लखनऊ, बरेली आदि में इस प्रकार के विद्यालय हैं। उत्तर प्रदेश बाल-अधिनियम, 1951 ई० के अधीन उत्तर प्रदेश में कुछ जिलों में एक-एक सुधार अधिकारी को नियुक्त किया गया है, जो बाल-अपराधियों की गोपनीय रिपोर्ट तैयार कर उन्हें सुधारने का प्रयत्न करते हैं।
प्रश्न 8
बाल-अपराध के चार कारण लिखिए। [2010, 13, 15, 16]
या
बाल-अपराध के दो कारण लिखिए। [2007, 17]
उत्तर:
बाल-अपराध के चार कारण निम्नलिखित हैं
1. पारिवारिक कारण – जब परिवार बच्चे को सामाजिक व मानसिक सुरक्षा प्रदान करने में असफल हो जाता है और बच्चा स्वयं को उपेक्षित महसूस करने लगता है, तो वह बाल अपराधी बन जाता है।
2. मनोवैज्ञानिक कारण – यदि बच्चे का विकास मानसिक रूप से दोषपूर्ण हुआ है तो वह स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है और हीन भावना से ग्रसित होकर बाल-अपराधी बन जाता है।
3. अत्यधिक निर्धनता – अत्यधिक निर्धनता के कारण बच्चे को समुचित शिक्षा और मनोरंजन की सुविधाएँ प्राप्त नहीं हो पातीं। सम्पन्न परिवार के बच्चों को देखकर उसमें हीनता; ग्लानि, ईर्ष्या और उद्दण्डता की भावनाएँ साथ-साथ विकसित होने लगती हैं और जब ये भावनाएँ अत्यधिक बलवती हो जाती हैं, तो वह बाल-अपराधी बन जाता है।
4. उद्देश्यहीन शिक्षा व दोषपूर्ण सीख – उद्देश्यहीन शिक्षा के कारण बच्चे अपने आरम्भिक जीवन से ही सुस्त, अनुशासनहीन और उद्दण्ड बनने लगते हैं। शिक्षकों का दुर्व्यवहार उनमें अपराधी मनोवृत्तियाँ उत्पन्न करने लगता है। बच्चे को परिवार या स्कूल में मिलने वाली : दोषपूर्ण सीख के कारण भी उसमें छोटी-छोटी चोरी करने, साथियों को धोखा देने और अकारण मार-पीट करने की आदत पड़ने लगती है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)
प्रश्न 1
टूटे परिवार बाल-अपराध के लिए कैसे उत्तरदायी होते हैं ?
उत्तर:
परिवार दो प्रकार से टूट सकते हैं
(1) भौतिक रूप से तथा (2) मानसिक रूप से। भौतिक रूप से परिवार के टूटने का अर्थ है – परिवार के सदस्य की मृत्यु हो जाना, लम्बे समय तक अस्पताल, जेल, सेना आदि में रहने अथवा तलाक और पृथक्करण के कारण सदस्यों का परिवार के साथ न रहना। मानसिक रूप से परिवार के टूटने का अर्थ है – सदस्य एक साथ तो रहते हैं, किन्तु उनमें मनमुटाव, मानसिक संघर्ष एवं तनाव पाया जाता है। इन दोनों ही स्थितियों में बच्चों पर परिवार का नियन्त्रण शिथिल हो जाने एवं बच्चों को माता-पिता का प्यार व स्नेह न मिलने के कारण वे अपराध करने लगते हैं।
प्रश्न 2
बाल-अपराधी की ‘मानसिक अयोग्यता उसके अपराधीकरण के लिए कैसे उत्तरदायी
उत्तर:
ऐसा माना जाता है कि बाल-अपराधी मानसिक रूप से पिछड़े होते हैं। डॉ० गोडार्ड ने बताया है कि कमजोर मस्तिष्क अपराध के लिए उत्तरदायी है। हीली और बूनर ने शिकागो के अध्ययन में 63% बाल-अपराधियों को ही स्वस्थ मस्तिष्क का पाया, शेष 37% मानसिक कमजोरी एवं बीमारी आदि से ग्रसित थे। कुमारी इलियट के अध्ययन में 41.5% लड़कियाँ मानसिक रूप से पिछड़ी हुई थीं। कमजोर बुद्धि के बालक अच्छे-बुरे में भेद नहीं कर पाते और वे कुसंगति के कारण अपराध कर बैठते हैं।
प्रश्न 3
क्या ‘बुरे संगी-साथी बाल-अपराध का एक कारण हैं ?
उत्तर:
एक बच्चे को अपराधी बनाने में उसके साथियों का भी पर्याप्त हाथ होता है। एक बच्चा अपराध करने के बाद अपनी साहस भरी कहानी दूसरे बच्चों को सुनाता है तो उनके लिए भी यह प्रेरणा एवं उत्तेजना की बात होती है। अपराधी साथियों के सम्पर्क से ही एक बच्चा धूम्रपान, शराबवृत्ति, चोरी, जुआ आदि सीखता है।
प्रश्न 4
बाल-अपराध को बढ़ाने में गरीबी की क्या भूमिका है ?
उत्तर:
कई अध्ययन इस बात को प्रकट करते हैं कि गरीबी ने बच्चों को अपराधी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। जोन्स के शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि ज्यों-ज्यों आर्थिक स्तर निम्न होगा, त्यों-त्यों बाल-अपराध की दर ऊँची होगी।” गरीबी में परिवार अपनी मूलभूत आवश्यकताएँ, चिकित्सा एवं मनोरंजन की सुविधाएँ नहीं जुटा पाता। ऐसी स्थिति में माता एवं पिता दोनों ही नौकरी करने लगते हैं। माता-पिता के घर से बाहर रहने की अवधि में बच्चे आवारागर्दी करते हैं। न्यूमेयर लिखते हैं, “जब पिता रात में काम करता है और माता दिन में अथवा दोनों रात या दिन में काम करते हैं तो बच्चे प्रायः गलियों में ही आवारागर्दी करते हुए मिलते हैं। बच्चों की आवश्यकताएँ जब परिवार में पूरी नहीं होती हैं तो वे बाहर चोरी करते हैं।
प्रश्न 5
बाल-अपराध के चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
एक निश्चित आयु से कम के बच्चों द्वारा किये जाने वाले कोई भी वे कार्य बालअपराध के अन्तर्गत आते हैं, जो समाज विरोधी होते हैं अथवा जिनसे समूह-कल्याण को हानि पहुँचती है। बाल-अपराध के चार उदाहरण हैं
- जेब काटना
- किसी पर साधारण आघात करना,
- जुआ खेलना तथा
- चोरी करना।।
प्रश्न 6
भारत में बाल-अपराध के निर्धारण से सम्बन्धित कोई दो मौलिक आधार बताइए।
उत्तर:
भारत में बाल-अपराध के निर्धारण से सम्बन्धित दो मौलिक आधार निम्नवत् हैं
- भारत में 7 से 16 वर्ष की आयु तक के अपराधियों को बाल-अपराधी कहा जाता है। इन अपराधियों के लिए एक पृथक् न्याय प्रक्रिया अपनायी जाती है।
- बाल-अपराध का तात्पर्य केवल साधारण अपराधी से होता है। यदि 7 वर्ष से 16 वर्ष की आयु तक का कोई बच्चा हत्या, राजद्रोह अथवा अत्यधिक जघन्य अपराध का दोषी हो, तो इस अपराध को बाल-अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाता।
प्रश्न 7
रिमाण्ड होम पर लघु टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अपराध करने के पश्चात् जब पुलिस बच्चे को पकड़ लेती है, तो सर्वप्रथम उसे रिमाण्ड होम में रखा जाता है। जेल में रखने से उसका सम्पर्क युवा-अपराधियों से होने पर उसके गम्भीर अपराधी बन जाने की सम्भावना रहती है। जब तक बच्चे की अदालती कार्यवाही चलती है, उसे रिमाण्ड होम में ही रखा जाता है। अनाथ और निराश्रित बच्चे एवं बन्दीगृहों से पृथक् किये गये। अपराधियों को भी ऐसे गृहों में रखा जाता है। यहाँ बच्चों को मनोरंजन, शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इस समय देश में 160 रिमाण्ड होम कार्य कर रहे हैं।
प्रश्न 8
परिवीक्षा हॉस्टल पर लघु टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
न्यायालय जब किसी बाल-अपराधी को परिवीक्षा पर छोड़ता है और यदि उस बालअपराधी के माता-पिता या संरक्षक नहीं होते हैं तो उसे परिवीक्षा हॉस्टल में रखा जाता है। ऐसे हॉस्टल में रहने वाले व्यक्ति को दिन में नौकरी करने एवं घूमने-फिरने की स्वतन्त्रता होती है, किन्तु रात्रि को ठीक समय पर वहाँ वापस पहुँचना अनिवार्य होता है। हॉस्टल वार्डन इन लोगों की गतिविधियों की देख-रेख करता है।
प्रश्न 9
बाल-अपराध रोकने के लिए उचित व स्वस्थ पारिवारिक वातावरण की भूमिका बताइए।
उत्तर:
परिवार ही शिशु की प्रथम पाठशाला और लालन-पालन करने वाली नर्सरी होता है और वही उसके समाजीकरण का केन्द्र भी; अत: यह आवश्यक है कि परिवार व्यवस्थित एवं संगठित हो, उनका वातावरण स्वस्थ हो, माता-पिता एवं परिवारजनों को बच्चे के प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार हो, ये बच्चे पर उचित नियन्त्रण रखें और उनका समुचित निर्देशन करें। ऐसी स्थिति में ही बच्चे का चरित्र-निर्माण होगा और वह अपराधी कार्यों से दूर रहेगा।
जिवित उत्तीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1
बाल-अपराध के दो प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं ? [2011, 17]
उत्तर:
बाल अपराध के दो प्रमुख कारक परिवार एवं समुदाय हैं।
प्रश्न 2
बाल-अपराध की दो विशेषताएँ लिखिए। [2013]
उत्तर:
बाल अपराध दो विशेषताएँ निम्न हैं|
- राज्य द्वारा निश्चित आयु से कम आयु का व्यक्ति।
- अनैतिक एवं अशोभनीय व्यवहार।
प्रश्न 3
भारत में किस आयु-सीमा में बालकों को बाल-अपराधियों की श्रेणी में रखा जाता है?
उत्तर:
भारत में 7 से अधिक एवं 16 वर्ष से कम आयु के लड़कों तथा 7 से अधिक एवं 18 वर्ष से कम आयु की लड़कियों को बाल-अपराधियों की श्रेणी में रखा जाता है।
प्रश्न 4
बाल-न्यायालयों की कार्यवाही कैसे गोपनीय रखी जाती है ?
उत्तर:
बाल-न्यायालयों की कार्यवाही को अखबार में नहीं छापा जा सकता तथा साथ ही गोपनीयता बरती जाती है।
प्रश्न 5
16 वर्ष से अधिक, परन्तु 21 वर्ष से कम आयु के अपराधी को क्या कहते हैं ?
या
किशोर अपराधी की अधिकतम आयु क्या है ?
उत्तर:
16 वर्ष से अधिक, परन्तु 21 वर्ष से कम आयु के अपराधी को किशोर अपराधी कहते है।
प्रश्न 6
अपराध करने के पश्चात् पुलिस बच्चे को पकड़कर सर्वप्रथम कहाँ रखती है ?
उत्तर:
अपराध करने के पश्चात् पुलिस बच्चे को पकड़कर सर्वप्रथम रिमाण्ड होम में रखती है।
प्रश्न 7
बोस्टेल स्कूल में किस आयु-सीमा के किशोर अपराधी को रखा जाता है ?
उत्तर:
बोल स्कूल में 16 से 21 वर्ष की आयु सीमा के किशोर अपराधियों को रखा जाता है।
प्रश्न 8
रिफॉर्मेट्री स्कूल में किन बच्चों को रखा जाता है ?
उत्तर:
इन स्कूलों में 16 वर्ष से कम आयु के ऐसे बच्चों को रखा जाता है, जो पहले सजा काट चुके हैं या जिन्होंने गम्भीर अपराध नहीं किये हैं।
प्रश्न 9
पोषण-गृह तथा सहायक-गृह में किन बच्चों को रखा जाता है ?
उत्तर:
पोषण-गृह तथा सहायक-गृह में 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों को रखा जाता है, जिनके माता-पिता में विवाह-विच्छेद हो गया हो या जिनकी मृत्यु हो गयी हो।
प्रश्न 10
नगरों की अपेक्षा बाल-अपराध की भीषण समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में क्यों कम है ?
उत्तर:
भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को अपनी परम्पराओं से घनिष्ठ लगाव है। इसी कारण वहाँ बाल-अपराध की समस्या भीषण नहीं है, किन्तु नगरों में संयुक्त परिवार में विघटन तथा औद्योगीकरण के कारण बाल-अपराध ने भीषण रूप धारण कर लिया है।
प्रश्न 11
बाल-अपराध रोकने के लिए मनोवैज्ञानिक क्लीनिक खोलने का सुझाव किसने दिया?
उत्तर:
बाल-अपराध रोकने के लिए मनोवैज्ञानिक क्लीनिक खोलने का सुझाव सिरिल बर्ट ने दिया।
प्रश्न 12
उत्तम-संरक्षण संस्था में किन बच्चों को रखा जाता है ?
उत्तर:
जब बच्चा किसी सुधार संस्था में छः मास तक रहता है और उस अवधि में उसका व्यवहार अच्छा होता है तो ऐसे बच्चों को जेल निरीक्षक उत्तम-संरक्षण संस्था में भेज सकता है।
प्रश्न 13
बाल-अपराधी को दण्ड देने की बजाय सुधारालय क्यों भेजा जाता है ?
उत्तर:
बाल-अपराधी का सुधार सरल एवं सम्भव है, क्योंकि बच्चे के अपरिपक्व मस्तिष्क को किसी भी दिशा में मोड़ना आसान है, जब कि अपराधी में सुधार की सम्भावना कम होती है।
प्रश्न 14
रिफॉर्मेट्री स्कूल अधिनियम कब पारित किया गया ? [2007]
उत्तर:
रिफॉर्मेट्री स्कूल अधिनियम 1897 ई० में पारित किया गया।
बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1
निम्नलिखित में से आप किसे बाल-अपराध कहेंगे ?
(क) घर में भाई-बहन को मारना
(ख) माता-पिता की आज्ञा न मानना
(ग) हॉस्टल में साथियों का सामान चुराना
(घ) अपराधियों की संगत में न रहना
प्रश्न 2
बाल-अपराध के लिए कौन-सी परिस्थिति मुख्य रूप से उत्तरदायी है ?
(क) पारिवारिक
(ख) राजनीतिक
(ग) आर्थिक
(घ) व्यक्तिगत
प्रश्न 3
एक पाँच वर्षीय बालक ने अपने चचेरे भाई के पेट में चाकू घोंप दिया है। बालक की यह क्रिया कहलाएगी।
(क) अपराध
(ख) बाल-अपराध
(ग) श्वेतवसन अपराध
(घ) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 4
किसी बालक के विद्यालय से भागने की क्रिया को कहा जाता है [2011]
(क) बाल-अपराध
(ख) अनुपस्थिति
(ग) भगेड़पन
(घ) आवारागर्दी
प्रश्न 5
इस (अपने) राज्य में पुरुष बाल-अपराधी की अधिकतम मानक आयु है।
(क) 11 वर्ष
(ख) 16 वर्ष
(ग) 18 वर्ष
(घ) 21 वर्ष
प्रश्न 6
बाल-अपराध से सम्बन्धित नहीं है। [2007, 08, 09]
(क) बोर्टल स्कूल
(ख) सुधार-गृह
(ग) कारागार
(घ) प्रमाणित स्कूल
प्रश्न 7
बाल-अपराधियों के लिए कौन-सा उपयुक्त है ?
(क) किशोर न्यायालय
(ख) प्राणदण्ड
(ग) प्रोबेशन व्यवस्था
(घ) प्राचीरविहीन कारागार
प्रश्न 8
निम्नलिखित में से कौन-सा उपचार बाल-अपराधियों के लिए है ?
(क) तरुण शक्ति सेना
(ख) सुधार विद्यालय
(ग) हरिजन सेवा संघ
(घ) प्राचीरविहीन जेल
प्रश्न 9
निम्नलिखित में से कौन-सा बाल-अपराधियों के लिए नहीं है ?
(क) किशोर सदन, बरेली
(ख) सेवासदन, नासिक
(ग) प्राचीरविहीन जेल
(घ) सुधार विद्यालय
प्रश्न 10
बच्चे अथवा किशोरों के द्वारा किये अपराध के लिए न्यायिक कार्यवाही किस न्यायालय द्वारा की जाती है ?
(क) जिला न्यायालय द्वारा
(ख) किशोर सदन द्वारा
(ग) सुधार-गृह द्वारा
(घ) किशोर न्यायालय द्वारा
प्रश्न 11
बाल-अपराधियों को प्रशिक्षित करके सुधारने का कार्य कहाँ होता है ?
(क) पोषण-गृह में
(ख) सुधार-गृह में
(ग) किशोर सदन में
(घ) रिमाण्ड होम में
प्रश्न 12
भारत में प्रथम बाल न्यायालय की स्थापना हुई [2016]
(क) 1952 में
(ख) 1922 में
(ग) 1953 में
(घ) 1931 में
प्रश्न 13
बाल-अपराध सुधार हेतु कौन-सी संस्था उपयुक्त है? [2016]
(क) आदर्श बन्दी गृह
(ख) प्रतिप्रेषण गृह
(ग) प्राचीन विहीन कारागार
(घ) उद्धार गृह
उत्तर:
1. (ग) हॉस्टल में साथियों का सामान चुराना, 2. (क) पारिवारिक, 3. (घ) इनमें से कोई नहीं, 4. (क) बाल-अपराध, 5. (ख) 16 वर्ष, 6. (ग) कारागार, 7. (क) किशोर न्यायालय, 8. (ख) सुधार विद्यालय, 9. (ग) प्राचीरविहीन जेल, 10. (घ) किशोर न्यायालय द्वारा, 11. (ग) किशोर सदन में, 12. (ख) 1922 में, 13. (घ) उद्धार गृह