Sociology 12

UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 20

UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 20 Industrialization and Urbanization: Effects on Indian Society (औद्योगीकरण तथा नगरीकरण : भारतीय समाज पर प्रभाव)

विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं ? औद्योगीकरण की परिभाषा दीजिए तथा औद्योगीकरण की विशेषताएँ भी बताइए।
या
औद्योगीकरण किसे कहते हैं ? औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए। [2007, 09, 10]
या
भारत में औद्योगीकरण के सामाजिक और आर्थिक परिणामों का वर्णन कीजिए। [2010]
या
भारत में औद्योगीकरण के परिणामों की विवेचना कीजिए। [2015, 16]
या
औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं ? औद्योगीकरण के भारतीय समाज पर पड़ने वाले प्रभावों की विवेचना कीजिए। [2007, 11, 12, 13, 15, 16]
या
औद्योगीकरण किस प्रकार भारत की निर्धनता को दूर कर सकता है ? मत दीजिए। उद्योग समुदाय को निर्मित करता है।” विवेचना कीजिए। [2010]
या
भारतीय समाज पर औद्योगीकरण के कुप्रभावों की विवेचना कीजिए। [2012]
या
औद्योगीकरण क्या है? स्पष्ट कीजिए। [2014]
उत्तर:
औद्योगीकरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ

धन कमाना मनुष्य की एक प्रमुख क्रिया है। आजीविका जुटाने के लिए प्रकृति के साथ सतत संघर्ष करना ही मानव-विकास की कहानी है। मनुष्य आखेट, पशुपालन व मछली पकड़ने से लेकर धीरे-धीरे औद्योगिक युग तक पहुँच गया है। औद्योगीकरण दो शब्दों के मेल से बना है-उद्योग + करण’। ‘उद्योग’ का अर्थ ‘कारखाने’ तथा ‘करण’ का अर्थ है–‘स्थापित करना। इस प्रकार औद्योगीकरण का शाब्दिक अर्थ हुआ ‘कारखाने स्थापित करना।

क्लार्क केर के अनुसार, “औद्योगीकरण से अभिप्राय एक ऐसी स्थिति से है जिसमें पहले का कृषक अथवा व्यापारिक समाज एक औद्योगिक समाज की दिशा की ओर परिवर्तित होने लगता है।”
संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) के अनुसार, “औद्योगीकरण से तात्पर्य बड़े-बड़े उद्योगों के विकास तथा छोटे और कुटीर उद्योग-धन्धों के स्थान पर बड़े पैमाने की मशीनों की व्यवस्था से है। औद्योगीकरण आर्थिक विकास की व्यापक प्रक्रिया का अंग मात्र है, जिसका उद्देश्य उत्पादन के साधनों की क्षमता में वृद्धि करके जनजीवन के स्तर को ऊँचा उठाना है।”
अतः औद्योगीकरण उद्योगों के विकास की एक प्रक्रिया है, जिसमें बड़े पैमाने पर उद्योग लगाये जाते हैं तथा हाथ से किया जाने वाला उत्पादन मशीनों से किया जाने लगता है।

औद्योगीकरण की विशेषताएँ
औद्योगीकरण में मुख्य रूप से निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं.

  1. औद्योगीकरण उत्पादन की एक प्रक्रिया है, जिसका विकास धीरे-धीरे होता है।
  2. औद्योगीकरण के कारण राष्ट्र में नये-नये उद्योगों की स्थापना तीव्र गति से होती है।
  3. औद्योगीकरण मानवीय शक्ति की अपेक्षा मशीनी शक्ति पर बल देता है।
  4. औद्योगीकरण में मशीनों का संचालन कोयला, खनिज तेल अथवा विद्युत-शक्ति द्वारा किया जाता है।
  5. औद्योगीकरण की प्रमुख विशेषता श्रम-विभाजन और विशिष्टीकरण है।
  6. औद्योगीकरण तीव्र गति से सस्ते और बड़े पैमाने के उत्पादन पर बल देता है।
  7. औद्योगीकरण की प्रमुख विशेषता नवीनतम वैज्ञानिक विधियों तथा उत्पादन की नवीनतम तकनीक के प्रयोग पर बल देना है।
  8. औद्योगीकरण प्राकृतिक संसाधनों के अधिकतम तथा योजनाबद्ध दोहन पर बल देता है।
  9. औद्योगीकरण के फलस्वरूप प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है, जो आर्थिक विकास की परिचायक है।
  10. औद्योगीकरण राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक ढाँचे में आमूल-चूल परिवर्तन करता है।
  11. औद्योगीकरण के कारण वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होने से प्राचीन मान्यताएँ ध्वस्त हो जाती हैं।
  12. औद्योगीकरण पूँजीवाद का जनक है। इसके फलस्वरूप श्रमिक वर्ग और पूँजीपति वर्ग जन्म लेते हैं।
  13. औद्योगीकरण की एक प्रमुख विशिष्टता राष्ट्रीय व्यापार और उद्योगों में होने वाली भारी वृद्धि
  14. औद्योगीकरण का क्षेत्र अन्तर्राष्ट्रीय बाजार होने के कारण यह अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की स्थापना करने में सक्षम होता है।
  15. औद्योगीकरण के कारण राष्ट्र को समूचा विनिर्माण, उद्योगों तथा अर्थव्यवस्था को परिवेश परिवर्तित हो जाता है।

औद्योगीकरण का भारतीय समाज पर प्रभाव

औद्योगीकरण का भारतीय समाज के सभी पक्षों पर गहरा प्रभाव पड़ा है, जिस पर हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत विचार करेंगे

(क) भारतीय पारिवारिक जीवन पर प्रभाव
औद्योगीकरण का भारतीय पारिवारिक जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है

1. संयुक्त परिवार प्रथा का विघटन – संयुक्त परिवार भारतीय समाज की एक प्रमुख विशेषता रही है। एक परिवार के सभी नये-पुराने सदस्य एक ही स्थान पर रहते हुए खेती का कार्य करते रहे हैं, किन्तु उद्योगों के विकास के साथ-साथ लोग कारखानों में काम करने के लिए गाँव छोड़कर शहरों की ओर भागे। एक ही परिवार का कोई सदस्य कहीं पहुँच गया, कोई कहीं। कारखानों की मजदूर कॉलोनी में या अन्य छोटे-छोटे आवासों में लोग जा बसे, जहाँ मुश्किल से एक छोटे-से परिवार को ही गुजारा होता है। इस प्रकार संयुक्त परिवार को विघटन होने लगा और यह क्रिया काफी व्यापक पैमाने पर हुई है। इस प्रकार के स्थानों पर जिन परिवारों की नींव पड़ी, वे भी छोटे थे; क्योंकि पति-पत्नी तथा बच्चों के अतिरिक्त अन्य किसी का वहाँ गुजारा नहीं हो सकता था।

2. पारिवारिक कार्य-क्षेत्र का सीमित होना – संयुक्त परिवार में परिवार के सदस्यों की अधिकांश आवश्यकताएँ अन्य सदस्यों द्वारा पूरी हो जाती थीं। औद्योगीकरण के प्रभाव से परिवार के अनेक कार्य विशिष्ट संस्थाओं द्वारा होने लगे हैं। औद्योगीकरण के फलस्वरूप कपड़े धोने का काम लॉण्ड्री में, कपड़े सिलने का काम दर्जी की दुकानों में, आटा पीसने का काम आटा पीसने की शक्ति-चालित चक्कियों में, खेत जोतने, बोने, काटने, माँड़ने का काम विभिन्न मशीनों से होने लगा। इस प्रकार परिवार का कार्य-क्षेत्र सीमित हो गया है।

3. स्त्रियों का नौकरी करना – औद्योगीकरण के फलस्वरूप घर के अनेक कार्य मशीनों द्वारा होने लगे और स्त्रियों के पास समय बचने लगा। अतः महँगाई और अभाव से ग्रस्त परिवार की आमदनी बढ़ाने के लिए स्त्रियाँ नौकरी करने लगीं। औद्योगीकरण के फलस्वरूप सघन कॉलोनी में रहने के कारण पर्दा-प्रथा भी कम हो गयी और नौकरी पर जाने में स्त्रियों की हिचक समाप्त हो गयी।

4. स्त्रियों की स्थिति में सुधार – धन कमाने के कारण स्त्रियाँ स्वावलम्बिनी होने लगीं। अपने पैरों पर खड़े होने के कारण उनका आत्मविश्वास बढ़ा। वे अधिक स्वतन्त्र हुईं। उनमें शिक्षा का प्रसार हुआ और इस प्रकार उनकी स्थिति में सुधार हुआ।

5. विवाह के रूप में परिवर्तन – पहले धर्म-विवाह होते थे, जो संयुक्त परिवार के बुजुर्गों द्वारा कर दिये जाते थे। औद्योगीकरण के प्रभाव में प्रेम-विवाह और अन्तर्जातीय विवाहों की संख्या बढ़ी है, क्योंकि सघन औद्योगिक बस्तियों में युवक और युवतियों के सम्पर्क बढ़े तथा बड़े बुजुर्गों के नियन्त्रण का अभाव हो गया। इसके साथ-ही-साथ अपने पैरों पर खड़े होने के प्रयास में विवाह की आयु बढ़ी और इस प्रकार विलम्ब विवाह होने लगे। वैवाहिक जीवन पर नियन्त्रण घटने से तलाक भी बढ़े हैं।

6. पारिवारिक नियन्त्रण का घटना – पहले संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों पर परिवार के मुखिया का कठोर नियन्त्रण रहता था। हर व्यक्ति परिवार के रीति-रिवाज, आस्थाओं, मान्यताओं आदि से प्रभावित रहता था। औद्योगीकरण के प्रभावस्वरूप परिवारों का आकार छोटा हो गया और व्यक्ति पर पारिवारिक नियन्त्रण घट गया है।

(ख) भारतीय सामाजिक जीवन पर प्रभाव
औद्योगीकरण ने भारतीय सामाजिक जीवन को निम्न प्रकार प्रभावित किया

1. रहन-सहन में कृत्रिमता – औद्योगीकरण के फलस्व रूप लोगों का जीवन अप्राकृतिक हो गया। है। तंग घरों, अँधेरी गलियों, धुएँ से भरा हुआ आकाश, ट्रामें, बसें, रेलें, ऊँचे-नीचे मकान व मशीनों का शोर औद्योगीकरण की ही देन है। इस प्रकार मनुष्य प्रकृति से दूर होती जा रही है।

2. गन्दी तथा तंग बस्तियों का विकास –
 हर औद्योगिक नगर में जनसंख्या का घनत्व बढ़ने के कारण रहने के स्थान का अभाव हो जाता है। घनी तंग बस्तियों में दिन में भी सूर्य के दर्शन नहीं होते। कमरे धुएँ से भरे रहते हैं। मल-मूत्र की बदबू असह्य होती है, फिर भी लोग अपने को उसका आदी बना लेते हैं। मुम्बई में ‘चाल’, चेन्नई में ‘चेरी’ और कानपुर में ‘अहाता’ आदि इस प्रकार की गन्दी बस्तियों के उदाहरण हैं।।

3. जाति-प्रथा को कमजोर होना –
 औद्योगीकरण के फलस्वरूप और बढ़ती हुई बेकारी के कारण हर जाति के लोग कारखानों में काम पाने का प्रयास करते हैं। काम करते समय और सामान्य जीवन में एक-दूसरे के इतने नजदीक आ जाते हैं कि उन्हें प्रतिबन्धों और निषेधों की उपेक्षा करनी पड़ती है। उन्हें मानकर वे कोई कार्य नहीं कर सकते। अन्तर्जातीय विवाह भी
ऐसे स्थानों पर जाति-प्रथा को ढहाने में सहायक होते हैं।

4. नैतिकता का ह्रास –
 मशीनों के बीच काम करते-करते मनुष्य की संवेदनशीलता का लोप हो जाता है। उसमें अपने बन्धु-बान्धवों के प्रति सद्भाव का लोप होने लगता है। कारखानों में काम करने वाला व्यक्ति स्वार्थप्रिय हो जाता है और उसमें मूल्यों के प्रति आस्था समाप्त हो जाती है। औद्योगिक बस्तियों में इसीलिए चोरी, बेईमानी, ईष्र्या-द्वेष, मद्यपान, जुआ, हत्याएँ सामान्य घटनाएँ होती रहती हैं। इससे भ्रष्टाचार का व्यापक प्रसार हुआ है। अपराधों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है।

5. प्रतिद्वन्द्विता और संघर्ष –
 उद्योगों में अस्वस्थ प्रतिद्वन्द्विता के कारण पारस्परिक संघर्ष उत्पन्न हुआ है, जिससे प्रभावित होकर एक व्यक्ति दूसरे को गला काटने से भी नहीं चूकता।

6. बाल-अपराधों में वृद्धि –
 औद्योगीकरण के फलस्वरूप भारत की औद्योगिक बस्तियों में बाल-अपराधों की भी वृद्धि हुई है। माता-पिता दिन में अधिकांश समय कारखानों में काम करते हैं, उनकी अनुपस्थिति में बच्चे हर तरह से संसर्ग में आते हैं। नैतिक शिक्षा का अभाव पहले से होता है। माता-पिता द्वारा नैतिक आदर्श रखे नहीं जाते; अस्तु बच्चे हर तरह के
अपराध करने लगते हैं।

7. सामुदायिक जीवन का ह्रास –
 मानवीय सम्बन्धों के ह्रास के कारण समाज में वैयक्तिकता अधिक पनपी है। पारस्परिक सद्भाव, सहयोग और सहानुभूति के अभाव के कारण सामुदायिक जीवन का ह्रास होता है।

8. चिन्ता एवं तनाव में वृद्धि – बढ़ती हुई जनसंख्या और रहन-सहन की सुविधाओं के अभाव के कारण तथा नौकरी की तनावपूर्ण दशाएँ, शोषण, ईष्र्या, द्वेष, प्रतिद्वन्द्विता आदि के कारण औद्योगिक बस्ती में रहने वाले लोगों में चिन्ता एवं तनावों में अत्यधिक वृद्धि हो गयी है। इससे व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन अशान्त हो गया है।

(ग) भारतीय आर्थिक जीवन पर प्रभाव
भारतीय आर्थिक जीवन को औद्योगीकरण ने व्यापक रूप से प्रभावित किया है, जो निम्न प्रकार है।

1. पूँजीवाद का विकास बड़े – बड़े उद्योग चलाने के लिए अत्यधिक धन की आवश्यकता होती है, जो पूँजीपतियों से प्राप्त होता है या सरकार द्वारा लगाया जाता है। भारत में भी औद्योगीकरण के विकास के साथ पूँजीपतियों को बढ़ावा मिला है। उनका धन उद्योगों के खोलने में लगा है और उद्योगों के लाभ से उनके कोष भरे पड़े हैं। इसके साथ-ही-साथ श्रमिकों का शोषण भी हुआ है।

2. बड़े पैमाने पर उत्पादन एवं व्यापार –  भारत में औद्योगीकरण के फलस्वरूप नये-नये कारखाने खोले गये हैं, जिनसे विभिन्न वस्तुओं का व्यापार भी बड़े पैमाने पर होने लगा है। कई उद्योगों के लिए कच्चा माल बाहर से आने लगा है और शक्ति के कुछ साधनों का भी आयात किया गया है। इस प्रकार औद्योगीकरण से उत्पादन एवं व्यापार को काफी बढ़ावा मिला है।

3. उच्च जीवन-स्तर – औद्योगीकरण से देश में उत्पादन बढ़ता है और निर्यात द्वारा जो धनोपार्जन होता है वह जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने में सहायक होता है। हमारे देश में स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद जो तीव्र गति से औद्योगिक विकास हुआ है, उससे देशवासियों के
जीवन-स्तर में कुछ-न-कुछ वृद्धि तो हुई ही है।

4. श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण – कुटीर उद्योगों में तो उद्योग खोलने वाला व्यक्ति सभी काम स्वयं कर लेता है, किन्तु बड़े उद्योगों में कारखानों में काम कई भागों में बाँट दिये जाते हैं और उन्हें विशिष्ट प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति अत्यधिक तीव्र गति और दक्षता से करते हैं। इस प्रकार श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण द्वारा उत्पादन में वृद्धि होती है। औद्योगीकरण का यह एक अनिवार्य परिणाम है।

5. काला धन, चोर-बाजारी एवं आयकर की चोरी – औद्योगीकरण के साथ लोगों की आमदनी बढ़ती है। आमदनी पर कर देना होता है, इसलिए उत्पादन ही छिपा लिया जाता है। इस प्रकार कुल आमदनी के एक अंश आयकर की चोरी की जाती है। अवैध रूप से दबाये हुए उत्पादन की वस्तुओं की बिक्री करके चोर-बाजारी पनपती है। भारत में यह सभी कुछ हो रहा है।

(घ) भारतीय राजनीतिक जीवन पर प्रभाव

औद्योगीकरण का प्रभाव भारतीय राजनीतिक जीवन पर भी पड़ा है, जो निम्नवत् है

  1. राज्य का उत्तरदायित्व बढ़ना – औद्योगीकरण विकास की योजनाओं के अन्तर्गत होता है। उसे कार्यान्वित करने के लिए राज्य को विधिवत् योजनाएँ बनाना होता है और कारखाने खोलने के लिए धने का प्रबन्ध करना होता है। औद्योगीकरण के द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ा है, अन्य देशों से लेन-देन बढ़ा है और उनकी व्यवस्था से सम्बन्धित अनेक जिम्मेदारियाँ बढ़ी हैं।
  2. राजनीतिक समस्याओं में वृद्धि – औद्योगीकरण से देश में अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। जैसे–हड़ताल, तालाबन्दी, श्रमिकों एवं पूँजीपतियों के पारस्परिक संघर्ष, श्रमिक-कल्याण, दुर्घटनाएँ आदि। इन सभी समस्याओं को राज्य की ओर से हल करने की कोशिश की जाती है।

(ङ) भारतीय धार्मिक जीवन पर प्रभाव

औद्योगीकरण का किसी देश के धार्मिक जीवन पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है। भारत में औद्योगीकरण का धार्मिक मान्यताओं पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है

1. समाज में धर्म का महत्त्व कम होना – औद्योगीकरण के फलस्वरूप भारत में ईश्वर पर से लोगों की आस्था कम होती जा रही है। लोगों का ध्यान भौतिक सुखों की ओर अधिक बढ़ने लगा है।

2. नैतिकता का ह्रास – नैतिकता की भावना, जो धर्म का एक आवश्यक अंग है, भारतीय जीवन से तिरोहित होती जा रही है। स्वार्थों की टकराहट में मानवता का हनन हो रहा है। मनुष्य ने मनुष्य को पहचानना तक छोड़ दिया है।

3. आदर्शों का अभाव – औद्योगीकरण के फलस्वरूप व्यक्ति का दृष्टिकोण भौतिकवादी हो गया है। अपने को वह केवल वर्तमान से ही जोड़कर रखने की कोशिश करता है। भौतिक सुखों की उपलब्धि उसके जीवन का लक्ष्य है। जीवन के आदर्शों का उसके लिए कोई महत्त्व नहीं रहा है, क्योंकि उसकी निगाह भविष्य पर टिकी नहीं होती।

औद्योगीकरण के दुष्प्रभावों को रोकने के उपाय

औद्योगीकरण के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं

  1. देश में उद्योगों का विकेन्द्रीकरण किया जाए जिससे राष्ट्र का सन्तुलित विकास हो सके।
  2. ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग-धन्धों की पुनः स्थापना की जाए।
  3. कृषि एवं उद्योगों में बढ़ती हुई यन्त्रीकरण की प्रवृत्ति पर रोक लगायी जाए।
  4. तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगायी जाये। इर के लिए परिवार कल्याण कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाए।
  5.  नगरों में आवास सुविधाएँ बढ़ायी जाएँ, प्रदूषण तथा गन्दगी का विनाश किया जाए।
  6.  अपराध वृत्ति पर रोक लगायी जाए तथा अपराध निरोध के लिए उपाय किये जाएँ।
  7. जनसुविधाओं और स्वास्थ्य सेवाओं में आवश्यकतानुसार वृद्धि की जाए।
  8.  नैतिक आदर्शों एवं सामाजिक मूल्यों के प्रति लोगों की आस्था बढ़ायी जाए।
  9. सामाजिक न्याय एवं सामाजिक कल्याण में वृद्धि की जाए।
  10.  उद्योगों में श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए तथा उनकी सुविधाएँ बढ़ायी जाएँ।
  11.  वर्ग-संघर्ष कम करने के लिए समाज में धन का उचित वितरण किया जाए।
  12. बेरोजगारी तथा निर्धनता पर रोक लगायी जाए।
  13. पारिवारिक विघटन की प्रक्रिया को कम किया जाए।
  14. समाज में मनोरंजन के स्वस्थ साधनों का विकास किया जाए।
  15. समाज-सुधार एवं समाज-कल्याण की योजनाएँ चलायी जाएँ।
  16.  उद्योगों का विकास बस्तियों से दूर कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में किया जाए।
  17.  समाज में सहयोग, प्रेम तथा एकता को वातावरण तैयार किया जाए जिससे तनाव और संघर्षों को रोका जा सके।
  18.  श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए श्रम-कल्याणकारी कानूनों का निर्माण किया जाए।
  19.  सामाजिक समस्याओं के निराकरण हेतु प्रशासन को अधिक चुस्त बनाया जाए।
  20. राष्ट्र में कुशल नेतृत्व का विकास किया जाए तथा प्रजातान्त्रिक मूल्यों की स्थापना की जाए।

प्रश्न 2
नगरीकरण किसे कहते हैं ? भारतीय समाज पर नगरीकरण के प्रभावों का उल्लेख कीजिए। [2011]
या
भारतीय समाज पर नगरीकरण के प्रभावों की विस्तृत विवेचना कीजिए। [2007, 11, 12, 13]
या
नगरीकरण को परिभाषित करते हुए उसकी विशेषताओं को संक्षेप में लिखिए। नगरीकरण के भारतीय जनजीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की विवेचना कीजिए। [2009, 12]
या
भारत में नगरीकरण के दुष्परिणामों को रोकने के कुछ उपाय सुझाइए। [2011]
या
नगरीकरण के दो दुष्प्रभावों का उल्लेख कीजिए। [2015]
उत्तर:
नगरीकरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ

‘नगरीकरण’ शब्द नगर से ही बना है। सामान्यत: नगरीकरण का अर्थ नगरों के उद्भव, विकास, प्रसार एवं पुनर्गठन से लिया जाता है। वर्तमान औद्योगिक नगर औद्योगीकरण की ही देन हैं। जब एक स्थान पर एक विशाल उद्योग स्थापित हो जाता है तो उस स्थान पर कार्य करने के लिए लोग उमड़ पड़ते हैं और धीरे-धीरे वह स्थान नगर के रूप में विकसित हो जाता है। नगरीकरण को परिभाषित करते हुए ब्रीज लिखते हैं, “नगरीकरण एक प्रक्रिया है जिसके कारण लोग नगरीय कहलाने लगते हैं, शहरों में रहने लगते हैं, कृषि के स्थान पर अन्य व्यवसायों को अपनाते हैं जो नगर में उपलब्ध हैं और अपने व्यवहार-प्रतिमान में अपेक्षाकृत परिवर्तन का समावेश करते हैं।’

डेविस के अनुसार, “नगरीकरण एक निश्चित प्रक्रिया है, परिवर्तन का वह चक्र है जिससे कोई समाज कृषक से औद्योगिक समाज में परिवर्तित होता है।” बर्गेल के अनुसार, “ग्रामीण क्षेत्रों को नगरीय क्षेत्र में बदलने की प्रक्रिया को ही हम नगरीकरण कहते हैं।”

नगरीकरण की विशेषताएँ

  1.  नगरीकरण ग्रामों के नगरों में बदलने की प्रक्रिया का नाम है।
  2.  नगरीकरण में लोग कृषि व्यवसाय को छोड़कर अन्य व्यवसाय करने लगते हैं।
  3. नगरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें लोग गाँव छोड़कर शहरों में निवास करने लगते हैं जिससे शहरों का विकास, प्रसार एवं वृद्धि होती है।
  4. नगरीकरण जीवन जीने की एक विधि है, जिसका प्रसार शहरों से गाँवों की ओर होता है। नगरीय जीवन जीने की विधि को नगरीयता या नगरवाद कहते हैं। नगरवाद केवल नगरों तक ही सीमित नहीं होता वरन् गाँव में रहकर भी लोग नगरीय जीवन विधि को अपना सकते हैं।

उद्योगों की स्थापना के साथ-साथ ही भारत में नगरीकरण की प्रक्रिया भी तीव्र हुई है। ग्रामीण लोग देश के विभिन्न भागों में स्थित कारखानों में काम करने के लिए गमन करने लगे हैं, फलस्वरूप महानगरीय एवं नगरीय जनसंख्या में वृद्धि हुई है। | भारत में नगरीकरण की प्रक्रिया ने यहाँ के समाज और जनजीवन को बहुत कुछ प्रभावित किया है। इसके परिणामस्वरूप एक तरफ अनेक सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं तो दूसरी ओर कई सामाजिकआर्थिक परिवर्तनों एवं समस्याओं को भी पनपने का मौका मिला है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि नगरीकरण का अर्थ केवल ग्रामीण जनसंख्या का शहर में आकर बसना या भूमि से सम्बन्धित कार्यों के स्थान पर अन्य कार्यों में अपने को लगाना ही नहीं है। लोगों के नगर में आकर बस जाने मात्र से ही उनका नगरीकरण नहीं हो जाता। ग्रामीण व्यक्ति भी जो कि ग्रामीण व्यवसाय और आदतों को त्यागते नहीं हैं, नगरीय हो सकते हैं, यदि वे नगरीय जीवन-शैली, मनोवृत्ति, मूल्य, व्यवहार एवं दृष्टिकोण को अपना लेते हैं।

नगरीकरण का भारतीय समाज पर प्रभाव

नगरीकरण की प्रक्रिया ने, जो भारतवर्ष में पिछली शताब्दी के उत्तरार्द्ध से चल रही है, देश में अनेकानेक परिवर्तन उत्पन्न कर दिये हैं और जनजीवन को गहराई से प्रभावित किया है, जिस पर अग्रलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत विचार करेंगे

(क) नगरीकरण का पारिवारिक जीवन पर प्रभाव
नगरीकरण की भारत के पारिवारिक जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है

1. संयुक्त परिवार का विघटन – गाँवों में संयुक्त परिवार पाये जाते हैं। शहरों में स्थानाभाव के कारण तथा गाँवों से एकाकी रूप से स्थानान्तरित होने के कारण संयुक्त परिवार का स्थान एकाकी छोटे परिवारों ने ले लिया है।

2. पारिवारिक नियन्त्रण का अभाव – गाँवों में संयुक्त परिवार के मुखिया का परिवार पर काफी नियन्त्रण रहता है। नगरों में छोटे परिवार तथा उन्मुक्तता के कारण पारिवारिक नियन्त्रण इतना कठोर नहीं होता।

3. नयी प्रथाएँ एवं परम्पराएँ – नगरीकरण के प्रभाव से भारत के गाँवों के परिवार की प्रथाएँ एवं परम्पराएँ भी बदलती जा रही हैं; जैसे – माँ-बाप को माता-पिता कहने के स्थान पर मम्मी-डैडी कहना, रसोई में पीढ़े पर खाने के बजाय मेज-कुर्सी पर खाना, भाषा में अंग्रेजी का अधिक प्रयोग करना आदि।

4. पारिवारिक जीवन में अस्थिरता – गाँवों में पति-पत्नी के सम्बन्ध अधिक स्थिर एवं स्थायी होते हैं। शहरों में स्त्रियों को पर-पुरुषों से मिलने-जुलने का काफी अवसर मिलता रहता है। और अधिक स्वतन्त्रता रहती है; इसलिए पति-पत्नी के सम्बन्धों में कुछ कम स्थिरता होती है। नगरों में तलाक की घटनाएँ अधिक होती हैं।

5. वैवाहिक आदशों में परिवर्तन – नगरों में युवक-युवतियाँ उच्च स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने में लगे रहते हैं। फिर अपने पैरों पर खड़े होने के लिए नौकरी ढूंढ़ते हैं। स्वावलम्बन प्राप्त करने के इस प्रयास में विवाह की अवस्था बढ़ जाती है, जिससे विलम्ब विवाह नगरों में सामान्य हो गये हैं। कुछ लोग विवाह के चक्कर में नहीं फंसना चाहते, अत: वे अविवाहित रहते हैं। इनके अतिरिक्त नगरों में प्रेम-विवाहों की परम्परा भी प्रचलित है और विधवा-विवाह बुरे नहीं माने जाते।

6. स्त्रियों की स्थिति में सुधार – नगरीकरण के साथ-साथ भारत में स्त्रियों में स्वावलम्बन “और स्वतन्त्रता की तरंग अधिक व्याप्त होती जा रही है। वे पुरुषों के दबाव में और पर्दे में नहीं रहतीं। वे पुरुष के समकक्ष शिक्षा प्राप्त करती हैं और नौकरियाँ करती हैं। इस प्रकार उनकी दशा में काफी सुधार हुआ है और होता जा रहा है।

(ख) नगरीकरण का सामाजिक जीवन पर प्रभाव

नगरीकरण का भारतीय सामाजिक जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है

1. शिक्षा का प्रसार – भारत में शिक्षितों की संख्या बढ़ रही है, क्योंकि स्थान-स्थान पर विद्यालय खुलते जा रहे हैं। शिक्षा के इस व्यापक प्रसार से अन्धविश्वास में कमी, सामाजिक जीवन की अधिक गहरी समझ, विचारों का आदान-प्रदान, उद्योगों का विकास, कृषि की उन्नति, व्यापार में विकास आदि सभी कुछ हो रहा है।

2. सभ्यताओं का संगम – नगरों में विभिन्न जातियों, प्रदेशों, सम्प्रदायों आदि के लोग रहते हैं। विदेशों से भी लोगों का आवागमन होता रहता है। इस प्रकार रहन-सहन के तरीकों, भाषाओं और विचारों के मिश्रण से रहन-सहन में परिवर्तन होता रहता है। भारत के अनेक भागों में यह लक्षण परिलक्षित हो रहा है। फलस्वरूप स्थाने-विशेष की मूल संस्कृति में भी परिवर्तन हो जाती है।

3. संचार के साधनों का प्रसार – नगरीकरण के साथ संचार के साधनों में भी परिवर्तन होता
है। भारत के अनेक ग्रामीण क्षेत्रों में रेलों, बसों, तार, टेलीफोन आदि की सुविधाओं का व्यापक प्रसार हुआ। इससे नये विचारों का प्रसार एवं विभिन्न विचारधाराओं का तीव्र मिश्रण सम्भव हो सका है।

4. अपराध-प्रवृत्ति का प्रसार – शहर में आवास की सुविधाओं का अभाव रहता है, जनसंख्या अधिक रहती है, धनलोलुपता अधिक पायी जाती है, इसलिए लोगों में नैतिकता का अभाव होता है। झूठ, घूस, चोरी, छल-कपट, मिलावट, शराबखोरी, जुआ, डकैती, हत्या आदि भाँतिभाँति के अपराध सामाजिक जीवन पर हावी होते जा रहे हैं और उसे नारकीय बना रहे हैं। नगरीकरण के साथ-साथ मानव को मूल्य कम और धन का महत्त्व अधिक बढ़ता जा रहा है।

5. बीमारियों का प्रसार – स्वास्थ्य-विभाग की व्यवस्थाओं के बावजूद भी घनी जनसंख्या, तंग, अँधेरी, बदबू तथा सीलन से युक्त बस्तियों, खुली हवा का अभाव, खाद्य पदार्थों में तरह-तरह की मिलावट, अवैध एवं मुक्त यौनसम्बन्ध तथा अनियमित रहन-सहन से नगरीकरण के साथ रोगों का भी काफी प्रसार होता है।

6. रहन-सहन में कृत्रिमता – नगरीकरण के प्रभाव से गाँवों का स्वाभाविक एवं प्राकृतिक जीवन कृत्रिम रूप ग्रहण करने लगता है। कोल्ड स्टोरेज की सब्जियाँ, दवाओं से युक्त गेहूँ, पॉलिश किया हुआ चावल, रँगी हुई दाल, कृत्रिम वनस्पति घी एवं मक्खन, सेन्ट डाला हुआ कडूवा तेल, टिन में बन्द अन्य खाद्य सामग्रियों का प्रयोग करते हैं। वस्त्रों में सूती, ऊनी व रेशमी वस्तुओं के स्थान पर बनावटी रेशों के वस्त्र; जैसे-टेरीलीन, नायलॉन आदि; का प्रयोग किया जाता है।

7. स्वास्थ्य में गिरावट, किन्तु जीवनावधि में वृद्धि-रहन – सहन की अनियमितता तथा अशुद्ध वस्तुओं के सेवन आदि के कारण नगरीकरण से लोगों के सामान्य स्वास्थ्य में गिरावट आती है। किन्तु चिकित्सा की उत्तम पद्धतियों में रोगों का निराकरण भी हो जाता है, और नगर में रहने वाला भारतीय कमजोर, किन्तु अधिक लम्बा जीवन जीता है।

8. नशीले द्रव्यों के सेवन में वृद्धि – नगरीकरण के प्रभाव से लोगों में शराब, अफीम, एल० एस० डी०, मारिजुआना, हीरोइन, भाँग आदि के सेवन की प्रवृत्ति बढ़ती है, क्योकि नगरीय जीवन में तनाव से शान्ति प्राप्त करने हेतु नशीले द्रव्यों का सेवन आवश्यक बन जाता है। इनके साथ-साथ नींद प्राप्त करने के लिए सोने की गोलियों का प्रयोग भी बढ़ता है।

9. भौतिकवाद की प्रधानता – नागरिक प्रभाव के कारण भारतीय समाज के आदर्शवादी सिद्धान्त तिरोहित होने लगे हैं। लोगों का ध्यान आत्मिक विकास के स्थान पर भौतिक सुख सम्पन्नता प्राप्त करने पर अधिक रहने लगा है। इससे पारस्परिक संघर्ष, ईष्र्या-द्वेष, वैमनस्य, प्रतियोगिता को बढ़ावा मिला है और तनाव-चिन्ता में वृद्धि हुई है।

(ग) नगरीकरण का भारतीय आर्थिक जीवन पर प्रभाव

नगरीकरण के प्रभाव से भारतीय आर्थिक जीवन भी काफी प्रभावित है, जिसका विवरण निम्न प्रकार है

1. पूँजीवाद का विकास – उद्योगों और व्यापारिक कार्यों से थोड़े-से लोगों के हाथ में धन का केन्द्रीकरण होने लगा है और शेष जनता शोषण का शिकार हुई है। जिनके पास साधनसुविधाएँ हैं, वे अधिकाधिक धन कमा रहे हैं तथा जिनके पास इनका अभाव है, उनकी दशा गिरती जाती है।

2. महँगाई में वृद्धि – जनसंख्या में अधिक वृद्धि एवं उत्पादन में कमी की वृद्धि के कारण मूल्यों में वृद्धि होती है, वस्तुएँ महँगी हो जाती हैं जिससे मध्यम और निम्न वर्ग त्रस्त हो रहा है।

3. कुटीर उद्योगों का ह्रास – नगरीकरण के साथ बड़े उद्योग-धन्धों का प्रसार तेजी से हुआ है। और कुटीर उद्योगों का उसी अनुपात में ह्रास हुआ है। फलस्वरूप नगरीकरण के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था असन्तुलित होती जा रही है।

4. बेकारी में वृद्धि – नगरीकरण के साथ-साथ बेकारी में वृद्धि होती है, क्योंकि बड़े उद्योगों में मशीनें मानवीय श्रम का स्थान ले लेती हैं, जिससे बेकारी बढ़ जाती है। व्यवसाय के अभाव से निर्धनता बढ़ती है। नगरीकरण से ऐसे शिक्षित नवयुवकों की संख्या बढ़ती है, जो केवल पढ़ने-लिखने से सम्बन्धित काम करना चाहते हैं। इस तरह के नवयुवक गाँवों से भी नगर में नौकरी की तलाश में आकर इकट्ठे होने लगते हैं और बेकारी की संख्या में वृद्धि करते हैं।

 5. वाणिज्य और व्यापार का विस्तार – नगरीकरण के साथ संचार के साधनों का विस्तार और प्रसार होता है। पक्के वातानुकूलित गोदामों का निर्माण होता है, जो वस्तुओं को संग्रहीत करने की सुविधा प्रदान करते हैं। दूर-दूर से व्यापारी आकर इकट्ठे होते हैं और इस प्रकार वाणिज्य और व्यापार का विस्तार होता है।

(घ) नगरीकरण का भारतीय राजनीतिक जीवन पर प्रभाव

नगरीकरण का देश के राजनीतिक जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है

  1.  राजनीतिक दलों की क्रियाशीलता में वृद्धि – नगरीकरण के साथ-साथ नये-नये राजनीतिक दलों की स्थापना होती है और राजनीतिक ऊट-पटॉग और दाँव-पेचों में वृद्धि होती है। इस प्रकारे बस्तियाँ राजनीति के अखाड़े बन जाते हैं।
  2. राजनीतिक जागृति – नगरों में राजनीतिक दल बहुत अधिक क्रियाशील होते हैं, जिससे नागरिकों में राजनीतिक ज्ञान की वृद्धि होती है।
  3. प्रशासनिक समस्याओं में वृद्धि – नगरीकरण के साथ-साथ अनेक नयी प्रशासनिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं; जैसे–नागरिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, अपराधों पर नियन्त्रण, शिक्षा का संगठन, व्यापार का संगठन, उद्योगों का संचालन एवं व्यवस्था, हड़ताल वे तालाबन्दी। इनसे अशान्ति बढ़ती है।

(ङ) नगरीकरण का भारतीय धार्मिक जीवन पर प्रभाव

नगरीकरण की प्रक्रिया ने भारत के धार्मिक जीवन को निम्नलिखित रूप से प्रभावित किया है

  1. लोगों में धार्मिक भावना का ह्रास दिखाई पड़ता है। लोगों को ईश्वर में विश्वास घट रहा है।
  2. लोगों का ध्यान आत्मिक विकास से हटकर भौतिक सुख-सम्पन्नता प्राप्त करने पर अधिक केन्द्रित होता जा रहा है।
  3. लोगों में जीवन के उच्च मूल्यों के प्रति विश्वास कम होता जा रहा है।
  4. नगरीकरण के साथ नैतिक भावना व नैतिक मूल्यों में आस्था समाप्त होती जा रही है। अनैतिक मूल्य और अपराध बढ़ रहे हैं।
  5.  भारत में नगरीकरण के प्रभाव में साम्प्रदायिक संकीर्णता भी उत्पन्न हुई है।नगरीकरण को रोकने के उपाय – भारत में औद्योगीकरण अधिकतर नगरों में हुआ है। साथ ही, अनेक उद्योग खुलने से नवीन नगरों का जन्म हुआ है; अत: नगरीकरण रोकने के उपाय भी वही होंगे जो औद्योगीकरण के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए हैं।

प्रश्न 3
भारतीय समाज पर औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के संयुक्त प्रभाव की विवेचना कीजिए।
या
नगरीकरण एवं औद्योगीकरण की प्रक्रियाओं ने किस प्रकार भारतीय सामाजिक संगठन को प्रभावित किया है ? [2009]
उत्तर:
भारतीय समाज पर औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के संयुक्त प्रभाव

भारतीय समाज पर नगरीकरण एवं औद्योगीकरण के प्रभावों का अनेक विद्वानों ने अध्ययन किया है, जिनमें एम० एस० गोरे, एलन डी० रॉस, एम० एन० श्रीनिवास आदि प्रमुख हैं। इन्होंने भारतीय ग्रामीण सामाजिक संरचना, संयुक्त परिवार, विवाह एवं जाति-प्रथा पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन एवं विश्लेषण किया है। भारतीय समाज पर औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के प्रभावों का उल्लेख निम्नवत् है

1. यातायात के साधनों का विकास – उद्योगों का यन्त्रीकरण हुआ तो उत्पादन की गति तीव्र हुई। कारखानों में कच्चे माल को तथा निर्मित माल को मण्डियों में पहुँचाने के लिए तीव्रगामी यातायात के साधनों की आवश्यकता महसूस हुई। परिणामस्वरूप रेल, मोटर, ट्रक, वायुयान, जहाज आदि का आविष्कार हुआ, पक्की सड़कें बनीं और यातायात के साधनों का जाल बिछ गया।

2. श्रम-विभाजन एवं विशेषीकरण – ग्रामीण कुटीर व्यवसायों में एक परिवार के व्यक्ति मिलकर ही सम्पूर्ण निर्माण की प्रक्रिया में हाथ बंटाते थे, किन्तु जंब उत्पादन मशीनों की सहायता से होने लगा तो सम्पूर्ण उत्पादन प्रक्रिया को अनेक छोटे-छोटे भागों में बाँट दिया गया। इसी कारण श्रम-विभाजन का उदय हुआ। एक व्यक्ति सम्पूर्ण उत्पादन प्रक्रिया के मात्र एक भाग को ही कर सकता था, जिसके कारण विशेषीकरण ने जन्म लिया।

3. उत्पादन में वृद्धि – औद्योगीकरण में श्रम-विभाजन एवं विशेषीकरण के कारण व मशीनों के प्रयोग से उत्पादन बड़े पैमाने पर तीव्र मात्रा में होने लगा। अधिक उत्पादन के कारण माल की खपत के क्षेत्र में वृद्धि हुई, पूँजी में वृद्धि हुई और स्थानीय आवश्यकताओं के लिए ही नहीं वरन् विश्वव्यापी मॉग के लिए उत्पादन होने लगा।

4. बैंक, बीमा एवं साख – व्यवस्था का उदय-उद्योगों को सुविधाएँ देने, उनके लिए पूँजी जुटाने एवं माल की सुरक्षा के लिए बैंक, बीमा एवं साख-व्यवस्था का उदय हुआ। आज हजारों लोग बैंकों एवं बीमा कार्यालयों में काम करते हैं।

5. आर्थिक प्रतिस्पर्धा – औद्योगीकरण ने आर्थिक प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया। इस प्रतिस्पर्धा में अधिक पूँजी वाला कम पूँजी वाले के व्यवसाय को नष्ट कर देता है और अपना एकाधिकार स्थापित कर लेता है। एकाधिकार कायम होने पर वह माल को अपनी मनचाही कीमत पर बेचता है।

6. सांस्कृतिक सम्पर्क – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण ही यातायात एवं सन्देशवाहन के साधनों का विकास हुआ। नवीन साधनों ने विभिन्न संस्कृतियों के लोगों को एक-दूसरे के नजदीक ला दिया। यही कारण है कि शहरों में जो औद्योगिक केन्द्र हैं, उनमें हम विभिन्न संस्कृतियों को साथ-साथ फलते-फूलते देख सकते हैं।

7. विवाह पर प्रभाव – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के प्रभाव के कारण परम्परात्मक भारतीय विवाह संस्था में भी अनेक परिवर्तन हुए हैं। अब जीवन-साथी के चयन में स्वयं लड़के व लड़कियों की राय को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा। नगर में ही हमें प्रेम-विवाह, अन्तर्जातीय विवाह, कोर्ट मैरिज, विधवा पुनर्विवाह, तलाक आदि अधिक दिखाई देते हैं। नगर के लोग विवाह को अब एक धार्मिक संस्कार न मानकर एक सामाजिक समझौता मानने लगे हैं जिसे कभी भी तोड़ा जा सकता है। अब विवाह का उद्देश्य धार्मिक कार्यों की पूर्ति न मानकर सन्तानोत्पत्ति एवं रति-आनन्द माना जाने लगा है।

8. जाति-प्रथा पर प्रभाव – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण भारतीय जाति-प्रथा में भी परिवर्तन हुआ है। परम्परागत जाति-प्रथा में संस्तरण की एक प्रणाली पायी जाती है, जिसमें जातियों की स्थिति ऊँची और नीची होती है। प्रत्येक जाति का इस संस्तरण में एक स्थान निश्चित होता है। किन्तु औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण जाति-प्रथा की उपर्युक्त विशेषताओं में परिवर्तन हुआ है। अब व्यक्ति का मूल्यांकन उसकी जाति के बजाय उसके गुणों के आधार पर होने लगा है। जातीय संस्तरण में भी परिवर्तन हुआ है और उन जातियों की सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है, जो संख्या की दृष्टि से अधिक हैं, आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हैं और जिन्हें राजनीतिक सत्ता प्राप्त है। खान-पान के सम्बन्धों एवं छुआछूत में भी शिथिलता आयी है।

9. ग्रामीण समुदाय पर प्रभाव – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की प्रक्रिया का प्रभाव ग्रामीण समुदायों पर भी पड़ा। यद्यपि गाँवों में आज भी संयुक्त परिवार प्रथा, जाति-प्रथा व कुछ मात्रा में जजमानी प्रथा का प्रचलन है, फिर भी नगरों के प्रभाव से ग्राम बच नहीं पाये हैं। ग्रामीणों में वस्तु के स्थान पर मुद्रा विनिमय का प्रचलन बढ़ा है। उनके दृष्टिकोण एवं मूल्यों में परिवर्तन हुआ है और नयी आकांक्षाएँ पैदा हुई हैं। गाँवों में जजमानी प्रथा कमजोर हुई है और कई ग्रामीण लोग नगरों में जाकर अपना जातीय व्यवसाय करने लगे हैं। गाँवों में नगरीय संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था पनपने लगी है।

10. राजनीतिक क्षेत्र पर प्रभाव – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की प्रक्रिया ने राजनीतिक क्षेत्र को भी प्रभावित किया है। नगरों में यातायात एवं संचार के साधनों एवं समाचार-पत्रों आदि की सुविधा होने के कारण राजनीतिक दल अपने विचारों और सिद्धान्तों को सरलता से जनता तक पहुँचा देते हैं। नगरीकरण ने लोगों में राजनीतिक जागृति पैदा की है और नवीन प्रजातन्त्रीय मूल्यों से लोगों को परिचित कराया है।
11. धार्मिक क्षेत्र में परिवर्तन – नगरों में धर्म का प्रभाव धीरे-धीरे क्षीण होता जा रहा है। वहाँ लोग भाग्य तथा ईश्वर में कम विश्वास करते हैं और अपने श्रम पर अधिक भरोसा रखते हैं। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि नगरों में धर्म का कोई महत्त्व और प्रभाव नहीं है। कई धर्म गुरुओं ने तो धर्म की नयी व्याख्या भी प्रस्तुत की है।

12. स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन  – नगरों में स्त्रियों की सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। वहाँ लड़कियों को उच्च शिक्षा दिलायी जाती है। अतः वे पढ़-लिखकर स्वयं धन अर्जन करने लगी हैं और पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता समाप्त हुई है। नगरों में स्त्रियाँ डॉक्टर, इन्जीनियर, प्राध्यापक, प्रशासक, विधायक, मन्त्री और अन्य पदों पर कार्य करने लगी हैं। प्रेम-विवाह एवं विधवा पुनर्विवाह के कारण स्त्रियों की पारिवारिक प्रस्थिति भी ऊँची उठी है। वर्तमान में परिवारों में पत्नी को पति के समकक्ष दर्जा प्राप्त है।

13. सामाजिक गतिशीलता – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हुई है। एक व्यक्ति अच्छे अवसर होने पर एक से दूसरे स्थान पर जाने तथा अपने पद, वर्ग, व्यवसाय को बदलने के लिए तैयार रहता है।

14. व्यापारिक मनोरंजन – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण मनोरंजन का व्यापारीकरण हुआ है। अनेक संस्थाएँ आज मनोरंजन प्रदान करने का कार्य करती हैं। सिनेमा, क्लब, नाटक, टेलीविजन, रेडियो आदि के संचालन में पर्याप्त मात्रा में पैसों की जरूरत नहीं होती है। ग्रामीण जीवन में मनोरंजन, त्योहारों व उत्सवों के अवसर पर होने वाले नृत्यों द्वारा उपलब्ध होता था, किन्तु आज इन सबके लिए पर्याप्त पैसा खर्च करना होता है।

15. अन्य प्रभाव – उपर्युक्त प्रभावों के अतिरिक्त औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कुछ अन्य प्रभाव इस प्रकार हैं

  1. औद्योगीकरण के कारण मानव की शक्ति में वृद्धि हुई है। उसने अनेक आविष्कारों एवं वैज्ञानिक खोजों के द्वारा ऐसी मशीनों का आविष्कार किया है, जो ऐसे कार्य कर सकती हैं जो मानव की शक्ति से परे हैं।
  2. औद्योगीकरण में उत्पादन का कार्य मशीनों से होने लगा। कम समय में अधिक उत्पादन होने से समय की बचत हुई, साथ ही समय की पाबन्दी और समय का महत्त्व बढ़ा।
  3. औद्योगीकरण के कारण अनेक ऐसी वस्तुओं का उत्पादन हुआ जिन्होंने मानव के सुख एवं ऐश्वर्य में वृद्धि की।
  4.  औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण मानव को प्राप्त होने वाली सुख-सुविधाओं में वृद्धि एवं उत्पादन में बढ़ोत्तरी के कारण उसके जीवन-स्तर में वृद्धि हुई।
  5. प्राथमिक सम्बन्धों का ह्रास हुआ और द्वितीयक सम्बन्ध’ पनपे।
  6. आवश्यकताओं में वृद्धि हुई।
  7. शिक्षा में वृद्धि हुई।
  8.  विचारों में विविधता पनपी।
  9. भीड़-भाड़ में वृद्धि हुई।
  10. औद्योगिक केन्द्रों में स्त्री-पुरुषों के अनुपात में अन्तर बढ़ा। वहाँ स्त्रियों की अपेक्षा पुरुष अधिक पाये जाते हैं।
  11. कृषि में यन्त्रीकरण हुआ।
  12.  मजदूरों की समस्याओं एवं शहर की भीड़-भाड़ युक्त स्थिति से निपटने के लिए प्रशासकीय समस्याएँ खड़ी हुईं।
  13. नैतिक मूल्यों में ह्रास हुआ और लोग पैसे के लिए उचित व अनुचित सभी प्रकार के कार्य करने को तैयार होने लगे।

प्रश्न 4
औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कुप्रभावों की विवेचना कीजिए। [2008]
या
औद्योगीकरण के चार दुष्परिणाम बताइए।
या
औद्योगीकरण तथा नगरीकरण के दोषों को दूर करने के उपाय बताइए।
उत्तर:
औद्योगीकरण व नगरीकरण के कुप्रभाव या दोष

1. पूँजीवाद का जन्म – औद्योगीकरण से पूर्व जीवन-यापन का प्रमुख साधन कृषि एवं कुटीर व्यवसाय थे, जो छोटे पैमाने पर होते थे और जिनमें अधिक पूँजी की आवश्यकता नहीं होती थी, किन्तु जब औद्योगीकरण हुआ तो सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में परिवर्तन हुआ। जिसके पास पूँजी थी, उसने कारखाना लगाया। धीरे-धीरे पूँजी में वृद्धि हुई। श्रमिकों के श्रम का लाभ पूँजीपतियों को मिला। वे अधिक धनी बने। औद्योगीकरण ने ही पूँजीपति एवं मजदूर, दो प्रमुख वर्गों को जन्म दिया।

2. मजदूर समस्याओं एवं मजदूर संगठनों का जन्म – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण अनेक मजदूर समस्याओं ने जन्म लिया। मजदूरों के स्वास्थ्य की समस्या, काम के घण्टे, भर्ती की समस्या, शिक्षा, बीमा, चिकित्सा, मकान, बोनस आदि से सम्बन्धित अनेक समस्याओं का जन्म हुआ। इन्हें हल करने के लिए उन्होंने मजदूर संगठनों का निर्माण किया। कुटीर व्यवसाय से सम्बन्धित कोई श्रम समस्याएँ नहीं थी, क्योंकि उनमें काम करने वालों में परस्पर सहयोग और घनिष्ठ सम्बन्ध थे। अतः शोषण का प्रश्न ही नहीं था।

3. बेकारी – उद्योगों में मशीनों ने मनुष्य का स्थान लिया। अभिनवीकरण में ऐसी मशीनों का प्रयोग किया जाता है, जिनके द्वारा कम श्रम से अधिक उत्पादन होता है तथा इससे मजदूरों की छंटनी होती है। भारत जैसे देश में, जहाँ पहले से ही बेकारी है, मशीनीकरण से अनेक श्रमिक बेकार हो गये।

4. कुटीर उद्योगों का ह्रास – औद्योगीकरण से पूर्व उत्पादन कुटीर उद्योगों द्वारा होता था, किन्तु जब मशीनों की सहायता से उत्पादन होने लगा जो कि हाथ से बने माल की अपेक्षा सस्ता, साफ व टिकाऊ होता था तो उसके सामने गृह उद्योग द्वारा निर्मित माल टिक नहीं सका। धीरे-धीरे कुटीर व्यवसाय समाप्त होने लगे और उनमें काम करने वाले तथा उनके मालिक कारखानों में श्रमिकों के रूप में सम्मिलित हुए। इस प्रकार औद्योगीकरण से ग्रामीण कुटीर उद्योगों एवं गृह-कला का ह्रास हुआ।

5. आर्थिक संकट व पराश्रितता – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण गाँवों में आत्मनिर्भरता समाप्त हुई। एक गाँव की दूसरे गाँव पर ही नहीं वरन् एक राष्ट्र की दूसरे राष्ट्र पर निर्भरता बढ़ी। कच्चा माल खरीदने एवं बने हुए माल को बेचने के लिए दो देशों में समझौते हुए एवं पारस्परिक निर्भरता बढ़ी। आज एक देश के आर्थिक विकास में प्रत्यक्ष अंथवा परोक्ष रूप में दूसरे देशों का भी योगदान है। यदि अरब राष्ट्र भारत को तेल देना बन्द कर दें, तो भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

6. मकानों की समस्या –
 उद्योगों में काम करने के लिए गाँवों से लोग हजारों की संख्या में आते हैं। परिणामस्वरूप उनके निवास की समस्या पैदा होती है। शहरों में हवा व रोशनी वाले मकानों का अभाव होता है। औद्योगिक केन्द्रों में मकान, भीड़-भाड़ युक्त, सीलन भरे एवं बीमारियों के घर होते हैं। औद्योगीकरण ने गन्दी बस्तियों की समस्या को प्रमुखतः जन्म दिया है।

7. दुर्घटनाओं में वृद्धि –
 कारखानों में चौबीसों घण्टे काम चलता रहता है। थोड़ी-सी असावधानी या थकान से निद्रा आने पर हाथ-पाँव कटने एवं स्वयं को मृत्यु के मुख में धकेलने के अवसर बढ़ जाते हैं। ट्रकों, बसों एवं रेलों की दुर्घटनाएँ आए दिन होती ही रहती हैं।

8. सामाजिक नियन्त्रण का अभाव –
 ग्रामीण जीवन में व्यक्ति पर परिवार, जाति पंचायत, ग्राम पंचायत, प्रथाओं एवं धर्म का नियन्त्रण था। औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण बड़े नगरों में यह सब असम्भव हो गया। नियन्त्रण के अभाव के कारण ही औद्योगिक केन्द्रों एवं बड़े नगरों में उच्छृखलता दिखाई देती है।

9. व्यक्तिवाद को प्रोत्साहन –
 औद्योगीकरण एवं नगरीकरण ने व्यक्तिवाद को प्रोत्साहित किया। व्यक्तिवाद व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर जोर देता है तथा वह सरकार एवं राज्य का हस्तक्षेप नहीं चाहता, किन्तु नियन्त्रण के अभाव में व्यक्ति में कई बुराइयाँ जन्म लेती हैं।

10. सामाजिक विघटन एवं अपराध –
 औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण समाज-विरोधी कार्यों एवं अपराधों में वृद्धि हुई। नगरों में नियन्त्रण के अभाव में सामाजिक नियमों की अवहेलना की जाती है जिससे समाज में विघटनकारी प्रवृत्तियाँ प्रबल होती हैं। औद्योगिक केन्द्रों एवं बड़े नगरों में वेश्यावृत्ति, शराबखोरी, जुआ, बाल-अपराध, हत्याएँ, आत्महत्याएँ, चोरी, डकैती, गबन एवं अन्य अपराधी व्यवहारों की बहुलता पायी जाती है।

11. संयुक्त परिवार का विघटन –
 परम्परागत भारतीय परिवार संयुक्त प्रकृति के होते थे। परिवार के सभी कार्यों पर वयोवृद्ध व्यक्ति का नियन्त्रण होता था। औद्योगीकरण एवं नुगरीकरण के प्रभाव के कारण परम्परात्मक संयुक्त परिवारों का विघटन हुआ। परिणामस्वरूप नगरों में छोटे-छोटे एकाकी परिवार बनने लगे। संयुक्त परिवार के ढाँचे एवं कार्यों में अनेक परिवर्तन हुए।

12. स्वास्थ्य की समस्या –
 शहर में स्वच्छ वातावरण का अभाव होता है। मकानों में भीड़-भाड़, वायु प्रदूषण, मिल, फैक्ट्री का धुआँ, स्थान की कमी, रोशनी एवं स्वच्छ हवा का अभाव, गड़गड़ाहट एवं बहरा कर देने वाला शोरगुल, खटमल, मच्छर आदि की अधिकता, छूत के रोग, बदबूदार एवं सीलन भरे कमरे आदि सभी मिलकर स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं। शहरों में मृत्यु-दर गाँव की अपेक्षा अधिक होने का यही प्रमुख कारण है। स्वच्छ वातावरण । प्रदान करने एवं मनोरंजन हेतु वहाँ पार्क, बगीचों एवं खेलकूद की सुविधाएँ जुटायी जाती हैं।

औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के दोषों को दूर करने के उपाय

जहाँ औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण लोगों को अनेक सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं, वहाँ इनके प्रभाव के कारण अनेक समस्याएँ भी पैदा हुई हैं। औद्योगीकरण के इन दोषों को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय प्रभावी होंगे

  1.  नियोजित नगरों का निर्माण किया जाए, जिनमें मानव-जीवन से सम्बन्धित आवश्यकताओं की पूर्ति उचित प्रकार से की जाए। यहाँ व्यवसाय सम्बन्धी सुविधाएँ भी समुचित मात्रा में उपलब्ध
    करायी जाएँ।
  2. जहाँ तक सम्भव हो उद्योगों को विकेन्द्रीकरण किया जाए तथा बड़े-बड़े उद्योगों के स्थान पर छोटे-छोटे उद्योग स्थापित किये जाएँ।
  3. ग्रामीण उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाए, जिससे गाँव से नगरों की ओर रोजगार की खोज में लोगों का आना बन्द हो।
  4. श्रमिकों की समस्याओं को हल करने तथा उनके हितों की रक्षा के लिए श्रम-कानून एवं कल्याणकारी कदम उठाये जाएँ।
  5. उद्योगों के वातावरण को स्वस्थ बनाया जाए।
  6. श्रमिकों के निवास, जल, बिजली एवं मनोरंजन के साधनों की उचित व्यवस्था की जाए।
  7. गन्दी बस्तियों के निर्माण पर रोक लगायी जाए तथा सरकार स्वयं भवन-निर्माण का कार्य करे। तथा भवन बनाने हेतु अधिकाधिक ऋण की व्यवस्था करे।
  8. उद्योगों की स्थापना नगरों से दूर हो।
  9.  श्रम संगठनों को कुशल, उपयोगी एवं मजबूत बनाया जाए। उनके आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ होने के लिए उन्हें आर्थिक सहायता दी जाए।
  10.  श्रमिकों में कुशल नेतृत्व का विकास किया जाए। अधिकांश मजदूर संगठनों का नेतृत्व श्रमिकों के हाथ में न होकर राजनेताओं के हाथ में है। इसे उनके प्रभावों से मुक्त किया जाए।
  11. श्रमिकों को सस्ते दामों पर वस्तुएँ दिलाने के लिए सरकारी उपभोक्ता भण्डार तथा चिकित्सा के लिए अस्पताल आदि की सुविधाएँ जुटायी जाएँ।

प्रश्न 5
औद्योगीकरण को परिभाषित कीजिए तथा पर्यावरण पर इसके प्रभावों की विवेचना कीजिए।
या
नगरीकरण द्वारा पर्यावरण पर पड़ रहे दो दुष्प्रभावों का उल्लेख कीजिए। [2015]
या
औद्योगीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव लिखिए। [2009]
उत्तर:
औद्योगीकरण की परिभाषा

विभिन्न विद्वानों द्वारा औद्योगीकरण की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

एम० एस० गोरे के अनुसार, “औद्योगीकरण उस प्रक्रिया से सम्बन्धित है जिसमें वस्तुओं का उत्पादन हाथ से न होकर विद्युतशक्ति द्वारा चालित मशीनों से किया जाता है।”
गैराल्ड ब्रीज के अनुसार, “किसी समाज में औद्योगीकरण का प्रथम चरण छोटी-छोटी मशीनों के विकास पर बल देता है, जबकि अन्तिम चरण बड़ी-बड़ी मशीनों के विकास पर केन्द्रित होता है।”
फेयरचाइल्ड के शब्दों में, “औद्योगीकरण विज्ञान द्वारा प्रौद्योगिक विकास की प्रक्रिया है; इसमें शक्ति-चालित यन्त्रों द्वारा बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। अतः एक व्यापक बिक्री के लिए उत्पादन एवं उपयोग में आने वाली सामग्री को तैयार किया जाता है। इस बड़े पैमाने का उत्पादन श्रम-विभाजन द्वारा होता है।”
विलबर्ट ई० मूर के शब्दों में, “औद्योगीकरण से अभिप्राय आर्थिक उत्पादन के लिए अमानवीय शक्तियों को अधिक प्रयोग तथा संचार संगठन एवं अन्य व्यवस्थाओं में परिवर्तन से है।”

पी-कांग-चांग के अनुसार, “औद्योगीकरण से अर्थ उस प्रक्रिया से है जिसके अन्तर्गत उत्पादन के कार्यों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होते रहते हैं। इनमें वे आधारभूत परिवर्तन भी सम्मिलित किये जाते हैं जिनका सम्बन्ध किसी औद्योगिक उपक्रम के यन्त्रीकरण, नवीन उद्योगों का निर्माण, नये बाजारों की स्थापना तथा किसी नवीन क्षेत्र के विकास से है। वह एक प्रकार से पूँजी को गहन तथा व्यापक बनाने की विधि है।”

ऊपर वर्णित परिभाषाओं से स्पष्ट है कि औद्योगीकरण उद्योगों के विकास की एक प्रक्रिया है, जिसमें बड़े पैमाने पर उद्योग लगाए जाते हैं तथा हाथ से किया जाने वाला उत्पादन मशीनों से किया जाने लगता है। औद्योगीकरण शब्द का प्रयोग व्यापक एवं संकुचित दो अर्थों में हुआ है। संकुचित अर्थ में औद्योगीकरण से तात्पर्य निर्माता-उद्योगों की स्थापना एवं विकास से है। इस अर्थ में औद्योगीकरण आर्थिक विकास की प्रक्रिया का ही एक भाग है जिसका उद्देश्य उत्पादन के साधनों की कुशलता में वृद्धि करके जीवन-स्तर को ऊँचा उठाना है। व्यापक अर्थ में, “औद्योगीकरण के द्वारा देश की सम्पूर्ण आर्थिक संरचना को परिवर्तित किया जा सकता है।”

औद्योगीकरण एवं नगरीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव

औद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लघु एवं कुटीर उद्योगों का स्थान बड़े पैमाने के उद्योग ले लेते हैं। उद्योगों में जड़ शक्ति का प्रयोग किया जाता है और उत्पादन मशीनों की सहायता से होता है। फलस्वरूप उत्पादन तीव्र गति से तथा विशाल मात्रा में होता है। औद्योगीकरण के विकास में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी ने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके अन्तर्गत कोयला, विद्युत शक्ति, खनिज पदार्थ आदि की अधिकाधिक प्राप्ति तथा उनके प्रयोग पर बल दिया जाता है। छोटेछोटे उद्योगों के स्थान पर बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना अथवा बड़े पैमाने पर उद्योगों की स्थापना जिनमें प्राकृतिक संसाधनों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता हो तथा उत्पादन कार्य मशीनों की सहायता से होता हो, उसे औद्योगीकरण कहा जाता है।

1. प्रदूषित मकानों का जन्म – उद्योगों में काम करने के लिए गाँवों से लोग हजारों की संख्या में आते हैं। परिणामस्वरूप उनके निवास की समस्या पैदा होती है। शहरों में हवा वे रोशनी वाले मकानों का अभाव होता है। मकान महँगे होने के कारण कई व्यक्ति मिलकर एक ही कमरे में रहने लगते हैं। औद्योगिक केन्द्रों में मकान, भीड़-भाड़युक्त, सीलन भरे एवं बीमारियों के घर होते हैं। औद्योगीकरण एवं नगरीकरण ने गन्दी बस्तियों की समस्या को प्रमुखत: जन्म दिया है।

2. प्रदूषित वातावरण – शहर में स्वच्छ वातावरण का अभाव होता है। मकानों में भीड़-भाड़, वायु प्रदूषण, मिल-फैक्ट्री का धुआँ, स्थान की कमी, बन्द मकान, रोशनी एवं स्वच्छ हवा का अभाव, गड़गड़ाहट एवं बहरा कर देने वाला शोरगुल, खटमल, मच्छर, आदि की अधिकता, छूत के रोग, बदबूदार एवं सीलन भरे कमरे, आदि सभी मिलकर स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं। शहरों में मृत्यु-दर गाँव की अपेक्षा अधिक होने का यही प्रमुख कारण है। स्वच्छ वातावरण प्रदान करने एवं मनोरंजन हेतु वहाँ पार्क, बगीचों एवं खेलकूद की सुविधाएँ जुटायी जाती हैं।

3. सांस्कृतिक पर्यावरण पर प्रभाव – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण ही यातायात एवं सन्देशवाहन के साधनों का विकास हुआ। नवीन साधनों ने विभिन्न संस्कृतियों के लोगों को एक-दूसरे के नजदीक ला दिया, उनमें पारस्परिक समझ बढ़ी, पारस्परिक आदान-प्रदान हुआ, एक-दूसरे की फैशन, वस्त्र प्रणाली, धर्म, रीति-रिवाज, जीवन विधि आदि को अपनाना सम्भव हुआ। यही कारण है कि शहरों में जो औद्योगिक केन्द्र हैं, उनमें हम विभिन्न संस्कृतियों को साथ-साथ फलते-फूलते देख सकते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
“औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप मजदूर समस्याओं एवं मजदूर संगठनों का जन्म होता है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण अनेक मजदूर समस्याओं ने जन्म लिया। मजदूरों के स्वास्थ्य, काम के घण्टे, भर्ती, शिक्षा, बीमा, चिकित्सा, मकान, बोनस आदि से सम्बन्धित अनेक समस्याओं का जन्म हुआ। इन्हें हल करने के लिए उन्होंने मजदूर संगठनों को निर्माण किया। इन समस्याओं के उचित तरीके से समाधान नहीं होने पर मजदूरों द्वारा काम रोक दिया जाता है और सम्पूर्ण आर्थिक जगत को इससे हानि होती है। हड़ताल, तालाबन्दी, तोड़फोड़, आगजनी, घेराव एवं हिंसात्मक उपद्रव होने लगे। कभी-कभी तो मजदूरों की समस्याओं को हल करने हेतु श्रम-कल्याण योजनाएँ बनायी गयीं। कुटीर व्यवसाय से सम्बन्धित कोई श्रम समस्याएँ नहीं थी, क्योंकि उनमें काम करने वाले एक ही परिवार व पड़ोस के व्यक्ति अथवा रिश्तेदार होते थे। उनमें परस्पर सहयोग और घनिष्ठ सम्बन्ध थे। अतः शोषण का प्रश्न ही नहीं था। सूर्योदय एवं सूर्यास्त होने के साथ-साथ काम के घण्टे तय होते थे, किन्तु औद्योगीकरण ने अनेक श्रम-समस्याओं को जन्म दिया है। इन समस्याओं के समाधान के लिए भारत सरकार ने 1948 ई० में कारखाना अधिनियम पारित किया।

प्रश्न 2
“औद्योगीकरण कुटीर उद्योगों का ह्रास करते हैं।” इस कथन की सत्यता बताइए।
उत्तर:
औद्योगीकरण से पूर्व उत्पादन कुटीर उद्योगों द्वारा होता था, किन्तु जब मशीनों की सहायता से उत्पादन होने लगा जो कि हाथ से बने माल की अपेक्षा सस्ता, साफ व टिकाऊ होता था, तो उसके सामने गृह-उद्योग द्वारा निर्मित माल टिक नहीं सका। धीरे-धीरे कुटीर व्यवसाय समाप्त होने लगे और उनमें काम करने वाले तथा उनके मालिक कारखानों में श्रमिकों के रूप में सम्मिलित हुए। कुटीर व्यवसायों में व्यक्ति को काम करने के बाद जो मानसिक आनन्द मिलता था, वह कारखानों में समाप्त हो गया, क्योंकि अब वह सम्पूर्ण उत्पादन की प्रक्रिया का एक छोटा-सा भाग ही पूर्ण करने में सहयोग देता है। इस प्रकार औद्योगीकरण से ग्रामीण कुटीर उद्योगों एवं गृह-कला का ह्रास हुआ।

प्रश्न 3
औद्योगीकरण व नगरीकरण में चार अन्तर बताइए।
उत्तर:
औद्योगीकरण व नगरीकरण में गहरा सम्बन्ध है, फिर भी इनमें अन्तर पाये जाते हैं। इनमें चार अन्तर निम्नलिखित हैं

1. औद्योगीकरण गाँव एवं नगर दोनों ही स्थानों पर हो सकता है। इसके लिए गाँव छोड़कर नगर जाने की आवश्यकता नहीं है। ग्रामों में भी यदि बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना कर दी जाए अथवा उत्पादन शक्ति-चालित मशीनों से होने लगे तो वहाँ भी औद्योगीकरण हो जाएगा, किन्तु नगरीकरण में ग्रामीण जनसंख्या को ग्राम छोड़कर नगरों में जाना होता है।

2. औद्योगीकरण में कृषि व्यवसाय को छोड़ना होता है और उसके स्थान पर अन्य व्यवसायों में लगना होता है, जब कि नगरीकरण का सम्बन्ध कृषि, उद्योग, व्यापार, नौकरी एवं छोटे-छोटे व्यवसायों
से भी है। इस प्रकार नगरीकरण में कृषि और गैर-कृषि दोनों ही प्रकार के व्यवसाय किये जाते हैं।

3. औद्योगीकरण का सम्बन्ध उत्पादन की प्रणाली से है, जिसमें उत्पादन का कार्य मशीनों की सहायता से किया जाता है। आर्थिक वृद्धि से इसका घनिष्ठ सम्बन्ध है। अतः मूलत: यह एक आर्थिक प्रक्रिया है, किन्तु नगरीकरण नगरीय बनने की एक प्रक्रिया है, जिसका सम्बन्ध एक विशेष प्रकार की जीवन-शैली, खान-पान, रहन-सहन, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक जीवन से है, जो नगर में निवास करने वाले लोगों में पाया जाता है।

4. सामान्यतः औद्योगीकरण नगरीकरण अथवा नगरों पर आधारित है; क्योंकि उद्योगों की स्थापना के लिए सुविधाओं; जैसे-बैंक मुद्रा, साख, श्रम, यातायात एवं संचार के साधन, पानी, बिजली, बाजार, कच्चा माल आदि की आवश्यकता होती है, वे सभी नगरों में उपलब्ध होती हैं। अतः कहा जाता है कि औद्योगिक समाज नगरीय समाज ही है, जब कि नगरीकरण औद्योगीकरण के बिना भी सम्भव है। प्राचीन समय में जब उत्पादन कार्य बिना मशीनों की सहायता से नहीं किया जाता था तब भी नगर मौजूद थे। उस समय नगर धार्मिक, राजनीतिक, शैक्षणिक एवं व्यापारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थल थे। तीर्थस्थान, राजधानियाँ, शिक्षा व संस्कृति के केन्द्र तथा व्यापारिक मण्डियाँ ही तब नगर कहलाते थे।

प्रश्न 4
नगरीकरण के समाज पर चार प्रभावों को समझाइए। [2007, 09]
उत्तर:
नगरीकरण के समाज पर चार प्रभाव निम्नलिखित हैं

1. सम्बन्धों में औपचारिकता – जीवन का क्षेत्र नगरीकरण के कारण विस्तृत होता है। नगरों की जनसंख्या अधिक होती है। अतः आमने-सामने के घनिष्ठ एवं औपचारिक सम्बन्ध, जो कि लघु समुदायों में सम्भव होते हैं, नगरों में सम्भव नहीं होते। सम्बन्धों में औपचारिकता बढ़ जाती है।

2. एकाकी परिवारों में वृद्धि – भारत में नगरों का विकास हो जाने से संयुक्त परिवारों का विघटन होता जा रहा है। नगरों में व्यावसायिक विजातीयता से एकाकी परिवारों को प्रोत्साहन मिलता है। अब एकाकी परिवारों में वृद्धि के कारण व्यक्तियों में सामाजिक सम्बन्धों की घनिष्ठ ता समाप्त हो चली है तथा साथ-ही पारिवारिकता की भावना का अन्त हो गया है।

3. फैशन का बोलबाला – नगरों में सामाजिक जीवन में बनावट आ गयी है। नगरों में चमके दमक, सजावट तथा आकर्षण का महत्त्व बढ़ गया है। चारों ओर फैशन का बोलबाला हो रहा है तथा सामाजिक रहन-सहन के स्तर में भारी अन्तर आ गया है। साथ ही जीवन के प्रति दृष्टिकोण में भी अन्तर आ गया हैं।

4. सामाजिक विजातीयता – नगरों में विभिन्न जातियों, पेशों तथा संस्कृति के लोग पाये जाते हैं। एक ही जाति एवं धर्म के लोगों के सामूहिक निवास का नगरों में अभाव होता है। अतः नगर के लोग स्थायी सम्बन्धों की स्थापना करने में असफल रहे हैं। नगर के लोगों में पीढ़ीदर-पीढ़ी चलने वाले सम्बन्धों का अभाव पाया जाता है; क्योंकि नगरों में विभिन्न प्रकार के व्यक्ति निवास करते हैं, जो उद्देश्यों तथा संस्कृति में समान नहीं होते हैं, इसलिए नगरीकरण के कारण सम्बन्धों में विजातीयता बढ़ गयी है।

प्रश्न 5
औद्योगीकरण एवं नगरीकरण ने भारत में संयुक्त परिवार को किस प्रकार प्रभावित किया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में हजारों वर्षों से चली आ रही संयुक्त परिवार-प्रणाली भी प्रभावित हुई है। संयुक्त परिवार पर इसके प्रमुख रूप से निम्नलिखित प्रभाव पड़े हैं

1. सीमित आकार – इन प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप परिवार के आकार में कमी हुई है। नगरों व औद्योगिक केन्द्रों में शिक्षा के प्रसार तथा परिवार नियोजन के कारण परिवार के सदस्यों की कमी हुई है और संयुक्त परिवार का आकार पहले की तुलना में सीमित हो गया है।

2. कार्यों में परिवर्तन – परम्परागत रूप से परिवार अपने सदस्यों के लिए शिक्षा, मनोरंजन, स्वास्थ्य बीमा तथा अन्य सभी प्रकार के कार्य करता था, परन्तु आज इसके सभी परम्परागत कार्य अन्य विशेषीकृत समितियों ने ले लिये हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षा का कार्य शिक्षा संस्थाओं तथा स्वास्थ्य सुरक्षा का कार्य अस्पतालों ने ले लिया है।

3. पारिवारिक नियन्त्रण में कमी – परिवार के परम्परागत कार्यों में कमी के साथ ही परिवार का व्यक्ति पर नियन्त्रण कम हुआ है। आज पढ़े-लिखे युवक-युवतियाँ परिवार के कठोर नियन्त्रण को पसन्द नहीं करते हैं। अतः सामाजिक नियन्त्रण में इनका महत्त्व कम हो गया है।

4. एकल परिवारों की संख्या में वृद्धि – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के परिणामस्वरूप संयुक्त परिवारों का विघटन हुआ है तथा एकल परिवारों की संख्या में वृद्धि हुई है। आज नगरीय तथा औद्योगिक क्षेत्रों में इसी कारण एकल परिवारों की संख्या संयुक्त परिवारों की संख्या से कहीं अधिक है।

5. संरचना में परिवर्तन – संयुक्त परिवार की परम्परागत संरचना में काफी परिवर्तन हुआ है। कर्ता की स्थिति, स्त्रियों की स्थिति तथा विधवाओं की स्थिति में परिवर्तन हुआ है।

6. सम्बन्धों में परिवर्तन – औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण व्यक्तिवादिता में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप परिवार के सदस्यों के सम्बन्धों में औपचारिकता आती जा रही है। स्त्रियों के बाहर काम करने से भी सम्बन्ध प्रभावित हुए हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
औद्योगीकरण क्या है?
उत्तर:
‘औद्योगीकरण’ शब्द एक प्रकार से यन्त्रीकरण का पर्यायवाची है। जब मशीनों का अधिकाधिक प्रयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन बढ़ाने का प्रयास किया जाता है तो उसे औद्योगीकरण की प्रक्रिया कहते हैं। इस प्रकार ‘औद्योगीकरण’ उस प्रक्रिया को कहा जा सकता है, जिसके अन्तर्गत उत्पादन की आधुनिक व्यवस्था एवं सम्बन्धित संस्थाओं का विकास एवं प्रसार होता है। समाजशास्त्र में इसका अर्थ उद्योगों के विकास एवं उत्पादन की आधुनिक व्यवस्था के परिणामस्वरूप समाज के विभिन्न पक्षों में होने वाले परिवर्तनों के लिए किया जाता है।

प्रश्न 2
औद्योगीकरण का अर्थ बताते हुए उसकी चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
औद्योगीकरण का अर्थ-औद्योगीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा आधुनिक उद्योगों एवं सम्बन्धित संस्थाओं का विकास व प्रसार होता है। इसमें आर्थिक उत्पादन हेतु अमानवीय शक्ति (मशीनों आदि) का अधिकाधिक प्रयोग होता है। औद्योगीकरण की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. यह मानवीय शक्ति की अपेक्षा मशीनी शक्ति पर बल देता है।
  2.  इसकी प्रमुख विशेषता श्रम-विभाजन और विशिष्टीकरण है।
  3.  इसके कारण प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।
  4. यह प्राकृतिक संसाधनों के अधिकतम तथा योजनाबद्ध दोहन पर बल देता है।

प्रश्न 3
औद्योगीकरण के चार उद्देश्य लिखिए। [2008, 10, 13, 15]
उत्तर:
औद्योगीकरण के चार उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. नवीन उद्योगों की स्थापना करना,
  2.  हाथ की अपेक्षा मशीनों द्वारा उत्पादन करना,
  3. मानव-शक्ति व पशु-शक्ति के स्थान पर जड़ शक्ति; जैसे – कोयला, डीजल आदि का प्रयोग करना तथा ।
  4.  उत्पादन को तीव्र गति से विशाल पैमाने पर करना।

प्रश्न 4
भारत में औद्योगीकरण के कोई दो आर्थिक प्रभाव बताइए। [2009]
उत्तर:
1. आर्थिक आधार पर स्तरीकरण-भारत में औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप उत्पादन कार्य बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा बड़े-बड़े कारखानों व मिलों में किया जाने लगा है। इससे समाज दो भागों में वर्गीकृत हो गया है-पूँजीपति और श्रमिक।
2. कुटीर व लघु उद्योगों पर प्रभाव-भारत में औद्योगीकरण का प्रत्यक्ष प्रभाव कुटीर एवं लघु उद्योगों पर पड़ा है। वे लगभग नष्ट हो गये हैं तथा उनसे सम्बन्धित व्यक्ति बेकार हो गये हैं।

प्रश्न 5
भारत में औद्योगीकरण के चार सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में औद्योगीकरण के चार सामाजिक प्रभाव निम्नलिखित हैं

  1.  नगरीकरण एवं गन्दी बस्तियों की स्थापना,
  2.  जनसंख्या का स्थानान्तरण,
  3.  कुटीर उद्योगों का पतन तथा ।
  4.  श्रम-विभाजन एवं विशेषीकरण।

प्रश्न 6
नगरीकरण की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
नगरीकरण की चार विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. नगरीकरण ग्रामों के नगरों में बदलने की प्रक्रिया का नाम है।
  2. नगरीकरण में लोग कृषि व्यवसाय को छोड़कर अन्य व्यवसाय करने लगते हैं।
  3. नगरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें लोग गाँव छोड़कर शहरों में निवास करने लगते हैं जिससे शहरों का विकास, प्रसार एवं वृद्धि होती है।
  4. नगरीकरण जीवन जीने की एक विधि है, जिसका प्रसार शहरों से गाँवों की ओर होता है। नगरीय जीवन जीने की विधि को नगरीयता या नगरवाद कहते हैं। नगरवाद केवल नगरों तक ही सीमित नहीं होता वरन् गाँव में रहकर भी लोग नगरीय जीवन विधि को अपना सकते हैं।

प्रश्न 7
पश्चिमीकरण से आप क्या समझते हैं? [2012, 15]
उत्तर:
विश्व को संस्कृति के आधार पर दो भागों में विभाजित किया गया है। एक भाग पूर्वी विश्व और दूसरा भाग पश्चिमी विश्व के नाम से पुकारा जाता है। पूर्व में अध्यात्मवादी संस्कृति का बोलबाला है और पश्चिमी विश्व में भौतिकवादी संस्कृति का महत्त्व है। जब पूर्व के देशों में पश्चिम की भौतिकवादी संस्कृति का प्रभाव बढ़ने लगा है और इसके परिणामस्वरूप गैर पश्चिमी देशों में परिवर्तन होने लगते हैं, तो हम उसको पश्चिमीकरण के नाम से पुकारते हैं। एम० एन० श्रीनिवास के अनुसार, “150 वर्षों के अंग्रेजी राज्य के फलस्वरूप भारतीय समाज में संस्कृति में होने वाले परिवर्तनों को पश्चिमीकरण से सम्बोधित किया जा सकता है। यह शब्द प्रौद्योगिकी, संस्थाएँ, विचारधारा और मूल्य आदि विभिन्न स्तरों पर आधारित होने वाले परिवर्तनों को आत्मसात् करता है।

प्रश्न 8
औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के परिणाम के रूप में सामाजिक विघटन तथा अपराधों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण समाज-विरोधी कार्यों एवं अपराधों में वृद्धि हुई। नगरों में नियन्त्रण के अभाव में सामाजिक नियमों की अवहेलना की जाती है, जिससे समाज में विघटनकारी प्रवृत्तियाँ प्रबल होती हैं। औद्योगिक केन्द्रों एवं बड़े नगरों में वेश्यावृत्ति, शराबखेरी, जुआ, बाल-अपराध, हत्याएँ, आत्महत्याएँ, चोरी, डकैती, गबन एवं अन्य अपराधी व्यवहारों की बहुलता पायी जाती है। इन्हें हम अपराध के केन्द्र कह सकते हैं।

प्रश्न 9
ब्रीज के अनुसार नगरीकरण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
ब्रीज के अनुसार, “नगरीकरण एक प्रक्रिया है जिसके कारण लोग नगरीय कहलाने लगते हैं, कृषि के स्थान पर अन्य व्यवसायों को अपनाते हैं, जो नगर में उपलब्ध हैं और अपने व्यवहार प्रतिमान में अपेक्षाकृत परिवर्तन का समावेश करते हैं।”

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
नगरीकरण क्या है ? [2013]
उत्तर:
नगरीकरण का अर्थ है-नगरों का उद्भव, विकास, प्रसार एवं पुनर्गठन। नगरीकरण में लोग आसपास के स्थानों से आकर नगरों में बस जाते हैं।

प्रश्न 2
भारत के तीन बड़े उद्योगों के नाम बताइए।
उत्तर:
भारत के तीन बड़े उद्योगों के नाम हैं – सूती वस्त्र, लौह-इस्पात एवं चीनी उद्योग।

प्रश्न 3
नगरीय जनसंख्या में वृद्धि की प्रक्रिया को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
नगरीय जनसंख्या में वृद्धि की प्रक्रिया को नगरीकरण कहते हैं।

प्रश्न 4
भारत नगर-प्रधान देश है। उत्तर हाँ अथवा नहीं में दीजिए।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 5
“ग्रामीण क्षेत्रों को नगरीय क्षेत्रों में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को ही हमें नगरीकरण कहना चाहिए।” यह कथन किसने दिया? [2012]
उत्तर:
बगैल ने।

प्रश्न 6
प्राथमिक उद्योगों में कार्यरत जनसंख्या में आनुपातिक वृद्धि औद्योगीकरण को परिचायक है। सत्य/असत्य।। [2011]
उत्तर:
असत्य।

प्रश्न 7
नगरीकरण और औद्योगीकरण एक-दूसरे के पर्याय हैं। सत्य/असत्य। [2011]
उत्तर:
सत्य।

प्रश्न 8
श्रम कल्याण का अर्थ स्पष्ट कीजिए। [2015]
उत्तर:
श्रम कल्याण का अर्थ श्रमिकों के सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए उपलब्ध की जाने वाली दशाओं से है।

प्रश्न 9
‘मृत्यु-दर’ से आप क्या समझते हैं? [2015]
उत्तर:
किसी एक वर्ष में प्रति 1,000 जनसंख्या पर मृतकों की संख्या को मृत्यु-दर कहा जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
निम्नलिखित में कौन-सा औद्योगीकरण का परिणाम है ?
(क) स्त्रियों को मतदान का अधिकार मिलना
(ख) विशेष विवादों को प्रोत्साहन मिलना
(ग) संयुक्त परिवार का विघटन होना ।
(घ) जोत की अधिकतम सीमा तय होना

प्रश्न 2
कारखाना अधिनियम भारत में किस वर्ष पास हुआ था ?
(क) 1947 ई० में
(ख) 1948 ई० में
(ग) 1950 ई० में
(घ) 1976 ई० में

प्रश्न 3
‘दि डिवीजन ऑफ लेबर’ नामक पुस्तक के लेखक कौन है ? [2009]
(क) कार्ल मार्क्स
(ख) इमाइल दुर्चीम
(ग) मैक्स वेबर
(घ) एच० एम० जॉनसन

प्रश्न 4
निम्नलिखित में से कौन-सा विराट नगर नहीं है ?
(क) मुम्बई
(ख) कोलकाता
(ग) चेन्नई
(घ) अहमदाबाद

प्रश्न 5
औद्योगिक क्रान्ति सर्वप्रथम कहाँ हुई ? [2011]
(क) अमेरिका में
(ख) फ्रांस में
(ग) इटली में
(घ) इंग्लैण्ड में

प्रश्न 6
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम किस वर्ष लागू किया गया ? [2011]
(क) 1950 ई० में
(ख) 1956 ई० में
(ग) 1976 ई० में
(घ) 1986 ई० में

प्रश्न 7
निम्नलिखित में से कौन एक शहर की विशेषता है? [2015]
(क) बड़ा आकार
(ख) जनसंख्या का उच्च घनत्व
(ग) गैर-कृषि व्यवसाय
(घ) ये सभी

उत्तर:
1. (ग) संयुक्त परिवार का विघटन होना,
2. (ख) 1948 ई० में,
3. (क) कार्ल मार्क्स,
4. (घ) अहमदाबाद,
5. (घ) इंग्लैण्ड में,
6. (घ) 1986 ई० में,
7. (घ) ये सभी।

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