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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 4

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 4 अर्थव्यवस्था : परिवार की मूलभूत आवश्यकताएँ

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 4 अर्थव्यवस्था : परिवार की मूलभूत आवश्यकताएँ.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
गृह-अर्थव्यवस्था का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले मुख्य कारकों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गृह विज्ञान’ घर तथा परिवार सम्बन्धी व्यवस्था का अध्ययन है। घर तथा परिवार की व्यवस्था के अनेक पक्ष हैं। इन पक्षों में ‘अर्थव्यवस्था एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। अन्य समस्त पक्षों में गृहिणी एवं परिजनों के दक्ष होते हुए भी, यदि घर की अर्थव्यवस्था सुचारु न हो, तो परिवार की सुख-शान्ति एवं  समृद्धि संदिग्ध हो जाती है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए गृह विज्ञान में अर्थव्यवस्था का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है तथा प्रत्येक सुगृहिणी से आशा की जाती है कि वह गृह-अर्थव्यवस्था को उत्तम बनाए रखने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करेगी। गृह-अर्थव्यवस्था के अर्थ, परिभाषा तथा उसे प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण निम्नवर्णित है

गृह-अर्थव्यवस्था का अर्थ एवं परिभाषा

सार्वजनिक जीवन में अर्थव्यवस्था’ एक विशिष्ट प्रकार की व्यवस्था है जिसका सम्बन्ध मुख्य रूप से धन-सम्पत्ति से होता है। रुपए-पैसे की योजनाबद्ध व्यवस्था ही अर्थव्यवस्था है। प्रत्येक संस्था एवं संगठन के सुचारू संचालन के लिए स्पष्ट एवं सुदृढ़ अर्थव्यवस्था आवश्यक होती है। जब अर्थव्यवस्था को अध्ययन घर-परिवार के सन्दर्भ में किया जाता है, तब इसे गृह-अर्थव्यवस्था कहा जाता है। अर्थव्यवस्था के अर्थ को जान लेने के उपरान्त गृह-अर्थव्यवस्था का वैज्ञानिक अर्थ भी स्पष्ट किया जा सकता है। घर-परिवार के आय-व्यय को अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों के आधार पर नियोजित करना तथा इस नियोजन के माध्यम से परिवार को अधिक-से-अधिक आर्थिक सन्तोष प्रदान करना ही गृह-अर्थव्यवस्था है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए निकिल तथा डारसी ने गृह-अर्थव्यवस्था को इन शब्दों में परिभाषित किया है, “परिवार की आय तथा व्यय पर नियन्त्रण होना तथा आय को गृह के सृजनात्मक कार्यों में व्यय करना गृह-अर्थव्यवस्था कहलाता है।” इस प्रकार स्पष्ट है कि गृह-अर्थव्यवस्था का सम्बन्ध, परिवार की आर्थिक क्रियाओं से होता है। इस स्थिति में यह भी जानना आवश्यक है कि आर्थिक क्रियाओं से क्या आशय है? आर्थिक क्रियाएँ व्यक्ति या परिवार की उन क्रियाओं को कहा जाता है, जिनका धन के उपभोग, उत्पादन, विनिमय अथवा वितरण से होता है। परिवार की विभिन्न आर्थिक गतिविधियाँ ही परिवार की आर्थिक पूर्ति में सहायक होती हैं। इस दृष्टिकोण से परिवार की आर्थिक गतिविधियों का विशेष महत्त्व होता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि प्रत्येकै परिवार निरन्तर रूप से असंख्य आवश्यकताओं को महसूस करता है तथा चाहता है कि उसकी समस्त आवश्यकताएँ पूरी होती रहें। परन्तु समस्त आवश्यकताओं को पूरा कर पाना प्रायः सम्भव नहीं होता। इस स्थिति में व्यक्ति अथवा परिवार की आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित किया जाता है। यह कार्य भी  गृह-अर्थव्यवस्था के ही अन्तर्गत किया जाता है। परिवार का अर्थ-व्यवस्थापक परिवार की आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित करता है तथा प्राथमिकता के आधार पर विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समुचित प्रयास किए जाते हैं। इस प्रकार की दृष्टिकोण अपना लेने से गृह-अर्थव्यवस्था उत्तम बनी रहती है। सफल गृह-अर्थव्यवस्था के लिए परिवार की आर्थिक गतिविधियों को सुनियोजित बनाना नितान्त आवश्यक है। किसी भी स्थिति में पारिवारिक व्यय को पारिवारिक आय से अधिक नहीं होना चाहिए। आय की तुलना में व्यय के अधिक हो जाने की स्थिति में पारिवारिक अर्थव्यवस्था डगमगा जाती है तथा परिवार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ जाता है।

गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक

घर-परिवार की सुख-शान्ति तथा समृद्धि के लिए गृह-अर्थव्यवस्था का उत्तम होना नितान्त आवश्यक है। गृह-अर्थव्यवस्था को विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं। गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले मुख्य कारकों को संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

(1) गृह-अर्थव्यवस्था की सुचारू प्रक्रिया:
परिवार की सम्पूर्ण आय को ध्यान में रखते हुए पारिवारिक व्यय की व्यवस्थित योजना तैयार करना ही, गृह-अर्थव्यवस्था की प्रक्रिया कहलाती है। इस योजना के अन्तर्गत आय तथा व्यय में सन्तुलन बनाए रखना आवश्यक होता है। इसके लिए पारिवारिक-बजट का निर्धारण तथा उसका पालन करना सहायक सिद्ध होता है। आय एवं व्यय में परस्पर सन्तुलन रखने की यह योजना गृह-अर्थव्यवस्था को गम्भीर रूप से प्रभावित करती है।

(2) पारिवारिक आय:
गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारकों में पारिवारिक आय एक अति महत्त्वपूर्ण कारक है। पारिवारिक आय के अर्जन में प्रमुख योगदान परिवार के मुखिया का होता है। वास्तव में धनोपार्जन का दायित्व मुख्य रूप से परिवार के मुखिया का ही माना जाता है। मुखिया की आय परिवार की अर्थव्यवस्था को विशेष रूप से प्रभावित करती है। यदि मुखिया के अतिरिक्त परिवार का कोई अन्य सदस्य भी धनोपार्जन करता हो, तो उसकी आय को भी गृह-अर्थव्यवस्था के लिए प्रभावकारी कारक माना जाता है।

(3) गृहिणी की कुशलता:
निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि गृहिणी की कुशलता भी गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है। कुशल गृहिणी परिवार की आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित करके आय के अनुसार व्यय करती है। मितव्ययिता ही अच्छी गृहिणी का आवश्यक गुण है। कुशल गृहिणी गृह-अर्थव्यवस्था के लिए जहाँ एक ओर बचत का बजट निर्धारित करती है, वहीं दूसरी
ओर परिवार की आय में यथासम्भव वृद्धि के उपाय भी करती है।

(4) पारिवारिक व्यय का नियोजन:
यह सत्य है कि गृह-अर्थव्यवस्था को परिवार की आय मुख्य रूप से प्रभावित करती है, परन्तु आय के साथ-साथ व्यय का नियोजन भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। भले ही परिवार की आय कितनी भी अधिक क्यों न हो, यदि आय से व्यय अधिक हो जाए तो समस्त प्रयास करने के उपरान्त भी  परिवार की अर्थव्यवस्था सन्तुलित नहीं रह पाती। इस प्रकार कहा जा सकता है कि उत्तम गृह-अर्थव्यवस्था के लिए पारिवारिक व्यय का नियोजन भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। यदि नियोजित ढंग से व्यय नहीं किया जाता, तो परिवार की अर्थव्यवस्था के बिगड़ जाने की आशंका रहती है।

(5) परिवार के रहन-सहन का स्तर:
गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला एक अन्य कारक है-परिवार के रहन-सहन का स्तर। प्रत्येक परिवार चाहती है कि उसका रहन-सहन का स्तर उन्नत हो। रहन-सहन के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए पर्याप्त धन व्यय करना पड़ता है। इस स्थिति में यदि इस प्रकार से किया जाने वाला  व्यय पारिवारिक आय के अनुरूप नहीं होता, तो निश्चित रूप से गृह-अर्थव्यवस्था बिगड़ जाती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि रहन-सहन के स्तर को पारिवारिक आय को ध्यान में रखकर ही निर्धारित किया जाना चाहिए।

(6) निरन्तर होने वाले सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन:
समाज में निरन्तर रूप से होने वाले सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन भी परिवार की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं। फैशन, नवीन प्रचलन, मनोरंजन के नए-नए साधन आदि कारक परिवार के व्यय को बढ़ाते हैं। इस प्रकार यदि आय में वृद्धि नहीं होती तो परिवार का व्यय बढ़ जाने पर परिवार की अर्थव्यवस्था क्रमशः बिगड़ने लगती है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सुझाव दिया जाता है कि अपनी आय को ध्यान में रखते हुए ही फैशन, मनोरंजन एवं सामाजिक उत्सवों आदि पर व्यय करना चाहिए।

(7) परिवार का आकार:
परिवार के आकार से आशय है-परिवार के सदस्यों की संख्या। परिवार के सदस्यों की संख्या भी परिवार की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला एक उल्लेखनीय कारक है। यदि परिवार की आय सीमित हो तथा उस आय पर ही निर्भर रहने वाले परिवार के सदस्यों की संख्या अधिक हो, तो निश्चित रूप से परिवार के रहन-सहन का स्तर निम्न होगी तथा गृह-अर्थव्यवस्था भी संकट में रहेगी। इससे भिन्न यदि  किसी परिवार में धनोपार्जन करने वाले सदस्यों की संख्या अधिक हो तथा उन पर निर्भर रहने वाले सदस्यों की संख्या कम हो तो निश्चित रूप से परिवार की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ बनी रहती है तथा रहन-सहन का स्तर भी उन्नत बन सकता है। आधुनिक दृष्टिकोण से ‘छोटा-परिवार, सुखी-परिवार’ की धारणा को ही उत्तम माना जाता है।

 

प्रश्न 2:
‘आवश्यकता’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए। परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं को संक्षेप में वर्णन कीजिए।
या
परिवार की मूल आवश्यकताएँ कौन-सी हैं? उनकी पूर्ति क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
आवश्यकता का अर्थ

परिवार एक ऐसी सामाजिक संस्था है, जो अपने सदस्यों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यापक प्रयास करती है। आवश्यकताओं को अनुभव करना तथा उनकी पूर्ति करना ही जीवन है। अब प्रश्न उठता है कि आवश्यकता से क्या आशय है? व्यक्ति की आवश्यकताएँ मूल रूप से व्यक्ति की कुछ विशिष्ट इच्छाएँ ही होती हैं, परन्तु व्यक्ति की समस्त इच्छाओं को उसकी आवश्यकताएँ नहीं मान जा सकता। इच्छाएँ हमारी भावनाओं से पोषित होती हैं। वे भौतिक जगत् की यथार्थताओं से दूर होती हैं, परन्तु आवश्यकताओं का सीधा सम्बन्ध भौतिक यथार्थताओं से होता है। आवश्यकताएँ हमारे भौतिक साधनों के अनुरूप होती हैं। इस प्रकार हमारी प्रबल इच्छाएँ तथा साधनानुकूल इच्छाएँ ही हमारी आवश्यकताएँ बन जाती हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि हम उस इच्छा को आवश्यकता कह सकते हैं जिसमें कल्पना के अतिरिक्त अन्य तीन तत्त्व भी विद्यमान हैं। ये तत्त्व हैं क्रमशः इच्छा की प्रबलता, इच्छा को पूर्ण करने के लिए समुचित प्रयास तथा इच्छापूर्ति के लिए सम्बन्धित त्याग के लिए तत्परता। इस प्रकार से हम व्यक्ति की उस इच्छा को आवश्यकता कह सकते हैं जिस इच्छा को पूरा करने के लिए उस व्यक्ति के पास समुचित साधन हैं तथा साथ-ही-साथ वह व्यक्ति उस इच्छा को पूरा करने के लिए सम्बन्धित साधन को इस्तेमाल करने के लिए तत्पर भी हो। आवश्यकता के अर्थ को पेन्शन ने इन शब्दों में स्पष्ट  किया है, “आवश्यकता विशेष वस्तुओं की पूर्ति हेतु एक प्रभावपूर्ण इच्छा है जो उन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक प्रयत्न अथवा त्याग के रूप में प्रकट होती है।” आवश्यकता के अर्थ एवं प्रकृति को ध्यान में रखते हुए स्मिथ तथा पैटर्सन ने स्पष्ट किया है, ”आवश्यकता किसी वस्तु को प्राप्त करने की वह इच्छा है जिसे पूरा करने के लिए मनुष्य में योग्यता है और वह उसके लिए व्यय करने के लिए तैयार हो।”

परिवार की मूल आवश्यकताएँ

मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताएँ होती हैं। आज के वैज्ञानिक युग में निरन्तर बढ़ती हुई आवश्यकताओं ने मानव-जीवन को बड़ा जटिल बना दिया है। आज किसी के पास कितना ही धन हो, वह उसकी आवश्यकता के अनुपात में कम ही प्रतीत होता है। अतः कुशल संचालन के लिए आवश्यक है कि गृहिणी को आवश्यकताओं की जानकारी हो, जिससे वह कुशलतापूर्वक उनकी पूर्ति कर सके।
अनिवार्य आवश्यकताएँ ही मूल आवश्यकताएँ कहलाती हैं, जो प्रत्येक परिवार में प्राय: निम्नलिखित होती हैं

(1) भोजन:
पोषक तत्वों से युक्त सन्तुलित भोजन परिवार की प्रथम मूल आवश्यकता है। परिवार के सभी सदस्यों (बच्चे, स्त्री व पुरुष) को पोषणयुक्त भोजन पर्याप्त मात्रा में मिलना चाहिए।

(2) वस्त्र:
परिवार के सभी सदस्यों को पर्याप्त एवं उपयुक्त वस्त्र उपलब्ध होने चाहिए। उपयुक्त वस्त्रों से हमारा तात्पर्य है कि ये मौसम, व्यक्तिगत रुचि, सामाजिक स्थिति, रीति-रिवाजों आदि के अनुरूप होने चाहिए।

(3) आवासीय व्यवस्था:
परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं के अनुसार उचित आवास का होना एक अनिवार्य आवश्यकता है। पर्याप्त एवं शुद्ध जल, वायु, सूर्य का प्रकाश इत्यादि का उपलब्ध होना उचित आवास की आवश्यक विशेषताएँ हैं।

(4) शिक्षा:
बच्चों की अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करना परिवार की मूल एवं अनिवार्य आवश्यकता है। उपयुक्त शिक्षा से व्यक्तित्व का विकास होता है। अतः बालक-बालिकाओं की शिक्षा का प्रबन्ध करना अति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त उपयोगी सूचना देने वाली पत्र-पत्रिकाओं का भी प्रत्येक परिवार के लिए अलग महत्त्व है, क्योंकि ये सदस्यों के स्वास्थ्य, मनोरंजन, राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक ज्ञान में वृद्धि करती हैं।

(5) चिकित्सा एवं स्वास्थ्य रक्षा:
पोषणयुक्त भोजन, आवश्यक व्यायाम, मौसम के अनुरूप वस्त्र एवं घर व आस-पास की स्वच्छता आदि परिवार के सदस्यों को स्वस्थ रखने के लिए अति आवश्यक हैं। इनका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। किसी भी सदस्य के बीमार पड़ने पर उसे उपयुक्त चिकित्सा उपलब्ध होनी चाहिए।

(6) बच्चों की देखभाल:
बच्चे परिवार एवं देश का भविष्य होते हैं। अतः स्वास्थ्य, विकास, शिक्षा व आचार-व्यवहार के दृष्टिकोण से उनकी देखभाल अति आवश्यक है। बच्चों की उचित देखभाल को परिवार की मूल आवश्यकताओं में सम्मिलित किया जाता है।

(7) मनोरंजन:
मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्वस्थ मनोरंजन अति आवश्यक है। अतः परिवार में मनोरंजन के यथा योग्य साधन अवश्य उपलब्ध होने चाहिए।

(8) प्रेम, स्नेह एवं सहयोग:
एकाकी परिवार में प्राय: पति-पत्नी एवं उनके अविवाहित बच्चे होते हैं। संयुक्त परिवार पति-पत्नी, उनके माता-पिता व भाई-बहनों के संयुक्त रूप से रहने के कार अधिक बड़ा हो जाता है। परिवार छोटा हो या फिर बड़ा, दोनों ही में सदस्यों के स्नेह व परस्पर सह की भावना का होना  आवश्यक है। परिवाररूपी सामाजिक संस्था का कुशल संचालन प्रेम, स्नेह एवं सहयोग पर ही निर्भर करता है। यह प्रवृत्ति भी परिवार की मूल आवश्यकता है।

(9) आय:
यह परिवार की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। धन से प्रायः सभी भौतिक आवश्यकताएँ क्रय की जा सकती हैं। परिवार में धन का प्रमुख स्रोत पारिवारिक आय होती है। प्रत्येक परिवार की आय प्राय: सभी सदस्यों की मूल आवश्यकताओं को पूर्ण करने के योग्य होनी चाहिए।

(10) बचते:
आकस्मिक संकटों (बीमारी आदि) का सामना करने के लिए अतिरिक्त धन की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त लड़के-लड़कियों के विवाह, लड़कों के व्यवसाय एवं धार्मिक कार्यों आदि में भी अकस्मात् ही धन की आवश्यकता पड़ती है। धन की इस आकस्मिक आवश्यकता की पूर्ति एक बुद्धिमान् गृहिणी नियमित बचत द्वारा करती है। अतः प्रत्येक गृहिणी का कर्तव्य है कि वह आय-व्यय में सन्तुलन रखकर परिवार के भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उचित एवं अधिक-से-अधिक बचत करे। प्राथमिक एवं गौण आवश्यकताओं में भिन्नता लाना इतना सरल नहीं है जितना हम समझते हैं। वास्तव में जो वस्तु एक परिवार के लिए विलासिता की श्रेणी में है, वह वस्तु किसी अन्य परिवार के लिए अनिवार्य आवश्यकता की श्रेणी में मानी जा सकती है। अतः विभिन्न आवश्यकताएँ परिवार की आर्थिक दशा, रहन-सहन एवं समाज में स्तर तथा प्रतिष्ठा के अनुसार प्राथमिक अथवा गौण हो सकती हैं। परिवार के मुखिया तथा अन्य सदस्यों का दायित्व है कि वे पारिवारिक परिस्थितियों एवं उपलब्ध साधनों को ध्यान में रखते हुए पारिवारिक आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित कर लें तथा उनकी क्रमिक पूर्ति के लिए प्रयास करें।

प्रश्न 3:
परिवार की मूल आवश्यकताओं पर प्रभाव डालने वाले कारक कौन-कौन से हैं? विस्तारपूर्वक समझाइए।
या
आवश्यकताओं की वृद्धि एवं तीव्रता को प्रभावित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
किसी भी परिवार के सफल संचालन के लिए उसकी मूल आवश्यकताओं की पूर्ति अति आवश्यक है। परन्तु बढ़ती हुई महँगाई एवं वैज्ञानिक आविष्कारों के आज के युग में यह कोई सरल कार्य नहीं है। इसके लिए यह जानना आवश्यक है कि मूल आवश्यकताएँ किन-किन कारकों से प्रभावित होती हैं। परिवार की मूल आवश्यकताओं को प्रायः निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं
(क) व्यक्तिगत कारक,
(ख) वस्तुगत कारक,
(ग) पारिस्थितिक कारक।

(क) व्यक्तिगत कारक:
ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

(1) आर्थिक स्थिति:
एक व्यक्ति अथवा परिवार की आय के अनुसार ही उसकी आवश्यकताएँ होती हैं। आय में वृद्धि के साथ-साथ आवश्यकताओं में भी वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए-एक
पवर्गीय परिवार की आवश्यकताएँ कम होती हैं, जबकि एक धनी परिवार की आवश्यकताएँ विलासिताओं की सीमा तक बढ़ जाती हैं।

(2) रहन-सहन का स्तर:
रहन-सहन का स्तर आवश्यकताओं के वर्गीकरण को बदल देता है। उदाहरण के लिए एक मध्यमवर्गीय परिवार की आवश्यकता बिजली के पंखे से भी पूर्ण हो जाती है,
जबकि एक धनी परिवार वातानुकूलन को आवश्यक समझता है।

(3) रुचि एवं आदत:
रुचि के अनुसार वस्तुओं को रखना आवश्यकता है; जैसे कि संगीत में रुचि रखने वाली गृहिणी के लिए वाद्य यन्त्र आवश्यक है, जबकि किसी अन्य रुचि वाली महिला के लिए यह अनुपयोगी है। इसी प्रकार पान, चाय, कॉफी इत्यादि की जिन्हें आदत है उनके लिए ये आवश्यकताएँ हैं, जबकि अन्य के लिए ये धन के अपव्यय की वस्तुएँ हैं।

(4) सामाजिक स्तर:
यह भी आवश्यकताओं का अर्थ बदल देता है। एक उच्चवर्गीय परिवार के लिए वैभवशाली आवासीय व्यवस्था व मोटरकार इत्यादि यदि एक ओर आवश्यकताएँ हैं, तो दूसरी ओर साधारण मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए विलासिता की वस्तुएँ हैं। इसी प्रकार निम्नवर्गीय परिवारों के लिए कच्चे मकान व झोपड़े आदि आवश्यकताओं की श्रेणी में आते हैं।

(5) शरीर-रचना एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी कारक:
मानवीय आवश्यकताओं को व्यक्ति की अपनी शरीर-रचना तथा स्वास्थ्य भी प्रभावित करते हैं; उदाहरण के लिए—यदि किसी व्यक्ति की टाँग में कोई विकृति या दोष हो, तो उनके लिए छड़ी या बैसाखी एक प्रबलतम आवश्यकता होती है। इसी प्रकार जिसकी नजर या दृश्य-क्षमता कमजोर हो, उसके लिए चश्मा अति आवश्यक या अनिवार्य आवश्यकता माना जाता है।

(6) व्यक्ति का जीवन के प्रति दृष्टिकोण:
प्रत्येक व्यक्ति का जीवन के प्रति दृष्टिकोण भिन्न-भिन्न होता है। कुछ व्यक्ति भौतिकवादी होते हैं। ऐसे व्यक्ति के लिए भौतिक सुख-सुविधा सम्बन्धी आवश्यकताएँ अधिक महत्त्वपूर्ण होती हैं। ऐसा व्यक्ति घर में सुन्दर सोफा, कलर टी० वी०, डायनिंग टेबल आदि अनिवार्य समझता है। इससे भिन्न  एक धार्मिक दृष्टिकोण वाले व्यक्ति के लिए सोफा खरीदने की तुलना में तीर्थ-यात्रा का महत्त्व अधिक हो सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि जीवन के प्रति दृष्टिकोण भी एक ऐसा कारक है जो मानवीय आवश्यकताओं को गम्भीरता से प्रभावित करता है।

(ख) वस्तुगत कारक
आवश्यकताओं को सीधे ही प्रभावित करती हैं; जैसे कि

(1) वस्तुओं का मूल्य:
साधारण मूल्यों वाली वस्तुओं को प्रायः आवश्यकताओं के वर्ग में तथा अत्यधिक मूल्य वाली वस्तुओं को विलासिता की श्रेणी में रखा जाता है। इस प्रकार वस्तुओं का मूल्य आवश्यकताओं से सीधा सम्बन्ध रखता है।

(2) वस्तुओं की संख्या:

उपभोग की प्रेरक वस्तुओं के सन्दर्भ में उनकी प्रति व्यक्ति अथवा : परिवार के अनुसार संख्या सदैव महत्त्वपूर्ण होती है। उदाहरण के लिए–एक परिवार में एक कार आवश्यकता हो सकती है, जबकि एक से अधिक कारें होना विलासिता कहलाएँगी। इसी प्रकार एक व्यक्ति के पास दो या चार जोड़ी अच्छे वस्त्र होना आवश्यकता है, जबकि अत्यधिक संख्या में वस्त्रों को होना विलासिता माना जाएगा।

(ग) पारिस्थितिक कारक:
मैं परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं; जैसे कि

(1) देश एवं काल:
प्रत्येक देश की भौगोलिक परिस्थितियों पर उसकी आवश्यकताएँ निर्भर करती हैं। उदाहरण के लिए-उष्ण देशों में आवास, वस्त्र एवं भोजन आदि की आवश्यकताएँ ठण्डे देशों से भिन्न होती हैं। इसी प्रकार किसी भी देश में ग्रीष्म ऋतु की आवश्यकताएँ शीत ऋतु से सदैव भिन्न होती हैं।

(2) फैशन एवं रीति-रिवाज:

प्रत्येक देश एवं प्रदेश में रीति-रिवाज प्रायः भिन्न होते हैं। इसके अनुसार ही भोजन, वस्त्र एवं आवास जैसी मूल आवश्यकताएँ भी प्रायः बदल जाया करती हैं।

 

प्रश्न 4:
परिवार की आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में गृहिणी का क्या योगदान है? विस्तारपूर्वक लिखिए।
या
एक कुशल गृहिणी अर्थव्यवस्था को किस प्रकार व्यवस्थित कर सकती है? समझाइए।
उत्तर:
गृहिणी गृह-संचालिका होती है। उसकी बुद्धिमत्ता, व्यवहार-कुशलता एवं सूझ-बूझ पर ही उत्तम पारिवारिक व्यवस्था एवं सुदृढ़ अर्थव्यवस्था निर्भर करती है। वह पारिवारिक आय के अनुसार ही व्यय करती है। पारिवारिक आय से हमारा अभिप्राय निम्नलिखित है

(1) प्रत्यक्ष आय:
सदस्यों के वेतन एवं व्यापार आदि से अर्जित आय। इसके अतिरिक्त सम्पत्ति का किराया व ब्याज आदि से प्राप्त धन भी इसमें सम्मिलित है।
(2) अप्रत्यक्ष आय:
यह सुख-सुविधाओं के रूप में होती है; जैसे कि नि:शुल्क शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा तथा पैतृक मकान, जिसका किराया नहीं देना होता है इत्यादि। । पारिवारिक आय प्रायः घटती-बढ़ती रहती है। एक कुशल गृहिणी इसका सदैव ध्यान रखती है। वह निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर अर्थव्यवस्था का संचालन करती है

(i) मूल आवश्यकताओं को प्राथमिकता:
भोजन, वस्त्र एवं मकान जीवनरक्षक मूल आवश्यकताएँ हैं, जिन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इनके लिए यह भी आवश्यक है कि इन पर पारिवारिक आय के अनुसार ही व्यय हो।

(ii) आवश्यकताओं में समन्वय:
विभिन्न आवश्यकताओं को सन्तुलित रूप से पूरा किया जाना चाहिए। आवश्यकताओं की पूर्ति उनके महत्त्व के क्रम में प्राथमिकता के सिद्धान्त के अनुसार की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए–जीवनरक्षक आवश्यकताओं में भोजन सर्वप्रथम आता है तथा वस्त्र एवं मकान बाद में। अतः गृहिणी को सर्वप्रथम यह देखना चाहिए कि परिवार के सभी सदस्यों को आवश्यक पौष्टिक भोजन मिले, इसके पश्चात् ही आय का व्यय वस्त्र व मकान की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाना चाहिए।

(ii) आय के अनुसार व्यय:
जिस प्रकार धन का अपव्यय करना अनुचित है, उसी प्रकार धन का आवश्यकता से कम व्यय करना भी कोई अच्छी बात नहीं है। एक कुशल गृहिणी अर्थव्यवस्था का संचालन रहन-सहन के सामाजिक स्तर के अनुसार करती है। यदि पारिवारिक आय कम है, तो इसका व्यय केवल मूल  आवश्यकताओं की पूर्ति में ही करती है। इसके विपरीत यदि आय अधिक है, तो वह स्तर के अनुरूप विलासिता की वस्तुओं (जैसे कि वातानुकूलन, टेलीविजन, गृह सज्जा की वस्तुएँ इत्यादि) पर भी धन व्यय कर सकती है अर्थात् एक कुशल गृहिणी को आय के अनुसार ही व्यय करना चाहिए।

(iv) मुद्रा की क्रय-शक्ति:
आज महँगाई के युग में मुद्रा की क्रय-शक्ति प्रायः घटती रहती है। एक कुशल गृहिणी मुद्रा की क्रय-शक्ति का विशेष ध्यान रखती है तथा इसके अनुसार ही अपने परिवार की अर्थव्यवस्था का संचालन करती है।

(v) पारिवारिक सन्तोष:
पारिवारिक आय एवं परिवार के सदस्यों की संख्या में सीधा सम्बन्ध होता है। कम सदस्यों के परिवार में अर्थव्यवस्था के संचालन में कोई विशेष कठिनाई नहीं होती, परन्तु यदि परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक है तो गृहिणी की व्यवहार-कुशलता एवं सूझ-बूझ के द्वारा ही अर्थव्यवस्था का संचालन सम्भव है। एक कुशल गृहिणी परिवार के सभी सदस्यों के सुख, सन्तोष एवं रुचि का ध्यान रखती है तथा आवश्यकता पड़ने पर पारिवारिक आय में वृद्धि के उपाय अपनाती है।

(vi) भविष्य के लिए बचत:
एक कुशल गृहिणी कभी भी धन का अनुचित व्यय नहीं करती है। वह अर्थव्यवस्था का संचालन योजना बनाकर करती है। वह प्रत्येक परिस्थिति में भविष्य की योजनाओं व आकस्मिक कार्यों (बीमारी व विवाह आदि) के लिए धन की बचत का प्रावधान रखती है। प्रत्येक कुशल गृहिणी पारिवारिक स्तर के अनुरूप धन का व्यय करती है तथा एक निश्चित मात्रा में धन की बचत कर उसको सुरक्षित एवं अधिक लाभप्रद राष्ट्रीय बचत योजनाओं में लगाती है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि परिवार की बढ़ती आवश्यकताओं की सन्तुष्टि तभी सम्भव हो सकती है जब विभिन्न आवश्यकताओं तथा उनकी तीव्रता को ध्यान में रखकर सीमित साधनों से सन्तुष्ट किया जाए। इस उद्देश्य के लिए आय-व्यय का सन्तुलन अत्यन्त आवश्यक है। यदि पारिवारिक आय-व्यय का सन्तुलन न किया जाए, तो गृह की अर्थव्यवस्था अव्यवस्थित हो जाएगी और यह भी सम्भव है कि परिवार की आय से व्यय अधिक हो जाए। परिवार की आय से अधिक व्यय हो जाने पर परिवार पर ऋण का बोझ हो जाएगा और ऋण से परिवार की सुख-शान्ति समाप्त हो जाएगी।
वास्तव में, एक सुव्यवस्थित या कुशल अर्थव्यवस्था ही इस उद्देश्य की पूर्ति में सहायक हो सकती है। अतः एक आदर्श गृह-व्यवस्था में कुशल अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गृहिणी को इस बात की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए कि मानव की किस-किस अवस्था की । कौन – कौन सी आवश्यकताएँ महत्वपूर्ण हैं;  जैसे-शिशु की आवश्यकता, भूख व सुरक्षा। उसके। पश्चात् बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था एवं वृद्धावस्था की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न हैं। सभी बातों को ध्यान में रखते हुए अपना पूर्ण उत्तरदायित्व निभाएँ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
सफल गृह-अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि परिवार की सुख-शान्ति एवं समृद्धि के लिए गृह-अर्थव्यवस्था का उत्तम एवं सुनियोजित होना आवश्यक है। अब प्रश्न उठता है कि किस प्रकार की गृह-अर्थव्यवस्था को उत्तम या सफल कहा जा सकता है, अर्थात् सफल गृह-अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ या लक्षण क्या हैं? सफल गृह-अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित मानी जाती हैं ।

  1.  सफल गृह-अर्थव्यवस्था में परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जाती है।
  2. सफल गृह-अर्थव्यवस्था में परिवार की विभिन्न आवश्यकताओं में समन्वय स्थापित किया जाता है।
  3.  सफल गृह-अर्थव्यवस्था में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित कर लिया जाता है।
  4.  सफल गृह-अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत आय के अनुसार व्यय का निर्धारण किया जाता है।
  5.  सफल गृह-अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत अनिवार्य रूप से बचत का प्रावधान होता है।
  6. सफल गृह-अर्थव्यवस्था में पारिवारिक सन्तोष का ध्यान रखा जाता है। प्रश्न 2-गृह-अर्थव्यवस्था के मुख्य सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर:
किसी भी परिवार की उत्तम गृह-अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित सिद्धान्तों को ध्यान में रखना चाहिए

  1.  पारिवारिक लक्ष्यों के निर्धारण का सिद्धान्त,
  2. आय के विश्लेषण का सिद्धान्त,
  3.  विभिन्न पारिवारिक योजनाओं सम्बन्धी सिद्धान्त,
  4.  पारिवारिक भविष्य की सुरक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त,
  5. परिवार के सदस्यों की सन्तुष्टि का सिद्धान्त।

 

प्रश्न 3:
आवश्यकताएँ कितने प्रकार की होती हैं?
या
अनिवार्य आवश्यकताएँ किन्हें कहा जाता है?
या
आरामदायक आवश्यकताओं से आप क्या समझती हैं?
या
विलासात्मक आवश्यकताओं से क्या आशय है?
उत्तर:
व्यक्ति की आवश्यकताएँ अनन्त होती हैं तथा वे कभी भी पूर्ण नहीं होतीं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए मानवीय आवश्यकताओं का एक व्यवस्थित वर्गीकरण किया गया है। इस वर्गीकरण के अन्तर्गत समस्त मानवीय आवश्यकताओं को तीन वर्गों में रखा गया है। ये वर्ग हैं-अनिवार्य आवश्यकताएँ, आरामदायक आवश्यकताएँ तथा विलासात्मक आवश्यकताएँ। इन तीनों प्रकार की आवश्यकताओं का संक्षिप्त परिचय निम्नवर्णित है

(1) अनिवार्य आवश्यकताएँ:
मानव जीवन के लिए अत्यधिक अनिवार्य आवश्यकताओं को इस वर्ग में सम्मिलित किया जाता है। इस वर्ग की मानवीय आवश्यकताओं को व्यक्ति की मौलिक आवश्यकताएँ भी कहा जाता है। इस वर्ग की आवश्यकताओं की पूर्ति के अभाव में मनुष्य का जीवन भी कठिन हो जाता है। मुख्य रूप से  भोजन, वस्त्र तथा आवास को इस वर्ग की आवश्यकताएँ माना गया है। व्यापक रूप से इस वर्ग में भी तीन प्रकार की आवश्यकताओं को सम्मिलित किया जाता है, जिन्हें क्रमशः जीवनरक्षक अनिवार्य आवश्यकताएँ, कार्यक्षमतारक्षक अनिवार्य आवश्यकताएँ तथा प्रतिष्ठारक्षक
अनिवार्य आवश्यकताएँ कहा जाता है।

(2) आरामदायक आवश्यकताएँ:
इस वर्ग में उन आवश्यकताओं को सम्मिलित किया जाता है। जिनकी पूर्ति से व्यक्ति का जीक्न निश्चित रूप से अधिक सुखी तथा सुविधामय हो जाता है। उदाहरण के
लिए – विभिन्न घरेलू उपकरण इसी वर्ग की आवश्यकताएँ हैं। इन उपकरणों को अपनाकर जीवन अधिक सरल हो जाता है।

(3) विलासात्मक आवश्यकताएँ:
इस वर्ग में उन आवश्यकताओं को सम्मिलितं किया जाता है। जो व्यक्ति की विलासात्मक इच्छाओं से सम्बन्धित होती हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के अभाव में न तो व्यक्ति के जीवन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और न ही व्यक्ति की कार्यक्षमता ही घटती है। विलासात्मक आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न समाज में भिन्न-भिन्न होती हैं। विलासात्मक आवश्यकताएँ भी तीन प्रकार की होती हैं, जिन्हें क्रमशः हानिरहित विलासात्मक आवश्यकताएँ, हानिकारक विलासात्मक आवश्यकताएँ तथा सुरक्षा सम्बन्धी विलासात्मक आवश्यकताएँ कहा  जाता है। अधिक महँगी कार, आलीशान भवन, महँगे तथा अधिक संख्या में वस्त्र रखना हानिरहित विलासात्मक आवश्यकताओं की श्रेणी में आते हैं। भोग-विलास के साधने नशाखोरी तथा नैतिक एवं चारित्रिक पतन के साधनों को अपनाना हानिकारक विलासात्मक आवश्यकताओं से सम्बद्ध हैं। जहाँ तक सुरक्षात्मक विलासात्मक आवश्यकताओं का सम्बन्ध है, इनमें बहुमूल्य गहनों तथा विभिन्न सम्पत्तियों को सम्मिलित किया जाता है। ये वस्तुएँ व्यक्ति के संकट-काल में सहायक होती हैं।

प्रश्न 4:
आरामदायक तथा विलासात्मक आवश्यकताओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मानवीय आवश्यकताओं के वर्गीकरण में आरामदायक तथा विलासात्मक आवश्यकताओं को अलग-अलग वर्ग में प्रस्तुत किया गया है। स्थूल रूप से देखने पर इन दोनों प्रकार की आवश्यकताओं में कोई स्पष्ट अन्तर दिखाई नहीं देता। एक ही आवश्यकता एक व्यक्ति के लिए विलासात्मक आवश्यकता हो सकती है और वही आवश्यकता किसी अन्य व्यक्ति के लिए आरामदायक आवश्यकता हो सकती है। वास्तव  में, ये दोनों सापेक्ष हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि जिस आवश्यकता से सम्बन्धित व्यक्ति का किसी प्रकार अहित होने की आशंका हो, वह आवश्यकता विलासात्मक आवश्यकता की श्रेणी में आएगी। इससे भिन्न जो आवश्यकता केवल जीवन की सुख-सुविधा में वृद्धि करती है, वह आरामदायक आवश्यकता की श्रेणी में आएगी।

प्रश्न 5:
मानवीय आवश्यकताओं की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मानवीय आवश्यकताओं की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं ।

  1. मानवीय आवश्यकताएँ असीमित होती हैं।
  2. मानवीय आवश्यकताओं में पुनरावृत्ति होती है। उदाहरण के लिए–एक बार भोजन ग्रहण कर लेने के उपरान्त कुछ समय बाद पुनः भोजन की आवश्यकता महसूस होने लगती है।
  3. आवश्यकताओं की एक विशेषता यह है कि इनमें विकल्प भी सम्भव होते हैं। उदाहरण के लिए–प्रकाश की आवश्यकता के लिए साधन के रूप में लैम्प, मोमबत्ती, वैद्युत-बल्ब आदि में विकल्प हो सकता है।
  4. कुछ आवश्यकताएँ परस्पर पूरक होती हैं। उदाहरण के लिए मोटर की पूरक आवश्यकता पेट्रोल है।
  5. मानवीय आवश्यकताओं में प्रतिस्पर्धा होती है तथा उनकी प्रबलता में अन्तर होता है।
  6. वर्तमान सम्बन्धी मानवीय आवश्यकताएँ अधिक प्रबल होती हैं।
  7. कुछ मानवीय आवश्यकताएँ आदत का रूप ले लेती हैं।
  8. जानकारी बढ़ने के साथ-साथ आवश्यकताएँ बढ़ती हैं।
  9. आवश्यकताओं पर विज्ञापन एवं प्रचार का भी प्रभाव पड़ता है।
  10. मानवीय आवश्यकताओं की एक विशेषता यह है कि इन पर प्रचलित रीति-रिवाजों तथा फैशन का भी प्रभाव पड़ता है।

 

प्रश्न 6:
आवश्यकता की अनिवार्यता आप किस प्रकार निर्धारित करेंगी?
उत्तर:
आवश्यकता की अनिवार्यता निम्नलिखित आधारों पर निर्भर करती है

(1) कुशलता में वृद्धि का आधार:
यदि किसी आवश्यकता की पूर्ति से परिवार की कार्य-कुशलता में वृद्धि होती है, तो वह आवश्यकता अति अनिवार्य हो जाती है।

(2) सुख-सन्तोष का आधार:
जिन आवश्यकताओं की पूर्ति से पारिवारिक सदस्यों को सुख एवं सन्तोष की प्राप्ति होती है, वे अनिवार्यता की श्रेणी में आती हैं।

(3) मूल्य एवं माँग का आधार:
यदि किसी आवश्यक वस्तु के मूल्य में वृद्धि की आशंका हो तो वह अनिवार्यता की श्रेणी में आ जाती है।

प्रश्न 7:
आवश्यकताओं के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। विज्ञान के विभिन्न आविष्कारों के अन्वेषण का आधार सदैव मनुष्य की आवश्यकताएँ ही रही हैं। आदि मानव से आज के मानव का सामाजिक विकास समय-समय पर आवश्यकताओं की उत्पत्ति एवं तुष्टि के कारण ही सम्भव हुआ है। आधुनिक युग में आवश्यकताओं की पूर्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन धन है। आवश्यकताओं में वृद्धि होने पर परिवार के (UPBoardSolutions.com) सदस्य पारिवारिक आय में वृद्धि का प्रयास करते हैं, जिसके फलस्वरूप रहन-सहन का स्तर ऊँचा होता है। सम्मिलित आर्थिक प्रयासों से पारिवारिक सदस्यों में स्नेह, सहयोग एवं दायित्व की भावना में वृद्धि होती है तथा परिवार की उन्नति होती है।

प्रश्न 8:
परिवार की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करना कठिन होता है। क्यों?
उत्तर:
आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन मुख्य साधन है। परिवार में धन का मुख्य स्रोत पारिवारिक आय होती है। आवश्यकताएँ अनन्त होती हैं और आय प्रायः सीमित। अतः आवश्यकताओं की पूर्ति अनिवार्यता के क्रम में की जाती है। सर्वप्रथम मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है और यदि धन शेष बचता है तो कुछ और आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है। शेष आवश्यकताओं की पूर्ति का  एकमात्र उपाय पारिवारिक सदस्यों के सम्मिलित प्रयासों से ही सम्भव हो सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि परिवार की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करना एक कठिन कार्य है।

प्रश्न 9:
आवश्यकता एवं आर्थिक क्रियाओं को सम्बन्ध बताइए।
उत्तर:
आवश्यकता आविष्कार की जननी है। यदि आवश्यकताएँ न होतीं तो किसी प्रकार के आर्थिक प्रयास आदि का प्रश्न ही नहीं उठता। अतः आर्थिक प्रयत्न की जननी आवश्यकता ही है। इस प्रकार आर्थिक क्रियाओं एवं आवश्यकताओं में अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। वास्तव में, आवश्यकताएँ ही  मनुष्य को आर्थिक प्रयत्न करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं। आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए मनुष्य विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ करता है। इन आर्थिक क्रियाओं में उत्पादन, विनिमय, वितरण आदि को सम्मिलित किया जा सकता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
गृह-अर्थव्यवस्था की एक सरल एवं स्पष्ट परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
‘परिवार की आय तथा व्यय पर नियन्त्रण होना तथा आय का गृह के सृजनात्मक कार्यों में व्यय करना गृह-अर्थव्यवस्था कहलाता है।” निकिल तथा डारसी

प्रश्न 2:
गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला मुख्यतम कारक क्या है?
उत्तर:
गृह-अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला मुख्यतम कारक है-धन या आय।

 

प्रश्न 3:
गृह-अर्थव्यवस्था के किन्हीं दो सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गृह-अर्थव्यवस्था के दो सिद्धान्त है

  1. आय के विश्लेषण का सिद्धान्त तथा
  2.  पारिवारिक भविष्य की सुरक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त।

प्रश्न 4:
सफल गृह-अर्थव्यवस्था की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सफल गृह-अर्थव्यवस्था की दो विशेषताएँ हैं

  1.  परिवार की आवश्यकताओं की प्राथमिकता को निर्धारित करना तथा
  2.  गृह-अर्थव्यवस्था में बचत का प्रावधान रखना।

प्रश्न 5:
परिवार की अति अनिवार्य मूलभूत आवश्यकता क्या है?
उत्तर:
भोजन परिवार की अति अनिवार्य मूलभूत आवश्यकता है।

प्रश्न 6:
जीवनरक्षक आवश्यकता से आप क्या समझती हैं?
उत्तर:
भोजन एवं वस्त्र मानव अस्तित्व की जीवनरक्षक आवश्यकताएँ हैं।

प्रश्न 7:
विलासिता सम्बन्धी आवश्यकताओं से आप क्या समझती हैं?
उत्तर:
ये सामाजिक प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य एवं दिखावे सम्बन्धी आवश्यकताएँ हैं; जैसे कि रंगीन टी० वी०, वातानुकूलित यन्त्र आदि।

प्रश्न 8:
आधुनिक समाज के विभिन्न परिवारों को आप कौन-कौन सी श्रेणियों में वर्गीकृत करेंगी?
उत्तर:
आधुनिक समाज को प्रायः तीन-उच्च, मध्यम व निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है।

प्रश्न 9:
गृह-अर्थव्यवस्था को उत्तम बनाने में सर्वाधिक योगदान परिवार के किस सदस्य का होता है?
उत्तर:
गृह-अर्थव्यवस्था को उत्तम बनाने में सर्वाधिक योगदान परिवार के मुखिया का होता है।

 

प्रश्न 10:
उत्तम एवं सुचारु गृह-अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिए परिवार का आकार किस प्रकार का होना चाहिए?
उत्तर:
उत्तम एवं सुचारु गृह-अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिए परिवार का आकार छोटा होना चाहिए।

प्रश्न 11:
परिवार के बच्चों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था किस प्रकार की पारिवारिक आवश्यकता है?
उत्तर:
परिवार के बच्चों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था परिवार की मूलभूत आवश्यकता है।

प्रश्न 12:
कपड़े धोने की मशीन किस प्रकार की आवश्यकता है?
उत्तर:
कपड़े धोने की मशीन एक आरामदायक आवश्यकता है।

प्रश्न 13:
बहुमूल्य गहने किस प्रकार की आवश्यकता है?
उत्तर:
बहुमूल्य गहने सुरक्षात्मक विलासात्मक आवश्यकता है।

प्रश्न 14:
एक डॉक्टर के लिए कार किस प्रकार की आवश्यकता है?
उत्तर:
एक डॉक्टर के लिए कार अनिवार्य आवश्यकता है।

प्रश्न 15:
सिगरेट या शराब पीना कैसी आवश्यकता है?
उत्तर:
सिगरेट या शराब पीना आदत सम्बन्धी आवश्यकता के उदाहरण हैं।

 

प्रश्न 16:
आपके अनुसार परिवार के सदस्यों के लिए स्वस्थ मनोरंजन की व्यवस्था परिवार की किस प्रकार की आवश्यकता है?
उत्तर:
हमारे अनुसार परिवार के सदस्यों के लिए स्वस्थ मनोरंजन की व्यवस्था परिवार की मूलभूत आवश्यकता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) किसी परिवार द्वारा अपनी आय-व्यय तथा धन-सम्पत्ति के लिए की जाने वाली व्यवस्था को कहते हैं
(क) अनिवार्य व्यवस्था,
(ख) पारिवारिक व्यवस्था,
(ग) गृह-अर्थव्यवस्था,
(घ) अनावश्यक व्यवस्था।

(2) कुशल अर्थव्यवस्था का आधार है
(क) पारिवारिक आय,
(ख) सीमित आवश्यकताएँ,
(ग) विवेकपूर्ण व्यय,
(घ) पैतृक सम्पत्ति।

(3) यदि गृह-अर्थव्यवस्था सुचारू हो, तो
(क) परिवार के सदस्यों की प्रमुख आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है,
(ख) परिवार के रहन-सहन के स्तर में सुधार होता है,
(ग) परिवार आर्थिक संकट का शिकार नहीं होता,
(घ) उपर्युक्त सभी लाभ प्राप्त होते हैं।

(4) पारिवारिक आय को मितव्ययिता से व्यय करने के लाभ हैं
(क) सुख-सुविधाओं की प्राप्ति,
(ख) भविष्य के लिए बचत,
(ग) सुदृढ़ अर्थव्यवस्था,
(घ) ये सभी।

(5) व्यक्ति की सर्वाधिक अनिवार्य आवश्यकता है
(क) सभी इच्छाओं की पूर्ति,
(ख) सन्तुलित एवं पौष्टिके भोजन,
(ग) नींद,
(घ) भव्य एवं आकर्षक भवन।

 

(6) मानवीय आवश्यकताएँ होती हैं
(क) दो,
(ख) चार,
(ग) सीमित,
(घ) असीमित।

(7) सबसे अधिक सुखी होता है
(क) धनी वर्ग,
(ख) नियन्त्रित आवश्यकताओं वाला वर्ग,
(ग) श्रमिक वर्ग,
(घ) मध्यम श्रेणी का वर्ग।

(8) जीवनरक्षक आवश्यकता होती है
(क) जिसकी पूर्ति मानव अस्तित्व के लिए की जाती है,
(ख) जो रहन-सहन के स्तर को ऊँचा उठाती है,
(ग) जिसकी पूर्ति से कार्य-कुशलता बढ़ती है,
(घ) जिसकी पूर्ति से अत्यधिक सुख का अनुभव होता है।

उत्तर:
(1) (ग) गृह-अर्थव्यवस्था,
(2) (ग) विवेकपूर्ण व्यय,
(3) (घ) उपर्युक्त सभी लाभ प्राप्त होते हैं,
(4) (घ) ये सभी,
(5) (ख) सन्तुलित एवं पौष्टिक भोजन,
(6) (घ) असीमित,
(7) (ख) नियन्त्रित आवश्यकताओं वाला वर्ग,
(8) (क) जिसकी पूर्ति मानव अस्तित्व के लिए की जाती है।

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