wb 10th Hindi

WBBSE 10th Class Hindi Solutions Chapter 1 रैदास के पद

WBBSE 10th Class Hindi Solutions Chapter 1 रैदास के पद

West Bengal Board 10th Class Hindi Solutions Chapter 1 रैदास के पद

West Bengal Board 10th Hindi Solutions

कवि-परिचय

संत कवि रैदास का जन्म सन् 1388 में काशी (वाराणसी) में हुआ था । पिता का नाम रघु तथा माता का नाम घुरविनिया था। रैदास भक्तिकाल के उन कवियों में से हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया । इनकी लोकवाणी आज भी जन-जन के हृदय में गूंजती है । हलांकि ये ज्ञानाश्रयी शाखा के कवि थे फिर भी इनका काव्य ज्ञानाश्रयी तथा प्रेमाश्रयी शाखा के बीच सेतु (पुल) का काम करता है । रैदास संत कबीरदास के गुरूभाई थे क्योंकि इनके गुरु भी स्वामी रामानंद ही थे ।

संत रैदास जाति से चर्मकार थे तथा इनका पैतृक व्यवसाय जूते बनाना था। उन्होंने भी इस व्यवसाय को ही अपनाया। प्रायः जरूरतमंदों तथा गरीबों को ये बिना मूल्य लिए ही जूते भेंट कर दिया करते थे । इसी से उनके परोपकारी तथा दयालु स्वभाव का पता चलता है । उनकी इस दानशीलता तथा परोपकारिता के कारण माता-पिता अप्रसन्न रहते थे । रैदास ने कबीर की ही तरह ईश्वर-भक्ति के नाम पर बाह्याडंबर को बुरा बताया तथा लोगों को आपस में प्रेमपूर्वक मिल-जुलकर रहने का संदेश दिया। उनका ऐसा मानना था कि सदाचार, परहित की भावना तथा सद्व्यवहार से ही ईश्वर को पाया जा सकता है । उल्लेखनीय है कि भक्तिकाल की सुप्रसिद्ध कवयित्री मीराबाई ने भी रैदास को ही अपना गुरु बनाया था ।

संत रैदास की भाषा सरल, सहज, मर्मस्पर्शी तथा व्यावहारिक ब्रजभाषा है। इनकी भाषा में अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली तथा अरबी-फारसी के शब्दों का भी प्रयोग मिलता है ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न – 1 : पाठ्यक्रम में संकलित पद के आधार पर संत रैदास की भक्ति-भावना का परिचय दें।
प्रश्न – 2 : संत रैदास की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालें ।
प्रश्न – 3 : पठित पाठ के आधार पर ‘रैदास के पद’ का सारांश लिखें ।
प्रश्न – 4 : ‘रैदास के पद’ में निहित संदेश को लिखें ।
प्रश्न – 5 : भक्त कवि के रूप में संत रैदास का परिचय दें ।

उत्तर : संत रैदास उस जाति तथा समाज में पले-बढ़े थे जो हिन्दू होते हुए भी हिंदुओं द्वारा आदर न पाता था । वह कुल-परंपरा से विद्या प्राप्त करने के अयोग्य माना जाता था । शास्त्र-ज्ञान प्राप्त करने का दरवाजा उसके लिए बंद हो गया था । ये गरीबी में जनमते थे, गरीबी में ही पलते थे और उसी में मर जाया करते थे। ऐसे समाज तथा वातावरण में पैदा हुए व्यक्ति के लिए धर्म के आडंबर पर चोट करना जीवन-मरण का प्रश्न था । संत रैदास इसी समाज के रत्न थे ।

कबीर की तरह संत रैदास की भाषा सीधे चोट नहीं करती, वह तो मीठी छूरी की तरह वार करती है ।

जहाँ तक संत रैदास की भक्ति-भावना की बात है उनकी भक्ति दास्य भाव की है। रैदास ईश्वर के प्रति अपनी भावना प्रकट करते हुए कहते हैं कि आप चंदन की तरह सुगंध-युक्त हैं तथा मैं पानी की तरह हूँ जिसमें कोई सुगंध नहीं होती। आपकी सुंगध मेरे अंग-अंग में समायी हुई है । आप मेरे लिए वैसे ही हैं जैसे चकोर के लिए चंद्रमा । प्रभु आप तो दीपक तथा मैं बाती के समान हूँ।

वे कहते हैं कि मेरी बुद्धि चंचल है और इस चंचल बुद्धि से आपकी भक्ति भला कैसे की जा सकती है । ईश्वर का वास तो प्रत्येक के हृदय में है लेकिन मैं अज्ञानतावश उसे नहीं देख पाया। आपके गुण तो अपार हैं और मैं गुणहीन हूँ । आपने जो उपकार मेरे ऊपर किए हैं मैंने उसे भी नहीं माना, भुला दिया। मैं अपनी-पराये के भेदभाव में पड़ा रहा और इससे भला मैं कैसे मोक्ष पा सकता हूँ ।

अविगत ईश्वर के चरण पाताल में तथा सिर आसमान को छूते हैं- भला जिनका विस्तार इतना विशाल है, जिसे शिव, सनक आदि भी न जान सके, जिसे खोजते-खोजते स्वयं ब्रह्मा ने भी अपने जन्म को गंवा दिया- वे भला मंदिर में कैसे समा सकते हैं। जिनके पैरों के नख से गंगा प्रवाहित होती हो, जिनकी रोमावली से ही अठ्ठारह पुराणों का जन्म हुआ हो तथा चारों वेद जिनकी साँसों में बसा हो – उस असीम, निर्गुण, निराकार ईश्वर की उपासना ही रैदास करते हैं।

काम, क्रोध, मोह, मद और माया ये पाँचों मिलकर मनुष्य को लूट लेते हैं । अर्थात् ईश्वर से विमुख कर देते हैं। पढ़-लिखकर भी मनुष्य को तब तक सच्चे ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती जब तक कि वह अनासक्त भाव से ईश्वर की भक्ति न करे। ठीक वैसे ही जैसे बिना पारस के स्पर्श के लोहा सोने में नहीं बदल सकता ।

जो मित्र, शत्रु तथा जाति-अजाति के बंधन से मुक्त हैं, जिनके हृदय में सबके लिए हित की भावना हो – वही तीनों लोकों में यश की प्राप्ति कर पाते हैं – इसे वे लोग कहाँ जान पाते हैं जिनके हृदय में ईश्वर- भक्ति नहीं हैं । हे कृष्ण, आपने ही घड़ियाल के मुख से गज की रक्षा की तथा अजामिल एवं गणिका जैसे तुच्छ प्राणियों को मोक्ष प्रदान किया । जब आपने ऐसों-ऐसों का उद्धार किया तो फिर रैदास का उद्धार क्यों नहीं करते ?

इस प्रकार संत रैदास ने अपने पदों के द्वारा यह संदेश देना चाहा है कि श्रेष्ठ वही है जो धर्म, संप्रदाय, जाति, कुल और शास्त्र की रूढ़ियों से नहीं बंधा हुआ है। धर्म के नाम पर दिखावा करना तथा संस्कारों की विचारहीन गुलामी रैदास को पसंद नहीं थी तथा इन्हीं बेड़ियों को तोड़ने का संदेश उनके पदों में छिपा है । रैदास के लिए ईश्वर-प्रेम ही सबकुछ है। यह प्रेम, धर्म तथा समाज की बनाई रूढ़ियों से बहुत ऊपर है –

मित्र सत्रु अजाति सबते, अंतरि लावै हेत रे ।
लोग बाकी कहा जानैं, तीनि लोक पवित रे ।
भावार्थ
पद
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी । जाकी अंग-अंग बास समानी ।
प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा ।।
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती । जाकी जोति बरै दिन राती ।
प्रभु जी तुम मोती हम धागा । जैसे सोनहिं मिलत सोहागा ।
प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा । ऐसी भक्ति करै रैदासा ।।
शब्दार्थ : जाकी = जिसकी। बास = सुगंध । समानी = समाया हुआ । घन = बादल । मोरा = मयूर । चितवत = हृदय में बसा हुआ । चकोरा = चकोर (पक्षी)। जोति = ज्योति । बरै = जलता है। दिन राती = दिन-रात । सोनहिं = सोना । सोहागा = एक प्रकार का रसायन । दासा = दास ।
प्रश्न – 1 : प्रस्तुत काव्यांश किस पाठ से उद्धृत है ?
उत्तर : प्रस्तुत काव्यांश ‘रैदास के पद’ से उद्धृत है ।
प्रश्न – 2 : इस पद्यांश के रचनाकार का नाम लिखें ।
उत्तर : इस पद्यांश के रचनाकार भक्तिकाल के संत कवि रैदास हैं ।
प्रश्न – 3 : प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर : प्रस्तुत पद में रैदास ईश्वर के प्रति अपनी भावना प्रकट करते हुए कहते हैं कि आप चंदन की तरह सुगंध-युक्त हैं तथा मैं पानी की तरह हूँ जिसमें कोई सुगंध नहीं होती। आपकी सुंगध मेरे अंग-अंग में समायी हुई है । आप तो उस काले बादल के समान हैं जिसे देखकर मेरा मनरूपी मयूर नाच उठता है। आप मेरे लिए वैसे ही हैं जैसे चकोर के लिए चंद्रमा । प्रभु आप तो दीपक तथा मैं बाती के समान हूँ। आपके बिना मैं अधूरा हूँ तथा आपका ही प्रकाश दिन-रात फैला रहता है। प्रभु, आप मोती तथा मैं धागे के समान हूँ। मैंने अपने-आपको आपकी भक्ति में वैसे ही विलीन कर दिया है जैसे सोने में सुहागा । प्रभु आप मेरे स्वामी हैं तथा मैं आपका सेवक हूँ । इसी सेवक के भाव से मैं आपकी भक्ति करता हूँ ।
काव्यगत सौंदर्य :
1. प्रस्तुत पद में रैदास की ईश्वर के प्रति दास्य-भावना प्रकट हुई है ।
2. प्रस्तुत पद के ‘चितवन, चंद, चकोरा’, ‘जाकी जोति’ में अनुप्रास तथा ‘अंग-अंग’ में छेकानुप्रास अलंकार है ।
3. रैदास ने ईश्वर को सर्वगुण संपन्न तथा अपने को गुणरहित बताया है ।
4. रस शांत है ।
5. भाषा सरल ब्रजभाषा है।

वस्तुनिष्ठ सह व्याख्यामूलक प्रश्नोत्तर

1. प्रभु जी तुम चंदन हम पानी । जाकी अंग-अंग बास समानी ।
    प्रभु ती तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा ।।
प्रश्न – 1 : प्रस्तुत अंश के कवि का नाम लिखें ।
उत्तर : प्रस्तुत अंश के कवि संत रैदास हैं।
प्रश्न – 2 : प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर : प्रस्तुत अंश में रैदास ईश्वर की आराधना करते हुए कहते हैं कि आप चंदन की तरह सुंगधयुक्त हैं और मैं पानी की तरह गंधरहित हूँ। आपकी सुगंध मेरे अंग में समायी हुई है । आप तो उस काले बादल के समान हैं जिसे देखकर मेरा मनरूपी मयूर नाच उठता है ।
2. प्रभु जी तुम दीपक हम बाती । जाकी जोति बरै दिन राती ।
    प्रभु जी तुम मोती हम धागा । जैसे सोनहिं मिलत सोहागा ।
    प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा । ऐसी भक्ति करै रैदासा ।।
प्रश्न – 1 : प्रस्तुत पद्यांश किस कविता से उद्धृत है ?
उत्तर : प्रस्तुत पद्यांश ‘रैदास के पद’ से उद्धृत है ।
प्रश्न – 2 : प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर : प्रस्तुत पद्यांश में संत रैदास ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति-भावना प्रकट करते हुए कहते हैं कि आप मेरे लिए वैसे ही हैं जैसे चाँद के लिए चकोर। आप दीपक तथा मैं बाती हूँ। आपके बिना मैं अधूरा हूँ। आपका ही प्रकाश इस संसार में फैला हुआ है। प्रभु, आप मोती तथा मैं धागा हूँ। मैंने अपने-आपको आपकी भक्ति में वैसे ही विलीन कर दिया है जैसे सोने में सुहागा विलीन हो जाता है। हे प्रभु, आप मेरे स्वामी हैं तथा मैं आपका सेवक हूँ। इसी सेवक के भाव से मैं आपकी भक्ति करता हूँ ।
3. नरहरि चंचल मति मोरी
    कैसे भगति करों मैं तोरी ।।
प्रश्न – 1 : प्रस्तुत पंक्तियों के रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर : रचनाकार संत कवि रैदास हैं।
प्रश्न – 2 : अंश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए ।
उत्तर : प्रस्तुत अंश में संत रैदास अपने मन की स्थिति का वर्णन करते हुए ईश्वर से कहते हैं कि मेरी मति तो चंचल है और इस चंचल मति के सहारे भला आपकी भक्ति कैसे की जा सकती है। कहने का भाव यह है कि जब तक मन एकाग्र नहीं होता तब तक उसे प्रभु-भक्ति में नहीं लगाया जा सकता ।
4. तू मोहि देखै, हौं तोहि देखूं, प्रीति परस्पर होई ।
    तू मोहि देखै, हौं तोहि न देखूं, इहि मति सब बुधि खोई ।।
प्रश्न – 1 : प्रस्तुत अंश किस कविता से लिया गया है ?
उत्तर : प्रस्तुत अंश ‘रैदास के पद’ से लिया गया है ।
प्रश्न – 2 : प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर : संत रैदास कहते हैं कि हे ईश्वर जब तक हम एक-दूसरे को परस्पर नहीं देखते हैं तो भला प्रेम कैसे हो सकता है। आप तो मुझे देखते हैं पर मैं आपको नहीं देखता । अपनी इसी बुद्धि के कारण मैं अपनी सुध खो बैठा हूँ ।
5. सब घट अंतरि रमसि निरंतरि, मैं देखत हूँ नहीं जाना ।
    गुन सब तोर मोर सब औगुन, क्रित उपकार न माना ।
प्रश्न- 1 : रचना के कवि का नाम लिखें ।
उत्तर : इस रचना के कवि संत रैदास हैं।
प्रश्न – 2 : प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर : प्रस्तुत अंश में संत रैदास कहते हैं कि ईश्वर का वास तो प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में है लेकिन मैं अज्ञानतावश आपको नहीं देख पाया । आप तो गुणों की खान हैं और मैं गुणहीन हूँ, इसलिए मैंने आपके द्वारा किए गए उपकार को नहीं माना ।
6. मैं तैं तोरि मोरि असमझ सों, कैसे करि निसतारा ।
    कहै ‘रैदास’ कुस्न करुणां मैं, जै जै जगत अधारा
प्रश्न – 1 : कविता का नाम लिखें ।
उत्तर : कविता का नाम ‘रैदास के पद’ है ।
प्रश्न – 2 : प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें ।
उत्तर : प्रस्तुत अंश में संत रैदास कहते हैं कि मैं इस संसार में अपने-पराये के भेद-भाव में पड़ा रहा। इस बुद्धि के रहते भला मुझे मोक्ष की प्राप्ति कैसे हो सकती है। मेरे कृष्ण तो करूणामयी हैं, वही इस जगत के आधार हैं । ऐसे करूणामयी कृष्ण की मैं जय-जयकार करता हूँ।

अति लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. रैदास का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर : सन् 1388 में ।
2. रैदास का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर : काशी में ।
3. रैदास के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर : रघु ।
4. रैदास की माता का नाम क्या था ?
उत्तर : घुरविनिया ।
5. रैदास किस जाति के थे ?
उत्तर : चर्मकार ।
6. रैदास का पैतृक व्यवसाय क्या था ?
उत्तर : जूते बनाना ।
7. रैदास किसके समकालीन थे ?
उत्तर : कबीर के ।
8. रैदास के गुरु कौन थे ?
उत्तर : रामानंद ।
9. रैदास के गुरुभाई का नाम लिखें ।
उत्तर : कबीर ।
10. रैदास किसकी शिष्य मण्डली के महत्वपूर्ण सदस्य थे ?
उत्तर : रामानंद ।
11. रैदास के स्वभाव की क्या विशेषताएँ थी ?
उत्तर : परोपकारी, दयालु तथा दूसरों की सहायता करना।
12. रैदास के माता-पिता उनसे क्यों नाराज़ रहते थे ?
उत्तर : उनकी दानशीलता तथा परोपकारिता के कारण ।
13. रैदास ने व्यावहारिक ज्ञान किससे प्राप्त किया था ?
उत्तर : साधु-संतों की संगति से ।
14. रैदास किस काल के कवि थे ?
उत्तर : भक्तिकाल के ।
15. रैदास किस धारा के कवि थे ?
उत्तर : ज्ञानाश्रयी शाखा के ।
16. रैदास ने किसे सारहीन तथा निरर्थक बताया है ?
उत्तर : ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किए जानेवाले विवाद को ।
17. रैदास के समय में कौन काशी के सबसे प्रसिद्ध प्रतिष्ठित संत थे ?
उत्तर : रामानंद ।
18. रैदास की भक्ति किस भाव की है ?
उत्तर : दास्यभाव की ।
19. रैदास के अनुसार ईश्वर का वास कहाँ है ?
उत्तर : हृदय में ।
20. रैदास ने जगत का आधार किसे बताया है ?
उत्तर : ईश्वर को ।
21. रैदास ने किसकी मति को चंचल बताया है ?
उत्तर : अपनी मति को ।
22. किसके चरण पाताल तथा सिर आसमान को छूते हैं ?
उत्तर : निर्गुण-निराकार ईश्वर के ।
23. कौन निर्गुण-निराकार ईश्वर का अंत (रहस्य) न पा सके ?
उत्तर : शिव और सनक आदि ।
24. ब्रह्मा ने किसकी खोज में अपना जन्म गंवा दिया ?
उत्तर : निर्गुण-निराकार ईश्वर की खोज में ।
25. किसके नाखून के पसीने से गंगा प्रवाहित हुई है ?
उत्तर : निर्गुण-निराकार ईश्वर के ।
26. किसकी रोमावली से अठ्ठारह पुराणों का जन्म हुआ है ?
उत्तर : निर्गुण-निराकार ईश्वर की रोमावली से ।
27. चारों वेद किसकी सांसों में बसा है ?
उत्तर : निर्गुण-निराकार ईश्वर की सांसों में।
28. किसके बिना संशय की गांठ नहीं छूट सकती है ?
उत्तर : राम (ईश्वर) की भक्ति ।
29. ‘इन पंचन’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर : काम, क्रोध, मोह, मद तथा माया ।
30. ‘षटक्रम’ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर : अध्ययन, अध्यापन, यजन, याजन, दान तथा प्रतिग्रह ।
31. ‘ऐसे दुरमति’ का प्रयोग किसके लिए किया गया है ?
उत्तर : अजामिल तथा गणिका के लिए ।
32. रैदास ने जीवन का आधार किसे माना है ?
उत्तर : ईश्वर के नाम-स्मरण को ।
33. रैदास ने अपना जीवन-प्राण किसे माना है ?
उत्तर : नरहरि को ।
34. कोई मनुष्य उच्च पद को कैसे प्राप्त करता है ?
उत्तर : ईश्वर-भक्ति के द्वारा ।
35. ‘तुम चंदन हम पानी’ में चंदन और पानी कौन है ?
उत्तर : चंदन ईश्वर हैं तथा पानी रैदास ।
36. ‘घन’ और ‘मोर’ से किसे संकेतित किया गया है ?
उत्तर : घन से ‘ईश्वर’ को तथा ‘मोर’ से रैदास ने अपने-आप को संकेतित किया है ।
37. किसकी ज्योति दिन-रात जलती रहती है ?
उत्तर : ईश्वररूपी दीपक की ।
38. ‘मोती’ और ‘धागे’ से कौन संकेतित हैं ?
उत्तर : ईश्वर तथा रैदास ।
39. ‘स्वामी’ और ‘दासा’ कौन हैं ?
उत्तर : ‘स्वामी’ ईश्वर तथा ‘दासा’ रैदास हैं।
40. रैदास के राम कौन हैं ?
उत्तर : निर्गुण-निराकार ब्रह्म ।
41. रैदास ईश्वर से क्या इच्छा प्रकट करते हैं ?
उत्तर : वे उन्हें भी मोक्ष प्रदान करें ।
42. किसका सिर आसमान को छूता है ?
उत्तर : निर्गुण-निराकार ब्रह्म के ।
43. रैदास की भाषा क्या है ?
उत्तर : ब्रजभाषा ।
44. रैदास ने किसे सहर्ष अपनाया ?
उत्तर : अपने पैतृक व्यवसाय को ।
45. रैदास के अनुसार भक्ति-मार्ग की सबसे बड़ी बाधा क्या है ?
उत्तर : अज्ञानता तथा अहंकार ।
46. लोहा किसके स्पर्श से सोने में बदल जाता है ?
उत्तर : पारस के स्पर्श से ।

संक्षिप्त प्रश्नोत्तर

1. रैदास ने ईश्वर की तुलना किस-किस से की है ?
उत्तर : रैदास ने ईश्वर की तुलना चंदन, घन, दीपक, चंद्रमा, मोती तथा स्वामी से की है।
2. रैदास ने अपने-आप को किस-किस के समान बताया है ?
उत्तर : रैदास ने अपने-आपको पानी, मोर, बाती, चकोर, धागा तथा दास के समान बताया है।
3. रैदास की भक्ति किस प्रकार की है ?
उत्तर : रैदास की भक्ति दास्य भाव की है जिसमें भक्त ईश्वर को स्वामी तथा अपने को दास के समान मानता है ।
4. भक्ति के मार्ग को सबसे बड़ी बाधा क्या है ?
उत्तर : भक्ति के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा मानव का चंचल चित्त है ।
5. ‘गुन अब तोर मोर सब सौगुन, क्रित उपकार न माना’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर : प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ है कि सारे गुण आपके हैं तथा सारे अवगुण मेरे हैं क्योंकि मैंने आपके किए हुए उपकार को नहीं माना ।
6. रैदास के ईश्वर का स्वरूप कैसा है ?
उत्तर : रैदास के ईश्वर निर्गुण, निराकार, असीम, अविगत तथा अविनासी है ।
7. मानव को कौन पाँच मिलकर लूटते हैं ?
उत्तर : मानव को काम, क्रोध, मोह, मद तथा माया – ये पाँच मिलकर लूटते हैं।
8. रैदास के अनुसार सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कैसे हो सकती है ?
उत्तर : रैदास के अनुसार अनुभव से ही सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है ।
9. ईश्वर की कृपा से कौन-कौन तर गए/मोक्ष पा गए ?
उत्तर : ईश्वर की कृपा से अजामिल, गज तथा गणिका मोक्ष पा गए ।
10. रैदास ईश्वर से क्या विनती करते हैं? 
उत्तर : रैदास ईश्वर से यह विनती करते हैं कि उन्होंने अजामिल, गज तथा गणिका जैसे अधम को मोक्ष प्रदान किया तो उन्हें क्यों नहीं मोक्ष देते हैं ।
11. रैदास के अनुसार किसे हरिकथा नहीं सुहाती है ?
उत्तर : रैदास के अनुसार उन्हें हरिकथा नहीं सुहाती है जो जीविका हेतु षटकर्म तो करते हैं लेकिन हृदय में ईश्वर के प्रति दृढ़ भक्ति नहीं हैं ।
12. अजामिल कौन था ?
उत्तर : अजामिल कन्नौज का ब्राह्मण था। एक वेश्या के प्रेम में पड़कर उसने पत्नी का त्याग कर दिया तथा उसे घर ले आया। वेश्या के चक्कर में उसने अपना सब कुछ गंवा दिया। वेश्या से उत्पन्न सबसे छोटे बेटे का नाम उसने नारायण रखा । मृत्यु के समय नारायण का नाम लेने पर यमदूत भाग खड़े हुए तथा ईश्वर के दूत आकर उसे स्वर्ग ले गए ।
13. ‘रैदास के पद’ में उल्लिखित गज-कथा को संक्षेप में लिखें ।
उत्तर : ‘भागवत पुराण’ की कथा के अनुसार दक्षिण का पांड्यवंशी राजा अगस्य मुनि के शाप से हाथी की योनि में जन्म लिया । एक दिन प्यास बुझाने सरोवर में गया तो एक ग्राह ने उसे पकड़ लिया। ग्राह से मुक्ति के लिए उसने विष्णु से प्रार्थना की । विष्णु ने ग्राह से गज को मुक्त कराया।
14. ‘रैदास के पद’ में उल्लेखित गणिका से संबंधित कथा को संक्षेप में लिखें ।
उत्तर : जीवंती नामक वेश्या अपने तोते को बहुत प्यार करती थी। एक दिन भिक्षा माँगने आए एक साधु ने उसे तोते को राम नाम पढ़ाने को कहा । तोते को सिखाने के क्रम में उसकी जीभ इतनी अभ्यस्त हो गई कि मृत्यु के समय भी अनायस उसके मुख से राम-राम निकला और उसे मोक्ष प्राप्त हो गया ।
15. कौन-सी मति कभी नष्ट नहीं होती है ?
उत्तर : यह मति कि हम बड़े कवि हैं, पंडित हैं, योगी-सन्यासी हैं, दानी हैं- कभी नष्ट नहीं होती है ।
16. वाल्मीकि कैसे ऊँचे पद को प्राप्त हुए ?
उत्तर : संस्कृत भाषा के आदि कवि और आदि काव्य ‘रामायण’ के रचयिता के रूप में वाल्मीकि की प्रसिद्धि है।
तमसा नदी के तट पर व्याध द्वारा क्रोंच पक्षी के जोड़े में से एक को मार डालने पर वाल्मीकि के मुँह से व्याध के लिए शाप के जो उद्गार निकले वे लौकिक छंद के एक श्लोक के रूप में थे। इसी छंद में उन्होंने नारद से सुनी राम-कथा के आधार पर रामायण की रचना की और वे ऊँचे पद को प्राप्त हुए।
17. रैदास चित्त को किसे देखने को कहते हैं?
उत्तर : ईश्वर (कृष्ण) को देखने को कहते हैं।
18. रैदास ने किस ‘पंचन’ की बात कही है ?
उत्तर : रैदास ने ‘काम, क्रोध, मोह, मद, माया’ पंचन की बात कही है।
19. रैदास जी कबीर के गुरू भाई कैसे थे ?
उत्तर : दोनों एक ही गुरू रामानंद के शिष्य होने के कारण गुरूभाई थे।
20. ‘अविगत नाथ’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर : अविगत नाथ का अर्थ है – वह ईश्वर जिसे आज तक कोई समग्र रूप में नहीं जान सका।
21. रैदास ने किसकी मति को चंचल बताया है।
उत्तर : रैदास ने अपनी मति को चंचल बताया है।
22. रैदास के अनुसार भक्ति-मार्ग की सबसे बड़ी बाधा क्या है ?
उत्तर : रैदास के अनुसार भक्ति-मार्ग की सबसे बड़ी बाधा काम, क्रोध, मोह, मद, माया है।
23. रैदास ने किसे सारहीन तथा निरर्थक बताया है ?
उत्तर : रैदास ने अहंकार के भाव को सारहीन तथा निरर्थक बताया है।
24. राम के बिना संसै की गाँठ क्यों नहीं खुलती है ?
उत्तर : राम की कृपा के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती और न ही मनुष्य काम, क्रोध, मोह, मद, माया के बंधन से नहीं छूट सकता है – इसलिए संसै की गाँठ नहीं खुलती है ।
25. संत कवि रैदास को अपने तरने का दृढ़ विश्वास क्यों है?
उत्तर : रैदास के कृष्ण ने अजामिल, गज, गणिका, कुंजर जैसों को तारा इसलिए उन्हें अपने तरने का दृढ़ विश्वास है।
26. आदिकवि किसे कहा गया है ?
उत्तर : वाल्मीकि को आदिकवि कहा गया है।
27. रैदास क्या थे ?
उत्तर : रैदास संतकवि थे।
28. किसके चरण पाताल, सिर आसमान को छूते हैं ?
उत्तर : निर्गुण-निराकार ईश्वर के चरण पाताल तथा सिर आसमान को छूते हैं ।
29. रैदास के ईश्वर का स्वरूप कैसा है ?
उत्तर : रैदास के ईश्वर का स्वरूप निर्गुण निराकार है ।
30. संत रैदास ने किसे मोती और किसे धागा कहा है?
उत्तर : संत रैदास ने ईश्वर को मोती और स्वंय को धागा कहा है।
31. पंच विकार क्या करते हैं?
उत्तर : पंच विकार मिल कर मनुष्य का सर्वस्व लूट लेते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. रैदासजी के अनुसार ईश्वर का निवास है ?
(क) घर में
(ख) मस्जिद में
(ग) घट-घट में
(घ) मंदिर में
उत्तर : (ग) घट-घट में ।
2. रैदास के पिता का नाम क्या था ?
(क) रघुवीर दास
(ख) रग्घु
(ग) जग्गू
(घ) रामदास
उत्तर : (ख) रग्घु ।
3. रैदास की माता का नाम क्या था ?
(क) हुलसी
(ख) तुलसी
(ग) मीरा
(घ) घुरविनिया
उत्तर : (घ) घुरविनिया ।
4. रैदास का जन्म कब हुआ था ?
(क) सन् 1388 में
(ख) सन् 1288 में
(ग) सन् 1188 में
(घ) सन् 1488 में
उत्तर : (क) सन् 1388 में।
5. रैदास किसके गुरुभाई थे ?
(क) रहीम के
(ख) कबीर के
(ग) बिहारी के
(घ) वृंद के
उत्तर : (ख) कबीर के ।
6. रैदास किसके शिष्य थे ?
(क) रामानंद के
(ख) रामानुजाचार्य के
(ग) भगवान राम के
(घ) मीरा के
उत्तर : (क) रामानंद के।
7. रैदास की साहत्यिक भाषा क्या है ?
(क) खड़ी बोली
(ख) अरबी
(ग) अवधी
(घ) ब्रजभाषा
उत्तर : (घ) ब्रजभाषा ।
8. रैदास का पैतृक व्यवसाय क्या था ?
(क) बढईगिरी
(ख) चर्मकार
(ग) लुहार का
(घ) कृषि
उत्तर : (ख) चर्मकार (जूते बनाना) ।
9. रैदास किसके भक्त थे ?
(क) कृष्ण के
(ख) मीरा के
(ग) राम के
(घ) हनुमान के
उत्तर : (क) कृष्ण के ।
10. वेदों की संख्या कितनी है ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर : (ग) चार ।
11. निम्नलिखित में से कौन वेद नहीं है ?
(क) ॠग्वेद
(ख) सामवेद
(ग) अथर्ववेद
(घ) रामायण
उत्तर : (घ) रामायण |
12. निम्नलिखित में से कौन वेद नहीं है?
(क) ॠग्वेद
(ख) अथर्ववेद
(ग) यजुर्वेद
(घ) महाभारत
उत्तर : (घ) महाभारत ।
13. रैदास किस शाखा के कवि थे ?
(क) प्रेमाश्रयी
(ख) ज्ञानाश्रयी
(ग) रीतिबद्ध
(घ) रीतिसिद्ध
उत्तर : (ख) ज्ञानाश्रयी ।
14. रैदास समर्थक थे –
(क) मूर्तिपूजा के
(ख) मंदिर जाने के
(ग) इस्लाम के
(घ) निर्गुण-निराकार ब्रह्म के
उत्तर : (घ) निर्गुण-निराकार ब्रह्म के ।
15. रैदास से कौन अप्रसन्न रहते थे ?
(क) माता-पिता.
(ख) कबीर
(ग) रामानंद
(घ) लोग
उत्तर : (क) माता-पिता ।
16. रैदास किस काल के कवि थे ?
(क) रीतिकाल
(ख) आदिकाल
(ग) भक्तिकाल
(घ) आधुनिककाल
उत्तर : (ग) भक्तिकाल ।
17. रैदास की भाषा क्या है ?
(क) ब्रजभाषा
(ख) अवधी
(ग) सधुक्कड़ी
(घ) खड़ी बोली
उत्तर : (क) ब्रजभाषा ।
18. रैदास जी का अधिकार समय व्यतीत होता था ?
(क) चित्रकारी में
(ख) पर्यटन में
(ग) ईश्वर भजन एवं सत्संग में
(घ) लेखन में
उत्तर : (ग) ईश्वर भजन एवं सत्संग में।
19. निम्नलिखित में से रैदास ने ईश्वर को किसके समान नहीं बताया है ?
(क) मोती
(ख) सागर
(ग) चंदन
(घ) दीपक
उत्तर : (ख) सागर ।
20. निम्नलिखित में से रैदास ने किसके समान अपने को नहीं बताया है ?
(क) धागा
(ख) सोहागा
(ग) बाती
(घ) चंदन
उत्तर : (घ) चंदन ।
21. रैदास किसकी भक्ति करना चाहते हैं ?
(क) राम की
(ख) कृष्ण की
(ग) विष्णु की
(घ) गणेश की
उत्तर : (क) राम की।
22. प्रत्येक व्यक्ति के अंदर किसका निवास है ?
(क) ईश्वर का
(ख) कृष्ण का
(ग) रैदास का
(घ) तुलसीदास का
उत्तर : (क) ईश्वर का ।
23. रैदास ने किसे ‘करुणामैं’ कहा है ?
(क) स्वयं को
(ख) कृष्ण को
(ग) राम को
(घ) ईश्वर को
उत्तर : (ख) कृष्ण को ।
24. ‘अविगत’ कौन है ?
(क) रैदास
(ख) कृष्ण
(ग) ईश्वर
(घ) आत्मा
उत्तर : (ग) ईश्वर ।
25. रैदास ने इस जगत का आधार किसे बताया है ?
(क) कृष्ण को
(ख) राम को
(ग) शेष नाग को
(घ) विष्णु को
उत्तर : (क) कृष्ण को ।
26. रैदास ने हरि-सेवा का कौन-सा मार्ग बताया है ?
(क) ज्ञान
(ख) प्रेम
(ग) सहज समाधि
(घ) बाह्याडंबर
उत्तर : (ग) सहज समाधि ।
27. ‘सुरसरि’ का अर्थ है ?
(क) नदी
(ख) गंगा
(ग) सागर
(घ) सुरसा
उत्तर : (ख) गंगा ।
28. किसके बिना संशय की गांठ नहीं छूटती ?
(क) राम
(ख) ज्ञान
(ग) प्रेम
(घ) भक्ति
उत्तर : (क) राम ।
29. किसके नाखून के पसीने से गंगा प्रवाहित हुई है ?
(क) राम
(ख) कृष्ण
(ग) ईश्वर
(घ) रैदास
उत्तर : (ग) ईश्वर ।
30. शिव, सनक मुनि आदि किसका अंत नहीं पा सके ?
(क) निर्गुण-निराकार ईश्वर
(ख) राम
(ग) कृष्ण
(घ) पृथ्वी
उत्तर : (क) निर्गुण-निराकार ईश्वर ।
31. चारों वेद किसका गुणगान करते हैं ?
(क) राम का
(ख) कृष्ण का
(ग) रैदास का
(घ) निर्गुण, निराकार ईश्वर का
उत्तर : (घ) निर्गुण, निराकार ईश्वर का ।
32. ‘अनभैभाव’ का अर्थ है –
(क) अनुभवहीन
(ख) अनुभव का भाव
(ग) अनगढ़
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर : (ख) अनुभव का भाव ।
33. लोहा किसके स्पर्श से सोने में बदल जाता है ?
(क) पारा
(ख) तांबा
(ग) पारस
(घ) संगमरमर
उत्तर : (ग) पारस ।
34. रैदास ने ‘प्राणधन’ किसे कहा है ?
(क) राम को
(ख) कृष्ण को
(ग) ईश्वर के नाम को
(घ) साँस को
उत्तर : (ग) ईश्वर के नाम को ।
35. निम्नलिखित में से कृष्ण ने किसका उद्धार नहीं किया ?
(क) रावण का
(ख) अजामिल का
(ग) गज का
(घ) गणिका का
उत्तर : (क) रावण का ।
36. रैदास ने ईश्वर और अपनी तुलना निम्न में से किससे नहीं की है ?
(क) फूल-काँटा
(ख) चंदन-पानी
(ग) दीपक-बाती
(घ) मोती-धागा
उत्तर : (क) फूल-काँटा ।
37. किसने ईश्वर को खोजते-खोजते अपना जन्म गंवा दिया ?
(क) शिव
(ख) सनक
(ग) अजामिल
(घ) ब्रह्मा
उत्तर : (घ) ब्रह्मा ।
38. ‘रोमावली अठारह’ का क्या अर्थ है ?
(क) अट्ठारह रोमावली
(ख) अट्ठारह भक्त
(ग) अट्ठारह गुण
(घ) अट्ठराह पुराण
उत्तर : (घ) अट्ठराह पुराण ।
39. रैदास किसे चेत जाने को कहते हैं ?
(क) कवियों को
(ख) भक्तों को
(ग) मन को
(घ) प्राणियों को
उत्तर : (ग) मन को ।
40. ‘षटक्रम’ का अर्थ है।
(क) छ: क्रमांक
(ख) छ: क्रम
(ग) छ: का
(घ) छ: कर्म
उत्तर : (घ) छ: कर्म ।
41. ‘सुरसरि’ का अर्थ है ?
(क) यमुना
(ख) गंगा
(ग) सरस्वती
(घ) नर्मदा
उत्तर : (ख) गंगा ।
42. रैदास के राम कौन हैं ?
(क) दशरथ के पुत्र
(ख) अयोध्या के राजा
(ग) निर्गुण-निराकार ईश्वर
(घ) वनवासी राम
उत्तर : (ग) निर्गुण-निराकार ईश्वर ।
43. पुराणों की संख्या कितनी है ?
(क) पंद्रह
(ख) सोलह
(ग) सत्रह
(घ) अठारह
उत्तर : (घ) अठारह ।
44. रैदास ने प्रभु को किसके समान बताया है ?
(क) धागा
(ख) दास
(ग) घन
(घ) मोर
उत्तर : (ग) घन।
45. रैदास ने प्रभु को निम्न में से किसके समान बताया है ?
(क) धागा
(ख) सोना
(ग) मोर
(घ) घन
उत्तर : (घ) घन।
46. ‘तुम मोती हम धागा’ में मोती कौन है ?
(क) चंदन
(ख) मोर
(ग) चकोर
(घ) प्रभु
उत्तर : (घ) प्रभु।
47. किसकी बास अंग-अंग में समा जाती है?
(क़) चंदन
(ख) प्रभु
(ग) सोहागा
(घ) सोना
उत्तर : (क) चंदन।
48. किसकी मति चंचल है ?
(क) प्रभु
(ख) रैदास
(ग) नरहरि
(घ) चकोर
उत्तर : (ख) रैदास।
49. प्रत्येक घट के अंदर किसका वास है ?
(क) पानी
(ख) प्रभु
(ग) रैदास
(घ) सोना
उत्तर : (ख) प्रभु।
50. गुन सब तोर में ‘तोर’ किसके लिए आया है?
(क) प्रभु
(ख) रैदास
(ग) घट
(घ) प्रीति
उत्तर : (क) प्रभु।
51. ‘अविगत’ से क्या तात्पर्य है ?
(क) जो विगत नहीं है
(ख) ईश्वर
(ग) रैदास
(घ) भक्ति
उत्तर : (ख) ईश्वर।
52. रैदास के लिए एकमात्र आधार क्या है ?
(क) पृथ्वी
(ख) आकाश
(ग) भक्ति
(घ) नरहरि
उत्तर : (घ) नरहरि ।
53. प्रभु ने निम्न में से किसको मोक्ष नहीं दिया ?
(क) अजामिल
(ख) गज
(ग) रैदास
(घ) गणिका
उत्तर : (ग) रैदास।
54. रैदास कैसी भक्ति करते हैं ?
(क) गुरू-शिष्य की
(ख) स्त्री-पुरुष की
(ग) स्वामी-दास की
(घ) नर-नारी की
उत्तर : (ग) स्वामी-दास की।
55. कवि रैदास ने प्रभुजी को चंदन एवं अपने को माना है?
(क) हवा
(ख) पानी
(ग) पर्वत
(घ) बर्फ
उत्तर : (ख) पानी ।
56. ‘प्रभुजी तुम चंदन हम पानी’ में पानी किसे कहा गया है ?
(क) सेवक
(ख) भक्त
(ग) ईश्वर
(घ) दीया
उत्तर : (ख) भक्त ।
57. रैदास किसकी भक्ति करना चाहते हैं ?
(क) राम
(ख) कृष्ण
(ग) विष्णु
(घ) गणेश
उत्तर : (ख) कृष्ण।
58. रैदास ने अपने-आपको किसके समान बताया है ?,
(क) पानी
(ख) चंदन
(ग) दीपक
(घ) सोहागा
उत्तर : (क) पानी ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *