अधिगम की अवधारणा एवं परिभाषा दीजिए एवं अधिगम की मान्यताएँ या धारणाएँ बताइए । Give the concept and definition of learning and explain Assumption of Learning
प्रश्न – अधिगम की अवधारणा एवं परिभाषा दीजिए एवं अधिगम की मान्यताएँ या धारणाएँ बताइए । Give the concept and definition of learning and explain Assumption of Learning.
या
अधिगम की प्रकृति एवं विशेषताएँ बताइए एवं अधिगम के महत्त्व का वर्णन कीजिए | Explain the nature and characteristics of learning and describe the importance of learning.
या
अधिगम क्या है? कक्षा में बेहतर शिक्षण अधिगम के लिए किन कारकों को नियन्त्रित करने की आवश्यकता है? What is Learning? What factors are needed to be controlled while promoting better teaching learning in the class.
या
अधिगम की परिभाषा दीजिए। अधिगम की प्रकृति तथा प्रकारों का वर्णन कीजिए | Define Learning. Discuss the nature and types of Learning.
उत्तर- अधिगम की अवधारणा एवं परिभाषाएँ (Concept and Definitions of Learning)
प्रत्येक व्यक्ति अपनी दैनिक दिनचर्या में कुछ न कुछ नए अनुभव ग्रहण करता है। इन नवग्रहित अनुभवों से उसके व्यवहार में निरन्तर बदलाव आता रहता है। इस प्रकार दैनिक अनुभवों के एकत्रीकरण और उनके उपयोग को सीखना कहते हैं। समायोजन की विभिन्न क्रियाओं फलस्वरूप व्यक्ति के व्यवहार में लगातार संशोधन होता रहता है जिसे मनोविज्ञान की भाषा में सीखना या अधिगम कहा जाता है।
अधिगम की प्रक्रिया सतत् और जीवन पर्यन्त चलती रहती है जो व्यक्ति जितना अधिक सीखता है, उसका विकास भी उतनी ही तेजी से होता है। अधिगम की प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति अनेक क्रियाएँ एवं उपक्रियाएँ करता है। लोगों को अपनी क्षमता की अनुभूति सीखने के द्वारा ही होती है। सीखने की प्रक्रिया निरन्तरता एवं सार्वभौमिकता पर निर्भर करती है। मनोवैज्ञानिक अधिगम को एक मानसिक प्रक्रिया मानते हैं ।
चार्लस ई. स्किनर के अनुसार, “व्यवहार में उत्तरोत्तर अनुकूलन की प्रक्रिया को अधिगम कहा जाता है।”
According to Skinner, “Learning is a process of progressive behaviour adaptation.”
क्रानबेक के अनुसार, “सीखना अनुभव के फलस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन द्वारा व्यक्त होता है।”
According to Kranbek, “Learning is shown by a change in behaviour as a result of experience.”
मर्फी के अनुसार, “अधिगम, व्यवहार एवं दृष्टिकोण दोनों का परिमार्जन है।”
गेट्स एवं अन्यों के अनुसार, “अनुभव और प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में परिवर्तन करना ही अधिगम है।”
According to Gates and others, “Learning is the modification of behaviour through experience and training.”
अधिगम की मान्यताएँ (Assumptions of Learning)
- शिक्षक इसके लिए प्राधिकृत हैं और ये उनका कर्त्तव्य है कि वे छात्रों को जानकारी दें। नियमित अधिगम हेतु प्रतिक्रिया शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- छात्रों को अधिगम हेतु प्रेरित करने के लिए बाह्य दबाव बनाने की आवश्यकता है।
- छात्रों की अधिगम की शैली, अधिगम की प्रक्रिया और ‘जिज्ञासा को विकसित करके उनकी अधिगम क्षमता को सुधारा जा सकता है। उच्च अधिगम संरचना में छात्र तब सबसे अच्छा अधिगम कर सकता है जब वह पुनरावृत्ति एवं अभ्यास पर ध्यान केन्द्रित करे ।
- उन छात्रों को स्वयं के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए जो शिक्षकों के लिए अनुशासन की समस्या उत्पन्न कर देते हैं। छात्रों की अधिगम क्षमता को लिखित परीक्षा के माध्यम से प्रभावी रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है।
- छात्र का अधिगम तब तीव्रता से होता है जब वे अधिगम में स्वयं के स्वामित्व का अनुभव करते हैं। छात्र करके या एक-दूसरे से सीख सकते हैं ।
अधिगम की प्रकृति एवं विशेषताएँ
- सीखना जीवन पर्यन्त प्रक्रिया है ( Learning is a LifeLong Process ) – सीखने की प्रक्रिया जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त चलती है।
- सीखना परिवर्तन है ( Learning is Change ) व्यक्ति स्वयं दूसरों के अनुभवों से सीखकर अपने व्यवहार विचारों, इच्छाओं, एवं भावनाओं आदि में परिवर्तन करता है। गिलफोर्ड के अनुसार, “सीखना, व्यवहार के परिणामस्वरूप व्यवहार में कोई परिवर्तन है।”
- सीखना सार्वभौमिक है (Learning is Universal ) सीखने का गुण कवल मनुष्य में ही नहीं पाया जाता है। वस्तुतः संसार के सभी जीवधारी, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी में भी पाया जाता है।
- सीखना समायोजन है- सीखना, वातावरण से अनुकूलन. करने के लिए आवश्यक है। सीखकर ही व्यक्ति, परिस्थितियों में अपना अनुकूलन कर सकता है। जब वह अपने व्यवहार को नई परिस्थिति एवं वातावरण के अनुकूल बना लेता है, तभी वह कुछ सीख पाता है।
- सीखना विकास है (Learning is Growth) – व्यक्ति अपन दैनिक क्रियाओं और अनुभवों के द्वारा लगातार कुछ न कुछ सीखता है। फलस्वरूप उसका शारीरिक और मानसिक विकास होता है।
- सीखना कुछ नया कार्य करना है (Learning is doing Something New)– वुडवर्थ के अनुसार, सीखना कोई नया कार्य करना है। परन्तु उन्होंने एक शर्त लगा दी, उन्होंने कहा है कि सीखना, नया कार्य करना तभी है, जब यह कार्य पुनः किया जाए और अन्य कार्यों में प्रकट हो ।
- सीखना अनुभवों का संगठन है (Learning is Accumulation of Experiences) — सीखना न तो नए अनुभवों की प्राप्ति है और न ही पुराने अनुभवों का योग वरन् नए और पुराने अनुभवों का संगठन है। जैसे-जैसे व्यक्ति नए अनुभवों द्वारा नई बात सीखता जाता है, वैसे-वैसे वह अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपने अनुभवों को संगठित करता जाता है।
- सीखना उद्देश्यपूर्ण होता है (Learning is Purposive)—सीखना उद्देश्यपूर्ण होता है। उद्देश्य जितना ही अधिक प्रबल होता है, सीखने की क्रिया उतनी ही तीव्र होती है। उद्देश्य के अभाव में सीखना असफल होता है।
- सीखना विवेकपूर्ण होता है (Learning is Rational)— मर्सेल (Mursell) के अनुसार, सीखना, यांत्रिक कार्य नहीं बल्कि विवेकपूर्ण कार्य है। उसी बात को शीघ्रता और सरलता से सीखा जा सकता है, जिसमें बुद्धि या विवेक का प्रयोग किया जाता है। बिना सोचे-समझे किसी भी बात को सीखने में सफलता नहीं मिलती है ।
- सीखना सक्रिय है ( Learning is Active) सक्रिय सीखना ही वास्तविक सीखना है। बालक तभी कुछ सीख सकता है, जब वह स्वयं सीखने की प्रक्रिया में भाग लेता है। यही कारण है कि डॉल्टन विधि, प्रोजेक्ट विधि आदि शिक्षण की प्रगतिशील विधियाँ हैं जो बालक की क्रियाशीलता पर बल देती हैं।
अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक
- वातावरण (Learning Atmosphere) — अधिगम के लिए परिवार, समाज और पाठशाला का उचित वातावरण होना अत्यन्त आवश्यक है। परिवार और स्कूल में बालक के साथ स्नेहपूर्ण और पक्षपातरहित व्यवहार करना चाहिए ताकि उसमें अधिगम के प्रति उत्साह बना रहे । कक्षा में प्रकाश व वायु का अभाव, अत्यधिक शोर तथा अमनोवैज्ञानिक वातावरण से बालक थकान का अनुभव करता है। फलस्वरूप उसके अधिगम में अवधान पैदा हो जाता है। बालकों के प्रति सहयोगात्मक रवैया और उन्हें रुचि प्रदर्शन के उचित अवसर देने चाहिए जिससे कि अधिगम की प्रक्रिया को बल मिल सके।
- शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य (Physical and Mental Health) – शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बालक अध्ययन में अधिक रुचि लेता है। इसके विपरीत जिस बालक में शारीरिक व मानसिक दोष पाये जाते हैं वे असमर्थता के कारण अधिगम प्रक्रिया में जल्दी थकान का अनुभव करने लग जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रभावी एवं शीघ्र अधिगम के लिए स्वास्थ्य का अच्छा होना अति आवश्यक है।
- विषय – सामग्री और उसका स्वरूप (Subject Matter and its Nature) – यदि किसी विषय की अध्ययन सामग्री सरल और रुचिकर होगी तो बालक उसे करेंगे। कठिन एवं अर्थहीन विषय – सामग्री का अधिगम पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अतः आसानी से सीखने के लिए पाठ्यक्रम के निर्माण में सरल से कठिन की ओर सिद्धान्त का पालन करना चाहिए ।
- परिपक्वता (Maturation) – स्लैक्वेडर के अनुसार, “परिपक्वता मूलतः आंतरिक संशोधन की प्रक्रिया है। अधिगम शारीरिक और मानसिक परिपक्वता पर भी निर्भर रहता है। शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व बालक सीखने के लिए सदैव उत्सुक एवं तत्पर रहते हैं। ऐसे बालकों का अधिगम तीव्र होता है। इसके विपरीत शारीरिक और मानसिक रूप से अपरिपक्व बालक में सीखने की क्षमता धीमी होती है। इस प्रकार के बालकों को सीखने के लिए अत्यधिक समय और शक्ति का इस्तेमाल करना पड़ता है फिर भी उपयुक्त परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं। कॉलसेनिक ने बताया कि परिपक्वता एवं अधिगम एक दूसरे पर निर्भर है। अतः इनको अलग करना बहुत ही मुश्किल है।
- अभिप्रेरणा ( Motivation) – अधिगम में प्रेरकों की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। अभिप्रेरणा वह शक्ति है जो व्यक्ति को अपने उद्देश्य तक ले जाती है। अभिप्रेरणा सीखने की प्रक्रिया को आसान बनाती है। प्रेरणा शक्तिशाली हो तो बालक अध्ययन में रुचि अवश्य लेते हैं। नवीन जानकारी को स्थायी तौर पर ग्रहण करने के लिए अध्यापक को शिक्षण प्रक्रिया में बालकों की प्रशंसा करके उन्हें अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ।
- सीखने की विधि (Method of Learning ) – शैक्षिक प्रक्रिया में प्रयुक्त अध्ययन विधि और अधिगम में भी सीधा सम्बन्ध पाया जाता है। सीखने की विधि अनुकूल और रुचिकर होगी तो सीखना अधिक सरल होगा। अध्यापक को प्रभावी अधिगम के लिए परम्परागत विधियों की अपेक्षा मनोवैज्ञानिक विधियों का सहारा लेना चाहिए। प्रारम्भिक कक्षाओं के लिए खेल विधि और उच्चतर कक्षाओं के लिए योजना व सामूहिक विधि अधिक उपयोगी साबित हो सकती है ।
- अधिगम का समय एवं थकान ( Time of Learning and Fatigue) – सीखने के समय पर भी अधिगम ग्रहणता निर्भर करती है। प्रातःकाल के समय बालक में स्फूर्ति रहती है। अतः अधिगम सरल व शीघ्र होता है। जैसे-जैसे दिन बढ़ता है वह थकान का अनुभव करने लगता है। फलस्वरूप सीखने की क्रिया मंद होने लगती है।
- अध्यापक की भूमिका (Role of Teacher)- अधिगम प्रक्रिया में अध्यापक का स्थान सर्वोपरि होता है। वह अपने अर्जित ज्ञान एवं अनुभवों से बालक को अध्ययन के लिए निरन्तर क्रियाशील रख सकता है। अध्यापक की योग्यता, व्यक्तित्व व आचरण आदि अधिगम को प्रभावित करते हैं । योग्य, गुणवान और प्रभावशाली अध्यापक की कक्षा में छात्र रुचि दिखाते हैं। इस प्रकार अध्यापक का शैक्षणिक स्तर जितना अच्छा होगा अधिगम उतना ही सरल होगा।
- सीखने की इच्छा (Willingness to Learning) – सीखने की इच्छा रखना अधिगम का एक अनिवार्य घटक है। यदि बालक सीखने की प्रक्रिया में क्रियाशील रहता है तो अधिगम प्रभावी होता है। अध्यापक को शिक्षण प्रक्रिया के दौरान बालक की इच्छा शक्ति को बढ़ाते हुए पाठ के विकास में छात्र का सहयोग लेना चाहिए ताकि वह क्रियाशील बना रहे। अपने शैक्षिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अध्यापक को छात्र में रुचि एवं जिज्ञासा को जाग्रत करते रहना चाहिए।
अधिगम का महत्त्व (Importance of Learning)
- अधिगम हमें जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को समझने में सहायता करता है तथा उन्हें प्राप्त करने एवं पूरा करने में सहायता करता है। जिस प्रकार एक शेर को शिकार करने के लिए तेज, फुर्तीला होना चाहिए अन्यथा वह जीवित नहीं रह पाएंगे। इसी प्रकार एक व्यक्ति को जीवन भर चम्मच से खिलाया नही जा सकता। जैसे-जैसे वह बढ़ता है वह स्वयं खाना सीख लेता है तथा तब वह स्वयं भोजन प्राप्त करने के तरीके भी सीख लेता है ।
- अधिगम नए वातावरण में सामंजस्य स्थापित करने में सहायक होता है। प्रायः नए वातावरण के परिवर्तनों से अनुकूलन करने हेतु उसकी जीवनशैली का अनुकूलन करते हैं। न केवल तापमान या परिस्थितियाँ बल्कि हमें प्रतिदिन नए लोग, स्थान, नौकरियों एवं सम्बन्धों हेतु स्वयं को अनुकूल करना पड़ता है जिसमें अधिगम हमारी सहायता करता है ।
- अधिगम हमें विभिन्न परिस्थितियों एवं खतरों की प्रतिक्रिया या उत्तर देने में सहायता करता है। अधिगम के बिना सामान्य जीवन अस्तित्व असम्भव है।
- अधिगम व्यक्ति को कार्य कुशल बनाता है तथा उच्च स्थिति प्राप्त करने में सहायता करता है।
- अधिगम व्यक्ति को किसी भी विषय का गहन अध्ययन प्रदान करता है जो किताबी ज्ञान द्वारा नहीं दिया जा सकता है।
- सम्पूर्णता में अधिगम व्यक्ति की योग्यता एवं प्रवृत्ति का निर्धारण करता है जो उसके जीवन में प्राप्त होने वाली सफलता का निर्धारण होता है। व्यक्ति के प्रतिदिन की सामग्री व्यक्ति अवधारणाओं के अधिगम में सहायक होता है। अर्थात जीतने वाले कुछ अलग नहीं करते वे सिर्फ उसी काम को अलग तरीके से करते हैं ।
