अध्ययन विषयों के आधुनिक पक्षों से आप क्या समझते हैं? अध्ययन विषयों के आधुनिक पक्षों का कार्यक्षेत्र एवं आधार बताइए।
श्रीमती आर. के. शर्मा के अनुसार, अध्ययन विषयों के आधुनिक पक्षों का आशय उस शिक्षण नीति से है जो कि बालकों के सर्वांगीण विकास, सृजनात्मक चिन्तन एवं नवाचारों से सम्बन्धित होती है तथा भविष्यगत् समस्याओं के समाधान हेतु कौशलों का विकास करती है।”
प्रो. एस. के. दुबे के शब्दों में अध्ययन विषयों के आधुनिक पक्षों का आशय उस व्यवस्था से है जो वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए भविष्यगत समस्याओं के समाधान का कौशल विकसित करें तथा क्रान्तिकारी परिवर्तन की क्षमता विकसित करे।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि अध्ययन विषयों के आधुनिक पक्ष वर्तमान आवश्यकताओं के साथ-साथ भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं तथा मानव के भविष्य को सुरक्षित करते हैं। अभिभावक विद्यालय में छात्र को इसलिए भेजते हैं ताकि उसका भविष्य सुरक्षित रहे। इसलिए विद्यालय में शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत उन सभी माँगों की पूर्ति का प्रयास करना चाहिए जो भविष्य से सम्बन्धित हैं, जैसे- वर्तमान समय में पर्यावरणीय शिक्षा भविष्य एवं वर्तमान दोनों की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है तथा पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान की योग्यता छात्रों में विकसित करती है।
- सामाजिक विकास के लिए विषयों के आधुनिक पक्षों के अन्तर्गत किसी भी रूढ़िवादी परम्परा एवं सामाजिक बुराइयों को धीरे-धीरे समाज से समाप्त किया जाता है तथा नवीन विचारों का समावेश किया जाता है जिससे सामाजिक विकास की प्रक्रिया अनवरत रूप से चलती रहे । जैसे- समाज में बाल विवाह, दहेज प्रथा एवं लिंग भेद सम्बन्धी समस्याओं को धीरे-धीरे समाप्त करते हुए आधुनिक विचारधारा का समावेश किया गया है।
- राजनैतिक विकास के लिए – प्रजातान्त्रिक मूल्यों की स्थापना एवं प्रजातान्त्रिक सरकार का गठन भी विषयों के आधुनिक पक्षो द्वारा ही सम्भव होता है। वर्तमान समय में सुधारवादी एवं विकासवादी लहर से राजनीतिक व्यवस्था भी पृथक नहीं है। सामान्यतः सम्पूर्ण विश्व में तानाशाही एवं राजतन्त्र की लगभग समाप्ति हो चुकी है क्योंकि प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में जब शिक्षित व्यक्ति पहुँचते हैं तो उसमें उदारवादिता आ जाती है।
- आर्थिक विकास के लिए विषयों के आधुनिक पक्षों में सन्तुलित आर्थिक विकास की अवधारणा छिपी है। इसमें सामान्य रूप से औद्योगिक विकास की गति को समाज की आवश्यकता के अनुरूप किया जाता है। अत्यधिक औद्योगिक विकास मानवीय हितों के लिए तथा पर्यावरणीय संरक्षण के लिए हानिकारक होता है। आर्थिक विकास की गति को सन्तुलित बनाने में शिक्षा की ही भूमिका होती है तथा आर्थिक विसंगतियों को भी विषयों के आधुनिक पक्षों के द्वारा दूर किया जा सकता है।
- पोषणीय विकास के लिए-पोषणीय विकास के लिए भी विषयों के आधुनिक पक्षों की आवश्यकता होती है। इसमें प्रत्येक संसाधन का उपयोग करते समय यह ध्यान रखा जाता है कि इस संसाधन की उपलब्धता भविष्य में भी बनी रहे। प्राकृतिक संसाधनों के सन्दर्भ में यह शिक्षा पूर्णतः प्रभावी रूप से लागू होती है।
- सांस्कृतिक विकास के लिए सांस्कृतिक विकास का तत्त्व शिक्षा व्यवस्था में मूल्य एवं आदर्शों की भावना इसलिए समाहित होती है क्योंकि भारतीय संस्कृति के प्रमुख स्तम्भ आदर्श एवं मूल्यों को ही माना जाता है। प्रत्येक के महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी तत्त्वों का संकलन कर एक वैश्विक संस्कृति के विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
- व्यावसायिक एवं तकनीकी विकास के लिए विषयों के आधुनिक पक्षों में सदैव नवीन तकनीकी एवं नवाचार का स्वागत किया जाता है। इससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया एव शिक्षा व्यवस्था में शैक्षिक तकनीकी का व्यापक रूप से प्रयोग होता है। इसके साथ ही सामान्य शिक्षा के साथ-साथ छात्रों को व्यवसाय विशेष के लिए भी तैयार किया जाता है। इस आधार पर छात्र अपने जीवन में उस व्यवसाय को चुनने का कार्य करता है जो उसकी योग्यता . एवं क्षमता के अनुसार होता है। इस प्रकार अनुशासन के आधुनिक पक्ष व्यावसायिक एवं तकनीकी विकास के लिए उचित निर्देशन एवं परामर्श का मार्ग प्रशस्त करती है।
- मानवीय मूल्य एवं सार्वजनिक हित का विकास – विषयों के आधुनिक । पक्षों का प्रमुख उद्देश्य मानवीय मूल्यों एवं सार्वजनिक हित का विकास करना है क्योंकि अनेक अवसरों पर देखा जाता है कि शिक्षित व्यक्ति का आचरण भी अमानवीय एवं अमर्यादित होता है इसलिए छात्रों का दृष्टिकोण व्यापक बनाने के साथ-साथ वर्तमान एवं भविष्य दोनों आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। मानवीय मूल्यों के गिरते हुए स्तर एवं स्वार्थवादिता को दूर करने के लिए वर्तमान में किए गए प्रयास ही भविष्य में अपना प्रभाव दिखाते हैं। इस प्रकार सार्वजनिक हित का विकास सम्भव हो पाता है।
- सर्वांगीण विकास के लिए विषयों के आधुनिक पक्षों में छात्रों के वर्तमान विकास के साथ-साथ उनके भावी विकास पर भी ध्यान दिया जाता है। छात्रों को शारीरिक शिक्षा इसलिए प्रदान की जाती है ताकि वह शारीरिक रूप से स्वस्थ रहें तथा मानसिक विकास की ओर अग्रसर हो। इस आधार पर छात्र अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफल होते हैं तथा उसके सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त होता है।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि विषयों के आधुनिक पक्ष वर्तमान एवं भविष्य दोनों के लिए आवश्यक हैं जो शिक्षा वर्तमान में सुधार करती है उसका प्रभाव भविष्य पर अनिवार्य रूप से पड़ता है। वास्तविक रूप से विषयों के आधुनिक पक्ष दूरगामी सोच एवं परिणामों के बारे में विचार करते हैं और हमारे सर्वांगीण विकास का आधार होते हैं।
- पर्यावरणीय क्षेत्र – विषयों के आधुनिक पक्षों में यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रत्येक नागरिक का यह दायित्व है कि वह वर्तमान एवं भविष्यगत आवश्यकताओं के मध्य समन्वयन स्थापित करते हुए विवेकपूर्ण ढंग से पर्यावरणीय साधनों का उपयोग तथा पोषण करें जिससे पर्यावरणीय संसाधन अनवरत रूप से मानव समाज की आवश्यकता पूर्ति के लिए उपलब्ध रहें ।
- वैज्ञानिक क्षेत्र विषयों के आधुनिक पक्षों में विज्ञान शिक्षा का व्यापक प्रभाव देखा जा सकता है। विज्ञान शिक्षा के विकास के साथ मानवीय मूल्यों के विकास पर भी ध्यान दिया जाता है क्योंकि किसी भी अनुसन्धान या प्रयोग के लिए विवेक की आवश्यकता होती है। विषयों के आधुनिक पक्षों द्वारा विज्ञान शिक्षा का उपयोग मानव हित में करने के सम्पूर्ण प्रयास किए जाते हैं न कि जनसंहारक हथियारों के विकास और निर्माण में।
- पोषणीय विकास के क्षेत्र में विषयों के आधुनिक पक्षों में इस तथ्य का समावेश किया जाता है कि मानव अपने हित के साथ-साथ सार्वजनिक हित के बारे में विवेकपूर्ण निर्णय लें। जैसे-व्यक्तिगत विकास के स्थान पर वह सार्वजनिक हित को महत्त्व दें। प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करते समय वह इस तथ्य पर ध्यान दें कि आने वाली पीढ़ी के लिए इन साधनों की उपलब्धता बनी रहे।
- सामाजिक क्षेत्र विषयों के आधुनिक पक्षों द्वारा वर्तमान समय में सुधारात्मक गतिविधियों को क्रियान्वित किया जाता है जिससे भविष्य में एक सुदृढ़ एवं उपयोगी समाज की नींव तैयार की जा सके। समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं रूढ़िवादियों को अनुशासन के आधुनिक पक्षा द्वारा समाप्त किया जा सकता है तथा समाज में परिवर्तन लाए जा सकते हैं। जाति-पाति, ऊँच-नीव एवं धार्मिक विभेदों को समाप्त करने में भविष्योन्मुखी शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
- राजनैतिक क्षेत्र राजनीतिक क्षेत्र को विषयों के आधुनिक पक्षों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया जाता है। वर्तमान समय में प्रजातान्त्रिक व्यवस्था का उददेश्य मानव को विकास के समान अवसर विचार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता तथा भविष्यगत सुरक्षा प्रदान करना है। विषयों के आधुनिक पक्ष राजनीतिक क्षेत्र में भी उदारवादी एवं पारदर्शी व्यवस्था को क्रियान्वित करने में सहायता करते हैं। आज राजनैतिक व्यवस्था में मानव अधिकार, मूल अधिकार एवं बाल अधिकार की व्यवस्था विषयों के आधुनिक पक्षों का ही परिणाम है।
- आर्थिक क्षेत्र आर्थिक विसंगतियों को दूर करने तथा धन के समान वितरण की व्यवस्था विषयों के आधुनिक पक्षों द्वारा ही सम्भव है। इसमें औद्योगिक विकास को सन्तुलित रूप में स्वीकार किया जाता है। प्रत्येक उत्पादन क्षमता या कार्य को स्वहित से जोड़ने का प्रयास न करके वरन् उसको सार्वजनिक हित से जोड़ा जाता है।
- आध्यात्मिक क्षेत्र आध्यात्मिक क्षेत्र को भी विषयों के आधुनिक पक्षों को प्रमुख माना जाता है। अनुशासन के आधुनिक पक्षों द्वारा मानव को आत्मज्ञान एवं जीवन के आदर्शवादी मूल्यों का ज्ञान प्रदान किया जाता है जिससे मानव में त्याग एवं प्रेम की भावना का विकास हो सके। त्याग एवं प्रेम के अभाव में मानव स्वार्थी हो जाता है। इस प्रकार विषयों के आधुनिक पक्षों द्वारा मानव मूल्यों का विकास करके उसको भविष्य की हानियों से बचाया जाता है।
- सृजनात्मक चिन्तन-सृजनात्मक चिन्तन को विषयों के आधुनिक पक्षों का प्रमुख आधार माना जाता है क्योंकि सृजनात्मक चिन्तन में किसी व्यवस्था के प्रति विचार एवं क्रियाओं का सृजन होता है। जब तक शैक्षिक व्यवस्था के सन्दर्भ में सृजनात्मक चिन्तन नहीं किया जाएगा तो उस शिक्षा व्यवस्था में सुधारात्मक परिवर्तन की कोई आवश्यकता अनुभव नहीं की जाएगी। जब उस व्यवस्था पर सृजनात्मक रूप से विचार-विमर्श होगा तो उसमें विभिन्न प्रकार के सुधार वर्तमान एवं भविष्यगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किए जाएंगे।
- अनुसंधानों को स्थान विषयों के आधुनिक पक्षों में अनुसंधानों के परिणामों को व्यापक रूप से महत्त्व दिया जाता है क्योंकि भविष्यगत योजनाओं की सफलता के लिए वर्तमान व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता होती हैं, जैसे- वर्तमान समय में शिक्षा व्यवस्था शिक्षक केन्द्रित न होकर बालकेन्द्रित हो गई है। अनेक अनुसंधानों ने यह सिद्ध कर दिया है कि बालकेन्द्रित शिक्षा से ही सार्वभौमिक शिक्षा एवं अनिवार्य शिक्षा के भविष्यगत लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
- पाठ्यक्रम निर्माण- यदि हमको भविष्यगत उद्देश्यों की प्राप्ति करनी है तथा छात्रों को भविष्य के प्रति जागरुक बनाना है तो पाठ्यक्रम में परिवर्तन करना आवश्यक है। पाठ्यक्रम में उन सभी तत्त्वों का समावेश होना चाहिए जो कि भविष्यगत आवश्यकताओं एवं वर्तमान आवश्यकताओं में समन्वयन स्थापित कर सके, जैसे- जब हम यह अपेक्षा करते हैं कि बालक भविष्य में एक बेहतर खिलाड़ी बनें तो हमें पाठ्यक्रम में खेलों से सम्बन्धित सामग्री को समावेश करना होगा। इस प्रकार विषयों के आधुनिक पक्षों का एक प्रमुख आधार पाठ्यक्रम होता है जिसके द्वारा भविष्यगत उद्देश्यों की पूर्ति सम्भव होती है।
- शिक्षण विधियों का निर्धारण-शिक्षण विधियों का परम्परागत रूप जब शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाने में सक्षम नहीं होता है तो नवीन शिक्षण विधियों को स्थान दिया जाता है जिससे वर्तमान शिक्षण अधिगम प्रक्रिया से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान हो सके तथा भविष्य में आने वाली समस्याओं से बचा जा सके। विकास की प्रक्रिया में नवीन तथ्य स्थान प्राप्त करते हैं तथा परम्परागत तथ्यों / वस्तुओं को हटाया जाता है। जैसे- शिक्षक केन्द्रित शिक्षा प्रणाली से बालकेन्द्रित शिक्षा व्यवस्था ।
- मस्तिष्क उद्वेलन-मस्तिष्क उद्वेलन की प्रक्रिया को विषयों के आधुनिक पक्षों का प्रमुख आधार माना जाता है। जब हम किसी कार्य को सम्पन्न करने की प्रक्रिया को परम्परागत रूप से स्वीकार करते हैं तो उसमें न तो मस्तिष्क उद्वेलन सम्भव होता है और न ही भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विचारों का उदय होता है। इसके विपरीत जब एक कार्य को करने की विविध विधियों तथा उपायों पर विचार किया जाता है तो निश्चित रूप से उस प्रक्रिया को सम्पन्न करने की सर्वोत्तम विधि प्राप्त होती है जो हमारी भविष्यगत एवं वर्तमान दोनों ही आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। इसके द्वारा विषयों के आधुनिक पक्षों का उदय होता है तथा यह प्रक्रिया मस्तिष्क उद्वेलन के रूप में जानी जाती है।
- पोषणीयता – विषयों के आधुनिक पक्षों का प्रमुख आधार पोषणीयता है क्योंकि जब हम अपने हित के साथ-साथ सार्वजनिक हित के बारे में विवेक से निर्णय ले तो हमारा यह कदम पोषणीयता के अन्तर्गत आता है। प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करते समय इस तथ्य पर ध्यान दे कि आने वाली पीढ़ी के लिए इन साधनों की उपलब्धता बनी रहे। इसलिए प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग एवं संरक्षण पर विवेकपूर्ण निर्णय लिया जाए। इस प्रकार के पोषणीय विकास की स्थिति मानवीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विषयों के आधुनिक पक्षों द्वारा उत्पन्न की जाती है।
