अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से क्या अभिप्राय है? अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना की प्राप्ति के लिए शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षा विधियों में क्या परिवर्तन करने चाहिए, उनकी व्याख्या करो ।
उत्तर- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना विश्वबन्धुत्व एवं विश्व – मैत्री (भाईचारे) जैसी महान एवं श्रेष्ठतम् भावनाओं पर आधारित हैं। मानव मात्र का कल्याण (हित) हो, प्राणी मात्र पर समान दृष्टि रहे, विश्वभर में राष्ट्रों की पारस्परिक भिन्नता, उनमें आपसी भाईचारे का सम्बन्ध हो एवं समस्त धरती ही एक कुटुम्ब के समान प्रतीत हो। अन्तर्राष्ट्रीयता इन्हीं श्रेष्ठतम् विचारों पर आश्रित है। महात्मा गाँधी द्वारा दिए गए अहिंसा और विश्व – मैत्री के अमर सन्देश, ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ एवं आत्मभव सर्वभूतेषु’ हमें अन्तर्राष्ट्रीयता (अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना ) का पाठ सिखाते हैं।
डॉ. वाल्टर एच. सी. लेव्ज के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीय भावना इस ओर ध्यान दिए बिना कि व्यक्ति किस राष्ट्रीयता या संस्कृति के हैं; एक-दूसरे के प्रति सब जगह उनके व्यवहार का आलोचनात्मक और निष्पक्ष रूप से निरीक्षण करने और आँकने की योग्यता है।”
- सामान्य उद्देश्य ( General Objectives) – अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिए शिक्षा के सामान्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- बालकों को विश्व – नागरिकता के लिए तैयार किया जाए ।
- उनमें (बालक) स्वतन्त्र विचार, निर्णय, भाषण और लेखन की योग्यता का विकास किया जाए।
- उन्हें विश्व समाज के निर्माण में सहायक मूल्यों, आदर्शों एवं उद्देश्यों में विश्वास (आस्था) रखने की शिक्षा दी जाए।
- उनको अन्धी तथा संकुचित राष्ट्रीयता का खण्डन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
- उन्हें विश्व की समस्याओं से परिचित कराया जाए तथा उनका समाधान करने के लिए लोकतन्त्रीय तरीकों को समझाया तथा बताया जाए।
- उन्हें उन सभी तत्त्वों ( सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक तत्त्व ) की सम्पूर्ण जानकारी प्रदान की जाए जिनके कारण सभी राष्ट्र एक दूसरे पर आश्रित हैं।
- उनको सांस्कृतिक विभिन्नताओं में मानवहित के लिए कल्याणकारी समान तत्त्वों को ढूंढने का प्रशिक्षण दिया जाए।
- मानव संस्कृति एवं विश्व – नागरिकता की उन्नति के लिए उन्हें सभी राष्ट्रों की उपलब्धियों का मूल्यांकन और आदर करना सिखाया जाए।
- यूनेस्को द्वारा प्रतिपादित उद्देश्य (Objectives Given by UNESCO)
- विश्व – संस्कृति तथा विश्व – नागरिकता के विकास के लिए सभी देशों की उपलब्धियों का मूल्यांकन तथा आदर करना सिखाया जाए।
- उन्हें विश्व में एक साथ मिलजुलकर रहने के लिए आवश्यक बातों का ज्ञान कराया जाए।
- उन्हें राष्ट्र के सभी व्यक्तियों के रहन-सहन के ढ़ंगों, मूल्यों तथा आकांक्षाओं से अवगत कराया जाए।
- छात्र को सांस्कृतिक विभिन्नताओं में मानवहित के लिए कल्याणकारी समान तत्त्वों को खोजने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ।
- उन सभी स्थानों के व्यक्तियों का एक-दूसरे के प्रति व्यवहार का आलोचनात्मक निरीक्षण करने का प्रशिक्षण दिया जाए ।
- बालकों को स्वयं के सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय पक्षपातों को महत्त्व न देने की शिक्षा प्रदान की जाए।
- बालकों तथा बालिकाओं को समाज के निर्माण में सक्रिय भाग लेने के लिए तत्पर किया जाए।
- उनमें सभी राष्ट्रीयताओं, संस्कृतियों और प्रजातियों के व्यक्तियों को समान समझने की भावना जाग्रत की जाए।
- विश्व शान्ति के प्रति प्रेम (Love for World Peace ) – शिक्षा का अन्तर्राष्ट्रीय उद्देश्य छात्रों के अन्दर अन्तर्राष्ट्रीय समझ व सद्भाव का विकास कर सकें। विश्व को युद्ध, अशान्ति व अराजकता की परिस्थितियों से बचाना व देश में सुव्यवस्था बनाए रखना भी शिक्षा का एक दायित्व है ।
- संकीर्ण राष्ट्रीयता से बाहर निकलना (Rising Above the Narrow-Minded Nationalism) – शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य बालक को राष्ट्रीयता की भावना से ऊपर उठाकर विश्व – बन्धुत्व की भावना का विकास करना है। जिस प्रकार राष्ट्रीयता की भावना के विकास के लिए अपने निजी स्वार्थों को त्यागना आवश्यक है उसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए बालक का संकीर्ण राष्ट्रीयता की सीमा से बाहर निकलना आवश्यक है और यह कार्य शिक्षा के द्वारा ही सम्भव है।
- विश्व नागरिकता की भावना उत्पन्न करना (To Create a Cosmopolitan Citizenship) – शिक्षा का एक अन्तर्राष्ट्रीय कार्य बालको में विश्व नागरिकता की भावना का विकास करना है। भारतीय संस्कृति की परम्परा रही है कि सभी धर्मों, देशों तथा सम्पूर्ण विश्व के प्रति समभाव और एक-दूसरे से निकटता के सम्बन्ध स्थापित करना । भारतीय प्राचीन ग्रन्थों में लिखा भी है— “वसुधैव कुटुम्बकम्” अर्थात् सम्पूर्ण विश्व हमारे घर के समान है, छात्रों के मस्तिष्क में इस भावना का विकास शिक्षा के द्वारा ही सम्भव है ।
- स्वतन्त्र चिन्तन का विकास (Development of Free Thinking)–बालक को अपने जीवन को सुविधापूर्वक व्यतीत करने के लिए स्वतन्त्र विचारों का होना आवश्यक · है। विश्व के परिप्रेक्ष्य में तो यह और भी आवश्यक हो जाता है क्योंकि स्वतन्त्र चिन्तन करने वाला व्यक्ति ही सही-गलत पर अपने विचार प्रस्तुत कर सकता है तथा अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को समझने व उसका समाधान निकालने में अपना योगदान दे सकता है। शिक्षा की व्यक्ति या बालक में स्वतन्त्र चिन्तन का विकास करती है ।
- विश्व की विभिन्न संस्कृतियों का तुलनात्मक अध्ययन (Comparative Study about the Different Cultures of World) – विश्व में अनेक संस्कृतियों के लोग निवास करते हैं और प्रत्येक संस्कृति एक-दूसरे से भिन्न होती है। शिक्षा का यह कार्य है कि वह विश्व की विभिन्न संस्कृतियों के प्रति बालकों में सम्मान भाव उत्पन्न करे और उनका तुलनात्मक ज्ञान छात्रों को प्रदान कराए जिससे प्रत्येक छात्र में सिर्फ अपनी संस्कृति के प्रति प्रेम व आदर का भाव उत्पन्न न हो वरन् अन्य संस्कृतियों के प्रति भी प्रेम व आदर की भावना व्यक्त हो सकें।
- मानव जाति मूल्य एक है- सम्पूर्ण मानव जाति एक है तथा विश्व एक इकाई है । यद्यपि रूप, रंग, जाति, धर्म एवं ढंग आदि के रूप में विश्व के सभी देश एक-दूसरे से भिन्न हैं परन्तु फिर भी सबकी मानवीय आत्मा एक है। जैसेउदारता एवं सहानुभूति आदि गुण मात्र भारतीयों के ही नहीं हैं अपितु सम्पूर्ण विश्व के लोगों के हैं। अतः शिक्षा के माध्यम से बालकों को इन गुणों की प्राप्ति के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इससे उनमें अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास हो पाएगा तथा वे समस्त मानव जाति के प्रति प्रेम एवं सहानुभूति रखना सीख जायेंगे।
- मात्र राष्ट्रीयता से मानव कल्याण असम्भव – बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में दो महायुद्ध राष्ट्रीयता की भावना के ही परिणाम है। इन युद्धों के परिणामों से भी हम भली-भाँति परिचित हैं। इसमें सामाजिक क्रूरता, अत्याचार, मौलिक, मानवीय और राजनीतिक अधिकारों का हनन एवं धार्मिक स्वतन्त्रता का अत्यधिक विनाश हुआ। अतः ऐसा भविष्य में दोबारा न होने पर इसके लिए बालक एवं सम्पूर्ण मानव जाति में राष्ट्रीय सद्भावना के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास को महत्त्व दिया जाए।
- वैज्ञानिक तकनीक का विकास – वर्तमान समय में विज्ञान के विकास एवं आविष्कारों ने विश्व के भिन्न-भिन्न देशों की पृथकता का अन्त कर दिया है। यातायात के साधनों, तार, रेडियो, टेलीविजन एवं फोन आदि के आविष्कारों के कारण संसार के विभिन्न देश एक-दूसरे के निकट आ गये हैं।
- राष्ट्रों की पारस्परिक निर्भरता – वर्तमान समय में राष्ट्रीयता का युग समाप्त हो गया है। आज विश्व अति तीव्रता से गतिशील है। वह देश जो जरा सा भी आलस्य करेगा, वह अन्य देशों की तुलना में पिछड़ जाएगा। अतः अब एक देश दूसरे देश के प्रति पूर्ण उदासीन नहीं रह सकता है। चूँकि अब कोई भी राष्ट्र या देश अपने आप में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर नहीं है। अतः एक की उन्नति दूसरे पर निर्भर है। इस प्रकार अब हमें अन्तर्राष्ट्रीयता के दृष्टिकोण को अपनाना ही चाहिए तथा इस कार्य के लिए एक ऐसी शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए जो अन्तर्राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में सहायक सिद्ध हो ।
- सामाजिक विज्ञान के शिक्षण में विश्व के सभी मुख्य अंगो के अध्ययन पर ध्यान दिया जाए। सामाजिक विज्ञान के शिक्षण में उपयुक्त एवं आवश्यक तथ्यों (बातों) को प्रस्तुत किया जाए। इसके अतिरिक्त आवश्यक मनोवृत्तियों तथा कौशलों के विकास पर ध्यान केन्द्रित किया जाए।
- सामाजिक विज्ञान सिद्धान्त के शिक्षण के समय विभिन्न मानव समुदायों के पारस्परिक सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों पर बल दिया जाए। सामाजिक विज्ञान के शिक्षण की अवधि में प्रजाति, धर्म एवं संस्कृति के कारण आर्थिक एवं शैक्षणिक स्तर पर जो भेद-भाव माना जाता है, उसे दूर करने का प्रयास किया जाए।
- सामाजिक विज्ञान के अध्ययन में नागरिकता की शिक्षा देने हेतु कक्षा, स्कूल तथा समाज को प्रयोगशाला के रूप में प्रयोग करने का प्रयास किया जाए ।
- आवश्यक ‘मानव-सम्बन्धों’ का विकास करने के लिए सामाजिक विज्ञान के अध्ययन में मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के विषय में अध्ययन किया जाए ।
- सामाजिक विज्ञान के अध्ययन में बालकों में आलोचनात्मक तर्क – शक्ति का विकास किया जाए।
विश्व के भूगोल के अध्ययन पर विशेष ध्यान दिया जाए तथा राष्ट्र की प्राकृतिक सम्पत्ति की ओर केवल संकेत किया जाए।
- सामाजिक विज्ञान के अध्ययन में सामाजिक घटनाओं, संघर्षो एवं सहकारिता से सम्बन्ध रखने वाली समस्या पर विचार आवश्यक रूप से किया जाए।
- वर्तमान में संसार की किसी भी समस्या के किसी भी अंग में रुचि लेने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित किया जाए ।
- मानवता में एक-दूसरे के प्रति विश्वास उत्पन्न किया जाए तथा उसे यह बताया जाए कि विश्वभर के नागरिक उसके लिए है अतः उसे उनके प्रति सद्भावना रखनी चाहिए ।
- राष्ट्रों के परस्पर तनाव, संघर्ष तथा भय को कम करते हुए पूर्णतया समाप्त करना चाहिए ।
- छात्रों को विभिन्न विषयों को पढ़ाते समय हमें उन स्थलों पर जोर देना चाहिए जो अन्तर्राष्ट्रीय भावना के पोषक हैं।
- राष्ट्रों का वर्गभेद अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना के विकास में बाधक होता है। अतैव आवश्यक है कि इस वर्ग-भेद को समाप्त कर दिया जाए जो कि शिक्षा द्वारा सम्भव है ।
- मानव की पारस्परिक निर्भरता को शिक्षा के द्वारा स्पष्ट करना चाहिए । बालकों को इस बात का ज्ञान हो जाने पर उनके हृदय में दूसरे देशों के प्रति अनुराग तथा आदर के भाव उत्पन्न हो जाएँगे। छात्रों में शिक्षा के माध्यम से धैर्य एवं आत्मविश्वास जैसे गुण उत्पन्न किए जाएं। इस प्रकार से वे संकुचित दृष्टिकोण से ऊपर उठ सकेंगे।
- शिक्षा द्वारा संकुचित राष्ट्रीयता ( नागरिकता) की भावना भरने के स्थान पर व्यापक विश्व – नागरिकता की भावना का विकास करना चाहिए।
- यह जानने के लिए कि पृथ्वी मनुष्य और अन्य जीवित चीजों का घर है।
- दुनिया के बारे में ज्ञान प्राप्त करने के लिए हम रहते हैं।
- दुनिया के परस्पर निर्भरता की बेहतर समझ को बढ़ावा देने के तरीके सीखने के लिए। दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों के प्रति सम्मान पैदा करना |
- सहयोग के साथ विवादों को प्रतिस्थापित करने के लिए मानव जाति की शक्ति के बारे में कुछ जानना ।
- एक इच्छा और सरल कौशल विकसित करने के लिए |
- दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों का ज्ञान।
- साहित्य – यूनेस्को के प्रकाशन में कहा गया है, “डिकेंस, गोरकी, टॉल्स्टॉय, टैगोर और इस्बेन जैसे लेखकों के कार्यों से निष्कर्षों का उपयोग सामाजिक प्रगति में चरणों को दर्शाने के लिए किया जा सकता है। इसलिए अन्य देशों के साहित्य के सर्वोत्तम पाठ्यक्रम को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए ।
- कला – पाठ्यक्रम पाठ्यक्रम में सही कला शामिल की जानी चाहिए। मानव भावनाओं का असली बलात्कार चित्रित किया जाना चाहिए और कला में दिखाया जाना चाहिए। यह कला में शामिल सौंदर्य है जो महत्त्वपूर्ण है।
- भाषा- यह दुनिया के लोगों के शांतिपूर्ण संभोग में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। आधुनिक भाषाओं का अध्ययन आधुनिक लोगों का अध्ययन होना चाहिए।
- विज्ञान – छात्रों को बताया जाना चाहिए कि कैसे विभिन्न देशों के वैज्ञानिकों ने बीमारी के खिलाफ लड़ने में योगदान दिया है। वह पूरे मानव जाति के लिए अपने दिल में सद्भावना देता है।
- इतिहास – इतिहास का क्षेत्र छात्रों को अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण विकसित करने में सक्षम बनाने के लिए पर्याप्त होना चाहिए । इतिहास को निष्पक्ष और सांस्कृतिक पूर्वाग्रह के साथ पढ़ाया जाना चाहिए। छात्रों को समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- अर्थशास्त्र – खपत, उत्पादन, कराधान, मानव संसाधन आदि का ज्ञान हमारे अन्तरराष्ट्रीय स्तर को दिया जा सकता है।
- दर्शनशास्त्र – दुनिया के इतिहास में दार्शनिक मानव लक्ष्य के रूप में मानसिक शांति पर जोर दे रहे हैं।
- गणित – गणित की भाषा सार्वभौमिक है, जो दुनिया भर के माध्यम से काफी हद तक समान प्रतीकों के साथ है । यह प्रभावित होना चाहिए कि लगभग सभी विषयों और समस्याएं गणितीय उपचार के लिए खुद को उधार देती हैं।
- जयंती मनाते हैं । अन्तरराष्ट्रीय सप्ताह मनाते हैं।
- अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के दिन मनाते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र संघों का आयोजन और संचालन ।
- पेन दोस्त के क्लब का आयोजन |
- प्रदर्शनियों की व्यवस्था । नाटकीय प्रतिनिधित्व ।
- स्कूल असेंबली । अन्तरराष्ट्रीय खेल |
- अन्य देशों के समाचार |
