1st Year

आसुबेल के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए। Explain the theory of Ausubel.

प्रश्न  – आसुबेल के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए। Explain the theory of Ausubel.
या
शिक्षण में आसुबेल के विचारों के अनुप्रयोग की व्याख्या कीजिए । Explain the application of Ausubel’s ideas in teaching. 
या
शिक्षण की परिभाषा दीजिए। आशुबेल द्वारा प्रतिपादित सामाजिक रचनावादी उपागम की विशेषताओं की व्याख्या कीजिए | Define Teaching. Explain the features of Social Constructivist Approach to teaching as propounded by Ausubel. 
उत्तर- शिक्षण की परिभाषा
रायबर्न के अनुसार, “शिक्षा में तीन केन्द्र बिन्दु होते हैंशिक्षक, बालक एवं पाठ्यवस्तु । शिक्षण इन तीनों में स्थापित किया जाने वाला सम्बन्ध है । “
According to Ryburn, “There are three focal points in education – the teacher, the child and content. Teaching is a relationship which is established between these three.”
आसुबेल (Ausubel)
संज्ञानात्मक सिद्धान्त (Cognitive theory) का विकास डेविड असुबेल ने किया। इस सिद्धान्त से व्यक्ति में सीखते समय क्या होता है? का विवेचन किया जाता है इसलिए इसे संज्ञानात्मक सिद्धान्त कहा जाता है। जब विद्यार्थी नए पाठ को पूर्व ज्ञान के साथ जोड़ता है तो उस नवीन पाठ का उस पर क्या प्रभाव पड़ता हैं इसका अध्ययन किया जाता है। इस सिद्धान्त के द्वारा प्रक्रिया को भी जानने प्रयास का किया जाता है। विद्यार्थी के द्वारा नए पाठ को जोड़ने की प्रक्रिया को आत्मसात्करण कहा जाता है तथा विद्यार्थी के पूर्व ज्ञान के कोष को संज्ञानात्मक संरचना का नियम कहा जाता है। संज्ञानात्मक सिद्धान्त कक्षा शिक्षण, अर्थपूर्ण सीखने तथा शाब्दिक सामग्री से सम्बन्ध रखता है। इस प्रकार असुबेल ने सीखने के सिद्धान्त के अन्तर्गत चार नियम प्रतिपादित किए हैं-
  1. अर्थपूर्ण सीखना (Meaningful Learning)- अर्थपूर्ण आत्मसात्करण को असुबेल ने अर्थपूर्ण सीखना कहा है। बालक किसी भी विषय या पाठ को समझकर आत्मसात् करके उसे सम्बन्धपूर्ण ज्ञान से जोड़ दे तो उसे आत्मसात्करण की प्रक्रिया कहते हैं। इस विधि में सीखने के लिए दो बातों का होना चाहिए-
    1. अर्थपूर्ण सीखने की मानसिक तत्परता होनी चाहिए।
    2. अर्थपूर्ण विषय होना चाहिए।
  2. अभिग्रहण द्वारा सीखना (Learning by Reception) – इस विधि में सीखने वाली सामग्री बालक को लिखकर या बोलकर दे दी जाती है तथा बालक उन सामग्रियों को ग्रहण कर लेता है। असुबेल ने यह भी सिद्ध किया है कि अभिग्रहण केवल रटकर ही सम्भव नहीं है अपितु समझकर भी अभिग्रहण किया जा सकता है। असुबेल ने अभिग्रहण द्वारा सीखने के भी दो नियम प्रस्तुत किए हैं जो निम्नलिखित हैं –
    1. रटकर सीखने की पुनरावृत्ति ।
    2. अर्थपूर्ण ग्रहण करके सीखना ।
  3. रट कर सीखना (Rote Learning) – जब विद्यार्थी पाठ के अर्थ को बिना समझे बार-बार दोहराकर सीखता है तो उसे रट कर सीखना कहते हैं। जैसे- जिसका कोई अर्थ न हो ऐसे पदों या वाक्यों को सीखना, छोटे-छोटे शिशुओं द्वारा नर्सरी राइम (Rhyme) को सीखना आदि । एक समायोजित मुख्य मुद्दों की पुनरावृति द्वारा सीखना प्रारम्भ करना चाहिए।
  4. अन्वेषण या शोध द्वारा सीखना (Learning by Exploration ) – इस विधि द्वारा सीखने पर छात्र नवीन सम्प्रत्यय, नवीन नियमों और विचारों की खोज या अन्वेषण करता है तथा पुनः उसे सीखता है इसीलिए इस विधि को अन्वेषण या शोध द्वारा सीखना कहा जाता है।
असुबेल ने अपने सिद्धान्त में सीखने के इस नियम को दो भागों में विभाजित किया है –
  1. रट कर शोध द्वारा सीखना।
  2. अर्थ समझकर शोध द्वारा सीखना।
असुबेल के सिद्धान्त और विचारों का शैक्षिक उपयोग (Application of Ausubel’s Theory and Ideas in Teaching)
  1. शिक्षक को विषय का शिक्षण करते समय यह बात ध्यान रखने योग्य है कि प्रकरण सम्बन्धी क्या-क्या तथा कितना पूर्व ज्ञान छात्रों को है उसी के आधार पर शिक्षण प्रक्रिया का संचालन किया जाना चाहिए ।
  2. विद्यार्थियों के पूर्व ज्ञान तथा उनकी वर्तमान संज्ञानात्मक संरचना में किन बिन्दुओं को शामिल किया जाए, के आधार पर शिक्षक को अपनी शिक्षण योजना बनाकर कार्य करना चाहिए।
  3. शिक्षक को विद्यार्थियों के अर्थपूर्ण अधिगम पर बल दिया जाना चाहिए तथा संज्ञानात्मक संरचना में जिस बात का कोई आधार या तथ्यात्मक पुष्टि न हो उस सूचना की उपेक्षा करनी चाहिए तथा उसे छोड़ देना चाहिए ।
  4. यदि सूचना या ज्ञान बिल्कुल नया हो तथा छात्रों को उसके विषय में कोई भी पूर्व ज्ञान नहीं है तो अधिगमकर्त्ता की संज्ञानात्मक संरचना के समाहितीकरण हेतु उसे आधार बनाने के लिए उससे सम्बन्धित पूर्व अथवा आधारभूत ज्ञान प्रदान करना चाहिए ।
  5. एक शिक्षक को अनुदेशन का नियोजन एवं संगठन करने में अग्रिम संगठनकारी तकनीक का उपयोग करना चाहिए। शिक्षक को पहले से ही शिक्षण सम्बन्धी योजना बना लेनी चाहिए जिससे अधिगमकर्ता की उपलब्ध संज्ञानात्मक संरचना में नवीन अर्जित ज्ञान एवं सूचना का आत्मसातीकरण उचित रूप से कराया जा सके।
  6. ऑसुबेल के अनुसार, बच्चों की संज्ञानात्मक संरचना सामान्य से विशिष्ट की दिशा में विकसित होती है। अतः अध्यापक को कक्षा शिक्षण के समय “सामान्य से विशिष्ट की ओर” शिक्षण सिद्धान्त का और सूत्र का उपयोग करना चाहिए।
  7. स्वाध्याय अथवा गृहकार्य को प्रदान करते समय शिक्षक को ध्यान रखना चाहिए कि वह उन्हीं पाठ्य अथवा विषय- बिन्दु को प्रदान करे जिसे छात्र स्वयं कर सकें अथवा उसके सम्बन्ध में अधिगमकर्ता की मानसिक संरचना में आवश्यक पूर्व अनुभवों की उपस्थिति हो ।
  8. नवीन अधिगम हेतु खोज विधि का प्रयोग सावधानी से किया जाना चाहिए। अकेले ही किसी कठिन बात को जानने और खोजने में समय व्यर्थ करना तर्क संगत नहीं है। नई खोज में शिक्षकों, सहपाठियों तथा अन्य बुद्धिजीवी व्यक्तियों की सहायता लेनी चाहिए ।

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