1st Year

किशोरों के तनाव से सम्बन्धित वर्तमान मुददें एवं उनके समाधान में शिक्षक की भूमिका समझाइए । Explain current issues related to adolsescent stress and role of teachers in their solution

प्रश्न – किशोरों के तनाव से सम्बन्धित वर्तमान मुददें एवं उनके समाधान में शिक्षक की भूमिका समझाइए । Explain current issues related to adolsescent stress and role of teachers in their solution.
या
किशोरों के तनाव से सम्बन्धित मुद्दों के समाधान में शिक्षक की भूमिका समझाइए । Explain teacher’s role in the solution of issues related to adolescant’s stress
उत्तर- किशोरों के तनाव से सम्बन्धित वर्तमान मुद्दे 
  1. अकेलेपन की वृद्धि (Increasing Loneliness)— अकेलापन एक अप्रिय भावना है जिससे एक व्यक्ति खालीपन की एक मजबूत भावना का अनुभव करता है तथा अपर्याप्त सामाजिक सम्बन्ध से एकान्त अनुभव करता है। अकेलापन एक प्राकृतिक घटना है क्योंकि मनुष्य स्वभाव से सामाजिक प्राणी है। किशोरों को अपने शरीर की प्रकृति, साथियों और अभिभावकों के साथ सम्बन्ध और बढ़ी हुई स्वतन्त्रता सहित कई परिवर्तनों से निपटना होगा। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि किशोरावस्था के दौरान अकेलापन आम बात है .तथा यह काफी तीव्र रूप से बढ़ रहा है।
  2. पारिवारिक संरचना में परिवर्तन (Changing Family Structure ) – दुनिया में तेजी से बदलते हुए सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य में भारतीय परिवारों को अछूता नहीं छोड़ा गया है। यह संरचनात्मक तथा कार्यात्मक संशोधनों के माध्यम से गतिशील है जो कि किशोर समाजीकरण और अभिभावक बाल सम्बन्धों पर प्रभाव डालती है। सम्बन्धों में सामाजिक सहयोग की कमी, महिला सशक्तीकरण आन्दोलन, मीडिया के खुलासे, बाजार की अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्द्धात्मक माँग में वृद्धि और उपलब्धि मानकों के कुछ पहलू है जो परिवार की गतिशीलता को परिवर्तित करते हैं। रिश्तों के कमजोर बंधन के परिणाम स्वरूप अकेलापन बढ़ गया है। आज बच्चे मित्रों के साथ खेलने के बजाय इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, स्मार्ट फोन, इंटरनेट, टी.वी. और वीडियो गेम आदि पर समय व्यतीत करते हैं। अतः पारिवारिक संरचना में परिवर्तन के चलते किशोर एवं माता-पिता दोनों में चिन्ता का एक स्रोत तनाव है ।
  3. बढ़ती अनुमतियाँ (Rising Permissiveness) – कभी- कभी माता-पिता बच्चे की छोटी सी हठ को पूरा करते हैं और ऐसा करने में व्यवहार के वांछनीय मानकों को पढ़ाने और उन्हें पुरस्कृत करने में विफल होते हैं। अधिक माँग करने वाले बच्चे चारित्रिक रूप से विकारपूर्ण, स्वार्थी, अविवेकी एवं डिमांडिंग हो जाते है। वे अत्यधिक बेसब्र होते है तथा समस्याओं का सामना आक्रामक तथा डिमांडिंग तरीके से करते हैं। उन्हें सूदूर लक्ष्यों को प्राप्त करने में वर्तमान हताशा को स्वीकार करना मुश्किल लगता है।
    कुछ माता-पिता जो अधिक संख्त अनुशासन का सहारा लेते है, उन्हें यह विश्वास होता है कि यदि वे ‘छड़ी छोड़ते है तो वे बच्चे को बिगाड़ देंगें तथा कुछ अन्य मामलों में माता-पिता सामान्य दिशा निर्देशों की कमी महसूस करते हैं तथा एक दिन बच्चे को दंडित करते हैं और अगले दिन वही कार्य करने के लिए उनकी अनदेखी या पुरस्कृत करते हैं। ऐसे बच्चों को पता नहीं होता हैं कि कौन सा व्यवहार उचित है।

    एक अच्छा अनुमोदन बच्चे के लिए अच्छा एवं रचनात्मक हो सकता है। परन्तु अनुशासन की अति और अनुशासन की कमी, विकारयुक्त, आक्रामक बच्चे का उत्पादन करती है जो असुरक्षित भी है। किशोरावस्था के बाद के वर्षों के दौरान छात्र कॉल सेन्टर में शामिल हो जाते है। कम उम्र में कमाई के परिणामस्वरूप देर शाम मनोरंजन और जब संस्कृति शुरू हो गई है। शुरूआती किशोरावस्था वाले बच्चे पुराने साथियों के व्यवहार पैटर्न की नकल करते हैं। अतः उन पर लगने वाले अत्यधिक अनुशासन किशोर में तनाव का कारण बनते हैं।
किशोर से सम्बन्धित मुद्दों के समाधान में शिक्षक की भूमिका 
  1. साथी दबाव से सम्बन्धित समाधान – साथी दबाव के समाधान में शिक्षक की भूमिका निम्नलिखित है – 
    1. किशोरों की क्षमताओं एवं योग्यताओं तथा आत्म सम्मान को बढ़ावा देना ।
    2. महत्त्वपूर्ण वयस्कों और किशोरों के मध्य सकारात्मक सम्बन्धों को प्रोत्साहित करता है।
    3. किशोरों एवं परिवारों के लिए मूल शिक्षा कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देना ।
  2. मीडिया / इंटरनेट मुद्दों से सम्बन्धित समाधानमीडिया का इण्टरनेट के माध्यम से युवा मुद्दों से सम्बन्धित समाधान इस प्रकार है –
    1. युवाओं को अन्य रुचियों एवं सामाजिक गतिविधियों के प्रति आकर्षित करके उन्हें इंटरनेट / मीडिया की गलत आदतों से दूर रखा जा सकता है।
    2. चिकित्सा का समय-समय पर उपयोग करके किशोरों को इंटरनेट उपयोग को नियन्त्रित करने के अत्यधिक बढ़ावा दिया जा सकता है।
    3. मीडिया साक्षरता प्रशिक्षण के माध्यम को किशोरों के लिए अच्छा विकल्प बनाए जाने की आवश्यकता है।
  3. नशावृत्ति निषेध करने हेतु युवाओं की सहायता करना – नशामुक्ति हेतु छात्रों की सहायता करने में . अध्यापक की निम्नलिखित भूमिका है-
    1. शैक्षिक प्रणाली में जनशक्ति प्राथमिक रोकथाम कार्यक्रमों के लिए मुख्य संसाधनों के रूप में माना जा रहा है। वे छात्रों की सूचनाओं एवं अभिवृत्ति के विषय में सम्पर्क करने हेतु प्रशिक्षित हो सकते है।
    2. छात्रों के लिए पाठ्यक्रम में ड्रग्स शिक्षा कार्यक्रमों को सम्मिलित किया जाना है। इससे शिक्षक नियमित कौशल निर्माण प्रशिक्षण कार्यक्रमों से युक्त होता है तथा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    3. शिक्षक शिक्षा में समावेशन के माध्यम से विद्यालय पाठ्यक्रमों में संशोधन करके विभिन्न कार्यक्रमों का समावेशन करके बालकों को नशावृत्ति से बचाया जा सकता है।
  4. अवसाद ग्रस्त बालकों का समस्या समाधान–अवसाद ग्रस्त बालकों की समस्या के समाधान में माता-पिता एवं शिक्षक निम्न प्रकार सहयोग दे सकते है – 
    1. इस प्रकार के किशोरों को जानकारी दें कि माता पिता, प्राचार्य शिक्षक सहकर्मी इत्यादि भावपूर्ण समर्थन देंगे जिससे उसका आत्मविश्वास बढ़े।
    2. छात्र को वास्तविक संसार में सक्रिय रहने के लिए प्रोत्साहित करे ।
    3. उन्हें सामाजिक गतिविधियों जैसे-खेल आदि का सुझाव दे ।
  5. अकेलापन, पारिवारिक संरचना एवं बढ़ते अनुशासन सम्बन्धी समाधान
    1. किशोर के व्यवहारों को जानने का प्रयास करें तथा साथ समय व्यतीत करें।
    2. किशोरों के साथ उचित एवं मैत्रीपूर्ण सम्पर्क द्वारा अकेलेपन को दूर किया जा सकता है।
    3. किशोरों को विभिन्न परिवर्तन के विषय में समझाया जाना चाहिए तथा उनकी भावनाओं को समझने का प्रयत्न करना चाहिए ।
इस प्रकार से किशोरों की अकेलापन, पारिवारिक संरचना एवं बढ़ते अनुशासन की समस्याओं के समाधान में माता पिता एवं अध्यापक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

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