1st Year

क्षेत्र भ्रमण (शैक्षिक भ्रमण) का विस्तृत वर्णन कीजिए । Elaborate field trips.

प्रश्न  – क्षेत्र भ्रमण (शैक्षिक भ्रमण) का विस्तृत वर्णन कीजिए । Elaborate field trips.
या
क्षेत्रीय भ्रमण को कैसे संगठित करना चाहिए? क्षेत्रीय भ्रमण की विशेषताएँ एवं सीमाएँ बताइए। How field trip should be organised? Describe the characteristics and limitations of field trip ?
उत्तर – विभिन्न विषयों की पाठ्य-वस्तु का वास्तविक अनुभवों द्वारा ज्ञान प्रदान करने के लिए शैक्षिक पर्यटन अधिक उपयोगी है। स्थानीय पर्यवेक्षण द्वारा उद्योग, भौगोलिक परिस्थिति, व्यापार, बैंक, कचहरी, राजकीय इमारतों का वास्तविक ज्ञान होता है। शैक्षिक भ्रमण के अर्थ को स्पष्ट करते हुए शिक्षा शब्दकोश में लिखा है-

“विद्यालय भ्रमण शैक्षिक उद्देश्य के लिए विद्यालय द्वारा व्यवस्थित भ्रमण है जिससे छात्र उन स्थानों को जाते हैं जहाँ शिक्षण की सामग्री का निरीक्षण किया जा सके और उनका क्रियात्मक परिस्थितियों में प्रत्यक्ष रूप से अध्ययन किया जा सके।”

भ्रमण का मूल आधार निरीक्षण है। छात्रों को यथा स्थान पर ले जाकर निरीक्षण के योग्य तथ्यों का ज्ञान कराया जाता है तथा छात्रों को सूक्ष्म निरीक्षण के माध्यम से मानसिक शक्तियों के विकास का उचित अवसर मिलता है। प्राचीनकाल में अनेक शिक्षाशास्त्रियों और दार्शनिकों, जैसे- पेस्टालॉजी, रूसो ने भ्रमण को बालक की शिक्षा के लिए मुख्य साधन के रूप में स्वीकार किया है। शिक्षण के अतिरिक्त प्रशिक्षण के लिए शैक्षिक पर्यटन अधिक उपयोगी होते हैं। जिन व्यक्तियों को किसी संस्था में कार्य करते हुए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है तो इस प्रकार पर्यटन द्वारा उन्हें इस प्रकार की संस्थाओं में रखा जाए जिससे वह वास्तविक अनुभव कर सके। जैसे- कृषि के प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षण को कृषि के फार्मों पर रखकर वास्तविक अनुभव दिया जा सकता है।

क्षेत्रीय भ्रमण के सैद्धान्तिक आधार (Theoretical Bases of Field Trip)
  1. छात्रों को वास्तविक अनुभवों द्वारा सीखने की परिस्थितियों का अवसर मिलता है।
  2. यह सामाजिक सिद्धान्तों पर आधारित है। छात्रों में सहयोग की भावना का विकास होता है।
  3. छात्रों को निरीक्षण, कल्पनाशक्ति तथा अन्वेषण आदि क्षमताओं के लिए वास्तविक परिस्थितियाँ मिलती हैं।
  4. छात्रों में स्थलों तथा दृश्यों की सौन्दर्यानुभूति के लिए वास्तविक अनुभव ग्रहण करते हैं।
क्षेत्रीय भ्रमण के उद्देश्य (Objectives of Field Trip)
  1. भ्रमण के द्वारा कक्षा-शिक्षण को रोचक तथा बोधगम्य बनाया जाता है ।
  2. छात्रों को वास्तविक अनुभवों तथा प्रत्यक्षीकरण द्वारा प्रत्ययों का बोध कराया जाता है।
  3. छात्रों में अनुशासन, उत्तरदायित्व का निर्वाह, परस्पर सहायता व सहयोग की भावना का विकास कराना।
  4. भ्रमण के द्वारा ज्ञानात्मक तथा भावात्मक योग्यताओं का विकास होता है।
  5. प्राकृतिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक भ्रमण से छात्रों में सौन्दर्यात्मक विकास होता है।
क्षेत्रीय भ्रमण को संगठित करना
  1. योजना निर्माण (Project Development)- शैक्षिक भ्रमण में योजना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसके अभाव में अनुशासन की समस्या के साथ ही अव्यवस्था की स्थिति बन सकती है। योजना निर्माण का कार्य छात्रों के सहयोग से करना चाहिए और एक निर्देशिका तैयार करनी चाहिए तथा इसके अन्तर्गत उपयुक्त स्थल का चयन, चयनित स्थान की यात्रा योजना आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था तथा परिवहन की व्यवस्था करना चाहिए।
    1. अध्यापक तथा छात्र मिलकर एक-दूसरे के सहयोग से समय, धन तथा साधनों को ध्यान में रखकर उपयुक्त स्थान का चुनाव करते हैं। ये स्थान प्राचीन किले, युद्ध क्षेत्र, भवन, मन्दिर, गिरजाघर, राजधानियां, शिक्षा केन्द्र, संग्रहालय, प्राचीन सभ्यताएं, मकबरे, गुफाएं तथा स्तूप आदि होते हैं। भ्रमण की सफलता आयोजन पर निर्भर है।
    2. चयन किए गए स्थान की योजना निर्मित करनी चाहिए। इसमें चुने गए स्थान के विषय में विस्तृत जानकारी, आगे जाने के साधन एवं मार्ग की कठिनाइयाँ आवश्यकतानुसार संरक्षित स्थल के लिए प्रमुख अधिकारी से पूर्व स्वीकृति, टोली नायक बनाना तथा कार्य सौंपना, छात्रों को सामग्री संकलन, उपकरण ले जाने तथा विवरण लिखने आदि कार्य का उत्तरदायित्व सौंपना शामिल है।
    3. आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था के अन्तर्गत यात्रा करने वाले क्षेत्र का मानचित्र, कैमरा, मौसम के अनुसार, कपड़े, बिस्तर आदि आँकड़े एकत्रित करने के लिए डायरी, पेन तथा प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स, पानी की बोतल, थर्मामीटर, चाकू मार्ग के लिए मनोरंजक नाश्ता व अन्य वस्तुएँ तथा प्रत्येक छात्र के पास एक बैग होना चाहिए।
    4. परिवहन साधन की व्यवस्था करते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि कम से कम खर्च में सुविधानुसार भ्रमण होना चाहिए। कौन से साधन का प्रयोग किया जाए, रेल अथवा बस की व्यवस्था कर लेनी चाहिए।
    5. प्रशासनिक कार्य यात्रा से पहले पूर्ण कर लेने चाहिए। इनमें प्राचार्य की अनुमति, अभिभावकों की अनुमति, अन्य आवश्यक पदाधिकारियों की अनुमति तथा शिक्षकों का सहयोग लेना चाहिए।
  2. पूर्व शैक्षिक तैयारी (Pre-Teaching Preparation) भ्रमण पर जाने से पहले एक ऐसी योजना का निर्माण करना चाहिए जो व्यवस्थित हो तथा शैक्षिक उद्देश्यों व भ्रमण के उद्देश्यों की पूर्ति कर सके। इसके अन्तर्गत चयनित स्थान का निरीक्षण, योग्य बातों की सूची तैयार करना, उनका सम्बन्ध विषय-वस्तु के शिक्षण बिन्दुओं से चयनित स्थापित करना, भ्रमण का उद्देश्य स्पष्ट करना, स्थान की जानकारी तथा निरीक्षण की सुविधा व स्पष्टता की दृष्टि से वितरण, असफलताएं व कारण, सफलताएँ आदि की रिपोर्ट तैयार कर जानकारी देना, भ्रमण स्थल पर ठहरने की व्यवस्था करना तथा भ्रमण से लौटने के पश्चात् कक्षा कार्य के रूप में कराए गए कार्य का निरीक्षण करना आदि ।
  3. भ्रमण का संचालन (Conducting Field Trip) भ्रमण का सफल संचालन शिक्षक की कुशलता पर निर्भर करता है। अध्यापक को छात्रों को आवश्यक निर्देश देना, छात्रों पर नजर रखना, इधर-उधर घूमने की इजाजत न देना, स्वानुशासन के लिए प्रेरित करना तथा कोई भी ऐसा कार्य ना होने देना जिससे अनुशासनहीनता दिखाई दे।
  4. दृश्य स्थल का निरीक्षण एवं तथ्यों का संकलन (Observation and Collection of Data from the Spot) – अध्यापक का कर्तव्य है कि वह निर्धारित स्थान पर पहुँचकर निरीक्षण कार्य हेतु निर्देश दे और सम्बन्धित आँकड़े, तथ्य एवं अन्य सामग्री एकत्रित करने का निर्देश दे। इसके साथ-साथ सम्बन्धित आँकड़े, तथ्य एवं अन्य सामग्री इकट्ठा करते हुए छात्रों का मार्गदर्शन करें।
    छोटी-छोटी बातों का ज्ञान देकर वहाँ के निवासियों से सम्पर्क करके स्थान की विशेष जानकारी प्राप्त करें। छात्र डायरी में मुख्य बातें तिथि सहित अवश्य लिखें, आवश्यकतानुसार चित्र बनाएं, नमूनें, वस्तुएँ, मानचित्र आदि का संकलन करें। दृश्य स्थानों के फोटोग्राफ लें तथा निरीक्षण कार्य समाप्त होने तक अन्य मार्ग से वापिस आए जिससे अन्य क्षेत्रों का ज्ञान प्राप्त हो सके।
  5. भ्रमण प्रतिवेदन प्रस्तुत करना (Submission of Field Trip Report)—भ्रमण से लौटने के पश्चात् ज्ञान व तथ्यों के आधार पर एक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इसमें भ्रमण के समय जो ज्ञान ग्रहण किया जाता है। उसके सन्दर्भ में कक्षा में सामूहिक रूप से विचार-विमर्श किया जाता है। वाद-विवाद को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया जाता है इसलिए अध्यापक का कर्तव्य है कि छात्रों को भ्रमण के समय प्राप्त शैक्षणिक ज्ञान पर निबन्ध लिखने का निर्देश दें। भ्रमण के समय एकत्रित वस्तुएँ संग्रहालय में व्यवस्थित ढंग से रखी जाएं तथा उनके प्रदर्शन की व्यवस्था की जाए। कैमरे से खीचें गए चित्रों का उपयोग कक्षा शिक्षण में किया जाए। ऐसा करने से उसकी सार्थकता बढ़ जाएगी तथा अन्त में भ्रमण के उद्देश्यों के आधार पर मूल्याकंन किया जाता है। इससे भ्रमणका महत्त्व बढ़ जाता है।
क्षेत्रीय भ्रमण की विशेषताएँ (Characteristics of Field Trip) 
  1. छात्र निरीक्षण द्वारा स्वयं सीखते हैं।
  2. छात्रों को अतीतकालीन सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान प्राप्त होता है।
  3. छात्रों को स्थल, घटना, वस्तुओं आदि का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त होता है।
  4. छात्रों की जिज्ञासा एवं शंकाओं का समाधान होता है।
  5. छात्र शिक्षक में निकट का सम्पर्क होता है।
क्षेत्रीय भ्रमण की सीमाएँ (Limitations of Field Trip) 
  1. छात्र संख्या अधिक होने से आयोजन में कठिनाई होती है।
  2. विद्यालय समय-सारणी में इनकी व्यवस्था नहीं होती है।
  3. समयाभाव की समस्या बनी रहती है।
  4. परिवहन सम्बन्धी अनेक कठिनाइयाँ आती है।
  5. अनुशासन की समस्या हर समय बनी रहती है ।

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