F-7

गणित का शिक्षणशास्त्र-1

गणित का शिक्षणशास्त्र-1

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. पैटर्न और तर्क से आपका क्या अभिप्राय है? बच्चे के गणितीयकरण
के लिए पैटर्न को आप कितना महत्वपूर्ण मानते हैं?
नुत्तर–पैटर्न किसी गणितीय संबंध या तर्क आधारित संबंध को दुहराने की क्रिया है ।
के लिए दो बातें आवश्यक हैं. संबंध स्थापित करना तथा लगातार दुहराना ।
माणित में संख्या आधारित या ज्यामिति आकृतियों पर आधारित पैटनं पाये जाते हैं। आपने
शा में कई बार गुणा के प्रश्नों को हल किया होगा। पहाड़े बनाये होंगे ! क्या आपने बच्चों
बताया है कि गुणा, गणना में तो सहायक है ही साथ ही साथ पैटनों को पहचानने एवं
बनाने हेतु विश्लेषणात्मक क्षमता का विकास करने में भी सहायक है। नीचे दिए गए पैटर्न
पर ध्यान दीजिए।
                                 1×1=1
                               11×11 = 121
                            111 × 111 = 12321
                          1111 × 1111 = 1234321
ऊपर का पैटर्न देखकर नीचे के खाली स्थान को पूरा किया जा सकता है :
11111×11111=
111111×111111=
पैटर्न का महत्त्व—किसी भी दिए गए पैटर्न में उपयोग किये गये रेखाओं एवं आकृतियों
में अन्तर्निहित संबंध को पहचानना सबसे महत्वपूर्ण होता है। इससे हमारी तर्क क्षमता का
विकास होता है। पैटर्न में उपयोग किये गये क्रमवद्धता एवं निश्चित दूरी की पहचान हमारी
तार्किक अभिक्षमता का परिचायक होता है। नये-नये पैटनों को गढ़ने की गतिविधि’ बच्चों
में सृजनात्मक क्षमता का विकास करता है। पैटर्न बालकों में गणितीयकरण की प्रक्रिया में
सहायक है। यह गणित की अवधारणाओं को दैनिक जीवन से जोड़कर सीखने में सहायक
होता है और यही गणित शिक्षण का मुख्य उद्देश्य है।
इस प्रकार कह सकते हैं कि पैटर्न किसी गणितीय संबंध या तर्क आधारित दुहराने की
क्रिया है, इससे एक पैटर्न के आधार पर हम उससे संबंधित विभिन्न समस्याओं का समाधान
कर लेते हैं और सफलता प्राप्त कर लेते हैं, इसलिए गणित शिक्षण में पैटर्न, तर्क अहम भूमिका
निभाता है।
प्रश्न 2. गणितीयकरण से आप क्या समझते हैं? इसका वर्णन कीजिए।
अथवा, गणित शिक्षण के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर―गणित की समझ, संसार को समझने, महसूस करने, अंतःक्रिया करने और
घटनाओ की व्याख्या करने योग्य बनाती है। गणित शिक्षण से बच्चों में गणितीय सोच विकसित
होती है। विद्यालयी गणित शिक्षण का उद्देश्य बच्चों के गणितीय दक्षता का विकास करना
है। बच्चों में इन उद्देश्यों के विकास हो जाने पर समझा जाता है कि बच्चों का गणितीयकरण
हो गया है।
बच्चों के गणितीयकरण के उद्देश्य या गणित शिक्षण के उद्देश्य:
1.वैज्ञानिक उद्देश्य (Scientific aims)―छात्रों के विचारों एवं उनके दृष्टिकोण को
वैज्ञानिक बनाना क्योकि गणित का शिक्षण पत्रों के दृष्टिकोण को वैज्ञानिक बनाने में विशेष
रूप में सहायक होता है।
2. व्यावहारिक उद्देश्य― किसी भी व्यवसाय में गणित के बिना
व्यवसाय नहीं चल सकता। धन, माल का आदान-प्रदान तथा हिसाब आदि गणित के बिना
नही किया जा मुकता। अत: गणित का अधिक महत्त्व है।
3. सांस्कृतिक उद्देश्य (Cultural aims)-वर्तमान सभ्यता एवं संस्कृति को ठीक प्रकार
से समझने के लिए हमें गणित के ज्ञान की आवश्यकता होती है। गणित शिक्षक का यह दायित्व
हो जाता है कि वह छात्रों को कला के विभिन्न नमूनों द्वारा गणित के सांस्कृतिक मूल्यों को
समझाये एवं मानव सभ्यता के निर्माण में गणित का योगदान क्या रहा, इसको स्पष्ट करे?
से काम करने अर्थात् अनुशासित होने की आदत में छात्रों के जीवन से जुड़ जाती है, और
4.अनुशासनात्मक उद्देश्य (Disciplinery aims)―गणित अध्ययन में छात्र क्रमबद्ध रूप
छात्र अपना प्रत्येक कार्य योजनाबद्ध तरीके से एकत्रित होकर करता है। अतः छात्र मानसिक
रूप से अनुशासित होते है।
5. अवकाश के समय का सदुपयोग (Use of leisure time)― गणित रोचक रिक्षण
द्वारा छात्र के अवकाश का पूर्णतः उपयोग सिखाया जा सकता है, जिसमें छात्र अवकाश के
समय का सदुपयोग कर सके।
6.मानसिक शक्तियों एवं चारित्रिक विकास (Development of mental powerme
character)― शुद्ध विचार वाले एवं चरित्रवान छात्र किसी भी राष्ट्र की नींव होते हैं। अतः
गणित शिक्षण ऐसा हो कि छात्रों के विचारों को शुद्धतापूर्वक उत्पन्न किया जा सके।
प्रश्न 3. गणित को रोचक बनाने के सुझाव का वर्णन कीजिए।
अथवा, गणित शिक्षण को रोचक बनाने के लिए किन-किन उपायों का उपयोग
किया जा सकता है?
उत्तर―बालकों को गणित सरल एवं रुचिकर लगे, उनकी नीरसता समाप्त हो इस हेतु
गणित शिक्षक को निम्नलिखित उपाय अपनाने चाहिए―
1. मानसिक शक्तियों के प्रयोग हेतु उचित अवसर प्रदान करना―गणित के प्रति
रुचि जाग्रत करने और उसे बनाये रखने में यह ध्यान रखना चाहिए कि कार्य बालकों की
मानसिक शक्तियों का उपयोग करने का पूर्ण अवसर प्रदान करे । हमें समस्या और अन्वेषणात्मक
दृष्टिकोण को लेकर गणित का अध्ययन कराना चाहिए।
2.कियात्मक कार्य की प्रधानता-गणित के शिक्षण में रुचि जाग्रत करने के लिए तथा
ज्ञान को स्थायी बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि गणित में सैद्धान्तिक पक्ष के साथ-
साथ क्रियात्मक पक्ष पर बल दिया जाये। प्रदर्शन विधि, प्रयोगशाला विधि एवं योजना विधि
आदि द्वारा पढ़ाई को क्रियात्मक एवं व्यावहारिक बनाया जाना चाहिए। क्रियात्मकता को प्रमुखता
दी जानी चाहिए ताकि ‘करके सीखना’ आसान बन सके।
3. गणित के व्यावसायिक मूल्यों से अवगत कराना―गणित की शिक्षा जीविकोपार्जन
दृष्टिकोण को लेकर दी जानी चाहिए ताकि बालक विभिन्न व्यवसायों में गणित के उपयोग
से अवगत हो सकें तथा उसे अपने जीविकोपार्जन का साधन समझकर उसे सीखने के लिए
मन से जुट जायें।
4. परिवर्तन का सिद्धान्त―गणित के शिक्षण में छात्रों की रुचि बनाये रखने के
लिए भी आवश्यक है कि कार्यक्षेत्र अथवा कार्य पद्धति में परिवर्तन का सिद्धान्त अपनाया जाए।
5. गणित के सांस्कृतिक मूल्यों से परिचित होना― अपनी सांस्कृतिक धरोहर को
सुरक्षित रखने, उसमें वृद्धि करने तथा उसे आने वाली पीढ़ियों को हस्तान्तरित करने में गणित
का अध्ययन विशेष स्थान रखता है। विभिन्न प्रकरणों, नियमों, सूत्रों तथा संकेतों आदि में
व्याप्त अतीत की कहानी उनके अध्ययन के प्रति जागृत करने तथा उन्हें भली-भाँति समझने
में सहायता कर सकती है। गणित के नियमों की सार्वभौमिकता, गणितज्ञों की जीवनियाँ तथा
पारस्परिक आदान-प्रदान अध्ययन की सामग्री गणित के अध्ययन के प्रति रुचि बढ़ाने में सफल
सिद्ध हो सकती है।
6. गणित को अन्य विषयों से सह-सम्बन्ध कर पढ़ाना―”गणित सभी विज्ञानों का
राजा तथा कलाओं की रानी है।” इस तथ्य से बालकों को भली-भाँति परिचित कराया जाना
चाहिए। गणित को अन्य विषय से सम्बद्ध कर उसे उपयोगी बनाया जाना चाहिए। इससे छात्रों
में गणित के प्रति रुचि एवं जिज्ञासा पैदा की जा सकती है।
7. गणित में मनोरंजन को स्थान देना―गणित को रोचक बनाने के उद्देश्य से गणित
सम्बन्धित सहायक-सामग्री का भरपूर प्रयोग किया जाना चाहिए। अध्यापक को गणित सम्बन्धी
खेल, पहेलियाँ, अजूबे, मायावी वर्ग तथा संख्या सम्बन्धी खेलों का ज्ञान बालकों को देना
चाहिए ताकि विषय के प्रति रुचि जागृत हो सके।
शाला में ‘गणितीय खेल’ तनावों से मुक्ति प्रदान करते है तथा जीतने के बाद आनन्द
की अनुभूति कराते हैं। इससे छात्रों में विश्वास उत्पन्न होता है, साथ ही गणित विषय के
प्रति रुचि जागृत होती है क्योंकि किसी मूल समस्या के समाधान से आत्म-विश्वास एवं
आनन्दानुभूति की प्राप्ति होती है। विद्यालय में ‘गणित परिपद’ की भूमिका रचनात्मक होनी
चाहिए। उसके द्वारा गणित सम्बन्धी अनेक योजनाओं पर कार्य करने तथा गणित से सम्बन्धित
उनके विचार गोष्ठियों तथा कार्यशालाओं का आयोजन किया जा सकता है।
गणित अध्यापक का छात्रों में गणित विषय में रुचि जागृत करने के लिए दायित्व बन
जाता है कि वह अधिकाधिक गणितीय खेलो का आयोजन करे। इससे छात्र गणित विषय
में अधिकाधिक रुचि लेने लगते हैं।
प्रश्न 4. गणित की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर―गणित की प्रकृति (Nature of Mathematics)-प्रत्येक विषय को पढ़ाने के
कुछ उद्देश्य तथा उसकी संरचना होती है, जिसके आधार पर उस विषय की प्रकृति निश्चित
होती है। गणित विषय की संरचना अन्य विद्यालयी विषयों की अपेक्षा अधिक मजबूत तथा
शक्तिशाली है, जिसके कारण गणित अन्य विषयों की तुलना में अधिक स्थायी एवं महत्त्वपूर्ण
है। किसी विषय की संरचना जैसे-जैसे कमजोर होती जाती है, उस विषय की सत्यता, मान्यता
तथा पूर्वकथन की क्षमता भी उसी क्रम में घटती जाती है। इसी निश्चित ढाँचे या संरचना
के आधार पर प्रत्येक विषय की प्रकृति का निर्धारण किया जाता है तथा उसको पाठ्यक्रम
में स्थान दिया जाता है। ऐसा नहीं कि सभी विषयों की प्रकृति एक समान हो। गणित विषय
की अपनी एक अलग प्रकृति है, जिसके आधार पर हम उसकी तुलना किसी अन्य विषय
से कर सकते हैं। किन्हीं दो या दो से अधिक विषयों की तुलना का आधार उन विषयों की
प्रकृति ही है, जिसके आधार पर हम उस विषय के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। गणित
की प्रकृति को निम्न बिन्दुओं द्वारा भली-भाँति समझा जा सकता है―
(1) गणित में संख्याएँ, स्थान, दिशा तथा मापन या माप-तौल का ज्ञान प्राप्त किया
जाता है।
(2) गणित की अपनी भाषा है। भाषा का तात्पर्य-गणितीय पद, गणितीय प्रत्यय, सूत्र,
सिद्धान्त तथा संकेतों से है, जो कि विशेष प्रकार के होते हैं तथा गणित की भाषा
को जन्म देते हैं।
(3) गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ हैं।
(4) इसके ज्ञान का आधार निश्चित होता है, जिससे उस पर विश्वास किया जा
सकता
(5) गणित का ज्ञान यथार्थ, क्रमबद्ध, तार्किक तथा अधिक स्पष्ट होता है, जिससे उसे
एक बार ग्रहण करके आसानी से भुलाया नहीं जा सकता।
(6) गणित में अमूर्त प्रत्ययों को मूर्त रूप में परिवर्तित किया जाता है, साथ ही उनकी
व्याख्या भी की जाती है।
(7) गणित के नियम, सिद्धान्त, सूत्र सभी स्थानों पर एक समान होते हैं, जिससे उनकी
सत्यता की जाँच किसी भी समय तथा स्थान पर की जा सकती है।
(8) इसमें सम्पूर्ण वातावरण में पाया जाना वाली वस्तुओं के परस्पर सम्बन्ध तथा
संख्यात्मक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
(9) इसके अध्ययन से प्रत्येकाला नजावा सूचना स्पष्ट होती है तथा उसका एक सम्भावित
उत्तर निश्चित होता है।
(10) इसके विभिन्न नियमा, सिद्धान्तों, सूत्रों आदि में सन्देह की सम्भावना नही
रहती है।
(11) गणित के अध्ययन से आगमन, निगमन तथा सामान्यीकरण की योग्यता विकसित
होती है।
(12) गणित के अध्ययन से यालको में आत्म-विश्वास और आत्म-निर्भरता का विकास
होता है।
(13) गणित की भाषा सुपरिभाषित, उपयुक्त तथा स्पष्ट होती है।
(14) गणित के ज्ञान से बालकों में प्रशंसात्मक दृष्टिकोण तथा भावना का विकास होता है।
(15) इससे बालकों में स्वस्थ तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होता है।
(16) इसमें प्रदनों अथवा सूचनाओं (संख्यात्मक) को आधार मानकर संख्यात्मक निष्का
निकाले जाते है।
(17) गणित के ज्ञान का उपयोग विज्ञान की विभिन्न शाखाओं यथा-भौतिकी, रसादन
विज्ञान, जीव विज्ञान तथा अन्य विषयों के अध्ययन में किया जाता है।
(18) गणित, विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के अध्ययन में सहायक ही नहीं, बल्कि उसी
प्रगति तथा संगठन की आधारशिला है।
इस प्रकार उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर हम गणित की प्रकृति को समझ सकते हैं
तथा निष्कर्ष निकाल सकते है कि वास्तव में गणित की संरचना, जो कि उसकी प्रकृति की
आधारशिला है, अन्य विषयों की अपेक्षा अधिक सुदृढ़ है, जिसके आधार पर विद्यालय शिक्षा
में गणित के ज्ञान की आवश्यकता दृष्टिगोचर होती है । रोजर बेकन ने ठीक ही कहा
कि गणित ही विज्ञानों का सिंह द्वार और कुंजी है। गणित की प्रकृति के सम्बन्ध में
दार्शनिक हेमिल्टन ने लिखा है-“The study of mathematics is so easy that it al
on real mental discipline.”
इस प्रकार उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर हम गणित की प्रकृति को निम्न रूपों में वर्गीकृत
कर सकते है―
(i) तार्किकता
(ii) प्रतीकात्मकता
(iii) सटीकता
(iv) अमूर्तता
(v) क्रमिकता
प्रारंभिक विद्यालय के शिक्षकों को गणित की प्रकृति की इन महत्त्वपूर्ण आयामों को जानना
अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है।
प्रश्न 5. गणित से संबंधित पूर्व धारणाओं एवं भांतियों को स्पष्ट करें।
उत्तर―गणित से संबंधित पूर्व भ्रांतियाँ :
(i) गणित सीखने को बच्चे और लगभग सभी बड़े खास तौर से कठिन मानते हैं।
(ii) गणित सिर्फ लड़कों के लिए है।
(iii) कुछ शिक्षक सोचते हैं कि बच्चे गणित सीखने के लिए प्रेरित नहीं होते, इसलिए
वे गणित सीख नहीं पाते।
(iv) गणित नीरस एवं उबाऊ विषय है।
(v) गणित केवल तेज बच्चों के लिए है।
(vi) गणित मे गलतियाँ बहुत अधिक होती है।
(vii) गणित पढ़ने के लिए ट्यूशन आवश्यक है।
गणित से संबंधित पूर्व धारणाएँ :
(i) गणित सभी के लिए आवश्यक है।
(ii) गणित एक आकर्षक विषय है।
(iii) गणित पढ़ने के लिए कोई ट्यूशन की आवश्यकता नहीं है।
(iv) गणित कठिन नहीं है।
गणित में सटीकता होती है।
(vi) गणित की प्रकृति सार्वभौमिक होती है अर्थात् समय, स्थान एवं वातावरण का गणितीय
अवधारणाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(vii) गणित की प्रकृति अमूर्त होती है।
(Viii) गणित हमारे लिए बहुत आवश्यक है।
प्रश्न 6. समाज के हर वर्ग/पेशे के लोग अपनी जरूरत के अनुसार गणित का
उपयोग करते हैं, इसे स्पष्ट करें।
उत्तर―अपनी जरूरत के अनुसार समाज के हर वर्ग/पेशे के लोग गणित जानते हैं तथा
कसी-न-किसी रूप में इसका उपयोग भी करते हैं। सभी बच्चे किसी-न-किसी रूप में थोड़ा-
बहुत गणित जानते हैं तथा कुछ-कुछ संकेतो, संख्याओं एवं मूलभूत संक्रियाओं, जैसे-जोड़,
घटाव इत्यादि से परिचित है।
हम देखते हैं कि दर्जी, राज-मिस्त्री, रसोइया, Plumber, बढ़ई इत्यादि अपने दैनिक कार्यों
में गणित का भरपूर प्रयोग करते हैं, ये लोग विद्यालयी गणित के अनुसार तो सूत्रों का इस्तेमाल
नहीं कर रहे होते हैं, पर फिर भी अपने ही तरीके से बड़ी तेजी से और प्रभावपूर्ण ढंग से
अपने कार्यों को अंजाम देते हैं। इनके पास अपने सूत्र हैं और अपनी कार्य पद्धति भी है।
एक दर्जी विभिन्न मापों के कपड़े सिलता है। वह कपड़े को विभिन्न मापों के अनुसार
काटता है। जबक्ति उसे गणित के किसी विशेष सूत्र की समझ नहीं होती है।
      इसी प्रकार एक रसोईया अनेक प्रकार के व्यंजन बनाता है। वह भी गणित के सूत्रों का
ज्ञाता नहीं होता। फिर वह इनका उपयोग करता है। जैसे-कुछ निश्चित लोगों के लिए खाना
बनाते समय विभिन्न सामग्री की मात्राओं के बारे में वह जानता है जैसे-एक किलो, 1 चम्मच,
1 चुटकी आदि।
     इस प्रकार हम देखते हैं कि समाज के हर वर्ग एवं पेशे के लोग गणित के प्रमुख सूत्रों
के ज्ञान के बिना भी अपनी जरूरत के अनुसार गणित का उपयोग करते हैं।
प्रश्न 7. वच्चे में ‘गणितीयकरण’ का विकास हो सके। इस हेतु एक गणित
शिक्षक के रूप में आप कौन-कौन से प्रयास करते हैं ?
उत्तर―बच्चे में गणितीयकरण का विकास हो सके। इस हेतु एक गणित शिक्षक के रूप
में मैं निम्नलिखित प्रयास कर सकता हूँ―
(i) पाठ्चर्या में दैनिक जीवन रोजमर्रा की समस्या को रखना-में बच्चों से पूछता
हूँ कि तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें 10 रुपये दिये और कुछ सामानों को लाने के लिए कहा। तुमने
7 रुपये का सामान खरीदा तो बताओ कि तुम्हारे पास कितने रुपये बचे?
     इस प्रकार के उदाहरणों में हम देखते हैं कि बच्चे में आसानी से जोड़-घटाव की अवधारणा
का विकास होता है।
(ii) अनुमान लगाने और सोचने का मौका देना―मैने दो बच्चों को खड़ा किया जिनके
घर विद्यालय से अलग-अलग दूरी पर है। उनसे पूछा कि उनको घर से विद्यालय आने में
कितना समय लगता है। उन्होंने ने बताया कि 10 मिनट और 15 मिनट । फिर पूछा कि बताओ
कि किसका घर यहाँ से दूर है? उन्होंने आसानी से बता दिया कि किसका घर दूर है।
(iii) क्रमवार अवधारणाओं का जुड़ाव करना―मै एक श्रेणी 2,4,6…लिखता हूँ।
फिर बच्चों से पूछता हूँ कि 6 के बाद क्या होगा? बच्चों को यह भी बताता हूँ कि 2 में 2
जोड़ने पर 4 होता है और 4 में 2 जोड़ने पर 6 होता है। बच्चे भी बताते है कि 6 में 2 जोड़ने
पर 8 होगा। इसलिए 6 के बाद 8 होगा, आदि ।
प्रश्न 8.बच्चे की सोच का गणितीयकरण किया जाना ही गणित शिक्षण का मुख्य
उद्देश्य है। इस हेतु आप कौन-कौन से प्रयास करेंगे?
उत्तर―गणित की समझ, संसार को समझने, महसूस करने, अंतःक्रिया करने और
घटनाओं की व्याख्या करने योग्य बनाती है। गणित शिक्षण से बच्चों में गणितीय सोच विकसित
होती है। विद्यालयी गणित शिक्षण का उद्देश्य बच्चों के गणितीय दक्षता का विकास करना
है। बच्चों में इन उद्देश्यों के विकास हो जाने पर समझा जाता है कि बच्चों का गणितीयकरण
हो गया है।
        बच्चों के गणितीयकरण के उद्देश्य या गणित शिक्षण के उद्देश्य :
1. वैज्ञानिक उद्देश्य―छात्रों के विचारों एवं उनके दृष्टिकोण को वैज्ञानिक बनाना, क्योंकि
गणित का शिक्षण छात्रों के दृष्टिकोण को वैज्ञानिक बनाने में विशेष रूप से सहायक होता है।
2. व्यावहारिक उद्देश्य किसी भी व्यवसाय में गणित के बिना व्यवसाय नहीं चल सकता।
धन, माल का आदान-प्रदान तथा हिसाब आदि गणित के बिना नहीं किया जा सकता। अत:
गणित का अधिक महत्त्व है।
3. सांस्कृतिक उद्देश्य–वर्तमान सभ्यता एवं संस्कृति को ठीक प्रकार से समझने के लिए
हमें गणित के ज्ञान की आवश्यकता होती है। गणित शिक्षक का यह दायित्व हो जाता है
कि वह छात्रों को कला के विभिन्न नमूनों द्वारा गणित के सांस्कृतिक मूल्यों को समझाये एवं
मानव सभ्यता के निर्माण में गणित का योगदान क्या रहा, इसको स्पष्ट करे?
4. अनुशासनात्मक उद्देश्य-गणित अध्ययन में छात्र क्रमबद्ध रूप से काम करने अर्थात्
अनुशासित होने की आदत में छात्रों के जीवन से जुड़ जाती है और छात्र अपना प्रत्येक कार्य
योजनाबद्ध तरीके से एकत्रित होकर करता है। अतः छात्र मानसिक रूप से अनुशासित होते हैं।
5. अवकाश के समय का सदुपयोग-गणित रोचक शिक्षण द्वारा छात्र के अवकाश
का पूर्णतः उपयोग सिखाया जा सकता है, जिसमें छात्र अवकाश के समय का सदुपयोग कर
सके।
6. मानसिक शक्तियों एवं चारित्रिक विकास-शुद्ध विचार वाले एवं चरित्रवान छात्र
किसी भी राष्ट्र की नींव होते है। अतः गणित शिक्षण ऐसा हो कि छात्रों के विचारों को
शुद्धतापूर्वक उत्पन्न किया जा सके।
        विद्यालयी गणित शिक्षण का उद्देश्य बच्चों की गणितीय दक्षता का विकास करना है।
इसके दो लक्ष्य है सीमित लक्ष्य और उच्च लक्ष्य । संख्याएँ और संख्याओं पर की जानेवाली
संक्रियाएँ, माप, दशमलव, प्रतिशत आदि लक्ष्य है बच्चों के साधनों को विकसित करना ताकि
वह गणितीय रूप से सोच सके, तर्क कर सके, मान्यताओं के तार्किक परिणाम निकाल सकें
और अंततः अमूर्त को समझ सकें। इसके अन्तर्गत समस्याओं को बनाना और समस्याओं
का हल ढूँढ़ने की क्षमता का विकास करना है। इस प्रकार बच्चे का गणितीयकरण किया जाना
ही गणित शिक्षण का मुख्य उद्देश्य है ताकि बच्चा अपने दैनिक जीवन की समस्याओं का
समाधान कर सकें।
प्रश्न 9.क्या गणित में भाषा के कारण आम उत्पन्न होते हैं? अपने उत्तर के पक्ष
में तर्क दें।
उत्तर―गणित के लिए भाषा का उपयोग करते समय कुछ खास शब्द व उपयोग के
तरीके सामने आते हैं। यांनी गणित सीखते वक्त बच्चों को गणित के साथ-साथ उसकी भाषा
को भी समझना होता है। इसलिए अगर कोई बच्चा गणित की किसी अवधारणा को नहीं सीख
पा रहा है तो इसका कारण वह भाषा हो सकती है जो उसे अवधारणा सिखाने के लिए इस्तेमाल
की जा रही है। हो सकता है कि वह भाषा ही भ्रम पैदा कर रही हो। वैसे भी सीखते समय
सिखाने वाला कुछ गलतियों करके ही सीखता है और यह गणित की भाषा सीखने के संदर्भ
में भी सही है कि गणित में भाषा के कारण भ्रम उत्पन्न होते हैं।
कभी-कभी कुछ बच्चे उन शब्दों को नहीं जानते जो किताबों में होते हैं या जिन्हें शिक्षक
इस्तेमाल करते हैं, जैसे कि ‘लघु’, ‘शेष’, समान, भिन्न, गुणनफल, प्रत्येक जैसे शब्दों
को न जानने से गणित समझने में रुकावट हो सकती है। साथ ही, एक ही गणितीय
अवधारणा अथवा संक्रिया के लिए अलग-अलग शब्द उपयोग होने पर भ्रमित हो सकते
है। जैसे कि घटाने के लिए ‘कम करो’, ‘अंतर निकालो’, ‘व्यकलन’ करो, सभी इस्तेमाल
किए जाते हैं।
     बड़े बच्चों को भी अक्सर इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसा इसलिए
क्योंकि हर स्तर पर गणित की अवधारणाओं को सिखाने के लिए भाषा इस्तेमाल होगी
और इसका स्वरूप बदलता व अधिक समृद्ध होता जाता है। इस भाषा को सीखने की
कोशिश हर स्तर पर करनी पड़ती है।
      प्रश्नों की लंबाई अधिक होने पर भी बच्चों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। वाक्य
रचना का दोष भी उन्हें अमित करता है।
प्रश्न 10. हमारे जीवन में गणित की उपयोगिता, महत्त्व और आवश्यकताओं को
ध्यान में रखते हुए गणित शिक्षण के मुख्य उद्देश्य को निर्धारण किन रूपों में किया
जा सकता है ? विस्तार से वर्णित कीजिए।
उत्तर―हमारे जीवन में गणित की उपयोगिता, महत्त्व और आवश्यकताओं को ध्यान में
रखते हुए गणित शिक्षण के मुख्य उद्देश्य का निर्धारण निम्नांकित रूप से किया जा सकता
है―
(1) गणित शिक्षण बच्चों में तार्किक एवं विश्लेषणात्मक क्षमताओं का विकास
करने में उपयोगी–गणित की प्रकृति तार्किक है अत: किसी समस्या को क्रमबद्ध रूप से,
तार्किक रूप से किस प्रकार हल करें कि हम एक सटीक समाधान प्राप्त करने में सफल
हो, इसके लिए विद्यार्थियों में प्राथमिक कक्षाओं से ही क्रमबद्ध सोचने, समझने और तर्कपूर्ण
ढंग से समस्या का समाधान करने के लिए सतत् रूप से प्रोत्साहित करने की आवश्यकता
है। गणितीय ज्ञानार्जन करने के लिए तर्कपूर्ण ढंग से सोचने की क्षमता का विकास करना
न केवल वांछनीय है, साथ में परमावश्यक भी है क्योंकि गणित की प्रकृति तार्किक है।
      दैनिक जीवन को अनेक समस्याओं का गहन रूप से विश्लेषणात्मक रूप से निरीक्षण
करके उनका हल ढूंढा जा सकता है। गणितीय ज्ञान का उपयोग समस्या का विश्लेषण करके
सटीक व उपयुक्त समाधान पर पहुंचने के लिए किया जा सकता है। अतः विद्यार्थियों में
किसी समस्या को विश्लेषणात्मक प से समझकर समाधान ढूंढने के लिए प्रेरित करने को
आवश्यकता है।
(2) गणित शिक्षण बच्चों में दैनिक जीवन से सम्बन्धित समस्या समाधान में गणितीय
ज्ञान के उपयोग की क्षमता विकसित कर सकता है―प्रत्येक अर्जित ज्ञान की दैनिक जीवन
में कहीं न कहीं उपयोगिता है, और विशेषकर गणितीय ज्ञान की उपयोगिता सर्वत्र है। अतः
विद्यार्थियों को उनके द्वारा अर्जित गणितीय ज्ञान को दैनिक जीवन में इस्तेमाल करने तथा दैनिक
जीवन की समस्याओं को सटीकता, तार्किकता और सुस्पष्टता के साथ हल करने के लिए
प्रेरित करने की आवश्यकता है। विद्यार्थी के दैनिक जीवन के क्रियाकलापों, गतिविधियों को
गणितीय ज्ञान के माध्यम से सोचने, समझने और कार्य पूर्ण करने के लिए उन्हें प्रेरित करने
की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त अर्जित गणितीय ज्ञान का कौशलपूर्वक विभिन्न प्रकार
की समस्या का समाधान करने की क्षमता का विकास विद्यार्थियों में करना आवश्यक है।
यह गणित शिक्षण का एक प्रमुख उद्देश्य है कि क्या विद्यार्थी आत्मविश्वास के साथ गणितीय
समस्याओं का समाधान सटीकता के साथ करता है या नहीं? इसकी जानकारी उसके गणितीय
रूप से आकलन, गणना, अनुमान, सन्निकटन करने की क्षमता इत्यादि कौशलों का मूल्यांकन
करके किया जा सकता है।
गणितीय ज्ञान को सही ढंग से स्थायी रूप से अर्जित करने के लिए विद्यार्थियों को मूर्त
समस्याओं, घटनाओं, क्रियाकलापों में सक्रिय रूप में भागीदार बनाकर उनके मन मस्तिष्क
में गणितीय अवधारणाओं को समझने का बीजारोपण किया जा सकता है। प्राथमिक स्तर पर
मूर्त वस्तुओं के माध्यम से विद्यार्थियों को एक आयाम, द्विआयाम, त्रिआयाम व बहुआयाम
की संकल्पनाओं को समझने, सोचने व देखने की क्षमता का विकास किया जा सकता है।
विद्यार्थियों में किसी समस्या या क्रियाकलाप, घटना या क्रियाविधि को गणित के नजीरेये
से देखने, समझने, सोचने व कार्यान्वित करने की योग्यता का विकास करने आवश्यकता है।
किसी समस्या, घटना या कार्य में गणितीय दृष्टिकोण अपना कर ही उसका विश्लेषण सटीक,
तार्किक, रूप से किया जा सकता है या सटीक, तार्किक, क्रमबद्ध रूप से समाधान निकाला
जा सकता है। विद्यार्थी अपनी दिनचर्या के प्रत्येक क्रियाकलाप/ गतिविधियों/कार्यों को एक
निश्चित समयावधि में किस प्रकार पूरा करता है ? इसका विवरण वह गणितीय दृष्टिकोण
अपना कर लिख सकता है, व उसका सटिकता के साथ क्रियान्वयन कर सकता है।
प्रश्न 11. NCF 2005 और BCF 2008 के अनुसार गणित पाठ्य पुस्तक किन
विशेषताओं के कारण अधिगम का एक उत्तम स्रोत हो सकता है।
उत्तर―बिहार राज्य ने गणित की पाठ्यपुस्तकों का निर्माण राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा
2005 तथा बिहार पाठ्यक्रम रूपरेखा 2008 के सिफारिशों के अनुसार किया है। इन
पाठ्यपुस्तकों को ठीक प्रकार से उपयोग किया जाए तो यह अधिगम के लिए निम्नांकित
विशेषताओं के कारण एक उत्तम स्रोत हो सकता है।
□ राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा 2005 तथा बिहार पाठ्यक्रम 2008 के सिफारिशों के
अनुसार पाठ्यपुस्तक का निर्माण कक्षाकक्ष के भीतर व बाहर विद्यार्थियों और अध्यापकों के
लिए क्रियाकलापों को व्यवस्थित रूप से समावेश करके किया गया है। ये सब अध्यापकों
और विद्यार्थियों के लिए अधिगम क्रियाकलापों का आयोजन करने के अवसर उपलब्ध
करता है।
□ विषय वस्तु से सम्बन्धित अवधारणाओं को पाठ्यपुस्तक में व्यापक रूप से व्यवस्थित
किया जाता है तो कि पाठ को पढ़ाने के लिए रूपरेख तैयार करने में नये विचारों का जन्म
देता है । एक कम कल्पनाशील अध्यापक शायद पाठ्यपुस्तक में दिए गए उदाहरणों का अनुसरण
करके कक्षा में शिक्षण कार्य करें लेकिन एक अधिक कल्पनाशील अध्यापक पाठ्यपुस्तक
के उदाहरणों से प्रेरणा लेकर कई वैकल्पिक शिक्षण अधिगम क्रियाकलापों का सृजन कर
सकता है जिससे विषय-वस्तु के अवधारणाओं को रुचिपूर्वक व अर्थपूर्ण ढंग से वह विद्यार्थियों
को समझा सकता है।
□ अवधारणाओं को कई प्रकार से क्रियाकलापों/ माध्यमों, जैसे गाना, कविता, कहानी,
पहेली, और चर्चा, से प्रस्तुत किया गया है। इसके कारण बच्चे सीखने में अधिक रुचि लेते
हैं। पाठ्यपुस्तक में प्रस्तुत सामग्रियों के आधार पर आप अपने वातावरण, परिवेश में उपलब्ध
सामग्रियों का इस्तेमाल करके अधिगम क्रियाकलाप कम खर्च व प्रयास से तैयार कर सकते हैं।
□ सिखायी गयी अवधारणाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए विद्यार्थियों के अभ्यास के
लिए क्रियाकलाप दिया गया है। इससे विद्यार्थियों के अभ्यास के लिए नये क्रियाकलापों का
सृजन करने के लिए नये विचार उपलब्ध कराता है। इस संदर्भ में पाठ्यपुस्तक एक उत्कृष्ट
शिक्षण अधिगम सामग्री है।
□  नई पाठ्यपुस्तक का निर्माण तथ्यों पर आधारित होने के साथ-साथ विद्यार्थियों के
लिए चर्चा करने के लिए अवसर प्रदान करता है। उदाहरण के लिए अवधारणाओं और
क्रियाकलापों समस्याओं को समझने व अभ्यास करने के लिए स्थान दिया गया है जिससे बच्चों में
चिंतनात्मक सोच का विकास हो और छोटे समूह में कार्य करने के लिए प्रेरित हो।
□ पाठ्यपुस्तक में दिए गए अभ्यासों व क्रियाकलापों का उपयोग विद्यार्थियों के अर्जित
ज्ञान का मूल्यांकन करने के लिए किया जा सकता है। ये अभ्यास आपको कई प्रकार के
परीक्षण आइटम तैयार करने में सहायक सिद्ध होंगे जिसका उपयोग आप इकाई परीक्षण और
अन्य मूल्यांकन परिस्थितियों में कर सकते हैं।
प्रश्न 12. गणित के आधार-पत्र 2006 में गणित शिक्षा के किन लक्ष्यों एवं उद्देश्यों
का वर्णन किया गया है? उल्लेखित कीजिए।
उत्तर―गणित के आधार-पत्र में गणित शिक्षा के निम्नांकित लक्ष्य और उद्देश्यों
को निरूपित किया गया है―
(i) विद्यालयों में गणित शिक्षा का मुख्य लक्ष्य है–बच्चे की विचार प्रक्रिया और चिन्तन
का गणितीकरण करना । डेविस हीलर के अनुसार, “बहुत सारी गणित जानने के
बजाय यह जानना अधिक उपयोगी है कि गणितीयकरण कैसे किया जाए।”
(ii) जार्ज पोल्या के अनुसार, स्कूली शिक्षा के दो तरह के उद्देश्य हो सकते हैं-प्रथम
अच्छा एवं संकीर्ण उद्देश्य है-रोजगार योग्य ऐसे वयस्कों को तैयार करना जो
सामाजिक तथा आर्थिक विकास में योगदान दे सके। द्वितीय ऊँचा उद्देश्य है-
बढ़ते बच्चों में आंतरिक संसाधनों का विकास करना ।
(iii) गणितीय उपक्रमों में विचारों की स्पष्टता और तार्किक निष्कर्षों तक पहुँचने में
पूर्वानुमानों पर कार्य करना।
(iv) गणित शिक्षण का फोकस संकीर्ण लक्ष्य से हटाकर ऊँचे लक्ष्यों की ओर स्थानान्तरित
करना।
(v) समस्या समाधान के लिए गणित शिक्षा का उपयोग करना।
(vi) गणित का पाठ्यक्रम महत्त्वाकांक्षी, सुसंगत और गणित वाला हो
(vii) अन्य विषयों जैसे विज्ञान, सामाजिक ज्ञान आदि में आने वाली समस्याओं को हल
करने में मदद देना।
(viii) स्कूली गणित गतिविधियों पर आधारित हो।
(ix) जीवन में आने वाली समस्याओं को बेहतर ढंग से हल करने में गणित का उपयोग ।
(x) शिक्षा के सार्वभौमिकरण में गणित एक अनिवार्य विषय के रूप में हो । अतः इसका
सार्वभौमिकरण हो।
NCERT ने गणित के द्वारा बच्चों में निम्न गणितीय कौशलों के विकास को अपेक्षित
माना है―
(i) अमूर्तन
(ii) सांख्यिकीकरण
(iii) अनुरूपता
(iv) प्रकरण विश्लेषण
(v) रूपान्तरण
(vi) अनुमान और सत्यापन
(vii) सन्निकटन
(viii) इष्टमीकरण
(ix) दृश्यीकरण और निरुपण
(x) प्रतिमानीकरण
(xi) व्यवस्थित तर्कण
प्रश्न 13.NCF-2005 में बच्चों के गणित शिक्षण के सन्दर्भ में क्या-क्या अनुशंसा
की गई है?
अथवा, RCF-2005 के अनुसार विद्यालय में गणित शिक्षण के उद्देश्य क्या-क्या
होने चाहिए? वर्णित कीजिए।
उत्तर―NCF-2005 के अनुसार विद्यालय में गणित शिक्षण में निम्नलिखित उद्देश्य होने
चाहिए:
(1) बच्चे आनन्दपूर्वक गणित की अवधारणा को आत्मसात् करें―विद्यालय का
गणित कक्ष का वातावरण आनन्ददायक, आकर्षक और विद्यार्थियों में रूचि और जिज्ञासा
उत्पन्न करने वाला हो, जहाँ अध्यापक और विद्यार्थी साथ मिलकर गणितीय ज्ञानार्जन करें।
बच्चों में प्राथमिक स्तर पर खेल विधि और वस्तुओं के प्रहस्तनीय कौशल के माध्यम से
गणितीय कौशलों और योग्यताओं का विकास करना चाहिए अर्थात् गणित की चर्चा वहाँ
से करें जहाँ बच्चा जिज्ञासापूर्वक ढंग से किसी वस्तु या घटना को जानने समझने का प्रयास
करता है।
(2) यांत्रिक रूप से गणित न सीखकर सक्रिय रूप से समस्या समाधान की प्रक्रिया
में भाग लेकर गणितीय प्रक्रिया को समझना व आत्मसात् करना―बच्चे को कक्षा में
सक्रिय रूप में गणितीय समस्याओं को हल करने के लिए आनन्ददायक रूप से प्रेरित करना
चाहिए। बच्चे गतिण को ऐसी गतिविधि की तरह देखें जिसके बारे में वे बात कर सकें,
जिसकी समझ को सम्प्रेषित कर सकें, आपस में चर्चा कर सकें व मिलजुल कर काम कर
सकें।
(3) बच्चे विभिन्न गणितीय परिणामों के आपसी सम्बन्ध को देखें, समझें तथा
सम्प्रेषण करें―गणित शिक्षण क्रियाकलाप के दौरान एक विद्यार्थी कई निष्कर्षों पर पहुँच सकता
है। आवश्यकता है कि अध्यापक उसे उन गणितीय निष्कर्षों के मध्य क्या सम्बन्ध है उसकी
ओर विद्यार्थी का ध्यान आकर्षिक करें और समझाएँ तथा इसी प्रकार अन्य निष्कर्षों के आपसी
सम्बन्ध को खोजकर सम्प्रेषण के लिए प्रेरित करें।
(4) बच्चों को अर्थपूर्ण प्रश्न पूछने देना एवं गणित के प्रति रुचि उत्पन्न करना―
गणित शिक्षण का एक विशेष पहलू समस्या निर्माण, अर्थात् प्रश्न पूछना । प्रायः गणित
की कक्षा में गणितीय सवालों को हल करने पर जोर दिया जाता है तथा बच्चों को प्रश्न पूछने
का अवसर नहीं दिया जाता है, लेकिन तार्किक सोच विकसित करने के लिए बच्चों को प्रश्न
पूछने या समस्या निर्माण के लिए उत्साहित करना चाहिए। इससे वे गणित ज्ञा जन को अधिक
सार्थक व स्थायी बना सकते हैं। अध्यापक/अध्यापिका को चाहिए कि कक्षा वातावरण में
ऐसी स्थिति उत्पन्न करें कि उस प्रश्न का उत्तर ढूँढने में बच्चे को सक्रिय रूप से भागीदार
बनाकर उनकी जिज्ञासा को शांत किया जा सकें। इससे बच्चे में गणित को सीखने समझने
के प्रति रुचि बढ़ेगी।
(5) गणित के बुनियादी ढाँचे को समझना गणित विषय की शाखाओं अंकगणित,
बीजगणित, रेखागणित, आंकड़ों का प्रबन्धन इत्यादि गणित की आधारभूत विषयवस्तु है। ये
सभी अमूर्तकरण करने, नियमित संरचनाएँ बनाने तथा गणितीय ज्ञान का व्यापीकरण करने में
मदद करती हैं। सामान्यत: गणित की अवधारणा पहले सीखी गई अवधारणाओं या संकल्पनाओं
पर आधारित होती है। इन अवधारणाओं में परस्पर सम्बन्ध होता है जो समस्या समाधान में
कहीं सरल तो कहीं जटिल रूप में सामने आता है। अध्यापक को चाहिए कि वे इनका आपस
में प्रयोग करना विद्यार्थियों को सिखाये।
(6) गणितीय संकेतों के निरूपण व सम्प्रेषण की क्षमता का विकास करना―दैनिक
जीवन की समस्याओं को गणितीय संकेतों के द्वारा निरूपित करना और सम्प्रेषण करने के
कौशलों का विकास करना गणित शिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है; जैसे-वृत्त के व्यास
तथा परिधि का अनुपात निश्चित (स्थिर) होता है। समस्याओं को गणित की भाषा में व्यक्त
करने और उनका हल, बच्चों की सोच का गणितीयकरण करके प्राप्त करने के लिए प्रेरित
करना आवश्यक है।
प्रश्न 14. गणित-शिक्षण में पाठ्य-पुस्तक का क्या महत्त्व है?
अथवा, शिक्षक पाठ्य-पुस्तक का दास नहीं बल्कि पाठ्य-पुस्तक उसकी दासी
है। गणित-शिक्षण के सन्दर्भ में इस कथन की विवेचना कीजिए।
अधवा, विद्यालय में गणित-पुस्तकालय की क्या आवश्यकता और महत्त्व है?
उत्तर―गणित शिक्षण के लिए पाठ्य-पुस्तक एवं पुस्तकालयों के महत्त्व और स्थान को
जानना अत्यन्त आवश्यक है। कुछ लोगों का विचार है कि गणित-शिक्षण में पाठ्य-पुस्तक
होनी ही नहीं चाहिए जबकि कुछ लोग पूरी तरह से पाठ्य-पुस्तक पर ही निर्भर रहने को
कहते हैं। वास्तव में सत्यता इन दोनों के बीच में है। गणित शिक्षण में न तो पाठ्य-पुस्तक
की पूर्णतया अवहेलना की जा सकती है और न तो गणित के शिक्षक को पाठ्य-पुस्तक का
दास ही होना चाहिए । वास्तव में पाठ्य-पुस्तक और पुस्तकालय दोनों ही शिक्षण कार्य में
सहायता करते हैं। और वे सहायक शिक्षण सामग्री के उपकरण के ही अंग हैं।
गणित-शिक्षण में पाठ्य-पुस्तक की आवश्यकता और महत्त्व :
(1) शिक्षण सामग्री के रूप में पाठ्य-सामग्री–शिक्षक को अपने शिक्षण कार्य में जैसे
अन्य शिक्षण सामग्रियों की आवश्यकता होती है वैसे ही अच्छे उदाहरणों और अभ्यास प्रश्नों
हेतु अच्छी पाठ्य-पुस्तक की भी सहायता लेनी पड़ती है। यह ठीक है कि अच्छा शिक्षक स्वयं
पाठ्य-पुस्तक का दास नहीं होता परन्तु वह छात्रों से पाठ्य-पुस्तक के अच्छे उदाहरण, प्रश्नों
का संकलन करने के लिए कहता है और उनको हल करवाता है। इस प्रकार आवश्यकतानुसार
गणित का शिक्षक पाठ्य-पुस्तक को सहायक शिक्षण सामग्री के रूप में प्रयोग करता है।
(2) मार्ग दर्शन हेतु―अच्छी पाठ्य-पुस्तक में गणित-शिक्षण के लिए अच्छी एवं नवीनतम
शिक्षण विधियों का उल्लेख होता है। इससे गणित शिक्षक का मार्ग दर्शन होता है। यह पुस्तक
की अच्छाई पर निर्भर करता है कि वह शिक्षक का कितना मार्ग दर्शन करता है। जिस सीमा
तक पाठ्य-पुस्तक शिक्षक के लिए उपयोगी सिद्ध होगी और जिस सीमा तक पाठ्य-पुस्तक
के माध्यम से सुझाव मिलेंगे, उस सीमा तक ही पाठ्य-पुस्तक शिक्षक का मार्ग दर्शन करेगी।
(3) अभ्यास हेतु―गणित की अच्छी पाठ्य-पुस्तक में छात्रों के अभ्यास हेतु अच्छी
समस्याओं और प्रश्नावली का समावेश किया जाता है। उन समस्याओं और प्रश्नावलियों को
जाँचते समय मनोविज्ञान दृष्टिकोण को देखा जाता है और साथ छात्रों के स्तर-क्रम को भी
ध्यान में रखा जाता है। परिणाम यह,होता है कि पाठ्य-पुस्तक छात्रों को गणित के अभ्यास
में पर्याप्त सहायता पहुँचाती है। यह शिक्षक के समय एवं शक्ति को बचाती है।
(4) स्वाध्ययन हेतु―गणित में स्वाध्ययन के बिना काम नहीं चल सकता । जो विद्यार्थी
केवल शिक्षक पर ही निर्भर करते हैं वे आगे चलकर अच्छे विद्यार्थी नहीं सिद्ध होते ।
पाठ्य-पुस्तक गणित के विद्यार्थियों को स्वाध्ययन हेतु प्रेरित करती है। यदि पाठ्य-पुस्तक
अच्छी होती है तो गणित की अनेक बातें छात्र अध्यापक के बिना ही सीख लेते हैं। साथ
ही गणित की पाठ्य-पुस्तके उसके ज्ञान को स्पष्ट एवं विस्तृत बनाने में योगदान देती है।
        उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि गणित शिक्षण में भी पाठ्य-पुस्तक का विशेष
महत्त्व है। परन्तु इस सम्बन्ध में यह स्मरण रखना चाहिए कि गणित के शिक्षक को पाठ्य-पुस्तक
का दास नहीं होना चाहिए बल्कि पाठ्य-पुस्तक उसको दासी होनी चाहिए। कहने का तात्पर्य
यह है कि गणित शिक्षक को पूरी तरह से पाठ्य-पुस्तक पर निर्भर न रहना चाहिए और उसका
उपयोग एक सहायक सामग्री के रूप में ही करना चाहिए। जो गणित-शिक्षक पूरी तरह से
पाठ्य-पुस्तक पर ही निर्भर करते हैं वह अपने शिक्षण को न तो रोचक बना पाते है और
न छात्रोपयोगी। शिक्षक को अपनी बुद्धि से पाठ तैयार करना चाहिए और आवश्यकता पड़ने
पर स्थान-स्थान पर पाठ्य-पुस्तक की सहायता लेती रहनी चाहिए। इस पर पूरी तरह से निर्भर
रहना शिक्षक को अयोग्यता का परिचायक है।
प्रश्न 15. निम्नलिखित प्रत्ययों को स्पष्ट कीजिए:
अंक, संख्याक, मुख्याकन, संख्यानाम, प्राकृतिक संख्याएँ, पूर्ण संख्याएँ।
उत्तर―1 अंक (Digius)—किसी संख्या को निरूपित करने के लिए हम संकेत0,1,
2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 और 9 का प्रयोग करते है। ये दस संकेत अंक कहलाते है।
2.संख्यांक (Numeral)―किसी संख्या को निरूपित करने वाले अंक समूह को संख्यांक
कहा जाता है। उदाहरणार्थ–1434, 50812, 543682 … इत्यादि संख्यांक है।
       नोट : संख्यांक और संख्या समान अर्थी है। अतः संख्यांक की जगह संख्या लिखा
जाता है।
3. संख्यांकन (Notation)―किसी संख्या को अंको (degits or figures) में प्रकट करने
की विधि को संख्यांकन (Notation) कहा जाता है।
4. संख्यानाम (Numeration)― किसी संख्या को शब्दों में प्रकट करने की विधि को
संख्यानाम (Numeration) कहा जाता है।
5. प्राकृतिक संख्याएँ (Natural Numbers)― अंकों का प्रयोग कर हम संख्याएँ 1,2,
3,4,5….9, 10, 11….. लिखते हैं। ये संख्याएँ गिनने में हमे स्वाभाविक रूप से मदद करती
है, अतः इन्हें प्राकृतिक संख्याएँ (Natural Numbers) कहते है।
                अतः गितनी की संख्याएँ 1,2,3,…..प्राकृतिक संख्याएँ कहलाती है। इन संख्याओं के
समूह को N से व्यक्त किया जाता है। N, Natural शब्द का प्रथम अक्षर है।
अतः N= {1,2,3,….}
सबसे छोटी प्राकृतिक संख्या 1 है, किन्तु सबसे बड़ी प्राकृतिक संख्या ज्ञात नहीं की जा
सकती है।
6. पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers)―किसी रिक्त समूह (अवयव रहित संग्रह) के
अवयवों की संख्या को शून्य (Zero) कहते हैं। दूसरे शब्दों में संख्या शून्य का अर्थ ‘एक
भी नहीं’ है। 0 (शून्य) को जब प्राकृतिक संख्याओं के समूह (N) में मिला देते हैं, तब हमें
संख्याएँ 0,1,2,3,4,5….. प्राप्त होती है, जो पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers) कहलाती हैं।
पूर्ण संख्याओं के समूह को W से प्रकट करते हैं।
इस प्रकार W= {0, 1,2,3,…}
        स्पष्टतः सबसे छोटी पूर्ण संख्या 0 (शून्य) है, किन्तु सबसे बड़ी पूर्ण संख्या नहीं प्राप्त
की जा सकती है। यह भी स्पष्ट है कि प्रत्येक प्राकृतिक संख्या एक पूर्ण संख्या है किन्तु 0
ऐसी पूर्ण संख्या है, जो प्राकृतिक संख्या नहीं है।
प्रश्न 16.विभिन्न संख्या समूहों को किस प्रकार विस्तारित रूप में लिखा जाता
है?
अथवा, अंकित मान और स्थानीय मान को समझाइए।
उत्तर―संख्याओं का विस्तारित रूप―संख्या में उक्त स्वरूप के पश्चात् उन्हें लिखने
के लिए हम संख्याओं के स्थान के अनुसार इकाई, दहाई, सैकड़ा आदि से उनका मान ज्ञात
करते हैं तथा उनके आधार पर सबसे छोटी व सबसे बड़ी संख्या को ज्ञात किया जाता है।
इकाई, दहाई आदि संख्याओं को निम्न प्रकार परिभाषित कर सकते है :
        इकाई–सामान्यतः एक वस्तु को एक इकाई, दो वस्तुओं को दो इकाई आदि क्रमशः
नौ इकाई तक ही संख्याओं को अथवा 1,2,3,4,5,6,7,8,9 अंको को इकाई कहा जाता है।
दहाई–9 में 1 जोड़ने पर आगे 10 प्राप्त होता है । यहाँ अंकों की संख्या दो होती है।
इसे दहाई तक का अंक कहा जाता है। अतः संख्या 10 से 99 तक की संख्याएँ दहाई वाली
संख्याएँ कहलाती है।
        दो अंकों की सबसे छोटी संख्या 10 तथा बड़ी संख्या 99 होती है।
सैकड़ा―99 में 1 जोड़ने पर 100 प्राप्त होता है । यह तीन अंकों की सबसे छोटी
संख्या होती है तथा सैकड़ा कहलाती है। यदि 200 लिखा जाए तो उसमें 2 सैकड़ा होते
है तथा 300 में तीन सैकड़ा होते हैं। इसी प्रकार तीन अंकों की सबसे बड़ी व अंतिम
संख्या 999 होती है।
      हजार―999 में 1 जोड़ने पर हजार (1000) प्राप्त होता है। यह चार अंकों की सबसे
छोटी संख्या होती है, इसमें 9999 चार अंकों की सबसे बड़ी संख्या होती है।
      दस हजार―9999 में 1 जोड़ने पर दस हजार (10000) प्राप्त होता है, जोकि पाँच अंको
की सबसे छोटी संख्या तथा 99.999 पाँच अंकों की सबसे बड़ी संख्या होती है।
     लाख―99,999 में | जोड़ने पर छ: अंको की सबसे छोटी संख्या (1.00,000) प्राप्त
होती है व 9,99,999 (नौ लाख, निन्यानवे हजार नौ सौ निन्यानवे) छः अंकों की सबसे बड़ी
संख्या होती है।
    दस लाख–9,99,999 + 1 = दस लाख होता है । यह सात 10,00,000 अंकों की सबसे
छोटी व 99.99,999 (निन्यानवे लाख निन्यानवे हजार नौ सौ निन्यानवे) सात अंको की सबसे
बड़ी संख्या होती है।
    एक करोड़―99,99,999 में 1 जोड़ने पर एक करोड़ प्राप्त होता है । यह आठ अंको
की सबसे छोटी व 9,99.99,999 (नौ करोड़, निन्यानवे लाख निन्यानवे हजार, नौ सौ निन्यानवे)
अंकों की सबसे बड़ी संख्या होती है।
        वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय बाजार मे मानक के अनुसार दस लाख को एक मिलियन, एक
करोड़ को दस मिलियन तथा 10 करोड़ को 1 बिलियन कहा जाता है।
       संख्याओं को पढ़ने व लिखने के लिए दाई से बाई ओर चलते हैं तो क्रमशः संख्या
का मान बढ़ता जाता है।
करोड़                 दस लाख      लाख दस         हजार     हजार    सैकड़ा   दहाई   इकाई
1,00,00,000   10,00,000   1,00,000      10,000   1,000    100     10       1
10⁷                    10⁶             10⁵                10⁴        10³       10²    10¹    10°
1                          0                 0                    0           0           0       0        0
                            1                 0                    0           0           0       0        0
                                                1                   0           0           0       0        0
                                                                     1           0           0       0         0
                                                                                  1           0       0         0
                                                                                               1       0         0
                                                                                                        1         0
                                                                                                                    1
उक्त तालिका से स्पष्ट है कि इकाई से बाई ओर क्रमशः जितना बढ़ते हैं, उतना ही
अकों के मान में दस गुने की वृद्धि होती है। एक संख्या 65,525 को यदि 60,000 + 5,000
+500+20+5 के रूप में लिखा जाए तो गलत नहीं होगा, लेकिन संख्याओं को उक्त प्रकार
दस हजार + हजार +सैकड़ा + दहाई + इकाई के रूप में पृथक् करके लिखा जाए तो इस
संख्या का विस्तारित रूप होता है।
उक्त उदाहरण में एक और तथ्य उभर कर सामने आता है कि 6 का मान साठ हजार
तथा पाँच का मान क्रमशः पाँच हजार, पाँच सी तथा पाँच है व2 का मान 20 है। इसमें
उक्त अंक के मान संख्या में उसकी स्थिति विशेष के अनुसार परिवर्तित हो रहे हैं, अर्थात्
अंक 6 दस हजार के स्थान पर है, अतः उसका मान साठ हजार तथा अंक 5 हजार, सैकड़ा
व इकाई के स्थान पर है, तो उसका मान क्रमशः 5000.500 व 5 होता है, जबकि अंक 2
दहाई स्थान पर है, तो उसका मान बीस होता है। अतः किसी अंक का मान यदि संख्या
में उसकी स्थिति विशेष के अनुसार परिवर्तित होता रहता है, तो उसे स्थानीय मान कहा
जाता है।
प्रश्न 17. गिनती सिखाने से आपका क्या अभिप्राय है? यह बच्चों में कैसे
विकसित किया जा सकता है?
अथवा, गिनती सिखाने का क्या अर्थ है? आप कैसे जान पायेंगे कि बच्चे गिनती
सीख चुके हैं ?
अथवा, बच्चों में गिनती की अवधारणा स्पष्ट करने के लिए गतिविधि का वर्णन
करें।
उत्तर―गिनती सीखाने से तात्पर्य/गिन्ती सिखाने का अर्थ-सामान्यतया लोग यही
समझते है कि अगर बच्चे । से 10 या उससे आगे 100 तक की गिनती याद कर ले और
उन्हें बोलना सीख जाएँ तो उन्हें संख्याओं का ज्ञान हो जाता है। बच्चा जब संख्याएँ लिखना
व पहचानना सीख जाता है तो हम समझते हैं कि अब सीख गया है। परन्तु हम यह नहीं
सोच पाते कि इस उम्र में उसके लिए क्या ठोक है और क्या नहीं?
        इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि गिनती सीखाने का तात्पर्य बच्चे को संख्याओं
का ज्ञान कराना है। उन्हें यह ज्ञान कराना है कि कौन-सी संख्या बड़ी है और कौन छोटी है,
कौन-सी संख्या आगे आयेगी या कौन-सी संख्या पीछे। गिनती सीखने के बाद ही बच्चों को
जोड़ना, घटाना, गुणा और भाग समझाया जाता है।
        बच्चों में गिनती का विकास निम्न तरीको से किया जा सकता है। इसके लिए हम एक
शिक्षक के गतिविधि का अवलोकन करते हैं―
(i) सर्वप्रथम शिक्षक ने चम्मचो (10 चम्मच) को एक लाइन में रखा ताकि गिनते समय
कोई न छूटे और न ही दुबारा गिना जा सके अर्थात् शिक्षक ने उन्हें एक क्रम में रखा।
Gi) इसके बाद शिक्षक ने चम्मचों को गिनने के लिए एक मान्य क्रम में संख्याओं का
नाम बोलना शुरू किया और हर संख्या का क्रम में बोलते हुए क्रम में रखी गई
चम्मचों को छुआ। अर्थात् एक चम्मच को एक संख्या से जोड़ा यानी एक-एक
की संगति बनाया।
(ii) जब शिक्षक ने दसवीं चम्मच को छुआ तो बोला दस’ (10)अर्थात् दस का इस्तेमाल
दसवीं चम्मच के लिए हुआ, लेकिन उस समय सिर्फ दसवी चम्मच को ही छुआ गया
था। दूसरी तरफ दस का इस्तेमाल कुल दस चम्मचों की कुल संख्या के लिए हुआ।
(iv) गिनती के बाद शिक्षक ने चम्मचों को दो समूहों में वर्गीकृत किया। ऐसी चम्मचों
का समूह जो दस की संख्या में गिनी गई थी। दूसरा समूह बची हुई चम्मचों का था।
(v) शिक्षक ने एक बार फिर दूसरी तरफ से ऊपर की सारी प्रक्रियाओं से गुजरते हुए
दस तक गिना तो गिनी हुई कुल गोलियों के समूह में दस ही चम्मच थे। अर्थात्
गिनती में दिशा क्रम बदलने से गिनती अप्रभावित रहती है।
(vi) शिक्षक ने दूसरी बार चम्मचों के बदले गोलियों का इस्तेमाल किया और दस तक
की गिनती उपरोक्त प्रक्रिया के साथ की तो भी गिनती पूर्व की तरह हुई। अर्थात्
गिनती में किसी भी वस्तु का प्रयोग हो सकता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि गिनने में मुख्य प्रक्रियाएँ निम्नलिखित हैं―
* एक मान्य क्रम में रखना
* वर्गीकरण करना
* एक-एक की संगति बनाना
* एक ही संख्या को दो अलग-अलग अर्थों में इस्तेमाल करना।
 गिनती में दो अन्य प्रक्रियाएँ भी है―
* गिनती किसी भी दिशा से हो सकती है।
* गिनती में किसी भी वस्तु का इस्तेमाल हो सकता है।
इस कार्यकलाप से बच्चों में गिनती की स्पष्ट अवधारणा का विकास होगा। अगर हमलोग
यहाँ बच्चों से पूछे की उनसे तीसरा, चौथा और छठा कौन है, वे तुरन्त बताएंगे। अगर उनसे
पूछे की 5 के पहले कौन-सी संख्या होगी, वे 4 बताएँगे। इस प्रकार से मूल्यांकन कर हम
कह सकते है कि वे गिनती सीख चुके हैं।
प्रश्न 18. संख्या पूर्व अवधारणा क्या है? इसके अन्तर्गत कौन-कौन सी प्रक्रियाएँ
शामिल है।
उत्तर―संख्या पूर्व अवधारणा-सामान्यतः बच्चे गिनती या संख्या सीखने के पहले
कम-ज्यादा, ऊपर-नीचे, दूर-पास और बड़ा-छोटा आदि से परिचित होते है। इन्हीं को संख्या
पूर्व अवधारणा कहा जाता है।
     प्रारंभिक स्तर पर हम अक्सर देखते है कि बच्चे संख्या, गिनती का मतलब नहीं समझ
पाते हैं। उदाहरण के लिए मैंने अपने एक मित्र सोन के बच्चे से तेरह लिखने को कहा, तो
उसने 31 लिखा । कक्षा में शिक्षण के समय बच्चों के सामने ऐसे कई उदाहरण सामने आते
उहत हैं। अक्सर कक्षाओं में यह देखा जाता है कि बच्चे किसी लिखी हुई संख्या जैसे 8
को नहीं पढ़ पाते अथवा इसका मतलब नहीं समझ पाते जबकि उन्हें ऐसी संख्याओं का ज्ञान
होना चाहिए। ऐसे ही जब किसी बच्चे से 121 में 2 का मतलब पूछा जाता है तो इसका जवाब
यथोचित नहीं होता अर्थात् उन्हें 3 के स्थानीय मान का ज्ञान नहीं होता है। हालांकि वे अंकों
को पहचानना अथवा पढ़ना जानते हैं।
      बच्चों में संख्या की समझ धीरे-धीरे ही विकसित होती है। अतः संख्या का अर्थ समझने
में पहली आवश्यकता इस बात की है कि बच्चों में ‘वर्गों में बाँटना’, ‘क्रम में रखना’ तथा
‘एक-एक की संगति बनाना’ जैसी क्षमताओं का विकास किया जाए।
           वर्गीकरण―जब वस्तुओं को उनके एक ही प्रकार के गुणों के आधार पर साथ-साथ
रखा जाता है तो इसे वर्गीकरण या समूहीकरण कहते हैं और यही क्षमता तार्किक व गणितीय
अवधारणाओं के विकास की बुनियाद है।
      बच्चे वर्गीकरण का उपयोग अपने दैनिक जीवन में निरंतर करते हैं। उदाहरणतः इन्हें
फूल, अनाज, बर्तन, कटे हुए कागज, खिलौना इत्यादि अलग-अलग रखने के लिए कहा
जाता है तो वे वर्गीकरण तो करते ही हैं। लेकिन वर्गीकरण की अवधारणा को विकसित करने
के लिए बच्चों को ऐसे और अनुभवों व प्रोत्साहन की जरूरत पड़ती है। खेल इसका अच्छा
माध्यम हो सकता है।
   आप शिक्षण के क्रम में बच्चों में वर्गीकरण की समझ को विकसित करने के लिए निम्नांकित
गतिविधियाँ कर सकते हैं―
1. वर्ग शिक्षण करने के क्रम में― बच्चों को तरह-तरह की सामग्री खेलने के लिए
दें। खेलते वक्त वे अपने आप उन वस्तुओं को व्यवस्थित करने के तरीकों के बारे में सोचते
हैं। हो सकता है कि उनके द्वारा किया गया वर्गीकरण हमें अजीब सा लगे। किन्तु बगैर झुंझलाएँ
हुए हम यह सोचें कि इन्हें अलग अलग सामग्री अपने ढंग से एक जगह संग्रहित करने का
मौका मिल रहा है। बच्चों द्वारा वस्तओं को अलग-अलग समूह में किए जाने पर उनका
अवलोकन कीजिए तथा बातचीत कीजिए कि उन्होंने वस्तुओं के इस तरह के समूह क्यों बनाए?
2. बच्चों को कुछ परिचित चीजें देकर उन्हें समान गुण के आधार पर समूहों में बाँटने
के लिए दें। जैसे―आकृति, रंग या सतह की बनावट आदि के आधार पर शुरू में स्वयं
समान गुण वाली वस्तुओं का एक समूह बच्चों को बनाकर दिखाएँ।
ph.                                               ph.                                       ph
खिलौनों का समूह                  आकार के आधार पर समूह      बनावट के आधार पर समूह
3. बच्चों को तरह-तरह की पत्तियाँ, कंकड़, दाल, गेंद, पेन देकर उन्हें समूहों में बाँटने
को कहें, समूह निर्माण के बाद उनसे पूछे कि इन्हें साथ-साथ क्यों रखा गया है? इसे दूसरे
समूह में क्यों नहीं रख सकते हैं? आदि।
4.बच्चे जब मध्याहन का भोजन कर रहे हों तो उनसे पूछे कि कौन-सी चीज मीटी है
और कौन-सी नमकीन?
5. स्वयं कुछ बीजों का गुणों के आधार पर वर्गीकृत कर दें तथा उनसे पूछे–इन्हें किन
गुणों के आधार पर समूहों में रखा गया है ?
          अनुक्रम वनाना (क्रम में रखना)-बीजों को क्रम में सजाने का अर्थ होता है कि उन्हें
किसी नियम के आधार पर क्रम में रखना । इसे हम गणित की भाषा में पैटर्न बनाना भी कहते
हैं। यह आकृति, आकार, रंग या ऐसे ही किसी गुण के आधार पर हो सकता है।
         क्रम बनाने का एक खास तरीका होता है, जैसे-आप बच्चों को कुछ चीजें देकर उन्हें
उनके घटते/बढ़ते हुए वजन के आधार पर क्रम में रखने के लिए कहें या कुछ छड़ियाँ देकर
उन्हें घटती/बढ़ती हुई लंबाई के आधार पर क्रम में रखने के लिए कहें।
            क्रम में जमाना एक पैटर्न बनाना भी होता है। तो हम यह भी कह सकते हैं कि क्रम
बनाने को सबसे आसान तरीका यह भी है कि किसी पैटर्न को आगे बढ़ाने के लिए कहा जाए।
इसमें वस्तुओं को उनके खास गुणों जैसे लम्बाई, आकार, वजन आदि के आधार पर क्रम
में जमाया जा सकता है। जैसे-एक पंक्ति में एक पेंसिल, एक पेन, एक पेंसिल, एक पेन,
एक पेंसिल। क्रम में पेंसिल एवं पेन रखकर उनसे पेंसिल व पेन के ढेर से वैसी ही एक और
पंक्ति बनवाएँ।
    इससे यह उभरता है कि बच्चों को दिए जाने वाले हर काम में जिन तार्किक प्रक्रियाओं
की जरूरत होती है। उसकी स्पष्ट समझ हमें होनी चाहिए। खासतौर से जब हम बच्ची से
अनुक्रम बनाने की उम्मीद करें, तो हमें पहले यह पता कर लेना होगा कि क्या वह दो दिशाओं
में क्रम जमा सकती है?
      अनुक्रम संबंधी गतिविधियों को करते वक्त ‘पहली’, ‘आखिरी’, ‘इससे पहले’ जैसे शब्दो
का इस्तेमाल करने से बच्चों को इन अवधारणाओं को समझने में मदद मिलती है।
            एक-एक की संगति–एक शिक्षक ने 12 गेंद एक कतार में रख दी और चार वर्षीय
रेखा को गिनने के लिए कहा। शिक्षक ने उसे कहा कि गिनते हुए वह गेंदों को छुती जाए।
रेखा ने गेंदों को तीन बार गिना और हर बार अलग-अलग जवाब आया। हो यह रहा था
कि गिनते वक्त वह या तो किसी गेंद को छोड़ देती या किसी गेंद को दो बार गिन लेती
थी। उसकी गिनती गेंदों के साथ कुछ इस प्रकार की थी―
ph
एक         दो          तीन                   चार               पाँच    छ:      सात आठ
    रेखा अभी इस बात को समझ नहीं पायी है कि गिनते वक्त किसी वस्तु को अछुता नहीं
छोड़ते तथा अगर किसी वस्तु को एक बार छु लिया तो उसे वापस नहीं छुआ जाता। अर्थात्
रेखा को अभी एक-एक की संगति की अवधारणा समझना बाकी है।
           इस अवधारणा को समझ बनाने के लिए हमें बच्चों को कई अवसर देने होंगे जिनमें
वे वस्तुओं को एक-एक की संगति में रखें।
            एक-एक की संगति की समझ के तहत बच्चों को ‘बहुत थोड़े’, ‘से ज्यादा’, ‘से कम’,
‘बराबर’ जैसे शब्दों का मतलब समझाना होता है।
        हम एक-एक की संगति का अपने दैनिक जीवन में भी निरंतर उपयोग करते रहते हैं।
हमें हमारे अनुभवों को और विस्तार देने की जरूरत है। इसी उद्देश्य से यहाँ पर कुछ
गतिविधियाँ दी गयी है―
1. पेंसिला की एक कतार बनाकर बच्चों से कहें कि वह उतने ही पेनों की एक कतार
बनाएँ।
2. बच्चों से यह कहें कि वह उतनी ही पत्तियाँ इकट्ठा करें जितने समूह में कुल
बच्चे हैं।
3. कुछ बिल्लियों और कुछ चूहों के चित्रों का एक-एक समूह बना लें। अब बच्चों
से कहें कि एक-एक बिल्ली को एक लाइन के जरिए एक-एक चूहे से जोड़ दें।
4. बच्चों को संग्रहों को पहचानने का अनुभव कराएँ । संग्रहों की तुलना करने की धारणा
को तीर-आरेख खींच कर बताएँ।
    ऐसी गतिविधियों से बच्चे यह देख और समझ पायेंगे कि एक-एक की संगति का अर्थ
व्या है? हमें उन्हें इसलिए भी प्रोत्साहित करना चाहिए कि गतिविधि के दौरान वे आपस
में संबंधित प्रश्न करें तथा उनका जवाब खोजने का प्रयास करें।
प्रश्न 19. पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों को गिनने की क्या समझ है ? अपने
पिछले वर्ष गिनती-पूर्व अवधारणाओं के बारे में पढ़ा था, बच्चों के गिनने की समझ
में उन अवधारणाओं की समझ के कौन-से हिस्से देख सकते हैं ?
        उत्तर–प्रायः पाँच या छह वर्ष के बच्चे को किसी अवसर पर लड्डू बाँटना है तो वे
अपने सगे-सम्बन्धी के नाम से अलग-अलग लड्डु सजाते हैं। अगर उन्हें पाँच लड्डू बाँटना
है तो वे एक लड्डु उठाते हुए बोलते है यह पापा की दूसरी माँ की लड्डु, तीसरी
लड्डू भैया की, चौथी लड्डू छोटो की एवं पाँचवी लड्डू मेरी । बच्चे ने सबसे पहले लड्डुओं
को एक थाली क्रम रखा। फिर, उसने एक-एक लड्डू को अपने पिता, माता, भाई,
छोटी एवं स्वयं के नाम के साथ एक-एक की संगति बनाई और गिनी हुई लड्डुओं को वर्गीकृत
किया। यहाँ बच्चे ने संख्या तो गिनी पर उसने संख्या-नाम की जगह अपने सगे सम्बन्धियों
के नाम बोले । यहाँ उसके लिए अपने सगे-सम्बन्धियों के नाम ही संख्या नाम है।
          जब सबसे पहले मनुष्य ने गिनना शुरू किया तब हमेशा से उसने एक, दो, तीन..
कहकर नहीं गिना था। विभिन्न संख्या पद्धतियों में संख्याओं को विभिन्न नामों से व विभिन्न
रूपों में दर्शाया जाता था। जैसे कि रोमन में I, II, III, IV, V इत्यादि तरीके से संख्याओं
का निरूपण किया जाता था। ये संख्याएँ दिखने में 1,2,3……… आदि से भले ही अलग
हो पर इन संख्याओं का इस्तेमाल एक ही अर्थ में किया जाता था। उदाहरण के लिए इस
पेन्सिलों के लिए 10 या दोनों समान ही संख्या या परिभाषा को बताते हैं।
        किसी संख्यानाम या संख्या को किस तरह से लिखा जाता है, इसकी संख्या की मात्रा
से कोई खास वास्ता नहीं है। बस, यह जरूरी है कि जो एक व्यक्ति बोले उसे दूसरा व्यक्ति
भी सही-सही समझ पायें।
प्रश्न 20. स्थानीय मान की अवधारणा को किस तरह सरल बनाया जा सकता है?
कुछ तरीके बताएँ।
उत्तर―स्थानीय मान संख्याओं को प्रतीकों (संकेतों) के माध्यम से व्यक्त करते हैं।
हमारी अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में gyio को प्रतीकों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
संख्याओं के निरूपण के लिए हम इन दस प्रतीकों का ही इस्तेमाल करते है। इन प्रतीको
को हम अंक कहते हैं। इस प्रकार की अंकों की प्रणाली जिसमें केवल 10 प्रतीकों का ही
इस्तेमाल
किया जाता है, दाशमिक या दशमलव प्रणाली कहलाती है। अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में दाशमिक
प्रणाली की यह विशेषता है कि हर अंक का मान संख्या में उसके स्थान पर निर्भर करता
है। अतः दाशमिक प्रणाली में बड़ी-से-बड़ी संख्या बहुत छोटे रूप में व्यक्त की जा सकती
है। अन्तर सिर्फ अंकों के स्थान का होता है। जैसे-एक, दस, सौ हजार और दस हजार
को दो ही अंकों 1 और 0 से दर्शाया जाता है। यहाँ पर भी अन्तर सिर्फ अंकों के स्थानों
में है।
ऐसा इसलिए संभव हो पाता है क्योकि हम हर स्थान का मान अलग-अलग निर्धारित
करते है। अंकों के यह मान ही ‘स्थानीय मान’ कहलाते हैं। स्थानीय मान की अवधारणा
स्पष्ट करने के लिए हम गिनतारा को प्रयोग में ला सकते है। हम गणना करने के लिए।
दहाइयों द्वारा समूहन का प्रयोग करते है। अतः अब हम नौ के साथ एक और जोड़ देते
है तो ‘संपूर्ण समूह’ एकल इकाई के रूप में परिवर्तित हो जाती है जिसे ‘दहाई के नाम
से जानते है, जबकि संख्या के पहले स्थान का अंक इकाई कहलाता है।
ph
जैसा कि ऊपर दिये गए चित्र में दर्शाया गया है। गिनतारा मे इकाई के स्थान पर
9 मोती लगे हुए है। जैसे ही हम 9 में एक मोती और जोड़ते हैं, वह 10 हो जाते हैं। उस
स्थिति में दहाई के स्थान पर एक मोती तथा इकाई पर कोई मोती नहीं रहता। अर्थात्। 9
में एक जोड़ने पर ‘दस की संख्या’ एकल इकाई अर्थात दहाई के रूप के परिवर्तित हो
जाती है। क्योंकि हमारी संख्या प्रणाली में दहाइयों द्वारा समूहन का प्रयोग होता है, इसलिए
इस प्रणाली का आधार ‘दस’ मानते हैं।
संख्यांको को आगे बढ़ाने के लिए जोड़ प्रणाली का प्रयोग किया जाता है। जैसे-ग्यारह
दस से एक ज्यादा होता है और इसका प्रतीक है-11, बारह, ग्यारह से एक ज्यादा
होता है और इसका प्रतीक है-12, तेरह, बारह से एक ज्यादा होता है और इसका प्रतीक
है―13.
      दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि 13 में दस से तीन अधिक होते हैं। इस
क्रम को बढ़ाते हुए हम निन्यानवे तक जा सकते है। फिर निन्यानवे से एक ज्यादा होने पर
हम देखते है ‘दस’ के ‘दस समूह’ बन जाते हैं और इस प्रकार ‘दस के समूह में दस
समूह फिर एकल इकाई के रूप में परिवर्तत हो जाती है, जिसे हम सौ कहते हैं और इसके
प्रतीक या ‘संख्यांक’ को ‘100’ के रूप में जानते हैं। जैसा की निम्न रूप से दर्शाया गया
है―
ph
  इस प्रकार हम देखते हैं कि दस इकाइयाँ मिलकर एक दहाई बनाती है और दस दहाइयाँ
मिलकर सैकड़े के रूप में परिवर्तित हो जाती है। इसी प्रकार दस सैकड़े मिलकर हजार,
दस हजार मिलकर दस हजार तथा दस, दस हजार मिलकर एक लाख बनाते है और फिर
यह क्रम आगे चलता रहता है।
उदाहरण: 587 में 5.8 एवं 7 के स्थानीय मान गिनतारे की सहायता से―
ph
इस प्रकार 587 में                5 का स्थानीय मान = 500
                                         8 का स्थानीय मान = 80
तथा                                   7 का स्थानीय मान = 7 है।
    प्रत्यक्ष या अंकित मान किसी संख्यांक में किसी अंक का जो वास्तविक मान है, वही
उसका अंकित या प्रत्यक्ष मान है तथा संख्यांक 587 के 5.8 एवं 7 के प्रत्यक्ष मान इन संख्यांको
के प्रत्यक्ष मान के बराबर ही है।
          हम बच्चों में इकाई, दहाई और सैकड़े की समझ विकसित करने के लिएकोई और
गतिविधि का उपयोग कर सकते हैं।
             नीचे दिए गए स्थानीय मान सारणी का अवलोकन करें।
                                          स्थानीय मान चार्ट
करोड़                             लाख                          हजार
दस                   एक                 दस          एक        दस      एक       सैकड़ा    दहाई    इकाई
10,0000000  1,0000000  10,00000 1,00000 10000 1000  100        10         1
          क्या हम इस स्थानीय मान चार्ट के आधार पर किसी संख्यांक में सम्मिलित अंकों के
स्थानीय मान का निर्धारण कर सकते हैं? अपने विचारों को तर्को की सहायता से स्पष्ट करो।
        उदाहरण : यहाँ पर उपरोक्त सवाल में एक स्थानीय मान का चार्ट दिया गया है। आओ
अब हम यह जानते हैं कि इसका उपयोग किस प्रकार किया जाता है।
          3546 में सभी अंकों के स्थानीय मान को स्थानीय मान के चार्ट में निम्न प्रकार दर्शाया
जा सकता है―
करोड़                             लाख                          हजार
दस                   एक                 दस          एक        दस      एक       सैकड़ा    दहाई    इकाई
10,0000000  1,0000000  10,00000 1,00000 10000 1000  100        10         1
                                                                                           3        5          4          6
            स्थानीय मान चार्ट के अनुसार संख्यांक 3546 में प्रत्येक अंक का स्थानीय मान उसके
द्वारा ग्रहण किए गए स्थान के कारण होता है। अतः 3 का स्थानीय मान 3000,5 का स्थानीय
मान 500, 4 का स्थानीय मान 40 तथा 6 का 6 है।
         हम इसे इस प्रकार भी लिख सकते हैं―
                             3×1000+5×100+4×10+6
अथवा                    3000 + 500+ 40 + 6
इस उपरोक्त प्रक्रिया को हम 3546 का विस्तारित रूप कहते हैं।
प्रश्न : यहाँ पर कुछ प्रश्न दिये जा रहे है। इन पर अपने विचारों को स्पष्ट कीजिये।
1. 56 में 5 और 6 के स्थानीय मान को आप कैसे समझाएँगे?
2. 254 में आप 2 और 5 के स्थानीय मान को कैसे समझाएँगे।
3. 3935 में आप 3, 9 और 5 के स्थानीय मान को कैसे समझाएँगे ?
4.3671 को विस्तारित रूप में लिखने का क्या मतलब है? समझाइए।
यहाँ पर ऊपर केवल दाशमिक के बारे में ही बताया गया है। इनके अतिरिक्त द्बि-आधारी
प्रणाली, पंच-आधारी प्रणाली तथा साठ-आधारी होती है। द्वि-आधारी प्रणाली का उपयोग
कम्प्यूटरों में, पंच आधारी का अबेकस में तथा साठ-आधारी का उपयोग समय व कोण दर्शाने
में किया जाता है।
                              गणितीय संक्रियाएँ एवं उनमें अतसंबंध :
            मुकेश घर पर आकर गणित के सवाल हल कर रहा था। उसे गणित विषय अन्छा
लगता है। वह आज खड़े जोड़ के कुछ सवाल कर रहा था। वह निम्न जोड़ कर रहा था―
                                       53                   68
                                      +34                +45
                                     _____              _____
         पहला सवाल उसने आसानी से हल कर लिया जैसा शिक्षक ने उसे कक्षा में सिखाया
था (3 + 4 = 7 तथा 5 + 3 = 8) और नीचे 87 लिख दिया परन्तु दूसरे सवाल को वह हल
नहीं कर पाया। उसने 8 और 5 के नीचे 13 तथा 6 व 4 को नीचे 10 लिखकर बताया कि
इनकी जोड़ 1013 है। अब आप सोचिए कि सात साल की कोई बच्ची 68 +45 की जोड़
नहीं कर पाती, इसके क्या कारण हो सकते हैं?
         आपके सोचने की प्रक्रिया में एक कारण यह भी हो सकता है कि वह जोड़ की प्रक्रिया
में शामिल किसी एक या अधिक अवधारणाओं एवं कौशलों को नहीं समझ पाएँ है। हमने
इसके पूर्व संख्याओं संख्यांकों, गिनती व स्थानीय मान से संबंधित अवधारणाओं की चर्चा की
है। अब हम जोड़ने, घटाने, गुणा और भाग संबंधी अवधारणाएँ विकसित करने
के लिए गतिविधियों पर आधारित रुचिकर तरीकों की चर्चा करेंगे। चारों संक्रियाओं के परस्पर
संबंध पर चर्चा करने के साथ-साथ यह भी जानने का प्रयास करेंगे कि कक्षा में इन अवधारणाओं
को सिखाने के दौरान बच्चों के मन में कौन-सी गलतफहमियाँ पैदा होती है।
प्रश्न : यहाँ पर कुछ प्रश्न दिये जा रहे है। इन पर अपने विचारों को स्पष्ट कीजिये।
1. 56 में 5 और 6 के स्थानीय मान को आप कैसे समझाएँगे?
2. 254 में आप 2 और 5 के स्थानीय मान को कैसे समझाएँगे।
3. 3935 में आप 3, 9 और 5 के स्थानीय मान को कैसे समझाएँगे ?
4.3671 को विस्तारित रूप में लिखने का क्या मतलब है? समझाइए।
यहाँ पर ऊपर केवल दाशमिक के बारे में ही बताया गया है। इनके अतिरिक्त द्बि-आधारी
प्रणाली, पंच-आधारी प्रणाली तथा साठ-आधारी होती है। द्वि-आधारी प्रणाली का उपयोग
कम्प्यूटरों में, पंच आधारी का अबेकस में तथा साठ-आधारी का उपयोग समय व कोण दर्शाने
में किया जाता है।
                              गणितीय संक्रियाएँ एवं उनमें अतसंबंध :
            मुकेश घर पर आकर गणित के सवाल हल कर रहा था। उसे गणित विषय अन्छा
लगता है। वह आज खड़े जोड़ के कुछ सवाल कर रहा था। वह निम्न जोड़ कर रहा था―
                                       53                   68
                                      +34                +45
                                     _____              _____
         पहला सवाल उसने आसानी से हल कर लिया जैसा शिक्षक ने उसे कक्षा में सिखाया
था (3 + 4 = 7 तथा 5 + 3 = 8) और नीचे 87 लिख दिया परन्तु दूसरे सवाल को वह हल
नहीं कर पाया। उसने 8 और 5 के नीचे 13 तथा 6 व 4 को नीचे 10 लिखकर बताया कि
इनकी जोड़ 1013 है। अब आप सोचिए कि सात साल की कोई बच्ची 68 +45 की जोड़
नहीं कर पाती, इसके क्या कारण हो सकते हैं?
         आपके सोचने की प्रक्रिया में एक कारण यह भी हो सकता है कि वह जोड़ की प्रक्रिया
में शामिल किसी एक या अधिक अवधारणाओं एवं कौशलों को नहीं समझ पाएँ है। हमने
इसके पूर्व संख्याओं संख्यांकों, गिनती व स्थानीय मान से संबंधित अवधारणाओं की चर्चा की
है। अब हम जोड़ने, घटाने, गुणा और भाग संबंधी अवधारणाएँ विकसित करने
के लिए गतिविधियों पर आधारित रुचिकर तरीकों की चर्चा करेंगे। चारों संक्रियाओं के परस्पर
संबंध पर चर्चा करने के साथ-साथ यह भी जानने का प्रयास करेंगे कि कक्षा में इन अवधारणाओं
को सिखाने के दौरान बच्चों के मन में कौन-सी गलतफहमियाँ पैदा होती है।
प्रश्न 21. लम्बाई, भार, क्षेत्र, धारिता, धनराशि और समय की मानक इकाइयो
की आवश्यकता के महत्व पर प्रकाश डालें।
उत्तर―हमारी मापन पद्धति मीटरी (डरामिका है। जिसमें शिक्षक मापन शिक्षण के प्रथम
चरण में दो दूरियों, दो द्रव्यमानों, दो धारिताओं आदि की तुलना करते हैं। साथ-ही-साथ अधिक,
कम, बड़ा, छोटा, भारी, हल्का, ऊँचा, नीचा इत्यादि अनुभव करते हैं। मापने का अर्थ तुलना
करने से है। मापन शिक्षा के दूसरे चरण में मापन को इकाइयों से परिचित कराना है।
लम्बाई के क्रियाकलाप―इसके लिए अलग-अलग आकार के दो छड़ लेंगे। ये छड़ें
रेखाखण्डों AB और PQ का निरूपण करती है। पुनः शिक्षार्थी से पूछेंगे कि कौन-सी छड़े
लम्बी है और कौन-सी छोटी है?
उत्तर के रूप में शिक्षार्थी कहेंगे कि             ph
AB छड़ बड़ी है, PQ से । अब इन
छड़ों को मापने के लिए कहेंगे।                     ph
शिक्षार्थी उत्तर के रूप में कहेंगे AB
छड़ दो हाथ है और PQछड़ एक हाथ है, अब इनकी लम्बाईयों की तुलना करते है। इस
तरह से शिक्षार्थी को कहेंगे कि मापन के लिए मानक इकाई की आवश्यकता पड़ती है।
       भार के लिए क्रियाकलाप―इसके लिए दो भिन्न वस्तुएँ लगे जैसे-केला और पंख,
पुस्तक और कलम, सेब और नींबू ।
चरण 1. शिक्षार्थियों से वस्तुओं को दोनों हाथ में लेने के लिए कहेंगे और उन्हें यह महसूस
करने देंगे कि दोनों में से कौन-सी भारी और कौन-सी हल्की है।
         चरण 2. फिर एक तराजू लगे उसके दोनों पलड़ों में वस्तु रखेंगे और ज्ञात करेंगे कि
कौन-सी वस्तु भारी है। अब कुछ कंकड़ लेंगे और उन कंकड़ों की सहायता से वस्तु का संतुलन
करने वाले कंकड़ों की संख्या वस्तु का भार होता है, जहाँ कंकड़ एक इकाई है और वस्तु
का भार संख्या है।
              क्षेत्र के लिए क्रियाकलाप―उदाहरण तौर पर विद्यालय
के कमरों का जिक्र करेंगे। विद्यालय के दो कमरे हैं, जिस कमरे         ph
बच्चे ज्यादा है, वह कमरा बड़ा होगा और जिस कमरे में बच्चे
म है, वह कमरा छोटा होगा। अतः इससे स्पष्ट है कि हम
कमरा के फर्श की तुलना करते हैं। कमरे का फर्श भायताकार क्षेत्र क निरूपण करता है।
अब शिक्षार्थियों से कहेंगे कि फर्श के ऊपर कागज बिछा दो। पूछेगे कि कितने कागज
कर्श को ढक लेते हैं, उत्तर के रूप मिला कि 9 कागज । इस तरह से उस फर्श का क्षेत्र
9 कागज है।
ph
          धारिता के लिए क्रियाकलाप―शिक्षार्थियों से एक मग और एक बाल्टी लेने के लिए
कहेंगे और दोनों बर्तनों में पानी भरने के लिए कहेंगे। पूछेगे कि किस बर्तन में पानी अधिक
है। बच्चे कहेंगे कि बाल्टी में पानी अधिक है और मग में पानी कम है। पुनः इसी मग से
एक दूसरी बाल्टी में पानी डालने के लिए कहेंगे। जबतक बाल्टी भर न जाए । बाल्टी जब
भर जाती है बच्चे कहते हैं कि बाल्टी 20 मग में भर गयी। इस तरह से स्पष्ट हो जाता है
कि बाल्टी की धारिता 20 मग है।
       समय माप के लिए क्रियाकलाप―समय माप के लिए, जैसे-दिन, रात । प्राकृतिक
इकाइयों के रूप में प्रारम्भ में समय का माप होता था। बाद में जल घड़ी, रेत घड़ी और
छाया घड़ी का प्रयोग किया जाने लगा। बच्चों को हम मौसम, कैलेण्डर और घड़ी के माध्यम
द्वारा समय के बारे में जानकारी देते हैं।
        धनराशि माप―वस्तुओं के मूल्य का माप धनराशि से करते हैं। हम उन्हें बताने का
प्रयास करते हैं कि व्यापार और उद्योग, खरीदने बेचने की क्रिया बिना धन के संभव नहीं
है। बच्चों को सिक्को और नोटों को जानकारी देंगे और बताएँगे कि हमारे यहाँ धन का मानक
रुपया है और 1 रुपया = 100 पैसे।
प्रश्न 22. माप की मानक इकाइयाँ और उनके अंतर्संबंध को स्पष्ट करें।
उत्तर―इकाइयाँ–किसी वस्तु की लम्बाई, क्षेत्रफल या घनफल इत्यादि को मापने के
लिए हम पहले उसी राशि की किसी मात्रा को नियत करते हैं। इस नियत मात्रा को उस राशि
की माप इकाई कहते हैं। इस प्रकार, चुनी हुई इकाई उस राशि में जितनी बार सम्मिलित
होगी, वह उस इकाई का संख्यात्मक मान होगा। जैसे मान लिया कि एक डंडे की लम्बाई
7 मीटर है। इसका अर्थ यह होता है कि माप की इकाई मीटर है और इसका संख्यात्मक
मान 7 है। इसी प्रकार अगर किसी क्षेत्र का क्षेत्रफल 7 वर्ग डेसीमीटर हो, तो इसका अर्थ यह
होता है कि माप की इकाई वर्ग डेसीमीटर है और इसका संख्यात्मक मान 7 है। अतः प्रत्येक
अवस्था में किसी दी हुई राशि को मापने के लिए दो बातों पर विचार करना आवश्यक है।
(i) चुनी हुई माप इकाई का नाम ।
(ii) माप की जाने वाली राशि में माप की इकाई की संख्या।
लम्बाई की इकाई―जिस इकाई के रूप में किसी सरल रेखा की लम्बाई को प्रकट
किया जाता है, उसे लम्बाई की इकाई कहते हैं। मीटरी प्रणाली में लम्बाई की इकाई मीटर है।
क्रियाकलाप (i). मीटर और सेंटीमीटर का परिचय
सबसे पहले शिक्षार्थी को बताएंगे कि :
1 मीटर = 100 सेंटीमीटर अर्थात् 1 मीटर में 100 सेंटीमीटर होता है। इस इकाई के माध्यम
से हम रिबन की माप से पेंसिल, फर्श इत्यादि माप सकते हैं। जैसे―
राम का कद = 1 मीटर 20 सेंटीमीटर
पेसिल की ल. = 12 सेंटीमीटर
रबर की ल. = 8 सेंटीमीटर
अब हम मीटर और सेंटीमीटर को सेंटीमीटर में भी व्यक्त कर सकते हैं। जैसे―1 मी.
20 सेमी = 120 सेमी
और सेंटीमीटर को मीटर और सेंटीमीटर में बदल सकते है।
435 सेमी = 4 मी 35 सेमी
क्रियाकलाप (ii). लम्बी दूरी जैसे दो शहरों के बीच की दूरी को किलोमीटर में मापते है।
किलोमीटर = 1000 मीटर
जैसे घर से बस स्टैंड की दूरी = 2 किलोमीटर
     क्षेत्रफल की इकाई―जिस इकाई के रूप किसी योगफल की माप को प्रकट करते है,
उसे क्षेत्रफल की इकाई कहते हैं। इसकी मूल इकाई मीटरी प्रणाली में वर्गमीटर या मी² या
सेमी² होता है। जैसे—विद्यालय के कमरे के फर्श का क्षेत्रफल, खेत का क्षेत्रफल आदि का
माप करते हैं।
1 वर्ग सेंटीमीटर =100 वर्ग मिलीमीटर
      किलोग्राम और ग्राम परिचय―इसके लिए तराजू-बाट का इस्तेमाल करेंगे और पूछेंने
कि इनका क्या काम है। जवाब देते हैं कि इनसे वस्तुओं की वजन की माप करते है। इस
तरह से बताते हैं कि वस्तुओं की खरीदारी करते समय तराजुओं और बाट मापों के प्रयोग
पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
1 किलोग्राम = 1000 ग्राम
     लीटर और मिलीलीटर का परिचय–इसमें दूध, तेल, पानी आदि को लीटरों में मापते
हैं और दवा, इत्र आदि को मिलीलीटर में मापते हैं।
                                       1 लीटर = 1000 मिलीलीटर
        नोट सिक्कों से परिचित कराना― इसमें बच्चों को कुछ सिक्कों और नोटों से अवगत
कराएँगे। उन्हें एक रुपये से लेकर 100 रुपये तक के नोट और 50 पैसे के सिक्के से लेकर
5 रुपये तक सिक्के दिखाते हैं। जैसे-1 रुपये में 100 पैसे होते हैं।
                 50 पैसे का सिक्का = 25 पैसे के दो सिक्के
इसे हम दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुओं की कीमत के रूप में देते हैं।
मीटरी पद्धति में इकाइयों का रूपांतरण― मीटरी पद्धति में इकाइयों का रूपांतरण
एक तालिका के माध्यम से करते हैं जिससे संख्याओं को पढ़ने और लिखने में सहायक
मिलती है।
हजार        सौ         दस         एक        दसवाँ         सौंवा       हजारवाँ
1000     100        10           1           1/10      1/100    1/1000
किलो     हेक्टो         डेका      इकाई         डेसी         सेंटी         मिली
                                         मी/ग्रा,
                                         1ली.
        इसकी सहायता से ग्राम/लिटर से पहले लगने वाले हेक्टा, डेका, डेसी, सेंटी, मिली
का अर्थ जानेगे।
           डेका का अर्थ है दस बार, डेसी का अर्थ है दसवाँ भाग, हेक्टा का अर्थ है सौ बार,
सेंटी का अर्थ है सौवाँ भाग, किलो का अर्थ है हजार बार, मिली का अर्थ है हजारवाँ भाग।
प्रश्न 23. मापन में प्रयुक्त होने वाली निम्नांकित शब्दावलियों का अर्थ बताएँ :
(1) क्षेत्रफल, (2) आयतन।
उत्तर―(1) क्षेत्रफल–कक्षा में बालकों को क्षेत्रफल का विचार प्रारम्भ से ही गलत दिया
जाता है, जिसके कारण वे उसकी परिभाषा को रटकर प्रश्न हल करते हैं। परन्तु उनको क्षेत्रफल
का सही ज्ञान नहीं हो पाता है। इसके लिए प्रारम्भ में परिभाषा नहीं दी जानी चाहिए।
    क्षेत्रफल ज्ञात करने के लिए निश्चित इकाई को मानकर चलना चाहिए । माना कि एक
श्यामपट्ट (Black board) का क्षेत्रफल ज्ञात करना है तो हम एक आधार इकाई वर्ग फुट
कार्ड-बोर्ड के टुकड़े से आरम्भ करते हैं। कार्ड-बोर्ड की सहायता से यह ज्ञात किया जाता
है कि वह कितनी बार श्यामपट्ट पर आता है। माना यह वर्ग फुट 15 बार बोर्ड पर आता
है तो उस बोर्ड का क्षेत्रफल 15 वर्ग फुट होगा। इसकी लम्बाई 5 फुट तथा चौड़ाई 3 फुट
है और इसमें । वर्ग फुट के 15 भाग बनते हैं तो 5 को 3 से गुणा करने पर 15 वर्ग फुट
आते हैं, क्योंकि 5 फुट के क्षेत्र इसमें 3 बार आते हैं।
        इस तरह के भिन्न-भिन्न उदाहरणों द्वारा एक सामान्य नियम पर पहुँचा जा सकता है।
किसी आयत के क्षेत्रफल वर्ग फुट की संख्या ज्ञात करने के लिए लम्बाई के फुट को चौड़ाई
के फुट से गुणा करते हैं। इस तरह से परिणाम वर्ग फुट मे आता है। इसमें वास्तव में संख्याओं
का गुणा होता है, न कि लम्बाई और चौड़ाई का।
       इसके बाद भिन्न तथा दशमलव का प्रयोग किया जा सकता है। इसमें केवल ध्यान
देने की बात यह है कि छोटी इकाई का प्रयोग किया जाय । भिन्न-भिन्न आकार के चित्रों
का क्षेत्रफल निकालने की विधि रेखागणित के अध्याय में दी गई है।
(2) आयतन-किसी ठोस वस्तु का आयतन निकालने के लिए सबसे आवश्यक बात
यह है कि हमको आयतन का सही विचार हो। क्षेत्रफल की भांवि इसके निकालने में भी
निम्न पदों से होकर गुजरना पड़ता है :
(अ) एक आयतन की इकाई मान लेनी चाहिए।
(ब) इस इकाई कितने भाग किसी आयतन में सम्मिलित हैं। इस तरह से कक्षा में आयतन
का ज्ञान दिया जाता है। जैसे―
क्षेत्रफल= लम्बाई × चौड़ाई (Length x Breadth)
आयतन = लम्बाई × चौड़ाई × मोटाई (Length x Breadth x Thickness)
उपर्युक्त विचार वास्तव में एक सही रूप नहीं है।
इसके लिए एक आयताकर ठोस (Rectangular Solid) लिया जाता है। माना इसकी :
लम्बाई = 9 इंच
चौड़ाई = 4 इंच
मोटाई = 3 इंच
   इसको आधार से ऊपर की ओर छोटे-छोटे वर्ग इंचों में बाँट कर और 1 इंच मोटे भागों
पर चिह्न लगा दो।
नीचे के प्रत्येक वर्ग इंच पर 1 इंच भाग खड़ा रहता है। इस तरह से नीचे की सतह
पर उतने ही वर्ग इंच होते हैं, जितने कि आधार वर्ग का क्षेत्रफल होता है। यह बात सभी
भागों के लिए समान होती है। इस उदाहरण से एक नियम ज्ञात किया जाता है:
किसी समान मोटाई में ठोस घन इंच निकालने के लिए मोटाई के वर्ग इंचों की लम्बाई
के इंचों से गुणा करके ज्ञात किया जाता है।
    इस तरह से प्रारम्भ में वस्त के द्वारा आयतन ज्ञात करने के पश्चात वस्तु के अभाव
में भी उसके आयतन का विचार हो जाता है।
(1) मानक इकाई का मापन यंत्र द्वारा होता है।
अमानक इकाई का मापन अनुमान होता है
(2) मानक इकाई का मापन के साधन स्केल और फीता होता है।
अमानक इकाई का मापन रस्सी और बीता से होता है।
(3) मानक इकाई का मापन स्थाई होता है।
अमानक इकाई का मापन अस्थाई होता है
प्रश्न 24. क्षेत्रफल हेतु इकाई मापक की आवश्यकता समझाइए।
उत्तर―क्षेत्रफल हेतु इकाईमापक की आवश्यकता (Need ofaunit to measure
area):
      प्रयोग (1): आप अपने स्कूल के कैरमबोर्ड को समान आकृति के वर्गाकार कार्ड से
ढंक दें। अगर आपको उसे ढंकने में 78 कार्ड लगाना पड़ा है तब कहा जा सकता है कि
कैरमबोर्ड क क्षेत्रफल उस कार्ड के क्षेत्रफल का 78 गुना है।
ph
प्रयोग (2): आप अपने गणित की पुस्तक को आयताकार कार्ड से पूर्णतः ढँक सकते है।
ph
यदि आपने उसे ढंकने हेतु 6 कार्ड का प्रयोग किया है तब आपकी पुस्तक का क्षेत्रफल
6 इकाई है।
प्रयोग (3): यदि एक आयताकार टेबुल पर वृत्ताकार काटी गई टिकिया इस प्रकार रखा
जाए कि पूरा टेबुल उससे भर जाए तब हम पाते हैं-दो वृत्त आकार के कार्ड के बीच का
जग’ खाली छूट जाता है एवं किनारे भी दो वृत्तों के बीच का जगह छूट जाता है।
ph
              निष्कर्ष : किसी आकृति के क्षेत्रफल को मापने हेतु मानक इकाई या तो आयत
या वर्ग या त्रिभुज हो सकते हैं। ज्यादा सुविधा वर्ग का चुनाव मानक रूप में करने पर होगा।
ph
अगर वर्ग की भुजा । मिमी हो तब उसके क्षेत्रफल को | वर्ग मिमी कहंगे। अगर वर्ग
की भुजा 1 रोमी हो तब उसके क्षेत्रफल को । वर्ग सेमी कहेंगे। अगर वर्ग की भुजा 1 मीटर
हो नब उसके क्षेत्रफल को । वर्ग मीटर कहेंगे।
प्रश्न 25. लम्याई,भार एवं धारिता का मापन कैसे करते हैं?
अथवा, एक इकाई से दूसरे इकाई में बदलाव कैसे होता है ?
उत्तर―लम्बाई, भार एवं धारिता―हम जानते है कि लम्बाई, भार एवं धारिता को
मापने की मानक इकाई क्रमशः मीटर (मी), ग्राम (ग्राम) एवं लीटर (ली) है। बहधा हमें यह
आवश्यकता पड़ती है कि हम या तो सबसे छोटे या ज्यादा लम्बाई, मात्रा अथवा भार का
प्रयोग करें। हमलोग इसे 10, 100 एवं 1000 के गुणा के द्वारा इसे व्यक्त करते हैं। निम्न
तालिका का स्मरण कर लें:
लम्बाई की इकाई                भार की इकाई                धारिता की इकाई
किलोमीटर (किमी)           किलोग्राम (किग्रा)            किलोलीटर (किली)
1 किमी = 1000 मी         1किग्रा = 1000 ग्राम      1 किली = 1000 लीटर
हेक्टोमीटर (हेमी)               हेक्टोग्राम (हेग्रा)            हेक्टोलीटर
1 हेमी = 100 मी              1 हेग्रा = 100 ग्राम         1 हेली = 100 लीटर
डेकामीटर                        डेकाग्राम                       डेकालीटर
1 डेमी = 10 मी                1 डेकाग्राम = 10 ग्राम     1 डेकाली = 10 लीटर
मीटर                                ग्राम                              लीटर
डेसीमीटर                          डेसीग्राम                       डेसीलीटर
1 डेसीमीटर =1/10 मी      1 डेसीग्राम = 1/10 ग्राम  1 डेली = 1/100 लीटर
सेन्टीमीटर                           सेन्टीग्राम                      सेन्टीलीटर
1 सेमी =1/100 मी           1 सेग्रा = 1/100 ग्राम        1सेली = 1/100 लीटर
मिलीमीटर                         मिलीग्राम                         मिलीलीटर
1 मीमी = 1/10 मी           1 मिलीग्राम = 1/1000 ग्राम  1 मिलीली = 1/1000 लीटर
बदलाव करना (Conversion):
I. बड़ी इकाई को छोटी इकाई में बदलने के लिए 10. 100 एवं 1000 से गुणा किया
जाता है। जैसे―
1 किमी = 10 हेक्टोमीटर
            = 100 डेकामीटर
            = 1,000 मीटर
            = 10,000 डेसीमीटर
            = 1,00,000 सेमी = 10,00,000 मिमीटर
II. छोटी इकाई को बड़ी इकाई में बदलने के लिए हम भाग देते हैं, जैसे―
1 मिमी = 1/10 सेमी = 0.1 सेमी
           = 1/100 डेसी मी = 0.01 डेसीमी
           = 1/1000 मी = 0.001मी
           = 1/10000 डेकामीटर = 0.0001 डेकामीटर
           = 1/100000 हेक्टोमीटर = 0.00001 हेक्टोमीटर
           = 1/1000000 किमी = 0.000001 किमी
निम्न तालिका का अध्ययन करें―
Prefix                    Meaning
मिली           हजारवाँ भाग→1/1000
सेन्टी           सौवाँ भाग→1/100
डेसी            दसवाँ भाग→1/10
डेका            दस गुना→10
हेक्टो           सौ गुना→100
किलो          हजार गुना→1000
प्रश्न 26. आयतन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए तथा इसकी इकाई को
समझाइए।
अथवा, घन और घनाभ का आयतन आप किस प्रकार निकालेंगे?
उत्तर―किसी ठोस वस्तु (त्रिविमीय आकृति) द्वारा घेरे गए स्थान को उसका आयतन
कहते है।
         आयतन की इकाई (मात्रक)-आयतन का मात्रक घन लम्बाई का मात्रक होता है।
जैसे घन मिमी, घन सेमी, घन मीटर आदि। जिस प्रकार लम्बाई का मात्रक mm, cm, dcm.
mआदि 10 के गुणज में बढ़ते हैं, ठीक उसी प्रकार आयतन का मात्रक घन मिमी, घन सेमी,
घन डेसीमी, घन मी आदि 10³ अर्थात् 1000 के गुणज में बढ़ते हैं।
उदाहरण के 1m = 100 cm
∴ 1m³ = (100)³ cm³ = 1000000 cm³ आदि ।
        घनाभ का आयतन-इकाई (unit) लम्बाई की भुजा वाले घनों की जितनी संख्या
किसी घनाभ में अन्तर्विष्ट (contained) हो सकती है, वही उस ‘घनाभ का आयतन
कहलाता है।
     यदि किसी घनाभ में 1 cm भुजा वाले घनों की संख्या 60 है तो घनाभ का आयतन 60
cm³ होगा।
बगल के चित्र में एक घनाभ है जिसकी लम्बाई 5 cm,
चौड़ाई 4 cm तथा ऊँचाई 3 cm है। इस घनाभ को 1 cm
भुजा वाले घनों में बाँटने से कुल 60 घन (अर्थात् 5×4×                   ph
3 = 60 घन) मिलते हैं। इसलिए घनाभ का आयतन 60 cm³
होगा।
अतः यदि किसी घनाभ की लम्बाई = l मात्रक, चौड़ाई = b मात्रक तथा ऊँचाई =
h मात्रक हो, तो घनाभ का आयतन =1×b×h घन मात्रक = लम्बाई×चौड़ाई×ऊँचाई
घन मात्रक।
              घन का आयतन (Volume of a cube)―चूँकि घन एक घनाभ है जिसकी लम्बाई,
चौड़ाई और ऊँचाई बराबर होती है, इसलिए यदि घन के एक भुजा (किनारे) की लम्बाई
a इकाई हो।
             तो धन का आयतन = a×a×a घन इकाई = d³ घन इकाई
ph
अतः घन का आयतन = किनारा × किनारा × किनारा = a³,जहाँ a घन का किनारा है।
प्रश्न 27. समय की अवधारणा से आप क्या समझते हैं ? इसका मापन किस
प्रकार होता है?
उत्तर―समय-माप–घड़ी से समय जानना-हम समय जानने के लिए घड़ी का प्रयोग
करते हैं। समय को घंटा, मिनट और सेकेण्ड में मापते हैं।
       घड़ी में दो सूइयाँ होती हैं जो डायल (अंक पट्ट) पर घूमती है। छोटी सूई को घंटे की
सूई कहते हैं और यह घंटा बताती है तथा बड़ी सूई को मिनट की सूई कहते हैं और इससे
मिनटों का पता चलता है। सूई के पूरे घूमने में घंटे की सूई एक प्लान आगे बढ़ती है अर्थात्
एक घंटा साठ मिनट के बराबर होता है। मिनट की सूई एक संख्यांक तक पहुँचने में पाँच
मिनट लेती है।
          उदाहरण–घड़ी में मिनट की सूई ‘6’ पर है और घंटे की सूई 1 और 2 के बीच में है।
ph
                       1 घंटा = 60 मिनट
                      60 सेकेण्ड = 1 मिनट
      दिन, सप्ताह, महीना और वर्ष―हम बच्चों को कैलेण्डर दिखाकर दिन, सप्ताह महीना
और वर्ष की धारणा विकसित करेंगे।
        सप्ताह में सात दिन होते हैं―रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार
तथा शनिवार । चार सप्ताह का एक महीना होता है।
        बारह महीनों का एक वर्ष होता है जिनमें कुछ महीने 30 दिन के होते हैं और कुछ
31दिन के होते हैं। फरवरी 28 या 29दिन का होता है। बच्चों को कविता के माध्यम से
याद करवाते हैं।
अप्रैल, जून, सितम्बर, नवम्बर में
      होते हैं दिन तीस
फरवरी छोड़कर मास में
होते हैं तीस-इकतीस
फरवरी की है बात निराली
यूँ तो वह अट्ठाईस दिन वाली
पर अधि वर्ष के हो जाते उनतीस।
प्रत्येक चौथा वर्ष लीप वर्ष (अधि वर्ष) होता है।
60 सेकेण्ड = 1 मिनट
60 मिनट = 1 घंटा
24 घंटे = 1 दिन
7 दिन = 1 सप्ताह
30 या 31 दिन = 1 महीना
12 महीने = 1 वर्ष
365 दिन = 1वर्ष
366 दिन = 1 अधि वर्ष
प्रश्न 28. ‘आँकड़ा’ से आप क्या समझते हैं ? आँकड़ों का अभिलेखन और
संगठन किस प्रकार होता है ? उदाहरण सहित (समझाएँ)।
उत्तर―आँकड़े संख्याओं का एक संग्रह है जो विशेष उद्देश्य से कुछ सूचनाएँ देने के
लिए एकत्रित किये जाते है।
        अति प्राचीन काल से ही हम तथ्यों को भिन्न-भिन्न रूपों में निरूपित करते आ रहे है।
हमने पढ़ा है कि कन्दरा-मानव (cave-man) किस तरह अपने द्वारा शिकार किये गए पशुओं
के चित्र कन्दरा की दीवार पर कुरेदते थे। जैसे-जैसे समय गुजरता गया. मनुष्य को वांछित
सूचनाओं की संख्या बहुत बढ़ती गई। यही कारण है कि तथ्यों की जानकारी के लिए उनके
निरूपण की विधियों जिनसे अल्प समय में अधिकतम सूचनाएँ प्राप्त हो सके, ज्ञात करने का
सतत् प्रयास चलता रहा है। दैनिक जीवन में संख्याओं. आकृतियों, नामो आदि से सम्बन्धित
अनेक प्रकार की सारणियाँ बनाई जाती है। ये सारणियाँ हमे आँकड़े उपलब्ध कराती है।
आँकड़ों का अभिलेखन एवं संगठन (Recordingand Organisation of Data)―
डाटा के अभिलेखन और संगठन के लिए टैली निह्न (Tally-Mark, मिलान चिह्न) का प्रयोग
किया जाता है। गिनती (Counting) 5 के समूह में की जाती है जिसे संकेत से निरूपित करते
है। एक वस्तु के लिए (एक टैली), दो के लिए (lI) इसी तरह तीन के लिए (lll) तथा गार
के लिए (Illl) टैली चिह्न लिखा जाता है। पॉच के लिए lllll न लिखकर \ लिखा जाता है।
अर्थात् 5 लिखने के लिए | को। टैली से तीरछे काट देते है। अतः पाँच टैलो के लिए संकेत
\ का प्रयोग किया जाता है। इस तरह \5 का प्रतीक है।
इस प्रकार (a) संकेत \ lll, 5 + 3 = 8 को सूचित करता है।
(b) संकेत \ \ II, 5 +5+2 = 12 को सूचित करता है।
उदाहरण: 1. गणित के एक टेस्ट में 40 विद्यार्थियों द्वारा निम्नलिखित अंक प्रात
किये गए। इन अंकों को मिलान चिह्नों का प्रयोग करके एक सारणी के रूप में।
व्यवस्थित कीजिए।
8,1,3,7,6,5,5, 4,4,2
4,9,5,3,7,1,6,5,2,7
7,3,8,4,2,8,9,5,8,6
7,4,5,6,9,6,4,4,6,6
(a) ज्ञात कीजिए कि कितने विद्यार्थियों ने 7 या उससे अधिक अंक प्राप्त किए।
(b) कितने विद्यार्थियों ने 4 से कम अंक प्राप्त किए?
हल:
ph
(a) 7 या इससे अधिक अंक पाने वाले छात्रों की संख्या = 5 + 4 + 3 = 12
(b) 4 से कम अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या = 3 + 3 + 2 = 8
उदाहरण : कक्षा VI के 30 विद्यार्थियों की मिठाइयों की पसंद निम्नलिखित है :
लड्डू, बरफी, लड्डू, जलेबी, रसगुल्ला
जलेबी, लड्डू, बरफी, रसगुल्ला, जलेबी, लड्डू
लड्डू. रसगुल्ला, लड्डू, रसगुल्ला, जलेबी, लड्डू
रसगुल्ला, लड्डू, बरफी, रसगुल्ला, जलेबी, लड्डू
जलेबी, रसगुल्ला, जलेबी, लड्डू, रसगुल्ला, रसगुल्ला, लड्डू
(a) मिठाइयों के इन नामों को मिलान चिह्नीं का प्रयोग करते हुए एक सारणी में व्यवस्थित-
कीजिए।
(b) कौन-सी मिठाई विद्यार्थियों द्वारा अधिक पसंद की गई?
हल: (a)
ph
(b) लड्डू, अधिकांश विद्यार्थियों द्वारा पंसद की गई।
प्रश्न 29.आयतन का क्या अर्थ है ? बच्चों में आयतन की समझ विकसित करने
के लिए एक गतिविधि सुझाइए।
अथवा, आप बच्चों को आयतन की समझ विकसित करते हुए सूत्र तक कैसे
पहुँचाएँगे?
उत्तर―आयतन-आयतन 3-विमीय फैलाव का नाप है या किसी ठोस वस्तु (त्रिविमीय
आकृति) द्वारा घेरे गए स्थान को उसका आयतन कहते हैं। जैसे-नोट बुक, डिब्बे, बन्द
पीपा, आलमारी, ईंट, पत्थर जैसी 3-विमीय बन्द वस्तुएँ जितनी जगह घेरती है वह उसका
आयतन होता।
“आयतन यानी उस वस्तु द्वारा पेरी गई जगह।”
        आयतन की समझ विकसित करने के लिए गतिविधि―बच्चों को घेरी गई जगह का
अहसास देने के लिए या आयतन की समझा विकसित करने के लिए कुछ पत्थर, ईट, लोहे
के टुकड़े आदि इकमा करवाते है।
एक गाँप का आयताकार वर्तन लेकर उसको 3/4 पानी से भर देते है।
हर वस्तु को धागे से बाँधकर उन्हें एक एक कर पानी में डुबोते है।
       हर वस्तु को पानी में दुखाते हुए बच्चों को पानी का स्तर दिखाते है। वे खुद बनाते
है कि पानी का स्तर कभी ज्यादा तो सभी काम पर की ओर उठता है और वस्तु पानी में
से निकाल लेने पर स्तर पुन: पहले जैसा हो जाता है।
ph
    अब हम बच्चों को बताते है कि जो वस्तु जितना स्थान घेरती है तो उस स्थान का पानी
ऊपर की ओर आता है जिससे पानी का स्तर ऊपर की ओर उठ जाता है।
        इस प्रकार बच्चों में आयतन की समझ विकसित होगी।
       इस तरह की बहुत सी आकृतियाँ है जो स्थान घेरती है जैसे-घनाभ (माचिस का डिब्बा),
घन (लूडो का पासा) आदि।
         आयतन की इकाई (मात्रक) आयतन का मात्रक घन लम्बाई का मात्रक होता है।
जैसे―घन मिमी, घन सेमी, घन मीटर आदि । जिस प्रकार लम्बाई का मात्रक mm.cm.dcm,
mआदि 10 के गुणज में बढ़ते है. ठीक उसी प्रकार आयतन का मात्रक घन मिमी, घन सेमी,
घन डेसीमी, घन मी आदि 10³ अर्थात् 1000 के गुणज में बढ़ते हैं।
उदाहरण के लिए Im = 100 cm
.. Im³ = (100)³ cm³ = 100000 cm³ आदि।
घनाभ का आयतन― इकाई लम्बाई की भुजा वाले
घनों की जितनी संख्या किसी घनाभ में अन्तर्विष्ट हो सकती
है, वही उस घनाभ का आयतन कहलाता है।                               ph
        यदि किसी घनाभ में 1 cm भुजा वाले घनों की संख्या
60 है तो घनाभ का आयतन 60 cm³ होगा।
बगल के चित्र मे एक घनाभ है जिसकी लम्बाई 5 cm,
चौड़ाई 4 cm तथा ऊंचाई 3 cm है। इस घना कोmicm भुजा वाले घनों में बाँटने से
फुल 60 धन (अर्थात् 5×4×3 = 60 घन) मिलते हैं। इसलिए घनाभ का आयतन 60cm³
होगा।
        अतः यदि किसी घनाभ की लम्बाई:/मात्रक, चौड़ाई bमात्रक तथा ऊँचाई = h मात्रक
हो, तो घनाभ का आयतन =1×b×h घन मात्रक = लम्बाई×चौड़ाई×ऊँचाई घन मात्रक।
        घन का आयतन―चूँकि घन एक घनाभ है, जिसकी लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई बराबर
होता है, इसलिए यदि घन के एक भुजा (किनारे) की लम्बाई a इकाई हो।
तो घन का आयतन = a×a×a घन इकाई = a³ घन इकाई
ph
अतः धन का आयतन = किनारा × किनारा × किनारा = a³, जहाँ a घन का किनारा है।
प्रश्न 30. आँकड़ों के प्रस्तुतीकरण या प्रदर्शन एवं बंटन के प्रकार को समझाएँ ।
अथवा, आँकड़ों के वर्गीकरण से क्या समझते हैं? अवर्गीकृत एवं वर्गीकृत आँकड़े
पर टिप्पणी करें।
उत्तर― आँकड़ों को प्रदर्शन के रूप तथा बंटन के प्रकार आँकड़ों के प्रदर्शन के
निम्नलिखित रूप हैं तथा इन रूपों के संगत बंटन के तीन प्रकार होते हैं।
(i) अपरिष्कृत या अवर्गीकृत आँकड़े―यदि आँकड़े जिस रूप में संकलित किए गए हों
उसी रूप में रखे जाएँ तो ऐसे आँकड़े को अपरिष्कृत या अवर्गीकृत आँकड़ा कहा जाता है।
       उदाहरण के लिए यदि किसी वर्ग के 20 विद्यार्थियों द्वारा कुल 100 अंकों में प्राप्त अंक
निम्नलिखित हों
                                              सारणी (X)
                        30 40 45 40 60 70 60 40 50 35
                        40 60 48 80 95 65 60 80 90 75
और इन्हें इसी रूप में लिखा जाए तो ये अपरिष्कृत या अवर्गीकृत आँकड़े हुए।
        सरल बंटन― वह बंटन जिसमें आँकड़े अवर्गीकृत रूप में लिखे होते हैं सरल बंटन
कहलाता है। सारणी (x) में दिया गया बंटन सरल बंटन है।
सारणी (X) में दिए गए आँकड़ों को निम्न रूप में भी लिखा जा सकता है―
                                                             सारणी (Y)
प्राप्तांक                           30 35 40 45 48 50 60 65 70 75 80 90 95
विद्यार्थियों की संख्या           1   1   4   1   1   1   4   1    1   1   2    1    1
(बारम्बारता)
सारणी (Y), दिए गए अवर्गीकृत आँकड़ों का बारम्बारता बंटन है क्योंकि इस सारणी में
आँकड़े वर्गीकृत नहीं है। इसमें चर मूल्यों को उनकी संगत बारम्बारताओं के साथ लिखा गया
है।
(i) अवर्गीकृत आँकड़ों का परिसर― महत्तम तथा न्यूनतम चर मानों के अन्तर को आँकड़ों
का परिसर कहा जाता है। सारणी (Y) में दिए गए. अकिड़ा का परिसर = महत्तम चर मान
– न्यूनतम चर मान = 95-30 = 65.
(ii)वर्गीकृत आँकड़े-जब आँकडों को विशपता, लक्षण, समानता, सजातीयता के आधार
पर विभिन्न वर्गों में बाँट दिया जाता है ता वे आंकड़े वर्गीकृत आँकई कहलाते हैं।
(iii) आँकड़ों का वर्गीकरण―सांख्यिकीय अनुसंधान में संकलित आँकड़े प्रायः यहुत बड़ी
मात्रा में और अव्यवस्थित रूप में होते हैं। साधारण व्यक्तित्व तो इन्हें समझ पाता है और
न ही उनमे कोई निष्कर्ष निकाल पाता है। संकलित ऑकड़ो को संक्षिप्त सरल तथा बोधगम्य
बनाने के लिए वर्गीकरण किया जाता है। एक प्रकार की विशेषता रखने वाले आंकड़ों को
एक वर्ग में रखा जाता है। उदाहरण के लिए सारणी (X) में दिए गए आँकड़ों से साधारण
व्यक्ति यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकता है कि कितने छात्र प्रथम श्रेणी में तथा कितने द्वितीय
श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। अतः यथाप्राप्त आँकड़ों से किसी प्रकार का निष्कर्ष निकालना अत्यन्त
कठिन है जब तक कि इन आँकड़ों को वर्गीकृत न कर लिया जाए। अत: इस दृष्टि से आँकड़ो
का वर्गीकरण करना अत्यन्त आवश्यक है।
                                                           सारणी (Z)
प्राप्तांक                        30–40   40-50  50-60   60-70   70-80   80-90   90-100
विद्यार्थियों की संख्या         2              6          1           5          2            2           2
(बारम्बारता)
सारणी (Z) में दिए गए आँकड़े वर्गीकृत है।
यहाँ किसी वर्ग में उसका ऊपरी सीमा सम्मिलित नहीं किया गया है।
        वर्गीकृत बारम्बारता बंटन—वह बंटन जिसमें वर्गों को उनकी संगत बारम्बारताओं के
साथ लिखा जाता है वर्गीकृत बारम्बारता बंटन कहलाता है। सारणी (Z) में दिया गया
वर्गीकृत बारम्बारता बंटन है।
प्रश्न 31. “जीवन के हर क्षेत्र में मापन की आवश्यकता है।” इस कथन से आप
कहाँ तक सहमत है? स्पष्ट करें।
उत्तर―गणना, मापन एवं आँकड़े संबंधी गणितीय समस्याओं का सामना हमें प्रतिदिन
करना पड़ता है। मापन गणित का एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी आवश्यकता हमें कदम-कदम
पर पड़ती है । घड़ी में समय देखना हो या डेयरी अथवा दुकान से दूध लाना हो या मोटर-साइकित
या कार में डीजल या पेट्रोल भरवाना हो या बाजार में कपड़े खरीदना हो या एक स्थान से
दूसरे स्थान के बीच की दूरी की अनुमान लगाना हो या दूरी सटीकता के साथ ज्ञात करना
हो, घर में चाय बनाने के लिए दूध, पानी, चीनी की मात्रा का निर्धारण करना हो या घर
मकान बनाने के लिए नक्शा बनाना और क्षेत्रफल ज्ञात करना हो और इसे बनाने के लिए
आवश्यक सामग्रियों का अनुमान लगाना हो, इन सब कार्यों में हमें मापन की आवश्यकता
पड़ती है और इसी प्रकार के अन्य बहुत से कार्यों में मापन का उपयोग हम करते हैं।
      वास्तव में किसी वस्तु को मात्रात्मक रूप में व्यक्त करना मापन कहलाता है। किसी
वस्तु की खरीददारी करते समय हम एक निश्चित मात्रा में वस्तु खरीदते हैं, जो वस्तु के मापन
के बिना संभव नहीं है। इसी प्रकार समय का मापन की भी हमें आवश्यकता पड़ती है।
जैसे किसी कार्य को पूरा करने में कितना समय लगेगा या किसी व्यक्ति ने कितने समय
तक कार्य किया या किसी की आयु बताना हो तो हमें व्यतीत हुए समय की मात्रा का निर्धारित
करना होता है अर्थात् हमें समय की माप की आवश्यकता पड़ती है। एक और महत्वपूर्ण
चीज का हम मापन करते हैं वह है मुद्रा या राशि । खरीदी हुई वस्तु की मात्रा के बदले में
एक निश्चित राशि का भुगतान हम करते हैं अर्थात् मुद्रा का भी निर्धारण या मापन किया
जाता है। वस्तु की लंबाई, वजन, आयतन या क्षेत्रफल का आकलन करना हो, मुद्रा या सम्म
का निर्धारण करना हो ये सभी किसी न किसी रूप में एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं-विद्यालम
में दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा हो तो दौड़ की लम्बाई का मापन और समय
का मापन साथ-साथ करना होता है । मापन हमारे गणितीय सोच को बढ़ावा देता है तथा गणितीय
ढंग से समस्याओं का समाधान ढूँढ़ने के लिए प्रेरित करता है। मापन की हमारे जीवन में
उपयोगिता एवं महत्त्व को देखते हुए प्राथमिक स्तर से ही मापन की प्रक्रियात्मक और
अवधारणात्मक पक्षों से बच्चों का परिचय कराना आवश्यक है।
प्रश्न 32. अमानक इकाईयाँ बच्चों में मापन की अवधारणा स्पष्ट करने में किस
प्रकार सहायक है? अपने उत्तर का कारण स्पष्ट करें।
उत्तर―गैर मानक (अमानक) इकाईयों से नापने का अभ्यास बच्चों के लिए कई तरह
से मददगार होता है―
(1) इकाई में नापने की बात से बच्चों का परिचय सीधे ही सेंटीमीटर जैसी चीज के
जरिए होकर, जानी पहवानी चीजों के माध्यम से होता है।
(2) मापन की शुरुआती कार्य में गैर-मानक इकाइयाँ ज्यादा उपर्युक्त होती है। सेमी
छोटा होता है तो मेज नापते वक्त या दोस्त का कद नापते वक्त उनके हिसाब
सेको संख्या बहुत ज्यादा हो जाए और इसी काम के लिए मोटर बहुत बड़ी इकाई
है।
(3) इन अनुभव से बच्चों को यह गुंजाइश भी नजर आएगी कि जब मानक पैमाना न
हो या अनुपयुक्त हो तब किसी खास काम के लिए पैमाने भी बनाए जा सकते है।
(4) गैर-मानक इकाई के जरिए बच्चे मानक इकाई की जरूरत महसूस कर पाएँगे
जैसे—यह देखेंगे कि जब वे बेंच बित्ते से नापते हैं तो लम्बाई 10 वित्ता आती है
और जब शिक्षक नापते हैं तो उसी बैंच की लम्बाई 8 वित्ता रह जाती है।
क्रियाकलाप 1. हम कक्षा 3 के अध्याय 8 की पहली गतिविधि करवाते हैं यानी पहले
श्यापमट्ट और मेज को बित्ते से नापने को कहते है और फिर एक डंडी से।
      इस क्रियाकलाप में हम देखते हैं कि बच्चे खुद एक मानक इकाई की जरूरत महसूस
करते है।
         बच्चों को बताते हैं कि मीटर लम्बाई मापने की मानक इकाई है। शुरुआत में इसकी
उप इकाई सेन्टीमीटर से हमलोग नापते थे।
        क्रियाकलाप 2. प्रत्येक बच्चा को एक कार्ड बोर्ड की पट्टी देते है और उसे 1-1 सेमी
के 10 भागों में बाँटने को कहते हैं। बाँटने के बाद हर भाग का अलग-अलग रंग से भरने
को कहते हैं।
             अब बच्चों को बताते हैं कि एक रंगीन भाग की दूरी को 1 सेमी कहते है।
शुरू में बच्चों को कुछ ऐसी चीजों की लम्बाई नापने को कहते है, जिसकी लम्बाई 10
सेमी से छोटी हो। इसके लिए वे स्केल की उस चीज से सटाकर रखे और गिन लें कि स्केल
के कितने रंगीन भाग उस चीज से सटे हैं।
ph
बच्चे अपनी बनाई इस स्केल का उपयोग पुस्तक के विभिन्न ज्यामितिय आकृतियों को
मापने में भी कर सकते है।
इन दो क्रियाकलापो के आधार पर हम कह सका हक अमानक इकाइयाँ अमानक तथा
मानक इकाइयाँ पर्याप्त होती है।
प्रश्न 33. बच्चों में धारिता की समझ विकसित करने के लिए एक गतिविधि का
विस्तृत वर्णन करें।
उत्तर―धारिता-किसी बर्तन की धारिता का अर्थ है कि उसमें कितना तरल पदार्थ या
रेत या नमक भरा जा सकता है। बच्चों को तरल पदार्थ की मात्रा का अनुमान लगाने में ठोस
पदार्थों की अपेक्षा दिक्कत होती है, क्योंकि द्रव पदार्थ का कोई निश्चित आकार नहीं होता,
जिस पात्र में इसे रखा जाता है। यह उसी के आकार को धारण कर लेता है। एक बर्तन
की धारिता द्रव के आयतन को प्रदर्शित करता है, इसी प्रकार नमक या चूर्ण जैसी वस्तु का
आयतन भी ज्ञात किया जा सकता है। यदि जग को पूर्ण रूप से 10 समान कप पानी से भरा
जा सकता है तो 10 कप पानी जग की. धारिता है। यदि प्रत्येक कप की धारिता 100 मिली
है तो जग की धारिता 1 लीटर होगी।
         धारिता मापने की मानक इकाई-धारिता मापने की मानक इकाई लीटर (L) है। एक
लीटर 100 घन सेंटीमीटर या 100 सेमी’ के बराबर होती है। व्यवहारिक दृष्टि से लीटर और
मिलीलीटर (1 लीटर = 1000 मिलीमीटर) का प्रयोग प्राथमिक कक्षाओं में उपर्युक्त है।
          क्रियाकलाप―तीन अलग-अलग आकार के गिलास तथा एक छोटा कप लिजिए। अब
तीनों गिलास की धारिता कप में प्राप्त कीजिए।
    इस मामले में कप धारिता मापने की भौतिक इकाई मानी जाएगी । तब आप धारिता की बात
इस भौतिक इकाई के संदर्भ में कर सकते हैं। यहाँ छोटे गिलास की धारिता 2 कप है। मंझले
गिलास की धारिता 4 कप है और बड़े गिलास की धारिता 5 कप है।अब एक बाल्टी लाएँ
और बाल्टी की धारिता तीनों प्रकार के गिलासों से निकालने का मौका बच्चों को दें।
                                बाल्टी की धारिता 10 छोटे गिलास
               ph                  बाल्टी की धारिता 5 मझले गिलास          ph
                                  बाल्टी की धारिता 4 बड़े गिलास
कुछ इसी तरह की गतिविधियों से बच्चे जल्दी समझ जाते हैं कि एक ही नाप के पात्रों
(बर्तन) को धारिता अलग-अलग होती है और मापन के लिए मानक इकाई की
जरूरत समझने लगते हैं। उन्हें मानक इकाई की जरूरत महसूस कराने के लिए आप उसी
तरह की चर्चा शुरू कर सकते हैं, जैसे लम्बाई के संदर्भ में की थी।
धारिता मापने की मानक इकाई लीटर है। एक लीटर 100 घन सेंटीमीटर या 100 सेमी³
के बराबर होता है। व्यावहारिक दृष्टि से लीटर और मिलीलीटर (1 लीटर = 1000 मिलीलीटर)
का प्रयोग प्राथमिक कक्षाओं में उपयुक्त है। इसके निम्न क्रियाकलाप किए जा सकते है―
      क्रियाकलाप―आप बच्चों को एक ऐसा फ्लास्क दीजिए जिसमें 1 लीटर पानी समा
सकता है। साथ में एक खाली डिब्बा या शीशी दीजिए जिसमें 100 मिलीलीटर (यानी लीटर
का 10वाँ भाग) पानी आता हो (100 मिलीलीटर के दही, दवा आदि का बर्तन आसानी से
उपलब्ध होते हैं।) बच्चे आसानी से देख पाएँगे कि ऐसे 10 डिब्बे से फ्लास्क की सहायता
से दूसरे बर्तन जैसे बाल्टी की धारिता ज्ञात की जा सकती है। मान लें बाल्टी में 4 फ्लास्क
और 5 डब्बे पानी समाता है।
ph
बाल्टी          1 लीटर का फ्लास्क            100 मिलीलीटर का डब्बा
तो इसका अर्थ होगा कि बाल्टी की धारिता 4 लीटर 500 मिलीलीटर है।
आयतन एवं धारिता में अंर्तसंबंध―किसी बर्तन की धारिता उसके अन्दर रखे गए वस्तु
के आयतन के समान होती है।
प्रश्न 34. लम्बाई मापन में शुद्धता के लिए कौन-कौन से आवश्यक सावधानियों
को बरतना चाहिए और क्यों?
उत्तर―मापन के दौरान होने वाली गलतियाँ-गलत माप मिलने के कई कारण हो
सकते हैं। (i) स्केल के किनारे मोटे होने से बच्चे उन्हें पढ़ते वक्त गलतियाँ करते हैं। (ii)
वे स्केल को पढ़ते वक्त आँख बिन्दु (सिरे) के ठीक सीध में नहीं रखते। (iii) नाम पढ़ने
में गलती। (iv) मापन यंत्र का उपयोग करने वाले व्यक्ति द्वारा नाप का सन्निकटन अपने ढंग
से किया जाना । (v) नापते वक्त यंत्र रखने में गलती। (vi) एक ही यंत्र से एक ही चीज
को दो व्यक्ति नापे तो भी नाप अलग-अलग आ सकते हैं ?
           गलतियों को सुधारने के लिए स्केल का सही उपयोग–बच्चे अक्सर स्केल का
उपयोग करते वक्त गलतियों करते हैं। वे स्केल के एक सिरे को चीज के सिरे की सीध
में रख लेते हैं और ध्यान नहीं रखते कि स्केल पर शून्य का निशान कहाँ है।
ph
दूसरी ओर कई बच्चे रेखाखण्ड के सिरे को स्केल पर लगे ‘l’ के निशान की सीध
में रखते हैं और दूसरे सिरे के नाप को ले लेते हैं।
ph
नतीजा यह होता है कि उनका परिणाम वास्तविक लम्बाई से 1 सेमी ज्यादा आता है।
इसलिए स्केल को सही-सही रखने की समझ आवश्यक है। हमें सिखाते वक्त यह ध्यान देना
होगा कि बच्चे खुद स्केल का इस्तेमाल करें और हम इस्तेमाल का तरीका बताएँ। क्योंकि
किसी को नापते देखने से बच्चों को नापने का अनुभव नहीं मिलता।
         पहले आप उन्हें यह दिखा सकते हैं कि 5 सेमी, 6 सेमी, 10 सेमी वगैरह की चीजो या
रेखाखण्डों की लम्बाई कैसे मापी जाती है। इसके लिए हम सारी उपलब्ध स्केलों का प्रयोग
कर सकते हैं। हम उन्हें दिखा सकते हैं कि स्केल को किसी भी स्थिति में रखें, रेखाखण्ड
की लम्बाई 5 सेमी, है तो 5 सेमी ही रहेगी।
Ph
इसी तरह आप उन्हें दिखाइए कि किसी रेखाखण्ड जैसे 4-5 सेमी लम्बाई के रेखाखण्ड
को नापते वक्त स्केल को कैसे पढ़ा जाता है ? विभिन्न स्थितियों में स्केल को रखकर यह
बात स्पष्ट कीजिए।
        गतिविधि―बच्चों को एक निश्चित लम्बाई की कागज की पट्टी काटने को कहें। फिर
हर बच्चा अपनी पट्टी की तुलना अपने साथ की पट्टी से करके पता करे कि क्या लम्बाई
सही मापी थी या नहीं। जब आप बच्चों के प्रदर्शन से संतुष्ट हो जाएँ तो उन्हें एक निश्चित
लम्बाई की रेखा बनाने या स्केल से किसी रेखाखण्ड की लम्बाई नापने को दें।
अतः लंबाई मापन में शुद्धता के लिए निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए।
(i) स्केल को पढ़ते समय आँख को बिन्दु के सीध में रखना चाहिए।
(ii) स्केल को सही से रखना चाहिए।
(iii) स्केल का सही ज्ञान होना।
(iv) लंबाई मापन की सही इकाइयों का ज्ञान होना चाहिए।
                                                      □□□

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