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टिप्पणी – समाज से वंचित लड़कियों में सुधार लाने के उपाय | Measures to bring improvement in socially deprived girls

प्रश्न  – टिप्पणी – समाज से वंचित लड़कियों में सुधार लाने के उपाय | Measures to bring improvement in socially deprived girls.
या
समाज से वंचित लड़कियों की समस्याएँ एवं उनमें सुधार लाने के उपाय लिखिए ? A Write socially deprived girl’s problems and measures to improve their situation.
उत्तर- वंचित लड़कियों की समस्याएँ 
  1. लिंग भेद (Gender Bias) – कई अध्ययनों से पता चलता है कि लड़कियों के साथ भेद-भाव के कारण वे तनाव का अनुभव कर रही है। महिलाएँ वर्तमान में पुरुषों के बराबर हर क्षेत्र में कार्य कर रही हैं तथा अपने को अपनी क्षमताओं के अनुसार बेहतर साबित कर दिया है। इसके बावजूद भी उन्हें घरेलू कार्यों में व्यस्त रखा जाता है। उनकी कड़ी मेहनत के बावजूद उन्हें बाहरी कार्यों के लिए कम महत्त्व दिया जाता है ।
  2. सामाजिक हिंसा (Societal, Violence) – परिवार में महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रहती है। उन्हें उपभोग, सेक्स अथवा बच्चे पैदा करने की मशीन तक ही समझा जाता है। इसके लिए उनके साथ विभिन्न प्रकार की हिंसा आदि की जाती है। परिवार एवं समाज में स्त्रियों की निम्न दशा हिंसा का प्रमुख कारण है। मानवाधिकार आयोग ने महिलाओं के अधिकार, स्वतन्त्रता, समानता के सम्बन्ध में न्यायोचित कदम बढ़ाया है जिससे अन्य भी प्रेरित हुए हैं ।
  3. वित्तीय समस्याएँ (Financial Problems) – गरीबी के कारण वित्तीय समस्याएँ होना स्वाभाविक है। अशिक्षा इसमें अहम् भूमिका निभाती है। इसके कारण स्त्रियाँ अथवा लड़कियाँ घर से दूर नौकरी अथवा कार्य करने के लिए तैयार हो जाती है। कुछ लोग अवसर का लाभ उठाकर. उनके साथ अनैतिक व्यवहार, यौन उत्पीड़न करते हैं तथा कभी-कभी उन्हें दलालों के हाथ बेच भी दिया जाता है।
  4. सामाजिक समस्याएँ (Social Problems) – हमारे समाज पर अभी भी पुरुषों का प्रभुत्व है। महिलाओं के साथ खुले तौर पर भेद-भांव किया जाता है। लैंगिक भेद के परिणामस्वरूप उन्हें सामाजिक एवं घरेलू अधिकारों से वंचित रखा जाता है। परिवार के सदस्य भी इसका समर्थन नहीं करते हैं। उनका शोषण, यौन दुर्व्यवहार तथा अपमान किया जाता है। कामकाजी महिलाओं को प्रायः निम्न, ईर्ष्या एवं सन्देह की नजर से देखा जाता है। महिलाएँ बलात्कार, अनैतिक तस्करी, छेड़छाड़, अपहरण, दहेज उत्पीड़न आदि का शिकार हो रही हैं जिसके लिए परिवार एवं समाज जिम्मेदार हैं।
  5. दोहरी जिम्मेदारी (Dual Responsibilities) – वर्तमान में कार्यकारी महिलाओं के लिए कार्यालय एवं घर की दोहरी जिम्मेदारी निभाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। यह कार्य उतना सरल नहीं है जितना कि देखने से प्रतीत होता है। उन्हें घर, परिवार तथा कार्यालय सभी स्थानों पर उपस्थित रहना पड़ता है तथा लोगों की अपेक्षाओं का भी ध्यान रखना पड़ता है। यह परिवार एवं व्यावसायिक क्षेत्र में मनोवैज्ञानिक सामाजिक समस्याएँ पैदा करता है जबकि यह परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है। यह महिलाओं को तनाव तथा हताशा का जीवन जीने पर बाध्य कर देता है।
  6. अशिक्षा और पारम्परिक विश्वास (Illiteracy and Traditional Belief) – निरक्षरता पारम्परिक मान्यताएँ तथा परिवार की प्रथाएँ महिलाओं में रूग्णता, मातृ मृत्युदर का प्रमुख कारण है। प्रायः सरकारी स्तर पर महिलाओं की शिक्षा सम्बन्धी विभिन्न प्रावधान मात्र नियोजन बनकर ही रह जाते हैं। वे अपना अन्तिम क्रियात्मक रूप नहीं ले पाते हैं। पारम्परिक विश्वास महिलाओं की स्थिति दयनीय करने के साथ उनके विकास में बाधक भी हैं ।
  7. अधिकार में कमी (Lack of Power) – परिवार एवं समाज में आज भी महिलाओं के पास पर्याप्त अधिकार नहीं होते कि वे किसी प्रकरण अथवा समस्या पर निर्णय ले सके। प्रायः वे अपने जीवन के सम्बन्ध में निर्णय भी स्वतंत्र रूप से नहीं ले पाती हैं। उन्हें प्रत्येक मुद्दे पर पुरुषों की अनुमति लेने की आवश्यकता होती है। पारिवारिक एवं घरेलू मामलों जैसे विवाह आदि महत्त्वपूर्ण मामलों में प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप अथवा निर्णय नहीं ले सकती है।
  8. कुपोषण (Malnutrition)- साधारणतया भारतीय स्त्रियाँ परिवार में सबसे अन्त में बचा हुआ भोजन करती हैं। इस प्रकर उन्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता तथा इसका प्रभाव उनके शरीर पर पड़ता है। शरीर स्वस्थ को बनाए रखने में भोजन की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है। भोजन की कमी उन्हें कुपोषण का शिकार बना देती है। पोषक तत्त्वों की कमी से महिलाओं में खून की कमी तथा उनका विकास रुक जाता है। इसका प्रभाव महिलाओं के बच्चों पर भी पड़ता है।
समाज से वंचित लड़कियों में सुधार लाने के उपाय
  1. पोषण एवं खाद्यान्न का प्रावधान – समाज से वंचित बालिकाएँ शारीरिक रूप से कमजोर होती हैं इसके पीछे उनको उचित पोषण का प्राप्त न होना है। अत्यधिक कार्य एवं शारीरिक श्रम के कारण वे अपना ध्यान नहीं रख पाती हैं, परिणामस्वरूप शारीरिक रूप से कमजोर हो जाती हैं। सरकार को इन क्षेत्रों की बालिकाओं का विशेष ध्यान रखना चाहिए। उनके पोषण एवं खाद्यान्न के लिए विशेष कार्यक्रम एवं नीतियाँ बनानी चाहिए तथा प्रचलित नीतियों का कठोरता से अनुपालन कराना चाहिए। सरकार का यह प्रयास होना चाहिए कि जो उस सुविधा का पात्र एवं हकदार हो उसी को मिले अन्य इसका लाभ न ले सकें। समाज इसमें प्रमुख रूप से अपना सहयोग कर सकता है।
  2. शिक्षा एवं जागरूकता की व्यवस्था – समाज से वंचित बालिकाओं की शिक्षा के लिए मलिन एवं शैक्षिक पिछड़े बस्तियों को सरकार द्वारा चिन्हित किए जाने चाहिए तथा शिक्षा की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए। स्थानीय स्तर पर विद्यालयों को बोलकर उनमें ऐसी बालिकाओं के प्रवेश हेतु जागरूकता अभियान भी चलाया जाना चाहिए । इसमें गैर सरकारी संस्थाएँ भी अपना योगदान दे सकती हैं। बालिकाओं की शिक्षा के महत्त्व के बारे में उनके माता-पिता तथा परिवार वालों को बताना चाहिए
  3. रोजगार हेतु प्रयास- इन परिवारों के पिछड़ेपन का कारण बेरोज़गारी होती है। बेरोजगारी के कारण ही अशिक्षा तथा बालिकाओं में सामाजिक पिछड़ापन व्याप्त है। बालिकाएँ परिवार के भरण-पोषण हेतु कार्य करती हैं तथा परिवार के मुख्य सदस्य की इतनी आय नहीं होती अथवा वर्ष भर रोजगार नहीं उपलब्ध हो पाते जिससे वह अपने परिवार का पालन-पोषण कर सके। सरकार को ऐसे परिवारों के लिए कल्याणकारी योजनाओं का सूत्रपात करना चाहिए तथा उचित रूप से एवं वर्ष भर रोजगार उपलब्ध कराने की व्यवस्था करनी चाहिए।
  4. स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था – आर्थिक पिछड़ेपन के कारण इनका स्वास्थ्य भी अत्यधिक खराब रहता है। सरकार को इनके स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था करनी चाहिए । अस्पतालों में इनके लिए निःशुल्क जाँच एवं इलाज के साथ-साथ बस्तियों में मासिक कैम्प की भी व्यवस्था करनी चाहिए जो उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी सलाह प्रदान कर सकें।
  5. पुनर्वास / आवास की व्यवस्था – समय-समय पर इस प्रकार के गरीब परिवारों को मलिन बस्तियों से पुनर्वास • कर नए स्थानों पर बसाने का कार्य भी सरकार द्वारा किया जाना चाहिए । बालिकाओं के लिए आवास एवं रहने की व्यवस्था का भी प्रावधान करना चाहिए। इसके द्वारा उन्हें स्वास्थ्य एवं शिक्षा सम्बन्धी विकास सम्भव हो सकेगा। इन बालिकाओं के विकास द्वारा शिक्षा के स्तर एवं साक्षरता स्तर में भी वृद्धि होगी। रोजगार उपलब्ध करा कर राष्ट्रीय आय एवं जीवन स्तर में भी वृद्धि सम्भव हो सकेगी। इस प्रकार समाज से वंचित बालिकाओं हेतु शिक्षा स्वास्थ्य एवं पोषण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान आवश्यक है।

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