1st Year

थार्नडाइक के उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए आलोचना कीजिए | Explain and criticise S-R theory of learning propounded by Thorndike.

प्रश्न – थार्नडाइक के उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए आलोचना कीजिए | Explain and criticise S-R theory of learning propounded by Thorndike.
या
थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित उद्दीपक-अनुक्रिया सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए इस सिद्धान्त का शिक्षा में महत्त्व निर्धारित कीजिए | Expiain S-R theory of learning propounded by Thorndike and determine its importance in education.
या
उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त की विशेषताएँ लिखिए। Write Charateristics of Stimulusresponse Theory.
या
अधिगम का प्रयत्न तथा त्रुटि सिद्धान्त की अवधारणा । Concept of Trial and Error Theory of Learning. 
उत्तर- थार्नडाइफ का सम्बन्धवाद / उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त ( Thorndike’s Stimulus Response Theory)
एडवर्ड एल. थार्नडाइफ ने अपनी पुस्तक एनिमल इंटेलीजेंसी 1898 में ‘सम्बन्धवाद’ का प्रतिपादन किया । अधिगम मनोविज्ञान के क्षेत्र में ‘सम्बन्धवाद’ से अभिप्राय है। उद्दीपक के साथ क्रिया का अनुबंध बनाना। अतः इसे ‘उद्दीपक-अनुक्रिया सिद्धांत’ के नाम से जाना जाता है । इस सिद्धान्त को निम्नलिखित नामों से भी जाना जाता है-
  1. साहचर्य सिद्धान्त (Association Theory)
  2. प्रयत्न और भूल का सिद्धान्त (Trial and Error Theory)
  3. अणुवादी सिद्धान्त (Molecular Theory)
  4. सम्बन्धवाद का सिद्धान्त (Connectionist Theory)
  5. सीखने का सम्बन्ध सिद्धान्त (Bond Theory of Learning)
यह सिद्धान्त छोटे बच्चों के लिए अधिक उपयोगी है। इस सिद्धान्त के अनुसार सीखने की प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति के सामने एक विशेष स्थिति या उद्दीपक ( stimulus) होता है, जो उसे विशेष प्रकार की अनुक्रिया (response) करने के लिए प्रेरित करता है। प्रत्येक अनुक्रिया या प्रतिक्रिया के पीछे कोई ना कोई उद्दीपक होता है। इस प्रकार एक उद्दीपक का विशेष की अनुक्रिया से सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, जिसे उद्दीपक-अनुक्रिया सम्बन्ध कहते हैं। दो या दो से अधिक अनुभवों में सम्बन्ध स्थापित हो जाने के कारण इसे साहचर्य सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है। यह सम्बन्ध इतना प्रबल होता है कि भविष्य में जब कभी उद्दीपन की पुनरावृत्ति होती है, तो प्राणी उसी प्रकार की अनुक्रिया या व्यवहार करेगा जैसा उसने पहले किया था। इस प्रकार बने प्रगाढ़ सम्बन्ध को सम्बन्धवाद भी कहा जाता है।
थॉर्नडाइक ने बताया कि अधिगम की प्रक्रिया में शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं के मध्य सम्बन्ध होना आवश्यक है। थॉर्नडाइक ने सीखने के सिद्धान्तों के लिए अनेक पशुओं पर परीक्षण किए। इस सिद्धान्त का परीक्षण थार्नडाइफ ने इस भूखी बिल्ली पर किया। उन्होंने बिल्ली को पिंजरे (puzzle box) में बंद कर उसके बाहर मछली के मांस का टुकड़ा रख दिया। पिंजरे का दरवाजा. एक खटके के दबने से खुलता था। बिल्ली के लिए भोजन उद्दीपक था। भोजन को देखकर बिल्ली व्याकुल हो जाती है और वह प्रतिक्रिया करना प्रारम्भ कर देती है। अनेक बार बाहर निकलने का प्रयास करने के बाद संयोगवश एक बार उसका पंजा खटके पर पड़ता है और वो खुल जाता है।

थॉर्नडाइफ ने इस प्रयोग को बार-बार दोहराया। हर बार त्रुटियों की संख्या में कमी आयी और अंत में बिल्ली किसी प्रकार की भूल न करके सीधा खटके को दबाकर पिंजरे के दरवाजे को खोल लेती है। पिंजरे से बाहर निकलने के बाद बिल्ली मछली को खाकर संतोष प्राप्त करती है। इस प्रकार इस प्रयोग में उद्दीपक और प्रतिक्रिया में सम्बन्ध (S-R Bond) स्थापित हो जाता है। बार-बार प्रयास द्वारा त्रुटि कम होने के कारण इसे प्रयास व त्रुटि का सिद्धान्त या प्रयत्न व भूल का सिद्धान्त कहा जाता है।

थार्नडाइफ के सीखने के नियम
  1. तत्परता का नियम (Law of Readiness) इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होने के बाद ही सीख सकता है। सीखने के लिए तत्पर रहने से अधिगम शीघ्र व स्थायी होता है। तत्परता व्यक्ति को ध्यान केन्द्रित करने में योगदान देती है जिससे क्रिया आसानी से सम्पन्न हो जाती है। मानसिक रूप से तैयार न होने पर कोई भी कार्य और व्यवहार कष्टदायक होता है। भाटिया के अनुसार, तत्पर होना मतलब किसी कार्य को आधा कर लेना। अधिगम के प्रति बालकों में जिज्ञासा उत्पन्न करना आवश्यक है। कक्षा-कक्ष में नवीन ज्ञान प्रदान करने से पहले बालक को मानसिक रूप से तैयार करना चाहिए। जबरदस्ती कार्य कराने से उसकी भावनाओं का दमन होता है और सीखने के प्रति इच्छा शक्ति में कमी आती है।
  2. अभ्यास का नियम (Law of Exercise or Frequency ) थॉर्नडायक के इस नियम के अनुसार कोई भी क्रिया बार-बार दोहराने से उससे सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। कई बार अभ्यास करने से अधिगम सरल हो जाता है और इससे कुशलता भी प्राप्त होती है। हिलगार्ड एवं बॉयर ने बताया कि अभ्यास करने से उद्दीपक और प्रतिक्रिया में सम्बन्ध प्रगाढ होता है। इस नियम में उपयोग का नियम एवं अनुपयोग का नियम के रूप में दो उपनियम भी हैं। इनके अनुसार जो कार्य व्यक्ति के लिए उपयोगी है वो बार बार किया जाता है। इससे एक प्रकार सम्बन्ध बन जाता है जो आदत के रूप में शुमार हो जाता है। इसके विपरीत अनुपयोगी कार्य न करने से उसको आसानी से भूला जा सकता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि किसी कार्य को याद रखने के लिए उसका अभ्यास आवश्यक है। कोलेसनिक ने बताया कि अभ्यास का नियम किसी कार्य की पुनरावृति और सार्थकता के औचित्य को सिद्ध करता है। इस सिद्धान्त के अनुसार बालकों में ज्ञान के स्थायीकरण के लिए सिखाए गए ज्ञान का निरन्तर अभ्यास करवाना चाहिए। कक्षा में अध्यापक को पाठ्य सामग्री बार बार दोहरानी चाहिए। छात्रों में अभिव्यक्ति विकास के लिए मौखिक रूप से विषय वस्तु का अभ्यास आवश्यक है।
  3. प्रभाव का नियम (Law of Effect)-इस सिद्धान्त के अनुसार किसी कार्य को करने से अच्छा या धनात्मक प्रतिफल मिलता है तो वह कार्य बार-बार करने की इच्छा होती है। जिस कार्य के परिणाम से व्यक्ति को सुख एवं चैन प्राप्त होता है उसे सीखने में आसानी होती है। असफलता मिलने पर व्यक्ति कार्य को दुबारा करने का प्रयास नहीं करेगा। क्रो एवं क्रो के अनुसार, सीखने की क्रिया में संतोष का स्थान महत्त्वपूर्ण होता है। कक्षा में सीखने के लिए बालक को निरन्तर अभिप्रेरित एवं प्रोत्साहित करना चाहिए। वैयक्तिक • भिन्नता के आधार पर अधिगम प्रदान करने के लिए, नवीन शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए जिससे सीखने के प्रति रोचकता बनी रहे। अध्यापक को सकारात्मक सोच के साथ शिक्षण प्रदान करना चाहिए जिससे संतोषप्रद परिणाम प्राप्त हो सके।
उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त की विशेषताएँ (Characteristics of Stimulus Response Theory)
  1. यह सिद्धान्त शैक्षिक प्रक्रिया में अभिप्रेरणा को अधिक महत्त्व देता है।
  2. सीखने के स्थायीकरण के लिए यह सिद्धान्त ज्ञानात्मक, गत्यात्मक और भावात्मक अंगों के उपयोग पर बल देता है।
  3. थॉर्नडाइक के अनुसार, अधिगम उद्दीपक और अनुक्रिया के मध्य एक सम्बन्ध है जिसकी स्थापना मस्तिष्क में होती है ।
  4. इस सिद्धान्त के अनुसार बार – बार प्रयत्न करने से अधिगम में स्थायीकरण आता है।
  5. थॉर्नडायक ने उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त के आधार पर तीन नए अधिगम सिद्धान्त तत्परता का नियम, प्रभाव का नियम एवं अभ्यास का नियम प्रतिपादित किए।
उद्दीपन – अनुक्रिया सिद्धान्त की शिक्षा में उपादेयता (Educational Implications of Stimulus Response Theory)
  1. यह सिद्धान्त निरन्तर परिश्रम व प्रयास करने बल देता है ।
  2. इस सिद्धान्त की सहायता से कार्य की धारणाएं आसान और स्पष्ट हो जाती है ।
  3. यह विधि अभ्यास पर अधिक बल देती है जिससे व्यक्ति किसी कार्य में निपुणता प्राप्त कर सकता हैं ।
  4. इस सिद्धान्त के फलस्वरूप बालक में धैर्य एवं आशावादी जैसे गुणों का विकास होता है ।
  5. यह सिद्धान्त करके सीखने पर जोर देता है। इसमें विषय-वस्तु को छोटे-छोटे भागों में विभाजित किया जाता है।
  6. उद्दीपन – अनुक्रिया सिद्धान्त छात्रों को नवीन ज्ञान की प्राप्ति के लिए तत्पर रखता है।
  7. यह सिद्धान्त पिछड़े एवं मंद बुद्धि बालकों के लिए बहुत उपयोगी है।
  8. इस सिद्धान्त से अनुभवों का लाभ उठाने की क्षमता का विकास होता है।
  9. इस सिद्धान्त से बालक में आत्म विश्वास एवं आत्मनिर्भरता की भावना का विकास होता है।
  10. गैरिसन ने बताया कि यह सिद्धान्त समस्या के समाधान में बहुत ही उपयोगी है।
  11. यह सिद्धान्त छात्रों को अधिकाधिक सीखने के लिए प्रोत्साहित करता है।
उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त की आलोचना (Criticism of Stimulus Response Theory)
  1. यह सिद्धान्त मनुष्यों की अपेक्षा पशुओं के सीखने की क्रिया को अधिक स्पष्ट करता है।
  2. इस सिद्धान्त के अनुसार सीखने के उद्देश्य तक पहुंचने में काफी समय लग जाता है।
  3. यह सिद्धान्त सीखने की विधि बतलाता है परन्तु सीखता क्यों है इस पर प्रकाश नहीं डालता।
  4. उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त व्यर्थ के प्रयत्नों पर अधिक बल देता है।
  5. यह सिद्धान्त मानव विवेक एवं चिंतन की अवहेलना करते हुए रटने की क्रिया पर बल देता है ।
  6. इस सिद्धान्त से सीखने में यांत्रिकता आ जाती हैं जो अधिगम के स्थायीकरण के लिए सहायक नहीं है ।

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