नारीवाद की विशेषताओं एवं मुख्य तत्त्वों का वर्णन कीजिए । Explain the Characteristics and Main Elements of Feminism.
प्रश्न – नारीवाद की विशेषताओं एवं मुख्य तत्त्वों का वर्णन कीजिए । Explain the Characteristics and Main Elements of Feminism.
उत्तर – 20वीं शताब्दी में नारीवाद का आरम्भ 1960 में साइमन डी. ब्यूईस (Simon D. Bucis) की पुस्तक, सेकण्ड सेक्स (Second sex) के विचारों से हुई। नारीवाद, नारी मुक्ति पर आधारित है। नारीवाद का प्रमुख दर्शन है “यदि नारी मुक्त नहीं होगी तो वह अपनी सहभागिता कैसे निश्चित करेगी।” नारीवाद की मान्यता है कि सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक अधिकार, नारी स्वतंत्रता के लिए परम आवश्यक है। यदि सामाजिक अधिकार पर्याप्त रूप में प्राप्त नहीं होंगे तो उन्हें समाज के स्तरीकरण में ऊँचा स्थान प्राप्त नहीं हो सकता । इसी प्रकार आर्थिक अधिकारों का न होना भी उन्हें वह स्वतंत्रता नहीं प्राप्त कराने के लिए जिम्मेदार है जो उन्हें प्राप्त होनी चाहिए थी। नारीवादियों का तर्क है कि यदि नारी आर्थिक रूप से आत्म निर्भर नहीं होगी तो वह अपना अस्तित्व हासिल नहीं कर सकती। इसी प्रकार राजनैतिक अधिकारों के बिना भी नारी अपना अस्तित्व हासिल नहीं कर सकती। राजनैतिक अधिकार एक प्रकार से आधारभूत अधिकार हैं जिसके न होने पर आर्थिक एवं सामाजिक अधिकारों की प्राप्ति असंभव सी प्रतीत होती है।
नारीवाद की विशेषताएँ (Characteristics of Feminism)
- समान अधिकार तथा समान अवसर – जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में स्त्रियों एवं पुरुषों को समान अधिकार प्रदान किए जाए तथा सभी को समान अवसर उपलब्ध हों। नारीवाद के समर्थकों का विचार है कि स्त्रियों को पुरुषों के समान सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि सभी अधिकार प्राप्त होने चाहिए। स्त्रियों को भी पुरुषों के समान अपना जीवन स्वतन्त्रता पूर्वक व्यतीत करने, अपनी रूचि के अनुसार किसी भी व्यवसाय को अपनाने, सम्पत्ति रखने तथा विवाह एवं तलाक के अधिकार प्राप्त होने चाहिए। राजनैतिक क्षेत्र में भी मताधिकार का प्रयोग करने, चुनाव लड़ने तथा उच्च सरकारी पद ग्रहण के अधिकार प्राप्त होने चाहिए।
- परिवार की संस्था का विरोध-परिवार की संस्था को महिलाओं की अधीनता एवं उत्पीड़न का महत्वपूर्ण कारक माना जाता है। परिवार में स्त्री की भूमिका को घर की चहारदीवारी के भीतर ही सीमित कर दिया गया है इसलिए स्त्रियों को अपनी क्षमताओं को विकसित करने का पूर्ण अवसर नहीं प्राप्त हो पाता है। इतना ही नहीं, परिवार में बच्चों का समाजीकरण भी इस प्रकार से होता है कि पुरुष का स्त्री पर प्रभुत्व बना रहे। लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को परिवार द्वारा भी प्रत्येक क्षेत्र में अधिक प्राथमिकता दी जाती है ।
- बालकों की सार्वजनिक देखभाल – कुछ नारीवाद के समर्थकों का मानना है कि बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी समाज की होनी चाहिए। महिला प्रसूति गृह एवं बाल पोषण गृहों तथा शिशुओं के उपचार के लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए। इसमें बच्चों की देख-रेख की जिम्मेदारी प्रशिक्षित नर्सों के द्वारा सामूहिक रूप से होनी चाहिए।
- लैंगिक स्वतन्त्रता उग्र (Sexual Freedom) – कुछ नारीवादियों की मान्यता है कि कामवासना की पूर्ति एक निजी पहलू है जिसमें समाज को तब तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक कि दूसरे को कोई नुकसान न पहुँचे। अतः स्त्री को अपनी स्वेच्छानुसार यौन सम्बन्ध जोड़ने एवं तोड़ने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए।
- स्त्रियों की आर्थिक स्व-निर्भरता – स्त्री पर पुरुष के प्रभुत्व का मुख्य कारण है कि पुरुष पर स्त्रियों की आर्थिक निर्भरता है। यदि स्त्रियों को शिक्षित करके आर्थिक रूप से आत्म निर्भर बना दिया जाए तो उन्हें पुरुषों पर आश्रित नहीं रहना पड़ेगा तथा वे स्वतन्त्रतापूर्वक जीवन यापन कर, सकेंगी। पुरुषों की भाँति स्त्रियों को भी शिक्षित करके उन्हें उद्योग-धन्धों तथा नौकरी या अन्य व्यवसाय, जैसेडॉक्टरी, वकालत, इन्जीनियरिंग आदि करने के लिए सक्षम बनाया जाना चाहिए।
- पितृ – प्रधानता का विरोध ( Opposition to Patriarchy)पितृ-प्रधानता को ही स्त्रियों के शोषण, दमन तथा उनके साथ किए जाने वाले दुर्व्यवहार का कारण माना जाता है। पितृ – प्रधान समाज में पुरुष स्त्री पर अपनी प्रधानता स्थापित करता है तथा उसे निर्देश देता है। नारीवाद के समर्थक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का विरोध करते हैं ।
- स्त्रियाँ एक उत्पीड़ित वर्ग हैं- नारीवादियों का मानना है कि स्त्रियाँ समाज की उत्पीड़ित वर्ग हैं तथा लगभग सभी समाज में वे शोषण की शिकार हैं । परम्परागत रूप से पैत्रक सम्पत्ति में उनका कोई कानूनी अधिकार नहीं था। वे पुरुषों से पीछे थी वे सम्पत्ति की मालिक भी नहीं बन सकती थी न ही नौकरी आदि करके स्व-निर्भर ही बन सकती थी। आज भी अधिकांश स्त्रियाँ अपने परम्परागत कार्यों जैसे- घर का काम-काज करना, बच्चा पैदा करना एवं उसका पालन-पोषण करना तथा घर में सभी की सेवा करना आदि कार्यों में व्यस्त रहती हैं। अधिकांश स्त्रियाँ आज भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर होती हैं।
- स्त्रियाँ लैंगिक प्राणी नहीं हैं, मानव है- नारीवाद का विचार है कि स्त्रियाँ केवल लैंगिक प्राणी ही नहीं है तथा स्त्रियों को केवल माता, पत्नी तथा बहन के रूप में ही नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि इन्हें एक सामान्य इन्सान के रूप में देखा जाना चाहिए। नारीवादियों का विचार है कि स्त्रियाँ भी पुरुषों के समान योग्यता एवं बुद्धि रखती हैं तथा वे सभी कार्यों को करने में सक्षम हैं जो पुरुषों द्वारा किए जाते हैं। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में पुरुषों की अधीनता स्त्रियों को इसलिए स्वीकार करनी पड़ती है कि उन्हें पुरुषों के समान विकास के अवसर उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं।
- स्त्रियों की परम्परावादी भूमिका में परिवर्तननारीवादियों की मान्यता है कि परम्परावादी विचारधारा के अनुसार स्त्रियों को घर का काम-काज करना, पति की सेवा करना, बच्चा पैदा करना तथा उनका पालन-पोषण करना आदि किए जाने के विरुद्ध है। स्त्रियों की यह भूमिका दैवीय न होकर पुरुषों द्वारा बनाई गई है। इस प्रकार स्त्रियाँ जब तक स्वतन्त्र नहीं होंगी तब तक उनकी भूमिका में परिवर्तन नहीं लाया जा सकता है।
- एक पति – एक पत्नी विवाह का विरोध – स्त्रीवादी विचारक एक पति- एक पत्नी विवाह की प्रथा के विरूद्ध हैं। उनका मानना है कि इस प्रथा के अन्तर्गत स्त्री अपने पति की दासी बनकर रह जाती है तथा अपनी सारी उम्र अपने पति की सेवा बच्चों का पालन-पोषण तथा घर के अन्य कामों को करने में ही व्यतीत कर देती है। इसलिए स्त्रियों को इस दासता की प्रथा से मुक्ति दिलाने के लिए इस प्रथा का अन्त करना होगा ।
नारीवाद के मुख्य तत्त्व (Main Elements of Feminism)
- प्रजातान्त्रिक संरचनात्मक आधार – सभी को एक समान अधिकार तथा एक समान अवसर प्रदान करना ही देश की प्रजातान्त्रिक संरचना का आधार है। यह तत्व नारीवाद को आधार प्रदान करता है। इसके अन्तर्गत स्त्री एवं पुरुषों को समान जीवन जीने के लिए समान अधिकार व समान अवसर प्राप्त होने की बात की गई है।
- आत्म निर्भरता – बालिकाओं को शिक्षित करके पुरुषों के समान आत्मनिर्भर बनाने एवं अपनी जीविका स्वयं चलाने तथा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने का कार्य करना चाहिए जो नारीवाद के एक आधार के रूप में प्रस्तुत होगा ।
- दासता की स्थिति से मुक्ति – नारीवाद एक ऐसी विचारधारा का समर्थन करती है जिसमें नारियों को दासता की स्थिति से मुक्ति दिलाने के लिए बाल-विवाह प्रथा के अन्त पर जोर दिया गया है। सामान्यतः लोग स्त्रियों का जीवन अपने पति, परिवार तथा बच्चों की देख-भाल करने के लिए ही मानते हैं ।
- पितृसत्तात्मकता का विरोध – नारीवाद का मुख्य लक्ष्य पितृसत्तात्मकता का अन्त करना है। पितृसत्तात्मकता में पुरुष नारी पर दमन, शोषण, अधिकार एवं निर्देश की प्रवृत्ति को प्रदर्शित करतें हैं । अन्त में हम कह सकते है कि पुरुष वर्ग एवं नारीवर्ग की असमानता तथा पुरुषों को उच्च एवं स्त्रियों को निम्न स्तर का दर्जा देने का अन्त करना ही नारीवाद का मुख्य केन्द्र बिन्दु है ।
- लैंगिक भेद – स्त्री एवं पुरुषों को समान रूप से सभी प्रकार के अधिकार प्राप्त हैं लेकिन फिर भी लैंगिकता को आधार बनाकर पक्षपात व भेदभाव करना नारीवाद के अनुसार पूर्णरूपेण अन्याय है। पारिवारिक वातावरण में भी बालिकाओं को बालकों के पालन-पोषण, उनकी देखभाल, पढ़ाई-लिखाई के लिए समान अवसर तथा शिक्षा द्वारा समानता का अधिकार दिलाना भी नारीवाद का केन्द्र बिन्दु है।
- प्रेरणा – नारीवाद का उद्देश्य है कि वर्षों से चहारदीवारी के अन्दर कैद रहने वाली महिलाओं को बाहर निकालकर जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। महिलाओं के सफल एवं स्वतन्त्र जीवन के लिए पारिवारिक बन्धनों, जैसे- बच्चों की देखभाल आदि के लिए विशेष उपचार गृहों की व्यवस्था जैसे कार्यों को करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
- समानता – नारीवाद का मानना है कि पुरुषों के समान स्त्रियों को भी लैंगिक स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। कुछ उग्र स्त्रीवादियों के अनुसार स्त्रियों को अपनी इच्छानुसार यौन सम्बन्ध स्थापित करने तथा उन्हें तोड़ने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए। जबकि इसके विपरीत कुछ अन्य लोगों की मान्यता है कि स्त्रियों को सामाजिक संरचना के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आदि क्षेत्रों में एक समान अधिकार प्राप्त हो जिसमें किसी भी प्रकार का भेद-भाव सम्मिलित न हो। उपर्युक्त तत्वों से स्पष्ट होता है कि वर्तमान समय में स्त्री वर्ग को, पुरुष व के समान सुरक्षित बनाए रखने के लिए अनेकों प्रयास सामने प्रस्तुत हुए। यह नवीन सोच केवल एक कारण का परिणाम ही नहीं है बल्कि सामाजिक संरचना के अन्तर्गत समाज, लोगों की सामाजिक पहचान, जागरूकता विकास व उन्नति की आवश्यकता आदि अनेक तत्वों के कारण सामाजिक संरचना के आधारभूत ढाँचे में परिवर्तन सम्भव हुआ है।
