1st Year

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प्रश्न – निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिएWrite short notes on the following:
(1) भारत में अध्ययन विषयों के आधुनिक पक्ष एवं उसका परिदृश्य ( Modern Aspects of Discipline in India and their Scenario)
(2) भविष्य की आवश्यकताओं और सामाजिक आचार संहिता के आधार पर शिक्षा में अध्ययन विषयों के आधुनिक पक्ष (Modern Aspects of Disciplines in Education on the Basis of Future Needs and Social Ethics)
(3) भविष्यबोध एवं सामाजिक आचार संहिता के विकास हेतु गतिविधियाँ (Activities for Development of Future Consciousness and Social Ethics)
उत्तर- भारत में अध्ययन विषयों के आधुनिक पक्ष एवं उसका परिदृश्य (Modern Aspects of Discipline in India and their Scenario)
भारतीय शिक्षा प्रणाली प्राचीन काल से ही भविष्योन्मुखी रही है। भारतीय शिक्षा में सदैव वर्तमान की आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ भविष्य की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा गया है क्योंकि वर्तमान शिक्षा प्रणाली का यह दायित्व होता है कि वह भविष्य में आने वाली प्रत्येक समस्या का समाधान उपलब्ध कराएँ। सामाजिक व्यवस्था की ही तरह शिक्षा का उददेश्य भविष्यगत सुरक्षा से सम्बन्धित हो जाता है। प्राचीन काल में शिक्षा सीमित व्यक्तियों के लिए थी परन्तु वर्तमान समय में शिक्षा का स्वरूप परिवर्तित हो गया है। वर्तमान समय में प्रत्येक अभिभावक अपने बालक को विद्यालय इसलिए भेजते हैं ताकि उसका भविष्य सुरक्षित हो सके। वर्तमान समय में भारतीय शिक्षा व्यवस्था में अध्ययन विषयों के आधुनिक पक्षों से सम्बन्धित परिदृश्य निम्नलिखित प्रकार से दृष्टिगोचर होते हैं-
  1. सर्वागीण विकास से सम्बन्धित शिक्षा – सर्वागीण विकास हेतु वर्तमान शिक्षा प्रणाली में विषयों का सर्वप्रमुख आधुनिक पक्ष है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली बालकों को विशेष रूप से प्रत्येक क्षेत्र में विकास करने की प्रक्रिया पर आधारित है। प्रत्येक छात्र में अन्तर्निहित प्रतिभाओं के विकास के लिए यह आवश्यक है कि उनके अनुरूप गतिविधियों का समावेश विद्यालयी व्यवस्था में हो। इसी कारण वर्तमान में पाठ्यक्रम के साथ-साथ पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था की गई है जो बालकों में अन्तर्निहित प्रतिभाओं से सम्बन्धित होती है। इस प्रकार वर्तमान शिक्षा व्यवस्था बालकों के लिए सर्वांगीण विकास के उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु कार्य कर रही है जिससे भविष्य में प्रत्येक बालक का सर्वांगीण विकास हो सके।
  2. शिक्षा की सार्वभौमिकता- भारतीय शिक्षा में विषयों का द्वितीय आधुनिक पक्ष सभी के लिए शिक्षा उपलब्ध कराना है जिससे कि सभी व्यक्ति अपने भावी जीवन में अधिकारों का उपयोग कर सकें तथा कर्तव्यों का पालन कर सकें। इसलिए सरकार ने 6 से 14 वर्ष तक बालक-बालिकाओं के लिए निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया है। इसके साथ ही निःशुल्क पाठ्य पुस्तक एवं दलित वर्ग के छात्रों के लिए छात्रवृत्ति की व्यवस्था की है जिससे धनाभाव शिक्षा की सार्वभौमिकता में किसी प्रकार की बाधा न उत्पन्न कर सके।
  3. बालक-बालिकाओं की समान शिक्षा-वर्तमान में बालक-बालिकाओं को समान शिक्षा प्रदान की जाती है। विद्यालयों में सह-शिक्षा प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तक व्यवस्था की गई है। इससे यह स्पष्ट है कि बालक-बालिकाओं में कोई अन्तर नहीं है। पुरुष प्रधान समाज एवं सोच को समाप्त कर समाज में पुरुष एवं महिलाओं को समान दर्जा दिया जा रहा है जो शिक्षा के माध्यम से ही सम्भव है।
  4. सामान्य एवं व्यावसायिक शिक्षा का समन्वयन-भविष्य की सामान्य समस्याओं के समाधान के लिए सभी को सामान्य शिक्षा की आवश्यकता होती है इसलिए सामान्य शिक्षा को प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक सभी के लिए अनिवार्य बनाया गया है। इसके पश्चात् ही व्यवसाय विशेष या फिर तकनीकी शिक्षा प्रदान की जाती है। इस प्रकार बालक के भविष्य को ध्यान में रखते हुए शिक्षा का समन्वित रूप प्रस्तुत किया जाता है जिससे छात्र भविष्य में अपनी पसन्द की शिक्षा और व्यवसाय चुन सके।
  5. पर्यावरणीय शिक्षा – पर्यावरण प्रदूषण की बढ़ती भयावह स्थिति को देखते हुए वर्तमान समय में पर्यावरणीय शिक्षा को अध्ययन विषय के आधुनिक पक्ष के रूप में भारतीय शिक्षा प्रणाली को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। पर्यावरणीय शिक्षा के स्वरूप को पूर्णतः प्रभावी मानते हुए सामाजिक जागरूकता एवं वैश्विक स्तर पर जागरूकता के लिए सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएँ संचालित की जा रही हैं जिससे वर्तमान के साथ एक स्वच्छ भविष्य का निर्माण हो सके ।
  6. आदर्शवादी शिक्षा एवं प्रयोजनवादी शिक्षा का समन्वयन- बालकों में उच्च आदर्शों को स्थापित करने के लिए आदर्शवादी शिक्षा की व्यवस्था की गयी है। सामान्यतः आदर्शवादी व्यवस्था का मूल उद्देश्य आध्यात्मिक विकास एवं आदर्शवादी मूल्यों की स्थापना करना है जिससे कि सांसारिक दुःखों से मुक्ति प्रदान की जा सके तथा अन्तिम सुख की प्राप्ति हो सके परन्तु आधुनिक समय में ऐसा सम्भव नहीं है और शिक्षाशास्त्री मानते हैं कि वर्तमान युग में प्रयोग एवं विज्ञान के युग में शिक्षा का स्वरूप प्रयोजनवादी होना चाहिए। इसलिए आदर्शवादी शिक्षा को प्रयोजनवादी शिक्षा के साथ सम्बद्ध करके दोनों के सम्मिलित रूप से छात्रों का विकास किया जाना शिक्षा की भविष्यगत् योजना है। इससे छात्र भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास को प्राप्त कर सकेंगे।
  7. वैश्विक संस्कृति एवं सद्भावना की शिक्षा-वर्तमान शिक्षा प्रणाली वैश्विक संस्कृति एवं अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना की ओर उन्मुख हो रही है। प्राथमिक स्तर से ही छात्रों को अपने पड़ोसी देशों की संस्कृति एवं शिक्षा व्यवस्था से परिचित कराया जाता है जिससे कि वे एक-दूसरे के समीप आ सकें और धीरे-धीरे वैश्विक समाज एवं संस्कृति का निर्माण हो सके। इसके मूल में एक ही उद्देश्य कार्य करता है कि हम सभी मानव समाज के सदस्य हैं और हमें एक-दूसरे के सुख-दुःख एवं सदभावना के बारे में समझना चाहिए। इस समाज के निर्माण की प्रक्रिया शिक्षा का भविष्यगत एवं महत्त्वपूर्ण उद्देश्य माना जाता है। इसके लिए पाठ्यक्रम में अन्तर्राष्ट्रीय समझ से सम्बन्धित प्रकरण दिए जाते हैं।
  8. विश्व शान्ति की शिक्षा – वर्तमान समय में विश्व के कई देश परमाणु सम्पन्न है तथा अन्य देश भी आधुनिक जनसंहारक हथियारों से सम्पन्न हैं। इसलिए वैश्विक मतभेद या टकराव उचित नहीं है। इससे सम्पूर्ण विश्व को खतरा हो सकता है। इसके साथ ही परमाणु हथियारों की होड भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में विश्व शान्ति की शिक्षा भारतीय शिक्षा प्रणाली की एक महत्त्वपूर्ण देन है। सामान्य रूप से भारतीय संस्कृति विश्व शान्ति का एक सर्वोत्तम उदाहरण है। भारतीय शिक्षा में विश्व – बन्धुत्व एवं विश्व शान्ति के लिए कार्य करने की योजना को भविष्य की योजनाओं में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जा रहा है।
भविष्य की आवश्यकताओं और सामाजिक आचार संहिता के आधार पर शिक्षा में अध्ययन विषयों के आधुनिक पक्ष
भविष्य की आवश्यकताओं और सामाजिक आचार संहिता के आधार पर शिक्षा में अध्ययन विषयों के आधुनिक पक्षों को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है-
  1. सृजनात्मक चिन्तन विषयों के आधुनिक पक्षों की प्रमुख विशेषता सृजनात्मक चिन्तन है। सृजनात्मकता के आधार पर ही भविष्य एवं वर्तमान को सुरक्षित रखा जा सकता है। इसमें छात्रों के समक्ष उन गतिविधियों एवं परिस्थितियों को उत्पन्न किया जाता है जिसमें छात्र अधिक से अधिक सृजनात्मक चिन्तन करते हुए समस्याओं का समाधान कर सकें। इससे भावी जीवन में भी छात्र सृजनात्मक स्तर के आधार पर विकास कर सकेंगे तथा समस्याओं का समाधान कर सकेंगे।
  2. आवश्यकताओं में समन्वयन विषयों के आधुनिक पक्षों की प्रमुख विशेषता समन्वयवादी दृष्टिकोण है। इसके अन्तर्गत शिक्षा व्यवस्था का स्वरूप इस प्रकार निर्धारित किया जाता है कि वह वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति भी करें । जैसे- पर्यावरणीय संसाधनों के प्रयोग में पोषणीय विकास की अवधारणा विषयों के आधुनिक पक्षों का सर्वोत्तम उदाहरण है जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग इस प्रकार किया जाता है कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी प्राकृतिक संसाधनों का भण्डार सुरक्षित रहे।
  3. जीवन कौशलों का विकास एवं उपयोगिता के साथ समन्वय विषयों के आधुनिक पक्षों में उन गतिविधियों का समावेश किया जाता है जो कि छात्रों में जीवन कौशलों का विकास करती हैं जिससे छात्र आने वाले जीवन की कठिन परिस्थितियों में उसका उपयोग करके विभिन्न संकटों से बच सकें। ये कौशल सामाजिक जीवन, शैक्षिक जीवन, पर्यावरणीय जीवन एवं राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित हो सकते हैं। इस प्रकार विषयों के आधुनिक पक्ष जीवन कौशलों को विकसित करने का पूर्ण प्रयास करते हैं जो वर्तमान एवं भविष्य दोनों में ही छात्रों के जीवन को सुखमय बनाने का प्रयास करते हैं।
    इसके साथ ही विषयों के आधुनिक पक्षों का उद्देश्य उपयोगिता में समन्वय स्थापित करना है। वर्तमान उपयोगिताओं को भविष्यगत उपयोगिताओं से सम्बद्ध करना इसका प्रमुख उद्देश्य है।
  4. नवाचारों का समावेश – विषयों के आधुनिक पक्षों की प्रमुख विशेषता नवाचारों का समावेश है। इस शिक्षा व्यवस्था में उन सभी तत्त्वों को स्थान दिया जाता है जो शिक्षा को आधुनिकता के अनुरूप बनाते हैं, जैसे- दल शिक्षण, शिक्षा में तकनीकी का प्रयोग एवं गतिविधि आधारित शिक्षण ने छात्रों की वर्तमान शिक्षण अधिगम समस्या का समाधान किया है तथा भविष्य में आने वाली शैक्षिक समस्याओं के समाधान में शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों को सक्षम बनाया है।
  5. परिकल्पनाओं का निर्माण विषयों के आधुनिक पक्षों में अनेक प्रकार की परिकल्पनाओं का निर्माण किया जाता है। इसके आधार पर ही शिक्षा की रूपरेखा तैयार की जाती है। जैसे- पेट्रोलियम पदार्थों के सीमित भण्डार को देखकर ही पर्यावरणविदों ने कल्पना की कि इन पदार्थों के भण्डार के समाप्त होने पर क्या स्थिति उत्पन्न होगी। इस परिकल्पना ने ही पोषणीय विकास की अवधारणा को जन्म दिया जिससे भावी पीढ़ी के लिए संसाधनों को संरक्षित किया जा सके ।
  6. वैश्विक सोच का समावेश – विषयों के आधुनिक पक्षों के अन्तर्गत वैश्विक सोच का समावेश होता है। इसलिए शिक्षा का स्वरूप वैश्विक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही निर्धारित किया जाता है। शिक्षा में विश्व शान्ति की अवधारणा एवं अन्तर्राष्ट्रीय समझ से सम्बन्धित विषय भविष्योन्मुखी शिक्षा व्यवस्था की ओर संकेत करते हैं। इस प्रकार अध्ययन विषयों के आधुनिक पक्षों में व्यापक सोच पर आधारित गतिविधियों एवं प्रकरणों को स्थान दिया जाता है।
भविष्यबोध एवं सामाजिक आचार संहिता के विकास हेतु गतिविधियाँ
किसी कार्य को करने से पूर्व हमें यह विचार अवश्य करना चाहिए कि उसके परिणाम भविष्य में सुखद होंगे या दुःखद । भविष्यगामी परिणामों एवं सामाजिक आचार संहिता के आधार पर ही हमें उन अनेक कार्यों को त्याग देना चाहिए जो कि वर्तमान में सुख देते हैं तथा भविष्य में दुःख पहुँचाते हैं। जैसेवायु प्रदूषण एवं वैश्विक ताप को कम करने के लिए व्यक्ति को कम से कम ऐसे साधनों का प्रयोग करना चाहिए जो वर्तमान समय में सुख प्रदान करते हैं परन्तु भविष्य में इसके परिणाम सम्पूर्ण मानव समाज के लिए घातक होंगे। इसी प्रकार विद्यालयी स्तर पर तथा शिक्षा व्यवस्था में भी उन गतिविधियों का समावेश होना चाहिए जो कि छात्रों को उनके भविष्य के बारे में तथा सामाजिक आचरण के बारे में बोध करा सकें। भविष्य बोध के आधार पर ही वह प्रत्येक कार्य के विभिन्न पक्षों पर विचार करके उसमें आवश्यक परिवर्तन कर सकेगा।

भविष्य बोध एवं सामाजिक आचार संहिता के पालन की आदत को विकसित करने के लिए विद्यालयों एवं शिक्षा व्यवस्था में निम्नलिखित गतिविधियों का समावेश अवश्य करना चाहिए जिससे वर्तमान को सुखद बनाने के साथ-साथ भविष्य को भी सुखद बनाया जा सके-

  1. सांस्कृतिक कार्यक्रम – विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का समाज एवं विद्यालय से गहरा सम्बन्ध होता है। इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों के मूल में अनेक शिक्षाएँ छिपी होती हैं। इन शिक्षाओं का सम्बन्ध सामाजिक भविष्यगत उपयोगिता से होता है। जैसे- विद्यालय में विभिन्न महापुरुषों की जयन्ती एवं देशभक्ति सम्बन्धी कार्यक्रम होते हैं जिनमें उन महापुरुषों के विचारों का वर्णन होता है जो छात्रों को एक नवीन ज्ञान एवं दिशा प्रदान करते हैं। इससे छात्रों में प्राथमिक स्तर से ही भविष्य बोध एवं सामाजिक आचार संहिता का भाव उत्पन्न होगा।
  2. प्रदर्शनी एवं गोष्ठी-विद्यालय में विविध विषयों पर प्रदर्शनी एवं गोष्ठी का आयोजन किया जाए। इसमें छात्रों को विभिन्न घटनाओं एवं क्रियाओं के भविष्यगत् प्रभावों को चित्रों के माध्यम से समझाया जा सकता है। जैसे- समाज में मद्यनिषेध, डेंगू, मलेरिया तथा एड्स आदि रोगों से सम्बन्धित भविष्य के प्रभावों को चित्र के माध्यम से समझाया जा सकता है। इससे छात्रों एवं समाज में जागरूकता उत्पन्न होगी। गोष्ठी में उन प्रकरणों का अध्ययन एवं विचार प्रस्तुतीकरण उस विषय को ध्यान में रखकर किया जाए जिसे छात्र आसानी से समझ सकें तथा उसकी भविष्यगत् उपयोगिता भी हो। इससे एक ओर छात्रों में भविष्यबोध की स्थिति उत्पन्न होगी वहीं दूसरी ओर विविध विषयों से सम्बन्धित प्रकरणों पर सारगर्भित विचार जानने को मिलेंगे।
  3. पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएँ– पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं को विद्यालय में व्यापक रूप से स्थान मिलना चाहिए। पाठयक्रम सहगामी क्रियाओं का चयन करते समय छात्रों की योग्यता एवं रुचि के बारे में ज्ञान प्राप्त होना चाहिए तथा छात्र को उस क्रिया के परिणामों के बारे में अवश्य बताना चाहिए। जैसे- योग शिक्षा का चयन बालक को पाठ्यक्रम सहगामी क्रिया के रूप में करना है तो शिक्षक को चाहिए कि प्रत्येक आसन को करने से कौन-कौन से लाभ होगे तथा कौन-कौन सी सावधानी बरतनी चाहिए। इन सभी का वर्णन पूर्णतः शिक्षक को बालक के समक्ष करना चाहिए जिससे वह पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के भविष्यगत परिणामों को जानकर चयन कर सके।
  4. निबन्ध प्रतियोगिता- निबन्ध प्रतियोगिता के बारे में भविष्यवादी दृष्टिकोण को ही अपनाना चाहिए। प्रकरणों का निर्माण इस प्रकार करना चाहिए जिससे कि छात्र स्वाभाविक रूप से भविष्य के बारे में विचार कर सकें। जैसे- दहेज प्रथा का समाज पर प्रभाव, बाल-विवाह से होने वाली हानियाँ एव परमाणु अस्त्रों के प्रयोग से भविष्यगत् हानियाँ आदि। इस प्रकार के प्रकरणों में छात्र भविष्य में होने वाले लाभ एवं हानियों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। इससे एक ओर छात्रों में भविष्यबोध का विकास होगा वहीं दूसरी ओर वे प्रत्येक घटना को सामाजिक आचार संहिता के सन्दर्भ में देखने का प्रयास करेंगे।
  5. स्वाध्याय – छात्रों में प्राथमिक स्तर से ही स्वाध्याय की आदत विकसित करनी चाहिए। छात्रों के स्वाध्याय के लिए पुस्तकालय में उन महापुरुषों के कृतित्व एवं व्यक्तित्व से सम्बन्धित पुस्तकें होनी चाहिए जिन्होंने अपने दूरगामी सोच से समाज के लिए अनेक प्रकार के उन्नतशील सिद्धान्तों को जन्म दिया। इन महापुरुषों के विचारों को पढ़कर तथा उनकी जीवन सम्बन्धी सफलताओं का ज्ञान प्राप्त करके छात्रों में भविष्यबोध की सोच विकसित होगी।
  6. सामूहिक कार्य – छात्रों को विविध विषयों पर सामूहिक रूप से प्रोजेक्ट कार्य करने के लिए दिए जा सकते हैं जिसमें उन विषयों के भविष्यगत प्रभावों का स्पष्ट रूप से वर्णन करने के लिए कहा जाए। जैसे- पर्यावरणीय प्रदूषणों के सन्दर्भ में छात्रों को ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण एवं जल प्रदूषण आदि पर प्रोजेक्ट कार्य दिए जाएं। इस प्रकार के सामूहिक कार्यों से सभी छात्रों के एक ही विषय पर विचार जानने को मिलेंगे तथा उनमें भविष्यबोध एवं सामाजिक आचार संहिता के भाव विकसित होंगे।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि विद्यालय में सम्पन्न की जाने वाली विविध गतिविधियाँ स्वाभाविक रूप से छात्रों में भविष्यबोध एवं सामाजिक आचार संहिता के पालन की भावना उत्पन्न करती है। इससे छात्रों में कर्तव्यनिष्ठा एवं भविष्यगत् समस्याओं को ध्यान में रखकर मर्यादित व्यवहार करने की आदत विकसित होती है। इसके साथ ही चिन्तन, मनन एवं तार्किक कार्य करने से भी भविष्यबोध एवं सामाजिक आचार संहिता की भावना का विकास होता है।

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