1st Year

पठन कौशल क्या है? पाठ्य-पुस्तक द्वारा पठन कौशल को कैसे विकसित किया जा सकता है? पठन कौशल का महत्त्व, उद्देश्य एवं शिक्षण की विधियों का वर्णन कीजिए।

प्रश्न  – पठन कौशल क्या है? पाठ्य-पुस्तक द्वारा पठन कौशल को कैसे विकसित किया जा सकता है? पठन कौशल का महत्त्व, उद्देश्य एवं शिक्षण की विधियों का वर्णन कीजिए।
What is Reading Skill? How reading skills can be developed through Text-book ? Explain importance, objective and teaching methods of reading skill.
या
पठन कौशल का उद्देश्य एवं महत्त्व बताइए। Explain the objective and importance of reading skill.
उत्तर- पठन कौशल का अर्थ एवं परिभाषा 
भाषा के दो रूप होते हैं- मौखिक भाषा और लिखित भाषा। लिखित भाषा को पढ़ने और पढ़कर उसका अर्थ समझने की क्रिया को ही पठन कहा जाता है। अर्थ बोध एवं पठन-क्रिया के आवश्यक तत्त्व हैं। यह बात अलग है कि पठनकर्ता को यह अर्थ बोध एवं भावानुभूति किस सीमा तक होते हैं। उमा मंगल के अनुसार, “लिखित सामग्री को पढ़ते हुए अर्थ ग्रहण करने की क्रिया को पठन कहा जा सकता है।” केवल अक्षर ज्ञान ही पढ़ना नहीं है बल्कि पढ़ना एक कला है, एक आदत है, एक व्यसन है। अतः भाषा शिक्षण का उद्देश्य अक्षर ज्ञान कराना नहीं बल्कि बालक को पढ़ना सिखाना है ।

पठन कौशल के उद्देश्य (Objectives of Reading Skill) 

  1. पठित विषय-वस्तु का केन्द्रीय भाव ग्रहण करना ।
  2. सरल, कहानियों, चुटकुलों, कविताओं, चित्र वर्णन, संवाद एवं पहेलियों को पढ़कर भाव ग्रहण करना ।
  3. मनोरंजन हेतु पत्र पत्रिकाओं, कहानियों व अन्य विषय-सामग्री को पढ़ने की उत्सुकता उत्पन्न करना ।
  4. भय, आश्चर्य, शोक आदि भावों के अनुसार विषय-वस्तु को पढ़ना ।
  5. पढ़ते समय शुद्ध एवं अशुद्ध वर्तनी में अन्तर स्पष्ट करना।
  6.  मुहावरे, लोकोक्तियों के अर्थ को सन्दर्भानुसार समझना।
  7. निबन्ध, कविता, कहानी, नाटक इत्यादि का उपयुक्त रूप से सस्वर वाचन करना ।
  8. सभी वर्गों (स्वर, व्यंजन तथा संयुक्त व्यंजन) को पहचानकर पढ़ना ।
  9. पढ़ते समय एकाग्रता रखने की क्षमता का विकास करना ।
  10. वर्गों के मेल से बने शब्दों से वाक्य को पढ़ना।
  11. वर्णों के मेल से शब्दों के निर्माण की क्षमता का विकास करना।
  12. गति एवं विरामादि चिह्नों को ध्यान में रखकर पढ़ने का अभ्यास करना।
  13. लिखित सामग्री या विषयवस्तु को धारा- प्रवाह पढ़ना।
पठन कौशल की आवश्यकता एवं महत्त्व
  1. पठन कौशल ज्ञानोपार्जक का साधन है, क्योंकि पाठ्य पुस्तक पढ़ने से तो केवल ज्ञान के दर्शन होते हैं। संदर्भ ग्रन्थ पढ़ने से ज्ञान की पिपासा कुछ हद तक शान्त होती है।
  2. पठन द्वारा अनेक रोजमर्रा की कठिनाइयों जैसे- सामान्य सड़क, बस, दुकान का नाम न पढ़ पाना आदि से बचा जा सकता है।
  3. पठन मनोरंजन का भी साधन है क्योंकि इसके द्वारा हम पत्र – पत्रिकाएँ, कहानी, उपन्यास आदि पढ़ सकते हैं।
  4. एक श्रेष्ठ पाठक ही पठित सामग्री को मूल भावों सहित श्रोता तक सफलतापूर्वक पहुँचा देता है।
  5. इसके माध्यम से चिरसंचित ज्ञान राशि का अर्जन, सामाजिक संवेदनशीलता, राष्ट्रप्रेम व अन्य सद्वृत्तियों का विकास सम्भव है।
पठन कौशल की विधियाँ

(1) अक्षर बोध विधि (Alphabetic Method)—यह विधि संसार की प्राचीनतम विधियों में से एक है। इस विधि में वर्णों का ज्ञान क्रमानुसार कराया जाता है। इसके द्वारा हिन्दी व अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में पठन कौशल को विकसित किया जा सकता है।

इस विधि में निम्न सोपान हैं –

 

  1. सर्वप्रथम छात्राध्यापक द्वारा छात्रों को अक्षरों का ज्ञान कराया जाता है।
  2. अक्षर ज्ञान हो जाने पर अक्षरों को जोड़कर शब्द सिखाए जाते हैं।
    जैसे- क + म + ल = कमल
  3. देवनागरी लिपि में सर्वप्रथम स्वर (Vowels) उसके पश्चात् व्यंजन (Consonant) तथा संयुक्त व्यंजन का ज्ञान कराया जाता है।
  4. हिन्दी भाषा में छात्रों को मात्राओं का ज्ञान भी कराया जाता है।
  5. वर्णों का ज्ञान चित्रों द्वारा भी कराया जाता है । जैसे- अनार का चित्र दिखाकर अ से अनार बताना ।

अतः इस विधि में बच्चे वर्ण क्रम से सीखते हैं तथा वर्णों को मिलाकर शब्द पढ़ने का अभ्यास होता है बालक को मात्राओं का पूर्ण ज्ञान हो जाता है तथा उच्चारण भी शुद्ध हो जाता है।

अक्षर बोध विधि के प्रकार

सुगमताकी दृष्टि से अक्षरबोध विधि का प्रयोग करने हेतु इसे दो प्रकारों में विभाजित किया गया है
  1. संश्लेषणात्मक विधि (Synthesis Method)- इस विधि में अक्षर या वर्ण की पहचान पर बल दिया जाता है, शब्द या उसके अर्थ पर नहीं। हिन्दी ध्वनि प्रधान भाषा है। इसे वर्ण एवं व्यंजनों में विभक्त किया गया है। अतः इस विधि के प्रयोग हेतु निम्न सोपान हैं –
    संश्लेषणात्मक विधि के सोपान
    1. सबसे पहले छात्रों को वर्ण सिखाए जाते हैं।
    2. वर्णों को सिखाने के बाद शब्द निर्माण सिखाया जाता है।
    3. फिर बालक को मात्राओं का ज्ञान प्रदान किया जाता है।
    4. तत्पश्चात् मात्राओं से निर्मित शब्दों को पढ़ने का अभ्यास कराया जाता है।
  2. विश्लेषणात्मक विधि (Analysis Method) – विश्लेषण का अर्थ है- अलग-अलग करना, जैसे- वाक्य में से शब्दों को तथा शब्द में से वर्गों को अलग करना । इस विधि में निम्न सोपान हैं –
    विश्लेषणात्मक विधि के सोपान
    1. शब्द से वर्ण fafa (Word to Alphabet Method)—प्राचीनकाल में इस विधि का ही प्रयोग शिक्षण में होता था। शब्द को लिखकर उसका उच्चारण करवाया जाता है या उसे बार-बार छात्रों द्वारा पढ़ने को कहा जाता है। ऐसा करने से छात्र शब्द के साथ – साथ वर्णों से भी परिचित हो जाते थे। इस विधि को सर्वप्रथम जर्मनी ने फिर अमेरिका ने अपनाया था। इसी विधि में ‘देखो और बोलो विधि को भी सम्मिलित किया गया है।
    2. वाक्य विधि ( Sentence Method) — यह विधि ‘शब्द विधि का विस्तार है। इस विधि में छात्रों को पढ़ने के लिए एक वाक्य दिया जाता है। जैसे- मामा आया, आम लाया। इसमें पूर्व से सीखे हुए वर्णों के मेल से नए शब्दों का निर्माण करना सिखाया जाता है। आधुनिक समय में भी कई बार स्वर से पहले उनकी मात्राएँ भी सिखाई जाती हैं। जैसे- ‘T की मात्रा | वाक्य में आए नए वर्ण या मात्रा की आकृति का परिचय भी कराया जाता है। इस प्रकार बालक के शब्द भण्डार में वृद्धि होती रहती है। बाद में स्वर तथा व्यंजन का ज्ञान क्रमिक रूप से दिया जाता है।
अक्षर बोध विधि के गुण
छात्र चित्रों को देखकर तथा अक्षरों की पहचान करके स्थाई ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
  1. यह विधि छात्रों में वाचन के साथ-साथ उच्चारण क्षमता का भी विकास करती है।
  2. वाक्य विधि बालक में आत्मविश्वास जगाती है।
  3. संश्लेषणात्मक विधि बालकों में वाचन के प्रति रुचि उत्पन्न करती है।
  4. संश्लेषणात्मक विधि प्रारम्भिक स्तर के लिए पूर्ण रूप से मनोवैज्ञानिक विधि है ।
अक्षर बोध विधि के दोष
मैंजिल (Manzel) के अनुसार, “इस विधि में वर्णमाला सीखने में बहुत अधिक समय लगता है, इसके साथ बालकों को क, ख, ग, घ इत्यादि वर्ण निरर्थक ध्वनियाँ लगती हैं। एक-एक वर्ण को जब बालक अलग-अलग ध्वनियों के रूप में पढ़ते हैं तो उन्हें आगे चलकर वर्णों को मिलाकर शब्द पढ़ने में कठिनाई महसूस होती है।” अतः इस विधि की निम्न सीमाएँ हैं
  1. यह जटिल एवं लम्बी प्रक्रिया वाली विधि है।
  2. यह थकाऊ विधि है।
  3. यह विधि बालकों के नेत्रों का अभ्यास कम कराती है।
  4. यह अमनोवैज्ञानिक विधि है।
  5. यह संकल्पना (Conceptual Learning) से सीखने की व्याख्या नहीं करती है ।
  6. यह प्रत्यक्षीकरण (Perceptual Learning) को स्पष्ट करने में असमर्थ है।

(2) कहानी विधि (Story Method) – यह विधि विश्लेषणात्मक विधि का ही विस्तार है। इस विधि में सम्पूर्ण वर्णमाला को वाक्यों से निर्मित करके कहानी द्वारा सिखाया जाता है। प्राध्यापक इस प्रकार के वाक्यों का निर्माण करता है कि उन्हें जोड़कर या उन वाक्यों का प्रयोग करके कोई कहानी बनायी जा सके।

कहानी विधि के सोपान (Steps of Story Method) 
  1. सर्वप्रथम प्राध्यापक द्वारा सम्पूर्ण वर्णमाला से वाक्यों का निर्माण करना।
  2. छात्रों को निर्देश देना कि वे दिए गए वाक्यों से एक कहानी बनाएँ ।
  3. विषय-वस्तु को रोचक बनाने हेतु प्राध्यापक को रंगीन एवं सुदर चित्रों के नीचे वाक्यों के अक्षर बड़ी-बड़ी आकृति में लिखना ताकि छात्र सुगमतापूर्वक देख सकें ।
  4. प्राध्यापक को कहानी सुनानी चाहिए ताकि कहानी सुनकर छात्र कहानी में प्रमुख वाक्यों से परिचित होकर शब्द तथा शब्द से वर्णों की जानकारी प्राप्त कर सकें।
कहानी विधि के गुण (Merits of Story Method)
  1. छात्र सुगमता पूर्वक सीखते हैं।
  2. छात्र तीव्र गति से सीखते हैं।
  3. छात्रों के लिए एक रोचक विधि है।
  4. छात्रों के ध्यान को अधिक समय तक एकाग्र रखने में सहायक है।
  5. अंग्रेजी व हिन्दी शिक्षण हेतु प्रभावशाली विधि है।
  6. छात्रों में वाचन कौशल का विकास करने में सहायक है।
कहानी विधि के दोष (Demerits of Story Method)
  1. छात्रों में अनुमान लगाने की क्षमता का विकास करती है।
  2. यह विधि छात्रों के स्मृति स्तर पर बोझ डालती है।
  3. यह वाचन की आदत निर्माण में बहुत अधिक समय लेती है।
  4. इस विधि में समय अपव्यय होता है।

(3) कविता विधि (Poetry Method) – इस विधि में छात्रों को पहले कविता कण्ठस्थ करायी जाती है। कविता का चयन इस प्रकार होना चाहिए जिसमें स्वर, व्यंजन तथा मात्राओं का योग हो। प्राध्यापक कविता का चुनाव करते समय शब्द तथा वर्णों की आवृत्ति का ध्यान रखना चाहिए।

उदाहरण के लिए-
अ अनार अकबर लाया, साथ में अमरूद भी, अगर यह न होता तो, अकबर भी अनमना होता ।

कविता विधि के सोपान (Steps of Poetry Method) 

  1. सर्वप्रथम प्राध्यापक छात्रों को स्वर- व्यंजन एवं मात्राओं योग वाली कविता प्रस्तुत करता है।
  2. उसके पश्चात इस कविता को छात्रों से कण्ठस्थ करने को कहता है |
  3. कविता कण्ठस्थ हो जाने पर प्राध्यापक वर्णों का विश्लेषण करता है।
  4. वर्ण विश्लेषण के बाद वर्णों का क्रम छात्रों को सिखाता है।
कविता विधि के गुण (Merits of Poetry Method) 
  1. यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है क्योंकि छात्र सबसे ज्यादा कविता या पद्य द्वारा ही सीखते हैं।
  2. यह एक रोचक एवं आकर्षक विधि है।
  3. छात्रों की वाचन क्षमता विकसित करने के साथ ही प्राध्यापक में रचना शक्ति का विकास भी करती है।
  4. छात्रों की स्मरण शक्ति, कल्पना शक्ति एवं चिन्तन शक्ति का भी विकास करती है।
  5. हिन्दी व अंग्रेजी भाषा शिक्षण हेतु अत्यन्त उपयोगी विधि है।
  6. नीरस विषय वस्तु को रोचक बनाने हेतु प्रभावशाली विधि है।
कविता विधि के दोष (Demerits of Poetry Method)
  1. यह विधि स्थायी ज्ञान तो प्रदान करती है परन्तु समय अधिक लेती है।
  2. बिना पूर्व नियोजन के विषय-वस्तु को पढ़ाया नहीं जा सकता है।

(4) साहचर्य विधि ( Associative Method)- इस विधि की जन्मदाता श्रीमती मारिया माण्टेसरी थीं। इस विधि में कई प्रकार के चित्र एवं वस्तुएँ एक कमरे में इकट्ठी कर ली जाती हैं। ये वस्तुएँ बालकों के अनुभव तथा परिवेश से सम्बन्धित होती हैं। इन वस्तुओं तथा चित्रों के नाम कार्ड पर लिखे होते हैं और इन कार्डों को आपस में मिला दिया जाता है।

साहचर्य विधि के सोपान
सर्वप्रथम छात्राध्यापक द्वारा छात्रों को उनके परिवेश व अनुभव से सम्बन्धित कार्ड बनाना ।
  1. कार्डों पर वस्तुओं व चित्रों के नाम कार्ड पर लिखना।
  2. तैयार सभी कार्डों को आपस में मिलना ।
  3. छात्रों से चित्र एवं वस्तुओं से सम्बन्धित कार्ड छांटने को कहना। जैसे- जल के चित्र के साथ जलीय जन्तु का चित्र रखना।
साहचर्य विधि के गुण
छात्र कार्डों व चित्रों को देखकर वर्ण एवं शब्दों से परिचित होते हैं ।
  1. छात्रों में सृजनात्मक एवं चिन्तन शक्ति का विकास करती हैं।
  2. छात्रों को संज्ञा सूचक शब्दों पढ़ाने हेतु अत्यन्त उपयोगी है।
  3. छात्रों के साथ ही प्राध्यापक को भी नवीन विषय सामग्री के निर्माण हेतु प्रेरित करती है।
  4. यह विधि छात्रों का उत्साहवर्धन करती है।
  5. यह विधि छात्रों में प्रत्यक्षीकरण की क्षमता का विकास करती है।
साहचर्य विधि के दोष 
  1. इस विधि का प्रयोग केवल निम्न कक्षा स्तरों में किया जा सकता है।
  2. इस विधि से संज्ञासूचक शब्दों का ज्ञान देना कठिन है।
  3. इस विधि में अभ्यास नितान्त आवश्यक है।
(5) संयुक्त विधि (Collaborative Method)- उपरोक्त सभी विधियों का विश्लेषण करने पर स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि प्रत्येक विधि में कोई न कोई गुण तथा दोष अवश्य है। अतः एक कुशल अध्यापक को उपर्युक्त सम्पूर्ण विधियों का मिश्रण करके वाचन (पठन) शिक्षण इस प्रकार करना चाहिए कि सभी छात्र ज्यादा से ज्यादा रुचि लेकर ज्ञानार्जन कर सकें। प्रारम्भ में यदि छात्रों को वर्ण सीखने में अरुचि हो जाए तो आगे वाचन का अभ्यास कराना कठिन हो जाता है। अतः यह एक सम्मिश्रित विधि है जिसका प्रयोग सभी विधियों के गुणों का सम्मिश्रण करके एक नवीन पद्धति का निर्माण करके किया जाता है। संयुक्त विधि का प्रयोग करते समय निम्न बातें ध्यान रखनी चाहिए-
  1. छात्रों से वर्णो से शब्द निर्माण व शब्दों से वर्ण पृथक-पृथक कराए जाए ।
  2. छात्रों से ‘देखो व कहो’ (शब्द विधि) विधि की सहायता के चित्र फ्लैश कार्ड, लकड़ी के ब्लॉक आदि का प्रयोग करके वर्णों की जानकारी दी जाए ।
  3. छात्रों को पुनः वर्णों का क्रमानुसार ज्ञान कराया जाए।
  4. वर्णों का विभेदीकरण (Discrimination) कराया जाए। जैसे- ब-व, श-ष- स, ह क्ष आदि ।
  5. छात्रों को संयुक्त वर्णों की भी जानकारी दी जाए।
  6. वर्णों के साथ मात्राओं का प्रयोग करके उनका उच्चारण करवाया जाए ।
  7. आकर्षक चित्रों के द्वारा वर्ण व शब्दों की ओर छात्रों का ध्यानाकर्षण किया जाए।
  8. मौखिक रूप से छात्रों में वाचन के प्रति उत्सुकता व रुचि विकसित की जाए।
संयुक्त विधि के गुण
  1. मौन वाचन के प्रति उत्सुकता जाग्रत करना ।
  2. किसी भी विधि का प्रयोग करके छात्रों की वाचन क्षमता का विकास करना ।
  3. उपयुक्त विधि का चुनाव करके नीरस विषय को रोचक बनाना ।
संयुक्त विधि के दोष
  1. किसी भी विधि का विकास नहीं किया जा सकता है।
  2. छात्रों में भ्रामक स्थिति को जन्म दे सकती है।

उपरोक्त विधियों की विस्तारपूर्वक चर्चा करने पर ज्ञात होता हैं कि वाचन क्षमता का विकास करने हेतु कई विधियाँ प्रयोग की जा सकती है तथा कई विधियों का सम्मिश्रण करके भी छात्रों की वाचन क्षमता का विकास किया जा सकता है। अतः छात्रों की आवश्यकतानुसार, प्राध्यापक को विधि का चुनाव करके छात्रों में वाचन क्षमता का विकास करना चाहिए ।

पाठ्य-पुस्तक द्वारा पठन कौशल को विकसित करना
भारतीय शिक्षण व्यवस्था में पाठ्य पुस्तक की एक अहम भूमिका है। पाठ्य-पुस्तक ही वह धुरी है जिसके आस-पास ही शिक्षण घूमता है। यह वह आधार है जिसके आधार पर छात्रों की परीक्षा ली जाती है तथा उनका मूल्यांकन किया जाता है।

पाठ्य पुस्तक ही वह साधन है जिसके द्वारा एक राज्य शिक्षण प्रक्रिया पर नियन्त्रण एवं शिक्षा में एकरूपता लाता है। पाठ्य-पुस्तक के इन उपयोगों के साथ ही यह विभिन्न कौशलों का विकास भी छात्रों में करता है।

पठन-कौशल का सम्बन्ध छात्र के क्रियात्मक पक्ष से होता है तथा यह उसके क्रियात्मक पक्ष का विकास करता है। भाषा- कौशल के विकास के लिए पाठ्य पुस्तक का पठन अति आवश्यक है। छात्रों में पाठ्य पुस्तक पठन की आदत का विकास कर उनके पठन कौशल को विकसित किया जा सकता है।

प्राथमिक अथवा पूर्व प्राथमिक स्तर पर पुस्तक की रोचकता छात्र को पढ़ने के लिए आकर्षित करती है। पाठ्य पुस्तक पठन कौशल के द्वारा छात्र शब्दों की क्रमबद्धता, तारतम्यता एवं वाक् कौशल को विकसित करता है। पठन कौशल द्वारा ही छात्र भाषा एवं भाषा प्रयोग कौशल को सीखता है तथा उनका तर्क संगत प्रयोग सीखता है। पुस्तक के अन्तर्गत कहानियाँ, कविताएँ इत्यादि को पढ़कर छात्र पुस्तक में रुचि लेता है तथा कहानी-लेखन, निबन्ध – लेखन तथा वाद-विवाद सम्बन्धी तथ्यों का संकलन करता है।

पाठ्य पुस्तक के पठन से छात्रों में ध्यान, रुचि, एकाग्रता एवं स्मरण शक्ति का विकास होता है। पाठ्य पुस्तक पठन द्वारा छात्रों में सम्प्रेषण कौशल एवं क्षमता का विकास होता है। वह मात्र अपने सम्प्रेषण कौशल को विकसित करने प्रवाहशीलता के लिए पाठ्य पुस्तक पठन करता है।

पठन एक महत्त्वपूर्ण कौशल है कि समझने, याद करने तथा स्मरण करने में सहायक है तथा इसकी आवश्यकता नए पाठ्य-वस्तु के लेखन में होती है। पठन द्वारा छात्र बेहतर–वाचन कौशल का निर्माण, नए एवं मुख्य विचारों का प्रयोग, नए शब्दावलियों में तालमेल बिठाना इत्यादि सीखता है।

इस प्रकार छात्र पाठ्य पुस्तक द्वारा अपने पठन कौशल को विकसित करता है। पाठशाला में सर्वप्रथम उसके समक्ष पाठ्य पुस्तक का प्रयोग ही सिखाया जाता है और शिक्षक पाठ्य पुस्तक में ही छात्र की रुचि एवं ध्यान को केन्द्रित करता है। इससे धीरे-धीरे छात्रों में पाठ्य पुस्तक सम्बन्धी पठन-कौशल के विकास के साथ-साथ अन्य कौशलों का भी विकास होता है।

पढ़ना ( वाचन ) भाषा के लिखित रूप पर आधारित होता है। मातृभाषा सीखते समय बालक पहले बोलना सीखता है फिर पढ़ना; परन्तु अन्य भाषाओं के शिक्षण में बालक पहले भाषा को पढ़ना सीखता है फिर बोलना। हमारे समाज में हम देखते हैं कि कुछ लोग काफी अच्छे वाचक ( पढ़ने वाले) होते हैं परन्तु अच्छे वक्ता नहीं होते हैं ।

पढ़ना सम्प्रेषण का एक प्रभावशाली साधन भी है। यह मात्र भाषिक कौशल न होकर अन्य विषयों पर अधिकार रखने हेतु नितान्त क भी है। पढ़ने में रुचि का अर्थ है पढ़ाई में ‘रुचि’ फलतः यह सफलता प्राप्त करने हेतु प्रथम सीढ़ी भी है । अतः पढ़ने के कौशल का विकास करने हेतु इसे पाठ्यक्रम में भी उचित स्थान प्रारम्भिक कक्षाओं से ही प्रदान किया जाना चाहिए।

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