पाठ्यचर्या का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए। पाठ्यचर्या की विशेषताओं एवं क्षेत्र का वर्णन कीजिए । (Write the meaning and definitions of cirriculu. Describe the characteristics and scape of cirrculum)
पाठ्यचर्या के अर्थ को कई शिक्षाविदों ने स्पष्ट किया है। उनके अनुसार शिक्षा के उद्देश्य समयानुसार बदलते रहते हैं। प्राचीन काल से आधुनिक काल तक शिक्षा के उद्देश्य विभिन्न रहे हैं और इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति हेतु पाठ्यचर्या का निर्माण कराया जाता है जो समय तथा स्थान के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में शिक्षकों व छात्रों की हर सम्भव सहायता करता है। पाठ्यचर्या में वे सभी परिस्थितियाँ आ जाती हैं जिनका नियोजन विद्यालय द्वारा छात्रों के लिए किया जाता है। वर्तमान में पाठ्यचर्या का रूप वृहद् हो गया है जिसमें केवल शिक्षण सामग्री न होकर, शिक्षण सहायक सामग्री को भी स्थान दिया गया है जिससे बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास हो
सके। पाठ्यचर्या का सीमांकन मात्र ज्ञान देने के लिए ही नहीं किया गया है बल्कि पाठ्यचर्या एक नागरिक बनाती है, मानव निर्माण करती है, विकसित राज्यों तथा राष्ट्र निर्माता के रूप में विश्व बंधुत्व को बढ़ाती है, देश के आर्थिक, राजनैतिक, नैतिक तथा चारित्रिक रूप को दर्शाती है तथा विश्व पटल पर भारत जैसे राष्ट्र को स्थान दिलाने में सहायता करती है। पाठ्यचर्या छात्रों के भविष्य की रचना भी करती है
फ्रोबेल के अनुसार, “पाठ्यचर्या को मानव जाति के सम्पूर्ण ज्ञान तथा अनुभवों का सार समझना चाहिए।”
मुनरो के अनुसार, “पाठ्यचर्या में वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं, जिनका हम शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु विद्यालय में उपयोग करते हैं। ”
एनन के अनुसार, “पाठ्यचर्या पर्यावरण में होने वाली क्रियाओं का योग है।”
- पाठ्यचर्या, सन्तुलित व्यक्तित्व मूल्यांकन में सहायक – पाठ्यचर्या में समाज के जीवन सम्बन्धी समस्त प्रक्रियाओं, आवश्यकताओं आदि को सम्मिलित किया जाता है। पाठ्यचर्या व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास के मूल्यांकन में सहायक होती है साथ ही विकास में गतिशीलता भी प्रदान करती है।
- पाठ्यचर्या गतिशील होती है- राष्ट्र की विविध समस्याओं, आवश्यकताओं एवं विकास के लिए पाठ्यचर्या का गतिशील होना अत्यन्त आवश्यक होता है। पाठ्यचर्या में यह परिवर्तनशील या गतिशीलता नागरिकों की जीवन शैली के साथ-साथ होती रहती है।
- पाठ्यचर्या आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है- पाठ्यचर्या में ढाँचा एवं व्यवस्था दो अनिवार्य तत्व हैं। ढाँचा एवं व्यवस्था का स्वरूप एवं विषय वस्तु अधिगम अनुभवों का समायोजन है। पाठ्यचर्या परिस्थितियों, वातावरण एवं आवश्यकताओं के अनुसार ही गतिशील है जो समय के साथ परिवर्तित होता रहता है। जैसे पूर्व पाठ्यचर्या में हैजा, मलेरिया आदि सम्मिलित था परन्तु अब यह बीमारियाँ भारत में लगभग समाप्त हो गई हैं। अतः इन्हें पाठ्यचर्या से हटाकर अन्य बीमारियों, जैसेकैंसर, हृदयगति, एड्स आदि को पाठ्यचर्या में सम्मिलित किया गया है।
- पाठ्यचर्या, लक्ष्य प्राप्ति का साधन शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण दर्शनशास्त्र करता है जबकि पाठ्यचर्या उन उद्देश्यों को प्राप्त करती है। इच्छित उद्देश्य प्राप्त करने में पाठ्यचर्या साधन के रूप में कार्य करती है। इसका अन्त नहीं होता है।
- समाज की आवश्यकताओं की पूरक पाठ्यचर्या – समाज एवं पाठ्यचर्या एक दूसरे के पूरक होते हैं। समाज में तकनीकी शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता है तो विद्यालय में समाज की आवश्यकता के अनुरूप ही विद्यालयों में पाठ्यचर्या निर्धारित की जाती है। विद्यालय में वहीं पाठ्यचर्या निश्चित की जाती है जिसकी समाज, समुदाय एवं राष्ट्र में आवश्यकता है।
- पाठ्यचर्या, निर्देशन का महत्त्वपूर्ण अंग है- पाठ्यचर्या समस्याओं के निदान के लिए ही नहीं बल्कि आवश्यकताओं एवं परिस्थितियों के अनुसार सही मार्ग प्रदर्शित करता है। पाठ्यचर्या बालकों के उज्ज्वल भविष्य तथा जीवन के सही मार्ग दर्शन हेतु व्यावसायिक विषय आदि चयन के लिए परामर्श तथा निर्देशन प्रदान करता है।
- पाठ्यचर्या, विद्यालय का सम्पूर्ण कार्यक्रम है–पाठ्यचर्या में शिक्षाशास्त्रियों द्वारा निर्धारित समस्त विषय एवं सहगामी क्रियाएँ होती हैं न जिसमें विद्यालय के समस्त कार्यक्रमों का समावेश होता है।
- लक्ष्यों एवं उद्देश्यों का निर्धारण – जिस प्रकार शिक्षा के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाता है ठीक उसी प्रकार पाठ्यचर्या छात्रों के लिए कुछ निश्चित उद्देश्यों का निर्धारण भी करता है एवं उन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बालकों को प्रेरित करता है। ।
- बालकों के संज्ञानात्मक विकास का पोषण-पाठ्यचर्या का उद्देश्य बालकों का सर्वांगीण विकास एवं ज्ञानवर्द्धन करना भी होता है एवं वह बालकों को विभिन्न प्रकार का ज्ञान प्रदान करके उनका संज्ञानात्मक विकास करता है।
- बालकों के मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक स्वास्थ्य संवर्द्धन- मानव एक सामाजिक प्राणी है एवं समाज में रहते हुए उसे कुछ अधिकारों का उपयोग तथा कर्तव्यों का निर्वहन करना पड़ता है। इसके अलावा एक बालक पूर्ण रूप से स्वस्थ तभी माना जाता है जब वह मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक रूप से सुदृढ़ हो ।
- शैक्षणिक स्रोतों का उपयोग- पाठ्यचर्या मात्र, बालकों को अधिगम के लिए व्यवस्था ही नहीं प्रदान करता अपितु बालकों को विभिन्न प्रकार का ज्ञान प्रदान करने हेतु अनेकों शैक्षणिक स्रोतों का भी उपयोग करता है तथा अनेकों पुरातन शैक्षिक अभिलेखों में से बालकों के लिए उपयोगी विषय-वस्तु प्रदान करता है।
- अधिगम हेतु व्यवस्था – अधिगम एक जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। जिस प्रकार स्थिर ( ठहरे हुए ) पानी में विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ एवं गन्दगी पनपने लगती हैं, उसी प्रकार जब व्यक्ति अधिगम कार्य बन्द कर देता है तो उसमें भी रूढ़िबद्धता आ जाती है। इस प्रकार पाठ्यचर्या समय – समय पर बालकों को नवीन तथा विभिन्न प्रकार के अधिगम हेतु सुविधा प्रदान करता है ।
- नवीन प्रवृत्तियों का साहचर्य-पाठ्यचर्या एक व्यापक अवधारणा का रूप लेती जा रही है। अतः वर्तमान समय में प्रचलन में आने वाली अनेक नवीन प्रवृत्तियों का साहचर्य भी इसके क्षेत्र में आता है।
- समस्त कार्यक्रमों एवं बालकों को कार्यों का मूल्यांकन- जैसा कि हम जानते हैं कि पाठ्यचर्या विषय-वस्तुओं का समावेश मात्र न होकर विभिन्न क्रियाओं एवं कार्यकलापों का भी समन्वय है। पाठ्यचर्या बालकों को ज्ञान प्रदान करने के साथ ही साथ उनके कार्यों तथा अन्य समस्त कार्यक्रमों का मूल्यांकन भी करता है।
- छात्रों का व्यक्तिगत बोध एवं उनके अनुरूप शिक्षण–पाठ्यचर्या द्वारा बालकों का वैयक्तिक विकास तथा ज्ञानवर्द्धन किया जाता है। प्रत्येक बालक की अभिरुचियाँ व क्षमताएँ भिन्न-भिन्न होती हैं तथा पाठ्यचर्या प्रत्येक छात्र के व्यक्तिगत बोध के अनुरूप ही शिक्षण व्यवस्था प्रदान करता है।
