1st Year

पाठ्यचर्या के उद्देश्य आवश्यकता एवं महत्त्व प्रभावित करने वाले कारकों पर चर्चा कीजिए । Discuss the Objectives, Need, Importance and Factors Affecting Curriculum

प्रश्न – पाठ्यचर्या के उद्देश्य आवश्यकता एवं महत्त्व प्रभावित करने वाले कारकों पर चर्चा कीजिए । Discuss the Objectives, Need, Importance and Factors Affecting Curriculum.
उत्तर- पाठ्यचर्या के उद्देश्य
  1. शिक्षा के निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करना – शिक्षा मानवीय गुणों एवं क्षमताओं को बाहर निकालती है एवं जीवन के लक्ष्यों को निर्धारित करती है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति में अनेक प्रयास छात्र तथा शिक्षक द्वारा किए जाते हैं। इसी प्रकार पाठ्यचर्या एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
  2. आवश्यक एवं उपयोगी ज्ञान प्रदान करना – पाठ्यचर्या के माध्यम से छात्रों हेतु आवश्यक एवं उपयोगी ज्ञान प्रदान किया जा सकता है। उदाहरण के लिए छात्रों को भारत देश की भौगोलिक स्थिति जानना आवश्यक एवं उपयोगी भी है। अतः पाठ्यचर्या में भारत देश की भौगोलिक स्थिति को स्थान दिया जा सकता है तथा इससे सम्बन्धित सामग्री छात्रों हेतु उपयोगी सिद्ध होगी।
  3. ज्ञान को क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित रूप में प्रदान करना – पाठ्यचर्या का उद्देश्य ज्ञान को छात्रों तक व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध स्वरूप में पहुँचाना है। क्रमबद्ध से तात्पर्य प्रारम्भिक शिक्षा में यदि बालकों को गणना सिखाना है तो 01 से प्रारम्भ करते हुए 100 तक का ज्ञान दिया जाए। उसी प्रकार भाषा सिखाते समय पहले अक्षरों से, फिर शब्दों से परिचय करवाया जाए। व्यवस्थित रूप में पाठ्यचर्या में पाठ्यवस्तु, सरल से कठिन की ओर रखी जाती है। जैसे- महात्मा के जीवन परिचय में सर्वप्रथम उनका जन्म, जन्म स्थान, माता-पिता का नाम आदि होगा बाद में उनके जीवन में हो चुकी घटनाओं का विवरण दिया जाएगा।
  4. पाठ्यचर्या उपलब्धि का आधार – पाठ्यचर्या एक निश्चित ज्ञान के अध्ययन हेतु शिक्षकों तथा छात्रों को दिया जाता है जिसके आधार पर ही उन्हें उपलब्धि प्राप्त होती है। इसी उपलब्धि के अनुसार ही मूल्यांकन किया जाता है। अतः पाठ्यचर्या का उद्देश्य छात्रों की उपलब्धियों का मूल्यांकन करना है।
  5. सामाजिक आवश्यकताओं को पूर्ण करना-पाठ्यचर्या का उद्देश्य मुख्य रूप से सामाजिक आवश्यकताओं को पूर्ण करना है। एक प्रकार से पाठ्यचर्या सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दिशा-निर्देश देता है। पाठ्यचर्या में इस प्रकार की पाठ्यवस्तु सम्मिलित क जाती है जो समाज से सम्बन्ध रखती है जिससे बालकों में सामाजिकता की समझ विकसित होती है एवं बालक एक सामाजिक प्राणी बनता है। इस प्रकार बालक मानवता के गुणों को स्वयं में समाहित कर लेता है।
  6. संस्कृति एवं सभ्यता को हस्तान्तरित करना-पाठ्यचर्या वह साधन है जिससे शिक्षक बालकों को भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता से परिचित कराता है। संस्कृति एवं सभ्यता को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने का कार्य भी पाठ्यचर्या की पाठ्यवस्तु के द्वारा ही किया जाता है। पाठ्यचर्या में त्योहारों की जानकारी, त्योहार मनाने के कारण, परम्पराओं की जानकारी, भाषा का ज्ञान, ऐतिहासिक संस्कृतियों का ज्ञान आदि तत्वों को सम्मिलित किया जाता है।
  7. पर्यावरणीय जागरुकता में वृद्धि करना-पाठ्यचर्या के उद्देश्यों में पर्यावरणीय जागरुकता को सर्वोपरि रखा गया है। बालकों, शिक्षकों एवं अभिभावकों में पर्यावरण के प्रति जागरुकता फैलाना। वर्तामान में पर्यावरण एक वैश्विक समस्या बन गई है। पर्यावरण प्रदूषण व वैश्विक ताप से सारी दुनिया जूझ रही है। ऐसे में बालकों को शिक्षा द्वारा ही जागरूक किया जा सकता है। पाठ्यचर्या के माध्यम से छात्रों को पर्यावरण प्रदूषण व उसके प्रकार, कारण, प्रभाव एवं प्रदूषण को कम करने के उपायों की जानकारी दी जा सकती है।
  8. व्यवसायपरक पाठ्य सामग्री प्रदान करना – पाठ्यचर्या के ही माध्यम से छात्रों को ऐसी पाठ्य-सामग्री प्रदान की जा सकती है जो कि छात्रों हेतु भविष्य में उपयोगी हो एवं व्यवसाय के लिए एक ठोस आधार का निर्माण करे। ऐसी शिक्षा छात्रों को उनका व्यवसाय चुनने में सहायता करेगी एवं छात्रों की व्यावसायिक रुचि को भी पहचाना जा सके जिससे छात्रों को उचित निर्देशन प्राप्त होगा ।
  9. अध्यापक को स्पष्टता प्रदान करना – पाठ्यचर्या के उद्देश्यों के लिए शिक्षक के कार्यों को महत्त्व प्रदान किया गया है। पाठ्यचर्या का उद्देश्य यह भी है कि पाठ्यचर्या में ऐसी पाठ्यवस्तु को सम्मिलित किया जाए जो कि शिक्षक के लिए स्पष्ट हो एवं वह ज्ञान को छात्रों तक पहुँचाती हो। शिक्षक विभिन्न शिक्षण विधियों के माध्यम से निर्धारित पाठ्यवस्तु तथा प्रकरण को छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता है। इस प्रकार वह नवीनता, रोचकता एवं स्पष्टता के साथ अध्यापन करता है।
  10. रुचिकर ज्ञान प्रदान करना- पाठ्यचर्या का उद्देश्य बाल – केन्द्रित शिक्षा प्रदान करना है। इसके अन्तर्गत छात्रों की व्यक्तिगत एवं शैक्षिक रुचियों, योग्यताओं व क्षमताओं को दृष्टिगत रखते हुए छात्रों को शिक्षा प्रदान करना है। इससे लाभ यह है कि सर्वप्रथम तो बालक विद्यालय आने में रुचि लेने लगेगा एवं इस प्रकार वह अपनी रुचि अनुसार ज्ञान प्राप्त करेगा।
  11. सामाजिक एवं शैक्षिक समस्याओं का निवारण करना – पाठ्यचर्या का यह भी उद्देश्य है कि उसके माध्यम से सामाजिक एवं शैक्षिक समस्याओं का समाधान हो सके। सामाजिक समस्याएँ, जैसे- गरीबी, अशिक्षा, जनसंख्या वृद्धि, भ्रष्टाचार, पर्यावरण क्षति आदि के विषयों से छात्रों को अवगत करवाया जा सकता है। शैक्षिक समस्या जैसे- अध्ययन में अरुचि, अपव्यय एवं अवरोधन में कमी सामन्जस्य आदि की समस्याओं का समाधान भी विद्यालय में ही पाठ्यचर्या की पाठ्यवस्तु के माध्यम से किया जा सकता है।
  12. अधिकारों एवं कर्त्तव्यों से परिचित कराना-पाठ्यचर्या का उद्देश्य है कि वह छात्रों को अपने जीवन के अधिकारों व कर्त्तव्यों से भली-भाँति परिचित करवाए जिससे वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होगा एवं अपने परिवार, समाज एवं देश के प्रति कर्त्तव्यों को जानेगा एवं उनका पालन कर सकेगा। जैसे- देश के संविधान की जानकारी व मानव अधिकारों की शिक्षा पाठ्यचर्या में सम्मिलित की जा सकती है ।
  13. लोकतन्त्र की स्थापना करना-पाठ्यचर्या के उद्देश्यों में मुख्य स्थान लोकतन्त्र की स्थापना को दिया जाता है। पाठ्यचर्या का उद्देश्य है कि बालकों की विचारधारा को लोकतन्त्रात्मक बनाना । यही कारण है कि विद्यालय में आने वाला प्रत्येक बालक अलग-अलग वातावरण एवं • परिवेश से आता हैं एवं उसकी विचारधारा भिन्न-भिन्न होती है। इसलिए उसमें लोकतन्त्रात्मक गुण व विचार विकसित करने के लिए पाठ्यचर्या की पाठ्यवस्तु बहुत प्रभावी कारक है।
पाठ्यचर्या की आवश्यकता एवं महत्त्व
  1. शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु – पाठ्यचर्या, शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति का एक मुख्य साधन है, बिना पाठ्यचर्या के शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति सम्भव नहीं है। जीवन में प्रत्येक कार्य किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही किया जाता है उसी प्रकार शिक्षा के भी उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं। इन शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति उचित पाठ्यचर्या निर्धारण के द्वारा ही की जा सकती है।
  2. शिक्षण सामग्री के निर्धारण हेतु प्रत्येक विद्यालय में समय-सारिणी का निर्धारण पाठ्यचर्या की सहायता से ही किया जाता है और यह तय किया जाता है कि पाठ्यचर्या सम्मिलित विषय-वस्तु को कब, कैसे एवं किस क्रम में बालकों के समक्ष प्रस्तुत किया जाए जिससे बालकों का. अधिगम स्तर ऊँचा उठ सके। यचर्या के अभाव में यह सम्भव नहीं हो सकता क्योंकि जब तक शिक्षक को यह ज्ञात नहीं होगा कि उसे क्या पढ़ाना है तब तक शिक्षक उचित शिक्षण सामग्री का चयन नहीं कर सकेगा।
  3. शिक्षण विधियों के निर्धारण हेतु – पाठ्यचर्या, शिक्षकों. की शिक्षण विधियों के निर्धारण में सहायता प्रदान करता है। पाठ्यचर्या के माध्यम से ही शिक्षक को यह ज्ञात होता है कि उसे किस कक्षा के बालकों को किस स्तर की विषय-वस्तु पढ़ानी है ।
    यह ज्ञात होने के पश्चात् शिक्षक द्वारा अपनाई जाने वाली शिक्षण विधियों का निर्धारण (चयन) सुगम हो जाता है और शिक्षक का शिक्षण प्रभावी बन जाता है जो कि. पाठ्यचर्या के अभाव में कदापि सम्भव नहीं है। जब शिक्षक को यह ज्ञात ही नहीं होगा कि पाठ्यचर्या की विषय-वस्तु क्या और कितनी है वह अपनी शिक्षण विधियों का निर्धारण नहीं कर सकता।
  4. शिक्षण – स्तर के निर्धारण हेतु – पाठ्यचर्या के माध्यम से ही शिक्षा के उचित स्तर का निर्धारण किया जाता है क्योंकि पाठ्यचर्या के आधार पर ही विभिन्न स्तर के बालकों को किस स्तर की शिक्षा देनी है। यह पाठ्यचर्या की सहायता से ही सुनिश्चित किया जाता है। प्राथमिक स्तर के बालकों के लिए सरल व रोचकता से परिपूर्ण विषय-वस्तु, माध्यमिक स्तर के बालकों को ज्ञानवर्धक एवं तर्क पूर्ण विषय-वस्तु तथा उच्च कक्षाओं के लिए गहन, चिन्तनशील एवं प्रयोगात्मक अध्ययन का सुझाव पाठ्यचर्या के माध्यम से ही प्राप्त होता है।
  5. बालकों के चरित्र निर्माण में सहायक – पाठ्यचर्या की अवधारणा संकुचित न होकर व्यापक है। पाठ्यचर्या के अन्तर्गत पाठ्यविषय ही नहीं आते बल्कि पाठ्यचर्या में पाठ्य सहायक क्रियाओं और पाठ्येत्तर क्रियाकलाप भी सम्मिलित रहते हैं जिनके माध्यम से बालक में राष्ट्र प्रेम, समाजसेवा व अन्य सामाजिक गतिविधियों में सहभागिता की भावना को जाग्रत किया जाता है। इन सब क्रियाकलापों के द्वारा बालकों के चरित्र निर्माण पर बल दिया जाता है और उन्हें एक आदर्श नागरिक के रूप में स्वयं को विकसित करने का प्रोत्साहन मिलता है। पाठ्येत्तर पाठ्यचर्या के अन्तर्गत एन.सी.सी. (N.C.C.), रेड क्रॉस (Red Cross), एवं स्काउटिंग इत्यादि आते हैं।
  6. शारीरिक एवं व्यक्तित्व विकास हेतु – शिक्षा का मूल उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है। बालक के सर्वांगीण विकास से आशय बालक के मानसिक विकास एवं शारीरिक विकास के साथ-साथ उसके व्यक्तित्व का विकास करना भी है। पाठ्यचर्या के माध्यम से विद्यालयों का ध्यान इस पर केन्द्रित करने का प्रयत्न किया जाता है और इस बात का ध्यान रखा जाता है कि विद्यालय बालक के सर्वांगीण विकास की दिशा में उचित गतिविधियों का आयोजन करे। इससे बालक में शारीरिक विकास एवं व्यक्तित्व विकास सुनिश्चित होता है।
  7. समय एवं शक्ति के सदुपयोग हेतु – पाठ्यचर्या का एक सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य इसके माध्यम से बालक एवं शिक्षक के सबसे अमूल्य समय एवं शक्ति का सदुपयोग किया जाता है। छात्रों को क्रमबद्ध तरीके से अध्ययन प्रदान किया जाता है।
    छात्रों के समक्ष सुगम एवं सार्थक पाठ्यचर्या रखा जाता है जिससे बालकों के बौद्धिक स्तर में उन्नति होती है। पाठ्यचर्या के क्रमबद्ध होने से शिक्षकों एवं बालकों के समय एवं शक्ति की बचत होती है और इस बचे हुए समय एवं शक्ति को वे पाठ्य सहगामी क्रियाओं एवं अन्य सामाजिक गतिविधियों में लगा कर देश एवं स्वयं का सामाजिक, आर्थिक, नैतिक विकास कर सकते हैं।
  8. पाठ्य पुस्तकों की रचना का आधार – पाठ्य पुस्तकों का निर्माण पाठ्यचर्या पर ही आधारित होता है। पाठ्य पुस्तकों का मूल आधार पाठ्यचर्या ही होता है। पाठ्यचर्या का निर्धारण प्रत्येक कक्षा के लिए अलग-अलग होता है जो कि उस आयुवर्ग के बालकों के बौद्धिक स्तर को ध्यान में रखकर निर्धारित किया जाता है। इस प्रकार उपरोक्त विवेचन से पाठ्यचर्या की आवश्यकता एवं महत्त्व स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है। पाठ्यचर्या की सहायता से पाठ्य-वस्तु का निर्माण किया जाता है।
  9. छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन हेतु छात्रों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने के लिए पाठ्यचर्या का विकास किया जाता है। वस्तुतः पाठ्यचर्या विकास की प्रक्रिया में अधिगम अवसरों के नियोजन द्वारा छात्रों के व्यवहार में विशिष्ट परिवर्तन लाया जा सकता है एवं परीक्षण द्वारा यह जानने का प्रयास किया जाता है कि अपेक्षित परिवर्तन किस सीमा तक हुआ है।
  10. प्रजातन्त्र की दृष्टि से बालकों निर्माण हेतु – हमारी वर्तमान माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यचर्या का निर्माण उस समय किया गया जब भारत ब्रिटिश सरकार के अधीन था। ब्रिटिश शासकों ने इस पाठ्यचर्या का निर्माण मात्र सरकारी नौकरियों को पाने की योग्यता करने के उद्देश्य से किया था। इसके अतिरिक्त छात्र मात्र उच्च कक्षाओं में प्रवेश पा सकते थे अर्थात् प्रचलित पाठ्यचर्या बालकों में प्रजातान्त्रिक मूल्यों का विकास करने में असमर्थ था । वर्तमान प्रजातन्त्र की दृष्टि से पाठ्यचर्या विकास के माध्यम से बालकों को स्वतन्त्रता, समानता, न्याय, भ्रातृत्व, सहयोग जैसे उच्च मूल्यों का ज्ञान कराया जा सकता है।
  11. शिक्षा में गुणवत्ता लाने हेतु हम जानते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता बने रहना नितान्त आवश्यक होता है। ज्ञान जब अत्यधिक प्राचीन हो जाता है तब अनेकों रूढ़ियों को तो जन्म देता ही है साथ ही साथ बालकों की भी शनैः-शनैः उसमें रुचि समाप्त होने लगती है। अतः आवश्यक है कि ज्ञान तार्किक हो, समसामयिक घटनाओं की जानकारी से भी भरा हो एवं बालकों का विकास करने में सक्षम हो । अतः शिक्षा प्रक्रिया में गुणवत्ता लाने के लिए भी पाठ्यचर्या विकास की वर्तमान में आवश्यकता है।
  12. वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान की प्राप्ति हेतु- पाठ्यचर्या विकास छात्रों के मस्तिष्क को नवीनतम विचारों से पूर्ण करने के लिए आवश्यक है। इसी के द्वारा छात्र नित्य विकसित होते हुए वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं। पाठ्यचर्या विकास ही छात्रों को वैज्ञानिक आविष्कारों के लिए तैयार करता है । सम्पूर्ण राष्ट्र में व्यावसायिक तथा तकनीकी शिक्षा का विकास समाज तथा देश की आवश्यकता के सन्दर्भ में होना चाहिए।
  13. परिमार्जित ज्ञान की प्राप्ति हेतु मानव स्वभाव से ही जिज्ञासु प्राणी होता है एवं विविध माध्यमों से वह ज्ञान प्राप्ति के प्रयास करता है। समय-समय पर छात्रों को भी परिष्कृत एवं परिमार्जित ज्ञान की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति पाठ्यचर्या विकास के द्वारा की जा सकती है। समय के साथ हुए परिवर्तनों तथा बदलते युग के साथ परिवर्तित ज्ञान को भी बालकों तक पाठ्यचर्या के माध्यम से पहुँचा सकते हैं।
  14. वर्तमान समय की मांग की पूर्ति हेतु – वर्तमान समय की गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में अपना अस्तित्व बनाए रखना एवं जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूर्ण कर पाना सबसे दुष्कर कार्य है। इसके लिए व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाना होगा एवं समय के साथ अपने आपकों व अपने ज्ञान को भी परिष्कृत करना होगा। पाठ्यचर्या विकास छात्रों को अत्यधिक परिष्कृत ज्ञान प्राप्त करता है ताकि बालक शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् अपने पैरों पर खड़े हो सकें एवं अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर सकें।
  15. छात्रों की क्षमताओं के अनुरूप विकास हेतु – परिवर्तित समय के अनुसार विज्ञान तथा तकनीकी ने अत्यन्त प्रगति कर ली है। प्रत्येक व्यक्ति समय के साथ चलना चाहता है। ऐसे में पाठ्यचर्या विकास ही एक ऐसा साधन है जो बालकों में बदलते समय के अनुरूप सामाजिक, नैतिक तथा वैज्ञानिक अभिरुचियाँ उत्पन्न कर सकती है। पाठ्यचर्या विकास न केवल छात्रों में वांछित अभिरुचियाँ व योग्यताएँ उत्पन्न करता है अपितु उन अभिरुचियों, व योग्यताओं एवं क्षमताओं के अनुरूप उनका विकास भी करता है। अतः इस दृष्टिकोण से भी पाठ्यचर्या विकास की आवश्यकता है।
  16. आत्मानुभूति के विकास हेतु- पाठ्यचर्या विकास में बालकों में आत्मानुभूति एवं सौन्दर्यानुभूति जैसे गुणों को भी विकसित करने की क्षमता होती है जो वैदिक काल में बालकों में विकसित किए जाते थे। उस काल में बालक शिक्षा के उच्च आदर्शों की प्राप्ति हेतु प्रयासरत रहते थे। अतः बालकों में उच्च मूल्यों के विकास हेतु भी पाठ्यचर्या विकास अति आवश्यक है।
  17. बालकों के सर्वांगीण विकास हेतु – पाठ्यचर्या का एक सामान्य उद्देश्य बालकों का सर्वांगीण विकास करना होता है। अतः जब पाठ्यचर्या का विकास होता है तो बालकों का समस्त प्रकार का विकास अधिक उत्तम तरीके से होता है। इस प्रकार पाठ्यचर्या विकास की आवश्यकता इस दृष्टिकोण से भी है कि वह विभिन्न विषयों के शिक्षण से बालकों के मानसिक पक्ष का प्रशिक्षण करे एवं अन्य पाठ्य सहायक क्रियाओं एवं गतिविधियों से शारीरिक सांस्कृतिक व नैतिक विकास में सहायक हो ।
    अतः बालकों के सर्वांगीण विकास हेतु भी पाठ्यचर्या विकास की आवश्यकता है।
पाठ्यचर्या को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Curriculum)
  1. सामाजिक परिवर्तन समाज में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन का प्रभाव पाठ्यचर्या पर पड़ता है। सामाजिक परिवर्तन से तात्पर्य शैक्षिक परिवर्तन, राजनैतिक परिवर्तन, आर्थिक परिवर्तन आदि से है। वर्तमान में विज्ञान तथा तकनीकी आदि ऐसे क्षेत्र हैं जिन्होंने समाज में व्यापक परिवर्तन किए हैं जिनकी आवश्यकता आज समाज में व्यक्तिगत एवं सामाजिक रूप से हो रही हैं।
    अतः सामाजिक परिवर्तन एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में सिद्ध हुआ है।
  2. राष्ट्रीय शिक्षा नीतियाँ- भारत में कई शिक्षानीतियों का योगदान शिक्षा के क्षेत्र में रहा है। स्वतन्त्रता के बाद से आज तक कई आयोगों ने शिक्षा की अनुशंसा की है। राधाकृष्णन आयोग (1948). मुदालियर आयोग (1952), कोठारी आयोग (1964), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986), नई शिक्षा नीति (1992) आदि नीतियों ने शिक्षा के प्रत्येक स्तर हेतु अपने सुझाव दिए हैं। उन सुझावों को समय-समय पर लागू किया गया है जिसके कारण पाठ्यचर्या में परिवर्तन किया जाता रहा है।
    इस प्रकार विभिन्न शिक्षा आयोगों के सुझावों के कारण भी पाठ्यचर्या विशेष रूप से प्रभावित होता है।
  3. पाठ्यचर्या निर्माण समिति- पाठ्यचर्या का निर्माण पाठ्यचर्या निर्माण समिति के द्वारा किया जाता है। इन समितियों के द्वारा ही पाठ्यचर्या में आवश्यक एवं उपयोगी पाठ्य-वस्तुओं का संगठन किया जाता है। पाठ्यचर्या निर्माण समिति के सदस्यों की रुचियों, मानसिकता तथा दृष्टिकोण का प्रभाव भी पाठ्यचर्या पर पड़ता है। अतः कई बार तो ऐसी पाठ्य-वस्तु रखी जाती है जिसका तार्किक रूप से उपयोग नहीं होता है।
  4. शिक्षा प्रणाली- हमारी शिक्षा प्रणाली अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में पाठ्यचर्या को प्रभावित करने में सिद्ध हुई है। जिस समय जैसी शिक्षा प्रणाली होती है, वैसे ही पाठ्यचर्या में परिवर्तन किए जाते हैं। इस प्रकार शिक्षा प्रणाली एवं पाठ्यचर्या का बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है।
  5. परीक्षा प्रणाली – परीक्षा प्रणाली पाठ्यचर्या को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। परीक्षा प्रणाली का स्वरूप कभी निबन्धात्मक होता है तो कभी वस्तुनिष्ठ होता है। अतः परीक्षा प्रणाली के स्वरूप के आधार पर ऐसी पाठ्यवस्तु को पाठ्यचर्या में स्थान देना आवश्यक हो जाता है जो परीक्षा प्रणाली के अनुकूल हो । वस्तुनिष्ठ प्रश्न तात्कालिक ज्ञान हेतु रखे जाते हैं। निबन्धात्मक प्रश्न व्यापक एवं स्थायी ज्ञान को प्राप्त करने हेतु रखे जाते हैं।
  6. शासकीय नीतियाँ- शासन जिस प्रकार से परिवर्तित होता रहता है, उसी के अनुसार पाठ्यचर्या में परिवर्तन किया जाता है क्योंकि देश की तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार ही पाठ्यचर्या निर्माण किया जाता है। शासकीय नीतियाँ, जिस प्रकार की शिक्षा नीतियाँ लागू करती हैं उसी प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में पाठ्यचर्या के स्वरूप भी प्रभावित होता हैं।
    प्रादेशिक शिक्षां नीतियों के अनुसार अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग पाठ्यचर्या है। जैसे- मध्य प्रदेश की जलवायु, राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था का पाठ्यचर्या अन्य राज्यों से अलग है क्योंकि अन्य राज्यों की जलवायु, राजनीति एवं आर्थिक व्यवस्था भिन्न है।
  7. आधुनिक विचारधारा – वर्तमान युग आधुनिक युग कहलाता है। आधुनिक युग में विचारधारा में परिवर्तन आया है। जैसे- वर्तमान में महिला शिक्षा को प्रोत्साहित किया जा रहा है। अतः पाठ्यचर्या में महिलाओं के लिए उपयोगी पाठ्यवस्तु को सम्मिलित किया जा रहा है।
    आधुनिक समय में विज्ञान एवं तकनीकी को भी विशेष स्थान दिया जा रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के महत्त्व को पाठ्यचर्या के माध्यम से बालकों को प्रदान किया जाता है।
  8. आर्थिक परिवर्तन- देश में होने वाले आर्थिक परिवर्तन भी पाठ्यचर्या को प्रभावित करते हैं। जैसे- देश की पंचवर्षीय योजनाओं में होने वाले खर्च, व्यावसायिक स्वरूप, देश की अर्थव्यवस्था की जानकारी भी पाठ्यचर्या में सम्मिलित की जाती है।
    देश की अर्थव्यवस्था भी परिवर्तनशील रही है। राष्ट्र के विकास का प्रतिशत भी कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था के ही साथ जोड़ा जाता है। अतः यह भी पाठ्यचर्या के सन्दर्भ में प्रभावी तत्व है।

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