बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का · अधिकार अधिनियम (2009) का विस्तारपूर्वक वर्णन करो । Explain Right to Free and Compulsory Education Act (2009) in detail.
अनुच्छेद 134ए में सरकार ने बहुत बदलाव किए हैं। हरियाणा में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के प्रतिभावान विद्यार्थियों को मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीटों पर प्रवेश प्राप्त करने की बात कही गई जिससे हजारों विद्यार्थियों को बहुत लाभ हो रहा है और उन्हें निजी स्कूलों में सरलता से प्रवेश मिल रहा है। तत्कालीन शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा ने यह घोषणा करते हुए कहा कि निजी स्कूलों के लिए हरियाणा विद्यालय शिक्षा नियम-2003 के अधीन नियम – 134 ए के तहत दूसरी कक्षा से 12वीं तक 10 प्रतिशत सीटें आरक्षित करना अनिवार्य कर दिया गया है।
अनुच्छेद 21 (क) को जोड़कर बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना मौलिक अधिकार में सम्मिलित किया गया। इसको प्रभावी बनाने के लिए 4 अगस्त, 2009 को बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 संसद में पारित किया गया । इसे 27 अगस्त, 2009 को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदन के उपरान्त भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया गया। इसके द्वारा देश के प्रत्येक बच्चे को शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार कानूनी रूप से प्राप्त हो गया ।
अनुच्छेद 29 (2) [ Article 29 (2)]
इस अनुच्छेद के अन्तर्गत राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से सहायता प्राप्त करने वाली किसी शिक्षा संस्था में किसी नागरिक के धर्म, जाति, प्रजाति, भाषा इत्यादि के आधार पर प्रवेश के लिए रोका नहीं जा सकता। अनुच्छेद 29 (2) में ऐसे समुदायों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं के स्थापना का अधिकार होगा और सरकार इस प्रकार की शिक्षण संस्थाओं को सहायता देने में अल्पसंख्यक के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी कि वह किसी धार्मिक सम्प्रदाय के प्रबन्ध में है। निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत प्रत्येक उस बच्चे को जो 6 से 14 वर्ष की आयु का है, निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारों के दायित्वों को निर्धारित करता है। इस अधिनियम में 7 अध्याय तथा 38 खण्ड हैं।
- सरकार द्वारा स्थापित एवं नियमित विद्यालय ।
- निजी विद्यालय जो सरकार द्वारा अनुदानित हैं।
- केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय जैसे विशेष श्रेणी के विद्यालय ।
- अनुदान न पाने वाले निजी विद्यालय |
- बच्चों को अपनी प्रारम्भिक शिक्षा को प्राप्त करने तथा उसे पूरा करने के लिए उनसे किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जा सकता है।
- 6 से 14 वर्ष की आयु तक के प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क अनिवार्य प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होगा।
- यदि किसी कारणवश कोई बालक 6 वर्ष की आयु पर किसी विद्यालय में प्रवेश नहीं ले पाता तो बाद में वह अपनी आयु के अनुसार प्रवेश ले सकता है। विद्यालय किसी भी बच्चे को प्रवेश लेने से मना नहीं कर सकता तथा उसकी शिक्षा पूर्ण होने तक उसे विद्यालय से निकाला नहीं जा सकता। यदि वह 14 वर्ष तक की आयु तक • अपनी शिक्षा पूर्ण नहीं कर पाता तो उसे बाद की शिक्षा. निःशुल्क पूर्ण एवं प्राप्त करने का अधिकार होगा।
- बच्चों को एक विद्यालय से दूसरे विद्यालय में स्थानान्तरण का अधिकार है। यदि किसी विद्यालय में प्रारम्भिक शिक्षा को पूर्ण करने की व्यवस्था नहीं है, तो उसे स्थानान्तरण का अधिकार होगा। इसके लिए प्रधानाध्यापक को टी, सी. तुरन्त निर्गत करनी होगी। यदि प्राध्यापक इसमें विलम्ब करता है तो उसके खिलाफ सेवा नियमावली के अनुसार कार्यवाही की जाएगी। छात्र का जहाँ स्थानान्तरण होना है वहाँ प्रवेश न देने के लिए टी. सी. विलम्ब से प्रस्तुत करने को आधार नहीं बनाया जा सकता है।
- इस अधिनियम को लागू करने के तीन वर्ष के अन्दर सरकार को पड़ोस का स्कूल स्थापित करना होगा।
- अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकार दोनों पर धन की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी होगी।
- केन्द्र सरकार राज्य सरकार के साथ परामर्श करके व्यय का एक निश्चित प्रतिशत राज्य सरकार को सहायता के रूप में अनुदानित करेगी।
- केन्द्र सरकार राष्ट्रीय पाठ्यचर्या का प्रारूप तैयार करेगी तथा शिक्षकों के प्रशिक्षण, नवाचार अनुसन्धान, नियोजन के मानदण्ड लागू करेगी तथा क्षमता विकास के लिए प्रोत्साहित करने हेतु राज्य सरकारों को तकनीकी सहायता और संसाधन उपलब्ध कराएगी।
- राज्य एवं स्थानीय सरकारें 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों का प्रवेश, उपस्थिति और प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण होना तथा पड़ोस में विद्यालय की सुविधा सुनिश्चित करेगी। वह यह भी ध्यान रखेगी कि कमजोर एवं वंचित बालकों के साथ कोई भेदभाव न हो।
- सरकार विद्यालय भवन, शिक्षक, शिक्षण सामग्री तथा आधारभूत संरचना की उपलब्धता को सुनिश्चित करेगी। वह शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करने के साथ विद्यालय में होने वाले कामकाज की निगरानी करेगी ।
- 6 से 14 वर्ष के बच्चों को विद्यालय में पढ़ने के लिए भर्ती करना प्रत्येक अभिभावक का दायित्व होगा।
- तीन वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को प्रारम्भिक शिक्षा के लिए तैयार करने की व्यवस्था कर सकती है।
- सरकारी विद्यालय निःशुल्क शिक्षा प्रदान करेंगे तथा निजी एवं विशेष श्रेणी वाले विद्यालयों को आर्थिक एवं निर्बल समुदाय के बच्चों के लिए पहली कक्षा में 25% तक स्थान आरक्षित करना होगा।
- कोई भी विद्यालय बालकों के प्रवेश के लिए अनिवार्य रूप से अनुदान या दान नहीं ले सकता और न ही चयन का कोई अन्य आधार अपना सकता है। यदि प्रवेश के नाम पर चन्दा या दान लिया जाता है तो उसका 10 गुना अर्थ दण्ड देना पड़ सकता है।
यदि अध्यापक कोई चयन प्रणाली अपनाता है तो पहली बार के लिए 25 हजार रुपए तथा उसके बाद पुनः जितनी बार भी अपनाया जाएगा प्रत्येक बार 50 हजार का अर्थ दण्ड देना होगा।
- बच्चों की उम्र का निर्धारण जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर निश्चित होगा जो जन्म, मृत्यु एवं विवाह पंजीकरण अधिनियम 1986 के अनुसार दिया जाएगा। परन्तु प्रमाणपत्र के अभाव में किसी भी बच्चे को प्रवेश से रोका नहीं जा सकता।
- बच्चे की शिक्षा पूर्ण होने तक किसी भी बच्चे को किसी कक्षा में न तो रोका जा सकता है और न ही निष्कासित किया जा सकता है।
- बच्चों को शारीरिक एवं मानसिक यातना नहीं दी जा सकती। ऐसा करने पर सेवा नियमों के अनुसार कार्यवाही की जाएगी।
- अनुदान न पाने वाले निजी विद्यालयों के अलावा अन्य सभी स्कूल एक प्रबन्ध समिति का गठन करेंगे। इस समिति में स्थानीय सरकार द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि एवं स्कूल में नामांकित बच्चों के अभिभावक होंगे। कुल सदस्यों में से तीन-चौथाई (75%) सदस्य अभिभावकों में से लिए जाएंगे। इनमें वंचित, कमजोर तथा महिलाओं में पर्याप्त प्रतिनिधि होंगे।
इस समिति के कार्य निम्नलिखित होंगे –(i) विद्यालय के कार्यों का अनुश्रवण करना ।(ii) विद्यालय के विकास के लिए योजना बनाना तथा उसकी संस्तुति करना ।(iii) सरकार, स्थानीय सरकार एवं अन्य कहीं से प्राप्त अनुदान के खर्चों का अनुश्रवण करना ।(iv) विद्यालय एवं समिति द्वारा सुझाए गए अन्य कार्यों को करना ।विद्यालय प्रबन्धन समिति विद्यालय विकास की योजना राज्य सरकार और स्थानीय सरकारों के अनुदानों का आधार बनेगी। इसमें शिक्षकों के भी कुछ दायित्व होंगे जो निम्नलिखित हैं –(i) नियमित समय से विद्यालय आना ।(ii) पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाना तथा उसे पूरा करना(iii) बच्चे के अधिगम की योग्यता का आंकलन करना(iv) निर्धारित समय में पाठ्यक्रम को पूरा करना ।(v) अभिभावक बैठकों को आयोजित करना तथा उनके प्रगति की चर्चा करना।(vi) अन्य दायित्वों का निर्वहन करना ।इस अधिनियम के लागू होने के 6 माह बाद राज्य सरकार एवं स्थानीय सरकार शिक्षक छात्र अनुपात अधिनियम की अनुसूची के अनुसार होगा। गैर शैक्षणिक कार्यों से शिक्षकों को हटाया जाए तथा विद्यालय में कुल रिक्तियाँ सृजित पदों के 10% से अधिक न हों।
- प्रारम्भिक शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम और मूल्यांकन की विधि उपयुक्त सरकार के द्वारा नियुक्त शैक्षणिक प्राधिकारी द्वारा किया जाएगा।
- नियुक्ति शैक्षणिक प्राधिकारी पाठ्यक्रम और उसके मूल्यांकन विधि में निम्नलिखित ध्यान देंगे
- संविधान के निहित मूल्यों से इसकी अनुरूपता ।
- बच्चों का समग्रता में विकास ।
- बच्चे के ज्ञान, संभावित क्षमता और प्रतिभा का विकास ।
- बच्चे की शारीरिक एवं मानसिक योग्यताओं का अधिकतम सीमा तक विकास ।
- बालकेन्द्रित तथा बाल सुलभ क्रियाओं के माध्यम से क्रियाकलापों, अन्वेषण और खोज के द्वारा सीख उत्पन्न करना ।
- पढ़ाई के लिए मातृभाषा को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- बच्चों को भय, चिन्ता एवं सदमा मुक्त बनाना तथा उन्हें अपने विचारों को खुलकर कहने में सक्षम बनाना।
- बच्चे के ज्ञान की समझ और इसे व्यवहार में लाने वाली योग्यता का निरन्तर मूल्यांकन करना ।
- प्रारम्भिक शिक्षा को पूरा किए बिना बोर्ड की परीक्षा उत्तीर्ण करना आवश्यक नहीं ।
- प्रारम्भिक शिक्षा को पूरा करने वाले प्रत्येक छात्र को निर्धारित प्रारूप पर प्रमाण पत्र दिया जाएगा।
- बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम 2005 के प्रावधानों के अन्तर्गत गठित राष्ट्रीय / राज्य बाल संरक्षण के तहत प्रदत्त अधिकारी की समीक्षा करेंगे और उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिश करेंगे। अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा से सम्बन्धित प्राप्त शिकायतों की जाँच करेंगे।
- अधिनियम से सम्बन्धित शिक्षा के अधिकार की शिकायत सम्बन्धित क्षेत्र अधिकारी से की जाएगी तथा वह यथाशीघ्र मामले का निस्तारण करेगा।
- केन्द्र सरकार एक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् का गठन करेगी जिसमें प्रारम्भिक शिक्षा तथा बाल विकास के क्षेत्र में अनुभवी लोगों को सम्मिलित किया जाएगा। परिषद् का कार्य अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने के बाद केन्द्र सरकार को परामर्श देना होगा।
- इस अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए केन्द्र सरकार राज्य सरकार तथा स्थानीय प्राधिकारी इससे सम्बन्धित नियम बना सकते हैं।
- इस अधिनियम अथवा इसके पालन के लिए बनाए गए नियमों में केन्द्र सरकार, राज्य सरकार केन्द्रीय / राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग, स्थानीय प्राधिकारी, विद्यालय प्रबन्धन समिति तथा इस अधिनियम से जुड़े किसी भी व्यक्ति द्वारा सच्चे विश्वास के साथ किए गए कार्य पर कोई मुकदमा या वैधानिक प्रक्रिया नहीं चलाई जा सकती है।
- आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बालकों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान कर शिक्षित करना ।
- प्राथमिक शिक्षा को सर्वसुलभ बनाना तथा इसका सार्वभौमीकरण करना ।
- देश में 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को बुनियादी शिक्षा देना ।
- बालकों की शिक्षा के प्रति रुचि को बढ़ावा देना ।
- बालिकाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना ।
- देश में शिक्षा के स्तर को सुधारना ।
- ग्रामीण क्षेत्रों तक शिक्षा का प्रसार करना।
- उन क्षेत्रों में विद्यालय स्थापित कर शिक्षा पहुँचाना जहाँ अभी तक शिक्षा का प्रसार नहीं हो सका है।
- बालकों को मुफ्त पाठ्य-पुस्तकें, यूनिफॉर्म तथा छात्रवृत्ति प्रदान कर शिक्षा को बढ़ावा देना ।
