बाल-केन्द्रित एवं प्रगतिशील शिक्षा की अवधारणा
बाल-केन्द्रित एवं प्रगतिशील शिक्षा की अवधारणा
बाल-केन्द्रित एवं प्रगतिशील शिक्षा की अवधारणा
Concept of Child-Centred and Progressive Education
CTET परीक्षा में विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने से
यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 1, 2012 में
2, 2014 में 2, 2015 में 2 तथा वर्ष 2016 में 3 प्रश्न पूछे
गए हैं।
6.1 बाल-केन्द्रित शिक्षा
प्राचीनकाल में शिक्षा का उद्देश्य बालकों के मस्तिष्क में मात्र कुछ
जानकारियाँ भरना होता था, किन्तु आधुनिक शिक्षा शास्त्र में बालकों के
सर्वांगीण विकास पर जोर दिया जाता है, जिसके कारण बाल मनोविज्ञान की
भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होती है।
वर्तमान समय में बालकों के सर्वांगीण विकास के महत्त्व को समझते हुए
शिक्षकों के लिए बाल मनोविज्ञान की पर्याप्त जानकारी आवश्यक होती है। इस
जानकारी के अभाव में शिक्षक न तो शिक्षा को अधिक-से-अधिक आकर्षक
और सुगम बना सकते हैं और न ही वे बालकों की विभिन्न प्रकार की
समस्याओं का समाधान कर सकते है।
• बाल केन्द्रित शिक्षा के अन्तर्गत हस्तपरक गतिविधियों पर बल दिया
जाता है।
• भारतीय शिक्षाविद् गिजू भाई की बाल-केन्द्रित शिक्षा के क्षेत्र में विशेष एवं
उल्लेखनीय भूमिका रही है। बाल-केन्द्रित शिक्षा के बारे में समझाने एवं इसे
क्रियान्वित रूप देने के लिए उन्होंने इससे सम्बन्धित कई प्रकार की पुस्तकों
की रचना की तथा कुछ पत्रिकाओं का भी प्रकाशन किया। उनका साहित्य
बाल-मनोविज्ञान, शिक्षा शास्त्र एवं किशोर-साहित्य से सम्बन्धित है।
जॉन डी.वी. ने बाल-केन्द्रित शिक्षा का समर्थन किया है। जॉन डी.वी. द्वारा
समर्थित ‘लैब विद्यालय’ प्रगतिशील विद्यालय का उदाहरण है।
जॉन डी.वी. के अनुसार, “शिक्षा एक त्रिध्रुवीय प्रणाली है, जिसके अन्तर्गत
शिक्षक, बालक एवं पाठ्यक्रम आते हैं।”
• आज की शिक्षा पद्धति बाल-केन्द्रित है। इसमें प्रत्येक बालक की ओर
अलग से ध्यान दिया जाता है पिछड़े (Backward) हुए और मन्दबुद्धि तथा
प्रतिभाशाली बालको के लिए शिक्षा का विशेष पाठ्यक्रम देने का प्रयास
किया जाता है। बालकों की प्रवृत्ति, रुचियों एवं क्षमताओं के बारे में
शिक्षक को जानकारी रखनी चाहिए।
• व्यावहारिक मनोविज्ञान ने व्यक्तियों की परस्पर विभिन्नताओं पर प्रकाश
डाला है, जिससे यह सम्भव हो सका है कि शिक्षक हर एक विद्यार्थी की
विशेषताओं पर ध्यान दें और उसके लिए प्रबन्ध करें।
• आज के शिक्षक को केवल शिक्षा एवं शिक्षा पद्धति के बारे में नहीं
बल्कि शिक्षार्थी के बारे में भी जानना होता है, क्योंकि आधुनिक शिक्षा
विषय प्रधान या अध्यापक प्रधान न होकर बाल-केन्द्रित है। इसमें इस
बात का महत्त्व नहीं कि शिक्षक कितना ज्ञानी, आकर्षक और गुणयुक्त है,
बल्कि इस बात का महत्त्व है कि वह बालक के व्यक्तित्व का कहाँ तक
विकास कर पाता है।
6.2 बाल-केन्द्रित शिक्षा की विशेषताएँ
बाल-केन्द्रित शिक्षा आधुनिक शिक्षा प्रणाली का अभिन्न अंग है। मनोवैज्ञानिकों
ने इसके सन्दर्भ में अनेक विशेषताएं बताई गई है, जो इस प्रकार हैं
6.2.1 बालकों को समझना
• बालक के सम्बन्ध में शिक्षक को उसके व्यवहार के मूल आधारों,
आवश्यकताओं, मानसिक स्तर, रुचियो, योग्यताओं, व्यक्तित्व इत्यादि का
विस्तृत ज्ञान होना चाहिए। क्योकि शिक्षा का उद्देश्य ही बालक के
व्यवहार को परिमार्जित करना है। अतः शिक्षा बालक की मूल प्रवृत्तियों,
प्रेरणाओं और संवेगों पर आधारित होनी चाहिए।
• बालक, जो कुछ सीखता है, उससे उसकी आवश्यकताओं का बड़ा घनिष्ठ
सम्बन्ध है। स्कूल में पिछड़े हुए और समस्याग्रस्त बालकों में से अधिकतर
ऐसे होते हैं, जिनकी आवश्यकताएँ स्कूल में पूरी नहीं होती है। इसलिए स्कूल
से भाग जाते हैं, परन्तु बालकों को समझने वाला शिक्षक यह जानता है कि
इनके दोषों का मूल कारण उनकी शारीरिक, सामाजिक अथवा मनोवैज्ञानिक
आवश्यकताओं में ही कहीं-न-कहीं है।
• बाल मनोविज्ञान शिक्षक को बालकों के व्यक्तिगत भेदों से परिचित कराता
है और यह बनाना है कि उनमें रुचि, स्वभाव तथा बुद्धि आदि की दृष्टि
से भिन्नता पाई जाती है। अत: कुशल शिक्षक मन्दबुद्धि, सामान्य बुद्धि
तथा कुशाग्र बुद्धि बालकों में भेद करके उन्हें उनकी योग्यताओं के
अनुसार शिक्षा देता है। शिक्षा देने में शिक्षक को बालक और समाज की
आवश्यकताओं में समन्वय करना होता है।
6.2.2 शिक्षण विधि
• शिक्षाशास्त्र शिक्षक को यह बतलाता है कि बालकों को क्या पढ़ाया जाए,
परन्तु वास्तविक समस्या यह कि कैसे पढ़ाया जाए? इस समस्या को
सुलझाने में बाल मनोविज्ञान शिक्षक की सहायता करता है।
• बाल मनोविज्ञान सीखने की प्रक्रिया, विधियों, महत्त्वपूर्ण कारकों,
लाभदायक और हानिकारक दशाओं, रुकावटों, सीखने का वक्र तथा प्रशिक्षण
संक्रमण आदि विभिन्न तत्त्वों से परिचित कराता है। इनके ज्ञान से शिक्षक
बालकों को सिखाने में सहायता कर सकता है।
• शिक्षा, मनोविज्ञान शिक्षण की विधियों का भी मनोवैज्ञानिक विश्लेषण
करता है और उनमें सुधार के उपाय बतलाता है। बाल-केन्द्रित शिक्षा में
शिक्षण विधि को प्रयोग में लाते समय बाल-मनोविज्ञान को ही आधार
बनाया जाता है।
6.2.3 मूल्यांकन और परीक्षण
शिक्षण से ही शिक्षक की समस्या हल नहीं हो जाती। उसे बालकों के ज्ञान और
विकास का मूल्यांकन और परीक्षण (Evaluation and Test) करना होता है।
• मूल्यांकन से परीक्षार्थी की उन्नति का पता चलता है। शिक्षा की प्रक्रिया में
शिक्षक और शिक्षार्थी बार-बार यह जानना चाहते है कि उन्होंने कितनी
प्रगति हासिल की है और यदि उन्हें सफलता अथवा असफलता मिली है,
तो क्यों और उसमें क्या परिवर्तन किए जा सकते है। इन सभी प्रश्नों को
सुलझाने में मूल्यांकन के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के परीक्षणों और मापों
की आवश्यकता पड़ती है।
• भारतीय शिक्षा प्रणाली में मूल्यांकन शब्द परीक्षा, तनाव और दुश्चिता से जुड़ा
हुआ है। वर्तमान बाल केन्द्रित शिक्षा प्रणाली में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन
TICCE) पर जोर दिया गया है, जो बालकों के इस प्रकार के तनाव एवं
दुश्चिता को दूर करने में सहायक साबित हो रहा है।
• सतत और व्यापक मूल्यांकन (CCE) का अर्थ छात्रों के विद्यालय आधारित
मूल्यांकन की प्रणाली से है, जिसमें छात्रों के विकास के सभी पक्ष शामिल
है। यह एक बच्चे की विकास प्रक्रिया है, जिसमें दोहरे उद्देश्यों पर बल
दिया जाता है। ये उद्देश्य एक ओर मूल्यांकन में निरन्तरता और व्यापक
रूप से सीखने के मूल्यांकन पर तथा दूसरी ओर व्यवहार के परिणामों पर
आधारित है।
• यहाँ ‘निरन्तरता’ का अर्थ इस पर बल देना है कि छात्रों की वृद्धि और
विकास’ के ज्ञात पक्षों का मूल्यांकन एक बार न हो कर निरन्तर चलने
वाली प्रक्रिया है, जिसे सम्पूर्ण अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया में निर्मित किया
गया है और यह शैक्षिक सत्रों की पूरी अवधि में फैली हुई है। इसका अर्थ
है मूल्यांकन की नियमितता, अधिगम अन्तरालों का निदान, सुधारात्मक
उपायों का उपयोग, स्वयं मूल्यांकन के लिए अध्यापकों और छात्रों के साक्ष्य
का फीडबैक अर्थात् प्रतिपुष्टि।
• दूसरा पद ‘व्यापक’ का अर्थ है शैक्षिक और सह-शैक्षिक पक्षों को शामिल
करते हुए छात्रों की वृद्धि और विकास को परखने की योजना। चूँकि
क्षमताएँ, मनोवृत्तियाँ और सोच अपने आप को लिखित शब्दों के अलावा
अन्य रूपों में प्रकट करती है, इसलिए यह पद अनेक साधनों और तकनीको
के अनुप्रयोग को सन्दर्भित करता है (परीक्षणकारी और गैर-परीक्षणकारी
दोनों) और यह सीखने के क्षेत्रों में छात्रों के विकास के मूल्यांकन पर
लक्षित है; जैसे- ज्ञान, समझ, व्याख्या, अनुप्रयोग, विश्लेषण, मूल्यांकन
एवं सृजनात्मकता आदि।
6.2.4 पाठ्यक्रम
• समाज और व्यक्ति की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्कूल के
पाठ्यक्रम (Curriculum) का विकास, व्यक्तिगत विभिन्नताओं, प्रेरणाओं,
मूल्यों एवं सीखने के सिद्धान्तों के मनोवैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर किया
जाना चाहिए। पाठ्यक्रम बनाने में शिक्षक यह ध्यान रखता है कि शिक्षार्थी
की और समाज की क्या आवश्यकताएं है और सीखने की कौन-सी
क्रियाओं से ये आवश्यकताएँ सर्वोत्तम रूप से पूर्ण हो सकती है?
• भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में तथा विभिन्न स्तरों पर कुछ सीखने की क्रियाएँ
वांछनीय हो सकती है और कुछ अवांछनीय, यह निश्चित करने में शिक्षक
को विकास की विभिन्न स्थितियों का मनोवैज्ञानिक ज्ञान होना चाहिए। इस
तरह बाल-केन्द्रित शिक्षा में इस बात पर जोर दिया जाता है कि क्रियात्मक
होने के लिए प्रत्येक पाठ्यक्रम एक समुचित मनोवैज्ञानिक आधार पर
स्थापित हो।
6.2.5 व्यवस्थापन एवं अनुशासन
• बाल-केन्द्रित शिक्षा के अन्तर्गत कक्षा व विद्यालय में अनुशासन एवं
व्यवस्था (Management and Discipline) बनाए रखने के लिए बाल
मनोविज्ञान का सहारा लिया जाता है। उदाहरण के लिए कभी-कभी कुछ
शरारती बालकों में अच्छे समायोजक के लक्षण दिखाई देते हैं, ऐसी
परिस्थिति में शिक्षकों को उन्हें दबाने के स्थान पर प्रोत्साहित करने के
बारे में सोचना पड़ता है।
• बाल मनोविज्ञान ही शिक्षक को बतलाता है कि एक ही व्यवहार
भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न प्रेरणाओं के कारण हो सकता है।
शिक्षक को उनके असली प्रेरक कारणों का पता लगाकर उनके अनुकूल
व्यवहार करना होता है।
6.2.6 प्रयोग एवं अनुसन्धान
• बाल-केन्द्रित शिक्षा में बालकों को प्रयोग एवं अनुसन्धान (Practical
and Research) की ओर उन्मुख करने के लिए भी बाल मनोविज्ञान का
सहारा लिया जाता है।
• नई-नई परिस्थितियों में नई-नई समस्याओं को सुलझाने के लिए शिक्षक
को स्वयं प्रयोग करते रहना चाहिए और उससे निकले निष्कर्षों का
उपयोग करना चाहिए।
• मनोविज्ञान के क्षेत्र में होने वाले नए-नए अनुसन्धानों से जो नए-नए तथ्य
प्रकाश में आते हैं, उनकी जाँच करने के लिए भी शिक्षक को प्रयोग करने
की आवश्यकता है।
6.2.7 कक्षा में समस्याओं का निदान और निराकरण
बाल-केन्द्रित शिक्षा के अन्तर्गत कक्षा की विभिन्न प्रकार की समस्याओं को
पहचानने एवं उनका निराकरण करने के लिए भी बाल मनोविज्ञान का ही
सहारा लिया जाता है।
6.3 बाल-केन्द्रित शिक्षण के सिद्धान्त
बाल केन्द्रित शिक्षण के प्रमुख सिद्धान्त निम्न हैं
1. प्रेरणा का सिद्धान्त
• बालकों को प्रेरित करने के लिए उन्हें महापुरुषों की जीवनगाथा, नाटक,
वैज्ञानिकों का योगदान इत्यादि के बारे में बताकर उन्हें प्रेरित करना
चाहिए।
• कहानी एवं कविता के माध्यम से भी बालकों को प्रेरित किया जा
सकता है।
2. व्यक्तिगत अभिरुचि का सिद्धान्त
बालकों को यदि उनकी रुचि के अनुसार शिक्षण मिलेगा तो पढ़ने के प्रति
जागरूक एवं उत्सुक होंगे। शिक्षक को बाल अभिरुचि को ध्यान में रखकर
ही शिक्षण कार्य करना चाहिए।
3. लोकतान्त्रिक सिद्धान्त
शिक्षक को सभी छात्रों को एक समान दृष्टिकोण से देखना चाहिए, न कि
भेदभावपूर्ण तरीके से। प्रश्न पूछने या उत्तर देने के सन्दर्भ में शिक्षक को
भेद-भाव नहीं करना चाहिए।
4. सर्वांगीण विकास का सिद्धान्त
बालकों में उसके सभी पक्षों को (सामाजिक, सांस्कृतिक, चारित्रिक, खेल, नेतृत्व)
विकसित करने पर बल देना चाहिए। इसके माध्यम से बच्चों का सर्वांगीण विकास
हो पाएगा।
5. चयन का सिद्धान्त
बालकों की योग्यता के अनुरूप ही विषय-वस्तु का चयन करना चाहिए। बालकों
की मानसिक दशा का भी शिक्षण के दौरान ध्यान रखना चाहिए। बाल केन्द्रित
शिक्षा के अन्तर्गत पाठ्यक्रम वातावरण के अनुसार, लचीला, ज्ञान पर केन्द्रित,
रुचि पर आधारित, राष्ट्रीय भावनाओं को विकसित करने वाला, बालक के
मानसिक स्तर के अनुरूप इत्यादि विभिन्नताओं को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए।
6.4 प्रगतिशील शिक्षा
प्रगतिशील शिक्षा (Progressive Education), जटिल (Complex) पारम्परिक
शिक्षा प्रणाली है, जो एक विकल्प के रूप में उभरकर आई है। इस शिक्षा प्रणाली
को विकसित करने में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जॉन डीवी का विशेष योगदान रहा
है। इसके अन्तर्गत शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालकों का समग्र विकास करना है
तथा इस सन्दर्भ में वैयक्तिक विभिन्नता को भी ध्यान में रखना है, ताकि विकास
के दौर में कोई भी बालक पीछे न रह जाए। इस शिक्षा के अन्तर्गत विभिन्न
विधियों का प्रयोग किया जाता है; जैसे-परियोजना (project) विधि, समस्या
विधि तथा क्रिया-कलाप विधि इत्यादि। प्रगतिशील शिक्षा, आधुनिक शिक्षा पद्धति
पर आधारित है, जॉन डीवी इस शिक्षा पद्धति के पिता माने जाते हैं।
6.4.1 प्रगतिशील शिक्षा के विभिन्न प्रकार
प्रगतिशील शिक्षा के विभिन्न प्रकार निम्न है
1. मॉण्टेसरी शिक्षा (Montessori Education) प्रसिद्ध इटालियन डॉक्टर एवं
शिक्षाविद् मारिया मॉण्टेसरी द्वारा मॉण्टेसरी शिक्षा प्रणाली की नींव रखी गई,
जिसके अन्तर्गत बच्चों के विश्लेषण एवं पर्यवेक्षण (Supervision) पर बल
दिया गया। उसने पर्यवेक्षण के आधार पर पाया कि बच्चे स्वयं सीखते हैं,
शिक्षक केवल सीखने की प्रक्रिया बताते हैं तथा बच्चों के लिए स्वस्थ
वातावरण का निर्माण करते हैं।
2. मानवतावादी शिक्षा (Humanistic Education) इस तरह की शिक्षा का
केन्द्रबिन्दु कला एवं सामाजिक विज्ञान होता है। यह बच्चों में आलोचनात्मक
सोच (critical thinking) एवं तार्किक कौशल (Reasoning skill) को
विकसित करता है। मानवतावादी शिक्षा सामाजिक अन्तक्रिया के माध्यम से
सीखने पर जोर देता है।
3. संरचनावादी शिक्षा (Constructivism Education) यह शिक्षा बालकों
के सृजनात्मकता पर आधारित है। अधिगम तकनीक एवं प्रायोगिक अधिगम
(Experimental learning) के माध्यम से करके सीखने पर बल देता है।
संरचनावादी शिक्षा के अन्तर्गत बालकों के अवस्था के बारे में आवश्यक रूप
से विचार करने की आवश्यकता है।
6.4.2 प्रगतिशील शिक्षा के विकास में योगदान देने वाले मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त
प्रगतिशील शिक्षा के विकास में योगदान देने वाले महत्त्वपूर्ण मनोवैज्ञाशिक सिद्धान्त
का वर्णन मनोवैज्ञानिकों ने अनुसन्धान के आधार पर अग्र प्रकार से किया है
1. मस्तिष्क एवं बुद्धि
• मस्तिष्क एवं बुद्धि (Brain and Intelligence), मनुष्य की उन
क्रियाओं के परिणाम हैं, जिन्हें वह जीवन की विभिन्न व्यावहारिक एवं
सामाजिक समस्याओं को सुलझाने के लिए करता है। ज्यों-ज्यों वह
जीवन की दैनिक क्रियाओं को करने में मानसिक शक्तियों का प्रयोग
करता जाता है, त्यों-त्यों उसका विकास भी होता जाता है।
• मस्तिष्क ही वह सबसे प्रमुख साधन है, जिसकी सहायता से मनुष्य
अपनी समस्याओं का हल करता है। एक साधन के रूप में मस्तिष्क
के तीन प्रमुख रूप है-चिन्तन, अनुभूति एवं संकल्प।
2. ज्ञान
ज्ञान (Knowledge) कर्म का ही परिणाम है। कर्म अनुभव से पूर्व आता
है। अनुभव ज्ञान का स्रोत है, जिस प्रकार बालक अनुभव से यह
समझता है कि अग्नि हाथ जला देती है, उसी प्रकार उसका सम्पूर्ण जान
अनुभव पर आधारित होता है।
3. मौलिक प्रवृत्तियाँ
सभी ज्ञान व्यक्तियों की उन क्रियाओं के फलस्वरूप प्राप्त होता है, जो
वे अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करने में करते हैं। सुरक्षा, भोजन तथा
वस्त्र के लिए मानव जो संघर्ष करता है, उसका परिणाम होता है कुछ
क्रियाओं का प्रारम्भ और ये क्रियाएँ ही व्यक्ति की उन प्रवृत्तियों, मौलिक
भावनाओं तथा रुचियों को जन्म देती हैं।
4. चिन्तन की प्रक्रिया
• चिन्तन केवल मनन करने से पूर्ण नहीं होता और न ही भावना-समूह से
इसकी उत्पत्ति होती है।
• चिन्तन का कुछ कारण होता है। किसी उद्देश्य के आधार पर मनुष्य
सोचना प्रारम्भ करता है। यदि मनुष्य की क्रिया सरलतापूर्वक चलती
रहती है, तो उसे सोचने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती, किन्तु जब
उसकी प्रगति में बाधा पड़ती है तो वह सोचने के लिए बाध्य हो
जाता है।
• मनोविज्ञान के उपरोक्त सिद्धान्तों एवं अवधारणाओं के आधार पर
प्रगतिशील शिक्षा की नींव रखी गई है, जिसमें इस बात पर जोर दिया
गया है कि बालक को जो शिक्षा दी जाए, वह मानसिक क्रियाओं की
विभिन्न दशाओं के अनुसार हो।
6.4.3 प्रगतिशील शिक्षा का महत्त्व
प्रगतिशील शिक्षा के महत्त्व (Importance of Progressive
Education) के सन्दर्भ में मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न पहलुओं का वर्णन
किया है, जो निम्न प्रकार हैं
1. बालकों की शक्तियों का विकास
• इसका उद्देश्य बालकों का विकास करना है। बालकों की रुचि एवं
योग्यता को ध्यान में रखकर ही अध्यापक द्वारा उनका निर्देशन किया
जाना चाहिए।
• बालकों को स्वयं करके सीखने’ पर बल देना चाहिए। जॉन डी.वी.
की शिक्षा पद्धति से प्रोजेक्ट प्रणाली का विकास हुआ, इसके अन्तर्गत
बालकों को ऐसे कार्य दिए जाने चाहिए, जिनसे उनमें स्फूर्ति
(Active), आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता एवं मौलिकता का विकास हो।
2. सामाजिक विकास का अवसर
• शिक्षा बालक के लिए नहीं है, बालक शिक्षा के लिए है, इसलिए शिक्षा का
उद्देश्य ऐसा वातावरण तैयार करना है जिससे बालकों को सामाजिक
विकास के पर्याप्त अवसर प्राप्त हो सकें।
• शिक्षा के माध्यम से एक ऐसे समाज के निर्माण पर बल देना चाहिए, जो
भेद-भाव मुक्त हो जिनमें सहयोग की प्रवृत्ति हो तथा कार्य का स्वतन्त्र
वातावरण हो।
• सभी मनुष्यों को उनकी स्वाभाविक प्रवृत्तियों, इच्छाओं और आकांक्षाओं के
अनुसार समाज में विकास का अवसर मिलना चाहिए।
3. जनतान्त्रिक मूल्यों का विकास
• प्रगतिशील शिक्षा का उद्देश्य लोकतान्त्रिक मूल्यों की स्थापना करना है।
शिक्षा के द्वारा मनुष्य में परस्पर सहयोग एवं सामंजस्य का भाव स्थापित
होना चाहिए।
• बालक का व्यक्तित्व विकास बेहतर हो ताकि शिक्षा के द्वारा जनतन्त्र की
स्थापना की जा सके।
4. अनुशासन का विकास
• प्रगतिशील शिक्षा के अन्तर्गत अनुशासन बनाए रखने के लिए बालकों की
स्वाभाविक प्रवृत्तियों को दबाना नहीं चाहिए।
• अनुशासन का सम्बन्ध केवल बालक के निजी व्यक्तित्व से नहीं अपितु
सामाजिक परिस्थितियों से भी है।
• विद्यालय में एक समान उद्देश्य लेकर सामाजिक, नैतिक बौद्धिक तथा
शारीरिक कार्यों में एक साथ भाग लेने से बालकों में अनुशासन उत्पन्न
होता है तथा उनमें नियमित रूप से कार्य करने की आदतों का विकास
होता है।
• विद्यालय में कार्यक्रमों का बालक के चरित्र निर्माण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव
पड़ता है। बालकों को एक ऐसा सामाजिक परिवेश दिया जाना चाहिए,
जिससे प्रेरित होकर वे स्वयं में आत्मानुशासन की भावना का विकास कर
सकें तथा एक अच्छा सामाजिक प्राणी बन सकें।
6.5 प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण
सार्वभौमीकरण का अर्थ होता है, सब के लिए उपलब्ध कराना।
प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण (Globalisation of Primary
Education) के अन्तर्गत देश के सभी बच्चों के लिए पहली से आठवीं
कक्षा तक नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करने का उद्देश्य
सुनिश्चित किया गया। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि इस अनिवार्य
शिक्षा के लिए स्कूल बच्चों के घर के समीप हो तथा चौदह वर्ष तक बच्चे
स्कूल न छोड़ें।
ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड, न्यूनतम शिक्षा स्तर, मध्याह्न भोजन स्कीम, पोषाहार
सहायता कार्यक्रम, जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम, सर्वशिक्षा अभियान,
कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय, प्राथमिक शिक्षा कोष इत्यादि प्राथमिक
शिक्षा के सार्वभौमीकरण से सम्बन्धित कुछ प्रमुख कार्यक्रम हैं।
6.5.1 सर्वशिक्षा अभियान
सर्वशिक्षा अभियान (Sarva Shiksha Abhiyan) (एसएसए) प्राथमिक शिक्षा
के सार्वभौमीकरण से सम्बन्धित प्रमुख कार्यक्रम है। इसे सभी के लिए शिक्षा
अभियान के नाम से भी जाना जाता है। इस अभियान के अन्तर्गत ‘सब पढ़ें
सब बढ़े’ का नारा दिया गया है। सर्वशिक्षा अभियान भारत सरकार द्वारा
2000-01 में प्रारम्भ किया गया था। कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना
की शुरुआत 2004 में हुई थी, जिसके अन्तर्गत समस्त लड़कियों को प्राथमिक
शिक्षा देने का सपना देखा गया था, बाद में यह योजना सर्व शिक्षा अभियान
के साथ विलय हो गई।
सर्वशिक्षा अभियान के अन्तर्गत निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किए गए थे।
• विद्यालय, शिक्षा गारण्टी केन्द्रों, वैकल्पिक विद्यालयों या विद्यालयों में
वापस अभियान’ द्वारा वर्ष 2003 तक सभी बच्चों को विद्यालय में लाना।
• वर्ष 2007 तक 5 वर्ष की आयु वाले सभी बच्चों की प्राथमिक शिक्षा पूरी
करवाना। वर्ष 2010 तक 8 वर्ष की आयु वाले सभी बच्चों की प्रारम्भिक
शिक्षा पूरी करवाना।
• जीवन के लिए शिक्षा पर बल देते हुए सन्तोषजनक गुणवत्ता की प्रारम्भिक
शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित करना। वर्ष 2007 तक प्राथमिक चरण और 2010
तक प्रारम्भिक शिक्षा स्तर पर आने वाले सभी लिंग सम्बन्धी और
सामाजिक श्रेणी के अन्तराल को खत्म करना।
सर्वशिक्षा अभियान की उपलब्धियाँ निम्न प्रकार रहीं
• सर्वशिक्षा अभियान के अन्तर्गत उन बस्तियों में नए स्कूल बनाने का प्रयास
किया जाता है, जहाँ बुनियादी स्कूली शिक्षा की सुविधा नहीं है।
• इसके अन्तर्गत अतिरिक्त कक्षा, पीने का पानी, शौचालय का रखरखाव,
स्कूल सुधार तथा अनुदान के माध्यम से वर्तमान स्कूलों के बुनियादी ढाँचे
में सुधार करना है। यह अभियान जीवन कौशल सहित गुणवत्ता युक्त
प्रारम्भिक शिक्षा मुहैया कराता है। इस अभियान के अन्तर्गत लड़कियों एवं
विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
• इस अभियान के अन्तर्गत कम्प्यूटर शिक्षा पर बल दिया गया है। इसके
अन्तर्गत डिजिटल अन्तर को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है।
• बच्चों की उपस्थिति आशाजनक करने के उद्देश्य से मध्याह्न भोजन जैसी
योजना की शुरूआत की गई है।
• यद्यपि सर्वशिक्षा अभियान के फलस्वरूप विद्यालय छोड़ने वाले बच्चों की
संख्या में भारी कमी लाने में सफलता प्राप्त हुई है, किन्तु वर्ष 2010 तक यह
सफलता लक्षित अनुपात तक प्राप्त नहीं हुई है।
• वर्ष 2010 तक सर्वशिक्षा अभियान का लक्ष्य पूरा होने के कारण केन्द्र
सरकार के मानव संसाधन मन्त्रालय ने दिसम्बर, 2010 में यह निर्णय
लिया था कि सर्वशिक्षा अभियान को शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू
करने का प्रमुख साधन बनाया जाएगा। इसके लिए संशोधित सर्वशिक्षा
अभियान से सम्बन्धित अधिनियम, 2011 में लागू किया जाएगा।
6.5.2 मध्याह्न भोजन स्कीम
मध्याह्न भोजन स्कीम (Mid Day Meal Scheme) की शुरुआत सर्वप्रथम
भारत के तमिलनाडु से प्रारम्भ हुई, जिसका उद्देश्य सर्व शिक्षा अभियान को
सफलीभूत (Successful) बनाना था। प्राथमिक कक्षाओं में नामांकन में वृद्धि
हो तथा स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति में कमी हो इत्यादि को ध्यान में रखकर यह
स्कीम शुरू की गई, जिसकी विशेषताएं निम्न प्रकार वर्णित है
• सुविधाहीन वर्गों से सम्बन्धित बच्चों के प्रवेश, उपस्थिति, प्रतिधारण एवं
अध्ययन स्तरों में सुधार करके प्राथमिक शिक्षा के व्यापीकरण को बढ़ाने तथा
प्राथमिक स्तर के छात्रों की पोषाहार स्थिति को सुधारने के उद्देश्य से
15 अगस्त, 1995 को पोषाहार समर्थन के राष्ट्रीय कार्यक्रम मध्याह्न भोजन
स्कीम की शुरुआत की गई।
• इस योजना के अन्तर्गत पहली से पांचवीं कक्षा तक देश के राजकीय
अनुदान प्राप्त प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले सभी बच्चों को 80%
उपस्थिति पर प्रतिमाह 3 किया गेहूँ अथवा चावल दिए जाने की व्यवस्था
की गई थी, किन्तु इस योजना के अन्तर्गत छात्रों को दिए जाने वाले
खाद्यान्न का पूर्ण लाभ छात्र को न प्राप्त होकर उसके परिवार को मिल
जाता था, इसलिए 1 सितम्बर, 2004 से प्राथमिक विद्यालयों में पके पकाए
भोजन उपलब्ध कराने की योजना आरम्भ कर दी गई।
• इस योजना के अन्तर्गत विद्यालयों में मध्यावकाश में छात्र-छात्राओं को
सप्ताह में 4 दिन चावल से बने भोज्य पदार्थ तथा 2 दिन गेहूँ से बने
भोज्य पदार्थ दिए जाने की व्यवस्था की गई है।
• प्रत्येक छात्र/छात्रा के लिए प्रतिदिन 100 ग्राम खाद्यान्न से निर्मित सामग्री
दिए जाने का प्रावधान है, जिसे पकाने के लिए परिवर्तन लागत की
व्यवस्था भी की गई है।
• पौष्टिकता सुनिश्चित करने के लिए यह तय किया गया है कि भोजन
कम-से-कम 450 कैलोरी व 12 ग्राम प्रोटीन वाला हो। भोजन पकाने का
कार्य ग्राम पंचायतों की देख-रेख में किया जाता है।
• मध्याह्न भोजन वर्ष में कम-से-कम 200 दिनों तक उपलब्ध कराया
जाएगा।
6.5.3 शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009
• शिक्षा का अधिकार (Right to Education) अधिनियम, 2009 राज्य,
परिवार और समुदाय की सहायता से 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के
लिए मुफ्त एवं अनिवार्य गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित करता है।
• यह अधिनियम मूलत: वर्ष 2005 के शिक्षा के अधिकार विधेयक का
संशोधित रूप है। वर्ष 2002 में संविधान के 86वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद
21ए के भाग 3 के माध्यम से 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त
एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया था।
• इसको प्रभावी बनाने के लिए 4 अगस्त, 2009 को लोकसभा में यह
अधिनियम पारित किया गया, जो 1 अप्रैल, 2010 से पूरे देश में लागू
हो गया।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम का महत्त्व
• शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के क्रियान्वयन के बाद कक्षा-कक्ष
आयु के अनुसार अधिक समजातीय है।
• इसमें 6-14 वर्ष तक की आयु वर्ग के सभी बच्चों को अनिवार्य रूप से
प्रारम्भिक से माध्यमिक स्कूल तक की शिक्षा देने पर जोर दिया गया है
इससे इस आयु वर्ग के बच्चों का भविष्य उज्ज्वल होगा।
• किसी प्रजातान्त्रिक देश में शिक्षित नागरिकों का बड़ा महत्व होता है। शिक्षा
द्वारा ही आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हर स्तर पर
जनशक्ति का विकास होता है।
• शिक्षा के आधार पर ही अनुसन्धान और विकास को बल मिलता है। इस
तरह शिक्षा वर्तमान ही नहीं भविष्य के निर्माण का भी अनुपम साधन है।
• इन सब दृष्टिकोणों से भी शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने का महत्व
स्पष्ट हो जाता है।
• शिक्षा ही मनुष्य को विश्व के अन्य प्राणियों से अलग कर उसे श्रेष्ठ एवं
सामाजिक प्राणी के रूप में जीवन जीने के काबिल बनाती है।
• इसके अभाव में न केवल समाज का, बल्कि पूरे देश का विकास अवरुद्ध
हो जाता है।
• शिक्षा के इन्हीं महत्त्वों को देखते हुए भारत सरकार ने सबके लिए शिक्षा को
अनिवार्य करने के उद्देश्य से शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित करने का
एक प्रशंसनीय कार्य किया था।
• इस कड़ी में सर्वशिक्षा अभियान को इसका सहयोगी बनाना नि:सन्देह
अत्यधिक लाभप्रद सिद्ध होगा।
• इस अधिनियम का सर्वाधिक लाभ श्रमिकों के बच्चे, बाल मजदूर, विशेष
आवश्यकता वाले बच्चे या फिर ऐसे बच्चों को मिलेगा, जो सामाजिक,
सांस्कृतिक, आर्थिक, भौगोलिक, भाषायी अथवा अन्य कारणों से शिक्षा से
वंचित रह जाते हैं।
• इस अधिनियम के लागू होने के बाद यह आशा की जा सकती है कि
विद्यालय छोड़ने वाले तथा पहले विद्यालय न जाने वाले बच्चों को अब
प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सकेगी।
शिक्षा के अधिकार अधिनियम की कमियाँ
• इस अधिनियम की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसमें 0-6 वर्ष आयु वर्ग और
14-18 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों की बात नहीं की गई है।
• अन्तर्राष्ट्रीय बाल अधिकार समझौते के अनुसार 18 वर्ष तक की आयु तक
के बच्चों को बच्चा माना गया है, जिसे भारत सहित 142 देशों ने स्वीकृति
प्रदान की है फिर भी 14-18 वर्ष आयु वर्ग की शिक्षा की बात इस
अधिनियम में नहीं की गई है।
अभ्यास प्रश्न
1. बाल-केन्द्रित शिक्षा का समर्थन निम्नलिखित
में से किस विचारक द्वारा किया गया?
(1) बी.एफ. स्किनर
(2) जॉन डी.वी
(3) एरिक इरिकसन
(4) चार्ल्स डार्विन
2. जॉन डी.वी. द्वारा समर्थित ‘लैब विद्यालय’
के उदाहरण हैं
(1) फैक्ट्री विद्यालय
(2) प्रगतिशील विद्यालय
(3) पब्लिक विद्यालय
(4) सामान्य विद्यालय
3. बाल-केन्द्रित शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित
में से किस भारतीय शिक्षाविद् की भूमिका
सर्वाधिक उल्लेखनीय रही है?
(1) अरविन्द घोष
(2) महात्मा गाँधी
(3) गिजू भाई
(4) रवीन्द्रनाथ टैगोर
4….. शिक्षा के अन्तर्गत पिछड़े हुए और
मन्दबुद्धि तथा प्रतिभाशाली बालकों के लिए।
शिक्षा का विशेष पाठ्यक्रम देने का प्रयास
किया जाता है।
(1) प्रगतिशील शिक्षा
(2) नवीन शिक्षा
(3) बाल-केन्द्रित शिक्षा
(4) सर्वशिक्षा
5. एक बाल-केन्द्रित कक्षा में, बच्चे सामान्यत:
सीखते हैं
(1) वैयक्तिक और सामूहिक, दोनों रूपों में ?
(2) मुख्य रूप से शिक्षक से
(3) वैयक्तिक रूप से
(4) समूहों में
6. वर्तमान समय में बाल-केन्द्रित शिक्षा पर
जोर दिया जाता है। निम्नलिखित में से।
कौन-सी बाल-केन्द्रित शिक्षा की विशेषता
नहीं है?
(1) बालक के सर्वांगीण विकास पर जोर देना
(2) बालक के मनोविज्ञान को समझना
(3) बालक को केवल तथ्यात्मक ज्ञान से अवगत
कराने पर जोर देना
(4) बालक के मनोविज्ञान को समझते हुए उसकी
समस्याओं को दूर करना
7. आजकल शिक्षा के विभिन्न आधारों पर
विशेष जोर दिया जाता है। आधुनिक शिक्षा
प्रणाली के एक समर्थक के रूप में आपके
अनुसार बालक की शिक्षा निम्नलिखित में से
किस पर आधारित होनी चाहिए?
(1) बालक के आर्थिक स्तर पर
(2) बालक की सामाजिक स्थिति पर
(3) बालक की इच्छा एवं रुचि पर
(4) बालक की मूल प्रवृत्तियों, प्रेरणाओं और संवेगों
पर
8. बाल-केन्द्रित शिक्षा के समर्थक के तौर पर
आपके अनुसार निम्नलिखित में से किसका
महत्त्व सर्वाधिक है?
(1) शिक्षक बालक के व्यक्तित्व का कहाँ तक
विकास कर पाता है
(2) शिक्षक कितना ज्ञानी, आकर्षक और
गुणयुक्त है
(3) शिक्षक अपने विद्यालय को कितना अधिक भव्य
दर्शा पाने में सक्षम है
(4) शिक्षक की पहचान का दायरा कितना
विस्तृत है
9. बाल-केन्द्रित शिक्षा द्वारा निम्नलिखित में से
क्या सम्भव नहीं हो सकता?
(1) बाल मनोविज्ञान की सहायता से बच्चों के
पाठ्यक्रम में सुधार
(2) प्रत्येक बालक पर शिक्षक द्वारा विशेष ध्यान
दिया जाना
(3) प्रत्येक बालक पर पृथक् रूप से ध्यान नहीं
दिया जाना
(4) प्रत्येक बालक की विशेष आवश्यकताओं को
समझना
10. बाल-केन्द्रित शिक्षा को व्यवहार में लाने
वाले शिक्षक के लिए निम्नलिखित में से
किसकी जानकारी रखना अधिक
आवश्यक है?
(1) शिक्षक के लिए बालक के व्यवहार के मूल
आधारों के बारे में जानने से अधिक आवश्यक
यह है कि वह उसके परिवार के बारे में जाने
(2) शिक्षक केवल बालक की रुचियों को जाने
(3) शिक्षक को बालक के बारे में भले ही कुछ
जानकारी न हो, किन्तु उसके परिवार की
आर्थिक स्थिति के बारे में उसे अवश्य पता
होना चाहिए
(4) बालक के सम्बन्ध में शिक्षक को उसके व्यवहार
के मूल आधारों, आवश्यकताओं, मानसिक स्तर,
रुचियों, योग्यताओं व्यक्तित्व इत्यादि का विस्तृत
ज्ञान होना चाहिए
11. बाल-केन्द्रित शिक्षा के पाठ्यक्रम के सन्दर्भ
में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही
नहीं है?
(1) पाठ्यक्रम का विकास, व्यक्तिगत विभिन्नताओं,
प्रेरणाओं, मूल्यों एवं सीखने के सिद्धान्तों के
मनोवैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर किया जाना
चाहिए
(2) पाठ्यक्रम बनाने में शिक्षक यह ध्यान रखता है
कि शिक्षार्थी की और समाज की क्या
आवश्यकताएँ हैं और सीखने की कौन-सी
क्रियाओं से ये आवश्यकताएँ सर्वोत्तम रूप से
पूर्ण हो सकती हैं
(3) पाठ्यक्रम बनाते समय शिक्षक की
आवश्यकताओं एवं विद्यालय में उपलब्ध
सुविधाओं का ध्यान रखा जाना चाहिए
(4) क्रियात्मक होने के लिए प्रत्येक पाठ्यक्रम एक
समुचित मनोवैज्ञानिक आधार पर स्थापित हो
12. प्रोजेक्ट प्रणाली का प्रयोग निम्नलिखित में
से किस शिक्षा – पद्धति के अन्तर्गत किया
जाता है?
(1) पारम्परिक शिक्षा
(2) प्रगतिशील शिक्षा
(3) वैदिक शिक्षा
(4) इनमें से कोई नहीं
13. प्रगतिशील शिक्षा के अन्तर्गत निम्नलिखित में
से किस बात का ध्यान रखा जाता है?
(1) इसमें शिक्षण विधि को अधिक व्यावहारिक
करने पर जोर दिया जाता है
(2) इसमें सिद्धान्तों के रटने पर जोर दिया जाता है
(3) इसमें बालक की प्रगति के लिए सैद्धान्तिक
शिक्षा दी जाती है
(4) इसमें केवल बालक के नैतिक एवं सामाजिक
विकास पर जोर दिया जाता है
14. प्रगतिशील शिक्षा के अन्तर्गत बालक में
आत्मानुशासन के विकास के लिए किस
बात पर जोर दिया जाना चाहिए?
(1) अनुशासन बनाए रखने के लिए सख्त आदेश
(2) बालकों में उत्तरदायित्व की भावना के विकास पर
(3) प्रगतिशील शिक्षा के अन्तर्गत आत्मानुशासन
के विकास पर जोर नहीं दिया जाता
(4) आत्मानुशासन के लिए विभिन्न दृष्टान्तों द्वारा
बालकों को समझाने पर
15. बालकों को प्रेरित करने के लिए उन्हें
महापुरुषों की जीवनी, प्रेरणादायी नाटक एवं
उत्कृष्ट वैज्ञानिकों इत्यादि के बारे में बताना
चाहिए। यह निम्न में से किस सिद्धान्त के
अन्तर्गत आता है?
(1) प्रेरणा का सिद्धान्त
(2) लोकतान्त्रिक सिद्धान्त
(3) सर्वांगीण विकास का सिद्धान्त
(4) चयन का सिद्धान्त
16. प्रगतिशील शिक्षा के अन्तर्गत शिक्षा में किन
दो तत्त्वों को विशेष महत्त्वपूर्ण माना है?
(1) रुचि और प्रयास
(2) आवश्यकता एवं अभिप्रेरण
(3) व्यक्ति विभिन्नता एवं रुचि
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
17………… के सिद्धान्तों के अनुरूप ही
आजकल शिक्षा को अनिवार्य और ………
बनाने पर जोर दिया जाता है।
(1) प्रगतिशील शिक्षा, सार्वभौमिक
(2) सार्वभौमिकता, प्रगतिशील
(3) बाल-केन्द्रित शिक्षा, आवश्यक
(4) प्रगतिशीलता, निःशुल्क
18. प्रगतिशील शिक्षा के सन्दर्भ में निम्नलिखित में
से कौन-सा कथन असत्य है?
(1) प्रगतिशील शिक्षा के अन्तर्गत अनुशासन बनाए
रखने के लिए बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों
को कुण्ठित करना अनुचित माना जाता है
(2) प्रगतिशील शिक्षा में छात्र का विशेष महत्त्व है,
शिक्षक का नहीं
(3) प्रगतिशील शिक्षा पारम्परिक शिक्षा की
प्रतिक्रिया का परिणाम है
(4) प्रगतिशील शिक्षा में इस बात पर जोर दिया गया
है कि बालक को जो शिक्षा दी जाए, वह
मानसिक क्रियाओं की विभिन्न दशाओं के
अनुसार हो
19. निम्नलिखित में से किस प्रणाली के तहत
बालकों के विश्लेषण एवं पर्यवेक्षण पर बल
दिया गया है?
(1) मोंटेसरी शिक्षा प्रणाली
(2) संरचनावादी शिक्षा प्रणाली
(3) मानवतावादी शिक्षा प्रणाली
(4) समाजवादी शिक्षा प्रणाली
20. बच्चों में आलोचनात्मक सोच एवं तार्किक
कौशल का विकास होता है, इसे किस शिक्षा
प्रणाली के अन्तर्गत रखा जा सकता है?
(1) मानवतावादी शिक्षा प्रणाली
(2) संरचनावादी शिक्षा प्रणाली
(3) मोंटेसरी शिक्षा प्रणाली
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
21. सर्वशिक्षा अभियान की शुरुआत किस वर्ष हुई
(1) 2000-2001
(2) 2000-2004
(3) 2000-2005
(4) 2004-2005
22. ‘सब पढ़ें, सब बढ़ें’ का नारा दिया गया
(1) सर्वशिक्षा अभियान के तहत
(2) डिजिटल इण्डिया के तहत
(3) स्वच्छ भारत अभियान के तहत
(4) ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड के तहत
23. नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार
2009 में ‘अनिवार्य’ शब्द का अर्थ है
(1) दण्डात्मक कार्य से बचने के लिए अपने बच्चों
को विद्यालय भेजने के लिए अभिभावकों पर
अनिवार्य रूप से जोर डाला गया है।
(2) अनिवार्य शिक्षा सतत परीक्षण के माध्यम से
प्रदान की जाएगी।
(3) केन्द्र सरकार दाखिले, उपस्थिति और
प्रारम्भिक शिक्षा की पूर्णता को सुनिश्चित
करेगी।
(4) उचित सरकारें दाखिले. उपस्थिति और
प्रारम्भिक शिक्षा की पूर्णता को सुनिश्चित
करेंगी।
24. शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के
क्रियान्वयन के बाद कक्षा-कक्ष
(1) आयु के अनुसार अधिक समजातीय है
(2) आयु के अनुसार अधिक विषम जातीय है
(3) अप्रभावित है, क्योंकि शिक्षा का अधिकार
विद्यालय में कक्षा की औसत आयु को प्रभावित
नहीं करता
(4) जेण्डर के अनुसार अधिक समजातीय है
25. ‘बाल-केन्द्रित शिक्षा के लिए निम्नलिखित में
से कौन-सा कारक आधार है?
(1) वैयक्तिक अन्तर
(2) बाल अधिकार
(3) बच्चों की निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का
अधिकार अधिनियम, 2009
(4) सभी बच्चे सभी सन्दर्भी में समान होते हैं
26. शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के
सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से
कथन सत्य है/है?
A. भारत के 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग वाले सभी
बच्चों को मुफ्त एवं आधारभूत शिक्षा
उपलव्य कराना अनिवार्य है।
B. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बच्चों से
किसी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया
जाएगा और न ही उन्हें शुल्क अथवा
किसी खर्च की वजह से आधारभूत शिक्षा
लेने से वंचित किया जाएगा।
C. यदि 6 से अधिक आयु का कोई भी बच्चा
किन्हीं कारणों से विद्यालय नहीं जा पाता
है तो उसे शिक्षा के लिए उसकी आयु के
अनुसार उचित कक्षा में प्रवेश दिलाया
जाएगा।
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) केवल
(4) ये सभी
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
27. प्राथमिक स्तर पर एक शिक्षक में निम्न में
से किसे सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता मानना
चाहिए? [CTET June 2011]
(1) पदाने की उत्सुकता
(2) पैर्य और दृढता
(3) शिक्षण-पद्धतियों और विषयों के ज्ञान में दक्षता
(4) अति मानक भाषा में पदाने में दक्षता
28. शिक्षण से अधिगम पर बल देने वाला
परिवर्तन हो सकता है [CTET Jan 2012]
(1) परीक्षा परिणामों पर केन्द्रित होकर
(2) बाल केन्द्रित शिक्षा-पद्धति अपनाकर
(3) रटने को प्रोत्साहित करके
(4) अग्र शिक्षण की तकनीक अपनाकर
29. निम्नलिखित में से कौन-सी प्रगतिशील
शिक्षा की विशेषता है? [CTET Jan 2012]
(1) समय-सारणी और बैठने की व्यवस्था में
लचीलापन
(2) केवल प्रस्तावित पाठ्य पुस्तकों पर आधारित
अनुदेश
(3) परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त करने पर बल
(4) बार-बार ली जाने वाली परीक्षाएँ
30. के. मा. शि. बो. (CBSE) द्वारा अपनाए गए
प्रगतिशील शिक्षा के प्रतिमान में बच्चों का
समाजीकरण जिस प्रकार से किया जाता है,
उससे अपेक्षा की जा सकती है कि [CTET Feb 2014]
(1) वे समय नष्ट करने वाली सामाजिक
आदतों/प्रकृति का त्याग करें तथा सीखें कि
किस प्रकार अच्छी श्रेणियाँ पाई जा सकती है
(2) वे सामूहिक कार्य में सक्रिय भागीदारिता का
निर्वाह करें तथा सामाजिक कौशल सीखें
(3) वे बिना प्रश्न उठाए समाज के
नियमों-विनियमों का अनुपालन करने के लिए
तैयार हो सकें
(4) किसी भी प्रकार की सामाजिक पृष्ठभूमि होते
हुए भी वे वह सब स्वीकार करें, जो उन्हें
विद्यालय द्वारा प्रदान किया जाता है
31. प्रगतिशील शिक्षा के सन्दर्भ में निम्नलिखित
में से कौन-सा कथन जॉन डी.वी. के
अनुसार समुचित है? [CTET Feb 2014]
(1) कक्षा में प्रजातन्त्र का कोई स्थान नहीं होना
चाहिए
(2) विद्यार्थियों को स्वयं ही सामाजिक समस्याओं
को सुलझाने में सक्षम होना चाहिए
(3) जिज्ञासा विद्यार्थियों के स्वभाव में अन्तर्निहिता
है अपितु इसका कर्पण/संवर्द्धन करना चाहिए
(4) कक्षा में विद्यार्थियों का निरीक्षण करना चाहिए
न कि सुनना चाहिए
32. “बच्चों में ज्ञान की रचना करने और अर्थ
का निर्माण करने की क्षमता होना।” इस
परिप्रेक्ष्य में एक शिक्षक की भूमिका है
[CTET Sept 201]
(1) सम्प्रेषक और व्याख्याता की
(2) सुगमकर्ता की
(3) निर्देशक की
(4) तालमेल बैठाने वाले की
33. बाल केन्द्रित शिक्षा में शामिल है
[CTET Sept 2015]
(1) बच्चों का एक कोने में बैठना
(2) प्रतिबन्धित परिवेश में अधिगम
(3) वे गतिविधियाँ जिनमें खेल शामिल नहीं होते
(4) बच्चों के लिए हस्तपरक गतिविधियाँ
34. निम्नलिखित में से कौन-सी स्थिति बाल-
केन्द्रित कक्षा-कक्ष को प्रदर्शित कर रही है?
[CTET Feb 2018]
(1) एक कक्षा जिसमें शिक्षिका नोट लिखा देती है
और शिक्षार्थियों से उन्हें याद करने को कहा
जाता है।
(2) एक कक्षा जिसमें पाठ्य पुस्तक एकमात्र संसाधन
होता है, जिसका सन्दर्भ शिक्षिका देती है।
(3) एक क्या जिसमें शिक्षार्थी समूहों में बैठे हैं
और शिक्षिका बारी-बारी से प्रत्येक समूह में
जा रही है।
(4) एक कक्षा जिसमें शिक्षार्थियों का व्यवहार
शिक्षिका द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कार और
दण्ड से संचालित होता हो।
35. बाल-केन्द्रित शिक्षाशास्त्र का अर्थ है
[CTET Feb 2016]
(1) बच्चों को नैतिक शिक्षा देना
(2) बच्चों को शिक्षक का अनुगमन और अनुकरण
करने के लिए कहना
(3) बच्चों की अभिव्यक्ति और उनकी सक्रिय
भागीदारी को महत्त्व देना
(4) बच्चों को पूर्ण रूप से स्वतन्त्रता देना
36. किसी प्रगतिशील कक्षा की व्यवस्था में
शिक्षक एक ऐसे वातावरण को उपलब्ध
कराकर अधिगम को सुगम बनाता है, जो
(1) नियामक है [CTET Sept 2016]
(2) समावेशन को हतोत्साहित करता है
(3) आवृत्ति को बदावा देता है
(4) खोज को प्रोत्साहन देता है
उत्तरमाला
1. (2) 2. (2) 3. (3) 4. (3) 5. (1) 6. (3) 7. (4) 8. (1) 9. (3) 10. (4)
11. (3) 12. (2) 13. (1) 14. (2) 15. (1) 16. (1) 17. (1) 18. (2)
19. (1) 20 (1) 21. (1) 22. (1) 23. (4) 24. (1) 25. (3) 26. (4)
27. (2) 28. (2) 29. (1) 30. (2) 31. (2) 32. (3) 33. (4) 34. (3)
35. (3) 36. (3)
★★★