बालक एवं किशोरों पर नगरीकरण तथा आर्थिक परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ता है? समझाइए । Explain the impact of urbanisation and economic changes on children and adolescents
प्रश्न – बालक एवं किशोरों पर नगरीकरण तथा आर्थिक परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ता है? समझाइए । Explain the impact of urbanisation and economic changes on children and adolescents.
या
किशोरों पर नगरीकरण एवं आर्थिक परिवर्तन के प्रभाव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए | Write short note on the impact of urbanisation and economic change on adolescents.
उत्तर- वर्तमान समय में गाँवों का नष्ट होना नगरीकरण के विकास को दर्शाता है। इससे यह ज्ञात होता है कि मनुष्य ने किस प्रकार आज प्रगति की है लेकिन क्या मनुष्य की यह नगरीकरण की प्रवृत्ति मात्र विकास के लिए हितकर है, क्या इसका मानव पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है? यह सत्य है कि आंज शहरीकरण ने मानव को अति आधुनिक बना दिया है। आज शहर में मनुष्य कई बातों में गाँव के लोगों से आगे है, परन्तु फिर भी ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनमें आज भी गाँव सर्वोपरि हैं।
“शहरीकरण की इस चकाचौंध में व्यक्ति अत्यधिक मस्त है परन्तु उसके समक्ष अन्य समस्याओं का आगमन भी हुआ है उससे वह अनभिज्ञ है । ” .
बालक एवं किशोरों पर नगरीकरण का प्रभाव
- हमारी संस्कृति का ध्वंस – यह सच है कि नगरीकरण ने मनुष्य को अति आधुनिक बना दिया है, परन्तु आज इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता है कि इसी शहरीकरण ने हमारी संस्कृति का हृास कर दिया है। आज का बालक अपने बड़े बुजुर्गों का आदर करना, प्रणाम करना छोड़कर हाय – हैलो करने में अपनी शान समझता है। आज के युवा के अन्दर अच्छे विचारों, विनम्रता आदि की जगह कड़वाहट ने जन्म ले लिया है।
- व्यक्तियों में पारस्परिक प्रेम का अभाव – एक समय था जब लोग आपस में मेल-जोल की भावना के साथ रहते थे । वह आपसी सुख-दुःख में बराबर के भागीदार होते थे, परन्तु आज शहरीकरण ने मानव को इस तरह बदल दिया है कि उसके आस-पास रहने वाले लोग कैसे हैं उसे यह ज्ञात करने में कोई रुचि नहीं है या कह सकते हैं कि समय ही नहीं है। इन सबका किशोरों के मस्तिष्क पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। वह इस शहरीकरण के जाल में फँसते जा रहे हैं ।
- अस्त-व्यस्त जीवन- आज का व्यक्ति अपने कामों में अत्यधिक व्यस्त रहता है। वह पैसा कमाने की होड़ में मशीन बनकर रह गया है। आज के समय में लोगों को इतना समय नहीं है कि वह अपना समय अपने माता-पिता या अन्य परिवारीजन के साथ व्यतीत कर सकें। शहरीकरण व्यक्ति को व्यक्ति से दूर कर रहा है।
- मेल – जोल एवं सहभागिता में कमी – आज के इस युग में मनुष्य का ईश्वर पैसा हो गया है तथा उसका धर्म स्वार्थ एवं लोलुपता हो गया है। वह इतना स्वार्थी हो गया है कि लोगों से मिलना-जुलना भी छोड़ दिया है, क्योंकि मिलने-जुलने से शायद उसे पैसे और धन दोनों के खर्च होने का डर होता है जबकि पहले लोग एक-दूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे, परन्तु आज नगरीकरण के इस दौर में किसी को किसी की कोई आवश्यकता नहीं है मात्र धन ही उनका सब कुछ है।
- मानसिक रूप से अवसादग्रस्त – नगरीकरण ने भले ही व्यक्ति में भारी परिवर्तन किए हैं परन्तु उसे मानसिक रूप से कमजोर भी कर दिया है। आज के युग में शहर का मनुष्य ग्रामीण मनुष्यों की अपेक्षा अत्यधिक चिड़चिड़ा हो गया है। व्यक्तियों में दृढ़ता की कमी हो गयी है। अतः किशोर बालक जो कि इस समाज को अपने नजरिये से देखता एवं समझता है उस पर इस नगरीकरण का गलत प्रभाव पड़ रहा है।
- शारीरिक रूप से कमजोर – नगरीकरण के इस युग में लोग जितने आधुनिक है उतनी ही आधुनिक बीमारियां हो रही हैं। इसका मुख्य कारण है कि उनकी दिनचर्या में कमी होती है। लोगों के पास खाने एवं सोने का समय . ठीक से निश्चित नहीं होता है। वह विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं।
- उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा- नगरीकरण ने उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा दिया है। आज जितनी भी विलासिता एवं उपभोक्ता की वस्तुएँ हैं वे सभी सार्वजनिक रूप से प्रयोग में लाई जा रही हैं। इसका परिणाम यह है कि आज व्यक्ति कामचोर एवं आलसी होता जा रहा है।
- विलासिता का भोगी-आज शहरीकरण ने मनुष्य को विलासी एवं धन का लोलुप बना दिया है। आज के नगरीकरण के इस युग में व्यक्ति मानसिक एवं शारीरिक दोनों ही रूपों में कमजोर हो गया है।
बालक एवं किशोरों में आर्थिक परिवर्तन का प्रभाव (Impact of Economic Change in Children and Adolescents)
- आर्थिक स्थिति- बालक की सामाजिक आर्थिक स्थिति में अन्तर होने के कारण व्यक्तिगत भिन्नताओं का भी आविर्भाव होता है। एक प्रतिष्ठित आर्थिक स्थिति वाले सम्पन्न परिवार के किशोर एवं निम्न सामाजिक-आर्थिक वर्ग वाले अभावग्रस्त परिवार के किशोर एवं किशोरियों में कई प्रकार की व्यक्तिगत भिन्नताएँ दृष्टिगोचर होने लगती हैं ।
- आर्थिक परिपक्वता – किशोरावस्था में प्रत्येक किशोर व किशोरी अपने आप को वयस्क स्त्री पुरुषों की भाँति प्रस्तुत करने की होड़ में धर्नाजन करना सीख जाता है। वह चाहता है कि उसे समाज में अन्य प्रतिष्ठित लोगों की तरह प्रतिष्ठा प्राप्त हो सकें। इस प्रकार की भावना से किशोरों में सामाजिक व आर्थिक गुणों का तीव्र विकास होता है।
- सामाजिक-आर्थिक रुचियों का विकास-किशोरावस्था में बालकों में सामाजिक-आर्थिक रुचियों का तीव्रता से विकास होता है। जैसे- मौजमस्ती एवं वार्तालाप में वे रुचि लेने लगते हैं। इस समाज में जीवनयापन करने के लिए धन की कितनी आवश्यकता हैं, वह इसे भली-भाँति समझते है और अपने आप को समाज के अनुसार समायोजित करने का प्रयास करते है।
- क्रोध-स्तर में वृद्धि – किशोरावस्था में यदि बालक को उसके अनुसार किसी कार्य में सन्तुष्टि नहीं होती है तो उसमें क्रोध की भावना जाग्रत होती है। वह छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ापन व्यक्त करता है। यह स्वाभाविक परिवर्तन है जो बालक की आर्थिक स्थिति में परिवर्तन के परिणामस्वरूप होता है।
- स्नेह एवं सहनशीलता की कमी–किशोर बालक जैसे-जैसे समाज के विषय में जानने एवं समझने लगते है उसकी महत्त्वकांक्षाएँ बढ़ती जाती हैं। वह किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तत्परता से प्रयास करते हैं, परन्तु जब उसके परिणाम में विलम्ब होता है तो वे अपनी सहनशीलता खो देते है। अतः किशोर में सहनशीलता का अभाव होता है। वह अपने माता-पिता एवं परिवारीजनों से स्नेह तो करता है, परन्तु समाज में व्याप्त नवीनता इस स्नेह को भ्रमित कर देती है। अतः उनके स्नेह एवं सहनशीलता में कमी आ जाती है।
- आर्थिक कुसमायोजन – यदि किशोर धनवान परिवार का है और बाल्यकाल से उसकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही हैं तो अपने भविष्य में भी वह ऐसा चाहेगा, परन्तु यदि किसी कारणवश उसकी किसी आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पाती है तो उसमें आपराधिक प्रवृत्ति की भावना का जाग्रत होना स्वाभाविक है। वह अपने कार्य की पूर्ति के लिए किसी भी प्रकार का प्रयास कर सकता है। अतः यह कहा जा सकता है कि वह आर्थिक रूप से कुसमायोजित हो जाता है।
