1st Year

भारतीय शिक्षा आयोग से आप क्या समझते हैं ? विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। What do you mean by Indian Education Commission ? Describe in detail.

प्रश्न – भारतीय शिक्षा आयोग से आप क्या समझते हैं ? विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। 
What do you mean by Indian Education Commission ? Describe in detail.
या
भारतीय शिक्षा आयोग (1964-66) के उद्देश्यों का वर्णन करो।
 Explain the objectives of Indian Education Commission (1964-66). 
या
भारतीय शिक्षा आयोग की सिफारिशें एवं सुझावों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए |
 Describe in brief the suggestions of the Indian recommendations and Education Commission.
या
1964-66 के उद्देश्यों तथा भारतीय शिक्षा आयोग, सिफारिशों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
Discuss in detail the objectives and recommendations of Indian Education Commission. 
उत्तर – परिचय (Introduction)
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् गठित “विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग” तथा “माध्यमिक शिक्षा आयोग” ने उच्च शिक्षा तथा माध्यमिक शिक्षा की समस्याओं का अध्ययन करके उनमें सुधार तथा शिक्षण के पुनर्गठन के सम्बन्ध में अपने सुझाव दिए । उनमें से कुछ सुझावों को सरकार ने क्रियान्वित किए जाने का आदेश दिया परन्तु इन सबसे वह हासिल नहीं हो सका जो हम प्राप्त करना चाहते थे। इसीलिए भारत सरकार ने सम्पूर्ण भारत में एक समान शिक्षा नीति तथा शिक्षा के विषय में सोचने-समझने के उद्देश्य से एक नये शिक्षा आयोग को गठन करने का विचार किया ।

इस विचार के फलस्वरूप भारत सरकार ने 14 जुलाई, 1964 को “भारतीय शिक्षा आयोग का गठन किया। इस आयोग के अध्यक्ष विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रो. डी. एस. कोठारी थे। इसलिए इस आयोग को अध्यक्ष के नाम पर “कोठारी आयोग भी कहा जाता है। आयोग के अन्य सदस्यों में श्री पी. एन. कृपाल, श्री एच. एल. एलविन, प्रो. सतदोशी इहारा, श्री आर. ए. गोपालस्वामी, डॉ. वी. एस. झा, डॉ. बी. पी. पाल, डॉ. त्रिगुण सेन, प्रो. एस. ए. सूमोवस्की, श्री एम. जीन थॉमस, श्री जे. पी. नायक, श्री जे. एफ. मैक्डूगल आदि थे।

भारतीय शिक्षा आयोग के उद्देश्य एवं कार्यक्षेत्र
आयोग के कार्यक्षेत्र के विषय में सरकार ने स्पष्ट किया कि आयोग शिक्षा के सभी स्तरों प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च शिक्षा तथा तकनीकी शिक्षा का अध्ययन करके उनके विकास की सम्भावनाओं पर अपने सुझाव दे । इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए आयोग को पूरे देश की तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कर उसमें सुधार हेतु सुझाव देने थे। आयोग का कार्यक्षेत्र एवं उद्देश्य इस प्रकार थे-
  1. तत्कालीन भारतीय शिक्षा प्रणाली का अध्ययन कर उसके प्रति व्याप्त असन्तोष के कारणों का पता लगाकर उसमें ‘ सुधार के लिए सुझाव देना ।
  2. सम्पूर्ण देश के लिए समान शिक्षा प्रणाली के सम्बन्ध में सुझाव॑ देना। यह शिक्षा प्रणाली भारतीय शिक्षा की वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करें तथा भविष्य के निर्माण में भी सहायक हो ।
  3. शिक्षा की व्यवस्था और प्रशासन सम्बन्धी नीति सुनिश्चित करने के सम्बन्ध में सरकार को सुझाव देना |
  4. प्रत्येक स्तर की शिक्षा के प्रसार एवं उसमें गुणात्मक सुधार के सम्बन्ध में सरकार को सुझाव देना
आयोग का प्रतिवेदन (Report of the Commission)
आयोग ने इस कार्य को पूर्ण करने के लिए कार्यकारी दल बनाए। इन दलों ने पूरे देश के सभी राज्यों के स्कूलों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों का भ्रमण कर शिक्षा से जुड़े व्यक्तियों का साक्षात्कार लिया। इसके अलावा आयोग ने शिक्षा. से जुड़े प्रश्नों की प्रश्नावली तैयार की तथा इन प्रश्नों के प्राप्त उत्तरों का भी विश्लेषण किया। साक्षात्कार, भ्रमण तथा प्राप्त उत्तरों का सांख्यिकीय विवरण तैयार कर विचार-विमर्श किया गया। इसके बाद आयोग ने 29 जून, 1966 को अपना प्रतिवेदन भारत सरकार के तत्कालीन शिक्षामन्त्री श्री एम. सी. छागला के समक्ष प्रस्तुत किया। यह प्रतिवेदन 692 पृष्ठों का है तथा तीन भागों में विभाजित हैं और इसका नाम हैं- “शिक्षा एवं राष्ट्रीय विकास” (Education and National Development)

प्रथम भाग में 6 अध्याय हैं जिनमें सभी स्तरों की शिक्षा व्यवस्था के पुनः निर्माण का विवेचन किया गया है इसमें राष्ट्रीय लक्ष्य एवं शिक्षा का स्वरूप, शिक्षकों की समृद्धि, प्रवेश सम्बन्धी नियम, शिक्षा के समान अवसरों की चर्चा की गई है। दूसरे भाग में 11 अध्याय हैं जिनमें उच्च शिक्षा, विद्यालयी शिक्षा, कृषि शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, तकनीकी शिक्षा तथा प्रौढ़ शिक्षा के सम्बन्ध में चर्चा की गई है। तीसरे भाग में 2 अध्याय हैं जिनमें शिक्षा के प्रशासन एवं आयोजन तथा अर्थव्यवस्था के स्वरूपों पर चर्चा की गई है। इन सभी अध्यायों में सभी विषयों की समस्याएँ तथा उनके समाधान को प्रस्तुत किया जा रहा है।

भारतीय शिक्षा आयोग की सिफारिशें एवं सुझाव Recommendations of Indian and (Suggestions Education Commission)
  1. शिक्षा की संरचना (Structure of Education ) – आयोग ने शिक्षा की संरचना के सम्बन्ध में निम्नलिखित सुझाव दिए-
    1. प्राथमिक शिक्षा की नवीन संरचना (New Structure of Primary Education ) आयोग ने शिक्षा की नवीन संरचना को इस प्रकार प्रस्तुत किया-
      1. 2 या 3 वर्ष की उच्चतर माध्यमिक शिक्षा,
      2. 2 या 3 वर्ष की निम्न माध्यमिक शिक्षा,
      3. 3 वर्ष की उच्च प्राथमिक शिक्षा,
      4. 4 वर्ष या 5 वर्ष की निम्न प्राथमिक शिक्षा तथा
      5. 1 से 3 वर्ष की पूर्व विद्यालय शिक्षा।
संरचना सम्बन्धी सुझाव
  1. सामान्य शिक्षा की अवधि 10 वर्ष की होनी चाहिए । इसमें प्राथमिक एवं निम्न माध्यमिक शिक्षा को सम्मिलित किया जाना चाहिए ।
  2. सामान्य शिक्षा प्रारम्भ करने से पूर्व छात्रों को एक से तीन वर्ष तक की पूर्व प्राथमिक (Pre-primary) या पूर्व विद्यालय (Pre-school) शिक्षा दी जाए।
  3. प्राथमिक शिक्षा की अवधि 7 से 8 वर्ष की होनी चाहिए। इसे दो भागों में विभाजित किया जाए –
    1. 4 से 5 वर्ष की निम्न प्राथमिक शिक्षा,
    2. 3 से 4 वर्ष की उच्च प्राथमिक शिक्षा ।
  4. निम्न माध्यमिक शिक्षा की अवधि 2 या 3 वर्ष की होनी चाहिए।
  5. निम्न माध्यमिक स्तर पर दो प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था हो-
    1. 2 या 3 वर्ष की सामान्य शिक्षा,
    2. 1 से 3 वर्ष की व्यावसायिक शिक्षा ।
  6. उच्चतर माध्यमिक शिक्षा की अवधि 2 या 3 वर्ष की होनी चाहिए।
  7. उच्चतर माध्यमिक स्तर पर दो प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था की जाए-
    1. 2 वर्ष की सामान्य शिक्षा,
    2. 1 से 3 वर्ष की सामान्य / व्यावसायिक शिक्षा।
  8. कक्षा 1 में प्रवेश लेने की आयु 6 वर्ष होनी चाहिए।
  9. माध्यमिक विद्यालय दो प्रकार के होने चाहिए-
    1. हाई-स्कूल (इनमें शिक्षा की अवधि 10 वर्ष हो)।
    2. हायर सेकेण्डरी ( इनमें शिक्षा की अवधि 12 वर्ष : हो)।
उच्च शिक्षा की संरचना
  1. 3 वर्ष का प्रथम डिग्री कोर्स,
  2. 2 या 3 वर्ष का द्वितीय डिग्री कोर्स एवं
  3. 2 या 3 वर्ष का अनुसंधान ।
संरचना सम्बन्धी सुझाव
  1. उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के बाद प्रथम डिग्री कोर्स 3 वर्ष की अवधि का हो।
  2. द्वितीय डिग्री कोर्स की अवधि 2 या 3 वर्ष की हो ।
  3. कुछ विश्वविद्यालयों में स्नातक स्कूलों की स्थापना की जाए, इनमें कुछ विषयों में 3 वर्ष के परास्नातक पाठ्यक्रम की व्यवस्था हो ।
शिक्षा के स्तर (Levels of Education)
  1. विद्यालयी शिक्षा (10 वर्ष की) में गुणात्मक उन्नति की जाए, जिससे इस स्तर पर अपव्यय में कमी की जा सके।
  2. कक्षा 10 के स्तर में इतनी उन्नति कर दी जानी चाहिए कि वह वर्तमान उच्चतम माध्यमिक के स्तर तक पहुँच जाए।
  3. विश्वविद्यालयों की उपाधियों के स्तर में सुधार करने के लिए, इन उपाधियों के पाठ्यक्रमों में अधिक प्रभावशाली विषय-वस्तु को स्थान दिया जाना चाहिए।
  4. शिक्षा के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित किया जाए।
  5. जल्द से जल्द “विद्यालय संकुलों” (School Complexes) का निर्माण किया जाए। एक संकुल में माध्यमिक स्कूल और उसके निकटवर्ती सभी प्राथमिक स्कूल होने चाहिए।
2. शिक्षा के उद्देश्य व लक्ष्य (Objectives and Aims of Education)
  1. शिक्षा व उत्पादन (Education and Production)
    1. विज्ञान की शिक्षा को माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा दोनों में अनिवार्य किया जाए ।
    2. कार्यानुभव को सम्पूर्ण शिक्षा का विशिष्ट अंग बनाया जाना चाहिए।
    3. माध्यमिक शिक्षा में अधिक से अधिक व्यवसायी विषय सम्मिलित किए जाए।
    4. उच्च शिक्षा में तकनीकी तथा कृषि शिक्षा पर बल दिया जाए।
    5. उच्च शिक्षा में विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में अनुसंधान करने को प्रोत्साहित किया जाए।
  2. सामाजिकता तथा राष्ट्रीय एकता (Socialisation and National Unity)
    1. शिक्षा के सभी स्तरों पर सामाजिक एवं राष्ट्र सेवा को अनिवार्य बना दिया जाए।
    2. “सामान्य विद्यालय पद्धति” (Common School System) को राष्ट्रीय लक्ष्य माना जाए। इस प्रणाली को 2 वर्ष की अवधि में पूरा कर दिया जाए।
    3. सामाजिक एवं राष्ट्र सेवा के कार्यक्रमों का आयोजन, अध्ययन के साथ ही किया जाए।
    4. सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता के विकास में सरकार उपयुक्त सहायता करे ।
    5. विद्यालयों में ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए जिनसे बच्चों में सामाजिकता तथा राष्ट्रीय एकता का विकास हो ।
    6. मातृभाषा को शिक्षा के सभी स्तरों पर शिक्षा का माध्यम बनाया जाए।
    7. सामाजिक एवं राष्ट्रीय चेतना का विकास स्कूलों के महत्त्वपूर्ण उद्देश्य माने जाए ।
    8. पाठ्यक्रमों में संविधान, लोकतन्त्र, नागरिकता के सिद्धान्तों को भी महत्त्व दिया जाए।
  3. शिक्षा व लोकतन्त्र (Education and Democracy)
    1. प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था अनिवार्य एवं निःशुल्क की जाए।
    2. बिना किसी भेदभाव के सभी बच्चों को शिक्षा के समान अवसर प्रदान किए जाए।
    3. माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा का विकास किया जाए। इन स्तरों पर बालकों को नेतृत्व का प्रशिक्षण दिया जाए।
    4. बच्चों में लोकतन्त्रीय मूल्यों का विकास करने के लिए समय-समय पर विद्यालयों में कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए।
    5. छात्रों में सहिष्णुता, समाजसेवा, जनहित, नैतिक मूल्यों, आत्मानुशासन के गुणों का विकास किया जाए।
  4. शिक्षा द्वारा आधुनिकीकरण (Modernisation by Education)
    1. शिक्षा में विज्ञान पर आधारित तकनीकी का प्रयोग किया जाए।
    2. शिक्षा में आधुनिकीकरण को महत्त्वपूर्ण साधन बनाया जाए।
    3. आधुनिकीकरण की प्रगति एवं प्रसार की गतियों में समन्वय स्थापित किया जाए।
    4. शिक्षा द्वारा छात्रों में स्वतन्त्र विचार, निर्णय एवं स्वतन्त्र अध्ययन की आदतों का विकास किया जाए।
    5. शैक्षिक स्तर का उन्नयन किया जाए।
  5. सामाजिक, नैतिक व आध्यात्मिक मूल्य (Social, Moral and Spiritual Values) – आयोग ने शिक्षा के द्वारा छात्रों का सामाजिक, नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करने के सम्बन्ध में निम्नलिखित सुझाव दिए –
    1. सभी शिक्षण संस्थाओं में सामाजिक, नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
    2. प्राथमिक स्कूलों में ऐसी शिक्षा की व्यवस्था रोचक कहानियों के माध्यम से दी जाए।
    3. माध्यमिक स्तर पर शिक्षा एवं छात्र आपस में विचार-विमर्श करके सही मूल्यों का चयन करें।
    4. छात्रों में सामाजिक, नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करने का दायित्व शिक्षकों का होना चाहिए।
    5. उच्च स्तर पर मूल्यों का सुदृढ़ीकरण किया जाए ।
3. शिक्षा का प्रशासन, वित्त एवं नियोजन (Administration, Finance and Planning of Education )
  1. शिक्षा को राष्ट्रीय महत्त्व का विषय माना जाए, यदि आवश्यक हो तो केन्द्र सरकार इसके सम्बन्ध में राष्ट्रीय नीति घोषित करे ।
  2. शिक्षा मन्त्रालयों में शिक्षा सलाहकार, शिक्षा सचिव पदों पर सरकारी, गैर सरकारी, भारतीय शिक्षा से सम्बन्धित विश्वविद्यालयों में से योग्य व्यक्तियों का चयन किया जाए।
  3.  “भारतीय शिक्षा सेवा” में उन्हीं व्यक्तियों का चयन किया जाए जिन्हें शिक्षण कार्य का अनुभव हो ।
  4.  “केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड” के अधिकारों में वृद्धि की जाए।
  5.  N.C.E.R.T. को विद्यालयी शिक्षा का भार सौंपा जाए।
  6. केन्द्र सरकार बजट में शिक्षा के लिए कम से कम 6% धनराशि की व्यवस्था करे ।
  7.  प्रान्तीय सरकारें शिक्षा के बजट में वृद्धि करे।
  8.  स्थानीय संस्थाओं को उनके क्षेत्र की प्राथमिक शिक्षण संस्थाओं का भार सौंपा जाए ।
  9. शिक्षा में सहयोग देने वाले व्यक्तियों को प्रोत्साहित किया जाए ।
  10.  शैक्षिक नियोजन राज्य तथा केन्द्रीय स्तर पर अलग-अलग हों।
  11.  विद्यालयी शिक्षा का नियोजन स्थानीय निकाय तथा राज्य सरकारें मिलकर करें ।
  12.  उच्च शिक्षा का नियोजन प्रान्तीय तथा केन्द्रीय सरकारें मिलकर करें ।
  13.  शैक्षिक नियोजन वर्तमान और भविष्य की सम्भावनाओं के आधार पर किया जाए।
  14.  शैक्षिक नियोजन में अपव्यय व अवरोधन को रोकने के उपाय किए जाएं ।
  15.  नियोजन में प्रसार के साथ-साथ शैक्षिक गुणात्मक सुधार की भी व्यवस्था की जाए।
  16.  कुल शिक्षा बजट का सामान्य शिक्षा पर 2/3 व्यय हो और उच्च शिक्षा पर 1 / 3 व्यय हो ।
  17.  माध्यमिक शिक्षा 70% बालकों के लिए पूर्ण शिक्षा हो और शेष 30% योग्य बालक उच्च शिक्षा में प्रवेश लें ।
4. शिक्षकों के वेतन सेवा नियुक्ति के सम्बन्ध में सुझाव ( Suggestions Regarding Salary, Service and Appointment of Teachers)
  1. भारत सरकार सभी स्तरों के शिक्षकों का वेतन निश्चित करे।
  2. सरकारी और गैर सरकारी दोनों प्रकार के शिक्षकों का वेतन समान हो ।
  3. शिक्षकों के लिए महंगाई भत्ते की व्यवस्था की जाए ।
  4. प्रत्येक 5 वर्ष बाद वेतनमान पुनर्निरीक्षित हो
  5. शिक्षकों की योग्यताओं एवं चयन की विधियों में सुधार किया जाए।
  6. शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर महिला शिक्षकों को प्रोत्साहन दिया जाए।
  7. शिक्षकों को अपना कार्य ठीक प्रकार से करने के लिए न्यूनतम सुविधाएं प्रदान की जाए।
  8. योग्य व कुशल शिक्षकों को पदोन्नति दी जाए।
  9. सभी सरकारी तथा गैर सरकारी शिक्षकों की सेवाशर्ते समान होनी चाहिए।
  10. शिक्षकों को बीमा तथा पेंशन की सुविधा दी जाए ।
  11. ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वाले अध्यापकों के निवास स्थान का प्रबन्ध किया जाए ।
  12. नगरों में कार्य करने वाले अध्यापकों को आवास किराए के लिए भत्ता दिया जाए ।
  13. अध्यापकों के लिए अध्यापन कार्य के घण्टों को निश्चित करते समय उनके द्वारा किए जाने वाले अन्य विद्यालयी कार्यों को भी ध्यान में रखा जाए। “
  14. शिक्षकों को अपनी व्यावसायिक योग्यता बढ़ाने के पर्याप्त अवसर दिए जाए।
  15. शिक्षा में प्रचलित व्यक्तिगत ट्यूशनों पर नियन्त्रण किया जाए।
  16. अध्यापकों के लिए सरकारी आवास निर्माण योजनाओं को प्रोत्साहित किया जाए ।
  17. शिक्षा मन्त्रालय द्वारा शिक्षकों को दिए जाने वाले पुरस्कारों में वृद्धि की जाए।
5. अध्यापक शिक्षा सम्बन्धी सुझाव ( Suggestions Regarding Teacher’s Education) – शिक्षा की गुणात्मक उन्नति हेतु अध्यापकों की व्यावसायिक शिक्षा का ठोस कार्यक्रम अनिवार्य हो । इस महत्त्व को ध्यान में रखकर आयोग ने अध्यापक शिक्षा के दोष तथा उसमें सुधार के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए-

अध्यापक शिक्षा के दोष 

  1. प्रशिक्षण संस्थाओं का कार्य निम्न कोटि का है ।
  2. प्रशिक्षण संस्थाओं में योग्य अध्यापकों की कमी है।
  3. पाठ्यक्रम में सजीवता, नवीनता एवं वास्तविकता का अभाव है।
  4. शिक्षण विधियों में नवीनता नहीं है ।
  5. शिक्षकों को दिया जाने वाला प्रशिक्षण परम्परागत है।
  6. प्राथमिक स्कूलों के शिक्षक प्रशिक्षण देने वाली संस्थाओं का इन विद्यालयों की दैनिक समस्याओं से कोई सम्बन्ध नहीं है ।
  7. माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक प्रशिक्षण देने वाली संस्थाओं का इन विद्यालयों की दैनिक समस्याओं से कोई सम्बन्ध नहीं है ।
अध्यापक शिक्षा के दोषों को दूर करने के लिए सुझाव ( Suggestions to Overcome the Defects of Teacher’s Education )
  1. अध्यापक शिक्षा के विषय को उच्च शिक्षा के. पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किया जाए ।
  2. अध्यापक शिक्षा के पाठ्यक्रम, अध्ययन एवं अनुसन्धान के लिए कुछ विशिष्ट विद्यालयों में “शिक्षा विभागों” (Education Departments) की स्थापना की जाए।
  3. शिक्षकों के प्रशिक्षण एवं उनके कार्यक्रमों के लिए “राज्य शिक्षक शिक्षा बोर्ड” (State Board of Teacher Education) की स्थापना की जाए।
  4. शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं को “शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय” कहा जाए ।
  5. प्रशिक्षण संस्थाओं में स्कूलों और उनके अध्यापकों की समस्याओं पर कार्य करने के लिए “प्रसार सेवा विभाग” की स्थापना की जाए।
  6. प्रशिक्षण संस्थाओं में शिक्षण अभ्यास के लिए मान्यता प्राप्त स्कूल ही चयनित किए जाएं।
  7. प्रशिक्षण संस्थाओं एवं उनसे सम्बद्ध शिक्षण-अभ्यास स्कूलों के अध्यापकों को समय-समय पर एक-दूसरे के स्थान पर कार्य करना चाहिए ।
व्यावसायिक शिक्षा की उन्नति 
  1. शिक्षण अभ्यास में गुणात्मक उन्नति के सम्बन्ध में प्रयास किए जाएं ।
  2. प्रशिक्षणार्थियों के लिए विशिष्ट कार्यक्रमों एवं पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाए।
  3. पाठ्यक्रम इस प्रकार का हो जिससे छात्राध्यापकों को विद्यालय में पढ़ाए जाने वाले विषयों के उद्देश्यों, ‘जटिलताओं तथा प्रयोजन का ज्ञान प्राप्त हो ।
  4. विश्वविद्यालयों में सामान्य एवं व्यावसायिक शिक्षा के एकीकृत पाठ्यक्रम शुरू किए जाएं।
शिक्षक प्रशिक्षण की अवधि
  1. प्राथमिक विद्यालयों के उन शिक्षकों की जिन्होंने माध्यमिक पाठ्यक्रम उत्तीर्ण किया हो, प्रशिक्षण की अवधि 2 वर्ष हो ।
  2. माध्यमिक विद्यालयों के उन शिक्षकों की जिन्होंने स्नातक परीक्षा उतीर्ण की हो, प्रशिक्षण की अवधि अभी तो 1 वर्ष हो पर कुछ समय बाद इसे भी 2 वर्ष का कर दिया जाए।
  3. एम.एड. के पाठ्यक्रम उन्हीं संस्थाओं में शुरू किए जाएं जहाँ योग्ग प्राध्यापक हो। एम.एड. का पाठ्यक्रम. 1 वर्ष 6 महीने की अवधि का हो ।
प्रशिक्षण संस्थाओं की उन्नति
  1. प्रशिक्षण महाविद्यालयों के अध्यापकों के पास, शिक्षा की उपाधि के अतिस्थित दो परास्नातक उपाधियाँ की  होनी चाहिए।
  2. प्रशिक्षण महाविद्यालयों के अध्यापकों में “डाक्ट्रेट” प्राप्त उपाधि वाले शिक्षकों का उचित अनुपात हो ।
  3. प्रशिक्षण संस्थाओं में एक प्रयोगात्मक (Experimental) विद्यालय होना चाहिए।
  4. प्रशिक्षण संस्थाओं में छात्राध्यापकों से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।
  5. प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं के अध्यापकों की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता परस्नातक के साथ बी.एड. अथवा स्नातक के साथ एम.एड. होनी चाहिए।
  6. माध्यमिक शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं के प्राध्यापकों की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता परास्नातक के साथ एम.एड. होनी चाहिए। पीएचडी उपाधि प्राप्त अभ्यर्थियों को वरीयता दी जाए।
  7. प्रशिक्षण संस्था की स्थिति में पुस्तकालयो तथा प्रयोगशालाओं की स्थिती में सुधार किया जाए।
  8. प्रशिक्षण संस्था म प्रयोग किया जा और सेमिनारों अधिकांगतः व्याख्यान विधि का के स्थान पर विचार-विमर्श किया जाए।
  9. शिक्षक प्रशिक्षण योग्य छात्र – छात्राओ को ही जाए। में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण प्रवेश दिया जाए।
  10. प्रत्येक राज्य प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षण कॉले की माँग के आधार पर प्रशिक्षण और माध्यमिक शिक्षक स्थापना की जाए।
  11. शिक्षकों को पाठ्यक्रम और विस्तार किया करने के लिए अशंकालिक पाठ्यक्रम की सुविधाओं का
6. विद्यालयी शिक्षा सम्बन्धी सुझाव (Suggestions Regarding School Education)
  1. केन्द्र में “राष्ट्रीय विद्यालय शिक्षा बोर्ड” और “भारतीय शिक्षा सेवा” की स्थापना की जाए।
  2. प्रत्येक प्रान्त में “राज्य विद्यालय शिक्षा बोर्ड” और “राज्य शिक्षा से की स्थापना की जाए।
  3. विद्यालयों में 1जला विद्यालय निरीक्षक द्वारा नियमित निरीक्षण कराया जाए।
  4. विद्यालयों के प्रशासन तथा निरीक्षण का कार्य “जिला विद्यालय बोर्ड तथा जिला शिक्षा अधिकारी के हाथ में हो।
पाठ्यचर्या सम्बन्धी सुझाव
  1. पाठ्यचर्या का निर्माण सिद्धान्तों के आधार पर किया जाए।
  2. प्राथमिक स्तर पर पूरे देश में समान पाठ्यचर्या की व्यवस्था होनी चाहिए।
  3. माध्यमिक स्तर पर पूरे देश में आधारभूत पाठ्यचर्या (Core Curriculum) होनी चाहिए।
  4. माध्यमिक शिक्षा हेतु एक आधारभूत पाठ्यचर्या के साथ व्यावसायिक पाठ्यचर्या स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर होना चाहिए ।
प्राथमिक शिक्षा की पाठ्यचर्या
  1. मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा;
  2.  गणित,
  3.  पर्यावरण का अध्ययन,
  4.  सृजनात्मक क्रियाएँ, )
  5.  कार्यानुभव,
  6.  समाज सेवा तथा
  7.  स्वास्थ्य शिक्षा
माध्यमिक शिक्षा की पाठ्यचर्या
  1. मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा
  2. हिन्दी अथवा संघीय भाषा,
  3. कोई एक यूरोपीय भाषा अथवा कोई एक शास्त्रीय भाषा,
  4. गणित,
  5. सामान्य विज्ञान,
  6. सामाजिक विज्ञान,
  7. कला,
  8. कार्यानुभव,
  9. शारीरिक शिक्षा तथा
  10. नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा |
उच्चतर माध्यमिक शिक्षा की पाठ्यचर्या ( Curriculum of Higher Secondary Education)
  1. कोई दो भाषाएं (कोई एक आधुनिक भारतीय भाषा अथवा विदेशी भाषा एवं कोई शास्त्रीय भाषा ) ।
  2. निम्न में से कोई तीन विषय-
    1. कोई तीसरी भाषा
    2. इतिहास
    3. भूगोल
    4. अर्थशास्त्र
    5. तर्कशास्त्र
    6. मनोविज्ञान
    7. समाजशास्त्र
    8. कला
    9. भौतिक शास्त्र
    10. रसायन शास्त्र
    11. गणित
    12. जीव-विज्ञान
    13. भूगर्भ शास्त्र एवं
    14. गृहविज्ञान |
त्रिभाषा सूत्र में संशोधन
  1. मातृभाषा (क्षेत्रीय भाषा अथवा प्रादेशिक भाषा ) ।
  2. हिन्दी अथवा अंग्रेजी (संघ की राजभाषा)।
  3. एक आधुनिक भारतीय भाषा या यूरोपीय भाषा या कोई शास्त्रीय भाषा ( जो पहले दोनों में न ली हो)।
शिक्षण–विधियाँ सम्बन्धी सुझाव (Suggestions Regarding Teaching Methods)
  1. शिक्षण विधियाँ लचीली व गतिशील होनी चाहिए।
  2. शिक्षण विधियाँ क्रिया प्रधान तथा रोचक होनी चाहिए
  3. नवीन शिक्षण विधियों का प्रसार करने के लिए सेमीनार, कार्यशाला (वर्कशॉप), प्रदर्शनी तथा परीक्षणों का आयोजन किया जाना चाहिए।
  4. शिक्षकों को नई-नई शिक्षण विधियों का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
  5. विद्यालयों को शिक्षण सम्बन्धी सहायक सामग्री उपलब्ध कराई जाए।
पाठ्य पुस्तकों से सम्बन्धी सुझाव (Suggestions Regarding Text Books)
  1. पाठ्य पुस्तकों को तैयार करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यापक योजना बनाई जाए।
  2. पाठ्य-पुस्तकों के सम्बन्ध में “राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद्” ने जो सिद्धान्त बनाए हैं उन्हीं के अनुसार पाठ्य पुस्तकें तैयार कराई जाएं।
  3. पाठ्य-पुस्तकों के लेखकों को पर्याप्त पारिश्रमिक देने की व्यवस्था की जाए।
  4. पाठ्य-पुस्तकें तैयार कराने, उनके परीक्षण तथा उनके मूल्यांकन का दायित्व राज्य के शिक्षा विभाग का होगा।
  5. पाठ्य-पुस्तकों के निर्माण के लिए एक विशेष समिति का गठन किया जाए।
  6. शिक्षा विभाग को पाठ्य पुस्तकों की बिक्री स्वयं न करके इस कार्य को विद्यालयों के सहकारी भण्डारों को सौंप देना चाहिए। 1
निर्देशन एवं परामर्श सम्बन्धी सुझाव ( Suggestions Regarding Guidance and Counselling)
  1. प्राथमिक कक्षाओं से ही छात्रों को निर्देशन देने का कार्य किया जाए ।
  2. शिक्षकों को प्रशिक्षण अवधि में निर्देशन सम्बन्धी ज्ञान प्रदान किया जाए।
  3. विषयों का सही चुनाव करने के लिए छात्रों को सही परामर्श दिया जाए।
  4. छात्रों की रुचि एवं योग्यता के आधार पर निर्देशन व परामर्श दिया जाए।
  5. प्रत्येक जिले के एक विद्यालय में शैक्षिक निर्देशन व परामर्श की व्यवस्था की जाए।
  6. शैक्षिक निर्देशन के द्वारा पिछड़े एवं प्रतिभाशाली छात्रों की पहचान होनी चाहिए।
  7. माध्यमिक विद्यालयों के लिए न्यूनतम निर्देशन का कार्यक्रम तैयार किया जाए।
  8. दस माध्यमिक विद्यालयों पर एक परामर्शदाता की नियुक्ति की जाए ।
मूल्यांकन सम्बन्धी सुझाव
  1. कक्षा 1 से 4 तक के छात्रों का आन्तरिक मूल्यांकन किया जाए।
  2. प्राथमिक शिक्षा की समाप्ति होने के बाद जिला स्तर पर बाह्य परीक्षा होनी चाहिए ।
  3. लिखित परीक्षाओं में सुधार करने के प्रयत्न किए जाएं।
  4. लिखित परीक्षा को वस्तुनिष्ठ, विश्वसनीय और व्यावहारिक बनाया जाए।
  5. माध्यमिक स्तर पर लिखित परीक्षाओं के अलावा मौखिक एवं निदानात्मक परीक्षाओं का भी आयोजन किया जाए।
  6. बाह्य परीक्षाओं के प्रश्न पत्रों में वस्तुनिष्ठ प्रश्न भी पूछे जाएं।
  7. आन्तरिक मूल्यांकन को इतना व्यापक बनाया जाए जिसकी सहायता से छात्रों के सभी पक्षों का मूल्यांकन किया जा सके।
  8. बाह्य परीक्षाओं में श्रेणी के स्थान पर ग्रेड प्रणाली का प्रयोग किया जाए।
  9. आन्तरिक परीक्षाओं के प्राप्तांक तथा बाह्य अलग-अलग दिखाए जाएं।
शिक्षा के प्रसार सम्बन्धी सुझाव ( Suggestions Regarding Expansion of Education)
  1. प्रत्येक राज्य के “राज्य शिक्षा संस्थान” में पूर्व प्राथमिक शिक्षा के विस्तार के लिए राज्य स्तर पर शिक्षा केन्द्र की स्थापना की जाए।
  2. अधिकाधिक प्राथमिक स्कूलों में पूर्व प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
  3. पूर्व प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना के लिए व्यक्तिगत संस्थाओं को अनुदान दिया जाए ।
  4. पूर्व–प्राथमिक विद्यालयों में विभिन्न प्रकार की शारीरिक क्रियाओं को स्थान दिया जाना चाहिए ।
  5. देश के सभी बालकों के लिए 5 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा की उत्तम व्यवस्था की जाए
  6. सन् 1985–86 तक 6 से 14 आयु वर्ग के बालकों की अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया जाए ।
  7. अपव्यय व अवरोधन को कम करने के प्रयास किए जाएं।
  8. जो बालक प्राथमिक शिक्षा से आगे न पढ़ना चाहते हों उन्हें इसी स्तर पर हस्तकौशल में निपुण कर दिया जाए।
  9. 1 किमी. की दूरी पर प्राथमिक स्कूल तथा 3 किमी. की दूरी के अन्दर उच्च प्राथमिक स्कूल सभी बालकों के लिए उपलब्ध हों।
  10. पिछड़े तथा दिव्यांग बच्चों के लिए विशिष्ट स्कूल खोले जाएं ।
  11. जल्द से जल्द आवश्यकतानुसार माध्यमिक विद्यालय खोले जाएं।
  12. माध्यमिक शिक्षा के प्रसार के लिए योजना बनाई जाए।
  13. माध्यमिक स्तर पर होने वाले अपव्यय व अवरोधन को रोका जाए।
  14. माध्यमिक विद्यालयों में छात्रों की संख्या, अध्यापकों की उपलब्धता के आधार पर निश्चित की जाए।
  15. माध्यमिक शिक्षा सभी बालकों के लिए समान रूप से उपलब्ध कराई जाए।
  16. बालिकाओं के लिए अलग से माध्यमिक स्कूल खोले जाएं। उनकी शिक्षा की व्यवस्था निःशुल्क की जाए तथा उनके लिए छात्रवृत्तियों की व्यवस्था भी की जाए।
  17. आगामी 20 वर्षों में बालिकाओं की शिक्षा का विस्तार करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
7. शैक्षिक अवसरों की समानता (Equality of Educational Opportunities)
  1. प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था निःशुल्क की जाएं।
  2. छात्रों को पाठ्य पुस्तकें निःशुल्क दी जाए।
  3. पुस्तकालय में पर्याप्त पुस्तकें हो ताकि छात्र उनका प्रयोग कर सकें ।
  4. योग्य छात्रों को शिक्षण सम्बन्धी सामग्री खरीदने के लिए आर्थिक सहायता दी जाए ।
  5. कोई भी गरीब छात्र शिक्षा से वंचित न हो, इसके लिए छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाए।
  6. माध्यमिक स्तर पर 15% योग्य छात्रों को छात्रवृत्तियाँ दी जाएं ।
  7. स्नातक था परास्नातक स्तर पर भी योग्य छात्रों के लिए छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाए ।
  8. राष्ट्रीय छात्रवृत्तियों की योजना का विस्तार एवं विकेन्द्रीकरण किया जाना चाहिए।
  9. व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को भी छात्रवृत्तियाँ प्रदान की जाए।
8. उच्च शिक्षा (Higher Education) – आयोग ने उच्च शिक्षा के सभी पहलुओं का अध्ययन किया और उनके सम्बन्ध में निम्नलिखित सुझाव दिए-
  1. विश्वविद्यालयी शिक्षा के लक्ष्य (Aims of University Education)
    1. नवीन ज्ञान की खोज करना ।
    2. सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का विकास करना।
    3. पुराने ज्ञान को नवीन ज्ञान से जोड़ना।
    4. सामाजिक न्याय एवं समानता को प्रोत्साहन देना ।
    5. उचित नेतृत्व करने वाले व्यक्तियों का निर्माण करना ।
    6. राष्ट्रीय चेतना का विकास करना ।
    7. देश में कला, विज्ञान, कृषि, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा’ एवं अन्य व्यवसायों के लिए कुशल प्रशिक्षित व्यक्तियों का निर्माण करना ।
    8. प्रतिभाशाली युवकों की खोज करना और उनकी प्रतिभाओं के विकास में सहायता करना ।
  2. विश्वविद्यालयों की स्थापना (Establishment of Universities)
    1. नए विश्वविद्यालय “विश्वविद्यालय अनुदान आयोग” की स्वीकृति के बाद ही स्थापित किए जाएं।
    2. जिन स्थानों पर कोई विश्वविद्यालय न हो, पहले उन्हीं स्थानों पर विश्वविद्यालय स्थापित किए जाएं।
    3. नए विश्वविद्यालयों का सबसे पहला कार्य शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाना होगा।
    4. कई परास्नातक महाविद्यालयों को संगठित करके उसे नए विश्वविद्यालय का रूप प्रदान किया जा सकता है।
  3. वरिष्ठ विश्वविद्यालय (Senior University)
    1. इन विश्वविद्यालयों का भार “विश्वविद्यालय अनुदान आयोग” वहन करे ।
    2. इन विश्वविद्यालयों में अति प्रतिभाशाली छात्रों को ही प्रवेश दिया जाए।
    3. इन विश्वविद्यालयों में छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाए।
    4. कुछ विश्वविद्यालयों में परास्नातक शिक्षा तथा अनुसन्धान कार्य पर विशेष बल दिया जाए।
    5. शिक्षकों की नियुक्ति राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर की जाए।
    6. शिक्षकों के लिए शोध कार्य की व्यवस्था की जाए।
    7. इन विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा हेतु शिक्षकों का निर्माण किया जाए।
  4. पाठ्यचर्या (Curriculum)
    1. स्नातक स्तर का पाठ्यचर्या 3 वर्ष की हो, तथा इस स्तर पर सामान्य और ऑनर्स दोनों प्रकार की पाठ्यचर्या की व्यवस्था हो ।
    2. नए-नए विषयों का समावेश किया जाए, जिससे छात्र अपनी रुचि के अनुसार विषयों का चयन कर सकें।
    3. परास्नातक स्तर पर एक विषय का ही गहनता से अध्ययन कराया जाए।
    4. भारतीय भाषाओं, विदेशी भाषाओं, शास्त्रीय भाषाओं की शिक्षा की समुचित व्यवस्था की जाए।
  5. शिक्षा का माध्यम (Medium of Education)
    1. स्नातक स्तर पर शिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषाएँ और परास्नातक स्तर पर शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी हो ।
    2. संस्थाओं में कार्यरत प्राध्यापकों को दो भाषाओं का ज्ञान हो ।
    3. भारतीय भाषाओं के विकास के लिए उच्च अध्ययन केन्द्रों की व्यवस्था की जाए।
    4. विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में अंग्रेजी का . अध्ययन करने के लिए छात्रों को विशेष सुविधाएँ दी जाएं ।
  6. शिक्षण में सुधार (Improvement in Teaching)
    1. छात्रों में रटने की प्रवृत्ति को समाप्त कर समझने की प्रवृत्ति का विकास किया जाए ।
    2. उत्तम प्रकार के पुस्तकालयों की व्यवस्था की जाए।
    3. व्याख्यान के बाद उसे आत्मसात करने के लिए समय दिया जाए।
    4. स्वाध्याय, विचार-विमर्श तथा समस्या समाधान विधि को भी महत्व दिया जाए ।
    5. बीच सत्र में किसी भी शिक्षक को संस्था छोड़कर जाने की अनुमति न दी जाए ।
    6. एक साथ सात दिन से ज्यादा शिक्षकों को अवकाश न दिया जाए ।
    7. शिक्षण विधियों में सुधार हेतु “विश्वविद्यालय अनुदान आयोग” द्वारा एक समिति का गठन किया जाए।
  7.  मूल्यांकन (Evaluation)
    1. “केन्द्रीय परीक्षा सुधार समिति बनाई जाए जो परीक्षा प्रणाली में सुधार हेतु सुझाव देकर नियम बनाए और इन नियमों से विश्वविद्यालयों को अवगत कराए ।
    2. बाह्य परीक्षा प्रणाली को समाप्त कर आन्तरिक परीक्षा तथा क्रमिक मूल्यांकन की व्यवस्था की जाए।
    3. विश्वविद्यालयों में सेमिनारों, वर्कशॉपों तथा सम्मेलनों के द्वारा शिक्षकों को मूल्यांकन की नई विधियों से अवगत कराया जाए।
    4. एक परीक्षक को पूरे वर्ष में 500 से ज्यादा उत्तर पुस्तिकाएँ मूल्यांकन के लिए न दी जाए ।
    5. उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन करने के लिए कोई भी पारिश्रमिक शिक्षकों को न दिया जाए।
  8. अन्य सुझाव (Other Suggestions)
    1. छात्रों के लिए प्रवेश सम्बन्धी नियमों का निर्माण कराया जाए।
    2. योग्य छात्रों को ही प्रवेश दिया जाए।
    3. विद्यार्थियों की संख्या, शिक्षक संख्या तथा शिक्षण सुविधाओं के आधार पर निश्चित की जाए।
    4. विश्वविद्यालयों को कार्य करने की पूर्ण स्वतन्त्रता दी जाए।
    5. विश्वविद्यालयों के प्रशासन में सुधार किया जाए।
    6. महाविद्यालयों में प्राचार्य की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जाए, जो महाविद्यालय की समस्याओं का निदान करे।
    7. छात्रों एवं शिक्षकों की संयुक्त समितियों का गठन किया जाए।
    8. उच्च श्रेणी के महाविद्यालयों को स्वायत्त ‘महाविद्यालयों में बदला जाए। उन्हें उच्च शिक्षा का स्तर ऊँचा उठाने के लिए कहा जाए।
    9. संस्थाओं में शिक्षकों की नियुक्ति राष्ट्रीय स्तर पर की जाए।
    10. विश्वविद्यालयी परीक्षा प्रणाली तथा मूल्यांकन प्रणाली में सुधार किया जाए।
9. स्त्री शिक्षा सम्बन्धी सुझाव ( Suggestions Regarding Women’s Education)
  1. माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं की शिक्षा के विस्तार की गति तीव्र कर दी जाए ।
  2. बालिकाओं के लिए अलग विद्यालयों एवं छात्रावासों की व्यवस्था की जाए।
  3. बालिकाओं के लिए छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाए।
  4. गृह – विज्ञान एवं सामाजिक कार्य के पाठ्य-विषयों का विस्तार किया जाए।
  5. एक या दो विश्वविद्यालयों में स्त्री शिक्षा से सम्बंधित “अनुसन्धान इकाइयों” (Research Units) की स्थापना की जाए।
  6. स्त्रियों को कला, विज्ञान, मानवशास्त्र, तकनीकी आदि विषयों के अध्ययन के चुनाव की सुविधा प्रदान की जाए।
  7. स्त्रियों के लिए अलग से स्नातकोत्तर महाविद्यालयों की व्यवस्था की जाए।
पाठ्यचर्या (Curriculum)
  1. कक्षा 10 तक पाठ्यक्रम एक समान हो। कंपल कार्यानुभव या भाषा में चुनाव करने का अधिकार दिया जाए।
  2. माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं की रुचि के अनुसार गृहविज्ञान की शिक्षा दी जाए।
  3. संगीत तथा कला की शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
  4. छात्राओं को विज्ञान अथवा गणित का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
स्त्री शिक्षा का विस्तार (Expansion of Women’s Education)
  1. स्त्री शिक्षा के विस्तार के लिए आर्थिक सहायता दी  जाए।
  2. स्त्री शिक्षा की समस्याओं को समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाए जाए।
  3. केन्द्र एवं राज्य दोनों ही अपने-अपने स्तर से स्त्री शिक्षा का निरीक्षण करें।
  4. पुरुषा और स्त्रियों की शिक्षा के मध्य आए अन्तर को समाप्त किया जाए
10. प्रौढ़ शिक्षा सम्बन्धी सुझाव (Suggestions Regarding Adult Education)
  1. केन्द्र में राष्ट्रीय पि of Adult Education क बार्ड” (National Board किया जाए ।
  2. राज्यों में राज्य प्रौढ़ शिक्षा बार्ड” की स्थापना की जाए।
  3. गाँवों तथा जिला स्तर पर “प्रौढ़ शिक्षा समिति” का गठन किया जाए।
  4. प्रौढ शिक्षा के लिए पर्याप्त बजट की व्यवस्था की जाए।
  5. प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों में छात्र शिक्षक तथा समाज सेवी संस्थाओं का सहयोग लिया जाए।
  6. प्रौढ शिक्षा के महत्व को करने तथा उसका प्रसार करने के लिए जनसंचार के साधनों का प्रयोग किया जाए।
  7. ग्रामीण महिलाओं को साक्षर बनाने के लिए ग्राम सेविकाओं का सहयोग लिया जाए।
  8. विद्यालयों के मुस्तकाल उपलब्ध कराया जाए अवसाक्षर प्रौढ़ों के लिए उपलब्ध कराया जाए।
  9. कामगार प्रोटों के लिए जाए। कालीन पाठ्यक्रम चलाए जाए।
  10. प्रोढ़ों की शिक्षा के व्यवस्था भी की जाए लिए वाचार पाठ्यक्रमों की व्यवस्था भी की जाए।
11. विज्ञान की शिक्षा के संबंध में सुझाव (Suggestions Regarding Science Enneation)
  1. विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा को देश के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास से सम्बन्धित किया जाना चाहिए ।
  2. विज्ञान एवं गणित के पाठ्यक्रमों में संशोधन किया  जाना चाहिए।
  3. शिक्षा की व्यवस्था के लिए योग्य अध्यापकों की व्यवस्था की जाए।
  4. विज्ञान के सैद्धानिक एवं प्रायोगिक पक्षों में समन्वय स्थापित किया जाए।
  5. देश की आवश्यकता पूर्ति के लिए विज्ञान के छात्रों की संख्या में वृद्धि की जाए।
  6. प्रत्येक महाविद्यालय एवम विश्वविद्यालय में विज्ञान की सुसन्जित प्रयोगशालाओं की व्यवस्था की जाए।
  7. अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भारतीय वैज्ञानिकों को भारत में शिक्षण कार्य करने के लिए आमंत्रित किया जाए ।
  8. भौतिकशास्त्र एवं रसायनशास्त्र का विकास करने के लिए प्रयास किए जाएं।
  9. एम. एस. सी. के 2 वर्ष के कोर्स के अतिरिक्त 1 वर्ष का कोई विशेष कोर्स वैज्ञानिक, औद्योगिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए शुरू किया जाए ।
  10. “विश्वविद्यालय अनुदान आयोग” समय-समय पर विज्ञान शिक्षा का निरीक्षण करने के लिए एक समिति का गठन करें ।
12. कृषि शिक्षा सम्बन्धी सुझाव ( Suggestions Regarding Agriculture Education)
  1. प्रत्येक राज्य में कम से कम एक कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किया जाए।
  2. इन विश्वविद्यालयों में कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान की उत्तम व्यवस्था की जाए ।
  3. इन विश्वविद्यालयों में योग्य शिक्षकों की नियुक्ति की जाए।
  4. छात्रों के लिए छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाए।
  5. कृषि शिक्षा के अध्यापकों के लिए प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना की जाए।
  6. कृषि विश्वविद्यालयों में प्रायोगिक कार्यों पर अधिक बल दिया जाए ।
  7. नवीन कृषि महाविद्यालयों की स्थापना के स्थान पर पुराने महाविद्यालयों में सुधार किया जाए ।
  8. प्रत्येक कृषि महाविद्यालय के पास 200 एकड़ भूमि का फार्म होना चाहिए।
  9. प्रत्येक कृषि विश्वविद्यालय के पास 1,000 एकड़ भूमि का फार्म होना चाहिए।
  10. डिग्री कोर्स की अवधि 10 वर्ष की तथा विद्यालयी शिक्षा के बाद 5 वर्ष की होनी चाहिए।
  11. ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के प्राथमिक विद्यालयों में कृषि सम्बन्धी जानकारी को सामान्य शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाया जाए।
  12. विद्यालयी स्तर पर कृषि को कार्यानुभव का अंग बनाया जाए ।
  13. अध्यापक शिक्षा में कृषि एवं ग्रामीण समस्याओं को भी स्थान दिया जाए।
13. व्यावसायिक व तकनीकी शिक्षा सम्बन्धी सुझाव (Suggestions Regarding Commercial Education and Technical Education)
  1. विद्यालयी स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा के पाठ्यक्रम को सम्पूर्ण होना चाहिए।
  2. उद्योगों की मांग के अनुसार तकनीकी संस्थाओं का विस्तार किया जाना चाहिए ।
  3. जूनियर तकनीकी स्कूलों को तकनीकी हाई स्कूलों की संज्ञा दी जाए।
  4. नए प्राविधिक महाविद्यालय की स्थापना औद्योगिक क्षेत्रों में की जाए।
  5. जो प्राविधिक महाविद्यालय ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे हैं उनमें कृषि से सम्बन्धित उद्योगों की शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
  6. प्राविधिक महाविद्यालयों में बालिकाओं की रुचियों को ध्यान में रखकर पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाए।
  7. प्राविधिक महाविद्यालयों में होने वाले अपव्यय को  रोकने के लिए प्रयास किए जाएं।
  8. जो तकनीकी महाविद्यालय उच्च स्तर की शिक्षा प्रदान नहीं कर रहे हैं, उनमें या तो सुधार किया जाए या उन्हें तुरन्त बन्द कर दिया जाए।
  9. इन्जीनियरिंग की शिक्षा के पाठ्यक्रमों को वर्तमान आवश्यकताओं के आधार पर निर्मित किया जाए।
  10. पाठ्यक्रमों में विशेषज्ञों के परामर्श के अनुसार संशोधन किया जाए ।
  11. छात्रों को अन्तिम वर्ष में व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
  12. प्रतिभाशाली व्यक्तियों को शिक्षण के प्रति आकर्षित करने के लिए शिक्षकों के वेतन में वृद्धि की जाए।
  13. तकनीकी संस्थानों में उच्च अध्ययन केन्द्रों की स्थापना की जाए।
14. विज्ञान शिक्षा एवं अनुसन्धान सम्बन्धी सुझाव (Suggestions Regarding Science Education and Research)
  1. विज्ञान की शिक्षा प्रारम्भिक कक्षाओं से ही देनी शुरू की जाए।
  2. राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान का पुनर्गठन कराया जाए। यह विज्ञान शिक्षा के विस्तार के लिए उत्तरदायी है।
  3. हमारे देश में वैज्ञानिक शोधों पर केवल 0.03% व्यय किया जाता है इसे बढ़ाया जाए।
  4. विज्ञान शिक्षा के स्नातक, परास्नातक तथा विशेष पाठ्यक्रमों में सुधार कर उन्हें प्रगतिशील बनाया जाए।
  5. विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान की उचित व्यवस्था की जाए। इन अनुसंधान कार्यों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का बनाया जाए ।
  6. “उच्च अध्ययन केन्द्रों की स्थापना की जाए इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग आर्थिक सहायता प्रदान करें।
  7. विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों में शोध कार्य तथा विज्ञान की शिक्षा के लिए उत्तम प्रकार की प्रयोगशालाओं की व्यवस्था की जाए।
  8. विज्ञान की शिक्षा के लिए योग्य व अनुभवी शिक्षकों की नियुक्ति की जाए।
  9. विज्ञाम की शिक्षा लेने वाले छात्र/छात्राओं के मूल्यांकन में प्रायोगिक कार्य को सैद्धान्तिक परीक्षा से ज्यादा महत्व दिया जाए।
  10. जो छात्र / छात्राएँ शोध कार्य कर रहे हैं उन्हें शोध के लिए आर्थिक सहायता की व्यवस्था की जाए।
  11. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विख्यात वैज्ञानिकों को व्याख्यानं हेतु भारत में बुलाया जाए। जिनमे से कुछ को 1 से 3 वर्ष के लिए विजिटिंग प्रोफेसर नियुक्त किया जाए।
15. छात्र नामांकन एवं मानव शक्ति (Student Enrollment and Man Power) 
  1. शिक्षा को महत्त्व का विषय समझा जाए इस पर केन्द्रीय बजट का 6% व्यय किया जाए। प्रान्तीय सरकारें भी शिक्षा हेतु अधिक से अधिक वित्त की व्यवस्था करें।
  2. प्रत्येक स्तर की शिक्षा पर छात्रों के प्रवेश सम्बन्धी राष्ट्रीय नीति का निर्धारण किया जाए।
  3. 6 से 14 आयु वर्ग के बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
  4. शिक्षा को जन शिक्षा के रूप में विकसित करने के लिए प्रत्येक नागरिक की निरक्षरता को दूर करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
  5. माध्यमिक स्तर पर छात्रों के प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा कराई जाए जिससे योग्य छात्र ही माध्यमिक शिक्षा में प्रवेश ले सकें ।
  6. उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए कठोर नियम बनाए जाएं केवल योग्य एवं प्रतिभाशाली युवाओं को ही उच्च शिक्षा में प्रवेश दिया जाए ।
  7. व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा तथा कृषि शिक्षा में प्रवेश स्थानीय क्षेत्रों की आवश्यकताओं को देखते हुए दिए जाएं।
  8. प्रतिभाशाली छात्रों की प्रतिभाओं को और अधिक विकसित करने के लिए उन्हें अधिक से अधिक अवसर दिए जाएं।
  9. मानव शक्ति को अद्यतन एवं उपयोगी बनाने के लिए सतत शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
  10. किसी भी स्तर की शिक्षा का विस्तार रोजगार के अवसरों को ध्यान में रखकर दिया जाए।

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