1st Year

भावात्मक एकता का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए । Write the meaning and definition of Emotional Integration.

प्रश्न  – भावात्मक एकता का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए । Write the meaning and definition of Emotional Integration.
या
वैश्वीकरण के सम्बन्ध में भावनात्मक एकीकरण का अर्थ तथा आवश्यकता का वर्णन कीजिए। स्कूली बच्चों में भावनात्मक एकीकरण के विकास में शिक्षा की भूमिका का भी विस्तृत वर्णन कीजिए |
Discuss the meaning and need of emotional integration in the context of Globalisation, Also discuss the role of education in developing emotional integration among the school children. 
उत्तर- भावात्मक एकीकरण का अर्थ एवं परिभाषा
मनुष्य एक भावना प्रधान प्राणी है। वह केवल अपनी भौतिक आवश्यकताओं के लिए ही एक-दूसरे पर निर्भर नहीं करते वरन् अपनी भावात्मक संतुष्टि के लिए भी एक दूसरे पर आश्रित रहते हैं। दो व्यक्तियों में जाति, धर्म, भाषा, राष्ट्र, वेशभूषा या आयु इत्यादि अनेक प्रकार की विभिन्नताएँ होने के बावजूद केवल मनुष्य मात्र होने की भावना उन्हें एक दूसरे से जोड़ कर रखती है।

भावात्मक एकता का क्षेत्र दो व्यक्तियों से लेकर सम्पूर्ण मानव जाति का हो सकता है अर्थात् इस शब्द का प्रयोग दो व्यक्तियों के मध्य व्यक्तिगत आधार पर विकसित एकता से लेकर जातीय, सामुदायिक क्षेत्रीय, धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक विकसित एकता से लिया जा सकता है। अतः भावात्मक एकता राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय एकता दोनों के लिए नितान्त आवश्यक है।

राष्ट्रीय एकता का तात्पर्य राष्ट्र के सम्पूर्ण निवासियों में विचारों और भावनाओं की एकता से है। भावात्मक एकता से तात्पर्य उस भावना के विकास से है जो किसी राष्ट्र के निवासियों को रक्त, वर्ण, धर्म, जाति, स्थान, खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज, आचार-विचार, मूल्य मान्यताओं, जीवन-यापन की विधियों, आर्थिक स्तर, सामाजिक स्तर, राजनीतिक चिन्तन, भाषा, साहित्य आदि में भिन्नता रखते हुए संवेगात्मक रूप से समन्वित करते हुए एकता के सूत्र में आबद्ध करती है। भावात्मक एकता का विकास होने पर राष्ट्र के सभी लोंग पारस्परिक मतभेदों को भुलाकर अपने व्यक्तिगत हितों को त्यागकर राष्ट्रहित के लिए सबकुछ समर्पित करने को तत्पर रहते हैं ।

सामान्यतः राष्ट्रीय एकता और भावात्मक एकता इन दोनों शब्दों का प्रयोग समान रूप से किया जाता है किन्तु राष्ट्रीय एकता भावात्मक एकता से अधिक व्यापक और विस्तृत है। भावात्मक एकता राष्ट्रीय एकता का एक आवश्यक तत्त्व है। राष्ट्रीय एकता के अन्तर्गत ऐसे अनेक तत्त्व हो सकते हैं लेकिन इन सब तत्त्वों में भावात्मक एकता का तत्त्व सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। हमारी राष्ट्रीय एकता बहुत कुछ भावात्मक एकता पर ही निर्भर करती है। यही कारण है कि हम राष्ट्रीय एकता के अन्य तत्त्वों को उतना महत्त्व नहीं देते जितना भावात्मक एकता को देते हैं। इस प्रकार भावात्मक एकता से आशय है विचारों और भावनाओं की एकता । भावात्मक एकता से तात्पर्य उस भावना के विकास से है जो किसी राष्ट्र के निवासियों को सभी मतभेदों से ऊपर उठाकर संवेगात्मक रूप से समन्वित करते हुए एकता के सूत्र में बाँधती है।

पं. जवाहर लाल नेहरू के अनुसार, “भावात्मक एकता से मेरा तात्पर्य है हमारे विचारों और भावनाओं की एकता तथा पृथकता की भावनाओं का दमन ।”
According to Pt. Jawahar Lal Nehru, “By emotional integration, I mean the integration of our minds, hearts and the suppression of feelings of separatism.”
राष्ट्रीय एवं भावात्मक एकता की आवश्यकता
किसी विकासशील राष्ट्र की सुदृढ़ता एवं अस्तित्व उसके नागरिकों में राष्ट्रीय एकता के विकास पर निर्भर है। हमारा देश बहुधर्मी, बहुसंस्कृति, बहुजातीय एवं बहु भाषायी है फिर भी सभी लोग सम्मिलित रूप से राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बँधे हुए हैं परन्तु अत्यधिक आधुनिकता के प्रभाव से आज प्रत्येक व्यक्ति ने स्वयं के हित के आगे राष्ट्र हित का विस्मरण कर दिया है जिससे राष्ट्रीय एकता की डोर कमजोर पड़ गई है और इसका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है जिस कारण हमारे देश में राष्ट्रीय एकता लाने की अत्यधिक आवश्यकता है।
  1. राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से किसी भी देश की सुरक्षा उस देश में राष्ट्रीय एकता पर निर्भर करती है। देश की रक्षा हेतु सीमा सुरक्षा बल तैयार किया जाता है जो सीमा पर दुश्मनों से राष्ट्र की रक्षा करने के लिए तत्पर रहते हैं परन्तु कुछ व्यक्ति दुश्मनों के हितैषी होते हैं जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न कर सकते हैं। अतः इस दृष्टि से इन सभी को राष्ट्रहित से सम्बद्ध किया जाना चाहिए।
  2. वर्ग – संघर्ष की समाप्ति की दृष्टि से-वर्गीय विषमता एवं संघर्ष लगभग प्रत्येक राष्ट्र में देखने को मिलता है। भारत में इन वर्गों में प्रायः जाति, धर्म, क्षेत्र एवं संस्कृति इत्यादि के आधार पर संघर्ष देखने को मिलता रहता है। इसके अतिरिक्त राजनैतिक दलों, उद्योगपतियों, मजदूरों एवं सरकारी कर्मचारियों में भी संघर्ष देखने को मिलता रहता है। परिणामतः इन सभी संघर्षो में दंगे, तोड़-फोड़, आगजनी, कामबन्दी / हड़ताल आदि व्यवधान उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार के वर्गीय संघर्षो को रोकने की दृष्टि से देश में राष्ट्रीय एकता लाना परम आवश्यक है।
  3. हम की भावना के विकास की दृष्टि से प्रत्येक राष्ट्र में वर्गीय संघर्ष समाप्त करने एवं नागरिकों के मध्य ‘हम’ की भावना लाने के लिए राष्ट्रीय एकता की परम आवश्यकता है। नाम, धर्म, जाति, भाषाएँ एवं क्षेत्रों के अलग होते हुए भी वे ‘हम की भावना’ के द्वारा राष्ट्र के अस्तित्व की रक्षा हेतु अपने व्यक्तिगत हितों को त्यागकर राष्ट्रहित हेतु एकता के सूत्र में बँधे रहें ।
  4. लोकतान्त्रिक शासन में आस्था की दृष्टि से हमारा देश एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र है। यहाँ प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार दिये गए हैं परन्तु फिर भी नागरिकों की आस्था शासन तन्त्र की सुदृढ़ता में नहीं होती और वे अपने अधिकारों का उचित प्रयोग लोकतन्त्र की स्थापना में नहीं करते। उनमें लोकतन्त्र की आस्था राष्ट्रीय एकता के द्वारा ही उत्पन्न हो सकती है।
  5. क्षेत्रीय-संकीर्णता की समाप्ति की दृष्टि से हमारे देश में राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्नता विद्यमान है और दूसरी ओर कुछ विघटनकारी तत्व इन प्रान्तों में क्षेत्रीय – संकीर्णता उत्पन्न करने का प्रयास करते रहते हैं। जिसके परिणामस्वरूप इन प्रान्तों में क्षेत्रीय संकीर्णता तथा संघर्ष जन्म लेने लगते हैं तथा सीमा विवाद, विघटन, व्यापारिक विवाद इत्यादि बढ़ता है। जिसके कारण ये क्षेत्र अपने पृथक अस्तित्व की मांग करने लगते हैं।
    भारत में झारखण्ड, उत्तरांचल, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश आदि क्षेत्रीय – संकीर्णता का ही परिणाम हैं। अतः क्षेत्रीय-संकीर्णता की समाप्ति तथा इस विभाजन को रोकने की दृष्टि से राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है ।
  6. विघटनकारी तत्वों के उन्मूलन की दृष्टि से–चूँकि हमारे देश में विभिन्न भाषाओं, जातियों, धर्मों, संस्कृतियों इत्यादि के आधार पर भिन्नता पाई जाती है परन्तु फिर भी सभी के मध्य एक समानता या एकता देखने को मिलती है जो उन्हें आपस में जोड़े रखती है परन्तु कुछ विघटनकारी तत्व देश के नागरिकों में जाति, वर्ग, धर्म, क्षेत्र या भाषा आदि के आधार पर फूट डालने का प्रयत्न करते हैं उन्हें हिन्दू-मुस्लिम, पिछड़े एवं अनुसूचित आदि जातियों के आधार पर अलग अधिकारों की माँग करने को प्रोत्साहित करते हैं। अतः राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए वैयक्तिक, क्षेत्रीय, जातीय, भाषायी भिन्नता एवं स्वार्थ को समाप्त करने की दृष्टि से राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है।
  7. राष्ट्रीय उन्नति एवं जीवन स्तर को उठाने की दृष्टि से किसी भी राष्ट्र का सम्पूर्ण विकास इस बात पर निर्भर करता है कि उसके विभिन्न भागों में राष्ट्रीय एकता का समावेश हो तथा उनकी नीतियों – रीतियों एवं जनसहयोग की सम्पूर्ण सहभागिता हो । राष्ट्रीय उन्नति को अग्रसर करने हेतु सर्वप्रथम राष्ट्र संचालनकर्ता राष्ट्रहित को ध्यान में रखे तत्पश्चात् वह उचित नीतियों, योजनाओं का आयोजन करें। जिससे राष्ट्र का आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक विकास हो तथा नागरिकों का जीवन स्तर ऊँचा उठे ।
    अतः उपरोक्त सभी दृष्टिकोणों को ध्यान में रखते हुए किसी राष्ट्र की सम्पूर्ण प्रगति एवं सुचारु व्यवस्था, शान्ति व्यवस्था, सद्भावना, भाईचारा, सुरक्षा, सम्पूर्ण विकास आदि स्थापित करने की दृष्टि से राष्ट्रीय एकता की परम आवश्यकता है।
भावात्मक एकता स्थापित करने में शिक्षा की भूमिका
राष्ट्रीय एकता स्थापित करने में शिक्षा की भूमिका निम्न प्रकार से स्पष्ट की जा सकती है –
  1. दैनिक प्रातः सभा कार्यक्रम (Daily Morning Assembly Programme) – सभी विद्यालयों का कार्यक्रम 15 मिनट की दैनिक सामूहिक सभा से आरम्भ होना चाहिए। इसमें राष्ट्रगान, नैतिक शिक्षा आदि की बातें बच्चों को बताई जानी चाहिए। समय-समय पर राष्ट्रीय एकता पर भाषण दिये जाने चाहिए। बच्चों को अपनी राष्ट्रभाषा, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करने के बारे में बताना चाहिए। इस सभा में दैनिक प्रार्थना का विशेष महत्त्व होता है। अतः ऐसी प्रार्थना का चयन करना चाहिए जिसमें देश-प्रेम, ईश्वर की भक्ति की स्पष्ट झलक दिखाई पड़ती हो । सप्ताह में एक दिन इसके लिए नियत किया जा सकता है ।
  2. महापुरुषों के जन्मदिन का आयोजन (To Celebrate Birth Anniversaries of Prominent Persons) – भारत के स्वतन्त्रता सेनानियों और महापुरुषों के जन्म दिवस विद्यालय में मनाए जाने चाहिए । पण्डित नेहरू, सरदार पटेल, शास्त्री, डॉ. राधाकृष्णन, इन्दिरा गाँधी, लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, मौलाना आजाद, चन्द्रशेखर आजाद, स्वामी विवेकानन्द आदि महापुरुषों के जन्म दिवस पर इनके जीवन के प्रेरक प्रसंग सुनाए जाने चाहिए जिससे छात्र राष्ट्र के लिए कुछ करने का संकल्प ले सकें। साथ ही 30 जनवरी (राष्ट्रपिता), 31 अक्टूबर (इन्दिरा जी), 21 मई ( राजीव गाँधी) बलिदान दिवस के रूप में मनाए जाने चाहिए।
  3. राष्ट्रीय पर्वों का आयोजन (To Celebrate National Festivals) – स्वतन्त्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस, शहीद दिवस, गाँधी जयन्ती आदि राष्ट्रीय पर्वो पर छात्रों के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास और अनेक बलिदानों के बाद प्राप्त की गयी स्वतन्त्रता के विषय में बताया जाना चाहिए। इसकी रक्षा करने के लिए सबको प्रतिज्ञा लेनी चाहिए। पिछले कुछ वर्षों से इन राष्ट्रीय पर्वों पर अनेक विद्यालयों में अवकाश घोषित कर दिया जाता है जो अनुचित है। इन पर्वों पर किसी महान विभूति को भी आमन्त्रित किया जाना चाहिए ।
  4. विद्वानों के व्याख्यानों का आयोजन ( To Organise Lectures from Eminent Scholars) – समय-समय पर राष्ट्र की स्वाधीनता, अखण्डता, विकास और अन्य अनेक राष्ट्रीय समस्याओं से सम्बन्धित विषयों पर विद्वानों के व्याख्यान आयोजित किए जाने चाहिए जिससे छात्रों में राष्ट्रीयता की भावना पैदा हो सके। विषय विशेषज्ञ, विचारक, दार्शनिक, इतिहासकार इस दिशा में सार्थक भूमिका निभा सकते हैं और अनेक सारगर्भित एवं प्रेरणाप्रद व्याख्यान हमारे जीवन को एक उचित दिशा एवं सम्बल प्रदान कर सकते हैं ।
  5. धार्मिक उत्सवों का आयोजन (To Celebrate Religious Functions) – विद्यालयों में दीपावली, होली, ईद, दशहरा, गुरूपर्व, क्रिसमस आदि धार्मिक त्योहारों का आयोजन  किया जाना चाहिए, जिनमें सभी धर्मों के छात्र भाग लें। इन अवसरों पर छात्रों को बताया जाना चाहिए कि ये त्योहार किसी धर्म विशेष के न होकर प्रत्येक भारतवासी के हैं। छात्रों को सिखाया जाना चाहिए कि उन्हें एक दूसरे के त्योहारों को पूरे मन से उल्लास के साथ मनाना चाहिए ताकि देश में आनन्द एवं सौहार्द का वातावरण बना रहे तथा लोग अपने त्योहारों को मनोयोग से मना सकें |
  6. प्रतियोगिताओं का आयोजन (To Organise Competitions) – समय समय पर राष्ट्रीय एकता से सम्बन्धित विषयों पर भाषण, वाद-विवाद, पत्र-पठन, निबन्ध, नाटक और अन्य साहित्यिक व सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाना चाहिए जिससे छात्रों में राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास हो सके। प्रतियोगिताओं का आयोजन करते समय किसी प्रकार के पक्षपात या पूर्वाग्रहों को स्थान नहीं दिया जाना चाहिए।
  7. प्रदर्शनियों का आयोजन (To Organise Exhibitions) – विद्यालयों में समय-समय पर प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाना चाहिए। इन प्रदर्शनियों में राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति की झांकी प्रस्तुत की जानी चाहिए जिससे छात्रों में राष्ट्र गौरव के भाव पैदा हो सकें विभिन्न प्रकार की प्रदर्शनियों का आयोजन महत्वपूर्ण तिथियों पर भी किया जा सकता है। जैसे- जनसंख्या दिवस, पर्यावरण दिवस, शिक्षक दिवस आदि। ये प्रदर्शनियाँ स्वयं में ही हमारी संस्कृति की झलक स्पष्टं करेंगी।
  8. राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षकों का आदान-प्रदान (Exchange of Teachers at National Level) – प्राथमिक, माध्यमिक और विश्वविद्यालय स्तर के शिक्षकों का राष्ट्रीय स्तर पर आदान-प्रदान किया जाना चाहिए। जब भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी और जाति, धर्म, सम्प्रदाय तथा प्रदेशों के शिक्षक एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाएंगे तो दूसरों के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे और उनको समझने का प्रयत्न करेंगे। इससे विभिन्न संस्कृतियों १. में तालमेल होगा और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलेगा।
  9. अन्तर्राज्यीय खेल-कूद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन ( To Organise Inter-State Sports and Cultural Programmes) – कम से कम एक वर्ष में एक बार किसी प्रदेश में अन्तर्राज्यीय खेल-कूद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए। इसके द्वारा छात्रों का सम्पर्क क्षेत्र बढ़ेगा, वे एक दूसरे को समझेंगे, उनमें लगाव पैदा होगा, उनमें मेरी भावना (‘My’ feeling) के स्थान पर हम की भावना (‘We’ feeling) पैदा होगी और उनका हृदय राष्ट्र – भक्ति से सराबोर हो सकेगा।
  10. अन्तर्राज्यीय शिविरों का आयोजन ( To Organise Inter-State Camps) – जब अन्तर्राज्यीय शिविरों में विभिन्न राज्यों के शिक्षक व शिक्षार्थी सम्मिलित होंगे तो उनको विभिन्न राज्यों या प्रदेशों के निवासियों के रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, लोक संगीत, लोक नृत्य आदि के विषय में जानकारी प्राप्त होगी। निश्चित रूप से इन शिविरों के आयोजन से शिक्षक और शिक्षार्थियों के मन में देश-प्रेम की भावना विकसित होगी ।
  11. रेडियो और दूरदर्शन का प्रयोग (Use of Radio and Television)- रेडियो और दूरदर्शन पर राष्ट्र की एकता को विकसित करने वाले और भारतीय संस्कृति की झाँकी प्रस्तुत करने वाले कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाना चाहिए जिससे इन कार्यक्रमों को सुनकर व देखकर छात्रों में देशभक्ति की भावना पैदा हो सके । आज के युग में वैसे भी मीडिया की भूमिका इस सन्दर्भ में विशेष महत्त्व रखती है।
  12. राष्ट्रीय एवं सामाजिक संस्थाओं का गठन (Formation of National and Social Service Institutions)-विद्यालयों में एन.सी.सी., एन.एस.एस., स्काउटिंग और गर्ल गाइडिंग आदि संस्थाओं की स्थापना की जानी चाहिए। जिनके माध्यम से छात्रों को समाज सेवा के कार्यों में लगाया जा सकता है और उनमें राष्ट्र प्रेम की भावना का विकास किया जा सकता है, साथ ही इस सन्दर्भ में NGO’s को भी पर्याप्त प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जो निःस्वार्थ भाव से Meanwins Imhendजार में स्वयं को समर्पित किए रहते हैं।

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