मीडिया का प्रत्यय स्पष्ट करते हुए बताइए कि किशोरावस्था पर मीडिया का नकारात्मक प्रभाव कैसे पड़ता ? Defining the concept of media explain that it influences negatively to dolescence
प्रश्न – मीडिया का प्रत्यय स्पष्ट करते हुए बताइए कि किशोरावस्था पर मीडिया का नकारात्मक प्रभाव कैसे पड़ता ? Defining the concept of media explain that it influences negatively to dolescence.
या
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए।
Write short notes on the following:
(1) मीडिया का प्रत्यय | Concept of Media.
(2) किशोरावस्था पर मीडिया का प्रभाव | Impact of Media on Adolescence.
(3) मीडिया द्वारा प्रदर्शित विध्वंसकारी घटनाओं का प्रभाव Impact of deconstruction and significant events that media highlights and creates.
उत्तर- मीडिया अर्थात् मीडियम या माध्यम। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। इसी से मीडिया के महत्त्व का अंदाजा लगाया जा सकता है। समाज में मीडिया की भूमिका संवादवाहक की होती है। यह समाज के विभिन्न वर्गों, सत्ता केन्द्रों, ब्यक्तियों और संस्थाओं के बीच पुल का कार्य करता है। आधुनिक युग में मीडिया का सामान्य समाचार – पत्र, पत्रिकाओं, टेलीविजन, रेडियो, इंटरनेट आदि से लिया जाता है। किसी भी देश की उन्नति व प्रगति में मीडिया का बहुत बड़ा योगदान होता है। अगर यह कहा जाए कि मीडिया समाज का निर्माण व पुनर्निर्माण करता है, तो यह गलत नहीं होगा। इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण भरे पड़े हैं जब मीडिया की शक्ति को पहचानते हुए लोगों ने उसका उपयोग लोक परिवर्तन के विश्वासपात्र हथियार के रूप में किया है। अंग्रेजों की दासता से सिसकते भारतीयों में देश-भक्ति व उत्साह भरने में मीडिया का बड़ा योगदान था ।
आज भी मीडिया की ताकत के सामने बड़े से बड़ा राजनेता, उद्योगपति आदि सभी सिर झुकाते हैं। मीडिया का जन-जागरण में भी बहुत योगदान है। बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने का अभियान हो या एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य, मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभाई है। लोगों को वोट डालने के लिए प्रेरित करना, बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए प्रयास करना, धूम्रपान के खतरों से अवगत कराना जैसे अनेक कार्यों में मीडिया की भूमिका सराहनीय है। मीडिया समय-समय पर नागरिकों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करता रहता है। देश में भ्रष्टाचारियों पर कड़ी नजर रखता है। समय-समय पर स्टिंग ऑपरेशन कर इन सफेदपोशों का काला चेहरा दुनिया के सामने लाता है। इस प्रकार मीडिया हमारे लिए एक वरदान की तरह है। जैसे किसी समस्यात्मक बिन्दु पर केन्द्रित कर बालकों को जब नाटक व नुक्कड़ नाटक दिखाए जाते हैं तो बालक को अप्रत्यक्ष रूप से जो शिक्षा प्राप्त होती है उसकी उसके हृदय पर आजीवन अमिट छाप होती है। नाटक का महत्त्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह विभिन्न सामाजिक समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक करती है ।
समरी के अनुसार, “संचार सूचना आदर्शों एवं अभिवृत्तियों का एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने की कला है।
गोकुल चन्द्र पाण्डेय के अनुसार, “संचार सूचना व्यक्त अथवा अव्यक्त रूप से सूचनाओं का प्रेषण एवं एकीकरण करना है।”
मीडिया का प्रभाव (Impact of Media)
क्रो एवं क्रो के अनुसार बढ़ते बालक वांछित और अवांछित कार्यों में अधिक भेद नहीं करता है। प्रायः वो बिना कोई उचित कारण जाने ही कार्य करता है जिनमें उसे आनन्द की अनुभूति होती है। आज लगभग प्रत्येक किशोर बालक इस माध्यम से जुड़ा हुआ है। तकनीकी ज्ञान के बढ़ते प्रयोग ने आज आभासी सभ्यता को जन्म दिया है। वर्तमान में भले ही लोग आपस में एक दूसरे को जानें या नहीं परन्तु सामाजिक मीडिया से सम्पर्क में रहते हैं। इस प्रकार सामाजिक मीडिया ने सामाजिक सम्बन्धों की नई परिभाषा को जन्म दिया है।
बढ़ते बालकों एवं किशोरों पर मीडिया का सकारात्मक प्रभाव
- समाजीकरण एवं सम्प्रेषण
- ब्लॉग, वीडियो आदि के द्वारा विचारों में वृद्धि व विकास करने में सहायक होता है।
- ऑन-लाइन सम्बन्धों का वृहत स्तर तक विस्तार करता है। सामुदायिक कार्यों प्रतिभागिता के अवसर प्रदान करता है।
- राजनैतिक तथा लोकोपकार जैसे कार्यों में संलग्न होने में सहायता करता है ।
- सामाजिक कार्यों के लिए स्वयं सेवा प्रदान करने के अवसर प्राप्त करने में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाता है।
- वैश्विक समस्याओं तथा मुद्दों को समझने तथा उन्हें सुलझाने में सहायता करता है।
- वैयक्तिक तथा सामूहिक सृजनात्मकता के उन्नयन में, किशोर कलात्मक व संगीत सम्बन्धी प्रयासों तथा विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं ।
- वैयक्तिक पहचान तथा विशिष्ट सामाजिक कौशलों के विकास में किशोर की सहायता करते हैं ।
- सम्पूर्ण विश्व की संस्कृति के प्रति किशोरों में सम्मान जगाते हैं। अतः सहिष्णुता में वृद्धि करते हैं।
- स्वास्थ्य सूचनाओं की प्राप्ति (Accessing Health Information ) – बढ़ते बालकों एवं किशोरों के स्वास्थ्य से सम्बन्धित विभिन्न सूचनाएँ ऑन-लाइन सहजता से उपलब्ध हो जाती हैं, जैसे- तनाव नियन्त्रण, हताशा के लक्षण, यौन सम्बन्धी जानकारी आदि। ऑन-लाइन प्राप्त इन सूचनाओं को किशोर ने ठीक से समझा है या नहीं अथवा इन प्राप्त सूचनाओं का वह गलत उपयोग तो नहीं कर रहा है। इस पर अभिभावकों द्वारा ध्यान देना आवश्यक है ताकि बालक सूचनाओं के गलत प्रयोग से बच सकें ।
- अधिगम के अवसरों में वृद्धि (Enhancement in the Opportunities of Learning) – वर्तमान शिक्षा का उद्देश्य ही बालक एवं किशोर का बहुमुखी विकास करना है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए बालकों एवं किशोरों अक्सर इस प्रकार का गृहकार्य दिया जाता है जिसको पूर्ण करने के लिए इंटरनेट का प्रयोग करते हैं तथा प्रदत्त कार्य के सन्दर्भ में मीडिया के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान करते हैं । वर्तमान में ऐसे अनेक शिक्षण संस्थान हैं जो ब्लॉग को शिक्षण उपकरण के रूप में प्रयोग करते हैं ।
बढ़ते बालकों एवं किशोरों पर मीडिया का नकारात्मक प्रभाव
- बहुत से बालक एवं किशोर फोन या इंटरनेट का प्रयोग करके यौन सम्बन्धी समाचार तथा तस्वीरे दूसरों को भेज देते हैं या यू कहें कि समाज में फैला देते हैं जिसके कारण कभी-कभी वे अपराध के घेरे में आ जाते हैं। ऐसे बालक व किशोर माता-पिता की शर्मिन्दगी का कारण बनते हैं तथा विद्यालय में अपमानित होते हैं ।
- विभिन्न प्रकार के शोध अध्ययनों से पता चला है कि यदि बालक तथा किशोर सोशल साइट पर बहुत अधिक समय बिताते हैं तो उनमें अजीब से उदासी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। वह हर समय अपने साथियों के सम्पर्क में रहना पसन्द करते हैं। अधिक समय तक ऑन लाइन रहने के कारण वे सामाजिक अलगाव की समस्या में फँस जाते हैं।
- वर्तमान में अक्सर इस प्रकार की घटनाएँ देखने व सुनने को मिल जाती है कि किशोर साइबर दबंगई कर रहे हैं अथवा ऑन-लाइन दूसरों को प्रताड़ित कर रहे हैं। इससे लोगों में हताशा, चिन्ता, अकेलापन एवं आत्महत्या जैसी घटनाएँ सामने आ रही हैं ।
- आयु, लिंग शिक्षा विवाह आदि से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के विज्ञापन आदि विभिन्न प्रकार की साइट्स पर दिखाए जाते हैं। ये विज्ञापन किशोरों में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को खरीदने की प्रवृत्ति पैदा करते हैं साथ ही उनके विचारों को भी प्रभावित करते हैं ।
- मनोवैज्ञानिकों के अनुसार सामाजिक मीडिया पर अधिक समय व्यतीत करने से किशोरों में आत्ममुग्धता, अहंकार और समाज विरोधी व्यवहार विकसित होता है। इस माध्यम से भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों में गिरावट देखी गई है।
- आज की युवा पीढ़ी पश्चिम की भौगोलिक संस्कृति की ओर उन्मुख हो रही है। इस प्रकार कुछ मामलों में तो सामाजिक मीडिया शोषण का साधन भी बनता जा रहा है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि सामाजिक मीडिया के अत्यधिक प्रयोग से किशोरों में एकाग्रता में कमी, अनिद्रा, अवसाद, बेचैनी और चिड़चिड़ापन की समस्याएँ पैदा हो जाती हैं।
- सोशल मीडिया के कारण किशोरों की पढ़ाई भी प्रभावित होती है और वो पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं। लगातार ऑनलाइन रहने से उनके मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य . पर भी बुरा असर पड़ता हैं।
मीडिया द्वारा प्रदर्शित विध्वंसकारी घटनाओं का प्रभाव
- अपराध को बढ़ावा – वर्तमान समाज में अपराधों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हो रही है। इसका कारण मीडिया ही है। इन माध्यमों के द्वारा लोगों को अपराध करने के नए तरीकों तथा इससे बचने के विभिन्न तरीकों का ज्ञान हो जाता है। समाचार-पत्रों, फिल्मों तथा पत्रिकाओं में लोग विविध प्रकार की घटनाओं को पढ़ता व देखता है जिनमें से कुछ घटनाएँ बुरी तथा कुछ घटनाएँ अच्छी होती हैं। इन बुरी घटनाओं से अपराध को बढ़ावा मिलता है ।
- मशीनों एवं यंत्रों पर आश्रित रहने की भावना में वृद्धि – भारतीय संस्कृति में व्यक्ति को सिखाया जाता है कि परिश्रम का फल मीठा होता है परन्तु आधुनिक समाज के लोग कम मेहनत करके अधिक से अधिक फल पाने का प्रयास करते हैं तथा शारीरिक परिश्रम को कोई मूल्य नहीं देते हैं। इसका कारण संचार माध्यम या यूँ कहें कि लोगों की प्रयोजनवादी मानसिकता है। समाज के लोग मशीनों तथा यंत्रों पर इतने अधिक आश्रित हो गए हैं कि लोग छोटे से छोटे कार्य को करने में यंत्रों व मशीनों का ही सहारा लेते हैं।
- स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव – संचार माध्यमों के द्वारा ज्ञान का असीमित भण्डार लोगों को सहज ही प्राप्त हो जाता है। अतः बालकों को यह पता ही नहीं चल पाता कि उन्हें किस ज्ञान को सहेज कर इकट्ठा करना है तथा किसे नहीं लेना है जिससे वह मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक रूप से अस्वस्थ हो जाता है। इस प्रकार मीडिया के द्वारा बालक बिना किसी निर्देशन के विविध प्रकार की बुरी आदतों से घिर जाता है।
- बालकों के व्यवहार में विकृति- – बालक को समाज के अनुसार विकसित किया जाता है। उसको एक सन्तुलित व्यवहार सिखाने का प्रयास किया जाता है जिससे वह समाज के साथ समायोजन स्थापित कर सकें लेकिन जनसंचार माध्यम के द्वारा उसके व्यवहार को विकृति प्रदान की जाती है अर्थात् वह सन्तुलित व्यवहार नहीं कर पाता है।
- अश्लीलता को प्रोत्साहन व्यक्ति को समाज के नियमों के अनुसार जीवन व्यतीत करना चाहिए क्योंकि वह एक सामाजिक प्राणी माना जाता है परन्तु संचार माध्यमों में व्यक्तिगत जीवन को बढ़ा-चढ़ा कर बताया जाता है तथा बालकों को यह सिखाने का प्रयास किया जाता है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्हें उन्नति करनी है। इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित भी किया जाता है जिसके कारण आज अश्लीलता का प्रतिशत बढ़ गया है क्योंकि प्रत्येक बालक येन केन प्रकारेण प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति करने के लिए लगा हुआ है ।
- सामाजिक मूल्यों का पतन – आधुनिक युग में मीडिया ने व्यक्ति को समाज से दूर कर दिया है तथा व्यक्तिगत जीव को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा है। इसके परिणामस्वरूप एक परिवार की महत्ता बढ़ती चली जा रही है तथा संयुक्त परिवारों का ह्यस होता चला जा रहा है। इसी कारण बालक में सामाजिक गुणों का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है तथा धीरे-धीरे सामाजिक मूल्यों का पतन होता जा रहा है।
- तनाव में वृद्धि – सामाजिक जीवन की अपेक्षा व्यक्तिगत जीवन को अधिक महत्त्व देने के कारण व्यक्तिगत तथा • सामाजिक तनाव में वृद्धि होने लगी है। व्यक्तिगत जीवन में व्यक्ति स्वयं को समाज से बचा कर रखता है तो हमें यह पता नहीं चलता कि क्या सही है तथा क्या गलत । अतः हमारे जीवन में तनाव आना स्वाभाविक ही है। वर्तमान में व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित अनेक समस्याओं का समाधान लोग संचार माध्यमों से करते हैं जिसके कारण कभी-कभी वह ऐसे कार्य कर जाते हैं जिससे उनके तनाव में कमी आने के बजाय वृद्धि हो जाती है।
- स्वप्न लोक में जीने की भावना पैदा करना- फिल्मों, कहानियों, समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं आदि में बालक विभिन्न प्रकार की कथाएँ देखता, सुनता व पढ़ता है तथा उसे ही जीवन का सच मानने लगता है जबकि वास्तविकता ठीक इसके विपरीत होती है। व्यावहारिक जीवन का स्वप्नलोक से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता है परन्तु फिर भी बालक इसी के अनुसार जीवन यापन करने का प्रयास करता है ।
