1st Year

मौलिक अधिकार एवं कर्तव्यों का वर्णन किन अनुच्छेदों में किया गया है? व्याख्या कीजिए । In what articles are the descriptions of fundamental rights and duties. Explain it.

प्रश्न  – मौलिक अधिकार एवं कर्तव्यों का वर्णन किन अनुच्छेदों में किया गया है? व्याख्या कीजिए । In what articles are the descriptions of fundamental rights and duties. Explain it.
या
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें – 
Write short note on following:
(1) विधि के समक्ष समता । (Parity of Law).
(2) भारतीय संविधान की धारा 15 क्या है?
What is Article 15 of the Constitution ?
(3) अनुच्छेद 16- लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता (Article 16- Equality in Matters of Public Planning).
4) अनुच्छेद 30, 46 एवं 51 ‘क’
उत्तर- अनुच्छेद 14-विधि के समक्ष समता [Equality in front of law (Article 14 )]- अनुच्छेद 14 मौलिक अधिकार समानता का अधिकार के अन्तर्गत आता है। इसमें भारत के नागरिकों को विधि के समक्ष समानता का अधिकार दिया गया है। इसका अभिप्राय यह है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए एक समान कानून बनाएगा तथा उन पर एक समान ढंग से उन्हें लागू करेगा। राज्य भारत के राज्य क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। शिक्षा के सन्दर्भ में भी यही प्रावधान लागू होते हैं।
सामाजिक / शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए प्रावधान [(अनुच्छेद 15 ( 4 ). (अनुच्छेद 46)] (Provision of Education for Backward Classes )- राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
  1. कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर –
    1. दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश या
    2. पूर्णतः या अंशतः राज्य निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग के सम्बन्ध में किसी भी निर्योग्यता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के नहीं होगा।
  2. इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए कोई विशेष उपबन्ध करने से निवारित नहीं करेगी।
  3. पिछड़े हुए इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खण्ड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों या जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबन्ध करने से निवारित नहीं करेगी।
    अनुच्छेद 15 (4) अनु. 15 (1) तथा (2) के सामान्य नियम का दूसरा अपवाद अनुच्छेद 15 (4) के अनुसार राज्य किसी सामाजिक तथा शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए वर्गों या अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जन जातियों की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है।
    खण्ड ( 4 ) संविधान में संविधान के प्रथम संशोधन (1951) द्वारा जोड़ा गया यह संशोधन मद्रास राज्य बनाम चम्पकम दाराईराजन में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के कारण हुआ। इस मामले में मद्रास सरकार ने एक साम्प्रदायिक राजाज्ञा जारी करके राज्य के मेडिकल तथा इन्जिनियरिंग कॉलेज में विभिन्न जातियों तथा समुदायों के विद्यार्थियों के लिए कुछ स्थानों का निश्चित अनुपात निर्धारित किया गया था। स्थानों का आरक्षण धर्म, वर्ग तथा जाति पर आधारित था क्योंकि ब्राह्मणों के लिए कुछ ही स्थान थे जिनके होने के कारण इस समुदाय के योग्यतम विद्यार्थियों को भी प्रवेश नहीं मिल सकता था। जबकि दूसरे समुदाय के अपेक्षाकृत कम योग्यता वाले विद्यार्थियों को स्वतः प्रवेश मिल जाता था सरकार ने उक्त कानून को इस आधार पर न्यायोचित बताया क्योंकि इसका उद्देश्य जनता के सभी वर्गों के लिए सामाजिक न्याय प्रदान करना था जैसा कि राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अनुच्छेद 45 में अपेक्षित है। उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि राजाज्ञा असुँवाधानिक है क्योंकि इसमें किया गया वर्गीकरण धर्म मूलवंश व जाति के आधार पर किया गया था न कि विद्यार्थियों की योग्यता पर ।
    खण्ड (4) केवल राज्य को उक्त वर्गों के लिए उपबन्ध करने के लिए सक्षम बनाता है न कि उस पर विशेष कार्यों को करने के लिए कोई दायित्व आरोपित करता है। यह राज्य को केवल विवेकीय शक्ति प्रदान करता है, अर्थात्, यदि राज्य उचित समझे तो पिछड़े वर्गों के नागरिकों के लिए विशेष प्रावधान बना सकता है बशर्ते कि वह विशेष वर्ग सामाजिक व शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ा हो । प्रश्न यह है कि समाज का कौन सा वर्ग उक्त श्रेणी के अन्तर्गत आता है। सामाजिक व शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग कौन है इसका निर्धारण करने की शक्ति राज्य को है किन्तु इस मामले में राज्य का निर्णय अन्तिम नहीं है। उचित मामलों में न्यायालय को हस्तक्षेप करने व इसे प्रयोजन के लिए राज्य द्वारा निर्धारित मानदण्डों को जाँचने की पूर्ण शक्ति प्राप्त हैं।

    अनुच्छेद 16 – लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता – (Equality in Matters of Public Planning – Article 16 )

    1. राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से सम्बन्धित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी।
    2. राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के सम्बन्ध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।
    3. इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र की सरकार के या स्थानीय एवं अन्य प्राधिकारियों के अधीन आने वाले किसी वर्ग या वर्ग के पद पर नियोजन या नियुक्ति के सम्बन्ध में ऐसे नियोजन या नियुक्ति से पहले उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के भीतर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती है।
    4. शिक्षा के सन्दर्भ में भी यही प्रावधान लागू होते हैं।
बालकों के लिए निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा [अनुच्छेद 21 (A)] Free and Compulsory Education for Children) (Article 21 (A) – पहले अनुच्छेद 45 में यह निर्देश था कि राज्य संविधान के प्रारम्भ से दस वर्ष की कालावधि के भीतर सब बालकों को 14 वर्ष की अवस्था तक निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा देने का प्रयास करेगा लेकिन 86वाँ संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा अनुच्छेद 45 के स्थान पर एक नया अनुच्छेद रखा गया।
यह अनुच्छेद यह उपबन्धित करता है कि, “राज्य 6 वर्ष की आयु के सभी बालकों के पूर्व बाल्यकाल की देख-रेख व शिक्षा के लिए अवसर प्रदान करने के लिए उपबन्ध करेगा” अनुच्छेद 45 में संशोधन की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि नए अनुच्छेद 21 (क) द्वारा 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा को एक मूल अधिकार बना दिया गया क्योंकि 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा देने का अधिकार सांविधानिक अधिकार है लेकिन उच्च शिक्षा के मामले में यह अधिकार राज्य की आर्थिक क्षमता पर निर्भर करेगा।
अल्पसंख्यकों की शिक्षा [अनुच्छेद ( 30 ) ] [ Education for Minorities (Article (30)] – अनुच्छेद 30 में शिक्षण संस्थाओं की स्थापना तथा उनके प्रशासन का अल्पसंख्यको के अधिकार की चर्चा की गई। अनुच्छेद 30 (1) में यह बताया कि धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा। शिक्षा संस्थाओं के अन्तर्गत विश्वविद्यालय भी आ जाते हैं। इसमें स्थापना व प्रशासन दो शब्दों का प्रयोग किया गया है। स्थापना शब्द से अभिप्राय है- संस्था के क्रियाकलापों का प्रभावी रूप से प्रबन्ध व संचालन करना ।
अनुच्छेद 30 (1) के अधीन अल्पसंख्यकों को अपनी रुचि की शिक्षण संस्था का प्रशासन का अधिकार तभी प्राप्त होगा जब यह साबित हो कि उस संस्था की स्थापना उनके द्वारा की गयी है। प्रशासन से संस्था के क्रियाकलापों के प्रबन्ध का बोध होता है तथा प्रबन्ध पर किसी तरह का नियन्त्रण नहीं होना चाहिए जिससे कि संस्थापक जो उचित समझे अपने भावों के अनुरूप संस्था को ढाल सके जिससे कि सामान्य रूप से अल्पसंख्यक समुदाय के हित तथा विशेष रूप से संस्था के हित की सर्वोत्तम रूप से पूर्ति हो सके। ·
अपनी रुचि के शब्द शिक्षा संस्थाओं को विशेषित करते हैं व वे दर्शाते हैं कि अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा स्थापित तथा प्रशासित शिक्षा संस्थाओं के लिए आवश्यक नहीं कि वे किसी विशेष वर्ग की हो। अल्पसंख्यक को ऐसी शिक्षा संस्थाओं की जिससे प्रसन्द करे, स्थापित करने व प्रशासित करने का अधिकार और स्वतन्त्रता प्राप्त है।
इस प्रकार यह अनुच्छेद अल्पसंख्यक वर्गों को ऐसी शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करने का अधिकार प्रदान करता है जो दोनों उद्देश्यों को पूरा करती हो अर्थात जिसके द्वारा वे अपने धर्म भाषा या संस्कृति को संरक्षित कर सके तथा बच्चे का सर्वांगीण विकास हो सके।
अनुच्छेद-46 [Article (46)] – इस बात का आह्वान करता है कि राज्य जनता के दुर्बल वर्गों के विशेषतया अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित आदिम जातियों की शिक्षा तथा अर्थ सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा तथा सामाजिक अन्याय तथा सब प्रकार के शोषण से उनकी सुरक्षा करेगा।
इस प्रकार हम देखते हैं शिक्षा के क्षेत्र में कई संवैधानिक अनुच्छेदों की सहायता से समग्र विकास करने में बहुत सहायता मिली है तथा समय-समय पर व्यक्ति को सही मार्ग की ओर अग्रसर होने में ये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति को सहायता पहुँचाते हैं।
अनुच्छेद 51 ‘क’- संविधान के भाग IV में सन्निहित अनुच्छेद 51 ‘क’ मौलिक कर्तव्यों के बारे में है। ये अन्य चीजों के साथ साथ नागरिकों को संविधान का पालन करने, आदर्श विचारों को बढ़ावा देने और अनुसरण करने का आदेश देता है, जिससे
भारत के स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरणा मिली थी, देश की रक्षा करने और जब बुलावा हो तो देश की सेवा करने और सौहार्द्रता एवं समान बंधुत्त्व की भावना विकसित करने एवं पूर्ण धार्मिकता का संवर्धन करने, भाषाविद् और क्षेत्रीय एवं वर्ग विविधताओं का विकास करने का आदेश देता है।

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