लड़कियाँ घर तथा विद्यालय में किस प्रकार के लिंग पूर्वाग्रह का अनुभव करती हैं, व्याख्या कीजिए । Describe the kind of gender biasness that the girls experience at home and school
प्रश्न – लड़कियाँ घर तथा विद्यालय में किस प्रकार के लिंग पूर्वाग्रह का अनुभव करती हैं, व्याख्या कीजिए । Describe the kind of gender biasness that the girls experience at home and school.
उत्तर- लड़कियाँ घर तथा विद्यालय में लिंग पूर्वाग्रह का अनुभव करती है जब वे घर से बाहर निकलती है तो घर के सदस्य उसे सम्भल कर जाने की हिदायत देते है वही लड़कों के लिए ऐसा कुछ नहीं होता है। लड़कियों को रात या देर शाम को घर के बाहर जाने की अनुमति नहीं होती है उनको सदैव किसी के साथ ही जाने की आज्ञा दी जाती है। इसी प्रकार विद्यालय में भी सांस्कृतिक आयोजनों में लड़कियों को केवल प्रतिभाग के लिए ही चुना जाता है, बल या शारीरिक कार्यो में लड़को को ही वरीयता दी जाती है। इसके अतिरिक्त पुस्तकों में पुरुष उदाहरणों का चित्रण अधिक होता है अपेक्षाकृत महिला। विद्यालय में लड़कियों को अलग कक्षा दी जाती है तथा महिला शिक्षक द्वारा पढ़ाया जाता है।
घर में लैंगिक पूर्वाग्रह (Gender Bias at Home)
- समाज प्राचीन मान्यताएँ – अथर्ववेद में यह कहा गया है कि बालिकाओं को बाल्यावस्था में पिता के युवावस्था में पति के तथा वृद्धावस्था में पुत्र के अधीन रहना चाहिए । मुस्लिम भी बालिकाओं को हमेशा पति व पुत्र के अधीन ही रखा गया है। यहाँ तक किसी रक्त सम्बन्ध वाले पुरुषों के बिना उन्हें अपनी धार्मिक यात्रा हज करने का अधिकार भी नहीं है। इस तरह की प्राचीन मान्यताओं के कारण बालिकाओं को पुरुष से कमतर समझा जाता है। भारत में माता-पिता का अन्तिम संस्कार करने के लिए भी पुत्र की आवश्यकता पड़ती है। इन सब मान्यताओं के कारण माता-पिता पुत्र की चाह करते हैं।
- संकीर्ण विचारधारा- लोगों की संकीर्ण विचारधारा लड़के तथा लड़की में भेद का एक कारण है। लोगों का मानना है कि लड़के माँ-बाप, की वृद्धावस्था का सहारा बनेंगे, वंश को आगे बढ़ाएगें, उन्हें पढ़ाने-लिखाने से घर की उन्नति होगी जबकि लडकी को पढ़ाने लिखाने में धन एवं समय की बर्बादी होगी। यद्यपि वर्तमान में बालिकाएँ लोगों की संकीर्ण सोच को तोड़ने का कार्य कर रही हैं। इसके बावजूद बालिकाओं का कार्यक्षेत्र चौका-बर्तन तक ही सीमित माना जाता है। अतः बालिकाओं की भागीदारी को स्वीकार न किए जाने के कारण बालकों की अपेक्षा बालिकाओं के महत्त्व को कम माना जाता है जिससे लैंगिक विभेद में वृद्धि होती है।
- सांस्कृतिक कुप्रथाएँ – प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति पुरुष – प्रधान रही है। भारतीय संस्कृति में धार्मिक एवं यज्ञीय कार्यों में भी पुरुष की उपस्थिति अपरिहार्य है एवं कुछ कार्य तो स्त्रियों के लिए पूर्णतया निषेध है। अतः ऐसी स्थिति में पुरुष प्रधान हो जाता है तथा स्त्री का स्थान गौण हो जाता है। यह स्थिति किसी एक वर्ग अथवा समुदाय की महिलाओं एवं पुरुषों की न होकर सभी स्त्रियों की बनकर लैंगिक विभेद की समस्या का रूप धारण कर लेती है।
विद्यालय में लैंगिक पूर्वाग्रह (Gender Bias in School)
- पाठ्यचर्या सम्बन्धी असमानताएँ – विद्यालयी स्तर पर पाठ्यचर्या सम्बन्धी अनेक असमानताएँ देखी जा सकती हैं, जैसे- बालिकाओं के लिए गृह विज्ञान, सिलाई-कढ़ाई तथा नृत्य सम्बन्धी पाठ्यचर्या तैयार की जाती है तथा उन्हें इन्हीं से प्रतिभाग करने का परामर्श भी दिया जाता है चाहे बालिका की रुचि इन विषयों में हो या न हो क्योंकि हो सकता है कि बलिका की रुचि गणित तथा विज्ञान जैसे विषयों में हो। कुछ पाठ्यक्रम तथा विषय मात्र बालकों के लिए ही होते हैं। अतः विद्यालयी स्तर पर पाठ्यचर्या सम्बन्धी अनके असमानताएँ दिखाई पड़ती है।
- कक्षा प्रबन्धन में असमानताएँ – विद्यालय में कक्षा कक्ष प्रबन्धन में असमानता की स्थिति देखी जाती है। कक्षा-कक्ष में कक्षा मॉनीटर की भूमिका में प्रायः बालकों को ही देखा जाता है। अतः इस सन्दर्भ में अध्यापकों में प्रायः उदासीनता देखी जाती कि वह बालिकाओं को इस कार्य के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं। कभी-कभी यदि कोई अध्यापक बालिका को मॉनीटर बनाना भी चाहता है तो बालिका स्वयं इंकार कर देती है।
- आन्तरिक गतिविधियों में असमानता विद्यालय में होने वाली विभिन्न आन्तरिक गतिविधियों जैसे-नृत्य, संगीत, नाटक आदि में पर्याप्त असमानता की स्थिति देखी जा सकती है। इन कार्यक्रमों में बालिकाओं की सहभागिता अधिक होती है क्योंकि ये बालिकाओं से सम्बन्धित गतिविधियाँ मानी जाती • है। इसी प्रकार ऊँची कूद तथा लम्बीकूद प्रतियोगिताओं में बालकों की सहभागिता अधिक देखी जाती है।
- उच्च शिक्षा सम्बन्धी असमानता प्रायः बालिकाओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अवसर कम प्राप्त होते हैं क्योंकि बालिकाओं को अभिभावकों तथा अध्यापकों का पर्याप्त सहयोग प्राप्त नहीं होता है। बालकों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में अभिभावक तथा अध्यापक दोनों का सहयोग प्राप्त होता है। बालिका की उच्च शिक्षा के प्रति अध्यापकों का यह सोच भी होती है कि यदि अभिभावक ही अपनी बालिका को महाविद्यालय नहीं भेजना चाहते तो मै क्या कर सकता हूँ ।
लैंगिक पूर्वाग्रह (विभेद) की समाप्ति के उपाय
- जागरूकता का प्रचार ( Spreading Awareness ) – किसी भी तरह की सामाजिक बुराई को दूर करने का एक मात्र उपाय सामान्य जन में जागरूकता लाना है। इसके लिए सरकार शिक्षण संस्थान, जनशिक्षा के माध्यम जैसेअखबार, टी.वी. रेडियो आदि को मिल कर काम करना पड़ेगा जिससे लड़के लड़कियों के लिंग को लेकर पीढ़ियों से चले आ रहे पूर्वाग्रहों दूर किया जा सकेगा। लेखक, गीतकार, टी..वी.. प्रोग्राम बनाने वाले फिल्मकार आदि इसमें बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। ये लोग अपनी रचनाओं में नारी का महत्त्व तथा ईश्वर द्वारा बनाए नारी- पुरुष दोनों रूपों की बराबरी को दर्शा सकें ।
- बालिका शिक्षा का प्रचार ( Spreading Girl Child Education) – लिंग भेद का बहुत बड़ा कारण लड़कियों का कम शिक्षित होना या व्यावसायिक रूप से शिक्षित न होना होता है। बालिकाओं के लिए अलग से स्कूल, कॉलेज तथा व्यावसायिक कॉलेज खोले जाने चाहिए जहाँ वह आसानी से एवं सुरक्षित रूप से पहुँच सकें। अगर लड़कियाँ पढ़-लिख कर अपने पैरो पर खड़ी होंगी तो उनमें आत्मविश्वास का संचार होगा और समाज में उनका महत्त्व बढ़ेगा।
- शिक्षा व्यवस्था में सुधार (Improvement in Educational System) – शिक्षा व्यवस्था में इस प्रकार से सुधार हो जहाँ बालिकाओं के लिए समस्याएँ कम हों। ऐसा पाठ्यक्रम हो जिसमें बालिकाओं की रुचि हो । शिक्षा बालिकाओं के वास्तविक जीवन से जुड़ी हो । महिला शिक्षा भी व्यवसाय केन्द्रित हो जिसे कि पढ़कर उन्हें रोजगार प्राप्त हो । इससे परिवार भी उन्हें पढ़ाने में विशेष रुचि लेगा । विद्यालयों में लिंग आधारित भेदभाव बिल्कुल खत्म होना आवश्यक है।
- सामाजिक कुप्रथाओं पर रोक (Ban on Social Malpractices) – सती प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह जैसी कुप्रथाएँ जो महिलाओं की प्रगति में बाधक हैं उन्हें समाप्त कर महिलाओं को मुख्य धारा में जोड़ा जाना चाहिए। कुछ धार्मिक कर्मकाण्ड ऐसे हैं जो सिर्फ पुरुष आधारित हैं। अभी हाल में कुछ मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश को लेकर हंगामा हुआ। महिलाएँ भी पुरुषों की तरह भगवान की अनुपम कृति । उन्हें सभी प्रकार के कर्मकाण्ड करने का अधिकार मिले।
- सुरक्षात्मक वातावरण (Protective महिलाओं के खिलाफ दिन प्रतिदिन . Atmosphere ) – अपराध जैसेबलात्कार, एसिड से हमला, अपहरण आदि बढ़ने से माता-पिता की लड़कियों को लेकर चिन्ता बढ़ती रहती है। सुरक्षात्मक वातावरण होने से लड़कियों को न केवल असुरक्षा की भावना की वजह से पीछे नहीं रहना पड़ेगा बल्कि अभिभावक भी निःशंक रह सकेंगे।
