विद्यालय में स्वास्थ्य, योग एवं शारीरिक शिक्षा | D.El.Ed Notes in Hindi
विद्यालय में स्वास्थ्य, योग एवं शारीरिक शिक्षा | D.El.Ed Notes in Hindi
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. स्वास्थ्य से आप क्या समझते है? अच्छे स्वास्थ्य का कैसे बनाएँ रखा
जाता है ?
अथवा,
स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक क्या है ?
उत्तर—स्वस्थ्य एक मिश्रित अस्तित्व है जो हमें एक जीवित सत्ता की कार्यक्षमता के
बारे में बताता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य को परिभाषित किया है। एक पूर्ण
शारीरिक, मानसिक और सामाजिक तंदरूस्ती और बीमारी या अशक्त की पूर्ण अनुपस्थिति
के रूप में Health शुद्ध अंग्रेजी के पुराने शब्द Hoeth के व्युत्पन्न हुआ था जिसका तात्पर्य
है स्वस्थ होने की स्थिति और जो प्रायः शरीर के स्वस्था का अनुमान लगाने के लिए प्रयुक्त
हुआ था।
सूक्ष्म (कोशिकीय) एवं वृहत (सामाजिक) दोनों स्तर पर एक जीव की कार्यात्मक
या उपापचयी कार्यक्षमता का स्तर है स्वास्थ्य चिकित्सा के क्षेत्र में स्वास्थ्य को सामान्यः एक
जीव की चुनौतियों से सक्षमता से लड़ने की योग्यता और प्रभावी पुनरूद्वार तथा संतुलन की
स्थिति का बनाएँ रखने के रूप में की जाती है जिसे स्थायी साम्य के रूप में जाना जाता है।
अभिष्ट स्वास्थ्य या अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त प्रत्येक का लक्ष्य होना चाहिए। दुःख की बात
है लोग प्रायः अपने स्वास्थ्य और अच्छाई को जब वे जवान होते हैं सच मान लेते हैं । अभिष्ट
स्वास्थ्य बनाए रखने के क्रम में अच्छा संतुलित जीवनचर्या होना अनिवार्य है जिसमें पोषक
डाइट के साथ-साथ स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक है जो इस प्रकार है ।
(i) शिक्षा और साक्षरता
(ii) भौतिक पर्यावरण
(iii) जीव विज्ञान और आनुवंशिकता
(iv) संस्कृति
(v) लिंग
(vi) आमदनी और सामाजिक स्थिति
(vii) रोजगार कार्य करने की स्थितियाँ
(viii) स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ
(ix) स्वस्थ्य बाल विकास
प्रश्न 2. परिवार के लिए स्वास्थ्य का क्या अभिप्राय है ?
अथवा,
परिवार के दो कार्य क्या है ?
उत्तर―परिवार के लिए स्वास्थ्य का अभिप्राय-एक परिवार में रहने वाले एक
सामाजिक जीव के रूप में मनुष्य का मनोवैज्ञाकि सामाजिक-जैविक दृष्टिकोण स्वास्थ्य की
संकल्पना में अन्तर्निहित है। एक सामाजिक संस्था के रूप में परिवार के केन्द्रिक सम्बन्ध
है जहाँ दो अभिभावक एक-दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़े हैं जिससे कई भावनाएँ, जरूरते
और क्रियाएँ उत्पन्न होती हैं जो प्रायः स्वयं अभिभावकों द्वारा अस्वस्थ तरीकें से समझे जाते
है। प्रत्येक परिवार अपना भावनात्मक वातावरण विकसित करता है और इस भावनात्मक
पर्यावरण का बच्चे के स्वास्थ्य पर संरचनात्मक या विघटनात्मक प्रभाव हो सकता है।
बच्चा जन्म से परिवार की व्यवस्था में अनवरत विकास करता है जिसका कार्य जीवों
के जोखिम से सुरक्षा प्रदान करता है और स्वास्थ्य की बढ़ाना तथा रोगों को रोकना है। परिवार
में स्वस्थ सम्बन्ध बच्चों के लिए स्थायित्व का विकास और भावनात्मक परिपक्वता बढ़ाने
का अवसर प्रदान करता है। परिवार के दो कार्य है—इसके सदस्यों का सामाजीकरण और
बच्चे संस्कृति का अर्थ प्रदान करना पड़ोस में, विद्यालय में नौकरी में और वृहद समुदाय
में संबंधों की आधारशिला रहता है।
प्रश्न 3. स्वास्थ्य एवं शिक्षा के बीच संबंधों में विचार-विमर्श करें।
अथवा,
स्वास्थ्य एवं शिक्षा के बीच संबंध स्पष्ट करें।
उत्तर― स्वास्थ्य एवं शिक्षा के बीच संबंध-शिक्षा एवं स्वास्थ्य के बीच संबंध को
आकार देने वाली संभाव्य यांत्रिकी के विस्तार के साथ स्वास्थ्य एवं शिक्षा के बीच संबंध जटिल
है। इस संबंध के कुछ स्पष्टीकरण इस प्रकार है―
(i) खराब स्वास्थ्य निम्न विद्यालयी स्तरों का नेतृत्व करता है, जबकि बचपन में खराब
स्वास्थ्य किशोरावस्था में खराब स्वास्थ्य से सम्बद्ध है।
(ii) शिक्षितों का परिवार विद्यालयी शिक्षा और स्वास्थ्य को भी सुधारती है।
(iii) बढ़ी हुई शिक्षा सीधे तौर पर स्वास्थ्य को सुधारना है।
जबकि स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता सृजित करने और स्वास्थ्य की स्थिति सुधारने में
भूमिका निभाने के संदर्भ में स्वास्थ्य एवं शिक्षा के बीच संबंध अधिक देखे जाते है। स्वास्थ्य
एवं शिक्षा के बीच पारस्परिक संबंध विचार विमर्श में पर्याप्त रूप में प्रस्तुत नहीं होते हैं।
विशेषतः जब यह बच्चों तक आता है। बच्चों का खराब स्वास्थ्य और पोषक स्थिति
उपस्थिति है बाधक में और शैक्षिक उपलब्धि इसीलिए नामांकन धारण और विद्यालय शिक्षा
की पूर्णता में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न 4. शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य और उद्देश्य क्या है ?
अथवा,
शारीरिक शिक्षा कार्यक्रम के पाँच मुख्य परिणामों को वर्णित करें।
उत्तर–शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य और उद्देश्य-सामान्य शिक्षा के समान शिक्षा का
लक्ष्य अच्छी तरह से नियोजित गतिविधि कार्यक्रमों के माध्यम से मनुष्य के व्यक्तित्व को
उसकी सम्पूर्णता में विकसित करना है। दूसरे शब्दों में शारीरिक शिक्षा एक व्यक्ति के
व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास या व्यक्ति के व्यक्तित्व के पौष्टिक विकास पर लक्ष्य करता
है। यह एक व्यक्ति को एक अच्छा नागरिक बनाने में व्यक्तित्व के शारीरिक, मानसिक,
सामाजिक, संवेदनात्मक और नैतिक पहलुओं को शामिल करता है जो राष्ट्र के विकास
प्रक्रिया में योगदान देने में सक्षम है। इस प्रकार शारीरिक शिक्षा का अर्थ एक व्यक्ति को
शारीरिक रूप से स्वस्थ, मानसिक रूप से सावधान, संवेदनात्मक रूप से उन्नत बनाना है।
उद्देश्य, लक्ष्य की प्राप्ति के प्रति सुविचारित कदम हैं। ये एक लक्ष्य को कार्यान्वित
करने के लिए नियुक्त विशिष्ट औ यथार्थ साधन है।
शारीरिक शिक्षा कार्यक्रम के मुख्य परिणाम है :
(i) शारीरिक रूप से स्वस्थ―यह उस स्थिति को बताता है जहाँ एक व्यक्ति ने
अधिक धैर्य, गति और शक्ति आदि विकसित कर लिया है। शारीरिक स्वस्थता एक सुखी,
तन्दरूस्त और प्रचुर जीवन के लिए अनिवार्य है। विविध शारीरिक गतिविधियों में भागीदारी
के दौरान शरीर की सभी महत्त्वपूर्ण माँसपेशियाँ अभ्यासित होती है जो शारीरिक स्वस्थता के
सभी घटकों का विकास करने में सहायता करती है।
(ii) सामाजिक रूप से सक्षम—यह सामूहिक जीवन के लिए किसी के पर्याप्त
अनुकूलन से सम्बद्ध है। शारीरिक शिक्षा गतिविधियाँ समन्वय, दूसरों के प्रति आदर, निष्ठा,
खेलभावना, आत्मविश्वास आदि जैसे विशेषताएँ विकसित करने का पर्याप्त अवसर प्रदान
करता है। ये सभी गुण एक व्यक्ति को एक अच्छा नागरिक बनाने में सहायता करते हैं।
(iii) संवेदनात्मक रूप से संतुलित- इसका अर्थ आपकी संवेदनाओं को नियंत्रित
और नियमित करने में समर्थ होने से है ताकि जीवन अधिक संतुलित हो या साधनपूर्ण
संवेदनात्मक स्थितियों तक पहुँचने में समर्थ होना है जब आप उन्हें चाहें।
(iv) मानसिक रूप से शक्तिशाली – यह स्मृति, निर्णय निर्माण और तार्किक शक्ति
का विकास करने पर लक्ष्य करता है । यदि एक व्यक्ति मानसिक रूप से शक्तिशाली है तो
उसका विश्वास स्वतः बढ़ जायेगा विविध खेलों में भागीदारी के माध्यम से कोई भी इन सभी
गुणों को विकसित कर सकता है।
(v) आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध― यह सभी चीजों के अर्थ और उद्देश्य की गहरी
अर्न्तदृष्टि के अभ्यास के वारे में है। ईश्वर के मस्तिष्क के साथ संप्रेषण या समझ, गहरी
आध्यात्मिक समझा या एक मौलिक रूप से परिवर्तित चेतना कैसे प्रत्येक चीज़ एक एकता
के रूप में महसूस होती है।
प्रश्न 5. स्वास्थ्य की प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर― स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाल कारक-हम विभिन्न व्यक्तियों को ध्यान
से देखते हैं तो पता चलता है कि कोई आनुवंशिक रोगों से पीड़ित है, कोई कुपोषण का
शिकार है। कोई अनियमित दिनचर्या के चलते रुग्ण है। तो कोई प्रसन्नचित, स्वस्थ्य और
नियमित दिनचर्या वाला है। सामान्यतः स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों को हम
निम्नलिखित भागों में बाँट सकते है—
(i) आनुवांशिकता—इसमें माता-पिता का स्वास्थ्य तथा उनकी इस प्रतिरक्षा की शक्ति
गर्भावस्था में माता की अवस्था, पोषण-स्तर, प्रजातीय लक्षण और अनानुवांशिक बीमारियाँ
आती है। उपर्युक्त बाते व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।
(ii) मानसिक अभिवृत्ति – सकारात्मक अभिवृत्ति (स्वभाव, सोच) व्यक्ति के उत्साह,
मनोबल और जीवन शक्ति को बढ़ाती है। जिस व्यक्ति की सोच जीवन के प्रति नकारात्मक
है वे मानसिक रूप से अस्वस्थ कहे जा सकते हैं।
(iii) पर्यावरण-हमारा परिवेश भी हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। परिवेश में
दो चीजों को शामिल कर सकते हैं :
(क) आंतरिक परिवेश जिसमें शरीर के अंदर होने वाली रासायनिक क्रियाएँ हमारे
स्वास्थ्य को प्रभावित करती है
(ख) बाह्य परिवेश–कपड़ों की सफाई, बिस्तर, आस-पास, विद्यालय, शुद्ध जल,
संतुलित भोजन का भी हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है।
(iv) सामाजिक-सांस्कृतिक कारक-हमारा समाज, हमारी संस्कृतिक, रीति रिवाज,
धार्मिक विश्वास, अंधविश्वास भी स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
(v) व्यक्तिगत आदतें— व्यक्ति की आदतों का उसके स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता
है। नियमित व्यायाम, अनुशासित जीवन शैली व्यक्ति को स्वस्थ रखते हैं। आलसी व्यक्ति,
अनियमित आदत वाला व्यक्ति रोगी रहता है।
प्रश्न 6. स्वास्थ्य संबंधी कुछ सामान्य खतरों का वर्णन कीजिए।
उत्तर―आग, डूबना, बिजली, विषाक्तता आदि के कारण होने वाली दुर्घटनाएं सामान्य
खतरे हैं। इन खतरों से रोकथाम के उपाय करना आवश्यक है। इन खतराों से बचने के
लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
(क) आग से होने वाली दुर्घटनाओं से बचने के लिए पेट्रोल आदि ज्वलनशील पदार्थों
को आग से दूर रखें। पर्वो व उत्सवों पर पटाखे जलाते समय सावधानी बरतनी चाहिए।
जलते हुए लैम्प अदि को कपड़ों तथा जलने वाली चीजों से दूर रखें। तेज हवा चलने की
स्थिति में कागज व पत्तों को खुले में नहीं जलाना चाहिए तथा किसी समय कपड़ों में आग
लगने की स्थिति में ठंडा पानी डालें तथा जमीन पर लेट जाना सुरक्षित उपाय है।
(ख) बिजली से चलने वाली चीजें जीवन को सुविधाजनक बनाती हैं परंतू असावधानी
से इनसे अनेक दुर्घटनाएँ घट जाती हैं। इनसे बचने के लिए विद्युत उपकरणों की उचित
देखभाल करें। विद्युत उपकरण का इस्तेमाल करते समय व करने के बाद स्विच ऑफ करके
ही प्लग लगाएँ व निकालें। छोटे बच्चों तक इन उपकरणों की पहुँच न हो यह ध्यान रखना
चाहिए। उपयोग न होने की स्थिति में उन्हें सुरक्षित स्थान पर रखें।
(ग) नदी, तालाब, कुएँ आदि जल स्रोतों में डूबने से भी अनेक दुर्घटनाएँ घट जाती
हैं। इन खतरों को कम करने के लिए तेज प्रवाह की स्थिति में पानी में न जाएँ। कुएँ की
मुँडेर से दूर रहना चाहिए तथा किसी को धकेलना नहीं चाहिए तैरना एक अच्छा व्यायाम
है परंतु अकेले तैरने का अभ्यास न करें किसी डूबते व्यक्ति को बनाने की स्थिति में प्राथमिक
चिकित्सा निर्देशों का पालन करें तथा पानी की विपरीत दिशा में तैरें।
(घ) अनेक कीटनाशक दवाएँ तथा मार्जक आदि विषाक्त होते हैं इसलिए ऐसी दवाइयों,
कीटनाशकों आदि को दूर रखें। इन विषैले पदार्थों को प्रयोग के बाद तुरंत सुरक्षित स्थान पर
रख दें तथा इन पर लेबल लगाकर लिख देंताकि कोई इनका अनजाने में इस्तेमाल न करें।
अधिक बासी भोजन आदि न खाएँ, क्योंकि अधिक समय तक रखने से ये विषाक्त हो जाती हैं।
प्रश्न 7. विद्यालय स्वास्थ्य सेवाओं के आवश्यक तत्व कौन-से हैं ? विद्यालय
स्वास्थ्य सेवाओं का महत्त्व बताइए ।
उत्तर–एक अच्छे विद्यालयी स्वास्थ्य कार्यक्रम के निम्नलिखित आवश्यक तत्त्व हो
सकते हैं :
(i) स्वास्थ्य संबंधी सूचना एवं ज्ञान जिसमें सामयिक डॉक्टरी परीक्षण, सामयिक दंत
परीक्षण, मनोवैज्ञानिक परीक्षण, पृथक्करण परीक्षण तथा अध्यापक एवं नर्स द्वारा किए जाने
वाले परीक्षण सम्मिलित होते हैं।
(ii) पीछे की जाने वाली अनुवर्ती कार्यवाही ।
(iii) संक्रामक रोगों पर नियंत्रण
(iv) आपातकालीन देखभाल संबंधी प्रक्रियाएँ ।
(v) विद्यालय में विद्यमान सभी व्यक्तियों का स्वास्थ्य परीक्षण
(vi) अतिरिक्त स्वास्थ्य सेवाएँ ।
(vii) विद्यार्थियों द्वारा किए जाने वाले बहाने ।
विद्यालय स्वास्थ्य सेवाएँ बच्चों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर प्रभाव डालती हैं। वे केवल
बीमारियों अथवा शारीरिक दोषों या अपंगताओं का ही वर्णन नहीं करतीं अपितु विद्यालयी
बच्चों के जीवन में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। विद्यालय स्वास्थ्य सेवाओं का
महत्त्व निम्न बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है:
(i) ये बच्चों के सर्वोन्मुखी विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
(ii) बच्चे की शिक्षा प्राप्त करने की अधिकतम योग्यता को प्रदर्शित करती हैं।
(iii) शिक्षकों, अभिभावकों तथा स्वास्थ्य अधिकारियों को बच्चे की स्वास्थ्य संबंधी
सूचनाएँ देती हैं।
(iv) विद्यालय की स्वास्थ्य सेवाएँ बच्चों के मस्तिष्क में सुरक्षा की भावना विकसित
करती हैं, क्योंकि सुरक्षा की भावना आ जाने पर बच्चे प्रत्येक गतिविधि में बिना भय के
सम्मिलित हो पाते हैं। इससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
(v) विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाएँ समायोजन का सुझाव
(vi) इनके द्वारा कक्षा में अनुपस्थित होने वाले छात्रों की संख्या में कमी लाने में मदद
मिलती है।
(vii) विद्यालय स्वास्थ्य सेवाएँ विद्यालय के स्वास्थ्यप्रद वातावरण के निर्माण में सहायक
होती हैं।
प्रश्न 8. शारीरिक शिक्षा क्या है ? शारीरिक शिक्षा के प्राप्य उद्देश्यों को बताइए।
उत्तर– सामान्य शिक्षा की तरह शारीरिक शिक्षा भी “बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का
विकास करने वाली शिक्षा है।” हम शारीरिक शिक्षा के लिए विद्यालय में जो भी कार्यक्रम
बनाते हैं, उससे बच्चों का केवल शारीरिक विकास ही नहीं होता बल्कि मानसिक, सामाजिक
व भावात्मक विकास भी होता है तथा उनमें एक आदर्श नागरिक के गुणों को भी विकसित
किया जाता है।
विभिन्न विद्वानों ने शारीरिक शिक्षा को अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। कुछ
विद्वानों की परिभा गएँ यहाँ दी जा रही हैं :
जे. एफ. विलियम्स एवं सी. एल. ब्राउनेल के शब्दों में, “शारीरिक शिक्षा मानव की
शारीरिक गतिविधियों का एक सामूहिक रूप है जिसे विशेष दशा में अपनाकर किसी फल
प्राप्ति के लिए संचालित किया जाता है। “
शर्मन के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा मोटर एक्टीविटीज और उससे संबंधित माध्यमों से
दी जाने वाली शिक्षा है।”
शारीरिक शिक्षा के प्राप्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
1. छात्रों के स्वास्थ्य का संरक्षण करना शारीरिक शिक्षा का प्रथम प्राप्य उद्देश्य है। छात्रों
को शरीर के विभिन्न तंत्रों का ज्ञान कराना और उनके कुशल संचालन के लिए उपयुक्त
शारीरिक क्रियाएँ, व्यायाम तथा यौगिक क्रियाओं का उन्हें ज्ञान एवं अभ्यास कराना।
2. शारीरिक गतिविधियों में नियंत्रित रूप से योगदान करने के अवसर छात्रों को प्रदान
करना जिससे वे अपनी रुचि और आवश्यकता के अनुसार उचित गतिविधि में भाग ले सकें।
3. छात्रों को नियमित रूप से व्यायाम करने की आदत डालना जिससे उनके शरीर में
सुदृढ़ता आ सके और शरीर सुडौल बन सके।
4. छात्रों में किसी भी कार्य को करने के लिए स्फूर्ति एवं उत्साह की भावना विकसित
करना । इससे बच्चे बिना थके हुए अधिक देर तक कार्य कर सकते हैं।
5. शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ नागरिकों का निर्माण करना।
6. विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के अभ्यास के द्वारा छात्रों के मानसिक तनाव को कम
करना और उनमें मानसिक जागरूकता विकसित करना ।
7. कला कौशल की गतिविधियों, बाह्य खेल, संगीतात्मक क्रियाएँ, नाटक, नृत्य, अपनी
रुचि के प्रिय खेल तथा रुचिपूर्ण कार्य, शारीरिक संस्कृति संबंधी क्रियाएँ आदि का आयोजन
करना, जिनमें भाग लेकर बच्चे अपना स्वस्थ मनोरंजन कर सकें और अपने मानसिक तनाव
को कम कर सकें।
8. विभिन्न क्रियाओं के माध्यम से बच्चों को अवकाश के समय का सदुपयोग करना
सिखाना।
9. छात्रों की अतिरिक्त शक्ति को बाहर निकालने के लिए उचित अवसर व परिस्थिति
प्रदान करना ।
10. विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के अभ्यास के द्वारा छात्रों में स्वास्थ्य संबंधी उचित
आदतों का विकास करना । उन्हें नियमित व्यायाम, पौष्टिक भोजन, व्यक्तिगत स्वच्छता आदि
की जानकारी देना और इसके लिए स्वस्थ अभिवृत्ति को विकसित करना ।
प्रश्न 9. योग से आप क्या समझते हैं ? शारीरिक शिक्षा में योग का महत्व
बताइए।
उत्तर—योग शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृति की ‘युण’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है―
युक्त करना, जोड़ना या मिलाना। इसीलिए आत्मा को परमात्मा से मिलाने वाली क्रियाओं
का नाम योग है।
महर्षि पतंजलि ने अपने ‘योगदर्शन’ में योग की परिभाषा देते हुए कहा है, ‘योगश्चित्तवृत्ति
निरोध’ अर्थात मन की वृत्तियों (रस, गंध, स्पर्श, ध्वनि तथा रूप) को रोकना योग है।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के शब्दों में, “योग वह पुरातन पथ है, जो व्यक्ति को
अँधेरे से प्रकाश में लाता है।”
योग की दी गई विभिन्न परिभाषाओं से योग की निम्नलिखित विशेषताओं को इंगित
किया जा सकता है :
1. योग मन की चंचलता को नियंत्रित करता है, इसलिए योग इन्द्रियों को वश में करने
का साधन है।
2. योग व्यक्ति का अज्ञान दूर करके उसे विवेकशील बनाता है।
3. योग व्यक्ति का अपनी आंतरिक शक्तियों से परिचय करवाकर उस पर नियंत्रण करने
की सामर्थ्य प्रदान करता है।
4. योग जीवन के प्रत्येक कार्यक्षेत्र में कुशलतापूर्वक कार्य करने की योग्यता तथा शक्ति
है।
बढ़ाता
5. योग व्यक्ति की एकाग्रता में सहायक होता है।
शारीरिक शिक्षा में योग का महत्त्व– शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चे के व्यक्तित्व का
सर्वांगीण विकास करना है। सर्वांगीण विकास से तात्पर्य विद्यार्थी का शारीरिक, मानसिक,
सामाजिक, नैतिक, आध्यात्मिक एवं संवेगात्मक विकास से होता है। शिक्षा में योग शिक्षा
का महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि योग शिक्षा तथा उससे संबंधित क्रियाएँ विद्यार्थी के बहुमुखी
विकास में सहायक होती हैं। योग शिक्षा के शैक्षिक महत्त्व को निम्नलिखित रूपों में समझा
जा सकता है :
(क) शारीरिक विकास :
(i) योग एवं यौगिक क्रियाएँ शरीर के विभिन्न संस्थानों के उचित ढंग से कार्य करने में
पर्याप्त सहायता करते हैं।
(ii) शरीर के आकार, बनावट को आकर्षक बनाने में योग शिक्षा महत्त्वपूर्ण भूमिका
निभाती है।
(iii) योग शिक्षा में शरीर रोगमुक्त रहता है तथा व्यक्ति दीर्घायु होता है, क्योंकि यौगिक
क्रियाओं से शरीर में हानिकारक पदार्थ जमा नहीं हो पाते।
(iv) यौगिक क्रियाओं से श्वास प्रक्रिया सुचारु बनी रहती है तथा शारीरिक क्षमता एवं
कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।
(ख) मानसिक विकास :
(i) योग शिक्षा द्वारा स्वस्थ शरीर से स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण होता है।
(ii) योग शिक्षा से शरीर की ज्ञानेन्द्रियों की ग्रहण शक्ति तथा कार्यक्षमता बढ़ती है। इससे
बच्चे मानसिक रूप से जागरूक, प्रखर तथा सबल बनते हैं।
(iii) यौगिक क्रियाएँ एकाग्रता, ध्यान की स्थिरता तथा निरंतरता जैसी चित्तवृत्तियाँ उत्पन्न
करती हैं, जिससे बच्चों की बौद्धिक क्षमताओं का विकास होता है।
(iv) योग द्वारा स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है तथा पुनःस्मरण एवं धारण शक्ति का
विकास होता है।
(ग) सामाजिक विकास :
(i) योग से मन की चंचलता तथा इन्द्रिय निग्रह को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है।
इससे बच्चे में अच्छे-बरे की समझ पैदा होती है तथा वह असामाजिक व्यवहारों से दूर रहता है।
(ii) योग द्वारा सहयोग, प्रेम, धैर्य, सहिष्णुता, शांति तथा भाईचारे से सामाजिक गुणों का
विकास होता है।
(घ) संवेगात्मक विकास :
(i) योग द्वारा स्वस्थ तन और स्वस्थ मन का निर्माण होता है, जो संवेगों को
सकारात्मकता में सहायक है। इससे व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रखर एवं आनंदमय बनता है।
(ii) संवेगात्मक विकास में योग संवेगों के ऊपर नियंत्रण रखने में सहायक होता है।
(ङ) नैतिक विकास :
(i) योग व्यक्ति की इन्द्रियों को वश में रखता है, जो नैतिक मूल्यों की वृद्धि में सहायक
होता है।
(ii) योग द्वारा शरीर की बाहरी तथा भीतरी शुद्धि होती है, जिससे उसके भाव और विचार
शुद्ध होते हैं, जो नैतिक मूल्यों को व्यक्तित्व का अंग बनाने में सहायक होते हैं।
(iii) योग शिक्षा बालक की दिनचर्या को नियमित तथा संयमित बनाती है तथा उसमें
सद्गुणों का विकास करके उसे अनैतिकता से दूर ले जाने में सहायता करती है।
(च) आध्यात्मिक विकास—योग शिक्षा से स्वस्थ तन और स्वस्थ मन द्वारा नैतिक
तथा सामाजिक गुणों का विकास होता है, जिससे व्यक्ति का चित्त निर्मल बनता है और वह
परमार्थ की ओर अग्रसर होता है, जिससे उसका आध्यात्मिक विकास होता है।
प्रश्न 10. खेल क्या है ? विभिन्न प्रकार के खेलों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-खेल (Play) — To do things for pleasure to enjoy yourself rather
than work.
वे सभी क्रियाएँ खेल हैं जिन्हें बच्चे स्वतंत्रतापूर्वक आत्मप्रेरित होकर आनंद प्राप्ति के
लिए करते हैं।
गुलिक (Gulick) के शब्दों में, Play is what we do when we are free to do
what we will.
अर्थात् खेला वह क्रिया है जिसे हम स्वतंत्रतापूर्वक अपनी इच्छानुसार करते हैं।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक एडिसन ने कहा था कि मैंने कभी काम नहीं किया। इस कथन का
अर्थ है कि उन्होंने जो भी किया खेल समझकर किया आनंद के लिए किया ।
उपर्युक्त परिभाषाओं पर ध्यान देने से खेल के निम्नलिखित अभिलक्षण निर्धारित किए
जा सकते हैं—
1. खेल आनंददायक, मनोरंजक क्रियाकलाप है। (Play is pleasurable)
2. एक ही क्रियाकलाप एक व्यक्ति के लिए खेल हो सकता है तो दूसरे व्यक्ति के लिए काम ।
3. खेल आंतरिकत: अभिप्रेरित होता है (Play is self motivated)।
4. खेल में स्वतंत्रता रहती है (Play involves freedom)
5. खेल में बच्चों की सक्रिय भागीदारी होती है।
6. खेल समस्याओं को भूलने का माध्यम है।
7. खेल व्यक्ति की अतिरिक्त ऊर्जा के उपयोग में सहायक है।
8. काम से थकने के बाद खेल विश्राम करने और ऊर्जा पुनर्निर्माण में सहायक है।
9. कार्ल ग्रूस ने कहा कि खेल भावी जीवन की तैयारी है।
10. फ्रायड के अनुसार खेल से निराशा की अतिपूर्ति होती है।
11. पियाजे (Piaget) के अनुसार खेल सामजीकरण में सहायक है।
खेल के प्रकार–बच्चों में खेल के कौशलों के विकास के आधार पर खेल को चार
वर्गों में बाँटा गया है―
1. खोजपरक अथवा अन्वेषणात्मक खेल–बच्चे किसी वस्तु को देखता, सूँघता,
सुनता, छूता है और स्वाद लेता है ऐसा करके वह रंग, रूप, आकार, भार बनावट और
आकृति के बारे में जानकारी प्राप्त करता है।
रेत, पानी, मिट्टी, पेंट, लकड़ी आदि से खेलता है और सूखी रेत, गीली रेट में अंतर
समझता है उनका उपयोग समझता है। इससे बच्चों में हस्तप्रयोगी कौशलों और समन्वय का
विकास होता है।
2. रचनात्मक खेल―खेल में बच्चा उपलब्ध सामग्री की सहायता से नवीन वस्तुओं
का निर्माण करता है। रेत का किला बनाना या ब्लॉक द्वारा किसी ढाँचे का निर्माण करना
रचनात्मक खेल के उदाहरण है।
3. कल्पनात्मक खेल–बच्चा घर बनाने के बाद यह कल्पना कर सकता है कि वह
घर का मालिक है, वह माता-पिता की तरह व्यवहार करना शुरू कर देता है। ऐसे खेल
बच्चे में कल्पना का विकास करते हैं।
4. नियमबद्ध खेल―नौ दस वर्ष के बच्चे नियमबद्ध और व्यवस्थित रूप से खेल
खेलने लगते हैं जैसे—फुटबॉल या क्रिकेट का खेल। ऐसे खेल में वे स्वयं नियमों का हेर
फेर करके खेल को सुगम बनाते हैं। नियम ऐसे बनाए जाते हैं जो सबको स्वीकार्य हों । ऐसे
खेलों से बच्चे सामाजिक कौशल सीखते हैं।
प्रश्न 11. विद्यालयों में स्वास्थ्य शिक्षा की क्या आवश्यकता है ? चर्चा करें ।
उत्तर―विद्यालयों में स्वास्थ्य शिक्षा की आवश्यकता राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986
में इस बात की घोषणा की गई थी कि “खेल और शारीरिक शिक्षा सीखने की प्रक्रिया के
अभिन्न अंग है और इन्हें विद्यार्थियों की कार्य सिद्धि के मूल्यांकन में शामिल किया जाएगा।
शारीरिक शिक्षा और खेल-कूद की राष्ट्रव्यापी अधोरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर) को शिक्षा व्यवस्था
का अंग बनाया जाएगा।”
इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने खेल के मैदानों तथा खेल
उपकरणों व शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों की व्यवस्था करने पर बल दिया है। प्रतिभावान
खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने, योग शिक्षा के द्वारा शरीर व मन का समेकित विकास करने
एवं भावी शिक्षकों को इस विषय से परिचित कराने के लिए शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में
भी इसे सम्मिलित करने का संकल्प प्रकट किया गया है। इसीलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986
पर आधारित “राष्ट्रीय पाठ्यक्रम” में स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा को एक अनिवार्य विषय
के रूप में स्थान दिया गया है।
बालक के सर्वांगीण विकास की दृष्टि से उसका शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ
रहना बहुत आवश्यक है । प्राय: देखा गया है कि विद्यालयों में स्वास्थ्य एवं मानसिक शिक्षा
को महत्वपूर्ण स्थान नहीं दिया जाता। विद्यालयों में की जा रही इस उपेक्षापूर्ण स्थिति का
वर्णन करते हुए माध्यमिक शिक्षा आयोग ने लिखा था कि-“देश के युवकों के शारीरिक
कल्याण का मुख्य दायित्व राज्य का होना चाहिए तथा जीवन की इस अवधि में शारीरिक
कल्याण के सामान्य स्तर के नीचे गिरने से गंभीर परिणाम होते हैं ये रोग उत्पन्न कर सकते
हैं या कुछ रोगों से ग्रस्त होने की आशंका बनी रहती है। अतः शारीरिक स्वास्थ्य और स्वास्थ्य
शिक्षा का इतना महत्त्व हो जाता है जिसकी उपेक्षा किसी राज्य को नहीं करनी चाहिए।”
स्वास्थ्य शिक्षा के द्वारा शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए बालकों
को निर्देशन दिया जाता है, जिसका उत्तरदायित्व विद्यालय का होता है। डॉ. एस. एस. माथुर
के अनुसार, “छात्र के स्वास्थ्य को अच्छा रखने का उत्तरदायित्व शिक्षक पर अधिक रहता
है, परंतु शिक्षक इस दायित्व को उसी स्थिति में निभा सकता है, जब वह स्वास्थ्य विज्ञान
से परिचित हो।” ऐसी स्थिति में शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालयों में छात्र-शिक्षकों को प्रशिक्षण
के दौरान स्वास्थ्य शिक्षा का ज्ञान दिया जाना आवश्यक है ।
प्रश्न 12. व्यक्तिगत स्वच्छता के अन्तर्गत स्नानपर प्रकाश डालें।
उत्तर—व्यक्तिगत स्वच्छता में स्नान का अत्यधिक महत्त्व है। यह स्वच्छता के लिए
आवश्यक होने के सथ-साथ त्वचा एवं आन्तरिक अंगों के लिए अत्यन्त लाभप्रद है। स्नान
करने से त्वचा में रक्त संचरण बढ़ता है, असुहावनी गंध से छुटकारा मिलता है, थकान से
मुक्ति मिलती है तथा शारीरिक तापक्रम का नियंत्रण होता है। स्नान के समय कमरे/बाथरूम
का तापक्रम उपयुक्त होना चाहिए। इसी प्रकार, पानी का तापक्रम रोगी की शारीरिक स्थिति
के अनुकूल होना चाहिए। स्नान किस प्रकार से किया जाए यह व्यक्ति विशेष की आदतों,
रीति-रिवाजों, परम्पराओं उनके महत्त्व तथा आवश्यकता एवं जलस्रोत या स्नान सामग्री की
उपलब्धता पर निर्भर करता है। स्नान का सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। स्नान
के पश्चात् सामान की स्वच्छता, मलिन कपड़ों के निस्तारण की व्यवस्था होना आवश्यक है।

