1st Year

विभिन्न प्रकार की श्रवण सामग्री की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। Describe characteristics of differents kinds of listening materials.

प्रश्न – विभिन्न प्रकार की श्रवण सामग्री की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
Describe characteristics of differents kinds of listening materials.
या
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए – 
Write short notes on the following: 
(1) श्रवण कौशल विकास सम्बन्धी क्रियाकलाप (Activities related developing Listening Skill)
(2) श्रेष्ठ श्रवण सामग्री की विशेषताएँ (Characteristics of Good Listening Materials)
उत्तर – श्रवण सामग्री (Listening Materials)
इसके अन्तर्गत यह उपकरण सम्मिलित किए जाते हैं जिनके लिए केवल श्रवणेन्द्रिय का प्रयोग किया जाता है। जैसे – ग्रामोफोन, रेडियो, टेपरिकॉर्डर, लिग्वांफोन आदि ।
  1. रेडियो – रेडियो विद्युत चुम्बकीय तरंगों द्वारा सृजित सिग्नलों के प्रेषण और ग्रहण करने का साधन है। यह मौखिक संचार का एक अच्छा श्रव्य साधन है। सन् 1895 में मारकोनी ने इसका आविष्कार किया था। शिक्षा के सन्दर्भ में अनुशासित, आलोचनात्मक श्रवण क्षमता का सम्प्रेषण हेतु विकास करना इसका एकमात्र उद्देश्य होता है। इसका प्रभाव विद्यार्थी के भावात्मक पक्ष के साथ-साथ सामाजिक व्यवहार व तार्किक चिन्तन के विकास पर भी होता है। इसके माध्यम से शैक्षिक नाटक, कविताएं, प्रेरक प्रसंग, महापुरुषों की जीवनियाँ, खोजें, आविष्कार, शैक्षिक वार्ताएँ, सामान्य ज्ञान, वैज्ञानिक व्याख्यान, वाद-विवाद, कृषि – कार्यक्रम, मनोरंजन कार्यक्रम आदि का प्रसारण होता है जिससे प्रत्येक व्यक्ति तथा विद्यार्थियों को लाभ होता है। इसके अतिरिक्त रेडियो द्वारा नियमित रूप से विभिन्न कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए निश्चित समय पर शैक्षिक कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। यह एक अल्पव्ययी साधन है। रेडियो के माध्यम से विद्यार्थी महान विभूतियों की आवाज, भाषण और वक्तव्य को सुन सकते हैं। महानतम् कलाकारों का संगीत, वर्तमान क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं का रेडियो के द्वारा प्रसारण विद्यार्थियों को लाभान्वित करता है। छात्र एवं शिक्षकों के लिए रेडियो की शैक्षिक उपयोगिता अभी कुछ ही समय से प्रकाश में आयी है। इसके महत्त्व को दृष्टिगत रखते हुए आकाशवाणी से शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रम प्रसारित होने लगे हैं। आकाशवाणी से महान व्यक्तियों के जीवन के विषय में कार्यक्रम आते हैं। इसी प्रकार शिक्षा से सम्बन्धी अन्य रुचिकर कार्यक्रम भी प्रसारित होते हैं।
    रेडियो का शैक्षिक महत्त्व
    1. रेडियो के द्वारा दुर्गम स्थानों पर भी सभी के समुदाय बालकों एवं बड़े लोगों को ज्ञान, कला व संसार के बारे में अद्यतन (Updated) जानकारी मिलती है।
    2. ऐसे स्थान जहाँ पर आज भी बिजली उपलब्ध नही है वहाँ पर बालकों को शैक्षिक ज्ञान व मनोरंजन रेडियो के द्वारा प्राप्त होता है।
    3. रेडियो को कक्षा में रखकर छात्रों को प्रसारण सुनाना चाहिए तथा साथ ही साथ अध्यापक द्वारा छात्रों के मन में उठ रहे प्रश्नों एवं शंकाओं का समाधान कर उनके ज्ञान में वृद्धि एवं उनमें तर्क द्वारा चिंतन क्षमता का विकास किया जा सकता है।
    4. रेडियो प्रसारण से शैक्षिक एवं अन्य क्षेत्रों से सम्बंधित अद्यतन जानकारी प्राप्त होती है।
    5. इसके प्रयोग से कक्षा शिक्षण में विविधता आती है तथा कक्षा की नीरसता दूर होती है। छात्रों में शिक्षण के प्रति रुचि उत्पन्न होती है ।
    6. रेडियो प्रसारण के माध्यम से शिक्षक को भी ज्ञान प्राप्त होता है जो शिक्षण कार्य के लिए बहुत उपयोगी होता है।
    7. रेडियो के माध्यम से छात्र अद्यतन क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं की जानकारी प्राप्त करते हैं।
    8. रेडियो से भाषण, संगीत व अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम रिकॉर्ड कर उन्हें आवश्यकतानुसार शिक्षा में प्रयोग किया जा सकता है।
    9. रेडियो में नियमित रूप से समाचार प्रसारित किए जाते हैं उनसे छात्र महत्त्वपूर्ण समाचारों को नोट कर स्वयं को अद्यतन (Updated) रख सकते हैं।
  2. टेप रिकॉर्डर – यह एक श्रव्य साधन है जिसमें रिकॉर्ड की गई बातों को कभी भी, कहीं भी आवश्यकतानुसार सुना जा सकता है। कोई भी वक्तव्य, कथन, भाषण, गाना, नाटक, वार्तायें, वाद-विवाद, विचार-विमर्श, व्याख्यान तथा उपदेश आदि को टेप रिकॉर्ड की गई आवाज करके विद्यार्थियों के समक्ष कक्षा में कभी भी प्रस्तुत किया जा सकता है। एक बार रिकॉर्ड की गयी आवाज को भविष्य में कभी भी सुना जा सकता है। रिकॉर्ड की गयी आवाज को मिटाया नहीं जा सकता हैं। यह एक प्रभावशाली शिक्षण सहायक-सामग्री है। शिक्षक के व्याख्यान को रिकॉर्ड करके विद्यार्थी कभी भी उसका लाभ उठा सकते हैं।
    भाषा प्रयोगशाला ने शिक्षा के क्षेत्र में टेप रिकॉर्डर को सबसे पहले प्रयोग किया गया । इनका प्रयोग साहित्य, संगीत तथा अन्य विषय की कक्षाओं, व्याख्यान शालाओं, बी. एड. में सूक्ष्म शिक्षण के दौरान तथा शिक्षण-प्रशिक्षण के समय टेप रिकॉर्डर का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग उपचारात्मक शिक्षण, कौशल अधिगम, पुनर्बलन में भी किया जाता है । यह अन्य विद्युतीय उपकरणों की अपेक्षा अधिक मितव्ययी है। इसे बैटरी से भी चलाया जा सकता है। यह एक अन्य उपयोगी सामग्री है जिसका उपयोग शिक्षक सरलता पूर्वक कर सकता है, इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें संग्रहित सामग्री को किसी भी समय सुविधानुसार प्रयोग में लाया जा सकता है।
    किसी विद्वान का व्याख्यान, रेडियो पर आई कोई वार्ता आदि को अग्रिम रूप से रिकार्ड करके अध्यापक अपनी सुविधानुसार उसका प्रयोग कर सकता है। टेप रिकॉर्डर, ग्रामोफोन का विकल्प है। यह उसकी अपेक्षा अल्पव्ययी भी है क्योंकि आवश्यकता समाप्त होने पर एक ही टेप का अनेक बार प्रयोग किया जा सकता है।
    शिक्षा में टेप – रिकॉर्डर की उपयोगिता
    1. शिक्षा से सम्बन्धित किसी भी प्रसारण को रिकॉर्ड कर आवश्यकतानुसार सुना जा सकता है।
    2. उच्चारण सम्बन्धी दोषों को दूर करने में इसका प्रयोग बहुत लाभदायक है। बार-बार उच्चारण करके छात्रों को शुद्ध उच्चारण का अभ्यास कराया जा सकता है।
    3. देश-विदेश के महान व्यक्तियों के भाषण एवं व्याख्यानों को रिकॉर्ड कर छात्रों को सुनाया जा सकता है।
    4. कोई भी अध्यापक अपने शिक्षण कार्य, व्याख्यान आदि को रिकॉर्ड कर स्वयं का मूल्याकंन कर सकता है।
    5. फिल्म पट्टियों तथा स्लाइडों के लिए व्याख्यात्मक वर्णन तैयार करने में यह सहायक होता है।
    6.  टेप रिकॉर्डर का प्रयोग उपचारात्मक शिक्षण, कौशल अधिगम, अभ्यास कार्य तथा पुनर्बलन के क्षेत्र में भी किया जा सकता है।
    7. टेप रिकॉर्डर के माध्यम से शिक्षक उपयोगी शिक्षण सामग्री किसी भी समय रिकॉर्ड तथा सुविधानुसार उपयोग कर सकता है।
    8. एक बार रिकॉर्ड किया गया टेप यदि प्रयोग में नहीं आ रहा है तो पुरानी रिकार्डिंग को निकालकर उसमें • पुनः नयी सामग्री रिकॉर्ड की जा सकती है। “
    9. इसके प्रयोग से छात्रों में अनुशासनहीनता की समस्या को काफी सीमा तक हल किया जा सकता है।
    10. इस यंत्र के द्वारा विद्यालय में आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों को रिकॉर्ड किया जा सकता है।
  3. ग्रामोफोन – ग्रामोफोन भी रेडियो की भाँति शिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। ग्रामोफोन द्वारा बालकों को भाषण तथा गाने की शिक्षा दी जाती है तथा ग्रामोफोन द्वारा बालकों को शुद्ध भाषा उच्चारण की भी शिक्षा दी जाती है। अतः शिक्षक को उक्त दोनों उपकरणों का शिक्षण के समय आवश्यकतानुसार प्रयोग करना चाहिए। आधुनिक शिक्षा में ग्रामोफोन का प्रयोग काफी बढ़ता जा रहा है। फिर भी ये दोनों उपकरण शिक्षक का स्थान किसी भी दशा में नहीं ले सकते हैं। ऐसी स्थिति में शिक्षक को चाहिए कि वह इन उपकरणों का प्रयोग करने के पश्चात् बालक के सामने विषय को अवश्य स्पष्ट कर दे, जिससे वे ज्ञान को सफलतापूर्वक ग्रहण कर सकें।
    ग्रामोफोन के शैक्षिक महत्त्व –
    1. इसके द्वारा दूरस्थ स्थानों में बैठे व्यक्ति भी लाभ उठा सकते हैं।
    2. ग्रामोफोन द्वारा महान विभूतियों की आवाज, भाषण व वाक्य जो जीवन की सच्चाई है, उन्हें सुन पाते हैं।
    3. उच्च स्तर के ज्ञानवर्धक नाटक विद्यार्थियों को सुनाकर उनके विकास में सहायक सिद्ध होते हैं ।
    4. इसकी सहायता से सामूहिक रूप से ज्ञान प्रदान किया जाता है।
    5. इसके उपयोग से बालकों की कल्पना शक्ति तीव्र हो जाती है।
श्रेष्ठ श्रवण सामग्री की विशेषताएँ ( Characteristics of Good Listening Materials) 
श्रेष्ठ श्रवण सामग्री से अभिप्राय ऐसी सामग्री से है जिसकी सहायता से श्रवण कौशल अच्छी तरह से विकसित हो सके। यह सामग्री मुद्रित व अमुद्रित दोनों तरह की होती है। श्रवण कौशल को विकसित करने में मुख्य पाठ्य सामग्री की भूमिका होती है। बालक के श्रवण कौशल को विकसित करने के लिए एक भाषा शिक्षक को यह अवश्य विचार करना होगा कि वे किस तरह की श्रवण सामग्री प्रयोग करे तथा उसकी क्या विशेषताएँ होनी चाहिए जिनकी सहायता से शिक्षार्थियों में श्रवण कौशल (Listening Skill) का सुनियोजित रूप से विकास कर सकेंगे, जो इस प्रकार हैं-
  1. श्रवण कौशल का विकास करने के लिए सीखने वाले के समक्ष एक ही वक्ता होना चाहिए जिससे श्रोता उसे ध्यान से सुन सकें। उसका ध्यान इधर-उधर न भटके ।
  2. वक्ता का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए तथा उसकी आवाज ऊँची होनी चाहिए, जो श्रोता को शीघ्रता से ही समझ आ जाए।
  3. वक्ता और श्रोता दोनों ही मानसिक रूप से तैयार हों तभी श्रोता भी पूरे ध्यान से सुनेगा। इससे उसका श्रवण कौशल विकसित होगा, क्योंकि वक्ता और श्रोता दोनों ही पूर्ण तत्परता से सुनेंगे।
  4. वक्ता को बोलते समय उचित गति व विराम का विशेष ध्यान रखना चाहिए। बोलते समय उसे स्वराघात, बालाघात, तथा आरोह-अवरोह की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। ऐसी भाषा को श्रोता बड़ी तन्मयता से सुनेगा ओर उसके अर्थ को भी समझेगा ।
  5. वक्ता जो भी सुनना चाहे वह श्रोता के पाठ्य विषय से सम्बन्धित होना चाहिए। पाठ्य विषय से सम्बन्धित सामग्री को वह ध्यान से सुनेगा और एकाग्रता से उस पर चिन्तन करेगा।
  6. श्रव्य सामग्री पूर्वज्ञान से जुड़ी होनी चहिए। जो ध्वनियाँ, शब्द रूप तथा वाक्य श्रोता के समक्ष स्पष्ट हो चुके हैं। केवल उन्हीं का प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि नई ध्वनि या नए शब्द रूप आदि का अचानक प्रयोग विद्यार्थियों की एकाग्रता को भंग कर सकता है।
  7. श्रवण कौशल विकसित करने में श्रवण सामग्री के रूप में चारों ओर का वातावरण भी उपयोगी होता है। वहाँ पर अधिगम स्थितियाँ ऐसी होनी चाहिए कि सीखने वाला सीखने के लिए प्रेरित होकर वक्ता की बात को ध्यान से सुने।
  8. श्रवण सामग्री सरल बोधगम्य होनी चाहिए। वह श्रोताओं के मानसिक एवं बौद्धिक योग्यताओं के अनुरूप होनी चाहिए तथा उसकी अभिव्यक्ति सरल एवं रोचक ढंग की होनी चाहिए।
  9. शिक्षक को चाहिए कि वह जो बोल रहा है वह शिक्षार्थी एक ही बार में सुन ले। इसलिए उसे कम से कम दो बार अवश्य बोले ताकि शिक्षार्थी उसे समझकर लिख सके ।
  10. श्रुतलेख के लिए चयनित परिच्छेद विद्यार्थियों की मानसिक एवं बौद्धिक योग्यताओं के अनुरूप हो ।
  11. श्रव्य सामग्री रुचि व स्तर के अनुरूप होनी चाहिए। श्रव्य सामग्री रोचक होगी वह बच्चे के मानसिक स्तर के अनुकूल होगी तो वह ध्यान केन्द्रित करके सुनेगा कहानी व कविता जैसी सामग्री को बच्चे इसलिए ध्यान से सुनते हैं।
  12. श्रव्य सामग्री को ग्रामोफोन व टेपरिकॉर्डर पर रिकॉर्ड करके बार- बार सुनाए जाते हैं इसलिए इन टेपरिकॉर्डर की. आवाज स्पष्ट होनी चाहिए जिससे उसे सुनकर समझा जाए।
  13. श्रवण उपकरण विद्यार्थियों की रुचियों, सौन्दर्य बोध तथा मानसिक स्तर की आवश्यकताओं के अनुकूल हों ।
  14. श्रवण कौशल विकसित करने के लिए उपकरणों-रेडियो, टेलीविजन इत्यादि को उचित स्थानपर रखना चाहिए और बच्चों को बैठने की भी उचित व्यवस्था करनी चाहिए अर्थात् श्रवण कौशल विकसित करने में सहयोगी उपकरण पहले से ही तैयार होने चाहिए। उसमें निश्चित प्रवाह बना रहे और किसी प्रकार की बाधा न हो।
  15. श्रव्य सामग्री श्रोता की क्षेत्रीय भाषा में होनी चाहिए।
  16. श्रवण कौशल विकसित करने में प्रयोग होने वाली सामग्री साधारण होनी चाहिए तथा ज्यादा महंगी भी नहीं होनी चाहिए।
  17. वह सामग्री हर दृष्टिकोण से लक्ष्य पूर्ति कर रही हो।
  18. वह सामग्री बहुमुखी उद्देश्यों की पूर्ति करती हो। वह विभिन्न कक्षाओं में प्रयोग की जा सकती हो।
श्रवण कौशल विकास सम्बन्धी क्रियाकलाप (Activities Related to Developing Listening Skill)
सुनने या श्रवण की योग्यता के विकास के लिए विभिन्न प्रकार के क्रियाकलापों का उपयोग किया जाता है। छात्रों में श्रवण कौशल को विकसित करने के लिए अध्यापक निम्नलिखित क्रियाकलाप की सहायता ले सकता है-
  1. कक्षा शिक्षण में श्रवण योग्यता को विकसित करने के लिए उच्चारण विधि, मात्राकाल, उच्चारण में स्थान आदि के ज्ञान को स्वरों के साथ अध्यापक को बताना चाहिए। समान प्रक्रिया व्यंजनों के साथ भी समझानी चाहिए। शिक्षक को संवाद, वार्ता, नाटक, सस्वर वाचन, आदर्श व भावपूर्ण वाचन, कहानी एवं कथाओं का वाचन कर एवं बालकों को सुनाकर उन्हें सही शब्दों का बोध करवाना चाहिए। विभिन्न ध्वनियों को शब्द के मध्य, अन्त, आदि, निरन्तर, घोष – अघोष, हस्व और दीर्घ मात्रा सभी स्थिति में रखकर सुनने का अभ्यास कराना चाहिए। कक्षा में अतिरिक्त वाचन, सामान्य निर्देश पालन एवं प्रश्न पूछने के अवसर देकर बालकों की योग्यता (श्रवण) विकसित की जा सकती है।
    1. सस्वर वाचन-विद्यार्थी अध्यापक के द्वारा किए गए आदर्श वाचन और कक्षा के किसी छात्र द्वारा किए जाने वाले अनुकरण को ध्यानपूर्वक सुनकर शुद्ध उच्चारण का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
    2. प्रश्नोत्तर – अध्यापक को छात्रों से व्यावहारिक बातों एवं पठित सामग्री पर प्रश्न पूछने चाहिए। छात्रों के उत्तर से यह जाँच हो जाएगी कि छात्र सुनकर विषयवस्तु को ग्रहण कर रहे हैं या नहीं।
    3. श्रुतलेख – श्रुतलेख लेखन- कौशल को विकसित करने का साधन है परन्तु इसकी सहायता से श्रवण-कौशल को भी विकसित किया जा सकता है। श्रुत-लेख में बच्चों को सुनकर लिखना होता है, जो छात्र ध्यानपूर्वक सुनेगा वह पूरी सामग्री को लिख लेगा परन्तु जो छात्र ध्यान से नहीं सुनेगा उसके लेख में बीच-बीच में शब्द या वाक्यांश छूट जाएंगे।
    4. भाषण- भाषण मौखिक कौशल को विकसित करने का साधन है परन्तु श्रवण कौशल का प्रशिक्षण देने में भी प्रयुक्त किया जा सकता है। छात्रों को भाषण से पहले यह बता दिया जाए कि वे भाषण को ध्यान से सुनें, भाषण की समाप्ति के उपरान्त उनसे प्रश्न पूछे जाएंगे।
    5. वाद-विवाद – श्रवण कौशल का प्रशिक्षण देने के लिए भाषण की तरह ही वाद-विवाद भी एक उपयोगी क्रिया सिद्ध होती है। वाद-विवाद में भाग लेने वाले छात्रों को हर बात ध्यानपूर्वक सुननी होती है क्योंकि बिना सुने न तो वे दूसरे पक्ष की बातों का उत्तर दे सकेंगे और न ही अपने तर्क प्रस्तुत कर सकेंगे ।
    6. कहानी कहना व सुनना- पहले अध्यापक बच्चों को कहानी सुनाए और बाद में उसी कहानी को बच्चों से सुने। इससे पता लग जाएगा कि छात्रों ने कहानी ध्यानपूर्वक सुनी है या नहीं।
  2. पाठ्य सहगामी क्रियाओं द्वारा श्रवण योग्यताओं को मजबूत बनाने के लिए बालकों से सहयोग लेकर पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आने वाली क्रियाओं का सहारा लिया जा सकता है। कक्षाओं में बालसभा का आयोजन किया जा सकता है। बालकों से कक्षा में अभिनय करवाया जा सकता है। विभिन्न प्रकार की ध्वनियों के खेलों का निर्माण करके बच्चों से खिलवाया जा सकता है। इन सब विधियों से बालकों में बिना ऊबन के रोचक एवं मनोरंजक तरीके से श्रवण योग्यता का विकास किया जा सकता है।
  3. पाठ्यान्तर क्रियाओं द्वारा विद्यालय में या विद्यालयों से बाहर विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा सकता है जिससे बालकों में श्रवण शक्ति का विकास किया जा सकता है ।
    इसी क्रम में कविता प्रतियोगिता, सामूहिक बालसभा, नाटक प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगिता, समाचार – वाचन आदि का आयोजन करके श्रवण शक्ति विकसित करने में सहयोग मिलता है ।
    इसी क्रम में विशिष्ट व्यक्तियों के विस्तारपूर्ण भाषण व आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाले विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों को सुनाकर एवं दूरदर्शन, चलचित्र आदि दिखाकर श्रवण शक्ति के विकास में सहयोग मिलता है।
    भिन्न-भिन्न प्रकार के भाषा सम्बन्धी खेलों का आयोजन करना भी इसमें सहायक सिद्ध हो सकता है। इसी क्रम में विभिन्न देशों के दूतावास से व्यक्तियों को आमन्त्रित करके और उनके द्वारा बोले गए शब्दों को ध्यानपूर्वक सुनाकर, अलग-अलग प्रान्तों से अहिन्दी भाषियों के भाषणों को सुनाकर, महत्त्वपूर्ण अवसरों के भाषणों को सुनाकर, बालकों को वोट करने का अवसर देना चाहिए। इन सबकी सहायता से बालक उसका मूल्यांकन भी कर सकते हैं और आलोचना भी कर सकते हैं ।
    शिक्षक द्वारा बालकों को विशेष रूप से सिखाना चाहिए कि वे विभिन्न परिस्थितियों में सुनने के शिष्टाचार-पालन अवश्य करें. एवं विरोधी विचारों को भी धैर्यपूर्वक सुनें। दूरभाष व आजकल के जमाने में मोबाइल फोन सुनने के अवसर भी बालक को प्रदान करने चाहिए।

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