वुड के घोषणा पत्र व सिफारिशों एवं उसके लिए दिए गए सुझावों का वर्णन कीजिए । Describe Wood’s Despatch and recommendations and suggestions given for it.
उत्तर- सन् 1853 के अन्त तक भारत में अंग्रेजों के साथ-साथ अंग्रेजी शिक्षा का भी एकाधिकार हो गया था। इस अवधि की इन दो विशेषताओं के अतिरिक्त कुछ अन्य विशेषताओं का वर्णन करते हुए ‘श्रीधरनाथ मुखोपाध्याय’ लिखते हैं, “शिक्षा का छनाई सिद्धान्त” का बोलबाला रहा, जनशिक्षा असम्भव गिनी ‘गई एवं देशी शिक्षा कुचल दी गई, पाश्चात्य शिक्षा का आदर बढ़ा, प्राच्य विद्या निरर्थक मानी गई शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी हुआ, सांस्कृतिक एवं लोकभाषाएं निकम्मी ठहराई गई।”
1833 के बाद कम्पनी को 1853 में नया आज्ञा पत्र जारी करना था। उस समय ब्रिटिश संसद को यह अहसास हो गया था कि बहुत लम्बे समय तक भारतीय शिक्षा की अनदेखी नहीं की जा सकती। इसलिए भारतीय शिक्षा के सन्दर्भ में अध्ययन करने हेतु एक समिति का गठन किया गया । इस समिति ने 1853 तक की भारतीय शिक्षा का गहनता से अध्ययन किया और उस सब पर विचार करने के बाद भारतीय शिक्षा पर अपने सुझाव दिए ।
समिति के सुझावों के आधार पर कम्पनी ने 19 जुलाई 1854 को नई शिक्षा नीति की घोषणा की। उस समय ‘सर चार्ल्स वुड’ (Sir Charles Wood) “बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल के प्रधान थे। इसलिए उन्हीं के नाम पर कम्पनी ने नया आज्ञा पत्र ‘वुड का घोषणा पत्र प्रकाशित कराया ।
यह 100 अनुच्छेदों वाला अत्यंत वृहत दस्तावेज था। जिसमें भारतीय शिक्षा और कम्पनी की भूमिका को स्पष्ट किया गया। इस घोषणा पत्र के बाद भारतीय शिक्षा में बहुत प्रगति हुई। इसलिए कुछ विद्वानों के द्वारा वुड के घोषणा पत्र को ‘भारतीय शिक्षा का महाधिकार – पत्र’ (Magna Carta of Indian Education) की संज्ञा भी दी गई।
- देश में अंग्रेजी शिक्षा की माँग दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाने के कारण ।
- नई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करने तथा उनकी गुणवत्ता में सुधार करने के लिए ।
- शिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रम तथा उनके स्तर को ऊँचा उठाने के लिए।
- भारत में ब्रिटिश राज्य मजबूत हो जाने के कारण शिक्षा सम्बन्धी एक स्थायी नीति तथा शिक्षा को एक व्यवस्थित तथा स्थायी रूप देने के लिए ।
- अधिक समय तक भारतीयों को शिक्षा के अधिकार से वंचित न रखने के लिए ।
- शिक्षा को जनशिक्षा बनाने के लिए ।
- भारत में स्त्री शिक्षा एवं मुस्लिम शिक्षा की स्थिति को जानने के लिए ।
- भारत की सभी स्तरों की शिक्षा की तत्कालीन समस्याओं के समाधान के लिए ।
- शिक्षा की व्यवस्था – घोषणा पत्र में यह स्वीकार किया गया कि शिक्षा की व्यवस्था करना कम्पनी का उत्तरदायित्व है। इसमें लिखा गया कि “सभी महत्त्वपूर्ण विषयों में से सबसे ज्यादा हमारा ध्यान अगर कोई आकर्षित करता है तो वह है शिक्षा 1 यह हमारा मुख्य कर्त्तव्य है । “
- शिक्षा के अर्थपूर्ण उद्देश्य – इस घोषणा पत्र में भारतीयों तथा अंग्रेजों के शासन काल दोनों को ध्यान में रखकर शिक्षा के उद्देश्य निश्चित किए गए। इन उद्देश्यों में एक तरफ भारतीयों के नैतिक व बौद्धिक स्तर को ऊँचा उठाना था तो दूसरी तरफ ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करना था जो ब्रिटिश राज्य में विश्वास के साथ ऊँचे पदों पर नियुक्त किए जा सके।
- जन- शिक्षा विभाग की स्थापना की घोषणा – इस घोषणा पत्र में भारत में कम्पनी शासित प्रत्येक प्रान्त मे ‘जन – शिक्षा विभाग की स्थापना करने की घोषणा की गई जिसमें ‘जन शिक्षा संचालक अधिकारी हों और इसकी सहायता करने के लिए उपशिक्षा संचालक, निरीक्षकों तथा लिपिकों की नियुक्ति की जाए।
- शिक्षा का संगठन – इस घोषणा पत्र (शिक्षा नीति) में शिक्षा का संगठन चार स्तरों में करने की घोषणा की गई। ये चार स्तर थे— प्राथमिक, मिडिल, हाईस्कूल और उच्च स्तर ।
- क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना-वुड के घोषणा-पत्र में पूरे भारत में क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना करने के लिए कहा गया। क्रमबद्ध विद्यालयों से तात्पर्य यह है कि प्रत्येक स्तर के लिए अलग-अलग विद्यालयों की व्यवस्था करना । इन विद्यालयों का क्रम इस प्रकार था

- सहायता अनुदान – इस शिक्षा नीति में शिक्षण संस्थाओं को बिना भेदभाव के आर्थिक सहायता देने की घोषणा की. गई। यह भी कहा गया कि अध्यापकों के वेतन, छात्रवृत्तियाँ, भवन–निर्माण, पुस्तकालयों एवं प्रयोगशालाओं आदि के लिए सहायता अनुदान दिया जाए।
- शिक्षा का पाठ्यक्रम- इस घोषणा पत्र में भारतीयों के सन्दर्भ में यह स्वीकार किया गया कि इस पाठ्यचर्या में भारतीय भाषाओं को स्थान दिया जाए एवं इनको प्रोत्साहित किया जाए चूंकि साथ ही भारतीयों की उन्नति के लिए यह भी आवश्यक है कि उन्हें पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान का भी अनिवार्य रूप से ज्ञान कराया जाए। इस घोषणा पत्र में यह लिखा है कि ‘हम पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान का भारत में प्रसार होते देखना चाहते हैं ।
- शिक्षण विधियाँ – इस घोषणा पत्र में प्राथमिक शिक्षा के लिए स्पष्ट किया गया कि इस स्तर की शिक्षा की व्यवस्था देशी भाषाओं और अंग्रेजी भाषा के माध्यम से की जाए परन्तु देशी भाषाएं इतनी विकसित नहीं हैं कि उनके माध्यम से उच्च शिक्षा की व्यवस्था हो सके, इसलिए उच्च शिक्षा में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा हो ।
- शिक्षक एवं छात्रों के मध्य सम्बन्ध – इस घोषणा पत्र में । यह स्वीकार किया गया कि शिक्षा का स्थान समाज में उच्च है। इसलिए शिक्षकों का स्तर ऊँचा उठाने का प्रयास किया जाए और उनके वेतनमान तथा भत्ते बढ़ाए जाएं।
- गरीब छात्रों का आर्थिक सुधार – इस घोषणा पत्र में छात्रों की आर्थिक स्थिति पर भी विचार किया गया और यह स्पष्ट किया गया कि विद्यालयों में पढ़ने वाले गरीब वर्ग के छात्रों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाए।
- शिक्षण संस्थाएँ – सभी प्रकार के स्तर की शिक्षा की करना कम्पनी का उत्तरदायित्व है। इस घोषणा पत्र में ‘व्यावसायिक शिक्षा’ देने के महत्त्व को स्वीकार किया गया। प्रान्तों में व्यवसायों की शिक्षा देने वाले स्कूल व महाविद्यालयों की स्थापना करने के लिए कहा गया जिससे छात्र शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपनी रुचि के अनुसार व्यवसाय का चयन करके अपनी जीविका का निर्वाह कर सके। जिस समय यह घोषणा-पत्र लागू हुआ, उस समय भारत में विश्वविद्यालय नहीं थे तथा शोध संस्थान भी उपलब्ध नहीं थे।
इसमें यह घोषणा की गई कि भारत में भी विश्वविद्यालयों की स्थापना की जाएगी। इन विश्वविद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी। ये विश्वविद्यालय अपने क्षेत्र के महाविद्यालयों को मान्यता भी प्रदान करेंगे, उनके छात्रों की परीक्षा लेंगें, उन पर नियन्त्रण रखेंगे तथा जो छात्र पास होगे उन्हें प्रमाणपत्र भी प्रदान करेंगे ।
- समान शिक्षा की व्यवस्था – इस घोषणा पत्र में यह स्वीकार किया गया कि भारत में निस्यन्दन सिद्धान्त को लागू करना सही नहीं था क्योंकि शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसलिए शिक्षा की व्यवस्था सभी वर्गों के लिए समान रूप से की जाए। जन “शिक्षा को प्रोत्साहन दिया जाए, प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों की संख्या को बढ़ाया जाए तथा गरीब छात्रों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाए।
- स्त्री – शिक्षा – इस घोषणा पत्र में स्त्री शिक्षा के महत्त्व को • स्वीकार किया गया। स्त्री – शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए बालिका विद्यालयों को सहायता अनुदान देने के लिए कहा गया जो व्यक्ति स्त्री शिक्षा के लिए सहयोग देगें, उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए कहा गया ।
- मुस्लिमों की शिक्षा – इस घोषणा-पत्र में यह भी स्पष्ट किया गया कि मुस्लिमों में हिन्दुओं की अपेक्षा शिक्षा का • स्तर बहुत निम्न है। इसलिए इनमें शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए मुस्लिम बच्चों के लिए अलग से स्कूल खोलने के लिए कहा गया तथा किस प्रकार मुस्लिम अभिभावकों को जागरूक करके इन बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित किया जाए, इसका प्रयास करने के लिए भी कहा गया ।
- राज्य पर शिक्षा का उत्तरदायित्व- पहली बार इस घोषणा पत्र में शिक्षा का उत्तरदायित्व राज्य सरकार पर होना चाहिए, यह स्वीकार किया गया। किसी भी लोकतन्त्र में शिक्षा का उत्तरदायित्व सरकार (राज्य) का ही होता है ।
- शिक्षा के निश्चित उद्देश्य – इस घोषणा पत्र में भारतीय शिक्षा के उद्देश्य निश्चित किए गए जिससे शिक्षा के स्तर में सुधार हो ।
- जन- शिक्षा विभाग की स्थापना – इस घोषणा पत्र में भारत के प्रत्येक प्रान्त में शिक्षा विभाग की स्थापना की घोषणा की गई जो समय-समय पर दी जा रही शिक्षा का मूल्यांकन करें ।
- गरीब छात्रों को आर्थिक सहायता – इस घोषणा पत्र में गरीब छात्रों को आर्थिक सहायता देने की व्यवस्था की गई. जिससे प्रत्येक वर्ग का छात्र शिक्षा प्राप्त कर सके ।
- शिक्षा का उचित संगठन – इस घोषणा पत्र में शिक्षा के उचित संगठन की घोषणा की गई। इससे पहले हमारे देश में शिक्षा प्राथमिक व उच्च स्तर पर विभाजित थी। इस घोषणा-पत्र में शिक्षा का संगठन प्राथमिक, मिडिल, हाईस्कूल तथा उच्च रूपों में संगठित किया गया ।
- व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था – इस घोषणा पत्र में व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था सम्बन्धी भी उचित सुझाव दिए गए जिसके फलस्वरूप भारत में व्यावसायिक स्कूल तथा महाविद्यालयों की स्थापना होने लगी।
- स्त्री – शिक्षा की उंचित व्यवस्था पर बल – इस घोषणा-पत्र में बालिका विद्यालय खोलने की बात कही गई और स्त्री शिक्षा के महत्त्व को स्वीकार किया गया ।
- विश्वविद्यालयों की स्थापना की घोषणा – इस घोषणा-पत्र में भारत के महाविद्यालयों को मान्यता देने, उनका निरीक्षण करने, छात्रों की परीक्षा लेने, प्रमाण पत्र देने आदि के लिए विश्वविद्यालयों की स्थापना करने की घोषणा की गई जिसके फलस्वरूप बम्बई, मद्रास तथा कलकत्ता में विश्वविद्यालय की स्थापना हुई।
- शिक्षक प्रशिक्षण की व्यवस्था – इस घोषणा पत्र में शिक्षकों का स्तर ऊँचा उठाने के लिए कहा गया । इस कारण शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं में सुधार होने शुरू हो गए तथा इनकी गुणवत्ता में भी सुधार किए गए।
- मुस्लिमों की शिक्षा – मुस्लिम बच्चों को शिक्षा की तरफ आकर्षित करने के लिए अलग से मुस्लिम स्कूलों की व्यवस्था करने के लिए गया क्योंकि पर्दा – प्रथा होने के कारण बहुत सी मुस्लिम बालिकाएँ शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश नहीं लेती थी।
- निस्यन्दन सिद्धान्त निरस्त – इस घोषणा पत्र का सबसे प्रमुख गुण यह था कि इसमें मैकाले द्वारा दिए गए निस्यन्दन सिद्धान्त को समाप्त करके, प्रत्येक वर्ग के लिए शिक्षा की व्यवस्था करने की घोषणा की गई ।
- प्राच्य साहित्य की उपेक्षा – इस घोषणा–पत्र में प्राच्य साहित्य को महत्त्वपूर्ण माना गया किन्तु शिक्षा में इनकी उपेक्षा की गई।
- स्वतन्त्र शिक्षा व्यवस्था की समाप्ति – घोषणा पत्र में शिक्षा पर पूर्ण रूप से कम्पनी का उत्तरदायित्व घोषित कर दिया गया जिससे कम्पनी ने पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान की संस्थाओं को प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया और भारतीय शिक्षण संस्थाओं को इससे किसी भी प्रकार का फायदा नहीं हुआ।
- शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा – प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था तो देशी तथा पाश्चात्य दोनों के माध्यम से करना स्वीकार किया परन्तु उच्च शिक्षा के लिए माध्यम के रूप में अंग्रेजी को अनिवार्य कर दिया गया जिससे कि उच्च शिक्षा में अंग्रेजी को स्थायित्व मिल गया।
- पाठ्यक्रमों में अंग्रेजी साहित्य पर बल-वुड के घोषणा-पत्र में पाठ्यक्रम में पाश्चात्य साहित्य और ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा देने की वकालत की गई थी। इस कारण भारत में पाश्चात्य साहित्य और ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाने लगी।
- धार्मिक शिक्षा पर नीति अस्पष्ट – इस घोषणा पत्र में धार्मिक शिक्षा के विषय में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया । एक ओर तो शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा पर रोक लगाई गई और दूसरी ओर ईसाई मिशनरियों को अपने स्कूलों में धार्मिक शिक्षा देने को छूट दी गई । सरकारी स्कूलों के पुस्तकालयों में बाईबिल रखना अनिवार्य कर दिया गया अर्थात् धार्मिक शिक्षा के विषय में कोई भी नीति स्पष्ट नहीं की गई।
ए. एन. वसु के अनुसार, “यह घोषणा पत्र भारतीय शिक्षा का शिलाधार है। भारत में आधुनिक शिक्षा प्रणाली का शिलान्यास इसी ने किया।”
लार्ड डलहौजी के अनुसार, “घोषणा पत्र में पूरे भारत की शिक्षा के लिए इतनी व्यापक तथा विस्तृत योजना बनाई गई थी जिसे स्थानीय या केन्द्रीय सरकार द्वारा कभी भी प्रस्तुत नहीं किया जा सकता था।”
सर फिलिप हर्टाग के अनुसार, “वुड का घोषणा-पत्र भारत के कल्याण के लिए विकास करने वाली नीति का निर्धारक था । ”
डा. मुखर्जी के अनुसार, “घोषणा पत्र ने देश की प्राचीन परम्पराओं का पता नहीं लगाया और इस बात पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया कि भारत में शिक्षा, धार्मिक संस्कार प्रधान थी ।”
आर. पी. परांजपे के अनुसार, “घोषणा-पत्र का यह उद्देश्य नहीं था कि शिक्षा नेतृत्व के गुणों के विकास के लिए हो, शिक्षा भारत के औद्योगिक विकास के लिए हो, शिक्षा मातृभूमि की रक्षा के लिए हो । “
भगवान दयाल के अनुसार, “वुड के घोषणा पत्र का प्रमुख दोष शिक्षा का गलत उद्देश्य था । यह उद्देश्य पूर्व और पश्चिम की सर्वोत्तम बातों का समन्वय न होकर केवल यूरोपियन ज्ञान की प्राप्ति का था । ”
परांजपे के अनुसार, “1854 के घोषणा पत्र का जो भी महत्त्व हो पर उसको ‘शिक्षा का महाधिकार पत्र कहना हास्यास्पद होगा।”
एच.वी. हेम्पटन के अनुसार, “1854 का घोषणा पत्र एक युग का अन्त करता है- शिक्षा के महान अग्रदूतों का ।”
वुड घोषणा–पत्र के तत्कालीन प्रभाव (Short-Term Impact of Wood’s Despatch)
- सभी प्रान्तों में शिक्षा विभागों की स्थापना – इस घोषणा पत्र में सभी प्रान्तों में शिक्षा विभागों की स्थापना का सुझाव दिया गया था जिसके फलस्वरूप 1856 तक कम्पनी शासित सभी प्रान्तों में शिक्षा विभागों की स्थापना हो गई। जनशिक्षा निदेशक और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति कर दी गई।
- सहायता अनुदान प्रणाली का प्रारम्भ – शिक्षा विभागों ने अपने-अपने प्रान्तों शैक्षिक स्थिति की आवश्यकतानुसार सहायता अनुदान के नियम बनाये जो भी विद्यालय इन नियमों को पूरा करते रहे, उन्हें सहायता अनुदान मिलना शुरू हो गया ।
- क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना प्रारम्भ – उस समय सबसे ज्यादा आवश्यकता माध्यमिक और उच्च शिक्षण संस्थानों की थी । वुड की शिक्षा नीति की घोषणा के बाद कम्पनी ने सभी स्तरों के विद्यालय खोलने प्रारम्भ कर दिए ।
- विश्वविद्यालयों की स्थापना – वुड की शिक्षा नीति घोषित होने के बाद 1857 में कलकत्ता और बम्बई में विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। प्रारम्भ में तो इन विश्वविद्यालयों का कार्य महाविद्यालयों को सम्बद्धता देना, महाविद्यालयों के छात्रों की परीक्षा लेना तथा उत्तीर्ण छात्रों को प्रमाण-पत्र देना था परन्तु बाद में इनमें शिक्षण कार्य भी होने लगा।
- शिक्षा का उत्तरदायित्व राज्य का वुड घोषणा पत्र में पहली बार यह स्वीकार किया गया कि शिक्षा की व्यवस्था करना राज्य का उत्तरदायित्व है। वर्तमान में भी शिक्षा का उत्तरदायित्व राज्य सरकार का ही है। यह बात दूसरी है कि इसकी व्यवस्था में व्यक्तिगत प्रयासों को भी प्रोत्साहन दिया जाता है।
- विभिन्न स्तरों में शिक्षा का संगठन – वुड घोषणा पत्र में शिक्षा को चार स्तरों में विभाजित किया गया। वर्तमान में शिक्षा के तीन स्तर हैं परन्तु इस ओर सबसे पहला कदम वुड घोषणा पत्र में ही बढ़ाया गया ।
- उचित शिक्षा के उद्देश्य – वुड घोषणा पत्र में पहली बार शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित किए गए।
तब से अब तक समय की माँग के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य निश्चित करने का क्रम जारी है।
- अलगअलग स्तरों के लिए पृथक विद्यालय – वुड घोषणा–पत्र में शिक्षा के प्रत्येक स्तर के लिए अलगअलग विद्यालयों की घोषणा के बाद पृथक विद्यालयों की स्थापना की गई। वर्तमान में भी शिक्षा के प्रत्येक स्तर के लिए अलगअलगं विद्यालयों की व्यवस्था है जो कि वुड घोषणा पत्र की देन है।
- स्त्री – शिक्षा, शिक्षक-शिक्षा एवं व्यावसायिक शिक्षा में प्रगति – सर्वप्रथम वुड के घोषणा पत्र में स्त्री – शिक्षा, शिक्षक–शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा में सुधार करने को महत्त्व दिया गया। उसके बाद इस क्षेत्र में सुधार होना शुरू हुआ जो आज भी जारी ।
शिक्षा का उत्तरदायित्व राज्य का, शिक्षा विभाग की स्थापना, सहायता अनुदान प्रणाली की शुरुआत, क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना और विश्वविद्यालयों की स्थापना, इसकी महत्त्वपूर्ण विशेषताएं हैं। भारत में जन शिक्षा, स्त्री – शिक्षा, शिक्षक-शिक्षा – और व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था करने की घोषणा भी पहली बार इसी नीति में की गई । अतः इसके आधार पर हमारी आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली विकसित हुई। अतः “यह घोषणा–पत्र भारतीय शिक्षा का शिलालेख | ” 1854 का घोषणा–पत्र, भारतीय शिक्षा के इतिहास में चरम बिन्दु है और हमारी आधुनिक शिक्षा प्रणाली में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान है।
