1st Year

शिक्षक व्यवहार से क्या तात्पर्य है? शिक्षक के कक्षा-कक्ष व्यवहार के प्रकारों का उल्लेख कीजिए ।

प्रश्न  – शिक्षक व्यवहार से क्या तात्पर्य है? शिक्षक के कक्षा-कक्ष व्यवहार के प्रकारों का उल्लेख कीजिए । 
या
शिक्षक की शिक्षण समन्धी दक्षताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- शिक्षक व्यवहार ( Teacher Behaviour)
अध्यापक शिक्षण संस्थाओं का प्रमुख कार्य प्रभावशाली शिक्षक तैयार करना है। शैक्षिक-तकनीकी ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इनके प्रयोग के द्वारा शिक्षक के व्यवहार में सुधार किया जा सकता है। शिक्षक व्यवहार से तात्पर्य शिक्षक की उन सभी क्रियाओं से है जो कक्षा शिक्षण के समय अध्यापक के द्वारा की जाती है तथा ये क्रियाएँ छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन करने में सहायक होती हैं। भारतीय शिक्षाविद् शिव. के. मित्रा. (Shiv K. Mittra) ने चार सामान्य क्रियाओं का उल्लेख किया हैं। जो शिक्षक व्यवहार में सम्मिलित की जाती हैं –
  1. शिक्षक ज्ञान एवं कौशल का विकास करता है।
  2. शिक्षक को कुछ तथा सब कुछ करना होता है।
  3. शिक्षक का व्यवहार एक सामाजिक क्रिया है जो छात्रों को प्रभावित करती है ।
  4. पाठ्य-वस्तु के प्रस्तुतीकरण के लिए अनुदेशनात्मक प्रक्रिया का अनुसरण करता हैं।
ओकशोट ने शिक्षक की चार क्रियाओं का उल्लेख किया हैं जो शिक्षक को सामान्य रूप में करनी होती हैं।
  1. छात्रों को सूचनाओं का सम्प्रेषण करना
  2. विषय से सम्बन्धित सूचनाओं का सम्प्रेषण करना
  3. उन सभी सूचनाओं का ज्ञान होना जिसका उसे शिक्षण में उपयोग करना है।
  4. विशिष्ट प्रकार की पाठ्य-वस्तु के लिए अनुदेशनात्मक प्रक्रिया का प्रयोग करना ।

शिक्षक शब्द ‘शिक्ष’ धातु से बना है जिसका अर्थ है- सीखना और सिखाना। एक शिक्षक स्वयं सीखता रहता हैं और छात्रों को सिखाता रहता है।

मैक नरजेन्सी और कार्नर के अनुसार, “शिक्षक व्यवहार शिक्षक की विशेषताओं, उसके परिवेश और उसके द्वारा सम्पादित किए जाने वाले कार्यों पर निर्भर करता है । ”

म्यूक्स तथा स्मिथ के अनुसार, “शिक्षक व्यवहार के अन्तर्गत् शिक्षक की उन सभी क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जो कक्षा में छात्रों के सीखने को प्रभावित करती हैं। ”

शिक्षक के कक्षा-कक्ष व्यवहार के प्रकार (Types of Teacher’s Classroom Behaviour)
  1. शाब्दिक व्यवहार (Verbal Behaviour) – जब छात्र एवं शिक्षक कक्षा में बोलकर या भाषा के द्वारा विचारों का आदान-प्रदान करते हैं तब यह व्यवहार शाब्दिक व्यवहार कहलाता है। इस व्यवहार में अभिव्यक्ति का माध्यम मौखिक, लिखित तथा प्रतीकात्मक होता है। शाब्दिक व्यवहार दो प्रकार का होता है-
    1. प्रत्यक्ष शाब्दिक व्यवहार (Direct Verbal Behaviour)- इस व्यवहार में अध्यापक द्वारा परिभाषा देना, व्याख्या देना, स्पष्टीकरण देना, निर्देश देना, छात्रों के विचारों व व्यवहार की आलोचना करना आदि क्रियाओं को रखा जाता है। इसमें छात्रों को कक्षा में स्वतन्त्रतापूर्वक बोलने का अवसर प्रदान नहीं किया जाता हैं। लिपिट एवं व्हाइट ने इस व्यवहार को प्रभुत्ववादी व्यवहार की श्रेणी में रखा है।
    2. अप्रत्यक्ष शाब्दिक व्यवहार (Indirect Verbal Behaviour) कक्षा में शिक्षक जब छात्रों को कार्य करने के विचारों को अभिव्यक्ति करने की स्वतन्त्रता प्रदान करता हैं तब यह व्यवहार अप्रत्यक्ष शाब्दिक व्यवहार कहलाता है। शिक्षक छात्रों के व्यवहारों को स्वीकार करके उनका स्पष्टीकरण करके उन्हें और अधिक स्पष्ट करता है। वह अपने विचारों को स्वीकर करने के लिए छात्रों को बाध्य नहीं करता है। शिक्षक कक्षा में कम बोलकर छात्रों को अधिक बोलने के अवसर प्रदान करता है। छात्रों को प्रश्न पूछकर किसी समस्या का समाधान करने के अवसर प्रदान करता है। शिक्षक भी छात्रों से अधिक प्रश्न पूछकर उन्हें सीखने की प्रक्रिया में भांग लेने के लिए प्रोत्साहित करता है। लिपिट एवं व्हाइट ने इसे प्रजातान्त्रिक व्यवहार कहा है।
  2. अशाब्दिक व्यवहार (Non-Verbal Behaviour ) – सामान्यतः कक्षा शिक्षण की अधिकाँश क्रियाएँ शाब्दिक व्यवहार द्वारा ही सम्पन्न की जाती हैं। फिर भी कक्षा में अशाब्दिक व्यवहार भी कम महत्त्वपूर्ण नही है। इस व्यवहार में शिक्षक एवं छात्र के मध्य भावों एवं विचारों •का सम्प्रेषण बोलकर नहीं होता बल्कि हाव-भाव एवं संकेतों के द्वारा होता है। छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षक का मुस्कुराना, सिर हिलाना, हूँ करना, छात्र द्वारा कहे गए शब्दों को श्यामपट्ट पर लिखना आदि क्रियाएँ छात्रों को शिक्षक के भावों से अवगत कराती हैं।

यदि छात्र के द्वारा कोई गलत कार्य किया गया है और शिक्षक सर पर हाथ रखे, क्रोधित रूप में छात्र की ओर देखे तो छात्र समझ जाता है कि उसने गलती की है। इस प्रकार हाव-भाव एवं संकेतों द्वारा विचारों के आदान-प्रदान को अशाब्दिक व्यवहार कहा जाता है। शिक्षण का अर्थ शिक्षक व छात्रों के मध्य अन्तःक्रिया से है । कक्षा में होने वाली घटनाओं का बोध वास्तविक कक्षा परिस्थिति के निरीक्षण से सम्भव है।

शिक्षक की दक्षता एवं प्रतिबद्धता (Competency and Commitment of Teacher)
  1. विषय-वस्तु सम्बन्धी दक्षताएँ (Content Related Competencies) अध्यापक जिस विषय को पढ़ाता है उसे उसका पूरा ज्ञान होना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसे अन्य सम्बन्धित विषयों का ज्ञान का भी होना चाहिए। अध्यापक का अपने विषय पर जितना अधिक अधिकार होगा वह छात्रों में उतना ही अधिक प्रिय बनता जाएगा। अपने विषय में मास्टरी रखने वाला व्यक्ति ही अधिगम कराने में सक्षम होगा।
  2. सम्प्रेषण (Communication सम्बन्धी दक्षताएँ Competency)-विषय-वस्तु को छात्रों से अवगत कराना शिक्षक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य होना चाहिए। जिससे छात्र ज्ञान को अंगीकृत कर सके। अध्यापक को मनोवैज्ञानिक विधियों का ज्ञान होना चाहिए जिससे अधिगम के स्तर में वृद्धि हो सके इसके साथ ही अध्यापक को अपनी रुचियों, क्षमताओं के अतिरिक्त छात्र की योग्यता, पूर्व ज्ञान, रुचि एवं उन सम्पूर्ण परिस्थितियों का भी ज्ञान होना चाहिए जो छात्र के ज्ञान को बढ़ा सके।
  3. अभिभावक कार्य सम्बन्धी दक्षताएँ (Working with Parental Competencies) अधिकतर छात्र प्रारम्भिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ देते है। इस समस्या के समाधान के लिए शिक्षक एवं छात्र अभिभावक दोनों मिलकर हल निकाल सकते हैं। छात्र की कक्षा में अनुपस्थित का मुख्य कारण कक्षा के पाठ्यक्रम या शिक्षक विधि का अरुचिकर होना है ऐसी स्थिति में अध्यापक, छात्र अभिभावक की सहायता से बालकों को प्रतिदिन विद्यालय आने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
  4. अन्य शैक्षिक क्रियात्मक दक्षताएँ (Competencies Related to Other Educational Activities) – शिक्षक को विषय-वस्तु को अधिक रोचक एवं स्थायी बनाने के लिए पाठ्य-वस्तु के अतिरिक्त कुछ पाठ्येत्तर क्रियाओं का ज्ञान भी आवश्यक है, जैसे- अनुपयोगी संसाधनों को उपयोग करके तथा हाथों से उपकरण का निर्माण करना राष्ट्रीय के साथ-साथ सामाजिक पर्वो का आयोजन करना। इन सभी क्रियाओं से छात्रों में सहयोग भाईचारा विचार-चिन्तन, भ्रगण आदि गुणों को सीखते है।
  5. समुदाय तथा अन्य अभिकरण सह कार्य सम्बन्धी दक्षताएँ (Working with Community and Other Agencies) आधुनिक युग में शिक्षा का कार्य समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति भी करना । विद्यालय के लिए अध्यापक, लाइब्रेरी, जल व्यवस्था समुचित कार्यकर्ताओं को समाज उपलब्ध कराता है क्योंकि समाज को चरित्रवान संस्कारित तथा पढ़े-लिखे व्यक्ति चाहिए जो समाज का विकास कर सके तथा समाज में परिवर्तन हो सके। शिक्षक 1 को अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए।
  6. शिक्षण अधिगम निर्माण में दक्षताएँ (Competencies to Develop Teaching Learning Material) शिक्षक को ऐसे उपकरणों का निर्माण करना आना चाहिए जिससे अधिगम का सरलतापूर्वक सम्प्रेषण हो सके तथा छात्र विषय-वस्तु को शीघ्रता से समझ सके, जैसे- घड़ी न होने पर नाड़ी की धड़कन से समय को मापना। एक दक्ष शिक्षक छात्रों को हाँथ से बनाए जाने वाले उपकरणों का ज्ञान दे सकता है जैसे हस्त निर्मित और ऊर्जा सेल विद्युती उपकरण, वाटर हीटर आदि ।
  7. मूल्यांकन दक्षताएँ (Evaluation Competencies)- एक अध्यापन में मूल्यांकन का भी गुण होना चाहिए। मूल्यांकन गुणात्मक तथा परिमाणात्मक दो प्रकार का होता है। एक सफल शिक्षक को मूल्यांकन की आधुनिक विधियों का ज्ञान होना चाहिए। मूल्यांकन करते समय मूल्यांकन प्रश्नों, उनके प्रकारों व मापन के उद्देश्यों का भी पता होना चाहिए। प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण छात्र से यह तो ज्ञात किया जा सकता है कि उसने 60 या उससे अधिक अंक प्राप्त किए हैं, परन्तु कितने 70, 80 या 90% और कितना होशियार है इसका पता मूल्यांकन से प्राप्त अंकों के आधार पर ही किया जा सकता है।
  8. संकल्पना दक्षताएँ (Conceptual Competencies) शिक्षक में जटिल संकल्पनाओं को सरल उदाहरण से स्पष्ट करने की क्षमता भी होनी चाहिए। जैसे- न्यूटन की गति के तीसरे नियम से प्रारम्भ करके संकेत चालन सिद्धान्त को स्पष्ट करने के लिए दीपावली में चलाए जाने वाले आकाशवाणी का उदाहरण देकर स्पष्ट कर सकते है। अध्यापक के लिए यह आवश्यक है कि ऐसा करने से पूर्ण छात्रों की आवश्यकताओं व पूर्वज्ञान को भी जान ले ताकि अधिगम प्रभावशाली एवं स्थायी हो सकें।
  9. प्रबन्ध सम्बन्धी दक्षताएँ (Management Related Competencies) अध्यापक में एक अच्छे प्रबन्धक के भी गुण होने चाहिए। विद्यालयों में पढ़ाई सुचारू रूप से चल सकें। इसके लिए अच्छे अध्यापक अनुशासन एवं व्यवस्थित. प्रबन्धन के कारण ही सम्भव है। कार्यालय के कार्यों में कक्षा प्रबन्धन, शैक्षिक संस्थागत विविध क्रिया-कलापों में कुशल संगठन और प्रबन्ध के लिए समय-सारणी का निर्माण करना एक कुशल अध्यापक के महत्त्वपूर्ण दायित्व है।

The Complete Educational Website

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *