1st Year

शिक्षण-अधिगम व्यूह रचनाओं में शिक्षक एवं विद्यालय की भूमिका पर प्रकाश डालिए । Highlight on the role of Teacher and School in teaching-learning Strategies

प्रश्न – शिक्षण-अधिगम व्यूह रचनाओं में शिक्षक एवं विद्यालय की भूमिका पर प्रकाश डालिए । Highlight on the role of Teacher and School in teaching-learning Strategies.
या
अधिगम रणनीतियों के सम्बन्ध में शिक्षक की अधिगम रणनीतियों तथा भूमिका का संक्षिप्त वर्णन कीजिए । Briefly explain the learning strategies and role of teacher in relation to learning strategies. 
उत्तर – विद्यालय की भूमिका (Role of School)
  1. विद्यालय के अन्तर्गत शिक्षार्थियों एवं शिक्षकों के माध्यम से अधिगम व्यूह रचनाओं के उपयोग हेतु कौन से नवीन विचारों को लिया जा रहा है इस सम्बन्ध में विद्यालय को समस्त एवं पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।
  2. विद्यालय शिक्षण व्यूह रचनाओं को क्रियान्वित करने हेतु विभिन्न सुविधाओं के साथ-साथ शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण प्रदान करता है। इसके साथ ही शिक्षकों को सेवाकालीन. प्रशिक्षण कार्यक्रम, सेमिनार कार्यशालाओं आदि में सम्मिलित होने के लिए समुचित सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिए।
  3. विद्यालय शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में अध्यापकों एवं विद्यार्थियों हेतु किसी एक या अन्य व्यूह रचना के सफल उपयोग हेतु समस्त सुविधाएँ प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है।
  4. विद्यालय में समय-समय पर विभिन्न सेमीनार एवं कार्यशालाओं का आयोजन एवं अधिगम व्यूह रचनाओं से सम्बन्धित विशेषज्ञों को आमन्त्रित किया जाता है, जो छात्रों एवं शिक्षकों के ज्ञान संवर्द्धन में सहायक होते हैं ।
  5. शिक्षण अधिगम व्यूह रचनाओं में शिक्षक एवं छात्रों के प्रयासों के माध्यम से प्राप्त परिणामों को विद्यालय कर्मचारियों द्वारा सहृदय स्वीकार किया जाना चाहिए। इसके साथ ही उनकी प्रशंसा एवं पुरस्कृत किया जाना चाहिए।
  6. शिक्षण अधिगम की आवश्यकता के अनुरूप किसी व्यूह रचना का उपयोग करने के लिए विद्यालय में शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को पूर्ण स्वतन्त्रता, सहयोग एवं सुविधाएँ प्रदान करने में विद्यालय की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
  7. विद्यालय अधिगम व्यूह रचनाओं सम्बन्धी कार्यों तथा गतिविधियों के क्रियान्वयन हेतु समय विभाग चक्र विद्यालय पाठ्यचर्या एवं मूल्यांकन के तरीकों में उचित परिवर्तन को साथ-साथ लचीलापन लाता है।
शिक्षक की भूमिका (Role of a Teacher)
  1. शिक्षण एवं अधिगम प्रक्रिया का प्रबन्ध – शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका प्रधान (मुख्य) होती है। सीखने अथवा अधिगम प्रक्रिया में भी शिक्षक केन्द्रीय भूमिका में होते हैं। अधिगम प्रक्रिया में शिक्षक विभिन्न शिक्षण ‘पद्धतियों का समन्यवय कर उनका प्रबन्ध करता है। शिक्षक शिक्षण कार्य के साथ-साथ अधिगम प्रक्रिया पर भी ध्यान देता है क्योंकि उसके शिक्षण का उद्देश्य तभी सार्थक हो सकेगा जब छात्र उसका समुचित अधिगम कर सके। शिक्षण एवं अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए शिक्षक विद्यालय के अन्तर्गत विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वह प्रबन्धक की भी भूमिका निभाता है।
  2. शिक्षण एवं अधिगम के लिए मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग – शिक्षक ही वह माध्यम है जिसके द्वारा शिक्षण एवं अधिगम को एक निश्चित दिशा प्रदान की जाती है। एक शिक्षक अधिगम को प्रभावशाली बनाने के लिए शिक्षण प्रक्रिया में सुधार लाता है और शिक्षण प्रक्रिया में अधिगम के लिए विभिन्न मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग करता है। शिक्षक, शिक्षण एवं अधिगम को सार्थक बनाने हेतु इन मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग कर अधिगम को स्थायी बनाने का प्रयास करता है।
  3. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने लिखा है कि, “समाज अध्यापक का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वह एक पीढ़ी की बौद्धिक परम्पराएँ और तकनीकी कौशल पहुँचाने का केन्द्र है और सभ्यता के प्रकाश को प्रज्जवलित रखने में सहायता देता है।” शिक्षक विद्यालय संगठन का हृदय माना जाता है। छात्र के अज्ञान रूपी अन्धकार को मिटाने वाला एक ज्ञानरूपी प्रकाश दिखाकर मानवता के पथ को आलौकिक करने वाला है। शिक्षक, सामान्य सामाजिक व्यक्ति से अधिक चरित्रवान, उदार, सहिष्णु, दयालु तथा मर्यादित होता है इसलिए वह इन सभी गुणों को अपने छात्रों में देखने हेतु मनोवैज्ञानिक प्रविधियों का प्रयोग करता है जिससे प्रभावी शिक्षण अधिगम द्वारा उनके व्यवहार में परिवर्तन किया जा सके।
  4. शिक्षण अधिगम के वातावरण का निर्माण करना – एक शिक्षक शिक्षण-अधिगम वातावरण का निर्माण करता है। वह अपने कक्षा कक्ष में उन अवयवों का समावेश करता है जिससे शिक्षण अधिगम प्रभावी बन सके। इसके अन्तर्गत कक्षा में शिक्षण एवं अधिगम सम्बन्धी विभिन्न उपकरण, जैसे- फर्नीचर, प्रकाश, श्यामपट्ट, शान्त कक्षा-कक्ष आदि की व्यवस्था करता है। उसका उद्देश्य होता है कि शिक्षण एवं अधिगम में कोई भी बाधक तत्त्व न रहे और यह प्रक्रिया पूर्ण रूप से सम्पन्न हो । एक शिक्षक उचित शिक्षण-अधिगम वातावरण का निर्माण कर शिक्षण की मात्रा एवं अधिगम की मात्रा में समन्वय स्थापित करता है। उसका उद्देश्य होता है कि जितना शिक्षण हो उतना ही अधिगम भी हो ।

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