1st Year

शिक्षण प्रविधि के रूप में संवर्धनशील कार्यक्रम की भूमिका स्पष्ट कीजिए । Describe The Role Of Enrichment Prograamme As Teaching Strategy.

प्रश्न – शिक्षण प्रविधि के रूप में संवर्धनशील कार्यक्रम की भूमिका स्पष्ट कीजिए ।
Describe The Role Of Enrichment Prograamme As Teaching Strategy.
उत्तर- संवर्धनशील कार्यक्रम (Enrichment Prograamme)
  1.  प्रतिभावान छात्रों हेतु पाठ्यक्रम. की व्यवस्था – इस प्रकार को व्यवस्था में नियत पाठ्यक्रम में प्रतिभावान छात्रों हेतु भिन्न पाठ्यक्रम की व्यवस्था को जाती है। साधारणतः इस पाठ्यक्रम में अग्र श्रेणी से सम्बन्धित उपविषयों तथा पाठ्य विधि को सम्मिलित किया जाता है। उदाहरण के लिए हाईस्कूल अध्ययन सामग्री में इण्टरमीडिएट अध्ययन को शामिल करना । इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों के लिए वह इस प्रकार की भी अध्ययन सामग्री तैयार की जाती है जिससे विद्यार्थी किसी भी शोध कार्य को तर्कपूर्ण कर सके।
  2. आधुनिक पाठयक्रम में विशेष संवर्धनकारी कार्यक्रमों की व्यवस्था – इस प्रकार की व्यवस्था में आधुनिक पाठ्यक्रम के अर्न्तगत ही विशेष / विशिष्ट कार्यक्रमों की व्यवस्था करनी होती है। अध्यापक छात्रों को विकास के उचित अवसर . प्रदान करने के लिए ऐसे साधनों का उपयोग किया जाता है जिससे आधुनिक शिक्षण संरचना में कोई विशेष परिवर्तन न हो सके। अतः इस प्रकार के कार्यक्रमों को इन बिन्दुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-
    1. छात्रों को पुस्तकालय (Library) में अध्ययनरत तथा स्वतन्त्र रूप से स्वाध्याय करने के लिए प्रोत्साहित करना ।
    2. इस व्यवस्था में विशिष्ट बालकों को सामान्य की अपेक्षा नियत गृहकार्य तथा अधिन्यास देना ।
    3. छात्रों में विभिन्न विषयों पर लेखन एवं निबन्ध हेतु प्रोत्साहन उत्पन्न करना ।
    4. इस प्रकार के कार्यक्रमों के पाठ्यक्रम में छात्रों को कठिन प्रश्नों तथा समस्याओं को सुलझाने हेतु तैयार किया जाता है।
    5. ज्ञान और जिज्ञासा की अभिलाषा को पूर्ण करने के लिए छात्रों को प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित करना ।
    6. इस कार्यक्रम व्यवस्था में अध्यापक अपने शिक्षण सामग्री में चार्ट, स्लाइड, प्रतिमान चित्र एवं अन्य उपयोगी या सहायक उपकरणों को प्रयोग करते हैं।
    7. छात्रों को विज्ञान एवं गणित सम्बन्धी प्रर्शनियों में सक्रिय रहने हेतु प्रेरित करना ।
    8. विद्यार्थियों में ऐसी क्षमता को विकसित करना जिससे वह विभिन्न विषयों की शाखाओं तथा विषयवस्तु की समरूपता व एकता को समझ सकें ।
    9. उनको उचित ज्ञान प्रयोग हेतु प्रेरित करना जिससे वह विभिन्न योजनाओं को व्यक्तिगत तथा सामूहिक ढंग से संचालित एवं पूर्ण कर सके।
    10. विभिन्न प्रकार की प्रतियोगी परिक्षाओं तथा शिविरों में सक्रिय भाग लेने हेतु प्रेरित करना ।

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