सामाजिक-आर्थिक सुधार आन्दोलन का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए । Describe in detailed Socio-Economic Reform Movements.
इन्हीं राजनैतिक प्रयासों एवं विचारों के आधार पर 1919 में संयुक्त राज्य अमेरिका में पुरुषों के समान वोट देने का अधिकार दिया गया। भारत वो पहला देश है जहाँ स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद महिलाओं को पुरुष के समान “सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार ( Universal Adult Franchise) प्रदान किया गया। स्विट्जरलैंड में 1971 में स्त्रियों को मताधिकार प्रदान किया गया। इतिहास इस बात का गवाह है कि महिलाओं को राजनैतिक क्रियाकलापों से दूर रखा गया। महिलाओं में राजनैतिक समझ न होने का बहाना लेकर उनको राजनैतिक अधिकार नहीं प्रदान किया गया पर इतिहास की इस मान्यता के विरुद्ध भारत देश में महिलाएँ राजनैतिक रूप से बहुत सक्रिय हैं। वोट देने से लेकर देश चलाने तक का जिम्मा भारतीय स्त्रियों ने उठाया है।
भारत में सरोजिनी नायडू, इंदिरा गांधी, प्रतिभा सिंह पाटिल एवं मीरा कुमार जैसी आधुनिक स्त्रियों के साथ-साथ इतिहास में रजिया सुल्तान, रानी लक्ष्मीबाई जैसी रानियों ने भी इस बात को साबित किया कि वे पुरुषों से कम नहीं है पर अवसर उपलब्ध कराने का कार्य तो समाज का ही है। यदि समाज और सरकार अवसर दे तो भारतीय स्त्रियाँ राजनैतिक सक्रियता की पराकाष्ठा प्राप्त कर सकती हैं। इसका प्रमाण है विश्व आर्थिक फोरम (World Economic Forum) द्वारा प्रकाशित लैंगिक अंतर (Gender Gap) सूची जिसमें 2013 के वर्ष के दौरान भारत की महिलाओं की राजनैतिक सहभागिता अन्य देशों की तुलना में 9वाँ श्रेष्ठ देश था। इस सूची के अनुसार भारत की महिलाओं का फाँस, जर्मनी, इंग्लैण्ड, स्विट्जरलैंड आदि उन्नत देशों की महिलाओं की तुलना में राजनैतिक सहभागिता का स्तर ज्यादा अच्छा था।
1994 में 73वें – 74वें संवैधानिक संशोधनों के जरिए स्थानीय सरकारी निकायों में 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी गई हैं जिसके आधार पर कहा जा सकता है। कि भारतीय सरकार महिलाओं की राजनैतिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कटिबद्ध है। विधान सभा और लोक सभा की सीटों पर आरक्षण के लिए 108वाँ संवैधानिक संशोधन भी प्रस्तावित है। 2014 के लोक सभा चुनावों में 65.63 प्रतिशत महिलाओं ने मत दिया । कुल 260.6 मिलियन महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि भारत में राजनैतिक सहभागिता में वृद्धि हो रही है।
समाज सुधारकों ने बाल विवाह की निन्दा की और इसकी आलोचना करते हुए तर्क दिया कि बचपन में ही शादी तय करने के कारण महिला की स्वतंत्रता का हनन होता है और उसको समुचित शिक्षा देने के बजा उसे तक घर के घरेलू का सीमित करके उनके चिन्तन को सीमित करना अमानवीय है। बंगाल में केशव चन्द्र सेन ने महिलाओं के लिए एक पत्रिका निकाली जिसमें औरतों की शिक्षा स कार्यक्रमों को विकसित किया गया। महाराष्ट्र और गुजरात यही कार्य प्रार्थना समाज ने किया। चन्दावरकर, रानाडे एवं भण्डारकर में पूरीमन रूपम निकण्ठ ने अहमदाबाद में महिला सुधारों का प्रान किया। उनके प्रयासों के अन्तर्गत बाल-विवाह विवा पुनर्विवाह और स्त्री शिक्षा को केन्द्र में रखा गया। प्राक या आन्दोलन पुरुषों के द्वारा महिलाओं के उत्थान के लिए चलाए गए जिसका समाज में महिलाओं की स्थिति सुधारने में सकारात्मक असर पड़ा।
- स्वर्णकुमारी देवी जो रविन्द्रनाथ टैगोर की बहुत थी, ने 1882 में महिला समाज (Ladies Society) की स्थापना की जो महिलाओं की शिक्षा, विधवाओं को कौशल प्रशिक्षक्षण और गरीब महिलाओं को आर्थिक रूप बनाने के लिए प्रशिक्षण देने का काम करती थी। उन्होंन ‘भारती नामक एक महिला पत्रिका की भी शुरूआत की।
- रमाबाई सरस्वती ने पूने में आर्य महिला समाज की स्थापना की और मुम्बई में शारदा सदन की स्थापना की जो महिलाओं के विकास का काम करती थी।
- 1905 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक महिला शाखख में शुरूआत की गई जिसे भारत महिला परिषद कहा गया जो सामाजिक मुद्दों पर बहस करता था। यह परिषद बाल-विवाह, विधवाओं की स्थिति, दहेज प्रथा तथा अन्य सामाजिक बुराइयों के बारे में सोचती और इस दिशा में काम करती थी।
- उस समय के महानगरों कलकता बम्बई आदि शहरों में महिलाओं ने कई संघ स्थापित किए और महिलाओं को एकत्रित करके एक दूसरे से बातचीत करने और महिलाओं से सम्बन्धित मुद्दों पर बहस और चिन्तन का काम शुरू किया। इन प्रयासों के कारण महिलाएँ घर से बाहर आने लगीं और अपने अस्तित्व के बारे में सोचने लगीं।
- 1910 में सरला देवी चौघरानी, जो स्वर्ण कुमारी की पुत्री थी, ने “भारत स्त्री मण्डल (Great Circle of Indian Women) को राष्ट्रीय स्तर पर एक संगठन के रूप स्थापित किया जिसका उद्देश्य देश के सभी अम्म जातियों की स्त्रियों का एक समूह तैयार करना था संस्था ने महिलाओं के नैतिक एवं भौतिक विकास के सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण प्रयास किए। इसकी कई शाखाएँ लाहौर, अमृतसर अहमदाबाद इलाहाबाद हैदराबाद दिल्ली, कराची और कई अन्य शहरों में स्थापित की गई ताकि सम्पूर्ण देश की महिलाओं को इस संगठन के साथ जोड़ा जा सके।
- 1917-1945 के बीच राजनैतिक अधिकार और व्यक्तिगत कानून, दो प्रमुख मुद्दे विचारणीय रहें। इस दौरान 17 में ऐनी बेसेन्ट माग्रेट बहनों और डोरोथी द्वारा WEA (Women’s Indian Association) की स्थापना हुई जिसका उद्देश्य उस समय होने वाले चेम्सफोर्ड राजनीतिक सुधारों के लिए अपना दावा प्रस्तुत करना था । इन तीनों विदेशी महिलाओं का साथ देने के लिए मालती पटवर्धन, स्वामीनाथन, दादाभोय, और श्रीमती अंबुजामल ने भी अपने आपको इस संघ में शामिल कर लिया। इस संघ का प्रमुख लक्ष्य ‘मत देने का अधिकार हासिल करना था । ‘वोट देने के अधिकार की मांग के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से महिलाओं द्वारा हस्ताक्षरित ज्ञापन चेम्सफोर्ड को दिया गया और मांग की गई कि “पुरुषों के समान ही उन्हें भी वोट देने का अधिकार दिया जाए।”इसके अतिरिक्त शिक्षा, कौशल- प्रशिक्षण, स्थानीय स्व-शासन, सामाजिक कल्याण आदि की मांग भी रखी गई। 1917 में उस समय की तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्षा ऐनी बेसेन्ट और मुस्लिम लीग ने महिलाओं के वोट के अधिकार का समर्थन किया ।
सरोजिनी नायडू के नेतृत्व में एक मण्डल तत्कालीन वायसराय से भी मिला और इन अधिकारों की मांग की और इस बात की वकालत की कि “यदि विधान सभाओं में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित कर दी जाए तो समाज और परिवार का विकास ज्यादा सन्तुलित होगा।”
सरोजिनी नायडू और ऐनी बेसेन्ट अपना पक्ष रखने के लिए इंग्लैण्ड की संयुक्त संसदीय बैठक के सामने साक्ष्य प्रस्तुत करने भी गई। इंग्लैण्ड में संयुक्त संसदीय समिति ने लिंग पर आधारित वोट देने की अयोग्यता तो हटा दी पर अन्तिम फैसला प्रान्तीय विधान सभाओं को दे दिया। इस प्रकार ट्रावनकोर, कोचीन राज्य में पहली बार 1920 ये महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिल गया ।
इसके बाद 1921 में बाम्बे और मद्रास में भी महिलाओं को वोट देने का अधिकार प्राप्त हो गया लेकिन वोट देने की शर्तों में स्त्री का एक पत्नी होना, शिक्षित होना और सम्पत्ति का होना तय किया गया था। यानि सभी महिलाओं को मत देने का अधिकार प्राप्त नहीं था । स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद ही सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (Universal Adult Franchise) के तहत सभी स्त्रियों को वोट देने का अधिकार प्राप्त हो पाया ।
बाल विवाह की समस्या को समाप्त करने के लिए शादी की उम्र सीमा बढ़ाने के लिए आन्दोलन किए गए जिसके परिणामस्वरूप 1929 में शारदा एक्ट पास किया गया। बहुविवाह की प्रथा को समाप्त करने के लिए हिन्दू कानून” में संशोधन की मांग की गई। हिन्दू कानून में संशोधन करके विवाह विच्छेद (Divorce) और सम्पत्ति का अधिकार, महिलाओं के लिए माँग की गई। यह माँग लगातार चलती रही और अन्ततः स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद 1950 में “हिन्दू कोड बिल” पास करके इन मांगों को पूर्ण किया गया। इससे महिलाओं की स्थिति में व्यापक परिवर्तन देखने को मिला।